Rajasthan Board RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 1 पांडुलिपि चित्रकला की परंपरा Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Drawing in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Drawing Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Drawing Notes to understand and remember the concepts easily.
बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
विष्णुधर्मोत्तर पुराण ग्रन्थ का कौनसा अध्याय चित्रकला का स्रोत माना जाता है ?
(अ) पुनर्जन्म
(ब) चित्रसूत्र
(स) पौराणिक कर्मकाण्ड
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) चित्रसूत्र
प्रश्न 2.
मध्यकालीन युग से भारतीय चित्रकला ने जो एक सामान्य नाम अर्जित किया, वह है-
(अ) भित्ति चित्र
(ब) पुरुष चित्र
(स) स्त्री चित्र
(द) लघु चित्र
उत्तर:
(द) लघु चित्र
प्रश्न 3.
जब किसी चित्र में किसी कवि की कविता को चित्र के रूप में अनुवादित किया जाता है और उसमें उस कविता को भी ऊपरी भाग में दर्शाया जाता है, उस चित्र को कहा जाता है-
(अ) अनुवादित चित्र
(ब) कवि-चित्र
(स) पाण्डुलिपि-चित्र
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पाण्डुलिपि-चित्र
प्रश्न 4.
पश्चिम भारतीय चित्र-शैली का प्रमुख केन्द्र है-
(अ) महाराष्ट्र
(ब) राजस्थान
(स) पंजाब
(द) गुजरात
उत्तर:
(द) गुजरात
प्रश्न 5.
जैन परम्परा में सर्वाधिक चित्रांकन वाला ग्रंथ माना गया है-
(अ) कल्प सूत्र
(ब) कालकाचार्य कथा
(स) संग्रहिणी सूत्र
(द) उत्तरध्यान सूत्र
उत्तर:
(अ) कल्प सूत्र
प्रश्न 6.
एक ब्रह्माण्डव्यापी ग्रन्थ है-
(अ) कल्प सूत्र
(ब) संग्रहिणी सूत्र
(स) उत्तरध्यान सूत्र
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) संग्रहिणी सूत्र
प्रश्न 7.
निम्न में जिसं सूत्र में महावीर स्वामी की शिक्षाएँ लिखी गई हैं, वह है-
(अ) संग्रहिणी
(ब) कल्प सूत्र
(स) उत्तरध्यान सूत्र
(द) काम सूत्र
उत्तर:
(स) उत्तरध्यान सूत्र
प्रश्न 8.
24 जैन तीर्थंकरों के जीवन की घटनाओं को गाते हुए दर्शाया गया है, वह है-
(अ) कल्प सूत्र
(ब) कालकाचार्य कथा
(स) संग्रहिणी
(द) उत्तरध्यान सूत्र
उत्तर:
(अ) कल्प सूत्र
प्रश्न 9.
पाण्डुलिपि के आवरण को 'पटलिस' कहा जाता था, यह बना होता था-
(अ) टिन का
(ब) कागज का
(स) लकड़ी का
(द) सोने का
उत्तर:
(स) लकड़ी का
प्रश्न 10.
सबसे पुरानी बचाई जा सकी ताड़ पत्रों की पाण्डुलिपि किस शताब्दी की है ?
(अ) 11वीं शताब्दी
(ब) 12वीं शताब्दी
(स) 14वीं शताब्दी
(द) 10वीं शताब्दी
उत्तर:
(अ) 11वीं शताब्दी
प्रश्न 11.
जैन चित्रकला के लिए जिन 100 वर्षों की अवधि सर्वाधिक रचनात्मक प्रतीत होती है, वह है-
(अ) 1250-1350 ई.
(ब) 1350-1450 ई.
(स) 1450-1550 ई.
(द) 1150-1250 ई.
उत्तर:
(ब) 1350-1450 ई.
प्रश्न 12.
'निमतनामा' नामक पुस्तक किस चित्रकारी से सम्बन्ध रखती है?
(अ) मुगलकालीन
(ब) सल्तनतकालीन
(स) जैन
(द) पाल
उत्तर:
(ब) सल्तनतकालीन
प्रश्न 13.
लौरचन्दा की चित्रकारियाँ किस शैली की हैं ?
(अ) जैन शैली
(ब) पाल शैली
(स) स्वदेशी शैली
(द) सल्तनत शैली
उत्तर:
(द) सल्तनत शैली
प्रश्न 14.
'बुद्धि की प्रवीणता' ताड़ की पाण्डुलिपि एक श्रेष्ठ उदाहरण है-
(अ) पाल चित्रकला शैली का
(ब) सल्तनत चित्रकला शैली का
(स) जैन चित्रकला शैली का
(द) मुगल चित्रकला शैली का
उत्तर:
(अ) पाल चित्रकला शैली का
प्रश्न 15.
पाल युग की कला का अन्त हुआ-
(अ) 11वीं सदी में
(ब) दसवीं सदी में
(स) 12वीं सदी में
(द) 13वीं सदी में
उत्तर:
(द) 13वीं सदी में
प्रश्न 16.
पाल कला भारत से निम्न में से जिस विदेश में फैली, वह है-
(अ) नेपाल में
(ब) श्रीलंका में
(स) बर्मा में
(द) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी में
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
Class 12 Drawing Chapter 1 Question Answer प्रश्न 1.
विष्णुधर्मोत्तर पुराण के तृतीय खण्ड के किस अध्याय को भारतीय चित्रकला का एक स्रोत माना जाना चाहिए?
उत्तर:
चित्रसूत्र नामक अध्याय को।
Class 12 Drawing Chapter 1 Question Answer In Hindi प्रश्न 2.
चित्रसूत्र नामक अध्याय किसके अन्तर्गत प्रतिकृति की कला (चित्रकला सिद्धान्त) के बारे में बताता है ?
उत्तर:
प्रतिमा लक्षण के अन्तर्गत।
चित्रकला के प्रश्न उत्तर Class 12 प्रश्न 3.
भारत में चित्रकला के विभिन्न तरीकों एवं संगठनों का आधार क्या बना है?
उत्तर:
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के चित्रसूत्र नामक अध्याय के प्रतिमा लक्षण।
Drawing Chapter 1 Class 12 प्रश्न 4.
मध्यकालीन युग से भारतीय चित्रकला ने कौनसा सामान्य नाम अर्जित किया?
उत्तर:
'लघु चित्र' नाम।
चित्रकला के प्रश्न उत्तर Class 12 2023 प्रश्न 5.
'लघु चित्र' नाम क्यों पड़ा?
उत्तर:
अपनी संक्षिप्त आकृति के कारण चित्रों का नाम लघु चित्र पड़ा।
कल्पसूत्र के प्रश्न उत्तर प्रश्न 6.
भारत में मध्यकाल में संरक्षक के घर की दीवारों को किससे सजाया जाता था?
उत्तर:
भित्ति चित्रों से।
कक्षा 12 चित्रकला प्रश्न 7.
पाण्डुलिपि चित्र समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ कौनसा होता है ?
उत्तर:
पाण्डुलिपि चित्र समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ 'कॉलफॅन' (Colophon) पृष्ठ होता है।
प्रश्न 8.
पाण्डुलिपि चित्रों को उनकी भंगुरता के कारण कैसा माना जाने लगा?
उत्तर:
मूल्यवान और कीमती।
प्रश्न 9.
पश्चिम भारतीय चित्र शैली का प्रमुख केन्द्र का नाम लिखिए।
उत्तर:
पश्चिम भारतीय चित्र शैली का प्रमुख केन्द्र गुजरात है।
प्रश्न 10.
पश्चिम भारतीय चित्रकला समूह के कौनसे भाग जैन चित्र शैली के नाम से जाने जाते हैं ?
उत्तर:
वे भाग जो जैन विषयवस्तु और हस्तलिपि का चित्रण करते हैं।
प्रश्न 11.
जैन चित्रकला पाण्डुलिपि में पटलिस कहाँ स्थित होती है ?
उत्तर:
पाण्डुलिपि के सबसे ऊपर एवं पैंदे में।
प्रश्न 12.
कागज के आने से पहले जैन चित्र किस पर बनाए जाते थे?
उत्तर:
ताड़ की पत्तियों पर।
प्रश्न 13.
कागज किस शताब्दी में आया?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में।
प्रश्न 14.
भारत के पश्चिम की ताड़ की पत्तियों की पाण्डुलिपियाँ अधिकतम प्राचीन किस काल की हैं?
उत्तर:
11वीं शताब्दी की। (11वीं शताब्दी से पहले की ताड़ पत्तियों की पाण्डुलिपियों को सुरक्षित नहीं रखा जा सका है।)
प्रश्न 15.
ताड़ की पत्तियों की पाण्डुलिपियों पर पेंटिंग किस पर की जाती थी?
उत्तर:
'पटलिस' पर ही।
प्रश्न 16.
शास्त्रदान की अवधारणा किस समुदाय में प्रसिद्ध थी?
उत्तर:
जैन समुदाय में।
प्रश्न 17.
जैन परम्परा में सर्वाधिक चित्रांकन वाला ग्रंथ किसे माना गया है?
उत्तर:
कल्पसूत्र को।
प्रश्न 18.
उत्तरध्यान सूत्र में किसकी शिक्षाएँ लिखी हुई हैं?
उत्तर:
महावीर स्वामी की शिक्षाएँ।
प्रश्न 19.
संग्रहिणी सूत्र कैसा ग्रंथ है और इसे कब लिखा गया?
उत्तर:
संग्रहिणी सूत्र एक ब्रह्माण्डव्यापी ग्रंथ है जिसे 12वीं सदी में लिखा गया था।
प्रश्न 20.
जैन चित्रकारियों में स्थापत्य कला के किन तत्वों को दर्शाया गया है?
उत्तर:
जैन चित्रकारियों में स्थापत्य कला के तत्वों में सल्तनत काल के मकबरे और गुम्बदों को दर्शाया गया है।
प्रश्न 21.
जैन चित्रकला की कौनसी अवधि सर्वाधिक रचनात्मक प्रतीत होती है?
उत्तर:
जैन चित्रकला की 1350-1450 ई. तक की 100 वर्षों की अवधि सर्वाधिक रचनात्मक प्रतीत होती है।
प्रश्न 22.
मुगल पूर्व स्वदेशी चित्रकला की कोई एक विशिष्ट कलात्मक विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुगल पूर्व स्वदेशी चित्रकला में वस्त्रों की पारदर्शिता को चित्रित करती नायिका आकृति का उद्भव हुआ।
प्रश्न 23.
किन मठों में पीतल की मूर्तियों को बनाने का कार्य किया जाता था?
उत्तर:
नालन्दा और विक्रमशिला मठ में।
प्रश्न 24.
कहाँ के छात्र नालन्दा व विक्रमशिला मठों में शिक्षा हेतु आते थे?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्वी एशिया के छात्र।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I (SA-I)
प्रश्न 1.
विष्णुधर्मोत्तर पुराण का तृतीय खण्ड किस-किसके बारे में विमर्श करता है?
उत्तर:
यह खण्ड मानव आकृति के त्रिआयामी दृष्टिकोण, तकनीक, उपकरण, सामग्री, सतह (दीवार) तथा अनुभूति के बारे में विमर्श करता है।
प्रश्न 2.
लघु चित्रों का क्या उपयोग किया जाता था?
उत्तर:
लघु चित्रों को इनकी संक्षिप्त आकृति के कारण हाथ में लेकर निकट से देखा जाता था। इन्हें दीवार पर लगाने का कोई इरादा नहीं था।
प्रश्न 3.
पाण्डुलिपि चित्रों के समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ कौनसा होता था और क्यों ? या कॉलफॅन पृष्ठ क्या है?
उत्तर:
पाण्डुलिपि चित्रों के समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ कॉलफॅन का पृष्ठ होता था क्योंकि यह संरक्षक, कलाकार. संगठन, कार्य के पूर्ण होने की तिथि तथा स्थान आदि की सचनाएँ प्रदान करता था।
प्रश्न 4.
कॉलफॅन पृष्ठ (Colophon page) से क्या आशय है ?
उत्तर:
कॉलफॅन पृष्ठ पाण्डुलिपि चित्रकला के किसी समूह का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ होता है क्योंकि यह संरक्षक, कलाकार, संगठन, कार्य के पूर्ण होने की तिथि और स्थान आदि महत्त्वपूर्ण विवरण की सूचनाएँ प्रदान करता है।
प्रश्न 5.
गुम हो चुके कॉलफॅन पृष्ठों का निर्माण विद्वानों ने किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
समय के प्रकोपों के कारण गुम हो गए कॉलफॅन पृष्ठों को संगठन के कहने पर कला-विद्वानों ने उनके गुणों के आधार पर निर्मित किया है।
प्रश्न 6.
पाण्डुलिपि चित्रकला के चित्रों का उपहार में लेन-देन किस कारण से और किस रूप में शुरू हुआ?
उत्तर:
लाने-ले जाने में आसान तथा कीमती व मूल्यवान होने के कारण पाण्डुलिपि चित्रकला के चित्रों का राजकुमारियों के विवाह में दहेज के रूप में तथा राजाओं और दरबारियों के मध्य भेंट देने हेतु उपहार के रूप में प्रचलन बढ़ा।
प्रश्न 7.
चित्रकला के पश्चिमी भारतीय चित्र शैली के प्रमुख केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमी भारतीय चित्र शैली का प्रमुख केन्द्र गुजरात रहा है। इसमें अन्य केन्द्रों के रूप में राजस्थान का दक्षिणी भाग और मध्य भारत का पश्चिमी भाग भी सम्मिलित है।
प्रश्न 8.
पश्चिमी भारतीय चित्र शैली किनके संरक्षण में पनपी और क्यों?
उत्तर:
पश्चिमी भारतीय चित्र शैली स्थानीय शक्तिशाली सरदारों, व्यापारियों और सौदागरों के संरक्षण में पनपी क्योंकि ये सभी यहाँ के व्यापार द्वारा धनी तथा समृद्ध हो गये थे।
प्रश्न 9.
पश्चिम भारत में जैन चित्र शैली का विकास क्यों हुआ?
उत्तर:
पश्चिम भारत (गुजरात, राजस्थान का दक्षिणी भाग तथा मध्य भारत का पश्चिमी भाग) में व्यापारी वर्गों में जैन समुदाय प्रमुख था। यह समुदाय जैन सम्प्रदाय से सम्बन्धित विषयवस्तु से युक्त चित्रकला के महत्त्वपूर्ण संरक्षक बन गये थे। इनके संरक्षण के कारण यहाँ जैन चित्र शैली का विकास हुआ।
प्रश्न 10.
जैन चित्र शैली किसे कहा गया?
उत्तर:
पश्चिमी भारतीय चित्र समूह के वे भाग जो जैन विषयवस्तु और हस्तलिपि का चित्रण करते थे, उसे जैन चित्र शैली कहा गया।
प्रश्न 11.
उत्तरध्यान सूत्र क्या है ?
उत्तर:
'उत्तरध्यान सूत्र' में महावीर स्वामी की शिक्षाएँ लिखी हुई हैं, जो एक साधु के व्यवहार को बताती हैं।
प्रश्न 12.
'संग्रहिणी सूत्र' क्या है ?
उत्तर:
'संग्रहिणी सूत्र' जैन चित्र परम्परा में चित्रित एक ग्रंथ है। यह एक ब्रह्माण्डव्यापी ग्रंथ है जिसे 12वीं शताब्दी में चित्रित किया गया था। इसमें ब्रह्माण्ड के ढाँचे एवं अन्तरिक्ष के मापन की अवधारणाएँ विद्यमान हैं।
प्रश्न 13.
'पटलिस' किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
जैन चित्रकला पाण्डुलिपि को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से जिस लकड़ी के आवरण से ढका जाता है, उसे पटलिस कहते हैं।
प्रश्न 14.
ताड़ की पत्तियों की पाण्डुलिपियों की 'पटलिस' पर किस प्रकार के चित्र बनाए जाते थे ?
उत्तर:
ताड़ की पत्तियों की पाण्डुलिपियों की पटलिस पर उदारतापूर्वक तेज चमकीले रंगों में देवी और देवताओं के तथा जैन आचार्यों के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं के चित्र बनाए जाते थे।
प्रश्न 15.
'कल्पसूत्र' में वर्णित किन पाँच घटनाओं को विस्तृत रूप में बताया गया हैं ?
उत्तर:
कल्पसूत्र में पाँच प्रमुख घटनाएँ जिन्हें विस्तृत रूप में बताया गया है, वे हैं-
प्रश्न 16.
कालकाचार्य कथा में कालक की प्रमुखतः किन घटनाओं के बारे में बताया गया है?
उत्तर:
कालकाचार्य कथा में, कालक की जिन प्रमुख घटनाओं के बारे में बताया गया है, वे हैं-
प्रश्न 17.
सल्तनत काल की चित्रकारी का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में सल्तनत वंशों के शासन में कुछ मध्य एशियायी कलाकार जो कि मालवा, गुजरात आदि केन्द्रों के स्थानीय कलाकारों के साथ इन दरबारों में कार्य करने लगे तो स्वदेशी चित्रकला के तरीकों के साथ पारसी कला की विशेषताएँ आपस में मिल गईं जिससे एक नवीन कला शैली-सल्तनतं चित्रकला शैली-का प्रादुर्भाव हुआ।
प्रश्न 18.
सल्तनतकालीन चित्रकला शैली की दो कलात्मक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
इसमें रंगों की पाटिया तथा साज-सज्जा युक्त विवरण के साथ सरलीकृत भूभाग का चित्रण हुआ।
प्रश्न 19.
सल्तनतकाल की चित्रकारी शैली की कौनसी चित्रकारियाँ विशिष्ट उदाहरण हैं ?
उत्तर:
सूफी विचारों से ओतप्रोत कहानियों. तथा लोरचन्दा की चित्रकारियाँ इस शैली का विशिष्ट उदाहरण हैं।
प्रश्न 20.
नालन्दा और विक्रमशिला मठ में ताड़ के पत्रों पर किसके चित्र बनाये गये?
उत्तर:
इन मठों में बौद्ध विषयवस्तुओं और बज्रायण बौद्ध भिक्षुओं के ताड़ के पत्तों पर चित्र बनाए गए।
प्रश्न 21.
पाल की कला किन-किन देशों में फैली?
उत्तर:
पाल की कला नेपाल, तिब्बत, बर्मा, श्रीलंका और जावा में फैल पाने में सक्षम हो गई।
प्रश्न 22.
पाल बौद्ध की ताड़-पाण्डुलिपि चित्रकला का श्रेष्ठ उदाहरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पाल बौद्ध की ताड़-पाण्डुलिपि चित्रकला का एक श्रेष्ठ उदाहरण है-अष्टासहश्रिका प्रज्ञान परमपिता या 'बुद्धि की प्रवीणता', जो आठ हजार पंक्तियों में लिखी गई है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II (SA-II)
प्रश्न 1.
विष्णुधर्मोत्तर पुराण का तृतीय खण्ड चित्र के किन-किन अंगों का वर्णन करता है?
उत्तर:
विष्णुधर्मोत्तर पुराण का तृतीय खण्ड, चित्र के विभिन्न अंगों, जैसे-रूपभेद या बाहरी स्वरूप, प्रमाण या मापन, अनुपात और ढाँचा, भाव या अभिव्यक्ति, लावण्य योजना या सौन्दर्य संरचना, सादृश्यता या समरूपता तथा वर्णिका भंग या रंगों व ब्रश का प्रयोग करना आदि के बारे में बहुत विस्तार से उदाहरणों सहित बताता है। इन सभी के बहुत सारे उपखप
प्रश्न 2.
पाण्डुलिपि चित्रों की भंगुरता के कारण इनका महत्त्व व प्रचलन किस रूप में हुआ?
उत्तर:
पाण्डुलिपि चित्रों को गलत तरीके से रखे जाने, आग, नमी या अन्य प्रकार की विपदाओं या बाधाओं के कारण इनके भंगुर हो जाने के कारण यह कला कर्म संवेदनशील बन गया। इन पाण्डुलिपि चित्रों को कीमती और मूल्यवान माना जाने लगा तथा इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी आसान था। परिणामतः इनका उपयोग उपहार देने या व्यापार हेतु किया जाने लगा।
प्रश्न 3.
पाण्डुलिपि चित्रों का उपयोग उपहार तथा व्यापार में किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
बहुमूल्य और कीमती होने व लाने-ले जाने में आसान होने के कारण पाण्डुलिपि चित्रों को राजकुमारियों को उनके विवाह के समय दहेज़ के रूप में उपहार दिया जाता था तथा इनका राजाओं एवं दरबारियों के मध्य भी उपहार के रूप में आदान-प्रदान किया जाता था। इसके अतिरिक्त सुदूर स्थानों पर इनका व्यापार भी किया जाता था। ये पाण्डुलिपि चित्र तीर्थयात्रियों, साधु-सन्तों, साहसिक यात्रियों, व्यापारियों तथा व्यावसायिक प्रवक्ताओं के माध्यम से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में यात्राएँ करती थीं।
प्रश्न 4.
पश्चिमी भारत में जैन पेंटिंग ने किससे प्रेरणा प्राप्त की?
उत्तर:
पश्चिमी भारत में जैन पेंटिंग ने शास्त्रदान से प्रेरणा प्राप्त की। शास्त्रदान की अवधारणा (किताबों को दान देना) जैन समुदाय में प्रसिद्ध थी। जहाँ जैन-शास्त्रों के उद्धरणों से युक्त चित्रों को मठों की लाइब्रेरी में दान किया जाता था, जिन्हें 'भण्डार' कहा जाता था। इन भण्डारों को उदारता, आभार और अधिकारिता का भाव प्राप्त था।
प्रश्न 5.
कल्पसूत्र क्या है ?
उत्तर:
कल्पसूत्र-जैन परम्परा में कल्पसूत्र सर्वाधिक चित्रांकन वाला ग्रंथ है। इसके एक भाग में 24 करों के जीवन की घटनाओं को गाते हुए बताया गया है जो कि उनके जन्म से लेकर मोक्ष तक उद्धत हैं। ये घटनाएँ कलाकारों को उनकी पूची द्वारा जीवन की गाथा चित्रित करने हेतु सामग्री उपलब्ध कराती हैं। इसमें पाँच प्रमुख घटनाओं को अधिक विस्तार से बताया गया है। ये हैं-अवधारणा, जन्म, त्याग, प्रबोधन तथा प्रथम उपदेश।
प्रश्न 6.
'कालकाचार्य कथा' क्या है?
उत्तर:
'कालकाचार्य कथा' एक जैन चित्रित ग्रन्थ है। यह,आचार्य कालक की कथा कहता है जो अपनी साध्वी अपहृत बहन को एक दुष्ट राजा से बचाने के अभियान पर था। यह हमें कालक की बहुत सिहरन पैदा करने वाली तथा साहसी घटनाओं का चित्रण करता है, जैसे-अपनी बहन का पता लगाने हेतु जमीन का शुद्धिकरण करना, अपनी जादुई शक्तियों का प्रदर्शन करना, अन्य राजाओं से सम्बन्ध बनाना तथा अन्त में उस दुष्ट राजा से लड़ना।
प्रश्न 7.
जैन पाण्डुलिपि चित्रकला पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जैन पाण्डुलिपि चित्रकला-कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथा, संग्रहिणी तथा उत्तरध्यान सूत्र आदि सभी ग्रन्थों की प्रतियाँ बड़ी संख्या में लिखी गईं। इनमें या तो कम या बहुत दरियादिली से चित्रों को बनाया गया। इस प्रकार से एक विशिष्ट चित्रों की जिल्द वाली पुस्तक को कई भागों में विभक्त किया गया जिसमें अध्याय को लिखने और जो लिखा गया, उसका चित्रण करने हेतु स्थान प्रदान किया गया। केन्द्र में धागे से समस्त चित्रों को एक साथ बाँधने हेत एक छोटा छिद्र बनाया गया। इन्हें सरक्षित रखने के उददेश्य से लकडी के आवरण से ढका गया, जिन्हें 'पटलिस' कहा जाता है। यह पटलिस पाण्डुलिपि के सबसे ऊपर एवं पैंदे में रखी गई थी।
प्रश्न 8.
ताड़ पत्तियों के प्रारम्भिक जैन चित्रकला पाण्डुलिपियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक जैन चित्र (पेंटिंग्स), 14वीं शताब्दी में कागज के आने से पहले, परम्परागत रूप से पाम की पत्तियों पर बनाए गए थे। भारत के पश्चिमी भाग से ताड़ की पत्तियों पर बनी आज सबसे पुरानी सुरक्षित रखी जा सकी पाण्डुलिपि 11वीं शताब्दी की है। ताड़ की पत्तियों पर चित्रकारी करने से पूर्व उनका उचित रखरखाव किया जाता था तथा एक तेज धार वाले चाकू जैसी लेखनी से शब्दों को उकेरा जाता था।
ताड़ की पत्तियों के संकरे और छोटे होने के कारण प्रारम्भिक रूप से चित्रकारियाँ पटलिस तक ही सीमित थीं।
प्रश्न 9.
पश्चिमी भारत में जैन चित्रकला के समानान्तर चित्रों की कौनसी अन्य परम्परा विद्यमान रही?
उत्तर:
जैन चित्रकला के अतिरिक्त पश्चिमी भारत में धनी व्यापारियों, समर्पित धार्मिक व्यक्तियों एवं सामन्तों द्वारा संरक्षित चित्रों की एक समानान्तर परम्परा भी विद्यमान रही। 15वीं तथा 16वीं शताब्दियों के उत्तरार्द्ध के दौरान उसने साहित्यिक विषयवस्तुओं पर बनी पंथनिरपेक्ष एवं धार्मिक चित्रों को अपने आवरण में लपेटकर परम्परागत चित्र बनाए थे। यह चित्रकला शैली राजस्थान के दरबारी तरीकों और मुगल प्रभाव के मिश्रण से परम्परागत स्वदेशी चित्रकला का प्रतिनिधित्व करती थी।
इसी समय, हिन्दू और जैन विषयों के चित्रण से अलग, चित्रकारों के बड़े समूह द्वारा स्वदेशी शैली का प्रतिनिधित्व किया गया। उसने महापुराण, चारुपंचशिखा, महाभारत का अरण्यक पर्व, गीत गोविन्द आदि का चित्रण किया। इस समयावधि और चित्रकारी की शैली को मुगल पूर्व या पूर्व-राजस्थानी चित्रकला बताया गया है।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
पाण्डुलिपि चित्रों के इतिहास का पुनर्निर्माण क्यों और किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
पाण्डुलिपि चित्रों के इतिहास का पुनर्निर्माण एक अभूतपूर्व कार्य है। वहाँ पर कुछ तिथिवार चित्र-समूह हैं जिनकी बिना तिथि वाले चित्र-समूहों से तुलना की जाती है। अगर किसी पाण्डुलिपि चित्रकला के चित्र समूह के सभी बिना तिथिवार चित्रों को क्रमानुसार व्यवस्थित किया जाए तो इनके बीच कुछ खाली स्थान रह जाते हैं, जहाँ पर कोई केवल चित्रकारी की गतिविधि के प्रकार का अंदाज लगा सकता है, जो उस समय में पनपी होगी। अगर इन विषयों को अलग हटकर देखा जाये तो खुले पृष्ठ उसके मूल समूह (जिल्द) के भाग नहीं होते हैं तथा उन चित्रों को जिन्होंने समय की सतह को बनाये रखा, उन्हें विभिन्न अजायबघरों तथा निजी संग्रहों में बाँट दिया जाता है, तथा जिन्होंने निर्मित समय सीमा को चुनौती प्रस्तुत की, उन्होंने विद्वानों पर इतिहास क्रम को संशोधित करने या पुनः परिभाषित करने पर दबाव बनाया। इस सन्दर्भ में शैली और अन्य परिस्थितिजन्य गवाहों तथा शैली के आधार पर एक परिकल्पना की गई समय सीमा में गैर तिथिवार चित्रों के समूह को रखा जाता है।
प्रश्न 2.
जैन-चित्रकला की कलागतं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैन-चित्रकला की कलागत विशेषताएँ
जैन-चित्रकला की 1350-1450 ई. के लगभग 100 वर्षों की अवधि सर्वाधिक रचनात्मक अवधि थी। इस चित्रकला की कलागत विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
1. एक सरल एवं नियोजित भाषा-जैन चित्रों ने चित्रकला की एक सरल और नियोजित भाषा का विकास किया था। यह प्रायः विभिन्न प्रकार की घटनाओं को अपने अन्दर समाहित करने के लिए विभिन्न भागों के मध्य जगह देती थी। वहाँ चटकीले रंगों के लिए लगन और वस्त्रों के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करने हेतु रुचि उत्पन्न की गई।
2. संरचना-चित्रों की संरचना में पतली तार की रेखाएँ संरचना पर पहले से ही छाई हुई हैं तथा चेहरे को त्रिआयामी बनाने के प्रयास में एक अतिरिक्त आँख आगे की ओर जोड़ी गई।
3. चित्रकारियों के पास स्थापत्य कला के तत्वों का समावेश-स्थापत्य कला के तत्व, जो सुल्तानकालीन मकबरे और गुम्बदों में देखे जा सकते हैं, वे गुजरात, मांडु, जौनपुर तथा पटना आदि अन्य क्षेत्रों में जहाँ चित्र बनाये गये थे, वे सुल्तान की राजनीतिक उपस्थिति का संकेत देती हैं अर्थात् सुल्तान के राजनैतिक प्रभाव । को दर्शाती हैं।
4. स्वदेशी तथा स्थानीय जीवनशैली की विशेषताएँ-चित्रों में वस्त्र के शामियानों, दीवार, फर्नीचर, वेशभूषा एवं अन्य उपयोगी वस्तुओं के चित्रण में स्वदेशी विशेषताएँ और स्थानीय सांस्कृतिक जीवन शैली के प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।
5. भू-भाग-भू-भाग की विशेषताएँ केवल सुझावात्मक हैं और इन्हें विस्तृत रूप से नहीं दिखाया गया है। भू-भाग में नृत्य करते हुए कलाकारों का चित्रण, संगीतकारों द्वारा विभिन्न वाद्य यंत्रों को बजाते हुए चित्रण किया गया है।
6. स्वर्ण एवं मूल्यवान नीले रंग के पत्थरों का प्रयोग-इन चित्रों में अपने संरक्षों की सामाजिक प्रतिष्ठा एवं धन सम्पदा को इंगित करने के लिए अत्यधिक रूप से स्वर्ण का उपयोग करते हुए मूल्यवान नीले रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
चित्र-इन्द्र स्तुति, देवासनो पाडो, कल्पसूत्र, गुजरात, लगभग 1475, संग्रह : बोस्टन
प्रश्न 3.
15वीं व 16वीं सदी की पश्चिमी भारत की स्वदेशी या मुगल पूर्व या राजस्थानी चित्रकला से पूर्व की चित्रकला की विशिष्ट कलात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वदेशी चित्रकला
या
मुगलपूर्व चित्रकला
या
राजस्थानी चित्रकला से पूर्व की चित्रकला
15वीं और 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध के काल में, साहित्यिक विषयवस्तुओं पर बने पंथनिरपेक्ष एवं धार्मिक चित्रों को अपने आवरण में लपेटकर परम्परागत चित्रकारियाँ भी की गई थीं। यह तौर-तरीका राजस्थान के दरबारी तरीकों के निर्माण और मुगल प्रभाव के मिश्रण से परम्परागत स्वदेशी चित्रकला का प्रतिनिधित्व भी करता है। इस समयावधि की चित्रकारी की शैली को मुगल पूर्व या राजस्थानी चित्रकला के पूर्व की चित्रकला के रूप में बताया गया है जो 'स्वदेशी चित्रकला शैली' का पर्याय शब्द बन गया।
इस काल की चित्रकला की विशिष्ट कलात्मक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. आकृति सम्बन्धी विशेषता-इस काल की चित्रकला में वस्त्रों की पारदर्शिता को चित्रित करती एक विशेष प्रकार की आकृति का उद्भव हुआ। इसमें नायिका के सिर पर ओढ़नी गुब्बारे के आकार में फूलती हुई थी जिसके किनारे सख्त और ढलवाँ स्वरूप में थे।
2. स्थापत्य कला--चित्रों में स्थापत्य कला संदर्भात्मक एवं सुझावात्मक थी।
3. छाया रेखा--जल जीवों को चित्रित करती और विशेष तरीकों से क्षितिज, वनस्पति, जीव इत्यादि को चित्रित करती विभिन्न प्रकार की छाया रेखाओं का उद्भव हुआ।
इन सभी औपचारिक तत्वों ने 17वीं शताब्दी में प्रारम्भिक राजस्थानी चित्रों में अपना स्थान लिया।
चित्र-चौरपंचाशिका, गुजरात, पन्द्रहवीं शताब्दी, एन.सी. मेहता संग्रह, अहमदाबाद, गुजरात
4. सल्तनतकालीन चित्रकारी का प्रादुर्भाव-इस काल में भारत में मध्य एशिया के कई सल्तनत वंश के शासन के प्रभाव स्वरूप पर्शिया, टर्की और अफगानिस्तान की चित्रकला के तत्व स्वदेशी चित्रों में मिश्रित हो गए। इससे स्वदेशी कला शैली के साथ पारसी कला की विशेषताएँ आपस में मिल गईं और 'सल्तनतकालीन चित्रकला शैली' के नाम से एक नवीन चित्रकला शैली का प्रादुर्भाव हुआ। इसमें पारसी चित्रकला की संकर किस्म का प्रभाव दिखा जो चित्रकला की स्वदेशी शैली बनी। इसमें रंगों की पटिया, मुख की आकृति, साज-सज्जा युक्त विवरण के साथ सरलीकृत भू-भाग इत्यादि थे। 'निमतनामा' नामक पुस्तक इसका सर्वाधिक प्रतिनिधित्व करने वाला उदाहरण है, जिसे माण्डु में चित्रित किया गया था।
चित्र-निमतनामा, माण्डु, 1550, ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन
प्रश्न 4.
'पाल चित्र शैली' पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
पाल चित्र शैली 11वीं तथा 12वीं शताब्दी पूर्वी भारत के पालों की पाण्डुलिपियाँ प्रारम्भिक चित्रों की उदाहरण हैं। पालों की कालावधि (750 ई. से मध्य 12वीं शताब्दी) ने भारत में बुद्ध कला के अन्तिम काल को देखा है। नालन्दा और विक्रमशिला मठ बौद्ध शिक्षा के केन्द्र रहे हैं। बौद्ध विषय-वस्तुओं तथा बज्रायण बौद्ध भिक्षुओं की ताड़ के पत्तों पर की गई चित्रकला तथा असंख्य पाण्डुलिपियाँ इसकी उदाहरण हैं।
अन्य देशों में पाल कला का फैलना-दक्षिण-पूर्वी एशिया से छात्र एवं तीर्थयात्री इन मठों पर शिक्षा प्राप्त करने व धर्म सीखने हेतु आते थे एवं अपने साथ बौद्ध कला के नमूने यहाँ बनी पीतल की मूर्तियों या पाण्डुलिपियों में अपने साथ ले जाते थे। इससे पाल की कला नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका और जावा में फैल गई।
पाल चित्रकला की कलात्मक विशिष्टताएँ-
(i) शान्त रंगों में लहरदार तथा गतिवान रेखाएँ पाल चित्रों की विशिष्टता है।
(ii) अजन्ता की तरह, पालों की मूर्तिकला शैली में इन मठों एवं कलाकारों द्वारा निर्मित आकृतियाँ, समान भाषा कपाल बौद्ध ताड-पत्र पाण्डुलिपि का श्रेष्ठ उदाहरण 'अष्टासहश्रिका प्रज्ञानपरमपिता' या 'बुद्धि की प्रवीणता' है जो आठ हजार पंक्तियों में लिखी गई है।
(iii) पाल राजा, रामपाल के शासनकाल में 15वीं सदी में नालन्दा मठ में 11वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में की गई चित्रकारी में छः पृष्ठ इसके उदाहरण हैं तथा इसके लकड़ी के ऊपर-नीचे के कवर पृष्ठ दोनों तरफ से चित्रित किये गये हैं।
13वीं शताब्दी के प्रथम भाग में पाल युग की कला का अन्त हो गया जब मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा इन मठों पर आक्रमण कर वहाँ इन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया।