Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास Textbook Exercise Questions and Answers.
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पृष्ठ - 169.
प्रश्न 1.
जल एक आर्थिक उपभोक्ता वस्तु क्यों बन गया है? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जल प्रकृति प्रदत्त निःशुल्क उपहार है तथा हम इसे नदी, तालाब, कुओं आदि से निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं किन्तु विगत वर्षों में नदी, तालाब आदि प्रदूषित हो गए हैं एवं कई जल स्रोत सूख गए हैं। अतः स्वच्छ जल प्राप्त होना अब अत्यन्त जटिल हो गया है। इस कारण जल एक आर्थिक उपभोक्ता वस्तु बन गया है।
पृष्ठ - 174.
प्रश्न 2.
एक ट्रक ड्राइवर को काले धुएँ का उत्सर्जन करने के कारण 1000 रुपये चालान के रूप में भुगतान करना पड़ा। क्या आपने समझा कि, उसे क्यों दण्ड दिया गया? क्या यह सही था? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ट्रक द्वारा काले धुएं का उत्सर्जन होने पर ड्राइवर पर लगाया गया 1000 रुपये का जुर्माना एकदम सही है। वाहनों से निकलने वाला काला धुआँ वायु प्रदूषण का सबसे मुख्य कारण है। वाहन के काले धुएँ में कई प्रकार के हानिकारक रसायन पाए जाते हैं जिनका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा इनका मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः वाहनों पर इस प्रकार के धुएँ के उत्सर्जन पर रोक लगाने हेतु जुर्माना लगाना उचित है तथा इसी कारण वाहनों की प्रदूषण जांच की जाती है ताकि पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचे। प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर जुर्माना लगाकर वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है।
पृष्ठ - 178.
प्रश्न 3.
दिल्ली में बसें और अन्य सार्वजनिक जन परिवहन पेट्रोल या डीजल के बजाय उच्च दाब गैस (CNG) का उपयोग करते हैं तथा कुछ वाहन परिवर्तनीय इंजनों का उपयोग करते हैं। सौर ऊर्जा का उपयोग स्ट्रीट लाइट के लिए किया जाता है। इन परिवर्तनों के बारे में आप क्या सोचते हैं? भारत में धारणीय विकास की आवश्यकता पर अपनी कक्षा में परिचर्चा का आयोजन कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण पर ध्यान न देने के कारण देश में पर्यावरण के सम्मुख कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं। बढ़ते वाहनों तथा उनमें डीजल एवं पेट्रोल के अत्यधिक प्रयोग के कारण शहरों में वायु प्रदूषण बहुत बढ़ गया जिस कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। देश के कई बड़े शहरों में जैसे दिल्ली में वाहनों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का प्रयोग किया जाता है, इससे वायु प्रदूषण बहुत कम हो गया है तथा पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
इसी प्रकार स्ट्रीट लाइट हेतु सौर ऊर्जा के उपयोग से पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। भारत में धारणीय विकास की अत्यन्त आवश्यकता है। भारत में पहले विकास के साथ-साथ पर्यावरण का कोई ध्यान नहीं रखा गया जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। धारणीय विकास की अवधारणा में विकास के साथ-साथ पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का भी ध्यान रखा जाता है तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को रोका जाता है। धारणीय अवधारणा में भावी पीढ़ी की संसाधनों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर संसाधनों का उपयोग किया जाता है। अतः भारत में धारणीय विकास की अत्यन्त आवश्यकता है।
प्रश्न 1.
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समस्त भूमंडलीय विरासत तथा सभी संसाधनों को समग्र रूप से पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण में वे सभी जैविक और अजैविक तत्त्व आते हैं, जो एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जैविक तत्त्वों में पशु, पक्षी, पौधे, वन, मत्स्य इत्यादि को शामिल किया जाता है जबकि अजैविक तत्त्वों में हवा, पानी, भूमि, पहाड़, चट्टान, सूर्य प्रकाश आदि को शामिल किया जाता है। पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत इन्हीं जैविक एवं अजैविक घटकों के बीच अंतर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 2.
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर:
जब संसाधनों का निष्कर्षण इनके पुनर्जनन की दर से अधिक होता है तो पर्यावरण संकट उत्पन्न हो जाता है। क्योंकि अधिक निष्कर्षण से संसाधनों की निरन्तर कमी हो जाती है क्योंकि संसाधनों का उपभोग अधिक होता है तथा संसाधनों के बनने की दर कम रहती है। ऐसी स्थिति में सृजित अवशेष पर्यावरण के अवशोषी क्षमता से बाहर हो जाता है। अवशोषी क्षमता का तात्पर्य पर्यावरण की अपक्षय को सोखने की योग्यता से है। तब पर्यावरण से संकट उत्पन्न : हो जाता है तथा पर्यावरण सम्बन्धी कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
प्रश्न 3.
निम्न को नवीकरणीय और गैर नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें:
(क) वृक्ष
(ख) मछली
(ग) पैट्रोलियम
(घ) कोयला
(ङ) लौह अयस्क
(च) जल
उत्तर:
संसाधन |
संसाधन का प्रकार |
(क) वृक्ष |
नवीकरणीय संसाधन |
(ख) मछली |
नवीकरणीय संसाधन |
(ग) पैट्रोलियम गैर |
नवीकरणीय संसाधन |
(घ) कोयला |
नवीकरणीय संसाधन |
(ङ) लौह अयस्क |
नवीकरणीय संसाधन |
(च) जल |
नवीकरणीय संसाधन |
प्रश्न 4.
आजकल विश्व के सामने और ................. की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।
उत्तर:
आजकल विश्व के सामने वैश्विक उष्णता और ओजोन अपक्षय की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।
प्रश्न 5.
निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं:
• बढ़ती जनसंख्या
• वायु - प्रदूषण
• जल - प्रदूषण
• संपन्न उपभोग मानक
• निरक्षरता
• औद्योगिकीकरण
• शहरीकरण
• वन क्षेत्र में कमी
• अवैध वन कटाई
• वैश्विक उष्णता।
उत्तर:
(1) बढ़ती जनसंख्या: भारत में बढ़ती जनसंख्या के कारण पर्यावरण संकट उत्पन्न हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों की पूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा संसाधनों का निष्कर्षण इसके पुनर्जनन की दर से अधिक हो जाता है। इन सबके फलस्वरूप सरकार के सम्मुख पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करवाने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
(2) वायु प्रदूषण: शहरी क्षेत्रों में वाहन अधिक होने से वायु प्रदूषण बहुत अधिक रहता है। वायु प्रदूषण से जनता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अतः सरकार के समक्ष शहरों में वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करना मुख्य चुनौती है।
(3) जल प्रदूषण: भारत में विभिन्न कारणों से जल प्रदूषण बढ़ रहा है, देश में लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है जिसके कारण कई प्रकार के जल संक्रामक रोग बढ़ते जा रहे हैं। जल प्रदूषण को रोकने हेतु सरकार को भारी व्यय करना पड़ता है तथा जल संक्रामक रोगों में वृद्धि से भी सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है।
(4) सम्पन्न उपभोग मानक: सम्पन्न उपभोग मानक भी पर्यावरण संकट का एक मुख्य कारण है। विकसित राष्ट्रों में उपभोग मानक काफी ऊँचे हैं जिससे संसाधनों का निष्कर्षण इसके पुनर्जनन की दर से अधिक हो जाता है जिससे संसाधनों की पूर्ति मांग से कम हो जाती है। वर्तमान में भारत में भी उपभोग मानक ऊँचे होते जा रहे हैं, जिससे देश में संसाधनों की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस स्थिति में सरकार के समक्ष संसाधनों की पर्याप्त पूर्ति करने सम्बन्धी संकट उत्पन्न हो रहा है।
(5) निरक्षरता: भारत में निरक्षरता भी पर्यावरण संकट का एक मुख्य कारण है। निरक्षरता के कारण लोग संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं कर पाते हैं तथा पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी का भी अभाव होता है अतः पर्यावरण संकट बढ़ जाता है। निरक्षरता के कारण सरकार को पर्यावरण संरक्षण में जनता का कम सहयोग मिल पाता है तथा सरकार को पर्यावरण संरक्षण हेतु अधिक प्रयास करने पड़ते हैं तथा व्यय भी अधिक करना पड़ता है।
(6) औद्योगिकीकरण: देश में बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण सम्बन्धी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं जैसे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण इत्यादि। उद्योगों के कारण पर्यावरण की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। औद्योगिकीकरण के कारण बढ़ रहे प्रदूषण के कारण सरकार को प्रदूषण नियन्त्रण हेतु भारी राशि व्यय करनी पड़ती है।
(7) शहरीकरण: देश में बढ़ते शहरीकरण का भी पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शहरीकरण से आवास की समस्या उत्पन्न हो रही है, साथ ही जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। शहरों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों में वृद्धि होती है। शहरीकरण के कारण सरकार के समक्ष लोगों को बुनियादी आवश्यकताएँ उपलब्ध कराने एवं प्रदूषण को कम करने सम्बन्धी प्रमुख समस्या उत्पन्न हो गई है।
(8) वन क्षेत्र में कमी: देश में वन क्षेत्र में काफी कमी है तथा वनों में कमी के कारण देश में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। वनों की कमी से वर्षा की कमी उत्पन्न हो जाती है। वनक्षेत्र की कमी से उत्पन्न समस्याओं से सरकार के सम्मुख कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जिनके समाधान हेतु सरकार को भारी सार्वजनिक व्यय करना पड़ता है। उदाहरण के लिए देश में पेयजल की कमी को पूरा करने हेतु सरकार को भारी व्यय करना पड़ता है।
(9) अवैध वन कटाई: अवैध कटाई के कारण भारत में वनों की कमी हो जाती है जिससे पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है जिसके पर्यावरण पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। सरकार के सम्मुख इस कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके निवारण हेतु सरकार को भारी राशि व्यय करनी पड़ती है।
(10) वैश्विक उष्णता: वैश्विक उष्णता की समस्या पूरे विश्व की समस्या है तथा यह निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसमें पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। भारत में भी वैश्विक उष्णता से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है तथा सरकार के समक्ष भी इस समस्या के समाधान की नई चुनौती उत्पन्न हो गई है।
प्रश्न 6.
पर्यावरण के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
पर्यावरण किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में पर्यावरण चार प्रमुख कार्य करता है।
प्रश्न 7.
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।
उत्तर:
भारत में भू-क्षय अथवा भूमि के अपक्षय के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक/कारण निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 8.
समझाइये कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?
उत्तर:
यह सत्य है कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च होती है। बढ़ते हुए पर्यावरण असन्तुलन के कारण अर्थव्यवस्था में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, विभिन्न संक्रामक रोगों में वृद्धि, वैश्विक उष्णता, ओजोन क्षय इत्यादि। इन सब समस्याओं से निपटने हेतु सरकार को भारी मात्रा में धन व्यय करना पड़ता है, यदि ये समस्याएँ न होती तो सरकार यह धन विभिन्न उत्पादक कार्यों में लगाती। अतः भारी धनराशि व्यय करने के कारण नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों की अवसर लागत बहुत अधिक होती है।
प्रश्न 9.
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर:
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति हेतु निम्न उपाय अपनाए जा रहे हैं।
प्रश्न 10.
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है-इस कथन के समर्थन में तर्क दें।
उत्तर:
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है, यह कथन सत्य है। इस कथन के समर्थन में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं।
हैं। अत: उपर्युक्त तथ्यों अथवा तर्कों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है।
प्रश्न 11.
क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर:
यह सत्य है कि पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है। विश्व में पर्यावरण से जुड़ी अनेक समस्याएँ पिछले कुछ वर्षों में ही उत्पन्न हुई हैं। पिछले वर्षों में जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर वैश्विक उष्णता तथा ओजोन क्षय की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। प्राचीन समय में पर्यावरण संसाधनों की मांग उनकी पूर्ति से काफी कम थी अतः पर्यावरण पर कोई संकट नहीं था।
उस समय प्रदूषण, पर्यावरण की अवशोषी क्षमता के भीतर था और संसाधन निष्कर्षण की दरं इन संसाधनों के पुनः सृजन की दर से कम थी अतः पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं हुई थीं। किन्तु बाद में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एवं औद्योगिकीकरण के कारण संसाधनों की मांग में तीन वृद्धि हो गई तथा संसाधनों की निष्कर्षण की दर इन संसाधनों के पुनः सृजन की दर से अधिक हो गई जिससे अनेक पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न हो गईं तथा यह प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है अतः पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ भी बढ़ती जा रही हैं। अत: पर्यावरण संकट को एक नवीन परिघटना कहा जा सकता है।
प्रश्न 12.
इनके दो उदाहरण दें
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग।
उत्तर:
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग:
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग:
प्रश्न 13.
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण की प्रमुख क्रियाएँ-पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ अथवा कार्य निम्न प्रकार हैं
(i) पर्यावरण अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार के नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय संसाधनों की पूर्ति करता है अतः -पर्यावरण से हमें विभिन्न प्रकार के संसाधन प्राप्त होते हैं।
(ii) पर्यावरण अवशेष को समाहित कर लेता है।
(iii) पर्यावरण जननिक तथा जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
(iv) पर्यावरण सौंदर्य विषयक सेवाएँ भी प्रदान करने - का कार्य करता है। पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण मुद्दे-प्राचीन समय में प्राकृतिक संसाधनों की मांग पूर्ति से कम थी तथा संसाधनों का निष्कर्षण इनके पुनः सृजन की दर से कम था अत: पर्यावरण में किसी प्रकार की समस्या नहीं थी।
वर्तमान में जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है तथा लोगों का उपभोग स्तर भी काफी ऊँचा हो गया है अत: पर्यावरणीय संसाधनों की मांग उनकी पूर्ति से अधिक हो गई है तथा संसाधनों का निष्कर्षण उनके पुनः सृजन की दर से अधिक हो गया है अतः पर्यावरण के सम्मुख कई समस्याएँ - उत्पन्न हो गई हैं - जैसे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, अकाल एवं सूखा, वैश्विक उष्णता, ओजोन क्षय, भूमि अपक्षय, वन कटाव इत्यादि । वर्तमान में अवशिष्ट सृजन तथा प्रदूषण पर्यावरण के दो प्रमुख मुद्दे हैं जो बहुत गंभीर हैं।
यह सत्य है कि पर्यावरण की हानि की भरपाई भी अवसर लागत ही होती है क्योंकि सरकार को किसी भी पर्यावरण सम्बन्धी समस्या के निवारण हेतु भारी राशि व्यय करनी पड़ती है। यदि पर्यावरण सम्बन्धी समस्या उत्पन्न न होती तो सरकार को यह राशि व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा यह राशि, किसी अन्य उत्पादक कार्य पर व्यय की जा सकती थी। अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरणीय हानि की भरपाई की भी अवसर लागत होती
प्रश्न 14.
पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति - मांग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन समय में जब न तो तीन जनसंख्या थी और न ही तीव्र औद्योगीकरण था उस समय प्राकृतिक संसाधनों की मांग उनकी पूर्ति से कम थी तथा इन प्राकृतिक संसाधनों का निष्कर्षण इनकी पुनः सृजन की दर से कम था अतः प्राचीन समय में पूर्ति आधिक्य की स्थिति थी। वर्तमान समय में जनसंख्या में भी तीव्र गति से विस्तार हुआ है तथा औद्योगिकीकरण की प्रवृत्ति भी बढ़ गई है। इस कारण प्राकृतिक संसाधनों की मांग उनकी पूर्ति से बहुत अधिक हो गई है तथा संसाधनों का निष्कर्षण इनकी पुनः सृजन की दर से काफी अधिक हो गया है अतः पर्यावरण के संसाधनों की मांग आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
प्रश्न 15.
वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें।।
उत्तर:
वर्तमान समय में तीव्र जनसंख्या वृद्धि तथा औद्योगिक क्रान्ति के कारण पर्यावरण संसाधनों की मांग में तीव्र वृद्धि हुई है जबकि संसाधनों की पूर्ति कम है, इस कारण पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो गया जिससे अनेक संकट उत्पन्न हो गये हैं। वर्तमान में पर्यावरण की अवशोषी समता पर दबाव काफी बढ़ गया है।
पर्यावरण संकट के कारण जल प्रदूषण एवं वायु प्रदूषण की समस्या तीव्रता से बढ़ती जा रही है। कई संसाधनों के अत्यधिक निष्कर्षण से संसाधन विलुप्त हो गए हैं तथा कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। नए संसाधनों की खोज में भारी राशि का क्रय करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त वैश्विक स्तर पर वैश्विक उष्णता तथा ओजोन क्षय की महत्त्वपूर्ण समस्या बनी हुई है। इस प्रकार वर्तमान में पर्यावरण संकट की स्थिति है तथा पर्यावरण सम्बन्धी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
प्रश्न 16.
भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है-एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन स्तर में संपन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?
उत्तर:
भारत में विकास के दो नकारात्मक प्रभाव
(i) भारत में विकास के साथ - साथ शहरों में वाहनों की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई तथा औद्योगिकीकरण भी बढ़ा है फलस्वरूप शहरों में वायु प्रदूषण काफी बढ़ गया है।
(ii) देश में विकास के साथ - साथ जनसंख्या में वृद्धि हुई तथा आर्थिक गतिविधियों में भी वृद्धि हुई फलस्वरूप भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ गया तथा स्वच्छ जल के प्रबन्ध की समस्या उत्पन्न हो गई है।
यह कथन सत्य है कि भारत में पर्यावरण समस्याओं के मुख्य कारण निर्धनता एवं साधनसम्पन्नता दोनों हैं। देश में काफी जनसंख्या निर्धन है तथा वह अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्यावरण का अपक्षय करती है तथा इसी प्रकार दूसरी ओर जीवनस्तर में सम्पन्नता लाने तथा तीव्र आर्थिक संवृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक शोषण किया जाता है।
अतः यह कथन सत्य है कि भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है - एक तो यह निर्धनता जनित है तथा दूसरे जीवन स्तर में संपन्नता का भी कारण है।
प्रश्न 17.
धारणीय विकास क्या है?
उत्तर:
पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं। पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों की अवहेलना कर अर्थव्यवस्था का |विकास करने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धारणीय विकास के अन्तर्गत आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाता है।
धारणीय विकास के अन्तर्गत संसाधनों का उपयोग करते समय भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाता है ताकि उन्हें पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हो सकें। अतः धारणीय विकास के अन्तर्गत ऐसे विकास की बात की जाती है जो भावी पीढ़ियों को जीवन की संभावित औसत गुणवत्ता प्रदान करे, जो कम से कम वर्तमान पीढ़ी के द्वारा उपभोग की गई सुविधाओं के बराबर हो।
धारणीय विकास की अवधारणा पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन में बल दिया गया तथा उसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया, "ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता का समझौता किए बिना पूरा करे।" एडवर्ड बारवियर ने धारणीय विकास की परिभाषा बुनियादी स्तर पर गरीबों के जीवन के भौतिक मानकों को ऊँचा उठाने के संदर्भ में दी है।
अत: धारणीय विकास के अन्तर्गत विकास के साथ - साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखा जाता है तथा प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग पर बल दिया जाता है ताकि भावी पीढ़ी को पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हो सकें।
विख्यात पर्यावरणवादी अर्थशास्वी हरमन डेली के अनुसार धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएँ:
प्रश्न 18.
अपने आस - पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए।
उत्तर:
हम अपने आस - पास के क्षेत्र को ध्यान में रखकर धारणीय विकास की निम्न चार रणनीतियों का सुझाव दे सकते हैं।
(1) ग्रामीण क्षेत्रों में एल. पी. जी. तथा गोबर गैसग्रामीण क्षेत्रों में परिवार प्रायः लकड़ी, उपले तथा जैविक पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण पर पड़ने वाले इन प्रतिकूल प्रभावों को कम करने हेतु गांवों में एल.पी.जी. गैस की पूर्ति की जा रही है तथा गोबर गैस के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
(2) शहरी क्षेत्रों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस: शहरों में बढ़ते वाहनों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है अत: शहरों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का उपयोग बढ़ता जा रहा है जिससे वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है।
(3) वायु शक्ति: देश में पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों से बचने हेतु पवन चक्कियों द्वारा ऊर्जा उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, इससे पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
(4) पारम्परिक ज्ञान व व्यवहार: देश में प्राचीन परम्परागत प्रणालियाँ ऐसी थीं जिनका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव अधिक नहीं पड़ता था अत: देश में पारम्परिक ज्ञान व व्यवहार के उपयोग पर बल दिया जा रहा है।
प्रश्न 19.
धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।
उत्तर:
धारणीय विकास का तात्पर्य है कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ - साथ पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को भी ध्यान में रखा जावे तथा धारणीय विकास की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाता है। धारणीय विकास के अनुसार वर्तमान में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का कुशलता से इस प्रकार उपयोग करना चाहिए।
ताकि भावी पीढ़ी को भी हमारे समान ही प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हो सकें अर्थात् वर्तमान पीढ़ी द्वारा आगामी पीढ़ी को एक बेहतर पर्यावरण उत्तराधिकार के रूप में सौंपा जाना चाहिए तथा हमें आगामी पीढ़ी के जीवन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियों का भंडार छोड़ना चाहिए, जो कि हमें उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त हुआ है। अतः धारणीय विकास की अवधारणा में वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के बीच समान प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर बल दिया जाता है।