RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Chapter 8 Important Questions मानव स्वास्थ्य तथा रोग


अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
टायफाइड रोग के रोगजनक का वैज्ञानिक नाम लिखिए। 
उत्तर:
साल्मोनेला टायफी (Salmonella typhi) 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 2. 
टायफाइड रोग की पुष्टि के लिए किये जाने वाली जाँच का नाम लिखिए।
उत्तर विडाल टेस्ट (Widal test)।

प्रश्न 3. 
राइनो वाइरस मनुष्य में कौन - सा सामान्य संक्रमण करते हैं? 
उत्तर:
सामान्य सर्दी-जुकाम (common cold)। 

प्रश्न 4. 
मैलिगनेंट मलेरिया रोग के लिए उत्तरदायी रोग जनक का नाम लिखिए?
उत्तर:
प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum)। 

प्रश्न 5. 
किस रोग में शरीर के अन्दर विषाक्त पदार्थ हीमोजोइन का निर्माण होता है? 
उत्तर:
मलेरिया रोग में। 

प्रश्न 6. 
मादा एनाफिलीज मच्छर मनुष्य को काटते समय प्लाज्मोडियम की कौन - सी अवस्था को मनुष्य के रक्त में छोड़ देता है।
उत्तर:
स्पोरोजोइट अवस्था (Sporozoites)।

प्रश्न 7. 
मलेरिया परजीवी में निषेचन व विकास किस पोषी (host) के शरीर में होता है? 
उत्तर:
मादा एनोफिलीज मच्छर में।

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प्रश्न 8. 
फाइलेरिया के रोग जनक का नाम लिखिए। 
उत्तर:
मनुष्य में फाइलेरिया रोग फाइलेरिया कमि की दो प्रजातियों द्वारा होता है-
बुचेरेरिया बेन्क्रोफ्टी (Wuchereria bancrofti)।
वुचेरेरिया मालायी (Wuchereria malayi)। 

प्रश्न 9. 
माइक्रोस्पोरम व ट्राईकोफाइटॉन जैसे सूक्ष्मजीव मनुष्य में कौन - सा रोग उत्पन्न करते हैं? 
उत्तर:
दाद (Ringworm) या टीनिया (Tinea)। 

प्रश्न 10. 
ऐसी दो परिस्थितियों के नाम लिखिए जो कवक (फंगस) वृद्धि में मदद करती हैं। 
उत्तर:
ऊष्मा (Heat) व नमी (Moisture) कवक वृद्धि में मदद करती हैं। 

प्रश्न 11. 
मच्छर के लार्वाओं को खाने वाली मछली का नाम लिखिए। 
उत्तर:
गैम्बूसिया (Gambusia)।

प्रश्न 12. 
मच्छर द्वारा फैलने वाले चार रोगों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगी (dengue) व चिकनगुनिया। 

प्रश्न 13. 
एडीज मच्छर किस प्रमुख रोग का वाहक है? 
उत्तर:
एडीज (Aedes spp) डेंगी (dengue) रोग का वाहक है। 

प्रश्न 14. 
पालीमार्को न्यूक्लियर ल्यूकोसाइट (PMNL - न्यूट्रोफिल) व मोनोसाइट में क्या समानता है? 
उत्तर:
दोनों भक्षक कोशिकाएं (Phagocytes) है।

प्रश्न 15. 
साइटोकाइन अवरोध किस प्रकार कार्य करते हैं? 
उत्तर:
इन्टरफेरॉन (Interferon), साइटोकाइन अवरोध के उदाहरण हैं। विषाणुओं द्वारा संक्रमित कोशिकाओं द्वारा स्रावित यह पदार्थ असंक्रमित कोशिकाओं को विषाणु संक्रमण से बचाते हैं।

प्रश्न 16. 
किस महत्त्वूपर्ण अणु को H2L2 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है? 
उत्तर:
एन्टीबॉडीज में दो भारी श्रृंखलाएँ (H) व दो हल्की श्रृंखलाएँ (कुल चार) श्रृंखलाएँ होती हैं अत: इन्हें H2L2 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। 

प्रश्न 17. 
एलर्जी में किस प्रकार की एन्टीबाडी का निर्माण होता है? 
उत्तर:
एलर्जी में IgE एन्टीबाडी का निर्माण होता है। 

प्रश्न 18. 
प्रथम स्तन्य या खीस (Colostrum) में किस प्रकार की एन्टीबॉडीज होती है?
उत्तर:
कोलोस्ट्रम में IgA एंटीबाडी होती है। 

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प्रश्न 19. 
किस प्रकार की प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया प्रत्यारोपित अंग को अस्वीकार करने हेतु उत्तरदायी होती है? 
उत्तर:
प्रमुखतः कोशिका माध्यित प्रतिरक्षी अनुक्रिया। 

प्रश्न 20. 
शिशु द्वारा माँ से एंटीबाहीज प्राप्त करना किस प्रकार की प्रतिरक्षा का उदाहरण है? 
उत्तर:
निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive immunity)। 

प्रश्न 21. 
टिटेनेस व डिफ्थीरिया जैसे गम्भीर रोगों में किस प्रकार की प्रतिरक्षा की आवश्यकता होती है? 
उत्तर:
एंटीबाडीज के रूप में निष्क्रिय प्रतिरक्षा। 

प्रश्न 22. 
सर्पदंश (snake bite) के रोगी को किस प्रकार की प्रतिरक्षा की आवश्यकता होती है? 
उत्तर:
एंडीबाडीज के रूप में निष्क्रिय प्रतिरक्षा। 

प्रश्न 23. 
एलर्जी के समय शरीर की मास्ट कोशिकाओं द्वारा सावित दो पदार्थों का नाम लिखिए। 
उत्तर:
हिस्टामाइन (Histamine) व सिरोटोनिन (Serotonin)। 

प्रश्न 24. 
शरीर में एलर्जी के लक्षणों पर नियंत्रण करने वाली दो प्रकार की औषधियों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
एंटी हिस्टामाइन (Antihistamine) तथा स्टीराइड (Steroids)। 

प्रश्न 25. 
किसी एक स्वप्रतिरक्षी रोग का नाम लिखिए। 
उत्तर:
रयूमेटाइड अर्थराइटिस (Rheumatoid arthritis)।

प्रश्न 26. 
ऐसे दो अंगों के नाम लिखिए जिनमें अपरिपक्व लिम्फोसाइट्स का भिन्नन होता है? 
उत्तर:
अस्थिमज्जा (bone marrow) व थाइमस (thymus)।

प्रश्न 27. 
शरीर का कौन - सा अंग रक्त के फिल्टर का कार्य कर रक्त के साथ आये सूक्ष्मजीवियों को अलग कर देता है? 
उत्तर:
तिल्ली (spleen)।

प्रश्न 28. 
किसी एक रिट्रोवाइरस का नाम लिखिष्ट। 
उत्तर:
ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वाइरस (HIV)।

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प्रश्न 29. 
टोक्सोप्लाज्मा जैसे परजीवी संक्रमण के लिए कौन अधिक सुग्राह होता है? 
उत्तर:
एड्स रोगी प्रतिरक्षी न्यूनता के कारण टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma) जैसे परजीवी संक्रमण का शिकार बन जाते हैं। 

प्रश्न 30. 
मार्फीन किस पौधे से प्राप्त की जाती है? 
उत्तर:
मार्फीन - पेपवर सोम्नीफेरम (Papaver somniferum) नामक पौधे से प्राप्त की जाती है। 

प्रश्न 31. 
कुछ एलर्जनों से छींकों का आना तथा हॉफना शुरू हो जाता है। शरीर में इस प्रकार की अनुक्रिया न होना किसके कारण होता है?
उत्तर:
इस अनुक्रिया का न होना प्रतिरक्षी तंत्र की न्यूनता, कमी अथवा विकार (deficiency of immune system) का परिचायक है। 

प्रश्न 32. 
चिकनगुनिया रोग के वाहक का नाम लिखिए।
उत्तर:
एडीज (Aedes agypti) मच्छर। 

प्रश्न 33. 
फाइलेरिएसिस से पीड़ित व्यक्ति के पैरों में सूजन किसके द्वारा होती है?
उत्तर:
फाइलेरिएसिस रोग में रोगजनक वुचेरेरिया ब्रेकोफ्टी शरीर के किसी अंग जैसे पैर की लिम्फ नलिकाओं में सूजन कर देते है अतः लिम्फ वहाँ एकत्रित (oedema) होकर इस भाग को बड़ा कर देता है। 

प्रश्न 34. 
विशिष्ट इम्यूनिटी को प्राप्त करने के लिए आवश्यक दो मुख्य कोशिकाओं के समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बी लिम्फोसाइट (B - lymphocytes) व टी लिम्फोसाइट (T - lymphocytes)।

प्रश्न 35. 
मनुष्य के शरीर में पहुंचने के बाद HIV जिन दो कोशिकाओं में गुणित होता है, उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
मैक्रोफेज (Macrophages) तथा सहायक T लिम्फोसाइट (Helper T - lymphocyte) 

प्रश्न 36. 
दो तकनीकी विधियों के नाम लिखिष्ट जिनके द्वारा जीवाणु या विषाणु संक्रमित रोग के लक्षण शरीर पर प्रकट होने से पहले चिन्हित कर लिए जाते हैं।
उत्तर:

  • एन्जाइम लिन्क्ड इम्यूनोसारबेट एसे (ELISA)
  • डी.एन.ए. प्रोब तथा रि - काम्बीनेट डी.एन.ए. तकनीक। 

प्रश्न 37. 
रिट्रोवाइरसों में DNA नहीं होता। फिर भी ग्रस्त परपोषी कोशिका में वाइरसी DNA होता है। यह किस प्रकार सम्भव है?
उत्तर:
इन विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ RNA के साथ एंजाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) भी पाया जाता है। इसकी मदद से यह RBA से DNA का निर्माण कर लेते हैं जो परपोषी जीनोम में समायोजित हो जाता है। 

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प्रश्न 38. 
स्टेम कोशिकाएं क्या है?
उत्तर:
स्टेम कोशिका या मूल कोशिका, ऐसी कोशिकाएँ होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को विकसित करने की क्षमता होती है, इसके साथ ही ये शरीर की दूसरी कोशिका के रूप में स्वयं को परिवर्तित कर सकती हैं। 

प्रश्न 39. 
टाइफाइड उत्पन्न करने वाले दो रोग जनकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. साल्मोनेला टाइफी।
  2. साल्मोनेला पेराटाइफी। 

प्रश्न 40. 
खीज की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
खीस (कोलस्ट्रम) में IgA एण्टीबॉडी होते हैं जो शिशु को रोगप्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं। 

प्रश्न 41. 
दो रोगों के नाम लिखिए जिनका प्रसार एडीज मच्छरों के उन्मूलन के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
उत्तर:

  1. डेंगी
  2. चिकनगुनिया। 

प्रश्न 42. 
किन्हीं दो कायिक रोधों (फीजियोलॉजिकल बैरियर्स) के नाम लिखिष्ट जो सहज प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं।
उत्तर:

  1. त्वचा
  2. श्लेष्मिक कला। 

प्रश्न 43. 
सूक्ष्मजीवों को हमारे शरीर में प्रविस्ट होने से रोकने वाला प्रमुख अवरोध है-
(a) प्रतिरक्षी
(b) वृहतभक्षकाणु (मेकोफेज)
(c) एक केन्द्रकाणु (मोनोसाइट) 
(d) त्वचा।
उत्तर:
(d) त्वचा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
(a) द्रव्य एण्टीबॉडी का नाम लिखिष्ट जो रोगाणुओं व उनके विषों से बैंधकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। यह अपना को पार कर भ्रूण में भी पहुंच सकते हैं। 
(b) माता द्वारा कोसस्ट्रम द्वारा शिशु को दी जाने वाली एण्टीबॉडी का नाम बताइए। 
उत्तर:
(a) IgE
(b) IgA.

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प्रश्न 2. 
दो प्रोटोजोआ जनित तथा दो जीवाणुजनित रोगों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
(a) प्रांटोजोआ जनित रोग: (i) मलेरिया, (ii) अमीसियासिस।
(b) जीवाणु जनित रोग: (i) टाइफाइड, (ii) हैजा। 

प्रश्न 3. 
एड्स रोग के कारक का नाम लिखिए। इस रोग के प्रसार के दो कारण लिखिए। 
उत्तर:
एड्स रोग का कारक: घूमन इम्यूनोडेफिएन्सी वाइरस।
प्रसार के कारण: (i) संक्रमित व्यक्ति के साथ लैंगिकक सम्बन्ध।
(ii) संक्रमित व्यक्ति से रक्ताद्यान। 

प्रश्न 4. 
मनुष्य में अमीबिष्टसिस रोग उत्पन्न करने वाले रोगकारक का नाम लिखिए। इस रोग के लक्षण तथा रोग संचरण की विधि लिखिए।
उत्तर:
रोगकारक: एंटअमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba histolytica)।
रोग का संचरण: यह जल जन्य (Water borne) रोग है तथा मल मुखीय मार्ग (faeco oral route) अपनाता है। रोगी के मल से संदूषित पानी व खाद्य पदार्थों के सेवन से। 
रोग के लक्षण: पेट में दर्द व ऐठन (cramps), पेचिश (मल के साथ श्लेष्मा (mucous) व खून आना) बीच - बीच में कब्ज (constipation), बुखार। 

प्रश्न 5. 
नीचे दी गई तालिका में a, b,c तथा d की पूर्ति कीजिए-

ड्रग का नाम

पादप स्रोत

प्रभावित अंग

(i) a

पॉपी पौधा

b

(ii) मैरीजआना

c

d


उत्तर:
(a) माफीन
(b) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र 
(c) कैनाबिस सैटाइवा (Cannabis sativa) 
(d) कार्डियोवैस्क्यू लर तंत्र, मस्तिष्क। 

प्रश्न 6. 
तम्बाकू का किसी भी रूप में प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। समझाइये।
उत्तर:
तम्बाकू मुंह द्वारा (orally), धुएँ के रूप में (smoking) व सूंघने (Snufi) के रूप में प्रयोग किया जाता है। 
इसके किसी भी रूप में प्रयोग से निकोटीन (nicotine) व अनेक कासनोजन (carcinogen) शरीर में प्रवेश करते हैं। इनके निम्न दुष्यभाव हैं-

  1. निकोटीन रक्त वाहिकाओं को कड़ा व संकुचित कर रक्तचाप (blood pressure) बड़ाता है। यह हृदय की धड़कन भी बढ़ाता है। 
  2. धूमपान व फेफड़ों के कैसर (lung cancer) में सीधा सम्बन्ध है, अर्थात धूम्रपान से लंग कैसर होता है।
  3. तम्बाकू चबाने से मुंह का कैंसर (Oral cancer) हो जाता है। 
  4. धूम्रपान से रक्त में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। 

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प्रश्न 7. 
स्वाभाविक (सहज) प्रतिरक्षा के उस अवरोध का नाम लिखिए तथा व्याख्या कीजिए जिसमें मैक्रोफेजेज की क्रिया होती है।
उत्तर:
कोशिकीय अवरोध (Cellular barrier)
शरीर में प्रवेश कर गये रोगजनकों/सूक्ष्मजीवों को वहाँ स्थापित होने से पहले कोशिकीय अवरोध का सामना करना पड़ता है। कोशिकीय अवरोध विभिन्न प्रकार की भक्षक कोशिकाओं (phagocytes) का बना होता है जो प्रविष्ट सूक्ष्मजीवों को खाकर नष्ट कर देती हैं। अलग - अलग अंगों में अलग-अलग प्रकार के भक्षकाणु होते हैं। यह है मोनोसाइट (monocyte), प्राकृतिक मारक (Natural killer प्रकार की लिम्फोसाइट), ऊतकों में उपस्थित भक्षकाणु तथा पालीमाफोन्यूक्लियर ल्यूकोसाइट (Polymorpho nuclear Leukocytes - PMNL - neutrophil) 

प्रश्न 8. 
एक डाक्टर सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त बालक जिसकी चोट से खून का बहाव हो रहा है को टिटेनस का टीका देने के स्थान पर टिटनेस प्रतिरक्षी प्रयोग करता है। समझाइये।
उत्तर:
टिटेनस एक गम्भीर जानलेवा रोग है। इसकी सम्भावना होने पर शरीर में टीके के रूप में एंटीजन देकर सक्रिय प्रतिरक्षा (active immunity) विकसित होने का इंतजार नहीं किया जाता अपितु टाक्सॉइड टीके में पहले से तैयार प्रतिरक्षी (antibodies) दिये जाते हैं ताकि रोग से तुरन्त छुटकारा पाया जा सके। 

प्रश्न 9. 
सुदम ट्यूमर व दुर्दम ट्यूमर में अन्तर बताइये।
उत्तर:

सुदम अर्बुद (Benign Tumor)

दुर्दम अर्बुद (Malignant Tumor)

1. अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं, दूसरे ऊतक या अंग में प्रवेश नहीं करते।

1. मूल स्थान के अतिरिक्त आस - पास के ऊतकों में प्रवेश करते हैं।

2. मेटास्टेसिस प्रदर्शित नहीं करते।

2. रक्त या लिम्फ के साथ मैलिगनेंट ट्यूमर की कोशिकाएँ शरीर के किसी अन्य भाग में पहुँच कर वहाँ भी कैंसर बनाती हैं। इसे मेटास्टेसिस कहते हैं।

3. धीमी गति से बढ़ते हैं।

3. तीव्रता से बढ़ते हैं।

4. प्राय: एक फाइब्रस कैप्यूल में बन्द रहते हैं जिससे इनका शल्य क्रिया द्वारा निकालना आसान होता है।

4. किसी कैप्स्यूल में सीमित नहीं होते, अत: शल्यक्रिया उतनी आसान नहीं।

5. यह उस ऊतक के लक्षण प्रदर्शित करते हैं जिससे वह बने होते है (कोशिकीय स्तर पर)।

5. मैलिंगनेंट ट्यूमर छोटी - छोटी तेजी से विभाजित होती कोशिकाओं से बना होता है तथा उस ऊतक के लक्षण प्रदर्शित नहीं करता।


प्रश्न 10. 
पोषक तथा स्थान बताइये जहाँ मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र में निम्नलिखित अवस्थाएँ होती है-
(i) गैमिटोसाइट का निर्माण 
(ii) गैमिटोसाइट का संलयन।
उत्तर:
(a) गैमिटोसाइट का निर्माण मनुष्य की लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) में होता है। 
(b) गैमिटोसाइट (gametocytes) का संलयन (fusion) या निषेचन मादा एनाफिलीज मच्छर की आँत (intestine) में होता है। 

प्रश्न 11. 
सहज प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? सहत प्रतिरक्षा में कितने प्रकार के शोध होते हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
सहज प्रतिरक्षा एक प्रकार की अवशिष्टि सुरक्षा होती है जो हमारे शरीर में जन्म के समय से ही मौजूद होती है। 
सहज प्रतिरक्षा में अवरोध:

  1. भौतिक अवरोध
  2. कार्यिकीय अवरोध
  3. कोशिकीय रोध
  4. साइटोकाइन रोध। 

प्रश्न 12. 
(a) हेरोइन ड्रग के स्रोत पौधे का नाम लिखिए। यह पौधे से किस प्रकार प्राप्त की जाती है? 
(b) मानव पर हेरोइन के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(a) हेरोइन ड्रग के स्रोत पौधे का नाम - अफीम (Opium)।
प्राप्ति: अपरिपक्व फलों से प्राप्त लेटेक्स को सुखाकर इसका पाउडर प्राप्त किया जाता है।
(b) हेरोइन एक अवसादक है तथा शरीर के क्रियाकलापों को मद कर देती है।

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प्रश्न 13. 
मानव शरीर में प्रविष्ट होने के बाद जब HIV (एच.आई.वी.) रक्त में आ जाता है तो परपोषी कोशिकाओं में होने वाली परिघटनाओं उन का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
परपोषी कोशिका में होने वाली परिघटनाएँ-

  • मेक्रोफेजेज में प्रवेश करके विषाणु का RNA., रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेन द्वारा DNA का निर्माण करता है। 
  • इस प्रकार बना DNA पोषक कोशिका के DNA में समाविष्ट हो जाता है। 
  • यह संकर DNA अपनी अनेक प्रतिकृतियाँ बनाता है।
  • प्रतिकृतियाँ विषाणुओं की संख्या में वृद्धि करती है। 

प्रश्न 14. 
प्लैज्मोडियम के जीवन - चक्र में निम्नलिखित परिघटनाएँ कहाँ सम्पन्न होती हैं? 
(a) युग्मक जनक का विकास 
(b) लैंगिक प्रजनन 
(c) अलैंकिग जनन।
उत्तर:
(a) युग्मक जनक का विकास परपोषी मानव की लाल रुधिर कोशिकाओं में होता है जिन्हें मादा मच्छर रक्त के साथ आहार में ग्रहण करती हैं। 
(b) लैंगिक जनन मच्छर के आमाशय में होता है। 
(c) अलैगिक प्रजनन परपोषी की यकृत कोशिकाओं एवं लाल रुधिर कोशिकाओं में होता है। 

प्रश्न 15. 
दो प्राथमिक लसीकाभ अंगों के नाम लिखिए। टी - लसीकाणुओं का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक लसीकाभ अंग:

  • लाल अस्थि मज्जा
  • थाइमस ग्रन्थि।

T - लसीकाणु उपजिति प्रतिरक्षा तंत्र का प्रमुख घटक है। ये संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करके साइटोकाइन अवरोध पैदा करती है। 

प्रश्न 16. 
नवजात शिशु को माँ द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रतिरक्षा के प्रकार के नाम लिखिए। यह कैसे होती है?
उत्तर:
नवजात शिशु को माता द्वारा प्राकृतिक निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार की प्रतिरक्षा गर्भाशय में माता के रक्त द्वारा भी प्रदान की जाती है। यह दो प्रकार की होती है - प्राकृतिक प्रतिरक्षा एवं प्रतिरक्षी प्रतिरक्षा। जब माता अपना प्रथम दूध (कोलस्ट्रम) बच्चे को पिलाती है, तो इससे IgA प्रतिरक्षी होते हैं जो शिशु की प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाते हैं। 

प्रश्न 17. 
टाइफाइड एवं निमोनिया रोग के रोगकारकों के नाम, संचरण विधि तथा जाँच की विधि बताइट। 
उत्तर:
दटायफॉइड (Typhoid) 
टायफॉइड एक जीवाणु जन्य (bacterial) संक्रमण है। 
रोगजनक (Pathogen): सालमोनेला टायफी (Salmonella typhi) एक लगभग समान जीवाणु मनुष्यों में पैराटायफाइड ज्वर (Paratyphoid fever) उत्पन्न करता है। 

संचरण का माध्यम (Mode of Transmission): गन्दगी व अपर्याप्त सफाई वाले इलाकों में टायफाइड पीने के पानी के, सीवेज के पानी या रोग जनक के स्रोत से संदूषित (contaminate) होने के कारण फैलता है। संक्रमण का स्रोत टॉयफाइड से ग्रस्त रोगी मनुष्य या वाहक का मल (faeces) है। जब इस मल से रोगजनक खाद्य पदार्थों व जल तक पहुंच बना लेते हैं तो रोग जनक इन संदूषित पदार्थों के उपयोग करने वालों के शरीर में पहुँच जाता है। मक्खियाँ भी रोगी के मल से टॉयफाइड जीवाणु को खाद्य पदार्थों तक पहुँचा देती हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 1
टॉयफाइड मेरी जैसी रोगी वाहकों के खाना बनाने, परोसने व संग्रह करने से भी रोग का प्रसार होता है। सीवेज के पानी के सीधे सम्पर्क में आई तरकारियों, फलों के बिना धोए प्रयोग से भी यह रोग संचरित होता है। शरीर में रोग जनक छुद्रांत (intestine) में प्रवेश के बाद रक्त में प्रवेश पा जाता है तथा रक्त के माध्यम से तिल्ली (spleen) व यकृत (liver) में पहुँच जाता है तथा वहाँ गुणन करता है। लिवर से जीवाणु बड़ी संख्या में पित्ताशय के रास्ते फिर से छुद्रांत में पहुंचता है। टॉयफाइड से ठीक होने के बाद भी व्यक्ति के शरीर मे जीवाणु पित्ताशय में पड़े रहते हैं व धीरे - धीरे मल के साथ शरीर से बाहर आते रहते हैं। विकसित देशों में टॉयफाइड नहीं के बराबर पाया जाता है। 

जाँच व लक्षण (Diagnosis and symptoms): टायफॉइड में 7 से 14 दिनों का उद्भासन काल या इनक्यूबेशन पीरियड (incubation period) होता है। रोगजनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर प्रथम लक्षणों के प्रकट होने के बीच की अवधि उद्भासन काल कहलाती है। 
टायफॉइंड के प्रमुख लक्षण निम्न है-

  1. सिर में तेज दर्द व फिर लगातार तेज बुखार (399 से 40°C) का बना रहना व कमजोरी। 
  2. भूख का न लगना (loss of appetite), पेट में दर्द, पेट का अधिक मुलायम होना (tenderness), कब्ज (constipation) व इसके बाद अतिसार (diarrhoea)। 
  3. द्वितीय सप्ताह में पैर व छाती पर छोटे - छोटे गुलाबी रंग के उभरे हुए धब्बे।
  4. जीभ पर गोल जमाव (coated tongue)। 
  5. छोटी आँतों से रक्तस्त्राव व आँतों का छिद्रित हो जाना (perforations of intestine) 

टायफॉइड की पहचान विडाल परीक्षण (Widal Test) द्वारा की जाती है। (यह एक रक्त परीक्षण है) 
रोकथाम (Prevention): टायफॉइड चूंकि एक जल जनित (water borne) रोग है। अत: इसकी रोकथाम का सामान्य तरीका है वैयक्तिक व सामुदायिक स्वच्छता (Personal and community hygiene)। जल स्रोतों व खाद्य पदार्थों का स्वच्छ रखरखाव, घरेलू मक्खियों पर रोक आदि। टायफाइड टीका (Typhoid vaccine) कुछ वर्षों तक टायफॉइड से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। 

न्यूमोनिया (Pneumonia) 
फेफड़ों के संक्रमण के कारण उनमें हुआ शोध (inflammation) न्यूमोनिया है। 
रोगजनक (Pathogen): जीवाणु, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae), हीमोफिलस इन्फ्लुएंजी (Haemophilus influenzae)।
संचरण की विधि (Mode of Transmission): ज्यूमोनिया का संचरण मुख्यत: ड्रॉपलेट इन्फेक्शन द्वारा होता है। रोगी व्यक्ति के खाँसने, छींकने से निकली छोटी - छोटी बूंदों जिनमें रोग जनक भी होते हैं, के स्वस्थ व्यक्ति द्वारा श्वास में लेने से संक्रमण फैलता है। संक्रमण फोमाइट (fomite) द्वारा भी होता है, जैसे- रोगी के बर्तन आदि प्रयोग करने से।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 2
लक्षण (Symptoms): न्यूमोनिया के प्रमुख लक्षण हैं-

  1. बुखार (ज्वर), कंपकंपी (chill)।
  2. साँस फूलना (shortness of breath) साँस लेने में परेशानी। 
  3. खाँसी (cough) जिसमें हरा-पीला बलगम (sputum) आता है, व सिर में दर्द। 
  4. साँस लेते समय (अन्तःश्वसन के समय) सीने में दर्द (जो वक्ष गुहा में) फेफड़ों के बाहर की झिल्ली के शोथ (inflammation) के कारण होता है। यह शोथ प्लूरिसी (Pleurisy) कहलाता है। 
  5. बहुत गम्भीर मामलों में शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित होने के कारण होंठ, अंगुलियों के नाखून नौले पड़ जाते हैं। 

न्यूमोनिया के शोथ व संक्रमण के कारण फेफड़ों की कूपिकाएँ (alveoli) द्रव से भर जाते हैं। फेफड़ों में द्रव के एकत्रित होने से फेफड़ों का गैसीय विनिमय (gaseous exchange) का क्षेत्र कम हो जाता है। अतः साँस फूलती है। यह दशा प्ल्यूरल इफ्यूजन (Pleural efusion) कहलाती है। अत्यधिक गम्भीर मामलों में फेफड़ों में पस भी एकत्रित हो सकता है। रोग की जाँच रोगी के शारीरिक परीक्षण, स्टेथोस्कोप से सुनी गई वक्ष की ध्वनि, एक्स-रे व रक्त/बलगम जाँच से होती है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 18. 
एन्टीजन एवं एन्टीबॉडी में अन्तर लिखिए। 
उत्तर:
एड्स (AIDS) एड्स एक ऐसा गम्भीर संक्रमण है जो पिछले कई दशकों से सम्पूर्ण मानव जनसंख्या के लिए चुनौती बना हुआ है। आज की तारीख तक इस तेजी से फैलने वाले घातक संक्रमण का कोई प्रभावशाली उपचार उपलब्ध नहीं है। एड्स शब्द उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण या एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immun Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त नाम है। 

इतिहास (History): एड्स के बारे में सन् 1981 में पहली बार पता लगा। पिछले 34 वर्षों में यह सारी दुनिया में फैल गया है। सन् 1984 में फ्रांस में एड्स विषाणु का नाम लिम्फोडिनोपैथी एसोसिएटेड वाइरस (Lymphodenopathy associated virus; LAV) तथा अमेरिका में ह्यूमन T सैल लिम्फोट्रोफिक वाइरस (HTLV - III) रखा गया था। सन् 1986 में इसका पुनर्नामकरण HIV के रूप में किया गया। 

रोगजनक (Pathogen): एड्स का कारण ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वाइरस (Human Immunodeficiency virus; HIV) नामक विषाणु हैं। यह प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Immuno Deficiency Virus) एक पश्च विषाणु या रिट्रो वाइरस (retrovirus) है।
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रिट्रो वाइरस वह विषाणु होते हैं जिनमें नाभिकीय अम्ल आर.एन.ए. होता है, जो एन्जाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (reverse transcriptase) के साथ एक आवरण से ढका रहता है। 
एड्स विषाणु व्युत्क्रम अनुलेखन (reverse transcription) करने में सक्षम होता है। अर्थात यह अपने आनुवंशिक पदार्थ आर.एन.ए. से रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण कर लेता है। 

रोग संचरण विधि (Mode of Transmission): एड्स का संचरण निम्न प्रकार से होता है-

  1. रोगी/संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क (Sexual Contact) से। एड्स एक प्रमुख यौन संचरित रोग (Sexually Transmitted Disease) है। 
  2. संदूषित रक्त (Contaminated blood) व रक्त उत्पादों के आद्यान (transfusion) से। 
  3. संक्रमित/संदूषित सुइयों के साझा प्रयोग से। ड्रग्स का अंत: शिरीय (intra venous) कुप्रयोग करने वाले लोग समूह में एक ही सुई का कई बार प्रयोग करते हैं।
  4. संक्रमित माँ से अपरा (placenta) के माध्यम से उसके बच्चे में।

अन्य कम सामान्य विधि हैं, संक्रमित रेजर से, कान छिदवाने में, कृत्रिम वीर्य सेचन, अंग प्रत्यारोपण आदि। 
एड्स के अधिक खतरे वाले व्यक्ति (High risk people): निम्न समूहों में एड्स फैलने की सम्भावना अधिक रहती है-

  1. अनेक लोगों से लैंगिक सम्पर्क रखने वाले व्यक्ति। 
  2. अन्तर्शिरीय (intravenous) ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति। 
  3. ऐसे व्यक्ति जिन्हें बार - बार रक्ताद्यान (blood transfusion) की आवश्यकता होती है। 
  4. एच आई वी संक्रमित माँ द्वारा जन्मे बच्चे। 

निम्न द्वारा एड्स नहीं फैलता (AIDS does not spread by the following) 

  1. सामान्य सामाजिक सम्पर्क (ordinary social contact), जैसे- हाथ मिलाना, गले मिलना आदि। एड्स संक्रामक रोग ए (communicable disease) है लेकिन छुआछूत का रोग (contagicus disease) नहीं है, यह केवल शरीर द्रवों (body fluids) के सम्पर्क द्वारा फैलता है। 
  2. साथ खेलने, साथ - साथ पढ़ने, साथ काम करने से। 
  3. स्टेशनरी, खिलौने, मोबाइल, बर्तन, कपड़ों के साझा प्रयोग से। 
  4. एड्स मच्छरों द्वारा भी नहीं फैलता। खाँसने छीकने से एड्स नहीं व फैलता। 
  5. एड्स के रोगी के उपचार के समय यह नर्स या डाक्टरों में नहीं फैलता। 

अत: एड्स रोगियों की शारीरिक व मनोवैज्ञानिक कुशलता (well being) के द लिए यह आवश्यक है कि एड्स संक्रमण से जूझ रहे रोगियों को परिवार व र समाज में अलग - थलग न किया जाय।
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उद्भासन काल (Incubation Period): आप जान चुके हैं कि रोग जनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर रोग के प्रथम लक्षण उत्पन्न होने तक का समय उद्भासन काल (incubation period) कहलाता है। एड्स में यह अवधि कुछ महीनों से लेकर अनेक वर्षों (5 से 10 वर्ष) तक की हो सकती है। 
एड्स विषाणु का जीवन चक्र (Life cycle of AIDS Virus): मनुष्य के शरीर में प्रवेश के बाद एड्स विषाणु बृहत भक्षकाणु या मैक्रोफेज (macrophage) में प्रवेश करता है। इस कोशिका के अन्दर विषाणु का आर.एन.ए. जीनोम, रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम (reverse transcriptase enzyme) की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण करता है। रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन, अर्थात आर.एन.ए. से डी.एन.ए. का निर्माण रिट्रो वाइरस की विशेषता होती है। इस प्रकार बना विषाणु का डी.एन.ए. पोषक कोशिका के डी.एन.ए. में समाविष्ट हो जाता है। यह समाविष्ट डी.एन.ए. अब संक्रमित पोषक कोशिका को विषाणु कण (virus particles) उत्पन्न करने के निर्देश देता है।

मेक्रोफेज, विषाणु उत्पन्न करना जारी रखते हैं तथा इस प्रकार विषाणुओं की एक फैक्टरी बन कर रह जाते हैं इसका अर्थ है मैक्रोफेज अपने काम न कर विषाणु डी.एन.ए. के निर्देशों का पालन कर सिर्फ विषाणुओं का निर्माण करती रहती है। इसके साथ ही विषाणु सहायक टी लिम्फोसाइट (helper T lymphocyte; TH) में प्रवेश कर वहाँ भी विषाणुओं का बनाना प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार बड़ी संख्या में रक्त में मुक्त हुए संतति विषाणु नई सहायक टी कोशिका को संक्रमित करते है व यह चक्र जारी रखते हैं। इन चक्रों से विषाणुओं की संख्या तेजी से बढ़ती है तथा साथ ही संक्रमित टी कोशिकाओं की संख्या में भी वृद्धि होती जाती है। फलस्वरूप रोगी के शरीर में सहायक T कोशिकाओं की संख्या में कमी आ जाती है। सहायक T कोशिका को T4 कोशिका या CD4 भी कहा जाता है। 

लक्षण (Symptoms): एड्स विषाणुओं के तीव्रता से गुणन व सहायक टी कोशिकाओं की संख्या में आई कमी से रोगी में निम्न लक्षण उत्पन्न होते है-
• ज्वर (fever), अतिसार (diarrhoea) व वजन में कमी (weight loss)। सहायक टी लिम्फोसाइट में कमी होने से व्यक्ति ऐसे संक्रमणों से असित होने लगता है जिनसे स्वस्थ व्यक्ति अपने प्रतिरक्षी तन्त्र के कारण आसानी से बचा रहता है, जैसे- जीवाणु माइकोबैक्टीरियम (Mycobacterium) द्वारा होने वाले संक्रमण। परजीवी टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma) का संक्रमण। विषाणुओं व कवकों के संक्रमण। 

रोगी का प्रतिरक्षी तन्त्र इतना कमजोर हो जाता है अर्थात उसमें इतनी कमियाँ उत्पन्न हो जाती है कि वह किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने में असमर्थ हो जाता है। उसे प्राय: कापोसी सारकोमा व लिम्फोमा भी हो जाते हैं। एड्स रोग में वास्तव में स्वयं के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं होते, रोगी में उन रोगों के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे वह द्वितीयक रूप से संक्रमित हुआ है, जैसे-टी.बी. के लक्षण, फ्लू के लक्षण, पेचिश के लक्षण, आदि। इसीलिए एड्स एक संलक्षण (Syndrome) अर्थात लक्षणों का समूह है। एड्स रोगी में पाये जाने वाले ऐसे लक्षण अवसरवादी संक्रमणों (opportunistic infections) के होते हैं। (ऐसे संक्रमण जो सामान्य प्रतिरक्षी तन्त्र वाले व्यक्तियों को प्रभावित नहीं करते)। 

जाँच (Diagnosis): व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली एड्स की एक आँच विधि एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनो सॉरबेंट ऐसे (Enzyme Linked Immuno - sorbent Assay; ELISA) है। लिम्फ नोडों का बड़ा हो जाना तेजी से बिना कारण के वजन में कमी, प्रारम्भिक संकेत हैं जिनकी पुष्टि रक्त में एच आई वी एन्टीजनों के विरुद्ध बनी एन्टीबॉडीज की जाँच से होती है। 

उपचार (Treatment): एड्स का स्थायी उपचार आज तक उपलब्ध नहीं है। एड्स रोगी को एन्टी रेट्रो वाइरल (anti retroviral) औषधियाँ दी जाती है लेकिन यह आंशिक रूप से ही लाभकारी हैं तथा मृत्यु को रोक नहीं सकती। एड्स लाइलाज (incurable) है। एन्टीवाइरल के साथ कुछ औषधियाँ प्रतिरक्षी तन्त्र को उत्तेजित करने के लिए (Immuno stimulative) भी दी जाती है। कुछ प्रख्यात औषधि हैं, जिडोवुडीन (zidovudine), एजिथमिडीन (Azithamidine) AZT आदि।

एड्स की रोकथाम (Prevention of AIDS): चूंकि एड्स एक लाइलाज रोग है अत: इसकी रोकथाम ही सर्वोत्तम विकल्प है। एक कहावत "Dont die of ignorance" अर्थात अज्ञानता के कारण मत मरो एड्स के मामले में सटीक है। एड्स हमारे सचेतन व्यवहार की लापरवाही से फैलता है। यह न्यूमोनिया या टायफॉइडं की तरह अनजानी गलती या संयोग से होने वाला रोग नहीं है। अगर कोई इससे बचना चाहता है तो वह आसानी से बच सकता है। एड्स का होना 'आ बैल मुझे मार' वाली स्थिति को भी सही ठहराता है। अनजान व्यक्ति से लैगिंक सम्पर्क न कर एड्स से आसानी से बचा जा सकता है। यही एड्स संचरण के प्रमुख कारणों में से एक है। रक्ताद्यान के मामलों में व संक्रमित माँ से शिशु को होने वाले संक्रमण सही निगरानी न होने के कारण होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एड्स की रोकथाम हेतु निम्न उपाय किये व सुझाये हैं-

  1. लोगों को एड्स के कारण, संचरण व रोकथाम के उपायों की समुचित जानकारी देकर एड्स से काफी हद तक बचा जा सकता है। 
  2. अनजान लोगों से लैंगिक सम्पर्क न करना अर्थात संयमित जीवन द्वारा। 
  3. रक्ताधान के समय संदूषण रहित रक्त की उपस्थिति सुनिश्चित कराकर, (रक्ताधान में HIV मुक्त रक्त के प्रयोग से ) इंट्रावीनस औषधि केवल डिस्पोजेबल सुई द्वारा। 
  4. सभी प्रकार के अस्पतालों में सिर्फ एक बार प्रयोग की जाने वाली (disposable) सुइयों के प्रयोग द्वारा इससे बचा जा सकता है। 
  5. ड्रग्स के कुप्रयोग पर रोक लगाकर, कंडोम का मुफ्त वितरण कर, सुरक्षित सैक्स (Safe Sex) अपनाकर तथा सम्भावित रोगियों में शीघ्रता से एड्स की जाँच करा के इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। रेजर,

टूथब्रश आदि किसी से साझा न करें। 
अपने देश में राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन (National AIDS Control Organisation; NACO) तथा अन्य गैर सरकारी संगठन (NGO) एड्स के विषय में जागरूकता फैलाने के लिए काफी कार्य कर रहे हैं। 

एड्स के संक्रमण को छिपाना समस्या का समाधान नहीं है चूंकि इससे संक्रमण कई अन्य लोगों तक फैल सकता है। एड्स रोगियों को मदद, सहानुभूति व इलाज की आवश्यकता है, समाज द्वारा उनकी उपेक्षा उचित नहीं। समाज व चिकित्सा समुदाय दोनों के सहयोग से इस पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।

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प्रश्न 19. 
(i) मनुष्य के शरीर में किस अवस्था में तथा किस प्रकार प्लाज्मोडियम प्रवेश करता है?
(ii) संक्रमित मनुष्य के शरीर में परजीवी के जीवन वृत के अलैंगिक जनन को केवल फ्लोचार्ट के माध्यम से समझाइये।
(iii) इस स्थिति में रोगी को तीव्र ज्वर क्यों होता है
उत्तर:
(i) प्लाज्मोडियम की स्पोरोजोइट (Sporozoit) अवस्था मादा एनाफिलीज मच्छर की लार में उपस्थित होती है जो इस मच्छर द्वारा मनुष्य को काटने पर मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाती है। 
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(iii) हीमोजोइन पदार्थ की मुक्ति तथा बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाओं का फटना ही कंपकंपी तथा बुखार के लिए उत्तरदायी है। 

प्रश्न 20. 
मलेरिया परजीवी के उस रूप का नाम लिखिए जिसमें वह क्रमशः
(a) मानव शरीर में तथा 
(b) मादा एनाफिलीज के शरीर में प्रवेश करता है। 
(ii) उन परपोषियों के नाम लिखिए जिनके भीतर मलेरिया परजीवी का क्रमशः लैंगिक व अलैंगिक जनन होता है। 
(iii) मानव में मलेरिया रोग के लक्षण प्रकट करने के लिए उत्तरदायी टॉक्सिन का नाम लिखिए। यह रोग लक्षण आवर्ती प्रकार के क्यों हुआ करते हैं?
उत्तर:
(i) (a) मनुष्य के शरीर में स्पोरोजोइट (Sporozoites) के रूप में।
(b) मादा एनाफिलीज के शरीर में लैगिक अवस्था गैमीटोसाइट (gametocytes) के रूप में। 
(ii) अलैगिक जनन - मनुष्य में, लैंगिक जनन - मादा एनाफिलीज मच्छर
(iii) टॉक्सिन - हीमोजोइन (Haemozoin)।
• लाल रक्त कोशिकाओं में परजीवियों के गुणन के कारण उनका फटना तथा विषाक्त पदार्थ की मुक्ति जिसके कारण रोगी को कंपकंपी लगती है व बुखार होता है नियमित अंतराल (48 - 72 घण्टे) में होता है क्योंकि प्रत्येक बार परजीवी में गुणन (multiplication) का एक चक्र पूरा होता है। चक्र की अवधि प्लाज्मोडियम प्रजाति पर निर्भर करती है। 

प्रश्न 21. 
(i) संलग्न चित्र में क्या चीज दर्शायी गई है 
(ii) (a) तथा (b) नामांकित भागों के नाम लिखिए। 
(iii) इस अणु को बनाने वाले कोशिका प्रारूप का नाम लिखिए।
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उत्तर:
(i) प्रतिरक्षी प्रोटीन का अणु (molecule of antibody)
(ii) 
(a) प्रतिजन बंधक स्थल (antigen binding site) तथा 
(b) भारी शृंखला (heavy chain) 
(iii) प्रतिरक्षियों का निर्माण बी लिम्फोसाइट (B lymphocyte) द्वारा होता है।

प्रश्न 22. 
(i) फाइलेरिएसिस पैदा करने वाले फाइलेरिआई कृमियों की दो प्रजातियों के वैज्ञानिक नाम लिखिए। 
(ii) संक्रमित व्यक्ति के शरीर को यह किस प्रकार प्रभावित करता है?
(iii) यह रोग किस प्रकार फैलता है।
उत्तर:
(i) मनुष्य में फाइलेरिया रोग फाइलेरिया कमि की दो प्रजातियों द्वारा होता है-
बुचेरेरिया बेन्क्रोफ्टी (Wuchereria bancrofti)।
वुचेरेरिया मालायी (Wuchereria malayi)। 
(ii) फाइलेरिया कृमि शरीर के किसी भाग जैसे हाथ, पैर, वृषण आदि में सूजन उत्पन्न कर देते हैं ऐसा विशेष रूप से उस अंग की लिम्फ वाहिकाओं की सूजन व अवरोधन से होता है जिसके कारण वहाँ लिम्फ का एकत्रीकरण (oedema) हो जाता है व वह भाग काफी बड़ा हो जाता है। 
(iii) फाइलेरिया रोग मादा क्यूलेक्स (Culex) मच्छर व अन्य मच्छर प्रजातियों द्वारा फैलता है। 

प्रश्न 23. 
(i) मानवों में टायफॉइड पैदा करने वाले रोग जनक का नाम लिखिए। 
(ii) इस रोग की पुष्टि करने वाले परीक्षण का नाम लिखिए। 
(iii) इसका रोगजनक मानव शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता है? इसके नैदानिक रोग लक्षण लिखिए और गम्भीर मामलों में शरीर का जो अंग इससे प्रभावित होता है। उसका नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) साल्मोनेला टायफी (Salmonella typhi)
(ii) विडाल परीक्षण (Widal test) 
(iii) यह जल जनित (Water borne) रोग हैं। जीवाणु रोगी के मल द्वारा संदूषित खाद्य पदार्थों या जल के सेवन से शरीर में प्रवेश करते हैं।
लक्षण (Symptoms)
लगातार तेज बुखार (39 - 40°C) का बना रहना, कब्ज, कमजोरी, पेट में दर्द, सिर दर्द, भूख में कमी व जीभ पर जमाव (coated tongue), गम्भीर मामालों में छुद्रांत (intestine) में छिद्र विकसित हो जाते हैं। (perforated intestine) 

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प्रश्न 24. 
सड़क दुर्घटना में किसी घायल व्यक्ति के जख्मों में तीन रक्तस्राव हो रहा था तथा इलाज के लिए उसे एक नर्सिंग होम लाया गया।
चिकित्सक ने एक गम्भीर रोग से बचाने के लिए उसे तुरन्त एक इंजैक्शन लगा दिया। 
(a) बताइये कि चिकित्सक ने रोगी के शरीर में किस दवा क इंजेक्शन लगाया? 
(b) आपके विचार में दवा का यह इंजैक्शन रोग से उसकी किस प्रकार सुरक्षा करेगा? 
(c) उस रोग का नाम बताइये जिससे बचाव के लिए उसे य इंजैक्शन लगाया गया और इससे किस प्रकार की प्रतिरक्ष प्राप्त होगी।
उत्तर:
(a) एंटीटिटेटनस टॉक्साइड या एंटीटिटेनस सीरम (ATS)
(b) इस टीके में किसी अन्य जीव के शरीर में निर्मित प्रतिरक्षी होते है जो व्यक्ति की रोग से रक्षा करेंगे।
(c) टिटेनस, यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity) है। 

प्रश्न 25. 
(a) यह सामान्यरूप से देखा जाता है कि जिन बच्चों को उनके बचपन में छोटीमाता का संक्रमण हो जाता है, हो सकता है कि उनकी व्यस्कवस्था में यह रोग नहीं हो। किसी व्यक्ति में ऐसी प्रतिरक्षा के आधार का कारण बताते हुए व्याख्या कीजिए। इस प्रकार की प्रतिरक्षा का नाम बताइए। 
(b) इन्टरफेरॉन क्या होते हैं? उनकी भूमिका बताइए।
उत्तर:
(a) उपाप्रति प्रतिरक्षा प्रायः उच्चतम स्तर की रक्षा उपलब्ध कराती है। स्मृति, उपाप्रति प्रतिरक्षा का विशिष्ट लक्षण है जब किसी रोग का प्रथम बार संक्रमण होता है तो प्रतिरक्षा तंत्र में उसकी स्मृति बन जाती है। जब वही रोग दोबारा उत्पन्न होता है, तो शरीर में पहले से ही उत्पन्न हो गई प्रतिरक्षी उस रोग से लड़ने में सक्षम होती है। यही कारण है कि बचपन में छोटी-माता रोग हो जाने पर प्रायः वह व्यस्क वस्था में नहीं होता है।

(b) टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण (Vaccination and Immunization) 
टीका (Vaccine) टीका या वैक्सीन वह उत्पाद है जो किसी रोग के विरुद्ध प्रतिरक्षा (immunity) पैदा करता है। टीके रोग विशिष्ट (diseases pecific) होते हैं व किसी एक रोग के लिए ही प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। यह शरीर के प्रतिरक्षी तन्त्र को किसी जीवाणु, विषाणु, जीवाणु विष के विरुद्ध प्रतिरक्षी अनुक्रिया उत्पन्न करने हेतु प्रेरित कर देते हैं। प्रतिरक्षी तन्त्र इन रोगाणुओं के विरुद्ध एन्टीबॉडीज बनाना प्रारम्भ कर देता है। यह एन्टीबॉडीज व स्मृति कोशिकाएं व्यक्ति के शरीर में रहती हैं। अगर समान प्रकार का रोगजनक बाद में व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तब प्रतिरक्षी तन्त्र त्वरित रूप से द्वितीयक अनुक्रिया (secondary response) प्रारम्भ कर देता है जो रोग जनक या इसके विष को तुरन्त समाप्त कर देते हैं। टीकों में मृत रोगजनक (dead pathogens) या निर्बलीकृत (weeked) रोगजनक, जो रोग पैदा करने में सक्षम नहीं होते का प्रयोग किया जाता है ताकि यह स्वयं रोग उत्पन्न न कर दें। 

जीवित क्षीणीकृत जीव (live attenuated organisms) रोगजनक के वह विभेद हैं जिन्हें हानिरहित बना दिया गया है। कुछ टीकों में रासायनिक रूप से रूपान्तरित जीवाणु विष (Bacterial toxins) होते हैं। यहाँ भी रूपान्तरण इनके खतरनाक गुणों को समाप्त कर देता है। खसरा, मम्पस च रूबैला (Measles, Mumps and Rubella - MMR), पोलियो, डिफ्थीरिया आदि में मृत या क्षीण रोगजनक टीके के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। हिपेटाइटिस बी के टोके आनुवंशिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार होते हैं। अब एंटीजेनिक प्रोटीन (antigenic proteins) के टीके अधिक प्रचलित हैं। टौके इन्जैक्शन के रूप में या मुखीय (oral) रूप से दिये जाते हैं। डर्मिस में लगाने वाले व अन्तः नासिकीय (Intranasal) टीके भी प्रचलित हैं। टीके, बी व टी स्मृति कोशिकाओं (B or T memory cells) भी उत्पन्न कर देते हैं। पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक के द्वारा आज रोगजनकों के एंटीजन पॉलीपेप्टाइड (antigenic polypeptide) को आसानी से बनाया जाता है। इनका उत्पादन जीवाणु व यीस्ट कोशिका द्वारा किया जाता है जो आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित (genetically engineered) होते हैं। इस प्रकार के टीके अधिक प्रभावी (effective) होते है तथा उनसे किसी प्रकार के रोग होने की कोई संभावना नहीं होती।

प्रश्न 26. 
चिकित्सा की दृष्टि से सभी युवा माताओं को यह सलाह दी जाती है कि उनके नवजात शिशुओं के लिए स्तनपान सर्वोत्तम है। क्या आप इससे सहमत है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
हाँ, यह एक निष्क्रिय प्रतिरक्षा का एक रूप है। स्तनपान कराते समय माँ अपने शरीर में बनी कुछ विशिष्ट एन्टीबॉडीज दुग्ध के माध्यम से शिशु को प्रदान करती है। शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माँ के स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा, हल्का-पीला द्रव खीस (कोलस्ट्रम) एण्टीबॉडीज समृद्ध होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में IgA उपस्थित होती है जिससे शिशु की सम्भावित संक्रमणों से रक्षा की जा सके। 

प्रश्न 27. 
(a) न्यूमोनिया तथा सामान्य जुकाम के रोगकारक जीवों के नाम लिखिए। 
(b) इन रोगों के लक्षणों में क्या अन्तर है?
(c) दोनों रोगों के दो उभयनिष्ट स्पष्ट लिखिए।
उत्तर:
न्यूमोनिया (Pneumonia) 
फेफड़ों के संक्रमण के कारण उनमें हुआ शोध (inflammation) न्यूमोनिया है। 
रोगजनक (Pathogen): जीवाणु, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae), हीमोफिलस इन्फ्लुएंजी (Haemophilus influenzae)।
संचरण की विधि (Mode of Transmission): ज्यूमोनिया का संचरण मुख्यत: ड्रॉपलेट इन्फेक्शन द्वारा होता है। रोगी व्यक्ति के खाँसने, छींकने से निकली छोटी - छोटी बूंदों जिनमें रोग जनक भी होते हैं, के स्वस्थ व्यक्ति द्वारा श्वास में लेने से संक्रमण फैलता है। संक्रमण फोमाइट (fomite) द्वारा भी होता है, जैसे- रोगी के बर्तन आदि प्रयोग करने से।
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लक्षण (Symptoms): न्यूमोनिया के प्रमुख लक्षण हैं-

  1. बुखार (ज्वर), कंपकंपी (chill)।
  2. साँस फूलना (shortness of breath) साँस लेने में परेशानी। 
  3. खाँसी (cough) जिसमें हरा-पीला बलगम (sputum) आता है, व सिर में दर्द। 
  4. साँस लेते समय (अन्तःश्वसन के समय) सीने में दर्द (जो वक्ष गुहा में) फेफड़ों के बाहर की झिल्ली के शोथ (inflammation) के कारण होता है। यह शोथ प्लूरिसी (Pleurisy) कहलाता है। 
  5. बहुत गम्भीर मामलों में शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित होने के कारण होंठ, अंगुलियों के नाखून नौले पड़ जाते हैं। 

न्यूमोनिया के शोथ व संक्रमण के कारण फेफड़ों की कूपिकाएँ (alveoli) द्रव से भर जाते हैं। फेफड़ों में द्रव के एकत्रित होने से फेफड़ों का गैसीय विनिमय (gaseous exchange) का क्षेत्र कम हो जाता है। अतः साँस फूलती है। यह दशा प्ल्यूरल इफ्यूजन (Pleural efusion) कहलाती है। अत्यधिक गम्भीर मामलों में फेफड़ों में पस भी एकत्रित हो सकता है। रोग की जाँच रोगी के शारीरिक परीक्षण, स्टेथोस्कोप से सुनी गई वक्ष की ध्वनि, एक्स-रे व रक्त/बलगम जाँच से होती है।

सामान्य जुकाम (Common cold) 
सामान्य जुकाम, नाक और गले की श्लेष्मिक कला (mucous membarane) में विषाणु संक्रमण (viral infection) के कारण हुआ शोथ (inflammation) है। यह मनुष्य के सर्वाधिक सामान्य संक्रमणों में से एक है। 

रोग जनक (Pathogen): राइनोवाइरस (Rhinovirus) जुकाम के प्रमुख रोग जनक हैं। 
200 से भी अधिक प्रकार के ऐसे विषाणु सामान्य सर्दी - जुकाम के लिए उत्तरदायी होते हैं। कहा जाता है कि एक प्रकार का विषाणु संक्रमण जीवन काल में केवल एक बार होता है। एक बार के संक्रमण से शरीर में उनके प्रति एंटीबाडीज के रूप में प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है। अत: दोबारा वही विषाणु संक्रमण पैदा करने में सक्षम नहीं होता। जुकाम के मामले में ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि 200 से भी अधिक प्रकार के विषाणु ज्ञात हैं जो सर्दी - जुकाम पैदा कर सकते हैं। एक के प्रति प्रतिरोधकता विकसित होने पर दूसरे प्रकार के विषाणु का संक्रमण हो जाता है। इसीलिए बच्चों को जुकाम बार - बार होता है। बड़ों में इनका संक्रमण होते - होते अनेक के लिए प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती हैं। राइनो वाइरस के साथ कोरोना वाइरस भी जुकाम उत्पन्न करते हैं।
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संक्रमण की विधि (Mode of Transmission): इसके संचरण की सहजता ने इसे मनुष्य की सर्वाधिक संक्रामक बीमारियों में से एक बना दिया है। जुकाम सामान्यत: डॉपलेट संक्रमण (droplet infection) द्वारा फैलता है। यह किसी भी प्रकार के फोमाइट जैसे पेन, कापी, किताब, कपड़े, मोबाइल, लैपटॉप आदि के माध्यम से भी संचरित होता है। जुकाम वस्तुतः एक कन्टेजियस रोग (contagious disease) है। हाथ में आये विषाणु नाक को छूने या आँखों को रगड़ने से शरीर में प्रवेश पा जाते हैं। 

लक्षण (Symptoms): सर्दी - जुकाम को आमतौर पर सिर की सर्दी (head cold) कहा जाता है। नाक व गला प्रभावित होने के कारण लक्षण भी इन्हीं से सम्बन्धित होते हैं। इससे फेफड़े प्रभावित नहीं होते। 
प्रमुख लक्षण हैं-

  1. गले में खराश (tickle in throat) व (sore throat) पहला लक्षण हैं।
  2. नाक का बहना (watery nose) अर्थात नाक से जल जैसे द्रव का स्राव व छींक आना (sneezing)। कुछ मामलों में यह स्राव गाड़ा होकर पीले या हरे रंग का हो जाता है। नाक बन्द होना या नासीय संकुलता (nasal congestion)।
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  3. आँखों से पानी आना (watery eyes)। 
  4. हल्का - सा बुखार (mild fever) व खांसी। 
  5. सिर दर्द, सिर में भारीपन, पेशियों में दर्द व सर्दी लगना व थकान। यह लक्षण 3 से 7 दिन में स्वत: ठीक हो जाते हैं। 

कुछ मामलों में जुकाम बड़कर द्वितीयक संक्रमण (secondary infection) का रूप ले लेता है। द्वितीयक संक्रमण जीवाणु जनित (bacterial) होता है। वास्तव में विषाणु संक्रमण से कमजोर हुई नाक व गले की श्लेष्मिक कला है जीवाणुओं के लिए आसानी से भेद्य हो जाती है। इसके कारण मध्य कान का संक्रमण (otitis media), लेरिंक्स का संक्रमण (Laryngitis) ब्रोंकाइटिस, साइनसाइटिस (Sinusitis) आदि हो जाते हैं। एक सप्ताह में जुकाम के स्वत: ठीक न होने पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। खाँसते-छींकते समय मुंह पर रूमाल रखना, भीड़ भरे इलाकों से बचना आदि सामान्य जुकाम से बचने के उपाय है।

प्रश्न 28. 
(a) मलेरिया के रोगकारक जीव और रोगवाहक जीव के वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा इस रोग के लक्षण लिखिए। 
(b) एडीज प्रजाति द्वारा फैलने वाले दो रोगों के नाम लिखिष्ट।
उत्तर:
(a) मलेरिया का रोगजनक: प्लाज्मोडियम, फाति।
मलेरिया वाहक: मादा एनोफिलीज मच्छर।
रोग के लक्षण: 

  • कपकपी के साथ तेज बुखार। 
  • तेज पसीना आकर बुखार कम हो जाना। 
  • बुखार की आवृत्ति 48 घण्टे 
  • नींद की कमी, कमजोरी आदि। 

(b) एडीज प्रजाति द्वारा उत्पन्न रोग: (i) डेंगी, (ii) चिकन गुनिया। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
मलेरिया (Malaria) 
मलेरिया उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों (Tropical regions) में पाया जाने वाला एक गम्भीर संक्रमण है। जिससे विश्व में प्रतिवर्ष लाखों लोग प्रभावित होते है। 
रोग जनक (Pathogen): मलेरिया एक परजीवी प्रोटोजोआ के कारण उत्पन्न होने वाला रोग है। परजीवी प्लाज्मोडियम का अलैंगिक जीवन चक्र (asexual life cycle) मनुष्य में तथा लैंगिक चक्र मादा एनाफिलीज मच्छर में सम्पन्न होता है। 
प्लाज्मोडियम की निम्न प्रजातियाँ मनुष्य में मलेरिया रोग उत्पन्न करती है-

  1. प्लाज्मोडियम वाइवेक्स (Plasmodium vivax) 
  2. प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) 
  3. प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) 
  4. प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciperum)।

प्रत्येक प्रजाति जीवन का एक भाग मनुष्य में व एक भाग मादा एनाफिलीज मच्छर में पूरा करती है। इनमें से दुर्दम मैलिगनेट (malignant) मलेरिया जिसे सेरीबल मलेरिया भी कहते हैं सर्वाधिक खतरनाक है तथा जानलेवा भी हो सकता है। यह प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम द्वारा फैलता है।
प्लाज्मोडियम मलेरी क्वार्टन मलेरिया (Quartan malaria) पैदा करता है। यह 72 घण्टे बाद (चौथे दिन) दोहराता है। प्लाज्मोडियम ओवेल सबसे कम पाया जाने वाला मलेरिया है। 

लक्षण (Symptoms): मलेरिया में मच्छर के काटने से लेकर रोग के लक्षणों की उत्पत्ति तक 7 से 14 दिनों का समय लगता है। यह उद्भासन काल (incubation period) कहलाता है। 
प्रमुख लक्षण निम्नलिखित है-
(i) कंपकंपी (chill) के साथ तेज बुखार। बुखार की तीन अवस्थाएँ होती हैं-

  • शीत अवस्था या कंपकंपी की अवस्था जिसमें अनियंत्रणीय ठितुरन व कम्पन (shaking) होते हैं
  • गर्म अवस्था (hot stage) जिसमें शरीर का ताप 40.5C तक पहुँच सकता है तथा 
  • तेज पसीना आना (sweating) जिससे ज्वर (fever) कम हो जाता है। 

(ii) तेज सिर दर्द, जी मिचलाना या उल्टी, अस्वस्थता का अनुभव (malaise)। 
(iii) बुखार के बाद बहुत अधिक कमजोरी व लम्बी नींद, दवा न लेने पर यही चक्र प्लाज्मोडियम की प्रजाति के अनुसार 48 से 72 घण्टे बाद दोहराता है।

संचरण की विधि (Mode of Transmission): मलेरिया एक वाहक जन्य (vector borme) रोग है व मादा एनॉफिलीज मच्छर इसका वाहक है। जब यह मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उसके खून के साथ परजीवी प्लाज्मोडियम, मच्छर में प्रवेश कर जाते हैं। बाद में जब यही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तब मलेरिया परजीवी मच्छर की लार के साथ स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में प्रवेश कर जाता है। 
मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र (Life Cycle of Malarial Parasite)-

  1. जब मादा एनाफिलीज मच्छर मनुष्य को काटता है तब उसकी लार में उपस्थित मलेरिया परजीवी की संक्रमणकारी अवस्था जीवाणुज या स्पोरोजोइट (sporozoites) मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाती है। 
  2. स्पोरोजोइट मनुष्य के रक्त से सबसे पहले यकृत (liver) कोशिकाओं में पहुंच कर गुणन करते हैं व अपनी संख्या बढ़ाते हैं। 
  3. यकृत कोशिकाओं के फटने से बहुत बड़ी संख्या में निकले यह परजीवी अब लाल रक्त कोशिकाओं (RBCS) पर आक्रमण करते हैं। लाल रक्त कणिकाओं में इनकी वृद्धि से यह आर बी सी फटने लगती हैं। 
  4. लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) के फटने से हीमोजोइन (Haemozoin) नामक विषाक्त पदार्थ रक्त में मुक्त होता है। यही विषाक्त पदार्थ मलेरिया ज्वर के समय लगने वाली कंपकंपी (chill) व उच्च ताप (high fever) के लिए उत्तरदायी होता है। 
  5. लाल रक्त कोशिकाओं का फटना, उनसे हीमाजोइन का निकलना व कंपकंपी व ज्वर का आना प्रत्येक तीन से चार दिन बाद दोहराया जाता है। 
  6. मादा एनाफिलीज मच्छर द्वारा इस संक्रमित व्यक्ति को काटने पर परजीवी प्लाज्मोडियम मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ इनका आगे का विकास होता है। 
  7. लैंगिक अवस्था गैमीटोसाइट (gametocytes) जो लाल रक्त कोशिकाओं में विकसित होती है के रूप में मलेरिया परजीवी, मच्छर के शरीर में प्रवेश करता है। 
  8. परजीवी में निषेचन व आगे का विकास मच्छर की छोटी आंत (intestine) में होता है। 
  9. मच्छर के शरीर में विकास व गुणन (multiplication) के बाद परजीवी स्पोरोजोइट बनाते हैं जो मच्छर की लार ग्रन्थियों (salivary glands) में संग्रहित रहते हैं। छोटी आंतों में बने स्पोरोजाइट यहाँ से निकलकर लार प्रन्थियों में संग्रहित रहते हैं।
  10. इन मच्छरों द्वारा स्वस्थ व्यक्ति को काटने पर लार में उपस्थित स्पोरोजोइट मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाते हैं व जीवन चक्र एक बार फिर प्रारम्भ हो जाता है।
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  11. प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम नई व पुरानी सहित सभी आयु वर्ग की लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करता है जबकि प्लाज्मोडियम की अन्य प्रजातियाँ केवल नई बनी या पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित कर पाते हैं। इस प्रकार फाल्सीपेरम मलेरिया अन्य प्रजातियों की अपेक्षा अधिक लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। अत: अधिक गम्भीर होता है। 
  12. मलेरिया की जाँच रक्त में प्लाज्मोडियम की उपस्थिति का पता लगाकर की जाती है। 
  13. मलेरिया का उपचार एंटी मलेरियल ड्रग्स जैसे क्लोरोक्विन आदि से किया जाता है। 
  14. मच्छरों में कीटनाशकों के लिए तथा मलेरिया परजीवियों में मलेरिया रोधी दवाओं के लिए विकसित हुई प्रतिरोधकता ने मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (Malaria Eradication Programme) के लिए जटिलताएँ पैदा कर दी हैं।
  15. कुनैन सिनकोना पेड़ से प्राप्त होती है।

प्रश्न 2. 
सहज प्रतिरक्षा क्या है? यह किस प्रकार कार्य करती है? समझाइये? 
उत्तर:
सहज प्रतिरक्षा प्रणाली (innate immune system) कशेरुकियों में पाई जाने वाली दो मुख्य प्रतिरक्षा रणनीतियों में से एक है (दूसरी प्रणाली का नाम उपार्जित प्रतिरक्षा प्रणाली है)। सहज प्रतिरक्षा प्रणाली एक पुरानी विकासवादी रक्षा रणनीति है जो पौधों, कवकों, कीडों और आदिम बहुकोशिकीय जीवों में पाई जाने वाली प्रमुख प्रतिरक्षा प्रणाली है।
कशेरुक प्राणियों में सहज प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रमुख कार्यों निम्नलिखित हैं:
1. साइटोकिन्स नामक विशेष रासायनिक मध्यस्थों तथा अन्य रासायनिक कारकों का उत्पादन करके संक्रमण वाले स्थानों के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं की तैनाती
2. बैक्टीरिया, कोशिकाओं को सक्रिय करने और एंटीबॉडी परिसरों या मृत कोशिकाओं की निकासी को बढ़ावा देने के लिए पूरक झरना का सक्रियण
3. विशिष्ट सफेद रक्त कोशिकाओं द्वारा अंगों, ऊतकों, रक्त और लसीका में मौजूद विदेशी पदार्थों की पहचान और निष्कासन
4. प्रतिजन प्रस्तुति के रूप में जानी जाने वाली प्रक्रिया के माध्यम से अनुकूली प्रतिरक्षा प्रणाली का सक्रियण
5. संक्रामक एजेंटों के लिए एक भौतिक और रासायनिक बाधा के रूप में कार्य करना; त्वचा या पेड़ की छाल और रासायनिक उपायों जैसे कि रक्त में थक्के के कारक या पेड़ से छलनी जैसे रासायनिक उपाय, जो एक संलयन या अन्य चोट के बाद जारी किए जाते हैं, जो पहली पंक्ति के शारीरिक अवरोध से टूटता है (दूसरी पंक्ति से भ्रमित नहीं होना भौतिक या रासायनिक अवरोध, जैसे रक्त-मस्तिष्क अवरोध, जो रोगजनकों से अत्यंत महत्वपूर्ण और अत्यधिक संवेदनशील तंत्रिका तंत्र की रक्षा करता है जो पहले से ही मेजबान के शरीर तक पहुंच प्राप्त कर चुके हैं)।

प्रश्न 3. 
(i) एलर्जी को परिभाषित कीजिष्ट। प्रमुख एलर्जनों के उदाहरण दीजिए।
(ii) सक्रिय व निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर कीजिए। 
उत्तर:
एलर्जी (Allergies)
एलजी किसी अहानिकारक पदार्थ के प्रति शरीर की अनावश्यक (गैर जरूरी) प्रतिरक्षी अनुक्रिया (immune response) है। यह प्रतिरक्षी तन्त्र की किसी अहानिकारक पदार्थ के प्रति अतिशय संवेदनशीलता (hyper sensitivity) की ही परिचायक है। शरीर यह प्रतिक्रिया त्वचा के सम्पर्क में आये, खाने के अवयव, श्वास के साथ शरीर में प्रविष्ट हुए या औषधि के रूप में लिए गए किसी भी पदार्थ के प्रति प्रदर्शित कर सकता है। 

एलर्जन (Allergen): इस एलर्जिक प्रतिक्रिया के लिए उत्तरदायी पदार्थ एलर्जन (allergens) कहलाते हैं। सामान्य एलर्जन हैं - धूल, पराग कण (pollen grain), फंगस स्पोर, माइट्स (mites), ऊन, संश्लेषित कपड़े, - त्वचा, हेयर डाई (hair dye), पंख - पर, अण्डा, मछली, दूध यहाँ तक कि - गेहूँ भी। अनेक औषधियाँ, जैसे- एन्टीबायोटिक पेनिसिलीन आदि भी कुछ व्यक्तियों में एलर्जी उत्पन्न करती है। एलर्जन वास्तव में हल्के स्तर के एन्टीजन ही हैं जो शरीर के सम्पर्क में आने पर प्रतिरक्षी अनुक्रिया प्रारम्भ कर देते हैं।

लक्षण (Symptoms): एलर्जी के लक्षण एलर्जन की प्रकृति व शरीर के उस भाग पर भी निर्भर करते है जो एलर्जन के सम्पर्क में आया है। त्वचा के सम्पर्क में आये एलर्जन जैसे- रंग, डाई, रेशे आदि त्वचा में शोथ अर्थात डर्मेटाइटिस (dermatitis) उत्पन्न करते हैं। अण्डा, दूध, मछली जैसे खाद्य पदार्थ पेट में दर्द, शरीर पर खुजली आदि उत्पन्न करते हैं। लेकिन एलर्जी के सबसे प्रमुख लक्षण हैं, छींक आना (sneezing), श्लेष्मिक कला का शोथ (inflammation of mucous membrane), आँखों व नाक से पानी आना, त्वचा पर चकत्ते (hives) गले में खराश (sore thoat), श्वसन मार्ग ब्रोंकआई.ब्रोकिओल में सूजन, साँस लेने में दिक्कत, खुजली (itch) आदि।
 
कारण (Causes): एलर्जन जब पहली बार शरीर के सम्पर्क में आता है तो एलर्जिक प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं होती लेकिन प्रतिरक्षी तन्त्र का उत्तेजन (sensitization) हो जाता है। शरीर इस अहानिकारक पदार्थ के प्रति एन्टीबॉडीज का निर्माण प्रारम्भ कर देता है। एलर्जी में IgE प्रकार की त एन्टीबॉडीज का निर्माण होता है। दोबारा एलर्जन के सम्पर्क में आने पर शरीर र द्वितीयक प्रतिरक्षी अनुक्रिया (secondary immune response) प्रदर्शित करता है। वही प्रतिक्रिया एलर्जी है। इस प्रकार बने एन्टीबॉडीज मास्ट कोशिकाओं (mast cells) से चिपक जाते हैं जिससे वह फटकर हिस्टामाइन (Histamine) व सेरोटोनिन (serotonin) नामक पदार्थों का खावण करती है। हिस्टामाइन को ही एलर्जिक लक्षणों की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार माना जाता है। यह शोथकारी (inflammation causing) पदार्थ है। यह केशिकाओं (capillaries) की पारगम्यता बढ़ा देता है। शोध के चार प्रमुख लक्षण हैं - अधिक द्रव के एकत्रित हो जाने के कारण सूजन, स्थानीय मत रूप से बढ़ा ताप, लालिमा (redness of the area) व दर्द। 

अस्थमा (Asthma), एलर्जी से ही विकसित होने वाला रोग है जिसमें श्वसन मार्ग में सूजन होने के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। एलर्जी के कारण वेष होने वाले अन्य रोग है, हे फीवर (Hay fever) व एनाफाइलेक्टिक शॉक नारा (Anaphylatic shock), जो अत्यधिक गम्भीर, एलर्जिक प्रतिक्रिया है।
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उपचार (Treatment) 
एलर्जी के उपचार का प्रथम बिन्दु है एलर्जन (allergen) की पहचान व उससे यथासम्भव बचाव का उपाय। एलर्जन के निर्धारण के लिए सभी सम्भावित एलर्जन की छोटी - छोटी मात्राओं से एक - एक कर रोगी का सामना कराया जाता है (त्वचा के सम्पर्क द्वारा या इंजैक्शन द्वारा) तथा प्रत्येक मामले में प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। एलर्जन के निर्धारण से एलर्जी की रोकथाम व उपचार आसान हो जाता है। निम्न औषधियाँ एलजी के प्रकोप को तुरन्त कम करने में सहायक है लेकिन इनका प्रयोग चिकित्सीय देख - रेख में ही किया जाना चाहिए। यह है एन्टीहिस्टमाइन (antihistamine), एड्रीनेलिन (adrenaline) व स्टीराइड (steroids)। साधारण अवस्था में केवल एण्टीहिस्टामाइन का ही प्रयोग किया जाता है।
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आधुनिक युग की जीवन शैली के कारण लोगों की प्रतिरक्षी क्षमता (immunity) में कमी आई है तथा एलर्जनों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ी है। पर्यावरण के प्रति बढ़ती सुग्राहिता व संवेदनशीलता के कारण मेट्रो व बड़े शहरों के बच्चे अधिक से अधिक संख्या में एलर्जी व अस्थमा के शिकार बन रहे हैं। जीवन की प्रारम्भिक अवस्था में बच्चों को उपलब्ध कराया गया अत्यधिक सुरक्षित पर्यावरण भी इसका एक सम्भावित कारण हो सकता है। इसका अर्थ है कि बच्चों का छोटे - छोटे संक्रमणों व एलर्जनों से सामना उन्हें आगे के जीवन में उनके लिए प्रतिरोधी बना देता है।

सक्रिय व निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Active and Passive Immunity)
सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity): जब प्रतिरक्षियों (एन्टीबॉडीज) का उत्पादन स्वयं उसी व्यक्ति की कोशिकाओं द्वारा होता है तब यह सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। रोगजनकों के शरीर में प्रवेश करने अथवा टीकाकरण (Vaccination) के कारण बी लिम्फोसाइट की प्लाज्मा कोशिकाएं एन्टीबॉडीज उत्पादित करने लगती हैं। एन्टीजनों के सम्पर्क में आने के कारण शरीर में एन्टीबॉडीज का उत्पादन सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाता है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी गति से विकसित होती है तथा इसका पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित होने में समय लगता है।

निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity): निष्क्रिय प्रतिरक्षा में किसी एन्टीजन के लिए एन्टीबॉडीज का निर्माण किसी अन्य पृष्ठधारी जन्तु (Vertebrate animal) जैसे - घोड़े आदि के शरीर में किया जाता है। अन्य जन्तु के शरीर में एन्टीजन प्रविष्ट कराने पर जन्तु में एन्टीबॉडीज का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है। इन जन्तुओं के शरीर से इन एन्टीबॉडीज को प्राप्त कर आवश्यकता के समय शुद्धीकृत रूप में, मनुष्य के शरीर में इन्जैक्ट कराया जाता है। चूंकि एन्टीबॉडीज का निर्माण मनुष्य के शरीर में नहीं होता, उसे यह बाहर से प्राप्त होते हैं अत: इस प्रकार की प्रतिरक्षा को निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहा जाता है। घातक जानलेवा रोगों जैसे - टिटेनस, रेबीज तथा सर्प विष से शीघ्र छुटकारा पाने की आवश्यकता होती है।

इनमें सक्रिय प्रतिरक्षा विकसित होने का इन्तजार नहीं किया जाता। अत: निष्क्रिय प्रतिरक्षा की मदद ली जाती है। निष्क्रिय प्रतिरक्षा का एक और रूप है। स्तनपान कराते समय माँ अपने शरीर में बनी कुछ विशिष्ट एन्टीबॉडीज दुग्ध के माध्यम से शिशु को प्रदान करती है। शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माँ के स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा हल्का पीला द्रव कोलोस्ट्रम (Colostrum) एन्टीबॉडीज से समृद्ध होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में (IgA) उपस्थित होती है जिससे शिशु की सम्भावित संक्रमणों से रक्षा की जा सके। कुछ एन्टीबॉडीज अपरा (Placenta) के माध्यम से गर्भावस्था के समय ही शिशु को स्थानान्तरित कर दी जाती है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 4. 
टायफाइड के रोगजनक का नाम दीजिए। मलेरिया परजीवी के जीवनचक्र को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइये।
उत्तर:
दटायफॉइड (Typhoid) 
टायफॉइड एक जीवाणु जन्य (bacterial) संक्रमण है। 
रोगजनक (Pathogen): सालमोनेला टायफी (Salmonella typhi) एक लगभग समान जीवाणु मनुष्यों में पैराटायफाइड ज्वर (Paratyphoid fever) उत्पन्न करता है। 

संचरण का माध्यम (Mode of Transmission): गन्दगी व अपर्याप्त सफाई वाले इलाकों में टायफाइड पीने के पानी के, सीवेज के पानी या रोग जनक के स्रोत से संदूषित (contaminate) होने के कारण फैलता है। संक्रमण का स्रोत टॉयफाइड से ग्रस्त रोगी मनुष्य या वाहक का मल (faeces) है। जब इस मल से रोगजनक खाद्य पदार्थों व जल तक पहुंच बना लेते हैं तो रोग जनक इन संदूषित पदार्थों के उपयोग करने वालों के शरीर में पहुँच जाता है। मक्खियाँ भी रोगी के मल से टॉयफाइड जीवाणु को खाद्य पदार्थों तक पहुँचा देती हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 1

टॉयफाइड मेरी जैसी रोगी वाहकों के खाना बनाने, परोसने व संग्रह करने से भी रोग का प्रसार होता है। सीवेज के पानी के सीधे सम्पर्क में आई तरकारियों, फलों के बिना धोए प्रयोग से भी यह रोग संचरित होता है। शरीर में रोग जनक छुद्रांत (intestine) में प्रवेश के बाद रक्त में प्रवेश पा जाता है तथा रक्त के माध्यम से तिल्ली (spleen) व यकृत (liver) में पहुँच जाता है तथा वहाँ गुणन करता है। लिवर से जीवाणु बड़ी संख्या में पित्ताशय के रास्ते फिर से छुद्रांत में पहुंचता है। टॉयफाइड से ठीक होने के बाद भी व्यक्ति के शरीर मे जीवाणु पित्ताशय में पड़े रहते हैं व धीरे - धीरे मल के साथ शरीर से बाहर आते रहते हैं। विकसित देशों में टॉयफाइड नहीं के बराबर पाया जाता है। 

जाँच व लक्षण (Diagnosis and symptoms): टायफॉइड में 7 से 14 दिनों का उद्भासन काल या इनक्यूबेशन पीरियड (incubation period) होता है। रोगजनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर प्रथम लक्षणों के प्रकट होने के बीच की अवधि उद्भासन काल कहलाती है। 
टायफॉइंड के प्रमुख लक्षण निम्न है-

  1. सिर में तेज दर्द व फिर लगातार तेज बुखार (399 से 40°C) का बना रहना व कमजोरी। 
  2. भूख का न लगना (loss of appetite), पेट में दर्द, पेट का अधिक मुलायम होना (tenderness), कब्ज (constipation) व इसके बाद अतिसार (diarrhoea)। 
  3. द्वितीय सप्ताह में पैर व छाती पर छोटे - छोटे गुलाबी रंग के उभरे हुए धब्बे।
  4. जीभ पर गोल जमाव (coated tongue)। 
  5. छोटी आँतों से रक्तस्त्राव व आँतों का छिद्रित हो जाना (perforations of intestine) 

टायफॉइड की पहचान विडाल परीक्षण (Widal Test) द्वारा की जाती है। (यह एक रक्त परीक्षण है) 
रोकथाम (Prevention): टायफॉइड चूंकि एक जल जनित (water borne) रोग है। अत: इसकी रोकथाम का सामान्य तरीका है वैयक्तिक व सामुदायिक स्वच्छता (Personal and community hygiene)। जल स्रोतों व खाद्य पदार्थों का स्वच्छ रखरखाव, घरेलू मक्खियों पर रोक आदि। टायफाइड टीका (Typhoid vaccine) कुछ वर्षों तक टायफॉइड से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
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प्रश्न 5. 
पश्च विषाणु की प्रतिकृति का चित्र बनाइये। एड्स रोगजनक का पूरा नाम लिखिए। इसका संक्रमण कैसे होता है? मानव शरीर में एड्स के लक्षणों को समझाइये।
उत्तर:
एड्स (AIDS) एड्स एक ऐसा गम्भीर संक्रमण है जो पिछले कई दशकों से सम्पूर्ण मानव जनसंख्या के लिए चुनौती बना हुआ है। आज की तारीख तक इस तेजी से फैलने वाले घातक संक्रमण का कोई प्रभावशाली उपचार उपलब्ध नहीं है। एड्स शब्द उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण या एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immun Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त नाम है। 

इतिहास (History): एड्स के बारे में सन् 1981 में पहली बार पता लगा। पिछले 34 वर्षों में यह सारी दुनिया में फैल गया है। सन् 1984 में फ्रांस में एड्स विषाणु का नाम लिम्फोडिनोपैथी एसोसिएटेड वाइरस (Lymphodenopathy associated virus; LAV) तथा अमेरिका में ह्यूमन T सैल लिम्फोट्रोफिक वाइरस (HTLV - III) रखा गया था। सन् 1986 में इसका पुनर्नामकरण HIV के रूप में किया गया। 

रोगजनक (Pathogen): एड्स का कारण ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वाइरस (Human Immunodeficiency virus; HIV) नामक विषाणु हैं। यह प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Immuno Deficiency Virus) एक पश्च विषाणु या रिट्रो वाइरस (retrovirus) है।
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रिट्रो वाइरस वह विषाणु होते हैं जिनमें नाभिकीय अम्ल आर.एन.ए. होता है, जो एन्जाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (reverse transcriptase) के साथ एक आवरण से ढका रहता है। 

एड्स विषाणु व्युत्क्रम अनुलेखन (reverse transcription) करने में सक्षम होता है। अर्थात यह अपने आनुवंशिक पदार्थ आर.एन.ए. से रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण कर लेता है। 

रोग संचरण विधि (Mode of Transmission): एड्स का संचरण निम्न प्रकार से होता है-

  • रोगी/संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क (Sexual Contact) से। एड्स एक प्रमुख यौन संचरित रोग (Sexually Transmitted Disease) है। 
  • संदूषित रक्त (Contaminated blood) व रक्त उत्पादों के आद्यान (transfusion) से। 
  • संक्रमित/संदूषित सुइयों के साझा प्रयोग से। ड्रग्स का अंत: शिरीय (intra venous) कुप्रयोग करने वाले लोग समूह में एक ही सुई का कई बार प्रयोग करते हैं।
  • संक्रमित माँ से अपरा (placenta) के माध्यम से उसके बच्चे में।

अन्य कम सामान्य विधि हैं, संक्रमित रेजर से, कान छिदवाने में, कृत्रिम वीर्य सेचन, अंग प्रत्यारोपण आदि। 
एड्स के अधिक खतरे वाले व्यक्ति (High risk people): निम्न समूहों में एड्स फैलने की सम्भावना अधिक रहती है-

  1. अनेक लोगों से लैंगिक सम्पर्क रखने वाले व्यक्ति। 
  2. अन्तर्शिरीय (intravenous) ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति। 
  3. ऐसे व्यक्ति जिन्हें बार - बार रक्ताद्यान (blood transfusion) की आवश्यकता होती है। 
  4. एच आई वी संक्रमित माँ द्वारा जन्मे बच्चे। 

निम्न द्वारा एड्स नहीं फैलता (AIDS does not spread by the following) 

  1. सामान्य सामाजिक सम्पर्क (ordinary social contact), जैसे- हाथ मिलाना, गले मिलना आदि। एड्स संक्रामक रोग ए (communicable disease) है लेकिन छुआछूत का रोग (contagicus disease) नहीं है, यह केवल शरीर द्रवों (body fluids) के सम्पर्क द्वारा फैलता है। 
  2. साथ खेलने, साथ - साथ पढ़ने, साथ काम करने से। 
  3. स्टेशनरी, खिलौने, मोबाइल, बर्तन, कपड़ों के साझा प्रयोग से। 
  4. एड्स मच्छरों द्वारा भी नहीं फैलता। खाँसने छीकने से एड्स नहीं व फैलता। 
  5. एड्स के रोगी के उपचार के समय यह नर्स या डाक्टरों में नहीं फैलता। 

अत: एड्स रोगियों की शारीरिक व मनोवैज्ञानिक कुशलता (well being) के द लिए यह आवश्यक है कि एड्स संक्रमण से जूझ रहे रोगियों को परिवार व र समाज में अलग - थलग न किया जाय।
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उद्भासन काल (Incubation Period): आप जान चुके हैं कि रोग जनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर रोग के प्रथम लक्षण उत्पन्न होने तक का समय उद्भासन काल (incubation period) कहलाता है। एड्स में यह अवधि कुछ महीनों से लेकर अनेक वर्षों (5 से 10 वर्ष) तक की हो सकती है। 
एड्स विषाणु का जीवन चक्र (Life cycle of AIDS Virus): मनुष्य के शरीर में प्रवेश के बाद एड्स विषाणु बृहत भक्षकाणु या मैक्रोफेज (macrophage) में प्रवेश करता है। इस कोशिका के अन्दर विषाणु का आर.एन.ए. जीनोम, रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम (reverse transcriptase enzyme) की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण करता है। रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन, अर्थात आर.एन.ए. से डी.एन.ए. का निर्माण रिट्रो वाइरस की विशेषता होती है। इस प्रकार बना विषाणु का डी.एन.ए. पोषक कोशिका के डी.एन.ए. में समाविष्ट हो जाता है। यह समाविष्ट डी.एन.ए. अब संक्रमित पोषक कोशिका को विषाणु कण (virus particles) उत्पन्न करने के निर्देश देता है।

मेक्रोफेज, विषाणु उत्पन्न करना जारी रखते हैं तथा इस प्रकार विषाणुओं की एक फैक्टरी बन कर रह जाते हैं इसका अर्थ है मैक्रोफेज अपने काम न कर विषाणु डी.एन.ए. के निर्देशों का पालन कर सिर्फ विषाणुओं का निर्माण करती रहती है। इसके साथ ही विषाणु सहायक टी लिम्फोसाइट (helper T lymphocyte; TH) में प्रवेश कर वहाँ भी विषाणुओं का बनाना प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार बड़ी संख्या में रक्त में मुक्त हुए संतति विषाणु नई सहायक टी कोशिका को संक्रमित करते है व यह चक्र जारी रखते हैं। इन चक्रों से विषाणुओं की संख्या तेजी से बढ़ती है तथा साथ ही संक्रमित टी कोशिकाओं की संख्या में भी वृद्धि होती जाती है। फलस्वरूप रोगी के शरीर में सहायक T कोशिकाओं की संख्या में कमी आ जाती है। सहायक T कोशिका को T4 कोशिका या CD4 भी कहा जाता है। 

लक्षण (Symptoms): एड्स विषाणुओं के तीव्रता से गुणन व सहायक टी कोशिकाओं की संख्या में आई कमी से रोगी में निम्न लक्षण उत्पन्न होते है-
ज्वर (fever), अतिसार (diarrhoea) व वजन में कमी (weight loss)। सहायक टी लिम्फोसाइट में कमी होने से व्यक्ति ऐसे संक्रमणों से असित होने लगता है जिनसे स्वस्थ व्यक्ति अपने प्रतिरक्षी तन्त्र के कारण आसानी से बचा रहता है, जैसे- जीवाणु माइकोबैक्टीरियम (Mycobacterium) द्वारा होने वाले संक्रमण। परजीवी टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma) का संक्रमण। विषाणुओं व कवकों के संक्रमण। 

रोगी का प्रतिरक्षी तन्त्र इतना कमजोर हो जाता है अर्थात उसमें इतनी कमियाँ उत्पन्न हो जाती है कि वह किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने में असमर्थ हो जाता है। उसे प्राय: कापोसी सारकोमा व लिम्फोमा भी हो जाते हैं। एड्स रोग में वास्तव में स्वयं के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं होते, रोगी में उन रोगों के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे वह द्वितीयक रूप से संक्रमित हुआ है, जैसे-टी.बी. के लक्षण, फ्लू के लक्षण, पेचिश के लक्षण, आदि। इसीलिए एड्स एक संलक्षण (Syndrome) अर्थात लक्षणों का समूह है। एड्स रोगी में पाये जाने वाले ऐसे लक्षण अवसरवादी संक्रमणों (opportunistic infections) के होते हैं। (ऐसे संक्रमण जो सामान्य प्रतिरक्षी तन्त्र वाले व्यक्तियों को प्रभावित नहीं करते)। 

जाँच (Diagnosis): व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली एड्स की एक आँच विधि एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनो सॉरबेंट ऐसे (Enzyme Linked Immuno - sorbent Assay; ELISA) है। लिम्फ नोडों का बड़ा हो जाना तेजी से बिना कारण के वजन में कमी, प्रारम्भिक संकेत हैं जिनकी पुष्टि रक्त में एच आई वी एन्टीजनों के विरुद्ध बनी एन्टीबॉडीज की जाँच से होती है। 

उपचार (Treatment): एड्स का स्थायी उपचार आज तक उपलब्ध नहीं है। एड्स रोगी को एन्टी रेट्रो वाइरल (anti retroviral) औषधियाँ दी जाती है लेकिन यह आंशिक रूप से ही लाभकारी हैं तथा मृत्यु को रोक नहीं सकती। एड्स लाइलाज (incurable) है। एन्टीवाइरल के साथ कुछ औषधियाँ प्रतिरक्षी तन्त्र को उत्तेजित करने के लिए (Immuno stimulative) भी दी जाती है। कुछ प्रख्यात औषधि हैं, जिडोवुडीन (zidovudine), एजिथमिडीन (Azithamidine) AZT आदि।

एड्स की रोकथाम (Prevention of AIDS): चूंकि एड्स एक लाइलाज रोग है अत: इसकी रोकथाम ही सर्वोत्तम विकल्प है। एक कहावत "Dont die of ignorance" अर्थात अज्ञानता के कारण मत मरो एड्स के मामले में सटीक है। एड्स हमारे सचेतन व्यवहार की लापरवाही से फैलता है। यह न्यूमोनिया या टायफॉइडं की तरह अनजानी गलती या संयोग से होने वाला रोग नहीं है। अगर कोई इससे बचना चाहता है तो वह आसानी से बच सकता है। एड्स का होना 'आ बैल मुझे मार' वाली स्थिति को भी सही ठहराता है। अनजान व्यक्ति से लैगिंक सम्पर्क न कर एड्स से आसानी से बचा जा सकता है। यही एड्स संचरण के प्रमुख कारणों में से एक है। रक्ताद्यान के मामलों में व संक्रमित माँ से शिशु को होने वाले संक्रमण सही निगरानी न होने के कारण होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एड्स की रोकथाम हेतु निम्न उपाय किये व सुझाये हैं-

  1. लोगों को एड्स के कारण, संचरण व रोकथाम के उपायों की समुचित जानकारी देकर एड्स से काफी हद तक बचा जा सकता है। 
  2. अनजान लोगों से लैंगिक सम्पर्क न करना अर्थात संयमित जीवन द्वारा। 
  3. रक्ताधान के समय संदूषण रहित रक्त की उपस्थिति सुनिश्चित कराकर, (रक्ताधान में HIV मुक्त रक्त के प्रयोग से ) इंट्रावीनस औषधि केवल डिस्पोजेबल सुई द्वारा। 
  4. सभी प्रकार के अस्पतालों में सिर्फ एक बार प्रयोग की जाने वाली (disposable) सुइयों के प्रयोग द्वारा इससे बचा जा सकता है। 
  5. ड्रग्स के कुप्रयोग पर रोक लगाकर, कंडोम का मुफ्त वितरण कर, सुरक्षित सैक्स (Safe Sex) अपनाकर तथा सम्भावित रोगियों में शीघ्रता से एड्स की जाँच करा के इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। रेजर, टूथब्रश आदि किसी से साझा न करें। 

अपने देश में राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन (National AIDS Control Organisation; NACO) तथा अन्य गैर सरकारी संगठन (NGO) एड्स के विषय में जागरूकता फैलाने के लिए काफी कार्य कर रहे हैं। 

एड्स के संक्रमण को छिपाना समस्या का समाधान नहीं है चूंकि इससे संक्रमण कई अन्य लोगों तक फैल सकता है। एड्स रोगियों को मदद, सहानुभूति व इलाज की आवश्यकता है, समाज द्वारा उनकी उपेक्षा उचित नहीं। समाज व चिकित्सा समुदाय दोनों के सहयोग से इस पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।

प्रश्न 6. 
(i) प्रतिरक्षा किसे कहते हैं?
(ii) सक्रिय प्रतिरक्षा एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर लिखिए। 
(iii) मच्छर परपोषी में प्लाज्मोडियम के जीवन - चक्र की अवस्थाओं का नामांकित चित्र बनाइये। या प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? सक्रिय तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर लिखिए। प्रतिरक्षी अणु की संरचना का चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रतिरक्षा (Immunity) रोगजनकों की बड़ी संख्या से हमारा प्रतिदिन सामना होता है। लेकिन केवल कुछ बार ही यह संक्रमण में सक्षम हो पाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमारे शरीर में इनमें से अधिकांश से अपनी रक्षा करने की क्षमता होती है। प्रतिरक्षी तंत्र की उपस्थिति के कारण पोषकों की रोगजनकों से जूझने की क्षमता प्रतिरक्षा (immunity) कहलाती है। प्रतिरक्षा की एक अन्य परिभाषा है-"रोग जनकों सहित किसी भी बाह्य पदार्थ (foreign material) के शरीर में प्रवेश को पहचानने तथा त्वरित कार्यकुशलता के साथ शरीर की कोशिकाओं व कोशिकीय उत्पादों को प्रेरित कर, उस बाह्य पदार्थ से मुक्ति दिलाने की क्षमता, प्रतिरक्षी क्षमता (immunity) कहलाती है।

सक्रिय व निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Active and Passive Immunity)
सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity): जब प्रतिरक्षियों (एन्टीबॉडीज) का उत्पादन स्वयं उसी व्यक्ति की कोशिकाओं द्वारा होता है तब यह सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। रोगजनकों के शरीर में प्रवेश करने अथवा टीकाकरण (Vaccination) के कारण बी लिम्फोसाइट की प्लाज्मा कोशिकाएं एन्टीबॉडीज उत्पादित करने लगती हैं। एन्टीजनों के सम्पर्क में आने के कारण शरीर में एन्टीबॉडीज का उत्पादन सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाता है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी गति से विकसित होती है तथा इसका पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित होने में समय लगता है।

निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity): निष्क्रिय प्रतिरक्षा में किसी एन्टीजन के लिए एन्टीबॉडीज का निर्माण किसी अन्य पृष्ठधारी जन्तु (Vertebrate animal) जैसे - घोड़े आदि के शरीर में किया जाता है। अन्य जन्तु के शरीर में एन्टीजन प्रविष्ट कराने पर जन्तु में एन्टीबॉडीज का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है। इन जन्तुओं के शरीर से इन एन्टीबॉडीज को प्राप्त कर आवश्यकता के समय शुद्धीकृत रूप में, मनुष्य के शरीर में इन्जैक्ट कराया जाता है। चूंकि एन्टीबॉडीज का निर्माण मनुष्य के शरीर में नहीं होता, उसे यह बाहर से प्राप्त होते हैं अत: इस प्रकार की प्रतिरक्षा को निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहा जाता है। घातक जानलेवा रोगों जैसे - टिटेनस, रेबीज तथा सर्प विष से शीघ्र छुटकारा पाने की आवश्यकता होती है।

इनमें सक्रिय प्रतिरक्षा विकसित होने का इन्तजार नहीं किया जाता। अत: निष्क्रिय प्रतिरक्षा की मदद ली जाती है। निष्क्रिय प्रतिरक्षा का एक और रूप है। स्तनपान कराते समय माँ अपने शरीर में बनी कुछ विशिष्ट एन्टीबॉडीज दुग्ध के माध्यम से शिशु को प्रदान करती है। शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माँ के स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा हल्का पीला द्रव कोलोस्ट्रम (Colostrum) एन्टीबॉडीज से समृद्ध होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में (IgA) उपस्थित होती है जिससे शिशु की सम्भावित संक्रमणों से रक्षा की जा सके। कुछ एन्टीबॉडीज अपरा (Placenta) के माध्यम से गर्भावस्था के समय ही शिशु को स्थानान्तरित कर दी जाती है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 7. 
(i) कैंसर रोग के कारण लिखिए
(ii) लसिका तन्त्र का आरेखीय चित्र बनाइये।
उत्तर:
(i)

  1. धूम्रपान - सिगरेट या बीडी, के सेवन से मुंह, गले, फेंफडे, पेट और मूत्राशय का कैंसर होता है।
  2. तम्‍बाकू, पान, सुपारी, पान मसालों, एवं गुटकों के सेवन से मुंह, जीभ खाने की नली, पेट, गले, गुर्दे और अग्‍नाशय (पेनक्रियाज) का कैंसर होता है।
  3. शराब के सेवन से श्‍वांस नली, भोजन नली, और तालु में कैंसर होता है।
  4. धीमी आचॅं व धूंए मे पका भोजन (स्‍मोक्‍ड) और अधिक नमक लगा कर संरक्षित भोजन, तले हुए भोजन और कम प्राकृतिक रेशों वाला भोजन(रिफाइन्‍ड) सेवन करने से बडी आंतो का कैंसर होता है।
  5. कुछ रसायन और दवाईयों से पेट, यकृत(लीवर) मूत्राशय के कैंसर होता है।
  6. लगातार और बार - बार घाव पैदा करने वाली परिस्थितियों से त्‍वचा, जीभ, होंठ, गुर्दे, पित्‍ताशय, मुत्राशय का कैंसर होता है।
  7. कम उम्र में यौन सम्‍बन्‍ध और अनेक पुरूषों से यौन सम्‍बन्‍ध द्वारा बच्‍चेदानी के मुंह का कैंसर होता है।

(ii) 
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 12
 

प्रश्न 8. 
टायफाइड रोग का निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए।
(i) रोगजनक का नाम 
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम 
(iii) संक्रमण का तरीका 
(iv) रोग के चार प्रमुख लक्षण 
(v) प्रतिरक्षी अणु की संरचना का चित्र बनाइये।
उत्तर:
दटायफॉइड (Typhoid) 
टायफॉइड एक जीवाणु जन्य (bacterial) संक्रमण है। 
रोगजनक (Pathogen): सालमोनेला टायफी (Salmonella typhi) एक लगभग समान जीवाणु मनुष्यों में पैराटायफाइड ज्वर (Paratyphoid fever) उत्पन्न करता है। 
संचरण का माध्यम (Mode of Transmission): गन्दगी व अपर्याप्त सफाई वाले इलाकों में टायफाइड पीने के पानी के, सीवेज के पानी या रोग जनक के स्रोत से संदूषित (contaminate) होने के कारण फैलता है। संक्रमण का स्रोत टॉयफाइड से ग्रस्त रोगी मनुष्य या वाहक का मल (faeces) है। जब इस मल से रोगजनक खाद्य पदार्थों व जल तक पहुंच बना लेते हैं तो रोग जनक इन संदूषित पदार्थों के उपयोग करने वालों के शरीर में पहुँच जाता है। मक्खियाँ भी रोगी के मल से टॉयफाइड जीवाणु को खाद्य पदार्थों तक पहुँचा देती हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 1

टॉयफाइड मेरी जैसी रोगी वाहकों के खाना बनाने, परोसने व संग्रह करने से भी रोग का प्रसार होता है। सीवेज के पानी के सीधे सम्पर्क में आई तरकारियों, फलों के बिना धोए प्रयोग से भी यह रोग संचरित होता है। शरीर में रोग जनक छुद्रांत (intestine) में प्रवेश के बाद रक्त में प्रवेश पा जाता है तथा रक्त के माध्यम से तिल्ली (spleen) व यकृत (liver) में पहुँच जाता है तथा वहाँ गुणन करता है। लिवर से जीवाणु बड़ी संख्या में पित्ताशय के रास्ते फिर से छुद्रांत में पहुंचता है। टॉयफाइड से ठीक होने के बाद भी व्यक्ति के शरीर मे जीवाणु पित्ताशय में पड़े रहते हैं व धीरे - धीरे मल के साथ शरीर से बाहर आते रहते हैं। विकसित देशों में टॉयफाइड नहीं के बराबर पाया जाता है। 

जाँच व लक्षण (Diagnosis and symptoms): टायफॉइड में 7 से 14 दिनों का उद्भासन काल या इनक्यूबेशन पीरियड (incubation period) होता है। रोगजनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर प्रथम लक्षणों के प्रकट होने के बीच की अवधि उद्भासन काल कहलाती है। 
टायफॉइंड के प्रमुख लक्षण निम्न है-

  1. सिर में तेज दर्द व फिर लगातार तेज बुखार (399 से 40°C) का बना रहना व कमजोरी। 
  2. भूख का न लगना (loss of appetite), पेट में दर्द, पेट का अधिक मुलायम होना (tenderness), कब्ज (constipation) व इसके बाद अतिसार (diarrhoea)। 
  3. द्वितीय सप्ताह में पैर व छाती पर छोटे - छोटे गुलाबी रंग के उभरे हुए धब्बे।
  4. जीभ पर गोल जमाव (coated tongue)। 
  5. छोटी आँतों से रक्तस्त्राव व आँतों का छिद्रित हो जाना (perforations of intestine) 

टायफॉइड की पहचान विडाल परीक्षण (Widal Test) द्वारा की जाती है। (यह एक रक्त परीक्षण है) 
रोकथाम (Prevention): टायफॉइड चूंकि एक जल जनित (water borne) रोग है। अत: इसकी रोकथाम का सामान्य तरीका है वैयक्तिक व सामुदायिक स्वच्छता (Personal and community hygiene)। जल स्रोतों व खाद्य पदार्थों का स्वच्छ रखरखाव, घरेलू मक्खियों पर रोक आदि। टायफाइड टीका (Typhoid vaccine) कुछ वर्षों तक टायफॉइड से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 9. 
कोका एल्केलाइड या कोकेन किस पादप से प्राप्त किया जाता है? ह मानव पर क्या प्रभाव डालता है? मार्फीन की रासायनिक प्रकृति लिखिए।
उत्तर:
ड्रग्स और एल्कोहॉल कुप्रयोग (Drugs and Alcohol Abuse) 
नवीनतम सर्वेक्षण व आँकड़ें बताते हैं कि ड्रग्स व एल्कोहाल का प्रयोग विशेषरूप से नवयुवकों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत एक विकासशील देश है। इसकी आधी आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है। किसी देश के युवा ही उस देश के भविष्य की तस्वीर बनाते हैं। अगर युवा ही दिशाहीन होकर ड्रग्स और एल्कोहल के जाल में फंस जाये तो इससे देश के विकास की गति मंद पड़ जाती है। वैयक्तिक रूप से भी यह एक गम्भीर समस्या है जिसके अनेक हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। इस सम्बंध में उचित शिक्षा व मार्गदर्शन युवाओं को इन हानिकारक आदतों से बचाने व उन्हें स्वस्थ जीवन शैली अपनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। 

इग्स का क्या अर्थ है? What is meant by drugs? 
ऐसा कोई भी रासायनिक पदार्थ जो शरीर के एक या अधिक अंगों के कार्य में बदलाव ला दे या किसी रोग की प्रक्रिया को परिवर्तित कर दे, ड्रग (drug) कहलाता है। ड्रग्स में, डाक्टर द्वारा रोग निवारण के लिए लिखी औषधियाँ, कैमिस्ट की दुकान पर बिना डाक्टर के पर्चे के मिलने वाले 'ओवर द काउन्टर' (over the counter) नुस्खे, एल्कोहाल, तम्बाकू तथा गैर चिकित्सीय रूप से प्रयोग की जाने वाली नशे की दवाइयाँ शामिल है। खाने-पीने में प्रयोग किये जाने वाले अनेक पदार्थों जैसे चाय, काफी, कोला आदि में भी सूक्ष्म मात्रा में ऐसे पदार्थ होते हैं जिन्हें ड्रग्स ही कहा जाता है जैसे कैफीन। इस अध्याय में गैर चिकित्सीय रूप में दुरुपयोग की जाने वाली ड्रग्स का वर्णन किया गया है। 

ड्रग कुप्रयोग (Drug Abuse): किसी ड्रग का उस कार्य के लिए प्रयोग जो इसके सामान्य रूप से किये कार्यों से सर्वथा अलग है, अथवा चिकित्सीय औषधियों का बिना चिकित्सीय सलाह के गैर चिकित्सीय प्रयोग, ड्रग कुप्रयोग (drug abuse) कहलाता है। ड्रग्स का चिकित्सक द्वारा सुझाई मात्रा से अधिक मात्रा में व अधिक आवृत्ति में प्रयोग जिससे व्यक्ति के शारीरिक, कार्षिकीय व मनोवैज्ञानिक कार्यों पर प्रभाव पड़ रहा हो, भी ड्रग कुप्रयोग कहलाता है। ड्रग्स जिनका सामान्यत: दुरूपयोग किया जाता है वह हैं ओपिआइड्स, कैनेबिनाइड्स और कोका एल्कलाइड्स आदि। इस प्रकार की अधिकांश ड्रग्स पुष्पी पादपों से प्राप्त की जाती हैं। कुछ ड्रग्स कवकों (fungi) से प्राप्त होती है।

ओपिआइड्स (Opioids)
कोई भी ड्रग जो अफीम (opium) के पौधे से प्राप्त की गई है ओपिएट (opiats) कहलाती है। अफीम व मार्फीन (opium) पोस्त या पॉपी पौधे-पेपेवर सोम्नीफेरम (Papaver somniferum) के अपरिपक्व फलों के लेटेक्स (latex) से प्राप्त की जाती है। अफीम को हजारों वर्षों से ड्रग के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, इसमें दर्द निवारक (analgesic) गुण है। अफीम एक अवसादक (depressant) व नींद लाने वाला (sedative) पदार्थ है।

ओपिएट के चिकित्सीय प्रयोग 
ओपिएट नारकोटिक ड्रग्स मस्तिष्क क्रिया को धीमा करते हैं तथा दर्द निवारक (analgesic - pain killer) के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। इनमें उपस्थित कोडीन (codeine) के कारण इनका प्रयोग खाँसी की दवाइयों में भी होता है। संश्लेषित ओपिएट पेथिडीन (Pethidine) का प्रयोग दर्द निवारक व निद्राकारी (sedative) के रूप में शल्य क्रिया के बाद किया जाता है। वास्तव में ओपिएट नार्कोटिक सबसे महत्त्वपूर्ण दर्द निवारक है। 

मार्फीन (Morphine) एक प्रमुख प्राकृतिक ओपिएट है। यह अफीम का सक्रिय पदार्थ हैं। हेरोइन (Heroin) को सामान्य रूप से बोलचाल की भाषा में स्मैक (smack) कहा जाता है। हेरोइन रासायनिक रूप से डाइएसीटिल मार्फीन (diacetyImorphine) है अर्थात यह मार्फीन के एसौटाइलेशन से प्राप्त होती है। हेरोइन एक सफेद, गंधहीन (odour less), स्वाद में कड़वा, रवेदार यौगिक (crystalline compound) है। हेरोइन नाक से तेज साँस खींचकर या इंजेक्शन द्वारा ली जाती है। यह एक अवसादक (depressant) है तथा शरीर के क्रियाकलापों को मंद कर देता है।

ओपिआइड्स वह ड्रग हैं जो शरीर के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व जठरांत्र तंत्र (gastro intestinal) पर उपस्थित विशिष्ट ओपिआइड्स ग्राहियों (receptors) से जुड़ जाते हैं। यह रिसेप्टर कोशिकाओं की सतह पर पाये जाने वाले वह विशिष्ट स्थान हैं जहाँ ओपिएट ड्रग्स अपना प्रभाव दिखाने के लिए जुड़ते हैं। कैनाबिनाइइस (Cannabinoids) प्राकृतिक कैनाबिनाइड्स, भांग के पौधे कैनाबिस सैटाइवा (Cannabis sativa) के पुष्प क्रमों (inflorescence) से प्राप्त किये जाते हैं। भांग (marizuana), हशीश, चरस और गाँजा इसी पौधे से प्राप्त किये जाते हैं। भाँग के फूलों के शीर्ष, पत्तियाँ व इस पौधे के रेजिन (resin) के विभिन्न संयोजनों से अलग-अलग उत्पाद प्राप्त होते हैं। भारत में भांग, भाँग के पौधे की पत्तियों व नर व मादा प्ररोहों से, चरस मादा पुष्पों व पत्तियों के शुद्ध रेजिन से, गाँजा, शुष्क तने व पुष्पक्रमों के ठोस रेजिन से तथा हशीश शुष्क पुष्पक्रमों व पत्ती से प्राप्त की जाती है।
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इन पदार्थों को मुख द्वारा (orally) या अन्तःश्वसन (inhalation) द्वारा प्रयोग किया जाता है। कैनाबिनाइड्स शरीर के हृद वाहिका तंत्र (cardio vascular system) को प्रभावित करते हैं। यह पदार्थ विचारों व तर्क शक्ति में खलल डालते हैं व अल्पकालीन स्मरण क्षमता को प्रभावित करते है। शुष्क मुँह, लाल आँख, भूख वृद्धि खास लक्षण है।

मारिजुआना का सक्रिय पदार्थ THC (tetrahydrocannabial - टेड्रा हाइड्रोकेनाविआल) है। इसका प्रयोगकर्ता स्वजदी (dreamy) व आरामतलब व शान्त होता है। केनाबिनाइड ग्राही (receptors) मुख्यत: मस्तिष्क में उपस्थित होते हैं। कोकेन (Cocaine) कोका एल्केलाइड या कोकेन (cocaine) कोका के पौधे इरिथ्रोजाइलॉन कोका (Erythroarylon coca) से प्राप्त किया जाता है। यह दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। कोकेन रक्त वाहिनिया का सकुचित (constrict) करता है। कोकेन के मस्तिष्क पर प्रभाव के कारण ही इसका कुप्रयोग प्रारम्भ हुआ है। इसको नियमित रूप से अन्तःश्वसन (inhale) करने पर नाक की श्लेष्मिक कला क्षतिग्रस्त हो जाती है। लगातार प्रयोग मनोवैज्ञानिक निर्भरता व अधिक खुराक साइकोसिस (psychosis) उत्पन्न कर सकती है। बहुत ज्यादा खुराक हृदयाघात पैदा कर देती है।

कोकेन का शुद्धीकृत (purified) रूप कैक (crack) या कोक (coke) कहलाता है इसे साँस द्वारा अन्दर खींचा जाता है। क्रैक अधिक तेज व तीन प्रभाव उत्पन्न करता है जो शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है। अधिक खुराक विभ्रम (Hallucinations) भी उत्पन्न करती है। कोकेन न्यूरोट्रांसमीटर डोपामीन के परिवहन पर प्रभाव डालता है। कोकेन मस्तिष्क पर तीन उद्दीपक (stimulating) प्रभाव डालता है जिससे 'यूफोरिया' (Euphoria) व शरीर में ऊर्जा वृद्धि की अनुभूति होती है। कुछ खिलाड़ी भी आजकल कैनाविनाइड का कुप्रयोग करते हैं। कोकेन को पहले स्थानीय निश्चेतक (Anaesthetic) के रूप में प्रयोग किया जाता था।

अन्य पौधे जिनमें विभ्रमकारी (hallucinogenic) गुण होते हैं वह है - धतूरा नव बेलाडोना।
धतूरा (Datura) Datura stramonium (धतूरा स्ट्रेमोनियम)
इससे स्ट्रेमोनियम (stramonium) नामक ड्रग पाई जाती है। धतूरा मेटल या धतूरा इनोक्सिया अन्य प्रजाति हैं। धतूरे का प्रयोग कुछ आयुर्वेदिक औषधियों A में होता है। धतूरे के बीज विधमकारी होते हैं।

बेलाडोना (Atropa Belladonna): एट्रोपा बेलाडोना पौधे के सत्व (extrast) को बेलाडोना कहा जाता है। अंग्रेजी में डेडली नाइटशेड (deadly nightshade) कहे जाने वाले पौधे के सत्त्व में एट्रोपीन (atropine) सहित अनेक एल्केलॉइड होते हैं। इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। इटेलियन भाषा में बैलाडोना शब्द का शाब्दिक अर्थ है खूबसूरत स्त्री। इसे महिलाएं अपनी आँखों की पुतलियों को फैलाने के लिए प्राचीन समय में आँखों पर लगाती थीं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बेलाडोना का प्रयोग पेटदर्द की दवा बनाने में किया जाता है।

बेलाडोना से प्राप्त एट्रोपीन का विभिन्न प्रकार से चिकित्सीय प्रयोग किया जाता है। विधमी गुण वाले अनेक पादपों, फलों, बीजों का विश्व भर में लोक औषधि (folk medicine), धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में सैकड़ों वर्षों से उपयोग हो रहा है। 

पादपों से प्राप्त कुछ अन्य ड्रग्स - Some other drugs obtained from plants 
अफीम, भांग, कोकेन व धतूरा के अतिरिक्त अन्य अनेक पौधे भी ड्रग्स के स्रोत हैं। इनमें से प्रमुख है-

  1. काकाओ (थियोब्रोमा काकाओ - Theobroma cacao) जिसके बीजों से कैफीन मिलता है। 
  2. चाय (थिया साइनेन्सिस - Thea sinensis) पत्तियों में कैफीन होता है। 
  3. काफी (कॉफिया अरेबिका - Coffea arabica) के शुष्क बीजों से कैफीन मिलता है। (कैफीन एक उत्तेजक (stimulant) पदार्थ है) 
  4. एस्कोमाइसिटीज कवक क्लेवीसेप्स परप्युरिया (Claviceps purpurea) के फलन कार्यों से LSD (लाइसर्जिक एसिड डाईइथाइल एमाइड) प्राप्त होता है। 
  5. मेक्सिकन मशरूम सिलोसाइब मैक्सिकाना (Psilocybe mexicana) से सिलोसाइबिन (psilocybin) नामक विभ्रमकारी (hallucinogen) मिलता है।
  6. पेओट कैक्टस लोफोफोरा विलिएमसाई (Lophophora williamsii) से मेस्केलिन (mescaline) नामक विधमकारी मिलता है। 

हेनबेन, हायोसायमस नाइगर (Hyoscyamus niger) से हेनबेन (henbane) नामक शामक मिलता है। 

बार्बीचुरेट (Barbiturate): बाबींचुरेट शामक (sedative) ड्रग्स का एक समूह है जो मस्तिष्क की क्रिया को कम कर अपना कार्य करता है। पहले तनाव कम करने, नींद लाने आदि में इनका काफी प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब इनका प्रयोग कड़े नियंत्रण में किया जा रहा है क्योकि यह निर्भरता उत्पन्न करने वाली अर्थात आदत बन जाने वाली व व्यापक रूप से कुप्रयोग किये जाने वाली ड्रग्स हैं। अधिक मात्रा में सेवन जानलेवा हो सकता है। इनमें से कुछ जैसे फीनोबाबींटोन (phenobarbitone) का प्रयोग मिर्गी (epilepsy) के उपचार में किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क में न्यूरॉनों के बीच उद्दीपक रासायनिक संकेतों को अवरोधित कर, कोशिका की अनुक्रिया करने की क्षमता बाधित कर देती है। शराब के साथ सेवन से यह औषधियाँ जानलेवा हो सकती हैं। 

उदाहरण: साइक्लोवा/टोन, थियोपेन्टोन, एमाइलोबाबींटोन, ब्यूटोबा टोन। 

एम्फेटेमीन (Amphetamines): एम्फेटेमीन उद्दीपक (stimulant) ड्रग्स का समूह है जो भूख कम कर देता है। पहले इनका प्रयोग मोटापा (obesity) कम करने के लिए किया जाता था लेकिन इनके आदतकारी होने व कुप्रयोग के कारण इनका प्रयोग बन्द कर दिया गया है। एम्फेटेमीन का प्रयोग अब केवल नारकोलेप्सी (narcolepsy) के उपचार में किया जाता है। एम्फेटेमीन ड्रग्स न्यूरोट्रांसमीटर नॉरएड़ीनालिन के प्राव को प्रेरित करती है जो मस्तिष्क में तंत्रिका क्रिया बढ़ा देता है तथा व्यक्ति को सचेत बनाये रखता है। अधिक मात्रा में अथवा लगातार लेने पर शरीर में कम्पन (trernor), पसीना आना, दुश्चिंता, सोने में परेशानी, उच्च रक्तचाप, विभ्रम उत्पन्न हो जाते हैं। यह ड्रग शारीरिक निर्भरता (physical dependence) पैदा कर देती है। 

बेंजोडायजेपीन (Benzodiazepine): बेजोडायजेपीन ड्रग्स, दुश्चिंता (anxiety), तनाव (stress) नींद न आना आदि रोगों के उपचार के लिए व्यापक रूप से प्रयोग की जाती हैं। इनका प्रबल शामक प्रभाव (sedative effect) होता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क की क्रिया को कम करती हैं तथा तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संचार को अवरोधित करती हैं। इनके दुष्प्रभाव हैं दिन में भी उनींदापन (drowsiness), भूलना, धीमी प्रतिक्रिया तथा शारीरिक व मनोवैज्ञानिक निर्भरता। 

लाइसर्जिक एसिड डाइएथिल एमाइड (Lysergic acid Diethylamide - LSD): यह एक विभ्रमकारी (hallucinogen) ड्रग है, जिसे एस्कोमाइसिटीज कवक क्लेवीसेप्स परप्युरिया (Claviceps purpurea) से प्राप्त किया जाता है। इस ड्रग का कोई चिकित्सीय उपयोग नहीं है। LSD विभ्रम के अतिरिक्त अनेक शारीरिक व मानसिक दुष्प्रभाव उत्पन्न करती है। इसके भी प्रमाण हैं कि LSD क्रोमोसोमों को क्षति पहुँचाती हैं।

तम्बाकू (Tobacco) 
तम्बाकू के पौधे निकोटिआना टोबेकम (Nicotiana tobacum) की शुष्क पत्तियाँ तम्बाकू (tobacco) कहलाती हैं। तम्बाकू के पौधों को दुनिया भर के अनेक देशों में उगाया जाता है। इसका प्रयोग धूम्रपान (smoking) में, चबान में (tobacco chewing) तथा सूंघने (snuff) में करोड़ों लोगों द्वारा किया जाता है। पिछले 400 से भी अधिक वर्षों से इसका उपयोग होता आ रहा है। तम्बाकू का सेवन और खतरनाक ड्रग्स के सेवन का रास्ता खोल देता है। तम्बाकू में एक घातक एल्केलॉइड निकोटिन (nicotine) पाया जाता है। निकोटीन, एड्रीनल ग्रन्थि को एड्रीनेलिन व नॉर एडीनेलिन हामोंन रक्त में मुक्त करने के लिए प्रेरित करता है। यह दोनों रक्तचाप (blood pressure) बढ़ाते हैं व हृदय दर (heart rate) तीन कर देते है।

निकोटिन ही तम्बाकू का निर्भरता उत्पन्न करने वाला रसायन है। निकोटिन का कोई चिकित्सीय प्रयोग नहीं है। इसके कुछ व्युत्पन्न पेस्टीसाइड्स के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। निकोटिन रक्त वाहिकाओं को कड़ी (stiff) व संकुचित बनाता है जिससे १ ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है। यह एक उद्दीपक की तरह कार्य करता है। निकोटिन के अतिरिक्त तम्बाकू में अनेक कैसरकारी (carcinogenic) पदार्थ होते हैं। तम्बाक की प्रयोग की गई मात्रा, तम्बाकू के प्रयोग की अवधि तथा कैसर की सम्भावना का सीधा सम्बन्ध है। 

धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों के कैंसर (lung cancer), मूत्राशय का। कैंसर (bladder cancer), गुर्दो का कैंसर (kidney cancer) व वि पैक्रियास के कैसर (Pancreatic cancer) का खतरा होता है। तम्बाकू का किसी भी रूप में प्रयोग करने वालों के लिए मुखीय कैंसर (oral cancer), प्रसनी कैंसर (cancer of pharynx) आदि का भी खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान से जुड़ी अन्य बीमारियाँ हैं ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), एम्फीसीमा (emphysema), हदयी रोग या कोरोनरी हार्ट डिसीज, पेट के अल्सर (gastriculcer) आदि। तम्बाकू चबाने वालों में मुंह का कैसर (oral cancer) विकसित हो जाता है। 

श्वास नलिकाओं में शोथ (inflammation of the bronchi) ब्रोंकाइटिस कहलाता है जबकि फेफड़ों की कूपिकाओं (alveoli) का क्षतिग्रस्त होना एम्फीसीमा कहलाता है। इससे साँस लेने में परेशानी होती है व साँसें छोटी हो जाती है। एम्फीसीमा का प्रमुखतम कारण, प्रायः एकमात्र कारण धूम्रपान ही है। ब्रोंकाइटिस में श्वसन मार्ग पतला हो जाने से श्वसन में कठिनाई होती है। धूम्रपान के कारण रक्त में कार्बन मोनोक्साइड (carbon monoxide - CO) की मात्रा बढ़ जाती है जिससे हीमोग्लोबिन की आक्सीजन परिवहन क्षमता कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में हीमबद्ध आक्सीजन (haembound oxygen) की सान्द्रता कम हो जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। 

जब कोई सिगरेट का पैकेट खरीदता है तो यह नहीं हो सकता कि उसकी निगाह पैकेट पर छपी उस वैधानिक चेतावनी पर न पड़े जो उसे धूम्रपान के खतरों से आगाह करती है और बताती है यह किस प्रकार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन फिर भी समाज में, युवा और बुजुर्ग दोनों ही के बीच धूम्रपान का खूब चलन है। आधुनिक युवक - युवतियों को सिगरेट में क्या 'कूल' नजर आ रहा है यह समझ से परे है। जब किसी लतकारी (habit forming) पदार्थ के दुष्प्रभाव वैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट हो गये हों तब भी उसका प्रयोग जारी रखना, वह भी अपने स्वास्थ्य की कीमत पर किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं हो सकता। युवाओं और वृद्ध दोनों को इन आदतों से बचना चाहिए। निष्क्रिय धूनमान (Passive Smoking) घर के धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति व बच्चों के लिए भी हानिकारक होता है। अत: घर में धूम्रपान करना तो दोहरे नुकसान को निमन्त्रण देना है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 10. 
एड्स रोग का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिष्ट
(i) रोग जनक का नाम
(ii) रोग की पुष्टि हेतु परीक्षण का नाम 
(iiii) रोग के चार प्रमुख लक्षण 
(iv) रोकथाम के चार उपाय
(v) पश्चविषाणु की प्रतिकृति का चित्र।
उत्तर:
एड्स (AIDS) एड्स एक ऐसा गम्भीर संक्रमण है जो पिछले कई दशकों से सम्पूर्ण मानव जनसंख्या के लिए चुनौती बना हुआ है। आज की तारीख तक इस तेजी से फैलने वाले घातक संक्रमण का कोई प्रभावशाली उपचार उपलब्ध नहीं है। एड्स शब्द उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण या एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immun Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त नाम है। 

इतिहास (History): एड्स के बारे में सन् 1981 में पहली बार पता लगा। पिछले 34 वर्षों में यह सारी दुनिया में फैल गया है। सन् 1984 में फ्रांस में एड्स विषाणु का नाम लिम्फोडिनोपैथी एसोसिएटेड वाइरस (Lymphodenopathy associated virus; LAV) तथा अमेरिका में ह्यूमन T सैल लिम्फोट्रोफिक वाइरस (HTLV - III) रखा गया था। सन् 1986 में इसका पुनर्नामकरण HIV के रूप में किया गया। 

रोगजनक (Pathogen): एड्स का कारण ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वाइरस (Human Immunodeficiency virus; HIV) नामक विषाणु हैं। यह प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Immuno Deficiency Virus) एक पश्च विषाणु या रिट्रो वाइरस (retrovirus) है।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 3
रिट्रो वाइरस वह विषाणु होते हैं जिनमें नाभिकीय अम्ल आर.एन.ए. होता है, जो एन्जाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (reverse transcriptase) के साथ एक आवरण से ढका रहता है। 
एड्स विषाणु व्युत्क्रम अनुलेखन (reverse transcription) करने में सक्षम होता है। अर्थात यह अपने आनुवंशिक पदार्थ आर.एन.ए. से रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण कर लेता है। 

रोग संचरण विधि (Mode of Transmission): एड्स का संचरण निम्न प्रकार से होता है-

  1. रोगी/संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क (Sexual Contact) से। एड्स एक प्रमुख यौन संचरित रोग (Sexually Transmitted Disease) है। 
  2. संदूषित रक्त (Contaminated blood) व रक्त उत्पादों के आद्यान (transfusion) से। 
  3. संक्रमित/संदूषित सुइयों के साझा प्रयोग से। ड्रग्स का अंत: शिरीय (intra venous) कुप्रयोग करने वाले लोग समूह में एक ही सुई का कई बार प्रयोग करते हैं।
  4. संक्रमित माँ से अपरा (placenta) के माध्यम से उसके बच्चे में।

अन्य कम सामान्य विधि हैं, संक्रमित रेजर से, कान छिदवाने में, कृत्रिम वीर्य सेचन, अंग प्रत्यारोपण आदि। 
एड्स के अधिक खतरे वाले व्यक्ति (High risk people): निम्न समूहों में एड्स फैलने की सम्भावना अधिक रहती है-

  1. अनेक लोगों से लैंगिक सम्पर्क रखने वाले व्यक्ति। 
  2. अन्तर्शिरीय (intravenous) ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति। 
  3. ऐसे व्यक्ति जिन्हें बार - बार रक्ताद्यान (blood transfusion) की आवश्यकता होती है। 
  4. एच आई वी संक्रमित माँ द्वारा जन्मे बच्चे। 

निम्न द्वारा एड्स नहीं फैलता (AIDS does not spread by the following) 

  1. सामान्य सामाजिक सम्पर्क (ordinary social contact), जैसे- हाथ मिलाना, गले मिलना आदि। एड्स संक्रामक रोग ए (communicable disease) है लेकिन छुआछूत का रोग (contagicus disease) नहीं है, यह केवल शरीर द्रवों (body fluids) के सम्पर्क द्वारा फैलता है। 
  2. साथ खेलने, साथ - साथ पढ़ने, साथ काम करने से। 
  3. स्टेशनरी, खिलौने, मोबाइल, बर्तन, कपड़ों के साझा प्रयोग से। 
  4. एड्स मच्छरों द्वारा भी नहीं फैलता। खाँसने छीकने से एड्स नहीं व फैलता। 
  5. एड्स के रोगी के उपचार के समय यह नर्स या डाक्टरों में नहीं फैलता। 

अत: एड्स रोगियों की शारीरिक व मनोवैज्ञानिक कुशलता (well being) के द लिए यह आवश्यक है कि एड्स संक्रमण से जूझ रहे रोगियों को परिवार व र समाज में अलग - थलग न किया जाय।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 4
उद्भासन काल (Incubation Period): आप जान चुके हैं कि रोग जनक के शरीर में प्रवेश करने से लेकर रोग के प्रथम लक्षण उत्पन्न होने तक का समय उद्भासन काल (incubation period) कहलाता है। एड्स में यह अवधि कुछ महीनों से लेकर अनेक वर्षों (5 से 10 वर्ष) तक की हो सकती है। 
एड्स विषाणु का जीवन चक्र (Life cycle of AIDS Virus): मनुष्य के शरीर में प्रवेश के बाद एड्स विषाणु बृहत भक्षकाणु या मैक्रोफेज (macrophage) में प्रवेश करता है। इस कोशिका के अन्दर विषाणु का आर.एन.ए. जीनोम, रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम (reverse transcriptase enzyme) की मदद से डी.एन.ए. का निर्माण करता है। रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन, अर्थात आर.एन.ए. से डी.एन.ए. का निर्माण रिट्रो वाइरस की विशेषता होती है। इस प्रकार बना विषाणु का डी.एन.ए. पोषक कोशिका के डी.एन.ए. में समाविष्ट हो जाता है। यह समाविष्ट डी.एन.ए. अब संक्रमित पोषक कोशिका को विषाणु कण (virus particles) उत्पन्न करने के निर्देश देता है।

मेक्रोफेज, विषाणु उत्पन्न करना जारी रखते हैं तथा इस प्रकार विषाणुओं की एक फैक्टरी बन कर रह जाते हैं इसका अर्थ है मैक्रोफेज अपने काम न कर विषाणु डी.एन.ए. के निर्देशों का पालन कर सिर्फ विषाणुओं का निर्माण करती रहती है। इसके साथ ही विषाणु सहायक टी लिम्फोसाइट (helper T lymphocyte; TH) में प्रवेश कर वहाँ भी विषाणुओं का बनाना प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार बड़ी संख्या में रक्त में मुक्त हुए संतति विषाणु नई सहायक टी कोशिका को संक्रमित करते है व यह चक्र जारी रखते हैं। इन चक्रों से विषाणुओं की संख्या तेजी से बढ़ती है तथा साथ ही संक्रमित टी कोशिकाओं की संख्या में भी वृद्धि होती जाती है। फलस्वरूप रोगी के शरीर में सहायक T कोशिकाओं की संख्या में कमी आ जाती है। सहायक T कोशिका को T4 कोशिका या CD4 भी कहा जाता है। 

लक्षण (Symptoms): एड्स विषाणुओं के तीव्रता से गुणन व सहायक टी कोशिकाओं की संख्या में आई कमी से रोगी में निम्न लक्षण उत्पन्न होते है-
ज्वर (fever), अतिसार (diarrhoea) व वजन में कमी (weight loss)। सहायक टी लिम्फोसाइट में कमी होने से व्यक्ति ऐसे संक्रमणों से असित होने लगता है जिनसे स्वस्थ व्यक्ति अपने प्रतिरक्षी तन्त्र के कारण आसानी से बचा रहता है, जैसे- जीवाणु माइकोबैक्टीरियम (Mycobacterium) द्वारा होने वाले संक्रमण। परजीवी टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma) का संक्रमण। विषाणुओं व कवकों के संक्रमण। 

रोगी का प्रतिरक्षी तन्त्र इतना कमजोर हो जाता है अर्थात उसमें इतनी कमियाँ उत्पन्न हो जाती है कि वह किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने में असमर्थ हो जाता है। उसे प्राय: कापोसी सारकोमा व लिम्फोमा भी हो जाते हैं। एड्स रोग में वास्तव में स्वयं के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं होते, रोगी में उन रोगों के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे वह द्वितीयक रूप से संक्रमित हुआ है, जैसे-टी.बी. के लक्षण, फ्लू के लक्षण, पेचिश के लक्षण, आदि। इसीलिए एड्स एक संलक्षण (Syndrome) अर्थात लक्षणों का समूह है। एड्स रोगी में पाये जाने वाले ऐसे लक्षण अवसरवादी संक्रमणों (opportunistic infections) के होते हैं। (ऐसे संक्रमण जो सामान्य प्रतिरक्षी तन्त्र वाले व्यक्तियों को प्रभावित नहीं करते)। 

जाँच (Diagnosis): व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली एड्स की एक आँच विधि एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनो सॉरबेंट ऐसे (Enzyme Linked Immuno - sorbent Assay; ELISA) है। लिम्फ नोडों का बड़ा हो जाना तेजी से बिना कारण के वजन में कमी, प्रारम्भिक संकेत हैं जिनकी पुष्टि रक्त में एच आई वी एन्टीजनों के विरुद्ध बनी एन्टीबॉडीज की जाँच से होती है। 

उपचार (Treatment): एड्स का स्थायी उपचार आज तक उपलब्ध नहीं है। एड्स रोगी को एन्टी रेट्रो वाइरल (anti retroviral) औषधियाँ दी जाती है लेकिन यह आंशिक रूप से ही लाभकारी हैं तथा मृत्यु को रोक नहीं सकती। एड्स लाइलाज (incurable) है। एन्टीवाइरल के साथ कुछ औषधियाँ प्रतिरक्षी तन्त्र को उत्तेजित करने के लिए (Immuno stimulative) भी दी जाती है। कुछ प्रख्यात औषधि हैं, जिडोवुडीन (zidovudine), एजिथमिडीन (Azithamidine) AZT आदि।

एड्स की रोकथाम (Prevention of AIDS): चूंकि एड्स एक लाइलाज रोग है अत: इसकी रोकथाम ही सर्वोत्तम विकल्प है। एक कहावत "Dont die of ignorance" अर्थात अज्ञानता के कारण मत मरो एड्स के मामले में सटीक है। एड्स हमारे सचेतन व्यवहार की लापरवाही से फैलता है। यह न्यूमोनिया या टायफॉइडं की तरह अनजानी गलती या संयोग से होने वाला रोग नहीं है। अगर कोई इससे बचना चाहता है तो वह आसानी से बच सकता है। एड्स का होना 'आ बैल मुझे मार' वाली स्थिति को भी सही ठहराता है। अनजान व्यक्ति से लैगिंक सम्पर्क न कर एड्स से आसानी से बचा जा सकता है। यही एड्स संचरण के प्रमुख कारणों में से एक है। रक्ताद्यान के मामलों में व संक्रमित माँ से शिशु को होने वाले संक्रमण सही निगरानी न होने के कारण होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एड्स की रोकथाम हेतु निम्न उपाय किये व सुझाये हैं-

  1. लोगों को एड्स के कारण, संचरण व रोकथाम के उपायों की समुचित जानकारी देकर एड्स से काफी हद तक बचा जा सकता है। 
  2. अनजान लोगों से लैंगिक सम्पर्क न करना अर्थात संयमित जीवन द्वारा। 
  3. रक्ताधान के समय संदूषण रहित रक्त की उपस्थिति सुनिश्चित कराकर, (रक्ताधान में HIV मुक्त रक्त के प्रयोग से ) इंट्रावीनस औषधि केवल डिस्पोजेबल सुई द्वारा। 
  4. सभी प्रकार के अस्पतालों में सिर्फ एक बार प्रयोग की जाने वाली (disposable) सुइयों के प्रयोग द्वारा इससे बचा जा सकता है। 
  5. ड्रग्स के कुप्रयोग पर रोक लगाकर, कंडोम का मुफ्त वितरण कर, सुरक्षित सैक्स (Safe Sex) अपनाकर तथा सम्भावित रोगियों में शीघ्रता से एड्स की जाँच करा के इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। रेजर,

टूथब्रश आदि किसी से साझा न करें। 
अपने देश में राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन (National AIDS Control Organisation; NACO) तथा अन्य गैर सरकारी संगठन (NGO) एड्स के विषय में जागरूकता फैलाने के लिए काफी कार्य कर रहे हैं। 

एड्स के संक्रमण को छिपाना समस्या का समाधान नहीं है चूंकि इससे संक्रमण कई अन्य लोगों तक फैल सकता है। एड्स रोगियों को मदद, सहानुभूति व इलाज की आवश्यकता है, समाज द्वारा उनकी उपेक्षा उचित नहीं। समाज व चिकित्सा समुदाय दोनों के सहयोग से इस पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।

प्रश्न 11.
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 13
उपर्युक्त आरेख का अध्ययन कीजिए जिसमें मानवों में HIV की प्रतिकृति दर्शायी है तथा उसके अनुसार निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 
(i) आवरण की रासायनिक प्रकृति 
(ii) x पर कार्य करते हुए एंजाइम B का नाम लिखिए जिससे C अणु बन जाता है। 
(iii) परपोषी कोशिका D का नाम लिखिए जिस पर HIV मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद सर्वप्रथम आक्रमण करता है। 
(iv) इन दो भिन्न कोशिकाओं के नाम लिखिए जिन पर आगे चलकर नए वाइरस E आक्रमण करते हैं।
उत्तर:
(i) आवरण A विषाणु का प्रोटीन का बना आवरण है।
(ii) X विषाणु का आर एन ए है। इस पर काम करने वाला एंजाइम B रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase) है। C - विषाणु का डी.एन.ए. है।
(iii) D = मनुष्य की मैक्रोफेज (macrophage)।
(iv) नये विषाणु पुन: मैक्रोफेज तथा सहायक टी कोशिका (Helper T Cells) पर आक्रमण करते हैं। 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 12.
(a) सक्रिय प्रतिरक्षा तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
(b) मानव समष्टि को स्वस्थ रखने के लिए टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण के योगदान पर टिप्पणी लिखिष्ट।
उत्तर:
(a) सक्रिय व निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Active and Passive Immunity)
सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity): जब प्रतिरक्षियों (एन्टीबॉडीज) का उत्पादन स्वयं उसी व्यक्ति की कोशिकाओं द्वारा होता है तब यह सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। रोगजनकों के शरीर में प्रवेश करने अथवा टीकाकरण (Vaccination) के कारण बी लिम्फोसाइट की प्लाज्मा कोशिकाएं एन्टीबॉडीज उत्पादित करने लगती हैं। एन्टीजनों के सम्पर्क में आने के कारण शरीर में एन्टीबॉडीज का उत्पादन सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाता है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी गति से विकसित होती है तथा इसका पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित होने में समय लगता है।

निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity): निष्क्रिय प्रतिरक्षा में किसी एन्टीजन के लिए एन्टीबॉडीज का निर्माण किसी अन्य पृष्ठधारी जन्तु (Vertebrate animal) जैसे - घोड़े आदि के शरीर में किया जाता है। अन्य जन्तु के शरीर में एन्टीजन प्रविष्ट कराने पर जन्तु में एन्टीबॉडीज का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है। इन जन्तुओं के शरीर से इन एन्टीबॉडीज को प्राप्त कर आवश्यकता के समय शुद्धीकृत रूप में, मनुष्य के शरीर में इन्जैक्ट कराया जाता है। चूंकि एन्टीबॉडीज का निर्माण मनुष्य के शरीर में नहीं होता, उसे यह बाहर से प्राप्त होते हैं अत: इस प्रकार की प्रतिरक्षा को निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहा जाता है। घातक जानलेवा रोगों जैसे - टिटेनस, रेबीज तथा सर्प विष से शीघ्र छुटकारा पाने की आवश्यकता होती है।

इनमें सक्रिय प्रतिरक्षा विकसित होने का इन्तजार नहीं किया जाता। अत: निष्क्रिय प्रतिरक्षा की मदद ली जाती है। निष्क्रिय प्रतिरक्षा का एक और रूप है। स्तनपान कराते समय माँ अपने शरीर में बनी कुछ विशिष्ट एन्टीबॉडीज दुग्ध के माध्यम से शिशु को प्रदान करती है। शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माँ के स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा हल्का पीला द्रव कोलोस्ट्रम (Colostrum) एन्टीबॉडीज से समृद्ध होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में (IgA) उपस्थित होती है जिससे शिशु की सम्भावित संक्रमणों से रक्षा की जा सके। कुछ एन्टीबॉडीज अपरा (Placenta) के माध्यम से गर्भावस्था के समय ही शिशु को स्थानान्तरित कर दी जाती है।

(b) टीकाकरण और प्रतिरक्षीकरण (Vaccination and Immunization) 
टीका (Vaccine) टीका या वैक्सीन वह उत्पाद है जो किसी रोग के विरुद्ध प्रतिरक्षा (immunity) पैदा करता है। टीके रोग विशिष्ट (diseases pecific) होते हैं व किसी एक रोग के लिए ही प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। यह शरीर के प्रतिरक्षी तन्त्र को किसी जीवाणु, विषाणु, जीवाणु विष के विरुद्ध प्रतिरक्षी अनुक्रिया उत्पन्न करने हेतु प्रेरित कर देते हैं। प्रतिरक्षी तन्त्र इन रोगाणुओं के विरुद्ध एन्टीबॉडीज बनाना प्रारम्भ कर देता है। यह एन्टीबॉडीज व स्मृति कोशिकाएं व्यक्ति के शरीर में रहती हैं। अगर समान प्रकार का रोगजनक बाद में व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तब प्रतिरक्षी तन्त्र त्वरित रूप से द्वितीयक अनुक्रिया (secondary response) प्रारम्भ कर देता है जो रोग जनक या इसके विष को तुरन्त समाप्त कर देते हैं। टीकों में मृत रोगजनक (dead pathogens) या निर्बलीकृत (weeked) रोगजनक, जो रोग पैदा करने में सक्षम नहीं होते का प्रयोग किया जाता है ताकि यह स्वयं रोग उत्पन्न न कर दें। 

जीवित क्षीणीकृत जीव (live attenuated organisms) रोगजनक के वह विभेद हैं जिन्हें हानिरहित बना दिया गया है। कुछ टीकों में रासायनिक रूप से रूपान्तरित जीवाणु विष (Bacterial toxins) होते हैं। यहाँ भी रूपान्तरण इनके खतरनाक गुणों को समाप्त कर देता है। खसरा, मम्पस च रूबैला (Measles, Mumps and Rubella - MMR), पोलियो, डिफ्थीरिया आदि में मृत या क्षीण रोगजनक टीके के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। हिपेटाइटिस बी के टोके आनुवंशिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार होते हैं। अब एंटीजेनिक प्रोटीन (antigenic proteins) के टीके अधिक प्रचलित हैं। टौके इन्जैक्शन के रूप में या मुखीय (oral) रूप से दिये जाते हैं। डर्मिस में लगाने वाले व अन्तः नासिकीय (Intranasal) टीके भी प्रचलित हैं। टीके, बी व टी स्मृति कोशिकाओं (B or T memory cells) भी उत्पन्न कर देते हैं। पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक के द्वारा आज रोगजनकों के एंटीजन पॉलीपेप्टाइड (antigenic polypeptide) को आसानी से बनाया जाता है। इनका उत्पादन जीवाणु व यीस्ट कोशिका द्वारा किया जाता है जो आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित (genetically engineered) होते हैं। इस प्रकार के टीके अधिक प्रभावी (effective) होते है तथा उनसे किसी प्रकार के रोग होने की कोई संभावना नहीं होती।

बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित) 

प्रश्न 1. 
मलेरिया के सामान्य लक्षण कंपकंपी तथा ज्वर हैं, यह लक्षण उत्पन्न होते हैं जब-
(a) स्पोरोजोइट रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं 
(b) स्पोरोजोइट यकृत कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। 
(c) क्रिप्टोजाइट रक्ताणुओं में प्रवेश करते हैं
(d) रक्ताणुओं से मेरोजोइट मुक्त होते हैं। 
उत्तर:
(d) रक्ताणुओं से मेरोजोइट मुक्त होते हैं। 

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प्रश्न 2. 
प्रतिरक्षी उत्पादित होते हैं-
(a) प्रद्रव्यी प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा 
(b) महाभक्षकाणुओं द्वारा 
(c) टी लसिकाणुओं द्वारा
(d) न्यूट्रोफिल्स द्वारा। 
उत्तर:
(a) प्रद्रव्यी प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा 

प्रश्न 3. 
निम्न में से कौन - सा रोग एलर्जी द्वारा होता है?
(a) कुष्ठ रोग
(b) टायफॉइंड
(c) अस्थमा
(d) टिटेनस। 
उत्तर:
(c) अस्थमा

प्रश्न 4. 
निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक तकनीक में x किरणों का प्रयोग किया जाता है?
(a) PET
(b) सीटी स्कैन 
(c) इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ 
(d) सोनोग्राफी। 
उत्तर:
(b) सीटी स्कैन 

प्रश्न 5. 
हेरोइन प्राप्त होती है-
(a) पेपेवर सोम्नीफेरम से 
(b) केनाबिस सेटाइवा से
(c) इरिथ्रोजाइलान कोका से 
(d) थिया साइनेन्सिस से। 
उत्तर:
(a) पेपेवर सोम्नीफेरम से 

प्रश्न 6. 
कैनाबिस सेटाइवा से प्राप्त होता है-
(a) भांग
(b) गाँजा 
(c) चरस
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 7. 
निम्न में से कौन - सा पदार्थ विभ्रमकारी है? 
(a) एल एस डी
(b) धतूरा 
(c) एट्रोपा वेलाडोना 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 8. 
एल्कोहल है, एक-
(a) अवसादक (depressant) 
(b) दर्द निवारक (pain killer) 
(c) दुश्चिताहारी (Anti anxiety)
(d) उत्तेजक। 
उत्तर:
(a) अवसादक (depressant) 

प्रश्न 9. 
किस संक्रामक रोग का पूर्ण उन्मूलन किया जा चुका है-
(a) टी बी
(b) फाइलेरिया 
(c) चेचक
(d) फाल्सीपैरम मलेरिया
उत्तर:
(c) चेचक

प्रश्न 10. 
किसके सेवन से लिवर सिरोसिस (Liver cirrhoesis) हो सकती है? 
(a) भांग
(b) अफीम 
(c) तम्बाकू
(d) एल्कोहॉल। 
उत्तर:
(d) एल्कोहॉल।

प्रश्न 11. 
कौन - सी कोशिकाएँ बी कोशिकाओं को एंटीबाहीज निर्माण हेतु प्रेरित करती हैं? 
(a) T मारक कोशिकाएँ 
(b) संदन कोशिकाएँ
(c) T सहायक कोशिकाएँ 
(d) स्टेम सैल्स। 
उत्तर:
(c) T सहायक कोशिकाएँ 

प्रश्न 12. 
विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day) मनाया जाता है-
(a) 11 मार्च को 
(b) 7 अप्रैल को
(c) 28 फरवरी का 
(d) 1 दिसम्बर को। 
उत्तर:
(d) 1 दिसम्बर को। 

प्रश्न 13. 
यूफोरिया के साथ ऊर्जा में वृद्धि की अनुभूति पैदा करने वाली ड्रग्स है-
(a) मार्फीन
(b) एल एस डी 
(c) कैनाबिनाइड 
(d) कोकेन। 
उत्तर:
(d) कोकेन। 

प्रश्न 14. 
लाइसर्जिक एसिड हाई हथाइल एमाइड किस प्रकार की ड्रग है?
(a) अवसादक
(b) उत्तेजक 
(c) विधमकारी
(d) प्रशामक। 
उत्तर:
(c) विधमकारी

प्रश्न 15. 
न्यूरोट्रांसमिटर होपामीन के संचरण में खलल डालने वाली ड्रग है-
(a) कोकेन 
(b) माफीन
(c) बेजोडाएजीपौन 
(d) मारिजुएना। 
उत्तर:
(a) कोकेन 

प्रश्न 16. 
स्वस्थ कोशिकाओं को विषाणु संक्रमण से बचाते हैं-
(a) इण्टरफेरॉन
(b) एन्टीबॉडीज 
(c) एन्टीबायोटिक्स 
(d) एन्टीजन। 
उत्तर:
(a) इण्टरफेरॉन

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प्रश्न 17. 
किस ड्रग को स्मैक (smack) के नाम से जाना जाता है? 
(a) भांग
(b) चरस 
(c) एल एस डी 
(d) हेरोइन। 
उत्तर:
(d) हेरोइन। 

प्रश्न 18. 
वजन बढ़ाने व पेशीय वृद्धि व शक्तिवर्धक औषधि के रूप में किस ड्रग का खिलाड़ियों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है? 
(a) एनाल्जेसिक
(b) डाइयूरेटिक्स 
(c) एनाबॉलिक स्टीराइड्स 
(d) उत्तेजक जैसे एम्फोटामीन। 
उत्तर:
(c) एनाबॉलिक स्टीराइड्स 

प्रश्न 19. 
अन्तः शिरीय (इन्ट्रावीनस) ड्रग्स लेने वालों को खतरा रहता है-
(a) एड्स का
(b) हिपेटाइटिस बी का 
(c) लिवर सिरोसिस का 
(d) उपर्युक्त a व b दोनों का। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त a व b दोनों का। 

प्रश्न 20. 
एड्रीनल प्रन्थि को उत्तेजित करने वाला पदार्थ है-
(a) निकोटीन
(b) बाबींच्चुरेट 
(c) बेन्जोडाएजीपीन 
(d) कैनाबिनाइड्स। 
उत्तर:
(a) निकोटीन

प्रश्न 21. 
निम्न में से कौन - सा एक सामान्य एलर्जन (Common allergen) है?
(a) परागकण
(b) किलनी (mites) 
(c) मनुष्य की त्वचा कोशिकाएँ 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 22. 
रयुमेटाइड अर्थराइटिस है, एक-
(a) प्रतिरक्षी न्यूनता रोग 
(b) संक्रामक रोग
(c) स्वप्रतिरक्षी रोग 
(d) हार्मोनल रोग। 
उत्तर:
(c) स्वप्रतिरक्षी रोग 

प्रश्न 23. 
निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रायः निम्न में से किस अवस्था में दी जाती है?
(a) सर्पदंश
(b) डिफ्थीरिया 
(c) रेबीज
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 24. 
निम्न में से प्राथमिक लिम्फ अंग है-
(a) तिल्ली (spleen) 
(b) थाइमस (thymus) 
(c) टांसिल (tonsil)
(d) पेयर पेचेज (Payer Patches)। 
उत्तर:
(d) पेयर पेचेज (Payer Patches)। 

प्रश्न 25. 
कोलोस्ट्रम में पाई जाने वाली एन्टीबॉडीज हैं-
(a) IgA
(b) IgE 
(c) IgG
(d) IgM 
उत्तर:
(a) IgA

HOTS Higher Order Thinking Skill 

प्रश्न 1. 
एक बार विषाणु जन्य रोग होने पर उनके लिए प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है अर्थात वह एक ही बार होते हैं फिर जुकाम कैसे बार - बार हो जाता है? 
उत्तर:
यह सही है कि विषाणु जन्य रोग प्राय: जीवन काल में एक ही बार होते है। लेकिन मनुष्य में जुकाम (common cold) विषाणुओं के 200 से भी अधिक विभेदों द्वारा होता है। एक बार जुकाम हो जाने पर उस विषाणु के लिए प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है लेकिन अगली बार वह दूसरे प्रकार के विषाणुओं से हो सकता है। 

प्रश्न 2. 
विषाणु रोगों में एन्टीबायोटिक्स कारगर नहीं होते लेकिन फिर भी अनेक बार तीन जुकाम या अन्य विषाणुजन्य रोगों में चिकित्सक एन्टीबायोटिक्स देते हैं। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
विषाणु में कोशिकीय संरचना (cellular structure) नहीं होती अत: एन्टीबायोटिक द्वारा उनके किसी जैवरासायनिक पथ को नहीं रोका जा सकता। फलस्वरूप एन्टीबायोटिक बेअसर रहती है। कुछ विषाणु रोगों में जीवाणुओं द्वारा होने वाले द्वितीयक संक्रमण (secondary infection) को रोकने के लिए एन्टीबायोटिक दी जाती है, क्योंकि विषाणु संक्रमण के चलते द्वितीयक जीवाणु संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। 

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प्रश्न 3. 
शिशुओं को केवल बोतल का दूध देने से क्या हानि है? 
उत्तर:
शिशुओं (infants) को माँ के दूध के माध्यम से पोषण के अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण एन्टीबॉडीज (antibodies) मिलती हैं जो उन्हें अनेक संक्रमणों से बचाती हैं। प्राकृतिक निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive immunity) का यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। दूसरे शिशुओं को हर बार बोतल का दूध देने पर संक्रमण का खतरा बना रहता है, यह संक्रमण दूध या संदूषित बोतल के कारण होता है। 

प्रश्न 4. 
कुछ गम्भीर एलर्जी जानलेवा हो जाती है। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
श्वसन तन्त्र की एलर्जी के कारण श्वसन मार्ग (Respiratory passage) में शोथ (inflammation) उत्पन्न हो जाता है। इस सूजन के कारण श्वसन मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तथा साँस लेने में परेशानी होने लगती है। अधिक सूजन होने पर यह अवस्था एनाफाइलेक्टिक शॉक (Anaphylactic shock) में बदल जाती है व जानलेवा बन जाती है।

प्रश्न 5. 
एल्कोहॉल के साथ अन्य ड्रग्स का मेल खतरनाक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
एल्कोहॉल के साथ अन्य ड्रग्स के लेने पर उनके अवसादक या शामक प्रभाव में कई गुना वृद्धि हो जाती है। एन्टीहिस्टामाइन या एलर्जी की औषधियाँ कुछ उनींदापन (drowsiness) उत्पन्न करती हैं लेकिन एल्कोहॉल के साथ उन्हें लेने पर उनके इस प्रभाव में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है। कुछ ड्रग्स के साथ एल्कोहॉल का घातक प्रभाव होता है। 

प्रश्न 6. 
टीकों की बूस्टर डोज का क्या महत्त्व है? 
उत्तर:
बूस्टर डोज (Booster dose) द्वितीयक अनुक्रिया उत्पन्न करती है जो तीव्र व त्वरित होती है। इससे अच्छी प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है।

NCERT EXEMPLAR PROBLEMS

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1. 
पौधों व जन्तुओं में रोग पैदा करने वाले जीव कहलाते हैं-
(a) पैथोजन
(b) वैक्टर 
(c) इन्सैक्ट
(d) वर्स। 
उत्तर:
(a) पैथोजन

प्रश्न 2. 
टॉयफाइड की जाँच के लिए किया जाने वाला परीक्षण है-
(a) ELISA परीक्षण 
(b) ESR परीक्षण
(c) PCR परीक्षण 
(d) Widal परीक्षण। 
उत्तर:
(d) Widal परीक्षण। 

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प्रश्न 3. 
रोगों को प्रमुखतः संक्रामक व असंक्रामक रोगों में विभाजित किया गया है। नीचे दिये गये रोगों में से संक्रामक रोगों को पहचानिए
(i) कैंसर
(ii) इन्फ्लु एंजा 
(iii) एलर्जी
(iv) चेचक। 
(a) (i) व (ii)
(b) (i) व (iii) 
(c) (iii) व (iv) 
(d) (ii) व (iv)
उत्तर:
(d) (ii) व (iv)

प्रश्न 4. 
स्पोरोजोइट जो एक मादा एनाफिलीज मच्छर द्वारा मनुष्य को काटने पर संक्रमण पैदा करते हैं, कहाँ बनते हैं? 
(a) मनुष्य के यकृत में 
(b) मचकर की RBC में
(c) मच्छर की आंत में 
(d) मनुष्य की आंत में। 
उत्तर:
(c) मच्छर की आंत में 

प्रश्न 5. 
चिकनगुनिया (Chikunguniya) रोग का संचरण किसके द्वारा होता है? 
(a) घरेलू मक्खी
(b) एडीज मच्छर 
(c) कॉकरोच
(d) मादा एनाफिलीजा 
उत्तर:
(b) एडीज मच्छर 

प्रश्न 6. 
मैलिगर्नेट ट्यूमर में कोशिकाएं गुणन करती हैं, तेजी से बढ़ती है तथा शरीर के अन्य भागों तक पहुंचकर नये ट्यूमर बनाती हैं। रोग की यह अवस्था कहलाती है-
(a) मेटाजेनेसिस
(b) मेटास्टेसिस 
(c) टेराटोजेनेसिस 
(d) माइटोसिस। 
उत्तर:
(b) मेटास्टेसिस 

प्रश्न 7. 
निम्न में से कौन - सा/कौन - से यूमेटाइड अर्थराइटिस के कारण हैं। सही विकल्प का चुनाव कीजिए
(i) लिम्फोसाइट अधिक सक्रिय हो जाती हैं 
(ii) शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर आक्रमण करता है 
(iii) शरीर में अधिक एंटीजन बनते है। 
(iv) शरीर की स्वयं की कोशिकाओं का बाहा अणुओं या रोगजनकों से भिन्नित करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। 
(a) (i) व (ii)
(b) (i) व (iv) 
(c) (iii) व (iv) 
(d) (i) व (iii)
उत्तर:
(b) (i) व (iv) 

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प्रश्न 8. 
एड्स HIV के कारण होती है। निम्न में से कौन - सा HIV संचरण का तरीका नहीं है?
(a) संदूषित रक्ताधान 
(b) संक्रमित सुईयों को साझा करना 
(c) संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाना
(d) संक्रमित व्यक्ति से लैगिक सम्पर्क। 
उत्तर:
(c) संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाना

प्रश्न 9. 
स्मैक एक इग है जो प्राप्त होती है-
(a) पेपेवर सोम्नीफेरम के लेटेक्स से 
(b) कैनाबिस सेटाइवा की पत्तियों से 
(c) धतूरा के पुष्पों से
(d) इरिथ्रोजायलॉन कोका के फलों से। 
उत्तर:
(a) पेपेवर सोम्नीफेरम के लेटेक्स से 

प्रश्न 10. 
विषाणुओं से संक्रमित कोशिकाओं द्वारा निर्मित पदार्थ जो अन्य कोशिकाओं को संक्रमण से बचाता है-
(a) सेरोटोनिन
(b) कोलोस्ट्रम 
(c) इण्टरफेरॉन
(d) हिस्टामाइन। 
उत्तर:
(c) इण्टरफेरॉन

प्रश्न 11. 
तम्बाकू के सेवन से एड्रीनेलीन व नार एड्रीनेलीन के साव का प्रेरण हो जाता है। तम्बाकू का कौन-सा घटक इसके लिए उत्तरदायी है?
(a) निकोटीन
(b) टैनिक अम्ल 
(c) क्यूरेमिन
(d) कैटेकिना 
उत्तर:
(a) निकोटीन

प्रश्न 12. 
सर्प विष के विरुद्ध बने एन्टी वेनम (antivenom) में होता है-
(a) एन्टीजन
(b) एन्टीजन एन्टीबाडी जटिल 
(c) एन्टीबॉडीज
(d) एंजाइम। 
उत्तर:
(c) एन्टीबॉडीज

प्रश्न 13. 
निम्न में से कौन - सा लिम्फ ऊतक नहीं है?
(a) तिल्ली
(b) टांसिल 
(c) पेक्रियास
(d) थाइमसा 
उत्तर:
(c) पेक्रियास

प्रश्न 14. 
निम्न में से कौन - सी ग्रन्थि जन्म के समय बड़ी होती है लेकिन उम्र के साथ आकार में घटती है-
(a) पाइनियल
(b) पिट्यूटरी 
(c) थाइमस
(d) थाइराइड। 
उत्तर:
(c) थाइमस

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प्रश्न 15. 
हीमोजोइन है-
(a) हीमोग्लोबिन का पूर्ववर्ती 
(b) स्ट्रेप्टोकोकस का विष 
(c) प्लाज्मोडियम प्रजाति का विष
(d) हीमोफिलस प्रजाति का विष। 
उत्तर:
(c) प्लाज्मोडियम प्रजाति का विष

प्रश्न 16. 
निम्न में से कौन - सा रिंग वर्म का रोग जनक नहीं है?
(a) माइक्रोस्पोरम 
(b) ट्राइकोफाइटॉन
(e) एपीडोफाइटॉन 
(d) मेक्रोस्पोरम। 
उत्तर:
(d) मेक्रोस्पोरम। 

प्रश्न 17. 
सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित व्यक्ति होता है-
(a) मलेरिया के लिए अधिक भेद्य 
(b) टाइफाइड के लिए अधिक भेद्य 
(c) मलेरिया के लिए कम भेद्य 
(d) टायफाइड के लिए कम भेध।
उत्तर:
(c) मलेरिया के लिए कम भेद्य 

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
एक व्यक्ति का प्रतिरक्षी तन्त्र सन्दमित (suppressed) है। ELISA परीक्षण में उसमें एक रोगजनक की उपस्थिति का पता लगा-
(a) उस रोग का नाम बताइये जिससे यह व्यक्ति संक्रमित है। 
(b) इसका रोग जनक क्या है।
(c) शरीर की कौन - सी कोशिकाएँ रोगजनक द्वारा प्रभावित होती है।
उत्तर:
(a) एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिन्ड्रोम (AIDS)
(b) ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएंसी वाइरस (HIV)
(c) हेल्पर टी लिम्फोसाइट (Helper T lymphocytes)। 

प्रश्न 2. 
प्रतिरक्षी तन्त्र पर क्या प्रभाव होगा अगर व्यक्ति के शरीर से थाइमस ग्रन्थि निकाल दी जाये। 
उत्तर:
थाइमस अन्धि प्राथमिक लिम्फ ऊतक है। अपरिपक्व टी - लिम्फोसाइट्स का परिपक्वन व भिन्नन थाइमस प्रन्धि में ही होता है। लेकिन यह सब जन्म से पहले या जन्म के कुछ वर्ष बाद तक होता है। बड़े होकर थाइमस प्रन्थि छोटी हो जाती है। बहुत बड़े व्यक्ति में थाइमस निकालने का अधिक प्रभाव नहीं होगा लेकिन बच्चों के शरीर से थाइमस निकालने पर उनका प्रतिरक्षी तन्त्र कमजोर हो जायेगा तथा वह संक्रमणों के लिए भेद्य हो जाएंगे। 

प्रश्न 3. 
खाने के साथ अनेक सूक्ष्मजीव आहार नाल में प्रवेश करते हैं। इन रोगजनकों को शरीर में प्रवेश करने के लिए किन अवरोधकों का सामना करना पड़ता है। आप इस मामले में किस प्रकार की प्रतिरक्षा देखते हैं? 
उत्तर:
आहारनाल की श्लेष्मिक कला (mucous lining) रोग जनकों के लिए भौतिक अवरोध (physical barrier) का कार्य करती है। मुंह में उपस्थित लार के लाइसोजाइम तथा आमाशय का HCl अम्ल सूक्ष्मजीवों को मार देते हैं। यह कार्यिकीय अवरोध (physiological barrier) है। इस उदाहरण में सहज/ अविशिष्ट/जन्मजात प्रतिरक्षा कार्य करती है। 

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प्रश्न 4. 
अगर किसी व्यसनी व्यक्ति (addiet person) को ड्रग या एल्कोहॉल की नियमित खराक न मिले तब वह आहरण लक्षण (withdrawal symptoms) प्रदर्शित करता है। ऐसे कोई चार आहरण लक्षण बताइये। उत्तर:
दुश्चिंता (anxiety), थर्राहट व कम्पन (shakiness and tremors), जी मिचलाना (nausea), पसीने आना (sweating)।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
कैसर क्या है? एक कैंसर कोशिका सामान्य कोशिका से किस प्रकार भिन्न होती है। सामान्य कोशिका कैंसर कोशिका कैसे बन जाती है? 
उत्तर:
अनेक संबंधित बीमारियों का संग्रह ही कैंसर के नाम से जाना जाता है। सभी प्रकार के कैंसर में, शरीर की कुछ कोशिकाऐ बिना किसी रोक के विभाजित होती जाती है और आसपास के ऊतकों में फैलती है। कैंसर मानव शरीर में लगभग कहीं भी शुरू हो सकता है, जो कि खरबों कोशिकाओं से बना है। आम तौर पर, मानव कोशिकाएं बढ़ती जाती हैं और शरीर को नई कोशिकाओं के रूप में बांटते हैं क्योंकि शरीर की उन्हें जरूरत होती है। जब सेल पुराने हो जाते हैं या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो वे मर जाते हैं, और नई कोशिकाएं उनकी जगह लेती हैं। हालांकि कैंसर में यह व्यवस्थित प्रक्रिया टूट जाती है ,कोशिकाएं जिन्हे ख़त्म हो जाना चाहिए वे असामान्य, पुरानी या क्षतिग्रस्त कोशिकाएं जीवित भी रहती हैं और अनावश्यक कोशिकाएं बनती जाती हैं। इन अतिरिक्त कोशिकाओं को ट्यूमर कहा जाता है।

कई कैंसर ठोस ट्यूमर का निर्माण करते हैं। रक्त कैंसर, जैसे कि ल्यूकेमिया, आम तौर पर ठोस ट्यूमर नहीं बनाते हैं
कैंसर ट्यूमर घातक (मेलिगनेन्ट)होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे पास के ऊतकों में फैल सकते है या उनपर आक्रमण कर सकते हैं। इसके अलावा, ये ट्यूमर बढ़ने के साथ-साथ, कुछ कैंसर की कोशिकाओं को रक्त से या लसीका तंत्र के माध्यम से शरीर में दूर के स्थानों की यात्रा कर सकते हैं और मूल ट्यूमर से नए ट्यूमर बना सकते हैं।

घातक (मेलिगनेन्ट) ट्यूमर के विपरीत, सौम्य (बेनाइन) ट्यूमर, आस-पास के ऊतकों में फैल या आक्रमण नहीं करते हैं। सौम्य (बेनाइन) ट्यूमर कभी-कभी काफी बड़ा हो सकता है, हालांकि जब हटाया जाता है, वे आमतौर पर वापस नहीं बढ़ते, जबकि घातक (मेलिगनेन्ट) ट्यूमर शरीर में कहीं बढ़ सकते है और प्राणघातक होते है।

कैंसर की कोशिका कई तरह से सामान्य कोशिकाओं से भिन्न होती है जिससे वे अनियंत्रित और आक्रामक होती है। एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि सामान्य कोशिकाओं की तुलना में कैंसर कोशिकाएं कम विशिष्ट हैं। सामान्य कोशिकाओं को विशिष्ट कार्यों के लिए बढ़ना पड़ता है जबकि कैंसर की कोशिकाएं किसी विशिष्ठ कार्य को अंजाम नहीं देती है। यह एक कारण है कि, सामान्य कोशिकाओं के विपरीत, कैंसर कोशिकाओं का बिना रोक के बंटना जारी रहता है। इसके अलावा, कैंसर कोशिका संकेतों को अनदेखा कर सकती हैं जो आम तौर पर कोशिकाओं को विभाजित करने को रोकने के लिए कहती हैं या जो प्रोग्राम की कोशिका मृत्यु, या एपोप्टोसिस नामक प्रक्रिया शुरू करते हैं, जो शरीर अनावश्यक कोशिकाओं से छुटकारा पाने के लिए उपयोग करता है।

कैंसर कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं, अणुओं और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने में सक्षम हो सकती हैं जो एक ट्यूमर के चारों ओर फैल जाती हैं-एक ऐसा इलाका जो कि 'माइक्रो एन्वॉयरन्मेंट' के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए, कैंसर कोशिकाएं ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के साथ ट्यूमर की आपूर्ति करने वाले रक्त वाहिकाओं को बनाने के लिए आसपास के सामान्य कोशिकाओं को प्रेरित कर सकती हैं, जिन्हें उन्हें बढ़ने की जरूरत होती है। ये रक्त वाहिकाओं ट्यूमर से अपशिष्ट उत्पादों को भी हटा देते हैं कैंसर की कोशिकाएं अक्सर प्रतिरक्षा प्रणाली, अंगों के एक नेटवर्क, ऊतकों और विशेष कोशिकाओं से बचने में सक्षम होती हैं जो शरीर को संक्रमण और अन्य स्थितियों से बचाती हैं। यद्यपि प्रतिरक्षा प्रणाली आम तौर पर शरीर से क्षतिग्रस्त या असामान्य कोशिकाओं को हटा देती है,परन्तु कैंसर कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली से छिप कर जीवित रह सकती हैं। ट्यूमर ,जीवित रहने और बढ़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, वे प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं की सहायता से, जिनका काम आम तौर पर ऐसे कोशिकाओं को रोकना होता है ,कैंसर कोशिकाएं ,उन्ही की सहायता से प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं को मारने से रोक भी सकती हैं।

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प्रश्न 2. 
कैनाबिनाइड्स किस पौधे से प्राप्त किये जाते हैं। दो कैनाबिनाइड्स का नाम लिखिए। शरीर का कौन - सा भाग कैनबिनाइड के सेवन से प्रभावित होता है? 
उत्तर:
ड्रग्स और एल्कोहॉल कुप्रयोग (Drugs and Alcohol Abuse) 
नवीनतम सर्वेक्षण व आँकड़ें बताते हैं कि ड्रग्स व एल्कोहाल का प्रयोग विशेषरूप से नवयुवकों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत एक विकासशील देश है। इसकी आधी आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है। किसी देश के युवा ही उस देश के भविष्य की तस्वीर बनाते हैं। अगर युवा ही दिशाहीन होकर ड्रग्स और एल्कोहल के जाल में फंस जाये तो इससे देश के विकास की गति मंद पड़ जाती है। वैयक्तिक रूप से भी यह एक गम्भीर समस्या है जिसके अनेक हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। इस सम्बंध में उचित शिक्षा व मार्गदर्शन युवाओं को इन हानिकारक आदतों से बचाने व उन्हें स्वस्थ जीवन शैली अपनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। 

इग्स का क्या अर्थ है? What is meant by drugs? 
ऐसा कोई भी रासायनिक पदार्थ जो शरीर के एक या अधिक अंगों के कार्य में बदलाव ला दे या किसी रोग की प्रक्रिया को परिवर्तित कर दे, ड्रग (drug) कहलाता है। ड्रग्स में, डाक्टर द्वारा रोग निवारण के लिए लिखी औषधियाँ, कैमिस्ट की दुकान पर बिना डाक्टर के पर्चे के मिलने वाले 'ओवर द काउन्टर' (over the counter) नुस्खे, एल्कोहाल, तम्बाकू तथा गैर चिकित्सीय रूप से प्रयोग की जाने वाली नशे की दवाइयाँ शामिल है। खाने-पीने में प्रयोग किये जाने वाले अनेक पदार्थों जैसे चाय, काफी, कोला आदि में भी सूक्ष्म मात्रा में ऐसे पदार्थ होते हैं जिन्हें ड्रग्स ही कहा जाता है जैसे कैफीन। इस अध्याय में गैर चिकित्सीय रूप में दुरुपयोग की जाने वाली ड्रग्स का वर्णन किया गया है। 

ड्रग कुप्रयोग (Drug Abuse): किसी ड्रग का उस कार्य के लिए प्रयोग जो इसके सामान्य रूप से किये कार्यों से सर्वथा अलग है, अथवा चिकित्सीय औषधियों का बिना चिकित्सीय सलाह के गैर चिकित्सीय प्रयोग, ड्रग कुप्रयोग (drug abuse) कहलाता है। ड्रग्स का चिकित्सक द्वारा सुझाई मात्रा से अधिक मात्रा में व अधिक आवृत्ति में प्रयोग जिससे व्यक्ति के शारीरिक, कार्षिकीय व मनोवैज्ञानिक कार्यों पर प्रभाव पड़ रहा हो, भी ड्रग कुप्रयोग कहलाता है। ड्रग्स जिनका सामान्यत: दुरूपयोग किया जाता है वह हैं ओपिआइड्स, कैनेबिनाइड्स और कोका एल्कलाइड्स आदि। इस प्रकार की अधिकांश ड्रग्स पुष्पी पादपों से प्राप्त की जाती हैं। कुछ ड्रग्स कवकों (fungi) से प्राप्त होती है।

ओपिआइड्स (Opioids)
कोई भी ड्रग जो अफीम (opium) के पौधे से प्राप्त की गई है ओपिएट (opiats) कहलाती है। अफीम व मार्फीन (opium) पोस्त या पॉपी पौधे-पेपेवर सोम्नीफेरम (Papaver somniferum) के अपरिपक्व फलों के लेटेक्स (latex) से प्राप्त की जाती है। अफीम को हजारों वर्षों से ड्रग के रूप में प्रयोग
किया जा रहा है, इसमें दर्द निवारक (analgesic) गुण है। अफीम एक अवसादक (depressant) व नींद लाने वाला (sedative) पदार्थ है।

ओपिएट के चिकित्सीय प्रयोग 
ओपिएट नारकोटिक ड्रग्स मस्तिष्क क्रिया को धीमा करते हैं तथा दर्द निवारक (analgesic - pain killer) के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। इनमें उपस्थित कोडीन (codeine) के कारण इनका प्रयोग खाँसी की दवाइयों में भी होता है। संश्लेषित ओपिएट पेथिडीन (Pethidine) का प्रयोग दर्द निवारक व निद्राकारी (sedative) के रूप में शल्य क्रिया के बाद किया जाता है। वास्तव में ओपिएट नार्कोटिक सबसे महत्त्वपूर्ण दर्द निवारक है। 

मार्फीन (Morphine) एक प्रमुख प्राकृतिक ओपिएट है। यह अफीम का सक्रिय पदार्थ हैं। हेरोइन (Heroin) को सामान्य रूप से बोलचाल की भाषा में स्मैक (smack) कहा जाता है। हेरोइन रासायनिक रूप से डाइएसीटिल मार्फीन (diacetyImorphine) है अर्थात यह मार्फीन के एसौटाइलेशन से प्राप्त होती है। हेरोइन एक सफेद, गंधहीन (odour less), स्वाद में कड़वा, रवेदार यौगिक (crystalline compound) है। हेरोइन नाक से तेज साँस खींचकर या इंजेक्शन द्वारा ली जाती है। यह एक अवसादक (depressant) है तथा शरीर के क्रियाकलापों को मंद कर देता है।

ओपिआइड्स वह ड्रग हैं जो शरीर के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) व जठरांत्र तंत्र (gastro intestinal) पर उपस्थित विशिष्ट ओपिआइड्स ग्राहियों (receptors) से जुड़ जाते हैं। यह रिसेप्टर कोशिकाओं की सतह पर पाये जाने वाले वह विशिष्ट स्थान हैं जहाँ ओपिएट ड्रग्स अपना प्रभाव दिखाने के लिए जुड़ते हैं। कैनाबिनाइइस (Cannabinoids) प्राकृतिक कैनाबिनाइड्स, भांग के पौधे कैनाबिस सैटाइवा (Cannabis sativa) के पुष्प क्रमों (inflorescence) से प्राप्त किये जाते हैं। भांग (marizuana), हशीश, चरस और गाँजा इसी पौधे से प्राप्त किये जाते हैं। भाँग के फूलों के शीर्ष, पत्तियाँ व इस पौधे के रेजिन (resin) के विभिन्न संयोजनों से अलग-अलग उत्पाद प्राप्त होते हैं। भारत में भांग, भाँग के पौधे की पत्तियों व नर व मादा प्ररोहों से, चरस मादा पुष्पों व पत्तियों के शुद्ध रेजिन से, गाँजा, शुष्क तने व पुष्पक्रमों के ठोस रेजिन से तथा हशीश शुष्क पुष्पक्रमों व पत्ती से प्राप्त की जाती है।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग 14

इन पदार्थों को मुख द्वारा (orally) या अन्तःश्वसन (inhalation) द्वारा प्रयोग किया जाता है। कैनाबिनाइड्स शरीर के हृद वाहिका तंत्र (cardio vascular system) को प्रभावित करते हैं। यह पदार्थ विचारों व तर्क शक्ति में खलल डालते हैं व अल्पकालीन स्मरण क्षमता को प्रभावित करते है।
शुष्क मुँह, लाल आँख, भूख वृद्धि खास लक्षण है।

मारिजुआना का सक्रिय पदार्थ THC (tetrahydrocannabial - टेड्रा हाइड्रोकेनाविआल) है। इसका प्रयोगकर्ता स्वजदी (dreamy) व आरामतलब व शान्त होता है। केनाबिनाइड ग्राही (receptors) मुख्यत: मस्तिष्क में उपस्थित होते हैं। कोकेन (Cocaine) कोका एल्केलाइड या कोकेन (cocaine) कोका के पौधे इरिथ्रोजाइलॉन कोका (Erythroarylon coca) से प्राप्त किया जाता है। यह दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। कोकेन रक्त वाहिनिया का सकुचित (constrict) करता है। कोकेन के मस्तिष्क पर प्रभाव के कारण ही इसका कुप्रयोग प्रारम्भ हुआ है। इसको नियमित रूप से अन्तःश्वसन (inhale) करने पर नाक की श्लेष्मिक कला क्षतिग्रस्त हो जाती है। लगातार प्रयोग मनोवैज्ञानिक निर्भरता व अधिक खुराक साइकोसिस (psychosis) उत्पन्न कर सकती है। बहुत ज्यादा खुराक हृदयाघात पैदा कर देती है।

कोकेन का शुद्धीकृत (purified) रूप कैक (crack) या कोक (coke) कहलाता है इसे साँस द्वारा अन्दर खींचा जाता है। क्रैक अधिक तेज व तीन प्रभाव उत्पन्न करता है जो शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है। अधिक खुराक विभ्रम (Hallucinations) भी उत्पन्न करती है। कोकेन न्यूरोट्रांसमीटर डोपामीन के परिवहन पर प्रभाव डालता है। कोकेन मस्तिष्क पर तीन उद्दीपक (stimulating) प्रभाव डालता है जिससे 'यूफोरिया' (Euphoria) व शरीर में ऊर्जा वृद्धि की अनुभूति होती है। कुछ खिलाड़ी भी आजकल कैनाविनाइड का कुप्रयोग करते हैं। कोकेन को पहले स्थानीय निश्चेतक (Anaesthetic) के रूप में प्रयोग किया जाता था।

अन्य पौधे जिनमें विभ्रमकारी (hallucinogenic) गुण होते हैं वह है - धतूरा नव बेलाडोना।
धतूरा (Datura) Datura stramonium (धतूरा स्ट्रेमोनियम)
इससे स्ट्रेमोनियम (stramonium) नामक ड्रग पाई जाती है। धतूरा मेटल या धतूरा इनोक्सिया अन्य प्रजाति हैं। धतूरे का प्रयोग कुछ आयुर्वेदिक औषधियों A में होता है। धतूरे के बीज विधमकारी होते हैं।

बेलाडोना (Atropa Belladonna): एट्रोपा बेलाडोना पौधे के सत्व (extrast) को बेलाडोना कहा जाता है। अंग्रेजी में डेडली नाइटशेड (deadly nightshade) कहे जाने वाले पौधे के सत्त्व में एट्रोपीन (atropine) सहित अनेक एल्केलॉइड होते हैं। इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। इटेलियन भाषा में बैलाडोना शब्द का शाब्दिक अर्थ है खूबसूरत स्त्री। इसे महिलाएं अपनी आँखों की पुतलियों को फैलाने के लिए प्राचीन समय में आँखों पर लगाती थीं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बेलाडोना का प्रयोग पेटदर्द की दवा बनाने में किया जाता है।

बेलाडोना से प्राप्त एट्रोपीन का विभिन्न प्रकार से चिकित्सीय प्रयोग किया जाता है। विधमी गुण वाले अनेक पादपों, फलों, बीजों का विश्व भर में लोक औषधि (folk medicine), धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में सैकड़ों वर्षों से उपयोग हो रहा है। 

पादपों से प्राप्त कुछ अन्य ड्रग्स - Some other drugs obtained from plants 
अफीम, भांग, कोकेन व धतूरा के अतिरिक्त अन्य अनेक पौधे भी ड्रग्स के स्रोत हैं। इनमें से प्रमुख है-

  1. काकाओ (थियोब्रोमा काकाओ - Theobroma cacao) जिसके बीजों से कैफीन मिलता है। 
  2. चाय (थिया साइनेन्सिस - Thea sinensis) पत्तियों में कैफीन होता है। 
  3. काफी (कॉफिया अरेबिका - Coffea arabica) के शुष्क बीजों से कैफीन मिलता है। (कैफीन एक उत्तेजक (stimulant) पदार्थ है) 
  4. एस्कोमाइसिटीज कवक क्लेवीसेप्स परप्युरिया (Claviceps purpurea) के फलन कार्यों से LSD (लाइसर्जिक एसिड डाईइथाइल एमाइड) प्राप्त होता है। 
  5. मेक्सिकन मशरूम सिलोसाइब मैक्सिकाना (Psilocybe mexicana) से सिलोसाइबिन (psilocybin) नामक विभ्रमकारी (hallucinogen) मिलता है।
  6. पेओट कैक्टस लोफोफोरा विलिएमसाई (Lophophora williamsii) से मेस्केलिन (mescaline) नामक विधमकारी मिलता है। 

हेनबेन, हायोसायमस नाइगर (Hyoscyamus niger) से हेनबेन (henbane) नामक शामक मिलता है। 

बार्बीचुरेट (Barbiturate): बाबींचुरेट शामक (sedative) ड्रग्स का एक समूह है जो मस्तिष्क की क्रिया को कम कर अपना कार्य करता है। पहले तनाव कम करने, नींद लाने आदि में इनका काफी प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब इनका प्रयोग कड़े नियंत्रण में किया जा रहा है क्योकि यह निर्भरता उत्पन्न करने वाली अर्थात आदत बन जाने वाली व व्यापक रूप से कुप्रयोग किये जाने वाली ड्रग्स हैं। अधिक मात्रा में सेवन जानलेवा हो सकता है। इनमें से कुछ जैसे फीनोबाबींटोन (phenobarbitone) का प्रयोग मिर्गी (epilepsy) के उपचार में किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क में न्यूरॉनों के बीच उद्दीपक रासायनिक संकेतों को अवरोधित कर, कोशिका की अनुक्रिया करने की क्षमता बाधित कर देती है। शराब के साथ सेवन से यह औषधियाँ जानलेवा हो सकती हैं। 
उदाहरण: साइक्लोवा/टोन, थियोपेन्टोन, एमाइलोबाबींटोन, ब्यूटोबा टोन। 

एम्फेटेमीन (Amphetamines): एम्फेटेमीन उद्दीपक (stimulant) ड्रग्स का समूह है जो भूख कम कर देता है। पहले इनका प्रयोग मोटापा (obesity) कम करने के लिए किया जाता था लेकिन इनके आदतकारी होने व कुप्रयोग के कारण इनका प्रयोग बन्द कर दिया गया है। एम्फेटेमीन का प्रयोग अब केवल नारकोलेप्सी (narcolepsy) के उपचार में किया जाता है। एम्फेटेमीन ड्रग्स न्यूरोट्रांसमीटर नॉरएड़ीनालिन के प्राव को प्रेरित करती है जो मस्तिष्क में तंत्रिका क्रिया बढ़ा देता है तथा व्यक्ति को सचेत बनाये रखता है। अधिक मात्रा में अथवा लगातार लेने पर शरीर में कम्पन (trernor), पसीना आना, दुश्चिंता, सोने में परेशानी, उच्च रक्तचाप, विभ्रम उत्पन्न हो जाते हैं। यह ड्रग शारीरिक निर्भरता (physical dependence) पैदा कर देती है। 

बेंजोडायजेपीन (Benzodiazepine): बेजोडायजेपीन ड्रग्स, दुश्चिंता (anxiety), तनाव (stress) नींद न आना आदि रोगों के उपचार के लिए व्यापक रूप से प्रयोग की जाती हैं। इनका प्रबल शामक प्रभाव (sedative effect) होता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क की क्रिया को कम करती हैं तथा तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संचार को अवरोधित करती हैं। इनके दुष्प्रभाव हैं दिन में भी उनींदापन (drowsiness), भूलना, धीमी प्रतिक्रिया तथा शारीरिक व मनोवैज्ञानिक निर्भरता। 

लाइसर्जिक एसिड डाइएथिल एमाइड (Lysergic acid Diethylamide - LSD): यह एक विभ्रमकारी (hallucinogen) ड्रग है, जिसे एस्कोमाइसिटीज कवक क्लेवीसेप्स परप्युरिया (Claviceps purpurea) से प्राप्त किया जाता है। इस ड्रग का कोई चिकित्सीय उपयोग नहीं है। LSD विभ्रम के अतिरिक्त अनेक शारीरिक व मानसिक दुष्प्रभाव उत्पन्न करती है। इसके भी प्रमाण हैं कि LSD क्रोमोसोमों को क्षति पहुँचाती हैं।

तम्बाकू (Tobacco) 
तम्बाकू के पौधे निकोटिआना टोबेकम (Nicotiana tobacum) की शुष्क पत्तियाँ तम्बाकू (tobacco) कहलाती हैं। तम्बाकू के पौधों को दुनिया भर के अनेक देशों में उगाया जाता है। इसका प्रयोग धूम्रपान (smoking) में, चबान में (tobacco chewing) तथा सूंघने (snuff) में करोड़ों लोगों द्वारा किया जाता है। पिछले 400 से भी अधिक वर्षों से इसका उपयोग होता आ रहा है। तम्बाकू का सेवन और खतरनाक ड्रग्स के सेवन का रास्ता खोल देता है। तम्बाकू में एक घातक एल्केलॉइड निकोटिन (nicotine) पाया जाता है। निकोटीन, एड्रीनल ग्रन्थि को एड्रीनेलिन व नॉर एडीनेलिन हामोंन रक्त में मुक्त करने के लिए प्रेरित करता है। यह दोनों रक्तचाप (blood pressure) बढ़ाते हैं व हृदय दर (heart rate) तीन कर देते है।

निकोटिन ही तम्बाकू का निर्भरता उत्पन्न करने वाला रसायन है। निकोटिन का कोई चिकित्सीय प्रयोग नहीं है। इसके कुछ व्युत्पन्न पेस्टीसाइड्स के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। निकोटिन रक्त वाहिकाओं को कड़ी (stiff) व संकुचित बनाता है जिससे १ ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है। यह एक उद्दीपक की तरह कार्य करता है। निकोटिन के अतिरिक्त तम्बाकू में अनेक कैसरकारी (carcinogenic) पदार्थ होते हैं। तम्बाक की प्रयोग की गई मात्रा, तम्बाकू के प्रयोग की अवधि तथा कैसर की सम्भावना का सीधा सम्बन्ध है। 

धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों के कैंसर (lung cancer), मूत्राशय का। कैंसर (bladder cancer), गुर्दो का कैंसर (kidney cancer) व वि पैक्रियास के कैसर (Pancreatic cancer) का खतरा होता है। तम्बाकू का किसी भी रूप में प्रयोग करने वालों के लिए मुखीय कैंसर (oral cancer), प्रसनी कैंसर (cancer of pharynx) आदि का भी खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान से जुड़ी अन्य बीमारियाँ हैं ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), एम्फीसीमा (emphysema), हदयी रोग या कोरोनरी हार्ट डिसीज, पेट के अल्सर (gastriculcer) आदि। तम्बाकू चबाने वालों में मुंह का कैसर (oral cancer) विकसित हो जाता है। 

श्वास नलिकाओं में शोथ (inflammation of the bronchi) ब्रोंकाइटिस कहलाता है जबकि फेफड़ों की कूपिकाओं (alveoli) का क्षतिग्रस्त होना एम्फीसीमा कहलाता है। इससे साँस लेने में परेशानी होती है व साँसें छोटी हो जाती है। एम्फीसीमा का प्रमुखतम कारण, प्रायः एकमात्र कारण धूम्रपान ही है। ब्रोंकाइटिस में श्वसन मार्ग पतला हो जाने से श्वसन में कठिनाई होती है। धूम्रपान के कारण रक्त में कार्बन मोनोक्साइड (carbon monoxide - CO) की मात्रा बढ़ जाती है जिससे हीमोग्लोबिन की आक्सीजन परिवहन क्षमता कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में हीमबद्ध आक्सीजन (haembound oxygen) की सान्द्रता कम हो जाती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। 

जब कोई सिगरेट का पैकेट खरीदता है तो यह नहीं हो सकता कि उसकी निगाह पैकेट पर छपी उस वैधानिक चेतावनी पर न पड़े जो उसे धूम्रपान के खतरों से आगाह करती है और बताती है यह किस प्रकार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन फिर भी समाज में, युवा और बुजुर्ग दोनों ही के बीच धूम्रपान का खूब चलन है। आधुनिक युवक - युवतियों को सिगरेट में क्या 'कूल' नजर आ रहा है यह समझ से परे है। जब किसी लतकारी (habit forming) पदार्थ के दुष्प्रभाव वैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट हो गये हों तब भी उसका प्रयोग जारी रखना, वह भी अपने स्वास्थ्य की कीमत पर किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं हो सकता। युवाओं और वृद्ध दोनों को इन आदतों से बचना चाहिए। निष्क्रिय धूनमान (Passive Smoking) घर के धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति व बच्चों के लिए भी हानिकारक होता है। अत: घर में धूम्रपान करना तो दोहरे नुकसान को निमन्त्रण देना है।

Bhagya
Last Updated on Dec. 4, 2023, 10:14 a.m.
Published Dec. 3, 2023