RBSE Class 8 Sanskrit व्याकरण प्रत्यय

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit व्याकरण प्रत्यय Questions and Answers, Notes Pdf.

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RBSE Class 8 Sanskrit व्याकरण प्रत्यय

विभक्ति रहित मूल शब्द के अन्त में, अर्थसहित शब्द को बतलाने के लिए जो शब्द अथवा वर्ण प्रयुक्त होता है, उसे प्रत्यय कहते हैं। विभक्ति रहित मूल-शब्द को संस्कृत व्याकरण में प्रकृति कहा जाता है। यह प्रकृति दो प्रकार की होती है धातु और प्रातिपदिक। 

इस प्रकार धातु और प्रातिपदिक के बाद जो वर्ण प्रयुक्त किया जाता है वह प्रत्यय होता है। जैसे - 'रामः' इस शब्द में 'राम' प्रातिपदिक है और विसर्ग (सु) प्रत्यय है। उसी प्रकार 'पठित्वा' इस शब्द में 'पठ्' धातु है और 'क्त्वा' प्रत्यय है। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं; जैसे - 

1. विभक्ति-प्रत्यय
2. कृत् प्रत्यय
3. तद्धित प्रत्यय
4. स्त्री-प्रत्यय तथा 
5. धात्ववयव-प्रत्यय। 

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इन्हें निम्नानुसार समझ सकते हैं - 

(क) विभक्ति-प्रत्यय-धातुओं के बाद जुड़ने वाले 'ति, तः, न्ति'-आदि प्रत्यय और प्रातिपदिकों के बाद जुड़ने वाले 'सु, औ, जस्'–आदि प्रत्यय विभक्ति-प्रत्यय होते हैं। जैसे - 

राम + सु - रामः (प्रातिपदिक से निष्पन्न) 
गम् + ति = गच्छति (धातु से निष्पन्न) 
पठ् + न्ति = पठन्ति (धातु से निष्पन्न)। 

(ख) कत् प्रत्यय-धातु के बाद प्रयुक्त प्रत्यय कृत्-प्रत्यय होते हैं। जैसे - 

पठ् + ल्युट् = पठनम्
गम् + तुमुन् = गन्तुम्।

(ग) तद्धित प्रत्यय-संज्ञा और सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय तद्धित होते हैं। जैसे - 

शिव + अण् = शैवः
श्री + मतुप् = श्रीमान्। 

(घ) स्त्री-प्रत्यय-पुल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में बदलने के लिए जो प्रत्यय प्रयोग में लिये जाते हैं वे स्त्री-प्रत्यय होते हैं। जैसे - 

चतुर + टाप् - चतुरा
कुशल + टाप् - कुशला 
दातृ + डीप् = दात्री
युवन् + ति = युवतिः

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(ङ) धात्ववयव-प्रत्यय - धातु और विभक्ति के बीच में प्रयुक्त होने वाले सन्, शप्, णिच् आदि प्रत्यय धात्ववयव प्रत्यय होते हैं। जैसे - 

पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति। 

अंग्रेजी भाषा में प्रत्यय के लिए 'suffix' शब्द है। कुछ प्रमुख और व्यावहारिक प्रत्यय इस प्रकार हैं- क्त्वा, तुमुन्, शत, शानच्, तव्यत्, अनीयर, क्त, क्तवतु, घञ्, टाप्, ल्युट्, णिच्, ल्यप् आदि। 

प्रमुख प्रत्ययों का परिचय - 

(i) 'क्त्वा' प्रत्यय - एक क्रिया जहाँ पूर्ण हो जाती है, उसके बाद दूसरी क्रिया प्रारम्भ नहीं होती है। इस स्थिति में प्रथम सम्पन्न क्रिया पूर्वकालिकी' कही जाती है। जो प्रारम्भ नहीं हुई है वह क्रिया 'उत्तरकालिकी' होती है। दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही होता है। यहाँ 'पूर्वकालिकी' क्रिया के ज्ञान के लिए क्त्वा' प्रत्यय का प्रयोग होता है। 'क्त्वा' प्रत्यय 'कृत्वा' (कर या कर के या करने के बाद) इस अर्थ में होता है। क्त्वा' प्रत्यय में से प्रथम वर्ण 'क्' वर्ण के इत्संज्ञा करने के से लोप हो जाता है। केवल 'त्वा' शेष रहता है। धातु से पहले उपसर्ग नहीं होता है। 'त्वा' प्रत्यय युक्त शब्द 'अव्यय' शब्द होते हैं अर्थात् इनके रूप नहीं चलते हैं। उदाहरण के लिए - 

रमेशः पठित्वा ग्रामं गच्छति। 
मोहनः कथां कथयित्वा हसति। 
सुरेशः आपणं गत्वा वस्तूनि क्रीणाति। 
महेश: चिन्तयित्वा एव वदति। 

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(ii) ल्यप् प्रत्यय 'ल्यप् प्रत्यय 'क्त्वा' प्रत्यय के समान ही अर्थवाला होता है। जहाँ धातु से पहले उपसर्ग होता है, वहाँ धातु के बाद 'कृत्व' (करके) इस अर्थ में 'ल्यप्' प्रत्यय का प्रयोग होता है। 'ल्यप्' प्रत्यय में से प्रथम वर्ण 'ल' का तथा अन्तिम वर्ण 'प्' का लोप हो जाता है। केवल 'य्' शेष रहता है। 'ल्यप्' प्रत्यययुक्त शब्द अव्यय होते हैं अर्थात् इनके भी रूप नहीं चलते हैं। संक्षेप में हम यह जान सकते हैं कि उपसर्ग रहित धातु के बाद 'क्त्वा' एवं उपसर्गयुक्त धातु के बाद 'ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण - 

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(iii) 'तुमुन्' प्रत्यय - 'तुमुन्' प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के 'को' अथवा 'के लिए' इस अर्थ में होता है। 'तुमन्' प्रत्यय से 'मु' के 'उ' वर्ण की और 'न्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तुम्' शेष रहता है। 'तुमुन्' प्रत्ययान्त शब्द अव्यय शब्द होते हैं। अर्थात् इन शब्दों के रूप नहीं चलते हैं। उदाहरण के लिए - 

रामः संस्कृतं पठितुं गच्छति। 
सीता भ्रमितुम् उद्यानं याति। 
मोहनः कथां श्रोतुं तीव्र धावति। 
गणेश: भोजनं खादितुं भोजनालयं पश्यति। 

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अब 'तुमुन्' प्रत्यययुक्त शब्दों की एक तालिका अभ्यास हेतु दी जा रही है -

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(iv) 'तरप्' प्रत्यय - जहाँ दो की तुलना में एक की विशिष्टता अथवा अधिकता प्रकट होती है, वहाँ 'तरप' प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इस प्रत्यय का प्रयोग प्रायः विशेषण शब्दों के समान होता है। 'तरप्' प्रत्यय के अन्तिम वर्ण 'पू' की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है। केवल 'तर' शेष रहता है। 'तरप्' प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिंग में 'राम' के समान, स्वीलिंग में 'रमा' के समान तथा नपुंसकलिंग में 'फल' के समान चलते हैं। -    

'तरप्' प्रत्ययान्ताः शब्दाः

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(v) 'तमप्' प्रत्यय - जहाँ बहुतों (अनेक वस्तुओं) की तुलना में एक की विशेषता अथवा अधिकता दिखलाई जाती है, वहाँ 'तमप्' प्रत्यय का प्रयोग होता है। 'तमप्' प्रत्यय का प्रयोग प्रायः विशेषण शब्दों के समान होता है। 'तमप' प्रत्यय के अन्तिम वर्ण 'प्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तम्' शेष रहता है। 'तमप्' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में 'राम' के समान, स्त्रीलिंग में 'रमा' के समान तथा नपुंसकलिंग में 'ज्ञान' के समान चलते हैं।

'तमप्' प्रत्ययान्तशब्दाः

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(vi-vii) 'क्त' और 'क्तवतु' प्रत्यय - जब किसी भी कार्य की समाप्ति होती है तब उसकी समाप्ति का बोध कराने के लिए धातु से क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं। अर्थात् इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग भूतकाल अर्थ में होता है। ये दोनों प्रत्यय व्याकरणशास्त्र में 'निष्ठा' संज्ञा शब्द से कहे जाते हैं। 'क्त' प्रत्यय के प्रथम वर्ण की अर्थात् 'क्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'त' शेष रहता है। यह 'क्त' प्रत्यय धातु से भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है। 

'क्त' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पल्लिंग में 'राम' के समान, स्त्रीलिंग में 'रमा' के समान और नपुंसकलिंग में 'फल' के समान चलते हैं। 'क्तवतु' प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है। इस प्रत्यय के प्रथम वर्ण अर्थात् ककार 'क्' और अन्तिम वर्ण के 'उ' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तवत्' शेष रहता है। क्तवतु' प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिंग में 'भगवत्' के समान, स्त्रीलिंग में 'नदी' के समान और नपुंसकलिंग में 'जगत्' के समान चलते हैं।

'क्त' प्रत्ययान्ताः शब्दाः

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'क्तवतु' प्रत्ययान्ताः शब्दाः

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(viii-ix) शतृ एवं शानच् प्रत्ययः - लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे अप्रथमान्त के साथ समानाधिकरण होने पर वर्तमान काल में (लट् लकार के स्थान पर) धातु से शतृ और शानच् प्रत्यय होता है।

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शत प्रत्यय परस्मैपदी धातुओं में लगता है, इसका 'अत्' शेष रहता है तथा यह शत-प्रत्ययान्त शब्द विशेषण होता है। इनके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यथा -

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शानच् प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में लगता है, इसका 'आन' शेष रहता है तथा यह भी विशेषण जैसा होता है। इसके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यथा - 

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शत-प्रत्ययान्त कतिपय पुल्लिङ्ग रूप इस प्रकार हैं -

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शानच्-प्रत्ययान्त कतिपय पुल्लिंग रूप इस प्रकार हैं - 

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विशेष - कुछ धातुओं में भविष्यत्काल के स्थान पर भी विकल्प से शतृ और शानच् प्रत्यय होता है। इसमें 'स्य' का आगम लृट् लकार की तरह ही होता है और शब्द तीनों लिङ्गों में चलते हैं। यथा - 

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(x) इनि (णिनि) प्रत्ययः - अकारान्त शब्दों 'वाला' या 'युक्त' अर्थ में 'इनि' प्रत्यय होता है। इनि का 'इन्' शेष रहता है। 

1. इनि प्रत्यय अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त शब्दों में भी लग सकता है, यथा- 
माया + इनि = मायिन्, शिखा + इनि = शिखिन्, वीणा + इनि = वीणिन् इत्यादि।

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2. इनि प्रत्ययान्त शब्द के रूप में पुल्लिङ्ग में 'करिन्' के समान, स्त्रीलिंग में 'ई' लगाकर 'नदी' के समान और नपुंसकलिंग में 'मनोहारिन्' शब्द के समान चलते हैं। कतिपय इति प्रत्ययान्त रूप इस प्रकार हैं - 

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(xi) चाप् प्रत्ययः - अजाद्यतष्टाप्-अजादिगण में आये अज आदि शब्दों से तथा अकारान्त शब्दों से स्वीप्रत्यय 'टाप्' होता है। 'टाप्' का 'आ' शेष रहता है। अजादिगण में अज, अश्व, एडक, चटक, मूषक, बाल, वत्स, पाक, वैश्य, ज्येष्ठ, कनिष्ठ, मध्यम, सरल, कृपण आदि शब्द गिने जाते हैं। यथा - 

टाप् प्रत्ययान्त शब्दरूप

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(क) यदि प्रत्यय से पूर्व प्रातिपादिक 'क' से युक्त हो, तो 'टाप्' प्रत्यय करने पर पूर्ववर्ती अ का इ हो जाता है। 
यथा - सर्विका, कारिका, मासिका। 
(ख) कुछ शब्दों में 'अ' का 'इ' विकल्प से होता है।

यथा - आर्यक-टाप् आर्यका, आर्यिका। सूतक से सूतका, सूतिका। पुत्रक से पुत्रका, पुत्रिका। वर्ण से वर्णका, वर्णिका इत्यादि।

अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तर - 

वस्तुनिष्ठप्रश्नाः

प्रश्न 1. 
अधोलिखितपदेषु 'तुमुन्' प्रत्यययुक्तं पदम् अस्ति।
(क) गतवान् 
(ख) ज्ञातवान्
(ग) लिखितः
(घ) पठितुम्। 
उत्तर : 
(घ) पठितुम्।

प्रश्न 2. 
'काञ्चित् शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम'-अत्र रेखांकितपदे कः प्रत्यय:? 
(क) क्त्वा
(ख) तुमुन् 
(ग) क्त
(घ) ल्यप्। 
उत्तर : 
(ख) तुमुन् 

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प्रश्न 3. 
'पठित्वा' इति शब्दः कस्य प्रत्ययस्य उदाहरणम् अस्ति ? 
(क) शानच् 
(ख) ल्यप् 
(ग) क्त्वा
(घ) तुमुन् 
उत्तर : 
(ग) क्त्वा

प्रश्न 4. 
छात्राः 'पठितुम्' विद्यालयं गच्छन्ति-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति
(क) तुमुन्
(ख) क्त्वा 
(ग) ल्यप्
(घ) तव्य। 
उत्तर : 
(क) तुमुन्

प्रश्न 5. 
'ज्ञात्वा प्रसन्नता जाता'-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति
(क) यत्
(ख) क्त्वा 
(ग) ल्यप्
(घ) तरप्। 
उत्तर : 
(ख) क्त्वा 

प्रश्न 6. 
'तस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या'-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति -
(क) तव्यत् 
(ख) क्त्वा 
(ग) तमप्
(घ) तुमुन्। 
उत्तर : 
(घ) तुमुन्। 

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प्रश्न 7. 
'तस्याः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्'रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति -
(क) तव्यत् 
(ख) तमप् 
(ग) तुमुन्। 
(घ) क्त्वा। 
उत्तर : 
(क) तव्यत्

प्रश्न 8. 
'एका शिक्षिका पुस्तकानि आदाय चलति'रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति - 
(क) तुमुन् 
(ख) क्त्वा 
(ग) ल्यप् 
(घ) यत्। 
उत्तर : 
(घ) यत्। 

प्रश्न 9. 
'शालिनी एतत् दृष्ट्वा उत्तरं ददाति'-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति - 
(क) ल्यप् 
(ख) तमप् 
(ग) तरप्
(घ) क्त्वा। 
उत्तर : 
(ग) तरप्

प्रश्न 10. 
'पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या?'-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति - 
(क) तव्यत् 
(ख) तमप् 
(ग) क्त्वा
(घ) ल्यप्। 
उत्तर : 
(क) तव्यत् 

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प्रश्न 11.
'वयं राज्यानां विषये ज्ञातुम् इच्छामः'-रेखांकितपदे प्रत्ययास्ति - 
(क) क्त्वा
(ख) तुमुन् 
(ग) ल्य प्
(घ) तमप्। 
उत्तर : 
(ख) तुमुन् 

लघूत्तरात्मकप्रश्ना:

प्रश्न 1. 
धातु-प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणम् कुरु:

  1. पा + तुमुन्
  2. उप + गम् + ल्पय्
  3. खाद् + क्त्वा 
  4. श्रेष्ठ + तरप्। 

उत्तरम् :

  1. पातुम् 
  2. उपगम्य 
  3. खादित्वा
  4. श्रेष्ठतरः। 

प्रश्न 2. 
अधोलिखितपदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत -

  1. ग्रहीतुं
  2. कृत्वा
  3. कर्तव्यः 
  4. अवगम्य। 

उत्तरम् :

  1. ग्रह + तुमुन् 
  2. कृ + क्त्वा 
  3. कृ + तव्यत् 
  4. अव, गम् + ल्यप्। 

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प्रश्न 3. 
अधोलिखितपदेष प्रकृति-प्रत्ययविभागं कुरुत -

  1. पठितुम् 
  2. ज्ञातुम् 
  3. द्रष्टुम् 
  4. हसितुम् 
  5. पातुम् 

उत्तराणि :

  1. पठ् + तुमुन् 
  2. ज्ञा + तुमुन् 
  3. दृश् + तुमुन् 
  4. हस् + तुमुन् 
  5. पा + तुमुन्। 

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प्रश्न 4. 
अधोलिखितधातुप्रत्ययौ योजयित्वा पदनिर्माण कुरुत - 

  1. पठ् + तुमुन्
  2. पा + तुमुन् 
  3. आ + नी + तुमुन् 
  4. दुह् + तुमुन्
  5. कृ + तुमुन् 
  6. वच् + तुमुन्।

उत्तराणि :

  1. पठितुम् 
  2. पातुम् 
  3. आनेतुम् 
  4. दोग्धुम् 
  5. कर्तुम्
  6. वक्तुम्।
Prasanna
Last Updated on June 7, 2022, 4:31 p.m.
Published June 7, 2022