Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 13 जीव और समष्टियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) से उपरति (डायपॉज) किस प्रका भिन्न है?
उत्तर:
शीत निष्क्रियता (Hibernation) में अनेक असमतापी जन्तु व कुछ समतापी जन्तु जैसे धूवीय भालू अत्यधिक निम्न तापमान वाली पर्यावरणीय परिस्थितियों से बचने के लिए लम्बी शीत निद्रा (Winter hyberation) में चले जाते हैं। इस समय उनकी उपापचयी क्रियाएं मन्द पड़ जाती है। अपनी आधारी उपापचयी आवश्यकताओं (Basal metabolicneeds) को पूरा करने के लिए वह ऊर्जा शरीर में संचित वसा के आक्सीकरण से प्राप्त करते हैं। अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर यह पुनः सक्रिय जीवन प्रारम्भ कर देते हैं। जबकि उपरति (Diapause) में विकास निलम्बित (development suspended) रहता है। डायपास कुछ जन्तु प्लवको (Zooplanktons) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। छोटे कीटों में विकास के इस थम जाने को 'विन्टर एग्स' (Winter eggs) भी नाम दिया जाता है।
प्रश्न 2.
अगर समुद्री मछली को अलवणजल (फ्रेशवाटर) की जल जीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है। तो क्या वह मछली जीवित रह पायेगी? क्यों और क्यों नहीं?
उत्तर:
समुद्री मछलियों जैसे शार्क (डार्गे फिश) व रे (Rays) आदि में शरीर द्रव व समुद्री जल की सान्द्रता समान होती है। अर्थात शरीर द्रव (Body fluid) समुद्री जल के समपरासरी (Isotonic) होता है। अत: इन्हें समान परासरणीय दाब बनाये रखने में कठिनाई नहीं होती। लेकिन स्वच्छ जलीय पर्यावरण में लाने पर जल के शरीर में प्रवेश करने से इसके शरीर द्रव की सान्द्रता समान नहीं रह पायेगी। शरीर द्रव के तनु हो जाने से इसका उपापचय व जैविक क्रियाएँ विपरीत रूप से प्रभावित होंगी अतः मछली मर जायेगी। यह संरूपण (Conform) करने वाले जीव है जो जलीय सान्द्रता के एक संकीर्ण परास को सहन कर सकते है।
समुद्री अस्थिल मछली (Bony fish) में परासरण नियमन अलग प्रकार से होता है। यह लगातार समुद्री जल पीती रहती है। पानी के साथ उन्हें लवणों की भी प्राप्ति होती है। लवणों की अतिरिक्त मात्रा से छुटकारा पाने के लिए वह अपने गिल्स से लगातार सोडियम (Na+) व क्लोराइड (Cl-) आयन को शरीर से बाहर निकालती रहती हैं। इससे निष्क्रिय रूप से जल की भी हानि होती है। इस प्रकार की मछली को फ्रेश वाटर एक्वेरियम में डालने पर जल शरीर में लगातार जाता रहेगा लेकिन उसमें लवणों की मात्रा नहीं होगी। इन लवणों के अभाव में मछली के शरीर द्रवों की परासरणता (Osmolarity) गड़बड़ा जायेगी। द्रव तनु हो जायेंगे। तथा अन्ततः मछली मर जायेगी।
प्रश्न 3.
लक्षण प्ररूपी (फीनोटिपिक) अनुकूलन की परिभाषा दीजिए। एक उदहारण भी दीजिए।
उत्तर:
जीव के वह प्रेक्षणीय आकारिकीय (Morphological) लक्षण जो उसे किसी आवास विशेष में सफलता पूर्वक जीवन जीने व प्रजनन करने में सफल बनाते हैं लक्षण प्ररूपी अनुकूलन कहलाते हैं।
उदाहरण - पक्षियों में अप्रपादों (Forelimbs) का पंखों (wings) - में रूपान्तरण।
प्रश्न 4.
अधिकतर जीवधारी 45°C से अधिक तापमान पर जीवित नहीं रह सकते। कुछ सूक्ष्मजीव ऐसे आवास में जहाँ तापमान 100°C से अधिक है, कैसे जीवित रहते हैं?
उत्तर:
सभी कोशिकीय जीवों में जैविक क्रियाएँ उपापचय (metabolism) पर आधारित होती हैं जो एंजाइमों द्वारा नियंत्रित होता है। एंजाइम तापमान के एक संकीर्णं परास में कार्य करते हैं। मनुष्य के लिए यह अनुकूलतम ताप 37°C है। 45°C से अधिक ताप पर एंजाइम (प्रोटीनों) का विकृतीकरण (Denaturation) हो जाता है। इस प्रकार एंजाइमों की सक्रियता समाप्त हो जाने से उपापचय के अभाव में जीव की मृत्यु हो जाती है (उपापचय जीव का विशिष्ट लक्षण है) आकीबैक्टीरिया (Archaebacteria) ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी पाये जाते है जैसे थर्मल स्प्रिंग आदि जहाँ तापमान 100°C से भी अधिक होता है। इन आद्य जीवों में ताप स्थायी एंजाइम (thermostable enzymes) पाये जाते हैं। जिन पर उच्च ताप का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इनकी कोशिका भित्ति व कोशिका कला भी ताप सह होती हैं।
प्रश्न 5.
उन गुणों को बताइये जो जीव में नहीं पर समष्टियों में होते हैं।
उत्तर:
समष्टि के गुण है-
प्रश्न 6.
अगर चरघातांकी रूप से (exponentially) बढ़ रही समष्टि 3 वर्ष में दोगुने साइज की हो जाती है, तो समष्टि की वृद्धि की इट्रिन्सिक दर (r) क्या है?
उत्तर:
किसी समष्टि को इन्ट्रिसिक वृद्धि की दर (r) को निम्न सूत्र की मदद से ज्ञात किया जाता है।
rN = \(\frac{d N}{d t}\) जहाँ N = समष्टि का आकार
अतः r = \(\frac{d N}{N d t}\)
= \(\frac{2}{1 \times 3}\) जब समष्टि वृद्धि चरघातांकी हो तब Y को विशिष्ट वृद्धि दर (Specific Growth rate) के रूप में देखा जाता है।
r = 0.66
प्रश्न 7.
पावों में शाकाहारिता (Herbivory) के विरुद्ध रक्षा करने की महत्वपूर्ण विधियाँ बताइये?
उत्तर:
पादपों में शाकाहारी जन्तुओं से अपनी रक्षा करने हेतु अनेक आकारिकीय (morphological) व रासायनिक (Chemical) विधियों का विकास हुआ है। जैसे-
(i) आकारिकीय: पत्तियों या तनों का काँटों में रूपान्तरण जैसे बबूल व नागफनी के काटे (Spines) बोगेनविलिया के कटि (Thorn) आदि। पत्तियों व कोमल तने पर सघन रोमों (dense hair) की उपस्थिति
इससे कोट उन तक नहीं पहुंच पाते।
(ii) अनेक प्रकार के जहरीले रसायनों का निर्माण जैसे आक (केलोट्रापिस) में कार्डियक ग्लाइकोसाइड्स (Cardiac glycosides)। अनेक पौधे ऐसे रसायन बनाते व संग्रह करते हैं जिनको खाने वाला शाकाहारी जीव बीमार पड़ जाता है। यह रसायन जीवों में आहार ग्रहण करना या पाचन अवरुद्ध कर देते हैं। साथ ही यह उनके प्रजनन को गड़बड़ा देते हैं। इनसे जीव की मृत्यु भी हो सकती है। कुनैन (quinine), अफीम, निकोटीन, कैफीन, स्ट्रिकनीन आदि पौधे, शाकाहारी द्वारा उनके भक्षण पर रोक लगाने के लिए ही बनाते हैं।
प्रश्न 8.
आर्किड पौधा आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। आर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया का वर्णन आप कैसे करेंगे?
उत्तर:
आर्किड एक उपरिरोही पौधा (Epiphyte) है जो किसी भी पौधे की शाखा पर उगकर अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वयं बनाता है। इसकी जल अवशोषी या हाइप्रोस्कोपिक जड़ें (Hygroscopic roots) वायुमण्डल से नमी का अवशोषण करती हैं। आर्किड उपरिरोही सहभोजिता (Commensalism) का एक उदहारण है। इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया से एक जीव लाभान्वित होता है (इस उदाहरण में आर्किड) तथा दूसरे को न कोई हानि होती है न लाभ होता है। इस उदाहरण में आम के पौधे को कोई लाभ या हानि नहीं होती।
प्रश्न 9.
कीट पीड़कों (insect pest) के प्रबन्धन के लिए अपनाए जाने वाली जैव नियंत्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धान्त है?
उत्तर:
कृषि में पीड़क प्रबन्धन के लिए अपनाए जाने वाली जैव नियंत्रण विधियाँ परभक्षी की शिकार (Prey) समष्टि को नियंत्रित किये जाने की क्षमता पर आधारित है। जैसे एफिड के नियंत्रण के लिए लेडी बर्ड (lady bird), मच्छरों के नियंत्रण के लिए ड्रेगन फ्लाई। इसी प्रकार कीटों के परजीवियों या रोगजनकों का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे आधोंपोड्स के परजीवी वैक्युलोवाइरस। अत: जैव नियंत्रण विधियां परभक्षता व परजीविता जैसी-जीवों की पारस्परिक क्रियाओं के सिद्धान्त पर आधारित है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित के बीच अन्तर कीजिए।
(क) शीतनिष्क्रियता और ग्रीष्मनिष्क्रियता (हाइबर्नेशन व एस्टीवेशन)
(ख) बायोष्मी और आतंरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एंडोथर्मिक)
उत्तर:
(क) शीतनिष्क्रियता (Hibernation): अत्यधिक कम ताप वाली प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों से बचने को जन्तु द्वारा अपनाई प्रसुप्ति (Dormany) की अवधि शीतनिष्क्रियता या शीत निद्रा (Winter Sleep) कहलाती है। इस अवस्था में जीव की उपापचयी गतिविधियाँ मन्द पड़ जाती हैं तथा वह संचित खाद्य से अपनी आधारी उपापचयी आवश्यकताओं को पूर्ण करतें हैं। अनेक उभयचर (एम्फीबियन) व सरीसृप शीत निष्क्रियता प्रदर्शित करते हैं। कुछ स्तनधारी जैसे- ध्रुवीय भालू भी शीतनिष्क्रियता अपनाते हैं।
ग्रीष्मनिष्क्रियता (Aestivation): शीत निद्रा के विपरीत यह लम्बी ग्रीष्म निद्रा की अवधि है। उच्च ताप के प्रभाव व इसके कारण होने वाली जल हानि (Dessication) से बचने के लिए अनेक जीव सुषुप्ति की अवस्था में चले जाते हैं। इस अवस्था में जीव भूमि के नीचे सुप्त अवस्था में पड़ा रहता है व उसकी उपापचयी दर कम हो जाती है।
जैसे- मेंढका।
(ख) लगभग सभी अपृष्ठधारी (Invertebrates), मछलियाँ, एम्फीबियन व सरीसृप, कार्यिकीय (physiological) प्रक्रियाओं को अपनाकर अपने शरीर का ताप स्थिर बनाये रखने में असमर्थ होते हैं। इसीलिए इन जीवों को शीत रक्त वाले (Cold blooded animals) या पोइकिलोथर्मिक (Poikilothermic) जन्तु कहा जाता है। चूंकि यह उपापचयी ऊष्मा (Metabolic heat) के बजाय पर्यावरण से प्राप्त ऊष्मा पर निर्भर रहते हैं। अत: इन्हे बायोष्मी (Ectotherm) भी कहा जाता है। पक्षी व स्तनधारी कार्यिकीय प्रक्रियाओं की मदद से अपने शरीर का तापमान स्थिर बनाये रखने में सक्षम होते हैं। (पर्यावरणीय तापमान में हुए उतार-चढ़ाव से बिना प्रभावित हुए) इन्हें गर्म रक्त वाले (Warm Blooded) या होमियोथर्मिक
(Homeothermic) जन्तु कहा जाता है। होमियोधर्म ऊष्मा के बाह्य स्रोत से स्वतंत्र अपनी उपापचयी ऊष्मा से अपना ताप स्थिर रखते है। चूंकि यह ऊष्मा के आन्तरिक स्रोत पर निर्भर रहते हैं अतः एन्डोथर्मिक (Endothermic) कहलाते हैं। ठण्डे रक्त वाले व गर्म रक्त वाले शब्दों का प्रयोग अब नहीं किया जाता है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी (नोट) लिखिए-
(क) मरुस्थली पादपों और प्राणियों के अनुकूलन
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों के अनुकूलन
(ग) प्राणियों में व्यवहारगत (Behavioural) अनुकूलन
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्व
(च) तापमान या पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन
उत्तर:
(क) मरुस्थली पादपों और प्राणियों के अनुकूलन: जल की कमी मरुस्थली आवास की प्रथम समस्या है। अत: पौधे जल संरक्षण हेतु। अनुकुलित होते है। यहाँ तापमान चरम होता है। मरुस्थली पाबपों के अनुकूलन (Adaptation of xerophytes) शुष्क क्षेत्रों में जीवन हेतु अनुकूलित पौधे जो लम्बी शुष्क अवधि को सहने में सक्षम होते हैं मरुद्भिदी पौधे (Xerophytes) कहलाते हैं। मरुस्थली पौधे शुष्कता से बचने हेतु दो प्रमुख रणनीतियाँ अपनाते हैं, शुष्कता से पलायन व शुष्कता सहन करना।
(A) शुष्कता पलायनकर्ता (Drought evaders): इस प्रकार के पौधे वर्षा या वर्षाकाल के तुरन्त बाद उग कर वृद्धि, पुष्पन व बीज निर्माण मात्र 4 से 6 सप्ताह में कर लेते हैं। इन्हें एफौमेरल (Ephemeral) पौधे कहा जाता है। इनके द्वारा उत्पादित बीज अगली वर्षा त्रातु तक प्रसुप्ति (Dormant) अवस्था में पड़े रहते हैं।
(B) शुष्कता सहन करने वाले पौधे (Drought Evaders): इन पौधों में विभिन्न आकारिकीय, संरचनात्मक, कार्यिकीय अनुकूलन होते है। जल संरक्षण के लिए यह वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं, अत: जल हानि नहीं होती, जल का शरीर में संग्रह करते हैं व अधिक जल अवशोषण का प्रयास करते हैं। इस हेतु इसमें निम्न अनुकूलन होते हैं।
जल संरक्षण की क्रिया
1. वाष्पोत्सर्जन में कमी (Reduction in transpiration) |
पत्तियाँ या तो अनुपस्थित, बहुत छोटी अथवा कांटो (Spines) में रूपान्तरित - नागफनी पर्णरन्ध्र (स्टोमेटा) संख्या में कम तथा गर्ती (Sunken Stomata) - कनेर पत्ती की सतह रोमिल अथवा मोमी उपचर्म (waxy cuticle) - आक |
2. जल का संग्रह (Storage of water) |
तना मांसल (Succulent) - नागफनी पत्ती मांसल - ब्रायोफिल्लम, एलोवेरा मांसल भूमिगत भाग जैसे बल्ब, टयूबर |
3. जल अवशोषण (Water absorption) |
गहरा जड़ तंत्र (root system) वाटर टेबल तक - जैसे बबूल। सतह के नीचे फैला उचला जड़ तंत्र (Shallow root System) जैसे - कैक्टस में। |
मरुस्थली जन्तुओं के अनुकूलन (Adaptation of animals of desert area) जल हानि को कम करने व जल संचय हेतु जन्तुओं में निम्न अनुकूलन पाये जाते है।
(ख) जल की कमी के प्रति पादों का अनुकूलन: मरुस्थली पादपों के अनुकूलन व जल की कमी के प्रति पादपों के अनुकूलन एक ही बात है। मरुस्थली पौधों को तापमान की चरम स्थिति (अत्यधिक ज्यादा व कम) के कारण जल संरक्षण हेतु अनुकूलित होना होता है।
(ग) प्राणियों में व्यवहारगत अनुकूलन (Behavioural Adaptations in animals)
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व (Importance of light to plants): प्रकाश की तीव्रता (intensity), गुणवत्ता (quality) तथा अवधि (duration) तीनों ही पौधों को प्रभावित करते है।
(i) प्रकाश सभी हरे पौधों में प्रकाश संश्लेषण हेतु उत्तरदायी है, जो पौधों में ही नहीं सभी जीवधारियों को भोजन आपूर्ति हेतु आवश्यक है। प्रकाश पौधों की उत्पादकता व वितरण दोनों को प्रभावित करता है। कुछ पौधों में प्रकाश की अधिक तीव्रता व गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए स्पर्धा होती है। वर्षा वनों का स्तरीकरण (stratification) इसी का परिणाम है। प्रकाश की उच्च तीव्रता व गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ प्रकाशस्नेही Cheliophyte)' पौधे काष्ठ, लताओं (woody climbers - Lianas) का रूप लेते हैं। समुद्री जल पर्यावरण में अधिक गहराई पर केवल कुछ लाल शैवाल (red algae) ही एक-मात्र उत्पादक होती है क्योंकि इनमें प्रकाश के नीले भाग को अवशोषित करने की क्षमता होती है। प्रकाश की नीली तरंगदैर्घ्य (छोटी तरंगदैर्ध्य व उच्च ऊर्जा) ही समुद्र में अधिक गहराई तक पहुंचने में सक्षम होती है।
(ii) पौधे प्रकाश की अवधि (duration of light) के लिए भी अनुक्रिया प्रदर्शित करते हैं। पौधों में पुष्पन हेतु प्रकाश की एक निश्चित अवधि आवश्यक होती है, इसे दीप्तिकालिता (photoperiodism) कहा जाता है।
(iii) कुछ पौधों में बीजों के अंकुरण हेतु भी प्रकाश आवश्यक होता है।
(iv) पौधों की वृद्धि व विकास हेतु प्रकाश आवश्यक है, क्लोरोफिल का निर्माण प्रकाश की उपस्थिति में होता है।
(v) प्रकाश का पौधों पर परोक्ष (inderect) प्रभाव भी पड़ता हैं। क्योंकि प्रकाश अपने ऊष्मा प्रभाव (thermal effect) द्वारा पौधों की कार्यिकी (physiology) को प्रभावित करता है।
(iv) प्रकाश पौधों के वितरण (distribution) हेतु भी कुछ हद तक उत्तरदायी है। (पौधों का भौगोलिक वितरण प्रमुखतः तापमान व वर्षों द्वारा निर्धारित होता है।)
(च) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन (Effect of temperature or water scarcity and the adaptations of animals)
(B) कम तापमान और पानी की कमी हेतु जन्तुओं के अनुकूलन-
मरुस्थली जलवायु में ताप की कमी व ताप की अधिकता अर्थात चरम स्थितियाँ पाई जाती हैं। ठण्डे रेगिस्तान या ध्रुवीय (Polar) क्षेत्रों में ताप की कमी के साथ - साथ कार्यिकीय शुष्कता (Physiological dryness) की स्थिति होती है। अत: जन्तुओं में निम्न अनुकूलन होते है-
प्रश्न 12.
अजैविक (abiotic) पर्यावरणीय कारकों की सूची बनाइये।
उत्तर:
अजैविक पर्यावरणीय कारक प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं-
जलवायुगत व मृदीय। जलवायुगत कारक (Climatic Factor)
(क) तापमान (temperature)
(ख) जल (water)
(ग) प्रकाश (light)
(घ) गतिशील वायु (wind)
मृदीय कारक (Edaphic factors): मृदा की प्रकृति व संरचना, स्थलाकृतिक कारक (topographical factors) आदि।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित का उदाहरण दीजिए।
(क) आदपोमिद् (heliophyte)
(ख) छायोनिद् (sciophyte)
(ग) सजीव प्रजक (viviparous) अंकुरण वाले पादप
(घ) आन्तरोष्मी (endothermic) प्राणि
(च) बायोष्मी प्राणि (ectothermic animal)
(छ) नितलस्थ क्षेत्र (Benthic zone) का जीव
उत्तर:
(क) सूरजमुखी, बबूल
(ख) ब्रायोफाइट जैसे मांस व सजावटी पौधे जैसे मनी प्लांट (Money plant), क्रोटन, डफेनवैकिया आदि।
(ग) मैव पौधे, राइजोफोरा (Rhizophora)
(घ) स्तनधारी जैसे मनुष्य
(च) मेढ़क व अन्य एम्फीबियन, सरीसृप आदि
(छ) तारा मछली (Star fish)
प्रश्न 14.
समष्टि (Population) व समुदाय (Community) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
(a) समष्टि (Population): किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में नियत समय पर रहने वाले एक ही प्रजाति के जीवों की संख्या जो समान संसाधनों का उपयोग या उनके लिए स्पर्धा करती है, समष्टि कहलाती है।
(b) समुदाय (Community): एक ही आवास या भौगोलिक क्षेत्र में पायी जाने वाली सभी प्रकार के जीवों की सभी समष्टियाँ जो पारस्परिक क्रिया करती हैं जैव समुदाय (Biotic community) कहलाती है।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए व प्रत्येक का एक - एक उदाहरण दीजिए।
(क) सहभोजिता (Commensalism)
(ख) परजीविता (Parasitism)
(ग) छदमावरण (Camouflage)
(घ) सहोपकारिता (Mutualism)
(च) अन्तरजातीय स्पर्धा (Interspecific competition)
उत्तर:
(क) सहभोजिता (Commensalism): दो प्रजातियों के जीवों के बीच की पारस्परिक क्रिया जिसमें एक जीव (प्रायः आकार में छोटा) लाभान्वित होता है तथा दूसरे को न कोई हानि होती है न लाभ-किसी वृक्ष की शाखा पर उपरिरोही (epiphyte) के रूप में उगने वाला आर्किडा
(ख) परजीविता (Parasitism): दो जीवों के बीच की पारस्परिक क्रिया जिसमें एक (परजीवी) दूसरे जीव (पोषक) से पोषण प्राप्त करता है, अर्थात इस पारस्परिक क्रिया में एक जीव को लाभ व दूसरे (पोषक) को हानि होती है।
उदाहरण: पुष्पी पौधों पर उगने वाली अमर बेल (Cuscuta)
(ग) छदमावरण (Camauflage): किसी जीव के रंग - रूप में होने वाला बदलाव जिससे वह अपने परिवेश में घुलमिल जाता है व आसानी से नजर नहीं आता छद्मावरण कहलाता है।
उदाहरण: कीट बिस्टन बेटुलेरिया का लाइकेन जमी वृक्षों की सलेटी छाल में घुल-मिलकर दिखाई न देना।
(घ) सहोपकारिता (Mutualism): दो जीवों के बीच की पारस्परिक क्रिया जिससे दोनों साझेदारों को लाभ होता है, सहोपकारिता (mutualism) कहलाती है।
उदाहरण: लाइकेन, माइकोराइजा आदि। लाइकेन में कवक व शैवाल के मध्य साझेदारी (partnership) होती है।
(च) अन्तरजातीय स्पर्धा (Interspecific competition): दो भिन्न - भिन्न प्रजातियों के जीवों के बीच संसाधनों जैसे प्रकाश, पोषक तत्व, स्थान आदि को लेकर होने वाली प्रतिस्पर्धा, अन्तरजातीय स्पर्धा कहलाती है। जैसे दक्षिणी अमेरिकी झीलों में जन्तुप्लवकों (Zooplanktons) के लिए प्रवासी फ्लेमिंगों व स्थानीय मछलियों के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा।
प्रश्न 16.
उपयुक्त आरेख (diagram) की सहायता से लांजिस्टिक समष्टि वृद्धि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लॉजिस्टिक समष्टि वृद्धि में समय के सापेक्ष समष्टि आकार को आरेखित करने पर 5 के आकार का या सिगमाइड वृद्धिवक्र (sigmoid growth curve) प्राप्त होता है यह वह स्थिति दर्शाता है जिसमें-
एक समष्टि जब सीमित संसाधनों वाले आवास/पर्यावरण में वृद्धि करती है तब वृद्धि का तरीका लॉजिस्टिक ही रहता है। इस प्रकार की समष्टि वृद्धि को वेरहस्ट पर्ल लॉजिस्टिक वृद्धि (Verhulst - Pearl Logistic Growth) कहा जाता है तथा निम्न समीकरण द्वार प्रदर्शित किया जाता है-
\(\frac{d N}{d t}=r N\left(\frac{K-N}{K}\right)\)
जहाँ N = t समय पर समष्टि घनत्व,
r = प्राकृतिक वृद्धि की इन्ट्रिन्सिक दर तथा
K = धारण क्षमता (Carrying capacity) है।
समष्टि वृद्धि दर में कमी का कारण आवश्यक संसाधनों जैसे खाद्य या स्थान के लिए बढ़ती स्पर्धा होती है। इस प्रकार की समष्टि वृद्धि को घनत्व निर्भर (density dependent) भी कहा जाता है क्योंकि किसी दिये गये संसाधन समुच्च्य के लिए वृद्धि दर, समष्टि में उपस्थित जीवों की संख्या पर निर्भर करती है।
प्रश्न 17.
निम्नलिखित कथनों में से परजीविता (पेरासिटिज्म) को कौन - सा सबसे अच्छी तरह स्पष्ट करता है-
(क) एक जीव को लाभ होता है।
(ख) दोनों जीवों को लाभ होता है।
(ग) एक जीव को लाभ होता है तथा दूसरा प्रभावित नहीं होता है।
(घ) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है।
उत्तर:
(घ) एक जीव को लाभ दूसरा प्रभावित होता है।
प्रश्न 18.
समष्टि की कोई तीन महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइये और व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समष्टि की तीन महत्वपूर्ण विशेषताएँ है - जन्मदर व मृत्युदर, लिंग अनुपात व आयु वितरण।
1. जन्मदर व मृत्युदर (Birth Rate and Death Rate): जन्मदर (Birth rate) से तात्पर्य है प्रति जीव जन्म (per capita birth) मृत्युदर (Death rate) का अर्थ है प्रति जीव मृत्यु (per capita death) यह नियत समय में मापी जाती है।
2. लिंग अनुपात (sex ratio): जीव नर या मादा होते हैं जबकि समष्टि में लिंग अनुपात होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य की जनसंख्या में लिंग अनुपात को प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या के रूप में देखा जाता है।
3. आयु वितरण (Age distribution): समष्टि में जीवों को विभिन्न आयु वर्गों के रूप में विभाजित किया जाता है जैसे पूर्व प्रजननी आयु वर्ग (pre reproductive age group), प्रजननी आयु वर्ग (reproductive age group) तथा पश्च प्रजननी आयु वर्ग (Post reproductive age group)। इन आयु वर्गों में नर तथा मादा को साथ - साथ (combined) रखा जाता है। किसी समष्टि के विभिन्न आयु वर्गों का आरेखीय चित्रण आयु पिरामिड (age pyramid) कहलाता है। यह संकेत देता है कि समष्टि स्थिर है या बढ़ रही है अथवा घटने वाली है।