Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Biology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Biology Notes to understand and remember the concepts easily. Browsing through manav janan class 12 in hindi that includes all questions presented in the textbook.
प्रश्न 1.
जैव विविधता के तीन महत्त्वपूर्ण घटकों के नाम बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकीविद् विश्व में उपस्थित प्रजातियों की कुल संख्या का अनुमान कैसे लगाते हैं?
उत्तर:
वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी पर अभिलेखित प्रजातियों के अतिरिक्त लगभग 60 लाख प्रजातियाँ और हैं जिनका खोजा जाना अभी बाकी है। इस अनुमान को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक कीटों के उन समूह की मदद लेते हैं जिनका शीतोष्ण व उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों दोनों में गहन अध्ययन हो चुका है। कीटो के इस शीतोष्ण - उष्ण कटिबन्धीय प्रजाति समृद्धता आंकड़ों की सांख्यिकीय तुलना को अन्य जीवों की संख्या के अनुमान में प्रयोग करते है। इससे उन्हें पृथ्वी पर प्रजातियों की कुल संख्या का एक मोटा - मोटा अनुमान प्राप्त हो जाता है। इस आधार पर अलग - अलग अध्ययनों में प्रजातियों की संख्या 20 से 50 मिलियन आँकी गई है, लेकिन राबर्ट में के अधिक वैज्ञानिक व यथार्थवादी अध्ययन यह संख्या 7 मिलियन बताते है।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में सर्वोच्च स्तर की प्रजाति समृद्धता का स्पष्टीकरण देने वाली 3 परिकल्पनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों का बाधारहित होना: नई प्रजातियों की उत्पत्ति या स्पेसिएशन सामान्यत: समय का परिणाम है। शीतोष्ण क्षेत्रों को भूतकाल में अनेक हिमीकरण या ग्लेसिएशन (glaciation) घटनाओं का सामना करना पड़ा है, जबकि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र लाखों वर्षों तक अपेक्षाकृत रूप से बाधारहित (undisturbed) रहे हैं। अत: किसी प्रकार की बाधाओं व गड़बड़ियों से बचे रहने के कारण उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में प्रजातियों के विविधीकरण हेतु अधिक उपयुक्त' विकासीय समय मिला है।
2. मौसमी बदलावों की न्यूनता: उष्ण कटिबन्धीय पर्यावरण, शीतोष्ण पर्यावरण के विपरीत अधिक स्थिर होता है अर्थात वहाँ ऋतुएँ व्यापक परिवर्तन नहीं लाती, अत: पर्यावरण आपेक्षिक रूप से अधिक स्थिर व अनुमान योग्य होता है। ऐसा स्थिर पर्यावरण निकेत विशिष्टीकरण (niche specialization) को बढ़ावा देकर प्रजाति विविधता बढ़ाता है।
3. अधिक सौर ऊर्जा: उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में उपलब्ध सौर ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है, अतः उत्पादकता भी अधिक होती है। अधिक उत्पादकता, अधिक विविधता की पोषक होती है, अत: परोक्ष रूप से अधिक विविधता के निर्माण में योगदान करती है।
प्रश्न 4.
प्रजातीय - क्षेत्र सम्बंध में समाश्रयण (रिप्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
पारिस्थितिकीविदों ने पाया है कि छोटे अध्ययन क्षेत्रों में किसी भी वर्गिकी समूह (taxonomic group) के प्रजाति समृद्धता क्षेत्र सम्बंध आयताकार अतिपरवलय (rectangular hyperbola) के रूप में परिलक्षित होते हैं। इनमें समाश्रयण (regression) की ढलान का मान 0.1 से 0.2 होता है। (अर्थात क्षेत्र कहाँ स्थित है तथा किस वर्गिकी समूह का अध्ययन किया जा रहा है इसका समाश्रयण ढलान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।) लेकिन बहुत बड़े क्षेत्रों जैसे पूरे उपमहाद्वीप में प्रजाति - क्षेत्र सम्बंध (species area relationship) का विश्लेषण करने पर समाश्रयण डलान लगभग खड़ी रेखा की तरह (steeper) हो जाता है। इस स्थिति में z का मान 0.6 से 1.2 होता है। इसका अर्थ है कि समाश्रयण का इलान प्रजाति - क्षेत्र सम्बंधों की व्याख्या करता है।
प्रश्न 5.
किसी भौगोलिक क्षेत्र में प्रजातियों की क्षति के मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
प्रजाति क्षति या जैव विविधता में क्षति के निम्न प्रमुख कारण हैं-
1. पर्यावास हानि व खण्डन (Habitat loss and Fragmentation): जैव विविधता में क्षति का यह प्रमुख कारण है। पर्यावासों विशेषकर वनों व कोरलरीफ में क्षति के कारण प्रजातियाँ तेजी से विलुप्त हो रही हैं। बड़े पर्यावास को छोटा कर देने से, जैसे विशाल वन क्षेत्र में सड़क निर्माण से पर्यावास का खण्डन हो जाता है जिससे पक्षी व स्तनधारी जैसी अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों का कटान जैव विविधता हानि का सबसे बड़ा कारण है। प्रदूषण से भी अनेक प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हुआ है।
2. अतिदोहन (Over exploitation): मनुष्य के लालच के चलते पिछले 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ उनके अति दोहन के कारण बिलुप्त हुई हैं जैसे पैसेंजर पिजन, स्टेलर सी काउ व अनेक समुद्री मछलियाँ आदि।
3. विदेशी प्रजातियों का आक्रमण: किसी पर्यावरण में जाने - अनजाने विदेशी (alien) प्रजाति के प्रवेश से उसके आक्रमणकारी प्रभाव के कारण उस पारितंत्र की अनेक मूल प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, पूर्वी अफ्रीका में नाइल पर्व नामक मछली के प्रवेश से वहाँ की मूल 200 से अधिक चिकलिड प्रजातियों की मछलियाँ विलुप्त हो गई। भारत में गाजर घास (पार्थेनियम) जलकुम्भी (Eicchornia) व लेन्टाना इसी प्रकार की आक्रमणकारी खरपतवार हैं जो अब पारिस्थितिक चुनौती बन गयी है।
4. सह विलुप्ति (Co extinction): ऐसी प्रजातियाँ जिनमें अविकल्पी पारस्परिक सम्बंध होते हैं, के एक जोड़ीदार के विलुप्त होने पर दूसरा स्वयं विलुप्त हो जाता है। जैसे पादप - परागणकर्ता में से किसी एक के विलुप्त होने पर दूसरे का विलुप्त होना।
प्रश्न 6.
पारितंत्र के कार्यों के लिए जैव विविधता कैसे उपयोगी है?
उत्तर:
पारितंत्र के सभी कार्य जैसे उत्पादकता, ऊर्जा प्रवाह, अपघटन, जैव भू रासायनिक चक्र जैव विविधता के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं। पारितंत्र के कार्यों में जैव विविधता की निम्नलिखित भूमिकाएँ है-
जैव भू रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle): पारितंत्र की जैव विविधता विभिन्न प्रकार के जैव भू - रासायनिक चक्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। यह वायुमण्डल से कार्बन डाईआक्साइड को हटाने व उसकी जगह आक्सीजन मुक्त करने, स्वच्छ जल उपलब्ध कराने व नाइट्रोजन चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्षा वन पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित कुल आक्सीजन का 20 प्रतिशत मुक्त करते है।
अपशिष्ट निस्तारण (Waste disposal): पारितंत्र में अपघटक जीव (जैसे मृतोपजीवी कवक व जीवाणु) मृत कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक पोषक तत्वों में परिवर्तित कर देते हैं। इससे यह उत्पादकों द्वारा पुन: प्रयोग किये जाने योग्य बन जाते हैं।
अपघटन: यह पारितंत्र का विशिष्ट कार्य है, जिसे सूक्ष्मजीव ही पूरा करते है। ऊर्जा का रूपान्तरण व ऊर्जा प्रवाह - हरे पौधे सौर ऊर्जा को खाद्य पदार्थं को रासायनिक ऊजा में बदल देते हैं, वही उत्पादकता है। यह खाद्य ऊर्जा पारितंत्र में एकदिशीय रूप में प्रवाहित होती है। परागणकर्ता प्रदान करते हैं।
प्रश्न 7.
पवित्र उपवन क्या है? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?
उत्तर:
पवित्र उपवन (sacred groves) वनाच्छादित क्षेत्र के ऐसे सुरक्षित खण्ड है जिन्हें धार्मिक मान्यताओं व सामाजिक विश्वासों के आधार पर संरक्षण प्राप्त है। भारत में ऐसे अनेक पवित्र उपवन, जैव विविधता संरक्षण की आधुनिक अवधारणा के आने से पहले ही अस्तित्व में है तथा स्वस्थाने (in situ) संरक्षण का एक कामयाब तरीका है। यहाँ मानवीय गतिविधियाँ प्रतिबन्धित होती हैं। भारत में ऐसे पवित्र उपवन मेघालय की खासी व जैतिया पहाड़ी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ कर्नाटक, महाराष्ट्र व केरल आदि में स्थित हैं। अनेक क्षेत्रों में प्रजाति समृद्धता, स्थानिकता (endemism) पवित्र उपवन के कारण ही संरक्षित हैं। सिक्किम की शोंगू झील व उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान के अनेक जलाशयों में भी मानवीय क्रियाकलाप प्रतिबन्धित है व वे केवल संरक्षण हेतु प्रयोग होते हैं।
प्रश्न 8.
पारितंत्र सेवा के अन्तर्गत बाढ़ व भू अपरदन नियंत्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितंत्र के जैविक घटकों (बायोटिक कम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?
उत्तर:
बाढ़ व भू अपरदन के नियंत्रण जैसी पारितंत्र सेवाओं में वनस्पति प्रमुखत: वनों की महती भूमिका है। वन निम्न प्रकार से बाढ़ व मृदा अपरदन रोकते है-
प्रश्न 9.
पादपों की प्रजाति विविधता (22 प्रतिशत) जंतुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है: क्या कारण है कि जन्तुओं में अधिक विविधता मिलती है।
उत्तर:
जन्तुओं की अधिक विविधता के निम्न कारण हो सकते हैं-
1. पादप अचलायमान (non motile) हैं, वह अपनी जड़ों द्वारा एक स्थान पर स्थिर रहते हैं। जबकि जन्तु चल (motile) है अतः अलग - अलग पर्यावासों में पहुँच जाते हैं। जन्तुओं की गतिशीलता (mobility) ने इनके अलग - अलग पर्यावासों हेतु अनुकूलित होने के अवसर उपलब्ध कराये होंगे।
2. पादप स्वपोषी (autotrophic) हैं व सरल अकार्बनिक पदार्थों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग कर सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन बनाते हैं। यह पदार्थ व सौर ऊर्जा सर्वत्र उपलब्ध है अत: सभी पादपों में पोषण को लेकर हुए अनुकूलनों में विविधता नहीं है। जन्तुओं में प्राणिसम, विषमपोषी (heterotrophic holozoic) पोषण पाया जाता है। स्पर्धा कम करने हेतु व निकेत विशिष्टीकरण के लिए जन्तुओं में पौधों के अलग-अलग भागों को प्राप्त करने के लिए विविध अनुकूलन हुए। जैसे एक ही पौधे से भोजन प्राप्त करने के लिए अलग - अलग प्रकार के मुखांग (mouth parts) वाले कीट जैसे मधुमक्खी, तितली, मच्छर, मक्खी, कैटरपिलर लार्वा आदि बन गये। एक ही प्रकार के पादप पदार्थ को प्राप्त करने को पक्षियों व स्तनधारियों में अलग-अलग प्रकार के अशन (feeding) अनुकूलन होने से भिन्न - भिन्न प्रकार के जीव बन गये। इसीलिए जन्तुओं में विविधता पौधों की अपेक्षा कई गुनी अधिक होती है। यह विविधता का महत्वपूर्ण कारण है।
3. जन्तुओं में कोशिकाभित्ति नहीं होती अत: डी एन ए (आनुवंशिक) पदार्थ आसानी से भेद्य होता है जिससे उत्परिवर्तन की संभावना बढ़ जाती है।
4. जन्तुओं का तंत्रिका तंत्र व संवेदी अंग इन्हें पर्यावरण के प्रति तीव्र अनुक्रिया हेतु सक्षम बनाते हैं अत: अनुकूलन भी जल्दी होते हैं।
प्रश्न 10.
क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं जहाँ हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?
उत्तर:
1. जी हाँ! जब हम रासायनिक पीड़कनाशियों (pesticides) का प्रयोग करते हैं तब हम ऐसा ही सोचते हैं। कीटनाशियों द्वारा हम पीड़क कीट का शाकनाशियों द्वारा पीड़क खरपतवार का समूल विनाश करना चाहते है। मच्छरों के खिलाफ कीटनाशियों का प्रयोग इसी उद्देश्य से किया गया है।
2. जी नहीं! यह उचित नहीं है। हम प्रकृति में जीवन का ताना - बाना नहीं बुनते। हम इस जटिल तंत्र की एक कड़ी मात्र है। इस ताने - बाने को पहुंचाई गई कोई भी क्षति अन्ततः मनुष्य के लिए ही नुकसानदायक होती है। कीटों को या किसी भी अन्य पीड़क (pest) को जैविक नियंत्रण विधि द्वारा उसके लगभग अहानिकर स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। चूंकि प्रजाति समृद्धता पारितंत्र को अधिक स्थिर, अधिक उत्पादक बनाती है अत: किसी भी प्रजाति को समूल नष्ट करना बुद्धिमत्तापूर्ण व विवेकपूर्ण नहीं माना जा सकता। किसी प्रजाति को खोकर हम उसकी समष्टियों में उपलब्ध आनुवंशिक विविधता को हमेशा के लिए खो देते हैं।