Rajasthan Board RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 5 पहाड़ी चित्र शैली Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
पहाड़ी शैली का प्रारम्भ कहाँ से हुआ था?
(अ) बसोहली से
(ब) गुलेर से
(स) मण्डी से
(द) नूरपुर से
उत्तर:
(अ) बसोहली से
प्रश्न 2.
किस शताब्दी के मध्य से पूर्व काँगड़ा शैली, काँगड़ा शैली में परिवर्तित हो गई?
(अ) 17वीं शताब्दी
(ब) 18वीं शताब्दी
(स) 16वीं शताब्दी
(द) 19वीं शताब्दी
उत्तर:
(ब) 18वीं शताब्दी
प्रश्न 3.
किसको पहाड़ी चित्रकला की विद्वता के लिए जाना जाता है ?
(अ) भानुदत्ता
(ब) गोवर्धन चंद
(स) बिशनसिंह
(द) गोस्वामी को
उत्तर:
(द) गोस्वामी को
प्रश्न 4.
1678 से 1695 तक किसने बसोहली पर शासन किया?
(अ) राजकुमार कृपाल पाल
(ब) मियां जोरावर सिंह
(स) नैनसुख
(द) बलवंत सिंह
उत्तर:
(अ) राजकुमार कृपाल पाल
प्रश्न 5.
काँगड़ा शैली पर किस चित्रकला शैली का प्रभाव सर्वाधिक पड़ा था?
(अ) मुगल चित्रकला शैली
(ब) बसोहली चित्र शैली
(स) कुल्लू चित्रकला शैली
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मुगल चित्रकला शैली
प्रश्न 6.
किसने कृपाल पाल के लिए एक शानदार श्रृंखला तैयार की थी?
(अ) लक्ष्मण
(ब) संसारचन्द
(स) देविदा
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(स) देविदा
प्रश्न 7.
राजा संसारचन्द किस शैली से सम्बन्धित है ?
(अ) चम्बा
(ब) बसोहली
(स) नूरपुर
(द) काँगड़ा
उत्तर:
(द) काँगड़ा
प्रश्न 8.
पहाडी कला का जन्म कहाँ हआ था?
(अ) मण्डी में
(ब) मनकोट में
(स) जम्मू में
(द) गुलेर में
उत्तर:
(द) गुलेर में
प्रश्न 9.
अठारहवीं शताब्दी की पहली तिमाही में किस पहाड़ी शैली में पूर्ण परिवर्तन देखा गया?
(अ) गुलेर
(ब) काँगड़ा
(स) कोटा
(द) बसोहली
उत्तर:
(द) बसोहली
प्रश्न 10.
पहाड़ी कला का जन्म गुलेर में कब हुआ?
(अ) 1700 ई. में
(ब) 1800 ई. में
(स) लगभग 1760 ई. में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) लगभग 1760 ई. में
प्रश्न 11.
किसकी सर्वश्रेष्ठ रचना गीत-गोविन्द की एक श्रृंखला है?
(अ) संसारचन्द
(ब) मानक
(स) घमण्डचन्द
(द) नैनसुख
उत्तर:
(ब) मानक
प्रश्न 12.
काँगड़ा क्षेत्र में चित्रकला किसके संरक्षण में विकसित हुई?
(अ) राजा संसारचन्द
(ब) रंजीत सिंह
(स) अनिरुद्ध चंद
(द) जहाँगीर
उत्तर:
(अ) राजा संसारचन्द
प्रश्न 13.
पहाड़ी शैलियों में सबसे प्राचीन उप-शैली कौनसी है?
(अ) बसोहली
(ब) कुल्लू
(स) काँगड़ा
(द) गुलेर
उत्तर:
(अ) बसोहली
प्रश्न 14.
टीहरा सुजानपुर कौनसी नदी के तट पर था?
(अ) व्यास
(ब) गंगा
(स) यमुना
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) व्यास
प्रश्न 15.
'राधा की प्रतीक्षा में कृष्ण' नामक चित्र का निर्माण किसने किया था?
(अ) जहाँगीर ने
(ब) बलवंत सिंह ने
(सं) चित्रकार मानकू ने
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(सं) चित्रकार मानकू ने
प्रश्न 16.
कौनसी सदी में बारहमासा पहाड़ियों में एक लोकप्रिय विषय बन गई थी?
(अ) 17वीं
(ब) 19वीं
(स) 16वीं
(द) 18वीं
उत्तर:
(ब) 19वीं
प्रश्न 17.
काँगड़ा शैली कब सामने आई थी?
(अ) 1780 के दशक में
(ब) 1920 में
(स) 1618 में
(द) 1890 में
उत्तर:
(अ) 1780 के दशक में
प्रश्न 18.
काँगड़ा शैली ने कहाँ एक स्थानीय स्कूल की शुरुआत की थी?
(अ) दिल्ली में
(ब) कश्मीर में
(स) राजस्थान में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) कश्मीर में
प्रश्न 19.
केशवदास ने 'कविप्रिया' के कौनसे अध्याय में बारहमासा का वर्णन प्रस्तुत किया है ?
(अ) दूसरे
(ब) चौथे
(स) दसवें
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) दसवें
प्रश्न 20.
मनाकू की सर्वोत्तम कृतियों की श्रृंखला का क्या नाम है ?
(अ) रागमाला
(ब) कविप्रिया
(स) गीत-गोविन्द
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) गीत-गोविन्द
प्रश्न 21.
काँगड़ा चित्र शैली का मुख्य विषय क्या है?
(अ) प्रेम
(ब) घृणा
(स) रंग
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रेम
प्रश्न 22.
पहाड़ी चित्रों में कृष्ण व राधा का चित्रण किस पंथ के अन्तर्गत हुआ था?
(अ) वैष्णव पंथ
(ब) वैदिक पंथ
(स) स्मार्त पंथ
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) वैष्णव पंथ
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. '..................' मूल रूप से 'पहाड़ी' या 'पर्वतीय' को दर्शाता है।
2. 1690 से 1730 के दशक के दौरान चित्र की एक नई शैली प्रचलन में आई जिसे .................. चरण कहा गया है।
3. संस्कृत महाकाव्य '...................' बसोहली और कुल्लू के पहाड़ी कलाकारों के पसंदीदा ग्रन्थों में से एक था।
4. बसोहली में उत्पन्न शैली धीरे-धीरे मनकोट, नूरपुर, कुल्लू, मण्डी, बिलासपुर, ................ गुलेर और ......................... के अन्य पहाड़ी राज्यों में फैल गई।
5. काँगड़ा कलाम चित्रों का एक प्रारम्भिक चरण .......................... में देखा गया है।
6. '...................' सत्रहवीं शताब्दी की अंतिम तिमाही में कुल्लू घाटी में चित्रित एक प्रसिद्ध श्रृंखला है।
उत्तरमाला:
1. पहाड़ी
2. गुलेर-काँगड़ा
3. रामायण
4. चम्बा, काँगड़ा
5. आलमपुर
6. शांगरी रामायण
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
'पहाड़ी' मूल रूप से किसको दर्शाता है?
उत्तर:
'पहाड़ी' मूल रूप से 'पहाड़ी' या 'पर्वतीय' को दर्शाता है।
प्रश्न 2.
चित्रकला की पहाड़ी शैली में पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों में बसे किन्हीं तीन शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
किनके माध्यम से 'पहाड़ी शैली' भारतीय चित्रकला की सबसे उत्तम और परिष्कृत शैली के रूप में विकसित हुई?
उत्तर:
गुलेर या पूर्व काँगड़ा चरण के माध्यम से।
प्रश्न 4.
पहाड़ी शैली का प्रारम्भ कहाँ से हुआ था?
उत्तर:
बसोहली से।
प्रश्न 5.
पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों में बसे सभी शहर विशिष्ट शैलियों के साथ किस रूप में विकसित नहीं होते हैं?
उत्तर:
स्वतंत्र शैलियों के रूप में विकसित नहीं होते हैं।
प्रश्न 6.
काँगड़ा चित्र शैली का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर:
काँगड़ा चित्र शैली का मुख्य विषय प्रेम है।
प्रश्न 7.
बसोहली चित्रों के हाशिये किन रंगों से बने हैं?
उत्तर:
बसोहली चित्रों के हाशिये गहरे लाल तथा गहरे पीले रंगों से बने हैं।
प्रश्न 8.
कौनसी शैली, आमतौर पर सबसे प्राचीन, प्रचलित सचित्र भाषा मानी जाती है?
उत्तर:
बसोहली शैली।
प्रश्न 9.
पहाड़ी चित्र शैली के सबसे महत्त्वपूर्ण चित्रकार कौन हैं?
उत्तर:
बी.एन. गोस्वामी।
प्रश्न 10.
किसी शताब्दी की शुरुआत में, सेउ परिवार और अन्य की शैली बसोहली मुहावरे के अनुसार ही थी?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में।
प्रश्न 11.
अठारहवीं शताब्दी के मध्य में पहाड़ी शैली किसमें परिवर्तित हुई?
उत्तर:
पूर्व काँगड़ा शैली से काँगड़ा शैली में परिवर्तित हो गई।
प्रश्न 12.
काँगड़ा शैली के चित्रों में किन रंगों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर:
लाल, पीले और नीले रंग का।
प्रश्न 13.
कृष्ण व राधा को पहाड़ी चित्रों में किसके प्रतीक रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर:
कृष्ण व राधा को पहाड़ी चित्रों में नायक-नायिका के रूप में आदर्श प्रेमी-प्रेमिका के रूप में चित्रित किया गया है।
प्रश्न 14.
प्रबुद्ध राजकुमार कृपाल पाल ने बसोहली में कब से कब तक शासन किया?
उत्तर:
1678 से 1695 तक।
प्रश्न 15.
बसोहली शैली किसके राज्य में एक विशेष और शानदार शैली के रूप में विकसित हुई थी?
उत्तर:
एक प्रबुद्ध राजकुमार कृपाल पाल के राज्य में।
प्रश्न 16.
बसोहली चित्रकारों का सबसे लोकप्रिय प्रसंग क्या था?
उत्तर:
भानुदत्ता की 'रसमंजरी' थी।
प्रश्न 17.
बसोहली शैली में देवीदा कौन था?
उत्तर:
एक तारखाम (बढ़ई चित्रकार) था।
प्रश्न 18.
बसोहली चित्रकारों के दो लोकप्रिय विषय क्या थे?
उत्तर:
प्रश्न 19.
बसोहली के कलाकार और उनके चित्र धीरे-धीरे कहाँ फैल गए?
उत्तर:
चम्बा और कुल्लू में फैल गए।
प्रश्न 20.
बसोहली शैली में कलाकार किसमें व्यस्त रहे?
उत्तर:
प्रयोगों और आशुरचनाओं में व्यस्त रहे जो अन्त में काँगड़ा शैली में परिवर्तित हो गए।
प्रश्न 21.
रावी नदी के तट पर किस शैली का विकास हुआ?
उत्तर:
रावी नदी के तट पर बसोहली शैली का विकास हुआ।
प्रश्न 22.
बसोहली शैली में पूर्ण परिवर्तन कब देखा गया?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी की पहली तिमाही में।
प्रश्न 23.
गुलेर कलाकार पंडित सेउ के बेटों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 24.
गुलेर शैली, बसोहली शैली की तुलना में कैसी है?
उत्तर:
यह अधिक परिष्कृत, मंद और सुरुचिपूर्ण है।
प्रश्न 25.
किसने गुलेर शैली को सशक्त रूप से आगे बढ़ाया?
उत्तर:
मानक और नैनसुख ने।
प्रश्न 26.
नैनसुख किसके दरबारी चित्रकार थे?
उत्तर:
जसरोटा के राजा बलवंत सिंह के दरबारी चित्रकार थे।
प्रश्न 27.
काँगड़ा शैली के दो मुख्य केन्द्र बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 28.
1730 में गलेर में चित्रित मानक की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है?
उत्तर:
गीत-गोविन्द की एक श्रृंखला है जिसमें बसोहली शैली के कुछ तत्वों को जीवन्त रखा गया है।
प्रश्न 29.
नैनसुख द्वारा चित्रित बलवंत सिंह की तस्वीरें क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
क्योंकि यह संरक्षक के जीवन को प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न 30.
नैनसुख की प्रतिभा का मुख्य भाग क्या था?
उत्तर:
व्यक्तिगत चित्रांकन था।
प्रश्न 31.
गुलेर शैली में किसका समावेश था?
उत्तर:
उनके पैलट में सफेद या भूरे रंग के विस्तार के साथ कोमल पेस्टल रंगों का समावेश था।
प्रश्न 32.
पहाड़ी शैलियों में आरम्भिक शैली कौनसी है ?
उत्तर:
गुलेर शैली।
प्रश्न 33.
काँगड़ा शैली से सम्बन्धित केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 34.
काँगड़ा क्षेत्र में चित्रकला किसके संरक्षण में विकसित हुई?
उत्तर:
राजा संसारचन्द (1775-1823) के संरक्षण में विकसित हुई।
प्रश्न 35.
पहाड़ी शैली के चित्रकारों को प्रेरणा देने वाले दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 36.
जहाँगीर ने किस शताब्दी में काँगड़ा पर विजय प्राप्त की?
उत्तर:
जहाँगीर ने सत्रहवीं शताब्दी में काँगड़ा पर विजय प्राप्त करके उसे अपनी जागीर बना लिया।
प्रश्न 37.
काँगड़ा में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद घमण्डचन्द ने क्या किया?
उत्तर:
घमण्डचन्द ने अधिकांश क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिया और टीहरा सुजानपुर को अपनी राजधानी बनाया।
प्रश्न 38.
टीहरा (Tira) सुजानपुर किस नदी के तट पर था?
उत्तर:
व्यास नदी के तट पर।
प्रश्न 39.
राजा घमंडचन्द ने काँगड़ा में क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर:
प्रश्न 40.
काँगड़ा शैली में सबसे परिपक्व चित्र कहाँ चित्रित किए गए?
उत्तर:
काँगड़ा शैली में सबसे परिपक्व चित्र नादौन में चित्रित किया गया था जहाँ संसारचन्द बाद में स्थानान्तरित हो गये थे।
प्रश्न 41.
काँगड़ा राज्य में चित्रकला कम क्यों की गई?
उत्तर:
क्योंकि यह क्षेत्र 1786 तक मुगलों और बाद में सिखों के अधीन रहा।
प्रश्न 42.
किस राजा के समय काँगड़ा शैली का सर्वाधिक विकास हुआ?
उत्तर:
संसारचन्द।
प्रश्न 43.
काँगड़ा शैली के मुख्य कलाकार कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 44.
काँगड़ा शैली कहाँ तक फैल गई?
उत्तर:
काँगड़ा शैली शीघ्र ही टीहरा सुजानपुर से पूर्व में गढ़वाल और पश्चिम में कश्मीर तक फैल गई।
प्रश्न 45.
किन चित्रों की श्रृंखला काँगड़ा कलाकारों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है?
उत्तर:
भागवत पुराण चित्रों की श्रृंखला काँगड़ा कलाकारों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
प्रश्न 46.
पहाड़ी चित्रों में क्षितिज रेखा का अंकन कहाँ किया गया है?
उत्तर:
पहाड़ी चित्रों में क्षितिज रेखा का अंकन ऊपर की तरफ किया गया है।
प्रश्न 47.
काँगड़ा को छोड़कर अन्य किन्हीं दो पहाड़ी शैलियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 48.
बारहमासा चित्रण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बारहमासा पेंटिंग वर्षभर के बारह मास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह तथा मिलन की क्रियाओं का चित्रण करता है।
प्रश्न 49.
19वीं सदी के दौरान पहाड़ियों में क्या लोकप्रिय विषय था?
उत्तर:
बारहमासा लोकप्रिय विषय था।
प्रश्न 50.
केशवदास की 'कविप्रिया' में बारहमासा का वर्णन कहाँ है?
उत्तर:
केशवदास ने 'कविप्रिया' के दसवें अध्याय में बारहमासा का वर्णन प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 51.
किस राजा का समय काँगड़ा शैली का 'स्वर्ण युग' माना जाता है ?
उत्तर:
राजा संसारचन्द (1775-1823 ई.) का समय काँगड़ा शैली का 'स्वर्ण-युग' माना जाता है।
प्रश्न 52.
चम्बा के शासकों के चित्र बसोहली शैली में कब प्राप्त हुए?
उत्तर:
सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में प्राप्त हुए।
प्रश्न 53.
नैनसुख ने अपना अधिकतर कार्य शासक गुलेर राज्य में किसके लिए किया?
उत्तर:
जोरावर सिंह और उनके पुत्र बलवंत सिंह के लिए किया।
प्रश्न 54.
मण्डी के शासक किसके उपासक थे?
उत्तर-भगवान विष्णु और शिव के उपासक थे।
प्रश्न 55.
'प्रतीक्षावान कृष्ण और हिचकिचाती राधा' चित्र में राधा-कृष्ण में दोनों का कैसा मिलन होता है ?
उत्तर:
रहस्यमयी मिलन होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I (SA-I)
प्रश्न 1.
पहाड़ी चित्रकला शैली में पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों में बसे कौन-कौनसे शहर शामिल हैं ?
उत्तर:
'पहाड़ी' मूल रूप से 'पहाड़ी' या 'पर्वतीय' को दर्शाता है। पहाड़ी चित्रकला शैली में पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों में बसे बसोहली, गुलेर, काँगड़ा, कुल्लू, चम्बा, मनकोट, नूरपुर, मंडी, बिलासपुर, जम्मू और अन्य शहर शामिल हैं जो 17वीं से 19वीं शताब्दी तक चित्रकला के केन्द्र के रूप में उभरे।
प्रश्न 2.
किसके माध्यम से पहाड़ी शैली भारतीय चित्रकला की सबसे उत्तम और परिष्कृत शैली के रूप में विकसित हुई ?
उत्तर:
गुलेर या पूर्व काँगड़ा चरण के माध्यम से, यह भारतीय चित्रकला की सबसे उत्तम और परिष्कृत शैली के रूप में विकसित हुई। इसका प्रारम्भ बसोहली से हुआ था।
प्रश्न 3.
पहाड़ी चित्रकलाएँ चुनौतियों को कैसे दर्शाती हैं ?
उत्तर:
मुगल, दक्कनी और राजस्थानी शैली की विशेष शैलीगत विशेषताओं के विपरीत, पहाड़ी चित्रकलाएँ उनके क्षेत्रीय वर्गीकरण में शामिल चुनौतियों को दर्शाती हैं।
प्रश्न 4.
पहाड़ी चित्रकला में किन-किन विशेषताओं को तैयार किया है ?
उत्तर:
पहाड़ी चित्रकला में (प्रकृति, वास्तुकला, आकृति के प्रकार, चेहरों की विशेषताएँ, वेशभूषा, विशिष्ट रंग आदि) व्यक्तिगत विशेषताओं को तैयार किया है परन्तु ये विशिष्ट शैलियों के साथ स्वतंत्र शैलियों के रूप में विकसित नहीं होते हैं।
प्रश्न 5.
वासक सज्जा नायिका किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
वासक सज्जा नायिका उसे कहते हैं जो नायिका अपने प्रियतम के लिए स्वयं सज-सँवरकर तथा घर बार सँवारकर प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी हो।
प्रश्न 6.
पहाड़ियों में चित्रकला की मुगल और राजस्थानी शैली कैसे जानी जाती थी?
उत्तर:
यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि चित्रकला की मुगल और राजस्थानी शैली, पहाड़ियों में सम्भवतः प्रांतीय मुगल शैली और राजस्थान के शाही दरबार से पहाड़ी राजाओं के पारिवारिक सम्बन्धों के उदाहरण के माध्यम से जानी जाती थी।
प्रश्न 7.
बी.एन. गोस्वामी को पहाड़ी राज्य में क्यों जाना जाता है ?
उत्तर:
गोस्वामी को पहाड़ी चित्रकला और भारतीय लघु चित्रों पर उनकी विद्वता के लिए जाना जाता है। इन्हें बसोहली की सादगीपूर्ण कला को पहाड़ी शैली में परिवर्तन हेतु जाना जाता है।
प्रश्न 8.
बी.एन. गोस्वामी का मुख्य विचार क्या था?
उत्तर:
उनका मुख्य विचार यह था कि पंडित सेउ (शिव) का परिवार पहाड़ी चित्रों की श्रृंखला के लिए उत्तरदायी है।
प्रश्न 9.
क्षेत्रों के आधार पर पहाड़ी चित्रों की पहचान करना भ्रामक क्यों हो सकता है ?
उत्तर:
गोस्वामीजी का तर्क है कि क्षेत्रों के आधार पर पहाड़ी चित्रों की पहचान करना भ्रामक हो सकता है क्योंकि राजनीतिक सीमाएँ हमेशा स्थिर नहीं होती हैं। यह तर्क राजस्थानी शैलियों के लिए भी उचित है क्योंकि केवल क्षेत्रों के कारण अस्पष्टता उत्पन्न होती है और कई असमानताएँ अस्पष्ट रहती हैं। अतः यदि कलाकारों के परिवारों को शैलीवाहक माना जाता है, तो एक शैली के कई पहलुओं का औचित्य एक ही क्षेत्र और शैली के भीतर समायोजित किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
पहाड़ी चित्र शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पंजाब और हिमाचल की घाटियों में विकसित चित्र शैली पहाड़ी शैली कहलाती है। इस शैली में राधा कृष्ण का चित्रण बहुलता से हुआ है। इसमें पशु-पक्षियों का सुन्दर चित्रण हुआ है। इसमें नारी के आदर्श एवं मर्यादित रूप पर विशेष ध्यान दिया गया है।
प्रश्न 11.
पहाड़ी शैली के चित्रों के मुख्य विषय क्या हैं?
उत्तर:
गीत गोविन्द, रसिकप्रिया, महाभारत, श्रीमद्भागवत, रामायण, बारहमासा, नायक-नायिका भेद, कृष्ण लीला, व्यक्ति चित्र. प्रकति चित्रण से सम्बन्धित चित्रों का अंकन किया गया है।
प्रश्न 12.
पहाडी शैली की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 13.
बसोहली शैली की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या है?
उत्तर:
बसोहली चित्र शैली में भंग के पंखों के छोटे, चमकीले हरे कणों का उपयोग आभूषणों को चित्रित करने और 'पन्ना' के प्रभाव को उभारकर दर्शाने के लिए किया जाता है, यही बसोहली चित्र शैली की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
प्रश्न 14.
बसोहली शैली, अपने जीवन्त रंगों और लालित्य में किसको साझा करते हैं ?
उत्तर:
बसोहली शैली अपने जीवन्त रंगों और लालित्य में, वे पश्चिमी भारत के चित्रों के चौरपंचशिका समूह के सौन्दर्यशास्त्र को साझा करते हैं।
प्रश्न 15.
अन्य पहाड़ी शैलियों की तुलना में बसोहली शैली का मौलिक महत्त्व क्यों है ?
उत्तर:
पहाड़ी शैली में लोककला तत्व अधिक आए। इसलिए अन्य पहाड़ी शैलियों की तुलना में बसोहली शैली का मौलिक महत्त्व है।
प्रश्न 16.
बसोहली चित्रकारों ने स्थानीय राजाओं के चित्रों को किसके साथ चित्रित किया?
उत्तर:
बसोहली चित्रकारों ने स्थानीय राजाओं के चित्रों को उनकी पत्नियों, दरबारियों, ज्योतिषियों, याचकों आदि के साथ चित्रित किया है।
प्रश्न 17.
काँगड़ा शैली के उद्भव एवं विकास के क्या कारण थे ?
उत्तर:
प्रश्न 18.
बसोहली में उत्पन्न शैली कहाँ-कहाँ फैल गई?
उत्तर:
बसोहली में उत्पन्न शैली धीरे-धीरे मनकोट, नूरपुर, कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, चम्बा, गुलेर और काँगड़ा के अन्य पहाड़ी राज्यों में फैल गई।
प्रश्न 19.
बसोहली शैली की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 20.
गुलेर शैली का सबसे परिपक्व संस्करण क्या था?
उत्तर:
इस शैली का सबसे परिपक्व संस्करण 1780 के दशक के दौरान काँगड़ा में प्रवेश किया और काँगड़ा स्कूल में परिवर्तित हो गया जबकि बसोहली की शाखाएँ भारत के चम्बा और कुल्लू में विकसित होती रहीं।
प्रश्न 21.
"कलाकार मनाकू और उनके बेटों ने काँगड़ा के संसारचन्द का संरक्षण प्राप्त किया।" कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
काँगड़ा क्षेत्र में चित्रकला राजा संसारचन्द (1775-1823) के संरक्षण में विकसित हुई। ऐसा माना जाता है कि प्रकाशचंद गम्भीर वित्तीय संकट की स्थिति में आ गये और वह अपने चित्रालयों को बनाये नहीं रख सके। अतः कलाकार मनाक और उनके बेटों ने काँगड़ा के संसारचन्द का संरक्षण प्राप्त किया।
प्रश्न 22.
काँगड़ा शैली में चित्रित किए गए सबसे लोकप्रिय विषय क्या-क्या थे?
उत्तर:
काँगड़ा शैली में चित्रित किए गए सबसे लोकप्रिय विषय भागवत पुराण, गीत गोविन्द, नल दमयंती, बिहारी सतसई, रागमाला और बारहमासा थे।
प्रश्न 23.
संसारचन्द के शासनकाल में काँगड़ा शैली का उत्पादन अन्य पहाड़ी राज्यों की तुलना में कैसा था?
उत्तर:
संसारचन्द के शासनकाल में काँगड़ा शैली का उत्पादन अन्य पहाड़ी राज्यों की तुलना में अधिक था। उन्होंने राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करते हुए गुलेर और अन्य क्षेत्रों के कलाकारों के साथ एक बड़े स्टूडियो का समर्थन किया। काँगड़ा शैली शीघ्र ही टीहरा (Tira) सुजानपुर से पूर्व में गढ़वाल और पश्चिम में कश्मीर तक फैल गई।
प्रश्न 24.
काँगड़ा शैली में बारहमासा चित्रण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बारामासा (बारहमासा) पेंटिंग वर्षभर के बारहमास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह तथा मिलन की क्रियाओं का चित्रण करता है। 19वीं सदी के दौरान पहाड़ियों में यह एक लोकप्रिय विषय बन गया था।
केशवदास ने 'कविप्रिया' के दसवें अध्याय में बारहमासा का वर्णन प्रस्तुत किया है। वे ज्येष्ठ के गरम मास का वर्णन करते हैं जो मई और जून के महीनों में आता है।
प्रश्न 25.
कुल्लू शैली के चित्रों में किसका उपयोग किया गया?
उत्तर:
इस शैली के चित्रों में विशिष्ट ठोड़ी, और चौड़ी, खुली आँखें थीं, पृष्ठभूमि में ग्रे और टेराकोटा लाल रंगों का भव्य उपयोग किया गया था।
प्रश्न 26.
पहाड़ी चित्र शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पंजाब और हिमाचल की घाटियों में विकसित चित्र शैली पहाड़ी शैली कहलाती है। इस शैली में राधा कृष्ण का चित्रण बहुलता से हुआ है। इसमें पशु-पक्षियों का सुन्दर चित्रण हुआ है। इसमें नारी के आदर्श एवं मर्यादित रूप पर विशेष ध्यान दिया गया है।
प्रश्न 27.
काँगड़ा शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रश्न 28.
पहाड़ी शैली के विकास का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
औरंगजेब की कट्टर नीति से भागकर आए चित्रकारों एवं अन्य रियासतों से निराश्रित हुए चित्रकारों ने पहाड़ी राज्यों में शरण ली। इसके परिणामस्वरूप पहाड़ी शैली का विकास हुआ।
प्रश्न 29.
काँगड़ा शैली के विषयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली का मुख्य विषय प्रेम है, जो लय, शोभा और सौन्दर्य के साथ दिखाया गया है। नायिका भेद, भागवत पुराण, गीत-गोविन्द, रसिकप्रिया की प्रणय कथायें, व्यक्ति चित्र, शृंगारिक चित्र, प्रकृति, बारहमासा आदि।
प्रश्न 30.
बसोहली शैली में नारी को किस रूप में चित्रित किया गया है ?
उत्तर:
इस शैली के चित्रों में रूप और लावण्य, श्रृंगार एवं यौवन से सजी नारी तथा नशीली आँखों के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति करती हुई, मानव-प्रेम के रूप में चित्रित की गई है।
प्रश्न 31.
बसोहली शैली के वर्ण-विन्यास की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
बसोहली शैली के वर्ण-विन्यास की प्रमुख विशेषताएँ हैं-(1) चमकदार अमिश्रित रंग (2) विरोधी रंगों का प्रयोग तथा (3) लाल, पीले, नीले रंगों का अधिकता से प्रयोग।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II (SA-II)
प्रश्न 1.
बी.एन. गोस्वामीजी के अनुसार क्षेत्रों के आधार पर पहाड़ी चित्रों की पहचान करना भ्रामक क्यों हो सकता है ?
उत्तर:
गोस्वामीजी का तर्क है कि क्षेत्रों के आधार पर पहाड़ी चित्रों की पहचान करना भ्रामक हो सकता है क्योंकि राजनीतिक सीमाएँ हमेशा स्थिर नहीं होती हैं। यह तर्क राजस्थानी शैलियों के लिए भी उचित है क्योंकि केवल क्षेत्रों के कारण अस्पष्टता उत्पन्न होती है और कई असमानताएँ अस्पष्ट रहती हैं। अत: यदि कलाकारों के परिवारों को शैलीवाहक माना जाता है, तो एक शैली के कई पहलुओं का औचित्य एक ही क्षेत्र और शैली के भीतर समायोजित किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
पहाड़ी शैली चित्रों के विषयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सूर, तुलसी, केशव, मतिराम, देव और बिहारी आदि कवियों के काव्यों पर आधारित चित्र बनाये गये। रागमाला, गीत-गोविन्द भी चित्रकारों के विषय रहे। कृष्ण लीला से सम्बन्धितं चित्र तथा व्यक्ति चित्र भी बनाए गए।
प्रश्न 3.
बसोहली शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
बसोहली शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं-प्राथमिक रंगों का प्रयोग, पीले रंग का समुचित प्रयोग, पृष्ठभूमि और क्षितिज को भरना, वनस्पति का शैलीबद्ध व्यवहार प्रस्तुत करना, आभूषणों में मोती का प्रतिनिधित्व दर्शाने हेतु सफेद रंग को ऊपर उठाना आदि।
प्रश्न 4.
गुलेर-काँगड़ा चरण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी की पहली तिमाही में बसोहली शैली में पूर्ण परिवर्तन देखा गया। अब गुलेर काँगड़ा चरण की शुरुआत हुई। यह चरण पहली बार राजा गोवर्धन चंद (1744-1773) के संरक्षण में काँगड़ा शैली शाही परिवार की एक उच्च श्रेणी की शाखा गुलेर में दिखाई दिया।
प्रश्न 5.
पहाड़ी शैली में 'शांगरी' श्रृंखला से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
संस्कृत महाकाव्य 'रामायण' बसोहली और कुल्लू के पहाड़ी कलाकारों के पसंदीदा ग्रन्थों में से एक था। इस श्रृंखला का नाम 'शांगरी' से लिया गया है, जो कुल्लू शाही परिवार की एक शाखा का निवास स्थान था। कुल्लू कलाकारों की ये कृतियाँ बसोहली और बिलासपुर की शैलियों से अलग-अलग मात्रा में प्रभावित थीं।
प्रश्न 6.
पूर्व काँगड़ा या गुलेर काँगड़ा कलाम से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
गुलेर कलाकार पंडित सेउ अपने बेटों मानक और नैनसुख के साथ 1730-40 के आसपास चित्रों की श्रृंखला की एक नई शैली में बदलने के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। इसे आमतौर पर पूर्व काँगड़ा या गुलेर काँगड़ा कलाम कहा जाता है। यह शैली बसोहली शैली की तुलना में अधिक परिष्कृत, मंद और सुरुचिपूर्ण है। मानक और उनके भाई नैनसुख गुलेर शैली को सशक्त रूप से आगे बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।
प्रश्न 7.
"पहाड़ी शैली में गुलेर के चित्रों की एक लम्बी परम्परा है।" कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
ऐसा प्रतीत होता है कि पहाड़ी शैली में गुलेर के चित्रों की एक लम्बी परम्परा है। इस बात का प्रमाण यह है कि कलाकार, दलीप सिंह (1695-1743) के शासनकाल से हरिपुर-गुलेर में काम कर रहे थे क्योंकि उनके और उनके पुत्र बिशनसिंह के कई चित्र, 1730 के दशक से पहले, यानि गुलेर-काँगड़ा चरण के प्रारम्भ के पहले के पाए जा सकते हैं।
प्रश्न 8.
गुलेर शैली में मानक की सर्वश्रेष्ठ रचना का वर्णन करें।
उत्तर:
बिशनसिंह की मृत्यु उनके पिता के जीवनकाल में ही हो गई थी। अतः इनके अनुज गोवर्धन चंद सिंहासन पर बैठे, जिसने चित्रकला शैली में बदलाव देखा। मानक की सर्वश्रेष्ठ रचना 1730 में गुलेर में चित्रित गीत गोविन्द की एक श्रृंखला है जिसमें बसोहली शैली के कुछ तत्वों को जीवन्त रखा गया है। इसमें भंग के पंखों के आवरण का भव्य प्रयोग किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि नैनसुख अपने गृहनगर गुलेर को छोड़कर जसरोटा चले गये थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने प्रारम्भ में मियां जोरावर सिंह के लिए काम किया था, जिनके पुत्र और जसरोटा के उत्तराधिकारी बलवंत सिंह उनके सबसे बड़े संरक्षक थे। नैनसुख द्वारा चित्रित बलवंत सिंह की तस्वीरें प्रसिद्ध हैं जो संरक्षक के जीवन को प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न 9.
"गुलेर शैली में बलवंत सिंह को विभिन्न गतिविधियों में सम्मिलित होते हुए चित्रित किया गया है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बलवंत सिंह को विभिन्न गतिविधियों में सम्मिलित होते हुए चित्रित किया गया है, जैसे-पूजा करना, एक भवन स्थल का सर्वेक्षण करना, ठण्ड के मौसम में रजाई में लिपटे एक शिविर में बैठना आदि । कलाकार ने अपने संरक्षक के हर अवसर को चित्रित करते हुए उसे सन्तुष्टि प्रदान की है। नैनसुख की प्रतिभा का मुख्य भाग व्यक्तिगत चित्रांकन था। कालान्तर में यही पहाड़ी शैली की प्रमुख विशेषता बनी। उनके पैलट में सफेद या भूरे रंग के विस्तार के साथ कोमल पेस्टल रंगों का समावेश था।
प्रश्न 10.
काँगड़ा शैली के राजा संसारचन्द का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजा संसारचन्द ने आसपास के सभी पहाड़ी राज्यों पर काँगड़ा का वर्चस्व स्थापित किया। उनके संरक्षण में टीहरा (Tira) सुजानपुर चित्रकला के सबसे उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में उभरा। काँगड़ा कलाम चित्रों का एक प्रारम्भिक चरण आलमपुर में देखा गया है। सबसे परिपक्व चित्रों को नादौन में चित्रित किया गया था जहाँ संसारचन्द बाद में स्थानान्तरित हो गये थे। यह सभी केन्द्र व्यास नदी के किनारे थे। व्यास नदी के साथ आलमपुर को कुछ चित्रों में पहचाना जा सकता है। काँगड़ा में चित्रकारी कम की गई क्योंकि यह क्षेत्र 1786 तक मुगलों और बाद में सिखों के अधीन रहा।
प्रश्न 11.
काँगड़ा शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली अब तक भारतीय शैलियों की सबसे काव्यात्मक और गीतात्मक शैली है जो सौन्दर्य और कोमलता के साथ प्रस्तुत की जाती है। काँगड़ा शैली की मुख्य विशेषताएँ रेखा की कोमलता, रंगों की चमक, सूक्ष्मता से सजावटी विवरण, महिला के चेहरे का चित्रण आदि हैं। काँगड़ा शैली में महिला के चेहरे का चित्रण माथे के साथ के साथ किया जाता है जो 1790 के दशक के आसपास प्रचलन में आया था। यह भी काँगडा शैली की मुख्य विशेषताओं में से एक है।
प्रश्न 12.
पहाड़ी शैली के अन्तर्गत कौनसी उपशैलियाँ आती हैं?
उत्तर:
पहाड़ी शैली के अन्तर्गत-
प्रश्न 13.
"काँगड़ा में चित्रकला गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई।" इसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
1805 के आसपास जब गोरखाओं ने काँगड़ा किले को घेर लिया तो चित्रकला गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई। तब संसारचन्द को अपने पहाड़ी महल टीहरा (Tira) सुजानपुर से भागना पड़ा। 1809 में रंजीत सिंह की मदद से गोरखाओं को भगाया गया। यद्यपि संसारचन्द ने अपने कलाकारों के संग्रह को बनाये रखा परन्तु कार्य अब 1785-1805 की अवधि की उत्कृष्ट कृतियों के समान नहीं रहा।
प्रश्न 14.
बारहमासा के अन्तर्गत किस प्रकार के चित्र बनाये जाते थे?
उत्तर:
बारहमासा के अन्तर्गत वर्ष के विभिन्न महीनों का चित्रण किया जाता है। इस चित्र में ऋतु के अनुसार आकाशीय रंग, वनस्पति, पुष्प, पक्षी आदि को चित्रित कर ऋतु का वास्तविक दृश्य संजोया जाता है।
प्रश्न 15.
काँगड़ा शैली में रास पंचध्यायी चित्रकारी का वर्णन करें।
उत्तर:
रास पंचध्यायी भागवत पुराण के पाँच अध्यायों का एक समूह है। यह रस की दार्शनिक अवधारणा को समर्पित है। इसमें गोपियों की कृष्ण के प्रति प्रेम की स्पष्ट झलक है। जब कृष्ण अचानक गायब हो जाते हैं तो गोपियों का दर्द वास्तविक रूप से दिखाई देता है। अलगाव और उदासी की अवस्था में गोपियाँ हिरन, पेड़ और लताओं को सम्बोधित करते हुए कृष्ण के ठिकाने के बारे में प्रश्न पूछती हैं। उनके दयनीय सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं। इस स्थिति का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 16.
"काँगड़ा शैली के चित्रों में कृष्ण के विचारों में तल्लीन गोपियाँ, उनकी विभिन्न लीलाओं को याद करती हैं और उनका अभिनय करती हैं।" इन लीलाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
कृष्ण के विचारों में तल्लीन गोपियाँ, उनकी विभिन्न लीलाओं को याद करती हैं और उनका अभिनय करती हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-पूतना की हत्या, यमला अर्जुन की मुक्ति और माता यशोदा द्वारा कृष्ण को ओखली से बाँधना, गोवर्धन पर्वत को उठाना, बृज के वासियों को भारी बारिश और इन्द्र के प्रकोप से बचाना, कालिया नाग को वश में करना, कृष्ण की बाँसुरी की मादक पुकार और आकर्षण आदि । गोपियाँ विभिन्न भूमिकाएं निभाती हैं और उनके दिव्य खेलों का अनुकरण करती हैं।
प्रश्न 17.
काँगड़ा शैली के चित्रों में 'अभिसारिका' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
अष्ट नायिकाओं का वर्णन कवियों और चित्रकारों की कला का प्रमुख विषय रहा है परन्तु उनमें से किसी नायिका के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया गया जैसा कि अभिसारिका के साथ किया गया। अभिसारिका एक प्रेमातुर नायिका है जो किसी भी जोखिम की परवाह न करते हुए अपने प्रेमी से मिलने निकल पड़ती है। प्रकृति के विरोधी तत्वों पर विजय प्राप्त करने वाली नायिका की लगन और दृढ़ता के साथ कल्पना की गई स्थिति, आमतौर पर विचित्र और नाटकीय सम्भावनाओं से पूर्ण होती है।
प्रश्न 18.
पहाड़ी चित्रों के हाशिए मुगल हाशियों से किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर:
पहाड़ी शैली में चित्र के चारों तरफ पतला पट्टीनुमा हाशिया बनाया जाता था। ये हाशिये सपाट रंग से बनाये जाते थे। इन हाशियों में गहरे लाल रंग या कभी गहरे पीले रंग का प्रयोग किया जाता था जबकि मुख्य चित्रकला में हाशिये अपेक्षाकृत अधिक चौड़े एवं अलंकरणयुक्त बनाये जाते थे।
प्रश्न 19.
काँगड़ा शैली में नैनसुख के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
बसोहली और मनकोट के वैवाहिक सम्बन्धों के कारण बसोहली के कुछ कलाकार मनकोट में स्थानान्तरित हो गए जिससे चित्रों की समान शैली का विकास हुआ। सन् 1740 ई. के आसपास नैनसुख जसरोटा आ गए। यहाँ उन्होंने अपना अधिकतर कार्य शासक जोरावर सिंह और उनके पुत्र बलवंत सिंह के लिए किया। अनेक चित्र नैनसुख द्वारा चित्रित किये गये। इन्होंने बसोहली शैली को नए परिष्करण हेतु प्रोत्साहित किया। नैनसुख की इस शैली को गुलेर-काँगड़ा शैली का नाम दिया जाता है।
प्रश्न 20.
पहाड़ी शैली किसे कहते हैं ? इनके चित्रों के विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंजाब और हिमाचल की घाटियों में विकसित चित्रशैली पहाड़ी शैली के नाम से प्रसिद्ध है। मुगल चित्रकारों व मूल पहाड़ी चित्रकारों ने मिलकर 'पहाड़ी चित्रशैली' को जन्म दिया। सूर, तुलसी, केशव, मतिराम, देव, बिहारी आदि के काव्यों पर आधारित चित्रण पहाडी शैली के चित्रों में खूब हुआ है। रागमाला से सम्बन्धित चित्र भी बनाये गए। गीत गोविन्द, रसिकप्रिया, बिहारी सतसई आदि से सम्बन्धित चित्रों का भी निर्माण किया गया। पशु-पक्षी, प्रकृति चित्रण, व्यक्ति चित्र आदि भी चित्रों के विषय रहे हैं।
प्रश्न 21.
बसोहली शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए। .
उत्तर:
बसोहली वर्तमान में जम्मू राज्य के कठुवा जिले के अन्तर्गत आता है। इस चित्र शैली के विकास में काँगड़ा, चम्बा, कश्मीर तथा स्थानीय शैलियों का योगदान रहा है। यह चित्र शैली अपनी सरलता, भावपूर्ण-व्यंजना तथा चटक व ओजपूर्ण वर्ण-विन्यास के कारण विशेष महत्त्व रखती है।
प्रश्न 22.
काँगड़ा शैली में नारी-आकृतियों के चित्रण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली में नारी आकृतियों का शरीर छरहरा, आँखें धनुषाकार बनी हैं। उन्हें गोल मुखाकृति, बड़ी-बड़ी भाव प्रवण आँखें, पीनवक्ष तथा लोचदार अंगुलियाँ सहित चित्रित किया गया है। स्त्रियों को चोली, लहंगा और पारदर्शी चुन्नी पहने हुए दर्शाया गया है। उन्हें गले में माला, माथे पर बिन्दी, पैरों में पायल, हाथों में चूड़ियाँ एवं अंगूठी पहने हुए चित्रित किया गया है।
प्रश्न 23.
काँगड़ा शैली के चित्रों में अंकित प्रकृति चित्रण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली के चित्रों में वृक्षों, बादल, जल, जंगल, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों का मनोहारी चित्रण हुआ है। विभिन्न प्रकार की लताएँ, संयोग के प्रतीक के रूप में चित्रित की गई हैं। काली रात एवं चाँदनी रात का भी चित्रकारों ने कुशलतापूर्वक चित्रण किया है। सभी ऋतुओं का सुन्दर चित्रण हुआ है। प्रकृति का चित्रण प्रतीकात्मक रूप में हुआ है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सब किसी न किसी भाव के प्रतीक हैं।
प्रश्न 24.
काँगड़ा शैली की रंग-योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली के चित्रों में लाल, पीले और नीले रंगों का प्रयोग किया गया है, जिनमें चमक है। रंगों के संयोजन में चित्रकारों को निपुणता प्राप्त है। जो भी वातावरण दर्शाया गया है, उसमें उसी से सम्बन्धित रंगों का प्रयोग हुआ है। काँगड़ा शैली के चित्रों में सोने तथा चाँदी के रंगों का प्रयोग सबसे अधिक हुआ है।
प्रश्न 25.
बसोहली कहाँ स्थित है? बसोहली शैली में स्त्री-पुरुषों की रूपाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बसोहली चम्बा, लखनपुर, जसरोटा व नूरपुर रियासतों से घिरी हुई रावी की घाटी में स्थित है। बसोहली शैली में चित्रित स्त्री-पुरुषों की रूपाकृतियाँ सुकोमल एवं ओजपूर्ण हैं। चित्रों में ललाट पीछे की ओर धंसा हुआ, नेत्र कमलाकृति, पद्माकर, कर्णस्पर्शी, रसभाव से पूरित, नाक लम्बी व हस्त-मुद्राएँ, विभिन्न हाव-भाव अभिव्यक्त करती हुई चित्रित हैं। दो-चार बालों की लटें कपोलों पर लटकती हुई चित्रित हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
पहाड़ी चित्र शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
अथवा
पहाड़ी चित्र शैली की सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पहाड़ी चित्र शैली की सामान्य विशेषताएँ
प्रश्न 2.
बसोहली शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बसोहली शैली का उद्भव एवं विकास
विभिन्न पहाड़ी शैलियों में बसोहली शैली प्राचीनतम है। बसोहली चम्बा, लखनपुर, जसरोटा व नूरपुर रिसायतों से घिरी रावी की घाटी में स्थित है जो अब एक छोटी-सी नगरी है।
1. बसोहली के राजाओं द्वारा बसोहली शैली को संरक्षण प्रदान करना-बसोहली का पहला राजा कृष्णपाल था। कृष्णपाल के पौत्र भूपतपाल ने आधुनिक नगर बसोहली की स्थापना की।
2. कपालपाल और बसोहली शैली-कृपालपाल (1678-1699 ई.) को बसोहली शैली का संरक्षक एवं प्रवर्तक माना जाता है। उसने कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे बसोहली शैली का सर्वोत्तम विकास हुआ। इनके समय की भानुदत्त कृत एक सचित्र प्रति 'रसमंजरी' (1694-95) तैयार हुई थी।
3. मेदनीपाल और बसोहली शैली का विकास-मेदनीपाल (1725-1736 ई.) ने 'रंगमहल' व 'शीशमहल' बनवाये। सन् 1730 का बना चित्र 'गिरि-गोवर्धन' बसोहली शैली के उत्कृष्ट चित्रों में से है।
4. जितपाल और बसोहली शैली का विकास-जितपाल (1736-1757 ई.) के काल में बने चित्रों में 'रागमाला' की प्रति उल्लेखनीय है, जो 'विक्टोरिया एण्ड अल्बर्ट संग्रहालय' में संग्रहित है। सन् 1730 की तिथियुक्त 'गीत-गोविन्द' की प्रतियाँ दो जगह लाहौर संग्रहालय व राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में हैं। ये चित्र अपनी सुन्दर रेखाकृतियों, उत्तम रंगों और प्रकाश के लिए समान रूप से अद्भुत हैं। इस प्रति को प्रसिद्ध चित्रकार मनकू ने चित्रित किया था। एन.सी. मेहता के संग्रह में 'माखनचोर' नामक कृति भी इस काल का श्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रश्न 3
काँगड़ा शैली के चित्रों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली के चित्रों की विशेषताएँ
काँगड़ा शैली के चित्रों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 4.
पहाड़ी शैली पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
पहाड़ी शैली
पंजाब और हिमाचल की घाटियों में विकसित चित्रशैली पहाड़ी शैली के नाम से प्रसिद्ध है। मुगल कलाकारों व मूल पहाड़ी चित्रकारों ने मिलकर एक भिन्न आयाम वाली 'पहाड़ी चित्रशैली' को जन्म दिया। इस शैली का एक रूप बसोहली, दूसरा 'गुलेर' व तीसरा 'काँगड़ा' के नाम से विकसित हुआ। विभिन्न विद्वानों के अनुसार पहाड़ी कला का जन्म गुलेर में हुआ। पहाड़ी शैली के विकास में बसोहली के राजा कृष्णपाल, गुलेर के राजा गोवर्धन चन्द, काँगड़ा के संसारचन्द आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
पहाड़ी शैली की विशेषताएँ-
1. पहाड़ी चित्रशैली के विषय-पहाड़ी शैली के चित्रों के विषय में वैष्णव धर्म का प्रमुख स्थान है। रीतिकालीन कवियों में सूर, तुलसी, केशव, मतिराम, देव और बिहारी आदि के काव्यों पर आधारित चित्रण पहाड़ी शैली में बड़ी सुन्दरता के साथ मिलता है। पहाड़ी चित्रशैली की विषयवस्तु गीत गोविन्द, बिहारी सतसई, भागवत पुराण तथा कृष्णलीलाओं आदि से सम्बन्धित रही है। राधा-कृष्ण का चित्रण बहुलता से हुआ है।
इसके अतिरिक्त पहाड़ी चित्र-शैली के अन्य प्रमुख विषय रहे-नायक-नायिका भेद, बारहमासा व रागमाला, दरबार सम्बन्धी चित्रण तथा पशु-पक्षियों का चित्रण आदि।
2. भावाभिव्यक्ति-पहाड़ी चित्र-शैली के चित्रों का संयोजन, भावात्मकता, सुन्दरता, कोमलता, सरसता, मंत्रमुग्ध कर देते हैं। काव्यात्मक लय व रूपगत सौंदर्य चित्रों में अनुपम प्रभाव भर देते हैं । इस शैली में भावाभिव्यक्ति सर्वोत्कृष्ट रूप में पायी जाती है।
3. हाशिये-पहाड़ी चित्रशैली में चित्रों के चारों तरफ लाल व पीले रंग के हाशिये चित्रित किये गए हैं। लाल रंग के हाशियों पर कहीं-कहीं टाकरी लिपि में लेख भी लिखे हैं।
4. रंग योजना-पहाड़ी चित्रों में चटक रंग तथा विरोधी रंग विन्यास विशेष आग्रह के साथ प्रयोग में लाये गए . हैं। रंगों को प्रतीक रूप में प्रयुक्त कर चित्रों को रहस्यमय आध्यात्मिकता से मुक्त कर दिया गया है। यहाँ पीला रंग पवित्रता, लाल रंग प्रेम, नीला रंग कृष्ण व बादलों की अनन्त व असीम भावना के साथ प्रयुक्त किये गए हैं। यहाँ चटक व विशुद्ध रंग योजना के साथ स्वर्ण व रजत रंगों का प्रयोग भी अलंकरण चित्रण में किया गया है।
5. प्रकृति चित्रण-पहाड़ी चित्रों में प्राकृतिक वातावरण को सौंदर्यात्मक ढंग से चित्रित किया गया है। क्षितिज रेखा को चित्र में थोड़ा अधिक ऊपर की तरफ रखा गया है जिससे समूचा चित्र वृक्ष व लताओं से आच्छादित लगता है।
6. भवन चित्रण–पहाड़ी चित्रों में भवनों का अंकन बहुत भव्य व कलापूर्ण है। भवन प्रायः सफेद रंग में बनाए गए हैं । स्तंभों को अलंकरण युक्त बनाया गया है। मीनारों पर गुम्बद व छज्जों में जालियाँ चित्रित की गई हैं।
7. पात्र चित्रण-पहाड़ी चित्र शैली में आकृतियों के चित्रण में सुनियोजित गोलाई व सुडौलता है। मानवाकृतियों में नेत्रों को कमलाकार बनाया गया है। गोल चिबुक, पतले गुलाबी होंठ, नासिका सीधी व लम्बी बनाई गई है। नेत्र भावपूर्ण व चंचल बनाए गए हैं। अधिकांश चेहरे एक चश्म बनाए गए हैं।
8. परिधान–पहाड़ी चित्रों में पुरुष को मुगलिया प्रभाव वाला घेरदार जामा तथा पीछे झुकी हुई पगड़ी पहने चित्रित किया गया है। स्त्रियों के परिधान में सूथन, चोली तथा पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े दिखाया गया है। कृष्ण को पीताम्बर व पीली धोती पहने हुए, मुकुट पर मोरपंख बनाया गया है। कपड़ों के किनारों पर सुनहरी किनारी बनाई गई है।
9. वाद्ययंत्र-पहाड़ी चित्रों में वाद्य यंत्रों-तम्बूरे, ढोलक, मृदंग, मंजीरा, वीणा, सितार आदि का चित्रण भी बहुतायत से हुआ है।
प्रश्न 5.
बसोहली शैली के प्रमुख चित्र 'राम अपनी सम्पत्ति त्यागते हैं' और 'वन में विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण' का वर्णन कीजिए।उत्तर:
चित्र 'राम अपनी सम्पत्ति त्यागते हैं'-
चित्र-राम अपनी सम्पत्ति त्यागते हैं, अयोध्या काण्ड, शांगरी रामायण, 1690-1700, लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम ऑफ आर्ट, यू.एस.ए.
राम अपने वनवास के बारे में सीखते हैं और अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या छोड़ने की तैयारी करते हैं। मन का संतुलन बनाए रखते हुए राम अपनी संपत्ति को त्यागने के कृत्य में सम्मिलित हो जाते हैं। राम के अनुरोध पर, उनके भाई ने अपना सामान ढेर कर दिया और अपने प्रिय राम के आभूषण, बलि के बर्तन, हजार गायों और अन्य खजानों की कृपा प्राप्त करने के लिए भीड़ इकट्ठा होने लगती है।
बाईं ओर अलग सेट में सीता के साथ दो राजकुमार हैं जो एक कालीन पर खड़े हैं। प्राप्तकर्ताओं की भीड़ उनकी ओर बढ़ रही है। चित्रकार सावधानी से विभिन्न प्रकार के वैरागी, ब्राह्मण, दरबारियों, आम लोगों और शाही घराने के नौकरों का परिचय देता है। कालीन पर कपड़ों और सोने के सिक्कों के ढेर हैं, भोली भाली गायों और बछड़ों को भी चित्रित किया गया है। ये गायें और बछड़े गर्दन को खींचे हुए टकटकी लगाते हुए, खुले मुँह से राम की ओर देख रहे हैं। इस स्थिति की गम्भीरता को अलग-अलग भावों के माध्यम से संवेदनशील रूप से चित्रित किया गया है। शान्त लेकिन धीरे से मुस्कुराते हुए राम जिज्ञासु लक्ष्मण, आशंकित सीता, प्राप्त करने के इच्छुक ब्राह्मण लेकिन बिना किसी खुशी के, और अन्य भाव अविश्वास तथा कृतज्ञता के साथ सुन्दर तरीके से चित्रित किए गए हैं। राम द्वारा धारण किये गये परिधानों, ब्राह्मणों के गालों और ठुड्डी पर दाढ़ी, तिलक के निशान, आभूषण और हथियारों को कलाकार खुशी से दर्शाता है।
'वन में विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण'-
चित्र-वन में ऋषि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण, बाल काण्ड, शांगरी रामायण, 1680-1688, राजा रघबीर सिह संग्रह, शागरा, कुल्लू घाटा, भारत
इस चित्र में राम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ जंगल में राक्षसों को हराने के लिए दिखाया गया है। ये राक्षस संतों के ध्यान कार्य में बाधा उत्पन्न करके और उनके अनुष्ठानों को दृषित करके उन्हें परेशान : इस चित्र की मुख्य विशेषता जानवरों का प्रतिनिधित्व है, जो पेड़ों के पीछे छिपे हुए हैं। बाईं ओर एक भेड़िया और दाईं ओर एक बाघ का चतुर चित्रण किया गया है। कलाकार एक घने अभेद्य जंगल के रूप में जंगल का चित्र प्रस्तुत करता है । जहाँ क्रूर जानवर छिपे हुए हैं। यहीं दो राजकुमार असाधारण साहस के साथ चित्रित किये गये हैं। जानवरों का आंशिक प्रतिनिधित्व भी एक रहस्य है क्योंकि उनके भेष में राक्षस होने की सम्भावना है।
प्रश्न 6.
बसोहली शैली की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
बसोहली शैली की विशेषताएँ
बसोहली शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 7.
काँगड़ा शैली के प्रमुख चित्रों 'कृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए अभिनय करना' एवं 'अभिसारिका नायिका' का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए अभिनय करना'
यह चित्र रास पंचध्यायी का है जो भागवत पुराण के पाँच अध्यायों का एक समूह है। यह रस की दार्शनिक अवधारणा को समर्पित है। इसमें गोपियों की कृष्ण के प्रति प्रेम की स्पष्ट झलक है। जब कृष्ण अचानक गायब हो जाते हैं तो गोपियों का दर्द वास्तविक रूप से दिखाई देता है। अलगाव और उदासी की अवस्था में गोपियाँ हिरन, पेड़ और लताओं को सम्बोधित करते हुए कृष्ण के ठिकाने के बारे में प्रश्न पूछती हैं। उनके दयनीय सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं। इस स्थिति का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
कृष्ण के विचारों में तल्लीन गोपियाँ, उनकी विभिन्न लीलाओं को याद करती हैं और उनका अभिनय करती हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-पूतना की हत्या, यमला अर्जुन की मुक्ति और माता यशोदा द्वारा कृष्ण को ओखली से बाँधना, गोवर्धन पर्वत को उठाना, बृज के वासियों को भारी बारिश और इन्द्र के प्रकोप से बचाना, कालिया नाग को वश में करना, कृष्ण की बाँसुरी की. मादक पुकार और आकर्षण आदि। गोपियाँ विभिन्न भूमिकाएं निभाती हैं और उनके दिव्य खेलों का अनुकरण करती हैं।
चित्र-कृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए अभिनय करना', भागवत पुराण, गुलेर-काँगड़ा, भारत, 1780-85, निजी संग्रह
चित्रकार इन संवेदनशील छवियों को उत्कृष्ट रूप से चित्रित करता है। सबसे बाईं ओर, एक गोपी अभिनय करती दिखाई देती है। वह कृष्ण के रूप में आगे झुकते हुए, एक अन्य गोपी के वक्षस्थल को चूसती दिखाई देती है जो पूतना की भूमिका निभाती है और जवाब में अपना हाथ सिर की ओर उठाती है, जैसे कि मर रही हो और उसकी साँसें खत्म होती जा रही हैं। एक अन्य गोपी यशोदा का अभिनय करती है, जो अन्य गोपियों के साथ, युवा कृष्ण द्वारा पूतना को मारने का वीरतापूर्ण कार्य करने के बाद बुरी नजर को दूर रखने के लिए अपना वस्त्र रखती है।
इसके बगल में दायीं ओर के समूह में, एक गोपी ओखली की भूमिका निभाती है, जिसमें एक अन्य गोपी जो युवा कृष्ण की भूमिका निभा रही है, को एक कपड़े की पट्टी से बाँध दिया जाता है। कृष्ण की माता अपने हाथों में छड़ी पकड़े खड़ी होती है। गोवर्धन पर्वत को उठाने के दृश्य का भी साहसिक चित्रण किया गया है। तल में सबसे बाईं ओर एक गोपी, कृष्ण का अभिनय करती है जो बाँसुरी बजा रहे हैं। कुछ गोपियाँ गाना गाती हैं और नृत्य करती हैं तो कुछ कृष्ण की ओर खिंचती चली जा रही हैं। उनकी (गोपियों) नाराज सास उनको पुनः खींचने और पकड़ने की कोशिश करती है। इन सभी में सबसे उत्तम चित्रण सबसे दाईं ओर नीचे है जिसमें एक गोपी एक नीले रंग के कपड़े को जमीन पर फेंकती है, जो कालिया नाग का रूप ले लेता है, जिस पर वह कृष्ण की तरह नृत्य करती है।
चित्र-अभिसारिका नायिका, काँगड़ा, 1810-20, सरकारी संग्रहालय और आर्ट गैलरी, चंडीगढ़, भारत
'अभिसारिका नायिका'
अभिसारिका एक प्रेमातुर नायिका है जो किसी भी जोखिम की परवाह न करते हुए अपने प्रेमी से मिलने निकल पड़ती है। प्रकृति के विरोधी तत्वों पर विजय प्राप्त करने वाली नायिका की लगन और दृढ़ता के साथ कल्पना की गई स्थिति, आमतौर पर विचित्र और नाटकीय सम्भावनाओं से पूर्ण होती है। इस चित्रकारी में सखी बता रही है कि वह कैसे रात में अपने प्रेयसी से मिलने के लिए जंगल पार गई थी। कवि यहाँ 'योग' का वर्णन करता है। नायिका एकल उद्देश्य को मस्तिष्क में धारण किये हुए रात के अंधेरे में जंगल से गुजरती है।
अभिसारिका की व्यापक प्रतिमा लगभग समान हैं। हालांकि चित्रकार कभी-कभी अपने प्रतिपादन को परिवर्तित भी करते हैं। कई संस्करणों में दिखाई देने वाले राक्षसों को इनमें छोड़ दिया जाता है। परन्तु रात का अंधेरा, बिजलियों का कड़कना, धुंधले बादल, अंधेरे में फुफकारते साँप, वृक्षों के खोखले तनों से निकलते जानवर और गिरते हुए आभूषण सभी तथ्यों को चित्रित किया गया है।
प्रश्न 8.
निम्न पहाड़ी शैलियों के चित्रों का वर्णन कीजिए-
(अ) प्रतीक्षावान कृष्ण और हिचकिचाती राधा
(ब) बलवंत सिंह नैनसुख के साथ चित्र देखते हुए
(स) नन्द, यशोदा और कृष्ण।
उत्तर:
(अ) प्रतीक्षावान कृष्ण और हिचकिचाती राधा (राधा की प्रतीक्षा में कृष्ण)
राधा की प्रतीक्षा में कृष्ण-1730 में प्रसिद्ध चित्रकार मानकू द्वारा बनाया गया 'राधा की प्रतीक्षा में कृष्ण' नामक चित्र 'गीत-गोविन्द' के आधार पर है। चित्र में दायीं ओर श्रीकृष्ण एक कुंज में राधा की प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं। राधा की दो सखियाँ राधा को कृष्ण के पास ले जाने का प्रयास कर रही हैं। एक सखी राधा को समझा रही है और दूसरी उसका एक हाथ पकड़कर उठा रही है। राधा एक हाथ से अपनी ओढ़नी से अपना मुख छिपाने का प्रयास कर रही है। मुख पर लज्जा का भाव है।
राधा की आँखें सुन्दर, बदन छरहरा, पाँव में पायल तथा महावर लगा हुआ, बाल खुले हुए, गले में सफेद मोतियों की माला, कर्णफूल, कंगन तथा अन्य आभूषण पहने हैं । दायीं ओर की भूमि ऊँची-नीची तथा छोटे घने वृक्ष हैं । बायीं ओर एक फूल का पौधा, पीछे भूमि हल्के भूरे रंग में, गहरे नीले रंग के आकाश में सफेद बादल चित्रित हैं। कृष्ण के शरीर का रंग नीला, आँखें सुन्दर, सिर पर मुकुट, गले में सफेद मोतियों की माला तथा अन्य आभूषण चित्रित हैं। वृक्षों की आकृतियाँ नुकीली तथा पत्तियों की रेखाएँ स्पष्ट हैं।
(ब) बलवंत सिंह नैनसुख के साथ चित्र देखते हुए
चित्र में जसरोटा के राजकुमार बलवंत सिंह चित्र को अपने हाथों में पकड़े हुए देख रहे हैं। उनके पीछे खड़ी एक आकृति नैनसुख को दर्शाती है जो विनम्रतापूर्वक झुके हुए पेंटिंग में दिखाए गए हैं। यह चित्र दुर्लभ है क्योंकि यहाँ नैनसुख अपने संरक्षक के साथ खुद का चित्रण करते हैं।
'बलवंत सिंह अपने महल में बैठे हुए हैं और हरे-भरे परिदृश्य को देख रहे हैं। चित्र में दिखाया गया समय शाम का प्रतीत होता है। नैनसख की रचना व्यवस्थित है, जो कि स्थिरता, शान्ति और धीरज का प्रतीक है। यह सभी बलवंत सिंह के स्वभाव के सूचक हैं। बलवंत सिंह हुक्का धूम्रपान कर रहे हैं। ऐसा वह आमतौर पर कार्य के बीच में आए अन्तराल के दौरान करते हैं। संगीतकारों को चतुराई से चित्र के बाहरी किनारे की ओर रखा जाता है, ताकि उनकी उपस्थिति का संकेत दिया जा सके। पेंटिंग में उनकी स्थिति से पता चलता है कि वह मृदु संगीत का निर्माण कर रहे हैं। इस प्रकार शान्ति को बढ़ाते हैं। बलवंत सिंह कृष्ण को चित्रित करने वाली चित्रकारी के विवरण में तल्लीन हैं।
(स) नन्द, यशोदा और कृष्ण
यह चित्र भागवत पुराण के एक दृश्य को दर्शाता है। यह नन्द को उनके परिवार और रिश्तेदारों के साथ वृन्दावन की यात्रा करते हुए दर्शाता है। उन्होंने गोकुल को राक्षसों से पीड़ित पाया इसलिए एक सुरक्षित स्थान पर जाने का फैसला किया। चित्र में नन्द अपनी बैलगाड़ी पर एक समूह का नेतृत्व कर रहे हैं। उसके बाद एक और बैलगाड़ी है जिसमें दोनों भाई कृष्ण और बलराम, उनकी माताएँ, यशोदा और रोहिणी बैठे हैं। उनके साथ अनेक प्रकार का
घरेलू सामान और बच्चे ले जाते हुए पुरुष तथा महिलाएँ दिखाई दे रहे हैं । यह सभी गतिविधियाँ मनोहर हैं परन्तु जब वह एक दूसरे से बात करते हैं तो उनके सिर का झुकना थकान को दर्शाता है जो निराशा के साथ व्यक्त होती है। सिर पर भार के भारीपन के कारण आँखें और सिर पर बर्तन को मजबूती से पकड़े हुए भुजाओं का तना हुआ खिंचाव, ये सभी अद्भुत अवलोकन और उत्कृष्ट कौशल के उदाहरण हैं।
काँगड़ा के चित्रकार, परिदृश्य का गहन निरीक्षण करते हैं और प्राकृतिक रूप से इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। विवरण स्पष्टता से प्रस्तुत किया जाता है।
प्रश्न 9.
काँगड़ा शैली पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
काँगड़ा शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काँगड़ा शैली का उद्भव एवं विकास
काँगड़ा चित्रशैली से हमारा परिचय लगभग 1780 से होता है। काँगड़ा चित्रशैली राजा संसारचन्द (1775 1823 ई.) के समय में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।
काँगड़ा शैली के केन्द्र-काँगड़ा. शैली से सम्बन्धित तीन केन्द्र थे-
गुलेर की तो अपनी शैली थी परन्तु काँगड़ा के मुख्य केन्द्र टीहरा सुजानपुर तथा नूरपुर ही हैं।
काँगड़ा शैली को प्रश्रय देने वाले राजा-काँगड़ा शैली को प्रश्रय देने वाले राजाओं में हमीरचन्द (1700 1747 ई.), अभयचन्द (1747-1750 ई.), घमण्डचन्द (.1751-1774 ई.) तथा संसारचन्द (1775-1823 ई.) उल्लेखनीय हैं। ये कटोच वंश के राजा थे।
राजा संसारचन्द द्वारा काँगड़ा शैली के विकास में योगदान-संसारचन्द का शासन-काल काँगड़ा चित्र शैली का 'स्वर्ण-युग' कहा जाता है। राजा संसारचन्द ने चित्रकारों को उदारतापूर्वक संरक्षण दिया। उनका संरक्षण एवं प्रोत्साहन पाकर चित्रकारों ने अत्यन्त उत्कृष्ट चित्रों का निर्माण किया।
राजा संसारचन्द वैष्णव धर्म के अनुयायी और कृष्ण भक्त थे। अतः चित्रकारों ने कृष्ण-लीला सम्बन्धी अनेक चित्रों का निर्माण किया। राजा संसारचन्द के समय 'भागवत पुराण', जयदेव कृत 'गीत-गोविन्द', बिहारी कृत 'बिहारी सतसई', केशवदास कृत 'रसिकप्रिया' एवं 'कविप्रिया', 'नल-दमयन्ती' आदि की प्रणय कथाएँ चित्रित हुईं। कृष्ण सम्बन्धी प्रणय लीलाओं का तो विशेष प्रकार से चित्रण किया गया है।
1805-10 के बीच चित्रित एक चित्र में राजा संसारचन्द हुक्का पीते हुए चित्रित किए गए हैं। राजा संसारचन्द की मृत्यु के बाद काँगड़ा शैली पतनोन्मुखी होती गई। काँगड़ा शैली के चित्रकार-काँगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारों में मानकू, खुशाला, किशनलाल, बसियाँ, परखू, फत्तू आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। काँगड़ा में 'नैनसुख' तथा उसके परिवार के चित्रकारों का भी विशेष योगदान रहा है।