Rajasthan Board RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 6 बंगाल स्कूल और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में कला का कैसा उद्देश्य था?
(अ) अलग
(ब) समान
(स) मिलता-जुलता
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अलग
प्रश्न 2.
बंगाल लघुचित्रों का प्रयोग अक्सर किस रूप में किया गया था?
(अ) मंदिर की दीवारों पर
(ब) पाण्डुलिपियों को चित्रित करने में
(स) घरों की दीवारों को सजाने में
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) पाण्डुलिपियों को चित्रित करने में
प्रश्न 3.
अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेज भारतीय लोगों से किस प्रकार मंत्रमुग्ध थे?
(अ) विभिन्न रीति-रिवाजों से
(ब) वनस्पतियों व जीवों से
(स) परिवर्तनीय विभिन्नताओं से
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4.
अंग्रेज अधिकारियों ने अपने आस-पास के दृश्यों को चित्रित करने हेतु किन्हें नियुक्त किया?
(अ) अंग्रेज चित्रकारों को
(ब) स्थानीय कलाकारों को
(स) दरबारी लोगों को
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) स्थानीय कलाकारों को
प्रश्न 5.
भारतवर्ष में तैल रंगों का प्रयोग कब शुरू हुआ?
(अ) 1800 ई. से पूर्व
(ब) लगभग 1800 ई.
(स) 1900 ई. में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) लगभग 1800 ई.
प्रश्न 6.
भारतीय चित्रकारों में से कौन त्रावणकोर से सम्बन्धित है ?
(अ) राजा रवि वर्मा
(ब) अबनिन्द्रनाथ टैगोर
(स) जैमिनी रॉय
(द) नंदलाल बोस
उत्तर:
(अ) राजा रवि वर्मा
प्रश्न 7.
किनकी कृतियों को ओलियोग्राफ के रूप में कॉपी किया गया?
(अ) अलागिरि नायडू
(ब) राजा रवि वर्मा
(स) नंदलाल बोस
(द) क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार
उत्तर:
(ब) राजा रवि वर्मा
प्रश्न 8.
आधुनिक राष्ट्रवादी स्कूल निर्माण की शुरुआत कहाँ से हुई?
(अ) बंगाल
(ब) बिहार
(स) लाहौर
(द) मद्रास
उत्तर:
(अ) बंगाल
प्रश्न 9.
भारतीय चित्रकला शैली का उद्भव कहाँ माना जाता है ?
(अ) दिल्ली
(ब) जयपुर
(स) कलकत्ता
(द) त्रावणकोर
उत्तर:
(स) कलकत्ता
प्रश्न 10.
भारत का पहला राष्ट्रीय कला विद्यालय कहाँ स्थापित किया गया?
(अ) त्रावणकोर
(ब) शांतिनिकेतन
(स) लाहौर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) शांतिनिकेतन
प्रश्न 11.
स्वदेशी आंदोलन कब अपने चरम पर था?
(अ) सन् 1905 से पूर्व
(ब) सन् 1905 के बंगाल विभाजन के बाद
(स) सन् 1947 के बाद
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) सन् 1905 के बंगाल विभाजन के बाद
प्रश्न 12.
पश्चिमी तैल चित्रकला के विकल्प के रूप में किसे माना गया?
(अ) वॉश तकनीक को
(ब) काष्ठ तकनीक को
(स) प्रस्तर तकनीक को
(द) मिट्टी से मूर्ति बनाने को
उत्तर:
(अ) वॉश तकनीक को
प्रश्न 13.
पॉल क्ले व कैंडिंस्की जर्मन चित्रकारों ने कलकत्ता की यात्रा कब की?
(अ) वर्ष 1905 में
(ब) वर्ष 1922 में
(स) वर्ष 1919 में
(द) वर्ष 1950 में
उत्तर:
(ब) वर्ष 1922 में
प्रश्न 14.
आधुनिक शैली के अन्तर्गत निर्मित कला की सारगर्भित भाषा में क्या शामिल किया गया?
(अ) वर्ग
(ब) वृत्त
(स) रेखाएँ व रंग पैच
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 15.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर के चित्रों की विशेषता है-
(अ) पश्चिमी शैली का प्रभाव
(ब) क्यूबिस्ट शैली का प्रयोग
(स) ज्यामितीय पैटर्न
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 16.
किस बंगाली बुद्धिजीवी ने कला के क्षेत्र में आंग्लवादियों का पक्ष लिया?
(अ) रविन्द्रनाथ टैगोर
(ब) अबनिन्द्रनाथ टैगोर
(स) बेनॉय सरकार
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) बेनॉय सरकार
प्रश्न 17.
किस अंग्रेज बुद्धिजीवी ने आधुनिक कला को उत्पन्न करने हेतु स्वदेशी (भारतीय) कला का पक्ष लिया?
(अ) ई.बी. हैवेल
(ब) लॉर्ड मैकाले
(स) चार्ल्स डी ओली
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) ई.बी. हैवेल
प्रश्न 18.
उपनिवेशवाद ने कला के किस तरह के संस्थानों की शुरुआत की?
(अ) कला विद्यालय
(ब) कला समाज
(स) प्रदर्शनी व कला पत्रिकाएँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 19.
'मिट्टी का हलवाहा-किसान' कृति नंदलाल बोस द्वारा किस वर्ष चित्रित की गई?
(अ.) सन् 1920 में
(ब) सन् 1922 में
(स) सन् 1923 में
(द) सन् 1938 में
उत्तर:
(द) सन् 1938 में
प्रश्न 20.
'रास-लीला' किस चित्रकार की कृति है ?
(अ) नंदलाल बोस
(ब) क्षितिन्द्रनाथ टैगोर
(स) अबनिन्द्रनाथ टैगोर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) क्षितिन्द्रनाथ टैगोर
प्रश्न 21.
अब्दुल रहमान चुगताई कृत 'राधिका' किस तरह का चित्र. है ?
(अ) वॉश और टेम्पेरा
(ब) तैल चित्र
(स) कलम और स्याही
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) वॉश और टेम्पेरा
प्रश्न 22.
निम्न में से कौनसी चित्रकला कृति गगनेन्द्रनाथ टैगोर की है ?
(अ) मिट्टी का हलवाहा
(ब) रास-लीला
(स) रात्रि में शहर
(द) महिला के साथ बालक
उत्तर:
(स) रात्रि में शहर
प्रश्न 23.
'समुद्र का मानमर्दन करते हुए राम' चित्र किस चित्रकार द्वारा चित्रित किया गया है ?
(अ) अबनिन्द्रनाथ टैगोर
(ब) गगनेन्द्रनाथ टैगोर
(स) जैमिनी रॉय
(द) राजा रवि वर्मा
उत्तर:
(द) राजा रवि वर्मा
प्रश्न 24.
जैमिनी रॉय ने अपनी कृति 'महिला के साथ बालक' के चित्रण हेतु क्या प्रयुक्त किया?
(अ) लकड़ी
(ब) कागज
(स) कपड़ा
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) कागज
प्रश्न 25.
'यात्रा का अन्त' चित्र में क्या प्रदर्शित है?
(अ) ढहता हुआ ऊँट
(ब) उठता हुआ ऊँट
(स) चलता हुआ ऊँट
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) ढहता हुआ ऊँट
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. .................. के आगमन से पूर्व भारत में कला का एक अलग उद्देश्य था।
2. प्रारम्भिक भारतीय तैल चित्रकारों में .................. के राजा रवि वर्मा का नाम उल्लेखनीय है।
3. आधुनिक राष्ट्रवादी स्कूल बनाने का प्रथम चरण ...................... से प्रारम्भ हुआ।
4. दृश्य कला के क्षेत्र में भारतीय इतिहास में वर् ................. महत्त्वपूर्ण था।
5. यह पोस्टर गाँधीजी की .................. सोच का परिचय देते हैं।
6. आंग्लवादियों और प्राच्यवादियों के बीच विभाजन ...................... आधारित नहीं था।
उत्तरमाला:
1. अंग्रेजों
2. त्रावणकोर
3. बंगाल
4. 1896
5. समाजवादी
6. जाति।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
अंग्रेजों के भारत आने से पूर्व कला की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
कला को अनेक स्थानों पर देखा जा सकता था, जैसे-मंदिरों की दीवारों पर मूर्तियाँ व लघुचित्र आदि।
प्रश्न 2.
लघुचित्रों को किस तरह प्रयुक्त किया जाता था?
उत्तर:
लघुचित्रों का प्रयोग अक्सर पाण्डुलिपियों को चित्रित करने हेतु किया जाता था।
प्रश्न 3.
18वीं शताब्दी में अंग्रेज किस तरह भारतीयों से मंत्रमुग्ध थे?
उत्तर:
अंग्रेज यहाँ की सभी वनस्पतियों, जीवों तथा विभिन्न स्थानों के लोगों के भिन्न-भिन्न तौर-तरीकों व रीति-रिवाजों से मंत्रमुग्ध थे।
प्रश्न 4.
अंग्रेजों ने स्थानीय कलाकारों को क्यों नियुक्त किया?
उत्तर:
अपने आसपास के दृश्यों को चित्रित करने हेतु।
प्रश्न 5.
स्थानीय कलाकारों ने चित्रों को किस पर बनाया?
उत्तर:
चित्रों को बड़े पैमाने पर कागज पर बनाया गया था।
प्रश्न 6.
स्थानीय कलाकार कहाँ से आए थे?
उत्तर:
वे मुर्शिदाबाद, लखनऊ या दिल्ली के पूर्ववर्ती दरबारों से आए थे।
प्रश्न 7.
यूरोपीय कला की विशिष्ट विशेषता बताइए।
उत्तर:
इसमें निकट अवलोकन पर अधिक भरोसा करना पड़ता था।
प्रश्न 8.
कम्पनी चित्र शैली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह भारतीय पारम्परिक और यूरोपीय शैली का मिश्रण है।
प्रश्न 9.
ब्रिटेन में किस प्रकार के चित्रों की माँग थी?
उत्तर:
चित्रों की एक श्रृंखला वाले एलबम बहुत माँग में थे।
प्रश्न 10.
कम्पनी शैली के दो प्रमुख चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 11.
किसान, नौकर, दरबान, रसोइया आदि चित्र विषय किस शैली से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
कम्पनी शैली से।
प्रश्न 12.
राजा रवि वर्मा किस शैली के चित्रकार थे?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने अपनी चित्रकारी 'कम्पनी शैली' में की।
प्रश्न 13.
राजा रवि वर्मा का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा का जन्म केरल के एक गाँव किलिमन्नूर में हुआ था।
प्रश्न 14.
'अलागिरी नायडू' को किस चित्रकार ने अपना गुरु माना था?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने।
प्रश्न 15.
राजा रवि वर्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति कौनसी है?
उत्तर:
'शकुन्तला का दुष्यन्त के नाम पत्रं लेखन'।
प्रश्न 16.
राजा रवि वर्मा ने किससे कला प्रशिक्षण प्राप्त किया?
उत्तर:
अलागिरी नायडू से।
प्रश्न 17.
'समुद्र का मानमर्दन करते हुए राम' चित्र का निर्माण किसने किया?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने।
प्रश्न 18.
'रावण और जटायु' चित्र के चित्रकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
'रावण और जटायु' चित्र के चित्रकार हैं-राजा रवि वर्मा।
प्रश्न 19.
'शकुन्तला' चित्र के चित्रकार के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा।
प्रश्न 20.
तैल चित्रण का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा स्थापित कला विद्यालयों में शैक्षणिक शैली के रूप में किया गया।
प्रश्न 21.
भारत में तैल रंगों का प्रयोग कब शुरू हुआ?
उत्तर:
यूरोपीय चित्रकारों द्वारा 1800 ई. के लगभग।
प्रश्न 22.
राजा रवि वर्मा ने अपने चित्रों की बढ़ती माँग की आपूर्ति किस प्रकार की?
उत्तर:
चित्रों को ओलियोग्राफ के रूप में कॉपी किया।
प्रश्न 23.
आधुनिक राष्ट्रवादी स्कूल बनाने की शुरुआत कहाँ से हुई?
उत्तर:
इसका प्रथम चरण बंगाल से प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 24.
बंगाल स्कूल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
यह एक कला आंदोलन और भारतीय चित्रकला की एक शैली थी।
प्रश्न 25.
भारत का पहला राष्ट्रीय कला विद्यालय कहाँ स्थापित किया गया?
उत्तर:
शांतिनिकेतन में।
प्रश्न 26.
राष्ट्रीय कला आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने।
प्रश्न 27.
भारतीय राष्ट्रीय कला आंदोलन को किस अंग्रेज बुद्धिजीवी का समर्थन प्राप्त था?
उत्तर:
कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल ई.बी. हैवेल का।
प्रश्न 28.
औपनिवेशिक कला विद्यालयों के मुख्य आलोचक कौन थे?
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर और ई.बी. हैवेल।
प्रश्न 29.
शुरुआत में किन शहरों में कला विद्यालय स्थापित किये गये?
उत्तर:
कलकत्ता, लाहौर, बोम्बे और मद्रास में।
प्रश्न 30.
महत्त्वपूर्ण जर्नल 'इण्डियन सोसायटी ऑफ ओरियन्टल आर्ट' के मुख्य कलाकार का नाम बताइए।
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर।
प्रश्न 31.
'रास-लीला' रचना के कलाकार कौन थे?
उत्तर:
क्षितिंद्रनाथ टैगोर।
प्रश्न 32.
विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की?
उत्तर:
रविन्द्रनाथ टैगोर ने।
प्रश्न 33.
भारत के प्रथम राष्ट्रीय कला विद्यालय का नाम बताइए।
उत्तर:
कला भवन।
प्रश्न 34.
नंदलाल बोस को रविन्द्रनाथ टैगोर ने क्यों आमंत्रित किया?
उत्तर:
कला भवन में चित्रकला विभाग का नेतृत्व करने हेतु।
प्रश्न 35.
चित्रकला के प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय कलाकार का नाम बताइए।
उत्तर:
के. वेंकटप्पा।
प्रश्न 36.
किसी आधुनिक भारतीय कलाकार का नाम बताइए।
उत्तर:
जैमिनी रॉय।
प्रश्न 37.
लुटियन दिल्ली की इमारतों का भित्ति सजावट प्रोजेक्ट किसके पास गया?
उत्तर:
बॉम्बे स्कूल ऑफ आर्ट के पास।
प्रश्न 38.
बंगाल स्कूल के कलाकारों को किसे सजाने की अनुमति दी गई?
उत्तर:
लंदन में इण्डियन हाउस को।
प्रश्न 39.
'भारत माता' का चित्रण वर्ष और चित्रकार के नाम का उल्लेख करें।
उत्तर:
चित्रण वर्ष-1905, चित्रकार-अबनिन्द्रनाथ टैगोर।
प्रश्न 40.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर के तीन उत्कृष्ट चित्रों के नाम, लिखिए।
उत्तर:
श्रीराम, माया-मृग व अभिसारिका।
प्रश्न 41.
बंगाल स्कूल के जन्मदाता कौन थे?
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर।
प्रश्न 42.
बंगाल विभाजन के विरुद्ध हुए आंदोलन से प्रेरित होकर अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने कौनसा चित्र बनाया?
उत्तर:
भारतमाता।
प्रश्न 43.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 44.
आनन्द कुमारस्वामी कौन थे?
उत्तर:
वे एक महत्त्वपूर्ण कला इतिहासकार थे।
प्रश्न 45.
काकुजो ओकाकुरा भारत क्यों आए?
उत्तर:
वे अखिल-एशियायीवाद के अपने विचारों के साथ भारत आए।
प्रश्न 46.
जापानी कलाकार शांतिनिकेतन क्यों गए?
उत्तर:
ताकि भारतीय छात्रों को चित्रकला की वॉश तकनीक सिखा सकें।
प्रश्न 47.
जर्मनी के बॉहॉस स्कूल के किन कलाकारों ने कलकत्ता की यात्रा की?
उत्तर:
पॉल क्ली, कैंडिंस्की और अन्य कलाकारों ने।
प्रश्न 48.
यूरोपीय कलाकारों ने किसे अस्वीकार कर दिया?
उत्तर:
इन्होंने अकादमिक यथार्थवाद को अस्वीकार कर दिया।
प्रश्न 49.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर अपने चित्रों में किनका मजाक उडाते थे?
उत्तर:
उन अमीर बंगालियों का, जो आँखें मूंदकर यूरोपीय जीवनशैली अपनाते थे।
प्रश्न 50.
आंग्लवादियों का पक्ष किस बंगाली बुद्धिजीवी ने लिया?
उत्तर:
बेनॉय सरकार ने।
प्रश्न 51.
भारतीय स्वदेशी कला के पक्षधर कौन अंग्रेज बुद्धिजीवी थे?
उत्तर:
कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल ई.बी. हैवेल।
प्रश्न 52.
अमृता शेरगिल किस दृष्टिकोण का आदर्श हैं ?
उत्तर:
दोनों दृष्टिकोण-आंग्लवादी व स्वदेशी को अपनाने का।
प्रश्न 53.
भारत में आधुनिक कला को किनके मध्य संघर्ष का परिणाम माना जाता है?
उत्तर:
उपनिवेशवाद व राष्ट्रवाद के मध्य संघर्ष का।
प्रश्न 54.
उपनिवेशवाद ने कला के किन नए संस्थानों की शुरुआत की?
उत्तर:
उपनिवेशवाद ने कला विद्यालयों, प्रदर्शनी दीर्घाओं, कला पत्रिकाओं व कला समाजों की शुरुआत की।
प्रश्न 55.
'मिट्टी का हलवाहा' चित्र में क्या प्रदर्शित है?
उत्तर:
इसमें एक किसान को खेत जोतते हुए दर्शाया गया है।
प्रश्न 56.
हरिपुरा पैनलों में नंदलाल बोस ने किस शैली को प्रयुक्त किया?
उत्तर:
ग्रामीण जीवन को प्रस्तुत करने हेतु कलम और स्याही का प्रयोग किया।
प्रश्न 57.
नंदलाल बोस ने कला का इस्तेमाल किस हेतु किया?
उत्तर:
उन्होंने कला का इस्तेमाल राष्ट्र के नैतिक चरित्र के निर्माण हेतु किया।
प्रश्न 58.
क्षितिन्द्रनाथ ने 'रास-लीला' में क्या चित्रित किया है ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के दैवी जीवन को चित्रित किया है।
प्रश्न 59.
'रास-लीला' किस तरह की पेंटिंग है?
उत्तर:
यह वॉश तकनीक से बनी हुई वॉटर कलर पेंटिंग है।
प्रश्न 60.
'रास-लीला' चित्र में आकृतियाँ किस प्रकार बनाई गई हैं ?
उत्तर:
आकृतियाँ और उनके वस्त्र सामान्य, बहने वाली नाजुक लाइनों से बनाई गई हैं।
प्रश्न 61.
'राधिका' किस तरह का चित्र है?
उत्तर:
यह कागज पर निर्मित एक वॉश व टेम्पेरा चित्रकारी है।
प्रश्न 62.
अब्दुल रहमान चुगताई कौन थे?
उत्तर:
ये शाहजहाँ के मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद के वंशज थे।
प्रश्न 63.
अब्दुल रहमान की शैली बताइए।
उत्तर:
उसने 'वॉश तकनीक' पर प्रयोग किया और कैलीग्राफिक रेखा पर कार्य किया।
प्रश्न 64.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर की चित्र शैली बताइए।
उत्तर:
घनचित्रण तथा वाक्य रचना शैली।
प्रश्न 65.
'रात्रि में शहर' किस पद्धति की चित्रकारी है?
उत्तर:
यह एक वॉटर कलर पेंटिंग है।
प्रश्न 66.
'रात्रि में शहर' चित्र में क्या चित्रित है?
उत्तर:
द्वारका (भगवान श्रीकृष्ण का पौराणिक निवास) या स्वर्णपुरी।
प्रश्न 67.
'समुद्र का मानमर्दन करते हुए राम' किस विषय पर आधारित है?
उत्तर:
यह एक पौराणिक (प्राचीन पौराणिक कहानी) विषय पर आधारित है।
प्रश्न 68.
राजा रवि वर्मा की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
ये तैल रंग प्रस्तुत करने वाले प्रथम भारतीय चित्रकार थे।
प्रश्न 69.
'समुद्र का मानमर्दन करते हुए राम' विषय को कहाँ से लिया गया है?
उत्तर:
यह दृश्य वाल्मीकि रामायण से लिया गया है।
प्रश्न 70.
'महिला के साथ बच्चा' किस तरह का चित्र है?
उत्तर:
यह कागज पर निर्मित एक ग्वाश (gouache) चित्र है।
प्रश्न 71.
लोक पुनर्जागरण का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जैमिनी रॉय को।
प्रश्न 72.
'महिला के साथ बच्चा' चित्र में क्या चित्रित है?
उत्तर:
इसमें माँ और उसके बच्चे को ब्रश के द्वारा सरलीकरण और मोटी रेखा के द्वारा चित्रित किया गया है।
प्रश्न 73.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर की विशेषता बताइए।
उत्तर:
इन्हें भारत में राष्ट्रीयवादी और कला के आधुनिकतावाद के पिता के रूप में देखा जाता है।
प्रश्न 74.
'यात्रा का अन्त' चित्र क्या दर्शाता है ?
उत्तर:
यह एक दिन के अन्त तक यात्रा के अन्त को दर्शाता है।
प्रश्न 75.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर के कोई तीन चित्र बताइए।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I (SA-I)
प्रश्न 1.
कम्पनी शैली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
18वीं तथा 19वीं शताब्दी में अंग्रेज अधिकारियों के संरक्षण में जो चित्रशैली भारत में पनपी, वह कला-इतिहास में 'कम्पनी शैली' के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न 2.
किन तत्वों के सहयोग से 'कम्पनी शैली' विकसित हई?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी, अंग्रेजी सत्ता तथा भारतीय एवं विदेशी कलाकारों के सहयोग से कम्पनी शैली विकसित हुई।
प्रश्न 3.
कम्पनी शैली के प्रमुख केन्द्र बताइए।
उत्तर:
पटना, कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, अवध, मद्रास आदि इसके प्रमुख केन्द्र थे।
प्रश्न 4.
कम्पनी शैली के किन्हीं दो भारतीय चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कम्पनी शैली के दो प्रमुख भारतीय चित्रकार हैं-
प्रश्न 5.
कम्पनी शैली के चित्रों के मुख्य विषय लिखिए।
उत्तर:
कम्पनी शैली के चित्रों के मुख्य विषय उस समय के भारतीय लोग थे। उनके व्यवसाय, उनकी वेशभूषा, चाल-ढाल, रीति-रिवाज आदि के चित्र अंकित किए जाते थे।
प्रश्न 6.
कम्पनी शैली को पटना शैली क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
कम्पनी शैली को पटना शैली इसलिए कहा जाता है क्योंकि पटना में यह शैली अपनी पूर्णता पर पहुंची तथा पटना में इसका बाजार विकसित हो गया था।
प्रश्न 7.
राजा रवि वर्मा ने किस कला शैली का सूत्रपात किया?
उत्तर:
अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त राजा रवि वर्मा ने आधुनिक कला का सूत्रपात किया। उन्होंने भारतीय धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाओं पर चित्र बनाकर अपनी कला की गहरी छाप छोड़ी।
प्रश्न 8.
अपने चित्रों की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिए राजा रवि वर्मा ने क्या उपाय किया?
उत्तर:
अपने चित्रों की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिए राजा रवि वर्मा ने 1894 में बोम्बे में अपनी लिथोग्राफिक प्रेस खोलकर चित्रों की प्रतिकृतियाँ छपवाईं।
प्रश्न 9.
राजा रवि वर्मा ने भारतीय कला का किस प्रकार विकास किया?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने भारतीय कला को एक नई दृष्टि प्रदान की। उन्होंने कला को सार्वजनिक होने की विशुद्ध भूमिका तैयार की और पश्चिमी तथा भारतीय कला तत्वों का समन्वय किया।
प्रश्न 10.
राजा रवि वर्मा की किन्हीं दो कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा की दो मुख्य कृतियाँ हैं-
प्रश्न 11.
राजा रवि वर्मा की चित्रकारी की मुख्य विशेषता प्रकट कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने भारतीय विषयों को चित्रित करने हेतु यूरोपीय माध्यम का उपयोग किया। वे सर्वप्रथम भारतीय चित्रकार थे जिसने तैल रंगों का इस्तेमाल किया।
प्रश्न 12.
बंगाल शैली की शुरुआत किसने और कहाँ से की थी?
उत्तर:
बंगाल चित्र शैली की शुरुआत सबसे पहले अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल से की थी। उन्हें बंगाल शैली का जनक कहा जाता है।
प्रश्न 13.
बंगाल शैली से क्या अभिप्राय है? .
उत्तर:
यूरोपीय तथा भारतीय संस्कृतियों के आदान-प्रदान से एक नवीन कला का जन्म हुआ। यह राष्ट्रीय कला-आंदोलन बंगाल से प्रारम्भ हुआ, जो कला-इतिहास में बंगाल शैली के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 14.
बंगाल शैली के जन्म के लिए उत्तरदायी दो परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 15.
ई.बी. हैवेल कौन थे?
उत्तर:
ई.बी. हैवेल एक कुशल चित्रकार तथा भारतीय परम्परावादी कला के समीक्षक थे। उन्होंने भारतीय चित्रशैली तथा मूर्तिकला की कृतियों को विश्व की कला में सर्वोच्च स्थान दिलवाया।
प्रश्न 16.
हैवेल ने भारतीय कला छात्रों को क्या सलाह दी?
उत्तर:
हैवेल ने भारतीय छात्रों को पश्चिमी कला के प्रभाव को त्याग करने की सलाह दी और उन्हें भारतीय संस्कृति के गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 17.
बंगाल शैली की दो विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने किन जापानी कलाकारों से वॉश तकनीक को सीखा?
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने 'योकोहामा ताइकान' व 'हिसिदा' नामक जापानी कलाकारों से वॉश तकनीक को सीखा।
प्रश्न 19.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित वॉश पद्धति में चित्रित चित्रों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
प्रश्न 20.
बंगाल शैली के प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले चार कलाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 21.
टेम्पेरा पद्धति को अपनाने वाले बंगाल शैली के तीन चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 22.
बंगाल शैली में किन तत्वों का समावेश हुआ?
उत्तर:
बंगाल शैली में भारतीय परम्परा, संस्कृति, धर्म एवं इतिहास आदि का समावेश हुआ।
प्रश्न 23.
बंगाल शैली के कलाकारों ने किस माध्यम में कार्य किया?
उत्तर:
बंगाल शैली के कलाकारों ने वॉश तकनीकी के माध्यम से जल रंगों का प्रयोग अधिकाधिक किया।
प्रश्न 24.
टेम्पेरा पद्धति की दो विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 25.
'यात्रा का अन्त' चित्र किन परिस्थितियों में बनाया गया था?
उत्तर:
रविन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु के बाद अवसाद में आए अंबनिन्द्रनाथ टैगोर ने दुःखी मन से भारी बोझ से लदे हुए ऊँट के मनोभावों को व्यक्त करते हुए इस चित्र की रचना की थी।
प्रश्न 26.
उन दो चित्रकारों की रचनाओं के नाम लिखिए जिन्होंने बंगाल शैली की उपयोगिता को बढ़ाया।
उत्तर:
आनन्द कुमारस्वामी की पुस्तक 'आर्ट एण्ड स्वदेशी' तथा अरविंद घोष की पुस्तक 'नेशनल वैल्यू ऑफ आर्ट' ने बंगाल शैली की उपयोगिता को बढ़ाया।
प्रश्न 27.
जैमिनी रॉय का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
जैमिनी रॉय का जन्म सन् 1887 ई. में पश्चिमी बंगाल के बांकुरा जिले के बेलियातोर गाँव में हुआ था।
प्रश्न 28.
जैमिनी रॉय की चित्रकला को किसने प्रभावित किया?
उत्तर:
जैमिनी रॉय की चित्रकला को बंगाल की लोक-कला तथा गया (बिहार) के पट-चित्रण ने काफी प्रभावित किया।
प्रश्न 29.
जैमिनी रॉय ने अपनी चित्रकला में लोक-कला के किन तत्वों का समावेश किया?
उत्तर:
जैमिनी रॉय ने अपनी चित्रकला में लोक-कला के अभिप्रायों तथा प्रतीकों को ग्रहण कर उन्हें अपनी चित्रकला में संजोया।
प्रश्न 30.
जैमिनी रॉय ने अपने चित्रों के धरातल के लिए किसका प्रयोग किया?
उत्तर:
जैमिनी रॉय ने अपने चित्रों के धरातल के लिए कपड़े, कागज तथा पट्टों का प्रयोग किया।
प्रश्न 31.
जैमिनी रॉय के चित्रों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 32.
औपनिवेशिक कला नीति के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
औपनिवेशिक कला नीति ने यूरोपीय अकादमिक शैली को पसंद करने वालों और भारतीय शैली को पसंद करने वालों के बीच विभाजन पैदा कर दिया।
प्रश्न 33.
19वीं सदी के प्रारम्भ में स्वदेशी आंदोलन की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन् 1905 ई. के बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था, यह कला के बारे में विचारों में परिलक्षित होता था।
प्रश्न 34.
जापानी राष्ट्रवादी काकुजो ओकाकुरा किस उद्देश्य के साथ भारत आए?
उत्तर:
वह अखिल-एशियायीवाद के बारे में अपने विचारों के साथ भारत आए। वह भारत को अन्य पूर्वी देशों के साथ एकजुट करना चाहते थे और पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ना चाहते थे।
प्रश्न 35.
जापानी कलाकार कलकत्ता क्यों गए?
उत्तर:
वे शांतिनिकेतन गए ताकि भारतीय छात्रों को तैल चित्रकला के विकल्प के रूप में वॉश तकनीक सिखा सकें।
प्रश्न 36.
आनन्द कुमारस्वामी का आधुनिक भारतीय कला को क्या योगदान रहा?
उत्तर:
आनन्द कुमारस्वामी ने भारतीय संस्कृति, कला और दर्शन के विषय में लगभग 20 ग्रन्थ लिखे। अपनी पुस्तकों एवं लेखों से इन्होंने भारतीय कला, धर्म व संस्कृति को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत कर भारत का गौरव बढ़ाया।
प्रश्न 37.
ई.बी. हैवेल ने भारतीय कला परम्परा की श्रेष्ठता पर किस प्रकार बल दिया?
उत्तर:
उनका मानना था कि भारतीय कला आत्मा के अधिक निकट है और इससे स्थूल जगत की अपेक्षा शाश्वत सत्यता का प्रदर्शन होता है, जबकि पश्चिमी कला इसके विपरीत भौतिकता के निकट है।
प्रश्न 38.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर अपने व्यंग्य-चित्रों में किनका मजाक उड़ाया करते थे?
उत्तर:
वे उन अमीर बंगालियों का मजाक उड़ाया करते थे जो आँखें मूंदकर यूरोपीय जीवनशैली का अनुसरण करते थे।
प्रश्न 39.
किस बंगाली बुद्धिजीवी ने कला क्षेत्र में आंग्लवादियों का पक्ष लिया?
उत्तर:
बंगाली बुद्धिजीवी बेनॉय सरकार ने कला क्षेत्र में आंग्लवादियों का पक्ष लिया और उन्होंने यूरोप में विकसित हो रहे आधुनिकतावाद को प्रामाणिक माना।
प्रश्न 40.
वह कौन अंग्रेज बुद्धिजीवी था जो भारतीय स्वदेशी कला का पक्षधर था?
उत्तर:
वह ई.बी. हैवेल थे, जो वास्तविक आधुनिक भारतीय कला को उत्पन्न करने के लिए स्वदेशी भारतीय कला के पक्ष में थे।
प्रश्न 41.
किस कलाकार ने आधुनिकता के दोनों भारतीय व पश्चिमी दृष्टिकोणों को अपनाया?
उत्तर:
अमृता शेरगिल इन दोनों ही दृष्टिकोणों के सम्मिलन का आदर्श उदाहरण हैं।
प्रश्न 42.
भारत में आधुनिक कला को स्पष्टतः किस प्रकार समझा जा सकता है?
उत्तर:
भारत में आधुनिक कला को उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद के बीच संघर्ष के परिणामस्वरूप अच्छी तरह समझा जा सकता है।
प्रश्न 43.
उपनिवेशवाद ने कला के किन नए संस्थानों की शुरुआत की?
उत्तर:
उपनिवेशवाद ने कला विद्यालयों, प्रदर्शनी दीर्घाओं, कला पत्रिकाओं और कला समाजों जैसे नए संस्थानों की शुरुआत की।
प्रश्न 44.
नंदलाल बोस ने अपनी कला का उपयोग किस हेतु किया?
उत्तर:
उन्होंने अपनी कला का उपयोग राष्ट्र के नैतिक चरित्र के निर्माण हेतु किया।
प्रश्न 45.
'रास-लीला' चित्रकारी द्वारा क्या संदेश दिया गया है ?
उत्तर:
'रास-लीला' चित्रकारी में कृष्ण और गोपियाँ समान अनुपात में चित्रित की गई हैं। इस प्रकार, भगवान तथा मनुष्य में स्तरीय समानता का विवरण दिया गया है।
प्रश्न 46.
अब्दुल रहमान चुगताई ने 'राधिका' चित्र में क्या प्रयोग किए ?
उत्तर:
चुगताई ने वॉश तकनीक पर प्रयोग किया और कैलीग्राफिक रेखाओं के एक विशेष गुण को सम्मिलित करके कार्य किया।
प्रश्न 47.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने 'रात्रि में शहर' में जादू की दुनिया को कैसे चित्रित किया?
उत्तर:
जादू की दुनिया बनाने के लिए अंतहीन गलियारे, खम्भे, आधे खुले दरवाजे, हॉल, स्क्रिन्स, रोशनी वाली खिड़कियाँ, सीढ़ियाँ तथा मेहराब आदि सभी को एक ही सतह पर चित्रित किया गया है।
प्रश्न 48.
राजा रवि वर्मा ने पौराणिक विषयों हेतु क्या विशेषता प्राप्त की?
उत्तर:
इन्होंने पौराणिक विषयों के लिए लिथोग्राफिक उत्पादन की कला में महारत प्राप्त किया।
प्रश्न 49.
'महिला के साथ बालक' किस तरह की रचना है?
उत्तर:
यह जैमिनी रॉय द्वारा बनाई गई ग्वाश पेंटिंग है जो कि पेपर पर बनाई गई है। चित्र में सादगी व शुद्धता दोनों ही दिखाई देती हैं।
प्रश्न 50.
'यात्रा का अन्त' चित्र में क्या दर्शाया गया है?
उत्तर:
इस चित्र में भारी बोझ से लदे ऊँट को शाम की लाल पृष्ठभूमि में दिखाया गया है। ऊँट असहनीय बोझ से घायल होकर वह जीवन की अन्तिम यात्रा के मोड़ पर आ गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II (SA-II)
प्रश्न 1.
कम्पनी शैली के प्रमुख विषय क्या रहे हैं ?
उत्तर:
कम्पनी शैली में यूरोपीय कला तत्वों तथा भारतीय विषयों को आधार बनाकर कला को विकसित किया जाने लगा। इनमें मुख्य रूप से दृश्य-पर्वत, नदी, जंगल, समुद्र तथा लोकजीवन से जुड़े चित्र-उत्सव, पोशाकें, आभूषण, पुरातात्विक स्थल आदि मुख्य रूप से चित्रित किए गए हैं । स्पष्ट है कि कम्पनी शैली में विभिन्न विषयों के चित्र बनाए गए।
प्रश्न 2.
अंग्रेज अधिकारियों ने कला निर्माण हेतु स्थानीय कलाकारों को क्यों नियुक्त किया?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान 18वीं शताब्दी में, अंग्रेज भारत में सभी वनस्पतियों, जीवों तथा अलगअलग वर्गों के लोगों के विभिन्न तौर-तरीकों और रीति-रिवाजों तथा परिवर्तनीय अवस्थितियों से मंत्रमुग्ध थे। अतः कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने आंशिक रूप से प्रलेखन और कलात्मक कारणों से अपने आसपास के दृश्यों को चित्रित करने के लिए कुछ स्थानीय कलाकारों को नियुक्त किया।
प्रश्न 3.
कम्पनी शैली के प्रसार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में मध्यकाल में अंग्रेजों ने भारतीय कलाकारों को यूरोपीय कला तकनीक में प्रशिक्षित करने के लिए मद्रास, कलकत्ता, बोम्बे, लाहौर तथा लखनऊ में कला विद्यालय भी खोले थे। यहाँ का वातावरण, शिक्षण प्रणाली तथा सामग्री आदि यूरोपीय कला विद्यालय पर आधारित थी, जिससे भारतीय अपनी कला निधि की उपेक्षा करने लगे। सन् 1850 से 1880 के मध्य कम्पनी शैली अपने चरमोत्कर्ष पर थी।
प्रश्न 4.
यूरोपीय शैली में किस तरह के चित्रों का मिश्रण किया गया?
उत्तर:
यूरोपीय शैली में हजारों की संख्या में ड्रॉइंग, जलरंग, तैलचित्र और प्रिंट का चित्रण किया गया। उनके बनाने वालों में अंग्रेज चित्रकार, डॉक्टर, सैनिक अधिकारी, सर्वेक्षण अधिकारी, पर्यटक और उनसे प्रभावित देशी चित्रकार थे। पटना, कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, अवध और मद्रास आदि स्थानों पर ये चित्र बनते रहे । इन चित्रों में तैलचित्र, लघु चित्र, जल रंग, एचिंग और लिथोग्राफ एवं अभ्रक पर भी चित्र बनाए गए।
प्रश्न 5.
राजा रवि वर्मा का कलात्मक परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक गाँव में हुआ था। अलागिरी नायडू से उन्हें कला प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। प्रारम्भिक भारतीय तैल चित्रकारों में राजा रवि वर्मा का नाम उल्लेखनीय है। राजा रवि वर्मा ने भारतीय महलों में लोकप्रिय युरोपीय चित्रों की प्रतियों की नकल करके, अकादमिक यथार्थवाद की शैली में महारत हासिल की। इसका उपयोग उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय महाकाव्यों के दृश्यों को चित्रित करने के लिए किया। ये इतने लोकप्रिय हो गये कि उनके कई चित्रों को ओलियोग्राफ के रूप में कॉपी किया गया और बाजार में बेचा गया। यहाँ तक कि कैलेण्डर की आकृति के रूप में ये लोगों के घरों में भी प्रवेश कर गये।
प्रश्न 6.
राजा रवि वर्मा की रंग योजना पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा के चित्रों की रंग योजना बड़ी ही आकर्षक होती थी, वे ऐसे रंगों का प्रयोग करते थे, जो मन में गम्भीर भाव जगाएँ। गहरे लाल, नीले, हरे, पीले, सुनहरे, जामुनी मूल रंगों का प्रयोग करके राजा रवि वर्मा ने परम्परागत लालित्य को सुन्दर रूपाकारों में ढाला तथा यथार्थ छवियों की-सी मांसलता प्रदान की।
ये प्रथम भारतीय कलाकार थे जिसने कि तैल रंगों को अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किया।
प्रश्न 7.
राजा रवि वर्मा ने भारतीय कला का पुनरुद्धार किया। कैसे?
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने अपनी उत्कृष्ट कलाकृतियों के माध्यम से भारतीय पौराणिक अनुभूतियों को जीवन्त बनाया। ब्रिटिश सरकार के अनेक नियंत्रणों के बावजूद उन्होंने भारतीय कला का पुनरुद्धार करने का भरसक प्रयास किया। राजा रवि वर्मा ने भारतीय कला को एक नई दृष्टि प्रदान की। उन्होंने कला को सार्वजनिक होने की विशुद्ध भूमिका तैयार की और पाश्चात्य तथा भारतीय कला तत्वों का समन्वय किया।
प्रश्न 8.
राजा रवि वर्मा के चित्र के प्रमुख विषयों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा ने भारतीय गाथाओं (पौराणिक, धार्मिक व महाकाव्यों) की अभिव्यक्ति पाश्चात्य शैली में की। उन्होंने अनेकानेक विषयों के चित्र बनाए। उनके विषयों में राजा-महाराजाओं के पोर्टेट चित्रों की भी अधिकता रही। उनके चित्रों में नारी चित्रण भी अधिक हुआ है। उनके प्रमुख चित्रों में रावण और जटायु, भीष्म प्रतिज्ञा, समुद्र का मानमर्दन करते हुए राम, द्रौपदी, शकुन्तला, यशोदा और कृष्ण आदि हैं।
प्रश्न 9.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर भारतीय एवं पाश्चात्य कला की ऐसी कड़ी थे, जिन्होंने भारतीय कला को विदेशी दासता से मुक्त करा एक नवीन मार्ग प्रदान किया। अबनिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म सन् 1871 ई. में कलकत्ता के जोरासांको में हुआ। इन्होंने 'संस्कृत कॉलेज' में शिक्षा ग्रहण की। यूरोपियन कला इटली से तथा पेस्टल रंग, जल रंग व तैल रंग तकनीक अंग्रेजों से सीखी। जबकि वॉश तकनीक का ज्ञान जापानियों से लिया। उन्हें ई.बी. हैवेल का सान्निध्य प्राप्त हुआ और इन्होंने देश की कला चेतना को पुनः जागृत कर एक नवीन युग का सूत्रपात किया। बंगाल शैली की नींव रखी, जिसने भारतीय स्वदेशी कला को जन्म दिया।
प्रश्न 10.
ई.बी. हैवेल के बारे में आप क्या जानते हैं ? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
ई.बी. हैवेल ने विश्व का ध्यान 'भारतीय कला और संस्कृति' की ओर आकर्षित किया। सन् 1896 ई. में वे कलकत्ता कला विद्यालय के प्रिंसिपल बने। उनके सहयोग से एक नवीन कला आंदोलन का सूत्रपात हुआ। उन्होंने बंगाल कला विद्यार्थियों को केवल विदेशी रीतियों पर कला सिखाने को गलत माना और भारतीय जीवन तथा आदर्श से पूर्ण पहाड़ी, अजन्ता, राजपूत एवं मुगल शैली को आधार मानकर कला अभिव्यक्ति करने की सलाह दी। उन्होंने भारतीय स्वदेशी कला का एवं राष्ट्रवाद का पूर्णतः समर्थन किया।
प्रश्न 11.
बंगाल शैली क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में यूरोपीय एवं भारतीय संस्कृतियों के आदान-प्रदान से एक नवीन कला का जन्म हुआ। भारतीय कला में इस भावना ने राष्ट्रीय कला आंदोलन का रूप धारण किया। यह राष्ट्रीय कला आंदोलन बंगाल से प्रारम्भ हुआ,जो कला-इतिहास में बंगाल स्कूल या बंगाल शैली के नाम से प्रसिद्ध है। अबनिन्द्रनाथ टैगोर बंगाल शैली के जन्मदाताओं में से एक थे।
प्रश्न 12.
बंगाल शैली के उद्भव हेतु कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी रहीं?
उत्तर:
बंगाल शैली का उद्भव बौद्धिक विचार एवं स्वदेश प्रेम का प्रतिफल है। कलकत्ता सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन चुका था। इस समय टैगोर वंश परम्परा में अबनिन्द्रनाथ टैगोर व गगनेन्द्रनाथ टैगोर जैसे चित्रकारों ने कला की जनजागृति का कार्य किया। अबनिन्द्रनाथ टैगोर के साहसिक क्रान्तिकारी विचारों तथा ई.बी. हैवेल के भारतीय कला के प्रति उदार दृष्टिकोण ने बंगाल शैली का सूत्रपात किया।
प्रश्न 13.
बंगाल शैली के प्रसार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बंगाल शैली सन् 1895 ई. से 1920 ई. के मध्य एक निश्चित क्षेत्र में पनपी कला-शैली से सम्बन्धित है। शीघ्र ही शांतिनिकेतन एवं गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स कलकत्ता के कला-विद्यार्थियों के माध्यम से भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में इसका प्रसार हुआ। इस कला-आंदोलन से भारतीयों में एक राष्ट्रीय शैली का विचार विकसित हुआ।
सन् 1920 ई. के दशक के अन्त तक यह कला आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था। बंगाल शैली के प्रचार-प्रसार में नंदलाल बोस, क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार, गगनेन्द्रनाथ टैगोर, जैमिनी रॉय, आनन्द कुमारस्वामी आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 14.
बंगाल शैली की मुख्य विशेषताओं को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
बंगाल शैली की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
प्रश्न 15.
नंदलाल बोस का संक्षिप्ततः परिचय करायें। ..
उत्तर:
नंदलाल बोस का जन्म सितम्बर, 1883 ई. में मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में हुआ था। सन् 1917 में उन्हें 'ओरियन्टल स्कूल ऑफ आर्ट' का प्राचार्य नियुक्त किया गया। उन्होंने अजन्ता, बाघ आदि गुफाओं के भित्तिचित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की। उन्हें कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के पंडाल के पैनलों के निर्माण हेतु गाँधीजी ने आमंत्रित किया। नंदलाल बोस को रविन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में कला विभाग में अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया। 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया।
प्रश्न 16.
अब्दुल रहमान चुगताई की कला की विशेषता बताइए।
उत्तर:
इनका जन्म 21 सितम्बर, 1897 ई. को मुगल कलाकार परिवार में हुआ था। चुगताई ख्यातिप्राप्त प्रतिभासम्पन्न पुनर्जागरण काल के कलाकारों में से. एक विशिष्ट चित्रकार थे। भावनात्मक एवं सौन्दर्य दृष्टि से उनके चित्रों का विशेष महत्त्व है। पशु अंकन, मुद्राओं, प्राकृतिक पृष्ठभूमियों की चित्रांकन शैलियों को देखते हुए कुछ विद्वान उनकी कलम को पर्सियन मुगल कहते हैं और कुछ विद्वान ईरानी मुगल कला के नाम से सम्बोधित करते हैं। अब्दुल रहमान चुगताई ने हिन्दू धार्मिक, पौराणिक आख्यानों के अनेक चित्रों की चित्रकारी की है।
प्रश्न 17.
जैमिनी रॉय का कलात्मक परिचय दीजिए।
उत्तर:
जैमिनी रॉय ने आरम्भ में पश्चिमी शैली पर आधारित चित्र बनाए, बाद में बंगाल स्कूल से प्रभावित हुए। परन्तु उससे भी संतुष्ट न होने पर बंगाल की लोक कला व बिहार के पट चित्रण से प्रभावित हुए। इन्होंने ग्रामीण लोक कलाओं से प्रेरणा ग्रहण की.। कुम्हारों, बुनकरों, गुड़िया व खिलौने बनाने वालों से प्रेरित हो अपना कला कार्य करते रहे। इस प्रकार जैमिनी रॉय एक प्रयोगकर्ता के रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। . उन्होंने पुस्तक चित्रण, भित्ति चित्रण व पट चित्रण आदि सभी प्रकार की रचनाएँ कीं। उनके चित्रों में आकृतियाँ आलंकारिक हैं, आँखें बड़ी नुकीली कानों तक लम्बी बनी हैं। सरल व प्रभावपूर्ण रंग योजना स्पष्ट रूपरेखा व संयोजन की सरलता इनके चित्रों की विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 18.
भारतीय स्वदेशी कला आंदोलन का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारतीय स्वदेशी कला आंदोलन से भारतीयों में एक राष्ट्रीय शैली का विचार विकसित हुआ। देश में कला विद्यालयों की स्थापना एवं कला शिक्षकों की माँग के अनुरूप इस आंदोलन का प्रसार होता गया। कला के क्षेत्र में यूरोपीय शैलियों, वादों तथा चित्रांकन रंग पद्धतियों का परित्याग कर दिया गया और चित्रकला के क्षेत्र में भारतीय परम्परा, संस्कृति और धर्म एवं इतिहास आदि का प्रवेश हुआ तथा भारतीयों में राष्ट्रीय शैली का प्रचार बढ़ा।
प्रश्न 19.
'मिट्टी का हलवाहा-किसान' चित्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह 1938 में नंदलाल बोस द्वारा हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन हेतु बनाए गए पैनलों में से एक है। इस पैनल में एक किसान को हल जोतते हुए दर्शाया गया है, जो कि एक आम आदमी की एक ग्रामीण जीवन की सामान्य गतिविधि है।
चित्र : नंदलाल बोस-मिट्टी का हलवाहा (हरिपुरा पैनल)
प्रस्तुत चित्र को तैयार करने हेतु नंदलाल बोस ने कलम और स्याही का प्रयोग किया है, साथ ही टेम्पेरा चित्रण का भी प्रयोग किया गया है। इस चित्र के माध्यम से गाँधीजी का गाँवों के प्रति राजनीतिक रुझान भी स्पष्ट होता है। पोस्टर की पृष्ठभूमि में एक मेहराब है। इस पैनल की डिजाइन, रंग योजना, प्रकृति और परम्परा का मिश्रण आदि से ज्ञात होता है कि नंदलाल बोस के प्रेरणास्रोत अजन्ता के भित्तिचित्र और मूर्तियाँ रहे होंगे।
प्रश्न 20.
क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार की चित्रकला की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार ने कुछ परिवर्तनों के साथ वॉश परम्परा को आगे बढ़ाया। वे अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शुरुआती शिष्यों में से एक थे और भक्ति मार्ग के अनुयायी थे। राधा के मनभंजन, सखी और राधा, लक्ष्मी तथा श्रीचैतन्य का जन्म आदि उनकी धार्मिक अवधारणाओं के उदाहरण हैं।
क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार ने पौराणिक और धार्मिक विषयों को चित्रित किया है। देहाती, पतले, मामूली हावभाव, सुखद वातावरण और कोमल जलरंग आदि उनकी शैलीगत विशेषताओं को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 21.
अब्दुल रहमान चुगताई की कृति 'राधिका' की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत चित्र में दीपक का प्रकाश चारों ओर गतिमान है। इसमें नायिका 'राधा' लज्जा के भाव लिए श्रीकृष्ण से मिलने जा रही है। चित्र में राधा को सहज रूप में सुन्दर भाव-भंगिमा से युक्त चित्रित किया गया है। राधा की रूपाकृति को स्वाभाविक तथा बहुत ही कोमल दर्शाया गया है। जहाँ एक ओर लज्जा के भाव हैं, वहीं दूसरी ओर श्रीकृष्ण से मिलन की भावनाओं से प्रसन्न होकर राधा के मुख-मण्डल पर हल्की मधुर मुस्कान भी दिखाई गई है।
प्रश्न 22.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर की चित्र निर्माण शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गगनेन्द्रनाथ टैगोर उन पहले भारतीय चित्रकारों में से एक थे जिन्होंने अपने विचारों को चित्रित करने के लिए घनचित्रण शैली तथा वाक्य रचना का उपयोग किया था। उन्होंने क्यूबिज्म की औपचारिक ज्यामिति को मोहक रूपरेखा प्रदान की, जो मानव के रूप की छाया या रूपरेखा थी।
उन्होंने अपने काल्पनिक शहरों जैसे द्वारका (भगवान श्रीकृष्ण का पौराणिक निवास) या स्वर्णपुरी की रहस्यमयी दुनिया को कई दृष्टिकोणों, बहुआयामी आकृतियों और क्यूबिज्म के खुरदुरे किनारों को प्रयुक्त करके दर्शाया। साथ ही, उन्होंने हीरे के आकार के सतहों और प्रिज्मीय रंगों की अन्तक्रिया को भी चित्रित किया।
प्रश्न 23.
राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित 'समुद्र का मान मर्दन करते हुए राम' चित्र का सटीक विवरण दीजिए।
उत्तर:
यह चित्र 'वाल्मीकि रामायण' की कथा का एक अंक दर्शाता है। तैल रंगों को प्रयुक्त कर बनाए गए इस चित्र में लंका पर आक्रमण करने को आतुर राजा राम अपने धनुष-बाण से समुद्र को सुखाने.की तैयारी में हैं। अतः क्रुद्ध व गम्भीर राम पाठ सिखाने की मुद्रा में दर्शनीय हैं। वहीं चित्र की पृष्ठभूमि में समुद्र देवता प्रकट होकर राम से क्षमा याचना करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
प्रश्न 24.
'महिला के साथ बालक' चित्र में जैमिनी रॉय ने अपनी किस विशेषता का परिचय दिया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यह चित्र कागज पर चित्रित ग्वाश (gouche) पेंटिंग है। इसमें एक माँ और उसके बच्चे को ब्रश के द्वारा सरलीकरण और मोटी रूपरेखा के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह चित्र भारतीय कला में अब तक अज्ञात अपरिष्कृत शक्ति का परिचय देती है। चित्र की द्वि-आयामी प्रकृति पट-चित्रकला से ली गई है। रॉय ने कलाकृति में पैमाना, लय, सजावट स्पष्टता हेतु पट-चित्रण का अनुसरण किया है। पट-चित्रण की शुद्धता प्राप्त करने के लिए, उन्होंने पहले कई इकरंगे (मोनोक्रोम) ब्रुश चित्र बनाए और फिर मूल सात रंगों का टेम्पेरा के साथ प्रयोग किया।
प्रश्न 25.
'यात्रा का अन्त' में अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने क्या दर्शाया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत चित्र 'यात्रा का अन्त' अबनिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रविन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु के पश्चात् किया गया था। उन्होंने यह चित्र वॉश तकनीक का प्रयोग कर बनाया था। इस चित्र में ऊँट असहनीय बोझ से लदा हुआ है, जिससे कि वह थककर एवं घायल होकर जीवन की अन्तिम यात्रा के मोड़ पर आ गया है।
यह चित्र अबनिन्द्रनाथ टैगोर के मानसिक अवसाद को प्रकट कर रहा है, जिसमें मार्मिकता के भाव स्पष्ट हो रहे हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
कम्पनी शैली के बारे में आप क्या जानते हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी शैली की शुरुआत एवं प्रसार
अठारहवीं शताब्दी के आसपास औपनिवेशिक शासन के साथ-साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को लागू किया। इस समय चित्रकला के क्षेत्र में भी काफी कार्य हुआ। शिक्षा संस्थाओं में यूरोपीय कला पद्धति. में शिक्षा दी जाने लगी। साथ ही, फोटोग्राफी की नई तकनीक ने भी कला को प्रभावित किया, यूरोपीय शैली में मॉडल बैठाकर अभ्यास कराया जाने लगा। क्रमशः मद्रास, कलकत्ता, बम्बई, लाहौर आदि स्थानों पर कला विद्यालय खोले गए।
यरोपीय शैली में हजारों की संख्या में ड्राइंग, जल रंग, तैल चित्र और प्रिंट बनाए गए। पटना, कलकत्ता, मुर्शिदाबाद; अवध और मद्रास आदि स्थानों पर चित्रकारी होती रही, अन्य जगहों पर भी चित्र बनते रहे।
भारतीय जनजीवन के विषयों पर चित्र निर्माण कम्पनी शैली के चित्रकारों ने भारतीय लोगों के जीवन के. विभिन्न विषयों को चित्रित किया। उन्होंने बड़ी संख्या में दृश्य चित्र बनाए। चित्रकारों ने विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते हुए नदी, जंगल तथा समुद्र आदि के दृश्यों का चित्रण किया।
विभिन्न प्रदेशों के लोकजीवन का चित्रण-औपनिवेशिक काल में भारत आने वाले अंग्रेजों में यहाँ के रंगों से भरी जीवनशैली, पोशाक, आभूषण, उत्सव और त्यौहार आदि के प्रति जिज्ञासा के साथ ही विशेष आकर्षण था। भारत के विशाल भू-भाग के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले लोगों की जिंदगी की विविधता ने कम्पनी चित्रकारों को प्रभावित किया।
चित्रकारों ने विविध उत्सवों, जुलूस, शोभायात्राओं, मेलों आदि के चित्रों की रचना की। अंग्रेज चित्रकारों तथा भारतीय चित्रकारों के चित्रों में अधिक अन्तर नहीं होता था।
पुरातात्विक स्थलों की चित्रकारी-कम्पनी चित्रकारों ने भारत के पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण किया और ऐतिहासिक महत्त्व के चित्र बनाए। ऐतिहासिक स्थलों में अजन्ता, ऐलोरा, एलिफेन्टा, कन्हेरी की गुफाएँ, ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी और कुतुबमीनार आदि के चित्र महत्त्वपूर्ण हैं।
चित्र : गुलाम अली खान-वेश्याओं का समूह, कम्पनी शैली 1800-1825
वेशभूषा एवं आभूषणों के चित्र-भारत के विविध प्रांतों के निवासियों की विविधता से भरी जीवनशैली और विभिन्न रंगों की पोशाकों व आभूषणों से सुसज्जित स्त्री-पुरुषों, बच्चों और बूढ़ों आदि को यूरोपियन चित्रकारों ने अपने चित्रों में प्रस्तुत किया। . विभिन्न व्यवसायों के चित्र-कम्पनी शैली के चित्रकारों ने किसान, लोहार, बुनकर, सुनार, नौकर, दरबान, रसोइया, मिठाईवाला, फेरीवाला और मदारी आदि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हुए लोगों का चित्र निर्माण किया।
व्यक्ति चित्रों का निर्माण कम्पनी शैली में बहुत अधिक संख्या में राजा, नवाब, कम्पनी के शासक, अधिकारी तथा अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों के व्यक्ति चित्र बनाए गए।
वनस्पति चित्रण-कम्पनी शैली में हजारों की संख्या में पेड़-पौधे, लता और फल-फूल आदि का चित्रण किया गया।
पश-पक्षी तथा कीट-पतंगों का चित्रण-भारत के रंगीन पक्षी, कीट-पतंग तथा विचित्र जानवरों के चित्र बड़ी संख्या में चित्रकारों ने जल रंग, एन्ग्रेविंग तथा लिथोग्राफ के प्रयोग द्वारा बनाए।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि कम्पनी शैली में विभिन्न विषयों के चित्र बनाए गए। चित्रकला के विभिन्न माध्यमों जल रंग, तैल रंग, माइका पेंटिंग, एन्ग्रेविंग और लिथोग्राफ आदि का विकास एक साथ हुआ।
प्रश्न 2.
राजा रवि वर्मा का भारतीय कला को क्या योगदान दिया? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा का भारतीय कला को योगदान
प्रारम्भिक जीवन-राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 ई. को केरल के एक गाँव किलिमन्नर में हुआ था। बाल्यकाल से ही इनकी रुचि केवल चित्रकला में ही थी। उन्हें दरबारी चित्रकार अलागिरी नायडू से कला प्रशिक्षण मिला। रवि वर्मा ने ब्रिटिश चित्रकार लियोडोर जैनसन से तैल चित्रण तकनीक को आत्मसात् कर लिया तथा त्रिवेन्द्रम के राज्याश्रय में ही कला का विकास किया। उन्होंने सर्वप्रथम शाही परिवार के सदस्यों के चित्र बनाये।
राजा रवि वर्मा का कला जीवन-अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त राजा रवि वर्मा ने आधुनिक कला का सूत्रपात किया, परन्तु उन्होंने विदेशी कला के अनुकरण के साथ ही विदेशी तकनीक को अपनाया। उन्होंने यूरोपियन स्टूडियोज की शैली को अपनाते हुए भारतीय गाथाओं की अभिव्यक्ति पश्चिमी शैली में की। हिन्दू महाकाव्यों तथा आख्यानों के चित्र इनकी विशेष पहचान थे। इन्होंने भारतीय पौराणिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर अनेकानेक चित्र बनाए। इनके चित्रों में समुद्र का मान मर्दन करते हुए राम, भीष्म प्रतिज्ञा, रावण और जटायु, साधु और मेनका, भिखारी, वामन अवतार आदि प्रसिद्ध हैं।
राजा रवि वर्मा ने मृतप्रायः भारतीय कला का पुनरुद्धार कर उसे एक नई दृष्टि प्रदान की। उनके चित्रों की माँग बहुत अधिक बढ़ गई थी। अतः सन् 1894 ई. में उन्होंने बोम्बे में अपनी स्वयं की लिथोग्राफिक प्रेस खोलकर अपने चित्रों की प्रतिकृतियाँ छपवाईं। परिणामतः उनके चित्र घर-घर तक फैल गए।
राजा रवि वर्मा की रंग योजना-वे प्रथम भारतीय थे जिसने कि अंग्रेजों की प्रचलित तकनीक तैल चित्रण को अपनाया था। उनके चित्रों की रंग-योजना बड़ी मनोहारी होती थी, जो कि मन में गम्भीर भाव जगाती थी। उन्होंने गहरे लाल, नीले, हरे, पीले, सुनहरे व जामुनी मूल रंगों का प्रयोग करके अपने परम्परागत लालित्य को सुन्दर रूपाकारों में ढाला तथा यथार्थ छवियों की सी मांसलता प्रदान की। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजा रवि वर्मा की रंग-योजना बड़ी ही आकर्षक होती थी।
राजा रवि वर्मा के चित्रों के प्रमुख विषय-राजा रवि वर्मा ने भारतीय गाथाओं (पौराणिक, धार्मिक व महाकाव्यों) की अभिव्यक्ति पश्चिमी शैली में की। उन्होंने अनेक विषयों के चित्र बनाए। उनके विषयों में राजामहाराजाओं के पोर्टेट चित्रों की अधिकता रही। साथ ही उनके चित्रों में नारी चित्रण भी अधिकता से हुआ है।
राजा रवि वर्मा ने अपनी कला साधना जारी रखी। 'शकुन्तला का दुष्यन्त के नाम पत्र लेखन' उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है। सन् 1901 में राजा रवि वर्मा उदयपुर दरबार के निमंत्रण पर वहाँ गए। वहाँ उन्होंने अनेक चित्र बनाए, जिनमें 'महाराणा प्रताप' का व्यक्ति-चित्र अतिसुन्दर है।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
कम्पनी शैली के बारे में आप क्या जानते हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी शैली की शुरुआत एवं प्रसार
अठारहवीं शताब्दी के आसपास औपनिवेशिक शासन के साथ-साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को लागू किया। इस समय चित्रकला के क्षेत्र में भी काफी कार्य हुआ। शिक्षा संस्थाओं में यूरोपीय कला पद्धति में शिक्षा दी जाने लगी। साथ ही, फोटोग्राफी की नई तकनीक ने भी कला को प्रभावित किया, यूरोपीय शैली में मॉडल बैठाकर अभ्यास कराया जाने लगा। क्रमशः मद्रास, कलकत्ता, बम्बई, लाहौर आदि स्थानों पर कला विद्यालय खोले गए।
युरोपीय शैली में हजारों की संख्या में ड्राइंग, जल रंग, तैल चित्र और प्रिंट बनाए गए। पटना, कलकत्ता, मुर्शिदाबाद, अवध और मद्रास आदि स्थानों पर चित्रकारी होती रही, अन्य जगहों पर भी चित्र बनते रहे।
भारतीय जनजीवन के विषयों पर चित्र निर्माण कम्पनी शैली के चित्रकारों ने भारतीय लोगों के जीवन के विभिन्न विषयों को चित्रित किया। उन्होंने बड़ी संख्या में दृश्य चित्र बनाए। चित्रकारों ने विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते हुए नदी, जंगल तथा समुद्र आदि के दृश्यों का चित्रण किया।
विभिन्न प्रदेशों के लोकजीवन का चित्रण-औपनिवेशिक काल में भारत आने वाले अंग्रेजों में यहाँ के रंगों से भरी जीवनशैली, पोशाक, आभूषण, उत्सव और त्यौहार आदि के प्रति जिज्ञासा के साथ ही विशेष आकर्षण था। भारत के विशाल भू-भाग के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले लोगों की जिंदगी की विविधता ने कम्पनी चित्रकारों को प्रभावित किया।
चित्रकारों ने विविध उत्सवों, जुलूस, शोभायात्राओं, मेलों आदि के चित्रों की रचना की। अंग्रेज चित्रकारों तथा भारतीय चित्रकारों के चित्रों में अधिक अन्तर नहीं होता था।
पुरातात्विक स्थलों की चित्रकारी-कम्पनी चित्रकारों ने भारत के पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण किया और ऐतिहासिक महत्त्व के चित्र बनाए। ऐतिहासिक स्थलों में अजन्ता, ऐलोरा, एलिफेन्टा, कन्हेरी की गुफाएँ, ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी और कुतुबमीनार आदि के चित्र महत्त्वपूर्ण हैं।
चित्र : गुलाम अली खान वेश्याओं का समूह, कम्पनी शैली 1800-1825
वेशभूषा एवं आभूषणों के चित्र-भारत के विविध प्रांतों के निवासियों की विविधता से भरी जीवनशैली और विभिन्न रंगों की पोशाकों व आभूषणों से सुसज्जित स्त्री-पुरुषों, बच्चों और बूढ़ों आदि को यूरोपियन चित्रकारों ने अपने चित्रों में प्रस्तुत किया।
विभिन्न व्यवसायों के चित्र-कम्पनी शैली के चित्रकारों ने किसान, लोहार, बुनकर, सुनार, नौकर, दरबान, रसोइया, मिठाईवाला, फेरीवाला और मदारी आदि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हुए लोगों का चित्र निर्माण किया।
व्यक्ति चित्रों का निर्माण कम्पनी शैली में बहुत अधिक संख्या में राजा, नवाब, कम्पनी के शासक, अधिकारी तथा अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों के व्यक्ति चित्र बनाए गए।
वनस्पति चित्रण-कम्पनी शैली में हजारों की संख्या में पेड़-पौधे, लता और फल-फूल आदि का चित्रण किया गया।
पश-पक्षी तथा कीट-पतंगों का चित्रण-भारत के रंगीन पक्षी, कीट-पतंग तथा विचित्र जानवरों के चित्र बड़ी संख्या में चित्रकारों ने जल रंग, एन्ग्रेविंग तथा लिथोग्राफ के प्रयोग द्वारा बनाए।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि कम्पनी शैली में विभिन्न विषयों के चित्र बनाए गए। चित्रकला के विभिन्न माध्यमों जल रंग, तैल रंग, माइका पेंटिंग, एन्ग्रेविंग और लिथोग्राफ आदि का विकास एक साथ हुआ।
प्रश्न 2.
राजा रवि वर्मा का भारतीय कला को क्या योगदान दिया? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजा रवि वर्मा का भारतीय कला को योगदान
प्रारम्भिक जीवन-राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 ई. को केरल के एक गाँव किलिमन्नर में हुआ था। बाल्यकाल से ही इनकी रुचि केवल चित्रकला में ही थी। उन्हें दरबारी चित्रकार अलागिरी नायडू से कला प्रशिक्षण मिला। रवि वर्मा ने ब्रिटिश चित्रकार लियोडोर जैनसन से तैल चित्रण तकनीक को आत्मसात् कर लिया तथा त्रिवेन्द्रम के राज्याश्रय में ही कला का विकास किया। उन्होंने सर्वप्रथम शाही परिवार के सदस्यों के चित्र बनाये।
राजा रवि वर्मा का कला जीवन-अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त राजा रवि वर्मा ने आधुनिक कला का सूत्रपात किया, परन्तु उन्होंने विदेशी कला के अनुकरण के साथ ही विदेशी तकनीक को अपनाया। उन्होंने यूरोपियन स्टूडियोज की शैली को अपनाते हुए भारतीय गाथाओं की अभिव्यक्ति पश्चिमी शैली में की। हिन्दू महाकाव्यों तथा आख्यानों के चित्र इनकी विशेष पहचान थे। इन्होंने भारतीय पौराणिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर अनेकानेक चित्र बनाए। इनके चित्रों में समुद्र का मान मर्दन करते हुए राम, भीष्म प्रतिज्ञा, रावण और जटायु, साधु और मेनका, भिखारी, वामन अवतार आदि प्रसिद्ध हैं।
राजा रवि वर्मा ने मृतप्रायः भारतीय कला का पुनरुद्धार कर उसे एक नई दृष्टि प्रदान की। उनके चित्रों की माँग बहुत अधिक बढ़ गई थी। अतः सन् 1894 ई. में उन्होंने बोम्बे में अपनी स्वयं की लिथोग्राफिक प्रेस खोलकर अपने चित्रों की प्रतिकृतियाँ छपवाईं। परिणामतः उनके चित्र घर-घर तक फैल गए।
राजा रवि वर्मा की रंग योजना-वे प्रथम भारतीय थे जिसने कि अंग्रेजों की प्रचलित तकनीक तैल चित्रण को अपनाया था। उनके चित्रों की रंग-योजना बड़ी मनोहारी होती थी, जो कि मन में गम्भीर भाव जगाती थी। उन्होंने गहरे लाल, नीले, हरे, पीले, सुनहरे व जामुनी मूल रंगों का प्रयोग करके अपने परम्परागत लालित्य को सुन्दर रूपाकारों में ढाला तथा यथार्थ छवियों की सी मांसलता प्रदान की। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजा रवि वर्मा की रंग-योजना बड़ी ही आकर्षक होती थी।
राजा रवि वर्मा के चित्रों के प्रमुख विषय-राजा रवि वर्मा ने भारतीय गाथाओं (पौराणिक, धार्मिक व महाकाव्यों) की अभिव्यक्ति पश्चिमी शैली में की। उन्होंने अनेक विषयों के चित्र बनाए। उनके विषयों में राजामहाराजाओं के पोर्टेट चित्रों की अधिकता रही। साथ ही उनके चित्रों में नारी चित्रण भी अधिकता से हुआ है।
राजा रवि वर्मा ने अपनी कला साधना जारी रखी। 'शकुन्तला का दुष्यन्त के नाम पत्र लेखन' उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है। सन् 1901 में राजा रवि वर्मा उदयपुर दरबार के निमंत्रण पर वहाँ गए। वहाँ उन्होंने अनेक चित्र बनाए, जिनमें 'महाराणा प्रताप' का व्यक्ति-चित्र अतिसुन्दर है।
चित्र : राजा रवि वर्मा-दूत के रूप में कृष्ण, 1906
प्रसिद्धि एवं सम्मान-राजा रवि वर्मा ने चित्रों का निर्माण बड़े ही आत्मलग्न से किया। अतः उन्हें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित भी किया गया। सन् 1873 में उनकी कृति 'बालों को चमेली के हार से गूंथती हुई महिला' पर उन्हें तत्कालीन गवर्नर का स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। इसी कृति ने वियना की अन्तर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में योग्यता प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया। इसके बाद उन्हें सन् 1880 ई. में पुणे प्रदर्शनी का गायकवाड़ स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। सन् 1904 ई. में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें केसर-ए-हिन्द पुरस्कार प्रदान किया।
2 अक्टूबर, 1906 को राजा रवि वर्मा का देहान्त हो गया। चित्रकला के एक नए स्कूल के संस्थापक के रूप में भारत के श्रेष्ठ कलाकारों में उनका नाम सदैव सम्मान से लिया जाएगा।
प्रश्न 3.
बंगाल शैली का उद्भव एवं विकास किस प्रकार हुआ? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बंगाल शैली का उद्भव एवं विकास
बंगाल शैली का उद्भव एवं विकास निम्न प्रकार से हुआ-
1. सन् 1884 ई. में ई.बी. हैवेल मद्रास कला विद्यालय के प्रधानाचार्य बने। भारत में कांग्रेस की स्थापना होने से कला जागृति की कुछ लहर आई। हैवेल ने भी अपना योगदान दिया। उन्होंने समस्त संसार का ध्यान भारत की प्राचीन कला की ओर आकर्षित करते हुए कहा कि 'यूरोपीय कलाएँ तो केवल सांसारिक वस्तुओं का ज्ञान कराती हैं परन्तु भारतीय कला सर्वव्यापी अमर तथा अपार है।"
कुछ समय के पश्चात् ई.बी. हैवेल कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल बने। यहाँ उनके सम्पर्क में अबनिन्द्रनाथ टैगोर आए, जिन्होंने आगे चलकर बंगाल शैली अथवा स्वदेशी शैली का सूत्रपात किया।
2. अबनिन्द्रनाथ टैगोर की कला पर पश्चिमी, ईरानी, चीनी, जापानी, मुगल तथा अजन्ता का प्रभाव था। इन सब शैलियों के समन्वय से इन्होंने एक नवीन शैली का सूत्रपात किया जिसे बंगाल शैली कहा गया। अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने कई होनहार शिष्य तैयार किए, जिन्होंने देश के विभिन्न भागों में कार्य करते हुए बंगाल शैली व स्वदेशी कला
चित्र : नंदलाल बोस-ढाकी, हरिपुरा पोस्टर, 1937
का प्रचार किया। इन शिष्यों में नंदलाल बोस, क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार, गगनेन्द्रनाथ टैगोर व जैमिनी रॉय प्रमुख थे। व्यक्तिगत विशेषताएँ होते हुए भी सब पर अबनिन्द्रनाथ टैगोर का काफी प्रभाव था।
3. बंगाल शैली का आरम्भ एक आंदोलन के रूप में हुआ। प्रारम्भ में इसका सर्वत्र विरोध भी हुआ किन्तु आंदोलन में भाग लेने वाले कलाकार तथा कला आलोचक दृढ़ता से अपने मार्ग पर बढ़ते रहे और अन्त में देशभर में अपना प्रभाव फैलाने में सफल रहे । भारत के बाहर भी इनके चित्रों की प्रदर्शनियाँ आयोजित की गईं।
4. भारतीय स्वदेशी काल के इस आंदोलन के वास्तविक महत्त्व व स्वरूप को जनता को समझाने में ई.बी. हैवेल, अबनिन्द्रनाथ टैगोर एवं उनके शिष्यों के प्रयत्न सराहनीय रहे। इस आंदोलन से भारतीयों में राष्ट्रीय शैली का प्रचार बढ़ा।
5. शांतिनिकेतन में कला भवन की स्थापना की गई। जहाँ चित्रकला विभाग की अध्यक्षता हेतु कवि और दार्शनिक रविन्द्रनाथ टैगोर ने नंदलाल बोस को आमंत्रित किया। यहाँ राष्ट्रीय कला की भाषा पर ध्यान दिया गया तथा नई तकनीक वॉश पद्धति को तैल चित्रण के विकल्प के तौर पर अपनाया गया।
कला भवन ने कई युवा कलाकारों को राष्ट्रवादी दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार यह कई कलाकारों के लिए एक प्रशिक्षण मैदान बन गया।
बंगाल शैली की प्रमुख विशेषताएँ
बंगाल शैली की प्रमुख कलागत विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
1. यह शैली सरल एवं सुस्पष्ट है।
2. इस शैली में रेखांकन के महत्त्व को पुनः प्रतिष्ठित किया गया।
3. इस शैली में भड़कीले छाया प्रकाश के बजाय शांत रंग योजना का सहारा लिया गया है।
चित्र : के. वेंकटप्पा-राम का विवाह, 1914
4. रहस्यात्मक वातावरण वॉश तकनीक के आधार पर बनाने की विशेष चित्रण परम्परा का प्रयोग हुआ।
5. इस शैली में छाया-प्रकाश का नाटकीय प्रभाव उत्पन्न करने का नन्दतिक प्रयास किया गया।
6. इस शैली के चित्रों में वास्तु व प्रकृति के प्रखर आलंकारिक रूप का अभाव रहा है।
7. इस शैली में प्रायः चित्र में एक निश्चित दृश्य को सरल तल-व्यवस्था के आधार पर दर्शाने का अधिक प्रयत्न किया गया।
8. इस शैली में विदेशी कागज व जल रंगों का प्रयोग हुआ।
9. विषयवस्तु के सन्दर्भ में इस शैली में पौराणिक कथाएँ, सामाजिक जनजीवन व ऐतिहासिक प्रेमगाथाएँ आदि विषय अधिक चित्रित हुए।
10. लघु चित्रों एवं आम जनजीवन चित्रण को विषय के तौर पर लिया गया।
प्रश्न 4.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर का भारतीय स्वदेशी कला को क्या योगदान प्राप्त हुआ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर का भारतीय स्वदेशी कला को योगदान
प्रारम्भिक जीवन-अबनिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 अगस्त, 1871 ई. को कलकत्ता के जोरासांको में टैगोर परिवार में हुआ। वे रिश्ते में रविन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। आरम्भिक विद्यालयी जीवन के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं के साथ संगीत की शिक्षा ग्रहण की।
अबनिन्द्रनाथ टैगोर भारतीय एवं पाश्चात्य कला की ऐसी कड़ी थे, जिन्होंने भारतीय कला को विदेशी दासता से मुक्त करा, एक नवीन मार्ग प्रदान किया। उन्होंने देश की कला-चेतना को पुनः जागृत कर एक नवीन युग का सूत्रपात किया।
यूरोपीय शैली में चित्रकारी-अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने पिता और दादा के दिशा निर्देशन में चित्रकारी करनी शुरू की। उन्होंने इटालियन कलाकार 'गिलहार्डी' व ब्रिटिश कलाकार 'पामर' से कला शिक्षा ग्रहण की एवं यूरोपीय शैली के चित्र बनाए। उन्होंने लगभग 1895 ई. तक इसी शैली में कार्य किया।
पश्चिमी व भारतीय शैली के समन्वय में चित्रकारी-1895 से 1900 ई. तक के काल में उन्होंने मिश्रित चित्रकारी की। इस अवधि में उनके चित्र यूरोपीय व भारतीय शैली के सम्मिलन को दर्शाते हैं।
पूर्णतः भारतीय (स्वदेशी) शैली में चित्रकारी-सन् 1898 में अबनिन्द्रनाथ टैगोर को गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्टस, कलकत्ता का उपाचार्य नियुक्त किया गया। यहाँ ई.बी. हैवेल के निर्देशन में उन्होंने मुगल व राजस्थानी चित्रकला का अध्ययन किया और अनेक चित्र भी बनाए। अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय पौराणिक व संस्कृत साहित्य को भी अपने चित्रों का विषय बनाया। उन्होंने अपने चित्रों में अजन्ता भित्ति चित्रों की हस्त व अंग मुद्राओं व प्रभावशाली रेखांकन, मुगल, पहाड़ी शैलियों की सौम्य रंग-योजना व स्थापत्य का कुशल प्रयोग भी किया।
वॉश तकनीक की शुरुआत-सन् 1901-02 के लगभग अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने जापानी कलाकार 'योकोहामा ताइकान' व 'हिसिदा' से वॉश तकनीक का अध्ययन किया। इस तकनीक को सीखने के पश्चात् उन्होंने अनेक प्रयोगों द्वारा वॉश तकनीक से कई विषयों पर चित्र बनाए। इस प्रकार स्वदेशी-विदेशी कला-सामंजस्य द्वारा एक नवीन वाश तकनीक की शुरुआत की। इसी क्रम में 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन के विरुद्ध आरम्भ हुए आंदोलन से प्रेरित होकर एक उत्कृष्ट चित्र बनाया, जिसका शीर्षक 'भारत माता' रखा।
इंडियन सोसायटी ऑफ ओरियंटल आर्ट की स्थापना-सन् 1907 ई. में अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने भाई गगनेन्द्रनाथ के साथ मिलकर 'इंडियन सोसायटी ऑफ ओरियंटल आर्ट' की स्थापना की। जिसके द्वारा पूर्वी कला मूल्यों एवं आधुनिक भारतीय कला में नवीन चेतना जागृत हुई। इसके कार्यक्रमों में तत्कालीन भारतीय कलाकारों के चित्रों के साथ-साथ जापानी कलाकारों की कृतियों की भी प्रदर्शनियाँ हुईं।
बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न-अबनिन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न एवं भारतीय स्वदेशी कला के पोषक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने शिल्पायन, भारतीय शिल्प व भारतीय षडांग आदि कला विषयक पुस्तकें भी लिखीं। इस प्रकार, वे एक अच्छे कलाकार होने के साथ-साथ एक आदर्श शिक्षक, कला समालोचक, साहित्यकार, रंगमंच अभिनेता, संगीतकार, शिल्पी आदि विविध प्रतिभाओं से युक्त थे।
5 सितम्बर, 1951 को उनका देहान्त हो गया। भारतीय चित्रकला के पुनः उत्थान में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
प्रश्न 5.
भारतीय स्वदेशी कला के इतिहास में ई.बी. हैवेल का सम्माननीय स्थान है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय स्वदेशी कला के इतिहास में ई.बी. हैवेल का स्थान
भारत में प्रारम्भिक जीवन-ई.बी. हैवेल 1884 में मद्रास कला महाविद्यालय के प्रिंसिपल नियुक्त किये गये तथा 1896 में वे कलकत्ता कला महाविद्यालय के प्रिंसिपल बनाए गए। वे एक यूरोपीय होते हुए भी भारतीय कला परम्परा के प्रबल समर्थक थे। उन्हीं के सहयोग से भारत में एक नवीन कला आंदोलन का सूत्रपात हुआ। उन्होंने बंगाल स्कूल के विद्यार्थियों को केवल विदेशी शैली में कला सीखने-सिखाने को गलत बताया अपितु भारतीय जीवन और आदर्श से परिपूर्ण अजन्ता शैली, राजपूत शैली तथा मुगल शैली को आधार मानकर कलाभिव्यक्ति करने की सलाह दी।
भारतीय कला-परम्परा की श्रेष्ठता का समर्थन-ई.बी. हैवेल ने भारतीय कला परम्परा की श्रेष्ठता का हृदय से समर्थन किया। उनके अनुसार भारतीय कला आत्मा के अत्यधिक निकट है और इससे स्थूल जगत् की अपेक्षा शाश्वत सत्यता का प्रदर्शन होता है जबकि पाश्चात्य कला इसके विपरीत भौतिकता के अधिक निकट है, इसमें आध्यात्मिकता की कमी है।
हैवेल ने भारतीय कला के अनेक पक्षों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर भारतीय कला के गौरव को बढ़ाया।
भारतीय कला के सन्दर्भ में वक्तव्य-ई.बी. हैवेल ने भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला एवं चित्रकला के तकनीकी पक्षों, प्रतीकों, निर्माण प्रक्रिया एवं रचना पद्धति पर विस्तार से अपने विचारों को प्रकट किया।
भारतीय कला की समीक्षा-ई.बी. हैवेल ने भारतीय लघुचित्रों, प्राचीन मूर्तिशिल्पों तथा अन्य कलाकृतियों की समालोचना करते हुए अपनी मौलिक कल्पना एवं विवेचना शक्ति का प्रयोग किया और उसे नये रूपों, नई भाषा से समृद्ध किया। उन्होंने कला-समीक्षा को भी नए आयाम दिए, जिससे वे दर्शकों एवं पाठकों के सामने उसका महत्त्व दर्शा सके।
लघुचित्र बनाने की विधि की व्याख्या-हैवेल ने अपनी पुस्तक में मुगल शैली के सन्दर्भ में लघुचित्र बनाने की विधि एवं उपयोग में लिए गए कागजों आदि की विस्तृत व्याख्या की। यह वर्तमान में कला शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं विद्वानों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
पश्चिमी कला के प्रभाव को त्यागने का आह्वान-ई.बी. हैवेल ने स्वयं अंग्रेज होने के बावजूद भारतीय छात्रों को पश्चिमी कला के प्रभाव का त्याग करने को कहा। उन्होंने कहा कि "अपने अतीत को देखो और चित्र बनाओ"। इस प्रकार उन्होंने भारतीय छात्रों को उनके स्वयं के संस्कृति के गुणों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 6.
अब्दुल रहमान चुगताई का भारतीय कला के विकास में क्या योगदान रहा? मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
अब्दुल रहमान चुगताई का भारतीय कला के विकास में योगदान
आधुनिक भारतीय कला के विकास में अब्दुल रहमान चुगताई का योगदान निम्न रहा है-
निष्कर्षतः कह सकते हैं कि चुगताई ने विभिन्न कला शैलियों का समन्वित प्रयोग करके आधुनिक भारतीय कला को वैश्विक कला के स्तर पर पहुँचाया है। रंग-योजना, रंग-संयोजन, रेखाओं की लयात्मकता एवं गत्यात्मकता आधुनिक कला को चुगताई की अपूर्व देन है।
प्रश्न 7.
नंदलाल बोस का आधुनिक भारतीय कला के विकास में क्या योगदान रहा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नंदलाल बोस का आधुनिक भारतीय कला के विकास में योगदान
नंदलाल बोस का आधुनिक भारतीय कला के विकास में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है-
1. परिचय-नंदलाल बोस का जन्म 3 सितम्बर, 1883 ई. को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ। कला में रुचि के कारण इन्होंने कलकत्ता के स्कूल ऑफ आर्ट में अबनिन्द्रनाथ टैगोर से शिक्षा प्राप्त की।
2. चित्रित विषय-नंदलाल बोस ने अजन्ता, बाघ गुफाओं के भित्ति-चित्रों की प्रतिलिपियाँ एवं अपने चित्रों में भी उनसे प्रेरणा ग्रहण की। रेखा, भाव, आकार आदि में उनकी शैली अजन्ता से निकट सम्बन्ध रखती है।
संजीव पास बुक्स इनके चित्रों के विषय हिन्दू पौराणिक व धार्मिक कथाएँ, बुद्ध जीवन की घटनाएँ आदि रही हैं।
3. भारतीय चित्रकला में योगदान-नंदलाल बोस ने शिल्पकला एवं रूपावली नामक पुस्तक लिखी जिनमें अपने कला सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किए।
उनके चित्रों को बंगाल शैली का प्रतिनिधि चित्र कहा जाता है। इनमें हल्की कोमल लयात्मक रेखाएँ अंकित हुई हैं। रेखाएँ, आकृति, मुद्रा एवं आँख, कान, नाक आदि अजन्ता के प्रभाव को प्रस्तुत करते हैं। इन्होंने वॉश तकनीक द्वारा एक वर्णीय रंग योजना का प्रयोग किया है।
इन्होंने लोक शैली का आधार लेते हुए स्वतंत्र, सहज व सशक्त आकारों में एक चित्र श्रृंखला तैयार की जिसमें भारतीय लोकजीवन की झाँकियाँ तेज, तीखे, आकर्षक रंगों एवं सशक्त रेखाओं में प्रदर्शित कीं।
4. नंदलाल बोस के चित्रों की विशेषता-नंदलाल बोस ने जिन कृतियों का निर्माण किया, उनमें असाधारण रेखांकन दिखाई पड़ता है। उनके चित्रों में रेखाएँ ही आकृति का प्राण बन गई हैं। उन्होंने विषय एवं तकनीक की दृष्टि से भारतीय परम्परा की सीमा में बँधकर ही अपने प्रयोग किए।
इन्होंने चित्रों में सरलता, स्पष्टता व स्वाभाविकता पर बल दिया तथा कोमल और गतिपूर्ण रेखांकन का विकास किया। रंग योजना में भी कोमलता और सामंजस्य को विकसित किया।
प्रश्न 8.
भारतीय चित्रकारों का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भारतीय चित्रकारों का योगदान
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भारतीय चित्रकारों के योगदान का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
1. ई.बी. हैवेल का योगदान-प्रसिद्ध कला समीक्षक ई.बी. हैवेल ने अपने लेखों द्वारा भारतीय कला एवं संस्कृति पर प्रकाश डाला और कलाकारों को भारतीय कला के प्रति जागृत किया।
2. आनन्द कुमार स्वामी तथा अन्य चित्रकारों द्वारा प्राचीन भारतीय कला के गौरव पर प्रकाश डालना1913 में ए.के. स्वामी की पुस्तक 'आर्ट एण्ड स्वदेशी', अरविन्द घोष की पुस्तक 'नेशनल वेल्यू ऑफ आर्ट' तथा रविन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तक 'गीतांजलि' ने कला एवं साहित्य के क्षेत्र में स्वदेशी की भावना को प्रोत्साहित किया और बंगाल शैली की उपयोगिता प्रतिपादित की।
3. बंगाल शैली के कलाकारों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को बढ़ावा देना-'बंगाल शैली' के कलाकारों ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और अन्य लोगों को भी इस आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। रविन्द्रनाथ टैगोर, गगनेन्द्रनाथ ठाकुर, अबनिन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बसु और क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार इस परम्परा के आचार्य माने जाते हैं। उन्होंने अपनी कलाकृतियों के माध्यम से देशवासियों में राष्ट्रीय भावना का प्रसार किया।
4. कलाकारों द्वारा भारतीय संस्कृति के तत्वों का अपनी कला में समावेश करना-कुछ चित्रकार ऐसे भी हैं जिन्होंने 'बंगाल स्कूल' के साथ-साथ अपने देश की संस्कृति के तत्त्वों का अपनी कला में समावेश किया और एक नई परम्परा का सूत्रपात किया। इन चित्रकारों में जैमिनी राय एवं अमृता शेरगिल के नाम प्रमुख हैं।
5. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद चित्रकारों का प्रादुर्भाव-बंगाल स्कूल से सम्बन्धित कुछ चित्रकार ऐसे भी थे, जिनका प्रादुर्भाव स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हुआ। भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् चित्रकला के क्षेत्र में स्वतन्त्र चिन्तन और राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ।
6. चित्रकारों द्वारा राष्ट्रीय भावना का प्रसार-नन्दलाल बसु, गाँधीजी से बड़े प्रभावित थे। उन्होंने 'असहयोग आन्दोलन' एवं 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' में भाग लिया। स्वतन्त्रता-आन्दोलन के नेताओं के साथ बसु के अच्छे सम्बन्ध थे। उन्होंने राष्ट्रीय प्रेम को ही अपनी कला-साधना का मुख्य विषय बनाये रखा।
7. चित्रकारों द्वारा राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत होकर चित्रांकन करना-अबनिन्द्रनाथ ठाकुर ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत होकर 'भारत माता' तथा 'स्वतन्त्रता का स्वप्न' नामक चित्र बनाए। नन्दलाल बसु ने गाँधीजी की 'दाण्डी यात्रा' नामक प्रसिद्ध चित्र बनाया। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। उनकी कृतियों में अहिंसा, राष्ट्रप्रेम और धार्मिकता की सुन्दर अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित चित्रों का परिचय दीजिए1. समुद्र का मान मर्दन करते हुए राम, तथा 2. यात्रा का अन्त।
उत्तर:
1. समद्र का मान मर्दन करते हए राम
इस चित्र का निर्माण भारत के प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा ने किया था। राजा रवि वर्मा के पौराणिक कथाओं के चित्रों में भारतीय रंग-योजना (छाया-प्रकाश) एवं संयोजन अति प्रभावशाली है, जिसे भारतीय जनता ने बहुत पसन्द किया था।
यह चित्र 'रामायण' की कथा का एक अंश दर्शाता है । तैल रंग में बनाए गए इस चित्र में लंका पर आक्रमण करने को आतुर श्री राम अपने धनुष-बाण से समुद्र को सुखाने की तैयारी में हैं। चित्र में क्रुद्ध एवं गम्भीर राम पाठ सिखाने की मुद्रा में दर्शाये गए हैं। चित्र की पृष्ठभूमि में समुद्र देवता प्रगट होकर राम से क्षमा-याचना करते हुए दिखाई दे रहे हैं । ऊँची-ऊँची समुद्री लहरें व छाया-प्रकाश इस चित्र में दर्शनीय हैं । चित्र में गतिशीलता के साथ ही पश्चिमी प्रभाव भी स्पष्ट है।
चित्र : राजा रवि वर्मा-समुद्र का मान मर्दन करते हुए राम
2. 'यात्रा का अन्त'
प्रस्तुत चित्र प्रसिद्ध चित्रकार अबनिन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा बनाया गया है। यह चित्र वाश पद्धति में बनाया गया है। इस चित्र में अबनिन्द्रनाथ ठाकुर की चित्रांकन पद्धति की हर विशेषता स्पष्ट होती है। चित्र में प्रकाश की कोमलता एक रहस्यमय वातावरण की अभिव्यक्ति करती है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु के पश्चात् अवसाद में आए अबनिन्द्रनाथ ठाकुर ने दुःखी मन से भारी बोझ से लदे हुए ऊँट के मनोभावों को व्यक्त करते हुए 'यात्रा का अन्त' नामक शीर्षक चित्र का निर्माण किया।
इस चित्र में ऊँट असहनीय बोझ से लदा हुआ है, जिससे घायल होकर वह जीवन की अन्तिम यात्रा के मोड पर आ गया है। थकान की चरम सीमा उसकी असहनीय पीड़ा को दर्शा रही है। ऊँट के घुटने जमीन पर टिक गए हैं। वहीं गर्दन को भी टूटी हुई-सी स्थिति के अनुसार घायलावस्था में चित्रांकित किया गया है। वेदना की पीड़ा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। ऊँट अपना मुँह मृत्यु-कष्ट के भय से ऊपर उठाए हुए है। यह चित्र अबनिन्द्रनाथ ठाकुर के अवसाद को अभिव्यक्त कर रहा है, जिसमें मार्मिकता के भाव दिखाई देते हैं।
चित्र : अबनिन्द्रनाथ टैगोर-यात्रा का अंत, 1913
प्रश्न 10.
अब्दुल रहमान चुगताई द्वारा चित्रित 'राधिका' चित्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
'राधिका' प्रस्तुत चित्र प्रसिद्ध चित्रकार मो. अब्दुर्रहमान चुगताई के द्वारा बनाया गया है। अब्दुर्रहमान चुगताई भारत में शृंगारपरक पारम्परिक चित्रकला के दक्ष कलाकार थे। उन पर ईरानी कला का प्रभाव देखा जा सकता है। आगे चलकर उन्होंने इस शैली में अपने व्यक्तिगत अनुभवों का प्रयोग करके परिष्कार किया तथा प्रशंसनीय चित्र बनाए। रंगों के मधुर प्रयोग, रेखाओं की गतिशीलता तथा शृंगारपरक उपादानों के विवरण से उन्होंने अपने चित्रों को सुसज्जित किया।
चित्र : अब्दुल रहमान चुगताई-राधिका
'राधिका' अब्दुर्रहमान चुगताई की प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक है। इस चित्र में दीपक का प्रकाश चारों ओर फैला हुआ है। सम्भवतः यह चित्र रात्रिकालीन लगता है, जिसमें नायिका (राधा) लज्जा के भाव लिए कृष्ण से मिलने के लिए जा रही है। चित्र में प्रकाश की कोमलता एवं रहस्यमय वातावरण को दर्शाया गया है। चित्र में राधा को सहज रूप में सुन्दर भाव-भंगिमा से युक्त चित्रित किया गया है। राधा एक हाथ में कमल पुष्प को लिए हुए है तथा दूसरा हाथ झुके हुए सिर की ठोढ़ी के पास लगा हुआ चित्रित है, जो उसके लज्जा भाव को उत्कृष्टता प्रदान करता है। राधा की रूपाकृति को स्वाभाविक तथा बहुत ही कोमल दर्शाया गया है। एक ओर लज्जा के भाव हैं, वहीं कृष्ण के मिलन की भावनाओं से प्रसन्न होकर मुखमण्डल पर मधुर मुस्कान दिखाई गई है। हाथ-पैरों की मुद्रा में लचीलापन दिखाया गया है।
प्रश्न 11.
जैमिनी रॉय द्वारा चित्रित 'माँ और बच्चा' चित्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह जैमिनी रॉय द्वारा 1940 में बनाई गई ग्वाश (gouache) पेंटिंग है जो कि पेपर पर बनाई गई है। इस चित्रकारी में माँ और उसके बच्चे को ब्रश के द्वारा सरलीकरण और मोटी रेखाओं के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। रंगीन पृष्ठभूमि में हल्के पीले एवं ईंट लाल रंग का प्रयोग है जो बांकुरा में उनके गृह गाँव की टेराकोटा नक्काशी का उदाहरण है। चित्र की द्वि-आयामी प्रकृति पटचित्रकला से ली गई है। चित्र में सादगी व शुद्धता दोनों ही दिखाई देती हैं। उन्होंने ड्राइंग को आउटलाइन करने के लिए लैम्प काले रंग का इस्तेमाल किया।
चित्र : जैमिनी रॉय-माँ और बच्चा, 1940
प्रश्न 12.
क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार द्वारा चित्रित 'रास-लीला' चित्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार द्वारा बनाई गई श्रीकृष्ण के जीवन को चित्रित करने वाली वॉश तकनीक से बनी हुई वॉटर कलर पेंटिंग है । इस चित्र में कृष्ण, राधा तथा सखियाँ नृत्य कर रहे हैं। चित्र में पेड़ों की पृष्ठभूमि एक साधारण गाँव का वातावरण व्यक्त करती है जैसा कि भागवत पुराण तथा गीत-गोविन्द में प्रस्तुत किया गया है। आकृतियाँ और उनके वस्त्र साधारण एवं नाजुक रेखाओं से बनाए जाते हैं। पात्रों के उदात्त व्यवहार को अच्छी तरह से चित्रित किया गया है। कृष्ण और गोपियाँ समान अनुपात में चित्रित की गई हैं। इस प्रकार भगवान तथा मनुष्य में स्तरीय समानता का विवरण दिया गया है।
चित्र : क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार-रास-लीला
प्रश्न 13.
गगनेन्द्रनाथ टैगोर द्वारा चित्रित 'रात्रि में शहर' चित्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह गगनेन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1922 में बनाई गई एक वॉटर कलर पेंटिंग है। उन्होंने अपने काल्पनिक शहरों जैसे द्वारका (भगवान श्री कृष्ण का पौराणिक निवास या स्वर्णपुरी) की रहस्यमयी दुनिया को कई दृष्टिकोणों, बहुआयामी आकृतियों और नुकीले किनारों वाले घनचित्रण (Cubism) में चित्रित किया। उन्होंने हीरे के आकार के सतहों और प्रिज्मीय रंगों की अन्तक्रिया को चित्रित किया। इसके परिणामस्वरूप शहर की पर्वत श्रृंखलाओं को प्रस्तुत करने के लिए खण्डित चमक उत्पन्न हुई। इस चित्र में रहस्यमय तरीके से कृत्रिम रोशनी जगमगाती है, जो थियेटर की विशेषताओं में से एक है। चित्रकार ने मंच के सामान, विभाजित स्क्रीन, कृत्रिम स्टेज लाइटिंग गा. कई सन्दर्भ भी लिए हैं। एक जादू की दुनिया को मनमोहक बनाने के लिए अंतहीन गलियारे, खम्भे, आधे खुले, हॉल, रोशनी वाली खिड़कियाँ, सीढ़ियाँ आदि सभी को एक ही सतह पर चित्रित किया है।
चित्र : गगनेन्द्रनाथ टैगोर-'रात्रि में शहर'