These comprehensive RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 7 सामाजिक प्रभाव एवं समूह प्रक्रम will give a brief overview of all the concepts.
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→ समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित व्यवस्था है।
→ भीड़ व्यक्तियों का एक समूहन या एकत्रीकरण है जिसमें लोग एक स्थान या स्थिति में संयोगवश उपस्थित रहते हैं।
→ भीड़ में न तो कोई संरचना होती है और न ही आत्मीयता की भावना होती है।
→ भीड़ में लोगों का व्यवहार अविवेकी होता है और सदस्यों के बीच परस्पर निर्भरता भी नहीं होती है।
→ दल के सदस्यों में प्रायः पूरक कौशल होते हैं और ये एक समान लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं।
→ दर्शकगण या श्रोता भी व्यक्तियों का एक समुच्चय होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य से एकत्र होते हैं।
→ दर्शकगण सामान्यतया निष्क्रिय होते हैं लेकिन कभी-कभी वे आवेश में आकर उत्तेजित जनसमूह या असंयत भीड़ का रूप ले लेते हैं।
→ असंयत भीड़ में विचारों और व्यवहारों में समाजातीयता या समरूपता के साथ ही साथ आवेगशीलता को विशेषता पाई जाती
→ समूह सामान्यतया निर्माण, द्वंद्व, स्थायीकरण, निष्पादन और निष्कासन। अस्वीकरण की विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता
→ विप्लवन अवस्था में समूह के सदस्यों के बीच इस बात को लेकर द्वंद्व चलता रहता है कि समूह के लक्ष्य को केसे प्राप्त करना है, कौन समूह एवं उसके संसाधनों को नियंत्रित करने वाला है और कौन क्या कार्य निष्पादित करने वाला है।
→ समूह निर्माण की प्रक्रिया की अवधि में समूह एक संरचना भी विकसित करता है। यह समूह संरचना तब विकसित होती है जब सदस्य परस्पर अंतःक्रिया करते हैं।
→ भूमिकाएँ वैसे विशिष्ट व्यवहार को इंगित करती हैं जो व्यक्ति को एक दिए गए सामाजिक संदर्भ में चित्रित करती हैं।
→ प्रतिमान समूह के सदस्यों द्वारा स्थापित, समर्पित एवं प्रवर्तित व्यवहार एवं विश्वास के अपेक्षित मानदंड होते हैं।
→ प्रतिष्ठा समूह के सदस्यों को अन्य सदस्यों द्वारा दी जाने वाली सापेक्ष की स्थिति को बताती है।
→ संसक्तता समूह सदस्यों के बीच एकता, बद्धता एवं परस्पर आकर्षण को इंगित करती है।
→ समूह चिंतन में समूह एकमत्य या सर्वसम्मति के प्रति ध्यान रखता है।
→ प्राथमिक समूह पूर्व-विद्यमान निर्माण होते हैं जो प्रायः व्यक्ति को प्रदत्त किया जाता है।
→ द्वितीयक समूह में व्यक्ति अपनी पसंद से जुड़ता है।
→ औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों की सुनिश्चित भूमिकाएँ होती
→ अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों या विधि पर आधारित नहीं होता है और सदस्यों में घनिष्ठ संबंध होता है।
→ अंत:समूह स्वयं के समूह को इंगित करता है। इसके सदस्यों के लिए 'हम लोग' शब्द का उपयोग होता है।
→ बाह्य समूह दूसरे समूह को इंगित करता है। बाह्य समूह के सदस्यों के लिए वे शब्द का उपयोग किया जाता है।
→ भारत में बहुविधता को सम्मान दिया जाता है। हम लोगों की संस्कृति एक अनोखी सामासिक संस्कृति है जो न केवल हमारे उस जीवन में प्रदर्शित होती है जिसे हम जी रहे हैं बल्कि हमारी कला, स्थापत्य या वास्तुकला एवं संगीत में भी प्रतिबंधित होती हैं।
→ दूसरों की उपस्थिति में एक व्यक्ति का अकेले किसी कार्य पर निष्पादन करना सामाजिक सुकरीकरण कहलाता है।
→ एक बड़े समूह के अंग के रूप में दूसरे व्यक्तियों के साथ व्यक्ति का किसी कार्य पर निष्पादन करना सामाजिक स्वैराचार कहलाता है।
→ समूह में अंतःक्रिया और विचार-विमर्श के परिणामस्वरूप समूह की प्रारंभिक स्थिति की प्रबलता या मजबूती को समूह ध्रुवीकरण कहा जाता है।
→ सामाजिक प्रभाव उन प्रक्रमों को इंगित करता है जिसके द्वारा हमारे व्यवहार एवं अभिवृत्तियाँ दूसरे लोगों की काल्पनिक या वास्तविक उपस्थिति से प्रभावित होते हैं।
→ अनुरूपता का अर्थ समूह प्रतिमान या मानक, अर्थात् समूह के अन्य सदस्यों की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार करने से
→ वे लोग जो अनुरूपता नहीं प्रदर्शन करते हैं, उन्हें विसमान्य या अननुपंथी कहा जाता है।
→ अनुपालन में ऐसी बाह्य स्थितियाँ होती हैं जो व्यक्ति को अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के प्रभाव को स्वीकार करने के लिए बाध्य
करती हैं।
→ किसी व्यक्ति के अनुरोध पर एक विशिष्ट तरीके से व्यवहार करने को भी अनुपालन कहा जाता है।
→ आज्ञापालन आप्त व्यक्तियों के प्रति की गई अनुक्रिया होती है। 33. आज्ञापालन सामाजिक प्रभाव का सबसे प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट रूप है।
→ लोग मानक के प्रति अनुरूपता का प्रदर्शन करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि बहुसंख्यक को सही होना चाहिए।
→ अनुरूपता तब अधिक पाई जाती है जब समूह बड़े से अपेक्षाकृत छोटा होता है।
→ जब असहमत अथवा विसामान्य अल्पसंख्यकों का आधार बढ़ता है तो अनुरूपता की संभावना कम होती है।
→ व्यक्तिगत अभिव्यक्ति में सार्वजनिक अभिव्यक्ति की तुलना में कम अनुरूपता पाई जाती है।
→ वैसे व्यक्ति जो उच्च बुद्धि वाले होते हैं जो स्वयं के बारे में विश्वस्त होते हैं, जो प्रबल रूप से प्रतिबद्ध होते हैं एवं जो उच्च आत्म-सम्मान वाले होते हैं उनमें अनुरूपता प्रदर्शित करने की संभावना कम होती है।
→ अनुरूपता सूचनात्मक प्रभाव अर्थात् ऐसा प्रभाव जो वास्तविकता के बजाय साक्ष्यों को स्वीकार करने के परिणामस्वरूप होता है, के कारण उत्पन्न होती है।
→ अनुरूपता मानकीय प्रभाव अर्थात् व्यक्ति की दूसरों से स्वीकृति या प्रशंसा पाने की इच्छा पर आधारित प्रभाव के कारण भी उत्पन्न हो सकता है।
→ जब अनुपालन किसी ऐसे अनुदेश या आदेश के प्रति प्रदर्शित किया जाता है जो किसी आप्त व्यक्ति, जैसे-माता-पिता, अध्यापक या पुलिसकर्मी के द्वारा निर्गत होता है तब इस व्यवहार को आज्ञापालन कहा जाता है।
→ जब समूह किसी साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं तो इसे सहयोग कहते हैं।
→ सहयोगी लक्ष्य वह है जिसमें कोई व्यक्ति तभी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है जब समूह के अन्य व्यक्ति भी लक्ष्य को प्राप्त कर लें।
→ सहयोगी पारितोषिक संरचना वह है जिसमें प्रोत्साहक परस्पर निर्भरता पाई जाती है।
→ प्रतिस्पर्धात्मक पारितोषिक संरचना वह है जिसमें कोई व्यक्ति तभी पुरस्कार प्राप्त कर सकता है जब दूसरे व्यक्ति पुरस्कार नहीं पाते हैं।
→ जब समूह में अच्छा अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण होता है तो सहयोग इसकी संभावित परिणति होती है।
→ संप्रेषण अंतःक्रिया और विचार-विमर्श को सुकर बनाता है।
→ परस्परता का अर्थ यह है कि लोग जिस चीज को प्राप्त करते हैं उसे लौटाने में कृतज्ञता का अनुभव करते हैं।
→ सामाजिक अनन्यता हमारे आत्म-संप्रत्यय का वह पक्ष है जो हमारी समूह सदस्यता पर आधारित है।
→ सामाजिक अनन्यता हमें स्थापित करती है अर्थात् एक बड़े सामाजिक संदर्भ में हमें यह बताती है कि हम क्या हैं और हमारी क्या स्थिति है तथा इस प्रकार समाज में हम कहाँ हैं इसको जानने में सहायता करती है।
→ सामाजिक अनन्यता सदस्यों को स्वयं के तथा उनके सामाजिक जगत के विषय में एक जैसे मूल्यों, विश्वासों तथा लक्ष्यों का एक संकलन (सेट) प्रदान करती हैं।
→ द्वंद्व एक ऐसा प्रक्रम है जिसमें एक व्यक्ति या समूह यह प्रत्यक्षण करते हैं कि दूसरे (व्यक्ति या समूह) उनके विरोधी हितों को रखते हैं और दोनों पक्ष एक-दूसरे का खंडन करने का प्रयास करते हैं।
→ वैयक्तिक स्तर पर हिंसा क्रमिक रूप से अग्रसर होती है।
→ समूहों के बीच द्वंद्व अनेक सामाजिक एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को प्रेरित करते हैं। ये प्रक्रियाएँ प्रत्येक पक्ष के आधार को दृढ़ बनाती हैं जिसके कारण अंत:समूह धुव्रीकरण की उत्पत्ति होती है।
→ अनुनय, शैक्षिक तथा मीडिया अपील और समूहों का समाज में भिन्न रूप से निरूपण इत्यादि के माध्यम से प्रत्यक्षण एवं प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन करने के द्वारा द्वंद्व में कमी लाई जा सकती है।
→ समूह आत्म-अर्ध की अनुभूति देता है और एक सकारात्मक सामाजिक अनन्यता स्थापित करता है।
→ एक प्रतिष्ठित समूह का सदस्य होना व्यक्ति की आत्म-धारणा या आत्म-संप्रत्यय को बढ़ावा देता है।
→ समूह व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं।
→ समूह ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है जिन्हें व्यक्तिगत रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
→ जब लोगों के अभिप्रेरक एवं लक्ष्य समान होते हैं तो वे एक साथ मिलकर एक समूह का निर्माण करते हैं, जो उनके लक्ष्य प्राप्ति को सुकर बनाता है।
→ संसक्तता दल निष्ठा अथवा 'वयं भावना' अथवा समूह के प्रति आत्मीयता की भावना को प्रदर्शित करती है।
→ एक संसक्त समूह को छोड़ना अथवा एक संसक्त समूह की सदस्यता प्राप्त करना कठिन होता है।