Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 8 आधारिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
आपने यह ध्यान दिया होगा कि ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों में परमाणु ऊर्जा का अंश बहुत ही कम है। क्यों?
उत्तर:
यह सही है कि भारत में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का अंश बहुत कम है। देश में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का अंश मात्र 2.10 प्रतिशत है, जो बहुत कम है। भारत में परमाणु ऊर्जा को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है क्योंकि इससे पर्यावरण सम्बन्धी कई लाभ हैं। भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में काफी सम्भावनाएँ भी हैं परन्तु इसके लिए किसी सस्ती प्रौद्योगिकी को विकसित किया जाना आवश्यक है ताकि कम लागत पर ऊर्जा उत्पादित की जा सके। अत: ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों में परमाणु ऊर्जा = की उत्पादन लागत अधिक आने के कारण इसका अंश : बहुत कम है।
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प्रश्न 2.
नीचे की सारणी देखें। क्या आप समझते हैं। कि ऊर्जा खपत विकास का एक प्रभावशाली सूचक है?
देश |
2017 में प्रति व्यक्ति आय (डॉलर में) |
2014 में ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत (किलोग्राम में) |
भारत इंडोनेशिया |
6,4277 |
637 |
मिस्र |
11,188 |
884 |
इंग्लैण्ड |
10,550 |
815 |
जापान |
39,753 |
2,777 |
अमेरिका |
39,022 |
3,471 |
उत्तर:
यह सत्य है कि ऊर्जा खपत, विकास का प्रभावशाली सूचक है। उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि स जैसे - जैसे किसी देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ती जाती है वहाँ पर ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत भी बढ़ती जाती है। इसी कारण विकसित देशों में ऊर्जा का उपभोग, विकासशील में एवं पिछड़े देशों की तुलना में काफी अधिक होता है।
उपर्युक्त तालिका में भारत, इंडोनेशिया तथा मिस्र की प्रति त व्यक्ति आय कम है तो वहाँ की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत भी ए कम है जैसे वर्ष 2017 में भारत की प्रति व्यक्ति आय F 6427 डॉलर थी तो यहाँ ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत वर्ष स 2014 में 637 थी। इंग्लैण्ड, जापान एवं अमेरिका की प्रति में व्यक्ति आय अधिक है तो वहाँ पर ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत भी अधिक होती है। जैसे अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 2017 में 54,225 डॉलर थी तो वहाँ ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत 2014 में 6,957 थी। अतः स्पष्ट है कि ऊर्जा को खपत विकास का एक प्रभावशाली सूचक है।
प्रश्न 3.
एक अध्ययन के द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि केवल चिकित्सा व्यय ही प्रतिवर्ष 2.2 प्रतिशत जनसंख्या को गरीबी रेखा से नीचे ले जाता है। कैसे?
उत्तर:
यह अनुमान सत्य प्रतीत होता है कि चिकित्सा व्यय ही प्रतिवर्ष 2.2 प्रतिशत जनसंख्या को गरीबी की रेखा से नीचे ले जाता है। भारत में लगभग 22 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करते हैं। इसके अलावा भारत में अधिकांश जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जहाँ पर आधारभूत चिकित्सा सुविधाओं का भी नितान्त अभाव है तथा स्वास्थ्य क्षेत्रक में व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 4.7 प्रतिशत है।
अत: कम व्यय के कारण देश में आधारभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव है। भारत में निर्धन लोगों के या ग्रामीण लोगों के अस्वस्थ होने पर उन्हें चिकित्सा की पर्याप्त सुविधाएँ सार्वजनिक क्षेत्रक में नहीं मिल पाती अतः उन्हें निजी अस्पतालों से चिकित्सा करवानी पड़ती है एवं भारी खर्च वहन करना पड़ता है जिसके लिए उन्हें ऋण लेना पड़ता है तथा कई बार तो लोगों को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ती है जिस कारण वे लोग और अधिक निर्धन हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि भारतीय शहरों में विश्व स्तर की चिकित्सा आधारिक संरचना उपलब्ध हो सकती है, जिससे कि वे मेडिकल पर्यटन के लिए आकर्षित हो सकें? या क्या सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में जनता के लिए आधारिक संरचना प्रदान करने पर केन्द्रित होना चाहिए? सरकार की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत में योजना अवधि में स्वास्थ्य सुविधाओं पर काफी ध्यान दिया गया है जिस कारण देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हुआ है तथा देश से स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचकों में सुधार हुआ है। विगत वर्षों में भारत में निजी क्षेत्रक में स्वास्थ्य सुविधाओं में काफी सुधार हुआ है। भारत में चिकित्सा पर्यटन की काफी अच्छी सम्भावनाएं हैं क्योंकि वर्तमान में भी भारत की चिकित्सा पद्धतियाँ काफी बेहतर हैं तथा भविष्य में भी भारतीय चिकित्सा व्यवस्था काफी बेहतर एवं विश्वस्तरीय होगी।
आज भी भारत में बड़ी संख्या में विदेशी लोग शल्य चिकित्सा, गुदारोपण, दंत और सौन्दर्यवर्द्धक देखभाल हेतु भारत आते हैं तथा इनकी संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है क्योंकि यहाँ की चिकित्सा सेवाएँ काफी बेहतर एवं संस्ती हैं। अत: भारतीय शहरों में दि विश्व स्तर की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं तथा भविष्य स् में और बेहतर होंगी अत: यहाँ चिकित्सा पर्यटन की काफी स अच्छी सम्भावनाएँ हैं।
भारत में अधिकांश जनसंख्या गाँवों में है तथा वहाँ पर अ आधारभूत चिकित्सा सुविधाओं का भी नितान्त अभाव है। लोगों को आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही हैं। भारत में डॉक्टरों एवं अस्पतालों की संख्या जनसंख्या को देखते हुए बहुत कम है। अत: सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में जनता के लिए आधारिक संरचना प्रदान करने पर केन्द्रित होना चाहिए तथा इसे प्राथमिकता से पूरा करना चाहिए।
प्रश्न 1.
आधारिक संरचना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आधारिक संरचना का तात्पर्य उन सेवाओं एवं सुविधाओं से है जो देश के औद्योगिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, घरेलू व विदेशी व्यापार, विभिन्न वाणिज्यिक एवं आर्थिक क्षेत्रों के विकास में सहायक अथवा मददगार होती हैं। आधारिक संरचना : में सड़क, रेल, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, बाँध, बिजली-घर, तेल व गैस, पाइपलाइन, दूरसंचार सुविधाओं, स्कूल-कॉलेज सहित देश की शैक्षिक व्यवस्था, अस्पताल व स्वास्थ्य व्यवस्था, सफाई, पेयजल और बैंक, बीमा, विभिन्न वित्तीय संस्थाओं, मुद्रा प्रणाली आदि को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 2.
आधारिक संरचना को विभाजित करने वाले दो वर्गों की व्याख्या कीजिए। दोनों एक-दूसरे पर कैसे निर्भर हैं?
उत्तर:
आधारिक संरचना को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
(1) सामाजिक आधारिक संरचना: किसी भी देश में सामाजिक विकास हेतु सामाजिक आधारिक संरचना का विकास होना अति आवश्यक है। सामाजिक आधारिक संरचना के अन्तर्गत शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ, स्वास्थ्य सुविधाएँ, आवास आदि को सम्मिलित किया जाता है।
(2) आर्थिक आधारिक संरचना: देश के आर्थिक विकास एवं संवृद्धि हेतु देश में आर्थिक आधारिक संरचना का विकास होना अतिआवश्यक है। आर्थिक आधारिक संरचना के अन्तर्गत ऊर्जा, परिवहन, संचार आदि को सम्मिलित किया जाता है। सामाजिक तथा आर्थिक आधारिक संरचना की पारस्परिक निर्भरता - सामाजिक तथा आर्थिक आधारिक संरचना परस्पर एक - दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक के बिना दूसरे का विकास सम्भव नहीं।
किसी भी देश का आर्थिक विकास तथा आर्थिक आधारिक संरचना का विकास शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निर्भर करता है। यदि देश की जनसंख्या स्वस्थ एवं शिक्षित है तो वह आर्थिक आधारिक संरचना के विकास में अधिक योगदान देगी। इसी प्रकार देश में सामाजिक आधारिक संरचना जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि के -विकास हेतु देश की आर्थिक आधारिक संरचना सुदृढ़ होनी चाहिए। ऊर्जा, परिवहन, संचार इत्यादि देश में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने में मदद करती हैं। अत: सामाजिक तथा आर्थिक आधारिक संरचना एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
प्रश्न 3.
आधारिक संरचना उत्पादन का संवर्द्धन कैसे करती है?
उत्तर:
आधारिक संरचना का किसी भी अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। एक देश की आधारिक संरचना उस देश के आर्थिक विकास के तत्वों की उत्पादकता में वृद्धि करके तथा उसकी जनता के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके अपना योगदान करती है। यदि देश में पर्याप्त आधारिक संरचना है तो देश में कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, व्यापार एवं वाणिज्य तथा अन्य क्षेत्रों का तीव्र गति से विकास होगा। इसके अतिरिक्त यदि देश की जनसंख्या शिक्षित एवं स्वस्थ है तो वह अधिक कार्यकुशल एवं उत्पादक होगी जिसके फलस्वरूप देश के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होती है। अतः आधारिक संरचना उत्पादन का संवर्द्धन करती है।
प्रश्न 4.
किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना योगदान करती है? क्या आप सहमत हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
यह एकदम सही है कि किसी देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में आधारिक संरचना का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। किसी भी देश का आर्थिक एवं सामाजिक विकास आधारिक संरचना पर निर्भर करता है। सामाजिक आधारिक संरचना में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आवास सुविधाओं का विकास किया जाता है।
किसी देश की सामाजिक आधारिक संरचना का विस्तार करके उस देश की जनसंख्या को अधिक कार्यकुशल एवं उत्पादक बनाया जा सकता है, जिससे वे देश के विकास में अधिक सहयोग दे पाते हैं। - इसी प्रकार आर्थिक आधारभूत संरचना में ऊर्जा, परिवहन, संचार आदि का विकास किया जाता है। इन सबके ने फलस्वरूप देश में कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र के विकास क को प्रोत्साहन मिलता है तथा इन क्षेत्रों में आर्थिक वृद्धि ना की दर में वृद्धि होती है। देश में यातायात के साधनों में क वृद्धि से देश के व्यापार में वृद्धि होती है। अत: देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
प्रश्न 5.
भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना की क्या स्थिति है?
उत्तर:
भारत एक विकासशील देश है तथा यहाँ की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है किन्तु देश में ग्रामीण आधारिक संरचना का अभाव है तथा ग्रामीण जनसंख्या के अनुरूप में काफी अपर्याप्त है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक एवं आर्थिक दोनों आधारिक संरचना का अभाव है। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है जबकि वहाँ देश के केवल 1/5 अस्पताल स्थित हैं तथा कुल बैडों की संख्या का मात्र 30 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में है।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति एक लाख लोगों पर अस्पतालों की संख्या मात्र 0.36 अस्पताल है। ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षणिक संस्थाओं का भी अभाव है तथा उच्च शिक्षा सुविधाओं का अत्यन्त अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा, परिवहन एवं संचार सुविधाओं का भी अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन, जल एवं अन्य बुनियादी आवश्यकताओं हेतु लोगों को दूर-दूर जाना पड़ता है।
वर्ष 2001 के आँकड़ों के अनुसार ग्रामीण भारत में अभी भी केवल 56 प्रतिशत परिवारों को ही बिजली की सुविधा प्राप्त है तथा लगभग 90 प्रतिशत परिवार खाना बनाने हेतु जैव इंधन का उपयोग करते हैं। लगभग 76 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी जल हेतु खुले स्रोतों जैसे कुएँ, टैंक, तालाबों, नदियों, नहरों आदि पर निर्भर है। इसी प्रकार ग्रामीण इलाकों में मात्र 20 प्रतिशत लोगों को ही सफाई की सुविधाएँ प्राप्त हैं। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आधारिक संरचना की स्थिति काफी पिछड़ी हुई है।
प्रश्न 6.
'ऊर्जा' का महत्त्व क्या है? ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर - व्यावसायिक स्रोतों में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा का महत्त्व: आधारभूत संरचना में ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में ऊर्जा की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। देश के उद्योगों के विकास में ऊर्जा अनिवार्य है क्योंकि बिना ऊर्जा के औद्योगिक उत्पादन सम्भव नहीं है तथा आधुनिक तकनीकों के फलस्वरूप ऊर्जा का उपयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। कृषि क्षेत्र में भी ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में खाद, कीटनाशक, कृषि उपकरणों के उत्पादन एवं यातायात में ऊर्जा का उपयोग भारी मात्रा में किया जाता है अत: कृषि क्षेत्र के विकास में भी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
इसके अतिरिक्त घरेलू उपभोग में भी ऊर्जा का भारी उपयोग किया जाता है। वर्तमान में मनुष्य को दैनिक जीवन में विभिन्न कार्यों हेतु ऊर्जा की जरूरत पड़ती है जैसे भोजन बनाने हेतु, घरों में बिजली का उपयोग, आधुनिक मनोरंजन के साधनों के उपयोग आदि में ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में हम बिना ऊर्जा के उपभोगी वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की कल्पना भी नहीं कर सकते। ऊर्जा के व्यावसायिक एवं गैर - व्यावसायिक स्रोत ऊर्जा के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) ऊर्जा के व्यावसायिक स्त्रोत: ऊर्जा के व्यावसायिक स्रोत के अन्तर्गत वे स्रोत आते हैं जिनका उपयोग व्यावसायिक स्तर पर किया जाता है। ऊर्जा के व्यावसायिक स्रोतों में कोयला, प्राकृतिक गैस, पैट्रोल तथा बिजली को शामिल किया जाता है क्योंकि इन्हें खरीदा - बेचा जा सकता है तथा इनका उपयोग व्यावसायिक स्तर पर किया जाता है। आम तौर पर ऊर्जा के व्यावसायिक स्रोत उपयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं अर्थात् उनका पुनर्नवीनीकरण नहीं हो सकता है।
(ii) ऊर्जा के गैर: व्यावसायिक स्रोत: ऊर्जा के गैर व्यावसायिक स्त्रोतों में मुख्यतः वे स्रोत आते हैं जिनका उपयोग घरेलू स्तर पर किया जाता है। ऊर्जा के गैरव्यावसायिक स्रोतों में मुख्य रूप से जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा - कचरा, सूखा गोबर आदि सम्मिलित किया जाता है। ऊर्जा के गैर - व्यावसायिक स्रोतों का पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
विद्युत के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत कौनसे हैं?
उत्तर:
विद्युत के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 8.
संचारण और वितरण हानि से आप क्या समझते हैं? उन्हें कैसे कम किया जा सकता है?
उत्तर:
संचारण तथा वितरण की हानि से हमारा तात्पर्य है कि विद्युत बोर्ड विद्युत का वितरण करता है तो इसमें सम्प्रेषण एवं वितरण में कुछ बिजली का नुकसान होता है, विद्युत बोर्ड द्वारा कुशलतापूर्वक कार्य नहीं किए जाने के कारण यह क्षति होती है। इसके अतिरिक्त विद्युत संचारण एवं वितरण में चोरी के कारण भी क्षति होती है। इस प्रकार से विद्युत की हानि को रोकने हेतु विद्युत बोर्ड की कार्यकुशलता में वृद्धि करनी चाहिए तथा विद्युत की चोरी को भी कठोरता से रोकना चाहिए।
प्रश्न 9.
ऊर्जा के विभिन्न गैर - व्यावसायिक स्रोत कौनसे हैं?
उत्तर:
ऊर्जा के विभिन्न गैर - व्यावसायिक स्रोतों के अन्तर्गत जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा, सूखा गोबर आदि को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 10.
इस कथन को सही सिद्ध कीजिए कि ऊर्जा के पुनर्नवीनीकृत स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा संकट दूर किया जा सकता है।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि ऊर्जा के पुनर्नवीनीकरण स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा का संकट दूर किया जा सकता है। ऊर्जा के कई स्रोत हैं जैसे कोयला, पैट्रोल, बिजली इत्यादि, ये ऐसे स्रोत हैं जिनका एक बार उपयोग करने के पश्चात् ये समाप्त हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त ऊर्जा के कुछ स्रोत ऐसे हैं जैसे जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा, सूखा गोबर जिनका उपयोग करने से इनका रूप परिवर्तन होता है तथा इन्हें पुनर्नवीनीकृत किया जा सकता है जिस कारण इन स्रोतों का बार-बार उपयोग किया जा सकता है जिससे स्रोतों की भी बचत होगी तथा ऊर्जा संकट को कम करने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 11.
पिछले वर्षों के दौरान ऊर्जा के उपभोग प्रतिमानों में कैसे परिवर्तन आया है?
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा के उपभोग की प्रवृत्तियों में परिवर्तन आया है। कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा के उपभोग में वृद्धि हुई है तो कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा उपभोग में कमी आई है। विभिन्न क्षेत्रों में व्यावसायिक ऊर्जा उपभोग की प्रवृत्तियों को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
तालिका: व्यावसायिक ऊर्जा उपभोग के क्षेत्रवार
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि देश में पिछले वर्षों में परिवार क्षेत्र एवं उद्योगों में ऊर्जा उपभोग की प्रवृत्तियाँ लगभग स्थिर रही हैं तथा कृषि क्षेत्र में ऊर्जा के उपभोग में वृद्धि हुई है तथा परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा उपभोग में कमी आई है। परिवार क्षेत्र में ऊर्जा का उपभोग वर्ष 1970 - 71 में 12 प्रतिशत रहा तथा वर्ष 2014 - 15 में यह 23 प्रतिशत हो गया।
कृषि क्षेत्र में वर्ष 1953 - 54 में 1 प्रतिशत ऊर्जा का उपभोग किया गया तथा वर्ष 2014 - 15 में इस क्षेत्र में ऊर्जा का उपभोग बढ़कर 18 प्रतिशत हो गया। उद्योग क्षेत्र में वर्ष 1953 - 54 में 40 प्रतिशत ऊर्जा का उपभोग किया जबकि 2014 - 15 में ऊर्जा का उपभोग बढ़कर 44 प्रतिशत हो गया अतः इस क्षेत्र में ऊर्जा का उपयोग लगभग स्थिर रहा है। विगत वर्षों में परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा उपभोग में कमी आई। वर्ष 1953 - 54 में परिवहन क्षेत्र में 44 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग किया गया, यह कम होकर वर्ष 1970 - 71 में 28 प्रतिशत एवं वर्ष 2014 - 15 में 2 प्रतिशत ही रह गया।
प्रश्न 12.
ऊर्जा के उपभोग और आर्थिक संवृद्धि की दरें कैसे परस्पर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
सामान्यतः यह देखा गया है कि जिस देश में आर्थिक संवृद्धि की दरें जितनी ऊँची होती हैं वहाँ पर ऊर्जा का उपभोग भी उतना ही अधिक होता है। इसे हम निम्न तालिका से स्पष्ट कर सकते हैं
तालिका: प्रति व्यक्ति आय एवं ऊर्जा की खपत देश 2017 में प्रति 2014 में ऊर्जा की
देश |
2017 में प्रति व्यक्ति आय (डॉलर में) |
2014 में ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत (किलोग्राम में) |
भारत इंडोनेशिया |
6,4277 |
637 |
मिस्र |
11,188 |
884 |
इंग्लैण्ड |
10,550 |
815 |
जापान |
39,753 |
2,777 |
अमेरिका |
39,022 |
3,471 |
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जिस देश की आर्थिक संवृद्धि दर अधिक होगी वहाँ की प्रतिव्यक्ति आय भी अधिक होगी तथा वहाँ पर ऊर्जा का उपभोग भी अधिक किया जाता है। अतः आर्थिक संवृद्धि दरों एवं ऊर्जा के उपभोग में परस्पर धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है।
उपर्युक्त तालिका से भी स्पष्ट है कि भारत, इंडोनेशिया तथा मिस्त्र में + प्रति व्यक्ति आय कम है तो ऊर्जा का उपभोग भी कम है जबकि इसके विपरीत इंग्लैण्ड, जापान तथा अमेरिका में इंडोनेशिया प्रति व्यक्ति आय अधिक है तो ऊर्जा का उपभोग भी में अधिक होता है। उदाहरण के लिए भारत में वर्ष 2017 में प्रति व्यक्ति एम आय 6,427 डॉलर थी तथा ऊर्जा का प्रति व्यक्ति उपभोग रत वर्ष 2014 में मात्र 637 में था जबकि अमेरिका में वर्ष 2017 में प्रति व्यक्ति आय 54,225 डॉलर थी तथा वर्ष 2014 में ऊर्जा का प्रति व्यक्ति उपभोग भी काफी अधिक 6,957 था।
प्रश्न 13.
भारत में विद्युत क्षेत्र किन समस्याओं सामना कर रहा है?
उत्तर:
भारत में विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ:
भारत में विद्युत क्षेत्र के सम्मुख अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं। भारत में विद्युत क्षेत्र की प्रमुख समस्याएँ निम्न प्रकार हैं।
1. अपर्याप्त विद्युत उत्पादन क्षमता: भारत में विद्युत उत्पादन की वर्तमान क्षमता विद्युत आवश्यकता को देखते हुए बहुत कम है। तथा बिजली घरों की कार्यकुशलता के अभाव में स्थापित क्षमता का भी पूरा उपयोग नहीं किया जा सकता है। भारत की व्यावसायिक ऊर्जा पूर्ति 7 प्रतिशत की दर से बढ़ाने की आवश्यकता है जबकि भारत में प्रति वर्ष मात्र 20000 मेगावाट क्षमता ही नई जोड़ी जा रही है।
2. विद्यत की हानि: भारत में विद्युत क्षेत्र में विद्युत D की हानि की भी एक प्रमुख समस्या है। राज्य विद्युत बोर्ड जो विद्युत के वितरण का कार्य करता है, उसमें हानि 500 बिलियन से भी अधिक की होती है। इस हानि का कारण सम्प्रेषण तथा वितरण का नुकसान, बिजली की अनुचित कीमतें, अकार्यकुशलता इत्यादि हैं। विद्युत की हानि का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण बिजली की चोरी है जो ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है। अत: देश में विद्युत की हानि की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
3. निजी क्षेत्र की कम भूमिका: भारत में विद्युत क्षेत्र के सम्मुख एक समस्या यह भी है कि देश में विद्युत क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यन्त कम है तथा इस क्षेत्र में विदेशी निवेश भी कम है। इस क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका अधिक है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की स्वयं की कई समस्याएँ हैं तथा वित्तीय साधनों का भी अभाव है।
4. बिजली की ऊँची दरें: देश में विद्युत क्षेत्र की यह समस्या भी है कि विद्युत उत्पादन की लागत अधिक आने से बिजली की दरें काफी ऊँची हैं तथा लोगों को पर्याप्त बिजली भी नहीं मिल पाती है। अत: देश में बिजली को लेकर जनता में काफी असन्तोष है।
5. कच्चे माल की कमी: देश में विद्युत क्षेत्र के सम्मुख एक समस्या यह भी है कि विद्युत उत्पादन हेतु पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिलता है। भारत के थर्मल पावर स्टेशन जो कि भारत के बिजली क्षेत्र के आधार हैं उन्हें कच्चे माल एवं कोयले की कम पूर्ति की समस्या का सामना करना पड़
6. ऊर्जा की अत्यधिक माँग: भारत में विद्युत क्षेत्र के सम्मुख अन्य महत्त्वपूर्ण समस्या ऊर्जा की निरन्तर बढ़ती हुई माँग है। देश में जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है तथा आर्थिक विकास में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। इसके फलस्वरूप देश में ऊर्जा की मांग में तीव्र वृद्धि हो रही है जबकि ऊर्जा की उत्पादन क्षमता कम होने से ऊर्जा संकट की समस्या उत्पन्न हो रही है।
प्रश्न 14.
भारत में ऊर्जा संकट से निपटने के लिए किये गये सुधारों पर चर्चा कीजिए।
उत्त:
भारत में ऊर्जा संकट से निपटने के लिए किए - गए प्रमुख सुधार निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 15.
हमारे देश में जनता के स्वास्थ्य की मुख्य ने विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय हमारे देश की जनता के को स्वास्थ्य की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी किन्तु अब इसमें निरन्तर सुधार हो रहा है। भारत में जनता के स्वास्थ्य की मुख मुख्य विशेषताओं को अग्र बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा त्रा सकता है।
प्रश्न 16.
रोग वैश्विक भार (GDB) क्या है?
उत्तर:
रोग वैश्विक भार अथवा विश्व रोग भार (GDB) एक सूचक है जिसका उपयोग विशेषज्ञ किसी विशेष रोग के कारण असमय मरने वाले लोगों की संख्या के साथ - साथ रोगों के कारण असमर्थता में बिताये सालों की संख्या जानने के लिए करते हैं।
प्रश्न 17.
हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ क्या हैं?
उत्तर:
भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं में विगत वर्षों में वृद्धि तो हुई है किन्तु जनसंख्या को देखते हुए वे काफी अपर्याप्त हैं तथा इस प्रणाली में काफी कमियाँ हैं। हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ निम्न प्रकार।
प्रश्न 18.
महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिन्ता का विषय कैसे बन गया है?
उत्तर:
देश में महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिन्ता का विषय बना हुआ है क्योंकि देश में स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति काफी पिछड़ी हुई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह स्थिति और भी खराब है। देश में 15 से 49 आयु वर्ग समूह में शादीशुदा महिलाओं में 50 प्रतिशत से भी अधिक महिलाएं रक्ताभाव तथा रक्तक्षीणता से ग्रसित हैं। इन सभी का महिलाओं के स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा साथ ही होने वाले बच्चे भी कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। अतः देश में महिलाओं का स्वास्थ्य चिन्ता का विषय बना हुआ है।
प्रश्न 19.
सार्वजनिक स्वास्थ्य का अर्थ बताइए। राज्य द्वारा रोगों पर नियन्त्रण के लिए उठाये गये प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक स्वास्थ्य: सार्वजनिक स्वास्थ्य का तात्पर्य सरकारी क्षेत्रक अथवा सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं से है। इसके अन्तर्गत सरकार स्वास्थ्य आधारिक संरचना, जैसे - अस्पताल, डॉक्टर, नर्स, चिकित्सा उपकरणों, दवाइयों, जाँच सुविधाओं इत्यादि का विकास एवं विस्तार करती है। सरकार पर यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह स्वास्थ्य शिक्षा, भोजन में मिलावट, दवाएँ तथा जहरीले पदार्थ, चिकित्सा व्यवसाय, जन्म - मृत्यु सम्बन्धी आँकड़े, मानसिक अक्षमता जैसे मुद्दों को निर्देशित व नियमित करे, यह सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य के अन्तर्गत आता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम: देश में सरकार द्वारा विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम अपनाए गए हैं। देश में केन्द्र सरकार, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परिषद् की सहायता से विस्तृत नीतियाँ एवं योजनाएँ विकसित करती है। केन्द्र सरकार विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों हेतु वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करती है। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना की जाती है। विभिन्न गाँवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की जाती है।
सरकार द्वारा महिलाओं हेतु विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे निःशुल्क नसबन्दी ऑपरेशन, प्रसव के समय आर्थिक मदद करना। सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार द्वारा समय - समय पर टीकाकरण का कार्यक्रम चलाया जाता है। सरकार द्वारा कई विशेष रोगों जैसे मलेरिया, पोलियो, तपेदिक, अन्धता, कुष्ठ रोग आदि के नियन्त्रण हेतु विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
प्रश्न 20.
भारतीय चिकित्सा की छह प्रणालियों में भेद कीजिए।
उत्तर:
भारतीय चिकित्सा प्रणाली में छ: व्यवस्थाएँ निम्न प्रकार हैं: आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा तथा होम्योपैथी। इन सभी पद्धतियों में चिकित्सा करने की पद्धति तथा दवाइयों के आधार पर अन्तर पाया जाता है।
प्रश्न 21.
हम स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता कैसे बढ़ा सकते हैं?
उत्तर:
स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर करती है अत: इन सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए। स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार एवं आधुनिकीकरण करना चाहिए तथा स्वास्थ्य पर हो रहे सार्वजनिक व्यय का बढ़ाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर विशेष ध्यान देना होगा। हमें स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार - प्रसार करना होगा। हमें जनता को स्वास्थ्य एवं सफाई के प्रति जागरूक करना होगा। साथ ही सभी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए हमारी बुनियादी आधारिक संरचना में सक्षमता और सुलभता की आवश्यकताओं का एकीकरण करना होग्न।