RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम

Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम  Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम 

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प्रश्न 1. 
अमेरिका में सिखाए जाने वाले योग को क्या कहते
(क) योग
(ख) कुंडलिनी योग 
(ग) सुदर्शन योग 
(घ) निष्ठा योग
उत्तर:
(ख) कुंडलिनी योग 

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प्रश्न 2. 
निम्नलिखित में किसमें मंत्रों के उच्चारण के साथ श्वसन तकनीक या प्राणायाम को संयुक्त किया जाता है ? 
(क) ध्यान
(ख) सुदर्शन योग 
(ग) कुंडलिनी योग 
(घ) उपचार 
उत्तर:
(ग) कुंडलिनी योग 

प्रश्न 3. 
मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन का उद्देश्य होता
(क) रोगी को सशक्त बनाना 
(ख) रोगी को घर देना 
(ग) रोगी की देखभाल करना 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) रोगी को सशक्त बनाना 

प्रश्न 4.
मानसिक रोगियों के पुनः स्थापना में किस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है ?
(क) व्यावसायिक चिकित्सा 
(ख) सामाजिक कौशल प्रशिक्षण 
(ग) व्यावसायिक प्रशिक्षण 
(घ) उपरोक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी 

प्रश्न 5.
योग विधि बढ़ाती है : 
(क) भावदशा
(ख) ध्यान 
(ग) दबाव सहिष्णुता 
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 6. 
अपर्याप्त वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की यह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ:
(क) वैयक्तिक 
(ख) सामाजिक
(ग) आर्थिक
(घ) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(क) वैयक्तिक 

प्रश्न 7. 
निम्नलिखित में से कौन मनश्चिकित्सात्मक उपागम के लक्षण नहीं हैं ?
(क) चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांतों में अंतनिहित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है
(ख) चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी व्यवहारात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है
(ग) केवल वे व्यक्ति जिन्होंने कुशल पर्यवेक्षण में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई नहीं
(घ) मनश्चिकित्सा उपचार चाहने वाले या सेवार्थी तथा उपचार करने वाले के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है
उत्तर:
(ख) चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी व्यवहारात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है

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प्रश्न 8. 
निम्नलिखित में कौन मनश्चिकित्सा में उद्देश्य नहीं हैं? 
(क) संगात्मक दबाव को अधिक बढ़ाना 
(ख) आत्म-जागरूकता को बढ़ाना 
(ग) निर्णय को सुकर बनाना 
(घ) जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरूक होना
उत्तर:
(क) संगात्मक दबाव को अधिक बढ़ाना 

प्रश्न 9. 
सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को क्या कहा जाता है ? 
(क) मैत्री 
(ख) सकारात्मक मैत्री 
(ग) चिकित्सात्मक मैत्री 
(घ) व्यवहारात्मक मैत्री 
उत्तर:
(ग) चिकित्सात्मक मैत्री 

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(क) सहानुभूति में व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह का अनुभव नहीं कर सकता
(ख) सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति बिल्कुल करुणा नहीं होती है।
(ग) सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा होती है
(घ) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(ख) सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति बिल्कुल करुणा नहीं होती है।

प्रश्न 11. 
मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया? 
(क) कार्ल रोजर्स 
(ख) फ्रेडरिक पर्ल्स 
(ग) सिगमंड फ्रायड 
(घ) वोल्प
उत्तर:
(ग) सिगमंड फ्रायड 

प्रश्न 12. 
अंत: मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए किस विधि का उपयोग होता है?
(क) मुक्त साहचर्य विधि 
(ख) अन्यारोपण विधि 
(ग) स्पष्टीकरण विधि 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) मुक्त साहचर्य विधि 

प्रश्न 13. 
निम्नलिखित में किसमें सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है ?
(क) नकारात्मक अन्यारोपण 
(ख) सकारात्मक अन्यारोपण 
(ग) अन्यारोपण तंत्रिकाताप 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) सकारात्मक अन्यारोपण 

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प्रश्न 14. 
निम्नलिखित में निर्वचन के विश्लेषणात्मक तकनीक कौन सी है? 
(क) प्रतिरोध
(ख) स्पष्टीकरण 
(ग) (क) और
(ख) दोनों 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) (क) और
(ख) दोनों 

प्रश्न 15. 
निम्नलिखित में कौन रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता
(क) प्रतिरोध
(ख) स्पष्टीकरण 
(ग) अन्यारोपण 
(घ) समाकलन कार्य
उत्तर:
(घ) समाकलन कार्य

प्रश्न 16. 
निम्नलिखित में किसमें अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती हैं ? 
(क) अंतर्दृष्टि
(ख) अन्यारोपण 
(ग) स्वप्न विधि 
(घ) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(क) अंतर्दृष्टि

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में कौन सेवार्थी को कष्ट प्रदान करते
(क) अपक्रियात्मक व्यवहार 
(ख) क्रियात्मक व्यवहार 
(ग) व्यक्तिगत व्यवहार 
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(क) अपक्रियात्मक व्यवहार 

प्रश्न 18. 
क्रमिक विसंवेदनीकरण को किसने प्रतिपादित किया ?
(क) अल्बर्ट एलिस 
(ख) वोल्प 
(ग) विक्टर फ्रेंकल 
(घ) जॉन पर्ल्स
उत्तर:
(ख) वोल्प 

प्रश्न 19. 
यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित  होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए क्या दिया जाता
(क) निषेधात्मक प्रबलन 
(ख) विमुखी अनुबंधन 
(ग) सकारात्मक प्रबलन 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) सकारात्मक प्रबलन 

प्रश्न 20. 
संवेग तर्क चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया? 
(क) अल्बर्ट एलिस 
(ख) विक्टर फ्रेंकल 
(ग) आरन बेक 
(घ) सिगमंड फ्रायड
उत्तर:
(क) अल्बर्ट एलिस 

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प्रश्न 21. 
चिकित्सक पर लागू होने वाले अविशिष्ट कारक कौन-से हैं ?
(क) सकारात्मक स्वभाव 
(ख) अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की उपस्थिति 
(ग) अनसुलझे संवेगात्मक द्वंद्वों की अनुपस्थिति 
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 22. 
निम्नलिखित में मनश्चिकित्सा के नैतिक सिद्धांत कौन नहीं हैं ?
(क) मानव अधिकार एवं गरिमा के लिए आदर 
(ख) व्यावसायिक सक्षमता एवं कौशल आवश्यक है 
(ग) सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति की आवश्यकता नहीं होती है 
(घ) सेवार्थी की गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए 
उत्तर:
(ग) सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति की आवश्यकता नहीं होती है 

प्रश्न 23.
गेस्टाल्ट चिकित्सा को किसने विकसित किया ? 
(क) फ्रेडेरिक पर्ल्स
(ख) लॉरा पर्ल्स 
(ग) फ्रेडेरिक पर्ल्स एवं लॉरा पर्ल्स 
(घ) वोल्प
उत्तर:
(ग) फ्रेडेरिक पर्ल्स एवं लॉरा पर्ल्स 

प्रश्न 24. 
निम्नलिखित में किसके द्वारा एक अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है तथा वांछित व्यवहार को बढ़ाया जा सकता है।
(क) विभेदक प्रबलन 
(ख) निषेधात्मक प्रबलन 
(ग) विमुखी अनुबंधन 
(घ) सकारात्मक प्रबलन
उत्तर:
(क) विभेदक प्रबलन 

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा क्या है ?
उत्तर-
मनश्चिकित्सा उपचार चाहने वाले या सेवार्थी तथा उपचार करने वाले या चिकित्सक के बीच में एक ऐच्छिक संबंध

प्रश्न 2. 
मनश्चिकित्सा का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलक व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदद करना

प्रश्न 3. 
चिकित्सात्मक मैत्री किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता है। यह न तो एक क्षणिक परिचय होता है और न ही एक स्थायी एवं टिकाऊ संबंध।

प्रश्न 4. 
चिकित्सात्मक मैत्री के दो मुख्य घटक कौन से
उत्तर-
विकित्सात्-क मैत्री के दो मुख्य घटक हैं
(i) पहला घटक इस संबंध की संविदात्मक प्रकृति है, जिसमें दो इच्छुक व्यक्ति, सेवार्थी एवं चिकित्सक, एक ऐसी साझेदारी भागीदारी में प्रवेश करते हैं जिसका उद्देश्य सेवार्थी की समस्याओं का निराकरण करने में उसकी मदद करना होता है।
(ii) दूसरा घटक है-चिकित्सा की सीमित अवधि। 

प्रश्न 5. 
सहानुभूति क्या होती है ?
उत्तर-
सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा तो होती है किन्तु दूसरे व्यक्ति की तरह वह अनुभव नहीं कर सकता।

प्रश्न 6. 
तदनुभूति क्या होती है ?
उत्तर-
तदनुभूति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसी की तरह अनुभव कर सकता है।

प्रश्न 7. 
मनश्चिकित्सा को कितने समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है ?
उत्तर-
मनश्चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है :
(i) मनोगतिक मनश्चिकित्सा, 
(ii) व्यवहार मनश्चिकित्सा, 
(iii) अस्तित्वपरक मनश्चिकित्सा।

प्रश्न 8. 
व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ किस कारण उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम के कारण उत्पन्न होती

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प्रश्न 9. 
अस्तित्वपरक चिकित्सा की क्या अवधारणा
उत्तर-
अस्तित्वपरक चिकित्सा की अवधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ से संबंधित प्रश्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।

प्रश्न 10. 
मनोगतिक चिकित्सा में क्या उत्पन्न किया जाता है ?
उत्तर-
मनोगतिक चिकित्सा में बाल्यावस्था की अतृप्त इच्छाएँ तथा बाल्यावस्था के अनसुलझे भय अंत: मनोद्वंद्व को उत्पन्न करते

प्रश्न 11.
व्यवहार चिकित्सा की अभिधारणा क्या है ?
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा की अभिधारणा है कि दोषपूर्ण अनुबंधन प्रतिरूप, दोषपूर्ण अधिगम तथा दोषपूर्ण चिंतन एवं विश्वास दुरनुकूलक व्यवहारों को उत्पन्न करते हैं जो बाद में मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनते हैं।

प्रश्न 12. 
अस्तित्वपरक चिकित्सा किसे महत्त्व देती है? 
उत्तर-
अस्तित्वपरक चिकित्सा वर्तमान को महत्त्व देती है। यह व्यक्ति के अकेलेपन, विसंबंधन, अपने अस्तित्व की व्यर्थता के बोध इत्यादि से जुड़ी वर्तमान भावनाएँ हैं जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण है।

प्रश्न 13. 
मनोगतिक चिकित्सा के उपचार की मुख्य विधि क्या है ?
उत्तर-
मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वप्न को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है। इस सामग्री की व्याख्या सेवार्थी के समक्ष की जाती है ताकि इसकी मदद से वह अपने इंद्रों का सामना और समाधान कर अपनी समस्याओं पर विजय पा सके।

प्रश्न 14. 
मानवतावादी चिकित्सा किसे मुख्य लाभ मानती है ?
उत्तर-
मानवतावादी चिकित्सा व्यक्तिगत संवृद्धि को मुख्य लाभ मानती है।

प्रश्न 15.
व्यक्तिगत संवृद्धि क्या है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत संवृद्धि अपने बारे में और अपनी आकांक्षाओं, संवेगों तथा अभिप्रेरकों के बारे में बढ़ती समझ प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 16. 
मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया था ?
उत्तर-
मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन सिगमंड फ्रायड द्वारा किया गया था।

प्रश्न 17. 
अंत: मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए किन विधियों का आविष्कार किया गया ?
उत्तर-
अंत: मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधियाँ-मुक्त साहचर्य विधि तथा स्वप्न व्याख्या विधि का आविष्कार किया गया।

प्रश्न 18. 
सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि क्या है ?
उत्तर-
मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है।

प्रश्न 19. 
मुक्त साहचर्य विधि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सेवार्थी को एक विचार को दूसरे विचार से मुक्त रूप से संबंद्ध करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इस विधि को मुक्त साहचर्य विधि कहते हैं।

प्रश्न 20. 
रोगी के उपचार करने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर-
अन्यारोपण तथा व्याख्या या निर्वचन रोगी का उपचार करने के उपाय हैं।

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प्रश्न 21. 
सकारात्मक अन्यारोपण क्या है ? 
उत्तर-
सकारात्मक अन्यारोपण में सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है या उससे प्रेम करने लगता है और चिकित्सक का अनुमोदन चाहता है। 

प्रश्न 22. 
नकारात्मक अन्यारोपण कब प्रदर्शित होता
उत्तर-
नकारात्मक अन्यारोपण तब प्रदर्शित होता है जब सेवार्थी में चिकित्सक के प्रति शत्रुता, क्रोध और अमर्ष या अप्रसन्नता की भावना होती है। 

प्रश्न 23. 
अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध क्यों होता
उत्तर-
चूँकि अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वंद्वों को अनावृत करती है, जिससे कष्ट का स्तर बढ़ जाता है इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करता है।

प्रश्न 24. 
सचेत प्रतिरोध कब होता है ?
उत्तर-
सचेत प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है।

प्रश्न 25.
अचेतन प्रतिरोधक कब होता है ?
उत्तर-
अचेतन प्रतिरोध तब माना जाता है जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु संवेगात्मक बातों का नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए देर से आता है।

प्रश्न 26. 
परिवर्तन को किस युक्ति द्वारा प्रभावित किया जाता है ?
उत्तर-
निर्वचन मूल युक्ति है जिससे परिवर्तन को प्रभावित किया जाता है।

प्रश्न 27. 
निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक कौन-सी हैं ?
उत्तर-
प्रतिरोध तथा स्पष्टीकरण निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक हैं।

प्रश्न 28. 
प्रतिरोध क्या है ?
उत्तर-
प्रतिरोध निर्वचन की विश्लेषणात्मक तकनीक है जिसमें चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवार्थी को अवश्य करना चाहिए।

प्रश्न 29. 
स्पष्टीकरण क्या है ?
उत्तर-
स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केंद्रबिंदु में लाता है।

प्रश्न 30. 
समाकलन कार्य किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत प्रक्रिया को समाकलन कार्य कहते हैं।

प्रश्न 31. 
समाकलन कार्य में क्या कार्य होता है ?
उत्तर-
समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है।

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प्रश्न 32.
'अंतर्दृष्टि' से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- 
अंतर्दृष्टि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती हैं। ये अचेतन घटनाएँ एवं स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती हैं और समाकलित की जाती हैं।

प्रश्न 33. 
सांवेगिक समझ से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप से परिवर्तन की तत्परता तथा परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि है।

प्रश्न 34.
व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक कष्ट क्यों उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यवहार प्रतिरूपों या विचार प्रतिरूपों के कारण उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 35.
व्यवहार चिकित्सा का केंद्रबिंदु क्या होता है?
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा का केंद्र बिंदु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते हैं।

प्रश्न 36. 
व्यवहार चिकित्सा का आधार क्या होता है?
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा का आधार दोषपूर्ण या अपक्रियात्मक व्यवहार को निरूपित करना, इन व्यवहारों को प्रबलित तथा संपोषित करने वाले कारकों तथा उन विधियों को खोजना है जिनसे उन्हें परिवर्तित किया जा सके।

प्रश्न 37. 
अपक्रियात्मक व्यवहार क्या होते हैं ?
उत्तर-
अपक्रियात्मक व्यवहार वे व्यवहार होते हैं जो सेवार्थी को कष्ट प्रदान करते हैं।

प्रश्न 38.
पूर्ववर्ती कारक क्या होते हैं ?
उत्तर-
पूर्ववर्ती कारक वे कारण होते हैं जो व्यक्ति को उस व्यवहार में मान हो जाने के लिए पहले ही से प्रवृत्त कर देते हैं।

प्रश्न 39. 
संपोषण कारक क्या होते हैं ?
उत्तर-
संपोषण कारक वे कारक होते हैं जो दोषपूर्ण व्यवहार के स्थायित्व को प्रेरित करते हैं।

प्रश्न 40. 
स्थापक संक्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
यदि एक बच्चा रात का भोजन करने में परेशान करता है तो स्थापक संक्रिया यह होगी कि चायकाल के समय खाने की मात्रा को घटा दिया जाए। उससे रात के भोजन के समय भूख बढ़ जाएगी तथा इस प्रकार रात के भोजन के समय खाने का प्रबलन मूल्य बढ़ जाएगा।

प्रश्न 41.
व्यवहार को परिवर्तित करने की तकनीकों का | क्या सिद्धांत है ?
उत्तर-
व्यवहार को परिवर्तित करने की तकनीकों का सिद्धांत है सेवार्थी के भाव-प्रबोधन स्तर को कम करना, प्राचीन अनुबंधन या क्रियाप्रसूत अनुबंधन द्वारा व्यवहार को बदलना जिसमें प्रबलन की भिन्न-भिन्न प्रासंगिकता हो. साथ ही यदि आवश्यकता हो तो प्रतिस्थानिक अधिगम प्रक्रिया का भी उपयोग करना।

प्रश्न 42. 
व्यवहार परिष्करण की मुख्य तकनीक क्या
उत्तर-
व्यवहार परिष्करण की दो मुख्य तकनीकें हैं-निषेधात्मक प्रबलन तथा विमुखी अनुबंधन।

प्रश्न 43. 
निषेधात्मक प्रबलन से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
निषेधात्मक प्रबलन का तात्पर्य अवांछित अनुक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से है जो कष्टकर या पसंद न किया जाने वाला हो।

प्रश्न 44. 
निषेधात्मक प्रबलन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
एक अध्यापक कक्षा में शोर मचाने के लिए एक बालक को फटकार लगाता है. यह निषेधात्मक प्रबलन है।

प्रश्न 45. 
विमुखी अनुबंधन क्या है?
उत्तर-
विमुखी अनुबंधन का संबंध अवांछित अनुक्रिया के विमुखी परिणाम के साथ पुनरावृत्त साहचर्य से है।

प्रश्न 46. 
विमुखी अनुबंधन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
एक मद्यव्यसनी को बिजली का एक हल्का आघात दिया जाए और मद्य सूंघने को कहा जाए। ऐसे पुनरावृत्त युग्मन से मद्य की गंध उसके लिए अरुचिकर हो जाएगी क्योंकि बिजली के आघात की पीड़ा के साथ इसका साहचर्य स्थापित हो जाएगा और व्यक्ति मद्य छोड़ देगा।

प्रश्न 47. 
सकारात्मक प्रबलन कब दिया जाता है ?
उत्तर-
यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रबलन दिया जाता है।

प्रश्न 48.
सकारात्मक प्रबलन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
यदि एक बालक गृह कार्य नियमित रूप से नहीं करता तो उसकी माँ नियत समय गृह कार्य करने के लिए सकारात्मक प्रबलन के रूप में बच्चे का मनपसंद पकवान बनाकर दे सकती है। मनपसंद भोजन का सकारात्मक प्रबलन उसके नियत समय पर गृह कार्य करने के व्यवहार को बढ़ाएगा।

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प्रश्न 49. 
टोकन अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर-
व्यवहारात्मक समस्याओं वाले लोगों को कोई वांछित व्यवहार करने पर हर बार पुरस्कार के रूप में एक टोकन दिया जा सकता है। ये टोकन संगृहीत किए जाते हैं और किसी पुरस्कार से उनका विनिमय या आदान-प्रदान किया जाता है, जैसे रोगी को बाहर घुमाने ले जाना। इसे टोकन अर्थव्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 50. 
विभेदक प्रबलन क्या है ?
उत्तर-
विभेदक प्रबलन द्वारा एक साथ अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है तथा वांछित व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सकता है।

प्रश्न 51. 
क्रमिक विसंवेदनीकरण को किसने प्रतिपादित किया था ?
उत्तर-
दुर्भीति या अविवेकी भय के उपचार के लिए वोल्प द्वारा प्रतिपादित क्रमिक विसंवेदनीकरण एक तकनीक है।

प्रश्न 52. 
प्रगामी पेशीय विश्रांति क्या है ?
उत्तर-
प्रगामी पेशीय विश्रांति दुश्चिता के स्तर को कम करने की एक विधि है जिसमें सेवार्थी को पेशीय तनाव या तनाव के प्रति जागरूकता लाने के लिए विशिष्ट पेशी समूहों को संकुचित करना सिखाया जाता है।

प्रश्न 53. 
अन्योन्य प्रावरोध का सिद्धांत क्या है ? 
उत्तर-
इस सिद्धांत के अनुसार दो परस्पर विरोधी शक्तियों की एक ही समय में उपस्थिति कमजोर शक्ति को अवरुद्ध करती है। अतः पहले विश्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे से दुश्चिता उत्पन्न करने वाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्रांति से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। सेवार्थी अपनी विश्रांत अवस्था के कारण प्रगामी तीव्रतर दुश्चिता को सहन करने योग्य हो जाता है।

प्रश्न 54. 
मॉडलिंग प्रक्रिया क्या है?
उत्तर-
मॉडलिंग या प्रतिरूपण की प्रक्रिया में सेवार्थी एक विशेष प्रकार से व्यवहार करना सीखता है। इसमें वह कोई भूमिका-प्रतिरूप या चिकित्सक, जो प्रारंभ में भूमिका प्रतिररूप की तरह कार्य करता है, के व्यवहार का प्रेक्षण करके उस व्यवहार को करना सीखता है।

प्रश्न 55.
प्रतिस्थानिक अधिगम क्या है ?
उत्तर-
दूसरों का प्रेक्षण करते हुए सीखना को प्रतिस्थानिक अधिगम कहते हैं।

प्रश्न 56. 
संज्ञानात्मक चिकित्सा में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण किसे माना जाता है ?
उत्तर-
संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण अविवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है। 

प्रश्न 57.
संवेग तर्क चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-
अल्बर्ट एलिस ने संवेग तर्क चिकित्सा को प्रतिपादित किया।

प्रश्न 58. 
संवेग तर्क चिकित्सा की केंद्रीय धारणा क्या
उत्तर-
इस चिकित्सा की केंद्रीय धारणा है कि अविवेकी विश्वास पूर्ववर्ती घटनाओं और उनके परिणामों के बीच मध्यस्थता करते हैं। 

प्रश्न 59. 
संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण क्या है?
उत्तर-
संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण है-पूर्ववर्ती विश्वास-परिणाम विश्लेषण।

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प्रश्न 60. 
अविवेकी विश्वासों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
अविवेकी विश्वासों के उदाहरण हैं; जैसे किसी को हर एक का प्यार हर समय मिलना चाहिए; मनुष्य की तंगहाली बाह्य घटनाओं के कारण होती है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, इत्यादि।

प्रश्न 61. 
अविवेकी विश्वासों के क्या परिणाम होते
उत्तर-
अविवेकी विश्वासों के कारण पूर्ववर्ती घटना का विकृत प्रत्यक्षण नकारात्मक संवेगों और व्यवहारों के परिणाम का कारण बनता है।

प्रश्न 62. 
अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन प्रश्नावली और साक्षात्कार के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 63. 
आरन बेक का संज्ञानात्मक सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
आरन बेक के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिए गए बाल्यावस्था के अनुभव मूल अन्विति योजना या मूल स्कीमा या तंत्र के रूप में विकसित हो जाते हैं, जिनमें व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 64. 
अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना किसे कहते हैं?
उत्तर-
संज्ञानात्मक विकृतियाँ चिंतन के ऐसे तरीके हैं जो सामान्य प्रकृति के होते हैं किन्तु वे वास्तविकता को नकारात्मक तरीके से विकृत करते हैं। विचारों के इन प्रतिरूपों को अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना कहते हैं।

प्रश्न 65. 
वर्तमान में मनोविकार के लिए किस चिकित्सा का सर्वाधिक प्रयोग होता है ?
उत्तर-
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा का।

प्रश्न 66. 
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा किस प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों का उपचार करती है ?
उत्तर-
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे-दुश्चिता, अवसाद, आतंक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है।

प्रश्न 67. 
उद्बोधक चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया था ?
उत्तर-
विक्टर फ्रेंकल ने उद्बोधक चिकित्सा को प्रतिपादित किया था।

प्रश्न 68. 
उद्बोधक चिकित्सा का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर-
उद्बोधक चिकित्सा का उद्देश्य अपने जीवन की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना जीवन में अर्थवत्ता और उत्तरदायित्व बोध प्राप्त कराने में सेवार्थी की सहायता करना है।

प्रश्न 69. 
सेवार्थी केंद्रित चिकित्सा किसने प्रतिपादित की थी?
उत्तर-
सेवार्थी केंद्रित चिकित्सा कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित की गई थी। 

प्रश्न 70.
गेल्टाल्ट चिकित्सा का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति की आत्म-जागरूकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को बढ़ाना होता|

प्रश्न 71.
गेस्टाल्ट चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-
गेस्टाल्ट चिकित्सा फ्रेडेरिक पर्ल्स ने अपनी पत्नी लॉरा पर्ल्स के साथ प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 72. 
विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा क्या है?
उत्तर-
विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा जैव-आयुर्विज्ञान चिकित्सा का एक प्रकार है जिसमें इलेक्ट्रोड द्वारा बिजली के हल्के आघात रोगी के मस्तिष्क में दिए जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन्न हो सके।

प्रश्न 73. 
कुछ वैकल्पिक चिकित्सा के नाम लिखिए।
उत्तर-
योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि, उपचार इत्यादि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं।

प्रश्न 74. 
योग का क्या आशय है ?
उत्तर-
योग का आशय केवल आसन या शरीर संस्थिति घटक अथवा श्वसन अभ्यास या प्राणायाम अथवा दोनों के संयोग से होता है।

प्रश्न 75. 
ध्यान का संबंध किससे होता है ?
उत्तर-
ध्यान का संबंध श्वास अथवा किसी वस्तु या विचार या किसी मंत्र पर ध्यान केंद्रित करने के अभ्यास से है।

प्रश्न 76. 
विपश्यना ध्यान क्या है ? 
उत्तर-
विपश्यना ध्यान, जिसे सतर्कता आधारित ध्यान के नाम से भी जाना जाता है, में ध्यान को बाँधे रखने के लिए कोई. नियत वस्तु या विचार नहीं होता है। व्यक्ति निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं विचारों, जो उसकी चेतना में आते रहते हैं, का प्रेक्षण करता है। 

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम

प्रश्न 77.
सुदर्शन क्रिया योग में कौन-सी तकनीक उपयोग में लाई जाती है ?
उत्तर-
तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु संचार करती है. सुदर्शन क्रिया योग से उपयोग की जाती है।

प्रश्न 78. 
तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक से किस प्रकार विकारों में फायदा होता है ?
उत्तर-
यह दबाव, दुश्चिता, अभिघातज उत्तर दबाव विकार, अवसाद, दबाव-संबंधी चिकित्सा रोग, मादक द्रव्यों की दुरुपयोग तथा अपराधियों के पुनःस्थापन के लिए उपयोग की जाती है।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में पाए जाने वाले अभिलक्षणों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
सभी मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में निम्न अभिलक्षण पाए जाते हैं :
1. चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांतों में अंतर्निहित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है।
2. केवल वे व्यक्ति, जिन्होंने कुशल पर्यवेक्षण में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई नहीं। 
3. चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी संवेगात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है और प्राप्त करता है।
4. इन दोनों व्यक्तियों, चिकित्सक एवं सेवार्थी के बीच की अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप एक चिकित्सात्मक संबंध का निर्माण एवं उसका सुदृढीकरण होता है। यह एक गोपनीय, अंतर्वैयक्तिक एवं गत्यात्मक संबंध होता है। यही मानवीय संबंध किसी भी मनोविज्ञान चिकित्सा का केन्द्र होता है तथा यही परिवर्तन का माध्यम बनता है।

प्रश्न 2. 
मनश्चिकित्साओं के उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर-
सभी मनश्चिकित्साओं के उद्देश्य निम्नलिखित लक्ष्यों में कुछ या सब होते हैं :
1. सेवार्थी के सुधार के संकल्प को प्रबलित करना। 
2. संवेगात्मक दबाव को कम करना।
3. सकारात्मक विकास के लिए संभाव्यताओं को प्रकट करना।
4. आदतों में संशोधन करना। 
5. चिंतम के प्रतिरूपों में परिवर्तन करना। 
6. आत्म-जागरूकता को बढ़ाना।
7. अंतर्वैयक्तिक संबंधों एवं संप्रेषण में सुधार करना। 
8. निर्णयन को सुकर बनाना। 
9. जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरूक होना।
10. अपने सामाजिक पर्यावरण से एक सर्जनात्मक एवं आत्म-जागरूक तरीके से संबंधित होना।

प्रश्न 3. 
सहानुभूति तथा तदनुभूति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
तदनुभूति सहानुभूति तथा किसी दूसरे व्यक्ति की स्थिति की बौद्धिक समझ से भिन्न होती है। सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा तो होती है किन्तु दूसरे व्यक्ति की तरह वह अनुभव नहीं कर सकता। बौद्धिक समझ भाव-शून्य इस आशय से होती है कि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह अनुभव कर पाने में असमर्थ होता है और न ही वह सहानुभूति का अनुभव कर पाता है। इसके विपरीत तदनुभूति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसी की तरह अनुभव कर सकता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि दूसरे व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से या उसके स्थान पर स्वयं को रखकर बातों को समझना। तदनुभूति चिकित्सात्मक संबंध को समृद्ध बनाती है तथा इसे एक स्वास्थ्यकर संबंध में परिवर्तित करती है।

प्रश्न 4. 
“अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध भी होता - है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध (Resistance) भी होता है। चूंकि अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वंद्वों को अनावृत करती है, जिससे कष्ट का स्तर बढ़ जाता है इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करता है। इस प्रतिरोध के कारण अपने आपको अचेतन मन की कष्टकर स्मृतियों के पुनः स्मरण से बचाने के लिए सेवार्थी चिकित्सा की प्रगति का विरोध करता है।

प्रतिरोध सचेतन और अचेतन दोनों हो सकता है। सचेतन प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है। अचेतन प्रतिरोध तब उपस्थित माना जाता है. जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु संवेगात्मक बातों का नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए देर से आता है। चिकित्सक बार-बार इसे सेवार्थी के सामने रखकर तथा दुश्चिता, भय, शर्म जैसे संवेगों को उभार कर, जो इस प्रतिरोध के कारण हैं. इस प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है।

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प्रश्न 5.
निर्वचन की विश्लेषणात्मक तकनीकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक हैं
(i) प्रतिरोध, 
(ii) स्पष्टीकरण।

प्रतिरोध में चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवार्थी को अवश्य करना चाहिए। स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केंद्रबिन्दु में लाता है। यह घटना के महत्त्वपूर्ण विस्तृत वर्णन को महत्त्वहीन वर्णन से अलग करके तथा विशिष्टता प्रदान करके किया जाता है। निर्वचन एक अधिक सूक्ष्म प्रक्रिया है।

यह मनोविश्लेषण का शिखर माना जाता है। चिकित्सक मुक्त साहचर्य, स्वप्न व्याख्या, अन्यारोपण तथा प्रतिरोध की प्रक्रिया में अभिव्यक्त अचेतन सामग्री का उपयोग सेवार्थी को अभिज्ञ बनाने के लिए करता है कि किन मानसिक अंतर्वस्तुओं एवं द्वंद्वों ने कुछ घटनाओं, लक्षणों तथा द्वंद्वों को उत्पन्न किया है। निर्वचन बाल्यावस्था में भोगे हुए वचन या अंत:मनोद्वंद्व पर केंद्रित हो सकता है।

प्रश्न 6.
मनोगतिक चिकित्सा में उपचार की अवधि क्या होती है?
उत्तर-
सप्ताह में चार-पाँच दिनों तक रोज एक घंटे के सत्र के साथ मनोविश्लेषण कई वर्षों तक चल सकता है। यह एक गहन उपचार है। उपचार में तीन अवस्थाएँ (Three stages) होती हैं। पहली अवस्था प्रारंभिक अवस्था है। सेवार्थी नित्यकर्मों से परिचित हो जाता है, विश्लेषक से एक चिकित्सात्मक संबंध स्थापित करता है तथा अपनी चेतना से भूत और वर्तमान की कष्टप्रद घटनाओं के बारे में सतही सामग्रियों की संस्मृति प्रक्रिया से वह कुछ राहत महसूस करता है। दूसरी अवस्था मध्य अवस्था है जो एक लंबी प्रक्रिया है। इसकी विशेषता सेवार्थी की ओर से अन्यारोपण और प्रतिरोध तथा चिकित्सक के द्वारा प्रतिरोध एवं स्पष्टीकरण अर्थात् समाकलन कार्य है। ये सारी प्रक्रियाएँ अंतत: अंतर्दृष्टि की ओर ले जाती हैं। तीसरी अवस्था समाप्ति की अवस्था है जिसमें विश्लेषक के साथ संबंध भंग हो जाता है और सेवार्थी चिकित्सा छोड़ने की तैयारी कर लेता है।

प्रश्न 7. 
अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धांत को समझाइए।
उत्तर-
अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धांत के अनुसार दो परस्पर विरोधी शक्तियों की एक ही समय में उपस्थिति कमजोर शक्ति को अवरुद्ध करती है। अत: पहले विश्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे-से दुश्चिता उत्पन्न करने वाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्रांति से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। सेवार्थी अपने विश्रांत अवस्था के कारण प्रगामी तीव्रतर दुश्चिता को सहन करने योग्य हो जाता है। मॉडलिंग या प्रतिरूपण (Modelling) की प्रक्रिया में सेवार्थी एक विशेष प्रकार से व्यवहार करना सीखता है। 

इसमें वह कोई भूमिका-प्रतिरूप (Role model) या चिकित्सक, जो प्रारंभ में भूमिका-प्रतिरूप की तरह कार्य करता है, के व्यवहार का प्रेक्षण करके उस व्यवहार को करना सीखता है। प्रतिस्थानिक अधिगम अर्थात् दूसरों का प्रेक्षण करते हुए सीखना, का उपयोग किया जाता है और व्यवहार में आए हुए छोटे-छोटे परिवर्तनों को भी पुरस्कृत करने की प्रक्रिया से सेवार्थी धीरे-धीरे मॉडल के व्यवहारों को अर्जित करना सीख जाता है।

प्रश्न 8. 
गेस्टाल्ट चिकित्सा क्या है ? इसके क्या उद्देश्य है?
उत्तर-
गेस्टाल्ट चिकित्सा-जर्मन शब्द 'गेस्टाल्ट' का अर्थ है-'समग्र'। यह चिकित्सा फ्रेडेरिक (फ्रिट्ज) पर्ल्स ने अपनी पत्नी लॉरा पर्ल्स के साथ प्रस्तुत की थी। गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति की आत्म-जागरूकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को बढ़ाना होता है। सेवार्थी को शारीरिक प्रक्रियाओं और संवेगों, जो जागरूकता को अवरुद्ध करते हैं, को पहचानना सिखाया जाता है। चिकित्सक इसके लिए सेवार्थी को अपनी भावनाओं और - द्वंद्वों के बारे में उसकी कल्पनाओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करता है। यह चिकित्सा समूहों में भी प्रयुक्त की जा सकती है।

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प्रश्न 9. 
मनश्चिकित्सा के नैतिक सिद्धांत क्या हैं ? 
उत्तर-
मनश्चिकित्सा के नैतिक सिद्धांत कुछ नैतिक मानक जिनका व्यवसायी मनश्चिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिए, वे हैं
1. सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति लेनी चाहिए। 
2. सेवार्थी की गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए।
3. व्यक्तिगत कष्ट और व्यथा को कम करना मनश्चिकित्सक के प्रत्येक प्रयासों का लक्ष्य होना चाहिए। .
4. चिकित्सक-सेवार्थी संबंध की अखंडता महत्त्वपूर्ण है। 
5. मानव अधिकार एवं गरिमा के लिए आदर। 
6. व्यावसायिक सक्षमता एवं कौशल आवश्यक हैं।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)

प्रश्न 1.
नैदानिक निरूपण के क्या लाभ हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
नैदानिक निरूपण के अग्रलिखित लाभ हैं :

(i) समस्या की समझ-चिकित्सक सेवार्थी द्वारा अनुभव किए जा रहे कष्टों के निहितार्थों को समझने में समर्थ होता है।

(ii) मनश्चिकित्सा में उपचार हेतु लक्ष्य क्षेत्रों की पहचान- सैद्धांतिक निरूपण में चिकित्सा के लिए समस्या के लक्ष्य-क्षेत्रों की स्पष्ट रूप से पहचान की जाती है। अत: यदि कोई सेवार्थी किसी नौकरी पर बने रहने में असमर्थता के लिए मदद चाहता है और अपने उच्च अधिकारियों का सामना करने में असमर्थता अभिव्यक्त करता है तो व्यवहार चिकित्सा में नैदानिक निरूपण इसे दुश्चिता तथा आग्रहिता कौशलों में कमी बताएगा। अतः अपने आपको निश्चयात्मक रूप से व्यक्त करने में असमर्थता तथा बढ़ी हुई दुश्चिता लक्ष्य-क्षेत्र के रूप में पहचाने गए।

(iii) उपचार के लिए तकनीक का वरण या चनाव-उपचार के लिए तकनीक का मुख्य चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि चिकित्सक किस प्रकार की चिकित्सात्मक व्यवस्था में प्रशिक्षित है। यद्यपि इस व्यापक क्षेत्र में भी तकनीक का चुनाव, तकनीक का समय निर्धारण और चिकित्सा के परिणाम से प्रत्याशाएँ नैदानिक निरूपण पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 2. 
समाकलन कार्य किसे कहते हैं ? समाकलन कार्य का परिणाम क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत्त प्रक्रिया को समाकलन कार्य (Working through) कहते हैं। समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है। समाकलन कार्य का परिणाम है अंतर्दृष्टि (Insighel अंतर्दृष्टि कोई आकस्मिक घटना नहीं है बल्कि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती हैं। ये अचेतन घटनाएँ एवं स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती हैं और समाकलित की जाती हैं। 

जैसे यह प्रक्रिया चलती रहती है, सेवार्थी बौद्धिक एवं सांवेगिक स्तर पर अपने आपको बेहतर समझने लगता है और अपनी समस्याओं और द्वंद्वों के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है। बौद्धिक समझ बौद्धिक अंतर्दृष्टि है। सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप से परिवर्तन की तत्परता तथा परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि है। अंतर्दृष्टि चिकित्सा का अंतिम बिंदु है जब सेवार्थी अपने बारे में एक नई समझ प्राप्त कर चुका होता है। बदले में भूतकाल के द्वंद्व, रक्षा युक्तियाँ और शारीरिक लक्षण भी नहीं रह जाते तथा सेवार्थी मनोवैज्ञानिक रूप से एक स्वस्थ व्यक्ति हो जाता है। इस अवस्था पर मनोविश्लेषण समाप्त कर दिया जाता

प्रश्न 3.
विश्रांत की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
विश्रांत की विधियाँ-दुश्चिता मनोवैज्ञानिक कष्ट की अभिव्यक्ति है जिसके लिए सेवार्थी उपचार चाहता है। व्यवहारात्मक चिकित्सक दुश्चिता को सेवार्थी के भाव-प्रबोधन के स्तर को बढ़ाने के रूप में देखता है जो दोषपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करने में एक पूर्ववर्ती कारक की तरह कार्य करता है। सेवार्थी दुश्चिता को कम करने के लिए धूम्रपान कर सकता है, अपने आपको अन्य क्रियाओं में निमग्न कर सकता है; जैसे-भोजन या दुश्चिता के कारण लंबे समय तक अपने अध्ययन में एकाग्र नहीं कर पाता है। अत: दुश्चिता में कमी अत्यधिक भोजन या धूम्रपान के अवांछित व्यवहारों को कम करेगी। दुश्चिता के स्तर को कम करने के लिए विश्रांति की विधियों का उपयोग किया जाता है। 

उदाहरणार्थ, प्रगामी पेशीय विश्रांति और ध्यान एक विश्रांति की अवस्था उत्पन्न करते हैं। प्रगामी पेशीय विश्रांति में सेवार्थी को पेशीय तनाव या तनाव के प्रति जागरूकता लाने के लिए विशिष्ट पेशी समूहों को संकुचित करना सिखाया जाता है। सेवार्थी के पेशी समूह; जैसे-अग्रबाहु को तानना सीखने के बाद सेवार्थी को तनाव को मुक्त करने के लिए कहा जाता है। सेवार्थी को यह भी बताया जाता है कि उसे (सेवार्थी) वर्तमान में ही तनाव है और उसको इसकी विपरीत अवस्था में जाना है। पुनरावृत्त अभ्यास के साथ सेवार्थी शरीर की सारी पेशियों को विश्रांत करना सीख जाता है।

प्रश्न 4. 
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा पर संक्षेप में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा-यह सर्वाधिक प्रचलित चिकित्सा पद्धति है। मनश्चिकित्सा की प्रभाविता एवं परिणाम पर किए गए अनुसंधान ने निर्णायक रूप से यह प्रमाणित किया है कि संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे-दुश्चिता, अवसाद, आतंक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है। मनोविकृति की रूपरेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव-मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है। यह संज्ञानात्मक चिकित्सा को व्यवहारपरक तकनीकों के साथ संयुक्त करती है।

इसमें सेवार्थी के कष्टों का मूल.या उद्गम स्थान जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक क्षेत्रों में होता है। अतः समस्या के जैविक पक्षों को विश्रांति की विधियों द्वारा, मनोवैज्ञानिक पक्षों को व्यवहार चिकित्सा तथा संज्ञानात्मक चिकित्सा तकनीकों द्वारा और सामाजिकं पक्षों को पर्यावरण में परिवर्तन द्वारा संबोधित करने के कारण संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा को एक व्यापक चिकित्सा बनाती है जिसका उपयोग करना आसान है, यह कई प्रकार के विकारों के लिए प्रयुक्त की जा सकती है तथा जिसकी प्रभावोत्पादकता प्रमाणित हो चुकी है।

प्रश्न 5. 
सुदर्शन क्रिया योग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
सुदर्शन क्रिया योग-तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु-संचार करती है तथा जो सुदर्शन क्रिया योग में प्रयुक्त की जाती है. लाभदायक, कम खतरे वाली और कम खर्च वाली तकनीक है। यह दबाव, दुश्चिता, अभिघातज उत्तर दबाव विकार, अवसाद, दबाव-संबंधी चिकित्सा रोग, मादक द्रव्यों का दुरुपयोग तथा अपराधियों के पुनः स्थापन के लिए उपयोग की जाती है। सुदर्शन क्रिया योग का उपयोग सामूहिक विपदा के उत्तरजीवियों में अभिघातज उत्तर दयाव विकास को समाप्त करने के लिए एक लोक-स्वास्थ्य हस्तक्षेप तकनीक के रूप में किया जाता है। 

योग विधि, कुशल-क्षेम, भावदशा, ध्यान, मानसिक केंद्रीयता तथा दबाव सहिष्णुता को बढ़ाती है। एक कुशल योग शिक्षक द्वारा उचित प्रशिक्षण तथा प्रतिदिन 30 मिनट तक का अभ्यास इसके लाभ को बढ़ा सकता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिकाविज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences, NIHMHANS), भारत में किए गए शोध ने प्रदर्शित किया है कि सुदर्शन क्रिया योग अवसाद को कम करता है। इसके अलावा जो मद्यव्यसनी रोगी सुदर्शन क्रिया योग का अभ्यास करते हैं उनके अवसाद एवं दबाव स्तर में कमी पाई गई है। अनिद्रा का उपचार योग से किया गया है। योग नींद आने की अवधि को कम करता है तथा निद्रा की गुणवत्ता को बढ़ाता है। 

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम

प्रश्न 6. 
विभेदक प्रबलन को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
विभेदक प्रबलन-विभेदक प्रबलन द्वारा एक साथ अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है तथा वांछित व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सकता है। वांछित व्यवहार के लिए सकारात्मक प्रबलन तथा अवांछित व्यवहार के लिए निषेधात्मक प्रबलन के साथ-साथ उपयोग एक विधि हो सकती है। दूसरी विधि वांछित व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रबलन देना तथा अवांछित व्यवहार की उपेक्षा करना है। दूसरी विधि कम कष्टकर तथा समान रूप से प्रभावी है। 

उदाहरण के लिए, एक लड़की इसलिए रोती और रूठती है कि उसके कहने पर उसे सिनेमा दिखाने नहीं ले जाया जाता। माता-पिता को अनुदेश दिया जाता है कि यदि वह रूठे और रोए नहीं तो उसे सिनेमा ले जाया जाए, मगर यदि वह रूठती और रोती है तो न ले जाया जाए। इसके बाद, उन्हें अनुदेश दिया जाता है कि जब भी लड़की रूठे या रोए तो उसकी उपेक्षा की जाए। इस प्रकार शिष्टतापूर्वक सिनेमा ले जाने के लिए कहने का वांछित व्यवहार बढ़ता है तथा रोने और रूठने का अवांछित व्यवहार कम होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण जिन प्राचलों पर किया गया है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण निम्नलिखित प्राचलों पर आधारित है : 

(i) क्या कारण है, जिसने समस्या को उत्पन्न किया? 
मनोगतिक चिकित्सा के अनुसार अंत: मनोद्वंद्व अर्थात् व्यक्ति के मानस में विद्यमान द्वंद्व, मनोवैज्ञानिक समस्याओं का स्रोत होते हैं। व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम के कारण उत्पन्न होती हैं। अस्तित्वपरक चिकित्सा की अभिधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ से संबंधित प्रश्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।

(ii) कारण का प्रादुर्भाव कैसे हुआ ?
मनोगतिक चिकित्सा में बाल्यावस्था की अतृप्त इच्छाएँ तथा बाल्यावस्था के अनसुलझे भय अंत: मनोद्वंद्व को उत्पन्न करते हैं। व्यवहार चिकित्सा की अभिधारणा है कि दोषपूर्ण अनुबंधन प्रतिरूप, दोषपूर्ण अधिगम तथा दोषपूर्ण चिंतन एवं विश्वास दुरनुकूलक व्यवहारा का उत्पन्न करते हैं जो बाद में मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनते हैं। अस्तित्वपरक चिकित्सा वर्तमान को महत्त्व देती है। यह व्यक्ति के अकेलेपन, विसंबंधन (Alienation) अपने अस्तित्व की व्यर्थता के बोध इत्यादि से जुड़ी वर्तमान भावनाएँ हैं जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण हैं।

(iii) उपचार की मुख्य विधि क्या है ?
मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वप्न को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है। इस सामग्री की व्याख्या सेवार्थी के समक्ष की जाती है ताकि इसकी मदद से वह अपने द्वंद्वों का सामना और समाधान कर अपनी समस्याओं पर विजय पा सके। व्यवहार चिकित्सा दोषपूर्ण अनुबंधन प्रतिरूप की पहचान कर वैकल्पिक व्यवहारात्मक प्रासंगिकता (Behavioural contingencies) नियत करती है जिससे व्यवहार में सुधार हो सके।

इस प्रकार की चिकित्सा में प्रयुक्त संज्ञानात्मक विधियाँ सेवार्थी के दोषपूर्ण चिंतन प्रतिरूप को चुनौती देकर उसे अपने मनोवैज्ञानिक कष्टों पर विजय पाने में मदद करती हैं। अस्तित्वपरक चिकित्सा एक चिकित्सात्मक पर्यावरण प्रदान करती है जो सकारात्मक, स्वीकारात्मक तथा अनिर्णयात्मक होता है। सेवार्थी अपनी समस्याओं के बारे में बात कर सकता है तथा चिकित्सक एक सुकरकर्ता की तरह कार्य करता है। सेवार्थी व्यक्तिगत संवृद्धि की प्रक्रिया के माध्यम से समाधान तक पहुँचता है।

(iv) सेवार्थी और चिकित्सक के बीच चिकित्सात्मक संबंध की प्रकृति क्या होती है ?
मनोगतिक चिकित्सा का मानना है कि चिकित्सक सेवार्थी की अपेक्षा उसके अंत: मनोद्वंद्व को ज्यादा अच्छी तरह समझता है इसलिए वह (चिकित्सक) सेवार्थी के विचारों और भावनाओं की व्याख्या उसके लिए करता है जिससे वह (सेवार्थी) उनको समझ सके। व्यवहार चिकित्सा का मानना है कि चिकित्सक सेवार्थी के दोषपूर्ण व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को पहचानने में समर्थ होता है।

इसके आगे व्यवहार चिकित्सा का यह भी मानना है कि चिकित्सक उचित व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को जानने में समर्थ होता है जो सेवार्थी के लिए अनुकूली होगा। मनोगतिक और व्यवहार चिकित्सा दोनों का मानना है कि चिकित्सक सेवार्थी की समस्याओं के समाधान तक पहुँचने में समर्थ होते हैं। इन चिकित्साओं के विपरीत अस्तित्वपरक चिकित्सा इस बात पर बल देती है कि चिकित्सक केवल एक गर्मजोशी भरा और तदनुभूतिक संबंधन प्रदान करता है, जिसमें सेवार्थी अपनी समस्याओं की प्रकृति और कारण स्वयं अन्वेषण करने में सुरक्षित महसूस करता है।

(v) सेवार्थी को मुख्य लाभ क्या है ? 
मनोगतिक चिकित्सा संवेगात्मक अंतर्दृष्टि को महत्त्वपूर्ण लाभ मानती है जो सेवार्थी उपचार के द्वारा प्राप्त करता है। संवेगात्मक अंतर्दृष्टि तब उपस्थित मानी जाती है जब सेवार्थी अपने द्वंद्वों को बौद्धिक रूप से समझता है; द्वंद्वों को संवेगात्मक रूप से स्वीकार करने में समर्थ होता है और द्वंद्वों की ओर अपने संवेगों को परिवर्तित करने में समर्थ होता है।

इस संवेगात्मक अंतर्दृष्टि के परिणामस्वरूप सेवार्थी के लक्षण दूर होते हैं तथा कष्ट कम हो जाते हैं। व्यवहार चिकित्सा दोषपूर्ण व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को अनुकूली प्रतिरूपों में बदलने को उपचार का मुख्य लाभ मानती है। अनुकूली या स्वस्थ व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को स्थापित करने से कष्ट में कमी और लक्षणों का दूर होना सुनिश्चित होता है। मानवतावादी चिकित्सा व्यक्तिगत संवृद्धि को मुख्य लाभ मानती है। व्यक्तिगत संवृद्धि अपने बारे में और अपनी आकांक्षाओं, संवेगों तथा अभिप्रेरकों के बारे में बढ़ती समझ प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

(vi) उपचार की अवधि क्या है ?
क्लासिकी मनोविश्लेषण की अवधि कई वर्षों तक की हो सकती है। हालांकि मनोगतिक चिकित्सा के कई आधुनिक रूपांतर 10-15 सत्रों में पूरे हो जाते हैं। व्यवहार और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा तथा अस्तित्वपरक चिकित्सा संक्षिप्त होती हैं तथा कुछ महीनों में ही पूरी हो जाती हैं।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम

प्रश्न 2. 
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : 
(i) अस्तित्वपरक चिकित्सा। 
(ii) सेवार्थी-केन्द्रित चिकित्सा।
उत्तर-
(i) अस्तित्वपरक चिकित्सा-विक्टर फ्रेंकल (Vic_tor Frankl) नामक एक मनोरोगविज्ञानी और तंत्रिकाविज्ञानी ने उद्बोधक चिकित्सा (Logotherapy) प्रतिपादित की। लॉगोस (Logos) आत्मा के लिए, ग्रीक भाषा का एक शब्द है और उद्बोधक चिकित्सा का तात्पर्य आत्मा का उपचार है। फ्रेंकल जीवन के प्रति खतरनाक परिस्थितियों में भी अर्थ प्राप्त करने की इस प्रक्रिया को अर्थ निर्माण की प्रक्रिया कहते हैं। इस अर्थ निर्माण की प्रक्रिया का आधार व्यक्ति की अपने अस्तित्व का आध्यात्मिक सत्य प्राप्त करने की खोज होती है। जैसे एक अचेतन मन होता है, जो मूल प्रवृत्तियों का भंडार है। उसी तरह एक आध्यात्मिक अचेतन भी होता है जो प्रेम, सौंदर्यात्मक अभिज्ञता और जीवन मूल्यों का भंडार होता है। 

जब व्यक्ति के अस्तित्व के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या आध्यात्मिक पक्षों से जीवन की समस्याएँ जुड़ती हैं तो तंत्रिकातापी दुश्चिता उत्पन्न होती है। फ्रेंकल ने निरर्थकता की भावना को उत्पन्न करने में आध्यात्मिक दुश्चिता की भूमिका पर जोर दिया है और इसीलिए उसे अस्तित्व दुश्चिता (Existential anxiety) अर्थात् आध्यात्मिक मूल की तंत्रिकातापी दुश्चिता कहा जा सकता है। उद्बोधक चिकित्सा का उद्देश्य अपने जीवन की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना जीवन में अर्थवत्ता और उत्तरदायित्व बोध प्राप्त कराने में सेवार्थी की सहायता करना है।

चिकित्सक सेवार्थी के जीवन की विशिष्ट प्रकृति पर जोर देता है और सेवार्थी को अपने जीवन में अर्थवत्ता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। उद्बोधक चिकित्सा में चिकित्सक निष्कपट होता है और | अपनी भावनाओं, मूल्यों और अपने अस्तित्व के बारे में सेवार्थी से खुलकर बात करता है। इसमें 'आज और अभी' पर जोर दिया जाता है और अन्यारोपण को सक्रिय रूप से हतोत्साहित किया जाता है। चिकित्सक सेवार्थी को वर्तमान की तात्कालिकता का स्मरण कराता है। अपने अस्तित्व का अर्थ प्राप्त करने की प्रक्रिया में सेवार्थी की मदद करना चिकित्सक का लक्ष्य होता है।

(ii) सेवार्थी-केंद्रित चिकित्सा-सेवार्थी केंद्रित चिकित्सा कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) द्वारा प्रतिपादित की गई है। रोजर्स ने वैज्ञानिक निग्रह को सेवार्थी-केंद्रित चिकित्सा का व्यष्टीकृत पद्धति से संयुक्त किया। रोजर्स ने मनश्चिकित्सा में स्व के संप्रत्यय को प्रस्तुत किया और उनकी चिकित्सा का मानना है कि किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल स्वतंत्रता और वरण होते हैं। चिकित्सा एक ऐसा गर्मजोशी का संबध प्रदान करती है जिससे सेवार्थी अपनी विघटित भावनाओं के साथ संबंद्ध हो सकता है। चिकित्सक तदनुभूति प्रदर्शित करता है अर्थात् सेवार्थी के अनुभवों को समझना, जैसे कि वे उसी की हों, उसके प्रति सहदय होता है तथा अशर्त सकारात्मक आदर रखता है अर्थात् सेवार्थी जैसा है उसी रूप में उसे वह स्वीकार करता है। 

तदनुभूति चिकित्सक और सेवार्थी के बीच में एक सांवेगिक अनुनाद की स्थिति बनाती है। अशर्त सकारात्मक आदर यह बताता है कि चिकित्सक की सकारात्मक हार्दिकता सेवार्थी की उन भावनाओं पर आश्रित नहीं हैं। जो वह चिकित्सा सत्र के दौरान प्रदर्शित करता है। यह अनन्य अशर्त हार्दिकता यह सुनिश्चित करती है कि सेवार्थी चिकित्सक के ऊपर विश्वास कर सकता है तथा स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकता है। सेवार्थी इतना सुरक्षित महसूस करता है कि वह अपनी भावनाओं का अन्वेषण करने लगता है।

चिकित्सक सेवार्थी की भावनाओं का अनिर्णयात्मक तरीके से परावर्तन करता है। यह परावर्तन सेवार्थी के कथनों की पुनः अभिव्यक्ति से प्राप्त किया जाता है अर्थात् सेवार्थी के कथनों के अर्थ वर्धन के लिए उससे सरल स्पष्टीकरण माँगना। परावर्तन की यह प्रक्रिया सेवार्थी को समकालित होने में मदद करती है। समायोजन बढ़ने के साथ ही व्यक्तिगत संबंध भी सुधरते हैं। सार यह है कि यह चिकित्सा सेवार्थी को अपना वास्तविक स्व होने में मदद करती है जिसमें चिकित्सक एक सुगमकर्ता की भूमिका निभाता है।

प्रश्न 3. 
व्यवहार चिकित्सा क्या है ? संक्षेप में समझाइए। 
उत्तर-
व्यवहार चिकित्सा मनश्चिकित्सा का एक प्रकार है:
व्यवहार चिकित्साओं का यह मानना है कि मनोवैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यवहार प्रतिरूपों या विचार प्रतिरूपों के कारण उत्पन्न होते हैं। अत: इनका केन्द्रबिन्दु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते हैं। उसका अतीत केवल उसके दोषपूर्ण व्यवहार तथा विचार प्रतिरूपों की उत्पत्ति को समझने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण होता है। अतीत को फिर से सक्रिय नहीं किया जाता। वर्तमान में केवल दोषपूर्ण प्रतिरूपों में सुधार किया जाता है।

अधिगम के सिद्धांतों का नैदानिक अनुप्रयोग ही व्यवहार चिकित्सा को गठित करता है। व्यवहार चिकित्सा में विशिष्ट तकनीकों एवं सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों का एक विशाल समुच्चय होता है। यह कोई एकीकृत सिद्धांत नहीं है जिसे क्लिनिकल निदान या विद्यमान लक्षणों को ध्यान में रखे बिना अनुप्रयुक्त किया जा सके। अनुप्रयुक्त किए जाने वाली विशिष्ट तकनीकों या सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों के चयन में सेवार्थी के लक्षण तथा क्लिनिकल निदान मार्गदर्शक कारक होते हैं।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 5 चिकित्सा उपागम

दुर्भाति या अत्यधिक और अपंगकारी भय के उपचार के लिए तकनीकों के एक समुच्चय को प्रयुक्त करने की आवश्यकता होगी जबकि क्रोध-प्रस्फोटन के उपचार के लिए दूसरी। अवसादग्रस्त सेवार्थी की चिकित्सा दुश्चितित सेवार्थी से भिन्न होगी। व्यवहार चिकित्सा का आधार दोषपूर्ण या अपक्रियात्मक व्यवहार को निरूपित करना, इन व्यवहारों को प्रबलित तथा संपोषित करने वाले कारकों तथा उन विधियों को खोजना है जिनसे उन्हें परिवर्तित किया जा सके।

Bhagya
Last Updated on Sept. 30, 2022, 9:33 a.m.
Published Sept. 29, 2022