RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 9 मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास

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RBSE Class 12 Psychology Chapter 9 Notes मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास

→ मनोविज्ञान का प्रारंभ एक अनुप्रयोग या उपादेय-उन्मुख विधाशाखा के रूप में हुआ।

→ मनोविज्ञान में सेवार्थी वह व्यक्ति/समूह/संगठन है जो स्वयं ही अपनी किसी समस्या के समाधान में मनोवैज्ञानिक से मदद, निर्देशन या हस्तक्षेप प्राप्त करना चाहता है।

→ कौशल पद को प्रवीणता, दक्षता या निपुणता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका अर्जन या विकास प्रशिक्षण अनुभव के द्वारा किया जा सकता है।

→ एक मनोवैज्ञानिक सेवार्थी के इतिवृत को प्राप्त करने में, उसके समाज-सांस्कृतिक परिवेश, में उसके व्यक्तित्व-मूल्यांकन तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विमाओं में सक्रिय अभिरुचि लेता है।

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 9 मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास 

→ अमेरिकी मनावैज्ञानिक संघ ने 1973 में एक कार्यदल गठित किया जिसका उन कौशलों की पहचान करना था जो व्यवासायिक मनौवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक हों। 6. अमेरिकी मनावैज्ञानिक संघ द्वारा गठिन कार्यदल ने कौशलों के तीन समुच्चयों की संस्तुति या अनुशंसा की :

  • व्यक्तिगत भिन्नताओं का मूल्यांकन,
  • व्यवहार परिष्करण कौशल तथा 
  • परामर्श एवं निर्देशन कौशल।

→ आधारभूत कौशल या सक्षमता को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  • सामान्य कौशल,
  • प्रेक्षण कौशल एवं
  • विशिष्ट कौशल।

→ सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है।

→ सामान्य कौशल सभी व्यावसायिक मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक हैं, चाहे वे नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र के हों; औद्योगिक, संगठनात्मक सामाजिक या पर्यावरणी मनोविज्ञान से संबंधित हों या सलाहकार के रूप में कार्यरत हों। 

→ सामान्य कौशल में वैयक्तिक और बौद्धिक कौशल दोनों शामिल हैं।

→ प्रेक्षण कौशल भी आधारभूत कौशल हैं जिनका उपयोग मनोवैज्ञानिक व्यवहार के बारे में अंतर्दृष्टि विकसित करने के लिए एक प्रारंभ बिंदु के रूप में करते हैं। 

→ मनोवैज्ञानिक अपने परिवेश जिनमें घटनाएँ एवं व्यक्ति दोनों शामिल हैं के विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रेक्षण करता है। अपने चारों ओर के वातावरण का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करता है तथा भौतिक स्थितियों को जानने की चेष्टा करता है तथा व्यक्तियों एवं उनके व्यवहारों का भी प्रेक्षण करता है। इसे ही प्रेक्षण कौशल कहते हैं।

→ प्रेक्षण के दो प्रमुख उपागम हैं

  • प्रकृतिवादी प्रेक्षण और
  • सहभागी प्रेक्षण।

→ प्रकृतिवादी प्रेक्षण एक प्राथमिक तरीका है जिससे हम सीखते हैं कि लोग भिन्न स्थितियों में केसे व्यवहार करते हैं।

→ सहभागी प्रेक्षण में प्रेक्षक प्रेक्षण की प्रक्रिया में एक सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह इस स्थिति मैं स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है, जहाँ प्रेक्षण करना है।

→ प्रेक्षण का प्रमुख लाभ यह है कि यह प्राकृतिक या स्वाभाविक स्थिति में व्यवहार को देखने और अध्ययन करने का अवसर देता है।

→ प्रेक्षण का प्रमुख दोष यह है कि प्रेक्षण करने में अभिनति या पूर्वग्रह की भावना आ जाती है क्योंकि प्रेक्षक या प्रेक्षित की भावनाएँ इसको प्रभावित कर देती हैं। विशिष्ट कौशल मनोवैज्ञानिक सेवाओं के क्षेत्र के मूल/आधारभूत कौशल हैं। उदाहरण के लिए नैदानिक स्थितियों में कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक है कि वे चिकित्सापरक हस्तक्षेप की विभिन्न तकनीकों में, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में प्रशिक्षण प्राप्त करें।

→ प्रासंगिक विशिष्ट कौशलों और सक्षमताओं को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  • संप्रेषण कौशल,
  • मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल,
  • साक्षात्कार कौशल तथा
  • परामर्श कौशल।

→ संप्रेषण एक सचेतन या अचेतन, साभिप्राय या अनभिप्रेत प्रक्रिया है जिसमें भावनाओं तथा विचारों को वाचिक या अवाचिक संदेश के रूप में भेजा, ग्रहण किया और समझा जाता है।

→ संप्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अर्थ का संचरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक किया जाता है। 

→ हमारी संप्रेषण प्रक्रिया आकस्मिक, अभिव्यक्तिपरक या वाक्पटुता हो सकती है। 

→ मानव संप्रेषण अंतरावैयक्तिक, अंतर्वैयक्तिक अथवा सार्वजनिक स्तरों पर हो सकता है।

→ अंतरावैयक्तिक संप्रेषण का संबंध व्यक्ति की स्वयं से संवाद करने की क्रिया को कहते हैं। इसमें विचार-प्रक्रम, वैयक्तिक निर्णयन तथा स्वयं पर केंद्रित विचार शामिल होते हैं। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 9 मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास

→ अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण का तात्पर्य उस संप्रेषण से है, जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों से संबंधित होता है, जो एक संप्रेषणपरक संबंध स्थापित करते हैं। 

→ मुखोन्मुख या मध्यस्थ आधारित वार्तालाप, साक्षात्कार एवं लघु समूह परिचर्चा अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण के प्रकार हैं। 

→ सार्वजनिक संप्रेषण में वक्ता अपनी बातों या संदेशों को श्रोताओं तक पहुँचाता है। 

→ जब हम संप्रेषण करते हैं, तब हम कूट संकेतन करते हैं और फिर उसको संप्रेषक सरणी या पथ में डाल देते हैं। यह हमारी प्राथमिक संकेतक प्रणाली का अंग है जो हमारी ज्ञानेंद्रियों से जुड़ी होती है। इस संदेश को उस तक भेजा जाता है जो अपनी प्राथमिक संकेत प्रणाली से इसको ग्रहण करता है। वह संग्रहण का विसंकेतन करता है।

→ जब हम संप्रेषण करते हैं तो हमारा संप्रेषण चयनात्मक होता है अर्थात् हमारे पास उपलब्ध शब्दों एवं व्यवहारों के एक विशाल संग्रह में से हम उन शब्दों एवं क्रियाओं को चुनते हैं जिसके बारे में हमारा भरोसा रहता है कि वे हमारे विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त हैं। 

→ किसी भी संप्रेषण के प्रभावी होने की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि संप्रेषण में प्रयुक्त होने वाले संकेतों या कुटों जिनका उपयोग संदेश को प्रेषित करने और उसको ग्रहण करने के लिए किया गया है के प्रति संप्रेषण करने वाले संप्रेषकों की आपसी समझ कितनी है। 

→ वाचक (संभाषण) संप्रेषण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जिसका अर्थ है भाषा का उपयोग करके बोलना। भाषा में प्रतीकों का उपयोग किया जाता है जिसमें अर्थ बंधे हुए होते हैं। संभाषण का प्रभावी होने के लिए आवश्यक है कि शब्दों का उपयोग स्पष्ट एवं परिशुद्ध हो।

→ प्रवण एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसका उपयोग हम प्रतिदिन करते हैं। इसमें एक प्रकार की ध्यान सक्रियता होती है। 

→ सुनने वाले को धैर्यवान तथा अनिर्णयात्मक होने के साथ विश्लेषण करते रहना पड़ता है ताकि सही अनुक्रिया दी जा सके। 

→ सुनना एवं श्रवण में अंतर यह है कि सुनना एक जैविक क्रिया है जिसमें संवेदी सरणियों के द्वारा संदेश का अभिग्रहण शामिल होता, है। सुनना श्रवण का एक आंशिक पक्ष है, इसमें अभिग्रहण, ध्यान, अर्थ का आरोपण तथा श्रवणकर्ता की संदेश के प्रति अनुक्रिया शामिल होते हैं।

→ श्रवण प्रक्रिया का प्रारंभिक चरण है उद्दीपक या संदेश का अभिग्रहण करना। ये संदेश श्रव्यं और दृश्य हो सकते हैं। 

→ एक बार जब उद्दीपक, जैसे एक शब्द या दृष्टि संकेत या दोनों ग्रहण किये जाते हैं तो वे मानव प्रकमण तंत्र की ध्यान अवस्था पर पहुंचते हैं। 

→ जब किसी व्यक्ति को हमारे द्वारा कही गई बातों को फिर से कहने के लिए कहा जाता है तो वह हमारे शब्दों को एकदम से नहीं दोहरा सकता है। वह अपनी समझ से हमारी बातों या विचारों को पुनर्कथित करता है जो उसकी समझ में आया होता है इसी को पुनर्वाक्यविन्यास कहते हैं। 

→ किसी भी उद्दीपक को ग्रहण करने के बाद हम आपको एक पूर्वनिर्धारित श्रेणी में रखते हैं। हम उन मानसिक श्रेणियों का विकास करते हैं जिनके द्वारा प्राप्त संदेश की व्याख्या की जाती है। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 9 मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास

→ हम जिस संस्कृति में पलते बढ़ते हैं वह भी हमारी श्रवण एवं सीखने की योग्यता को प्रभावित करती है। 

→ अवाचिक क्रियाएँ जो प्रतीकात्मक होती हैं और किसी भी बातचीत की क्रिया से गहराई से जुड़ी रहती हैं। इन्हीं अवाचिक क्रियाओं के अंश को शरीर भाषा कहते हैं। 

→ संप्रेषण में वर्तमान व्यवहार और अतीत के व्यवहार के बीच एकरूपता तथा वाचिक एवं अवाचिक व्यवहार के बीच सुमेल को संगति कहते हैं। 

→ अवाचिक संकेत-हावभाव, भंगिमा, शरीर की बनावट, नेत्र संपर्क, शरीर की गति, पोशाक शैली, हाथों की गति आदि का उपयोग कर विचारों का संप्रेषण किया जाता है। 

→ मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल का संबंध मनोविज्ञान के ज्ञान के आधार से है। इसके अंतर्गत मनोवैज्ञानिक मापन, मूल्यांकन तथा व्यक्तियों और समूहों, संगठनों तथा समुदायों की समस्या समाधान के कौशल आते हैं।

→ मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल का उपयोग प्रमुखतः सामान्य बुद्धि, व्यक्तित्व, विभेदक अभिक्षमताओं, शैक्षिक उपलब्धियों,
व्यावसायिक उपयुक्तता या अभिरुचियों, सामाजिक अभिवृत्तियों तथा विभिन्न अबौद्धिक विशेषताओं के विश्लेषण एवं निर्धारण
में किया जाता है।

→ मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करते समय वस्तुनिष्ठता, वैज्ञानिक उन्मुखता तथा मानकीकृत व्याख्या के प्रति सजगता रखना
आवश्यक होता है। 

→ साक्षात्कार कौशल मुखोन्मुख वार्तालाप की प्रक्रिया है। यह तीन अवस्थाओं में आगे बढ़ती है-प्रारंभिक तैयारी, प्रश्न एवं उत्तर
तथा समापन अवस्था। 

→ साक्षात्कार के प्रारंभ में दो संप्रेषकों के बीच सौहार्द्र स्थापित करना शामिल होता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि साक्षात्कार
देने वाला आराम की स्थिति में आ जाए। 

→ साक्षात्कार का मुख्य भाग प्रश्न एवं उत्तर का है। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता प्रश्नों की एक सूची तैयार करता है जिसे प्रश्न अनुसूची भी कहा जाता है।

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 9 मनोवैज्ञानिक कौशलों का विकास

→ साक्षात्कार का समापन करते समय साक्षात्कारकर्ता ने जो संग्रह किया है उसका सारांश उसे बताना चाहिए।

→ मनोवैज्ञानिक परीक्षण के कौशल विकसित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि परीक्षण में व्यक्तियों एवं समूहों का मूल्यांकन अनेक उद्देश्यों से किया जाता है। इसके संचालन, अंकन तथा व्याख्या के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। 

→ एक उचित संदेश की रचना करना, पर्यावरणीय शोर को नियंत्रित करना तथा प्रतिप्राप्ति देना कुछ तरीके हैं जिनके द्वारा प्रभावी संप्रेषण में होने वाली विकृतियों को कम किया जा सकता है। 

→ एक मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए आवश्यक है कि परामर्श एवं निर्देशन के क्षेत्र में भी सक्षमता हो जिसे विकसित करने के लिए मनोवैज्ञानिकों को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण कुशल पर्यवेक्षण में दिया जाना चाहिए। 

→ साक्षात्कार की योजना, सेवार्थी एवं परामर्शदाता के व्यवहार का विश्लेषण तथा सेवार्थी के ऊपर पड़ने वाले विकासात्मक प्रभाव के निर्धारण के लिये परामर्श एक प्रणाली प्रस्तुत करता है। 54. परामर्श में सहायतापरक संबंध होता है, जिसमें सम्मिलित होता है वह जो मदद चाह रहा है तथा वह जो मदद देने का इच्छुक

→ प्रभावी परामर्शदाता के लिए आवश्यक गुणों में

  • प्रामाणिकता सम्मिलित होते हैं,
  • दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर,
  • तदनुभूति की योग्यता
  • पुनर्वाक्यविन्यास हैं। 

→ प्रभावी मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए, मनोवैज्ञानिक में सक्षमता, अखंडता, व्यावसायिक एवं वैज्ञानिक उत्तरदायित्व, लोगों के अधिकारों तथा मर्यादा के प्रति सम्मान की भावना आदि का होना आवश्यक है।

→ तदनुभूति एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कौशल है जो परामर्शदाता के पास होना चाहिए। यह वह योग्यता है जिसके द्वारा वह सेवार्थी की भावनाओं को उसके ही परिप्रेक्ष्य से समझता है।

→ सेवार्थी-परामर्शदाता संबंध नैतिक आधारों पर ही निर्मित होते हैं। 

→ परामर्श में सेवार्थी के विचारों, भावनाओं एवं क्रियाओं के प्रति अनुक्रिया करना सम्मिलित होता है। 

→ किसी परामर्शदाता की प्रभाविता के लिए संदेशों के प्रति जानकारी और संवेदनशीलता अनिवार्य घटक है।

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 4:16 p.m.
Published Sept. 23, 2022