Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 7 रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
रोजगार संबंधी कोई भी अध्ययन श्रमिक जनसंख्या अनुपात से ही आरम्भ होना चाहिए। क्यों?
उत्तर:
रोजगार सम्बन्धी किसी भी अध्ययन का सम्बन्ध मुख्य रूप से रोजगार पर लगे लोगों से होता है, अतः रोजगार संबंधी अध्ययन में ज्यादातर निष्कर्ष श्रमिक जनसंख्या अनुपात के आधार पर निकाले जाते हैं। श्रमिक जनसंख्या अनुपात ज्ञात करने हेतु देश की कुल श्रमिक संख्या का देश की कुल जनसंख्या से प्रतिशत निकाला जाता है। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि देश के कितने प्रतिशत लोग रोजगार पर लगे हुए हैं। अत: रोजगार संबंधी किसी भी अध्ययन का प्रारम्भ श्रमिक जनसंख्या अनुपात से ही होना चाहिए।
प्रश्न 2.
आपने शायद देखा होगा कुछ समुदायों में यदि पुरुषों की आय पर्याप्त नहीं हो तो भी वे अपने घर की महिलाओं को बाहर काम करने के लिए नहीं भेजते। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
भारतीय समाज पुरुष प्रधान एवं रूढ़िवादी है। पुरानी परम्पराओं के अनुसार भारतीय समाज में पुरुष ही धनार्जन का कार्य करते आए हैं तथा महिलाएँ घर का कार्य ही करती आई हैं। पुरानी रूढ़िवादिता के अनुसार भारतीय समाज में महिलाओं का घर के बाहर जाकर काम करना उचित नहीं माना जाता है। चाहे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब ही क्यों न हो। इस मामले में कुछ समुदाय तो अत्यधिक रूढ़िवादी हैं। अत: पुरुषों की आय पर्याप्त न होने पर भी वे अपने परिवार की महिलाओं को बाहर काम करने नहीं भेजते।
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प्रश्न 3.
आमतौर पर हम यह मान लेते हैं कि जो लोग नियमित या अस्थाई आधार पर कृषि श्रमिक, कारखाना मजदूर या किसी बैंक अथवा कार्यालय में सहायक लिपिक हैं, वही श्रमिक हैं। इस अध्याय की अब तक की चर्चा से आप समझ चुके होंगे कि स्वनियोजित जैसे, पटरी पर सब्जियों बेचने वाले, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि सभी व्यक्ति श्रमिक या कामगार होते हैं। निम्न श्रेणियों के कामगारों का स्वनियोजन, नियमित वेतनभोगी कर्मचारी तथा आकस्मिक दिहाड़ी मजदूरों में वर्गीकरण को इंगित करने के लिए इनके सामने 'क', 'ख' और 'ग' अंकित करें:
(1) नाई की दुकान का मालिक।
(2) चावल मिल का कर्मचारी, जो नियमित रूप से नियुक्त हो किन्तु जिसे नियमित रूप से दैनिक मजदूरी मिलती हो।
(3) भारतीय स्टेट बैंक का एक कोषपाल।
(4) राज्य सरकार के कार्यालय का टाइपिस्ट जिसे दैनिक मजदूरी आधार पर रखा गया है, पर मासिक भुगतान किया जाता है।
(5) हथकरघा बुनकर।
(6) थोक सब्जी की दुकान पर माल ढोने वाला मजदूर।
(7) शीतल पेय की दुकान का स्वामी जो पेप्सी, कोक, मिरिंडा आदि बेचता है।
(8)किसी निजी अस्पताल में 5 वर्षों से नियमित कार्य कर रही नर्स, जिसे मासिक वेतन मिलता है।
उत्तर:
प्रश्न के अनुसार 'क', 'ख' एवं 'ग' का निम्न अर्थ है
(क) = स्वनियोजित या स्वयं कार्यर
(ख) = नियमित वेतनभोगी कर्मचारी
(ग) = आकस्मिक पारिश्रमिक कर्मचारी या दिहाड़ी मजदूर
1. नाई की दुंकान का मालिक। |
(क) |
2. चावल मिल का कर्मचारी, जो नियमित रूप से नियुक्त हो किन्तु जिसे नियमित रूप से दैनिक मजदूरी मिलती हो। |
(ख) |
3. भारतीय स्टेट बैंक का एक कोषपाल। |
(ख) |
4. राज्य सरकार के कार्यालय का टइपिस्ट जिसे दैनिक मजदूरी आधार पर रखा गया है, पर मासिक भुगतान किया जाता है। |
(ख) |
5. हथकरघा बुन कर। |
(क) |
6. थोक सब्जी की दुकान पर माल ढोने वाला मजदूर। |
(ग) |
7. शीतल पेय की दुकान का स्वामी जो पेप्सी, कोक, मिरिंडा आदि बेचता है। |
(क) |
8. किसी निजी अस्पताल में 5 वर्षों से नियमित कार्य कर रही नर्स, जिसे मासिक वेतन मिलता है। |
(ख) |
प्रश्न 4.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अनियत दिहाड़ी मजदूर की दशा तीनों वर्गों में सबसे अधिक असुरक्षित है? क्या आप जानते हैं कि ये मजदूर कौन हैं, इन्हें कहाँ पाया जाता है और क्यों?
उत्तर:
अर्थशास्त्रियों का यह कथन एकदम सही है कि अनियत दिहाड़ी मजदूरों की दशा तीनों वर्गों में सबसे अधिक असुरक्षित है। क्योंकि इस वर्ग के श्रमिकों के पास कोई नियमित रोजगार नहीं होता है तथा उन्हें थोड़े - थोड़े समय के लिए कार्य मिलता है। कार्य समाप्त हो जाने पर यह निश्चित नहीं रहता है कि वह मजदूर कितने समय तक बेरोजगार रहेगा।
अनियमित दिहाड़ी मजदूरों में मुख्य रूप से वे लोग आते हैं, जो निर्माण कार्यों में मजदूरी का कार्य करते हैं या अन्य लोगों के खेतों पर अनियमित रूप से कार्य करते हैं। इन मजदूरों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब होती है तथा ये लोग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे मकानों में रहते हैं तथा बाहरी क्षेत्रों की कच्ची बस्तियों में निवास करते हैं।
प्रश्न 5.
क्या हम कह सकते हैं कि स्वनियोजित |व्यक्ति दिहाड़ी मजदूरों और वेतनभोगियों से अधिक कमा लेते हैं? रोजगार की गुणवत्ता के कुछ अन्य सूचकों की भी पहचान करें।
उत्तर:
यह सत्य है कि स्वनियोजित व्यक्ति दिहाड़ी मजदूरों एवं वेतनभोगियों से अधिक कमा लेते हैं। इसका कारण यह है कि स्वनियोजित व्यक्तियों का स्वयं का व्यवसाय होता है। वे स्वयं पूंजी लगाकर व्यवसाय करते हैं। अत: उनकी आय भी अन्य वर्गों से अधिक होती है। रोजगार की गुणवत्ता के आधार पर कई अन्य सूचक भी हो सकते हैं, जैसे - औपचारिक संगठन का मजदूर एवं अनौपचारिक संगठन का मजदूर, इसी प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र का मजदूर एवं निजी क्षेत्र का मजदूर।
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प्रश्न 6.
क्या आप जानते हैं कि भारत जैसे देश में रोजगार वृद्धि की दर को 2 प्रतिशत स्तर पर बनाए रखना इतना आसान काम नहीं है? क्यों?
उत्तर:
यह सही है कि भारत जैसे देश में रोजगार वृद्धि की दर को 2 प्रतिशत स्तर पर बनाए रखना आसान कार्य नहीं है। वर्ष 1960 से 2010 की अवधि में भारत की संवृद्धि दर, रोजगार वृद्धि दर से काफी अधिक रही। विगत वर्षों में भारत की रोजगार की वृद्धि दर 2 प्रतिशत से नीचे ही रही। भारत एक विकासशील देश है तथा अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना आसान नहीं है क्योंकि कृषि क्षेत्र में पहले से ही आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हैं इसके अतिरिक्त देश में वित्तीय संसाधनों के अभाव के कारण निर्माण एवं सेवा क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़ाना आसान नहीं है। अत: देश में रोजगार वृद्धि दर को बढ़ाना अत्यधिक मुश्किल कार्य है।
प्रश्न 7.
यदि अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त रोजगार के सृजन बिना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सफलता मिल जाए, तो क्या होगा? यह रोजगारहीन संवृद्धि कैसे संभव हो पाती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त रोजगार के सृजन बिना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सफलता मिल जाए तो देश में बेरोजगारी और अधिक बढ़ जाएगी, साथ ही निर्धनता भी बढ़ जाएगी। क्योंकि देश में बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्या पहले से ही है तथा रोजगारहीन संवृद्धि से ये समस्याएँ और गंभीर हो जाएंगी। भारत में कृषि क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकी, उच्च उत्पादकता वाले बीजों, रासायनिक खाद आदि का उपयोग कर कृषि उत्पादन को बिना श्रम बढ़ाए बढ़ाया जा सकता है, इसके साथ ही उद्योग व सेवा क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकी एवं पूँजी गहन तकनीकों को अपनाकर उत्पादन को आसानी से बढ़ाया जा सकता है, इस प्रकार यह संवृद्धि रोजगारहीन होगी; क्योंकि इसमें उत्पादन तो बढ़ता हैकिन्तु रोजगार नहीं बढ़ता है।
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प्रश्न 8.
इनमें से असंगठित क्षेत्रकों की क्रियाओं में लगे व्यक्तियों के सामने चिह्न अंकित करें:
(1) एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं।
(2) एक ऐसे निजी विद्यालय का शिक्षक, जहाँ 25 शिक्षक कार्यरत हैं।
(3) एक पुलिस सिपाही।
(4) सरकारी अस्पताल की एक नर्स।
(5) एक रिक्शाचालक।
(6) कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ - नौ श्रमिक कार्यरत हैं।
(7) एक ऐसी बस कम्पनी का चालक, जिसमें 10 से अधिक बसें और 20 चालक, संवाहक तथा अन्य कर्मचारी हैं।
(8) दस कर्मचारियों वाली निर्माण कंपनी का चे सिविल अभियंता। श|
(9) राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार के पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर। में|
(10) बिजली दफ्तर का एक क्लर्क।
उत्तर:
सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम तथा 10 या के अधिक कर्मचारियों वाले निजी क्षेत्र के उपक्रमों को संगठित कर क्षेत्र माना जाता है, जबकि अन्य सभी उद्यम और उनमें कार्य कर रहे श्रमिक असंगठित क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। उपर्युक्त प्रश्न में विभिन्न आर्थिक क्रियाओं को संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में निम्न तालिका की सहायता से विभाजित न किया जा सकता है।
आर्थिक क्रिया |
संगठित क्षेत्र/ असंगठित क्षेत्र |
(1) एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं। |
संगठित क्षेत्र |
(2) एक ऐसे निजी विद्यालय का शिक्षक, जहाँ 25 शिक्षक कार्यरत हैं। |
संगठित क्षेत्र |
(3) एक पुलिस सिपाही। |
संगठित क्षेत्र |
(4) सरकारी अस्पताल की नर्स। |
संगठित क्षेत्र |
(5) एक रिक्शाचालक। |
संगठित क्षेत्र |
(6) कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ नौ श्रमिक कार्यरत हैं। |
असंगठित क्षेत्र |
(7) एक ऐसी बस कम्पनी का चालक, जिसमें 10 से अधिक बसें और 20 चालक, संवाहक तथा अन्य कर्मचारी हैं। |
असंगठित क्षेत्र |
(8) दस कर्मचारियों वाली निर्माण कंपनी का सिविल अभियंता। |
संगठित क्षेत्र |
(9) राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर। |
असंगठित क्षेत्र |
(10) बिजली दफ्तर का एक क्लर्क। |
असंगठित क्षेत्र |
प्रश्न 1.
श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न हैं और सकल राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान कर रहे हैं, उन्हें श्रमिक कहते हैं।
प्रश्न 2.
श्रमिक जनसंख्या अनुपात की परिभाषा है।।
उत्तर:
श्रमिक जनसंख्या अनुपात का तात्पर्य देश की 3 कुल श्रमिक संख्या का देश की कुल जनसंख्या से अनुपात है। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
प्रश्न 3.
क्या ये भी श्रमिक हैं : एक भिखारी, एक 3 चोर, एक तस्कर तथा एक जुआरी? क्यों?
उत्तर:
एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर तथा एक जुआरी को श्रमिक नहीं माना जा सकता है; क्योंकि श्रमिक वे व्यक्ति होते हैं, जो कोई आर्थिक क्रिया में संलग्न होते हैं तथा सकल राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान देते हैं। जबकि भिखारी, चोर, तस्कर तथा जुआरी की आय को सकल राष्ट्रीय उत्पादन में नहीं जोड़ा जाता है अतः इन्हें श्रमिक नहीं माना जाता है।
प्रश्न 4.
इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है
(क) नाई की दुकान का मालिक,
(ख) एक मोची,
(ग) मदर डेयरी का कोषपाल,
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक,
(ङ) परिवहन कंपनी संचालक,
(च) निर्माण मजदूर।
उत्तर:
उपर्युक्त समूह में से मदर डेयरी का कोषपाल असंगत है। क्योंकि मदर डेयरी का कोषपालक संगठित क्षेत्रक का कर्मचारी है, जबकि अन्य सभी असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 5.
नये उभरते रोजगार मुख्यत: क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/विनिर्माण)
उत्तर:
नये उभरते रोजगार मुख्यत: सेवा क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं।
प्रश्न 6.
चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को .क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)
उत्तर:
चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले | प्रतिष्ठान को अनौपचारिक क्षेत्रक कहा जाता है।
प्रश्न 7.
राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों
उत्तर:
राज को श्रमिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि राज स्कूल के अलावा अपने ही खेतों पर कार्य करता है तथा उसे नकद या अनाज के रूप में कोई मजदूरी नहीं मिलती, अत: उसे श्रमिक नहीं माना जाएगा।
प्रश्न 8.
शहरी महिलाओं की अपेक्षा अधिक ग्रामीण महिलाएं काम करती दिखाई देती हैं? क्यों?
उत्तर:
वर्ष 2011 - 2012 में भारत की कुल श्रम शक्ति लगभग 47.3 करोड़ आँकी गई। इससे ये लगभग तीन| चौथाई श्रम शक्ति गाँवों में ही निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रमिक कुल श्रम बल का एक-तिहाई है वहीं शहरी क्षेत्र में केवल 20 प्रतिशत महिलाएं ही श्रम बल में भागीदारी देती हैं। अतः शहरी महिलाओं की अपेक्षा अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं कृषि कार्यों एवं मजदूरी में अधिक संलग्न हैं।
प्रश्न 9.
मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ| साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है। क्यों?
उत्तर:
मीना को श्रमिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि वह स्वयं का कोई कार्य नहीं कर रही जिससे उससे कोई प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ प्राप्त हो। मीना अपने पति की कपड़े की दुकान में उसका हाथ बंटाती है, जिसके लिए उसके | पति द्वारा कोई भुगतान नहीं किया जाता है, अतः उसे श्रमिक नहीं माना जा सकता है। हालांकि अर्थशास्त्रियों के अनुसार उन्हें श्रमिक माना जाना चाहिए।
प्रश्न 10.
यहाँ किसे असंगत माना जाएगा:
(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला
(ख) राजमिस्त्री
(ग) किसी मैकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक
(घ) जूते पॉलिश करने वाला लड़का।
उत्तर:
उपर्युक्त समूह में से राजमिस्वी असंगत माना जा सकता है; क्योंकि राजमिस्त्री को नियमित वेतनभोगी कर्मचारी माना जा सकता है, जबकि किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला, किसी मैकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक तथा जूते पॉलिश करने वाला लड़का अनियत मजदूरी वाले श्रमिकों की श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 11.
निम्न सारणी में 1972 - 73 में भारत के श्रम बल का वितरण दिखाया गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रम बल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
निवास स्थान |
श्रम बल (करोड़ में) |
||
|
पुरुष |
महिलाएँ |
कुल योग |
शहरी |
12.5 |
6.9 |
19.4 |
उत्तर:
उपर्युक्त तालिका वर्ष 1972 - 73 की है जिससे हो स्पष्ट होता है कि उस समय देश की कुल श्रम शक्ति 233 करोड़ थी जिसमें से अधिकांश श्रम बल गांवों में निवास करता था। ग्रामीण श्रम बल 194 करोड़ था, जबकि शहरों में ग्रामीण श्रम बल की तुलना में बहुत कम 3.9 करोड़ श्रम बल ही कार्यरत था। उस समय ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में ही पुरुष श्रम बल अधिक रहा। किन्तु कुल श्रम बल में महिलाओं का अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्र की तुलना में काफी अधिक रहा। श्रम बल के इस असंगत वितरण के अनेक कारण थे। पहला मुख्य कारण तो यह था कि 197273 में जनसंख्या का अधिकांश भाग गांवों में ही
भारत में कुल श्रम का सर्वाधिक हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र में लगा हुआ है तथा विगत वर्षों में इस अनुपात में निरन्तर कमी देखी गई। वर्ष 1972 - 73 में कुल श्रम बल में प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा 743 प्रतिशत था वह कम होकर वर्ष 1993 - 94 में 64 प्रतिशत तथा वर्ष 1999 - 2000 में यह घटकर मात्र 60.4 प्रतिशत रह गया। यह प्रतिशत 2011 था तथा महिला श्रम बल का अनुपात भी गांवों में शहरों की तुलना में अधिक होता था। अत: गांवों में अधिक जनसंख्या के निवास करने के कारण वहाँ का श्रम बल अनुपात भी अधिक था।
प्रश्न 12.
इस सारणी में 1999 - 2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रम बल का अनुमान लगा सकते हैं?
उत्तर:
क्षेत्र |
अनुमानित जनसंख्या करोड़ में |
श्रमिक जनसंख्या अनुपात |
(करोड़ में |
ग्रामीण |
71.88 |
41.9 |
? |
प्रश्न 13.
शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर:
नियमित वेतनभोगी कर्मचारी हेतु उच्च कौशल एवं उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है, जो शहरों में अधिक पाया जाता है, अतः शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या अधिक होती है।
प्रश्न 14.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?
उत्तर:
नियमित वेतन वाले कार्यों में उच्च कौशल एवं उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है तथा यह महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कम होती है अत: नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएं कम होती हैं।
प्रश्न 15.
भारत में श्रम बल के क्षेत्रवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर:
भारत में श्रम बल की क्षेत्रवार प्रवृत्तियों को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है में कम होकर 48.9 रह गया। भारत में द्वितीयक अर्थात् उद्योग क्षेत्र में श्रम बल का काफी कम अनुपात लगा हुआ है; किन्तु इसमें निरन्तर वृद्धि हो रही है। वर्ष 1972 - 73 में द्वितीयक क्षेत्रक का श्रम बल में कुल अनुपात 10.9 प्रतिशत था वह बढ़कर 1993 - 94 में 16 प्रतिशत एवं वर्ष 1999 12000 में यह अनुपात 15.8 प्रतिशत हो गया जो वर्ष
2011 - 12 में बढ़कर 24.3 प्रतिशत हो गया। सेवा अथवा c द्वितीयक क्षेत्र में भी कम जनसंख्या लगी हुई है; किन्तु इस 2 क्षेत्र में भी श्रम बल अनुपात में वृद्धि हो रही है। वर्ष र 1972 - 73 में सेवा क्षेत्र में कुल श्रम शक्ति का योगदान 14.8 प्रतिशत था वह वर्ष 1983 में बढ़कर 16.9 प्रतिशत, 1993 - 94 में 20 प्रतिशत तथा 1999 - 2000 में यह अनुपात' 23.8 प्रतिशत हो गया जो वर्ष 2011 - 12 में बढ़कर 26.8 प्रतिशत हो गया है।
प्रश्न 16.
1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रम : बल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। टिप्पणी करें।
उत्तर:
यह सत्य है कि वर्ष 1970 से अब तक उद्योग अथवा द्वितीयक क्षेत्र में श्रम बल के वितरण में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है तथा श्रम बल का सबसे कम अनुपात इसी क्षेत्र में नियोजित है। यदि आँकड़ों के आधार पर देखें तो वर्ष 1972 - 73 में उद्योग क्षेत्र में कुल श्रम बल का 109 प्रतिशत लगा हुआ था, यह अनुपात वर्ष 1983 में बढ़कर 11.5 प्रतिशत हो गया।
इसी प्रकार वर्ष 1993 - 94 में देश के श्रम बल का 16 प्रतिशत भाग उद्योगों में लगा था, जो वर्ष 1999 - 2000 में कम होकर 15.8 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2011 - 12 में भारत में उद्योगों में 24.3 प्रतिशत श्रमबल नियोजित रहा। अत: इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि 1970 के बाद विभिन्न उद्योग में श्रम बल के वितरण में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई है तथा वर्ष 1993 - 94 एवं 1999 - 2000 में उद्योग क्षेत्रक में श्रम बल का अनुपात लगभग स्थिर बना रहा किन्तु 2011 - 12 में इसमें वृद्धि देखी गई।
प्रश्न 17.
क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे?
उत्तर:
विगत 50 वर्षों में भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर काफी सकारात्मक रही है। भारत में वर्ष 1951 से 56 के मध्य सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत वार्षिक रही। यह वृद्धि दर 1956-61 के मध्य 4.2 प्रतिशत वार्षिक रही, 1980 - 85 के मध्य 5.7 प्रतिशत वार्षिक तथा 1997 से 2000 के मध्य सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रही। यह वृद्धि दर 2005 - 10 में 8.7 प्रतिशत एवं 2010 - 11 में 7.8 प्रतिशत दर्ज की गई। किन्तु देश में रोजगार की संवृद्धि दर काफी कम रही है। वर्ष 1951 - 56 के मध्य रोजगार संवृद्धि दर 0.39 प्रतिशत वार्षिक, 1956 - 61 के मध्य 0.85 प्रतिशत वार्षिक, 1980 - 85 के मध्य 1.73 प्रतिशत वार्षिक तथा वर्ष 1997 से 2000 के मध्य देश की रोजगार की संवृद्धि दर
0.98 प्रतिशत वार्षिक रही। इसी प्रकार रोजगार वृद्धि दर 2005 - 10 में 0.28 प्रतिशत तथा 2010 - 12 में 1.12 प्रतिशत रही। अत: देश में रोजगार संवृद्धि दर, सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर से काफी कम रही है। अत: देश में विगत 50 वर्षों में रोजगार की संवृद्धि दर सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर की अपेक्षा काफी कम रही है। इसका मुख्य कारण 'रोजगारहीन संवृद्धि' है। इसके अन्तर्गत देश में नवीन प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी का सहारा लेकर उत्पादन में तो वृद्धि कर दी गई; किन्तु रोजगार के नए अवसर सृजित नहीं किए जा सके, अत: देश में रोजगार की संवृद्धि दर काफी नीची रही है।
प्रश्न 18.
क्या औपचारिक क्षेत्रक में ही रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बताइए।
उत्तर:
औपचारिक अथवा संगठित क्षेत्र का तात्पर्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार प्रदान करने वाले निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों से है, जबकि इसके अतिरिक्त अन्य सभी उद्यमों एवं स्वनियोजित श्रमिकों को अनौपचारिक अथवा संगठित क्षेत्र में माना जाता है। भारत में औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों में ही रोजगार सृजन की आवश्यकता है तथा अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन की अधिक आवश्यकता है।
इसका मुख्य कारण यह है कि देश के अनौपचारिक क्षेत्र में 94 प्रतिशत श्रम बल लगा हुआ है हालांकि अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों की आय नियमित नहीं होती किन्तु फिर भी अधिकांश जनसंख्या इस पर निर्भर है, अतः यहाँ रोजगार सृजन की अधिक आवश्यकता है। भारत में औपचारिक क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों का सृजन करना चाहिए ताकि संगठित मजदूरों की संख्या में वृद्धि की जा सके। साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र के आधुनिकीकरण एवं कर्मचारियों हेतु सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 19.
विक्टर को दिन में केवल दो घंटे काम |मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर:
विक्टर को एक प्रकार से बेरोजगार माना जा सकता 3|है; क्योंकि उसे उसकी क्षमता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल रहा Bहै तथा यह शेष समय में रोजगार की तलाश करता है, अतः र विक्टर को बेरोजगार माना जाएगा। विक्टर जैसे लोगों के पास| नियमित वेतन वाला कार्य नहीं होता है, अतः वे अनियत E मजदूरी वाले श्रमिक वर्ग में आते हैं जिन्हें कोई निश्चित रोजगार नहीं मिलता है, वे अन्य लोगों के यहाँ अनियमित रूप से कार्य करते हैं।
प्रश्न 20.
क्या आप गांव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम पंचायत को सलाह देने को कहा जाए तो आप गांव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रिया-कलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।।
उत्तर:
हाँ, हम गांवों में निवास करते हैं तथा देश के अधिकांश लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। अतः ग्रामीण क्षेत्रों की उन्नति एवं प्रगति अतिआवश्यक है। यदि हमें ग्रामीण क्षेत्रों की उन्नति एवं रोजगार सृजन हेतु सुझाव देने को कहा जाए तो हम निम्नांकित सुझाव प्रदान करेंगे
प्रश्न 21.
अनियत दिहाड़ी मजदूर कौन होते हैं?
उत्तर:
वे मजदूर जिन्हें अनियमित रूप से थोड़े - थोड़े समय के लिए रोजगार मिले वे अनियत दिहाड़ी मजदूर कहलाते हैं। जैसे - निर्माण कार्य पर लगे मजदूर, दूसरे के खेतों में काम करने वाले मजदूर आदि।
प्रश्न 22.
आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर:
देश में औपचारिक क्षेत्र में सभी सार्वजनिक उपक्रम तथा 10 या 10 से अधिक कर्मचारियों वाले निजी उपक्रमों को शामिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रक अनौपचारिक क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।