These comprehensive RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 8 मनोविज्ञान एवं जीवन will give a brief overview of all the concepts.
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→ मनोविज्ञान की एक शाखा जो अनेक ऐसे मनोवैज्ञानिक मुद्दों का अध्ययन करता है जिनका संबंध व्यापक अर्थ में मानव-पर्यावरण अंत:क्रियाओं से होता है।
→ प्रदूषण एवं अन्य अदृश्य पर्यावरणी कारक मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य तथा प्रकार्यों को भी प्रभावित करते हैं।
→ पर्यावरण शब्द हमारे चारों ओर जो कुछ है उसे संदर्भित करता है।
→ जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है।
→ प्रकृति का वह अंग जिसे मानव ने नहीं छुआ है, प्राकृतिक पर्यावरण कहलाता है।
→ प्राकृतिक पर्यावरण में जो कुछ भी मानव द्वारा सर्जित है, वह निर्मित पर्यावरण है। जैसे-सड़कें, बाँध, कारखाना आदि।
→ निर्मित पर्यावरण के अंतर्गत साधारणतया पर्यावरणी अभिकल्प का संप्रत्यय भी आता है।
→ व्यापक रूप से, व्यक्ति के बाहर जो शक्तियाँ हैं, जिनके प्रति व्यक्ति अनुक्रिया करता है, वे सब कुछ पर्यावरण में निहित
→ मानव-पर्यावरण संबंध का विवरण प्रस्तुत करने के लिए स्टोकोल्स नामक एक मनोवैज्ञानिक ने तीन उपागमों-अल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य, नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य और आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य का वर्णन किया है।
→ अल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य का यह अभिग्रह है कि भौतिक पर्यावरण मानव व्यवहार, स्वास्थ्य तथा कुशल क्षेम (कल्याण) पर न्यूनतम या नगण्य प्रभाव डालता है।
→ नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तावित करता है कि भौतिक पर्यावरण का अस्तित्व ही प्रमुखतया मनुष्य के सुख एवं कल्याण के लिए है एवं पर्यावरण के ऊपर मनुष्य के अधिकांश प्रभाव इसी नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित करते हैं।
→ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य पर्यावरण को एक सम्मान योग्य और मूल्यवान वस्तु के रूप में संदर्भित करता है, न कि एक समुपयोग करने योग्य वस्तु के रूप में।
→ पर्यावरण के पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य को मान्यता देता है।
→ पर्यावरण के कुछ पक्ष मानव प्रत्यक्षण को प्रभावित करते हैं।
→ पर्यावरण का प्रभाव हमारी सांवेगिक प्रतिक्रियाओं पर भी पड़ता है। प्रकृति के प्रत्येक रूप का दर्शन मन को एक ऐसी प्रसन्नता से भर देता है जिसकी तुलना किसी अन्य अनुभव से नहीं की जा सकती।
→ मानव संवेगों पर प्राकृतिक विपदाओं का प्रभाव एक अभिघातज अनुभव है जो व्यक्तियों के जीवन को सदा के लिए परिवर्तित कर देता है तथा घटना के बीत जाने के बहुत समय बाद तक भी अभिघातज उत्तर दबाव विकार के रूप में बना रहता है।
→ व्यक्ति के व्यवसाय, जीवन शैली तथा अभिवृत्तियों पर भी पारिस्थितिक का प्रभाव पड़ता है।
→ मनुष्य भी अपनी शारीरिक आवश्कताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यों से प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं।
→ शोर प्रदूषण, भीड़ तथा प्राकृतिक विपदाएँ ये सब पर्यावरणी दबाव कारकों के उदाहरण हैं। ये वे पर्यावरणी उद्दीपक या दशाएँ हैं जो मनुष्यों के प्रति दबाव उत्पन्न करते हैं।
→ कोई भी ध्वनि जो खीझ या चिड़चिड़ाहट उत्पन्न करे और अप्रिय हो, उसे शोर कहते हैं।
→ दीर्घकाल तक शोर के समक्ष उद्भासन से सुनने की क्षमता में कमी आ सकती है, मानसिक क्रियाओं पर निषेधात्मक प्रभाव : पड़ता है और एकाग्रता कम हो जाती है। 22. कार्य निष्पादन पर शोर के प्रभाव को उसकी तीन विशेषताएँ निर्धारित करती हैं जिन्हें शोर की तीव्रता, भविष्यकथनीयता तथा नियंत्रयणी कहते हैं।
→ शोर हमारे चिंतन, स्मृति तथा अधिगम पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तीव्र उच्च ध्वनि स्तर हमारे सुनने की क्षमता को स्थायी क्षति पहुँचा सकता है तथा हृदयगति, रक्तचाप तथा पेशी तनाव बढ़ा सकता है।
→ प्रदूषण हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य तथा मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
→ पर्यावरणी प्रदूषण वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के रूप में हो सकता है।
→ अवशिष्ट पदार्थ या कूड़ा-करकट जो घरों या उद्योगों से आते हैं वे वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं।
→ वायु में धूल के कणों या अन्य निलंबित कणों के कारण दम घुटने का आभास तथा श्वास लेने में कठिनाई हो सकती है जिससे श्वसन-तंत्र संबंधी विकार उत्पन्न हो सकते हैं।
→ वायु-प्रदूषण के विशिष्ट मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होते हैं। जैसे-वायु में सल्फर डाइऑक्साइड की उपस्थिति द्वारा किसी कार्य पर ध्यान को केंद्रित करने की योग्यता एवं निष्पादन दक्षता में कमी आ सकती है।
→ खतरनाक रासायनिक द्रव्यों के रिसाव के कारण होने वाले प्रदूषण से स्मृति, अवधान और जागरूकता संबंधी गड़बड़ियाँ हो सकती हैं।
→ प्रदूषणकारी द्रव्यों की जल तथा मृदा में उपस्थिति शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है तथा इसका खतरनाक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है।
→ एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या किसी विशिष्ट लक्ष्य या उद्देश्य के बिना ही व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही भीड़ कहलाती है।
→ भीड़ के अनुभव के कुछ विशिष्ट लक्षण हैं-असुस्थता की भावना, वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी, व्यक्ति का अपने आस-पास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक अंत:क्रिया पर नियंत्रण के अभाव की भावना।
→ भीड़ पर्याप्त स्थान न होने की मनोवैज्ञानिक अनुभूति है। यह संज्ञानात्मक निष्पादन, अंतर्वैयक्तिक संबंधों तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर निषेधात्मक प्रभाव डालती है।
→ भीड़ के प्रति प्रदर्शित निषेधात्मक प्रभाव की मात्रा तथा प्रतिक्रियाओं की प्रकृति में व्यक्तिगत भिन्नता को दो प्रकार की सहिष्णुता, भीड़ सहिष्णुता तथा प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता के द्वारा समझा जा सकता है।
→ भीड़ सहिष्णुता अधिक घनत्व या भीड़ वाले पर्यावरण के साथ मानसिक रूप से संयोजन करने की योग्यता को संदर्भित करती है। जैसे-घर के भीतर भीड़। 36. प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता वह योग्यता है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति उस स्थिति को भी सह लेता है जिसमें उसे मूल संसाधनों यहाँ तक कि भौतिक स्थान के लिए भी अनेक व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
→ सामाजिक स्थितियों में मनुष्य जिन व्यक्तियों के साथ अंतःक्रिया कर रहा होता है उनके साथ एक विशेष भौतिक (शारीरिक) दूरी बनाए रखना चाहता है। इसे अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरी कहते हैं।
→ स्थिति पर निर्भरता के आधार पर एडवर्ड हॉल ने चार प्रकार की अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरियों को बताया है
→ अंतरंग दूरी-यह वह दूरी है जो हम तब तक बनाकर रखते हैं जब हम किसी से निजी बातचीत करते हैं या किसी घनिष्ठ मित्र या संबंधी के साथ अंतःक्रिया करते हैं। यह दूरी 18 इंच तक की होती है।
→ व्यक्तिगत दूरी-यह वह दूरी है जो हम तब तक बनाकर रखते हैं जब हम किसी घनिष्ठ मित्र या संबंधी के साथ एकेक अंतःक्रिया करते हैं या फिर कार्यस्थान अथवा दूसरे सामाजिक स्थिति में किसी ऐसे व्यक्ति से अकेले में बात करते हैं जो हमारा बहुत अंतरंग नहीं है। यह दूरी 18 इंच से 4 फुट तक की रखी गई है।
→ सामाजिक दूरी वह दूरी है जो हम उन अंतःक्रियाओं में बनाते हैं जो औपचारिक होते हैं, अंतरंग नहीं। यह 4 इंच से 10 फुट तक की दूरी है।
→ यह दूरी जो हम औपचारिक स्थिति में, जहाँ बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हों बनाकर रखते हैं सार्वजनिक दूरी कहलाती है। यह 10 फीट से लेकर अनंत तक की दूरी होती है।
→ प्राकृतिक विपदाएँ ऐसे दवावपूर्ण अनुभव हैं जो कि प्रकृति के प्रकोप के परिणाम हैं अर्थात् जो प्राकृतिक पर्यावरण में अस्त-व्यस्तता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। जैसे-भूकंप, सुनामी, बाढ़, तूफान तथा ज्वालामुखीय उद्गार।
→ प्राकृतिक विपदाओं को 'विपदा' इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें रोका नहीं जा सकता। प्रायः ये बिना किसी चेतावनी के आती हैं तथा मानव जीवन एवं संपत्ति को इनसे अत्यधिक क्षति पहुंचती है।
→ प्राकृतिक विपदाओं के प्रभाव-सामान्य जन निर्धनता की चपेट में आ होते हैं, बेघर तथा संसाधन रहित हो जाते हैं, धन संपत्ति तथा प्रियजनों के अचानक लुप्त या खो जाने से व्यक्ति में गहन मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न करते हैं।
→ प्राकृतिक विपदाएँ अभिघातज अनुभव होते हैं अर्थात् विपदा के पश्चात् जीवित व्यक्तियों के लिए सांवेगिक रूप से आहत करने वाले तथा स्तब्ध कर देने वाले होते हैं।
→ अभिषातज उत्तर दबाव विकार एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है जो अभिघातज घटनाओं जैसे-प्राकृतिक विपदाओं के कारण उत्पन्न होती है।
→ अभिपातज उत्तर दबाव विकार के निम्न प्रतिक्रियाएँ होती हैं-तात्कालिक प्रतिक्रिया, शारीरिक प्रतिक्रियाएँ, सांवेगिक प्रतिक्रियाएँ, संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएँ तथा सामाजिक प्रतिक्रियाएँ।
→ प्राकृतिक विपदाओं के कारण तात्कालिक प्रतिक्रिया आत्म-विस्मृति की होती है अर्थात् यह समझने में कुछ समय लगता है कि इस विपदा का अर्थ क्या है और इसने उनके जीवन में क्या कर दिया।
→ प्राकृतिक विपदाओं के कारण शारीरिक प्रतिक्रियाएँ जैसे-बिना कार्य किए भी शारीरिक परिश्रांति, निद्रा में कठिनाई, भोजन के संरूप में परिवर्तन, हृदयगति और रक्तचाप में वृद्धि, एकाएक चौंक पड़ना आदि अभिघातज उत्तर दबाव विकार से पीड़ित व्यक्ति में दृष्टिगत होते हैं।
→ अभिषातक उत्तर दबाव विकार से पीड़ित व्यक्ति में सांवेगिक प्रतिक्रियाएँ जैसे-शोक एवं भय, चिड़चिड़ापन, क्रोध, असहायता को भावना, निराशा, अवसाद, संवेग-शून्यता, अपराध भावना तथा जीवन के क्रियाकलापों में भी अभिरुचि का अभाव पाया
→ संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएँ, जैसे-आकुलता, एकाग्रता में कठिनाई, अवधान विस्तृति में कमी, संभ्रम, स्मृतिलोप या ऐसी सुस्पष्ट स्मृतियाँ जो वाछित नहीं हैं, अभिघातज उत्तर दबाव विकार से पीड़ित व्यक्ति में पाई जाती हैं।
→ पी. टी. एस डी से पीड़ित व्यक्ति में सामाजिक प्रतिक्रियाएँ जैसे दूसरों से विनिवर्तन, दूसरों के साथ द्वंद्व, प्रियजनों के साथ भी अक्सर विवाद और अस्वीकृत महसूस करना देखा जा सकता है।
→ प्राकृतिक विपदाओं के विध्वंस परिणामों को कुछ उपायों
(क) चेतावनी,
(ख) सुरक्षा उपायों के द्वारा जो घटना के तुरंत बाद किये जा सकें तथा
(ग) मनोवैज्ञानिक विकारों के उपचार द्वारा कम करने हेतु तैयारी की जा सकती है।
→ पर्यावरण उन्मुख व्यवहार के अंतर्गत वे दोनों प्रकार के व्यवहार आते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरण की समस्याओं से संरक्षण करना है तथा स्वस्थ पर्यावरण उन्नत करना है।
→ अभिघातज उत्तर दबाव विकार से पीड़ित व्यक्ति में एक प्रमुख अभिवृत्ति आत्म-सक्षमता को विकसित करने की आवश्यकता होती है।
→ वाहनों को अच्छी हालत में रखने, ईंधन रहित वाहन चलाने से और धूम्रपान की आदत छोड़ने से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
→ प्रदूषण से पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए कुछ प्रोत्साहक क्रियाएँ हैं-वायु प्रदूषण को कम करके, शोर का प्रबलता स्तर धीमी कर, कूड़ा-करकट से निपटने का उपयुक्त प्रबंधन कर, वृक्षारोपण करना एवं उनकी देखभाल करना, प्लास्टिक के उपयोग का किसी भी रूप में निषेध करना, उपभोक्ता वस्तुओं का पैकेज जैविक रूप से नष्ट नहीं होने वाले पदार्थों में कम बनाना आदि।
→ निर्धनता तथा हिंसा दोनों गोचरों का लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
→ निर्धनता को प्रमुखतः आर्थिक अर्थ में करते हैं तथा उसका मापन आय, पोषण तथा जीवन की मूल आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र तथा मकान पर कितनी धनराशि व्यय करते हैं के आधार पर करते हैं।
→ समाज-मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्धनता एक ऐसी दशा है जिसमें जीवन में आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है तथा इसका संदर्भ समाज में धन अथवा संपत्ति का असमान वितरण होता है।
→ वंचन उस दशा को संदर्भित करता है जिसमें व्यक्ति अनुभव करता है कि उसने मूल्यवान वस्तु खो दी है तथा उसे वह प्राप्त नहीं हो रही है जिसके लिए वह योग्य है।
→ कोई निर्धन व्यक्ति वंचन का अनुभव कर सकता है किंतु वंचन का अनुभव करने के लिए निर्धनता कोई आवश्यक दशा नहीं है।
→ निर्धनता के संदर्भ में भेदभाव का अर्थ उन व्यवहारों से है जिनके द्वारा निर्धन तथा धनी के बीच विभेद किया जाता है जिससे धनी तथा सुविधा सम्पन्न व्यक्तियों का निर्धन तथा सुविधावंचित व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पक्षपात किया जाता है।
→ निर्धनता तथा वंचन के प्रतिकूल प्रभाव अभिप्रेरण, व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार, संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा मानसिक स्वास्थ्य पर परिलक्षित होते हैं।
→ एक विश्वास व्यवस्था, जीवन शैली तथा वे मूल्य जिनके साथ व्यक्ति पलकर बड़ा होता है और जो व्यक्ति को यह मनवा या स्वीकार करवा देती है कि वह तो निर्धन ही रहेगा या रहेगी 'निर्धनता की संस्कृति' कहलाता है।
→ आक्रमण पद का उपयोग मनोवैज्ञानिक ऐसी किसी भी व्यवहार को इंगित करने के लिए करते हैं जो किसी व्यक्ति। व्यक्तियों के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति/व्यक्तियों को हानि पहुँचाने के आशय से किया जाता है। 68. दूसरे व्यक्ति या वस्तु के प्रति बलपूर्वक ध्वंसात्मक या विनाशकारी व्यवहार को हिंसा कहते हैं।
→ जॉन डोलॉर्ड ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कुंठा-आक्रामकता सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए विशेष रूप से शोध अध्ययन किया।