Rajasthan Board RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 2 राजस्थानी चित्र शैली Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Drawing in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Drawing Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Drawing Notes to understand and remember the concepts easily.
बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
बणी ठणी किस शैली का चित्र है?
(अ) मेवाड़ शैली
(ब) बूंदी शैली
(स) किशनगढ़ शैली
(द) जयपुर शैली
उत्तर:
(स) किशनगढ़ शैली
प्रश्न 2.
किशनगढ़ शैली के प्रमुख चित्रकार कौन थे?
(अ) मोरध्वज निहालचन्द
(ब) अजीत सिंह
(स) मानसिंह
(द) सवाई जयसिंह
उत्तर:
(अ) मोरध्वज निहालचन्द
प्रश्न 3.
मेवाड़ में 1605 में रागमाला के चित्रकार कौन थे?
(अ) मनोहर
(ब) निसारदीन
(स) साहिबदीन
(द) निहालचन्द
उत्तर:
(ब) निसारदीन
प्रश्न 4.
शाहबुद्दीन तथा मनोहर राजस्थान की किस शैली के चित्रकार थे?
(अ) कोटा शैली
(ब) जोधपुर शैली
(स) बीकानेर शैली
(द) मेवाड़ शैली
उत्तर:
(द) मेवाड़ शैली
प्रश्न 5.
'ढोला-मारु' किस शैली की कृति है?
(अ) मेवाड़ शैली की
(ब) जयपुरं शैली की
(स) किशनगढ़ शैली की
(द) बूंदी शैली की
उत्तर:
(अ) मेवाड़ शैली की
प्रश्न 6.
बूंदी शैली की चित्रकला किस शासक के संरक्षण में फलीभूत हुई?
(अ) राव छतर साल
(ब) महाराणा जंगत सिंह
(स) साहिबदीन
(द) मनोहर
उत्तर:
(अ) राव छतर साल
प्रश्न 7.
कोटा और बूंदी कब तक एक ही राज्य के भाग थे?
(अ) 1488 तक
(ब) 1625 तक
(स) 1591 तक
(द) 1658 तक
उत्तर:
(ब) 1625 तक
प्रश्न 8.
कलाकार वीरजी द्वारा 1623 में पाली में किस ग्रन्थ का चित्रण किया गया था?
(अ) रामायण
(ब) गीत गोविन्द
(स) रसिकप्रिया
(द) रागमाला
उत्तर:
(द) रागमाला
प्रश्न 9.
हरिवंश और सूरसागर कौनसी शताब्दी के अन्त में चित्रित किये गये थे?
(अ) 17वीं शताब्दी
(ब) 16वीं शताब्दी
(स) 15वीं शताब्दी
(द) 14वीं शताब्दी
उत्तर:
(अ) 17वीं शताब्दी
प्रश्न 10.
राधा-कृष्ण की चित्रकलाएँ कौनसे ग्रन्थ में देखी जाती हैं ?
(अ) रागमाला
(ब) बारामासा
(स) गीत गोविन्द
(द) रसिकप्रिया
उत्तर:
(स) गीत गोविन्द
प्रश्न 11.
1488 में किसने बीकानेर में राजस्थान का सबसे प्रमुख राज्य स्थापित किया?
(अ) अनूप सिंह
(ब) किशन सिंह
(स) राव बीका राठौड़
(द) जसवंत सिंह
उत्तर:
(स) राव बीका राठौड़
प्रश्न 12.
अजीत सिंह ने औरंगजेब से कितने वर्ष युद्ध किया?
(अ) 20 वर्ष
(ब) 25 वर्ष
(स) 15 वर्ष
(द) 10 वर्ष
उत्तर:
(ब) 25 वर्ष
प्रश्न 13.
जयपुर शैली की चित्रकला का उद्भव कहाँ हुआ था?
(अ) जैसलमेर
(ब) बाड़मेर
(स) आमेर
(द) नागौर
उत्तर:
(स) आमेर
प्रश्न 14.
सावंत सिंह का सबसे प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ कलाकार कौन था?
(अ) किशनसिंह
(ब) निहालचन्द
(स) जसवन्त सिंह
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) निहालचन्द
प्रश्न 15.
कौनसी शैली के उद्भव का श्रेय उस्ताद अली रजा को दिया जाता है?
(अ) बीकानेर शैली
(ब) जयपुर शैली
(स) कोटा शैली
(द) जोधपुर शैली
उत्तर:
(अ) बीकानेर शैली
प्रश्न 16.
बीकानेर शैली का प्रवर्तक किसे माना जाता है ?
(अ) सावंत सिंह
(ब) महाराणा जगतसिंह
(स) महाराजा अनूपसिंह
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) महाराजा अनूपसिंह
प्रश्न 17.
किशनगढ़ के राजा सावंतसिंह किस उपनाम से प्रसिद्ध थे?
(अ) नारायण
(ब) भगवान दास
(स) नागरीदास
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) नागरीदास
प्रश्न 18.
निहालचन्द किस राज्य के महाराजा सावंतसिंह का आश्रित चित्रकार था?
(अ) किशनगढ़
(ब) जयपुर
(स) बूंदी
(द) कोटा
उत्तर:
(अ) किशनगढ़
प्रश्न 19.
महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर का निर्माण कब किया?
(अ) 1638 में
(ब) 1727 में
(स) 1706 में
(द) 1743 में
उत्तर:
(ब) 1727 में
प्रश्न 20.
कौनसी शैली की सबसे प्रमुख विशेषता नारी का सौन्दर्य है ?
(अ) किशनगढ़ शैली
(ब) जोधपुर शैली
(स) जयपुर शैली
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) किशनगढ़ शैली
प्रश्न 21.
प्रतापसिंह ने कितने कलाकारों को काम दिया था?
(अ) 30
(ब) 50
(स) 60
(द) 70
उत्तर:
(ब) 50
प्रश्न 22.
कौनसे ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से उसकी लीला तक के विभिन्न दृश्यों को बताया गया है?
(अ) रागमाला
(ब) रसिकप्रिया
(स) भागवत पुराण
(द) बारामासा
उत्तर:
(स) भागवत पुराण
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. 'राजस्थानी चित्र शैली' नामक शब्द ऐसी चित्र शैली से सम्बन्धित है जो कि विभिन्न .............. में विकसित हुई।
2. प्रसिद्ध विद्वान ............................ के द्वारा 1916 में 'राजपूत चित्र' नामक शब्द का प्रयोग किया गया।
3. कृष्ण सभी लोगों को भाते थे, उन्हें न केवल एक देवता बल्कि एक ............. के रूप में भी पूजा जाता था।
4. ........... का वातावरण 18वीं शताब्दी में आगे बढ़ते हुए लौकिक तथा दरबारी हो गया।
5. 1591 में चित्रित .................. बूंदी कला के प्रारम्भिक और रचनात्मक चरण को व्यक्त करती है।
6. 1488 में राव बीका राठौड़ ने ................. में राजस्थान का सबसे प्रमुख राज्य स्थापित किया।
उत्तरमाला:
1. रियासतों, ठिकानों
2. आनन्द कुमारस्वामी
3. आदर्श प्रेमी
4. मेवाड़ चित्रकला
5. बूंदी रागमाला
6. बीकानेर।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
Class 12 Drawing Chapter 2 Question Answer प्रश्न 1.
कविप्रिया ग्रन्थ किसने लिखा था?
उत्तर:
कवि केशवदास ने।
Class 12 Drawing Chapter 2 Question Answer In Hindi प्रश्न 2.
रसमंजरी नामक ग्रंथ किसने लिखा था?
उत्तर:
भानुदत्त ने।
राजस्थान की चित्रकला के प्रश्न प्रश्न 3.
बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय किन्हें दिया जाता है ?
उत्तर:
बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय उस्ताद. अली रजा तथा उस्ताद हामिद रुकनुद्दीन को दिया जाता है।
प्रश्न 4.
'गीत गोविन्द' पुस्तक जयदेव द्वारा कौनसी शताब्दी में रचित है?
उत्तर:
12वीं शताब्दी में।
प्रश्न 5.
राजस्थानी चित्र शैली में कौन-कौनसे स्थानों को शामिल किया गया है? कोई तीन लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 6.
बिहारीलाल ने 'बिहारी सतसई' की रचना कब की थी?
उत्तर:
बिहारीलाल ने 'बिहारी सतसई' की रचना 1662 में की थी।
प्रश्न 7.
रागमाला क्या है?
उत्तर:
रागमाला की चित्रकलाएँ राग और रागिनी की सचित्र व्याख्या हैं।
प्रश्न 8.
कविप्रिया क्या है?
उत्तर:
केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया कविता का ग्रन्थ है जो राय परबिन के सम्मान में लिखा गया था।
प्रश्न 9.
पुरुष राग क्या है?
उत्तर:
एक पुरुष राग एक परिवार का मुखिया है जिसमें छ: महिलाएँ होती हैं, जो रागिनी कहलाती हैं।
प्रश्न 10.
छः मुख्य राग लिखिए।
उत्तर:
भैरव, मालकोस, हिन्डोल, दीपक, मेघ और श्री।
प्रश्न 11.
किस स्वरूप में रागों को देखा गया है ?
उत्तर:
दैवीय एवं मानवीय स्वरूप में रागों को देखा गया है।
प्रश्न 12.
दैवीय एवं मानवीय किन स्वरूप में देखी गई हैं ?
उत्तर:
यह कवियों एवं संगीतकारों द्वारा आध्यात्मिक एवं रोमांचक स्वरूप के सन्दर्भ में देखी गई हैं।
प्रश्न 13.
प्रत्येक राग किससे जुड़े हुए हैं ?
उत्तर:
प्रत्येक राग मन के भाव, दिन के समय एवं मौसम से जुड़े हुए हैं।
प्रश्न 14.
रागमाला के चित्र कितने पन्नों (folios) में व्यवस्थित किए गए हैं ?
उत्तर:
रागमाला के चित्र 36 से 42 पन्नों (folios) में व्यवस्थित किए गए हैं।
प्रश्न 15.
प्राचीनकाल की किन्हीं तीन रोमानी कथाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
ढोला-मारु, सोहनी-महीवाल, मृगावत।
प्रश्न 16.
चित्रकला शैली के पसंदीदा ग्रन्थ लिखिए।
उत्तर:
रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, देवी महात्म्य।
प्रश्न 17.
अधिकतम चित्रों में किसका लेखा-जोखा है?
उत्तर:
अधिकतम चित्रों में दरबार के दृश्य या ऐतिहासिक क्षणों का लेखा-जोखा है।
प्रश्न 18.
दरबार के दृश्य या ऐतिहासिक क्षण किसको प्रदर्शित करते हैं?
उत्तर:
यह शिकार अभियान, मुद्दे एवं विजय के दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 19.
मालवा शैली कब फलीभूत हुई?
उत्तर:
मालवा शैली 1600 और 1700 ई. में फलीभूत हुई।
प्रश्न 20.
मालवा शैली कहाँ फैली थी?
उत्तर:
यह मध्य भारत के एक विशाल भू-भाग पर फैली थी।
प्रश्न 21.
मालवा शैली किन तीन अन्य शहरों में फैली थी?
उत्तर:
छोटे स्थानों के साथ-साथ मालवा शैली माण्डु, नुसरतगढ़, नरसयांग शहर में भी बढ़ती गई।
प्रश्न 22.
कहाँ से मालवा के बहुत सारे चित्रों को खोजा गया है?
उत्तर:
दतिया राजमहल से मालवा के बहुत सारे चित्रों को खोजा गया है।
प्रश्न 23.
मुगल शैली कौनसी शताब्दी में विकसित हुई थी?
उत्तर:
मुगल शैली 16वीं शताब्दी में विकसित हुई थी।
प्रश्न 24.
मुगल शैली किन दरबारों में विकसित हुई थी?
उत्तर:
दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी, लाहौर दरबार में।
प्रश्न 25.
मुगल शैली किनके द्वारा शासित थी?
उत्तर:
यह मुगल शासकों द्वारा नियुक्त शक्तिशाली एवं धनी गवर्नरों के द्वारा शासित थी।
प्रश्न 26.
दक्किनी शैली कौनसी शताब्दी से पनपी थी?
उत्तर:
दक्किनी शैली 16वीं शताब्दी से पनपी थी।
प्रश्न 27.
पहाड़ी शैली अपना प्रभाव लेकर कब आई?
उत्तर:
पहाड़ी शैली 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अपना प्रभाव लेकर आई।
प्रश्न 28.
मेवाड़ शैली किससे विशेष रूप से जुड़ी हुई है?
उत्तर:
मेवाड़ शैली रागमाला से विशेष रूप से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 29.
रागमाला कब चित्रित की गई थी?
उत्तर:
रागमाला 1605 में चावण्ड में चित्रित की गई थी।
प्रश्न 30.
किस कलाकार ने 1605 में चावण्ड में रागमाला चित्रित की थी?
उत्तर:
निसारदीन नामक कलाकार ने।
प्रश्न 31.
जगतसिंह प्रथम का शासनकाल कब से कब तक था?
उत्तर:
1628 से 1652 तक।
प्रश्न 32.
कलाकार मनोहर का सबसे प्रभावशाली चित्रण कार्य क्या था?
उत्तर:
रामायण का बालकाण्ड (1649) था।
प्रश्न 33.
बिहारी की सतसई को किसने व कब चित्रित किया?
उत्तर:
जगन्नाथ ने, 1719 में।
प्रश्न 34.
हरिवंश और सूरसागर कौनसी शताब्दी के अन्त में चित्रित किये गये थे?
उत्तर:
17वीं शताब्दी के अन्त में।
प्रश्न 35.
मेवाड़ के कलाकार किन रंगों को प्राथमिकता से प्रयोग में लाते हैं ?
उत्तर:
लाल और पीले रंगों को (तेज, भड़कीले रंग)।
प्रश्न 36.
उदयपुर के पास कौनसा कस्बा वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है?
उत्तर:
नाथद्वारा वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है।
प्रश्न 37.
18वीं शताब्दी में मेवाड शैली किसमें बदल गई?
उत्तर:
निरपेक्ष एवं दरबारी माहौल में।
प्रश्न 38.
बूंदी रागमाला को कहाँ चित्रित किया गया है?
उत्तर:
चुनार में।
प्रश्न 39.
भोज सिंह कौन था?
उत्तर:
एक हाड़ा राजपूत शासक था।
प्रश्न 40.
बूंदी शैली किन शासकों के संरक्षण में फलीभूत हुई?
उत्तर:
राव छतर साल एवं राव भारसिंह के संरक्षण में।
प्रश्न 41.
राव छतर साल को शाहजहाँ के द्वारा कहाँ का गवर्नर बनाया गया था?
उत्तर:
दिल्ली का।
प्रश्न 42.
बुध सिंह के पुत्र का नाम क्या था?
उत्तर:
उम्मेद सिंह (1749-1771)
प्रश्न 43.
बूंदी की शुरुआती शैली का काल कौनसे प्रभाव को दर्शाता है ?
उत्तर:
फ़ारसी प्रभाव को।
प्रश्न 44.
उम्मेद सिंह के उत्तराधिकारी कौन थे?
उत्तर:
बिशन सिंह।
प्रश्न 45.
कब तक बूंदी और कोटा एक ही राज्य के भाग थे ?
उत्तर:
1625 तक।
प्रश्न 46.
कोटा की अपनी शैली कब प्रारम्भ हुई?
उत्तर:
जगत सिंह के शासनकाल में एवं 1660 के आसपास शुरू होकर, कोटा की अपनी शैली थी।
प्रश्न 47.
बीकानेर में राजस्थान का सबसे प्रमुख राज्य कब और किसने स्थापित किया?
उत्तर:
1488 में राव बीका राठौड़ ने बीकानेर में राजस्थान का सबसे प्रमुख राज्य स्थापित किया।
प्रश्न 48.
अनूप सिंह के राज्य में प्रमुख कलाकार कौन था?
उत्तर:
रुकनुद्दीन प्रमुख कलाकार था।
प्रश्न 49.
मारवाड़ी एवं फ़ारसी में लिखे शिलालेखों में क्या बताया गया है ?
उत्तर:
कलाकारों का नाम एवं तिथियों को बताया गया है।
प्रश्न 50.
राजा किशन सिंह कहाँ के राजा के पुत्रों में से एक हैं ?
उत्तर:
जोधपुर के राजा के पुत्रों में से एक हैं।
प्रश्न 51.
किशनगढ़ राज्य की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
1609 में।
प्रश्न 52.
कौनसे कलाकार ने 1623 में पाली में रागमाला का चित्रण किया था?
उत्तर:
कलाकार वीरजी ने।
प्रश्न 53.
17वीं शताब्दी के मध्य जसवंत सिंह द्वारा चित्रकला के कौनसे काल की शुरुआत की गई?
उत्तर:
उत्पादक काल की।
प्रश्न 54.
किसको अजीत सिंह के काल की दरबारी चित्रकलाओं एवं कविता में बहुत अधिक स्थान मिला?
उत्तर:
दुर्गादास एवं उनके नायकत्व को।
प्रश्न 55.
दुर्गादास का किस पर विराजमान चित्र बहुत प्रसिद्ध हुआ था?
उत्तर:
घोड़े पर।
प्रश्न 56.
भारमल ने अपनी बेटी का विवाह किससे किया?
उत्तर:
अकबर से।
प्रश्न 57.
अकबर का नजदीकी मित्र कौन था?
उत्तर:
भगवंत दास अकबर का नजदीकी मित्र था।
प्रश्न 58.
अकबर का सबसे अधिक विश्वासपात्र सेनापति कौन था?
उत्तर:
मानसिंह।
प्रश्न 59.
चित्र बनाकर कहाँ सुरक्षित रखे जाते थे?
उत्तर:
सूरतखाना में।
प्रश्न 60.
कला शैली का प्रसिद्ध कलाकार जयपुर शैली में कौन था?
उत्तर:
साहिबराम।
प्रश्न 61.
जयपुर शैली में दूसरा प्रसिद्ध कलाकार कौन था?
उत्तर:
मुहम्मद शाह।
प्रश्न 62.
दरबारी जीवन के लेखा-जोखा की घटनाओं से जयपुर शैली में कौन आकर्षित थे?
उत्तर:
सवाई माधोसिंहजी।
प्रश्न 63.
जयपुर शैली में स्वर्ण का अत्यधिक प्रयोग कौनसी शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक किया गया?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक।
प्रश्न 64.
भागवत पुराण किस शैली का विशिष्ट उदाहरण है?
उत्तर:
मालवा शैली का।
प्रश्न 65.
मारु रागिनी कहाँ का संग्रह है?
उत्तर:
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली का संग्रह है।
प्रश्न 66.
ढोला-मारु में राजकुमार एवं राजकुमारी को किस पर भागकर जाते हुए बताया गया है ?
उत्तर:
दोनों को ऊँट पर भागकर जाते हुए बताया गया है।
प्रश्न 67.
भावसिंह के बाद गद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर:
अनिरुद्ध सिंह।
प्रश्न 68.
तुलची राम ने 1680 में किसका चित्र चित्रित किया?
उत्तर:
अनिरुद्ध सिंह का।
प्रश्न 69.
तुलची राम एवं राजकुमार कंवर अनिरुद्ध सिंह के नाम कहाँ की ओर लिखे गये थे?
उत्तर:
चित्र के पीछे की ओर लिखे गये थे।
प्रश्न 70.
चौगान खिलाड़ी का चित्र कब बनाया गया था?
उत्तर:
1810 में।
प्रश्न 71.
'कृष्ण झूला झूल रहे हैं एवं राधा उदास है' किसका चित्रण है ?
उत्तर:
रसिकप्रिया का चित्रण है।
प्रश्न 72.
सावंत सिंह ने अपना नाम क्या रखा था?
उत्तर:
नागरीदास।
प्रश्न 73.
नागरीदास किससे प्रेम करता था?
उत्तर:
वह एक छोटी उम्र की गायिका से बेइन्तहा प्रेम करता था।
प्रश्न 74.
'राम चित्रकूट में अपने परिवार के सदस्यों से मिलते हैं', रामायण का यह चित्र किसने व कब बनाया था?
उत्तर:
गुमान ने, 1740 से 1750 के मध्य में।
प्रश्न 75.
रामायण का चित्रण क्या दर्शाता है ?
उत्तर:
निरन्तर कथा कहने के श्रेष्ठतम उदाहरण को दर्शाता है।
प्रश्न 76.
जब संतों ने राम को दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनाया तब राम की प्रतिक्रिया क्या हुई?
उत्तर:
राम दुःख में व्याकुल होकर गिर गए।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I (SA-I)
प्रश्न 1.
राजस्थानी चित्र शैली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में प्रचलित जैन शैली (अपभ्रंश, गुजरात तथा पश्चिमी भारतीय) की परम्परा में नया कलेवर लेकर राजस्थान में जो कला विकसित हुई, उसे राजस्थानी चित्र शैली के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2.
'राजस्थानी चित्र शैली' किससे सम्बद्ध है ?
उत्तर:
'राजस्थानी चित्र शैली' नामक शब्द राजाओं के राज्य और ठिकानों से सम्बद्ध है, जो वर्तमान में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के भागों से मिलकर बना है।
प्रश्न 3.
'राजपूत चित्र' नामक शब्द के बारे में लिखिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध विद्वान आनन्द कुमारस्वामी के द्वारा 1916 में 'राजपूत चित्र' नामक शब्द का प्रयोग किया गया था जो यह व्यक्त करता था कि अधिकांश शासक एवं संरक्षक जो इन राज्यों से थे वे सभी राजपूत थे।
प्रश्न 4.
'बणी ठणी' नामक चित्र किस शैली में चित्रित है तथा इस चित्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
मारवाड़ की किन्हीं तीन मुख्य चित्र शैलियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मारवाड़ की तीन मुख्य चित्र शैलियाँ हैं-(1) जोधपुर शैली (2) बीकानेर शैली (3) किशनगढ़ शैली।
प्रश्न 6.
'बणी ठणी' नामक चित्र के चित्रकार का पूरा नाम बताइए। यह किस राजा के शासनकाल में बना?
उत्तर:
प्रश्न 7.
मेवाड़ शैली की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 8.
राजस्थान चित्र शैली में किन स्थानों को शामिल किया गया है ?
उत्तर:
इसमें मेवाड़, बूंदी, कोटा, जयपुर, बीकानेर, किशनगढ़, जोधपुर (मारवाड़), मालवा, सिरोही और 16वीं व 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के प्रमुख स्थानों को शामिल किया गया है।
प्रश्न 9.
राजस्थान चित्र शैली की विषयवस्तु के बारे में लिखिए।
उत्तर:
यह एक धार्मिक विषयवस्तु के रूप में प्रेम की अवधारणा लेकर पली-बढ़ी जहाँ पर ईश्वरीय निकटता एवं संवेदना का प्रसन्न कर देने वाला संश्लेषण व्याप्त था।
प्रश्न 10.
'ग्वाले के गीत' के बारे में संक्षिप्त में लिखिए।
उत्तर:
'ग्वाले के गीत' संस्कृत का एक कवित्व गीत है जो श्रृंगार रस को उत्पन्न करता है। इसमें सांसारिक आकृतियों द्वारा राधा एवं कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम का चित्रण किया गया है।
प्रश्न 11.
भानुदत्त के बारे में लिखिए।
उत्तर:
भानुदत्त नामक एक मैथिली ब्राह्मण 14वीं शताब्दी में बिहार में रहता था, उसने कलाकारों का अन्य प्रिय ग्रन्थ 'रसमंजरी' लिखा जिसे प्रसन्नता के गुलदस्ते के रूप में व्यक्त किया गया। यह ग्रंथ संस्कृत में लिखा गया था।
प्रश्न 12.
रसमंजरी ग्रंथ पर क्या लिखा था?
उत्तर:
इसमें बाल, तरुण एवं प्रौढ़ावस्था को बताया गया है। इसमें शारीरिक स्वरूप के गुण के अनुसार पद्मिनी, चित्रणी, शंखिनी, हस्तिनी आदि स्वरूपों को बताया गया है एवं खण्डिता, वासकसज्जा, अभिसारिका, उत्का आदि भावनात्मक दशाओं को बताया गया है।
प्रश्न 13.
रसिकप्रिया पर संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
'रसिकप्रिया' पुस्तक का अनुवाद 'विशेषज्ञ की प्रसन्नता' के तौर पर किया गया है, जिसे जटिल कवित्व अनुवादों से परिपूर्ण माना गया है एवं विशेष दरबारियों में सौन्दर्य के आनन्द हेतु इसकी रचना की गई थी।
प्रश्न 14.
'रसिकप्रिया' को किस भाषा में लिखा गया था?
उत्तर:
केशवदास के द्वारा ब्रजभाषा में लिखा गया था जो कि 1591 में ओरछा के मधुकर शाह का दरबारी कवि था।
प्रश्न 15.
चित्रकलाएँ किन-किन के चित्रण प्रदर्शित करती हैं ?
उत्तर:
चित्रकलाएँ पिकनिक, बगीचे के गोठ, नृत्य, संगीत प्रदर्शन, धार्मिक संस्कारों, त्यौहारों, वैवाहिक जुलसों, राजाओं के दरबारियों और उनके परिवार जनों के चित्रों, शहर की झलक, पशु-पक्षियों का चित्रण प्रदर्शित करती हैं।
प्रश्न 16.
बुन्देलखण्ड के चित्रों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
बुन्देलखण्ड के दतिया महल में बनी भित्ति-चित्र स्पष्ट रूप से मुगल प्रभाव को नकारती हैं। ये भित्ति चित्र कागज पर किए गए उन कार्यों से काफी भिन्न हैं, जो कि विशेष रूप से देशज द्विआयामी मितव्ययिता से किए गए कार्य हैं।
प्रश्न 17.
श्रीनाथजी के बारे में मेवाड़ शैली के आधार पर लिखें।
उत्तर:
कई उत्सवों के अवसरों के लिए देवता श्रीनाथजी के लिए कपड़े पर पिछवाई नामक बड़ी पृष्ठभूमि को चित्रित किया गया था।
प्रश्न 18.
चुनार के शेष बचे चित्रों के पन्नों (folios) के समूह क्या हैं ?
उत्तर:
चुनार संग्रह के कुछ अवशिष्ट पन्नों (folios) में से हैं-रागिनी खम्बावती, बिलावल, मालाश्री, भैरवी, पतमंजरी व कुछ अन्य।
प्रश्न 19.
जहाँगीर ने बँदी राज्य का विभाजन कर क्या किया?
उत्तर:
जहाँगीर ने बूंदी राज्य का विभाजन कर राव रतन सिंह (बूंदी के भोज सिंह के पुत्र) के बेटे मधुसिंह को उपहार में दिया क्योंकि उसने राजकुमार खुर्रम (शाहजहाँ) की दक्षिण में किए गएं विद्रोह से उसे बहादुरी से बचाया था।
प्रश्न 20.
कोटा और बूंदी की शुरुआती चित्रकला में फर्क करना सम्भव क्यों नहीं हुआ?
उत्तर:
चित्रों में फर्क किया जाना सम्भव नहीं हुआ क्योंकि कोटा के चित्रकारों ने बूंदी का प्रभाव प्राप्त कर लिया था।
प्रश्न 21.
उम्मेद सिंह के बारे में संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
उम्मेद सिंह (1770-1819) 10 वर्ष की उम्र में राज-गद्दी पर आरूढ़ हुए। परन्तु उसका शक्तिशाली राज प्रतिनिधि जालिम सिंह तरुण राजा को शिकार का आनन्द देता था एवं वह स्वयं राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करता था। इस प्रकार उम्मेद सिंह अपनी प्रारम्भिक अवस्था से ही जंगली जीवन एवं खेलकूद एवं शिकार के अभियानों में अपना ज्यादातर समय बिताते थे।
प्रश्न 22.
कोटा शैली के चित्रकारों की विशेषता बताएँ।
उत्तर:
कोटा शैली के चित्रकार जानवरों एवं संघर्ष को व्यक्त करने में महारत प्राप्त थे।
प्रश्न 23.
"बीकानेर शैली का जुड़ाव मुगलों के साथ रहा।" कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मुगलों के साथ बीकानेर का लम्बा जुड़ाव रहा जिससे बीकानेर की चित्रकला एक विशेष भाषा में विकसित हुई जो कि मुगल लालित्य एवं वशीभूत रंगों से प्रभावित थी।
प्रश्न 24.
मण्डी किसे कहते हैं ? बीकानेर शैली के आधार पर बताइए।
उत्तर:
बीकानेर में स्टूडियो स्थापित करने की प्रचलित प्रथा 'थी जिन्हें मण्डी कहा जाता था, जहाँ पर एक मुख्य कलाकार के पर्यवेक्षण में कलाकारों का एक समूह कार्य करता था।
प्रश्न 25.
उस्ताज या उस्ताद कहकर किसे पुकारा जाता था?
उत्तर:
बीकानेर शैली में कलाकारों के चित्र बनाना अनोखी परम्परा रही एवं उनमें से अधिकांश का चित्रण उनकी वंशावली की सूचना के साथ किया जाता था। उन्हें उस्ताज या उस्ताद कहकर पुकारा जाता था।
प्रश्न 26.
बीकानेर शैली चित्र शैली का श्रेष्ठ आलेख कैसे बनी?
उत्तर:
बहियों (Bahis) के लेखों ने, दैनिक शाही रोजनामचों ने एवं बीकानेर चित्र शैली के असंख्य शिलालेखों ने इसे चित्र शैली का श्रेष्ठ आलेख बना दिया।
प्रश्न 27.
"जसवंत सिंह के असंख्य चित्र अभी भी विद्यमान हैं।" कथन को समझाइए।
उत्तर:
जसवंत सिंह के असंख्य चित्र अभी भी विद्यमान हैं। उनकी श्रीनाथजी के वल्लभ सम्प्रदाय के प्रति रुचि के कारण, उन्होंने कृष्ण से सम्बन्धित बहुत-सी विषय वस्तुओं को संरक्षण प्रदान किया जिसमें भागवत पुराण सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
प्रश्न 28.
जोधपुर चित्र शैली के अंतिम विकासात्मक काल के बारे में बताइए।
उत्तर:
जोधपुर चित्र शैली का अन्तिम विकासात्मक चरण मानसिंह (1803-1843) के शासनकाल में संयोग से मिला। उनके काल में रामायण (1804), ढोला मारु, पंचतंत्र (1804) और शिव पुराण जैसे महत्त्वपूर्ण चित्र संग्रह बने।
प्रश्न 29.
मानसिंह कौन था?
उत्तर:
मानसिंह नाथ सम्प्रदाय का अनुयायी था और नाथ गुरुओं के साथ उसके चित्र विद्यमान हैं। नाथ चरित्र (1824) के संग्रह का चित्रण भी किया गया।
प्रश्न 30.
जयपुर शैली में दरबार के आलेख क्या बताते हैं ?
उत्तर:
जयपुर शैली में दरबार के आलेख यह बताते हैं कि कुछ मुगल चित्रकारों को दिल्ली से लाया गया जो कि जयपुर कला शैली का भाग बन गए।
प्रश्न 31.
सवाई जयसिंह किस ओर आकर्षित हुआ?
उत्तर:
सवाई जयसिंह वैष्णववाद की ओर आकर्षित हुआ और उसने राधा-कृष्ण की विषयवस्तु पर असंख्य चित्रकलाएँ निर्मित की।
प्रश्न 32.
सवाई माधोसिंह किनसे आकर्षित हुआ था?
उत्तर:
सवाई माधोसिंह (1750-1767) दरबारी जीवन के लेखा-जोखा की घटनाओं से आकर्षित हआ था।
प्रश्न 33.
सवाई प्रताप सिंह के समय क्या हुआ था?
उत्तर:
सवाई प्रताप सिंह के समय के दौरान शाही चित्रों, दरबारी शानो-शौकत, वैभव एवं प्रदर्शन से अलग साहित्यिक एवं धार्मिक विषयवस्तु जैसे गीत गोविन्द, रागमाला, भागवत पुराण इत्यादि को नए सिरे से प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न 34.
जयपुर शैली में किनको प्राथमिकता दी गई थी?
उत्तर:
जयपुर शैली में बड़ी आकृति के रूपों को प्राथमिकता दी गई एवं सजीव चित्रों को बनाया गया।
प्रश्न 35.
भागवत पुराण क्या है ?
उत्तर:
भागवत पुराण को वर्णित करते दृश्य, जो कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन एवं उनकी लीला के विभिन्न दृश्यों को दर्शाते हैं। ये दृश्य कलाकारों के लिए मध्यकाल में प्रसिद्ध विषयवस्तु रहे हैं।
प्रश्न 36.
चौगान खिलाड़ी की चित्रकला में बताया गया कि 'यह मुख्य न्यायालय से हो भी सकता है और नहीं भी।' स्पष्ट करें।
उत्तर:
यह मुख्य दरबार की है क्योंकि यह कई शैलियों के प्रकारात्मक प्रभाव को प्रकट करती है, जिस तरह से महिलाओं को चित्रित किया गया है, वह मुगल शैली है, घोड़ों के चित्रण से दक्षिणी प्रतीत होती है।
प्रश्न 37.
चौगान खिलाड़ी की विशेषता बताइए।
उत्तर:
चेहरे की विशेषताओं से बूंदी या किशनगढ़ की लगती है और हरी पृष्ठभूमि समतल मैदान की स्वदेशी प्राथमिकता का सुझाव देती है।
प्रश्न 38.
'कृष्ण झूला झूल रहे हैं एवं राधा उदास है'-यह कैसी रचना है?
उत्तर:
यह सीधी-सादी रचना है जो स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व और भू-भाग के तत्वों का कम से कम एवं सुझावात्मक प्रतिनिधित्व करती है।
प्रश्न 39.
भ्रातवध के झगड़े से परेशान होकर सावंत सिंह ने क्या किया?
उत्तर:
भ्रातृवध के झगड़े से परेशान होकर सावंतसिंह ने परिणामस्वरूप 1757 में राजगद्दी को त्याग दिया और वृन्दावन में बणी ठणी के साथ रहने लगा था।
प्रश्न 40.
माताओं को देखकर राम, लक्ष्मण और सीताजी ने क्या किया?
उत्तर:
माताओं को देखकर राम, लक्ष्मण और सीताजी सम्मान से झुक जाते हैं। दुःख में व्याकुल कौशल्या राम के पास दौड़कर उसे बाँहों में भर लेती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II (SA-II)
प्रश्न 1.
"मालवा, राजपूत चित्र शैली की धुरी रहा था।" कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
विद्वान आनन्द कुमारस्वामी ने 1916 में 'राजपूत चित्र' नामक शब्द का प्रयोग किया गया था। कुमारस्वामी ने विशेष रूप से इस शब्द का प्रयोग सर्वाधिक प्रसिद्ध मुगल चित्रकला शैली से राजस्थानी चित्र शैली को अलग श्रेणीबद्ध करने एवं दोनों में भिन्नता बताने के लिए किया था। इसलिए मालवा, जिसमें मध्य भारत की रियासतें शामिल थीं, और पहाड़ी शैली, जिसमें पहाड़ी या उत्तर-पश्चिम भारत के हिमालय क्षेत्र के पर्वतीय प्रदेश शामिल थे, भी राजपूत चित्र शैली की परिधि/सीमा में शामिल थे।
प्रश्न 2.
भारतीय चित्रकला का अध्ययन कब से चला आ रहा है?
उत्तर:
कुमारस्वामी के लिए चित्रकला की स्वदेशी परम्परा, जो मुगलों के आगमन से पूर्व उस मुख्य भू-भाग में विद्यमान थी, का प्रतिनिधित्व करती है। बहुत पहले से भारतीय चित्रकला का अध्ययन चला आ रहा है और आगे चलकर 'राजपूत शैली' अप्रचलित शब्द हो गया। इसके बजाय राजस्थानी या पहाड़ी जैसी विशेष श्रेणियों का प्रयोग किया जाने लगा।
प्रश्न 3.
"राज्यों में चित्रात्मकता का प्रकार भिन्न था।" स्पष्ट करें।
उत्तर:
रियासतों में उभरी एवं विकसित हुईं चित्रात्मक शैलियाँ व्यवहारगत प्रयोग के सन्दर्भ में काफी विविध थीं-उत्कृष्ट या प्रगाढ़; रंगों की प्राथमिकताएँ (चमकदार या सौम्य); रचनात्मक तत्व (स्थापत्य कला, आकृति व प्रकृति का चित्रण); कथन के तौर-तरीके; प्रकृतिवाद के लिए निकटता-या चरम व्यवहार पर जोर दिया गया था।
प्रश्न 4.
चित्रकारियाँ जो दीवारों की परत पर बनीं, उनकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
चित्रों को वास्ली (Waslis) पर बनाया जाता था-वास्ली परतदार हस्तनिर्मित कागज होता था, जिसे गोंद (glue) द्वारा चिपकाकर इच्छानुसार मोटा कर लिया जाता था। कागजों (Waslis) पर काले या भूरे रंगों की बाह्य रेखायें बनाई जाती थीं और उन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ करने या कुछ प्रयोगात्मक तौर पर चिपकाने हेतु जगह बनाई जाती थी। रंग करने के पदार्थ विशेषतः खनिजों या बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना या चाँदी से प्राप्त किए गए जिन्हें गोंद के साथ मिलाया गया ताकि जिल्द (binding medium) बनाई जा सके। ऊँट और गिलहरी के बालों को ब्रुश हेतु उपयोग में लाया गया। पूर्ण होने पर चित्र को सुलेमानी पत्थर से चिकनाया (burnish) गया ताकि इसे एकसमान एवं आकर्षक चमक प्रदान की जा सके।
प्रश्न 5.
"चित्रण का कार्य एक प्रकार का सामूहिक कार्य था।" कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
चित्रण का कार्य एक प्रकार का सामूहिक कार्य था, मुख्य कलाकार रचना करता एवं प्रारम्भिक आरेख बनाया करता। उसके पश्चात् विशेषज्ञ रंग करने का, आकृति बनाने का, स्थापत्यता, भू-भाग, जानवर आदि का कार्य करते थे। वे यह कार्य छोटे-छोटे टुकड़ों में करते, मुख्य कलाकार उन्हें अन्तिम स्वरूप प्रदान करता था। हाशिए पर गीत को लिखा जाता था।
प्रश्न 6.
चित्रकला की विषयवस्तु में कृष्ण के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को रचयिता के रूप में माना गया जहाँ समस्त रचना एक आनन्ददायी मुद्दा रही और राधा उसका केन्द्र रहीं, उन्हें एक मानवीय आत्मा मानकर भगवान की पूजा हेतु प्रस्तुत किया गया। देवता के प्रति आत्मा का समर्पण राधा के द्वारा स्वयं को अपने प्रिय कृष्ण हेतु भुला दिए जाने को 'गीत गोविन्द' के चित्रों में देखा जा सकता है।
प्रश्न 7.
रसिकप्रिया की भावनात्मक स्थितियों को लिखें।
उत्तर:
रसिकप्रिया बहुत सारी भावनात्मक स्थितियों को खोजती है; इसमें प्रेम, साहचर्य, चपलता, ईर्ष्या, झगड़ा एवं उसके बाद पृथक् होना, गुस्सा आदि को बताया गया है। ये स्थितियाँ राधा एवं कृष्ण के माध्यम से व्यक्त किये गये साधारण प्रेमियों में आमतौर पर होती हैं।
प्रश्न 8.
कविप्रिया ग्रन्थ के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
केशव दास द्वारा 'कविप्रिया' नामक एक कविता का ग्रंथ राय परबिन के सम्मान में लिखा गया था, जो कि ओरछा के एक प्रसिद्ध दरबारी थे। यह प्रेम की गाथा है तथा जिसके 10वें अध्याय, जिसका शीर्षक बारामासा है, में वर्ष के 12 महीनों के मौसम का चित्रण किया गया है। इसमें विभिन्न मौसमों में लोगों के दैनिक जीवन का वर्णन किया गया है एवं इन महीनों से जुड़े विभिन्न त्यौहारों को भी बताया गया है। केशव दास यह बताता है कि इसमें नायिका किस प्रकार नायक का दिल जीत लेती है कि वह उसे छोड़े नहीं और वे एक साथ आगे की एक यात्रा पर चलें।
प्रश्न 9.
बिहारीलाल द्वारा लिखित 'बिहारी सतसई' के बारे में लिखें।
उत्तर:
बिहारी लाल द्वारा लिखित 'बिहारी सतसई' जिसमें 700 दोहे (सतसई) कहावत एवं नैतिकता बुद्धिवाद की रचनाएँ हैं। यह माना जाता है कि उसने 1662 के लगभग सतसई की रचना की जब वह जयपुर दरबार में मिर्जा राजा जयसिंह के संरक्षण में था)। संरक्षक का यह नाम सतसई के मीतों में कई बार आया है। सतसई को वृहद् रूप में मेवाड़ में चित्रित किया गया जबकि इसमें पहाड़ी शैली में बहुत कम कार्य हुआ है।
प्रश्न 10.
बुन्देलखण्ड की चित्रकला किसको सहयोग करती है ?
उत्तर:
बुन्देलखण्ड की चित्रकला में संरक्षक राजाओं का उल्लेख पूर्णतया विलुप्त है तथा इस शैली के चित्र (Portraits) यह भी दावा करते हैं कि इन चित्रों को दतिया प्रशासकों ने घुमक्कड़ कलाकारों से खरीदा था। घुमक्कड़ कलाकार अपने साथ रामायण, भागवत पुराण, अमरू शतक, रसिकप्रिया, रागमाला व बारामासा तथा अन्य प्रसिद्ध विषयों के चित्रों को लेकर घूमते थे।
प्रश्न 11.
मेवाड़ शैली को संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर:
इस संग्रह में एक कालफन (Colophon) पृष्ठ है जो ऊपर दी गई महत्त्वपूर्ण सूचना को प्रकट करता है । यह संग्रह (set) अपना दृश्य सौन्दर्य साझा करता है तथा अपनी प्रत्यक्ष निकटता, सामान्य रचनाओं, सूक्ष्म सजावटी विवरणों व चमकीले रंगों में 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के चित्र शैली के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बताता है।
प्रश्न 12.
18वीं शताब्दी की मेवाड़ी चित्रकला को समझाइए।
उत्तर:
मेवाड़ चित्रकला का वातावरण 18वीं शताब्दी में आगे बढ़ते हुए लौकिक तथा दरबारी हो गया। न केवल चित्रांकन सम्मोहन का विकास हुआ अपितु वृहदाकार एवं भड़कीले रंगों वाले दरबारी दृश्यों, शिकार अभियानों, उत्सवों, जनाना (Zenana) कार्यकलापों, खेलों इत्यादि को भी विषयों के रूप में व्यापक स्तर पर पसंद किया गया।
प्रश्न 13.
राग दीपक के बारे में लिखिए।
उत्तर:
राग दीपक को रात्रि बैठाव में दर्शाया गया है, वह अपनी प्रेमिका के साथ एक कक्ष में बैठा हुआ है जो कि चार दीपों की लपटों से गर्मजोशी से प्रकाशित है; दो दीप धारकों को अलंकृत मानव आकृतियों की तरह नवीन रूप से आकार दिया गया है।
प्रश्न 14.
"आकाश असंख्य सितारों से जगमगा रहा है और चन्द्रमा पूर्णतः पीला है।" इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
आकाश असंख्य सितारों से जगमगा रहा है और चन्द्रमा पूर्णतः पीला पड़ गया है, जिससे संकेत होता है कि यह अभी-अभी उदय नहीं हुआ है बल्कि रात्रि काफी बीत चुकी हैं तथा युगल एक-दूसरे के साथ कई घण्टे बिता चुका है।
प्रश्न 15.
बारामासा पर संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
बारामासा, बूंदी चित्रों का एक प्रसिद्ध विषय है। यह केशव दास द्वारा चित्रित 12 महीनों का वायुमण्डल सम्बन्धी विवरण है, जो कि राय परबिन (ओरछा के सुविख्यात दरबारी) हेतु लिखित कविप्रिया के दसवें अध्याय का भाग है।
प्रश्न 16.
कोटा शैली पर लेख लिखें।
उत्तर:
बूंदी की पूर्णता को प्राप्त चित्र शैली की परम्परा ने कोटा को राजस्थानी शैली की प्रसिद्ध चित्रकला का स्थान प्रदान किया है, जो शिकार के दृश्यों को प्रदर्शित करने में माहिर है। ये दृश्य चित्र जानवरों के पीछा करने की एक ललक और असाधारण उत्साह को प्रतिबिम्बित करते हैं।
प्रश्न 17.
शिलालेख की गवाही के आधार पर बीकानेर शैली के बारे में बताइए।
उत्तर:
शिलालेख की गवाही के आधार पर, 17वीं शताब्दी में मुगल चित्रशाला से बीकानेर में कई महान कलाकार आए. और वहाँ काम किया। करण सिंह ने उस्ताद अली रजा को काम पर रखा, जो कि दिल्ली का प्रमुख चित्रकार था। उसका प्रारम्भिक कार्य बीकानेर शैली का प्रतिनिधित्व करता है जिसे 1650 के लगभग के काल का कहा जाता है।
प्रश्न 18.
"अनूप सिंह के राज्य में रुकनुद्दीन (जिसके पुरखे मुगल दरबार से आए थे ) प्रमुख कलाकार था।" कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
अनूप सिंह के राज्य काल में, रुकनुद्दीन (जिसके पुरखे मुगल दरबार से आए थे) प्रमुख कलाकार था, जिसकी कला दक्षिणी और मुगल परम्परा का स्वदेशी मिश्रण थी। उसने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को चित्रित किया था, जैसे-रामायण, रसिकप्रिया और दुर्गा सप्तशती। उसकी चित्रशाला में इब्राहीम, नाथू, साहिबदीन और ईसा अन्य प्रसिद्ध कलाकार थे।
प्रश्न 19.
इब्राहीम के कार्यों के बारे में बीकानेर शैली के आधार पर लिखें।
उत्तर:
इब्राहीम के कार्यों में स्वप्न जैसी धुंधली-सी दिखने वाली गुणवत्ता थी। उसकी आकृतियाँ भारी सुन्दर दिखने वाले चेहरों वाली थीं। उसका स्टूडियो सबसे अधिक फलदार मालूम पड़ता है क्योंकि उसका नाम बारामासा, रागमाला और रसिकप्रिया जैसे विभिन्न संग्रहों पर दिया हुआ है।
प्रश्न 20.
किशनगढ़ शैली की विशेषता लिखें।
उत्तर:
सभी राजस्थानी लघु चित्रों में सर्वाधिक उच्च शैली की किशनगढ़ के चित्र अपनी खास विशेषताओं और विशिष्ट चेहरे के प्रकार द्वारा प्रतिष्ठित है। जिसे धनुषाकार भौंहें, कमल की पंखुड़ी के समान आँखें जो हल्की सी गुलाबी रंग की हैं, झुकी हुई पलकें, तीखी पतली सीधी नाक और पतले होंठ द्वारा उद्धरित किया जाता है।
प्रश्न 21.
किशनगढ़ राज्य की विशिष्ट शैली कब विकसित हुई ?
उत्तर:
राज्य की एक विशिष्ट शैली जिसमें मानव रूप को सामान्यतः लम्बा किया गया, हरे रंग का अत्यधिक उपयोग किया गया और सुन्दर भू-भाग का चित्रण करने की लगन राजसिंह (1706-1748) के शासनकाल में 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विकसित हुई।
प्रश्न 22.
निहालचन्द पर संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
निहालचन्द, सावंत सिंह का सबसे प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ कलाकार था। निहालचन्द ने 1735 और 1757 के मध्य सावंतसिंह के लिए कार्य किया, और सावंतसिंह की कविता पर चित्र बनाया, जिसमें राधा-कृष्ण के दैवीय प्रेम का चित्रण दरबारी आवरण में किया। जो कि अक्सर अपने मनोरम परिदृश्य समायोजन की विशालता और सूक्ष्मता में छोटे दिखाई देते हैं। किशनगढ़ के कलाकारों ने खाकों (Vistas) का चित्रण विशिष्ट प्रभावी रंगों में किया है।
प्रश्न 23.
महाराजा जसवंत सिंह के बारे में बताइए।
उत्तर:
17वीं शताब्दी के मध्य महाराजा जसवंत सिंह (1638-1678) द्वारा चित्रकला के एक उत्पादक काल की शुरुआत की गई। उनके संरक्षण में 1640 के लगभग दरबारी जीवन के प्रदर्शन एवं चित्रांकन की एक दस्तावेजी चित्रकला की परम्परा शुरू हुई। जिसने 19वीं शताब्दी तक फोटोग्राफी के आने तक प्रसिद्धि प्राप्त की।
प्रश्न 24.
जोधपुर चित्र शैली पर लेख लिखिए।
उत्तर:
रामायण के चित्र बहुत रुचिकर रहे जैसे कि कलाकार ने राम की अयोध्या के चित्रण में जोधपुर की समझ को काम में लिया। इस प्रकार, किसी को इसका आभास बाजार, गलियों एवं दरवाजों इत्यादि से हो जाता है जो जोधपुर के काल के हैं । यह सभी शैलियों के लिए सही है कि स्थानीय स्थापत्य, वेशभूषा एवं सांस्कृतिक पक्ष राम, कृष्ण एवं अन्य की कथाओं के साथ गुंथ गई है और उनका चित्रण चित्रों में किया गया है।
प्रश्न 25.
"मारवाड़ चित्र शैली 19वीं शताब्दी तक बने थे।" इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी तक बने मारवाड़ चित्रों के पीछे दिए गए विवरण चित्रकला के बारे में ज्यादा सूचनाएँ नहीं देते हैं। कदाचित् तिथियों का अंकन किया जाता था। कलाकार का नाम, स्थान का वर्णन और भी दुर्लभ था।
प्रश्न 26.
सवाई जयसिंह कौन थे?
उत्तर:
सवाई जयसिंह (1699-1743) एक प्रभावशाली शासक था। जिसने अपने नाम से 1727 में जयपुर को नई राजधानी बनाई और आमेर से जयपुर आ गया। उसके काल में जयपुर शैली की चित्रकला पनपी और एक सुपरिभाषित स्वतंत्र शैली के रूप में सामने आई।
प्रश्न 27.
सवाई जयसिंह के काल में जयपुर शैली में क्या हुआ?
उत्तर:
उसके शासनकाल में कलाकारों द्वारा रसिकप्रिया, गीत गोविन्द, बारामासा और रागमाला पर आधारित संग्रहों का चित्रांकन किया गया, जहाँ पर नायक की आकृति राजा के समान प्रतिबिम्बित होती थी।
प्रश्न 28.
सवाई ईश्वरी सिंह के बारे में बताइए।
उत्तर:
सवाई ईश्वरी सिंह (1743-1750) ने कला के उसी संरक्षण को आगे बढ़ाया। धार्मिक एवं साहित्यिक ग्रंथों के अतिरिक्त, उसने अपने शौक के समय के दृश्य चित्र भी बनवाए जैसे हाथी की सवारी, सुअर और चीते का शिकार, हाथी की लड़ाई और इसी तरह के अन्य चित्र।
प्रश्न 29.
सवाई प्रताप सिंह के बारे में बताइए।
उत्तर:
सवाई प्रताप सिंह (1779-1803) की आकांक्षाओं के अन्तर्गत, 18वीं शताब्दी में पूर्व से हावी मुगल प्रभाव कम हुआ एवं नवीन स्वरूप के साथ जयपुर शैली की सौन्दर्य बोधता पनपी, जो कि स्वदेशी एवं मुगल विशेषताओं से युक्त थी। यह जयपुर की कला के बढ़ने का दूसरा अवसर था और प्रताप सिंह ने 50 कलाकारों को नियुक्त किया था। वह विद्वान, कवि, उर्वर दिमाग वाला लेखक और कृष्ण का अनन्य भक्त था।
प्रश्न 30.
"साहिबदीन को चितारा का रूप बताया गया है।" इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
साहिबदीन को चितारा का रूप बताया गया, जिसका अर्थ है कि "वह व्यक्ति जो चित्र बनाता है।" और चित्र बनाने के कार्य को लिखितम कहा गया है, इसका अनुवाद लिखने के अर्थ में है कि कलाकार का उद्देश्य चित्र पर अंकित लिखित कविता के समकक्ष एक चित्र का निर्माण करना है।
प्रश्न 31.
मारु को रागश्री की पत्नी के रूप में क्यों समायोजित किया गया है ?
उत्तर:
मारु को रागश्री की पत्नी के रूप में समायोजित किया गया है क्योंकि यह ढोला-मारु का प्रसिद्ध नृत्य गीत है जो कि लोकगीत में गहराई तक डूबा है और उस क्षेत्र में परम्परागत रूप में गाया जाता है।
प्रश्न 32.
ढोला-मारु में ढोला और मारु कौन हैं ?
उत्तर:
यह ढोला नामक राजकुमार की कहानी है और राजकुमारी मारु है जो कि विभिन्न प्रकार के संघर्षों को झेलते हुए अन्त में साथ हो जाते हैं। संघर्ष और क्लेश, बुरे सम्बन्धी, युद्ध, दुखद दुर्घटनाएँ इत्यादि कथ्यात्मकता का आधार बनाती हैं। यहाँ, ऊँट पर भागकर जाते हुए दोनों को चित्रित किया गया है।
प्रश्न 33.
राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा का चित्र क्या दर्शाता है? ...
उत्तर:
यह कलाकार के गति और घोड़े के चलने के अनुभव को बताता है तथा एक घोड़ा इतनी गति में है कि वह आगे की जमीन को मानने हेतु पूर्णत: मना कर देता है अर्थात् घोड़ा उड़ रहा है। घोड़े को हवा में ऊँचाई से उछलते हुए देखा जा सकता है कि जमीन दिखाई नहीं देती है।
प्रश्न 34.
'बणी ठणी' चित्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशनगढ़ के राजा सावन्तसिंह के चित्रकार निहालचन्द ने 'बणी ठणी' नामक चित्र का निर्माण किया। यह किशनगढ़ शैली का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र है। इसमें बणी ठणी के बायें हाथ में कमल की दो कलियाँ हैं और दाहिने हाथ की दो अंगुलियों से वह अपनी चुन्नी को थामे हुए बूंघट कर रही है। पृष्ठभूमि गहरे हरे रंग में सपाट है तथा चित्र में सभी रंगों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 35.
जयपुर शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 36.
पर्ण कुटीर क्या है?
उत्तर:
साधारण-सी दिखने वाली झोंपड़ियाँ, जिन्हें पर्ण कुटीर कहा गया है, वे सभी साधारण सामग्री से बनाई गई हैं जैसे कीचड़, लकड़ी, हरी पत्तियाँ। इन्हें जंगल में पहाड़ की तलहटी में बनाया गया है, ये पेड़ों के झुरमुट से घिरी हुई हैं जहाँ पर रामायण का यह घटनाक्रम चला।
प्रश्न 37.
"राजा सावंतसिंह (नागरीदास) का समय किशनगढ़ कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था।" वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशनगढ़ के राजा सावंतसिंह (नागरीदास) की कला, संगीत एवं साहित्य में विशेष रुचि थी। उनके कलात्मक व्यक्तित्व ने किशनगढ शैली को उत्कर्ष पर पहँचा दिया। राजा सावंतसिंह के शासनकाल में 'किशनगढ़ शैली' में असाधारण सौन्दर्य वाली कृतियों का निर्माण हुआ। सावंतसिंह के आश्रित चित्रकार निहालचन्द ने राधा व कृष्ण का सुन्दर रूप चित्रण किया, जिसमें राधा की मुखाकृति को बणी ठणी के चेहरे पर आधारित किया गया।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
राजस्थानी चित्र शैली पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
'राजस्थानी चित्र शैली' नामक शब्द राजाओं के राज्य और ठिकानों से सम्बद्ध है, जो वर्तमान में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के भागों में मिलकर बना है। इसमें मेवाड़, बूंदी, कोटा, जयपुर, बीकानेर, किशनगढ़, जोधपुर (मारवाड़), मालवा, सिरोही और 16वीं एवं 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के प्रमुख स्थानों को शामिल किया गया है।
प्रसिद्ध विद्वान आनन्द कुमारस्वामी के द्वारा 1916 में 'राजपूत चित्र' नामक शब्द का प्रयोग किया गया था जो यह व्यक्त करता था कि अधिकांश शासक एवं संरक्षक जो इन राज्यों से थे वे सभी राजपूत थे। कुमारस्वामी ने विशेष रूप से इस शब्द का प्रयोग सर्वाधिक प्रसिद्ध मुगल चित्रकला शैली से राजस्थानी चित्र शैली को अलग श्रेणीबद्ध करने एवं दोनों में भिन्नता बताने के लिए किया था। इसलिए मालवा, जिसमें मध्य भारत की रियासतें शामिल थीं, और पहाड़ी शैली, जिसमें पहाड़ी या उत्तर-पश्चिम भारत के हिमालय क्षेत्र के पर्वतीय प्रदेश शामिल थे, भी राजपूत चित्र शैली की परिधि/सीमा में शामिल थे।
इन रियासतों में उभरी एवं विकसित हुईं चित्रात्मक शैलियाँ व्यवहारगत प्रयोग के सन्दर्भ में काफी विविध थींउत्कृष्ट या प्रगाढ़; रंगों की प्राथमिकताएँ (चमकदार या सौम्य); रचनात्मक तत्व (स्थापत्य कला, आकृति व प्रकृति का चित्रण); कथन के तौर-तरीके; प्रकृतिवाद के लिए निकटता-या चरम व्यवहार पर जोर दिया गया था।
चित्रों को वास्ली (Waslis) पर बनाया जाता था-वास्ली परतदार हस्तनिर्मित कागज होता था, जिसे गोंद (glue) द्वारा चिपक़ाकर इच्छानुसार मोटा कर लिया जाता था। कागजों (Waslis) पर काले या भूरे रंगों की बाह्य रेखायें बनाई जाती थीं और उन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ करने या कुछ ,प्रयोगात्मक तौर पर चिपकाने हेतु जगह बनाई जाती थी। रंग करने के पदार्थ विशेषतः खनिजों या बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना या चाँदी से प्राप्त किए गए जिन्हें गोंद के साथ मिलाया गया ताकि जिल्द (binding medium) बनाई जा सके। ऊँट और गिलहरी के बालों को ब्रुश हेतु उपयोग में लाया गया। पूर्ण होने पर चित्र को सुलेमानी पत्थर से चिकनाया (burnish) गया ताकि इसे एकसमान एवं आकर्षक चमक प्रदान की जा सके।
चित्रण करने का कार्य एक प्रकार का सामूहिक कार्य था; मुख्य कलाकार रचना करता एवं प्रारम्भिक आरेख बनाया करता, उसके पश्चात् उसके शिष्य या विशेषज्ञ रंग करने का, आकृति बनाने का, स्थापत्यता, भू-भाग, जानवर बनाने आदि का कार्य करते थे। वे सभी इस कार्य को बाँटकर विभिन्न हिस्सों में करते थे, तत्पश्चात् मुख्य कलाकार उन्हें (चित्रों को) अन्तिम स्वरूप भी प्रदान करता था। लेखक छोड़े गए स्थान पर पद्य को लिखता था।
प्रश्न 2.
राजस्थानी चित्र शैली की विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थानी चित्र शैली की विषय-वस्तु
विषय की दृष्टि से राजस्थानी चित्र शैली अत्यधिक विस्तृत है। इस शैली के चित्रों में राधा-कृष्ण की विभिन्न कथाओं, कृष्ण लीलाओं, सामाजिक उत्सवों, दरबारी जीवन, शिकार के दृश्य, राजा-रानियों का चित्रांकन, लोक कथाओं आदि का चित्रण हुआ है। नायक-नायिका, राग-रागिनी, बारामासा, ऋतु वर्णन, प्रकृति चित्रण आदि से सम्बन्धित चित्रों का भी निर्माण हुआ। काव्य का चित्रण इस शैली की अपनी निजी विशेषता है।
राजस्थानी चित्र शैली में प्रकृति का मानवीकरण किया गया। मेघों, पहाड़ों, आकाश, सरोवरों, वन, उपवन, फूलपत्तियों, पशु-पक्षियों का सुन्दर चित्रण किया गया है। कोटा शैली में शिकार के दृश्यों की बहुलता है। कोटा शैली के आखेट-दृश्य विश्व-विख्यात हैं। सघन प्राकृतिक सौन्दर्य बूंदी शैली के चित्रों की मुख्य विशेषता है। मारवाड़ शैली के चित्रों के विषय 'रसिकप्रिया' तथा 'गीत-गोविन्द' आदि के हैं, जिनमें सामन्ती संस्कृति का सजीव चित्रण हुआ है। किशनगढ़ शैली में विषयवस्तु के रूप में राधा-कृष्ण के लीला भाव सम्बन्धित विषयों का प्रमुख रूप से चित्रण हुआ है। इसके अतिरिक्त 'गीत-गोविन्द', 'भागवत पुराण', 'रसिकप्रिया' आदि का भी चित्रण हुआ है।
प्रश्न 3.
मालवा शैली पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
मालवा शैली का उद्भव एवं विकास
1600 और 1700 ईसा के मध्य में मालवा चित्र शैली फलीभूत हुई एवं यह हिन्दू राजपूत दरबारों का सर्वाधिक प्रतिनिधित्व करती है। इसकी द्विआयामी साधारण भाषा जैन पाण्डुलिपियों से चौरपंचाशिका पाण्डुलिपि चित्रों तक विशेष प्रगति के संपादन के तौर पर दिखाई देती है।
उद्भव-राजस्थानी शैली की विशेषताओं से भिन्न जो कि अपने सम्बन्धित राजाओं के क्षेत्रीय रियासतों एवं दरबारों में पनपी और विकसित/फलीभूत हुई थी, मालवा शैली अपने उद्भव के संक्षिप्त केन्द्र तक ही सीमित नहीं रही अपितु यह मध्य भारत के एक विशाल भू-भाग पर व्यापक रूप से फैली, जहाँ यत्र-तत्र स्थानों से होते हुए माण्डु, नुसरतगढ़, नरसयांग शहर तक बढ़ती गई। कुछ विस्तृत रूप से चित्रित कवित्व ग्रन्थों में 1652 ईसा का 'अमारू शतक' और 1680 ईसा की माधोदास की रागमाला चित्र शामिल हैं। दतिया महल संग्रह से मालवा शैली के बहुत सारे चित्रों को खोजा गया है जो यह दावा प्रस्तुत करती हैं कि बुन्देलखण्ड चित्रकला का क्षेत्र रहा है। परन्तु बुन्देलखण्ड के दतिया महल में बनी भित्ति-चित्र स्पष्ट रूप से मुगल प्रभाव को नकारती हैं। ये भित्ति चित्र कागज पर किए गए उन कार्यों से काफी भिन्न हैं, जो कि विशेष रूप से देशज द्विआयामी मितव्ययिता से किए गए कार्य हैं। इनमें संरक्षक राजाओं का उल्लेख पूर्णतया विलुप्त है तथा इस शैली के चित्र (Portraits) यह भी दावा करते हैं कि इन चित्रों को दतिया प्रशासकों ने घुमक्कड़ कलाकारों से खरीदा था। घुमक्कड़ कलाकार अपने साथ, रामायण, भागवत पुराण, अमारू शतक, रसिकप्रिया, रागमाला व बारामासा तथा अन्य प्रसिद्ध विषयों के चित्रों को लेकर घूमते थे।
विकास-मुगल शैली के चित्र 16वीं शताब्दी के दृश्यों पर हावी थे, जो कि दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी और लाहौर दरबार तक व्यापक रूप से फैले हुए थे। क्षेत्रीय मुगल चित्रशालाएँ देश के अनेक भागों में समृद्ध हुईं। ये क्षेत्र वैसे तो मुगलों के अधीन थे परन्तु उनका प्रशासनिक कार्यभार शक्तिशाली और सम्पन्न गवर्नरों द्वारा संभाला जा रहा था, इनकी नियुक्ति मुगल सम्राटों ने की थी। इन क्षेत्रों में चित्रण की भाषा का विकास मुगल और विशिष्ट स्थानीय तत्वों के मिश्रण से हुआ। दक्किनी शैली का प्रादुर्भाव एवं विकास 16वीं शताब्दी से अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा तथा हैदराबाद आदि केन्द्रों में हुआ। उत्तरार्द्ध 16वीं शताब्दी तथा पूर्वार्द्ध 17वीं शताब्दी में राजस्थानी शैलियों ने प्रसिद्धि प्राप्त की, जबकि इसका अनुसरण करते हुए उत्तरार्द्ध 17वीं तथा पूर्वार्द्ध 18वीं शताब्दी में पहाड़ी शैली प्रभाव में आई।
प्रश्न 4.
मेवाड़ शैली पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
मेवाड़ शैली का उद्भव एवं विकास
उद्भव-यह अनुमान लगाया जाता है कि राजस्थान में मेवाड़ चित्रकला का एक महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक केन्द्र है। परिकल्पनानुसार, यहाँ 17वीं शताब्दी के पूर्व से विशिष्ट प्रभाव वाली चित्रकला का परम्परागत ढंग से निर्माण किया जाता रहा। चित्रकला की यह स्वदेशी पद्धति तब तक निरन्तर चलती रही, जब तक कि करण सिंह का मुगलों से सम्पर्क नहीं हुआ और समकक्ष परिष्कृत व शुद्ध पद्धति से परिचय हुआ। हालाँकि, मुगलों के साथ दीर्घ युद्धों ने अधिकांश प्रारम्भिक उदाहरणों का सफाया कर दिया।
इस प्रकार, मेवाड़ शैली का उद्भव विशेष रूप से निसारदीन नामक कलाकार द्वारा 1605 में चावण्ड में चित्रित रागमाला चित्रों के संग्रह के साथ सम्बन्धित है। इस संग्रह में एक कालफन (Colophon) पृष्ठ है जो ऊपर दी गई महत्त्वपूर्ण सूचना को प्रकट करता है। यह संग्रह (set) अपना दृश्य सौन्दर्य साझा करता है तथा अपनी प्रत्यक्ष निकटता, सामान्य रचनाओं, सूक्ष्म सजावटी विवरणों व चमकीले रंगों में 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के चित्र शैली के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बताता है। साहिबदीन एवं मनोहर जैसे गुणवान कलाकारों के माध्यम से चित्रात्मक सौन्दर्य को नवीनतम रूप में पुनः निर्मित किया गया था, जिससे मेवाड़ की चित्रकला को नवीन शक्ति, पद्धति एवं एक शब्दावली प्रदान की थी।
विकास-
(1) साहिबदीन ने 1628 में रागमाला, 1648 में रसिकप्रिया व भागवत पुराण को चित्रित किया। इसके साथ ही, 1652 में रामायण का युद्ध काण्ड चित्रित किया। मनोहर का सबसे प्रभावशाली कार्य 1649 में रामायण का बालकाण्ड था। अन्य असाधारण प्रतिभाशाली कलाकार, जगन्नाथ ने 1719 में बिहारी की सतसई को चित्रित किया, जो कि मेवाड़ शैली का एक अनोखा योगदान बनी हुई है। हरिवंश और सूरसागर जैसे अन्य ग्रंथ भी 17वीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थांश में चित्रित किये गये।
(2) 18वीं शताब्दी में चित्रकला ग्रंथ चित्रावलियों से तेजी से फिसलते हुए दरबारी कार्यकलापों एवं शाही लोगों के विनोद-विहार करने की ओर बढ़ता गया। मेवाड़ कलाकार सामान्यतः एक चमकीली पटिया (Palette) को प्राथमिकता से प्रयोग कर रहे थे, जिसमें लाल व पीले रंग प्रमुख होते थे।
(3) नाथद्वारा, उदयपुर के पास एक कस्बा तथा एक प्रमुख वैष्णव केन्द्र, भी 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक चित्र शैली के रूप में उभरा। यहाँ देवता श्रीनाथजी के कई उत्सवी आयोजनों पर विशाल पृष्ठ चित्रकला का चित्रण कपड़ों पर किया गया, इस तरह की कला को पिछवाई (Pichhwais) कहा जाता है।
(4) मेवाड़ चित्रकला का वातावरण 18वीं शताब्दी में आगे बढ़ते हुए लौकिक तथा दरबारी हो गया। न केवल चित्रांकन सम्मोहन का विकास हुआ अपितु वृहदाकार एवं भड़कीले रंगों वाले दरबारी दृश्यों, शिकार अभियानों, उत्सवों, जनाना (Zenana) कार्यकलापों, खेलों इत्यादि को भी विषयों के रूप में व्यापक स्तर पर पसंद किया गया।
प्रश्न 5.
बूंदी शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए तथा विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
बूंदी शैली का उद्भव एवं विकास
1398 ई. में राव देवा ने बूंदी की स्थापना की थी। बूंदी के शासक राव रतनसिंह (1607-1631 ई.) एवं राव शत्रुसाल (1631-1658 ई.) कलाप्रेमी थे। उन्होंने अपने राज्य में अनेक कलाकारों को आश्रय दिया।
भावसिंह द्वारा बूंदी शैली के विकास में योगदान-बूंदी के शासक राव भावसिंह कलाप्रेमी थे। उनकी कलाप्रियता ने बूंदी राज्य को संगीत कला और चित्रकला से उन्नति के शिखर पर पहुँचा दिया। भावसिंह के राज्याश्रय में प्रसिद्ध कवि मतिराम ने 'ललित ललाम' तथा 'रसराज' नामक ग्रन्थों की रचना की। कालान्तर में भावसिंह तथा उनके पुत्र अनिरुद्धसिंह के समय में बूंदी शैली पर दक्षिण शैली का प्रभाव पड़ा।
राव उम्मेदसिंह द्वारा बूंदी शैली के विकास में योगदान-राव उम्मेद सिंह भी एक कलाप्रेमी शासक थे। उनके समय में शिकार के दृश्यों के अनेक चित्र बने। राव उम्मेदसिंह द्वारा जंगली सुअर का शिकार करते हुए (1750 ई.) नामक चित्र बूंदी शैली का उत्कृष्ट चित्र है। 18वीं शताब्दी के मध्य के काल में बूंदी शैली में नया मोड़ आया, जिसके फलस्वरूप भावनाओं की सरलता, प्रकृति की विविधता, पशु-पक्षियों तथा सतरंगे बादलों, जलाशयों एवं सघन वनसम्पदा का चित्रण बहुलता से हुआ।
प्रश्न 6.
बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताएँ
बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 7.
बूंदी शैली के निम्नलिखित चित्रों का वर्णन कीजिए-
(1) राग दीपक, चुनार रागमाला
(2) अश्विन, बारामासा।
उत्तर:
(1) राग दीपक, चुनार रागमाला
राग दीपक को रात्रि बैठाव में दर्शाया गया है, वह अपनी प्रेमिका के साथ एक कक्ष में बैठा हुआ है जो कि चार दीपों की लपटों से गर्मजोशी से प्रकाशित है; दो दीप धारकों को अलंकृत मानव आकृतियों की तरह नवीन रूप से आकार दिया गया है। आकाश असंख्य सितारों से जगमगा रहा है और चन्द्रमा पूर्णतः पीला पड़ गया है, जिससे संकेत होता है कि यह अभी-अभी उदय नहीं हुआ है बल्कि रात्रि काफी बीत चुकी है तथा युगल एक-दूसरे के साथ कई घण्टे बिता चुका है।
इस चित्र में कोई यह भी देख सकता है कि महल की गुम्बज संरचना पर कलश पीले भाग पर फैला है, जो कि लिखने हेतु आरक्षित है तथा दीपक राग नाम-पत्र के अलावा कुछ अन्य नहीं लिखा है। यह चित्र निर्माण करने की प्रक्रिया में एक अन्तर्दृष्टि देती है तथा कोई भी समझ सकता है कि चित्र को इस पर पद्य लिखने देने से पूर्व पूर्णतः चित्रित किया गया था। इस चित्र के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि इस पर पद्य नहीं लिखा गया तथा नाम-पत्र (label) कलाकार के लिए एक संकेत के रूप में अधिक था कि उसे क्या चित्रित करना चाहिए।
चित्र-राग दीपक, चुनार, रागमाला, बूंदी, 1519, भारत कला भवन, वाराणसी
(2) अश्विन, बारामासा
बारामासा प्राचीन काल से ही भारतीय ऋतुएँ काव्य, गद्य और नाटक में सुन्दर वर्णन का विषय रही हैं और मनुष्य एवं प्रकृति के बीच का सम्बन्ध विश्वदृष्टि के लिए मौलिक रहा है। बारामासा का चित्र (चित्र में बारह महीनों का चित्रण) कवियों और चित्रकारों के कलात्मक और साहित्यिक प्रयासों को सहसम्बद्ध करने का मामूली प्रयास प्रतीत होता है, जो ऋतुओं के चक्र को चित्रित करता है। साथ ही, संगीत, जो जीवन शैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा भी है, राजस्थानी कलाकारों द्वारा चित्रित रागों और रागिनी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
चित्र-अश्विन, बारामासा, बूंदी, सत्रहवीं सदी, छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुम्बई
प्रश्न 8.
कोटा शैली पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
कोटा शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोटा शैली का उद्भव एवं विकास
चित्रकला को प्रोत्साहन-कोटा के महाराजा रामसिंह (1661-1705 ई.) तथा उनके पुत्र महाराव भीमसिंह (1705-1720 ई.) ने चित्रकला को प्रोत्साहन दिया। राव दुर्जनसाल (1724-1750 ई.), अजीतसिंह (1750-1758 ई.) तथा छत्रसाल (1758-1764 ई.) ने भी चित्रकला के विकास में योगदान दिया। इस समय चित्रकारों ने दरबारी दृश्य और जुलूस, श्रीकृष्ण की जीवन-लीला से सम्बन्धित चित्र, राजाओं के व्यक्ति-चित्रों आदि का निर्माण किया।
राजा उम्मेदसिंह द्वारा कोटा शैली के विकास में योगदान-कोटा के शासक महाराव उम्मेदसिंह के शासनकाल (1771-1820 ई.) में कोटा शैली का अत्यधिक विकास हुआ। उम्मेदसिंह को आखेट व घुड़सवारी का बड़ा शौक था। अतः उनके समय के चित्रकारों ने उनकी रुचि के अनुसार शिकार के चित्रों का बड़ी संख्या में निर्माण किया। इस काल में राग-रागिनी, बारामासा, नायिका-भेद, आदि से सम्बन्धित अनेक चित्रों का निर्माण हुआ।
भित्तिचित्र-कोटा के उत्कृष्ट भित्तिचित्र 'झाला की हवेली' कोटा के राजप्रासाद तथा देवताजी की हवेली में देखने को मिलते हैं।
पुष्टिमार्गीय कथा प्रसंगों का चित्रण-कोटा भी पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र रहा था। इस कारण कृष्णलीला को लेकर कोटा शैली में भी असंख्य चित्र बने हैं।
कोटा शैली के चित्रण की यह परम्परा रावल रामसिंह के समय तक अर्थात् 1866 ई. तक चलती रही। परन्तु बाद में अंग्रेजी प्रभाव के कारण कोटा शैली अवनति की ओर अग्रसर हुई।
प्रश्न 9.
कोटा शैली की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कोटा शैली की विशेषताएँ-कोटा शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. पुरुष आकृति-वल्लभ-सम्प्रदाय का प्रभाव होने के कारण नर-नारियों के अंग-प्रत्यंगों का अंकन पुजारियों व गोस्वामियों की भाँति पुष्ट प्रभावशाली बना है। पुरुष आकृति को भारी एवं गठीला शरीर, दीप्तियुक्त चेहरा, मोटे नेत्र, तीखी नाक, उन्नत ललाट, पगड़ियों, अंगरखों से युक्त वेशभूषा तथा आभूषण युक्त चित्रित किया गया है।
2. नारी आकृति-नारी आकृतियों का चित्रण कोटा शैली में अत्यन्त सुन्दर हुआ है। नारियाँ घाघरा, ओढ़नी पहने हुए चित्रित हुई हैं।
3. शिकार के दृश्यों की बहुलता-कोटा शैली में शिकार के दृश्यों की बहुलता है। शिकार के कई चित्र मिलते हैं, जिनमें पेड़-पौधों, चट्टानों, वन्य पशु-पक्षियों आदि के भव्य दृश्य चित्रित किए गए हैं। कोटा शैली के आखेट दृश्य, जिनमें उस प्रदेश की चट्टानी भूमि और वनों में शेर और चीते के आखेट में लगे सपरिवार राजा, राजकुमार और सामन्तों का चित्रण है, जो अब विश्व-विख्यात हो चुके हैं। ये चित्र कोटा शैली की निजी व सबसे अलग विशेषता से युक्त बन पड़े हैं।
4. कोटा शैली के चित्रकार-लच्छीराम, रघुनाथ, गोविन्दराम, नूर मुहम्मद तथा गोविन्द कोटा शैली के प्रमुख चित्रकार थे।
प्रश्न 10.
राजस्थानी शैली के निम्न चित्रों का वर्णन कीजिए-
(1) बणी ठणी
(2) महाराजा रामसिंह प्रथम शेर का शिकार करते हुए।
उत्तर:
(1) बणी ठणी (किशनगढ़ शैली) किशनगढ़ के राजा सावंतसिंह (1718-1764 ई.) साहित्य एवं कला के संरक्षक थे। मोरध्वज निहालचन्द उनके आश्रित चित्रकार थे। निहालचन्द ने 'बणी ठणी' को इस लघुचित्र में अत्यन्त सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है। बणी ठणी राजा सावंतसिंह की प्रिय उपपत्नी थी। किशनगढ़ शैली में 'बणी ठणी' के इस अप्रतिम सौन्दर्य को राधा का प्रतीक मानकर राधा-कृष्ण के चित्रों की रचना हुई। बणी ठणी के बायें हाथ में डंठल में लगी कमल की दो कलियाँ हैं और दाहिने हाथ की दो अंगुलियों से वह अपनी चुन्नी (ओढ़नी) को थामे हुए घूघट कर रही है। पृष्ठभूमि गहरे हरे रंग में सपाट है तथा चित्र में सभी रंगों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है।
किशनगढ़ शैली का यह सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र है। आकर्षक विस्तारित नेत्र, आगे निकली हुई इकहरी चिबुक वाली 'बणी ठणी' इटली के महान चित्रकार लियानार्डो दी विन्सी की कृति 'मोनालिसा' के समकक्ष मानी गई है, जिसे विश्व का सर्वोत्कृष्ट चित्र माना गया है।
चित्र-बणी ठणी
(2) कोटा के महाराजा रामसिंह प्रथम मुकुंदगढ़ में शेर का शिकार करते हुए
इस चित्र में महाराजा रामसिंह प्रथम को शेर का शिकार करते हुए दिखाया गया है। चित्र में अलग-अलग स्थानों पर हिरण, शेर, जंगली भैंसा, मोर, बारहसिंगा आदि की आकृतियाँ बनी हुई हैं। रामसिंह राजा के साथ अन्य सैनिक आकृतियाँ दिखाई गई हैं। चित्र में हरियाली युक्त जंगल का पूरा परिदृश्य बनाया गया है। शेर एक पेड़ पर चढ़ता है और शिकार करते हुए देखा जा रहा है। एक अन्य शेर को दहाड़ते हुए दिखाया है। पुरुष आकृतियों के सिर पर पगड़ी, लम्बा जामा व पाजामा पहनाया गया है। चित्र में महल दिखाया गया है। पुरुषों के चेहरे गलमुच्छों से युक्त बने हैं एवं आकृतियों को सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण पहने चित्रित किया गया है।
चित्र-महाराजा रामसिंह प्रथम शेर का शिकार करते हुए
प्रश्न 11.
बीकानेर शैली के उद्भव और विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बीकानेर शैली का उद्भव और विकास
बीकानेर चित्र शैली के उद्भव का श्रेय यहाँ के उस्तादों को दिया जाता है। बीकानेर-नरेश महाराजा रायसिंह मुगल-दरबार से अपने साथ दो प्रमुख कलाकार उस्ताद अली रजा व उस्ताद हामिद रुकनुद्दीन को बीकानेर लेकर आए। इन्हीं की कला-परम्परा ने बीकानेर शैली को जन्म दिया।
महाराजा रायसिंह द्वारा बीकानेर शैली के विकास में योगदान-बीकानेर शैली के प्रारम्भिक चित्र महाराजा रायसिंह (1571-1592 ई.) के समय चित्रित 'भागवत पुराण' के माने जाते हैं। महाराजा रायसिंह ने स्वयं 1604 से 1611 ई. तक अनेक कलाकृतियों का संग्रह किया, जिसमें 'रागमाला' चित्रावली उल्लेखनीय है।
महाराजा अनूपसिंह द्वारा बीकानेर शैली के विकास में योगदान-बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह (16691698 ई.) को बीकानेर शैली का प्रवर्तक माना जाता है। अनूपसिंह के प्रसिद्ध दरबारी चित्रकार रुकनुद्दीन ने 'रसिकप्रिया' तथा 'बारामासा' के उत्कृष्ट चित्र बनाये । रुकनुद्दीन के पुत्र साहिबदीन ने 'भागवत पुराण' से सम्बन्धित चित्र बनाये।
बीकानेर के महल, लालगढ़ पैलेस, अनेक छतरियाँ भी बीकानेर शैली की अपनी निजी विशेषता रही हैं, जिस परम्परा को 'उस्ताद परिवार' आज तक निभा रहे हैं।
प्रमुख चित्रकार-रुकनुद्दीन, साहिबदीन, रहीम खाँ, नाथू, मुराद, कायम, लुफा, शाह मुहम्मद, रामलाल, ईसा, अली रजा, शहाबुद्दीन, नुरुद्दीन, कासिम उमरानी, अब्दुल्ला, हसन आदि बीकानेर शैली के प्रमुख चित्रकार हैं।
प्रश्न 12.
बीकानेर शैली की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
बीकानेर शैली की विशेषताएँ बीकानेर शैली की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
प्रश्न 13.
किशनगढ़ शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशनगढ़ शैली का उद्भव एवं विकास
1. महाराजा रूपसिंह द्वारा किशनगढ़ शैली के विकास में योगदान-महाराजा रूपसिंह (1643-1658 ई.) ने आश्रित चित्रकारों से कृष्ण व राधा की प्रेम-लीलाओं के अनेक चित्रों का निर्माण करवाया।
2. महाराजा मानसिंह द्वारा किशनगढ़ शैली के विकास में योगदान-महाराजा रूपसिंह के उत्तराधिकारी महाराजा मानसिंह (1658-1706 ई.) ने वैष्णव भक्ति से सम्बन्धित चित्रों का निर्माण करवाया।
3. महाराजा राजसिंह द्वारा किशनगढ़ शैली के विकास में योगदान-महाराजा राजसिंह (1706-1748 ई.) ने 33 ग्रन्थ रचे और चित्रण कार्य का अधिकाधिक विकास किया। इन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार सूर्यध्वज निहालचन्द को अपनी चित्रशाला का प्रबन्धक बनाया।
4. महाराजा सावंतसिंह द्वारा किशनगढ़ शैली के विकास में योगदान-महाराजा सावंतसिंह (16991764 ई.) की साहित्य, संगीत एवं चित्रकला में अत्यधिक रुचि थी। महाराजा सावंतसिंह 'नागरीदास' उपनाम से प्रसिद्ध थे। राजवैभव के प्रति विरक्ति तथा कला, संगीत एवं साहित्य में विशेष अनुराग होने के कारण नागरीदास शीघ्र ही राधा-कृष्ण की माधुर्य भक्ति में लीन हो गए। इनके कलात्मक व्यक्तित्व ने किशनगढ़ शैली को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। सन् 1735 ई. से लेकर 1770 ई. तक की अल्प अवधि में ही किशनगढ़ की कलात्मक गतिविधियाँ चरम सीमा पर पहुंच गईं और असाधारण सौन्दर्य वाली कलाकृतियों का निर्माण हुआ।
5. आश्रित चित्रकार मोरध्वज निहालचन्द का योगदान-किशनगढ़ शैली को उत्कृष्ट स्वरूप प्रदान करने का श्रेय महाराजा सावंतसिंह के आश्रित चित्रकार मोरध्वज निहालचन्द को भी है। उसने राधा व कृष्ण का सुन्दर रूप-चित्रण किया, जिसमें राधा की मुखाकृति को बणी ठणी के चेहरे पर आधारित किया गया। बणी ठणी राजा सावंतसिंह की प्रिय उपपत्नी थी। निहालचन्द द्वारा चित्रित 'बणी ठणी' नामक चित्र किशनगढ़ शैली का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र है।
नायक-नायिका एवं राधा-कृष्ण के चित्रण में नायिका एवं राधा की भूमिका में 'बणी ठणी' को ही चित्रित किया गया और रास-लीला में नायक एवं कृष्ण सावंतसिंह का ही शैलीबद्ध आदर्श रूप था। निहालचन्द द्वारा चित्रित ग्रन्थों की संख्या 75 मानी जाती है जो 'नागर-समुच्चय' नाम से प्रसिद्ध है।
6. सावंतसिंह के उत्तराधिकारी और किशनगढ़ शैली का विकास-1764 ई. में महाराजा सावंतसिंह की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद बहादुर सिंह, कल्याण सिंह आदि के शासनकाल में भी किशनगढ़ शैली का पर्याप्त विकास हुआ।
प्रश्न 14.
किशनगढ़ शैली की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ
किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. नारी-सौन्दर्य-किशनगढ़ शैली की सबसे प्रमुख विशेषता नारी-सौन्दर्य है। गौर वर्ण, पतला लम्बा चेहरा, ऊँचा तथा पीछे की ओर ढलवाँ ललाट, लम्बी तथा नुकीली नाक, पतले होंठ, उन्नत चिबुक, लम्बी छरहरे बदनवाली, खंजनाकृति या कमल नयन, चापाकार भौंहें, बालों की लट कान के पास झूलती हुई, लम्बी पतली बाँहें, लम्बे केश आदि नारी आकृतियों का चित्रण इस शैली की विशिष्टता है।
2. पुरुष आकृतियाँ-पुरुष आकृतियाँ छरहरा बदन, समुन्नत ललाट, लम्बी नाक, पतले अधर, खंजनाकृत विशाल नेत्र, नुकीली चिबुक, लम्बी भुजाएँ, उन्नत कन्धे आदि से युक्त बनाई गई हैं।
3. प्रकृति चित्रण-पृष्ठभूमि में किशनगढ़ के प्राकृतिक परिवेश में झीलों, पहाड़ों, वनों, उपवनों एवं विभिन्न पशु-पक्षियों का अंकन किया गया है।
4. विषय-विषय-वस्तु के रूप में राधा-कृष्ण के लीला भाव सम्बन्धित विषयों का प्रमुख रूप से चित्रण हुआ है। इसके अतिरिक्त गीत-गोविन्द, भागवत-पुराण, रसिकप्रिया, नागर-समुच्चय आदि का भी चित्रण हुआ है।
5. वेशभूषा-किशनगढ़ शैली के अधिकांश चित्रों में स्त्रियों का पहनावा घेरदार चुन्नटदार लहंगा, खुले गले वाली ऊँची तथा कसी हुई चोली, पारदर्शी ओढ़नी है। पुरुषों को लम्बे पारदर्शक जामे या पायजामा पहने दर्शाया गया है। कमर में पटका तथा सिर पर पूँगिया या सफेद हीरे-मोती जड़ित ऊँची पगड़ी पहने चित्रित किया गया है। पुरुषों को धोती पहने भी चित्रित किया गया है।
प्रश्न 15.
जोधपुर शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जोधपुर शैली का उद्भव एवं विकास
मारवाड़ में कला एवं संस्कृति को नवीन परिवेश देने का श्रेय मारवाड़ के शासक मालदेव (1532-1562 ई.) को है। इस समय के चित्र 'चौखे का महल' तथा 'चित्रित' उत्तराध्ययन सूत्र में प्राप्त होते हैं। मालदेव के पश्चात् राजा सूरसिंह (1568-1618 ई.) के समय में 'ढोला-मारू', 'रसिकप्रिया' तथा 'भागवत पुराण' आदि ग्रन्थों का चित्रांकन हुआ।
महाराजा गजसिंह एवं जसवन्तसिंह के शासनकाल में जोधपुर शैली का विकास-जोधपुर के महाराजा गजसिंह (1618-1632 ई.) एवं महाराजा जसवन्तसिंह (1638-1678 ई.) के शासनकाल में 'ढोला-मारू' तथा 'भागवत' चित्रित किए गए।
महाराजा अजीतसिंह तथा महाराजा अभयसिंह द्वारा जोधपुर शैली के विकास में योगदान महाराज अजीतसिंह (1707-1724 ई.) के शासनकाल के चित्र सम्भवतः मारवाड़ शैली के सबसे अधिक सुन्दर एवं सजीव चित्र हैं। इनके विषय श्रृंगार रस के प्रसिद्ध काव्य 'रसिकप्रिया', 'गीत-गोविन्द' आदि के हैं, जिनमें सामन्ती संस्कृति का सजीव चित्रण प्रस्तुत हुआ है।
महाराजा अभयसिंह (1744-49 ई.) ने भी चित्रकला को प्रोत्साहन दिया। इनके समय के 'राधा-कृष्ण' तथा 'ढोला-मारू' नामक विषयक चित्र उल्लेखनीय हैं।
विजयसिंह एवं भीमसिंह द्वारा जोधपुर शैली के विकास में योगदान-विजयसिंह के समय (1753-1793 ई.) में 'भक्ति और शृंगार रस' के चित्रों का निर्माण हुआ।
महाराजा भीमसिंह (1793-1803 ई.) के राज्यकाल में मुख्यतः व्यक्ति चित्र, दरबार एवं जुलूस से । सम्बन्धित चित्र अधिक बने। इस समय का 1800 ई. में निर्मित चित्र 'दशहरा दरबार' जोधपुर शैली का सुन्दर उदाहरण है।
महाराजा मानसिंह द्वारा जोधपुर शैली के विकास में योगदान-महाराजा मानसिंह के शासनकाल (18031843 ई.) में नाथ सम्प्रदाय पर बड़ी संख्या में पुस्तकें लिखी गईं और इनसे सम्बन्धित चित्रों का निर्माण हुआ। इनके समय में चित्रित 'रसराज' के 63 चित्र नाथ सम्प्रदाय के किसी मठ से प्राप्त हुए हैं। इस समय 'ढोलामारु', 'शिवपुराण', 'नाथचरित्र', 'दुर्गाचरित्र', 'पंचतंत्र', 'रागमाला' और कामसूत्र पर विस्तृत रूप में चित्रण हुआ। इसके साथ ही महाराजा मानसिंह के अन्तःपुर के अनेक चित्र बने। महाराजा मानसिंह के बाद तख्तसिंह, उम्मेदसिंह, हनुमंतसिंह के काल में श्रृंगारपूर्ण चित्रण की बहुलता रही।
प्रमुख चित्रकार-वीरजी, नारायणदास, भाटी अमरदास, दाना भाटी, छज्जू भाटी, किशनदास, शिवदास भाटी, देवदास, जीतमल, काला, रामू आदि जोधपुर शैली के प्रमुख चित्रकार थे।
प्रश्न 16.
जोधपुर शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जोधपुर शैली की विशेषताएँ
जोधपुर शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. पुरुष आकृति-जोधपुर शैली में पुरुष आकृति को लम्बे-चौड़े, गठीले बदनयुक्त, घनी दाढ़ी-मूछोंयुक्त, बड़ी-बड़ी आँखें एवं शिखरनुमा पगड़ियाँयुक्त तथा राजसी वैभव के वस्त्राभूषणयुक्त चित्रित किया गया है। पुरुषाकृतियों को मुगल वेशभूषा में चित्रित किया गया है, जो मुगल प्रभाव का प्रतीक है।
2. नारी आकृति-स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों का अंकन भी गठीला है। नारी-आकृति को छरहरी कद-काठी और आभूषणों से युक्त, सुन्दर मुख-मण्डल, उभरा ललाट, बादाम-सी आँखेंयुक्त दिखाया गया है। उनकी वेशभूषा में राजस्थानी लहँगा, ओढ़नी और लाल फुन्दनों का प्रयोग प्रमुख रूप से हुआ है।
3. रंग-रंग-संयोजन में चमकीले रंगों की प्रधानता है। लाल और पीले रंगों की बहुलता है, जो यहाँ की स्थानीय विशेषता है।
4. प्रकृति-चित्रण-चित्रों में मरु के टीलों, छोटे-छोटे झाड़ एवं पौधे दर्शाए गए हैं। आम्र वृक्षों का चित्रण अधिक हुआ है। प्रकृति चित्रण में मेघों को गहरे काले रंग में गोलाकार दिखाया गया है। क्षितिज में कुंडलित बादल भी दिखलाए गए हैं। बादलों में बिजली की चमक को सर्पाकार रूप में दर्शाया गया है। चित्रों में मरुप्रदेश का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न 17.
जयपुर शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जयपुर शैली का उद्भव एवं विकास सन् 1540 का सचित्र 'आदि-पुराण' तथा 'रज्मनामा' और मानसिंह के शासनकाल में चित्रित ग्रन्थ 'यशोधरचरित्र' जयपुर शैली के प्रारम्भिक चित्र हैं।
1. सवाई जयसिंह और जयपुर शैली का विकास-जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह प्रथम (1699- 1743 ई.) के समय में चित्रकला का महत्त्वपूर्ण विकास हुआ। इस समय 'रसिकप्रिया', 'गीत-गोविन्द', 'कविप्रिया', 'बारामासा', 'नवरस', 'रागमाला' आदि चित्रों का निर्माण हुआ।
2. सवाई ईश्वरीसिंह और जयपुर शैली का विकास-महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह (1743-1750 ई.) के समय में व्यक्ति चित्र तथा पशुओं की लड़ाई के अनेक चित्र बने। इनमें 'सवाई ईश्वरीसिंह सवारी करते हुए' नामक चित्र उल्लेखनीय है। सन् 1743 ई. में 'कृष्ण रुक्मणि वेलि' भी चित्रित की गई। सवाई माधोसिंह प्रथम (1750-1767 ई.) के समय में माधोसिंह को विभिन्न मुद्राओं में चित्रित किया गया।
3. सवाई प्रतापसिंह और जयपुर शैली का विकास-सवाई प्रतापसिंह (1779-1803 ई.) के समय में भी अनेक चित्र बने, जिनमें 'राधा-कृष्ण का नृत्य' तथा 'महाराजा सवाई प्रतापसिंह का आदमकद व्यक्ति चित्र' विशेष प्रसिद्ध हैं।
4. सवाई जगतसिंह तथा जयपुर शैली का विकास-जयपुर शैली की मौलिकता सवाई जगतसिंह तक चलती रही। इनके समय में बने चित्रों में 'गोवर्धन धारण' तथा 'रासमण्डल' नामक चित्र विशेष प्रसिद्ध हैं। बाद में महाराजा सवाई रामसिंह ने कला के विकास के लिए 1857 में 'महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स' की स्थापना की, जो आज 'राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स' के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख चित्रकार-साहिबराम, लालचितेरा, रामजीदास, घीसीराम, रघुनाथ, गोविन्द, गोपाल, नवला, शिवदास, रामसेवक, सालिगराम, लक्ष्मण, गोविन्दा आदि थे।
प्रश्न 18.
जयपुर शैली की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
जयपुर शैली की विशेषताएँ
जयपुर शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 19.
राजस्थान शैली की निम्न चित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए-
(1) मारु रागिनी, मेवाड़
(2) भागवत पुराण (मालव शैली)
उत्तर:
(1) मारु रागिनी, मेवाड़-मेवाड़ के प्रसिद्ध चित्रकार साहिबदीन द्वारा 1650 ई. में बनाए गए इस चित्र को दो भागों में विभाजित किया गया है। ऊपर एक तम्बू के नीचे ढोला तथा मारु को लाल कालीन पर बैठे हुए दिखाया गया है। दोनों आमने-सामने हैं। पीछे लगे कनात का रंग लाल है। ऊपर का ढका हुआ भाग पीला तथा नीली रेखाओं से बनाया गया है। दोनों ओर दो हरे वृक्ष हैं। ढोला को अंगरखा, पायजामा तथा कलंगी लगी पगड़ी पहने हुए दिखाया गया है। ढोला तलवार, ढाल तथा कटार लिए हुए है। जमीन पर बाईं ओर मदिरा पात्र है तथा दाईं ओर पीकदान रखे हैं। मारु आसमानी रंग की चोली, पीले रंग के लहंगे तथा बैंगनी (सुनहरे किनारे वाली) रंग की ओढ़नी पहने हुए है।
चित्र के निचले भाग में बैठे हुए उसे ऊँट को प्यार करने या उससे कुछ कहने की मुद्रा में खड़ी दिखाया गया है। पृष्ठभूमि में गहरा हरा घास का मैदान है। दाहिनी ओर एक केले का छोटा वृक्ष है। आगे की भूमि मटमैली, घास और फूलों से युक्त है।
चित्र-मारु रागिनी, मेवाड़
(2) भागवत पुराण (मालव शैली)-भागवत पुराण को वर्णित करते दृश्य, जो कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन एवं उनकी लीला के विभिन्न दृश्यों को दर्शाते हैं। ये दृश्य कलाकारों के लिए मध्यकाल में प्रसिद्ध विषयवस्तु रहे हैं। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली का है जिसमें कृष्ण द्वारा शाकतासुर राक्षस को मारने का दृश्य दिखाया गया है (1680-1690)।
भागवत पुराण का यह पन्ना (Folio) मालवा शैली का एक विशिष्ट उदाहरण है, जिसके प्रत्येक भाग को ध्यान से बाँटा गया है जो इस घटनाक्रम के समस्त विभिन्न दृश्यों को बता रहे हैं । नन्द एवं यशोदा के घर में मनाये जा रहे उत्सव एवं त्यौहार के दृश्यों को देखा जा सकता है, जब कृष्ण का जन्म हुआ था। स्त्री एवं पुरुष नाचगा रहे हैं (नीचे बाएँ और ऊपर मध्य भाग में); अतिप्रसन्न माता-पिता यशोदा और नन्द दान देने वाले कार्यों में संलग्न हैं और ब्राह्मणों और सद्भावना रखने वाले लोगों को गाय और बछड़े दान में दे रहे हैं (मध्य बाएँ और एकदम दाएँ); अत्यधिक स्वादिष्ट भोजन बहुत सारी मात्रा में पकाया जा रहा है (मध्य भाग); बुरी नजरों से बचाने के लिए महिलाओं ने श्रीकृष्ण को चारों ओर से घेर रखा है (ऊपर बायाँ भाग) एवं कथा का समापन श्रीकृष्ण को गिराने के साथ होता है, और इस प्रकार, गाड़ी के दानव, शाकतासुर को श्रीकृष्ण एक कोमल लात मारकर मुक्त कर रहे हैं।
चित्र-भागवत पुराण (मालव शैली)
प्रश्न 20.
राजस्थान शैली की निम्न चित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए-
(1) राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा
(2) चौगान खिलाड़ी
उत्तर:
(1) राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा-अनिरुद्ध सिंह (1682-1702), भावसिंह के बाद गद्दी पर बैठा। कुछ उल्लेखनीय चित्र जिनमें रुचिकर दस्तावेजी साक्ष्य दिए गए हैं, वे इस अवधि में पनपी हैं। इनमें से एक सबसे अधिक चर्चित अनिरुद्ध सिंह का अश्वारोही चित्र है जो 1680 में कलाकार तुलचीराम द्वारा चित्रित है। यह कलाकार के गति और घोड़े के चलने के अनुभव को बताता है तथा एक घोड़ा इतनी गति में है कि वह आगे की जमीन को मानने हेतु पूर्णतः मना कर देता है अर्थात् घोड़ा उड़ रहा है। घोड़े को हवा में ऊँचाई से उछलते हुए देखा जा सकता है कि जमीन दिखाई नहीं देती है। ऐसे चित्रों की कीमत यह है कि ये स्थिर चित्रों को कथा में बदल देते हैं । तुलचीराम एवं राजकुमार (कंवर) अनिरुद्ध सिंह के नाम चित्र के पीछे की ओर लिखे गये हैं। परन्तु सामने भारत सिंह का नाम, जो छत्रसाल का छोटा पुत्र है, लिखा गया है। कुछ विद्वान महसूस करते हैं कि यह चित्र भारत सिंह का प्रतिनिधित्व करता है जबकि अधिकांश लोगों की राय है कि यह जवान अनिरुद्ध सिंह का प्रतिनिधित्व करता है, जब वह गददी पर भी नहीं बैठा था। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के संग्रह में है।
चित्र-राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा
(2) चौगान खिलाड़ी-यह चित्र एक राजकुमारी को चौगान (Polo) खेलते हुए बताता है, जिसमें उसके साथी भी हैं। यह कलाकार दाना के द्वारा मानसिंह के शासनकाल के जोधपुर शैली का प्रतिनिधित्व करता है। यह शायद हो सकता है या नहीं हो सकता है कि यह मुख्य दरबार का है क्योंकि यह कई शैलियों के प्रकारात्मक प्रभाव को प्रकट करता है, जिस तरह से महिलाओं को चित्रित किया गया है, वह मुगल शैली है, घोड़ों के चित्रण से दक्षिणी प्रतीत होती है, चेहरे की विशेषताओं से बूंदी या किशनगढ़ की लगती है और हरी पृष्ठभूमि समतल मैदान की स्वदेशी प्राथमिकता का सुझाव देती है। इस चित्र के ऊपरी भाग में एक पंक्ति लिखी गई है जिसका अनुवाद है, "खूबसूरत सुन्दरियाँ घोड़े की पीठ पर खेल रही हैं।" यह चित्र 1810 में बनाया गया और राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली के संग्रह में है।
चित्र-चौगान खिलाड़ी
प्रश्न 21.
राजस्थान शैली की निम्न चित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए-
(1) कृष्ण झूला झूल रहे हैं एवं राधा उदास है
(2) राम चित्रकूट में अपने परिवार के सदस्यों से मिलते हैं
उत्तर:
(1) कृष्ण झूला झूल रहे हैं एवं राधा उदास है-यह चित्र, जो रसिकप्रिया चित्रण है, उल्लेखनीय है क्योंकि इसमें कलाकार का नाम व तिथि अंकित है। इसे कलाकार नुरुद्दीन द्वारा 1683 में चित्रण किया गया जिसने 1674 से 1698 तक बीकानेर के दरबार में काम किया था। यह सीधी-सादी रचना है जो स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व और भू-भाग के तत्वों का कम से कम एवं सुझावात्मक प्रतिनिधित्व करती है। नुरुद्दीन ने सरलता से लहरदार घेर का केन्द्र में प्रयोग किया है जो चित्र को दो भागों में बाँटती है। यह चित्रात्मक अवलम्ब (Prop) को संचालित करता है जो शहरी क्षेत्र को पेड़ों से आच्छादित ग्रामीण क्षेत्र में एवं ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में परिवर्तित करती है। चित्र के ऊपरी भाग में स्थापत्य मण्डप है जो उस स्थान को महल का आन्तरिक स्थल बताती है। जबकि हरे घास के मैदानों पर कुछ वृक्ष यह बताते हैं कि यह ग्रामीण एवं बाहरी भू-भाग है। इस प्रकार से, कथा में ऊपर से नीचे तक की हलचल को घर के आन्तरिक एवं बाहरी क्रियाकलापों की प्रगति को व्यक्त करते हैं।
चित्र के ऊपरी भाग में यह दिखता है कि कृष्ण झूले पर बैठकर गोपी के साथ अपने निवास पर स्वयं ही आनन्दित हो रहे हैं। उनके मिलन स्थल के बारे में जानकर झुकी हुई राधा, दुःख से आहत, ग्रामीण क्षेत्र में गायब हो जाती है एवं अपने आपको एक वृक्ष के नीचे पाती है। अपराध-बोध से ग्रस्त कृष्ण, राधा के दुःख के बारे में जानकर उसके पीछे जाते हैं मगर वहाँ कोई संधि नहीं होती है। उसी दौरान, राधा की सखी (मित्र) उनके बारे में जान जाती है एवं सन्देशवाहक एवं शान्त करने वाले की भूमिका अदा करती है। वह कृष्ण के पास आकर राधा के दु:ख और अवस्था के बारे में बताती है, और उसे प्रसन्न करने की प्रार्थना करती है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के संग्रह में है।
चित्र-कृष्ण झूला झूल रहे हैं एवं राधा उदास है
(2) राम चित्रकूट में अपने परिवार के सदस्यों से मिलते हैं-गुमान द्वारा 1740 से 1750 के मध्य रामायण का यह चित्र चित्रित किया गया है। यह निरन्तर कथा कहने का श्रेष्ठतम उदाहरण है। साधारण-सी दिखने वाली झोंपड़ियाँ, जिन्हें पर्ण कुटीर कहा गया है, वे सभी साधारण सामग्री से बनाई गई हैं जैसे कीचड़, लकड़ी, हरी पत्तियाँ। इन्हें जंगल में पहाड़ की तलहटी में बनाया गया है, ये पेड़ों के झुरमुट से घिरी हुई हैं जहाँ पर रामायण का यह घटनाक्रम चला। कलाकार गुमान द्वारा यह कथा बाएँ से प्रारम्भ कर दाईं ओर समाप्त की गई है।
चित्रकूट में अवस्थित, यह कहानी तीनों माताओं के साथ राजकुमारों की पत्नियों के सहित जो कि छप्पर के बने निवास की ओर आगे बढ़ रहे हैं, वहाँ से यह चित्र प्रारम्भ होता है। माताओं को देखकर राम, लक्ष्मण और सीता सम्मान से झुक जाते हैं। दुःख में व्याकुल कौशल्या राम के पास दौड़कर उसे बाँहों में भर लेती है। उस समय राम सम्मान से अपनी दो अन्य माताओं सुमित्रा और कौशल्या का अभिवादन करते हैं। वह तब प्रतिज्ञाबद्ध होकर दोनों सन्तों को प्रणाम करते हैं और उनसे बात करने बैठ जाते हैं। जब संतों ने उन्हें दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनाया, तो राम दुःख में व्याकुल होकर आहत हो उठते हैं। सुमन्त को साधुओं के पीछे कर्त्तव्यनिष्ठा के साथ खड़े देखा जा सकता है। तीनों माताएँ और लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की पत्नियाँ सीता से वार्ता करती हुई चित्रित की गई हैं। कथा का समापन तस्वीर के फ्रेम के दाईं ओर समूह के बाहर जाने से होता है। चित्र में कहानी के प्रत्येक पात्र को चिह्नित किया गया है। उसी का वर्णन करते हुए एक पद्य (verse) चित्र के ऊपरी भाग पर लिखा गया है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के संग्रह में है।
चित्र-राम चित्रकूट में अपने परिवार के सदस्यों से मिलते हैं
प्रश्न 22.
राजस्थान शैली की निम्न चित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए-
(1) गौ-धूलि (जयपुर शैली)
(2) ढोला मारु (जोधपुर)।
उत्तर:
(1) गौ-धूलि ( जयपुर शैली)-मेवाड़ शैली में चित्रकार चौखा द्वारा चित्रित गौ-धूलि चित्र दृश्य आकर्षक संयोजन व सौम्य रंग-योजना के लिए जाना जाता है। चित्र में गौ-धूलि बेला (गायों के घर लौटने का समय) में बालकृष्ण अपने सखाओं के साथ गायें लेकर वापिस नगर में प्रवेश करते अंकित हैं। अटारी से माताएँ अपने बच्चों को देख प्रफुल्लित हो रही हैं। बालक भी अपनी माताओं को देखकर उनकी ओर इशारा कर हर्षित हो रहे हैं। एक साथ बड़ी संख्या में गायों के चलने से उठ रही धूल दर्शाने के लिए पूरा वातावरण मटमैला बनाया गया है। पृष्ठभूमि में प्रकृति का सुरम्य अंकन हुआ है।
चित्र-गौ-धूलि (जयपुर शैली)
(2) ढोला-मारु (जोधपुर शैली)-यह ढोला नामक राजकुमार की कहानी है और राजकुमारी मारु है। मारवाड़ की प्रसिद्ध प्रेमगाथा पर आधारित यह चित्र 'ढोला-मारु' मारवाड़ शैली का प्रसिद्ध चित्र है। चित्र में ऊँट पर सवार ढोला-मारू को अंकित किया गया है। कथानक के अनुसार ढोला मरवण यानि मारू को पूगल से अपने राज्य नरवर ले जा रहा है।
चित्र में ऊँट की गति, ढोला का पराक्रम और मरवण के सौन्दर्य का अद्भुत सामञ्जस्य हुआ है। चित्र की सरल पृष्ठभूमि धूसर रंगों से अंकित है जबकि ढोला-मारू का चित्रण उष्ण रंगों में हुआ है। ढोला को कलंगीदार पगड़ी व अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए बनाया गया है तथा मारु को लहंगा और चुनरी पहने दर्शाया गया है।