These comprehensive RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 5 चिकित्सा उपागम will give a brief overview of all the concepts.
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→ मनश्चिकित्सा उपचार चाहने वाले या सेवार्थी तथा उपचार करने वाले या चिकित्सक के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है।
→ मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलक व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदद करना है।
→ अपर्याप्त वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की यह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के वैयक्तिक पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ।
→ सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता है।
→ सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा तो होती है, किन्तु दूसरे व्यक्ति की तरह वह अनुभव नहीं कर सकता।
→ बौद्धिक समझ भावशून्य इस आशय से होती है कि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह अनुभव कर पाने में असमर्थ होता है और न ही वह सहानुभूति का अनुभव कर पाता है।
→ तदनुभूति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसी की तरह अनुभव कर सकता है।
→ तदनुभूति चिकित्सात्मकं संबंध को समृद्ध बनाती है तथा इसे एक स्वास्थ्यकर संबंध में परिवर्तित करती है।
→ चिकित्सक को सेवार्थी के विश्वास और भरोसे का किसी भी प्रकार से कभी भी अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए।
→ मनोगतिक चिकित्सा के अनुसार अंतः मनोद्वंद्व अर्थात् व्यक्ति के मानस में विद्यमान द्वंद्व, मनोवैज्ञानिक समस्याओं का स्रोत होते हैं।
→ व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम के कारण उत्पन्न होती हैं।
→ अस्तित्वपरक चिकित्सा की अभिधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ से संबंधित प्रश्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।
→ मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वप्न को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है।
→ मनोगतिक चिकित्सा संवेगात्मक अंतर्दृष्टि को महत्त्वपूर्ण लाभ मानती है जो सेवार्थी उपचार के द्वारा प्राप्त करता है।
→ अस्तित्वपरक चिकित्सा एक चिकित्सात्मक पर्यावरण प्रदान करती है जो सकारात्मक, स्वीकारात्मक तथा अनिर्णयात्मक होता
→ व्यवहार चिकित्सा दोषपूर्ण व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को अनुकूली प्रतिरुपों में बदलने को उपचार का मुख्य लाभ मानती है।
→ मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है।
→ एक पूर्ण विकसित अन्यारोपण तंत्रिकाताप चिकित्सक को सेवार्थी के द्वारा सहे जा रहे अंत:मनोद्वंद्व के स्वरूप के प्रति अभिज्ञ बनाता है।
→ सकारात्मक अन्यारोपण में सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है या उससे प्रेम करने लगता है कि चिकित्सक का अनुमोदन चाहता है।
→ नकारात्मक अन्यारोपण तब प्रदर्शित होता है जब सेवार्थी में चिकित्सक के प्रति शत्रुता, क्रोध और अमर्ष या अप्रसन्नता की भावना होती है।
→ अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वंद्वों को अनावृत करती है जिससे कष्ट का स्तर बढ़ जाता है इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करता है।
→ सचेतन प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है।
→ अचेतन प्रतिरोध तब उपस्थित माना जाता है जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु संवेगात्मक बातों का नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए देर से आता है।
→ निर्वचन मूल युक्ति है जिससे परिवर्तन को प्रभावित किया जाता है।
→ प्रतिरोध में चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवार्थी को अवश्य करना चाहिए।
→ स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केंद्रबिंदु में लाता है।
→ प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत प्रक्रिया को समाकलन कार्य कहते हैं।
→ समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है।
→ अंतर्दृष्टि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती हैं; ये अचेतन घटनाएँ एवं स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती हैं और समाकलित की जाती हैं।
→ सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप से परिवर्तन की तत्परता तथा परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि है।
→ अप्रक्रियात्मक व्यवहार वे व्यवहार होते हैं जो सेवार्थी को कष्ट प्रदान करते हैं।
→ दोषपूर्ण व्यवहार का शमन करना या उन्हें समाप्त करना और उन्हें अनुकूली व्यवहार प्रतिरूपों से प्रतिस्थापित करना उपचार का उद्देश्य होता है।
→ निषेधात्मक प्रबलन का तात्पर्य अवांछित अनुक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से है जो कष्टकर या पसंद न किया जाने वाला हो।
→ विमुखी अनुबंधन का संबंध अवांछित अनुक्रिया के विमुखी परिणाम के साथ पुनरावृत्त साहचर्य है।
→ यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रबलन दिया जाता है।
→ विभेदक प्रबलन द्वारा एक साथ अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है तथा वांछित व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
→ दुश्चिता मनोवैज्ञानिक कष्ट की अभिव्यक्ति है जिसके लिए सेवार्थी उपचार चाहता है।
→ व्यवहारात्मक चिकित्सक दुश्चिता को सेवार्थी के भाव-प्रबोधन के स्तर को बढ़ाने वाले के रूप में देखता है जो दोषपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करने में एक पूर्ववर्ती कारक की तरह कार्य करता है।
→ संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण अविवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है।
→ संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों, जैसे-दुश्चिता, अवसाद, आतंक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है।
→ मनोविकृति की रूपरेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव-मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है।
→ समस्या के जैविक पक्षों को विश्रांति की विधियों द्वारा मनोवैज्ञानिक पक्षों को व्यवहार चिकित्सा तथा संज्ञानात्मक चिकित्सा तकनीकों द्वारा और सामाजिक पक्षों को पर्यावरण में परिवर्तन द्वारा संबोधित करने के कारण संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा को एक व्यापक चिकित्सा बनाती है।
→ मानवतावादी-अस्तित्वपरक चिकित्सा की धारणा है कि मनोवैज्ञानिक कष्ट व्यक्ति के अकेलापन, विसंबंधन तथा जीवन का अर्थ समझने और यथार्थ संतुष्टि प्राप्त करने में अयोग्यता की भावनाओं के कारण उत्पन्न होते हैं।
→ मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं।
→ समाकलित होने का तात्पर्य है साकल्य-बोध, एक संपूर्ण व्यक्ति होना, भिन्न-भिन्न अनुभवों के होते हुए भी मूल भाव में वही व्यक्ति होना।
→ विक्टर फ्रेंकल नामक एक मनोरोगविज्ञानी और तंत्रिकाविज्ञानी ने उद्बोधक चिकित्सा प्रतिपादित की।
→ फ्रेंकल जीवन के प्रति खतरनाक परिस्थितियों में भी अर्थ प्राप्त करने की इस प्रक्रिया को अर्थ निर्माण की प्रक्रिया कहते हैं।
→ उद्बोधक चिकित्सा का उद्देश्य अपने जीवन की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना जीवन में अर्थवत्ता और उत्तरदायित्व बोध प्राप्त कराने में सेवार्थी की सहायता करना है।
→ उद्बोधक चिकित्सा में चिकित्सक निष्कपट होता है और अपनी भावनाओं, मूल्यों और अपने अस्तित्व के बारे में सेवार्थी से खुलकर बात करता है।
→ सेवार्थी-केंद्रित चिकित्सा कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित की गई है।
→ रोजर्स ने मनश्चिकित्सा में स्व के संप्रत्यय को प्रस्तुत किया और उनकी चिकित्सा का मानना है कि किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल स्वतंत्रता और वरण होते हैं। अशर्त सकारात्मक आदर यह बताता है कि चिकित्सा की सकारात्मक हार्दिकता सेवार्थी की उन भावनाओं पर आश्रित नहीं है जो वह चिकित्सा सत्र के दौरान प्रदर्शित करता है।
→ गेस्टाल्ट चिकित्सा को फ्रेडरिक पर्ल्स ने अपनी पत्नी लॉरा पर्ल्स के साथ प्रस्तुत की थी।
→ गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को आत्म-जागरूकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को बढ़ाना होता है।
→ वे दवाएँ जो एक सामान्य व्यक्ति परीक्षा के लिए जागकर पढ़ने के लिए उपयोग करता है या किसी पार्टी में 'चरम उत्तेजन' प्राप्त करने के लिए उपयोग करता है, उनके भी खतरनाक अनुषंगी प्रभाव हो सकते हैं। इन दवाओं की लत पड़ सकती है और ये शरीर तथा मस्तिष्क को क्षति पहुँचा सकती हैं।
→ विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा में इलेक्ट्रोड द्वारा बिजली के हल्के आघात रोगी के मस्तिष्क में दिए जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन्न हो सके जब रोगी के सुधार के लिए बिजली के आघात आवश्यक समझे जाते हैं तो ये केवल मनोरोग विज्ञानी के द्वारा ही दिए जाते हैं।
→ वैकल्पिक चिकित्सा में पारंपरिक औषध-उपचार या मनश्चिकित्सा की वैकल्पिक उपचार संभावनाएँ होती हैं। योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि आदि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं।
→ योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसे पातंजलि के योग सूत्र के अहटांग योग में विस्तृत रूप से बताया गया है।
→ योग का आशय केवल आसन या शरीर संस्थिति घटक अथवा श्वसन अभ्यास या प्राणायाम अथवा दोनों के संयोग से होता
→ विपश्यना ध्यान में ध्यान को बाँधे रखने के लिए कोई नियत वस्तु या विचार नहीं होता है। व्यक्ति निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं विचारों, जो उसकी चेतना में आते रहते हैं, का प्रेक्षण करता है।
→ तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु-संचार करती है तथा जो सुदर्शन क्रिया योग में प्रयुक्त की जाती है, लाभदायक, कम खतरे वाली और कम खर्च वाली तकनीक है।
→ अमेरिका में सिखाया जाने वाला कुंडलिनी योग मानसिक विकारों के उपचार में प्रभावी पाया गया है।
→ कुंटलिनी योग में मंत्रों के उच्चारण के साथ श्वसन तकनीक या प्राणायाम को संयुक्त किया जाता है।