Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 7 विकास Important Questions and Answers.
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उल्का पिण्डों के विश्लेषण में मिली कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति से क्या संकेत मिलता है?
उत्तर:
सरल अकार्बनिक पदार्थों के मिलने से बने कार्बनिक पदार्थों के निर्माण पर जीवन की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड में अन्यत्र भी चल रही है।
प्रश्न 2.
उस समुद्री यान का नाम लिखिए जिससे डार्विन ने अपनी ऐतिहासिक यात्रा सम्पन्न की?
उत्तर:
एच एम एस बीगल (HMS Beagle)।
प्रश्न 3.
मलय आर्कीपेलेगो में प्रकृति का अध्ययन कर प्राकृतिक चयन के निष्कर्षों पर पहुंचने वाले जीव वैज्ञानिक का नाम बताइये।
उत्तर:
अल्फ्रेड वैलेस (Alfred Wallace)।
प्रश्न 4.
तितली, मक्खी व मच्छर की अलग - अलग प्रकार की भोजन आदतों (feeding habits) के कारण अलग - अलग प्रकार के मुखांगों की उपस्थिति किस प्रकार के अंगों का उदाहरण है?
उत्तर:
समजात अंग (Homologous organs)
प्रश्न 5.
शकर - कन्द व आलू किस प्रकार के अंग है?
उत्तर:
तुल्य रूप (analogous organs) अंग।
प्रश्न 6.
मानवीय (मानवोद्भवी) क्रिया द्वारा हुए जैव विकास का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जीवाणुओं में प्रतिजैविक पदार्थों के प्रति व कीटों में कीटरोधी पदार्थों के लिए हुई प्रतिरोधकता।
प्रश्न 7.
डार्विन ने अनुकूली विकिरण प्रदर्शित करने वाली फिन्चे कहाँ देखी?
उत्तर:
गैलापागोस द्वीपों (Galapagos islands) पर।
प्रश्न 8.
किस समाज विज्ञानी - अर्थशास्त्री के जनसंख्या पर लिखे लेखों ने डार्विन को प्रभावित किया?
उत्तर:
थामस माल्थस (Thomas Malthus)।
प्रश्न 9.
ह्यूगो डि ब्रीज ने नई प्रजाति की उत्पत्ति के लिए सबसे बड़ा कारक किसको माना?
उत्तर:
स्यूगो डि ब्रीज ने बताया कि उत्परिवर्तन ही नई प्रजाति की उत्पत्ति हेतु उत्तरदायी है व इसे साल्टेशन (Saltation) अर्थात एक चरणीय बड़े उत्परिवर्तन कहा।
प्रश्न 10.
कौन - सा सिद्धान्त यह स्पष्ट करने में सहायक है कि जैव विकास हो रहा है?
उत्तर:
हार्डी - वीनबर्ग सिद्धान्त।
प्रश्न 11.
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के समय के वायुमण्डल की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
जीवन की उत्पत्ति के समय वायुमण्डल अपचायक (reducing) था अर्थात इसमें मुक्त ऑक्सीजन नहीं थी।
प्रश्न 12.
किस मछली को 1938 तक विलुप्त माना जाता था लेकिन 1938 में इसके प्राप्त होने पर ज्ञात हुआ कि प्रथम उभयचरों का विकास इसी प्रकार की मछलियों से हुआ?
उत्तर:
सोलाकैन्थ (Coelacanth)।
प्रश्न 13.
सरीसृपों के उस पूर्वज का नाम लिखिए जो द्वितीयक रूप से पुनः जल में जाकर मछली जैसे आकार के हो गये।
उत्तर:
इक्थ्यिोसारस (Ichthyosaurs)।
प्रश्न 14.
उस भूवैज्ञानिक घटना का नाम बताइये जिसके कारण आस्ट्रेलिया के सभी शिशुधानी वाले स्तनी बचे रहे व उन्हें किसी मांसाहारी स्तनी का सामना नहीं करना पड़ा।
उत्तर:
महाद्वीपीय अपवाह (Continental drift)।
प्रश्न 15.
जावा में 1891 में प्राप्त फॉसिल जावा मैन का वैज्ञानिक नाम लिखिये।
उत्तर:
होमो इरेक्टस (Homo erectus)।
प्रश्न 16.
दो कशेरुकी शरीर के अंगों के माम लिखिए, जो मनुष्य के अप्रपाद के समजात (homologous) होते हैं।
उत्तर:
चीते के अग्रपाद (forelimb), पक्षियों के पंख।
प्रश्न 17.
दिये गये शब्दों में से आवृतबीजियों की पूर्वज रेखा (ancestral line) को चुनिए। कोनीफर्स, सीडफर्न, साइकेड्स, फर्न।
उत्तर:
सौडफर्न (Seed ferns)।
प्रश्न 18.
बोगेनविलिया का काँटा तथा कुकरबिटा का प्रतान किस प्रकार के अंग हैं समजात या समवृत्ति? उनमें इस प्रकार की समानता किस प्रकार के विकास से आई है?
उत्तर:
समजात अंग (Homologous organs), अपसारी विकास (Divergent evolution)।
प्रश्न 19.
उस वैज्ञानिक का नाम बताइये जिसने स्वतः उत्पत्तिवाद का मत खारिज किया।
उत्तर:
लुइस पाश्चर (Louis Pasteur)।
प्रश्न 20.
महाकपियों तथा मानव के पूर्वज के नाम लिखिष्ट।
उत्तर:
ड्रायोपिथेकस (Dryopithecus) व रामापिथेकस (Ramapithecus)।
प्रश्न 21.
किस वैज्ञानिक ने प्रयोग करते हुए यह प्रदर्शित किया कि जीवन पहले से ही विद्यमान जीवन से ही निकलकर आता है
उत्तर:
लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) ने।
प्रश्न 22.
तुल्यरूप या समवृत्ति अंग अभिसारी विकास का परिणाम क्यों हैं?
उत्तर:
तुल्यरूप अंग (analogons organs) अलग - अलग पूर्वज परम्परा वाले जीवों में कार्य को समानता हेतु भिन्न प्रकार की संरचनाओं से विकसित होते हैं। जैसे आलू व शकरकंद के ट्यूबर। अत: यह अभिसारी विकास (Convergent evolution) का परिणाम हैं।
प्रश्न 23.
आनुवंशिक अपवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी जीन पूल की एलील आवृत्तियों में आया सांयोगिक बदलाव जीन अपवाह (Genetic drift) कहलाता है।
प्रश्न 24.
होमोसेपियन्स का विकास किस महाद्वीप में हुआ?
उत्तर:
होमोसेपियन्स का विकास उत्तर अफ्रीका में माना जाता है।
प्रश्न 25.
होमोहेबिलिस और होमो इरेक्टस की आहार - प्रवृत्तियों में संभावी अन्तर बताइए।
उत्तर:
होमोहैबिलस शाकाहारी थे जबकि होमो इरेक्टस सर्वांहारी थे।
प्रश्न 26.
जैव विकास के अंगों की उपयोगिता अनुपयोगिता सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
जीन बेपटिस्ट डि लैमार्क ने।
प्रश्न 27.
निम्नलिखित के नाम लिखिष्ट
(a) 15 मिलियन वर्ष पूर्व वनमानुष (ऐप) के समान प्राइमेट।
(b) 2 मिलियन वर्ष पूर्व पूर्वी अफ्रीका के घास स्थलों में रहने वाले प्राइमेट।
उत्तर:
(a) रामापिथेकस (होमिनिड का पूर्वज)।
(b) होमो हैविलिस।
प्रश्न 28.
पौधों तथा प्राणियों से प्रत्येक का एक - एक उदाहरण दीजिष्ट जो अपसारी विकास को प्रदर्शित करते हैं।
उत्तर:
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आद्य पृथ्वी पर सरल अकार्बनिक रसायनों के मिलकर जटिल कार्बनिक अणु बनाने में प्रयुक्त ऊर्जा के स्रोत क्या थे?
उत्तर:
प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वर्तमान समय में जीवन की उत्पत्ति हो रही है या नहीं? अपने उत्तर के समर्थन में एक तर्क भी बीजिए?
उत्तर:
वर्तमान में पृथ्वी पर रासायनिक विकास द्वारा अर्थात अजीवात जनन (abiogenesis) द्वारा जीवन उत्पत्ति नहीं हो रही। वह पृथ्वी के ऑक्सीकारी (oxidising) वायुमण्डल में सम्भव नहीं। आद्य पृथ्वी पर यह सम्भव हो सका क्योंकि तब वातावरण अपचायक था।
प्रश्न 3.
आण्विक समजातता (molecular homolagy) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जीवधारियों में आण्विक सतर की समानता आण्विक समजातता कहलाती है। उदाहरण के लिए जेनेटिक कोड, प्रोटीनों हार्मोनों, नाभिकीय अम्ल व एटीपी आदि की समानता सभी जीवों की साझी पूर्वज परम्परा (common ancestry) की परिचायक है। जिन जीवों में जैव रसायन समान होते हैं वह समान पूर्वज से जुड़े होते हैं, जैसे मनुष्य व चिम्पैजी)।
प्रश्न 4.
हाथी की सूंड (trunk) व चिम्पैंजी का हाथ किस प्रकार के अंग है?
उत्तर:
हाथी की सूंड व चिम्पैजी का हाथ दोनों का ही प्रयोग भोजन के अन्तर्ब्रहण (ingestion) व अन्य समान कार्यों में होता है लेकिन इन दोनों अंगों की रचना में कोई समानता नहीं है, अतः यह तुल्यरूप अंग (analogous organ) हैं।
प्रश्न 5.
तीन ऐसे तरीके बताइये जो प्रकृति में भिन्न प्रकार के जीनोटाइप उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं?
उत्तर:
प्रश्न 6.
प्रकृति में किसी समष्टि की जीन आवृत्तियों में अन्तर उत्पन्न कर सकने में सक्षम चार विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
जैव विकास में पृथक्करण का क्या महत्व है?
उत्तर:
नई प्रजाति की उत्पत्ति (speciation) में पृथक्करण (isolation) महत्वपूर्ण है क्योंकि
प्रश्न 8.
मनुष्य के कौन - से लक्षण उसे अन्य प्राइमेटों से अलग करते हैं?
उत्तर:
मनुष्य के निम्न लक्षण उसे अन्य प्राइमेटों से अलग करते हैं-
प्रश्न 9.
मनुष्य व चिम्पैंजी के क्रोमोसोम 99 प्रतिशत समान हैं। इस समानता की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
मनुष्य व चिम्पैजी के क्रोमोसोम की 99 प्रतिशत समानता, अन्य प्रकार की आण्विक समजातता जैसे साइटोक्रोम B में समानता, शारीरिक समानता आदि यह स्पष्ट करती है कि मनुष्य व चिम्पैंजी का विकास साझे पूर्वजों (common ancestor) से हुआ है।
प्रश्न 10.
अपसारी विकास क्या है? पौधों का उदाहरण देते हुए समझाइये।
उत्तर:
जब एक ही पूर्वज परम्परा (ancestry) के जीव अलग - अलग पर्यावासों में रहने के कारण अलग-अलग प्रकार से अनुकूलित हो नई प्रजातियों के रूप में विकसित हो जाते हैं तब यह विकास अपसारी विकास (divergent evolution) कहलाता है। समजातता (homology) इस प्रकार के विकास की विशेषता है जैसे बोगेनविलिया के काँटे व कुकरबिट्स के प्रतान दोनों कक्षस्थ कलिका के रूपान्तरण है पर अलग - अलग कार्य करते हैं। अनुकूली विकरण इसी विकास का परिणाम है।
प्रश्न 11.
डार्विन फिन्चेज के द्वारा अनुकूली अपसरण की व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
या
अनुकूली विकिरण क्या है? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
डार्विन की फिन्चे (Darwin's Finches) अनुकूली विकिरण का एक महत्वपूर्ण व रोचक उदाहरण है। गैलापेगोज द्वीप समूह के भिन्न - भिन्न द्वीपों (islands) पर पाई जाने वाली फिन्च दक्षिणी अमेरिका (मुख्य घेरा) की एक ही, बीज खाने वाली फिंच से विकसित हुई। लेकिन अलग - अलग द्वीपों की परिस्थितियों के प्रति अनुकूलित होने के कारण इनकी चोंचे (beaks) अलग-अलग प्रकार से अनुकूलित हो गई। इनका मुख्य शरीर समान रहा लेकिन चोंच, मकरन्द, बीज, कीट, फल आदि खाने के लिए अलग-अलग आकार की हो गई। एक प्रकार के पूर्वज से विभिन्न दिशाओं में हुआ यह विकास अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) कहलाता है।
प्रश्न 12.
पृथ्वी पर जीवन के विकास की प्रक्रिया में डार्विन तथा डि तीज के मतों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
डार्विन को विभिन्नताओं के कारण का ज्ञान नहीं था। उनके अनुसार परिवर्तन छोटे व दिशात्मक (directiona) होते हैं। यह परिवर्तन तथा प्राकृतिक वरण एक धीमी प्रक्रिया के कारण कई पौड़ी बाद नई प्रजाति को जन्म देते हैं। डि ब्रीज ने जीवों में उत्पन्न विभिन्नताओं के लिए उत्परिवर्तन (mutations) को उत्तरदायी माना। उनके अनुसार यह एक चरणीय बड़े उत्परिवर्तन (single step large mutations) होते है जिन्हें उन्होंने साल्टेशन (Saltation) नाम दिया। उत्परिवर्तन यादृच्छिक (random) तथा दिशाविहीन (directionless) होते हैं, जिनके कारण नई प्रजाति उत्पन्न होती है।
प्रश्न 13.
(i) चित्र में विखाप्ट ,गये डार्विन के फिन्च पक्षियों में आप क्या भिन्नताएँ देख रहे हैं? लिखिए
(ii) गैलापेगास द्वीपों पर फिंचों की विभिन्न किस्मों के अस्तित्व को डार्विन ने किस प्रकार समझाया?
उत्तर:
(i) डार्विन की फिचों की चोंचे (beaks) अलग - अलग भोजन स्वभाव (eating habits) के अनुसार अनुकूलित हैं। यह कीटों को खाने (कीटभक्षी स्वभाव), दाना खाने (grain eating), फल खाने (fruit eating) के लिए अनुकूलित हैं।
(ii) यह सभी एक मूल बीज खाने वाले पूर्वज से अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) के कारण बनी हैं। अलग - अलग द्वीपों के अलग-अलग पर्यावासों के कारण यह अलग - अलग रूप में अनुकूलित हो गई हैं।
प्रश्न 14.
ड्रायोपिथेकस तथा रामापिथेकस में दो समानताएँ लिखिए।
उत्तर:
ड्रायोपिथेकस तथा रामापिथेकस दोनों ही कपियों (apes) से भिन्न शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा मनुष्य के पूर्वज माने जाते हैं। इन दोनों ही के शरीर पर बाल थे तथा यह चिम्पांजी व गोरिल्ला की तरह आंशिक रूप से सीधे होकर चलते थे।
प्रश्न 15.
एक भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिन्दु से शुरू होकर अन्य भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होते हैं। उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
एक भौगोलिक क्षेत्र में, एक प्रकार के मूल पूर्वजों (ancestral stock) से प्रारम्भ होकर अन्य भौगोलिक क्षेत्रों अर्थात् अलग - अलग परिस्थितियों वाले पर्यावासों तक प्रसारित होने वाला विकास अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) कहलाता है। अर्थात एक प्रजाति से विभिन्न प्रकार के अनुकूलन प्रदर्शित करने वाली विभिन्न जातियों का विकास ही अनुकूली विकिरण है। डार्विन की फिन्चे अनुकूली विकिरण का ही उदाहरण है। इसी प्रकार एक सामान्य शिशुधानी वाले पूर्वज से विभिन्न प्रकार के शिशुधानी वाले पूर्वजों का विकास हुआ है, जैसे कंगारू, तस्मानियन भेड़िया, टाइगर कैट आदि एक ही साझे पूर्वज से विकसित हुए व अपने - अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित हो गये।
प्रश्न 16.
पादप या उसके भागों में पाई जाने वाली समजातता एवं तुल्यरूपता उपयुक्त उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
पादपों में समजातता (Homology) का उदाहरण- बोगेनविलिया के काँटे (thorn) व कुकरबिट्स के प्रतान (tendril) समजात अंग (homologous organs) है क्योंकि दोनों ही कक्षस्थ कलिका (axillary bud) के रूपान्तरण हैं।
• पादपों में तुल्यरूपता (Analogy) का उदाहरण।
शकरकन्द (Sweet potato) व आलू दोनों ही में भोजन संचय होता है मगर शकरकन्द जड़ का रूपान्तरण है व आलू तने का रूपान्तरण है।
प्रश्न 17.
ड्रायोपिथेकस तथा रामापिथेकस में अन्तर बताइये।
उत्तर:
ड्रायोपिथेकस व रामापिथेकस के पूरे शरीर पर बाल थे तथा वह चिम्पांजी, गौरिल्ला की तरह चलते थे। ड्रायोपिथेकस कपियों के अधिक समान था जबकि रामापिथेकस मनुष्यों से अधिक समानता प्रदर्शित करता था। वास्तव में रामापिथेकस को होमिनिड का पूर्वज माना जाता है।
प्रश्न 18.
आनुवंशिक संतुलन क्या है? हार्डी वीनवर्ग साम्य को प्रभावित करने वाले कोई चार घटक लिखिए।
अथवा
निम्नलिखित समीकरण किसका निरूपण करता है? व्याख्या कीजिए।
p2 + 2pq + q2 = 1
उत्तर:
हाडीं वीनवर्ग संतुलन (Hardy Weinberg Equilibrium): किसी समष्टि में अलील आवृतियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी स्थिर व समान होती हैं। किसी समष्टि में कुल जीन व उनके अलील (जीन पूल) एक स्थिरांक होते हैं। यही हाडीं वीनवर्ग साम्य है। p2 + 2pq + q2 = 1, साम्य को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-
प्रश्न 19.
जन्तुओं में पायी जाने वाली समजात एवं तुल्यरूपता को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
समजातता यह इंगित करती है कि जीवों के पूर्वज समान थे। समजात अंग वे अंग हैं जो उत्पत्ति एवं संरचना में समान होते हैं किन्तु विभिन्न पर्यावासों में रहने के कारण उनके कार्य भिन्न हो जाते हैं। उदाहरण के लिए व्हेल के फिलपर एवं चमगादड़ के पंख। तुल्यरूपता अभिसारी विकास का परिणाम है। तुल्यरूप अंग वे अंग है जो उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्न होते हैं किन्तु उनके कार्य समान होते हैं। उदाहरण के लिए पक्षी के पंख एवं कीटों के पंख।
प्रश्न 20.
तुलनात्मक शरीर विज्ञान (शारीरिकी) या आकारिकी के आधार पर जैव विकास की पुष्टि कीजिए।
अथवा
आकृति विज्ञान (आकारिकी) आधार पर जैव विकास की क्रिया उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी के प्रमाण (Evidences from Comparative Anatomy and Morphology):
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी वर्तमान जीवों व प्राचीन समय में रहे जीवों के बीच समानताएँ और भिन्नताएँ प्रदर्शित करती है। इन समानताओं द्वारा यह स्पष्ट किया जा सकता है कि दो जीवों समूहों के पूर्वज समान थे या नहीं। डार्विन स्वयं भी यह स्पष्ट कर सके कि साझा वंश अवतरण (common descent) परिकल्पना जीवों के बीच की शारीरिक समानताओं की एक स्वीकार्य व्याख्या प्रस्तुत करती है।
ऐसे कुछ प्रमाण निम्नलिखित हैं:
समजात अंग (Homologous Organs): व्हेल, चमगादड़, चीता व मनुष्य जैसे स्तनधारी (mammals) के अप्रपाद (forelimbs), अस्थियों के प्रकारों में समानता प्रदर्शित करते हैं। विभिन्न पर्यावासों में रहने वाले इन भिन्न प्रकार के जीवों में अग्रपाद अलग-अलग कार्य सम्पन्न करते है।
व्हेल में अग्रपाद फ्लिपर (Flippers) के रूप में परिवर्तित होते हैं अत: तैरने में मदद करते है, चमगादड़ में उड़ने में, चीता में दौड़ने में, मनुष्य में विविध कार्य सम्पन्न करने में मदद करते हैं। लेकिन इनकी शारीरिक संरचना समान होती है। सभी के अप्रपाद निम्न अस्थियों से बने होते हैं-प्रगंडिका या ह्यूमरस (humerus), प्रकोष्ठिका या रेडिअस (radius), अन्त:प्रकोष्ठिका या अल्ना (ulna), मणिबन्धिका या कार्पेल्स (carpels), करभिका या मेटाकापेल्स (metacarpels) तथा अंगुलस्थि या फैलेन्जेज (phallenges)। अत: इन जीवों में समान संरचनाएँ भिन्न - भिन्न कार्य सम्पन्न करने के लिए भिन्न दिशाओं में अनुकूलित हो जाती है। ऐसे अंग जो मौलिक संरचना में समान होते हैं, लेकिन अलग - अलग कार्य सम्पन्न करने के कारण अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो जाते हैं समजात अंग (homologous organs) कहलाते हैं। अर्थात समान पूर्वज से वंशागत होने के कारण समानता प्रदर्शित करने वाली शारीरिक संरचनाएँ जो भिन्न प्रकार से अनुकूलित होने के कारण भिन्न कार्य सम्पन्न करती हैं समजात अंग कहलाती हैं। समजातता (Homology) यह इंगित करती है कि जीवों के पूर्वज समान थे। उपर्युक्त, अग्रपाद के उदाहरण में समजातता यह स्पष्ट करती है कि इन सभी भिन्न - भिन्न प्रकार के स्तनधारियों का विकास समान पूर्वजों से हुआ है तथा यह भिन्न - भिन्न कार्य करने हेतु अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो गये हैं। समजातता के अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. रीढ़धारी (vertebrate) जन्तुओं का हृदय व मस्तिष्क। मछलियों में हृदय द्विकक्षीय (two chambered), उभयचरों में तीन कक्षीय (three chambered), सरीसृपों में अपूर्ण रूप से 4 कक्षीय (incompletely four chambered) तथा पक्षियों व स्तनधारियों में चार कक्षीय (four chambered) होता है।
2. पादपों में बोगेनविलिया (Bougainvillea) के कांटे (thorm) तथा कुकरबिटा के प्रतान (tendrils) समजात अंगों के उदाहरण हैं। दोनों के बाह्यरूप व कार्य अलग हैं लेकिन दोनों (कांटे व प्रतान) तने की कक्षस्थ कलिका (axillary bud) के रूपान्तरण हैं। कहा जा सकता है कि तना अलग - अलग कार्य करने के लिए रूपान्तरित हो गया है। समजातता (homology) अपसारी विकास (divergent evolution) की परिचायक है। समजात अंग एक - दूसरे से साझी पूर्वज परम्परा (common ancestory) द्वारा जुड़े होते हैं।
तुल्यरूप अग (Analogous organs)
जीवों के ऐसे अंग जो कार्य में समान लेकिन रचना में सर्वथा भिन्न होते हैं तुल्य रूप अंग (Analogous organs) कहलाते हैं तथा तुल्यरूप अंगों के पाये जाने की स्थित तुल्यरूपता (analogy) कहलाती है। तुल्यरूपता समरूपता के एकदम विपरीत स्थिति है। तुल्यरूप प्रदर्शित करने वाले जीवों के पूर्वज समान नहीं होते। पक्षियों व तितलियों के पंख (wings) समान कार्य करते हैं तथा समान प्रतीत होते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से वह समान संरचनाएँ नहीं हैं। पक्षी रीढ़धारी जन्तु हैं जिनमें अग्रपाद पंखों के रूप में रूपान्तरित होते है जबकि तितली अपृष्ठधारी (invertebrate) जन्तु है जिसमें पंख झिल्लीमय (membranous) होते हैं। स्पष्ट है दोनों के पंखों की संरचना में कोई समानता नहीं, अत: यह तुल्यरूप अंग हैं। तुल्यरूप संरचनाएं अभिसारी विकास (convergent evolution) का परिणाम है। भिन्न प्रकार की रचनाओं का समान कार्य करने हेतु विकास जिससे उनमें समानता विकसित हो जाये अभिसारी विकास (convergent evolution) कहलाता है। अर्थात भिन्न पूर्वज परम्परा वाले जीवों में समान कार्यों हेतु समानता विकसित हो जाना अभिसारी विकास है। तुल्यरूपता (analogy) के अन्य उदाहरण हैं-
ऑक्टोपस व स्तनधारियों की आँखें, दोनों में रेटिना की स्थिति विपरीत होती है।
• पेन्गुइन व डॉलफिन के फ्लिपर (flippers)
• नागफनी, माँसल यूफोर्बिया व घीग्वार (एलोवेरा)
• शकरकंद (sweet potato) व आलू।
शकरकंद भोजन संचय हेतु जड़ का रूपान्तरण है जबकि आलू इसी कार्य हेतु तने का रूपान्तरण है।
• मनुष्य के हाथ व हाथी की सूंड (trunk)।
दोनों ही भोजन ग्रहण करने (ingestion) व अन्य कार्यों में मदद करते हैं किन्तु दोनों रचना में सर्वथा भिन्न हैं। इन उदाहरणों के अध्ययन के बाद कहा जा सकता है कि समान पर्यावासों (habitat) के कारण जीवों के विभिन्न समूहों में समान कार्य हेतु समान अनुकूली लक्षणों का चयन हुआ है। अभिसारी विकास (convergent evolution) व समानान्तर विकास (parallel evolution) के कारण कभी-कभी समजातता की पहचान मुश्किल हो जाती है।
अवशेषी अंग (Vestigeal Organs): अवशेषी अंग शारीरिक लक्षण हैं, जो जीवों के एक समूह में पूर्ण विकसित, जबकि दूसरे समूह में अल्पविकसित या अकार्यशील होते हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य में पुच्छ कशेरुका (caudal vertebra), व्हेल में पाई जाने वाली अवशेषी श्रोणि मेखला व पश्चपाद, मनुष्य में निर्मषक पटल (nictitating membrane) आदि। अवशेषी अंग इसलिए पाये जाते है क्योंकि जीव के शारीरिक लक्षण उसे उसके पूर्वजों से वंशागत रूप में प्राप्त होते हैं। ये जीव के विकासीय इतिहास के चिह्न है। डार्विन का प्राकृतिक चयनवाद इसकी व्याख्या नहीं करता।
प्रश्न 21.
ऐसा माना जाता है कि किसी समष्टि में एक जीन की ऐलील आवृत्तियाँ पीढ़ी - दर - पीढ़ी एकसमान रहती हैं। हाहीं वेनबर्ग ने बीज गणितीय समीकरण की सहायता से इसकी व्याख्या किस प्रकार की?
उत्तर:
हार्डी वीनवर्ग सिद्धान्त (Hardy Walnberg Principle)
सन् 1908 में ब्रिटिश गणितज्ञ जी.एच. हाडी (G.H.Hardy) व जर्मन चिकित्सक डब्ल्यू वीनवर्ग (W. Weinberg) ने स्वतंत्र रूप से, जीन पूल आवृत्तियों की साम्यावस्था की पहचान की। उन्होंने किसी समष्टि के जीनोटाइप व अलील आवृत्तियों की गणना करने के लिए निम्न समीकरण (binomial expression) प्रस्तुत किया।
p2 + 2pq +q2 = 1
p2 = समयुग्मजी प्रभावी (homozygous dominant) जीवों की आवृत्ति (AA)
p= प्रभावी अलील की आवृत्ति (A)
q2 = समयुग्मजी अप्रभावी (homozygous recessive) जीवों की आवृत्ति (aa)
q = अप्रभावी अलील की आवृत्ति (a)
2pq = विषमयुग्मजी जीवों की आवृत्ति (Aa)
ज्ञात है- p + q = 1(कुल दो अलील उपस्थित है)
p2 + 2pq +q2 = 1(केवल यह जीनोटाइप है)
किसी समष्टि में अलील आवृत्तियाँ पीड़ी - दर - पीढ़ी स्थिर व निश्चित बनी रहती है। जीन पूल (समष्टि के कुल जीन व उनके अलील) एक स्थिरांक बने रहते हैं। इसे आनुवंशिक संतुलन या साम्य कहा जाता है। यही हाडीं वीनवर्ग सिद्धान्त है।
हार्डी वीनवर्ग सिद्धान्त कहता है कि "लैंगिक प्रजनन करने वाली समष्टि की, सभी पीढ़ियों में अलील आवृत्तियाँ तब तक स्थिर व निश्चित बनी रहती हैं जब तक निम्न पाँच अवस्थाएँ पूरी होती रहती हैं-
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि पाँच कारक हाडीं वीनवर्ग साम्य (Hardy Weinberg Equilibrium) को प्रभावित करते हैं। उत्परिवर्तन, जीन प्रवाह, आनुवंशिक पुनर्सयोजन (Genetic recombination), जेनेटिक ड्रिफ्ट (आनुवंशिक अपवाह) व चयन। वास्तविक जीवन में यह परिस्थितियाँ प्राय: कभी पूरी नहीं होती, अतः किसी समष्टि के जीन पूल की अलील आवृत्तियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बदलती रहती है। इसका अर्थ हुआ कि विकास हुआ है। हाहीं वीनवर्ग सिद्धान्त का यह महत्व है कि यह हमें बताता है कि कौन-सा कारक विकास हेतु उत्तरदायी है (वही जो ऊपर लिखी शर्तों को पूरा नहीं करता)। समष्टि के जीन पूल की अलील आवृतियों के साम्य में हुए बदलाव को पहचान कर, विकास को जाना जा सकता है। जीन पूल आवृति में बदलाव विकास का होना सिद्ध करता है।
प्रश्न 22.
जर्मनी के प्रकृतिविद् अलेक्जेंडर वान हम्बोल्ट द्वारा दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में किए गए गहन अन्वेषण के समय इनके द्वारा किए गए दो प्रेक्षण लिखिए।
उत्तर:
हम्बोल्ट द्वारा किए गए प्रेक्षण-
प्रश्न 23.
यदि किसी 'N' साइज की समष्टि में जन्म - दर को 'b' तथा मृत्यु - दर को 'd' द्वारा निरूपित किया जाता है, तब इकाई समय अवधि 't' में 'N' में वृद्धि अथवा हास निम्न प्रकार से होगा-
\(\frac{dN}{dt}=(b-d) \times N\)
उपर्युक्त समीकरण को इस प्रकार भी निरूपित कर सकते हैं-
\(\frac{d N}{d t}=r \times N\), जिसमें r = (b - d)
'r' क्या निरूपति करता है? किसी समष्टि के लिए 'r' का परिकलन करने का कोई एक महत्त्व लिखिष्ट।
उत्तर:
r = प्राकृतिक वृद्धि की आन्तरिक दर।
"r" समष्टि वृद्धि पर जैविक और भौतिक कारकों के प्रभाव को निर्धारित करने में सहायक मान है।
प्रश्न 24.
पक्षियों एवं तितलियों के पंख उन्हें उड़ने में सहायक होते हैं। ऐसे अंग किस प्रकार के विकास का परिणाम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पक्षियों व तितलियों के पंख समान कार्य करते है तथा समान प्रतीत होते हैं किन्तु शारीरिक रूप से ये समान संरचनाएँ नहीं है। पक्षी रीन्धारी जन्तु हैं, जिनमें अग्रपाद पंखों के रूप में रूपान्तरित होते हैं, जबकि तितली अपृष्ठधारी जन्तु हैं जिसमें पंख झिल्लीमय होते हैं। स्पष्ट है दोनों के पंखों की संख्या में कोई समानता नहीं है, अत: यह तुल्यरूप अंग हैं। तुल्यरूप संख्याएँ अभिसारी विकास का परिणाम है।
प्रश्न 25.
निम्न की परिभाषा दीजिए - जीवाश्म विज्ञान, फाइलोजेनी, जीवाश्म।
उत्तर:
यह कठोर अंगों जैसे दाँत, जीव की छाप (imprint), अम्बर में पूर्ण सुरक्षित जीव या मौल्ड आदि के रूप में पाये जाते हैं।
प्रश्न 26.
जीवाष्म किस प्रकार विकास का प्रभाव प्रस्तुत करते हैं? समझाइए।
उत्तर:
फॉसिल या पुराजीव विज्ञान से प्रमाण (Fossil or Paleontological evidence)
प्राचीन समय में पृथ्वी पर रहे जीवों के अवशेष (अस्थियाँ, दाँत, कवच (shell), छाप (imprints)), मोल्ड या किसी भी रूप के अवशेष चिह्न पुरावशेष (fossil) कहलाते हैं। फॉसिल रिकार्ड पृथ्वी पर जीवन के इतिहास का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते है। एक पुरावशेष या फॉसिल (fossil) की संज्ञा पाने के लिए जीव के अवशेषों का कम से कम 10,000 वर्ष पुराना होना अनिवार्य हैं।
चट्टाने, अवसाद या तलछट (sediments) बनाती हैं। भूपर्पटी या अर्थक्रस्ट (earth crust) का लम्बकाट इन अवसादी (सेडीमेंट्स) परतों को एक के ऊपर एक के क्रम में व्यवस्थित दिखाता है। इसमें सबसे निचली परत (layer) सबसे पुरानी व सबसे ऊपरी सबसे नई होती है। अवसादी चट्टानों की यह परतें पृथ्वी के लम्बे इतिहास को प्रतिविम्बित करती हैं। विभिन्न आयु के चट्टानी अवसादों में जीवन के विभिन्न रूपों के पुरावशेष पाये जाते हैं, जिनकी मृत्यु शायद उस चट्टानी अवसाद के बनने के समय हुई होगी। इसका अर्थ है कि जो जीव पृथ्वी पर सबसे पुराने हैं उनके अवशेष सबसे निचली परतों में व अपेक्षाकृत नये जीवों के फॉसिल ऊपरी परतों में मिलते हैं। इनमें से कुछ वर्तमान समय के जीवों से समानता प्रदर्शित करते हैं। यह विलुप्त (extinct) जीव है जैसे डायनासॉर (Dinosaur)।
इन अवसादी चट्टानी परतों में मिले फॉसिलों का अध्ययन उस भूवैज्ञानिक समय (geological period) को इंगित करता है जिसमें यह जीव रहे थे। यह अध्ययन स्पष्ट संकेत देते हैं कि भिन्न-भिन्न समय के जीव भिन्न-भिन्न थे तथा कुछ जीव केवल किसी विशिष्ट भूवैज्ञानिक समय तक ही सीमित रहे, जैसे- डाइनासॉर। अत: पृथ्वी के इतिहास में विभिन्न समयों पर नये जीवों की उत्पत्ति हुई (प्रजाति स्थिर या fix नहीं है)।
प्रश्न 27.
ह्यूगो डी तीज के उत्परिवर्तन वाद को समझाइए।
उत्तर:
विकास की क्रियाविधि (Mechanism of Evolution)
चाल्स डार्विन ने इस तथ्य पर बल दिया कि समष्टि के सदस्य भिन्नता प्रदर्शित करते हैं जो प्राकृतिक वरण का आधार बनती है। लेकिन उसे इन विभिन्नताओं के स्रोत के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। उसे ज्ञात नहीं था कि कहाँ से यह विभिन्नताएँ आती है व कैसे इनका संचरण होता है। डार्विन ने मेण्डल द्वारा सुझायो आनुवंशिकी की इकाइयों पर भी चुप्पी साधे रखी।
ह्यूगो डि तीज का उत्परिवर्तनवाद (Mutation theory of Hugo de Vries)
बीसवीं सदी के पहले दशक में गो डी बीज (Hugo de Vries) ने इवनिंग प्रिमरोज पर किये कार्य के आधार पर उत्परिवर्तन (mutation) की संकल्पना प्रस्तुत की। आप पिछले अध्याय में आनुवंशिक पदार्थ में अचानक होने वाले वंशागत परिवर्तनों (अर्थात उत्परिवर्तनों) के बारे में जान चुके हैं। ह्यूगो डि ब्रीज का मानना था कि विकास का कारण बड़े उत्परिवर्तन थे डार्विन द्वारा सुझाई छोटी-छोटी विभिन्नताएँ नहीं। उत्परिवर्तन सांयोगिक (random) व दिशाहीन (directionless) होते हैं जबकि डार्विन द्वारा सझायी भिन्नताएँ छोटी व दिशीय (directional) थीं। डि ब्रीज के उत्परिवर्तनवाद (mutation theory) की निम्न विशेषताएँ हैं-
बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक 1930s से पहले तक समष्टि आनुवंशिकी (Population genetics), आनुवंशिकी के सिद्धान्तों को समष्टि अध्ययन में प्रयोग कर यह जानने में सक्षम नहीं थी कि विकास कब हुआ। समष्टि आनुवंशिकी में बाद में हुए अध्ययनों से विकास की प्रक्रिया की समझ में और स्पष्टता आई।
समष्टि (Population): किसी एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में, किसी निश्चित समय पर पाई जाने वाले एक ही प्रजाति के जीव एक समष्टि (population) का निर्माण करते हैं। एक प्रजाति के सभी सदस्य अन्तः प्रजनन (interbreeding) करने में सक्षम होते हैं तथा प्रजननक्षम (fertile) संतति बनाते हैं।
सूक्ष्म जैव विकास (Micro - evolution)
किसी समष्टि (population) के अन्दर हुआ विकासीय बदलाव माइक्रोइवोल्यूशन या सूक्ष्म जैव विकास कहलाता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि समष्टि के जीनपूल में आपेक्षिक रूप से कम समयावधि में छोटे - छोटे बदलावों का एकत्रित होना सूक्ष्मजीव विकास कहलाता है। सूक्ष्म जैव विकास प्रजातियों की उत्पत्ति में स्पष्ट भूमिका निभाता है। दूसरे शब्दों में यह समष्टि की अलील आवृत्तियों में हुए बदलाव का द्योतक है।
जीन पूल (Gene Pool): एक प्रजाति के सभी जीवों के सभी जीन लोकस (loci) पर स्थित विभिन्न अलील मिलकर उस समष्टि का जीन पूल (gene pool) बनाते है। किसी समष्टि के जीन पूल को जीन आवृत्तियों (gene frequencies) के रूप में वर्णित किया जाता है।
प्रश्न 28.
(i) वह कौन - सा विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है जहाँ यह जीव पाये जाते हैं?
(ii) उस घटना का नाम लिखिए एवं समझाइये जिनके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में इतनी विविध जातियों का विकास हुआ है।
(iii) अपरा (प्लेसेंटल) भेड़िया और तस्मानिया भेड़िया का साथ - साथ एक ही पर्यावास में रहते रहना किस प्रकार सम्भव हुआ? कारण प्रस्तुत करते हुए समझाइये।
उत्तर:
(i) यह जीव आस्ट्रेलिया महाद्वीप में पाये जाते हैं।
(ii) इतनी विविध प्रजातियों का विकास इस विशाल भूक्षेत्र में स्थित भिन्न - भिन्न पर्यावासों (habitats) में रहने के लिए अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) घटना के कारण हुआ। एक साझे मासुपियल पूर्वज से निकले यह सब जीव अलग - अलग पर्यावासों हेतु अनुकूलित हो गये (बड़े क्षेत्र में फैल गए, विकिरत हो गये) यह अपसारी विकास (divergent evolution) का प्रकार है तथा नई प्रजाति की उत्पत्ति (speciation) का प्रकार है अर्थात मैक्रोइवोल्यूशन है। सभी जीव समजातता (homology) प्रदर्शित करते हैं।
(iii) अपरा अर्थात जरायुजी स्तनधारी भेड़िया भी अपने सम्बंधी शिशुधानी (मासुपियल) तस्मानिया भेड़िया से अनुकूली विकिरण से बने हैं। जब किसी पृथक्कित भौगोलिक क्षेत्र जिसमें भिन्न - भिन्न पर्यावास हो) में एक से अधिक अनुकूली विकिरण होते हैं तब इसे अभिसारी विकास (convergent evolution) कहा जा सकता है।
प्रश्न 29.
औद्योगिकीकरण ने इग्लेण्ड के हल्के एवं गहरे रंग के मॉथ के प्राकृतिक वरण में किस प्रकार भूमिका निभाई है?
उत्तर:
औद्योगिक मीलनता (Industrial Melanism)
प्राकृतिक चयन के पक्ष में एक और सशक्त प्रमाण औद्योगिक मीलनता (industrial melanism) का उदाहरण है। बिस्टन बेटुलेरिया (Biston betularia) नामक शलभ इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति (industrial revolution) से पहले बहुतायत से पाया जाता था। सन् 1850, में शलभों पर हुए अध्ययनों से यही परिणाम प्राप्त हुए। बड़ी संख्या में पाये जाने वाले इस शलभ का रंग सलेटी (grey) था। इसी शलभ (moth) का एक उत्परिवर्ती (mutant) काले रंग का था और बहुत कम संख्या में पाया जाता था। यह प्रभावी उत्परिवर्ती (dominant mutant) जिसका नाम कार्बोनरिया (carboneria) था सिर्फ एक अलील में सलेटी शलभ से भिन्न था। अर्थात सलेटी रंग के शलभों की समष्टि में इक्कादुक्का काले कार्बोनेरिया शलभ पाये जाते थे। लेकिन दो सौ वर्षों के सफर में कार्बोनेरिया (काले) शलभों की समष्टि 90 प्रतिशत तक बढ़ गई। इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती हैं-
शलभ (moth) वृक्षों के तनों पर बैठते हैं। औद्योगिक क्रान्ति से पहले वृक्षों के तने सलेटी रंग के लाइकेनों (lichens) द्वारा ढके रहते थे। गंदले सलेटी (dull grey) रंग के यह कीट सलेटी रंग के लाइकेनों की पृष्ठभूमि में आसानी से छिपे रहते थे।
कोटभक्षी इस समान पृष्ठभूमि कैमोफ्लेज (camouflage) के कारण इन्हें देख नहीं पाते थे अत: यह कौट इनके शिकार से बच जाते थे। लेकिन काले रंग के कानोंनेरिया शलभ, कीटभक्षियों का आसानी से शिकार बन जाते थे अत: उनकी समष्टि में आवृत्ति कम थी। इस विचार को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था, काले शलभों की आवृत्ति कम ही रही। इससे स्पष्ट हुआ कि एक मिली - जुली समष्टि में बेहतर अनुकूलन वाले जीव जीवित रहते हैं व वही समष्टि का आकार बढ़ाते हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि किसी भी विभिन्नता (काले शलभ) को प्रकृति ने पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया।
औद्योगिक क्रान्ति होने पर (सन् 1920 के बाद) बड़े स्तर पर कोयले का दहन सामान्य हो गया। कोयले के जलने से बने धुएँ और कणिकीय काले पदार्थ (soot) ने वृक्षों के तनों को ढक लिया। इससे पेड़ों के तने काले दिखने लगे, फलस्वरूप सलेटी रंग के शलभ इन पर स्पष्टता से दिखने लगे व काले शलभ पृष्ठभूमि में छिपने में सफल रहे। अब सलेटी कीट परभक्षी पक्षियों के अधिक शिकार बनने लगे जिससे समष्टि में काले कीटों की आवृत्ति बढ़ गई। धीरे - धीरे उद्योगों में कोयले की जगह विद्युत व ऊर्जा के अन्य गैर प्रदूषणकारी स्रोतों का प्रयोग होने लगा। कणिकीय कार्बन के उत्सर्जन को रोकने अर्थात पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के उपायों से वृक्षों पर काले कणिकीय पदार्थ के जमाव में कमी आई। परिस्थितियाँ एक बार फिर सलेटी रंग के शलभों की उत्तरजीविता (survival) के लिए अधिक उपयुक्त हो गई अतः समष्टि में उनकी आवृत्ति एक बार फिर बढ़ गई।
औद्योगिक मीलनता (industrial melanism) इस प्रकार प्राकृतिक चयन का एक स्पष्ट व रोचक उदाहरण प्रस्तुत करता है। शलभों (moths) की 70 विभिन्न प्रजातियों में इस परिघटना को इंग्लैंड के साथ-साथ अन्य यूरोपीय देशों में देखा गया। (लाइकेन प्रदूषण के सूचक (indicator of pollution) के रूप में प्रयोग होते हैं, यह सल्फर डाई आक्साइड SO2 के प्रदूषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है।)
जब डीडीटी (डाई क्लोरो, डाई फिनाइल ट्राई क्लोरो इथेन DDT) का मच्छरों के विरुद्ध पहली बार प्रयोग किया गया तो यह अत्यधिक कारगर या सफल साबित हुई। अधिकांश मच्छर डीडीटी के प्रति संवेदनशील थे अत: इस कौटनाशी के प्रयोग से मर गये। लेकिन आज डीडीटी मच्छरों के प्रति अपनी कारगरता खो बैठी है। इसकी निम्न प्रकार व्याख्या की जा सकती हैमच्छरों की मूल (original) समष्टि में कुछेक मच्छर डीडीटी के लिए प्रतिरोधी (resistant) थे। समष्टि में इनकी संख्या कम थी क्योंकि इनको डीडीटी के प्रति संवेदी मच्छरों की अपेक्षा कोई अतिरिक्त लाभ की स्थिति प्राप्त नहीं थी। जब व्यापक स्तर पर डीडीटी का प्रयोग किया गया तब अधिकांश मच्छरों की मृत्यु हो गई लेकिन डीडीटी के लिए प्रतिरोधकता के जीनोटाइप वाले मच्छर बचे रहे तथा प्रजनन करते रहे। इन्हीं की सन्ततियाँ बनती रहीं। इसके फलस्वरूप, एक समयावधि के बाद मच्छरों की लगभग पूरी की पूरी समष्टि मच्छरों की प्रतिरोधी प्रकार वाली हो गई। इससे डीडीटी प्रभावहीन (ineffective) हो गई। अत: जैव विकास, पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण समष्टि की जीन आवृत्ति में हुआ एक बदलाव है। प्राकृतिक वरण (natural selection) का सिद्धान्त हमें बताता है कि क्यों कोई कीटनाशी/पीड़कनाशी एक सीमित समय तक ही प्रभावी रहता है।
जीवाणुओं में प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधकता
यही नियम एंटीबायोटिक्स के लिए जीवाणुओं में विकसित हुई प्रतिरोधकता की व्याख्या के लिए प्रयोग किया जा सकता है। एंटीबायोटिक्स या प्रतिजैविक (antibiotics) वह रासायनिक पदार्थ हैं जो अन्य जीवधारियों (जीवाणुओं) को समाप्त कर देते हैं अथवा उनकी वृद्धि पर रोक लगा देते हैं। किसी भी एंटीबायोटिक के प्रयोग करने पर अधिकांश संवेदनशील जीवाणु इससे मर जाते हैं लेकिन इन जीवाणुओं की मूल समष्टि में कुछ जीवाणु ऐसे भी होते हैं जो अपने थोड़े से भिन्न जीनोटाइप के कारण इस एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधी होते हैं। एंटीबायोटिक की अनुपस्थिति में इस प्रकार के जीवाणुओं को कोई चयनात्मक लाभ (selective advantage) नहीं होता लेकिन एंटीबायोटिक का प्रयोग होते ही यह लाभ की स्थिति में आ जाते हैं। समष्टि में प्रारम्भ में इनकी संख्या कम होती है लेकिन अन्य संवेदनशील जीवाणुओं के मर जाने के कारण इन प्रतिरोधी जीवाणुओं के लिए प्रतिस्पर्धा नगण्य हो जाती है; अतः इनकी समष्टि तेजी से बढ़ने लगती है। शीघ्र ही पूरी समष्टि प्रतिरोधी जीवाणुओं की हो जाती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे सुपरबग्स (Super bugs) विकसित हो गये हैं जिन पर अधिकांश एंटीबायोटिक कारगर नहीं होती। ये वहीं प्रतिरोधी जीवाणु हैं।
मच्छरों में कीटनाशियों के लिए प्रतिरोधकता, जीवाणुओं में एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोधकता आदि केवल कुछ महीनों या वर्षों के परिणाम है सदियों के नहीं। औद्योगिक मीलनता तथा मच्छरों व जीवाणुओं की प्रतिरोधकता मानवोद्भवी या मानवीय क्रियाओं (Anthropogenic actions) द्वारा जीव विकास का परिणाम है। ये उदाहरण हमें यह भी बताते हैं कि जैव विकास किसी जीव की इच्छा से होने वाला प्रत्यक्ष विकास नहीं है, अपितु प्रकृति में होने वाली सांयोगिक घटनाओं व जीव में होने वाले सांयोगिक उत्परिवर्तनों के कारण होने वाली प्रसम्भाव्य (stochastic) घटना है। सरल शब्दों में दो घटनाएँ जीव विकास न के लिए उत्तरदायी है-
प्रश्न 30.
समजातता और समवृत्तिता में अन्तर बताएँ। दोनों का एक - एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी के प्रमाण (Evidences from Comparative Anatomy and Morphology):
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी वर्तमान जीवों व प्राचीन समय में रहे जीवों के बीच समानताएँ और भिन्नताएँ प्रदर्शित करती है। इन समानताओं द्वारा यह स्पष्ट किया जा सकता है कि दो जीवों समूहों के पूर्वज समान थे या नहीं। डार्विन स्वयं भी यह स्पष्ट कर सके कि साझा वंश अवतरण (common descent) परिकल्पना जीवों के बीच की शारीरिक समानताओं की एक स्वीकार्य व्याख्या प्रस्तुत करती है।
ऐसे कुछ प्रमाण निम्नलिखित हैं:
समजात अंग (Homologous Organs): व्हेल, चमगादड़, चीता व मनुष्य जैसे स्तनधारी (mammals) के अप्रपाद (forelimbs), अस्थियों के प्रकारों में समानता प्रदर्शित करते हैं। विभिन्न पर्यावासों में रहने वाले इन भिन्न प्रकार के जीवों में अग्रपाद अलग-अलग कार्य सम्पन्न करते है।
व्हेल में अग्रपाद फ्लिपर (Flippers) के रूप में परिवर्तित होते हैं अत: तैरने में मदद करते है, चमगादड़ में उड़ने में, चीता में दौड़ने में, मनुष्य में विविध कार्य सम्पन्न करने में मदद करते हैं। लेकिन इनकी शारीरिक संरचना समान होती है। सभी के अप्रपाद निम्न अस्थियों से बने होते हैं-प्रगंडिका या ह्यूमरस (humerus), प्रकोष्ठिका या रेडिअस (radius), अन्त:प्रकोष्ठिका या अल्ना (ulna), मणिबन्धिका या कार्पेल्स (carpels), करभिका या मेटाकापेल्स (metacarpels) तथा अंगुलस्थि या फैलेन्जेज (phallenges)। अत: इन जीवों में समान संरचनाएँ भिन्न - भिन्न कार्य सम्पन्न करने के लिए भिन्न दिशाओं में अनुकूलित हो जाती है। ऐसे अंग जो मौलिक संरचना में समान होते हैं, लेकिन अलग - अलग कार्य सम्पन्न करने के कारण अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो जाते हैं समजात अंग (homologous organs) कहलाते हैं। अर्थात समान पूर्वज से वंशागत होने के कारण समानता प्रदर्शित करने वाली शारीरिक संरचनाएँ जो भिन्न प्रकार से अनुकूलित होने के कारण भिन्न कार्य सम्पन्न करती हैं समजात अंग कहलाती हैं। समजातता (Homology) यह इंगित करती है कि जीवों के पूर्वज समान थे। उपर्युक्त, अग्रपाद के उदाहरण में समजातता यह स्पष्ट करती है कि इन सभी भिन्न - भिन्न प्रकार के स्तनधारियों का विकास समान पूर्वजों से हुआ है तथा यह भिन्न - भिन्न कार्य करने हेतु अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो गये हैं। समजातता के अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. रीढ़धारी (vertebrate) जन्तुओं का हृदय व मस्तिष्क। मछलियों में हृदय द्विकक्षीय (two chambered), उभयचरों में तीन कक्षीय (three chambered), सरीसृपों में अपूर्ण रूप से 4 कक्षीय (incompletely four chambered) तथा पक्षियों व स्तनधारियों में चार कक्षीय (four chambered) होता है।
2. पादपों में बोगेनविलिया (Bougainvillea) के कांटे (thorm) तथा कुकरबिटा के प्रतान (tendrils) समजात अंगों के उदाहरण हैं। दोनों के बाह्यरूप व कार्य अलग हैं लेकिन दोनों (कांटे व प्रतान) तने की कक्षस्थ कलिका (axillary bud) के रूपान्तरण हैं। कहा जा सकता है कि तना अलग - अलग कार्य करने के लिए रूपान्तरित हो गया है। समजातता (homology) अपसारी विकास (divergent evolution) की परिचायक है। समजात अंग एक - दूसरे से साझी पूर्वज परम्परा (common ancestory) द्वारा जुड़े होते हैं।
तुल्यरूप अग (Analogous organs)
जीवों के ऐसे अंग जो कार्य में समान लेकिन रचना में सर्वथा भिन्न होते हैं तुल्य रूप अंग (Analogous organs) कहलाते हैं तथा तुल्यरूप अंगों के पाये जाने की स्थित तुल्यरूपता (analogy) कहलाती है। तुल्यरूपता समरूपता के एकदम विपरीत स्थिति है। तुल्यरूप प्रदर्शित करने वाले जीवों के पूर्वज समान नहीं होते। पक्षियों व तितलियों के पंख (wings) समान कार्य करते हैं तथा समान प्रतीत होते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से वह समान संरचनाएँ नहीं हैं। पक्षी रीढ़धारी जन्तु हैं जिनमें अग्रपाद पंखों के रूप में रूपान्तरित होते है जबकि तितली अपृष्ठधारी (invertebrate) जन्तु है जिसमें पंख झिल्लीमय (membranous) होते हैं। स्पष्ट है दोनों के पंखों की संरचना में कोई समानता नहीं, अत: यह तुल्यरूप अंग हैं। तुल्यरूप संरचनाएं अभिसारी विकास (convergent evolution) का परिणाम है। भिन्न प्रकार की रचनाओं का समान कार्य करने हेतु विकास जिससे उनमें समानता विकसित हो जाये अभिसारी विकास (convergent evolution) कहलाता है। अर्थात भिन्न पूर्वज परम्परा वाले जीवों में समान कार्यों हेतु समानता विकसित हो जाना अभिसारी विकास है। तुल्यरूपता (analogy) के अन्य उदाहरण हैं-
ऑक्टोपस व स्तनधारियों की आँखें, दोनों में रेटिना की स्थिति विपरीत होती है।
• पेन्गुइन व डॉलफिन के फ्लिपर (flippers)
• नागफनी, माँसल यूफोर्बिया व घीग्वार (एलोवेरा)
• शकरकंद (sweet potato) व आलू।
शकरकंद भोजन संचय हेतु जड़ का रूपान्तरण है जबकि आलू इसी कार्य हेतु तने का रूपान्तरण है।
• मनुष्य के हाथ व हाथी की सूंड (trunk)।
दोनों ही भोजन ग्रहण करने (ingestion) व अन्य कार्यों में मदद करते हैं किन्तु दोनों रचना में सर्वथा भिन्न हैं। इन उदाहरणों के अध्ययन के बाद कहा जा सकता है कि समान पर्यावासों (habitat) के कारण जीवों के विभिन्न समूहों में समान कार्य हेतु समान अनुकूली लक्षणों का चयन हुआ है। अभिसारी विकास (convergent evolution) व समानान्तर विकास (parallel evolution) के कारण कभी-कभी समजातता की पहचान मुश्किल हो जाती है।
अवशेषी अंग (Vestigeal Organs): अवशेषी अंग शारीरिक लक्षण हैं, जो जीवों के एक समूह में पूर्ण विकसित, जबकि दूसरे समूह में अल्पविकसित या अकार्यशील होते हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य में पुच्छ कशेरुका (caudal vertebra), व्हेल में पाई जाने वाली अवशेषी श्रोणि मेखला व पश्चपाद, मनुष्य में निर्मषक पटल (nictitating membrane) आदि। अवशेषी अंग इसलिए पाये जाते है क्योंकि जीव के शारीरिक लक्षण उसे उसके पूर्वजों से वंशागत रूप में प्राप्त होते हैं। ये जीव के विकासीय इतिहास के चिह्न है। डार्विन का प्राकृतिक चयनवाद इसकी व्याख्या नहीं करता।
प्रश्न 31.
अपसारी और अभिसारी विकास में अन्तर बताइए। प्रत्येक का एक - एक उदाहरण दीजिए।
अथवा
समजात अंग किस प्रकार अपसारी विकास का निरूपण करते हैं? एक उपयुक्त उदाहरण देते हुए व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी के प्रमाण (Evidences from Comparative Anatomy and Morphology):
तुलनात्मक शारीरिकी व आकारिकी वर्तमान जीवों व प्राचीन समय में रहे जीवों के बीच समानताएँ और भिन्नताएँ प्रदर्शित करती है। इन समानताओं द्वारा यह स्पष्ट किया जा सकता है कि दो जीवों समूहों के पूर्वज समान थे या नहीं। डार्विन स्वयं भी यह स्पष्ट कर सके कि साझा वंश अवतरण (common descent) परिकल्पना जीवों के बीच की शारीरिक समानताओं की एक स्वीकार्य व्याख्या प्रस्तुत करती है।
ऐसे कुछ प्रमाण निम्नलिखित हैं:
समजात अंग (Homologous Organs): व्हेल, चमगादड़, चीता व मनुष्य जैसे स्तनधारी (mammals) के अप्रपाद (forelimbs), अस्थियों के प्रकारों में समानता प्रदर्शित करते हैं। विभिन्न पर्यावासों में रहने वाले इन भिन्न प्रकार के जीवों में अग्रपाद अलग-अलग कार्य सम्पन्न करते है।
व्हेल में अग्रपाद फ्लिपर (Flippers) के रूप में परिवर्तित होते हैं अत: तैरने में मदद करते है, चमगादड़ में उड़ने में, चीता में दौड़ने में, मनुष्य में विविध कार्य सम्पन्न करने में मदद करते हैं। लेकिन इनकी शारीरिक संरचना समान होती है। सभी के अप्रपाद निम्न अस्थियों से बने होते हैं-प्रगंडिका या ह्यूमरस (humerus), प्रकोष्ठिका या रेडिअस (radius), अन्त:प्रकोष्ठिका या अल्ना (ulna), मणिबन्धिका या कार्पेल्स (carpels), करभिका या मेटाकापेल्स (metacarpels) तथा अंगुलस्थि या फैलेन्जेज (phallenges)। अत: इन जीवों में समान संरचनाएँ भिन्न - भिन्न कार्य सम्पन्न करने के लिए भिन्न दिशाओं में अनुकूलित हो जाती है। ऐसे अंग जो मौलिक संरचना में समान होते हैं, लेकिन अलग - अलग कार्य सम्पन्न करने के कारण अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो जाते हैं समजात अंग (homologous organs) कहलाते हैं। अर्थात समान पूर्वज से वंशागत होने के कारण समानता प्रदर्शित करने वाली शारीरिक संरचनाएँ जो भिन्न प्रकार से अनुकूलित होने के कारण भिन्न कार्य सम्पन्न करती हैं समजात अंग कहलाती हैं। समजातता (Homology) यह इंगित करती है कि जीवों के पूर्वज समान थे। उपर्युक्त, अग्रपाद के उदाहरण में समजातता यह स्पष्ट करती है कि इन सभी भिन्न - भिन्न प्रकार के स्तनधारियों का विकास समान पूर्वजों से हुआ है तथा यह भिन्न - भिन्न कार्य करने हेतु अलग - अलग प्रकार से अनुकूलित हो गये हैं। समजातता के अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. रीढ़धारी (vertebrate) जन्तुओं का हृदय व मस्तिष्क। मछलियों में हृदय द्विकक्षीय (two chambered), उभयचरों में तीन कक्षीय (three chambered), सरीसृपों में अपूर्ण रूप से 4 कक्षीय (incompletely four chambered) तथा पक्षियों व स्तनधारियों में चार कक्षीय (four chambered) होता है।
2. पादपों में बोगेनविलिया (Bougainvillea) के कांटे (thorm) तथा कुकरबिटा के प्रतान (tendrils) समजात अंगों के उदाहरण हैं। दोनों के बाह्यरूप व कार्य अलग हैं लेकिन दोनों (कांटे व प्रतान) तने की कक्षस्थ कलिका (axillary bud) के रूपान्तरण हैं। कहा जा सकता है कि तना अलग - अलग कार्य करने के लिए रूपान्तरित हो गया है। समजातता (homology) अपसारी विकास (divergent evolution) की परिचायक है। समजात अंग एक - दूसरे से साझी पूर्वज परम्परा (common ancestory) द्वारा जुड़े होते हैं।
तुल्यरूप अग (Analogous organs)
जीवों के ऐसे अंग जो कार्य में समान लेकिन रचना में सर्वथा भिन्न होते हैं तुल्य रूप अंग (Analogous organs) कहलाते हैं तथा तुल्यरूप अंगों के पाये जाने की स्थित तुल्यरूपता (analogy) कहलाती है। तुल्यरूपता समरूपता के एकदम विपरीत स्थिति है। तुल्यरूप प्रदर्शित करने वाले जीवों के पूर्वज समान नहीं होते। पक्षियों व तितलियों के पंख (wings) समान कार्य करते हैं तथा समान प्रतीत होते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से वह समान संरचनाएँ नहीं हैं। पक्षी रीढ़धारी जन्तु हैं जिनमें अग्रपाद पंखों के रूप में रूपान्तरित होते है जबकि तितली अपृष्ठधारी (invertebrate) जन्तु है जिसमें पंख झिल्लीमय (membranous) होते हैं। स्पष्ट है दोनों के पंखों की संरचना में कोई समानता नहीं, अत: यह तुल्यरूप अंग हैं। तुल्यरूप संरचनाएं अभिसारी विकास (convergent evolution) का परिणाम है। भिन्न प्रकार की रचनाओं का समान कार्य करने हेतु विकास जिससे उनमें समानता विकसित हो जाये अभिसारी विकास (convergent evolution) कहलाता है। अर्थात भिन्न पूर्वज परम्परा वाले जीवों में समान कार्यों हेतु समानता विकसित हो जाना अभिसारी विकास है। तुल्यरूपता (analogy) के अन्य उदाहरण हैं-
ऑक्टोपस व स्तनधारियों की आँखें, दोनों में रेटिना की स्थिति विपरीत होती है।
• पेन्गुइन व डॉलफिन के फ्लिपर (flippers)
• नागफनी, माँसल यूफोर्बिया व घीग्वार (एलोवेरा)
• शकरकंद (sweet potato) व आलू।
शकरकंद भोजन संचय हेतु जड़ का रूपान्तरण है जबकि आलू इसी कार्य हेतु तने का रूपान्तरण है।
• मनुष्य के हाथ व हाथी की सूंड (trunk)।
दोनों ही भोजन ग्रहण करने (ingestion) व अन्य कार्यों में मदद करते हैं किन्तु दोनों रचना में सर्वथा भिन्न हैं। इन उदाहरणों के अध्ययन के बाद कहा जा सकता है कि समान पर्यावासों (habitat) के कारण जीवों के विभिन्न समूहों में समान कार्य हेतु समान अनुकूली लक्षणों का चयन हुआ है। अभिसारी विकास (convergent evolution) व समानान्तर विकास (parallel evolution) के कारण कभी-कभी समजातता की पहचान मुश्किल हो जाती है।
अवशेषी अंग (Vestigeal Organs): अवशेषी अंग शारीरिक लक्षण हैं, जो जीवों के एक समूह में पूर्ण विकसित, जबकि दूसरे समूह में अल्पविकसित या अकार्यशील होते हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य में पुच्छ कशेरुका (caudal vertebra), व्हेल में पाई जाने वाली अवशेषी श्रोणि मेखला व पश्चपाद, मनुष्य में निर्मषक पटल (nictitating membrane) आदि। अवशेषी अंग इसलिए पाये जाते है क्योंकि जीव के शारीरिक लक्षण उसे उसके पूर्वजों से वंशागत रूप में प्राप्त होते हैं। ये जीव के विकासीय इतिहास के चिह्न है। डार्विन का प्राकृतिक चयनवाद इसकी व्याख्या नहीं करता।
प्रश्न 32.
डार्विन के प्राकृतिककरण के सिद्धान्त के अनुसार नए जीवरूपों के अभिर्भाव की दर जीव के जीवन चक्र अथवा जीवन काल से सम्बद्ध है। एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक चयन (Natural Selection)
प्राकृतिक चयन या प्राकृतिक वरण वह प्रक्रिया है जो किसी समष्टि के जैविक (biotic) व अजैविक (abiotic) पर्यावरण के प्रति अनुकूलनों के रूप में परिलक्षित होती है। अर्थात वह प्रक्रिया जिसके कारण कोई समष्टि अपने पर्यावरण के प्रति बेहतर रूप से अनुकूलित हो जाती है, प्राकृतिक चयन कहलाती है।
जैविक पर्यावरण में अन्य जीवधारी शामिल होते है जो प्राकृतिक संसाधनों के लिए स्पर्धा (competetion) करते हैं। इनमें परजीवी व परभक्षी भी शामिल है। अजैविक पर्यावरण में ताप (temperature) व वर्षा जैसी मौसम की परिस्थितियाँ, मृदा (soil), प्रकाश आदि शामिल होते हैं। प्रजनन की भिन्नता ही जीव की उपयुक्तता की कसौटी है। इसके लिए वैज्ञानिक आपेक्षिक उपयुक्तता (Relative fitness) शब्द का प्रयोग करते हैं। इसका अर्थ है एक फीनोटाइप की तुलना में दूसरे फीनोटाइप की उपयुक्तता।
चयन के प्रकार (Types of Selection)
किसी भी लक्षण (trait) के लिए निम्न तीन प्रकार चयन हो सकते हैं-
दिशात्मक चयन (Directional Selection)
किसी एकदम अलग या अतिकारी लक्षण प्रारूप (extreme phenotype) के पक्ष में हुए चयन से वितरण वक्र उसी दिशा में खिसक जाता है, यही दिशात्मक चयन है। जब कोई समष्टि बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होती है तब इसी प्रकार का खिसकाव होता है। जीवाणुओं में एंटीबायोटिक्स के लिए तथा कीटों में कीटनाशियों के लिए उत्पन्न हुई प्रतिरोधकता दिशात्मक चयन के उदाहरण हैं। शलभ द्वारा औद्योगिक मीलनता का प्रदर्शन इसी प्रकार का चयन है।
A = एंटीबायोटिक के लिए संवेदी जीवाणु निवह
B = एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणु निवह
स्थायित्वकारी चयन (Stabilizing Selection)
समष्टि के किसी बीच के या माध्यमिक फीनोटाइप के पक्ष में हुआ चयन स्थायित्वकारी चयन कहलाता है। यह चयन पर्यावरण के स्थिर रहने वाले कारकों के प्रति समष्टि के अनुकूलनों में सुधार लाता है। सरल शब्दों में स्थायित्वकारी चयन औसत लक्षणों के पक्ष में तथा अतिकारी (extreme) लक्षणों के विरोध में होता है। अनेक वर्षों तक अस्पतालों से एकत्रित किए आँकड़े बतलाते हैं कि जन्म के समय औसत भार (3 - 4 kg) के बीच के मानव शिशुओं की उत्तरजीविता के अवसर, बहुत कम अथवा बहुत ज्यादा वजन वाले शिशुओं की अपेक्षा अधिक होते हैं। यह स्थायित्वकारी चयन का उदाहरण है। इस प्रकार का चयन अपरिवर्तनीय पर्यावरण में होता है। आबादी में समरूपता लाता है। यह भिन्नता व उद्विकासीय परिवर्तनों को रोकता है।
विदारक चयन (Disruptive Selection)
विदारक चयन में औसत फीनोटाइप की अपेक्षा दो या अधिक अतिकारी (extreme) फौनोटाइप का चयन होता है। अर्थात विदारक या विच्छेदक चयन समष्टि (आबादी) को दो या अधिक अनुकूलित रूपों में विभक्त करता है। यह समष्टि में समष्टि माध्य से दूर वाले फीनोटाइपों को प्रोत्साहित करता है। यह दर्शाता है कि लक्षण के अंतिम मान (extreme values) सर्वाधिक उपयुक्त है। इस प्रकार का चयन समष्टि में संतुलित बहुरूपता (Balanced polymorphism) स्थापित करता है। स्टेविन ने सूरजमुखी की आबादी में दो ऐसे प्रतिरूप देखे जिनमें एक नमभूमि में तथा दूसरा शुष्कभूमि में उगता था।
विभिन्नताओं का रखरखाव (Maintenance of Variations): एक समष्टि हमेशा कुछ आनुवंशिक विविधता प्रदर्शित करती है। इन विभिन्नताओं को बनाये रखना समष्टि के लिए लाभकारी होता है क्योंकि सीमित विभिन्नताओं की समष्टि के लिए नये पर्यावरण के प्रति अनुकूलन के कम अवसर होते हैं। यह विभिन्नताएँ कैसे बनाए रखी जाती है जबकि चयन इसको कम करने हेतु सदैव प्रयास करता रहता है।
इसमें पहला तर्क है कि नई विभिन्नताओं की उत्पत्ति एक कभी खत्म न होने वाली प्रक्रिया है। उत्परिवर्तन लगातार नये अलीलों का निर्माण करता रहता है। दूसरी ओर आनुवंशिक पुनसंयोजन इन अलीलों को युग्मक निर्माण व सांयोगिक निषेचन में अलग रूप से प्रस्तुत करता है। जीन प्रवाह भी कार्य कर सकता है। प्राकृतिक चयन विभिन्न फौनोटाइपों को कम करता है, उन्हें पूर्णत: समाप्त नहीं करता। विदारक चयन तो बहुरूपता को बढ़ावा देता है। सिकल सैल एनीमिया इसका एक रोचक उदाहरण है। जिससे विषमयुग्मजी अवस्था, उन क्षेत्रों में जहाँ मलेरिया एक गम्भीर स्वास्थ्य समस्या है लोगों को मलेरिया से बचाती है क्योंकि मलेरिया परजीवी हँसियाकार लाल रक्त कोशिकाओं में रह नहीं पाता।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
औद्योगिक मीलनता (अधिकृष्णता) का क्या अर्थ है? यह कैसे प्राकृतिक चयन की व्याख्या करती है?
उत्तर:
औद्योगिक मीलनता (Industrial Melanism)
प्राकृतिक चयन के पक्ष में एक और सशक्त प्रमाण औद्योगिक मीलनता (industrial melanism) का उदाहरण है। बिस्टन बेटुलेरिया (Biston betularia) नामक शलभ इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति (industrial revolution) से पहले बहुतायत से पाया जाता था। सन् 1850, में शलभों पर हुए अध्ययनों से यही परिणाम प्राप्त हुए। बड़ी संख्या में पाये जाने वाले इस शलभ का रंग सलेटी (grey) था। इसी शलभ (moth) का एक उत्परिवर्ती (mutant) काले रंग का था और बहुत कम संख्या में पाया जाता था। यह प्रभावी उत्परिवर्ती (dominant mutant) जिसका नाम कार्बोनरिया (carboneria) था सिर्फ एक अलील में सलेटी शलभ से भिन्न था। अर्थात सलेटी रंग के शलभों की समष्टि में इक्कादुक्का काले कार्बोनेरिया शलभ पाये जाते थे। लेकिन दो सौ वर्षों के सफर में कार्बोनेरिया (काले) शलभों की समष्टि 90 प्रतिशत तक बढ़ गई। इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती हैं-
शलभ (moth) वृक्षों के तनों पर बैठते हैं।
औद्योगिक क्रान्ति से पहले वृक्षों के तने सलेटी रंग के लाइकेनों (lichens) द्वारा ढके रहते थे। गंदले सलेटी (dull grey) रंग के यह कीट सलेटी रंग के लाइकेनों की पृष्ठभूमि में आसानी से छिपे रहते थे। कोटभक्षी इस समान पृष्ठभूमि कैमोफ्लेज (camouflage) के कारण इन्हें देख नहीं पाते थे अत: यह कौट इनके शिकार से बच जाते थे। लेकिन काले रंग के कानोंनेरिया शलभ, कीटभक्षियों का आसानी से शिकार बन जाते थे अत: उनकी समष्टि में आवृत्ति कम थी। इस विचार को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था, काले शलभों की आवृत्ति कम ही रही। इससे स्पष्ट हुआ कि एक मिली - जुली समष्टि में बेहतर अनुकूलन वाले जीव जीवित रहते हैं व वही समष्टि का आकार बढ़ाते हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि किसी भी विभिन्नता (काले शलभ) को प्रकृति ने पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया।
औद्योगिक क्रान्ति होने पर (सन् 1920 के बाद) बड़े स्तर पर कोयले का दहन सामान्य हो गया। कोयले के जलने से बने धुएँ और कणिकीय काले पदार्थ (soot) ने वृक्षों के तनों को ढक लिया। इससे पेड़ों के तने काले दिखने लगे, फलस्वरूप सलेटी रंग के शलभ इन पर स्पष्टता से दिखने लगे व काले शलभ पृष्ठभूमि में छिपने में सफल रहे। अब सलेटी कीट परभक्षी पक्षियों के अधिक शिकार बनने लगे जिससे समष्टि में काले कीटों की आवृत्ति बढ़ गई। धीरे - धीरे उद्योगों में कोयले की जगह विद्युत व ऊर्जा के अन्य गैर प्रदूषणकारी स्रोतों का प्रयोग होने लगा। कणिकीय कार्बन के उत्सर्जन को रोकने अर्थात पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के उपायों से वृक्षों पर काले कणिकीय पदार्थ के जमाव में कमी आई। परिस्थितियाँ एक बार फिर सलेटी रंग के शलभों की उत्तरजीविता (survival) के लिए अधिक उपयुक्त हो गई अतः समष्टि में उनकी आवृत्ति एक बार फिर बढ़ गई।
औद्योगिक मीलनता (industrial melanism) इस प्रकार प्राकृतिक चयन का एक स्पष्ट व रोचक उदाहरण प्रस्तुत करता है। शलभों (moths) की 70 विभिन्न प्रजातियों में इस परिघटना को इंग्लैंड के साथ-साथ अन्य यूरोपीय देशों में देखा गया। (लाइकेन प्रदूषण के सूचक (indicator of pollution) के रूप में प्रयोग होते हैं, यह सल्फर डाई आक्साइड SO2 के प्रदूषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है।)
जब डीडीटी (डाई क्लोरो, डाई फिनाइल ट्राई क्लोरो इथेन DDT) का मच्छरों के विरुद्ध पहली बार प्रयोग किया गया तो यह अत्यधिक कारगर या सफल साबित हुई। अधिकांश मच्छर डीडीटी के प्रति संवेदनशील थे अत: इस कौटनाशी के प्रयोग से मर गये। लेकिन आज डीडीटी मच्छरों के प्रति अपनी कारगरता खो बैठी है। इसकी निम्न प्रकार व्याख्या की जा सकती हैमच्छरों की मूल (original) समष्टि में कुछेक मच्छर डीडीटी के लिए प्रतिरोधी (resistant) थे। समष्टि में इनकी संख्या कम थी क्योंकि इनको डीडीटी के प्रति संवेदी मच्छरों की अपेक्षा कोई अतिरिक्त लाभ की स्थिति प्राप्त नहीं थी। जब व्यापक स्तर पर डीडीटी का प्रयोग किया गया तब अधिकांश मच्छरों की मृत्यु हो गई लेकिन डीडीटी के लिए प्रतिरोधकता के जीनोटाइप वाले मच्छर बचे रहे तथा प्रजनन करते रहे। इन्हीं की सन्ततियाँ बनती रहीं। इसके फलस्वरूप, एक समयावधि के बाद मच्छरों की लगभग पूरी की पूरी समष्टि मच्छरों की प्रतिरोधी प्रकार वाली हो गई। इससे डीडीटी प्रभावहीन (ineffective) हो गई। अत: जैव विकास, पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण समष्टि की जीन आवृत्ति में हुआ एक बदलाव है। प्राकृतिक वरण (natural selection) का सिद्धान्त हमें बताता है कि क्यों कोई कीटनाशी/पीड़कनाशी एक सीमित समय तक ही प्रभावी रहता है।
जीवाणुओं में प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधकता
यही नियम एंटीबायोटिक्स के लिए जीवाणुओं में विकसित हुई प्रतिरोधकता की व्याख्या के लिए प्रयोग किया जा सकता है। एंटीबायोटिक्स या प्रतिजैविक (antibiotics) वह रासायनिक पदार्थ हैं जो अन्य जीवधारियों (जीवाणुओं) को समाप्त कर देते हैं अथवा उनकी वृद्धि पर रोक लगा देते हैं। किसी भी एंटीबायोटिक के प्रयोग करने पर अधिकांश संवेदनशील जीवाणु इससे मर जाते हैं लेकिन इन जीवाणुओं की मूल समष्टि में कुछ जीवाणु ऐसे भी होते हैं जो अपने थोड़े से भिन्न जीनोटाइप के कारण इस एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधी होते हैं। एंटीबायोटिक की अनुपस्थिति में इस प्रकार के जीवाणुओं को कोई चयनात्मक लाभ (selective advantage) नहीं होता लेकिन एंटीबायोटिक का प्रयोग होते ही यह लाभ की स्थिति में आ जाते हैं। समष्टि में प्रारम्भ में इनकी संख्या कम होती है लेकिन अन्य संवेदनशील जीवाणुओं के मर जाने के कारण इन प्रतिरोधी जीवाणुओं के लिए प्रतिस्पर्धा नगण्य हो जाती है; अतः इनकी समष्टि तेजी से बढ़ने लगती है। शीघ्र ही पूरी समष्टि प्रतिरोधी जीवाणुओं की हो जाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे सुपरबग्स (Super bugs) विकसित हो गये हैं जिन पर अधिकांश एंटीबायोटिक कारगर नहीं होती। ये वहीं प्रतिरोधी जीवाणु हैं।
मच्छरों में कीटनाशियों के लिए प्रतिरोधकता, जीवाणुओं में एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोधकता आदि केवल कुछ महीनों या वर्षों के परिणाम है सदियों के नहीं। औद्योगिक मीलनता तथा मच्छरों व जीवाणुओं की प्रतिरोधकता मानवोद्भवी या मानवीय क्रियाओं (Anthropogenic actions) द्वारा जीव विकास का परिणाम है। ये उदाहरण हमें यह भी बताते हैं कि जैव विकास किसी जीव की इच्छा से होने वाला प्रत्यक्ष विकास नहीं है, अपितु प्रकृति में होने वाली सांयोगिक घटनाओं व जीव में होने वाले सांयोगिक उत्परिवर्तनों के कारण होने वाली प्रसम्भाव्य (stochastic) घटना है। सरल शब्दों में दो घटनाएँ जीव विकास न के लिए उत्तरदायी है-
प्रश्न 2.
हार्विन के प्राकृतिक चयनवाद के मुख्य विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
डार्विन वाद (Darwin's Theory)
दिसम्बर 1831 में, जीव विज्ञान के इतिहास में एक नये अध्याय का प्रारम्भ हो रहा था जब 22 वर्षीय प्रकृतिविद् (naturalist) चार्ल्स डार्विन (Charls Darwin; 1809 - 1882) ब्रिटिश नौसेना के पानी के जहाज एच एम एस बीगल (HMS Beagle) पर अपने जीवन की एक ऐतिहासिक समुद्र यात्रा पर निकले। जहाज के कैप्टन को आशा थी कि चार्ल्स डार्विन विश्व की इस यात्रा में बाइबल के विशिष्ट सृष्टिवाद के समर्थन में साक्ष्य जुटाएंगे।
डार्विन ने अनेक क्षेत्रों से जुटाए सभी प्रकार के आँकड़ों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी बहुत ही पुरानी है, मात्र हजारों साल उम्र की नहीं तथा जैव विकास ही वह तरीका है जिसके द्वारा प्रजातियाँ बनती हैं व परिवर्तित होती हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में हुई बौद्धिक (intellectual) व वैज्ञानिक प्रगति से डार्विन के विचारों को बल मिला। इंग्लैंड लौटने पर डार्विन ने संग्रहित किये प्रदर्शो (specimens), अपने प्रेक्षणों (observations), अनुभवों व तर्को द्वारा यह निष्कर्ष निकाला कि प्रजातियों में अनुकूलन (adaptations) समय के साथ विकसित होते हैं, सृजनकर्ता द्वारा तुरंत पैदा नहीं किये जाते। उसने पाया कि आज के जीवनरूप (प्रजातियाँ) न सिर्फ आपस में समानताएँ साझा करते है अपितु उनसे भी कुछ समानता प्रदर्शित करते हैं जो लाखों वर्ष पहले पृथ्वी पर रहे होंगे। ऐसे अनेक जीवनरूप अब विलुप्त भी हो गये हैं। जैसे पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में नये - नये प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई इसी तरह समय के साथ विभिन्न जीवनरूप विलुप्त होते आवे हैं तथा जीवनरूपों का क्रमिक विकास (gradual evolution) हुआ है।
डार्विन ने इसी आधार पर विकास सम्बंधी अपना प्राकृतिक चयन (Natural Selection) का मत प्रतिपादित किया। प्राकृतिक चयनवाद को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है-
(i) किसी समष्टि (population) के सदस्यों में वंशागत विभिन्नताएँ (heritable variations) होती हैं।
डार्विन ने बताया कि किसी समष्टि के सदस्यों के शारीरिक, क्रियात्मक व व्यवहारगत लक्षणों (physical, functional and behavioral characteristics) में भिन्नता होती हैं। डार्विन ने माना कि यह विभिन्नताएँ प्राकृतिक चयन हेतु अत्यंत आवश्यक होती हैं। (डार्विन को विभिन्नताओं के कारण के बारे में जानकारी नहीं थी) डार्विन के समय आनुवंशिकी (genetics) भी इतनी स्थापित नहीं थी। पर्यावरण के प्रति अनुकूलन को सम्भव बनाने वाली विभिन्नताओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाना आवश्यक होता है, अर्थात यह वंशागत विभिन्नताएँ होती हैं।
(ii) किसी समष्टि की प्रत्येक पीढ़ी में, पर्यावरण की वहन क्षमता से भी अधिक जीव उत्पन्न होते हैं, अर्थात जीवों में प्रजनन की अपार क्षमता होती है।
प्रत्येक पीढ़ी के जीवों में पिछली पीढ़ी के जीवों के समान ही प्रजनन क्षमता होती है, अत: उत्तरजीविता के लिए संघर्ष (Struggle for Existence) लगातार बना रहता है।
(iii) जीव उपयुक्तता (fitness) में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं।
यहाँ किसी जीव की उपयुक्तता या फिटनेस का अर्थ समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा उसकी प्रजनन की सफलता से है। अर्थात जीव की उपयुक्तता उसके जनन की उपयुक्तता (reproductive fitness) तक ही सीमित है। इसका अर्थ है कि सफलतम जीव वह है जो समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक संसाधनों (resources) का प्रयोग कर इन संसाधनों को बड़ी संख्या में जीवित संततियों के रूप में परिवर्तित कर देता है। उत्तरजीविता में संघर्ष से उपयुक्त जीव ही बच पाते हैं।
(iv) जीव अनुकूलित हो जाते हैं।
किसी जीव के शारीरिक, कार्यात्मक या व्यवहारात्मक लक्षण जो उसे किसी पर्यावरण विशेष में रहने हेतु सक्षम बनाते है अनुकूलन (adaptations) कहलाते हैं। समष्टि के जीवों में उनके पर्यावरण के प्रति हुए अनुकूलन प्राकृतिक चयन (Natural selection) का ही परिणाम होते हैं। यह प्राकृतिक चयन है, जो धीरे-धीरे नई प्रजातियों को जन्म देता है। एच एम एस बीगल से अपनी यात्रा खत्म कर डार्विन 1936 में वापस इंग्लैंड आये। डार्विन ने अपने विचारों को लिखित रूप देने, उन्हें प्रकाशित करने में 20 वर्ष का समय लिया। इस बीच के समय में डार्विन ने अपनी संकल्पना कि "आज के विविध जीवन रूप समान पूर्वजों से विकसित हुए हैं तथा प्राकृतिक चयन ही वह विधि है जिसके द्वारा प्रजातियों में परिवर्तन होते हैं व नई प्रजातियों की उत्पत्ति होती है" का परीक्षण करने हेतु वैज्ञानिक तथ्यों व प्रक्रियाओं का सहारा लिया। डार्विन ने एक अन्य समकालीन वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वैलेस की बिल्कुल समान परिकल्पना पढ़ने के बाद अपनी पुस्तक "आन द ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज" (On the Origin of Species) प्रकाशित करने का निर्णय लिया।
प्रश्न 3.
मानव विकास से सम्बंधित कम से कम 5 प्रजातियों के वैज्ञानिक नाम क्रमबद्ध रूप से लिखिए जिनमें प्रथम व अंतिम के समय के बीच 15 मिलियन वर्ष का अन्तर हो। सब की एक - एक विशिष्टता बताएँ।
उत्तर:
आस्ट्रैलोपिथीकस (Australopithecus)-1924 ईदृ में रेमंड डार्ट (Raymond Dart) को दक्षिणी अफ्रीका के टॉग्स (Taungs) नामक स्थान से कई ऐसी खोपड़ियाँ प्राप्त हुईं जो मानवाकार थीं। डार्ट ने उन्हें आस्ट्रैलोपिथीकस का नाम दिया। आस्ट्रैलोपिथीकस का अर्थ है, दक्षिण में पाया जानेवाला कपि, अतएव इसका ऑस्ट्रलिया देश से कोई संबंध नहीं है। 1936 ईदृ में दक्षिणी अफ्रीका के ही स्टर्कफॉण्टीन (Sterkfontein) नामक स्थान से रॉबर्ट ब्रूम (Robert Broom) ने ऑस्ट्रैलोपिथीकस के अन्य जीवाश्म अत्यंतनूतन युग के स्तरों से प्राप्त किए। आद्य मानव के सभी जीवाश्म इसी युग से प्राप्त किए गए हैं, अतएव इसे मानव विकास का युग कहा जाता है। आस्ट्रैलोपिथीकस का जीवाश्म इस युग के अन्य सभी जीवाश्मों में अधिक मानवाकार था। यहाँ तक कि इसके कुछ लक्षण मनुष्य से भी मिलते थे; उदाहरणार्थ, खोपड़ी की मेरुदंड पर अग्रिम स्थिति (उसके खड़े होकर चलने का द्योतक), ललाट का गोलाकार होना, भौं-अस्थियों के भारी होते हुए भी उभार का न होना, जबड़े की आकृति, कृंतकों (incisors) का छोटा तथा कम नुकीला होना (यद्यपि रदनक लंबे थे), कूल्हे की इलियम (ilium) नामक अस्थि का चौड़ा होना तथा अन्य बहुत से गुणों में आस्ट्रैलोपिथीकस मनुष्य के इतने निकट था कि उसे मानव परिवार, "होमिनिडी" (Hominidae), में समाविष्ट करना स्वाभाविक हो जाता है।
कपालगुहा के आयतन (600 घन सेंमीदृ) में अवश्य ही वह मनुष्य (कपालगुहा का आयतन 1,000 घन सेंमी) से पिछड़ा था और विशद विचार रखनेवाले इस गुण को अत्यधिक महत्व देते हैं, परंतु जो भी मनुष्य का पूर्वज होगा, उसकी कपाल गुहा वर्तमान मनुष्य से अवश्य कम रहेगी। ऑस्ट्रैलोपिकस में यह बात महत्व की है कि उसकी कपालगुहा का आयतन मनुष्य से कम होते हुए भी वर्तमान मानवाकार कपियों से अधिक था। फिर भी ऑस्ट्रैलोपिथीकस के मनुष्य के पूर्वज होने में एक शंका रह ही जाती है और वह है युग की। यह सर्वविदित है कि जिस युग में ऑस्ट्रैलोपिथीकस था, उसमें उससे अधिक विकसित मानव उपस्थित थे। अतएव मनुष्य का पूर्वज होने के लिये ऑस्ट्रैलोपिथीकस की उपस्थिति और पहले होनी चाहिए थी।
होमोहैबिलिस (Homohabilis)-पूर्वी अफ्रीका के टैंगैन्यीका (Tanganyika) स्थान से होमोहैबिलिस नामक कुछ विकसित मानव आकृति का जीवाश्म प्राप्त हुआ। इसके आविष्कर्ता थे एलदृ एसदृ बीदृ लीके (L. S. B. Leakey), पीदृ वीदृ टोबियास (P. V. Tobias) तथा जे आर नेपियर (J.R. Napier)। इस मानव की लंबाई 4 फुट और हाथ अधिक विकसित थे, जो उपकरण और झोपड़ी बना सकने की उसकी क्षमता की ओर संकेत करता है। उसकी कपालगुहा का आयतन लगभग 680 घन सेंमी (ऑस्ट्रैलोपिथीकस से अधिक) है।
प्रश्न 4.
निम्न चित्र का क्या अर्थ है? इसके महत्व का वर्णन करें।
अल्फ्रेड रसैल वैलेस (Alfred Russel Wallace)
अल्फ्रेड वैलेस (1823 - 1913), एक ब्रिटिश प्रकृति विज्ञानी थे जिन्होंने स्वतंत्र रूप से बताया कि नई प्रजातियों की उत्पत्ति प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया के द्वारा होती है। डार्विन की तरह ही वैलेस ने भी इंग्लैंड व बाहर के देशों में जीव - जन्तुओं, पेड़ - पौधों का अध्ययन व संग्रह किया। उन्होंने सन 1854 - 1862 के बीच मलय आर्कीपेलेगो (Malay Archipelago) का दौरा किया। आकपिलेगो के द्वीपों को एक कम चौड़ी लेकिन गहरी रेखा विभाजित करती है। जिसे वैलेस के सम्मान में वैलेस लाइन (Wallace line) कहा जाता है। इस रेखा के दोनों ओर के जीव - जन्तु अन्तर प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने मलय आकपिलेगो के साथ अमेजोन की भी यात्रा की तथा अपने लेख में लिखा कि “प्रत्येक प्रजाति अपनी पूर्ववर्ती समान प्रजातियों से समय व स्थान दोनों की सह सांयोगिक घटनाओं के कारण बनती है। स्पष्ट है वैलेस प्रजाति की उत्पत्ति में विश्वास करते थे प्रजातियों को स्थिर (fix) नहीं मानते थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में पृथ्वी पर स्थित सभी जीवों में समानताएँ हैं व सभी एक साझे (समान) पूर्वज से विकसित हुए हैं। यह पूर्वज पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में (इपोक, पीरियड व इरा) में उपस्थित थे। पृथ्वी का भू वैज्ञानिक इतिहास पृथ्वी के जैव वैज्ञानिक इतिहास से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। उन्होंने प्राकृतिक चयन व उपयुक्ततम की उत्तरजीविता (survival of the fittest) सम्बंधी विचार पढ़ने व टिप्पणी करने हेतु डार्विन के पास भेजे, जिन्हें पाकर डार्विन आश्चर्यचकित हो गये। वैलेस के विचार इतने प्रभावशाली थे कि डार्विन ने अपने सिद्धान्त के शीर्षकों के रूप में वैलेस द्वारा सुझाये शब्दों का प्रयोग किया। डार्विन व वैलेस दोनों के ही मतों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है पृथ्वी बहुत ही पुरानी है। करोड़ों-अरबों वर्ष पुरानी, मात्र 4000 वर्ष पुरानी नहीं, जैसा कि पुराने धार्मिक विचारकों का मत था। आज पृथ्वी की आयु निर्धारित करने की वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं, अत: आज के सन्दर्भ में इन पुराने मतों का सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है, अन्यथा यह प्रासंगिक नहीं।
प्रश्न 5.
जीवन की उत्पत्ति से सम्बंधित किन्हीं तीन वादों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल्फ्रेड रसैल वैलेस (Alfred Russel Wallace)
अल्फ्रेड वैलेस (1823 - 1913), एक ब्रिटिश प्रकृति विज्ञानी थे जिन्होंने स्वतंत्र रूप से बताया कि नई प्रजातियों की उत्पत्ति प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया के द्वारा होती है। डार्विन की तरह ही वैलेस ने भी इंग्लैंड व बाहर के देशों में जीव - जन्तुओं, पेड़ - पौधों का अध्ययन व संग्रह किया। उन्होंने सन 1854 - 1862 के बीच मलय आर्कीपेलेगो (Malay Archipelago) का दौरा किया। आकपिलेगो के द्वीपों को एक कम चौड़ी लेकिन गहरी रेखा विभाजित करती है। जिसे वैलेस के सम्मान में वैलेस लाइन (Wallace line) कहा जाता है। इस रेखा के दोनों ओर के जीव - जन्तु अन्तर प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने मलय आकपिलेगो के साथ अमेजोन की भी यात्रा की तथा अपने लेख में लिखा कि “प्रत्येक प्रजाति अपनी पूर्ववर्ती समान प्रजातियों से समय व स्थान दोनों की सह सांयोगिक घटनाओं के कारण बनती है। स्पष्ट है वैलेस प्रजाति की उत्पत्ति में विश्वास करते थे प्रजातियों को स्थिर (fix) नहीं मानते थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में पृथ्वी पर स्थित सभी जीवों में समानताएँ हैं व सभी एक साझे (समान) पूर्वज से विकसित हुए हैं। यह पूर्वज पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में (इपोक, पीरियड व इरा) में उपस्थित थे। पृथ्वी का भू वैज्ञानिक इतिहास पृथ्वी के जैव वैज्ञानिक इतिहास से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। उन्होंने प्राकृतिक चयन व उपयुक्ततम की उत्तरजीविता (survival of the fittest) सम्बंधी विचार पढ़ने व टिप्पणी करने हेतु डार्विन के पास भेजे, जिन्हें पाकर डार्विन आश्चर्यचकित हो गये। वैलेस के विचार इतने प्रभावशाली थे कि डार्विन ने अपने सिद्धान्त के शीर्षकों के रूप में वैलेस द्वारा सुझाये शब्दों का प्रयोग किया। डार्विन व वैलेस दोनों के ही मतों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है पृथ्वी बहुत ही पुरानी है। करोड़ों-अरबों वर्ष पुरानी, मात्र 4000 वर्ष पुरानी नहीं, जैसा कि पुराने धार्मिक विचारकों का मत था। आज पृथ्वी की आयु निर्धारित करने की वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं, अत: आज के सन्दर्भ में इन पुराने मतों का सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है, अन्यथा यह प्रासंगिक नहीं।
प्रश्न 6.
प्राकृतिक चयन व इसके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डार्विन वाद (Darwin's Theory)
दिसम्बर 1831 में, जीव विज्ञान के इतिहास में एक नये अध्याय का प्रारम्भ हो रहा था जब 22 वर्षीय प्रकृतिविद् (naturalist) चार्ल्स डार्विन (Charls Darwin; 1809 - 1882) ब्रिटिश नौसेना के पानी के जहाज एच एम एस बीगल (HMS Beagle) पर अपने जीवन की एक ऐतिहासिक समुद्र यात्रा पर निकले। जहाज के कैप्टन को आशा थी कि चार्ल्स डार्विन विश्व की इस यात्रा में बाइबल के विशिष्ट सृष्टिवाद के समर्थन में साक्ष्य जुटाएंगे।
डार्विन ने अनेक क्षेत्रों से जुटाए सभी प्रकार के आँकड़ों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी बहुत ही पुरानी है, मात्र हजारों साल उम्र की नहीं तथा जैव विकास ही वह तरीका है जिसके द्वारा प्रजातियाँ बनती हैं व परिवर्तित होती हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में हुई बौद्धिक (intellectual) व वैज्ञानिक प्रगति से डार्विन के विचारों को बल मिला। इंग्लैंड लौटने पर डार्विन ने संग्रहित किये प्रदर्शो (specimens), अपने प्रेक्षणों (observations), अनुभवों व तर्को द्वारा यह निष्कर्ष निकाला कि प्रजातियों में अनुकूलन (adaptations) समय के साथ विकसित होते हैं, सृजनकर्ता द्वारा तुरंत पैदा नहीं किये जाते। उसने पाया कि आज के जीवनरूप (प्रजातियाँ) न सिर्फ आपस में समानताएँ साझा करते है अपितु उनसे भी कुछ समानता प्रदर्शित करते हैं जो लाखों वर्ष पहले पृथ्वी पर रहे होंगे। ऐसे अनेक जीवनरूप अब विलुप्त भी हो गये हैं। जैसे पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में नये - नये प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई इसी तरह समय के साथ विभिन्न जीवनरूप विलुप्त होते आवे हैं तथा जीवनरूपों का क्रमिक विकास (gradual evolution) हुआ है।
डार्विन ने इसी आधार पर विकास सम्बंधी अपना प्राकृतिक चयन (Natural Selection) का मत प्रतिपादित किया। प्राकृतिक चयनवाद को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है-
(i) किसी समष्टि (population) के सदस्यों में वंशागत विभिन्नताएँ (heritable variations) होती हैं।
डार्विन ने बताया कि किसी समष्टि के सदस्यों के शारीरिक, क्रियात्मक व व्यवहारगत लक्षणों (physical, functional and behavioral characteristics) में भिन्नता होती हैं। डार्विन ने माना कि यह विभिन्नताएँ प्राकृतिक चयन हेतु अत्यंत आवश्यक होती हैं। (डार्विन को विभिन्नताओं के कारण के बारे में जानकारी नहीं थी) डार्विन के समय आनुवंशिकी (genetics) भी इतनी स्थापित नहीं थी। पर्यावरण के प्रति अनुकूलन को सम्भव बनाने वाली विभिन्नताओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाना आवश्यक होता है, अर्थात यह वंशागत विभिन्नताएँ होती हैं।
(ii) किसी समष्टि की प्रत्येक पीढ़ी में, पर्यावरण की वहन क्षमता से भी अधिक जीव उत्पन्न होते हैं, अर्थात जीवों में प्रजनन की अपार क्षमता होती है।
प्रत्येक पीढ़ी के जीवों में पिछली पीढ़ी के जीवों के समान ही प्रजनन क्षमता होती है, अत: उत्तरजीविता के लिए संघर्ष (Struggle for Existence) लगातार बना रहता है।
(iii) जीव उपयुक्तता (fitness) में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं।
यहाँ किसी जीव की उपयुक्तता या फिटनेस का अर्थ समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा उसकी प्रजनन की सफलता से है। अर्थात जीव की उपयुक्तता उसके जनन की उपयुक्तता (reproductive fitness) तक ही सीमित है। इसका अर्थ है कि सफलतम जीव वह है जो समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक संसाधनों (resources) का प्रयोग कर इन संसाधनों को बड़ी संख्या में जीवित संततियों के रूप में परिवर्तित कर देता है। उत्तरजीविता में संघर्ष से उपयुक्त जीव ही बच पाते हैं।
(iv) जीव अनुकूलित हो जाते हैं।
किसी जीव के शारीरिक, कार्यात्मक या व्यवहारात्मक लक्षण जो उसे किसी पर्यावरण विशेष में रहने हेतु सक्षम बनाते है अनुकूलन (adaptations) कहलाते हैं। समष्टि के जीवों में उनके पर्यावरण के प्रति हुए अनुकूलन प्राकृतिक चयन (Natural selection) का ही परिणाम होते हैं। यह प्राकृतिक चयन है, जो धीरे-धीरे नई प्रजातियों को जन्म देता है। एच एम एस बीगल से अपनी यात्रा खत्म कर डार्विन 1936 में वापस इंग्लैंड आये। डार्विन ने अपने विचारों को लिखित रूप देने, उन्हें प्रकाशित करने में 20 वर्ष का समय लिया। इस बीच के समय में डार्विन ने अपनी संकल्पना कि "आज के विविध जीवन रूप समान पूर्वजों से विकसित हुए हैं तथा प्राकृतिक चयन ही वह विधि है जिसके द्वारा प्रजातियों में परिवर्तन होते हैं व नई प्रजातियों की उत्पत्ति होती है" का परीक्षण करने हेतु वैज्ञानिक तथ्यों व प्रक्रियाओं का सहारा लिया। डार्विन ने एक अन्य समकालीन वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वैलेस की बिल्कुल समान परिकल्पना पढ़ने के बाद अपनी पुस्तक "आन द ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज" (On the Origin of Species) प्रकाशित करने का निर्णय लिया।
प्रश्न 7.
ह्यूगो डि तीज के सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु लिखिए। डार्विन का प्राकृतिक वरण सिद्धान्त इससे किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
विकास की क्रियाविधि (Mechanism of Evolution)
चाल्स डार्विन ने इस तथ्य पर बल दिया कि समष्टि के सदस्य भिन्नता प्रदर्शित करते हैं जो प्राकृतिक वरण का आधार बनती है। लेकिन उसे इन विभिन्नताओं के स्रोत के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। उसे ज्ञात नहीं था कि कहाँ से यह विभिन्नताएँ आती है व कैसे इनका संचरण होता है। डार्विन ने मेण्डल द्वारा सुझायो आनुवंशिकी की इकाइयों पर भी चुप्पी साधे रखी।
ह्यूगो डि तीज का उत्परिवर्तनवाद (Mutation theory of Hugo de Vries)
बीसवीं सदी के पहले दशक में गो डी बीज (Hugo de Vries) ने इवनिंग प्रिमरोज पर किये कार्य के आधार पर उत्परिवर्तन (mutation) की संकल्पना प्रस्तुत की। आप पिछले अध्याय में आनुवंशिक पदार्थ में अचानक होने वाले वंशागत परिवर्तनों (अर्थात उत्परिवर्तनों) के बारे में जान चुके हैं। ह्यूगो डि ब्रीज का मानना था कि विकास का कारण बड़े उत्परिवर्तन थे डार्विन द्वारा सुझाई छोटी-छोटी विभिन्नताएँ नहीं। उत्परिवर्तन सांयोगिक (random) व दिशाहीन (directionless) होते हैं जबकि डार्विन द्वारा सझायी भिन्नताएँ छोटी व दिशीय (directional) थीं। डि ब्रीज के उत्परिवर्तनवाद (mutation theory) की निम्न विशेषताएँ हैं-
बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक 1930s से पहले तक समष्टि आनुवंशिकी (Population genetics), आनुवंशिकी के सिद्धान्तों को समष्टि अध्ययन में प्रयोग कर यह जानने में सक्षम नहीं थी कि विकास कब हुआ। समष्टि आनुवंशिकी में बाद में हुए अध्ययनों से विकास की प्रक्रिया की समझ में और स्पष्टता आई।
समष्टि (Population): किसी एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में, किसी निश्चित समय पर पाई जाने वाले एक ही प्रजाति के जीव एक समष्टि (population) का निर्माण करते हैं। एक प्रजाति के सभी सदस्य अन्तः प्रजनन (interbreeding) करने में सक्षम होते हैं तथा प्रजननक्षम (fertile) संतति बनाते हैं।
सूक्ष्म जैव विकास (Micro - evolution)
किसी समष्टि (population) के अन्दर हुआ विकासीय बदलाव माइक्रोइवोल्यूशन या सूक्ष्म जैव विकास कहलाता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि समष्टि के जीनपूल में आपेक्षिक रूप से कम समयावधि में छोटे - छोटे बदलावों का एकत्रित होना सूक्ष्मजीव विकास कहलाता है। सूक्ष्म जैव विकास प्रजातियों की उत्पत्ति में स्पष्ट भूमिका निभाता है। दूसरे शब्दों में यह समष्टि की अलील आवृत्तियों में हुए बदलाव का द्योतक है।
जीन पूल (Gene Pool): एक प्रजाति के सभी जीवों के सभी जीन लोकस (loci) पर स्थित विभिन्न अलील मिलकर उस समष्टि का जीन पूल (gene pool) बनाते है। किसी समष्टि के जीन पूल को जीन आवृत्तियों (gene frequencies) के रूप में वर्णित किया जाता है।
प्रश्न 8.
(a) 15 मिलियन वर्ष पहले रहने वाले प्राइमेट का नाम लिखिए तथा उनके लक्षण लिखिए।
(b)
(i) पहले मानव समान जीव कहाँ मिले?
(ii) आधुनिक मानव इस ग्रह पर कब उत्पन्न हुआ?
(iii) निटन्डरथल होमो हैबिलिस तथा होमो इरेक्टस इस पृथ्वी पर किस क्रम में विकसित हुए।
उत्तर:
(a) 15 मिलियन वर्ष पूर्व प्राइमेट ड्रायोपिथेकस व रामापिथेकस पाये जाते थे, इनके शरीर पर बाल थे तथा यह चिम्पैंजी व गौरिल्ला की तरह चलते थे। ड्रायोपिथेकस कपियों से अधिक समानता प्रदर्शित करता था जबकि रामापिथेकस मनुष्यों के अधिक समान था।
(b)
(i) पहले मानव समान जीव इथियोपिया (Ethiopia) व तंजानिया (Tanzania) में मिले।
(ii) आधुनिक मानव होमो सेपियंस 75000 से 10000 वर्ष पूर्व उत्पन्न हुआ।
(iii) सही क्रम - होमो हैबिलिस - होमो इरेक्टस - निएन्डरथल।
बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित)
प्रश्न 1.
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा भिन्न विकासीय इतिहास वाले जीव एक समान पर्यावरणीय चुनौती के जवाब में समान समलक्षण अनुकूलन विकसित करते हैं, कहा जाता है-
(a) प्राकृतिक वरण
(b) अभिसारी विकास
(c) यादृच्छिक विकास
(d) अनुकूली विकिरण।
उत्तर:
(b) अभिसारी विकास
प्रश्न 2.
एक समष्टि की आनुवंशिक संतुलन में रहने की प्रवृत्ति किसके द्वारा भंग हो सकती है?
(a) यादृच्छिक मैथुन द्वारा
(b) प्रवास के अभाव द्वारा
(c) उत्परिवर्तनों के अभाव द्वारा
(d) यादृच्छिक मैथुन के अभाव द्वारा
उत्तर:
(d) यादृच्छिक मैथुन के अभाव द्वारा
प्रश्न 3.
डार्विन के अनुसार जैव विकास का कारण है-
(a) अन्तःप्रजातीय प्रतिस्पर्धा
(b) अंतर प्रजातीय प्रतिस्पर्धा
(c) घनिष्ठतः संबंधित प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा
(d) हस्तक्षेप करने वाली प्रजाति के कारण एक प्रजाति की अशन कुशलता (feeding efficiency) में कमी आना)।
उत्तर:
(a) अन्तःप्रजातीय प्रतिस्पर्धा
प्रश्न 4.
आक्टोपस के नेत्र तथा बिल्ली के नेत्र की संरचना का पैटर्न अलग - अलग है फिर भी यह समान कार्य करते हैं, यह उदाहरण-
(a) समजात अंग का जो अभिसारी विकास के कारण विकसित हुए
(b) समजात अंग का जो अपसारी विकास के कारण विकसित हुए
(c) समवृत्ति अंग का जो अभिसारी विकास के कारण विकसित हुए
(d) समवृत्ति अंग का जो अपसारी विकास के कारण विकसित हुए
उत्तर:
(c) समवृत्ति अंग का जो अभिसारी विकास के कारण विकसित हुए
प्रश्न 5.
समष्टियों के मध्य मुक्त विनिमय रोकने वाले रोधी कहलाते हैं-
(a) विसंयोजी क्रियाविधि
(b) अपवाही क्रियाविधि
(c) पार्थक्य क्रियाविधि
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) पार्थक्य क्रियाविधि
प्रश्न 6.
ओपेरिन के जैव उत्पत्ति सिद्धान्त में निम्नलिखित में किसके उत्पादन के प्रयोगात्मक प्रमाण का अस्तित्व नहीं है।
(a) लघु अणुओं का
(b) वृहदाणुओं का
(c) सहपुंजों (coacervates) का
(d) प्रथम जीवित कोशिकाओं का।
उत्तर:
(d) प्रथम जीवित कोशिकाओं का।
प्रश्न 7.
जाति एक समूह है-
(a) आकारिक रूप से समान सदस्यों का
(b) कार्यात्मक रूप से मिलते - जुलते सदस्यों का
(c) अंतरा प्रजनन वाली समष्टियों का
(d) एक ही आवास साझा करने वाले सदस्यों का।
उत्तर:
(c) अंतरा प्रजनन वाली समष्टियों का
प्रश्न 8.
आदि - मानवों में से निम्नलिखित में किसमें कलात्मक भाव अत्यंत विकसित थे?
(a) क्रोमैग्नन मानव में
(b) जावा मानव में
(c) निएन्डरथल मानव में
(d) पीकिंग मानव में।
उत्तर:
(a) क्रोमैग्नन मानव में
प्रश्न 9.
कृषि का विकास लगभग कितने वर्ष पूर्व हुआ?
(a) 2 मिलियन वर्ष पूर्व
(b) 1 मिलियन वर्ष पूर्व
(c) 75000 वर्ष पूर्व
(d) 10,000 वर्ष पूर्व
उत्तर:
(d) 10,000 वर्ष पूर्व
प्रश्न 10.
मनुष्य के नजदीकी सम्बन्धी हैं-
(a) पुरानी दुनिया के बन्दर
(b) नई दुनिया के बन्दर
(c) कपि
(d) लीमर।
उत्तर:
(c) कपि
प्रश्न 11.
आर्कियोप्टेरिक्स किसकी उत्पत्ति प्रदर्शित करता है?
(a) पक्षियों की सरीसृपों से
(b) स्तनधारियों की सरीसृपों से
(c) सरीसृपों की उभयचरों से
(d) पक्षियों की स्तनधारियों से।
उत्तर:
(a) पक्षियों की सरीसृपों से
प्रश्न 12.
निम्न में से कौन से समजात अंग हैं?
(a) शकरकंद व अदरक
(b) पैसीफ्लोरा के प्रतान व बोगेनबिलिया के कांटे
(c) कीटों के पंख व पक्षियों के पंख
(d) कछुए का कवच व मौलस्क का कवच।
उत्तर:
(b) पैसीफ्लोरा के प्रतान व बोगेनबिलिया के कांटे
प्रश्न 13.
निम्न में से कौन - सी गैस आद्य पृथ्वी के वायुमण्डल में उपलब्ध नहीं थी?
(a) मीथेन
(b) कार्बन डाईऑक्साइड
(c) ऑक्सीजन
(d) अमोनिया।
उत्तर:
(c) ऑक्सीजन
प्रश्न 14.
मनुष्य के विकास में निम्न में से कौन कथन सत्य है-
(a) निएन्डरथल व क्रोमैग्नन मनुष्य एक ही समय पर रहते थे
(b) ऑस्ट्रेलोपिथेकस आस्ट्रेलिया में रहते थे
(c) होमो इरेक्टस से पहले होमो हैबिलिस थे
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) होमो इरेक्टस से पहले होमो हैबिलिस थे
प्रश्न 15.
अजीवात जनन (abiogenesis) कितने बिलियन वर्ष पूर्व हुआ?
(a) 1.2
(b) 1.5
(c) 2.5
(d) 3.5
उत्तर:
(d) 3.5
प्रश्न 16.
गैलापेगोस द्वीपों का नाम किसके साथ जुड़ा है?
(a) डाविन
(b) बैलेस
(c) लेमार्क
(d) माल्थस।
उत्तर:
(a) डाविन
प्रश्न 17.
लैमार्क का विकासवाद किस अन्य नाम से जाना जाता है?
(a) योग्यतम की उत्तरजीविता
(b) विशिष्ट सृष्टिवाद
(c) उपार्जित लक्षणों की वंशागति
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) उपार्जित लक्षणों की वंशागति
प्रश्न 18.
जीवन की उत्पत्ति का सिद्धान्त दिया है-
(a) डार्विन ने
(b) माल्थस ने
(c) ओपेरिन ने
(d) टेन्सले ने।
उत्तर:
(c) ओपेरिन ने
प्रश्न 19.
जीवन की उत्पत्ति का रासायनिक सिद्धान्त दिया-
(a) स्टेनले मिलर
(b) स्प्लेजेनी
(c) ओपेरिन व हाल्डेन
(d) लुईस पाश्चर
उत्तर:
(c) ओपेरिन व हाल्डेन
प्रश्न 20.
निम्न में से कौन एक होमिनिड है?
(a) होमो इरेक्टस
(b) आस्ट्रेलोपिथेकस
(c) निएन्डरथल मानव
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 21.
पुनरावृत्ति सिद्धान्त (Recapitulation) सिद्धान्त दिया था-
(a) डार्विन ने
(b) लैमार्क ने
(c) ह्यूगो डि ब्रीज ने
(d) अट हैकिल ने।
उत्तर:
(d) अट हैकिल ने।
प्रश्न 22.
स्वतः जननवाद के प्रतिपादक थे-
(a) लुईस पाश्चर
(b) एफ रेडी
(c) वॉन हेल्मांट
(d) स्प्लेजांनी।
उत्तर:
(c) वॉन हेल्मांट
प्रश्न 23.
मानव के विकास का स्थान माना जाता है-
(a) चीन व जावा
(b) फ्रांस
(c) अमेरिका
(d) अफ्रीका।
उत्तर:
(d) अफ्रीका।
प्रश्न 24.
प्राकृतिक वरण की इकाई है-
(a) एक जीव
(b) एक प्रजाति
(c) एक वंश
(d) एक समष्टि।
उत्तर:
(a) एक जीव
प्रश्न 25.
डायनासोर किस महाकल्प में पाये जाते थे-
(a) सीनोजोइक
(b) मीजोजोइक
(c) पेलियोजोइक
(d) आर्कियोजोइका
उत्तर:
(b) मीजोजोइक
प्रश्न 26.
जीव का विकासीय इतिहास कहलाता है-
(a) ओंटोजेनी
(b) फाइलोजेनी
(c) पेंलंटोलाजी
(d) पेलिनोलाजी।
उत्तर:
(b) फाइलोजेनी
प्रश्न 27.
मनुष्य के पूर्वज जो गुफा चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं-
(a) निएन्डरथल मानव
(b) जावा मानव
(c) पीकिंग मानव
(d) क्रोमेग्नन मानव।
उत्तर:
(d) क्रोमेग्नन मानव।
प्रश्न 28.
कपियों से सर्वाधिक समानता वाला मानव पूर्वज है-
(a) ड्रायोपिथेकस
(b) रामापिथेकस
(c) आस्ट्रेलोपिथेकस
(d) होमो हैबिलिस।
उत्तर:
(a) ड्रायोपिथेकस
प्रश्न 29.
मेंढक का पूर्वज माना जाता है-
(a) सीलोकेन्थ को
(b) इक्थियोसारस को
(c) आर्कियोप्टेरिक्स को
(d) शार्क को।
उत्तर:
(a) सीलोकेन्थ को
प्रश्न 30.
निम्न में से सबसे पहले विकसित हुए पादप है-
(a) द्विबीजपत्री
(b) एकबीजपत्री
(c) नीटम
(d) राइनिया।
उत्तर:
(d) राइनिया।
HOTS Higher Order Thinking Skills
प्रश्न 1.
नीचे दिये गए चित्र एक समष्टि में एक फीनोटाइप का वितरण प्रदर्शित करते हैं। इनके ऊपर निम्नानुसार चित्र बनाइये।
(a) यह दिखाने के लिए कि दिशात्मक चयन हुआ है।
(b) यह दिखाने के लिए कि स्थायीकारी चयन हुआ है।
(c) यह दिखाने के लिए कि विदारक चयन हुआ है।
उत्तर:
प्रश्न 2.
रासायनिक पीड़कनाशियों का प्रयोग उत्पावकता में प्रारम्भ में उल्लेखनीय सुधार करता है, लेकिन बाद में उत्पादकता कम होती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
पीड़कनाशी प्रारम्भ में फसलों को नुकसान पहुचाने वाले पीड़कों (pests) जैसे कीट, कवक आदि को नष्ट कर देते हैं। लेकिन उनकी मूल समष्टि के कुछ कीट इन पीड़कनाशियों के लिए प्रतिरोधी होते हैं। इन पर पीड़कनाशियों का कोई असर नहीं होता। धीरे-धीरे दिशात्मक चयन (directional selection) के कारण केवल यही प्रजनन करते हैं। कुछ समय बाद सारी समष्टि पीड़कनाशी प्रतिरोधी कीटों की हो जाती है। अतः पौड़कनाशियों का प्रयोग करने के बावजूद भी उत्पादकता कम होती जाती है।
प्रश्न 3.
टैडपोल के मछलियों से समानता प्रदर्शित करने को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?
उत्तर:
मेढ़क जैसे उभयचरों का विकास सौलाकैन्थ जैसी मछलियों से हुआ है। मेढ़क का लार्वा टैडपोल अपने विकास के समय मछली जैसे पूर्वजों के लक्षणों की पुनरावृत्ति (recapitulation) करता है। यह स्पष्ट करता है कि जीव को विकास (ontogeny) जाति के विकासीय इतिहास (phylogeny) को दोहराता है।
प्रश्न 4.
पेन्जिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आध पृथ्वी पर महाद्वीप अलग - अलग नहीं थे अपितु एक जुड़े हुए विशाल भूखण्ड के रूप में पाये जाते थे। इसी भूखण्ड को पेन्जिया (Pangea) नाम दिया गया है। पेलियाजोइक काल में पृथ्वी इसी रूप में थी।
प्रश्न 5.
महाद्वीपीय अपवाह (Continental drift) के कारण जीवों के वितरण पर पड़े प्रभाव के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(a) आस्ट्रेलिया के शिशुधानी वाले (marsupials) जीव ऑस्ट्रेलिया तक ही सीमित व वहाँ सुरक्षित रहे क्योंकि उनको किसी मांसाहारी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ी।
(b) दक्षिणी अमेरिका के घोड़े, दरियाई घोड़े (hippopotamus), भालू व खरगोश जैसे जन्तु उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी अमेरिका से जुड़ने पर मारे गये।
NCERT EXEMPLAR PROBLEMS
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में से किस को वायुमण्डलीय प्रदूषण के संकेतक के रूप में प्रयोग किया जाता है?
(a) लेपिटोप्टेरा
(b) लाइकेन
(c) लाइकोपर्सिकान
(d) लाइकोपोडियम।
उत्तर:
(b) लाइकेन
प्रश्न 2.
स्वतः जननवाद सिद्धान्त ने बताया कि
(a) जीवन की उत्पत्ति केवल जीवित रूपों से हुई
(b) जीवन जीवित व अजीवित दोनों रूपों में उत्पन्न हो सकता है
(c) जीवन केवल अजीवित वस्तुओं से उत्पन्न हो सकता है
(d) जीवन की उत्पत्ति स्वत: होती है,न जीवितों से और न अजीवितों
उत्तर:
(b) जीवन जीवित व अजीवित दोनों रूपों में उत्पन्न हो सकता है
प्रश्न 3.
एनीमल हस्बेन्ड्री व पादप प्रजनन कार्यक्रम किसके उदाहरण हैं?
(a) व्युत्क्रम विकास
(b) कृत्रिम चयन
(c) उत्परिवर्तन
(d) प्राकृतिक चयन।
उत्तर:
(b) कृत्रिम चयन
प्रश्न 4.
हवेल, चमगावड़, चीता व मनुष्य की अनपाद की अस्थियाँ संरचना में समान हैं, क्योंकि-
(a) एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी का निर्माण हुआ है
(b) उनके पूर्वज समान थे
(c) वह समान कार्य करते हैं
(d) उनमें जैव रासायनिक समानताएं हैं।
उत्तर:
(b) उनके पूर्वज समान थे
प्रश्न 5.
तुल्यरूपी अंग (analogous organs) उत्पन्न होते हैं
(a) अपसारी विकास के कारण
(b) कृत्रिम चयन के कारण
(c) आनुवंशिक अपवाह के कारण
(d) अभिसारी विकास के कारण।
उत्तर:
(d) अभिसारी विकास के कारण।
प्रश्न 6.
(p + q)2 = p2 + 2pq + q2 = 1 यह समीकरण किसमें प्रयोग होता है-
(a) समष्टि आनुवंशिकी
(b) मेण्डेलियन आनुवंशिकी
(c) बायोमेट्रिक्स
(d) आण्विक आनुवंशिकी
उत्तर:
(a) समष्टि आनुवंशिकी
प्रश्न 7.
प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीवाणु का प्रकट होना किसका उदाहरण है-
(a) अनुकूली विकिरण
(b) पारगमन (ट्रांसडक्शन)
(c) समष्टि में पहले से उपस्थित विभिन्नता
(d) अभिसारी विकास।
उत्तर:
(c) समष्टि में पहले से उपस्थित विभिन्नता
प्रश्न 8.
जीवों का विकास प्रदर्शित करता है कि जीवन रूपों में प्रवृत्ति थी
(a) भूमि से जल की ओर जाने की
(b) शुष्क भूमि से आई भूमि की ओर जाने की
(c) स्वच्छ जल में समुद्री जल की ओर जाने की
(d) जल से भूमि की ओर जाने की।
उत्तर:
(d) जल से भूमि की ओर जाने की।
प्रश्न 9.
जीवाश्म (फॉसिल) प्रमुखतः पाये जाते हैं
(a) अवसादी चट्टान (सेडीमेटरी रॉक में)
(b) इग्नियस रॉक में
(c) रूपान्तरणकारी (मेटामार्फिक) चट्टान में
(d) किसी भी प्रकार की चट्टान में।
उत्तर:
(a) अवसादी चट्टान (सेडीमेटरी रॉक में)
प्रश्न 10.
MN रक्त समूह तन्त्र के लिए M व N अलील की आवृत्तियाँ कमशः 0.7 व 0.3 हैं। MN रक्त समूह वाले जीवों की अपेक्षित आवृत्ति होगी
(a) 42%
(b) 49%
(c) 9%
(d) 58%
उत्तर:
(a) 42%
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी फॉसिल की आयु कैसे ज्ञात करते हैं?
उत्तर:
फॉसिल की आयु ज्ञात करने के लिए रेडियोकार्बन डेटिंग का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 2.
किसी समष्टि में तीन जीनोटाइप की आवृत्तियाँ निम्न हैं
जीनोटाइप BB Bb bb
आवृत्ति 22% 62% 16%
B व b अलील की सम्भावित आवृत्ति क्या होगी?
उत्तर:
अलील B की आवृत्ति = BB + \(\frac{1}{2} \mathrm{Bb}\) = 22 + 31 = 53%
अलील b की आवृत्ति = bb + \(\frac{1}{2} \mathrm{Bb}\)= 16 + 31 = 47%
प्रश्न 3.
पहली होमो प्रजाति किसे माना जाता है
उत्तर:
होमो हैविलिस (Homo habilis)।
प्रश्न 4.
संस्थापक (फाउन्डर) प्रभाव क्या है?
उत्तर:
संस्थापक प्रभाव (founder effect) एक प्रकार का आनुवंशिक अपवाह (Genetic drift) है जिसमें नई अपवाहित (drifted) समष्टि में अलील आवृत्ति इतनी अधिक बदली हुई होती है कि वह एक नई प्रजाति बन जाती है। अपवाहित समष्टि को संस्थापक व इस प्रभाव को संस्थापक प्रभाव कहते हैं।
प्रश्न 5.
अनुकूली विकिरण के लिए आवश्यक प्राथमिक परिस्थिति क्या है?
उत्तर:
अनुकूली विकिरण के लिए उस भौगोलिक क्षेत्र में अलग - अलग परिस्थितियों वाले पर्यावासों (habitats) का होना आवश्यक है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वैज्ञानिकों का मानना है कि रासायनिक विकास के समय नवजात ऑक्सीजन वायवीय जीवन के लिए विष है। इसका क्या कारण
उत्तर:
नवजात (nascent) ऑक्सीजन अत्यधिक क्रियाशील होती है। यह वायवीय कोशिका के डी.एन.ए. व प्रोटीन सहित किसी भी अणु से तुरन्त क्रिया कर सकती है। फलस्वरूप उपापयची गड़बड़ियाँ उत्पन्न हो जायेंगी। अत: रासायनिक विकास आज के समय में सम्भव नहीं।
प्रश्न 2.
प्रवास (migration), चयन के प्रभाव को कम या मन्द कर सकता है? टिप्पणी करें।
उत्तर:
प्रवास किसी समष्टि के जीन पूल में उस अलील को समृद्ध कर सकता है जो चयन किया गया है, अत: चयन के प्रभाव को बढ़ा देता है। दूसरी ओर प्रवास जीन पूल में चयनित अलील को कम करके चयन के प्रभाव
को मन्द भी कर सकता है।
प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में औद्योगिकीकरण के दौरान हुए शलभ के विकास की कहानी कहती है कि "विकास बाह्य रूप से व्युत्क्रमणीय है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में शलभ बिस्टन बेटुलेरिया का औद्योगिक मीलनता (Industrial melanism) का उदाहरण वास्तव में दिशात्मक यचन (directional selection) का उदाहरण है। औद्योगीकरण से पहले प्रदूषण रहित वातावरण में लाइकेन से ढके वृक्षों पर सलेटी या हल्के रंग के शलभ का चयन हुआ जबकि औद्योगीकरण के बाद प्रदुषण-धुएं से काले पड़ गये वृक्षों के तनों पर काले शलभों को वरीयता मिली। उन्हीं का चयन हुआ। बाद में प्रदूषण कम हो जाने पर एक बार फिर सलेटी रंग के शलभ चयन का लाभ पा सके। वास्तव में यह विकास का व्युत्क्रमणीय होना नहीं अपितु चयन की वरीयताएँ बदल जाना है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
डार्विन के विकासीय सिद्धान्त के मुख्य विचारों का वर्णन कीजिष्ट।
उत्तर:
जीवन रूपों का विकास - एक सिद्धान्त (Evolution of Life Forms - A Theory)
धार्मिक विचार (Religious Thoughts):
परम्परागत धार्मिक साहित्य हमें विशिष्ट सृष्टिवाद से परिचित कराता है। इसमें तीन प्रमुख विचार सन्निहित है-
उन्नीसवीं शताब्दी में इन तीनों विचारों को प्रबल चुनौती दी गई।
डार्विन वाद (Darwin's Theory)
दिसम्बर 1831 में, जीव विज्ञान के इतिहास में एक नये अध्याय का प्रारम्भ हो रहा था जब 22 वर्षीय प्रकृतिविद् (naturalist) चार्ल्स डार्विन (Charls Darwin; 1809 - 1882) ब्रिटिश नौसेना के पानी के जहाज एच एम एस बीगल (HMS Beagle) पर अपने जीवन की एक ऐतिहासिक समुद्र यात्रा पर निकले। जहाज के कैप्टन को आशा थी कि चार्ल्स डार्विन विश्व की इस यात्रा में बाइबल के विशिष्ट सृष्टिवाद के समर्थन में साक्ष्य जुटाएंगे।
डार्विन ने अनेक क्षेत्रों से जुटाए सभी प्रकार के आँकड़ों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी बहुत ही पुरानी है, मात्र हजारों साल उम्र की नहीं तथा जैव विकास ही वह तरीका है जिसके द्वारा प्रजातियाँ बनती हैं व परिवर्तित होती हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में हुई बौद्धिक (intellectual) व वैज्ञानिक प्रगति से डार्विन के विचारों को बल मिला। इंग्लैंड लौटने पर डार्विन ने संग्रहित किये प्रदर्शो (specimens), अपने प्रेक्षणों (observations), अनुभवों व तर्को द्वारा यह निष्कर्ष निकाला कि प्रजातियों में अनुकूलन (adaptations) समय के साथ विकसित होते हैं, सृजनकर्ता द्वारा तुरंत पैदा नहीं किये जाते। उसने पाया कि आज के जीवनरूप (प्रजातियाँ) न सिर्फ आपस में समानताएँ साझा करते है अपितु उनसे भी कुछ समानता प्रदर्शित करते हैं जो लाखों वर्ष पहले पृथ्वी पर रहे होंगे। ऐसे अनेक जीवनरूप अब विलुप्त भी हो गये हैं। जैसे पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में नये - नये प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई इसी तरह समय के साथ विभिन्न जीवनरूप विलुप्त होते आवे हैं तथा जीवनरूपों का क्रमिक विकास (gradual evolution) हुआ है।
डार्विन ने इसी आधार पर विकास सम्बंधी अपना प्राकृतिक चयन (Natural Selection) का मत प्रतिपादित किया। प्राकृतिक चयनवाद को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है-
(i) किसी समष्टि (population) के सदस्यों में वंशागत विभिन्नताएँ (heritable variations) होती हैं।
डार्विन ने बताया कि किसी समष्टि के सदस्यों के शारीरिक, क्रियात्मक व व्यवहारगत लक्षणों (physical, functional and behavioral characteristics) में भिन्नता होती हैं। डार्विन ने माना कि यह विभिन्नताएँ प्राकृतिक चयन हेतु अत्यंत आवश्यक होती हैं। (डार्विन को विभिन्नताओं के कारण के बारे में जानकारी नहीं थी) डार्विन के समय आनुवंशिकी (genetics) भी इतनी स्थापित नहीं थी। पर्यावरण के प्रति अनुकूलन को सम्भव बनाने वाली विभिन्नताओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाना आवश्यक होता है, अर्थात यह वंशागत विभिन्नताएँ होती हैं।
(ii) किसी समष्टि की प्रत्येक पीढ़ी में, पर्यावरण की वहन क्षमता से भी अधिक जीव उत्पन्न होते हैं, अर्थात जीवों में प्रजनन की अपार क्षमता होती है।
प्रत्येक पीढ़ी के जीवों में पिछली पीढ़ी के जीवों के समान ही प्रजनन क्षमता होती है, अत: उत्तरजीविता के लिए संघर्ष (Struggle for Existence) लगातार बना रहता है।
(iii) जीव उपयुक्तता (fitness) में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं।
यहाँ किसी जीव की उपयुक्तता या फिटनेस का अर्थ समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा उसकी प्रजनन की सफलता से है। अर्थात जीव की उपयुक्तता उसके जनन की उपयुक्तता (reproductive fitness) तक ही सीमित है। इसका अर्थ है कि सफलतम जीव वह है जो समष्टि के अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक संसाधनों (resources) का प्रयोग कर इन संसाधनों को बड़ी संख्या में जीवित संततियों के रूप में परिवर्तित कर देता है। उत्तरजीविता में संघर्ष से उपयुक्त जीव ही बच पाते हैं।
(iv) जीव अनुकूलित हो जाते हैं।
किसी जीव के शारीरिक, कार्यात्मक या व्यवहारात्मक लक्षण जो उसे किसी पर्यावरण विशेष में रहने हेतु सक्षम बनाते है अनुकूलन (adaptations) कहलाते हैं। समष्टि के जीवों में उनके पर्यावरण के प्रति हुए अनुकूलन प्राकृतिक चयन (Natural selection) का ही परिणाम होते हैं। यह प्राकृतिक चयन है, जो धीरे-धीरे नई प्रजातियों को जन्म देता है। एच एम एस बीगल से अपनी यात्रा खत्म कर डार्विन 1936 में वापस इंग्लैंड आये। डार्विन ने अपने विचारों को लिखित रूप देने, उन्हें प्रकाशित करने में 20 वर्ष का समय लिया। इस बीच के समय में डार्विन ने अपनी संकल्पना कि "आज के विविध जीवन रूप समान पूर्वजों से विकसित हुए हैं तथा प्राकृतिक चयन ही वह विधि है जिसके द्वारा प्रजातियों में परिवर्तन होते हैं व नई प्रजातियों की उत्पत्ति होती है" का परीक्षण करने हेतु वैज्ञानिक तथ्यों व प्रक्रियाओं का सहारा लिया। डार्विन ने एक अन्य समकालीन वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वैलेस की बिल्कुल समान परिकल्पना पढ़ने के बाद अपनी पुस्तक "आन द ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज" (On the Origin of Species) प्रकाशित करने का निर्णय लिया।
अल्फ्रेड रसैल वैलेस (Alfred Russel Wallace)
अल्फ्रेड वैलेस (1823 - 1913), एक ब्रिटिश प्रकृति विज्ञानी थे जिन्होंने स्वतंत्र रूप से बताया कि नई प्रजातियों की उत्पत्ति प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया के द्वारा होती है। डार्विन की तरह ही वैलेस ने भी इंग्लैंड व बाहर के देशों में जीव - जन्तुओं, पेड़ - पौधों का अध्ययन व संग्रह किया। उन्होंने सन 1854 - 1862 के बीच मलय आर्कीपेलेगो (Malay Archipelago) का दौरा किया। आकपिलेगो के द्वीपों को एक कम चौड़ी लेकिन गहरी रेखा विभाजित करती है। जिसे वैलेस के सम्मान में वैलेस लाइन (Wallace line) कहा जाता है। इस रेखा के दोनों ओर के जीव - जन्तु अन्तर प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने मलय आकपिलेगो के साथ अमेजोन की भी यात्रा की तथा अपने लेख में लिखा कि “प्रत्येक प्रजाति अपनी पूर्ववर्ती समान प्रजातियों से समय व स्थान दोनों की सह सांयोगिक घटनाओं के कारण बनती है। स्पष्ट है वैलेस प्रजाति की उत्पत्ति में विश्वास करते थे प्रजातियों को स्थिर (fix) नहीं मानते थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में पृथ्वी पर स्थित सभी जीवों में समानताएँ हैं व सभी एक साझे (समान) पूर्वज से विकसित हुए हैं। यह पूर्वज पृथ्वी के इतिहास की विभिन्न अवधियों में (इपोक, पीरियड व इरा) में उपस्थित थे। पृथ्वी का भू वैज्ञानिक इतिहास पृथ्वी के जैव वैज्ञानिक इतिहास से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। उन्होंने प्राकृतिक चयन व उपयुक्ततम की उत्तरजीविता (survival of the fittest) सम्बंधी विचार पढ़ने व टिप्पणी करने हेतु डार्विन के पास भेजे, जिन्हें पाकर डार्विन आश्चर्यचकित हो गये। वैलेस के विचार इतने प्रभावशाली थे कि डार्विन ने अपने सिद्धान्त के शीर्षकों के रूप में वैलेस द्वारा सुझाये शब्दों का प्रयोग किया। डार्विन व वैलेस दोनों के ही मतों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है पृथ्वी बहुत ही पुरानी है। करोड़ों-अरबों वर्ष पुरानी, मात्र 4000 वर्ष पुरानी नहीं, जैसा कि पुराने धार्मिक विचारकों का मत था। आज पृथ्वी की आयु निर्धारित करने की वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं, अत: आज के सन्दर्भ में इन पुराने मतों का सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है, अन्यथा यह प्रासंगिक नहीं।
प्रश्न 2.
किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र जैसे रेगिस्तान में रहने वाले जीव समान अनुकूलन रणनीति अपनाते हैं। उदाहरणों की मदद से इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी रेगिस्तान में रहने वाले जीव के लिए निम्न चुनौतियाँ होती हैं - जल का संरक्षण (conservation of water), अत्यधिक ताप से बचाव। यहाँ रहने वाले जीव अलग-अलग पूर्वज परम्परा (ancestry) वाले हो सकते हैं लेकिन वह समान कार्य (जल संरक्षण आदि को करने के लिए तुल्यरूपता (analogy) प्रदर्शित करेंगे। नागफनी (opuntia) व यूफोबिया दोनों अलग-अलग पूर्वज परम्परा के पौधे है व यह जल संरक्षण हेतु मांसल हो जाते हैं। यह अभिसारी विकास (convergent evolution) का उदाहरण हैं। कीटों के पंख व पक्षियों के पंख इसी प्रकार का उदाहरण हैं। इसी प्रकार पेंग्विन के फ्लिपर, डालफिन के फ्लिपर, मछलियों के फिन, जलीय पर्यावरण हेतु तुल्यरूपता (analogy) प्रदर्शित करते हैं।