RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Chapter 6 Important Questions वंशागति के आणविक आधार


अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
डी.एन.ए. की लम्बाई को किस रूप में परिभाषित किया जाता है? 
उत्तर:
डी.एन.ए. की लम्बाई को प्रायः क्षारक युग्म (bp) या न्यूक्लिोटाइड की संख्या के आधार पर परिभाषित किया जाता है। 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 2. 
ही.एन.ए. के एक रज्जुक में दो न्यूक्लियोटाइड अणुओं के बीच कौन - सा रासायनिक बन्ध उपस्थित होता है? 
उत्तर:
फास्फोडाइएस्टर बन्ध (Phosphodiester bond)।

प्रश्न 3. 
नाइट्रोजनी क्षारक पेंटोज शर्करा से किस बन्धद्वारा जडा होता है? 
उत्तर:
एन ग्लाइकोसिडिक बन्ध (N - glycosidic linkage) द्वारा।

प्रश्न 4. 
5 - मिथाइल यूरेसिल का दूसरा रासायनिक नाम क्या है? 
उत्तर:
थायमीन (thymine) को 5 मिथाइल यूरेसिल भी कहते हैं।

प्रश्न 5. 
रोजालिन फ्रैंकलिन द्वारा किया गया कोई महत्वपूर्ण कार्य बताइये। 
उत्तर:
रोजलिन फ्रैंकलिन ने मॉरिस विल्किंस के साथ डी.एन.ए. का एक्स - रे विवर्तन अध्ययन किया जिसके आधार पर DNA का वाटसन व क्रिक का द्विकुण्डली मॉडल आधारित है।

प्रश्न 6. 
डी.एन.ए. की दोनों कुण्डलियों के बीच समान दूरी कैसे बनी रहती है?
उत्तर:
डी.एन.ए. की दोनों कुण्डलियों के बीच क्षारक युग्म स्थित होते हैं, प्रत्येक युग्म में हमेशा एक प्यूरीन व एक पिरीमिडीन क्षारक होता है। अतः दोनों रज्जुकों के बीच की दूरी निश्चित बनी रहती है।

प्रश्न 7. 
डी.एन.ए. द्विकुण्डली की स्थिरता के कोई दो कारण लिखिए। 
उत्तर:

  • दोनों रज्जुकों के बीच स्थित हाइड्रोजन बन्ध,
  • क्षारक युग्मकों के तल का एक के ऊपर एक के क्रम में स्थित होना।

प्रश्न 8. 
आण्विक जीव विज्ञान का मूल सिद्धान्त सेण्ट्रल डोग्मा किस वैज्ञानिक ने प्रस्तावित किया था? 
उत्तर:
फ्रांसिस क्रिक (Francis Grick) ने। 

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प्रश्न 9. 
न्यूक्लियोसोम मॉडल में हिस्टोन अष्टक से बाहर स्थित हिस्टोन प्रोटीन का नाम बताइये। 
उत्तर:
H1 हिस्टोन। 

प्रश्न 10. 
जीवाणु कोशिका के उस भाग को क्या कहते हैं जहाँ उसका डी.एन.ए. स्थित होता है? 
उत्तर:
केन्द्रकाभ या न्यूक्लिआइड (Nucleoid)। 

प्रश्न 11. 
हिस्टोन में प्रचुरता से पाये जाने वाले दो अमीनो अम्लों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
हिस्टोन के प्रमुख अमीनो अम्ल हैं लाइसीन (lysine) व आजींनीन (arginine)। 

प्रश्न 12. 
एक न्यूक्लियोसोम में डी.एन.ए. के कितने क्षारक युग्म स्थित होते है? 
उत्तर:
200 क्षारक युग्म (200 bp)। 

प्रश्न 13. 
NHC का शब्द विस्तार कीजिए। 
उत्तर:
नॉन हिस्टोन क्रोमोसोमल (NHC) प्रोटीन्स। 

प्रश्न 14. 
केन्द्रक को रंगने पर किस प्रकार का क्रोमोटिन गहरा रंग लेता है? 
उत्तर:
हेटेरोक्रोमेटिन (Heterochromatin)। 

प्रश्न 15. 
एवरी, मैकलिआइ व मैक कार्टी द्वारा रूपान्तरणकारी सिद्धान्त के उपचार में प्रयोग किया कौन - सा एन्जाइम रूपान्तरण नहीं रोक सका? 
उत्तर:
डी.एन.ए. ऐज (डी.एन.ए. ऐज के प्रयोग से डी.एन.ए. विघटित हो गया अत: रूपान्तरण की प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा)। 

प्रश्न 16. 
जीवाणुभोजी के किस भाग में सल्फर पाया जाता है, पर फास्फोरस का अभाव होता है? 
उत्तर:
आवरण या कैप्सिङ (capsid) में। 

प्रश्न 17. 
जीवाणुभोजी द्वारा जीवाणु के संक्रमण के समय उसका कौन - सा भाग जीवाणु कोशिका में प्रवेश करता है? 
उत्तर:
डी.एन.ए. (आनुवंशिक पदार्थ)। 

प्रश्न 18. 
टोबेको मोजेक वाइरस (TMV) में आनुवंशिक पदार्थ क्या होता है?
उत्तर:
आर.एन.ए.। 

प्रश्न 19. 
आर.एन.ए. के कोई ऐसे दो गुण बताइये जो उसे डी.एन.ए. की अपेक्षा कम स्थिर बनाते हैं? 
उत्तर:

  • प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में सक्रिय 2 - OH समूह की उपस्थित।
  • आर.एन.ए. का उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में कार्य करना। 

प्रश्न 20. 
डी.एन.ए. में आर.एन.ए. के यूरेसिल के स्थान पर थायमीन होने से डी.एन.ए. को किस प्रकार का लाभ होता है? 
उत्तर:
थायमीन की उपस्थिति डी.एन.ए. को अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करती है।

प्रश्न 21. 
किस प्रकार के विषाणुओं में उत्परिवर्तन की दर अधिक होती है? 
उत्तर:
आर.एन.ए. विषाणुओं (RNA viruses) में उत्परिवर्तन की दर अधिक होने से विकास तीव्रता से होता है। 

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प्रश्न 22. 
आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानान्तरण के लिए कौन - सा अणु अधिक उपयुक्त होता है? 
उत्तर:
आर.एन.ए.। 

प्रश्न 23. 
किस वैज्ञानिक के प्रयोगों से सिद्ध हुआ कि डी.एन.ए. क्रोमोसोम में भी सेमी कंजरवेटिव रूप में प्रतिकृतिकरण करता है? 
उत्तर:
टेलर (Tayler) व उसके सहयोगियों के सन् 1958 में फावा बीन्स (Vicia faba) पर किये प्रयोगों से। (जिसमें उसने रेडियोएक्टिव थायमिडीन का प्रयोग क्रोमोसोम में नवसंश्लेषित डी.एन.ए. का वितरण जानने के लिए किया)। 

प्रश्न 24. 
प्रतिकृतिकरण में डी - ऑक्सी राइबोन्यूक्लियोसाइड ट्राई फास्फेट के दो कार्य लिखिए। 
उत्तर:

  • डी - ऑक्सी राइबोन्यूक्लियोसाइड फास्फेट आधारी पदार्थ (Substrate) के रूप में कार्य करता है। 
  • बहुलकीकरण (polymerisation) के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराता है। 

प्रश्न 25. 
डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण में प्रयोग होने वाले दो एन्जाइमों के नाम लिखिए 
उत्तर:

  • डी.एन.ए. निर्भर डी.एन.ए. पॉलीमरेज
  • डी.एन.ए. लाइगेज। 

प्रश्न 26. 
डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण के बाद अगर कोशिका में विभाजन न हो तो क्या फर्क पड़ेगा? 
उत्तर:
इससे एक प्रकार की क्रोमोसोमल असामान्यता बहुगुणिता (polyploidy) उत्पन्न हो जाती है। 

प्रश्न 27. 
अनुलेखन में संरचनात्मक जीन के दोनों ओर स्थित विशिष्ट अनुक्रमों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
संरचनात्मक जीन के 5' सिरे की ओर प्रमोटर व 3' सिरे की ओर टर्मिनेटर स्थित होता है। सन्दर्भ बिन्दु (reference point) काडिंग रज्जुक को लेकर परिभाषित है। 

प्रश्न 28. 
सिगमा कारक किस एन्जाइम की उपइकाई बनाता है? इसका क्या प्रमुख कार्य है? 
उत्तर:

  • सिगमा कारक आर.एन.ए. पॉलीमरेज की उपइकाई बनाता है।
  • सिगमा कारक अनुलेखन के आरम्भन (initiation) में मदद करता है। 

प्रश्न 29. 
एक आरम्भन कोडोन का अनुक्रम लिखिए। 
उत्तर:
AUG 

प्रश्न 30. 
एन्टी कोडोन किस रासायनिक अणु पर पाया जाता है? 
उत्तर:
ट्रांसफर आर.एन.ए. (RNA) पर। 

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प्रश्न 31. 
शब्द विस्तार कीजिए- UTR, VNTR 
उत्तर:
UTR: अन ट्रांसलेटेड रोजन।
VNTR: वेरिएबिल नम्बर टेंडम रिपीट। 

प्रश्न 32. 
लैक ओपेरान में एन्जाइम परमिएज का क्या कार्य है? 
उत्तर:
एन्जाइम परमिऐज (permease) जीवाणु कोशिका की लैक्टोज के प्रति पारगम्यता (permeability) बढ़ा देता है।

प्रश्न 33. 
मानव जीनोम की सबसे बड़ी जीन कौन - सी है?
उत्तर:
डिस्ट्रोफिन (dystrophin) जीन सबसे बड़ी है जिसमें 2.4 मिलियन क्षारक है।

प्रश्न 34. 
सिस्ट्रान (समपार) क्या होता है?
उत्तर:
सिस्ट्रान (Cistron) डी.एन.ए. का वह खण्ड (जीन) है जो एक पॉलीपेप्टाइड के संश्लेषण से सम्बंधित आनुवंशिक सूचना धारण करता है।

प्रश्न 35. 
"आनुवंशिक कूट असंदिग्ध होता है।" समझाइए।
उत्तर:
आनुवंशिक कूट असंदिग्ध (Unambiguous) व विशिष्ट होता है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक कोडोन का केवल एक अर्थ होता है। एक कोडोन केवल एक अमीनों अम्ल का कूट लेखन करता है। जैसे- CCG अमीनों अम्ल प्रोलीन को कोड भरंगा अन्य किसी अमीनों अम्ल को नहीं। 

प्रश्न 36. 
तह दोहरे उद्देश्य लिखिए जिनकी बहुलकीकरण में पूर्ति हीऑक्सीराइबोन्यूक्लिओसाइड ट्राइफास्फेट करते हैं?
उत्तर:
डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिओसाइड ट्राईफॉस्फेट (dNTPs) दोहरे उद्देश्य का कार्य करते है

  • क्रिया घर के रूप में,
  • ऊर्जा प्रदान करने में (दो अन्य फास्फेट्स से)। 

प्रश्न 37. 
मेसल्सन व स्टाल ने अपने प्रयोगों में CsCl2 घनत्व प्रेडिरेंट में अपकेन्द्रीकरण का उपयोग इन्हें पृथक करने के लिए किया
(A) आर.एन.ए. से डी.एन.ए. को 
(B) प्रोटीन से डी.एन.ए. को 
(C) 15N - डी.एन.ए. से सामान्य डी.एन.ए. अणुओं को
(D) अंतरण आर.एन.ए. से डी.एन.ए. को 
उत्तर:
(C) 15N - डी.एन.ए. से सामान्य डी.एन.ए. अणुओं को।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
मनुष्य के अतिरिक्त ऐसे चार जीवों के वैज्ञानिक नाम लिखिए जिनके जीनोम ज्ञात किये जा चुके हैं। 
उत्तर:

  1. जीवाणु एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coli)। 
  2. फलमक्खी; ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर (Drosophila Melanogaster) 
  3. एक नौमेटीड; सीनोरेण्डाइटिस एलीगैंस (Coenorhabditis elegans) 
  4. यीस्ट सैकेरामाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) 
  5. पादप एरेविडोप्सिस प्रजाति (Arabidopsis Spp.) 

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प्रश्न 2. 
मानत जीनोम परियोजना के सन्दर्भ में भविष्य की दो चुनौतियों का उल्लेख करिए। 
उत्तर:
(i) मानव जीनोम परियोजना ने सूचनाओं का पहाड़ खड़ा कर दिया है। इससे सार्थक जानकारी प्राप्त करना सबसे बड़ी चुनौती है। 
(ii) जीनोम के अटिल ताने - बाने, अधिकांश जीनोम, जो नॉन कोडिंग अनुक्रमों तथाकथित जंक 'डी.एन.ए. के रूप में है, की भूमिका के निर्धारण, सभी जीनों के कार्य के बारे में जानकारी जुटाने आदि में विभिन्न क्षेत्रों के हजारों हजार वैज्ञानिकों के अनुभव, तकनीकी कौशल, रचनात्मकता की आवश्यकता होगी।
उत्तर: 
एक बहुकोशिकीय जीव की सभी कोशिकाएँ एक ही युग्मनज (Zygote) के विभाजन से बनती हैं अत: उनका आनुवंशिक संघटन समान होता है। लेकिन वृद्धि व विकास के समय हुए भिन्नन, (differentiation) में कुछ जीन 'स्विच ऑफ' हो जाती है अर्थात अपना कार्य बन्द कर देती हैं जबकि कुछ अन्य स्विच ऑन' होकर अपना कार्य प्रारम्भ कर देती हैं। कोई कोशिका पेशियों की प्रोटीन बनाती है, तो कोई हीमोग्लोबिन, कोई इन्सुलिन बनाती है तो कोई एन्टीबॉडीज। यह सब विशिष्ट जीनों के स्विच ऑन व स्विच ऑफ होने के कारण ही होता है। 

प्रश्न 3. 
कौन - सी प्रक्रिया अमीनो अम्लों का सही और रैखिक क्रम सुनिश्चित करती है जबकि यूकरियोट्स में जीन असतत या विखण्डित होते हैं? 
उत्तर:
यूकैरियोटिक कोशिका की विखण्डित या स्प्लिट (Split) जीन एक्सॉन व इन्ट्रान की बनी होती है। एक्सॉन (Exon) कूटलेखन या कोडिंग खण्ड होते हैं जबकि इंट्रान किसी प्रोटीन को कोड नहीं करते। mRNA के प्राथमिक अनुलेख में एक्सॉन व इन्ट्रॉन दोनों उपस्थित होते हैं लेकिन इसकी एडीटिंग या स्पलाइसिंग (splicing) में इसके इन्ट्रॉन निकालकर एक्जानों को आपस में जोड़ दिया जाता है। अतः इनसे कोडित होने वाले
अमीनो अम्लों का सही और रैखिक क्रम बना रहता है। 

प्रश्न 4. 
डी.एन.ए. के कौन - से गुण उसे आर.एन.ए. से अधिक स्थिर (Stable) बनाते हैं? 
उत्तर:
डी.एन.ए. के निम्न गुण उसे स्थिर बनाते हैं-

  1. राइबोज के स्थान पर डीऑक्सीराइबोज पेन्टोज की उपस्थिति जिससे सक्रिय 2'OH समूह समाप्त हो जाता है। आर.एन.ए. का 2'OH समूह सक्रिय होता है। 
  2. डी.एन.ए. द्विरज्जुकी होता है जिसके रज्जुक पूरक होने के कारण ताप के कारण अलग होने पर पुन: जुड़ जाते हैं अगर अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान की जाएँ। 
  3. आर.एन.ए. के विपरीत डी.एन.ए. उत्प्रेरक (Catalyst) की भूमिका नहीं निभाता अत: स्थिर होता है। 
  4. यूरेसिल के स्थान पर डी.एन.ए. में थायमीन की उपस्थिति इसे और स्थिर बनाती है। 
  5. डी.एन.ए. के दो रज्जुकों के बीच हाइड्रोजन बन्धों की उपस्थिति व क्षारकों का एक के ऊपर के क्रम में लगा होना इसकी द्विकुण्डली को और स्थिरता प्रदान करता है। 

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प्रश्न 5. 
नीचे एक प्रसंस्करित एम आर.एन.ए. अनुक्रम दिया है जो अनुवाद को तैयार है-
5' AUG CUA UUU UUA CUA CCA GGA GGC UGA - 3'
(a) इस एम आर.एन.ए. से बने पॉली पेप्टाइड में कितने अमीनो अम्ल होंगे? 
(b) इस mRNA के अनुवाद के लिए कितने tRNA अणुओं की आवश्यकता होगी? 
उत्तर:
(a) -8 अमीनो अम्ल, 
(b) -8 tRNA अणु, ( समापन कोडोन है इसके लिए कोई tRNA नहीं होगा) 

प्रश्न 6. 
अंतरण आर.एन.ए. के अमीनो एसाइलेशन का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
अनुवाद (प्रोटीन संश्लेषण) की प्रक्रिया (Process of Translation (Protein Synthesis) 
अनुवाद की प्रक्रिया को निम्न चरणों में विभाजित किया जा सकता है-
अमीनो अम्ल का सक्रियण तथा टी - आर.एन.ए. का एमीनो एसीलेशन (Activation of amino acid and amino acylation of tRNA): प्रोटीन संश्लेषण एक उपचयी (anabolic) क्रिया है। दो अमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बंध के निर्माण हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अत: प्रोटीन संश्लेषण का सबसे पहला कार्य अमीनो अम्लों का ए टी पी (ATP) की उपस्थिति में सक्रियण (activation) है। इस प्रक्रिया में अमीनो अम्ल ए टी पी की उपस्थिति में एक एंजाइम के साथ जुड़कर अमीनो अम्ल ए एम पी एंजाइम जटिल बनाता है। यही प्रक्रिया अमीनो अम्लों का सक्रियण (Activation of amino acid) या (charging of amino acid) कहलाती है। बाद की प्रक्रिया में सक्रिय अमीनो अम्ल टी - आर.एन.ए. के 3' सिरे में जुड़ जाता है। यह प्रक्रिया एंजाइम एमीनो एसिल - टी - आर.एन.ए. सिंथेटेज (amino acyl - tRNA Synthetase) द्वारा उत्प्रेरित होती है। यह एंजाइम व टी - आर.एन.ए. अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट होते है।
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प्रश्न 7. 
टी आर.एन.ए.क को एडेप्टर (अनुकुलका) अणु क्यों कहा जाता है। 
उत्तर:
टी आर.एन.ए. अपने एंटी कोडोन की मदद से एम आर.एन.ए. की आनुवंशिक भाषा पढ़ने में सक्षम होता है तथा दूसरे सिरे पर जुड़े एमीनो एड की मदद से इस सूचना को प्रोटीन में अमीनो अम्लों के क्रम में बदलने में सहायक होता है। सरल शब्दों में यह आनुवंशिक भाषा का अनुवाद प्रोटीन में अमीनो अम्लों की भाषा में कर देता है। अत: इसे अनुकूलक अणु कहते हैं। 

प्रश्न 8. 
स्प्लाइसिंग के अतिरिक्त विषमांगी नाभिकीय आर.एन.ए. (hnRNA) में प्रसंस्करण हेतु दो अन्य कौन - सी क्रियाएँ होती है? 
उत्तर:
स्लाइसिंग (splicing) के अतिरिक्त hnRNA में कैपिंग व टेलिंग दो क्रियाएँ होती है-
कैपिंग (Capping): इस प्रक्रिया में hnRNA के 5' सिरे की ओर मिथाइल ग्वानोसीन फास्फेट नामक असामान्य न्यूक्लियोटाइड जोड़ा जाता है। 
पुच्छन या टेलिंग (Tailing): टेलिंग में hnRNA के 3' सिरे पर अनेक लगभग 200 एडीनीन क्षारक जोड़ दिये जाते है जिन्हें पॉली A (Poly A) तथा प्रक्रिया को पॉलीएडीनाइलेशन कहते हैं। अब इस आर.एन.ए. को प्रसंस्करित या mRNA कहते हैं। कैपिंग व टलिंग इसे कुछ स्थायित्व प्रदान करती हैं। 

प्रश्न 9. 
प्रोकैरियोट्स में अनुलेखन व अनुवाद प्रायः लगातार सम्पन्न हो जाते हैं, पर यूकैरियोट्स में ऐसा नहीं हो पाता। कारण बताइये। 
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका में एम आर.एन.ए. को सक्रिय (active) बनने के लिए किसी प्रसंस्करण या संशोधन की आवश्यकता नहीं होती। दूसरे केन्द्रक कला (nuclear membrane) का अभाव होने के कारण कोशिका द्रव्य व केन्द्रक द्रव्य में अन्तर नहीं होता अत: अनुलेखन व अनुवाद एक ही कक्ष में सम्पन्न होते हैं। अत: कभी - कभी अनुलेखन (transcription) के पूर्ण होने से पहले ही अनुवाद (translation) भी प्रारम्भ हो जाता है। यूकैरियोटिक कोशिका में जीन विखण्डित (Split) होती है अतः इंट्रान को हटाने के लिए स्प्लाइसिंग की आवश्यकता होती है। दूसरे केन्द्रक में बना hnRNA केन्द्रक कला में बने छिद्रों के रास्ते कोशिका द्रव्य में पहुंचता है व प्रसंस्करण के बाद ही अन्तिम अनुलेख (final transcript) में बदलता है। अत: अनुलेखन व अनुवाद साथ - साथ नहीं हो सकते। 

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प्रश्न 10. 
अनुलेखन में डी.एन.ए. के दोनों रज्जुकों का अनुलेखन क्यों नहीं होता? कोई दो कारण बताइये। 
उत्तर:

  1. अगर डी.एन.ए. के दोनों रज्जुक टेम्पलेट की तरह कार्य करते तो इनसे दो अलग-अलग प्रकार के RNA का निर्माण होता (पूरकता का अर्थ समानता नहीं होता)। यह mRNA प्रोटीन बनाते तो इनसे बनने वाली प्रोटीन भी अगल - अलग होती जिससे आनुवंशिक सूचना स्थानान्तरण कार्य प्रणाली गड़बड़ा जाती। 
  2. दूसरे अगर दोनों RNA का निर्माण एक साथ होता तो वह पूरक (Complementary) होने के कारण आपस में जुड़ कर द्विरज्जुकी आर.एन.ए. बना लेते। इससे आर.एन.ए. का प्रोटीन में अनुवाद रुक जाता तथा अनुलेखन की प्रक्रिया अर्थहीन हो जाती। 

प्रश्न 11. 
किसी बहुकोशिकीय जीव की सभी कोशिकाओं में समान आनुवंशिक संघटन होता है लेकिन वह भिन्न - भिन्न प्रकार से कार्य करती है। आप इसकी व्याख्या कैसे करेंगे? 
उत्तर:
एक बहुकोशिकीय जीव की सभी - कोशिकाएँ एक ही युग्मनज (Zygote) के विभाजन से बनती हैं अतः उनका आनुवंशिक संघटन समान होता है। लेकिन वृद्धि व विकास के समय हुए भिन्नन, (differentiation) में कुछ जीन 'स्विच ऑफ' हो जाती हैं अथति अपना कार्य बन्द कर देती हैं जबकि कुछ अन्य 'स्विच ऑन' होकर अपना कार्य प्रारम्भ कर देती है। कोई कोशिका पेशियों की प्रोटीन बनाती है, तो कोई हीमोग्लोबिन, कोई इन्सुलिन बनाती है तो कोई एन्टीबॉडीज। यह सब विशिष्ट जीनों के स्विच ऑन व स्विच ऑफ होने के कारण ही होता है। 

प्रश्न 12. 
(a) एक न्यूक्लियोसोम का स्वच्छ नामांकित आरेख बनाइये। 
(b) वह क्या चीज है जो हिस्टोनों (histones) को धनात्मक आवेश प्राप्त करने में सक्षम बनाती है?
उत्तर:
(a) डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग (Packaging of DNA Helix) 
किसी यूकैरियोटिक कोशिका में प्रोकेरियोटिक कोशिका की अपेक्षा न सिर्फ क्रोमोसोम की संख्या अधिक होती है, अपितु प्रति क्रोमोसोम DNA की मात्रा व उससे सम्बद्ध प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। एश्चीरीचिया कोलाई के डी.एन.ए. की लम्बाई 1.36 मिमी की अपेक्षा मनुष्य के सभी 46 क्रोमोसोम में उपस्थित डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर होती है। इतना बड़ा डी.एन.ए., क्रोमेटिन पदार्थ के साथ कैसे एक अधिक से अधिक 5 µm व्यास के केन्द्रक में समा जाता है? क्रोमेटिन लगभग 10,000 गुना संघनित (condense) होकर समसूत्री विभाजन के क्रोमोसोम के आकार का बनता है।

दो नजदीकी क्षारक युग्मों के बीच की दूरी सभी प्रजातियों के डी.एन.ए. के लिए 0.34 नैनोमीटर (0.34 x 10-9m) ही होती है। किसी जीव की एक कोशिका के सभी क्रोमोसोम में उपस्थित क्षारक युग्मों की संख्या का दो क्षारक युग्मों के बीच की दूरी से गुणा करने पर डी.एन.ए. की पूरी लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। मनुष्य के लिए कुल क्षारक युग्म संख्या 6.6 x 109 bp है। इसे 0.34 nm से गुणा करने पर (6.6 x 109 x 0.34 x 10-9) डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर आती है। प्रोकैरियोट्स जैसे बैक्टीरिया में संगठित केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात केन्द्रक कला अनुपस्थित होती है। ऋणावेशित डी.एन.ए. कुछ धनावेशित प्रोटीनों से जुड़कर केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओइड (nucleoid) क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। न्यूक्लिओइड में डी.एन.ए. बड़े लूपों (loops) में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन द्वारा इस स्थिति में बने रहते हैं।

कैरियोटिक कोशिका में डी.एन.ए. पैकिंग और भी जटिल होती है। इस प्रकार की कोशिकाओं में धनावेशित क्षारीय (positively charged, basic) प्रोटीन जिन्हें हिस्टोन (histones) कहते हैं पाई जाती है। हिस्टोन प्रोटीन, डी.एन.ए. के संघनन हेतु एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्माण सामग्री का काम करते हैं।

किसी भी प्रोटीन का आवेश (Charge) उसको बनाने वाले अमीनो अम्लों की आवेशित पार्श्व शृंखलाओं की बहुलता पर निर्भर करता है। प्रोटीन में अगर क्षारीय अमीनो अम्लों की अधिकता हो तो वह धनावेशित हो जाती है तथा अम्लीय अमीनो अम्लों की अधिकता उसे ऋणावेशित बना देती है। हिस्टोन प्रोटीन क्षारीय अमीनो अम्ल जैसे लाइसीन व अर्जीनीन से समृद्ध होती है। इन दोनों अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं (side chain) पर धनावेश होता है। हिस्टोन प्रोटीन आठ - आठ अणुओं की एक इकाई के रूप में संगठित होती हैं जिन्हें हिस्टोन ऑक्टेमर (histone octamer) कहते हैं। यह न्यूक्लियोसोम का कोर (core) बनाता है। ऋणावेशित DNA अणु, धनावेशित हिस्टोन अष्टक (हिस्टोन आक्टेमर) के चारों ओर लिपटकर न्यूक्लियोसोम (nucleosome) नामक रचना बनाता है। एक प्रारूपिक न्यूक्लियोसोम में (200 bp/200 क्षार युग्म) लम्बा डी.एन.ए. होता है। एक हिस्टोन आक्टेमर में 2 अणु हिस्टोन H2A के, 2 अणु हिस्टोन H2B के, 2 अणु हिस्टोन H3 के तथा 2 अणु हिस्टोन H4 के होते हैं। दो न्यूक्लियोसोम इकाइयों के बीच स्थित (अर्थात उनको जोड़ने वाला) डी.एन.ए. लिकर डी.एन.ए. (linker DNA) या स्पेसर डी.एन.ए. (spacer, DNA) कहलाता हैं।
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H2A, H2B लाइसीन समृद्ध तथा H3, H4 आर्जीनिन समृद्ध हिस्टोन प्रोटीन है। H1 में लाइसीन की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। एक न्यूक्लियोसोम पर डी.एन.ए. \(1 \frac{3}{4}\) बार लिपटा रहता है।

हिस्टोन H1 न्यूक्लियोसोम डी.एन.ए. से बाहर लिंकर डी.एन.ए. से जुड़ी होती है। यह न्यूक्लियोसोम, केन्द्रक में पाये जाने वाली एक धागे जैसी रचना क्रोमेटिन (chromatin) पर एक के बाद एक क्रम में लगे रहते हैं। क्रोमेटिन तन्तु केन्द्रक में दिखाई देने वाली अभिरंजित (stained) रचनाएँ हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर यह न्यूक्लियोसोम किसी माला के मनको (beads on string) की तरह दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक रूप से मनुष्य की एक कोशिका में क्षारक युग्मों की कुल संख्या, में 200 (एक न्यूक्लिओसोम में उपस्थित क्षारक युग्म) का भाग देकर न्यूक्लियोसोम की कुल संख्या ज्ञात की जा सकती है। बौड्स ऑन स्ट्रिंग वाले क्रोमोटिन तन्तु और संघनित होकर मोटे क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं जो और भी अधिक संघनित होकर मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का निर्माण करते हैं। क्रोमोटिन की और बड़े स्तर पर पैकेजिंग के लिए अन्य प्रकार की प्रोटीन की जरूरत होती है जिन्हें सामूहिक रूप से गैर हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन नान हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन (Non - histone Chromosomal NHC proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपिक केन्द्रक में क्रोमोटिन के कुछ क्षेत्र विरल या ढीले रूप से पैक होते हैं। यह क्रोमोसोम को अभिरंजित (stain) करने पर हल्का रंग लेते है तथा यूक्रोमेटिन (euchromatin) कहलाते हैं। यूक्रोमेटिन, अनुलेखन की दृष्टि से (transcriptionally) सक्रिय क्रोमेटिन है, अर्थात डी.एन.ए. का यह भाग सक्रिय रूप से अपनी सूचना को आर.एन.ए. को स्थानान्तरित करता है। क्रोमेटिन का वह भाग जो सघन रूप से पैक होता है हेटरोनोमेटिन कहलाता है। यह अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेता है। हेटेरोक्रोमेटिन अनुलेखन की दृष्टि से असक्रिय होता है।

(b) हिस्टोन क्षारीय अमीनो अम्ल लाइसिन व आर्जिनिन से समृद्ध होती है। दोनों प्रकार के अमीनो अम्लों की पार्श्व शृंखलाओं में धनावेश होता है। 

प्रश्न 13. 
आनुवंशिक कूट की चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(a) अनुलेखन (Transcription)
डी.एन.ए. से आर.एन.ए. का निर्माण अनुलेखन कहलाता है। इस प्रक्रिया में डी.एन.ए. का 3' → 5' दिशा वाला एक रज्जुक टेम्पलेट का कार्य करता है। जिस पर डी.एन.ए. निर्भर आर.एन.ए. पॉलीमरेज की मदद से आर.एन.ए. का संश्लेषण होता है। अर्थात् डी.एन.ए. की आनुवंशिक सूचना आर.एन.ए. को स्थानान्तरित हो जाती है। डी.एन.ए. का दूसरा रज्जुक इस प्रक्रिया में भाग नहीं लेता। इस प्रक्रिया को आर.एन.ए. पॉलीमरेज के साथ - साथ कुछ आरम्भन कारक, ऊर्जा व समापन कारकों की भी आवश्यकता होती है जो आर.एन.ए. पॉलीमरेज की उपइकाई के रूप में ही कार्य करते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिका में सभी प्रकार के आर.एन.ए. का निर्माण एक ही आर.एन.ए. पॉलीमरेज द्वारा होता है जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में तीन प्रकार के आर.एन.ए, पॉलीमरेज पाये जाते हैं, जो अलग-अलग प्रकार के आर.एन.ए. के निर्माण में मदद करते हैं। 

(b) बहुरूपता (Polymorphism): एलोलिक बहुरूपता के अतिरिक्त मनुष्यों की एक प्रकार की आनुवंशिक बहुरूपता प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे से अलग बना देती है। इस बहुरूपता का आधार पुनरावृत्ति डी.एन.ए. (repetitive DNA) है आनुवंशिक स्तर की बहुरूपता उत्परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है। अगर मानव जनसंख्या में 'एक लोकस' पर एक से अधिक अलील 0.01 से अधिक आवृत्ति में पाया जाता है तब इस स्थिति को परम्परागत रूप से डी.एन.ए. बहुरूपता (DNA polymorphism) कहते हैं। सरल शब्दों में किसी जनसंख्या में वंशागत उत्परिवर्तनों का उच्च आवृत्ति में पाया जाना डी.एन.ए. बहुरूपता कहलाती है। बहुरूपता के अनेक प्रकार हो सकते हैं, कुछ केवल एक न्यूक्लियोटाइड बदलाव प्रदर्शित करते हैं जैसे SNP जबकि कुछ व्यापक बदलावों के परिचायक हैं। बहुरूपता जैव विकास व नई प्रजाति की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(c) स्थानान्तरण (Translation): mRNA अनुलेख की आनुवंशिक सूचना के आधार पर राइबोसोम स्थल पर, टी - आर.एन.ए. द्वारा लाये अमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बन्ध बनने से हुआ पॉलीपेप्टाइड संश्लेषण स्थानान्तरण या अनुवाद (translation) कहलाता है। अर्थात् इस प्रक्रिया में डी.एन.ए. की आनुवांशिक सूचना का एम - आर.एन.ए. के माध्यम से प्रोटीन (पॉलीपेप्टाइड) के रूप में अनुवाद होता है। यह प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में राइबोसोम पर अनेक आरम्भन कारकों, दीर्धीकरण कारकों, ऊर्जा आदि की उपस्थिति में सम्पन्न होती है।

(d) जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics): जीनोम अध्ययन में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी का प्रयोग जैव सूचना विज्ञान या बायोइंफोर्मेटिक्स कहलाता है। जीनोमिक्स या प्रोटियोमिक्स से प्राप्त असंशोधित या कच्चे आँकड़ों (raw data) के विश्लेषण से इन आँकड़ों के महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त कराना जैव सूचना विज्ञान का कार्य है।

डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग (Packaging of DNA Helix) 
किसी यूकैरियोटिक कोशिका में प्रोकेरियोटिक कोशिका की अपेक्षा न सिर्फ क्रोमोसोम की संख्या अधिक होती है, अपितु प्रति क्रोमोसोम DNA की मात्रा व उससे सम्बद्ध प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। एश्चीरीचिया कोलाई के डी.एन.ए. की लम्बाई 1.36 मिमी की अपेक्षा मनुष्य के सभी 46 क्रोमोसोम में उपस्थित डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर होती है। इतना बड़ा डी.एन.ए., क्रोमेटिन पदार्थ के साथ कैसे एक अधिक से अधिक 5 µm व्यास के केन्द्रक में समा जाता है? क्रोमेटिन लगभग 10,000 गुना संघनित (condense) होकर समसूत्री विभाजन के क्रोमोसोम के आकार का बनता है।

दो नजदीकी क्षारक युग्मों के बीच की दूरी सभी प्रजातियों के डी.एन.ए. के लिए 0.34 नैनोमीटर (0.34 x 10-9m) ही होती है। किसी जीव की एक कोशिका के सभी क्रोमोसोम में उपस्थित क्षारक युग्मों की संख्या का दो क्षारक युग्मों के बीच की दूरी से गुणा करने पर डी.एन.ए. की पूरी लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। मनुष्य के लिए कुल क्षारक युग्म संख्या 6.6 x 109 bp है। इसे 0.34 nm से गुणा करने पर (6.6 x 109 x 0.34 x 10-9) डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर आती है। प्रोकैरियोट्स जैसे बैक्टीरिया में संगठित केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात केन्द्रक कला अनुपस्थित होती है। ऋणावेशित डी.एन.ए. कुछ धनावेशित प्रोटीनों से जुड़कर केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओइड (nucleoid) क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। न्यूक्लिओइड में डी.एन.ए. बड़े लूपों (loops) में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन द्वारा इस स्थिति में बने रहते हैं।

कैरियोटिक कोशिका में डी.एन.ए. पैकिंग और भी जटिल होती है। इस प्रकार की कोशिकाओं में धनावेशित क्षारीय (positively charged, basic) प्रोटीन जिन्हें हिस्टोन (histones) कहते हैं पाई जाती है। हिस्टोन प्रोटीन, डी.एन.ए. के संघनन हेतु एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्माण सामग्री का काम करते हैं।

किसी भी प्रोटीन का आवेश (Charge) उसको बनाने वाले अमीनो अम्लों की आवेशित पार्श्व शृंखलाओं की बहुलता पर निर्भर करता है। प्रोटीन में अगर क्षारीय अमीनो अम्लों की अधिकता हो तो वह धनावेशित हो जाती है तथा अम्लीय अमीनो अम्लों की अधिकता उसे ऋणावेशित बना देती है। हिस्टोन प्रोटीन क्षारीय अमीनो अम्ल जैसे लाइसीन व अर्जीनीन से समृद्ध होती है। इन दोनों अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं (side chain) पर धनावेश होता है। हिस्टोन प्रोटीन आठ - आठ अणुओं की एक इकाई के रूप में संगठित होती हैं जिन्हें हिस्टोन ऑक्टेमर (histone octamer) कहते हैं। यह न्यूक्लियोसोम का कोर (core) बनाता है। ऋणावेशित DNA अणु, धनावेशित हिस्टोन अष्टक (हिस्टोन आक्टेमर) के चारों ओर लिपटकर न्यूक्लियोसोम (nucleosome) नामक रचना बनाता है। एक प्रारूपिक न्यूक्लियोसोम में (200 bp/200 क्षार युग्म) लम्बा डी.एन.ए. होता है। एक हिस्टोन आक्टेमर में 2 अणु हिस्टोन H2A के, 2 अणु हिस्टोन H2B के, 2 अणु हिस्टोन H3 के तथा 2 अणु हिस्टोन H4 के होते हैं। दो न्यूक्लियोसोम इकाइयों के बीच स्थित (अर्थात उनको जोड़ने वाला) डी.एन.ए. लिकर डी.एन.ए. (linker DNA) या स्पेसर डी.एन.ए. (spacer, DNA) कहलाता हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 2
H2A, H2B लाइसीन समृद्ध तथा H3, H4 आर्जीनिन समृद्ध हिस्टोन प्रोटीन है। H1 में लाइसीन की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। एक न्यूक्लियोसोम पर डी.एन.ए. \(1 \frac{3}{4}\) बार लिपटा रहता है।

हिस्टोन H1 न्यूक्लियोसोम डी.एन.ए. से बाहर लिंकर डी.एन.ए. से जुड़ी होती है। यह न्यूक्लियोसोम, केन्द्रक में पाये जाने वाली एक धागे जैसी रचना क्रोमेटिन (chromatin) पर एक के बाद एक क्रम में लगे रहते हैं। क्रोमेटिन तन्तु केन्द्रक में दिखाई देने वाली अभिरंजित (stained) रचनाएँ हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर यह न्यूक्लियोसोम किसी माला के मनको (beads on string) की तरह दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक रूप से मनुष्य की एक कोशिका में क्षारक युग्मों की कुल संख्या, में 200 (एक न्यूक्लिओसोम में उपस्थित क्षारक युग्म) का भाग देकर न्यूक्लियोसोम की कुल संख्या ज्ञात की जा सकती है। बौड्स ऑन स्ट्रिंग वाले क्रोमोटिन तन्तु और संघनित होकर मोटे क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं जो और भी अधिक संघनित होकर मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का निर्माण करते हैं। क्रोमोटिन की और बड़े स्तर पर पैकेजिंग के लिए अन्य प्रकार की प्रोटीन की जरूरत होती है जिन्हें सामूहिक रूप से गैर हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन नान हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन (Non - histone Chromosomal NHC proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपिक केन्द्रक में क्रोमोटिन के कुछ क्षेत्र विरल या ढीले रूप से पैक होते हैं। यह क्रोमोसोम को अभिरंजित (stain) करने पर हल्का रंग लेते है तथा यूक्रोमेटिन (euchromatin) कहलाते हैं। यूक्रोमेटिन, अनुलेखन की दृष्टि से (transcriptionally) सक्रिय क्रोमेटिन है, अर्थात डी.एन.ए. का यह भाग सक्रिय रूप से अपनी सूचना को आर.एन.ए. को स्थानान्तरित करता है। क्रोमेटिन का वह भाग जो सघन रूप से पैक होता है हेटरोनोमेटिन कहलाता है। यह अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेता है। हेटेरोक्रोमेटिन अनुलेखन की दृष्टि से असक्रिय होता है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 14. 
विकुण्डली डी.एन.ए. की संरचना की कोई चार विशेषता लिखिए।
उत्तर:
आनुवंशिक पदार्थ के गुण (डी.एन.ए. बनाम आर.एन.ए.) [Properties of Genetic Material (DNA verses RNA)] 
अल्फेड डी. हर्शे व मार्था चेज के 1952 में किये गए प्रयोगों से इस बहस पर पूर्ण विराम लग गया कि आनुवंशिक पदार्थ प्रोटीन है या डी.एन.ए.। उनके प्रयोग डी.एन.ए. को आनुवंशिक पदार्थ सिद्ध करने के स्पष्ट व अकाट्य प्रमाण हैं तथा अब यह सर्वमान्य हो चुका है कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। कुछ विषाणुओं जैसे टोबैको मोजेक वाइरस (Tobacco Mosaic Virus), अन्य पादप विषाणुओं व QB जीवाणुभोजी आदि में आर.एन.ए. आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। लेकिन एक कोशिकीय से लेकर करोड़ों कोशिकाओं से बने सभी जीवों में डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ है। डी.एन.ए. के कुछ संरचनात्मक व कार्यात्मक गुण इसे प्रमुख आनुवंशिक पदार्थ का दर्जा देने हेतु उत्तरदायी हैं। आर.एन.ए. कुछ विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ होने के साथ - साथ, कोशिकीय जीवों में संरचनात्मक, (structural), वाहक (messenger), एडेप्टर (adapter) व एंजाइम अणु के रूप में भी कार्य करता है। 

आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करने वाले अणु को निम्न कार्य करने में सक्षम होना चाहिए-

  • यह अपनी प्रतिकृति (replica) बनाने में अर्थात प्रतिकृतिकरण (replication) तथा इन प्रतियों के संततियों में भलीभांति संचरण में सक्षम होना चाहिए। 
  • यह संरचनात्मक व रासायनिक रूप से स्थिर (stable) होना चाहिए। 
  • साथ ही, यह धीमे व यदा-कदा होने वाले उत्परिवर्तनों (mutations) के लिए ग्राह्य या भेद्य (susceptible) होना चाहिए। 
  • इसे कोशिका के सभी कार्यों के सम्पादन सम्बंधी सूचना को वहन करने (to carry) में सक्षम होना चाहिए। 

अर्थात इसे मेण्डल के कारक के रूप में अभिव्यक्त होने में सक्षम होना चाहिए। कुछ गौण (secondary) कसौटियाँ भी हैं जैसे इसे सार्वत्रिक (ubiquitous) होना चाहिए, अर्थात यह किसी भी स्थान पर उपस्थित पृथ्वी के सभी जीवों में उपस्थित होना चाहिए। साथ ही यह विविधता प्रदर्शित करने में सक्षम हाना चाहिए। डी.एन.ए. व आर.एन.ए. दोनों ही प्रतिकृतिकरण (replication) में सक्षम होते हैं अत: दोनों ही आनुवंशिक पदार्थ होने के लिए आवश्यक प्रथम शर्त पूरी करते है। यह दोनों अणु क्षारक युग्मन (base pairing), पूरकता (complementarity) के नियमों के कारण ऐसा कर पाने में समर्थ होते हैं। प्रोटीन जैसा जैव अणु इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता। 

दुसरी कसौटी है, आनुवंशिक पदार्थ इतना स्थिर (stable) जरूर होना चाहिए कि जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं, बढ़ती उम्र या जीव को कार्यिकी (physiology) में हुए किसी परिवर्तन में ही न बदल जाये। आनुवंशिक पदार्थ की यह स्थिरता प्रिफिथ के रूपान्तरकारी सिद्धान्त के प्रयोग द्वारा स्पष्ट की जा सकती है। इस प्रयोग में ताप (heat) के प्रयोग से जीवाणु की तो मृत्यु हुई लेकिन आनुवंशिक पदार्थ की स्थिरता का स्पष्ट संकेत है। आज, डी.एन.ए. की रचना व कार्य के विस्तृत अध्ययन के आधार पर इसकी स्पष्ट व्याख्या की जा सकती है। डी.एन.ए. के दोनों रज्जुक अधिक ताप के प्रभाव के कारण अलग तो हो जाते हैं, लेकिन उचित परिस्थितियां मिलने पर एक-दूसरे के पूरक (complementary) होने के कारण एक साथ जुड़ भी जाते है। 

आर.एन.ए. की अपेक्षा डी.एन.ए. अधिक स्थिर है क्योंकि-

  1. आर.एन.ए. के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में उपस्थित 2'OH अर्थात हाइड्राक्सिल समूह अत्यधिक सक्रिय (reactive) होता है। यह आर.एन.ए. को अस्थिर व आसानी से विघटित होने वाला बना देता है। 
  2. आर.एन.ए. की एंजाइम के रूप में भी कार्य करने की क्षमता इसे और सक्रिय (reactive), फलस्वरूप अस्थिर बना देती है। अतः डी.एन.ए., आर.एन.ए, की अपेक्षा रासायनिक रूप से कम सक्रिय (less reactive) तथा संरचनात्मक रूप से अधिक स्थिर (stable) है। अत: इन दो नाभिकीय अम्लों में डी.एन.ए. एक बेहतर आनुवंशिक पदार्थ हैं।
    RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 3
  3. यूरेसिल के स्थान पर थायमीन (thymine) की उपस्थिति डी.एन.ए. को अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करती है। 
  4. इसकी प्रुफ रीडिंग की क्षमता इसे परिवर्तनों का प्रतिरोध करने में और सक्षम बनाती है। 

डी.एन.ए. व आर.एन.ए. व दोनों ही उत्परिवर्तित हो सकते हैं। वास्तव में अधिक सक्रिय व कम स्थिर होने के कारण ऐसे विषाणु जिनमें आर.एन.ए, जीनोम पाया जाता है तथा जीवन अवधि (life span) छोटी होती है, में उत्परिवर्तन तथा विकास अपेक्षाकृत तेजी से होते हैं। डी.एन.ए. प्रोटीन संश्लेषण के लिए पहले आर.एन.ए. का निर्माण करते हैं ताकि आनुवंशिक सूचना आर.एन.ए. को स्थानान्तरित की जा सके। अतः कहा जा सकता है कि आर.एन.ए. सीधे ही प्रोटीन संश्लेषण की सूचना को कोडित करते हैं तथा लक्षणों को सहजता से अभिव्यक्त कर सकते है। प्रोटीन संश्लेषण जैसी जटिल प्रक्रिया के सभी चरण आर.एन.ए. से जुड़े होते हैं। यह विवरण स्पष्ट करता है कि डी.एन.ए. व आर.एन.ए. दोनों ही आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य कर सकते हैं लेकिन अधिक स्थिर होने के कारण डी.एन.ए. आनुवंशिक सूचनाओं के संग्रहण (storage) हेतु अधिक उपयुक्त है और प्रकृति ने ऐसा ही किया है। आर.एन.ए. आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानान्तरण के लिए अधिक उपयुक्त है। आनुवंशिक पदार्थ होने की गौण कसौटियाँ जैसे इसका सार्वत्रिक होना व विविधता प्रदर्शित करना प्रोटीन जैसे गैर आनुवंशिक अणु भी पूरी करते हैं।

प्रश्न 15. 
यदि DNA के एक रज्जुक का अनुक्रम निम्नानुसार है-
5' - AAGTTACTACAC - '3 
तो इसके आधार पर बनने वाले mRNA के अनुक्रम लिखिए। 
उत्तर:
DNA के कोडिंग रज्जुक का 5' → 3' दिशा वाले रज्जुक का अनुक्रम दिया है। इसके आधार पर टेम्पलेट रज्जुक 3' → 5' दिशा के अनुक्रम होगा
3' - TTCAATGATCTG - 5' 
इससे अनुलेखित mRNA का अनुक्रम होगा
AAGUUACUAGAC 

प्रश्न 16. 
मानव जीनोम परियोजना के चार लक्ष्य लिखिए।
उत्तर:
मानव जीनोम परियोजना या ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) 
पिछली शताब्दी में वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक पदार्थ की संरचना की खोज की, डी.एन.ए. के अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण, अनुलेखन, जेनेटिक कोड व अनुवाद जैसी महत्वपूर्ण खोजें भी उसी शताब्दी में हुई, लेकिन आनुवंशिकी के क्षेत्र में खोजों का यह सिलसिला 21 वीं शताब्दी में भी जारी रहा। 21 वीं शताब्दी में खोजें जीनोमिक्स के अध्ययन से सम्बन्धित रही है। किसी भी जीवधारी का आनुवंशिक ढांचा उसके डी.एन.ए. में क्षारकों के अनुक्रम के रूप में निहित रहता है। अगर दो जीव भिन्नता प्रदर्शित करते है तब उनके डी.एन.ए. अनुक्रम भी, कम से कम कुछ स्थानों पर भिन्न - भिन्न होने चाहिए। इसी जिज्ञासा ने मानव जीनोम के पूरे के पूरे डी.एन.ए. अनुक्रम की पहचान का मार्ग प्रशस्त किया। मनुष्य के पूरे जीनोम की खोज एक बहुत बड़ी परियोजना थी जिस पर निम्न कारणों से कार्य करना सम्भव हो सका-
• आनुवंशिक अभियंत्रिकी (Genetic Engineering) की तकनीके, जिनके द्वारा डी.एन.ए. के किसी भी खण्ड का पृथक्करण व क्लोनिंग सम्भव हो सकी। 

  • डी.एन.ए. क्षारक अनुक्रम निर्धारण की सरल व शीघ्रता से सम्पन्न हो जाने वाली तकनीकों की उपलब्धता। 
  • जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति।
    आइये कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों के अर्थ जानें-
    RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 4
  • जीनोम (Genome) किसी जीव की कोशिका में उपस्थित जीनों का सम्पूर्ण समुच्चय (complete set of genes) ही जीनोम कहलाता है। अर्थात अगुणित क्रोमोसोम की सभी जीन जीनोम बनाती हैं।
  • जीनोमिक्स (Genomics) विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवधारियों की जीनों (genes) का अध्ययन किया जाता है। इसमें जीव के जीनोम के सम्पूर्ण डी.एन.ए. के अनुक्रमों का अध्ययन भी शामिल है। 
  • जैव सूचना विज्ञान या बायोइन्फोमेटिक्स (Bioinformatics) जीनोम के अध्ययन में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी का प्रयोग बायोइन्फोमेटिक्स कहलाता है। जीनोमिक्स व प्रोटियोमिक्स में असंशोधित या कच्चे आँकड़े उत्पन्न होते हैं। कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी की मदद से किये गये इन असंशोधित या कच्चे आँकड़ों (data) के विश्लेषण से इस डेटा के महत्त्वपूर्ण रुझान प्राप्त होते हैं। 
  • प्रोटियोमिक्स (Proteomics) कोशिकीय प्रोटीनों की संरचना, कार्य व पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन प्रोटियोमिक्स कहलाता है। 
  • प्रोटिओम (Proteome) किसी कोशिका की जैविक रूप से सक्रिय प्रोटीनों का पूर्ण समुच्चय (set)।

मानव जीनोम परियोजना के उद्देश्य (Aims of Human Genome Project) 
मानव जीनोम परियोजना एक महायोजना (Mega project) थी। इसके निम्नलिखित उद्देश्यों से इसकी विशालता व महती आवश्यकताओं का पता लगता है-

  1. यह अनुमान लगाया गया था कि मानव जीनोम में लगभग 3 x 109 क्षारक युग्म हैं। इस परियोजना के प्रारम्भ में प्रति क्षारक युग्म की जानकारी का अनुमानित खर्चा 3 अमेरिकी डालर लगाया गया था, जिससे इसका पूरा अनुमानित खर्च लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (9 billion Us dollors) आँका गया था। 
  2. अगर इस परियोजना से प्राप्त डी.एन.ए. अनुक्रमों को मुद्रित पुस्तकों के रूप में रखा जाय तथा पुस्तक के 1000 पृष्ठों में से प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हो तब मनुष्य की एक कोशिका से प्राप्त डा.एन.ए. अनुक्रमा की जानकारी के संग्रह में ऐसी 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी। 
  3. इससे उत्पादित अत्यधिक विशाल आँकड़ों के संग्रह (storage), पुनः प्राप्ति (retrieval) व विश्लेषण (analysis) के लिए उच्च गति संगणन युक्तियों (high speed computational devices) की आवश्यकता का अनुभव किया गया। ह्यूमन जीनोम परियोजना से ही जीवविज्ञान की नई शाखा जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
  4. दीर्घावधि (1990 - 2003) की इस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परियोजना में यू एस डिपार्टमेण्ट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य देशों के निजी (private) व सार्वजनिक उपक्रमों (Public sector) के अनेक वैज्ञानिकों ने कार्य किया। 

मानव जीनोम परियोजना (HGP) के लक्ष्य 
एच जी पी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निम्न थे-

  1. मनुष्य के डी.एन.ए. में मिलने वाली सभी लगभग 20000 - 25000 जीनों की पहचान करना। (तब तक माना जाता था कि मनुष्य में 50,000 से 1,00,000 जीन होते है) 
  2. मानव डी.एन.ए. का निर्माण करने वाले 3 बिलियन रासायनिक क्षारक युग्मों (base pairs) का निर्धारण करना। 
  3. इस सारी जानकारी को आँकड़ों के रूप में संग्रहित करना। 
  4. आँकड़ों के विश्लेषण हेतु उपलब्ध तकनीकों में सुधार व नई तकनीको का विकास। 
  5. सम्बद्ध प्रौद्योगिकियों को अन्य उपक्रमों जैसे उद्योगों को स्थानान्तरित करना। 
  6. इस परियोजना से जुड़े नैतिक (Ethical), कानूनी (Legal) व सामाजिक (Social) मुद्दों (ई.एल एस आई ELSI) को सुलझाना।

ई एल एस आई (ELSI) 
समाज का एक वर्ग मानव जीनोम परियोजना के सरोकारों, मानवीय जीनों में उलटफेर, जैसे क्रियाकलापों के विरुद्ध है। इस वर्ग का मानना है कि मनुष्य को ईश्वर के कार्य में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को एक प्रयोगशालायी जीव बनाकर किये प्रायोगिक अनुसंधान नैतिकता के खिलाफ हैं। इसी प्रकार के नैतिक मुद्दे (ethical issues) मानव जीनोम परियोजना से जड़े हैं। इन्हीं के उल्लंघन से सामाजिक (Social) व वैधानिक (legal) मुद्दे उपजते है। जैसे

  1. एक जनकीय (reproductive) मुद्दा है बच्चों के बारे में निर्णय लेने के लिए आनुवंशिक सूचना का उपयोग कर पसंद के (वांछित गुणों के) 'डिजाइनर बेबी' तैयार करना, जो नैतिकता के खिलाफ हैं। 
  2. निजता के अधिकार का एक मुद्दा है आपकी आनुवंशिक सूचना किस - किस की पहुंच में हो? जीनोम बनाते समय जिन दाताओं से आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त किया, उसकी जानकारी गुप्त रखी गई थी। 
  3. एक मुद्दा गुणवत्ता नियंत्रण का भी है। 
  4. मानव जीनोम परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य 
  5. मानव जीनोम परियोजना सन् 1990 में प्रारम्भ तथा 2003 में पूरी हुई। (1900 - 2003) अर्थात इसकी कुल अवधि 13 वर्ष रही। 
  6. इस परियोजना का संयोजन व समन्वयन यू एस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (US Department of Energy and National Institute of Health) ने किया। 
  7. इंग्लैंड (UK) का वेलकम ट्रस्ट (Wellcome Trust) इस परियोजना के प्रारम्भ में इसका प्रमुख साझेदार रहा। बाद में अन्य देशों जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य का योगदान प्राप्त हुआ। 

मानव जीनोम परियोजना (एच जी पी) का महत्व 
मानव जीनोम परियोजना विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिकों के सहयोग से सम्पन्न एक विशाल परियोजना थी, जिसने आण्विक आनुवंशिकी (Molecular Genetics) की हमारी समझ को मजबूत किया है। इसी के कारण जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) जैसी जीव विज्ञान की शाखा में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस परियोजना की उपलब्धियों को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

  • विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाली डी.एन.ए. विभिन्नता की जानकारी से मानव की हजारों बीमारियों की जाँच, उपचार व रोकथाम में मदद मिलती है व भविष्य में और अधिक मिलने की संभावना है। 
  • मानव जीव विज्ञान की समझ मजबूत हुई है। 
  • अन्य जीवों के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं को समझने का अवसर मिला है। इस ज्ञान का प्रयोग चिकित्सा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरणीय सुधार आदि क्षेत्रों की चुनौतियों से निबटने में किया जा सकता है। 
  • अनेक जीवों जैसे जीवाणु ई. कोलाई, यीस्ट, एक मुक्तजीवी गोलमि सौनोरैब्डाइटिस एलीगेंस, जो रोगकारी नहीं होता, ड्रोसोफिला, घान व एरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) जैसे पौधे के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है। इनकी मानव जीनोम से तुलना, जीव विज्ञान सम्बंधी हमारा ज्ञान समृद्ध करती है। 
  • मानव के इतिहास, प्रवसन (Migration), विविधता के कारण, विकास आदि की समझ मजबूत हुई है। 

प्रयुक्त विधियाँ-
मानव जीनोम परियोजना को पूरा करने के लिए दो प्रमुख तरीकों का प्रयोग किया गया-
(a) अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स (Expressed Sequence Tags): चूंकि जीन पहले आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त होती हैं, अत: कोशिका में इस आर.एन.ए. का अध्ययन कर इनसे जीन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पहली विधि इसी सिद्धान्त पर आधारित थी जिसमें आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त, सभी जीनों की पहचान की गई। इसे अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स एक्सप्रेस्ड सीक्वेंस टैग्स (Expressed Sequence Tags ESTS) नाम दिया गया। 

(b) अनुक्रम टिप्पण या सीक्वेंस एनोटेशन (Sequence Annotation): इस विधि में पूरे के पूरे जीनोम के कोडिंग व गैर कोडिंग (coding or non coding) सभी भागों का अनुक्रम ज्ञात किया जाता है। बाद में इस अनुक्रम के विभिन्न क्षेत्रों को उनके काम से जोड़ा जाता है। अनुक्रम ज्ञात करने के लिए एक कोशिका से पूरे के पूरे डी.एन.ए. को पृथक कर अपेक्षाकृत छोटे - छोटे यादृच्छिक टुकड़ों (random fragments) में बदल दिया जाता है। डी.एन.ए. को छोटे - छोटे टुकड़ों में विभक्त करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि डी.एन.ए. एक बहुत बड़ा अणु है तथा इसके बड़े टुकड़ों का अनुक्रम ज्ञात करना तकनीकी सीमाओं के कारण सम्भव नहीं होता। डी.एन.ए. के छोटे - छोटे टुकड़ों को वाहक (vector) की मदद से पोषक कोशिका (host cell) में क्लोन कर लिया जाता है। क्लोनिंग से डी.एन.ए. के प्रत्येक खण्ड का पर्याप्त आवर्धन (amplification) हो जाता है। पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाने से इनका अनुक्रम सहजता से ज्ञात किया जा सकता है। पोषक के रूप में सामान्यत: यीस्ट व जीवाणुओं का जबकि वाहक के रूप में बी ए सी (BAC) अर्थात बैक्टीरियल आर्टीफीशियल क्रोमोसोम व वाई ए सी (YAC) यीस्ट आर्टीफीशियल क्रोमोसोम का प्रयोग किया गया।

डी.एन.ए. खण्डों के अनुक्रम ज्ञात करने के लिए स्वचालित डी.एन.ए. अनुक्रमक (Automated DNA Sequence) का प्रयोग हुआ। जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह वह मशीन है जो डी.एन.ए. अणु में क्षारकों का अनुक्रम ज्ञात करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह स्वचालित अनुक्रमक महान वैज्ञानिक फ्रेडेरिक सांगेर (Frederick Sanger) द्वारा विकसित सिद्धान्त पर कार्य करता है। यह वैज्ञानिक, प्रोटीनों में अमीनो अम्लों के क्रम के निर्धारण हेतु विकसित विधि के लिए भी जाने जाते हैं। प्राप्त अनुक्रमों को फिर सही क्रम में व्यवस्थित किया गया। इस हेतु इनमें उपस्थित अतिव्यापी क्षेत्रों (overlapping regions) को आधार बनाया गया। अनुक्रमण हेतु अतिव्यापी (अंशछादन) खंडों (over lapping) का उत्पादन भी किया गया। इन अनुक्रमों (sequences) को सही क्रम में व्यवस्थित करना बिना मशीनी मदद के सम्भव नहीं था। अत: विशिष्ट कम्प्यूटर आधारित कार्यक्रम विकसित किए गये। इन अनुक्रमों को बाद में इनके कार्यों से जोड़ा गया जिसे टिप्पण (Annotation) कहते हैं। क्रोमोसोम संख्या 1 के अनुक्रमों का निर्धारण मई 2006 में ही सम्पन्न हो पाया। मनुष्य के कुल 24 क्रोमोसोम 22 आटोसोम तथा X व Y क्रोमोसोमों के अनुक्रमों का निर्धारण किया गया जिनमें क्रोमोसोम 1 आखिरी था। अगला चुनौती भरा काम जीनोम के भौतिक व आनुवंशिक नक्शे तैयार करना था। रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा पहचाने जाने वाले स्थलों की बहुरूपिता (Polymorphism of restriction endonuclease recognition sites) तथा माइक्रोसैटेलाइट (Microsatellite) नामक पुनरावृत्त डी.एन.ए. अनुक्रमों (Repetitive DNA Sequences) की जानकारी के आधार पर यह चुनौती भरा कार्य भी सम्पन्न हो सका।
मानव जीनोम की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of Human Genome) 
मानव जीनोम परियोजना से प्राप्त प्रमुख प्रेक्षण निम्नलिखित है

  1. मानव जीनोम में 3164.7 मिलियन क्षारक है। 
  2. एक औसत जीन 3000 क्षारकों की बनी होती है लेकिन इनके आकार में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। मनुष्य में सबसे बड़ी ज्ञात जीन डिस्ट्रोफिन (Dystrophin) है जिसमें 2.4 मिलियन आरक मिलते हैं।
  3. जीनों की कुल संख्या अनुमानतः 30000 है जो पहले लगाये गये अनुमानों 80,000 से 1,40,000 जीनों से बहुत कम है।
  4. सभी व्यक्तियों में लगभग सभी 99.9 प्रतिशत, क्षारक समान होते हैं, अर्थात क्षारकों में मात्र 0.01 प्रतिशत अन्तर मनुष्यों में पाई जाने वाली विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी है।
  5. खोजी गई 50 प्रतिशत से अधिक जीनों का कार्य ज्ञात नहीं है। 
  6. पूरे जीनोम का 2 प्रतिशत से भी कम भाग प्रोटीन का कूटलेखन करता है।
  7. मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्त अनुक्रमों (repetitive sequence) द्वारा होता है। 
  8. पुनरावृत्त अनुक्रम, डी.एन.ए. अनुक्रमों (sequences) के ऐसे खण्ड हैं जिनकी पुनरावृत्ति अनेक बार होती है। सरल शब्दों में यह डी.एन.ए. में बार - बार दोहराए जाने वाले खण्ड हैं। अनेक बार इनकी पुनरावृत्ति सैकड़ों से लेकर हजार बार तक होती है। ऐसा माना जाता है कूटलेखन (coding) इनका प्रत्यक्ष कार्य नहीं है, लेकिन यह क्रोमोसोम की संरचना, गतिकी (dynamics) व विकास पर प्रकाश डालते हैं।
  9. सबसे अधिक जीन (2968) क्रोमोसोम संख्या 1 पर सबसे कम जीन 231 Y क्रोमोसोम पर मिलती हैं। 
  10. वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम में 1.4 मिलियन ऐसे स्थानों की पहचान की है जो केवल एक क्षारक में भिन्न होते हैं। सिर्फ एक स्थान में भिन्नता प्रदर्शन करने वाले इस गुण को एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता - सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमार्फिज्म (Single Nucleotide Polymorphism; SNPS) कहते हैं। इन्हें स्निप्स 'Snips' नाम से पुकारा जाता है। यह जानकारौ रोगों/विकारों से जुड़े अनुक्रमों की क्रोमोसोम पर स्थिति की खोज को सहज बना सकती है, साथ ही मानव इतिहास के रहस्यों को सुलझाने की प्रक्रिया में क्रांति की आशा बंधाती है।

अनुप्रयोग व भविष्य की चुनौतियों (Applications and Future Challenges) 
मानव जीनोम परियोजना के कारण आज वैज्ञानिकों के समक्ष सूचनाओं (information) का अंबार लगा है। एक - एक हजार पृष्ठों वाली 3300 विकायो में भारको के आँकड़े उपलब्ध हैं। लेकिन आने वाले दशकों में शोध की दिशा व दश इन डी.एन.ए. अनुक्रमों के आँकड़ों से, सार्थक जानकारी व ज्ञान के मस पर निर्भर करेगी। इसी ज्ञान से जैविक तंत्र सम्बंधी हमारी समझ मजबूत इस वृहद कार्य को करने के लिए दुनिया के सभी देशों के प्राइवेट व सार्वजनिक उपक्रमों के विभिन्न विषयों के हजारों - हजार वैज्ञानिकों की प्रतिभा, कौशल. रचनात्मकता व अनुभव की आवश्यकता होगी। मानव जीनोम परियोजना के प्रेक्षणों ने जीवविज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों को नये आयाम और गति प्रदान की है। पहले शोधकर्ता एक समय में एक या कुछ जीनों के अध्ययन तक सीमित रहते थे। आज, पूरे जीनोम अनुक्रमों की उपलब्धता व नई तकनीकों के बल पर हम इस सन्दर्भ में उठने वाले प्रश्नों के अधिक व्यवस्थित उत्तर व्यापक स्तर पर दे सकते है। इसी कारण जीनोम की सभी जीनों का अध्ययन सम्भव उदाहरण के लिए आज किसी ऊतक, अंग या अर्बुद (tumor) में मिलने वाले सभी अनुलेखों (transcript) का अध्ययन किया जा सकता है। साथ ही यह जाना जा सकता है कि कैसे हजारों जीन व प्रोटीन आपसी तालमेल से जीवन के रसायन को व्यवस्थित बनाये रखते है।

मानव जीनोम परियोजना का महत्व 

  1. जीवन के रसायन (Chemistry of life) की बेहतर समझ विकसित होगी।
  2. इसके आधार पर सूक्ष्मजीवों के जीनोम अध्ययन का पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, ईधन तकनीकों में उपयोग किया जा सकेगा। 
  3. रोगों की बेहतर समझ से उनकी रोकथाम व बेहतर उपचार संभव होगा। 
  4. यह मानव इतिहास, विकास व प्रवासन (migration) के अनसुलझे रहस्यों का सुलझाने का कार्य करेगा। 
  5. फोरेन्सिक साइंस से जुड़ी तकनीकों में और सुधार होगा। 
  6. पौधों के जीनोम अध्ययन से बेहतर रोग नियंत्रण व बेहतर उपज। 
  7. वायोइन्फोमेटिक्स के प्रयोग से रोगों की पहचान, रोकथाम की जीन आधारित तकनीक का विकास।

विचारणीय बिन्दु: मानव जीनोम से यह स्पष्ट हो गया कि मनुष्य में कुल जीनों की संख्या पहले अनुमान की गई संख्या 1,00,000 से बहुत ही कम है। पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य कैसे इतनी कम जीनों से काम चला लेता है? ऐसा भी हो सकता है कि मनुष्य में जिस DNA को 'जंक DNA (June DNA) माना जाता था वह अत्यधिक काम का हो। यह संभव है कि इंट्रान की उपस्थिति एक्जानों को विभिन्न अनुक्रमों में व्यवस्थित हो सकने में सक्षम बनाती हो जिससे एक जीन से अनेक mRNA प्रोटीन बन सकते है। यह भी संभव है कि इंट्रान जोन अभिव्यक्ति के नियमन में मदद करते हो तथा यह निर्धारित करने में फीडबैक उपलब्ध कराते हों कि कौन-सी कोडिंग जीन की अभिव्यक्ति की आवश्यकता है तथा उसे कैसे प्रसंस्करित किया जाय। जीनोम की एक ऐसी नई भूमिका उभर रही है जो सेण्ट्रल डोग्मा का सिद्धान्त देने वाले वैज्ञानिकों के विचार से एकदम अलग है। आर.एन.ए. की एक नियामक अणु के रूप में कार्य करने क्षमता की खोज से इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है कि क्यों जीवों की संरचनात्मक व विकासीय जटिलता के साथ-साथ प्रोटीन को कोड करने वाली जीनों की संख्या में बढ़ोत्तरी आवश्यक नहीं। संभावनाएँ अनन्त हैं।

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प्रश्न 17. 
ही.एन.ए. फिंगर प्रिटिंग तकनीक में अनुषंगी (satellite) DNA के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पुनरावृत्त डी.एन.ए. व बहुरूपता (Repetitive DNA and Polymorphism) 
आप यह जान चुके है कि डी.एन.ए. अनुक्रमों में कुछ ऐसे खण्ड होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति बार - बार होती है। इसका अर्थ है कुछ बिल्कुल एक से खण्डों की डी.एन.ए. अणु में लगातार अनेक प्रतियाँ उपलब्ध रहती हैं। इस बार-बार दोहराये जाने वाले खण्डों को पुनरावृत्त डी.एन.ए. (Repetitive DNA) कहा जाता है। कुछ पुनरावृत्त डी.एन.ए., पूरे डी.एन.ए. में विखरे रहते है लेकिन कुछ एक साथ, समूह के रूप में पाये जाते है जिन्हें टेन्डम (Tandem) कहते हैं। इन टेन्डम रिपीट (Tandem repeats) को मूल रूप से, डी.एन.ए. के अलग भाग में खोजा गया था जिसे सैटेलाइट कहा गया। इन्हीं टेन्डम रिपीट को सेटेलाइट डी.एन.ए. (Satellite DNA) कहा जाता है। पुनरावृत्त डी.एन.ए. का प्रत्येक समूह सेटेलाइट (Satellite) कहा जाता है। एकखण्ड की पुनरावृत्ति की संख्या इन अनुक्रमों में भिन्नता प्रदर्शित करती है। अर्थात एक खण्ड कितनी बार एक सेटेलाइट में दोहराया जाता है या पुनरावृत्त होता है इस आधार पर यह अनुक्रम अत्याधिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। इन पुनरावृत्त खण्डों की लम्बाई, यह सैटेलाइट में कितनी बार दोहराए जाते हैं, अर्थात इनकी आवृत्ति तथा क्षारक संघटन (base composition) जैसे- (A:T समृद्ध या G:C समृद्ध) आदि के आधार पर सैटेलाइट डी.एन.ए. को अनेक प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जैसे मिनी सैटेलाइट, माइक्रोसैटेलाइट आदि। 

मिनी सैटेलाइट (Mini Satellite): ऐसे सैटेलाइट जिनमें पुनरावृत्त खण्डों की संख्या बहुत कम होती है मिनी सैटेलाइट कहलाते हैं। सैटेलाइट डी.एन.ए. के अनुक्रम प्राय: किसी प्रोटीन को कोड नहीं करते लेकिन वह मानव जीनोम के एक बड़े भाग का निर्माण करते है। इन अनुक्रमों में उच्च स्तर की बहुरूपता (Polymorphism) पायी जाती है।

माइक्रोसैटेलाइट सिर्फ 1 से 5 bp लम्बे होते हैं। व्यक्तियों में इन छोटे - छोटे अनुक्रमों (short sequences) की संख्या के आधार पर अत्यधिक विभिन्नता होती है, अर्थात वह हाइपर वेरिएबिल (hypervariable) होते हैं। इसी कारण मिनी सैटेलाइट को कभी - कभी वी एन टी आर (Variable Number Tandem Repeats; VNTRs) भी कहा जाता है। अर्थात VNTR, सैटेलाइट डी.एन.ए. के एक समूह मिनी सैटेलाइट से सम्बंधित है। इनमें डी.एन.ए. का एक छोटा - सा अनुक्रम लगातार कई बार दोहराया जाता है। टेन्डम (Tandem) का शाब्दिक अर्थ है - दोहराना, अर्थात समान अनुक्रम का बार - बार दोहराना। जितनी बार यह दोहराया जाता है उसे कॉपी नम्बर कहा जाता है। किसी व्यक्ति में कॉपी नम्बर प्रत्येक क्रोमोसोम के लिए अलग - अलग होती है। दोहराये जाने की संख्या उच्च स्तर की बहुरूपता प्रदर्शित करती है। फलस्वरूप VNTR का आकार 0.1 से 20 kb (किलो बेस) तक की विविधता प्रदर्शित करता है। किसी व्यक्ति में क्रोमोसोम के किसी विशिष्ट स्थान या 'लोकस' (Locus) पर दो एलीलिक मिनी सैटेलाइट होगे, एक पिता से प्राप्त व एक माता से प्राप्त। आनुवंशिक अंगुलिछापन (genetic fingerprinting) किसी व्यक्ति के मिनी सैटेलाइट की लम्बाई के विश्लेषण का एक तरीका है। अर्थात यह बहुरूपता पर आधारित होता है। विश्लेषण के लिए पुनरावृत्त डी.एन.ए. (repetitive DNA) को मुख्य डी.एन.ए. (bulk DNA) से अलग करना पहला चरण होता है। इनको घनत्व प्रवणता अपकेन्द्रीकरण (density gradient centrifugation) विधि द्वारा अलग किया जाता है। मुख्य या अधिक परिमाण वाला या बल्क डी.एन.ए. मुख्य शिखर (major peak) बनाता है जबकि सैटेलाइट डी.एन.ए. छोटे - छोटे शिखरों (small peaks) के रूप में अलग होते हैं। 

सैटेलाइट डी.एन.ए.: सैटेलाइट डी.एन.ए., पुनरावृत्त डी.एन.ए. का एक प्रकार है, जिसका घनत्व मुख्य डी.एन.ए. से अलग होता है। यह छोटे - छोटे पुनरावृत्त अनुक्रमों (repeated sequences) का बना होता है जो नॉन कोडिंग (Non coding) होते हैं। सैटेलाइट डी.एन.ए. क्रियाशील सेण्ट्रोमियर तथा हैटेरोक्रोमेटिन का प्रमुख भाग बनाता है।
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सैटेलाइट डी.एन.ए., न्यूक्लियोटाइड क्षारक एडीनीन, ग्यानीन, साइटोसीन व थायमीन की अलग आवृत्ति प्रदर्शित करता है। मुख्य डी.एन.ए. से अलग घनत्व के कारण यह अलग अर्थात दूसरे (second) वा सैटेलाइट बैंड (band) बनाता है (घनत्व प्रवणता में) इस कारण भी इसका नाम सैटेलाइट है। 
पुनरावृत्त ही.एन.ए.: डी.एन.ए. के ऐसे अनुक्रम जो प्रोटीन को कोड नहीं करते तथा बार - बार दोहराए जाते हैं पुनरावृत्त डी.एन.ए. कहलाते है। 5 - 100 न्यूक्लियोटाइ लम्बे ऐसे खण्ड सेटेलाइट डी.एन.ए. व इससे बड़े खण्ड पुनरावृत्ति डी.एन.ए. का एक अन्य वर्ग एलू अनुक्रम (Alu sequence) व ट्रांसपोजोन बनाते हैं। वी एन टी आर (VNTR) जीनोम का वह स्थान जहाँ एक छोटा न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम एक के बाद एक क्रम (tandem) में दोहराया जाता है वी एन टी आर कहलाता है। यह लम्बाई में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं व अनेक क्रोमोसोमों पर पाये जाते हैं। ऐसी प्रत्येक विविधता एक अलील की तरह वंशागत होती है जिससे उन्हें व्यक्ति की या माता - पिता की पहचान के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
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कैसे उत्पन्न होती है बहुरूपता? How does polymorphism arise? 
बहुरूपता (polymorphism) का यहाँ अर्थ है आनुवंशिक स्तर पर विभिन्नता (variation at genetic level)। यह आनुवंशिक स्तर की भिन्नता उत्परिवर्तनों (mutations) के द्वारा उत्पन्न होती है। उत्परिवर्तन किसी जीव की कायिक कोशिका (somatic cells) व जननिक कोशिका (germ cell) जो युग्मकों का निर्माण करती है, किसी में भी उत्पन्न हो सकते हैं। अगर जीव की जननिक कोशिका में हुए उत्परिवर्तन जीव के लिए घातक नहीं हैं, अथवा उसकी जनन क्षमता को प्रभावित नहीं करते तन यह आनुवंशिक बदलाव लैंगिक जनन द्वारा उस जीव को संतति में पहुंच जाते हैं। समय के साथ यह बदलाव पीढ़ी - दर - पीढ़ी जनसंख्या के एक बड़े भाग का हिस्सा बन जाते हैं। अगर मानव जनसंख्या में 'एक लोकस' (locus) पर एक से अधिक अलील, 0.01 से अधिक आवृत्ति में पाया जाता है तब इस स्थिति को परम्परागत रूप से डी.एन.ए. बहुरूपता (DNA polymorphism) कहते है। सरल शब्दों में अगर किसी जनसंख्या में वंशागत उत्परिवर्तन (inheritable mutation) उच्च आवृत्ति में पाया जाता है तब इसे डी.एन.ए. बहुरूपता (DNA Polymorphism) कहते हैं। इस प्रकार की विभिन्नताएँ डी.एन.ए. के गैर कूटलेखन अनुक्रमों या नान कोडिंग सीक्वेसेंस (non - coding sequences) में अधिक मिलती हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में हुए उत्परिवर्तनों का जीव की जनन क्षमता पर तात्कालिक प्रभाव नहीं होता। अतः इस प्रकार के उत्परिवर्तन पीढ़ी - दर - पीढ़ी एकत्रित होते रहते हैं तथा विभिन्नताओं या बहुरूपता (polymorphism) का आधार बनाते हैं। बहुरूपता (polymorphism) के अनेक प्रकार हो सकते हैं। कुछ केवल एक न्यूक्लियोटाइड बदलाव को प्रदर्शित करते हैं, जैसे SNPS जबकि कुछ व्यापक बदलावों के परिचायक होते हैं। इस प्रकार की बहुरूपता जैव विकास व नई प्रजाति की उत्पत्ति (speciation) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 18. 
अनुलेखन किसे कहते हैं। डी.एन.ए. में अनुलेखन इकाई के भामः क्या है? अनुलेखन क्रिया में इनका योगदान क्या है?
उत्तर:
डी.एन.ए. के एक रज्जु की आनुवंशिक सूचना भी आर.एन.ए. में काम करने की प्रक्रिया अनुलेखन कहलाती है। अर्थात् DNA से RNA व निर्माण अनुलेखन कहलाता है। डी.एन.ए. अनुलेखन इकाई के भाग- मोनोविस्ट्रिोनिक व पॉलीसिस्ट्रोनिक जीन। मोनोसिस्ट्रोनिक इकाई में एकल पॉलीपेपटाइड के कूटलेखन अनुक्रम पाए जाते हैं और ये अभिव्यक्त होते हैं। उन्हें एक्सॉन्स कहते हैं। इसके बीच इन्ट्रॉन्स पाए जाते हैं। पॉलीसिस्ट्रॉनिक जीन अधिक सिस्ट्रॉन के मिलने से बनती है। इनके बाद में गैर कोडिंग अनुक्रम नहीं पाए जाते हैं।

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प्रश्न 19. 
आगे आनुवंशिक कोहों के लक्षण विष्ट गए हैं। इनमें से प्रत्येक किसका संकेत देता है? रोध कोडोन, असंदिग्ध कोडोन, अपह्वासित कोडोन, सार्वभौमिक कोडोन।
उत्तर:

  1. रोध कोडोन: किसी भी अमीनों अम्ल को कोड नहीं करता, जैसे- UEA. 
  2. असंदिग्ध कोडोन: किसी एक अमीनों अम्ल को ही कोड करता है, जैसे- CCE, प्रोलीन को। 
  3. अपहासित कोहोन: आनुवंशिक कूट अपलासित कहलाता है जबकि एक ही अमीनों अम्ल को कई कोडोन द्वारा कूटित किया जाता है। उदाहरण के लिए सीरीज कोडोन द्वारा कूटित किया जाता है। 
  4. सार्वभौमिक कोडोन: यह सभी जीवों में समान अमीनों अम्ल को कूटित करता है। (माइटोकॉण्ड्रिया एवं प्रोटोजोअन्स को छोड़कर)। 

प्रश्न 20. 
यद्यपि अमीय केन्द्रकी कोशिका में स्पष्ट केन्द्रक नहीं होता, फिर भी डी.एन.ए. यूरीकोशिका में फैला नहीं होता। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असीमकेन्द्रकी कोशिका में वास्तविक केन्द्रक नहीं होता है। यद्यपि डी.एन.ए. सम्पूर्ण कोशिका में नहीं फैला होता है। इसका कारण है कि, कोशिका के केन्द्रीय भाग या केन्द्रकाभ में उपस्थित कुछ धनात्मक प्रोटीन्स, ऋणावेशित डी.एन.ए. को बाँध रखती हैं। इस भाग में प्रोटीन्स से लिपटे हुए डी.एन.ए. के बड़े छल्ले बने रहते हैं। 

प्रश्न 21. 
ही.एन.ए. अणु की एक श्रृंखला में 546 न्यूक्लिमोटाइड्स हैं। यदि इसमें एडेनीन न्यूक्लिओटाइड्स की संख्या 96 है, तो उसमें उपस्थित साइटोसीन न्यूक्लिओटाइड्स की संख्या कितनी होगी?
उत्तर:
शारगैफ के नियम के अनुसार, डी.एन.ए. अणु की श्रृंखला में यूरीन सदैव पिरिमिडीन्स के बराबर होते हैं, अर्थात्
A + E = C + T एडिलीनी 
(a) की संख्या, थाइमीन (T) के बराबर होती है,
A = 96 (दिया है) 
तब T = 96 
इसी प्रकार ग्वानीन (G) की संख्या सायटोसीन (C) के बराबर होती है 
अत: G + C = 546 - (A + T)
G + C = 546 - 96 + 96 
G + C = 546 - 192
G + C = 354 
सायटोसीन (C) न्यूक्लिओटाइड्स की संख्या
\(=\frac{354}{2}=177\)

प्रश्न 22. 
किसी डी.एन.ए. खण्ड की एक रज्जुक को नीचे दिया गया है-
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(a) इसकी पूरक रज्जुक आरेखित कीजिष्ट (लिखिष्ट)। 
(b) बनने वाले उपर्युक्त डी.एन.ए. अणु से अनुलेखन द्वारा बनने वाली संभावित आर.एन.ए. रज्जुक को लिखिए।
उत्तर:
(a) पूरक रज्जुक: 5' → ATGCATGCATGCATGC → 3' 
(b) संभावित आर.एन.ए. रज्जुक:
5' → UACGUACGUAUGUACG → 3'

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प्रश्न 23. 
अनुवाद के लिए तैयार एक एम - आर.एन.ए. में क्या - क्या भाग होते हैं? प्रत्येक का कार्य लिखिए। 
उत्तर:
अनुवाद के लिए तैयार अर्थात प्रसंस्करित एम आर.एन.ए. में निम्न भाग होते है-
(a) अनुवाद इकाई (Translational Unit) जिसमें निम्म भाग होते हैं-

  • आरम्भक कोडोन (start codon - AUG) अनुवाद का प्रारम्भ 
  • पॉलीपेप्टाइड के कोड - पॉलीपेप्टाइड का निर्माण 
  • रोध कूट (Stop Codon): अनुवाद के समापन हेतु। 

(b) गैर अनुवादित क्षेत्र (Untranslated regions - UTR) 5' सिरे व 3' सिरे, दोनों ओर - अनुवाद को कार्यक्षम बनाना 
(c) मिथाइल G कैप व पॉली A पुच्छ (tail)। 

प्रश्न 24. 
डी.एन.ए. की संरचना का संक्षिप्त विवरण दीजिए। 
उत्तर:
DNA की संरचना (Structure of DNA)
सरलीकृत चित्र 6.1 प्रदर्शित करता है कि नाभिकीय अल DNA, न्यूक्लिओटाइड (Nucleotides) इकाइयों से मिलकर बना होता है।
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यह इकाइयाँ एक दूसरे से रैखिक क्रम में जुड़कर एक अत्यधिक लम्बा अणु बना देती है जो पॉलीन्यूक्लियोटाइड (Polynucleotide) कहलाता है। अतः DNA की संरचना को जानने के लिए यह आवश्यक है कि पहले एक न्यूक्लियोटाइड की संरचना को जाना जाए। 
न्यूक्लियोटाइड की संरचना (Structure of Nucleotide) 

एक न्यूक्लियोटाइड तीन इकाइयों से मिलकर बना होता है - एक 5 कार्बन शर्करा, एक नाइट्रोजनी क्षारक व फास्फोरिक अम्ला 
(a) पेन्टोज शर्करा (Pentose Sugar): इस शर्करा में 5 कार्बन परमाणु (atoms) होते हैं, अतः यह पेन्टोज कहलाती है। DNA की पेन्टोज शर्करा डीऑक्सीराइबोज (deoxyribose) तथा RNA की शर्करा सहयोज (Ribose) प्रकार की होती है। राइबोज शर्करा के द्वितीय कार्बन परमाणु स्थान से एक ऑक्सीजन परमाणु के हट जाने से डीऑक्सीराइबोज शर्करा का निर्माण होता है।
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डाइन्यूलियोटाइड व पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स का निर्माण (Formation of dinucleotides and Polynucleotides) 
दो न्यूक्लियोटाइड्स आपस में जुड़कर डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया में एक न्यूक्लियोटाइड का फास्फेट समूह दूसरे न्यूक्लियोटाइड का शकरा से 3' - 5' फास्फोडाइएस्टर बन्ध (phosphodiester linkage) द्वारा जुड़ता है, अतः यह भी एक संघनन (condensation) क्रिया है। यह प्रक्रिया अनेक बार दोहराई जाती है जिससे एक पालीन्यूक्लियोटाइड का निर्माण हो जाता है। अतः कहा जा सकता है कि एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला में इसकी रीढ़ (backbone) एकान्तरित फास्फेट - शर्करा फास्फेट - शर्करा - अणुओं की बनी होती है।

चूंकि DNA डीऑक्सीराइबोन्यूक्लियोटाइड का एक लम्बा बहुलक है अत: इसकी लम्बाई प्रायः इसकी न्यूक्लियोटाइड संख्या के आधार पर परिभाषित की जाती है। इसे इसमें उपस्थित न्यूक्लियोडाइड जोड़े या क्षारक युग्म (base pair) के रूप में मापा जाता है। क्षारक युग्मों की संख्या (number of base pairs) किसी जीव का एक अभिलाक्षणिक गुण है। उदाहरण के लिए एक जीवाणुभोजी (Bacteriophage) Φ x 174 में 5386 न्यूक्लियोटाइड होते हैं। जीवाणुभोजी लैम्ब्डा में क्षारक युग्मों की संख्या 48502 होती है। जीवाणु एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coli) में 4.6 x 106 bp (base pairs) तथा मनुष्य में अगुणित क्रोमोसोमों का DNA 3.3 x 109 bp लम्बा होता है। न्यूक्लियोटाइडों के बहुलकीकरण से इस प्रकार ऐसा पॉलीन्यूक्लियोटाइड बनता है जिसके एक सिरे पर स्थित पेन्टोज शर्करा के 5 सिरे पर मुक्त फास्फेट समूह होता है। इसे पालीन्यूक्लियोटाइड शृंखला का 5' सिरा कहा जाता है। इसी प्रकार इस पॉलीन्यूक्लियोटाइड के दूसरे सिरे पर स्थित पेन्टोज शर्करा का तीसरा कार्बन परमाणु (3'OH समूह) मुक्त होता है, अतः इसे पालीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का 3' सिरा कहा जाता है। इस प्रकार फास्फेट - शर्करा - फास्फेट की बनी रोड़ से, शर्करा अणुओं से जुड़े नाइट्रोजनी क्षारक बाहर की ओर निकले रहते हैं। बीसवीं शताब्दी के छठवें दशक में यह जात हो चुका था कि DNA के अणु तन्तुवत (fibrous) हैं। DNA की संरचना के अध्ययन के लिए प्रख्यात रसायनविद लिनस पॉलिंग (Linus Pauling) भी प्रयास कर रहे थे। इसी समय लन्दन के किंग कॉलेज के मॉरिस विलिकिन्स (Maurice Wilkins) व रोजालिन फ्रेंकलिन (Rosalind Franklin) जटिल एक्सरे क्रिस्टेलोग्राफी तकनीक द्वारा DNA संरचना ज्ञात करने का प्रयास कर रहे थे। इससे DNA की हैलिक्स रचना के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल कैम्बिज के जेम्स बॉटसन व फ्रांसिस क्रिक (James Watson and Francis Crick) ने रोजालिन व मारिस विलीकन्स द्वारा उपलब्ध की गयी जानकारी सहित सभी प्राप्त रासायनिक व भौतिक जानकारियों के आधार पर सन् 1953 में DNA का सुविख्यात द्विकुण्डली (Double helical) मॉडल प्रस्तुत किया। वॉटसन की पुस्तक 'द डबल हेलिक्स' (The Double Helix) में उनके कार्य के बारे में रोचक जानकारी है। वॉटसन व क्रिक का द्विकुण्डली मॉडल निम्न दो प्रमाणों के आधार पर सम्भव हो सका। 

  • एक्स - रे विवर्तन (X Ray diffraction) आँकड़े जो विलकिन्स व रोजालिन फ्रैंकलिन के कार्य से प्राप्त हुए थे। 
  • इरविन चारगॉफ (Erwin Chargaph) द्वारा प्रस्तुत डी.एन.ए. में उपस्थित विभिन्न क्षारकों के अनुपात सम्बन्धी आँकड़े जो 1951 में प्रकाशित हुए थे। 

चारगॉफ का नियम (Chargaff's Rule)
(a) DNA में A, T, G व C की मात्रा हर प्रजाति में अलग - अलग होती है।
(b) प्रत्येक प्रजाति में A की मोलर मात्रा T की मोलर मात्रा के समान तथा G की मोलर मात्रा C की मोलर मात्रा के समान होती है
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वाटसन व क्रिक द्वारा प्रस्तावित DNA के द्विकुण्डली मॉडल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशिष्टता इस अणु की दोनों शृंखलाओं के बीच का क्षारक युग्मन (base pairing) था। यह प्रस्ताव चारगॉफ के नियम पर ही आधारित था।
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DNA में क्षारक युग्मन की पूरकता (Complementarity of Base pairs in DNA)-डी.एन.ए. के दोनों रज्जुक (Strands) एक दूसरे के पूरक होते है। यह नाइट्रोजनी क्षारकों की विशिष्ट जोड़े बनाने की प्रकृति के कारण होता है, इसका अर्थ है कि एक श्रृंखला का प्यूरीन दूसरी श्रृंखला के पिरीमिडीन के साथ जोड़े बनाता है। अतः एक श्रृंखला में क्षारकों का क्रम ज्ञात होने पर पूरक श्रृंखला में क्षारकों का क्रम ज्ञात किया जा सकता है। यही पूरकता (complementarity) कहलाता है। क्षारक युग्मन पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करता है। यह शृंखलाएँ एक दूसरे की पूरक (complementary) होती हैं। साथ ही, अगर DNA की प्रत्येक श्रृंखला एक साँचे (template) की भाँति कार्य करे तो प्रत्येक पैत्रिक श्रृंखला से द्विकुण्डलित श्रृंखला (संतति शृंखला) का निर्माण हो जाता है। अर्थात एक पैत्रिक DNA अणु की शृंखलाएँ अलग-अलग होकर दो संतति DNA अणु बना लेती हैं जो पैत्रिक अणु से पूर्णत: समान होते हैं। इन सब से डी.एन.ए. की संरचना की आनुवंशिक क्षमताएँ स्पष्ट होने लगी। एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी से पता लग चुका था कि DNA अणु की चौड़ाई 2nm होती है अत: स्पष्ट हो गया कि इसमें दो रज्जुक ही हो सकते है तीन नहीं।

प्रश्न 25. 
प्रोकैरियोटिक एवं यूकरियोटिक डी.एन.ए. में अन्तर लिखिए। 
उत्तर:
आनुवंशिक पदार्थ की खोज (The Search for Genetic Material) 
मेण्डल को वंशागति का आधार बनाने वाले कारकों की रासायनिक प्रकृति की कोई जानकारी नहीं थी। लगभग इसी समय, 1869 में, स्विस डाक्टर फ्रेडरिक मिशर (Friedrich Miescher) ने पस कोशिकाओं के केन्द्रक से न्यूक्लिन नामक पदार्थ प्राप्त करने में भी सफलता प्राप्त कर ली थी। उसने यह भी बताया कि इस पदार्थ में फास्फोरस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा सल्फर अनुपस्थित है। यह, इसका वह गुण है जो इसे प्रोटीन से अलग करता है। लेकिन फिर भी, यह खोज कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ है तथा इसकी पुष्टि में बहुत समय लग गया। ग्रेगर मेण्डल, वाल्टर सटन व वोवेरी, टी.एच. मार्गन व अन्य अनेक वैज्ञानिकों ने इस खोज को क्रोमोसोम तक तो सीमित कर दिया था जो कोशिकाओं के केन्द्रक में उपस्थित होते हैं। सन् 1926 तक वंशागति की प्रक्रिया निर्धारित करने की खोज आण्विक स्तर तक पहुंच चुकी थी। लेकिन, अधिकांश वैज्ञानिकों की सोच थी कि क्रोमोसोम का प्रोटीन घटक ही आनुवंशिक पदार्थ हो सकता है क्योकि 20 भिन्न प्रकार के अमीनो अम्ल अलग - अलग तरीके से क्रमबद्ध होकर अगणित प्रकार की प्रोटीन बना सकते हैं। डी.एन.ए. की इकाई, न्यूक्लियोटाइड तो मात्र 4 प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारकों से बनी होती है अत: यह जैव जगत की विविधता के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकता।

प्रश्न 26. 
"डी.एन.ए. एक आनुवंशिकी पदार्थ है। इसकी पुष्टि हर्वे एवं चेस के प्रयोग द्वारा कीजिए। प्रयोग का आरेखित चित्र बनाइए।
उत्तर:
सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
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अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
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इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

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प्रश्न 27. 
''डी.एन.ए. का अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृतियन होता है।" मैथूमेसेल्सन व फ्रैंकलिन स्टाल के प्रयोग द्वारा इसकी पुष्टि कीजिए। प्रयोग का आरेखी चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रायोगिक प्रमाण (Experimental Proof) 
अब यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध किया जा चुका है कि डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी (semi - conservative) प्रकार का होता है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण को पहले एश्चौरीचिया कोलाई (Escherichia coli) तथा बाद में पादपों जैसे उच्च जीव व मनुष्यों में प्रदर्शित किया जा चुका है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण का प्रायोगिक प्रमाण सन् 1958 में मैथ्यू मेसलसन (Matthew Maselson) व फ्रेंकलिन स्टाल किया। 
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यह प्रयोग निम्न चरणों में सम्पन्न किया गया-
(i) मेसलसन व स्टाल ने सबसे पहले जीवाणु ई. कोलाई (E. coli) को ऐसे माध्यम पर सम्वर्धित किया जिसमें नाइट्रोजन के अकेले स्रोत के रूप में 15N अर्थात नाइट्रोजन के एक समस्थानिक का प्रयोग किया गया था। 15N नाइट्रोजन का एक भारी समस्थानिक है। मेसलसन व स्टाल ने इस हेतु माध्यम में 15NH4Cl का प्रयोग किया। जीवाणुओं की अनेक पीढ़ियों की इसी माध्यम पर वृद्धि से यह 15N सभी नये संश्लेषित डी.एन.ए. अणुओं में अन्तर्निहित (incorporate) हो गया। जीवाणुओं के सभी ऐसे यौगिक जिनमें नाइट्रोजन होता है ने यही 15N ग्रहण कर ली। इस सम्वर्धन से प्राप्त सभी जीवाणुओं से केवल भारी डी.एन.ए. अणु (ऐसे अणु जिनमें 15N समाहित था) ही प्राप्त हुआ। इस भारी डी.एन.ए. अणु को सामान्य डी.एन.ए. से सौजियम क्लोराइड (Cscl) घनत्व प्रवणता में अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) द्वारा भिन्नित किया गया। 

(ii) अब उन्होंने जीवाणु कोशिकाओं को ऐसे माध्यम से स्थानान्तरित कर दिया जिसमें नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में सामान्य 14N का (14NH4Cl) प्रयोग किया गया था। जब कोशिकाओं ने गुणन प्रारम्भ किया तो मेसलसन व स्टाल ने उस माध्यम से जीवाणुओं के प्रदर्श विभिन्न निश्चित समयान्तरालों पर प्राप्त किए। जैसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से, तीसरी पीड़ी से, आदि की कोशिकाओं से उसने कुडलित डी.एन.ए. अणु प्राप्त किये। सभी प्रदर्शों को अलग - अलग स्वतंत्र रूप से सीजियम क्लोराइड विलयन में अपकेन्द्रित किया, ताकि उनके घनत्व का निर्धारण किया जा सके।
परिणामों को निम्न चित्र में दिखाया गया है-
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(iii) 15N नाइट्रोजन वाले माध्यम से 14N नाइट्रोजन वाले माध्यम में स्थानान्तरित किये जीवाणुओं को ठीक एक पीढ़ी बाद (अर्थात 20 मिनट बाद) पृथक कर जब उनसे डी.एन.ए. प्राप्त किया गया तब इस डी.एन.ए. का घनत्व बीच का (intermediate) पाया गया। अर्थात यह संकर डी.एन.ए. था जिसमें एक पैत्रिक रज्जुक 15N वाला तथा एक नया संश्लेषित रज्जुक 14N वाला था। एक और पीढ़ी बाद, अर्थात स्थानान्तरण के 40 मिनट बाद (ई. कोलाई में विभाजन 20 मिनट में होता है) सम्वर्धन माध्यम से प्राप्त डी.एन.ए. में से आधा डी.एन.ए. सबसे हलका व आधा संकर (hybrid) प्रकार का था। मेसलसन व स्टाल के प्रयोग से यह स्पष्ट हो गया कि डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकृति का होता है। रेडियोएक्टिव थाइमिडीन (thymidine) के प्रयोग द्वारा क्रोमोसोम में नव संश्लेषित डी.एन.ए. के वितरण की जाँच टेलर (Taylor) व उसके सहयोगियों ने फाबा बीन, विसिया फाबा (Vicia faba) में सन् 1958 में की। इन प्रयोगों ने सिद्ध किया कि क्रोमोसोम के अन्दर भी डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकार का होता है।

प्रश्न 28. 
(a) मानव जीनोम परियोजना (HGP) में इस्तेमाल किए जाने वाले 'YAC' और 'BAC' में 'Y' और 'B' किसके लिए प्रयुक्त होते हैं? परियोजना में उनकी भूमिका बताइए। 
(b) सकल मानव जीनोम की प्रतिशतता लिखिए जो प्रोटीनों का कूटलेखन (कोहन) करती है और खोजे गए उन जीनों की प्रतिशतता भी बताइए। जिनके कार्य भी विदित हैं, जैसे कि HGP के दौरान देखे गए। 
(c) HGP में वैज्ञानिकों द्वारा पहचाने गए 'SNP' का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) YAC (यीस्ट आर्टीफिशियल क्रोमोसोम) शब्द में 'Y' यीस्ट को निरूपित करता है और RAC (बैक्टीरियल आर्टीफिशियल क्रोमोसोम) शब्द में 'B' बैक्टीरिया को निरूपित करता है। ये DNA के क्लोनन में वाहक का कार्य करते हैं। 
(b) कुल मानव जीनोम का 2% से भी कम प्रोटीन को कोडित करता है, 50% ज्ञात जीन्स के कार्य अभी अज्ञात हैं। 
(c) SNP का पूरा नाम सिंगल न्यूक्लिओटाइड पॉलीमार्फिज्म है। 

प्रश्न 29. 
(a) वी.एन.टी.आर, का पूरा नाम लिखिष्ट तथा डी.एन.ए. फिंगरप्रिंटिंग (डी.एन.ए. अंगुलि छापी) में इसकी भूमिका का पर्णन कीजिए। 
(b) डी.एन.ए. अंगुलिछापी के कोई दो अनुप्रयोग लिखिए।
उत्तर:
(a) वी.एन.टी.आर. का पूरा नाम वेरिएबल नम्बर ऑफ टेण्डम रिपीट्स (Variable Number of Tandem Repeats) है। ये DNA में रिपीट होने वाले छोटे न्यूक्लिओटाइड्स होते हैं। ये किसी जीव विशेष के लिए विशिष्ट होते हैं। दो व्यष्टियों के VNTR समान नहीं होते हैं। DNA अंगुलिछापी में VNTR की भूमिका-VNTRs विभिन्न व्यक्तियों के DNA की पहचान में प्रोष मारकर्स के रूप में प्रयुक्त होते हैं, क्योंकि दो व्यक्तियों का VNTR समान नहीं होता है (केवल एकयुग्मनजी यमज को छोड़कर)। 

(b) डी.एन.ए. अंगुलिछापी के अनुप्रयोग-

  • संतान के वास्तविक माता - पिता की पहचान में,
  • कानूनी वादों को सुलझानों में। 

प्रश्न 30. 
“मेसेल्सन तथा स्टाल द्वारा अपने प्रयोगों में नाइट्रोजन के भारी समस्थानिक के उपयोग से यह सिद्ध हो गया कि डी.एन.ए. अर्द्धसंरक्षी की तरह प्रतिक्रत करता है।" व्याख्या कीजिए कि वे इस निस्कर्ष पर किस प्रकार पहुंचे।
उत्तर:
प्रायोगिक प्रमाण (Experimental Proof) 
अब यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध किया जा चुका है कि डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी (semi - conservative) प्रकार का होता है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण को पहले एश्चौरीचिया कोलाई (Escherichia coli) तथा बाद में पादपों जैसे उच्च जीव व मनुष्यों में प्रदर्शित किया जा चुका है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण का प्रायोगिक प्रमाण सन् 1958 में मैथ्यू मेसलसन (Matthew Maselson) व फ्रेंकलिन स्टाल किया। 
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यह प्रयोग निम्न चरणों में सम्पन्न किया गया-
(i) मेसलसन व स्टाल ने सबसे पहले जीवाणु ई. कोलाई (E. coli) को ऐसे माध्यम पर सम्वर्धित किया जिसमें नाइट्रोजन के अकेले स्रोत के रूप में 15N अर्थात नाइट्रोजन के एक समस्थानिक का प्रयोग किया गया था। 15N नाइट्रोजन का एक भारी समस्थानिक है। मेसलसन व स्टाल ने इस हेतु माध्यम में 15NH4Cl का प्रयोग किया। जीवाणुओं की अनेक पीढ़ियों की इसी माध्यम पर वृद्धि से यह 15N सभी नये संश्लेषित डी.एन.ए. अणुओं में अन्तर्निहित (incorporate) हो गया। जीवाणुओं के सभी ऐसे यौगिक जिनमें नाइट्रोजन होता है ने यही 15N ग्रहण कर ली। इस सम्वर्धन से प्राप्त सभी जीवाणुओं से केवल भारी डी.एन.ए. अणु (ऐसे अणु जिनमें 15N समाहित था) ही प्राप्त हुआ। इस भारी डी.एन.ए. अणु को सामान्य डी.एन.ए. से सौजियम क्लोराइड (Cscl) घनत्व प्रवणता में अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) द्वारा भिन्नित किया गया। 

(ii) अब उन्होंने जीवाणु कोशिकाओं को ऐसे माध्यम से स्थानान्तरित कर दिया जिसमें नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में सामान्य 14N का (14NH4Cl) प्रयोग किया गया था। जब कोशिकाओं ने गुणन प्रारम्भ किया तो मेसलसन व स्टाल ने उस माध्यम से जीवाणुओं के प्रदर्श विभिन्न निश्चित समयान्तरालों पर प्राप्त किए। जैसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से, तीसरी पीड़ी से, आदि की कोशिकाओं से उसने कुडलित डी.एन.ए. अणु प्राप्त किये। सभी प्रदर्शों को अलग - अलग स्वतंत्र रूप से सीजियम क्लोराइड विलयन में अपकेन्द्रित किया, ताकि उनके घनत्व का निर्धारण किया जा सके।
परिणामों को निम्न चित्र में दिखाया गया है-
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 18

(iii) 15N नाइट्रोजन वाले माध्यम से 14N नाइट्रोजन वाले माध्यम में स्थानान्तरित किये जीवाणुओं को ठीक एक पीढ़ी बाद (अर्थात 20 मिनट बाद) पृथक कर जब उनसे डी.एन.ए. प्राप्त किया गया तब इस डी.एन.ए. का घनत्व बीच का (intermediate) पाया गया। अर्थात यह संकर डी.एन.ए. था जिसमें एक पैत्रिक रज्जुक 15N वाला तथा एक नया संश्लेषित रज्जुक 14N वाला था। एक और पीढ़ी बाद, अर्थात स्थानान्तरण के 40 मिनट बाद (ई. कोलाई में विभाजन 20 मिनट में होता है) सम्वर्धन माध्यम से प्राप्त डी.एन.ए. में से आधा डी.एन.ए. सबसे हलका व आधा संकर (hybrid) प्रकार का था। मेसलसन व स्टाल के प्रयोग से यह स्पष्ट हो गया कि डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकृति का होता है। रेडियोएक्टिव थाइमिडीन (thymidine) के प्रयोग द्वारा क्रोमोसोम में नव संश्लेषित डी.एन.ए. के वितरण की जाँच टेलर (Taylor) व उसके सहयोगियों ने फाबा बीन, विसिया फाबा (Vicia faba) में सन् 1958 में की। इन प्रयोगों ने सिद्ध किया कि क्रोमोसोम के अन्दर भी डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकार का होता है।

प्रश्न 31. 
एक असीमकेन्द्रकी के राइबोसोम में होने मले स्थानान्तरण (रूपान्तरण) की क्रियाविधि की व्याख्या कीजिष्ट।
उत्तर:
सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 15
अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
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इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

प्रश्न 32. 
सुकेन्द्रकियों में hn - आर.एन.ए. का अनुलेखन करने वाले एंजाइम का नाम लिखिष्ट। hn - आर.एन.ए. के m - आर.एन.ए में संसाधित होने से पहले hn - आर.एन.ए. में होने वाले परिवर्तनों के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनुलेखन या ट्रांसक्रिप्शन (Transcription) 
डी.एन.ए. के एक रज्जुक की आनुवंशिक सूचना को आर.एन.ए. में प्रतिलिपि (copy) करने की प्रक्रिया अनुलेखन या ट्रांसक्रिप्शन कहलाती है। सरल शब्दों में उस प्रक्रिया को जिसमें डी.एन.ए. से आर.एन.ए. का निर्माण होता है, अनुलेखन कहते हैं। इस प्रक्रिया में डी.एन.ए. साँचे या टेम्पलेट पर आर.एन.ए. का निर्माण होता है। अनुलेखन एक प्रकार से प्रतिलिपिकरण जैसी ही प्रक्रिया है लेकिन प्रतिलिपिकरण (replication), जिसमें पूरे डी.एन.ए. अणु की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है, के विपरीत अनुलेखन में डी.एन.ए. का केवल एक खण्ड, आर.एन.ए. निर्माण के लिए टेम्पलेट का कार्य करता है। दूसरे, अनुलेखन में डी.एन.ए. के केवल एक रज्जुक का प्रयोग होता है, प्रतिलिपिकरण की तरह दोनों रज्जुको का नहीं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
अर्ध संरक्षी प्रतिकृतिकरण से आपका क्या अभिप्राय है? डी.एन.ए. में अर्थ संरक्षी प्रतिकृतिकरण की क्रिया होती है को प्रमाणित करने के लिए मैथ्यू मैसेल्सन व फ्रैंकेलिन स्टॉल द्वारा किये गये प्रयोग का वर्णन कीजिए। अर्धसंरक्षी डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण का प्रतिरूप चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रायोगिक प्रमाण (Experimental Proof) 
अब यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध किया जा चुका है कि डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी (semi - conservative) प्रकार का होता है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण को पहले एश्चौरीचिया कोलाई (Escherichia coli) तथा बाद में पादपों जैसे उच्च जीव व मनुष्यों में प्रदर्शित किया जा चुका है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण का प्रायोगिक प्रमाण सन् 1958 में मैथ्यू मेसलसन (Matthew Maselson) व फ्रेंकलिन स्टाल किया। 
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 17

यह प्रयोग निम्न चरणों में सम्पन्न किया गया-
(i) मेसलसन व स्टाल ने सबसे पहले जीवाणु ई. कोलाई (E. coli) को ऐसे माध्यम पर सम्वर्धित किया जिसमें नाइट्रोजन के अकेले स्रोत के रूप में 15N अर्थात नाइट्रोजन के एक समस्थानिक का प्रयोग किया गया था। 15N नाइट्रोजन का एक भारी समस्थानिक है। मेसलसन व स्टाल ने इस हेतु माध्यम में 15NH4Cl का प्रयोग किया। जीवाणुओं की अनेक पीढ़ियों की इसी माध्यम पर वृद्धि से यह 15N सभी नये संश्लेषित डी.एन.ए. अणुओं में अन्तर्निहित (incorporate) हो गया। जीवाणुओं के सभी ऐसे यौगिक जिनमें नाइट्रोजन होता है ने यही 15N ग्रहण कर ली। इस सम्वर्धन से प्राप्त सभी जीवाणुओं से केवल भारी डी.एन.ए. अणु (ऐसे अणु जिनमें 15N समाहित था) ही प्राप्त हुआ। इस भारी डी.एन.ए. अणु को सामान्य डी.एन.ए. से सौजियम क्लोराइड (Cscl) घनत्व प्रवणता में अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) द्वारा भिन्नित किया गया। 

(ii) अब उन्होंने जीवाणु कोशिकाओं को ऐसे माध्यम से स्थानान्तरित कर दिया जिसमें नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में सामान्य 14N का (14NH4Cl) प्रयोग किया गया था। जब कोशिकाओं ने गुणन प्रारम्भ किया तो मेसलसन व स्टाल ने उस माध्यम से जीवाणुओं के प्रदर्श विभिन्न निश्चित समयान्तरालों पर प्राप्त किए। जैसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से, तीसरी पीड़ी से, आदि की कोशिकाओं से उसने कुडलित डी.एन.ए. अणु प्राप्त किये। सभी प्रदर्शों को अलग - अलग स्वतंत्र रूप से सीजियम क्लोराइड विलयन में अपकेन्द्रित किया, ताकि उनके घनत्व का निर्धारण किया जा सके।
परिणामों को निम्न चित्र में दिखाया गया है-
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(iii) 15N नाइट्रोजन वाले माध्यम से 14N नाइट्रोजन वाले माध्यम में स्थानान्तरित किये जीवाणुओं को ठीक एक पीढ़ी बाद (अर्थात 20 मिनट बाद) पृथक कर जब उनसे डी.एन.ए. प्राप्त किया गया तब इस डी.एन.ए. का घनत्व बीच का (intermediate) पाया गया। अर्थात यह संकर डी.एन.ए. था जिसमें एक पैत्रिक रज्जुक 15N वाला तथा एक नया संश्लेषित रज्जुक 14N वाला था। एक और पीढ़ी बाद, अर्थात स्थानान्तरण के 40 मिनट बाद (ई. कोलाई में विभाजन 20 मिनट में होता है) सम्वर्धन माध्यम से प्राप्त डी.एन.ए. में से आधा डी.एन.ए. सबसे हलका व आधा संकर (hybrid) प्रकार का था। मेसलसन व स्टाल के प्रयोग से यह स्पष्ट हो गया कि डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकृति का होता है। रेडियोएक्टिव थाइमिडीन (thymidine) के प्रयोग द्वारा क्रोमोसोम में नव संश्लेषित डी.एन.ए. के वितरण की जाँच टेलर (Taylor) व उसके सहयोगियों ने फाबा बीन, विसिया फाबा (Vicia faba) में सन् 1958 में की। इन प्रयोगों ने सिद्ध किया कि क्रोमोसोम के अन्दर भी डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकार का होता है।

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प्रश्न 2. 
पुनरावृत्त डी.एन.ए. किसे कहते हैं। अल्फ्रेड हर्श तथा मार्था चेज के प्रयोग को सचित्र समझाइये कि ही.एन.ए. एक आनुवंशिक पदार्थ हैं?
उत्तर:
(क) पुनरावत्ति डी.एन.ए. एवं अनुषंगी डी.एन.ए. में अन्तर (Differences between repetitive DNA and satellite DNA)
पुनरावृत्ति डी.एन.ए.: .डी.एन.ए. के ऐसे अनुक्रम जो प्रोटीन को कोड नहीं करते तथा बार-बार दोहराए जाते हैं पुनरावृत्ति डी.एन.ए. कहलाते हैं। अर्थात इनमें क्षारकों के एक से अनुक्रमों की बार - बार पुनरावृत्ति (repetition) होती है। सेटेलाइट डी.एन.ए. इसी प्रकार का डी.एन.ए. है जिसमें पुनरावृत्त अनुक्रम छोटे होते हैं। पुनरावृत्त डी.एन.ए. का एक अन्य वर्ग एलू अनुक्रम व ट्रांसपोजोन बनाता है।

अनुषंगी डी.एन.ए. (Satellite DNA): सैटेलाइट ही.एन.ए. पुनरावृत्त डी.एन.ए. का ही एक प्रकार है। इसका घनत्व मुख्य डी.एन.ए. (Bulk DNA) से अलग होता है तथा यह छोटे - छोटे पुनरावृत्त अनुक्रमों से बना होता है। यह क्रियाशील सेण्ट्रोमियर तथा हेटेरोनोमेटिन का प्रमुख भाग बनाता है। यह क्षारक A,T,G,C की अलग - अलग आवृत्ति प्रदर्शित करता है तथा डी.एन.ए. बहुरूपता (Polymorphism) के लिए भी उत्तरदायी होता है।

(ख) एम - आर.एन.ए. एवं आर.एन.ए. 

लक्षण

एम-आर.एन.. (mRNA)

टी-आर.एन.. (t RNA)

1. कुल आर.एन.. का प्रतिशत

लगभग 5

लगभग 15

2. अणु की लम्बाई

सबसे लम्बा

सबसे छोटा

3. कार्य

डी.एन.. से आनुवंशिक सूचना प्रहण कर उसका अनुवाद में प्रयोग अर्थात् दूत (messenger) का कार्य

अमीनो अम्लों को कोशिका द्रव्य से प्रोटीन संश्लेषण स्थल राइबोसोम तक लाना, अर्थात् स्थानान्तरण

4. अणु का आकार

रैखिक

क्लोवर लीफ, शिविमीय रचना में L आकार

5. जीवन काल

बहुत छोटा कुछ मिनटों से कुछ घण्टों का अनुवाद के बाद अपघटित

लम्बा, अनुवाद में बार - बार उपयोग।

6. क्षारक अनुक्रम

इसके अनुक्रम त्रिक कोडोन बनाते हैं

इस पर एण्टी कोडोन पाया जाता है।



(ग) टेम्पलेट रज्जुक और कोडिंग रज्जुक (Template strand and Coding strand): अनुलेखन (transcription) के समय डी.एन.ए. के दोनों रज्जुकों में से एक टेम्पलेट रज्जुक की तरह व दूसरा कोडिंग रज्जुक की तरह कार्य करता है। इनमें निम्न अन्तर हैं-

टेम्पलेट रज्जुक

कोडिंग रज्जुक

1. इसकी दिशा 3' → 5' होती है।

कोडिंग रज्जुक की दिशा 5'- 3' होती है।

2. आर.एन.. के अनुलेखन हेतु टेम्पलेट का कार्य करता है।

यह किसी चीज को कोड नहीं करता सिर्फ नाम कोडिंग रज्जुक होता है।

3. इससे बना एम-आर एन इसका पूरक होता है।

इसका अनुक्रम एम-आर.एन.. के अनुक्रम के समान होता है (यूरेसिल) के स्थान पर इसमें थाएमीन होता है।

4. सन्दर्भ बिन्दु (reference points) इससे सम्बन्धित नहीं होते।

अनुलेखन इकाई से सम्बन्धित सभी सन्दर्भ विन्दु जैसे प्रमोटर, टर्मिनेटर इसी को लेकर परिभाषित किये जाते हैं।



आनुवंशिक पदार्थ डी.एन.ए. है (The Genetic Material is DNA) 
डी.एन.ए. को आनुवंशिक पदार्थ के रूप में सिद्ध करने वाला सुस्पष्ट व अकाट्य प्रमाण, सन् 1952 में, अल्फ्रेड हर्शे व मार्था चेज (Alfred Hershey and Martha Chase) के प्रयोगों से प्राप्त हुआ। उन्होंने जीवाणुभोजियों (bacteriophages), अर्थात ऐसे विषाणु जो जीवाणुओं को संक्रमित करते हैं, पर अपने प्रयोग किये। सभी अन्य विषाणुओं (viruses) की तरह जीवाणुभोजी भी एक बाह्य प्रोटीन आवरण या कैप्सिड (capsid) तथा आन्तरिक नाभिकीय अम्ल कोर के बने होते हैं। अर्थात यह केवल नाभिकीय अम्ल व प्रोटीन आवरण के बने होते हैं। जीवाणुभोजी, जीवाणुओं के संक्रमण के समय जीवाणओं पर चिपकते हैं तथा अपने आनुवंशिक पदार्थ को जीवाणु कोशिका में प्रविष्ट करा देते है। इनका बाह्य प्रोटीन आवरण, कैप्सिड बाहर ही रह जाता है। (आज ज्ञात है कि विषाणु का आनुवंशिक पदार्थ जीवाणु कोशिका में उसके आनुवंशिक पदार्थ में अन्तर्निहित हो जाता है। जीवाणु कोशिका उसे स्वयं खुद के आनुवंशिक पदार्थ के रूप में देखती है, फलस्वरूप उसकी आनुवंशिक सूचना के आधार पर अनेकानेक विषाणु (जीवाणुभोजी) उत्पन्न करती है। यह नये बने जीवाणुभोजी, जीवाणु कोशिका में हुए लयन (lysis) के कारण बाहर आ जाते हैं।) हशे व चेज ने यह खोजने का कार्य किया कि संक्रमण के समय जीवाणुभोजी का कौन - सा भाग (प्रोटीन या डी.एन.ए.) जीवाणु में प्रवेश करता है। बीसवीं शताब्दी के छठवें दशक (1950) में भी वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि जीवाणु में प्रोटीन या डी.एन.ए, कौन - सा भाग प्रवेश करता है। जो भी

जीवाणु में प्रवेश करेगा वही आनुवंशिक पदार्थ होगा। हर्शे व चेज के प्रयोग के निम्न सिद्धान्त व चरण थे-

  • उन्होंने इस प्रयोग के लिए T2 नामक जीवाणुभोजी का चयन किया। 
  • उन्होंने डी.एन.ए. व प्रोटीन के एक रासायनिक अन्तर को इस समस्या के समाधान का आधार बनाया। डी.एन.ए. में फास्फोरस उपस्थित होता है लेकिन सल्फर का अभाव होता है। वह प्रोटीन में सल्फर तो उपस्थित होता है लेकिन फास्फोरस नहीं।
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  • हशें व चेज ने जीवाणुभोजियों के डी.एन.ए. को विकिरण सक्रिय या रेडियोएक्टिव 32P से चिन्हित किया। इसके लिए उन्होंने विषाणुओं को इस प्रकार के जैविक माध्यम में सम्वर्धित किया जिसमें रेडियोएक्टिव फास्फोरस था। 
  • इसी प्रकार कुछ अन्य जीवाणुभोजियों को रेडियोएक्टिव सल्फर 35S वाले जैविक माध्यम पर सम्वर्धित कर उन्होंने उनके प्रोटीन आवरण को रेडियोएक्टिव सल्फर (35S) से चिन्हित किया।

रेडियोएक्टिव समस्थानिक (isotopes) जैविक प्रयोगों में एक चिन्हक (marker) या ट्रेसर की तरह कार्य करते हैं, क्योंकि मानक प्रयोगशालायौ विधियों द्वारा किसी पदार्थ में उपस्थित रेडियोएक्टिवता की जांच की जा सकती है। 
हर्शे व चेज ने दो अलग - अलग प्रयोग किये-
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A

  1. जीवाणु भोजी का DNA 32P से चिहिन्त किया गया। जीवाणुभोजी जीवाणु को साथ सम्वधित किया गया। 
  2. ब्लेंडर में हिलाने से जीवाणुभोजी, जीवाणु कोशिका से अलग हो जाता है।
  3. सेण्ट्रीफ्यूज मशीन जीवाणुभोजियों को जीवाणु से अलग कर देती है जीवाणु भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते है विषाणु द्रव में रहते है (रेडियोएक्टिविटी पैलेट में मिली) 

B

  • जीवाणुभोजी का कैप्पिड 35S से चिन्हित किया गया। जीवाणुभोजी द्वारा जीवाणु का संक्रमण कराया गया। 
  • ब्लेडर से जीवाणुभोगियों को जीवाणु कोशिका से अलग किया गया। 
  • सेण्ट्रीफ्यूज मशीन में तेजी से घुमाने पर जीवाणु कोशिका नीचे बैठ जाती है, जीवाणभोजी द्रव में रहते है (रेडियोएक्टिविटी द्रव में मिली)

1. पहले प्रयोग में जीवाणुभोजी के डी.एन.ए. को रेडियोएक्टिव 32P से चिन्हित कर उन्हें जीवाणुओं से चिपकने के लिए छोड़ दिया गया ताकि उनका डी.एन.ए. जीवाणु ई. कोलाई में प्रवेश कर सके। 

2. अब इस सम्वर्धन माध्यम को रसोई में प्रयोग होने वाले जैसे सामान्य ब्लेंडर (blender) में हिलाया (विडोलित किया) गया, ताकि जीवाणुओं की बाह्य सतह पर जो भी चिपका हो, अलग किया जा सके। 

3. अंत में सम्वर्धन माध्यम को तीव्र गति पर सेन्ट्रीफ्यूज (centrifuge) किया गया। इससे जीवाणु भारी होने के कारण सेण्ट्रीफ्यूज नली की तली पर पेलेट के रूप में एकत्रित हो गये। 

4. इस प्रयोग में हशें व चेज को रेडियोएक्टिविटी प्रमुखत: तली पर पेलेट (Pellet) के रूप में बैठी जीवाणु कोशिकाओं में मिली, ऊपरी द्रव माध्यम में नहीं। क्योंकि डी.एन.ए. कोशिकाओं में प्रवेश कर चुका था। 

5. द्वितीय प्रयोग में जीवाणुभोजियों के कैप्सिड की प्रोटीन को रेडियोएक्टिव सल्फर 35S से चिन्हित किया गया। इन जीवाणुभोजियों द्वारा भी जीवाणुओं को संक्रमित कराया गया, ताकि जीवाणुभोजी जीवाणु में अपना आनुवंशिक पदार्थ प्रविष्ट करा दें। इस प्रयोग में भी ब्लेडिंग व सेण्ट्रीफ्यूज करने वाले चरण सम्पन्न किये गयो सेण्ट्रीफ्यूज के बाद इस चरण में भी जीवाणु सेण्ट्रीफ्यूज नलिका की तली पर पैलेट के रूप में एकत्रित हो गये। इस प्रयोग में हशें व चेज को रेडियोएक्टिविटी (35S) अर्थात प्रोटीन सेण्ट्रीफ्यूज नलिका के ऊपरी द्रव (Supernatent liquid) में मिली, पेलेट में नहीं।
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6. इसका अर्थ है कि रेडियोएक्टिव प्रोटीन आवरण (कैप्सिड) जीवाणुकोशिकाओं से बाहर हो रहा क्योंकि सेण्ट्रीफ्यूज करने पर अपेक्षाकृत भारी जीवाणु कोशिकाएँ तो सेण्ट्रीफ्यूज नली में पैलेट के रूप में नीचे बैठ जाती हैं तथा जीवाणभोजियों के खाली (जिनसे आनुवंशिक पदार्थ DNA निकल गया हो) प्रोटीन आवरण द्रव में रह जाते हैं। 

इन प्रयोगों से स्पष्ट हो गया कि जीवाणुभोजियों (विषाणुओ) द्वारा जीवाणुओं के संक्रमण के समय उनका केवल डी.एन.ए. (प्रोटीन नहीं) ही जीवाणुओं में प्रवेश करता है, जहाँ विषाणुओं का गुणन होता है। अतः सिद्ध होता है कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ है। यह नये विषाणुओं के निर्माण के लिए आवश्यक आनुवंशिक सूचना का संचरण करता है।

प्रश्न 3. 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ द्वारा स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी पर किये प्रयोग का वर्णन कीजिए। उनके द्वारा निकाले गये निष्कर्ष का विवेचन कीजिए।
उत्तर:सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
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अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
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इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

प्रश्न 4. 
न्यूक्लियोसोम किसे कहते हैं? डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग समझाइये। न्यूक्लियोसोम का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग (Packaging of DNA Helix) 
किसी यूकैरियोटिक कोशिका में प्रोकेरियोटिक कोशिका की अपेक्षा न सिर्फ क्रोमोसोम की संख्या अधिक होती है, अपितु प्रति क्रोमोसोम DNA की मात्रा व उससे सम्बद्ध प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। एश्चीरीचिया कोलाई के डी.एन.ए. की लम्बाई 1.36 मिमी की अपेक्षा मनुष्य के सभी 46 क्रोमोसोम में उपस्थित डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर होती है। इतना बड़ा डी.एन.ए., क्रोमेटिन पदार्थ के साथ कैसे एक अधिक से अधिक 5 µm व्यास के केन्द्रक में समा जाता है? क्रोमेटिन लगभग 10,000 गुना संघनित (condense) होकर समसूत्री विभाजन के क्रोमोसोम के आकार का बनता है।

दो नजदीकी क्षारक युग्मों के बीच की दूरी सभी प्रजातियों के डी.एन.ए. के लिए 0.34 नैनोमीटर (0.34 x 10-9m) ही होती है। किसी जीव की एक कोशिका के सभी क्रोमोसोम में उपस्थित क्षारक युग्मों की संख्या का दो क्षारक युग्मों के बीच की दूरी से गुणा करने पर डी.एन.ए. की पूरी लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। मनुष्य के लिए कुल क्षारक युग्म संख्या 6.6 x 109 bp है। इसे 0.34 nm से गुणा करने पर (6.6 x 109 x 0.34 x 10-9) डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर आती है। प्रोकैरियोट्स जैसे बैक्टीरिया में संगठित केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात केन्द्रक कला अनुपस्थित होती है। ऋणावेशित डी.एन.ए. कुछ धनावेशित प्रोटीनों से जुड़कर केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओइड (nucleoid) क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। न्यूक्लिओइड में डी.एन.ए. बड़े लूपों (loops) में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन द्वारा इस स्थिति में बने रहते हैं।

कैरियोटिक कोशिका में डी.एन.ए. पैकिंग और भी जटिल होती है। इस प्रकार की कोशिकाओं में धनावेशित क्षारीय (positively charged, basic) प्रोटीन जिन्हें हिस्टोन (histones) कहते हैं पाई जाती है। हिस्टोन प्रोटीन, डी.एन.ए. के संघनन हेतु एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्माण सामग्री का काम करते हैं।

किसी भी प्रोटीन का आवेश (Charge) उसको बनाने वाले अमीनो अम्लों की आवेशित पार्श्व शृंखलाओं की बहुलता पर निर्भर करता है। प्रोटीन में अगर क्षारीय अमीनो अम्लों की अधिकता हो तो वह धनावेशित हो जाती है तथा अम्लीय अमीनो अम्लों की अधिकता उसे ऋणावेशित बना देती है। हिस्टोन प्रोटीन क्षारीय अमीनो अम्ल जैसे लाइसीन व अर्जीनीन से समृद्ध होती है। इन दोनों अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं (side chain) पर धनावेश होता है। हिस्टोन प्रोटीन आठ - आठ अणुओं की एक इकाई के रूप में संगठित होती हैं जिन्हें हिस्टोन ऑक्टेमर (histone octamer) कहते हैं। यह न्यूक्लियोसोम का कोर (core) बनाता है। ऋणावेशित DNA अणु, धनावेशित हिस्टोन अष्टक (हिस्टोन आक्टेमर) के चारों ओर लिपटकर न्यूक्लियोसोम (nucleosome) नामक रचना बनाता है। एक प्रारूपिक न्यूक्लियोसोम में (200 bp/200 क्षार युग्म) लम्बा डी.एन.ए. होता है। एक हिस्टोन आक्टेमर में 2 अणु हिस्टोन H2A के, 2 अणु हिस्टोन H2B के, 2 अणु हिस्टोन H3 के तथा 2 अणु हिस्टोन H4 के होते हैं। दो न्यूक्लियोसोम इकाइयों के बीच स्थित (अर्थात उनको जोड़ने वाला) डी.एन.ए. लिकर डी.एन.ए. (linker DNA) या स्पेसर डी.एन.ए. (spacer, DNA) कहलाता हैं।
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H2A, H2B लाइसीन समृद्ध तथा H3, H4 आर्जीनिन समृद्ध हिस्टोन प्रोटीन है। H1 में लाइसीन की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। एक न्यूक्लियोसोम पर डी.एन.ए. \(1 \frac{3}{4}\) बार लिपटा रहता है।

हिस्टोन H1 न्यूक्लियोसोम डी.एन.ए. से बाहर लिंकर डी.एन.ए. से जुड़ी होती है। यह न्यूक्लियोसोम, केन्द्रक में पाये जाने वाली एक धागे जैसी रचना क्रोमेटिन (chromatin) पर एक के बाद एक क्रम में लगे रहते हैं। क्रोमेटिन तन्तु केन्द्रक में दिखाई देने वाली अभिरंजित (stained) रचनाएँ हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर यह न्यूक्लियोसोम किसी माला के मनको (beads on string) की तरह दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक रूप से मनुष्य की एक कोशिका में क्षारक युग्मों की कुल संख्या, में 200 (एक न्यूक्लिओसोम में उपस्थित क्षारक युग्म) का भाग देकर न्यूक्लियोसोम की कुल संख्या ज्ञात की जा सकती है। बौड्स ऑन स्ट्रिंग वाले क्रोमोटिन तन्तु और संघनित होकर मोटे क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं जो और भी अधिक संघनित होकर मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का निर्माण करते हैं। क्रोमोटिन की और बड़े स्तर पर पैकेजिंग के लिए अन्य प्रकार की प्रोटीन की जरूरत होती है जिन्हें सामूहिक रूप से गैर हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन नान हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन (Non - histone Chromosomal NHC proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपिक केन्द्रक में क्रोमोटिन के कुछ क्षेत्र विरल या ढीले रूप से पैक होते हैं। यह क्रोमोसोम को अभिरंजित (stain) करने पर हल्का रंग लेते है तथा यूक्रोमेटिन (euchromatin) कहलाते हैं। यूक्रोमेटिन, अनुलेखन की दृष्टि से (transcriptionally) सक्रिय क्रोमेटिन है, अर्थात डी.एन.ए. का यह भाग सक्रिय रूप से अपनी सूचना को आर.एन.ए. को स्थानान्तरित करता है। क्रोमेटिन का वह भाग जो सघन रूप से पैक होता है हेटरोनोमेटिन कहलाता है। यह अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेता है। हेटेरोक्रोमेटिन अनुलेखन की दृष्टि से असक्रिय होता है।

प्रश्न 5. 
अनुलेखन किसे कहते हैं? जीवाणु में अनुलेखन प्रक्रिया को - नामांकित चित्र बनाकर समझाइये।
उत्तर:

(a) अनुलेखन (Transcription)
डी.एन.ए. से आर.एन.ए. का निर्माण अनुलेखन कहलाता है। इस प्रक्रिया में डी.एन.ए. का 3' → 5' दिशा वाला एक रज्जुक टेम्पलेट का कार्य करता है। जिस पर डी.एन.ए. निर्भर आर.एन.ए. पॉलीमरेज की मदद से आर.एन.ए. का संश्लेषण होता है। अर्थात् डी.एन.ए. की आनुवंशिक सूचना आर.एन.ए. को स्थानान्तरित हो जाती है। डी.एन.ए. का दूसरा रज्जुक इस प्रक्रिया में भाग नहीं लेता। इस प्रक्रिया को आर.एन.ए. पॉलीमरेज के साथ - साथ कुछ आरम्भन कारक, ऊर्जा व समापन कारकों की भी आवश्यकता होती है जो आर.एन.ए. पॉलीमरेज की उपइकाई के रूप में ही कार्य करते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिका में सभी प्रकार के आर.एन.ए. का निर्माण एक ही आर.एन.ए. पॉलीमरेज द्वारा होता है जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में तीन प्रकार के आर.एन.ए, पॉलीमरेज पाये जाते हैं, जो अलग-अलग प्रकार के आर.एन.ए. के निर्माण में मदद करते हैं। 

(b) बहुरूपता (Polymorphism): एलोलिक बहुरूपता के अतिरिक्त मनुष्यों की एक प्रकार की आनुवंशिक बहुरूपता प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे से अलग बना देती है। इस बहुरूपता का आधार पुनरावृत्ति डी.एन.ए. (repetitive DNA) है आनुवंशिक स्तर की बहुरूपता उत्परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है। अगर मानव जनसंख्या में 'एक लोकस' पर एक से अधिक अलील 0.01 से अधिक आवृत्ति में पाया जाता है तब इस स्थिति को परम्परागत रूप से डी.एन.ए. बहुरूपता (DNA polymorphism) कहते हैं। सरल शब्दों में किसी जनसंख्या में वंशागत उत्परिवर्तनों का उच्च आवृत्ति में पाया जाना डी.एन.ए. बहुरूपता कहलाती है। बहुरूपता के अनेक प्रकार हो सकते हैं, कुछ केवल एक न्यूक्लियोटाइड बदलाव प्रदर्शित करते हैं जैसे SNP जबकि कुछ व्यापक बदलावों के परिचायक हैं। बहुरूपता जैव विकास व नई प्रजाति की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(c) स्थानान्तरण (Translation): mRNA अनुलेख की आनुवंशिक सूचना के आधार पर राइबोसोम स्थल पर, टी - आर.एन.ए. द्वारा लाये अमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बन्ध बनने से हुआ पॉलीपेप्टाइड संश्लेषण स्थानान्तरण या अनुवाद (translation) कहलाता है। अर्थात् इस प्रक्रिया में डी.एन.ए. की आनुवांशिक सूचना का एम - आर.एन.ए. के माध्यम से प्रोटीन (पॉलीपेप्टाइड) के रूप में अनुवाद होता है। यह प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में राइबोसोम पर अनेक आरम्भन कारकों, दीर्धीकरण कारकों, ऊर्जा आदि की उपस्थिति में सम्पन्न होती है।

(d) जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics): जीनोम अध्ययन में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी का प्रयोग जैव सूचना विज्ञान या बायोइंफोर्मेटिक्स कहलाता है। जीनोमिक्स या प्रोटियोमिक्स से प्राप्त असंशोधित या कच्चे आँकड़ों (raw data) के विश्लेषण से इन आँकड़ों के महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त कराना जैव सूचना विज्ञान का कार्य है।

डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग (Packaging of DNA Helix) 
किसी यूकैरियोटिक कोशिका में प्रोकेरियोटिक कोशिका की अपेक्षा न सिर्फ क्रोमोसोम की संख्या अधिक होती है, अपितु प्रति क्रोमोसोम DNA की मात्रा व उससे सम्बद्ध प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। एश्चीरीचिया कोलाई के डी.एन.ए. की लम्बाई 1.36 मिमी की अपेक्षा मनुष्य के सभी 46 क्रोमोसोम में उपस्थित डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर होती है। इतना बड़ा डी.एन.ए., क्रोमेटिन पदार्थ के साथ कैसे एक अधिक से अधिक 5 µm व्यास के केन्द्रक में समा जाता है? क्रोमेटिन लगभग 10,000 गुना संघनित (condense) होकर समसूत्री विभाजन के क्रोमोसोम के आकार का बनता है।

दो नजदीकी क्षारक युग्मों के बीच की दूरी सभी प्रजातियों के डी.एन.ए. के लिए 0.34 नैनोमीटर (0.34 x 10-9m) ही होती है। किसी जीव की एक कोशिका के सभी क्रोमोसोम में उपस्थित क्षारक युग्मों की संख्या का दो क्षारक युग्मों के बीच की दूरी से गुणा करने पर डी.एन.ए. की पूरी लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। मनुष्य के लिए कुल क्षारक युग्म संख्या 6.6 x 109 bp है। इसे 0.34 nm से गुणा करने पर (6.6 x 109 x 0.34 x 10-9) डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर आती है। प्रोकैरियोट्स जैसे बैक्टीरिया में संगठित केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात केन्द्रक कला अनुपस्थित होती है। ऋणावेशित डी.एन.ए. कुछ धनावेशित प्रोटीनों से जुड़कर केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओइड (nucleoid) क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। न्यूक्लिओइड में डी.एन.ए. बड़े लूपों (loops) में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन द्वारा इस स्थिति में बने रहते हैं।

कैरियोटिक कोशिका में डी.एन.ए. पैकिंग और भी जटिल होती है। इस प्रकार की कोशिकाओं में धनावेशित क्षारीय (positively charged, basic) प्रोटीन जिन्हें हिस्टोन (histones) कहते हैं पाई जाती है। हिस्टोन प्रोटीन, डी.एन.ए. के संघनन हेतु एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्माण सामग्री का काम करते हैं।

किसी भी प्रोटीन का आवेश (Charge) उसको बनाने वाले अमीनो अम्लों की आवेशित पार्श्व शृंखलाओं की बहुलता पर निर्भर करता है। प्रोटीन में अगर क्षारीय अमीनो अम्लों की अधिकता हो तो वह धनावेशित हो जाती है तथा अम्लीय अमीनो अम्लों की अधिकता उसे ऋणावेशित बना देती है। हिस्टोन प्रोटीन क्षारीय अमीनो अम्ल जैसे लाइसीन व अर्जीनीन से समृद्ध होती है। इन दोनों अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं (side chain) पर धनावेश होता है। हिस्टोन प्रोटीन आठ - आठ अणुओं की एक इकाई के रूप में संगठित होती हैं जिन्हें हिस्टोन ऑक्टेमर (histone octamer) कहते हैं। यह न्यूक्लियोसोम का कोर (core) बनाता है। ऋणावेशित DNA अणु, धनावेशित हिस्टोन अष्टक (हिस्टोन आक्टेमर) के चारों ओर लिपटकर न्यूक्लियोसोम (nucleosome) नामक रचना बनाता है। एक प्रारूपिक न्यूक्लियोसोम में (200 bp/200 क्षार युग्म) लम्बा डी.एन.ए. होता है। एक हिस्टोन आक्टेमर में 2 अणु हिस्टोन H2A के, 2 अणु हिस्टोन H2B के, 2 अणु हिस्टोन H3 के तथा 2 अणु हिस्टोन H4 के होते हैं। दो न्यूक्लियोसोम इकाइयों के बीच स्थित (अर्थात उनको जोड़ने वाला) डी.एन.ए. लिकर डी.एन.ए. (linker DNA) या स्पेसर डी.एन.ए. (spacer, DNA) कहलाता हैं।
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H2A, H2B लाइसीन समृद्ध तथा H3, H4 आर्जीनिन समृद्ध हिस्टोन प्रोटीन है। H1 में लाइसीन की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। एक न्यूक्लियोसोम पर डी.एन.ए. \(1 \frac{3}{4}\) बार लिपटा रहता है।

हिस्टोन H1 न्यूक्लियोसोम डी.एन.ए. से बाहर लिंकर डी.एन.ए. से जुड़ी होती है। यह न्यूक्लियोसोम, केन्द्रक में पाये जाने वाली एक धागे जैसी रचना क्रोमेटिन (chromatin) पर एक के बाद एक क्रम में लगे रहते हैं। क्रोमेटिन तन्तु केन्द्रक में दिखाई देने वाली अभिरंजित (stained) रचनाएँ हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर यह न्यूक्लियोसोम किसी माला के मनको (beads on string) की तरह दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक रूप से मनुष्य की एक कोशिका में क्षारक युग्मों की कुल संख्या, में 200 (एक न्यूक्लिओसोम में उपस्थित क्षारक युग्म) का भाग देकर न्यूक्लियोसोम की कुल संख्या ज्ञात की जा सकती है। बौड्स ऑन स्ट्रिंग वाले क्रोमोटिन तन्तु और संघनित होकर मोटे क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं जो और भी अधिक संघनित होकर मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का निर्माण करते हैं। क्रोमोटिन की और बड़े स्तर पर पैकेजिंग के लिए अन्य प्रकार की प्रोटीन की जरूरत होती है जिन्हें सामूहिक रूप से गैर हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन नान हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन (Non - histone Chromosomal NHC proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपिक केन्द्रक में क्रोमोटिन के कुछ क्षेत्र विरल या ढीले रूप से पैक होते हैं। यह क्रोमोसोम को अभिरंजित (stain) करने पर हल्का रंग लेते है तथा यूक्रोमेटिन (euchromatin) कहलाते हैं। यूक्रोमेटिन, अनुलेखन की दृष्टि से (transcriptionally) सक्रिय क्रोमेटिन है, अर्थात डी.एन.ए. का यह भाग सक्रिय रूप से अपनी सूचना को आर.एन.ए. को स्थानान्तरित करता है। क्रोमेटिन का वह भाग जो सघन रूप से पैक होता है हेटरोनोमेटिन कहलाता है। यह अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेता है। हेटेरोक्रोमेटिन अनुलेखन की दृष्टि से असक्रिय होता है।

प्रश्न 6. 
(a) ग्रिफिथ के प्रयोग के विभिन्न पद लिखिए जिन्होंने रुपान्तरकारी सिद्धान्त के निष्कर्ष पर पहुँचने में मदद की? 
(b) रूपान्तरकारी सिद्धान्त की रासायनिक प्रकृति कैसे स्थापित हुई?
उत्तर:
(a) फ्रेडेरिक ग्रिफिथ के सिद्धांत में परिवर्तन को सचित्र किया है। परिवर्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में बदलने के बारे में बताते है। जीवाणु के मामले में परिवर्तन कोशिका के बहिर्जात आनुवंशिक सामग्री अथवा डीएनए के कारण होते है क्योंकि डीएनए जीवाणु जैसी सरल कोशिकाओं से लेकर सारि जीवित वस्तुओं में होते है। 

ग्रिफिथ निमोनिया के प्रति टीका बनाने कि खोज में थे क्योंकि बहुत सारे लोग इस बीमारी के वजह से मर रहे थे। उनके ध्यान न्युमोनोकोकाई के दो रूपों के ऊपर थे जो इस बीमारी के कारण थे। उन्होंने अपने प्रयोग के लिये जीवाणु कि नमूना को इस रोग से पीढित व्यक्थियों से लिया था। न्युमोनोकोकाई दो सामान्य रूपों में होते है- बिना चमक के (जिसको उन्होंने आर कहलाया) और चिकना (जिसको उन्होंने एस कहलाया)।एस रूप को उन्होंने विषमय माना जिसमें कैप्सूल होते है जो एक पाँलीसैक्राइड तह है। एस रूप के बाहरी तह में पेप्टीडोग्लायकन कोशिका दीवार होते है जो सारे जीवाणुओं में दिखाई देती है।ग्रिफिथ ने अपनी प्रयोग में चूहों को उपयोग किया था। उन्होंने इस एस रूप को चूहों में सूई लगाया और चूहों कुछ दिनों बाद निमोनिया के कारण मर गये थे। आर रूप के बाहरी तह में कैप्सूल नही थे और यह अविषमय थे जिसके कारण इस रूप से निमोनिया नही होते थे। उन्होंने आर रूप को भी चूहों में सूई लगाया। लेकिन चूहे जीवित रहे।

ग्रिफिथ ने चूहों में गर्मी मारे एस रूप से सूई लगाया। और इस रूप से चूहों में निमोनिया नही हुई थी। जब गर्मी मारे एस रूप और आर रूप के मिश्रण से सूई लगाया चूहें निमोनिया के कारण मर गये। आर रूप किसी तरह एस रूप मे परिवर्तित हो चुके थे। उनके अद्भुत खोज यह थे कि अविषमय तह को विषमय तह के रूप में बदल सकते है। इस बदलाव अथवा परिवर्तन सिद्धांत को ग्रिफिथ के प्रयोग कहलाया जाता है। ग्रिफिथ अपने प्रयोग को भुत कम आय-व्यवक से किया था। लेकिन अपने प्रयोग के परिणाम बहु अद्भुत थे। 

ग्रिफिथ के खोज के प्रभाव:
अमेरिका के सबसे प्रमुख न्यूमोकोकस विशेषज्ञों ओसवाल्ड एवरी जो न्यू याँर्क के राँकफेलर अस्पताल में थे उन्होंने प्रारंभ में कहा कि ग्रिफिथ के प्रयोग अपर्याप्त रूप में आयोजित किया गया है। बाद में राँकफेलर संस्थान के एक और प्रमुख विज्ञानी रेने दुबोस ने कहा कि ग्रिफिथ् के प्रयोग न्युमोकोकल प्रतिरक्षाविज्ञान के क्षेत्र में एक अद्भुत सिद्धांत है।एवरी के सहयोगी मार्टिन डावसन ने  ह ग्रिफिथ के प्रत्येक निष्कर्षों कि पुष्टि की है।

ग्रिफिथ के इस प्रयोग अलग अलग तरीकों में विज्ञानियों की मदद की है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चिकित्सा समुदाय के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिये और अधिक कुशल एंटीबायोटिक दवाओं को बनाने के तरीके खोजने के लिये इससे मदद मिली है। परिवर्तन विज्ञानियों को जीवाणुओं के उन उपभेदों के लिये नए उपचार खोजने में मदद कर सकते है जो वर्तमान के दवाओं के उपयोग को जवाब नही देती है।1944 में ग्रिफिथ ने तीव्र गलसुओं की सूच्ना और उसकी परिणाम, महामारी विज्ञान और जीवाणु विज्ञान के ऊपर अपनी विज्ञान को एक सह लेखक बनकर एक पत्र में प्रकाशित किया। फ्रेडेरिक ग्रिफिथ को अपने परिवर्तन के प्रयोग से जीवविज्ञान के इतिहास में एक मुख्य स्थान मिला। उनके प्रयोग के प्रभाव आनुवंशिकी विज्ञान में महत्वपूर्ण रहे। उनके सिद्धांत से अनेक जीवाणुतत्ववेत्ता को अपने ज्ञान आगे बढाने कि अवसर मिली थी। ग्रिफिथ के सिद्धांत के महत्व उनके जीवित समय में नही पहचाना गया था। उनके मरणोपरांन्त ही परिवर्तन प्रयोग कि महिमा प्रसिद्ध बन गये।

ग्रिफिथ के प्रयोग के बाद एवेरी, मकलिओइड और मककार्टी, हर्षी और चैस जैसी प्रमुख वैज्ञानिकों को अपने प्रयोग से यह अहसास मिला कि डीएनए ही इस परिवर्तन के प्रमुख कारण है। इस अहसास के वजह से और दो वैज्ञानिकों- वाटसन और क्रिक को इस आनुवंशिक सामग्री अथवा डीएनए कि बनावट और इस डीएनए को भंडारणे कि क्रियाविधि के बारे में जानकारी मिली। ग्रिफिथ को डीएनए कि बनावट के बारे में जानकारी नहींथी। इसलिये उनके प्रयोग ग्रेगर जोहान मेंडल के आनुवंशिक विज्ञान के सिद्धांत के ऊपर निर्भर थे। जनन विज्ञान अभियांत्रिकी जिसमें डीएनए में बदलाव लाने का प्रयोग किया जाता है जो आज कि संसार में बहुत ही सामान्य बन चुके है, यह ग्रिफिथ के इस परिवर्तन के सिद्धांत के उपयोग करते है। ग्रिफिथ के प्रयोग को जीवविज्ञान में एक मुख्य स्थान होने के कारण उनके योगदान को कभी भूलना नही चाहिये। 
 
(b) रूपान्तरकारी सिद्धान्त का जैव रासायनिक अभिलक्षणीयन (Biochemical characterisation of Transforming Principle);
बीसवीं सदी के पांचवें दशक के लगभग मध्य तक प्रोटीन को ही आनुवंशिक पदार्थ माना जाता था। सन् 1944 में ओसवाल्ड एवरी, कोलिन मैकलिआड व transfer trocarf (Oswald Avery, Colin Macleod and Maclyn Mccarry) ने ब्रिफिथ के प्रयोगों के रूपान्तरकारी सिद्धान्त की जैव रासायनिक प्रकृति की जाँच के आधार पर स्पष्ट किया कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ हैं। इन वैज्ञानिकों ने तापमृत विभेद के जीवाणुओं से जैव रसायन प्रोटीन्स, डी.एन.ए., व आर.एन.ए. शुद्धीकृत रूप में पृथक किये ताकि जाना जा सके कि इनमें से कौन-सा पदार्थ जीवित र विभेद के जीवाणुओं को विभेद के जीवाणुओं में रूपान्तरित कर देता है। इन प्रयोगों के आधार पर उन्होंने स्पष्ट किया कि रूपान्तरकारी पदार्थ डी.एन.ए. ही है। 
उनके प्रयोगों के परिणाम निम्न प्रेक्षणों (observations) पर आधारित थे-

  1. मृत S विभेद से प्राप्त डी.एन.ए. R विभेद के जीवाणुओं को रूपान्तरित कर देता है। 
  2. प्रोटिएज (proteases) एंजाइम जो प्रोटीन का अपघटन कर देते हैं। इस रूपान्तरण को रोक नहीं पाते। अत: प्रोटीन रूपान्तरकारी नहीं हो सकता। 
  3. आर.एन.ए. ऐज (RNAase) एंजाइम जो आर.एन.ए. के विघटन के लिए उत्तरदायी है। वह भी रूपान्तरण को रोकने में सक्षम नहीं। अतः आर.एन.ए. रूपान्तकारी नहीं हो सकता। 
  4. अगर रूपान्तरकारी पदार्थ को डी.एन.ए. ऐज (DNAase) एंजाइम, जो डी.एन.ए. का अपघटन करता है से पचाया (उपचारित किया) जाय तो रूपान्तरण रुक जाता है। अतः डी.एन.ए. ही इस रूपान्तरण के लिए उत्तरदायी है। 
  5. रूपान्तरकारी पदार्थ का आण्विक भार बहुत अधिक था, अर्थात इसमें लगभग 1600 न्यूक्लिओटाइड होने चाहिए जो कुछ आनुवंशिक विभिन्नताओं के लिए पर्याप्त है। 

यह प्रेक्षण इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पर्याप्त थे कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ है। एवरी व उनके सहयोगियों ने इस कार्य को एक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया लेकिन प्रोटीनों की विविधता लोगों के दिमाग पर इस कदर छायी हुई थी कि वह इन कुछ प्रमाणों के बाद भी डी.एन.ए. को आनुवंशिक पदार्थ मानने से बच रहे थे। DNAS का अर्थ है अनेक प्रकार के DNA., जबकि DNA का पाचन करने वाला एंजाइम DNAase कहलाता है। किसी भी आधारी पदार्थ के आगे ase लगा होना उसके उस पदार्थ के पाचक एंजाइम का परिचायक है, जैसेRNAase, Protease, Lipase, Sucrase आदि। यह प्रमाण जीवाणुओं के अध्ययन पर आधारित थे आइये अब विषाणुओं से मिले प्रमाणों को जाने। 

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प्रश्न 7. 
व्याख्या कीजिए लैक ओपेरान कैसे जीवाणु ई. कोलाई में प्रेरक अणु की उपस्थिति व अनुपस्थिति में कार्य करता है?
उत्तर:
लैक ओपेरान The Lar Operon
फ्रांसीसी आनुवंशिकीविद् फ्रेंकोइस जेकब (Francois Jacob) व वहीं के जैव रसायन विज्ञानी जेकब मोनोड (Jacque Monod) ने जीवाणु एश्चौरीचिया कोलाई (E. coli) के उपापचय पर किये अपने गहन अध्ययनों से निष्कर्ष निकाला कि आनुवंशिक पदार्थ में ओपेरान (Operon) नामक नियामक जीन इकाइयाँ होती है।

परिभाषा (Definition) 
एक ओपेरान (Operon), एक या अधिक संरचनात्मक जीन, एक संचालक जीन, एक प्रमोटर जीन, एक नियामक जीन से बना डी.एन.ए. का वह भाग ह जो एक इकाई के रूप में कार्य करता है। इसकी क्रिया बाहर से उपलब्ध एक दमनकारी या प्रेरक/सह, प्रेरक पर निर्भर करती है। जीवाणुओं की पॉलीसिस्ट्रानिक (polycistronic) संरचनात्मक जीन, एक साझे (common) प्रमोटर व नियामक जीनों से नियंत्रित होती है। आनुवंशिक पदार्थ की ऐसी इकाइयाँ ओपेरॉन (operon) कहलाती हैं।
उदाहरण के लिए लैक ओपेरान, टुप ओपेरान (trp operon), एरा ओपेरॉन (ara operon), हिस ओपेरान (his operon), वेल ओपेरान (val operon) etc. 
लैक ओपेरान निम्न घटकों से बना होता है-

  • 3 संरचनात्मक जीन (Structural genes) 
  • एक ओपरेटर क्षेत्र (An operator region) 
  • एक प्रमोटर क्षेत्र (Apromoter region) 
  • नियामक जीन (Regulatory gene) 

संरचनात्मक जीन (Structural Genes) 
लैक ओपेरान तीन संरचनात्मक जीनों (z, y व a) का बना होता है जो एक साथ अनुलेखित होती है अर्थात पॉलीसिस्ट्रानिक (polycistronic) होती हैं। डी.एन.ए. पर सबसे पहले नियामक जीन, फिर प्रमोटर क्षेत्र तथा उससे लगा हुआ ओपरेटर क्षेत्र होता है। संरचनात्मक जीन ओपरेटर के ठीक आगे स्थित होती है।
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तीन संरचनात्मक जीनों के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • जीन z एंजाइम बीटा गैलेक्टोसाइडेज (ß - galactosidase) को कोड करती है। यह एंजाइम लैक्टोज अणु को इसकी मोनोमर इकाइयों ग्लूकोज व गैलेक्टोज में तोड़ देता है।
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  • जीन y, एंजाइम परमिऐज (Permease) के निर्माण के लिए उत्तरदायी है। यह एंजाइम कोशिका की लैक्टोज के लिए पारगम्यता (Permeability) बढ़ा देता है अर्थात यह एंजाइम कोशिका को लैक्टोज ग्रहण करने में सक्षम बनाता है। 
  • जीन a यह जौन, ट्रांसएसीटाइलेज एंजाइम को कोड करती है। लैक्टोज के उपापचय के लिए इन तीनों संरचनात्मक जीनों के उत्पादों की आवश्यकता होती है। 
  1. ओपरेटर (An Operator): संरचनात्मक जीनों से जुड़ा वह क्षेत्र जो ओपेरॉन के स्विच की तरह कार्य करता है, ओपरेटर कहलाता है तथा संरचनात्मक जीनों के पास ही स्थित होता है। यह दमनकारी या मंदक की उपस्थिति में अनुलेखन को स्विच ऑफ (switch off) कर देता है।
  2.  प्रमोटर (Promotor): यह जीन का वह भाग है जिससे अनुलेखन के समय आर.एन.ए. पॉलीमरेज जुड़कर अनुलेखन प्रारम्भ करता है। 
  3. नियामक जीन (Regulatory gene) या आई जीन (igene): आई शब्द यहाँ इनहिबिटर (inhibitor) या संदमक के लिए प्रयोग किया गया है इन्ड्यु सर (inducer) या प्रेरक के लिए नहीं। आई जीन (नियामक जीन) इस लैक ओपेरान के दमनकारी (repressor) को कोड करती है। 

लैक ओपेरान की कार्य प्रणाली (Working of lac operon) 
जब संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन नहीं होता व इनके उत्पाद नहीं बनते, उस समय ओपेरॉन को स्विच ऑफ (switch off) कहा जाता है। लेकिन स्विच ऑन अवस्था में अनुलेखन प्रारम्भ हो जाता है तथा इनके उत्पाद बनने लगते हैं। 
लैक्टोज की अनुपस्थिति (Absence of Lactose): लैक्टोज, इस ओपेरॉन को स्विच ऑन व स्विच ऑफ कर नियंत्रित करता है। जब जीवाण के सम्वर्धन माध्यम में लैक्टोज नहीं होता तब लैक्टोज के उपापचय (metabolism) से सम्बंधित इन संरचनात्मक जीनों (z, y, a) के उत्पाद की आवश्यकता नहीं होती। इस स्थिति में नियामक जीन i का दमनकारी (repressor) उत्पाद ओपेरेटर जीन से जुड़ जाता है। ओपेरान का दमनकारी आई जीन द्वारा हर समय बनता रहता है। इसके ओपेरेटर से जुड़ने से आर.एन.ए. पॉलीमेरेज का मार्ग रुक जाता है तथा वह संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन नहीं कर पाता। जीवाणु कोशिका के संसाधनों व ऊर्जा की बचत के लिए यह आवश्यक भी है। दूसरे अनावश्यक व अतिरिक्त जैव रसायनों के कारण कोशिका का उपापचय भी गड़बड़ा जाता है। 

लैक्टोज की उपस्थिति (Presence of Lactose): जब जीवाणु के सम्वर्धन माध्यम में ग्लुकोज जैसे प्राथमिक कार्बन स्रोत की अनुपस्थिति में लैक्टोज उपलब्ध कराया जाता है, तब कुछ लैक्टोज अणु जीवाणु कोशिका के अन्दर पहुंच जाते हैं। ऐसा परमिऐज एंजाइम द्वारा जीवाणु कोशिका की लैक्टोज के प्रति पारगम्यता (permeability) बढ़ा देने के कारण होता है। एक अत्यंत धीमे स्तर पर लैक ओपेरॉन की जीनों की अभिव्यक्ति के कारण ही परमिऐज एंजाइम के कुछ अणु हर समय कोशिका में उपलब्ध रहते है अन्यथा लैक्टोज जैसे डाइसैकेराइड का जीवाणु कोशिका में प्रवेश सम्भव नहीं होता। लैक्टोज, जीवाणु कोशिका में दमनकारी (repressor) से क्रिया कर उसे असक्रिय (inactive) बना देता है। असक्रिय दमनकारी ओपरेटर से जुड़ने में सक्षम नहीं होता अतः आर.एन.ए. पॉलीमरेज प्रमोटर से जुड़कर - अनुलेखन प्रारम्भ कर देता है। अत: लैक्टोज को प्रेरक (inducer) कहा जाता है। यही ओपरेटर के स्विच ऑन व स्विच ऑफ के लिए उत्तरदायी होता है। स्पष्ट है लैक ओपेरॉन का नियमन, इसके आधारी पदार्थ (substrate) द्वारा एंजाइम संश्लेषण के नियमन के रूप में भी देखा जाता है। ग्लूकोज व गैलेक्टोज लैक ओपेरान के प्रेरक के रूप में कार्य नहीं कर सकते। इस प्रकार दमनकारी पदार्थ (repressor) द्वारा हुए लैक ओपेरान के नियमन को ऋणात्मक नियमन (negative regulation) कहा जाता है। लैक ओपेरान एक धनात्मक नियमन के रूप में भी कार्य करता है लेकिन इस स्तर पर उसकी चर्चा सम्भव नहीं। 

प्रश्न 8. 
आनुवंशिक कूट क्या है? इसकी चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
आनुवंशिक कूट (Genetic Code): जीव की आनुवंशिक सूचना डी.एन.ए. में क्षारकों के विशिष्ट अनुक्रम के रूप में उपस्थित होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण हेतु डी.एन.ए. टेम्पलेट पर बने MRNA के रूप में अनुलेखित हो जाती है। एम - आर.एन.ए. में क्षारकों का क्रम बनने वाले पॉलीपेप्टाइड में अमीनो अम्लों का क्रम निर्धारित करता है। पॉलीपेप्टाइड में अमीनो अम्लों का क्रम निर्धारित करना ही जेनेटिक कोड का कार्य है। अत: आनुवंशिक कूट प्रारम्भिक काल से उपस्थित वह सार्वत्रिक (Universal) कोड है जो सभी जीवधारियों में आनुवंशिक सूचना के आधार पर प्रोटीन संश्लेषण को विशिष्टीकृत करता है प्रत्येक कोड वर्ड (संकेताक्षर) तीन अक्षर का बना होता है जो mRNA के न्यूक्लियोटाइडों के संकेत AUGC तथा प्रोटीनों में पाये जाने वाले 20 अमीनो अम्लों में से किसी एक को इंगित करता है। 
आनुवंशिक कूट की विशिष्टताएं 

  • आनुवंशिक कूट का त्रिकूट (कोडोन) त्रिक (triplet) होता है। 
  • आनुवंशिक कूट असन्देहास्पद (unambiguous) व विशिष्ट होता है। 
  • यह अपह्वासित (Degenerate) होता है।
  • यह कौमा रहित (Commaless), विराम चिह्न रहित व अनतिव्यायी (non overlapping)) होता है। 

प्रश्न 9. 
आनुवंशिक पदार्थ के गुण लिखिए। अलफ्रेड हर्षे तथा मार्था चेज के प्रयोग को चित्र सहित समझाइये कि डी.एन.ए. एक आनुवंशिक पदार्थ है? 
उत्तर:सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 15
अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 16
इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

प्रश्न 10. 
न्यूक्लियोसोम किसे कहते हैं? डी.एन.ए. की विरज्जुकीय पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का चित्र बनाइये तथा इसकी संरचना समझाइये।
अथवा 
न्यूक्लियोसोम किसे कहते हैं। डी.एन.ए. कुण्डली का पैकेप्रिंग समझाइए। न्यूक्लियोसोम का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:डी.एन.ए. कुण्डली की पैकेजिंग (Packaging of DNA Helix) 
किसी यूकैरियोटिक कोशिका में प्रोकेरियोटिक कोशिका की अपेक्षा न सिर्फ क्रोमोसोम की संख्या अधिक होती है, अपितु प्रति क्रोमोसोम DNA की मात्रा व उससे सम्बद्ध प्रोटीन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। एश्चीरीचिया कोलाई के डी.एन.ए. की लम्बाई 1.36 मिमी की अपेक्षा मनुष्य के सभी 46 क्रोमोसोम में उपस्थित डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर होती है। इतना बड़ा डी.एन.ए., क्रोमेटिन पदार्थ के साथ कैसे एक अधिक से अधिक 5 µm व्यास के केन्द्रक में समा जाता है? क्रोमेटिन लगभग 10,000 गुना संघनित (condense) होकर समसूत्री विभाजन के क्रोमोसोम के आकार का बनता है।

दो नजदीकी क्षारक युग्मों के बीच की दूरी सभी प्रजातियों के डी.एन.ए. के लिए 0.34 नैनोमीटर (0.34 x 10-9m) ही होती है। किसी जीव की एक कोशिका के सभी क्रोमोसोम में उपस्थित क्षारक युग्मों की संख्या का दो क्षारक युग्मों के बीच की दूरी से गुणा करने पर डी.एन.ए. की पूरी लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। मनुष्य के लिए कुल क्षारक युग्म संख्या 6.6 x 109 bp है। इसे 0.34 nm से गुणा करने पर (6.6 x 109 x 0.34 x 10-9) डी.एन.ए. की लम्बाई लगभग 2.2 मीटर आती है। प्रोकैरियोट्स जैसे बैक्टीरिया में संगठित केन्द्रक का अभाव होता है, अर्थात केन्द्रक कला अनुपस्थित होती है। ऋणावेशित डी.एन.ए. कुछ धनावेशित प्रोटीनों से जुड़कर केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओइड (nucleoid) क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। न्यूक्लिओइड में डी.एन.ए. बड़े लूपों (loops) में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन द्वारा इस स्थिति में बने रहते हैं।

कैरियोटिक कोशिका में डी.एन.ए. पैकिंग और भी जटिल होती है। इस प्रकार की कोशिकाओं में धनावेशित क्षारीय (positively charged, basic) प्रोटीन जिन्हें हिस्टोन (histones) कहते हैं पाई जाती है। हिस्टोन प्रोटीन, डी.एन.ए. के संघनन हेतु एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्माण सामग्री का काम करते हैं।

किसी भी प्रोटीन का आवेश (Charge) उसको बनाने वाले अमीनो अम्लों की आवेशित पार्श्व शृंखलाओं की बहुलता पर निर्भर करता है। प्रोटीन में अगर क्षारीय अमीनो अम्लों की अधिकता हो तो वह धनावेशित हो जाती है तथा अम्लीय अमीनो अम्लों की अधिकता उसे ऋणावेशित बना देती है। हिस्टोन प्रोटीन क्षारीय अमीनो अम्ल जैसे लाइसीन व अर्जीनीन से समृद्ध होती है। इन दोनों अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं (side chain) पर धनावेश होता है। हिस्टोन प्रोटीन आठ - आठ अणुओं की एक इकाई के रूप में संगठित होती हैं जिन्हें हिस्टोन ऑक्टेमर (histone octamer) कहते हैं। यह न्यूक्लियोसोम का कोर (core) बनाता है। ऋणावेशित DNA अणु, धनावेशित हिस्टोन अष्टक (हिस्टोन आक्टेमर) के चारों ओर लिपटकर न्यूक्लियोसोम (nucleosome) नामक रचना बनाता है। एक प्रारूपिक न्यूक्लियोसोम में (200 bp/200 क्षार युग्म) लम्बा डी.एन.ए. होता है। एक हिस्टोन आक्टेमर में 2 अणु हिस्टोन H2A के, 2 अणु हिस्टोन H2B के, 2 अणु हिस्टोन H3 के तथा 2 अणु हिस्टोन H4 के होते हैं। दो न्यूक्लियोसोम इकाइयों के बीच स्थित (अर्थात उनको जोड़ने वाला) डी.एन.ए. लिकर डी.एन.ए. (linker DNA) या स्पेसर डी.एन.ए. (spacer, DNA) कहलाता हैं।
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H2A, H2B लाइसीन समृद्ध तथा H3, H4 आर्जीनिन समृद्ध हिस्टोन प्रोटीन है। H1 में लाइसीन की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। एक न्यूक्लियोसोम पर डी.एन.ए. \(1 \frac{3}{4}\) बार लिपटा रहता है।

हिस्टोन H1 न्यूक्लियोसोम डी.एन.ए. से बाहर लिंकर डी.एन.ए. से जुड़ी होती है। यह न्यूक्लियोसोम, केन्द्रक में पाये जाने वाली एक धागे जैसी रचना क्रोमेटिन (chromatin) पर एक के बाद एक क्रम में लगे रहते हैं। क्रोमेटिन तन्तु केन्द्रक में दिखाई देने वाली अभिरंजित (stained) रचनाएँ हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर यह न्यूक्लियोसोम किसी माला के मनको (beads on string) की तरह दिखाई देते हैं। सैद्धान्तिक रूप से मनुष्य की एक कोशिका में क्षारक युग्मों की कुल संख्या, में 200 (एक न्यूक्लिओसोम में उपस्थित क्षारक युग्म) का भाग देकर न्यूक्लियोसोम की कुल संख्या ज्ञात की जा सकती है। बौड्स ऑन स्ट्रिंग वाले क्रोमोटिन तन्तु और संघनित होकर मोटे क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं जो और भी अधिक संघनित होकर मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का निर्माण करते हैं। क्रोमोटिन की और बड़े स्तर पर पैकेजिंग के लिए अन्य प्रकार की प्रोटीन की जरूरत होती है जिन्हें सामूहिक रूप से गैर हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन नान हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन (Non - histone Chromosomal NHC proteins) कहा जाता है। एक प्रारूपिक केन्द्रक में क्रोमोटिन के कुछ क्षेत्र विरल या ढीले रूप से पैक होते हैं। यह क्रोमोसोम को अभिरंजित (stain) करने पर हल्का रंग लेते है तथा यूक्रोमेटिन (euchromatin) कहलाते हैं। यूक्रोमेटिन, अनुलेखन की दृष्टि से (transcriptionally) सक्रिय क्रोमेटिन है, अर्थात डी.एन.ए. का यह भाग सक्रिय रूप से अपनी सूचना को आर.एन.ए. को स्थानान्तरित करता है। क्रोमेटिन का वह भाग जो सघन रूप से पैक होता है हेटरोनोमेटिन कहलाता है। यह अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेता है। हेटेरोक्रोमेटिन अनुलेखन की दृष्टि से असक्रिय होता है।

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प्रश्न 11. 
सन 1958 में E.Coll पर मेसेल्सन एवं स्टाक द्वारा किए गए प्रयोग का वर्णन कीजिए। प्रयोग के बाद वे जिस निष्कर्ष पर पहुंचे उसे लिखिए।
उत्तर:प्रायोगिक प्रमाण (Experimental Proof) 
अब यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध किया जा चुका है कि डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी (semi - conservative) प्रकार का होता है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण को पहले एश्चौरीचिया कोलाई (Escherichia coli) तथा बाद में पादपों जैसे उच्च जीव व मनुष्यों में प्रदर्शित किया जा चुका है। अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण का प्रायोगिक प्रमाण सन् 1958 में मैथ्यू मेसलसन (Matthew Maselson) व फ्रेंकलिन स्टाल किया। 
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यह प्रयोग निम्न चरणों में सम्पन्न किया गया-
(i) मेसलसन व स्टाल ने सबसे पहले जीवाणु ई. कोलाई (E. coli) को ऐसे माध्यम पर सम्वर्धित किया जिसमें नाइट्रोजन के अकेले स्रोत के रूप में 15N अर्थात नाइट्रोजन के एक समस्थानिक का प्रयोग किया गया था। 15N नाइट्रोजन का एक भारी समस्थानिक है। मेसलसन व स्टाल ने इस हेतु माध्यम में 15NH4Cl का प्रयोग किया। जीवाणुओं की अनेक पीढ़ियों की इसी माध्यम पर वृद्धि से यह 15N सभी नये संश्लेषित डी.एन.ए. अणुओं में अन्तर्निहित (incorporate) हो गया। जीवाणुओं के सभी ऐसे यौगिक जिनमें नाइट्रोजन होता है ने यही 15N ग्रहण कर ली। इस सम्वर्धन से प्राप्त सभी जीवाणुओं से केवल भारी डी.एन.ए. अणु (ऐसे अणु जिनमें 15N समाहित था) ही प्राप्त हुआ। इस भारी डी.एन.ए. अणु को सामान्य डी.एन.ए. से सौजियम क्लोराइड (Cscl) घनत्व प्रवणता में अपकेन्द्रीकरण (centrifugation) द्वारा भिन्नित किया गया। 

(ii) अब उन्होंने जीवाणु कोशिकाओं को ऐसे माध्यम से स्थानान्तरित कर दिया जिसमें नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में सामान्य 14N का (14NH4Cl) प्रयोग किया गया था। जब कोशिकाओं ने गुणन प्रारम्भ किया तो मेसलसन व स्टाल ने उस माध्यम से जीवाणुओं के प्रदर्श विभिन्न निश्चित समयान्तरालों पर प्राप्त किए। जैसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से, तीसरी पीड़ी से, आदि की कोशिकाओं से उसने कुडलित डी.एन.ए. अणु प्राप्त किये। सभी प्रदर्शों को अलग - अलग स्वतंत्र रूप से सीजियम क्लोराइड विलयन में अपकेन्द्रित किया, ताकि उनके घनत्व का निर्धारण किया जा सके।
परिणामों को निम्न चित्र में दिखाया गया है-
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(iii) 15N नाइट्रोजन वाले माध्यम से 14N नाइट्रोजन वाले माध्यम में स्थानान्तरित किये जीवाणुओं को ठीक एक पीढ़ी बाद (अर्थात 20 मिनट बाद) पृथक कर जब उनसे डी.एन.ए. प्राप्त किया गया तब इस डी.एन.ए. का घनत्व बीच का (intermediate) पाया गया। अर्थात यह संकर डी.एन.ए. था जिसमें एक पैत्रिक रज्जुक 15N वाला तथा एक नया संश्लेषित रज्जुक 14N वाला था। एक और पीढ़ी बाद, अर्थात स्थानान्तरण के 40 मिनट बाद (ई. कोलाई में विभाजन 20 मिनट में होता है) सम्वर्धन माध्यम से प्राप्त डी.एन.ए. में से आधा डी.एन.ए. सबसे हलका व आधा संकर (hybrid) प्रकार का था। मेसलसन व स्टाल के प्रयोग से यह स्पष्ट हो गया कि डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकृति का होता है। रेडियोएक्टिव थाइमिडीन (thymidine) के प्रयोग द्वारा क्रोमोसोम में नव संश्लेषित डी.एन.ए. के वितरण की जाँच टेलर (Taylor) व उसके सहयोगियों ने फाबा बीन, विसिया फाबा (Vicia faba) में सन् 1958 में की। इन प्रयोगों ने सिद्ध किया कि क्रोमोसोम के अन्दर भी डी.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी प्रकार का होता है।

प्रश्न 12. 
(a) बैक्टीरिया में होने वाली प्रतिकृतियन - प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। 
(b) सुकेन्द्रकियों में क्रियात्मक mRNA बनने से पहले hn RNA को जिस प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है उसे लिखिए।
उत्तर:
अनुलेखन की प्रक्रिया (Process of Transcription) 
जीवाणुओं में तीनों प्रकार के आर.एन.ए. के अनुलेखन के उत्प्रेरण के लिए केवल एक प्रकार का डी.एन.ए. निर्भर आर.एन.ए. पॉलीमरेज पाया जाता है। प्रक्रिया के निम्न पद हैं-

1. प्रारम्भन (Initiation): अनुलेखन प्रक्रिया के प्रारम्भ में आर.एन.ए. पॉलीमरेज एंजाइम डी.एन.ए. के प्रमोटर क्षेत्र से जुड़ जाता है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में प्रमोटर की पहचान एंजाइम आर.एन.ए. पॉलीमरेज की सिगमा (σ) उपइकाई (sigma sub unit) करती है। यूकेरियोटिक कोशिकाओं में वह कार्य अनेक अनुलेखन कारकों (transcription factors) द्वारा सम्पन्न होता है। आर.एन.ए. पॉलीमरेज के प्रमोटर से जुड़ जाने के बाद अनुलेखन प्रारम्भ होता है।
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2. दीर्धीकरण (Elongation): आर.एन.ए, पॉलीमरेज अनुलेखन का केवल प्रारम्भन ही नहीं करता अपितु आर.एन.ए. श्रृंखला के दीर्धीकरण (elongation/extension) का भी कार्य करता है। जैसा कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है आर.एन.ए, पॉलीमरेज केवल 5' → 3' दिशा में कार्य करता है। अनुलेखन (आर.एन.ए. संश्लेषण) हेतु आर.एन.ए. पॉलीमरेज आधारी पदार्थ (substrate) के रूप में न्यूक्लियोसाइड ट्राइफास्फेट का प्रयोग करता है तथा पूरकता के नियम (rule of complimentarity) का पालन करते हुए टेम्पलेट आधारित बहुलकीकरण करता है। आर.एन.ए. पॉलीमरेज के प्रमोटर क्षेत्र से टर्मिनेटर की ओर बढ़ने पर डी.एन.ए. का भी अकुंडलन (unwinding) होता रहता है। अर्थात आर.एन.ए. पॉलीमरेज किसी प्रकार डी.एन.ए. रज्जुकों को अलग-अलग करता हुआ दीपीकरण जारी रखता है। आर.एन.ए. का केवल एक छोटा - सा भाग एंजाइम से बंधा रहता है व शेष मुक्त रहता है। 

समापन (Termination): जब आर.एन.ए. पॉलीमरेज, समापन क्षेत्र (terminator region) पर पहुंचता है तो नवजात (nascent) आर.एन.ए, इससे अलग हो जाता है। बाद में आर.एन.ए. पॉलीमरेज भी समापन क्षेत्र से पृथक हो जाता है।
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समापन कारक रो (Rho) समापन प्रक्रिया में मदद करता है। स्पष्ट है कि अनुलेखन प्रक्रिया के तीनों महत्त्वपूर्ण पद प्रारम्भन, दीपीकरण व समापन तीनों ही आर.एन.ए. पॉलीमरेज द्वारा सम्पादित किये जाते हैं। आर.एन.ए. पॉलीमरेज स्वयं, केवल दीपीकरण के उत्प्रेरण में सक्षम होता है, लेकिन यह स्थायी रूप से कुछ अन्य कारकों से भी जुड़ जाता है जो इसे मिलकर अन्य कार्य करने में भी सक्षम बनाते हैं। प्रारम्भन कारक (initiation factor) सिगमा इसकी एक इकाई (subunit) बनाता है जो इसकी प्रारम्भन में मदद करती है। इसी प्रकार यह अस्थायी रूप से समापन कारक (termination factor) रो (ρ) से जुड़कर, समापन को पूरी दक्षता के साथ सम्पन्न करने में सफल हो जाता है। इन कारकों के साथ जुड़ने से आर.एन.ए. पॉलीमरेज की विशिष्टता परिवर्तित हो जाती है। अत: यह आवश्यकतानुसार प्रारम्भन या समापन का कार्य कर पाता है।

प्रश्न 13. 
(a) एक ग्रिफिथ के श्रृंखलाबद्ध प्रयोगों का वर्णन कीजिए। उनके द्रव्य प्राप्त परिणामों के महत्व की चर्चा कीजिए। 
(b) मैक्लिऑड, मैकार्टी एवं ऐवरी के योगदान बताइट।
उत्तर:
सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
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अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
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इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

प्रश्न 14. 
(a) आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करने में सक्षम होने के लिए किसी जैव अणु में अनिवार्यतः जो अभिलक्षण होने चाहिए उनका उल्लेख कीजिए। 
(b) डी.एन.ए० तथा आर.एन.ए. दोनों ही आनुवंशिक पदार्थ हैं। दोनों में कौन - सा अधिक स्थाई है और क्यों?
उत्तर:

सपान्तरकारी सिद्धान्त (Transforming Principle) 
फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) नामक जीवाणु विज्ञानी सन् 1928 में मनुष्यों में न्यूमोनिया रोग के कारक जीवाणु स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) के विरुद्ध एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जीवाणुओं में रूपान्तरण प्रक्रिया की खोज की। स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (न्यूमोकोकस - Pneumococcus) जीवाणुओं को जब सम्वर्धन माध्यम (culture medium) पर उगाया जाता है तब इनके दो निम्न विभेद आसानी से पहचाने जा सकते है। 

(a) s - विभेद (S - Strain) इस विभेद के जीवाणु चमकदार, चिकनी (smooth) कॉलोनी बनाते हैं। इसीलिए इन्हें 5 - विभेद कहा जाता है। इन जीवाणुओं को जीवाणुभित्ति के ऊपर म्यूकस (पालीसकेराइड) का बना एक आवरण (capsule या coat) पाया जाता है। यह जीवाणु रोगकारी या वाइरुलैंट (Virulant) होते हैं, अत: इस जीवाणु से संक्रमित चूहों की मृत्यु हो जाती है। 

(b) R - विभेद (Rough Strain or R - Strain): यह जीवाणु कल्चर प्लेट पर खुरदरी (rough) कॉलोनी बनाते हैं अत: R - विभेद कहलाते हैं। R विभेद के जीवाणुओं में म्यूकस आवरण (mucous capsule or coat) का अभाव होता है। यह रोग उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते अर्थात नान वाइरलैंट (non virulent) होते हैं। चूहों को इन जीवाणुओं से संक्रमित करने पर उनमें न्यूमोनिया विकसित नहीं होता। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
S विभेद → चूहे में इंजेक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R विभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है 
यह जानने के लिए क्या S विभेद के जीवाणुओं का कैप्स्यूल या म्यूकस कोट रोगकारी है, ग्रिफिथ ने विभेद के जीवाणुओं को ताप के प्रभाव से मार दिया व फिर मृत S विभेद के जीवाणुओं को चूहों में इंजैक्ट कराया इसका चूहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा वह जीवित रहे।
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अब उसने ताप से मृत S - विभेद तथा रोग उत्पन्न करने में अक्षम जीवित R - विभेद के मिश्रण को चूहों में इंजैक्ट कराया। इससे उसे आश्चर्यकारी परिणाम प्राप्त हुए।
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इन मृत चूहों से उन्हें जीवित व विभेद के जीवाणु प्राप्त हुए। 
S विभेद के मृत जीवाणु तथा R विभेद के जीवित जीवाणु दोनों ही अलग - अलग चूहों में इंजैक्ट करने पर चूहों की मृत्यु का कारण नहीं बनते, लेकिन इनका मिश्रण चूहों को मार देता है। प्रिफिथ ने निष्कर्ष निकाला कि R विभेद के जीवाणु किसी तरह S - विभेद के ताप मृत जीवाणुओं द्वारा रूपान्तरित कर दिए गये। ताप मृत S - विभेद के जीवाणुओं से निकले किसी रूपान्तरकारी सिद्धान्त (transforming principle) ने R - विभेद के जीवाणुओं में चिकना पॉलीसैकेराइड कोट (कैफ्यूल) संश्लेषित करने की क्षमता उत्पन्न कर उन्हें रोगकारी (virulent) भी बना दिया। ऐसा आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) के स्थानान्तरण द्वारा ही सम्भव हुआ होगा। लेकिन उसके प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ की जैव रासायनिक प्रकृति स्पष्ट नहीं हुई।

आनुवंशिक पदार्थ के गुण (डी.एन.ए. बनाम आर.एन.ए.) [Properties of Genetic Material (DNA verses RNA)] 
अल्फेड डी. हर्शे व मार्था चेज के 1952 में किये गए प्रयोगों से इस बहस पर पूर्ण विराम लग गया कि आनुवंशिक पदार्थ प्रोटीन है या डी.एन.ए.। उनके प्रयोग डी.एन.ए. को आनुवंशिक पदार्थ सिद्ध करने के स्पष्ट व अकाट्य प्रमाण हैं तथा अब यह सर्वमान्य हो चुका है कि डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। कुछ विषाणुओं जैसे टोबैको मोजेक वाइरस (Tobacco Mosaic Virus), अन्य पादप विषाणुओं व QB जीवाणुभोजी आदि में आर.एन.ए. आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। लेकिन एक कोशिकीय से लेकर करोड़ों कोशिकाओं से बने सभी जीवों में डी.एन.ए. ही आनुवंशिक पदार्थ है। डी.एन.ए. के कुछ संरचनात्मक व कार्यात्मक गुण इसे प्रमुख आनुवंशिक पदार्थ का दर्जा देने हेतु उत्तरदायी हैं। आर.एन.ए. कुछ विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ होने के साथ - साथ, कोशिकीय जीवों में संरचनात्मक, (structural), वाहक (messenger), एडेप्टर (adapter) व एंजाइम अणु के रूप में भी कार्य करता है। 
आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करने वाले अणु को निम्न कार्य करने में सक्षम होना चाहिए-

  1. यह अपनी प्रतिकृति (replica) बनाने में अर्थात प्रतिकृतिकरण (replication) तथा इन प्रतियों के संततियों में भलीभांति संचरण में सक्षम होना चाहिए। 
  2. यह संरचनात्मक व रासायनिक रूप से स्थिर (stable) होना चाहिए। 
  3. साथ ही, यह धीमे व यदा-कदा होने वाले उत्परिवर्तनों (mutations) के लिए ग्राह्य या भेद्य (susceptible) होना चाहिए। 
  4. इसे कोशिका के सभी कार्यों के सम्पादन सम्बंधी सूचना को वहन करने (to carry) में सक्षम होना चाहिए। 

अर्थात इसे मेण्डल के कारक के रूप में अभिव्यक्त होने में सक्षम होना चाहिए। कुछ गौण (secondary) कसौटियाँ भी हैं जैसे इसे सार्वत्रिक (ubiquitous) होना चाहिए, अर्थात यह किसी भी स्थान पर उपस्थित पृथ्वी के सभी जीवों में उपस्थित होना चाहिए। साथ ही यह विविधता प्रदर्शित करने में सक्षम हाना चाहिए। डी.एन.ए. व आर.एन.ए. दोनों ही प्रतिकृतिकरण (replication) में सक्षम होते हैं अत: दोनों ही आनुवंशिक पदार्थ होने के लिए आवश्यक प्रथम शर्त पूरी करते है। यह दोनों अणु क्षारक युग्मन (base pairing), पूरकता (complementarity) के नियमों के कारण ऐसा कर पाने में समर्थ होते हैं। प्रोटीन जैसा जैव अणु इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता। 

दुसरी कसौटी है, आनुवंशिक पदार्थ इतना स्थिर (stable) जरूर होना चाहिए कि जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं, बढ़ती उम्र या जीव को कार्यिकी (physiology) में हुए किसी परिवर्तन में ही न बदल जाये। आनुवंशिक पदार्थ की यह स्थिरता प्रिफिथ के रूपान्तरकारी सिद्धान्त के प्रयोग द्वारा स्पष्ट की जा सकती है। इस प्रयोग में ताप (heat) के प्रयोग से जीवाणु की तो मृत्यु हुई लेकिन आनुवंशिक पदार्थ की स्थिरता का स्पष्ट संकेत है। आज, डी.एन.ए. की रचना व कार्य के विस्तृत अध्ययन के आधार पर इसकी स्पष्ट व्याख्या की जा सकती है। डी.एन.ए. के दोनों रज्जुक अधिक ताप के प्रभाव के कारण अलग तो हो जाते हैं, लेकिन उचित परिस्थितियां मिलने पर एक-दूसरे के पूरक (complementary) होने के कारण एक साथ जुड़ भी जाते है। 

आर.एन.ए. की अपेक्षा डी.एन.ए. अधिक स्थिर है क्योंकि-
(a) आर.एन.ए. के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में उपस्थित 2'OH अर्थात हाइड्राक्सिल समूह अत्यधिक सक्रिय (reactive) होता है। यह आर.एन.ए. को अस्थिर व आसानी से विघटित होने वाला बना देता है। 

(b) आर.एन.ए. की एंजाइम के रूप में भी कार्य करने की क्षमता इसे और सक्रिय (reactive), फलस्वरूप अस्थिर बना देती है। अतः डी.एन.ए., आर.एन.ए, की अपेक्षा रासायनिक रूप से कम सक्रिय (less reactive) तथा संरचनात्मक रूप से अधिक स्थिर (stable) है। अत: इन दो नाभिकीय अम्लों में डी.एन.ए. एक बेहतर आनुवंशिक पदार्थ हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 3
(c) यूरेसिल के स्थान पर थायमीन (thymine) की उपस्थिति डी.एन.ए. को अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान करती है। 
(d) इसकी प्रुफ रीडिंग की क्षमता इसे परिवर्तनों का प्रतिरोध करने में और सक्षम बनाती है। 

डी.एन.ए. व आर.एन.ए. व दोनों ही उत्परिवर्तित हो सकते हैं। वास्तव में अधिक सक्रिय व कम स्थिर होने के कारण ऐसे विषाणु जिनमें आर.एन.ए, जीनोम पाया जाता है तथा जीवन अवधि (life span) छोटी होती है, में उत्परिवर्तन तथा विकास अपेक्षाकृत तेजी से होते हैं। डी.एन.ए. प्रोटीन संश्लेषण के लिए पहले आर.एन.ए. का निर्माण करते हैं ताकि आनुवंशिक सूचना आर.एन.ए. को स्थानान्तरित की जा सके। अतः कहा जा सकता है कि आर.एन.ए. सीधे ही प्रोटीन संश्लेषण की सूचना को कोडित करते हैं तथा लक्षणों को सहजता से अभिव्यक्त कर सकते है। प्रोटीन संश्लेषण जैसी जटिल प्रक्रिया के सभी चरण आर.एन.ए. से जुड़े होते हैं। यह विवरण स्पष्ट करता है कि डी.एन.ए. व आर.एन.ए. दोनों ही आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य कर सकते हैं लेकिन अधिक स्थिर होने के कारण डी.एन.ए. आनुवंशिक सूचनाओं के संग्रहण (storage) हेतु अधिक उपयुक्त है और प्रकृति ने ऐसा ही किया है। आर.एन.ए. आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानान्तरण के लिए अधिक उपयुक्त है। आनुवंशिक पदार्थ होने की गौण कसौटियाँ जैसे इसका सार्वत्रिक होना व विविधता प्रदर्शित करना प्रोटीन जैसे गैर आनुवंशिक अणु भी पूरी करते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित) 

प्रश्न 1. 
निम्नलिखित में से कौन दो संलयित एरोमैटिक वलयों का बना होता है?
(a) केवल साइटोसीन 
(b) केवल ग्वानीन
(c) केवल एडेनीन 
(d) एडेनीन व ग्वानीन दोनों। 
उत्तर:
(d) एडेनीन व ग्वानीन दोनों।

प्रश्न 2. 
एक विसूत्री डी.एन.ए. अणु में दो रज्जुकों के क्षारक निम्नलिखित में से किससे जुड़े रहते हैं?
(a) हाइड्रोजन आबन्ध से 
(b) सहसंयोजी आबन्ध से
(c) S = S आबन्ध से 
(d) एस्टर बन्ध से। 
उत्तर:
(a) हाइड्रोजन आबन्ध से 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 3. 
डी.एन.ए. आनुवंशिक पदार्थ है, इसका अन्तिम प्रमाण निम्नलिखित में से किसके प्रयोगों से मिला-
(a) ग्रिफिथ
(b) एवेरी 
(c) हशे व चेज 
(d) मैक्लियाड व मैक कार्टी। 
उत्तर:
(c) हशे व चेज 

प्रश्न 4. 
एक न्यूक्लियोसोम बना होता है?
(a) केवल क्रोड हिस्टोन का 
(b) केवल H1 हिस्टोन का 
(c) केवल न्यूक्लियोसोम क्रोड का
(d) न्यूक्लियोसोम क्रोड तथा H1 हिस्टोन दोनों का 
उत्तर:
(d) न्यूक्लियोसोम क्रोड तथा H1 हिस्टोन दोनों का 

प्रश्न 5. 
एक ऐसी कोशिका जिसमें रेडियोएक्टिव डी.एन.ए. को तीन पीढ़ियों तक रेडियोएक्टिवता हीन माध्यम में प्रतिकृतिकृत होने दिया गया। अब इसमें कितने प्रतिशत कोशिकाओं में रेडियोएक्टिव डी.एन.ए. होगा?
(a) 50%
(b) 25% 
(c) 12.5%
(d) 0%. 
उत्तर:
(c) 12.5%

प्रश्न 6. 
mRNA का संश्लेषण कहलाता है
(a) पारक्रमण (Transduction) 
(b) रूपान्तरण (Transformation) 
(c) अनुलेखन (Transcription)
(d) स्थानान्तरण (Translation)। 
उत्तर:
(c) अनुलेखन (Transcription)

प्रश्न 7. 
दिया गया आरेख DNA के आनुवंशिक विचार की एक महत्वपूर्ण संकल्पना दर्शाता है। रिक्त स्थानों (A से लेकर C तक) की पूर्ति कीजिए।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 8
(a) A - अनुलेखन, B - प्रतिकृतिकरण, C - जेम्स वॉटसन 
(b) A - ट्रांसलेशन, B - अनुलेखन, C - इरविन चारगॉफ 
(c) A - अनुलेखन, B - ट्रांसलेशन, C - फ्रांसिस क्रिक
(d) A - ट्रांसलेशन, B - विस्तार, C - रोजालिन फ्रैंकलिना 
उत्तर:
(c) A - अनुलेखन, B - ट्रांसलेशन, C - फ्रांसिस क्रिक

प्रश्न 8. 
उस कोशिका में कौन - सा एजाइम उत्पन्न होगा जिसके लैक ऑपेरान में लैक Y में निरर्थक उत्परिवर्तन है?
(a) ß गैलेक्टोसाइडेज
(b) लैक्टोज परमिएज 
(c) ट्रांस एसीटाइलेज
(d) लैक्टोज परमिएज और ट्रांस एसीटाइलेज 
उत्तर:
(a) ß गैलेक्टोसाइडेज

प्रश्न 9. 
विल्किंस व फ्रैंकलिन ने बताया कि DNA में
(a) चार क्षारक होते हैं
(b) हैलिक्स होता है 
(c) क्षारक युग्मन पूरक होता है
(d) न्यूक्लियोटाइड का बना होता है। 
उत्तर:
(b) हैलिक्स होता है

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 10. 
डी.एन.ए. का संश्लेषण कहलाता है-
(a) प्रतिकृतिकरण
(b) अनुलेखन 
(c) अनुवाद
(d) डिएमीनेशन। 
उत्तर:
(a) प्रतिकृतिकरण

प्रश्न 11. 
जेनेटिक कोह नाम किसने प्रस्तावित किया?
(a) फ्रांसिस क्रिक 
(b) कोर्नबर्ग व मथाई
(c) जार्ज गैमो
(d) हरगोविन्द खुराना। 
उत्तर:
(c) जार्ज गैमो

प्रश्न 12. 
क्रोमोसोम के अन्दर ही.एन.ए. का प्रतिकृतिकरण अर्धसंरक्षी होता है, इसका प्रायोगिक प्रमाण दिया-
(a) मैसेल्सन व स्टॉल ने 
(b) टेलर व अन्य ने 
(c) वाटसन व क्रिक ने 
(d) कोर्नबर्ग व मथाई ने।
उत्तर:
(b) टेलर व अन्य ने 

प्रश्न 13. 
जेनेटिक कोड में समापन कोडोन है-
(a) UAA
(b) UAG 
(c) UGA
(d) उपरोक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी। 

प्रश्न 14. 
साइटोसीन व ग्वानीन के बीच हाइड्रोजन बन्धों की संख्या होती है-
(a) 1
(b) 2 
(c) 3
(d)4
उत्तर:
(c) 3

प्रश्न 15. 
त्रिक प्रकूट (triplet codon) का अर्थ है तीन क्षारकों की उपस्थिति
(a) mRNA पर
(b) tRNA पर 
(c) प्रोटीन में
(d) उपर्युक्त सभी पर। 
उत्तर:
(a) mRNA पर

प्रश्न 16. 
आनुवंशिक डिक्शनरी में कुल कोडोनों की संख्या है-
(a) 3
(b) 20 
(c) 64
(d) 01
उत्तर:
(c) 64

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 17. 
tRNA का एक एण्टीकोडोन, mRNA के एक से अधिक कोडोनों की पहचान कर सकता है, यह है-
(a) बोबेल परिकल्पना 
(b) जीन प्रवाह परिकल्पना
(c) टेम्पलेट परिकल्पना 
(d) ट्रांसपोजोन परिकल्पना। 
उत्तर:
(a) बोबेल परिकल्पना 

प्रश्न 18. 
अनुवाद का अर्थ है-
(a) राइबोसोम का संश्लेषण 
(b) प्रोटीन संश्लेषण
(c) डी.एन.ए. संश्लेषण 
(d) आर.एन.ए. संश्लेषण। 
उत्तर:
(b) प्रोटीन संश्लेषण

प्रश्न 19. 
सेण्ट्रल डोग्मा प्रस्तावित किया था-
(a) बीडल व टॉटम ने 
(b) टेमिन व बाल्टीमोर ने 
(c) क्रिक ने
(d) फ्रैंकलिन व चारगोफ ने। 
उत्तर:
(c) क्रिक ने

प्रश्न 20. 
RNA में होती है-
(a) हेक्सोज
(b) राइबोज 
(c) फ्रक्टोज
(d) ग्लूकोजा 
उत्तर:
(b) राइबोज 

प्रश्न 21. 
टेमिनिज्म का अर्थ है-
(a) अनुलेखन
(b) अनुवाद 
(c) व्युत्क्रम अनुलेखन 
(d) व्युत्क्रम अनुवाद। 
उत्तर:
(c) व्युत्क्रम अनुलेखन 

प्रश्न 22. 
डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण हेतु आवश्यक है-
(a) केवल डी.एन.ए. पॉलीमरेज 
(b) केवल डी.एन.ए. लाइगेज 
(c) केवल डी.एन.ए. निर्भर आर.एन.ए. पॉलीमरेज
(d) (a) व (b) दोनों। 
उत्तर:
(d) (a) व (b) दोनों।

प्रश्न 23. 
ही.एन.ए. में न्यूक्लियोटाइड के व्यवस्थापन के बारे में जानकारी मिलती है-
(a) एक्स - रे क्रिस्टेलोग्राफी से 
(b) इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से
(c) अल्ट्रासेण्ट्रीफ्यूज मशीन से 
(d) अल्ट्रासाउंड से। 
उत्तर:
(a) एक्स - रे क्रिस्टेलोग्राफी से 

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प्रश्न 24. 
एण्टीकोडोन उपस्थित होता है-
(a) T RNA पर
(b) m RNA पर 
(c) t RNA पर
(d) उपर्युक्त सभी पर। 
उत्तर:
(c) t RNA पर

प्रश्न 25.
64 कोडोन में से 61 कोडोन 20 अमीनो अम्लों को कोड करते हैं, यह दिखाता है-
(a) कोड अनतिव्यापी (norn over lapping) है 
(b) कोड अपहासित (degenerate) है
(c) कोड असंदेहास्पद (unambiguous) है 
(d) कोड कीमा विहीन (commaless) है।
उत्तर:
(b) कोड अपहासित (degenerate) है

प्रश्न 26. 
न्यूक्लियोसाइड होता है-
(a) नाइट्रोजनी क्षार + शर्करा 
(b) नाइट्रोजनी क्षार + शर्करा + फास्फेट 
(c) नाइट्रोजनी क्षार + फॉस्फेट
(d) शर्करा + फास्फेट रीढ़। 
उत्तर:
(a) नाइट्रोजनी क्षार + शर्करा 

प्रश्न 27. 
ही.एन.ए. के ऐसे भाग जो अपनी स्थिति बदलने में सक्षम है, कहलाते हैं-
(a) एक्जॉन
(b) इंट्रॉन 
(c) सिस्ट्रॉन
(d) ट्रांसपोजोन। 
उत्तर:
(d) ट्रांसपोजोन।

प्रश्न 28. 
डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण में डी.एन.ए. पॉलीमरेज का एक कार्य है-
(a) डी.एन.ए. श्रृंखला को काटना 
(b) डी.एन.ए. रज्जुकों को पहले तोड़ना व फिर जोड़ना 
(c) प्रूफ रीडिंग
(d) पेप्टाइड बन्ध निर्माण 
उत्तर:
(c) प्रूफ रीडिंग

प्रश्न 29. 
ओकाजाकी खण्ड पाये जाते हैं-
(a) अनुलेखन इकाई में 
(b) लीडिंग स्टेंड में
(c) लैगिंग स्ट्रैड में 
(d) CRNA की भुजा पर। 
उत्तर:
(c) लैगिंग स्ट्रैड में 

प्रश्न 30. 
अनुलेखन के लिए आवश्यक है-
(a) CAAT Box
(b) प्रमोटर 
(c) DNA पॉलीमरेज 
(d) डी.एन.ए. लाइगेज। 
उत्तर:
(b) प्रमोटर 

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प्रश्न 31. 
नाभिकीय अम्लों की इकाई है-
(a) अमीनो अम्ल
(b) न्यूक्लियोसाइड 
(c) पॉलीपेप्टाइड 
(d) न्यूक्लियोटाइड। 
उत्तर:
(d) न्यूक्लियोटाइड।

प्रश्न 32. 
ओपेरॉन में दमनकारी (repressor) का संश्लेषण करने वाली जीन है-
(a) प्रमोटर जोन 
(b) ओपेरेटर जीन
(c) रेग्युलेटर जोन 
(d) संरचनात्मक जीन। 
उत्तर:
(c) रेग्युलेटर जोन 

प्रश्न 33. 
जम्पिंग जीन का दूसरा नाम है-
(a) ट्रांसपोजोन 
(b) सिस्ट्रान
(c) वाहक (vector) 
(d) स्यूडोजीन। 
उत्तर:
(a) ट्रांसपोजोन 

प्रश्न 34. 
एगरोज जैल से डी.एन.ए. बैण्ड को नाइट्रोसैल्यूलोज मेमोन पर स्थानान्तरण की विधि है-
(a) सदर्न ब्लाटिंग 
(b) वेस्टर्न ब्लाटिंग
(c) नॉर्दन ब्लाटिंग 
(d) ईस्टर्न ब्लाटिंग। 
उत्तर:
(a) सदर्न ब्लाटिंग 

प्रश्न 35. 
DNA फिंगर प्रिंटिंग की विधि विकसित की-
(a) मैसलसन व स्टॉल ने 
(b) एवरी व मैकलिआड ने
(c) रोजालिन फ्रैंकलिन ने 
(d) एलेक जेफ्री ने।
उत्तर:
(d) एलेक जेफ्री ने।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 36. 
सिगमा कारक किसकी उपइकाई है?
(a) डी.एन.ए. पॉलीमरेज 
(b) आर.एन.ए. पॉलीमरेज
(c) डी.एन.ए. लाइगेज 
(d) बीटा गैलेक्टोसाइडेज। 
उत्तर:
(b) आर.एन.ए. पॉलीमरेज

प्रश्न 37. 
लैक ओपेरॉन में प्रेरक अणु है-
(a) परमिऐज एंजाइम 
(b) ग्लूकोज व गैलेक्टोज
(c) दमनकारी प्रोटीन 
(d) लैक्टोज। 
उत्तर:
(d) लैक्टोज। 

प्रश्न 38. 
अनुलेखन के समय आर.एन.ए. पॉलीमरेज सबसे पहले ही.एन.ए. के किस भाग से जुड़ता है? 
(a) AUG कोडोन 
(b) समापन कोडोन 
(c) प्रमोटर
(d) संरचनात्मक जीना
उत्तर:
(c) प्रमोटर

प्रश्न 39. 
डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग में डी.एन.ए. खण्डों से किसका संकरण कराया जाता है? 
(a) एगारोज जेल
(b) डी.एन.ए. प्रोब 
(c) नाइलॉन मेम्ब्रेन 
(d) रेस्ट्रिक्शन एंजाइम। 
उत्तर:
(b) डी.एन.ए. प्रोब 

प्रश्न 40. 
डी.एन.ए. की अम्लीय प्रकृति किसके कारण होती है?
(a) नाइट्रोजनी क्षारक 
(b) हिस्टोन 
(c) फॉस्फेट समूह
(d) डीऑक्सीराइबो शर्करा। 
उत्तर:
(c) फॉस्फेट समूह

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 41. 
ग्रिफिथ ने अपने प्रयोग किये-
(a) एश्चीरीचिया कोलाई पर 
(b) स्यूडोमोनास प्रजाति पर
(c) न्यूमोकोकाई पर 
(d) क्लास्ट्रीडियम पर। 
उत्तर:
(c) न्यूमोकोकाई पर 

प्रश्न 42. 
डी.एन.ए. की लम्बाई को प्रायः मापा जाता है-
(a) सेमी में
(b) nm में 
(c) AU में
(d) bp की संख्या में। 
उत्तर:
(d) bp की संख्या में। 

HOTS : Higher Order Thinking Skill 

प्रश्न 1. 
एक जीव की जीनोम परियोजना में जीनों के क्रमों की पहचान अभिव्यक्त अनुक्रम टैग (Expressed Sequence Tags ESTS) विधि द्वारा की जा रही है। एक m RNA का क्षारक क्रम निम्नलिखित है। आप जीव विज्ञान के विद्यार्थी के रूप में इस जीन की पहचान कैसे करेंगे? 
5'- AUU UUC UUU UCC AUG GGC CCG AAG CGG - 3' 
उत्तर:
ESTs विधि में m RNA से डी.एन.ए. के क्रम का पता लगाया जाता है। अत: इस, m RNA से बने DNA template (3' - 5') व 5' - 3' का क्रम होगा 
3' - TAA AAG AAA AGG TAC CCG GGC TTC GCC - 5'
टेम्पलेट 
5' - ATT TTC TTT TCC ATG GGC CCG AAG CGG - 3'

प्रश्न 2. 
नीचे दिया चित्र m RNA का एक भाग दिखाता है-
UAC CGA CCU UAA 
प्रोटीन संश्लेषण होने पर इस m RNA से जुड़ने वाले सभी t RNA के एण्टीकोडोन लिखिए 
उत्तर:
I - t RNA - AUG, II - tRNA - GCU, III - GGA
(UAA एक समापन कोडोन है अत: कुल 3 t RNA ही होंगे। 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 3. 
अगर जीवाणुओं को कई पीढ़ी तक भारी नाइट्रोजन पर सम्वर्धित किया जाय व फिर सामान्य हल्की नाइट्रोजन वाले माध्यम में स्थानान्तरित कर दिया जाय तो कितनी पीढ़ी बाद कुछ ऐसे जीवाणु बन पायेंगे जिनमें केवल हल्की नाइट्रोजन हो? 
उत्तर:
दो पीढ़ी बाद।
(एक पीढ़ी के बाद बनने वाले डी.एन.ए. में एक अणु भारी होगा व एक हल्का)

प्रश्न 4. 
आगे दो चित्रों की श्रृंखला A व B दी गई है, जो डी.एन.ए. फिंगर प्रिंट है तथा पैत्रिकता के विवाद (paternal dispute) से सम्बन्धित हैं। इनमें से कौन - सी श्रृंखला पैत्रिकता स्थापित करती है व कौन - सी उसे खारिज (अस्वीकार करती है, तर्क सहित बताइये। (चित्र में M = माँ,C = बच्चा,F = पिता)
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 9
उत्तर:
शृंखला A पैत्रिकता के दावे को स्वीकार करती है क्योंकि बच्चे के फिंगर प्रिंट माँ व पिता दोनों से मिलते हैं। 
B चित्रों में बच्चे के फिंगर प्रिंट माँ से तो मिलते हैं मगर पिता से नहीं अत: पैत्रिकता स्थापित नहीं होती।

प्रश्न 5. 
दिया गया चित्र एक प्रक्रिया का आरेखीय निरूपण है चित्र को देखकर इस प्रक्रिया का नाम बताइये। इस प्रक्रिया का क्या लाभ है?
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 10
उत्तर:
यह प्रक्रिया एम - आर.एन.ए. प्रसंस्करण प्रदर्शित कर रही है। यूकैरियोट में जीन विखण्डित होते हैं अत: m - RNA की प्राथमिक स्क्रिप्ट में से नॉन कोडिंग इण्ट्रॉन को निकालकर सार्थक प्रोटीन का बनना सुनिश्चित किया गया है।

NCERT EXEMPLAR PROBLEMS

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
एक डी.एन.ए. रज्जुक में न्यूक्लियोटाइड आपस में किस बन्ध से जुड़े रहते हैं?
(a) ग्लाइकोसिडिक बन्ध 
(b) फास्फोडाइएस्टर बन्ध 
(c) पेप्टाइड बन्ध
(d) हाइड्रोजन बन्ध। 
उत्तर:
(b) फास्फोडाइएस्टर बन्ध 

प्रश्न 2. 
एक न्यूक्लियोसाइड एक न्यूक्लियोटाइड से भिन्न होता है। इसमें अनुपस्थिति होता है-
(a) एक क्षारक
(b) शर्करा 
(c) फास्फेट समूह 
(d) हाइड्राक्सिल समूह।
उत्तर:
(c) फास्फेट समूह

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 3. 
डीऑक्सीराइबोज व राइबोज दोनों ही शर्कराओं में एक वर्ग से सम्बन्धित है, वह है-
(a) ट्राइओजेज
(b) हेक्सोजेज 
(c) पेन्टोजेज
(d) पॉलीसैकराइड। 
उत्तर:
(c) पेन्टोजेज

प्रश्न 4. 
यह तथ्य कि एक प्यूरीन क्षारक हमेशा हाइड्रोजन बन्धों द्वारा एक पिरीमिडीन क्षारक से जुड़ता है, से डी.एन.ए. द्विकुण्डली में कौन - सा गुण विकसित हुआ-
(a) प्रतिसमानान्तर प्रकृति 
(b) संरक्षी प्रकृति
(c) डी.एन.ए. की एक समान चौड़ाई
(d) सभी डी.एन.ए. की समान लम्बाई। 
उत्तर:
(c) डी.एन.ए. की एक समान चौड़ाई

प्रश्न 5. 
डी.एन.ए. व हिस्टोन पर कुल विद्युत आवेश है-
(a) दोनों धनात्मक
(b) दोनों ऋणात्मक 
(c) क्रमश: ऋणात्मक व धनात्मक 
(d) शून्य।
उत्तर:
(c) क्रमश: ऋणात्मक व धनात्मक 

प्रश्न 6. 
सिकेल सैल एनीमिया के लिए निम्न में से कौन - सा सर्वाधिक उपयुक्त है-
(a) इसका लौह (आवरन) पूरकों द्वारा उपचार नहीं किया जा सकता 
(b) यह एक आण्विक रोग है 
(c) यह मलेरिया के लिए प्रतिरोधकता प्रदान करता है
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 7. 
AUG के लिए निम्न में से कौन - सा कथन सही है?
(a) यह मिथियोनीन को कोड करता है 
(b) यह एक आरम्भन कोडोन भी है 
(c) यह प्रोकैरियोट व यूकैरियोट दोनों में ही मिथियोनीन को कोड करता है 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 8. 
सबसे अधिक जीनों की संख्या व सबसे कम जीनों की संख्या वाला मनुष्य का क्रोमोसोम है, क्रमशः -
(a) क्रोमोसोम 21 व Y 
(b) क्रोमोसोम 1 व X 
(c) क्रोमोसोम 1 व Y 
(d) क्रोमोसोम X व Y। 
उत्तर:
(c) क्रोमोसोम 1 व Y 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 9. 
जीनोम परियोजना में किस क्रोमोसोम का अनुक्रम निर्धारण सबसे अन्त में पूरा हुआ-
(a) क्रोमोसोम 1
(b) क्रोमोसोम 11 
(c) क्रोमोसोम 21 
(d) क्रोमोसोम X. 
उत्तर:
(a) क्रोमोसोम 1

प्रश्न 10. 
अनुलेखन के कौन - से पद का उत्प्रेरण RNA पॉलीमरेज द्वारा होता-
(a) आरम्भन
(b) दीपीकरण 
(c) समापन
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 11. 
कुछ विषाणुओं में डी.एन.ए. का संश्लेषण आर.एन.ए. टेम्पलेट पर होता है। इस प्रकार का डी.एन.ए. कहलाता है-
(a) A - DNA
(b) B - DNA 
(c) r - DNA
(d) C - DNA. 
उत्तर:
(d) C - DNA. 

प्रश्न 12. 
ही.एन.ए. की विकुण्डली मॉडल संरचना के विकास में निम्न में से किन वैज्ञानिकों का कोई योगदान नहीं है?
(a) रोजलिन फ्रैंकलिन 
(b) मॉरिस विल्किंस
(c) एरविन चारगॉफ 
(d) मेसेल्सन एवं स्टॉल। 
उत्तर:
(d) मेसेल्सन एवं स्टॉल।

प्रश्न 13. 
निम्न में से कौन - सा आर.एन.ए. का कार्य है?
(a) यह डी.एन.ए. से पॉलीपेप्टाइड का संश्लेषण कर रहे राइबोसोम तक आनुवंशिक सूचना का वाहक है 
(b) यह राइबोसोम तक अमीनो अम्लों का वाहक है 
(c) यह राइबोसोम का संरचनात्मक घटक है
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 14. 
डी.एन.ए. के एक रज्जुक में असतत संश्लेषण होता है क्योंकि-
(a) संश्लेषित हो रहा डी.एन.ए. अणु बहुत लम्बा होता है 
(b) डी.एन.ए. निर्भर डी.एन.ए. पॉलीमरेज केवल 5' →3' दिशा में बहुलकीकरण करता है। 
(c) यह एक अधिक कार्यक्षम प्रक्रिया है 
(d) डी.एन.ए. लाइगेज को भी अपना कार्य करना होता है। 
उत्तर:
(b) डी.एन.ए. निर्भर डी.एन.ए. पॉलीमरेज केवल 5' →3' दिशा में बहुलकीकरण करता है।

प्रश्न 15. 
अमीनो अम्ल t RNA के किस भाग से जुड़ता है-
(a) 5' सिरे
(b) 3' सिरे 
(c) एण्टीकोडोन सिरे 
(d) DHU लूप।
उत्तर:
(b) 3' सिरे 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 16. 
अनुवाद प्रारम्भ करने के लिए m RNA सबसे पहले जुड़ता है-
(a) राइबोसोम की छोटी उप इकाई से 
(b) राइबोसोम की बड़ी उप इकाई से। 
(c) पूरे राइबोसोम से
(d) ऐसी कोई विशिष्टता नहीं पाई जाती। 
उत्तर:
(a) राइबोसोम की छोटी उप इकाई से 

प्रश्न 17. 
ई०कोलाई में ओपरॉन स्विच ऑन हो जाता है जब
(a) लैक्टोज उपस्थित होता है व यह दमनकारी से जुड़ जाता है 
(b) जब दमनकारी ओपरेटर से जुड़ जाता है 
(c) जब आर.एन.ए, पॉलीमरेज ओपरेटर से जुड़ता है 
(d) लैक्टोज उपस्थित होता है व यह आर.एन.ए. पॉलीमरेज से जुड़ जाता है। 
उत्तर:
(a) लैक्टोज उपस्थित होता है व यह दमनकारी से जुड़ जाता है 

प्रश्न 18. 
आर.एन.ए. पॉलीमरेज होलो एंजाइम अनुलेखित करता है-
(a) प्रमोटर, संरचनात्मक जीन व समापन क्षेत्र 
(b) प्रमोटर व समापन क्षेत्र 
(c) संरचनात्मक जीन व समापन क्षेत्र 
(d) केवल संरचनात्मक जीन।
उत्तर:
(d) केवल संरचनात्मक जीन।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
डी.एन.ए. पैकेजिंग में हिस्टोन्स का क्या कार्य है? 
उत्तर:
हिस्टोन क्षारीय प्रोटीन है जो अम्लीय डी.एन.ए. को लिपटने के लिए कोर प्रदान कर न्यूक्लियोसोम नामक रचना बनाते हैं और संघनित होकर सोलीनॉइड व फिर क्रोमेटिन के पतले तन्तु बनाती है, जिससे अत्यधिक लम्बे डी.एन.ए. की पैकेजिंग आसान हो जाती है, यह अनुलेखन हेतु डी.एन.ए. तक पहुंच को सुलभ भी बनाती है। 

प्रश्न 2. 
केन्द्रक में राहबोन्यूक्लियोटाइड ट्राईफास्फेट की संख्या ही ऑक्सीराइबोस ट्राई न्यूक्लियोटाइड की संख्या से 10 गुना ज्यादा होती है लेकिन डी एन प्रतिकृतिकरण में डीऑक्सीराइबो न्यूक्लियोटाइड ही क्यों जुड़ते हैं? 
उत्तर:
डी.एन.ए. निर्भर डी.एन.ए. पॉलीमरेज, विशिष्टता के कारण केवल डी ऑक्सी राइबोन्यूक्लियोटाइड को पहचानता है अतः केवल डी.एन.ए. इकाइयाँ ही जुड़ती हैं। 

प्रश्न 3. 
ऐसे तीन विषाणुओं के नाम लिखिए जिनमें आर.एन.ए. आनुवंशिक पदार्थ होता है? 
उत्तर:
टोबेको मोजेक वाइरस (TMV), एड्स विषाणु (HIV) तथा QB जीवाणभोजी।

प्रश्न 4. 
डी.एन.ए. प्रतिकृतिकरण में भाग लेने वाले डी.एन.ए. पॉलीमरेज व डी.एन.ए. लाइगेज के अतिरिक्त एक और एंजाइम का नाम लिखिए। इसका क्या कार्य होता है। 
उत्तर:
हेलीकेज, डी.एन.ए. का अंकुडलन (unwinding)।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
मानव जीनोम की कोई 6 विशेषताएँ बताइये। 
उत्तर:
मानव जीनोम परियोजना या ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) 
पिछली शताब्दी में वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक पदार्थ की संरचना की खोज की, डी.एन.ए. के अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण, अनुलेखन, जेनेटिक कोड व अनुवाद जैसी महत्वपूर्ण खोजें भी उसी शताब्दी में हुई, लेकिन आनुवंशिकी के क्षेत्र में खोजों का यह सिलसिला 21 वीं शताब्दी में भी जारी रहा। 21 वीं शताब्दी में खोजें जीनोमिक्स के अध्ययन से सम्बन्धित रही है। किसी भी जीवधारी का आनुवंशिक ढांचा उसके डी.एन.ए. में क्षारकों के अनुक्रम के रूप में निहित रहता है। अगर दो जीव भिन्नता प्रदर्शित करते है तब उनके डी.एन.ए. अनुक्रम भी, कम से कम कुछ स्थानों पर भिन्न - भिन्न होने चाहिए। इसी जिज्ञासा ने मानव जीनोम के पूरे के पूरे डी.एन.ए. अनुक्रम की पहचान का मार्ग प्रशस्त किया। मनुष्य के पूरे जीनोम की खोज एक बहुत बड़ी परियोजना थी जिस पर निम्न कारणों से कार्य करना सम्भव हो सका-

  • आनुवंशिक अभियंत्रिकी (Genetic Engineering) की तकनीके, जिनके द्वारा डी.एन.ए. के किसी भी खण्ड का पृथक्करण व क्लोनिंग सम्भव हो सकी। 
  • डी.एन.ए. क्षारक अनुक्रम निर्धारण की सरल व शीघ्रता से सम्पन्न हो जाने वाली तकनीकों की उपलब्धता। 
  • जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति।
    आइये कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों के अर्थ जानें-
    RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 4
  • जीनोम (Genome) किसी जीव की कोशिका में उपस्थित जीनों का सम्पूर्ण समुच्चय (complete set of genes) ही जीनोम कहलाता है। अर्थात अगुणित क्रोमोसोम की सभी जीन जीनोम बनाती हैं।
  • जीनोमिक्स (Genomics) विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवधारियों की जीनों (genes) का अध्ययन किया जाता है। इसमें जीव के जीनोम के सम्पूर्ण डी.एन.ए. के अनुक्रमों का अध्ययन भी शामिल है। 
  • जैव सूचना विज्ञान या बायोइन्फोमेटिक्स (Bioinformatics) जीनोम के अध्ययन में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी का प्रयोग बायोइन्फोमेटिक्स कहलाता है। जीनोमिक्स व प्रोटियोमिक्स में असंशोधित या कच्चे आँकड़े उत्पन्न होते हैं। कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी की मदद से किये गये इन असंशोधित या कच्चे आँकड़ों (data) के विश्लेषण से इस डेटा के महत्त्वपूर्ण रुझान प्राप्त होते हैं। 
  • प्रोटियोमिक्स (Proteomics) कोशिकीय प्रोटीनों की संरचना, कार्य व पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन प्रोटियोमिक्स कहलाता है। 
  • प्रोटिओम (Proteome) किसी कोशिका की जैविक रूप से सक्रिय प्रोटीनों का पूर्ण समुच्चय (set)।

मानव जीनोम परियोजना के उद्देश्य (Aims of Human Genome Project) 
मानव जीनोम परियोजना एक महायोजना (Mega project) थी। इसके निम्नलिखित उद्देश्यों से इसकी विशालता व महती आवश्यकताओं का पता लगता है-
• यह अनुमान लगाया गया था कि मानव जीनोम में लगभग 3 x 109 क्षारक युग्म हैं। इस परियोजना के प्रारम्भ में प्रति क्षारक युग्म की जानकारी का अनुमानित खर्चा 3 अमेरिकी डालर लगाया गया था, जिससे इसका पूरा अनुमानित खर्च लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (9 billion Us dollors) आँका गया था। 

• अगर इस परियोजना से प्राप्त डी.एन.ए. अनुक्रमों को मुद्रित पुस्तकों के रूप में रखा जाय तथा पुस्तक के 1000 पृष्ठों में से प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हो तब मनुष्य की एक कोशिका से प्राप्त डा.एन.ए. अनुक्रमा की जानकारी के संग्रह में ऐसी 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी। 

• इससे उत्पादित अत्यधिक विशाल आँकड़ों के संग्रह (storage), पुनः प्राप्ति (retrieval) व विश्लेषण (analysis) के लिए उच्च गति संगणन युक्तियों (high speed computational devices) की आवश्यकता का अनुभव किया गया। ह्यूमन जीनोम परियोजना से ही जीवविज्ञान की नई शाखा जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई।

• दीर्घावधि (1990 - 2003) की इस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परियोजना में यू एस डिपार्टमेण्ट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य देशों के निजी (private) व सार्वजनिक उपक्रमों (Public sector) के अनेक वैज्ञानिकों ने कार्य किया। 

मानव जीनोम परियोजना (HGP) के लक्ष्य 
एच जी पी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निम्न थे-

  1. मनुष्य के डी.एन.ए. में मिलने वाली सभी लगभग 20000 - 25000 जीनों की पहचान करना। (तब तक माना जाता था कि मनुष्य में 50,000 से 1,00,000 जीन होते है) 
  2. मानव डी.एन.ए. का निर्माण करने वाले 3 बिलियन रासायनिक क्षारक युग्मों (base pairs) का निर्धारण करना। 
  3. इस सारी जानकारी को आँकड़ों के रूप में संग्रहित करना। 
  4. आँकड़ों के विश्लेषण हेतु उपलब्ध तकनीकों में सुधार व नई तकनीको का विकास। 
  5. सम्बद्ध प्रौद्योगिकियों को अन्य उपक्रमों जैसे उद्योगों को स्थानान्तरित करना। 
  6. इस परियोजना से जुड़े नैतिक (Ethical), कानूनी (Legal) व सामाजिक (Social) मुद्दों (ई.एल एस आई ELSI) को सुलझाना।

ई एल एस आई (ELSI) 

समाज का एक वर्ग मानव जीनोम परियोजना के सरोकारों, मानवीय जीनों में उलटफेर, जैसे क्रियाकलापों के विरुद्ध है। इस वर्ग का मानना है कि मनुष्य को ईश्वर के कार्य में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को एक प्रयोगशालायी जीव बनाकर किये प्रायोगिक अनुसंधान नैतिकता के खिलाफ हैं। इसी प्रकार के नैतिक मुद्दे (ethical issues) मानव जीनोम परियोजना से जड़े हैं। इन्हीं के उल्लंघन से सामाजिक (Social) व वैधानिक (legal) मुद्दे उपजते है। जैसे

  • एक जनकीय (reproductive) मुद्दा है बच्चों के बारे में निर्णय लेने के लिए आनुवंशिक सूचना का उपयोग कर पसंद के (वांछित गुणों के) 'डिजाइनर बेबी' तैयार करना, जो नैतिकता के खिलाफ हैं। 
  • निजता के अधिकार का एक मुद्दा है आपकी आनुवंशिक सूचना किस - किस की पहुंच में हो? जीनोम बनाते समय जिन दाताओं से आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त किया, उसकी जानकारी गुप्त रखी गई थी। 
  • एक मुद्दा गुणवत्ता नियंत्रण का भी है। 

मानव जीनोम परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य 

  • मानव जीनोम परियोजना सन् 1990 में प्रारम्भ तथा 2003 में पूरी हुई। (1900 - 2003) अर्थात इसकी कुल अवधि 13 वर्ष रही। 
  • इस परियोजना का संयोजन व समन्वयन यू एस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (US Department of Energy and National Institute of Health) ने किया। 
  • इंग्लैंड (UK) का वेलकम ट्रस्ट (Wellcome Trust) इस परियोजना के प्रारम्भ में इसका प्रमुख साझेदार रहा। बाद में अन्य देशों जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य का योगदान प्राप्त हुआ। 

मानव जीनोम परियोजना (एच जी पी) का महत्व 
मानव जीनोम परियोजना विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिकों के सहयोग से सम्पन्न एक विशाल परियोजना थी, जिसने आण्विक आनुवंशिकी (Molecular Genetics) की हमारी समझ को मजबूत किया है। इसी के कारण जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) जैसी जीव विज्ञान की शाखा में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस परियोजना की उपलब्धियों को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

  1. विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाली डी.एन.ए. विभिन्नता की जानकारी से मानव की हजारों बीमारियों की जाँच, उपचार व रोकथाम में मदद मिलती है व भविष्य में और अधिक मिलने की संभावना है। 
  2. मानव जीव विज्ञान की समझ मजबूत हुई है। 
  3. अन्य जीवों के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं को समझने का अवसर मिला है। इस ज्ञान का प्रयोग चिकित्सा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरणीय सुधार आदि क्षेत्रों की चुनौतियों से निबटने में किया जा सकता है। 
  4. अनेक जीवों जैसे जीवाणु ई. कोलाई, यीस्ट, एक मुक्तजीवी गोलमि सौनोरैब्डाइटिस एलीगेंस, जो रोगकारी नहीं होता, ड्रोसोफिला, घान व एरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) जैसे पौधे के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है। इनकी मानव जीनोम से तुलना, जीव विज्ञान सम्बंधी हमारा ज्ञान समृद्ध करती है। 
  5. मानव के इतिहास, प्रवसन (Migration), विविधता के कारण, विकास आदि की समझ मजबूत हुई है। 

प्रयुक्त विधियाँ-
मानव जीनोम परियोजना को पूरा करने के लिए दो प्रमुख तरीकों का प्रयोग किया गया-
(a) अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स (Expressed Sequence Tags): चूंकि जीन पहले आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त होती हैं, अत: कोशिका में इस आर.एन.ए. का अध्ययन कर इनसे जीन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पहली विधि इसी सिद्धान्त पर आधारित थी जिसमें आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त, सभी जीनों की पहचान की गई। इसे अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स एक्सप्रेस्ड सीक्वेंस टैग्स (Expressed Sequence Tags ESTS) नाम दिया गया। 

(b) अनुक्रम टिप्पण या सीक्वेंस एनोटेशन (Sequence Annotation): इस विधि में पूरे के पूरे जीनोम के कोडिंग व गैर कोडिंग (coding or non coding) सभी भागों का अनुक्रम ज्ञात किया जाता है। बाद में इस अनुक्रम के विभिन्न क्षेत्रों को उनके काम से जोड़ा जाता है। अनुक्रम ज्ञात करने के लिए एक कोशिका से पूरे के पूरे डी.एन.ए. को पृथक कर अपेक्षाकृत छोटे - छोटे यादृच्छिक टुकड़ों (random fragments) में बदल दिया जाता है। डी.एन.ए. को छोटे - छोटे टुकड़ों में विभक्त करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि डी.एन.ए. एक बहुत बड़ा अणु है तथा इसके बड़े टुकड़ों का अनुक्रम ज्ञात करना तकनीकी सीमाओं के कारण सम्भव नहीं होता। डी.एन.ए. के छोटे - छोटे टुकड़ों को वाहक (vector) की मदद से पोषक कोशिका (host cell) में क्लोन कर लिया जाता है। क्लोनिंग से डी.एन.ए. के प्रत्येक खण्ड का पर्याप्त आवर्धन (amplification) हो जाता है। पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाने से इनका अनुक्रम सहजता से ज्ञात किया जा सकता है। पोषक के रूप में सामान्यत: यीस्ट व जीवाणुओं का जबकि वाहक के रूप में बी ए सी (BAC) अर्थात बैक्टीरियल आर्टीफीशियल क्रोमोसोम व वाई ए सी (YAC) यीस्ट आर्टीफीशियल क्रोमोसोम का प्रयोग किया गया।

डी.एन.ए. खण्डों के अनुक्रम ज्ञात करने के लिए स्वचालित डी.एन.ए. अनुक्रमक (Automated DNA Sequence) का प्रयोग हुआ। जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह वह मशीन है जो डी.एन.ए. अणु में क्षारकों का अनुक्रम ज्ञात करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह स्वचालित अनुक्रमक महान वैज्ञानिक फ्रेडेरिक सांगेर (Frederick Sanger) द्वारा विकसित सिद्धान्त पर कार्य करता है। यह वैज्ञानिक, प्रोटीनों में अमीनो अम्लों के क्रम के निर्धारण हेतु विकसित विधि के लिए भी जाने जाते हैं। प्राप्त अनुक्रमों को फिर सही क्रम में व्यवस्थित किया गया। इस हेतु इनमें उपस्थित अतिव्यापी क्षेत्रों (overlapping regions) को आधार बनाया गया। अनुक्रमण हेतु अतिव्यापी (अंशछादन) खंडों (over lapping) का उत्पादन भी किया गया। इन अनुक्रमों (sequences) को सही क्रम में व्यवस्थित करना बिना मशीनी मदद के सम्भव नहीं था। अत: विशिष्ट कम्प्यूटर आधारित कार्यक्रम विकसित किए गये। इन अनुक्रमों को बाद में इनके कार्यों से जोड़ा गया जिसे टिप्पण (Annotation) कहते हैं। क्रोमोसोम संख्या 1 के अनुक्रमों का निर्धारण मई 2006 में ही सम्पन्न हो पाया। मनुष्य के कुल 24 क्रोमोसोम 22 आटोसोम तथा x व Y क्रोमोसोमों के अनुक्रमों का निर्धारण किया गया जिनमें क्रोमोसोम 1 आखिरी था। अगला चुनौती भरा काम जीनोम के भौतिक व आनुवंशिक नक्शे तैयार करना था। रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा पहचाने जाने वाले स्थलों की बहुरूपिता (Polymorphism of restriction endonuclease recognition sites) तथा माइक्रोसैटेलाइट (Microsatellite) नामक पुनरावृत्त डी.एन.ए. अनुक्रमों (Repetitive DNA Sequences) की जानकारी के आधार पर यह चुनौती भरा कार्य भी सम्पन्न हो सका।

मानव जीनोम की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of Human Genome) 
मानव जीनोम परियोजना से प्राप्त प्रमुख प्रेक्षण निम्नलिखित है

  1. मानव जीनोम में 3164.7 मिलियन क्षारक है। 
  2. एक औसत जीन 3000 क्षारकों की बनी होती है लेकिन इनके आकार में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। मनुष्य में सबसे बड़ी ज्ञात जीन डिस्ट्रोफिन (Dystrophin) है जिसमें 2.4 मिलियन आरक मिलते हैं।
  3. जीनों की कुल संख्या अनुमानतः 30000 है जो पहले लगाये गये अनुमानों 80,000 से 1,40,000 जीनों से बहुत कम है।
  4. सभी व्यक्तियों में लगभग सभी 99.9 प्रतिशत, क्षारक समान होते हैं, अर्थात क्षारकों में मात्र 0.01 प्रतिशत अन्तर मनुष्यों में पाई जाने वाली विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी है।
  5. खोजी गई 50 प्रतिशत से अधिक जीनों का कार्य ज्ञात नहीं है। 
  6. पूरे जीनोम का 2 प्रतिशत से भी कम भाग प्रोटीन का कूटलेखन करता है।
  7. मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्त अनुक्रमों (repetitive sequence) द्वारा होता है। 
  8. पुनरावृत्त अनुक्रम, डी.एन.ए. अनुक्रमों (sequences) के ऐसे खण्ड हैं जिनकी पुनरावृत्ति अनेक बार होती है। सरल शब्दों में यह डी.एन.ए. में बार - बार दोहराए जाने वाले खण्ड हैं। अनेक बार इनकी पुनरावृत्ति सैकड़ों से लेकर हजार बार तक होती है। ऐसा माना जाता है कूटलेखन (coding) इनका प्रत्यक्ष कार्य नहीं है, लेकिन यह क्रोमोसोम की संरचना, गतिकी (dynamics) व विकास पर प्रकाश डालते हैं।
  9. सबसे अधिक जीन (2968) क्रोमोसोम संख्या 1 पर सबसे कम जीन 231 Y क्रोमोसोम पर मिलती हैं। 
  10. वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम में 1.4 मिलियन ऐसे स्थानों की पहचान की है जो केवल एक क्षारक में भिन्न होते हैं। सिर्फ एक स्थान में भिन्नता प्रदर्शन करने वाले इस गुण को एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता - सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमार्फिज्म (Single Nucleotide Polymorphism; SNPS) कहते हैं। इन्हें स्निप्स 'Snips' नाम से पुकारा जाता है। यह जानकारौ रोगों/विकारों से जुड़े अनुक्रमों की क्रोमोसोम पर स्थिति की खोज को सहज बना सकती है, साथ ही मानव इतिहास के रहस्यों को सुलझाने की प्रक्रिया में क्रांति की आशा बंधाती है।

अनुप्रयोग व भविष्य की चुनौतियों (Applications and Future Challenges) 
मानव जीनोम परियोजना के कारण आज वैज्ञानिकों के समक्ष सूचनाओं (information) का अंबार लगा है। एक - एक हजार पृष्ठों वाली 3300 विकायो में भारको के आँकड़े उपलब्ध हैं। लेकिन आने वाले दशकों में शोध की दिशा व दश इन डी.एन.ए. अनुक्रमों के आँकड़ों से, सार्थक जानकारी व ज्ञान के मस पर निर्भर करेगी। इसी ज्ञान से जैविक तंत्र सम्बंधी हमारी समझ मजबूत इस वृहद कार्य को करने के लिए दुनिया के सभी देशों के प्राइवेट व सार्वजनिक उपक्रमों के विभिन्न विषयों के हजारों - हजार वैज्ञानिकों की प्रतिभा, कौशल. रचनात्मकता व अनुभव की आवश्यकता होगी। मानव जीनोम परियोजना के प्रेक्षणों ने जीवविज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों को नये आयाम और गति प्रदान की है। पहले शोधकर्ता एक समय में एक या कुछ जीनों के अध्ययन तक सीमित रहते थे। आज, पूरे जीनोम अनुक्रमों की उपलब्धता व नई तकनीकों के बल पर हम इस सन्दर्भ में उठने वाले प्रश्नों के अधिक व्यवस्थित उत्तर व्यापक स्तर पर दे सकते है। इसी कारण जीनोम की सभी जीनों का अध्ययन सम्भव उदाहरण के लिए आज किसी ऊतक, अंग या अर्बुद (tumor) में मिलने वाले सभी अनुलेखों (transcript) का अध्ययन किया जा सकता है। साथ ही यह जाना जा सकता है कि कैसे हजारों जीन व प्रोटीन आपसी तालमेल से जीवन के रसायन को व्यवस्थित बनाये रखते है।

मानव जीनोम परियोजना का महत्व 

  • जीवन के रसायन (Chemistry of life) की बेहतर समझ विकसित होगी।
  • इसके आधार पर सूक्ष्मजीवों के जीनोम अध्ययन का पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, ईधन तकनीकों में उपयोग किया जा सकेगा। 
  • रोगों की बेहतर समझ से उनकी रोकथाम व बेहतर उपचार संभव होगा। 
  • यह मानव इतिहास, विकास व प्रवासन (migration) के अनसुलझे रहस्यों का सुलझाने का कार्य करेगा। 
  • फोरेन्सिक साइंस से जुड़ी तकनीकों में और सुधार होगा। 
  • पौधों के जीनोम अध्ययन से बेहतर रोग नियंत्रण व बेहतर उपज। 
  • वायोइन्फोमेटिक्स के प्रयोग से रोगों की पहचान, रोकथाम की जीन आधारित तकनीक का विकास।

विचारणीय बिन्दु: मानव जीनोम से यह स्पष्ट हो गया कि मनुष्य में कुल जीनों की संख्या पहले अनुमान की गई संख्या 1,00,000 से बहुत ही कम है। पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य कैसे इतनी कम जीनों से काम चला लेता है? ऐसा भी हो सकता है कि मनुष्य में जिस DNA को 'जंक DNA (June DNA) माना जाता था वह अत्यधिक काम का हो। यह संभव है कि इंट्रान की उपस्थिति एक्जानों को विभिन्न अनुक्रमों में व्यवस्थित हो सकने में सक्षम बनाती हो जिससे एक जीन से अनेक mRNA प्रोटीन बन सकते है। यह भी संभव है कि इंट्रान जोन अभिव्यक्ति के नियमन में मदद करते हो तथा यह निर्धारित करने में फीडबैक उपलब्ध कराते हों कि कौन-सी कोडिंग जीन की अभिव्यक्ति की आवश्यकता है तथा उसे कैसे प्रसंस्करित किया जाय। जीनोम की एक ऐसी नई भूमिका उभर रही है जो सेण्ट्रल डोग्मा का सिद्धान्त देने वाले वैज्ञानिकों के विचार से एकदम अलग है। आर.एन.ए. की एक नियामक अणु के रूप में कार्य करने क्षमता की खोज से इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है कि क्यों जीवों की संरचनात्मक व विकासीय जटिलता के साथ-साथ प्रोटीन को कोड करने वाली जीनों की संख्या में बढ़ोत्तरी आवश्यक नहीं। संभावनाएँ अनन्त हैं।

प्रश्न 2. 
किसी जीन में केवल एक क्षारक का उत्परिवर्तन हमेशा किसी कार्य की उपस्थिति/अनुपस्थिति के रूप में परिलक्षित नहीं हो सकता। अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए। 
उत्तर:
अगर किसी जीन में उत्परिवर्तन कोडोन के तीसरे क्षारक के स्तर पर हुआ हो तो इसके कार्य पर हमेशा असर नहीं होता। किसी कोडोन के प्रथम दो अक्षर महत्वपूर्ण होते हैं। तृतीय के बदलने से उस पर कभी - कभी कोई असर नहीं पड़ता। यही वोबेल परिकल्पना (wobble hypothesis) है। उदाहरण के लिए CCU, CCC, CCA व CCG चारों ही अमीनो अम्ल प्रोलीन को कोड करते हैं। अगर इनमें से पहला CCU बदल कर CCA हो जाये तो भी इससे बनने वाली प्रोटीन पर कोई असर नहीं होगा।

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प्रश्न 3. 
m RNA में कैपिंग व टैलिंग का क्या लाभ है?
उत्तर:
कैप, जो कि मिथाइलेटेड ग्वानोसीन की बनी होती है m RNA को a हाइडोलिटिक एंजाइमों से बचाती है। यह राइबोसोम की छोटी उपड़काई को m RNA के जुड़ने के स्थान का संकेत भी देती है। पुच्छ (Tail) जो पॉली A की बनी होती है m RNA का अपघटन रोकती है। यह m RNA को केन्द्रक से बाहर निकलने में भी मदद करती है। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
अनुवाद की प्रक्रिया की विस्तार से व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:

अनुवाद (प्रोटीन संश्लेषण) की प्रक्रिया (Process of Translation (Protein Synthesis)
अनुवाद की प्रक्रिया को निम्न चरणों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) अमीनो अम्ल का सक्रियण तथा टी - आर.एन.ए. का एमीनो एसीलेशन (Activation of amino acid and amino acylation of tRNA): प्रोटीन संश्लेषण एक उपचयी (anabolic) क्रिया है। दो अमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बंध के निर्माण हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अत: प्रोटीन संश्लेषण का सबसे पहला कार्य अमीनो अम्लों का ए टी पी (ATP) की उपस्थिति में सक्रियण (activation) है। इस प्रक्रिया में अमीनो अम्ल ए टी पी की उपस्थिति में एक एंजाइम के साथ जुड़कर अमीनो अम्ल ए एम पी एंजाइम जटिल बनाता है। यही प्रक्रिया अमीनो अम्लों का सक्रियण (Activation of amino acid) या (charging of amino acid) कहलाती है। बाद की प्रक्रिया में सक्रिय अमीनो अम्ल टी - आर.एन.ए. के 3' सिरे में जुड़ जाता है। यह प्रक्रिया एंजाइम एमीनो एसिल - टी - आर.एन.ए. सिंथेटेज (amino acyl - tRNA Synthetase) द्वारा उत्प्रेरित होती है। यह एंजाइम व टी - आर.एन.ए. अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट होते है।
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(ii) राइबोसोम की भागीदारी: राइबोसोम की छोटी उपइकाई जब एम - आर.एन.ए. के सम्पर्क में आती है तब राइबोसोमल - आर.एन.ए. के विशिष्ट अनुक्रम एम - आर.एन.ए. के प्रथम कोडोन से जुड़ जाते हैं। यह कार्य कुछ प्रारम्भन कारकों की उपस्थिति में होता है। इन दोनों के जुड़ने से ही प्रारम्भन जटिल (Initiation complex) बनना प्रारम्भ होता है। बाद में राइबोसोम की बड़ी इकाई भी इससे जुड़ जाती है जिससे सक्रिय राइबोसोम (Active ribosome) का निर्माण हो जाता है। एम - आर.एन.ए. छोटी व बड़ी राइबोसोम इकाइयों के बीच की लघु सुरंग जैसी खाँच में फिट हो जाता है।
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राइबोसोम की बड़ी उपइकाई पर अमीनो अम्ल जुड़े टी - आर.एन.ए. जुड़ने के लिए दो सक्रिय स्थल (sites) होते हैं। 
• राइबोसोम की छोटी उपइकाई एम आर.एन.ए. से इस प्रकार जुड़ी होती है कि इसका प्रथम कोडोन, जिसे प्रारम्भन कोडोन (initiator codon) कहते हैं, राइबोसोम की बड़ी उपइकाई के P स्थल के निकट होता है। 
• बड़ी इकाई का दूसरा स्थल A कहलाता है जहाँ दूसरा टी आर.एन.ए. जुड़ता है, P स्थल से अगले कोडोन का स्थल A स्थल के स्थान का परिचायक है। 

पालीपेप्टाइड शृंखला के निर्माण के निम्न चरण होते हैं-
(a) प्रारम्भन (Initiation): राइबोसोम की छोटी उपइकाई एम - आर.एन.ए. से जुड़ती है। इन दोनों के जुड़ने में एम - आर.एन.ए. पर स्थित राइबोसोमल आर.एन.ए. पहचान अनुक्रम (ribosomal RNA recognition sequence) मदद करते हैं। एक आरम्भक टी आर.एन.ए. (Initiator t - RNA) जिस पर एंटीकोडोन UAC होता है, P स्थल पर एम - आर.एन.ए. के प्रारम्भक कोडोन AUG से युग्मित हो जाता है।
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प्रारम्भन के लिए अनेक प्रारम्भन कारकों (initiator factor) की आवश्यकता होती है। अब राइबोसोम की बड़ी उपइकाई भी इससे जुड़ जाती है।

(b) दीर्धीकरण (Elongation): सही प्रकार के सक्रिय अमीनो अम्ल से जुड़ा दूसरा चार्ड (charged) टी - आर.एन.ए., एम-आर.एन.ए. के द्वितीय कोडोन से हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़ जाता है। अर्थात द्वितीय टी-आर.एन.ए: के एंटी कोडोन व एम-आर.एन.ए. के द्वितीय कोडोन हाइड्रोजन बन्ध द्वारा युग्मित हो जाते है। द्वितीय कोडोन का स्थल राइबोसोम की बड़ी उपइकाई का A स्थल होता है। अर्थात इस समय एक टी-आर.एन.ए., एम-आर.एन.ए. के प्रथम कोडोन पर (P स्थल पर) तथा दूसरा टी-आर.एन.ए., एम-आर.एन.ए. के दूसरे कोडोन (A स्थल) से जुड़ा होता है।

इन दोनों ट्रांसफर आर.एन.ए. से जुड़े अमीनो अम्ल इतने निकट होते हैं कि इनके बीच पेप्टाइड बंध (Peptide bond) बन जाता है। पेप्टाइड बंध बनने की क्रिया एंजाइम पेप्टिडिल ट्रांसफरेज (peptidyl transferase) द्वारा उत्प्रेरित होती है। यह एक राइबोजाइम है। पेप्टाइड बंध बन जाने के बाद द्वितीय टी-आर.एन.ए. जो A स्थल पर जुड़ा होता है। इस समय एक डाई पेप्टाइड धारण कर रहा होता है (डाई पेप्टाइड दो अमीनो अम्लों का बना होता है) पहला टी-आर.एन.ए. पेप्टाइड बंध बन जाने पर अपने स्थल से हट जाता है। अगले पद में टी-आर.एन.ए, जो A स्थल पर होता है खिसककर P स्थल पर आ जाता है, साथ ही साथ एम-आर.एन.ए. भी खिसकता है। टी-आर.एन.ए. का डाई पेप्टाइड के साथ A स्थल से खिसककर P स्थल तक आना ट्रांसलोकेशन (ranslocation) कहलाता है। इस कार्य के लिए GTP द्वारा ऊर्जा उपलब्ध करायी जाती है। एम आर.एन.ए. के भी आगे खिसकने से अगला खाली कोडोन A स्थल पर आ जाता है। एम-आर.एन.ए. राइबोसोम पर एक ही दिशा में गति प्रदर्शित करता है। पहला कोडोन 5' दिशा की ओर होता है। इसका अर्थ है राइबोसोम एम आर.एन.ए. पर 5' → 3' दिशा में गति करता है।

(c) समापन व पॉलीपेप्टाइड की मुक्ति (Termination and release of Polypeptide): जब एम-आर.एन.ए. का समापन कोडोन (UAA, UAG या UGA) A स्थल पर पहुंचता है तो श्रृंखला निर्माण रुक जाता है क्योंकि इन कोडोनों के लिए कोई टी-आर.एन.ए. नहीं होता।
एक प्रोटीन, जिसे मुक्ति कारक या रिलीज फैक्टर (Release factor) कहते हैं, A, स्थल पर जुड़कर पॉलीपेप्टाइड की मुक्ति में मदद करती है, राइबोसोम भी अब एम आर.एन.ए. से अलग हो जाता है। 
• यूकैरियोटिक कोशिका में आरम्भन कम से कम, कारकों जैसे eIF1, eIF2 आदि की उपस्थिति में होता है। 
.प्रोकैरियोटिक कोशिका में आरम्भन कारक IF3 जटिल है। 
• रिलीज फैक्टर को (RE1, RE2, RF3) नाम दिये गये हैं।

प्रश्न 2. 
मानव जीनोम परियोजना में प्रयोग की गई विधियों का वर्णन बो कीजिए। 
उत्तर:मानव जीनोम परियोजना या ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) 
पिछली शताब्दी में वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक पदार्थ की संरचना की खोज की, डी.एन.ए. के अर्धसंरक्षी प्रतिकृतिकरण, अनुलेखन, जेनेटिक कोड व अनुवाद जैसी महत्वपूर्ण खोजें भी उसी शताब्दी में हुई, लेकिन आनुवंशिकी के क्षेत्र में खोजों का यह सिलसिला 21 वीं शताब्दी में भी जारी रहा। 21 वीं शताब्दी में खोजें जीनोमिक्स के अध्ययन से सम्बन्धित रही है। किसी भी जीवधारी का आनुवंशिक ढांचा उसके डी.एन.ए. में क्षारकों के अनुक्रम के रूप में निहित रहता है। अगर दो जीव भिन्नता प्रदर्शित करते है तब उनके डी.एन.ए. अनुक्रम भी, कम से कम कुछ स्थानों पर भिन्न - भिन्न होने चाहिए। इसी जिज्ञासा ने मानव जीनोम के पूरे के पूरे डी.एन.ए. अनुक्रम की पहचान का मार्ग प्रशस्त किया। मनुष्य के पूरे जीनोम की खोज एक बहुत बड़ी परियोजना थी जिस पर निम्न कारणों से कार्य करना सम्भव हो सका-

  1. आनुवंशिक अभियंत्रिकी (Genetic Engineering) की तकनीके, जिनके द्वारा डी.एन.ए. के किसी भी खण्ड का पृथक्करण व क्लोनिंग सम्भव हो सकी। 
  2. डी.एन.ए. क्षारक अनुक्रम निर्धारण की सरल व शीघ्रता से सम्पन्न हो जाने वाली तकनीकों की उपलब्धता। 
  3. जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति।
    आइये कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों के अर्थ जानें-
    RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 4
  4. जीनोम (Genome) किसी जीव की कोशिका में उपस्थित जीनों का सम्पूर्ण समुच्चय (complete set of genes) ही जीनोम कहलाता है। अर्थात अगुणित क्रोमोसोम की सभी जीन जीनोम बनाती हैं।
  5. जीनोमिक्स (Genomics) विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवधारियों की जीनों (genes) का अध्ययन किया जाता है। इसमें जीव के जीनोम के सम्पूर्ण डी.एन.ए. के अनुक्रमों का अध्ययन भी शामिल है। 
  6. जैव सूचना विज्ञान या बायोइन्फोमेटिक्स (Bioinformatics) जीनोम के अध्ययन में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी का प्रयोग बायोइन्फोमेटिक्स कहलाता है। जीनोमिक्स व प्रोटियोमिक्स में असंशोधित या कच्चे आँकड़े उत्पन्न होते हैं। कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी की मदद से किये गये इन असंशोधित या कच्चे आँकड़ों (data) के विश्लेषण से इस डेटा के महत्त्वपूर्ण रुझान प्राप्त होते हैं। 
  7. प्रोटियोमिक्स (Proteomics) कोशिकीय प्रोटीनों की संरचना, कार्य व पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन प्रोटियोमिक्स कहलाता है। 
  8. प्रोटिओम (Proteome) किसी कोशिका की जैविक रूप से सक्रिय प्रोटीनों का पूर्ण समुच्चय (set)।

मानव जीनोम परियोजना के उद्देश्य (Aims of Human Genome Project) 
मानव जीनोम परियोजना एक महायोजना (Mega project) थी। इसके निम्नलिखित उद्देश्यों से इसकी विशालता व महती आवश्यकताओं का पता लगता है-

  1. यह अनुमान लगाया गया था कि मानव जीनोम में लगभग 3 x 109 क्षारक युग्म हैं। इस परियोजना के प्रारम्भ में प्रति क्षारक युग्म की जानकारी का अनुमानित खर्चा 3 अमेरिकी डालर लगाया गया था, जिससे इसका पूरा अनुमानित खर्च लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (9 billion Us dollors) आँका गया था। 
  2. अगर इस परियोजना से प्राप्त डी.एन.ए. अनुक्रमों को मुद्रित पुस्तकों के रूप में रखा जाय तथा पुस्तक के 1000 पृष्ठों में से प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हो तब मनुष्य की एक कोशिका से प्राप्त डा.एन.ए. अनुक्रमा की जानकारी के संग्रह में ऐसी 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी। 
  3. इससे उत्पादित अत्यधिक विशाल आँकड़ों के संग्रह (storage), पुनः प्राप्ति (retrieval) व विश्लेषण (analysis) के लिए उच्च गति संगणन युक्तियों (high speed computational devices) की आवश्यकता का अनुभव किया गया। ह्यूमन जीनोम परियोजना से ही जीवविज्ञान की नई शाखा जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
  4. दीर्घावधि (1990 - 2003) की इस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परियोजना में यू एस डिपार्टमेण्ट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य देशों के निजी (private) व सार्वजनिक उपक्रमों (Public sector) के अनेक वैज्ञानिकों ने कार्य किया। 

मानव जीनोम परियोजना (HGP) के लक्ष्य 
एच जी पी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निम्न थे-

  1. मनुष्य के डी.एन.ए. में मिलने वाली सभी लगभग 20000 - 25000 जीनों की पहचान करना। (तब तक माना जाता था कि मनुष्य में 50,000 से 1,00,000 जीन होते है) 
  2. मानव डी.एन.ए. का निर्माण करने वाले 3 बिलियन रासायनिक क्षारक युग्मों (base pairs) का निर्धारण करना। 
  3. इस सारी जानकारी को आँकड़ों के रूप में संग्रहित करना। 
  4. आँकड़ों के विश्लेषण हेतु उपलब्ध तकनीकों में सुधार व नई तकनीको का विकास। 
  5. सम्बद्ध प्रौद्योगिकियों को अन्य उपक्रमों जैसे उद्योगों को स्थानान्तरित करना। 
  6. इस परियोजना से जुड़े नैतिक (Ethical), कानूनी (Legal) व सामाजिक (Social) मुद्दों (ई.एल एस आई ELSI) को सुलझाना।

ई एल एस आई (ELSI) 
समाज का एक वर्ग मानव जीनोम परियोजना के सरोकारों, मानवीय जीनों में उलटफेर, जैसे क्रियाकलापों के विरुद्ध है। इस वर्ग का मानना है कि मनुष्य को ईश्वर के कार्य में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को एक प्रयोगशालायी जीव बनाकर किये प्रायोगिक अनुसंधान नैतिकता के खिलाफ हैं। इसी प्रकार के नैतिक मुद्दे (ethical issues) मानव जीनोम परियोजना से जड़े हैं। इन्हीं के उल्लंघन से सामाजिक (Social) व वैधानिक (legal) मुद्दे उपजते है। जैसे

  • एक जनकीय (reproductive) मुद्दा है बच्चों के बारे में निर्णय लेने के लिए आनुवंशिक सूचना का उपयोग कर पसंद के (वांछित गुणों के) 'डिजाइनर बेबी' तैयार करना, जो नैतिकता के खिलाफ हैं। 
  • निजता के अधिकार का एक मुद्दा है आपकी आनुवंशिक सूचना किस - किस की पहुंच में हो? जीनोम बनाते समय जिन दाताओं से आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त किया, उसकी जानकारी गुप्त रखी गई थी। 
  • एक मुद्दा गुणवत्ता नियंत्रण का भी है। 
    मानव जीनोम परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य 
  • मानव जीनोम परियोजना सन् 1990 में प्रारम्भ तथा 2003 में पूरी हुई। (1900 - 2003) अर्थात इसकी कुल अवधि 13 वर्ष रही। 
  • इस परियोजना का संयोजन व समन्वयन यू एस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (US Department of Energy and National Institute of Health) ने किया। 
  • इंग्लैंड (UK) का वेलकम ट्रस्ट (Wellcome Trust) इस परियोजना के प्रारम्भ में इसका प्रमुख साझेदार रहा। बाद में अन्य देशों जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य का योगदान प्राप्त हुआ। 

मानव जीनोम परियोजना (एच जी पी) का महत्व 
मानव जीनोम परियोजना विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिकों के सहयोग से सम्पन्न एक विशाल परियोजना थी, जिसने आण्विक आनुवंशिकी (Molecular Genetics) की हमारी समझ को मजबूत किया है। इसी के कारण जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) जैसी जीव विज्ञान की शाखा में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस परियोजना की उपलब्धियों को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

  • विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाली डी.एन.ए. विभिन्नता की जानकारी से मानव की हजारों बीमारियों की जाँच, उपचार व रोकथाम में मदद मिलती है व भविष्य में और अधिक मिलने की संभावना है। 
  • मानव जीव विज्ञान की समझ मजबूत हुई है। 
  • अन्य जीवों के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं को समझने का अवसर मिला है। इस ज्ञान का प्रयोग चिकित्सा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरणीय सुधार आदि क्षेत्रों की चुनौतियों से निबटने में किया जा सकता है। 
  • अनेक जीवों जैसे जीवाणु ई. कोलाई, यीस्ट, एक मुक्तजीवी गोलमि सौनोरैब्डाइटिस एलीगेंस, जो रोगकारी नहीं होता, ड्रोसोफिला, घान व एरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) जैसे पौधे के डी.एन.ए. अनुक्रमों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है। इनकी मानव जीनोम से तुलना, जीव विज्ञान सम्बंधी हमारा ज्ञान समृद्ध करती है। 
  • मानव के इतिहास, प्रवसन (Migration), विविधता के कारण, विकास आदि की समझ मजबूत हुई है। 

प्रयुक्त विधियाँ-
मानव जीनोम परियोजना को पूरा करने के लिए दो प्रमुख तरीकों का प्रयोग किया गया-
(a) अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स (Expressed Sequence Tags): चूंकि जीन पहले आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त होती हैं, अत: कोशिका में इस आर.एन.ए. का अध्ययन कर इनसे जीन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पहली विधि इसी सिद्धान्त पर आधारित थी जिसमें आर.एन.ए. के रूप में अभिव्यक्त, सभी जीनों की पहचान की गई। इसे अभिव्यक्त अनुक्रम टैग्स एक्सप्रेस्ड सीक्वेंस टैग्स (Expressed Sequence Tags ESTS) नाम दिया गया। 

(b) अनुक्रम टिप्पण या सीक्वेंस एनोटेशन (Sequence Annotation): इस विधि में पूरे के पूरे जीनोम के कोडिंग व गैर कोडिंग (coding or non coding) सभी भागों का अनुक्रम ज्ञात किया जाता है। बाद में इस अनुक्रम के विभिन्न क्षेत्रों को उनके काम से जोड़ा जाता है। अनुक्रम ज्ञात करने के लिए एक कोशिका से पूरे के पूरे डी.एन.ए. को पृथक कर अपेक्षाकृत छोटे - छोटे यादृच्छिक टुकड़ों (random fragments) में बदल दिया जाता है। डी.एन.ए. को छोटे - छोटे टुकड़ों में विभक्त करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि डी.एन.ए. एक बहुत बड़ा अणु है तथा इसके बड़े टुकड़ों का अनुक्रम ज्ञात करना तकनीकी सीमाओं के कारण सम्भव नहीं होता। डी.एन.ए. के छोटे - छोटे टुकड़ों को वाहक (vector) की मदद से पोषक कोशिका (host cell) में क्लोन कर लिया जाता है। क्लोनिंग से डी.एन.ए. के प्रत्येक खण्ड का पर्याप्त आवर्धन (amplification) हो जाता है। पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाने से इनका अनुक्रम सहजता से ज्ञात किया जा सकता है। पोषक के रूप में सामान्यत: यीस्ट व जीवाणुओं का जबकि वाहक के रूप में बी ए सी (BAC) अर्थात बैक्टीरियल आर्टीफीशियल क्रोमोसोम व वाई ए सी (YAC) यीस्ट आर्टीफीशियल क्रोमोसोम का प्रयोग किया गया।
डी.एन.ए. खण्डों के अनुक्रम ज्ञात करने के लिए स्वचालित डी.एन.ए. अनुक्रमक (Automated DNA Sequence) का प्रयोग हुआ। जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह वह मशीन है जो डी.एन.ए. अणु में क्षारकों का अनुक्रम ज्ञात करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह स्वचालित अनुक्रमक महान वैज्ञानिक फ्रेडेरिक सांगेर (Frederick Sanger) द्वारा विकसित सिद्धान्त पर कार्य करता है।

यह वैज्ञानिक, प्रोटीनों में अमीनो अम्लों के क्रम के निर्धारण हेतु विकसित विधि के लिए भी जाने जाते हैं। प्राप्त अनुक्रमों को फिर सही क्रम में व्यवस्थित किया गया। इस हेतु इनमें उपस्थित अतिव्यापी क्षेत्रों (overlapping regions) को आधार बनाया गया। अनुक्रमण हेतु अतिव्यापी (अंशछादन) खंडों (over lapping) का उत्पादन भी किया गया। इन अनुक्रमों (sequences) को सही क्रम में व्यवस्थित करना बिना मशीनी मदद के सम्भव नहीं था। अत: विशिष्ट कम्प्यूटर आधारित कार्यक्रम विकसित किए गये। इन अनुक्रमों को बाद में इनके कार्यों से जोड़ा गया जिसे टिप्पण (Annotation) कहते हैं। क्रोमोसोम संख्या 1 के अनुक्रमों का निर्धारण मई 2006 में ही सम्पन्न हो पाया। मनुष्य के कुल 24 क्रोमोसोम 22 आटोसोम तथा x व Y क्रोमोसोमों के अनुक्रमों का निर्धारण किया गया जिनमें क्रोमोसोम 1 आखिरी था। अगला चुनौती भरा काम जीनोम के भौतिक व आनुवंशिक नक्शे तैयार करना था। रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा पहचाने जाने वाले स्थलों की बहुरूपिता (Polymorphism of restriction endonuclease recognition sites) तथा माइक्रोसैटेलाइट (Microsatellite) नामक पुनरावृत्त डी.एन.ए. अनुक्रमों (Repetitive DNA Sequences) की जानकारी के आधार पर यह चुनौती भरा कार्य भी सम्पन्न हो सका।

मानव जीनोम की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of Human Genome) 
मानव जीनोम परियोजना से प्राप्त प्रमुख प्रेक्षण निम्नलिखित है
1. मानव जीनोम में 3164.7 मिलियन क्षारक है। 

2. एक औसत जीन 3000 क्षारकों की बनी होती है लेकिन इनके आकार में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। मनुष्य में सबसे बड़ी ज्ञात जीन डिस्ट्रोफिन (Dystrophin) है जिसमें 2.4 मिलियन आरक मिलते हैं।

3. जीनों की कुल संख्या अनुमानतः 30000 है जो पहले लगाये गये अनुमानों 80,000 से 1,40,000 जीनों से बहुत कम है।

4. सभी व्यक्तियों में लगभग सभी 99.9 प्रतिशत, क्षारक समान होते हैं, अर्थात क्षारकों में मात्र 0.01 प्रतिशत अन्तर मनुष्यों में पाई जाने वाली विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी है।

5. खोजी गई 50 प्रतिशत से अधिक जीनों का कार्य ज्ञात नहीं है। 

6. पूरे जीनोम का 2 प्रतिशत से भी कम भाग प्रोटीन का कूटलेखन करता है।

7. मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्त अनुक्रमों (repetitive sequence) द्वारा होता है। 

8. पुनरावृत्त अनुक्रम, डी.एन.ए. अनुक्रमों (sequences) के ऐसे खण्ड हैं जिनकी पुनरावृत्ति अनेक बार होती है। सरल शब्दों में यह डी.एन.ए. में बार - बार दोहराए जाने वाले खण्ड हैं। अनेक बार इनकी पुनरावृत्ति सैकड़ों से लेकर हजार बार तक होती है। ऐसा माना जाता है कूटलेखन (coding) इनका प्रत्यक्ष कार्य नहीं है, लेकिन यह क्रोमोसोम की संरचना, गतिकी (dynamics) व विकास पर प्रकाश डालते हैं।

9. सबसे अधिक जीन (2968) क्रोमोसोम संख्या 1 पर सबसे कम जीन 231 Y क्रोमोसोम पर मिलती हैं। 

10. वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम में 1.4 मिलियन ऐसे स्थानों की पहचान की है जो केवल एक क्षारक में भिन्न होते हैं। सिर्फ एक स्थान में भिन्नता प्रदर्शन करने वाले इस गुण को एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता - सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमार्फिज्म (Single Nucleotide Polymorphism; SNPS) कहते हैं। इन्हें स्निप्स 'Snips' नाम से पुकारा जाता है। यह जानकारौ रोगों/विकारों से जुड़े अनुक्रमों की क्रोमोसोम पर स्थिति की खोज को सहज बना सकती है, साथ ही मानव इतिहास के रहस्यों को सुलझाने की प्रक्रिया में क्रांति की आशा बंधाती है।

अनुप्रयोग व भविष्य की चुनौतियों (Applications and Future Challenges) 
मानव जीनोम परियोजना के कारण आज वैज्ञानिकों के समक्ष सूचनाओं (information) का अंबार लगा है। एक - एक हजार पृष्ठों वाली 3300 विकायो में भारको के आँकड़े उपलब्ध हैं। लेकिन आने वाले दशकों में शोध की दिशा व दश इन डी.एन.ए. अनुक्रमों के आँकड़ों से, सार्थक जानकारी व ज्ञान के मस पर निर्भर करेगी। इसी ज्ञान से जैविक तंत्र सम्बंधी हमारी समझ मजबूत इस वृहद कार्य को करने के लिए दुनिया के सभी देशों के प्राइवेट व सार्वजनिक उपक्रमों के विभिन्न विषयों के हजारों - हजार वैज्ञानिकों की प्रतिभा, कौशल. रचनात्मकता व अनुभव की आवश्यकता होगी। मानव जीनोम परियोजना के प्रेक्षणों ने जीवविज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों को नये आयाम और गति प्रदान की है। पहले शोधकर्ता एक समय में एक या कुछ जीनों के अध्ययन तक सीमित रहते थे। आज, पूरे जीनोम अनुक्रमों की उपलब्धता व नई तकनीकों के बल पर हम इस सन्दर्भ में उठने वाले प्रश्नों के अधिक व्यवस्थित उत्तर व्यापक स्तर पर दे सकते है। इसी कारण जीनोम की सभी जीनों का अध्ययन सम्भव उदाहरण के लिए आज किसी ऊतक, अंग या अर्बुद (tumor) में मिलने वाले सभी अनुलेखों (transcript) का अध्ययन किया जा सकता है। साथ ही यह जाना जा सकता है कि कैसे हजारों जीन व प्रोटीन आपसी तालमेल से जीवन के रसायन को व्यवस्थित बनाये रखते है।

मानव जीनोम परियोजना का महत्व 

  • जीवन के रसायन (Chemistry of life) की बेहतर समझ विकसित होगी।
  • इसके आधार पर सूक्ष्मजीवों के जीनोम अध्ययन का पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, ईधन तकनीकों में उपयोग किया जा सकेगा। 
  • रोगों की बेहतर समझ से उनकी रोकथाम व बेहतर उपचार संभव होगा। 
  • यह मानव इतिहास, विकास व प्रवासन (migration) के अनसुलझे रहस्यों का सुलझाने का कार्य करेगा। 
  • फोरेन्सिक साइंस से जुड़ी तकनीकों में और सुधार होगा। 
  • पौधों के जीनोम अध्ययन से बेहतर रोग नियंत्रण व बेहतर उपज। 
  • वायोइन्फोमेटिक्स के प्रयोग से रोगों की पहचान, रोकथाम की जीन आधारित तकनीक का विकास।

विचारणीय बिन्दु: मानव जीनोम से यह स्पष्ट हो गया कि मनुष्य में कुल जीनों की संख्या पहले अनुमान की गई संख्या 1,00,000 से बहुत ही कम है। पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य कैसे इतनी कम जीनों से काम चला लेता है? ऐसा भी हो सकता है कि मनुष्य में जिस DNA को 'जंक DNA (June DNA) माना जाता था वह अत्यधिक काम का हो। यह संभव है कि इंट्रान की उपस्थिति एक्जानों को विभिन्न अनुक्रमों में व्यवस्थित हो सकने में सक्षम बनाती हो जिससे एक जीन से अनेक mRNA प्रोटीन बन सकते है। यह भी संभव है कि इंट्रान जोन अभिव्यक्ति के नियमन में मदद करते हो तथा यह निर्धारित करने में फीडबैक उपलब्ध कराते हों कि कौन-सी कोडिंग जीन की अभिव्यक्ति की आवश्यकता है तथा उसे कैसे प्रसंस्करित किया जाय। जीनोम की एक ऐसी नई भूमिका उभर रही है जो सेण्ट्रल डोग्मा का सिद्धान्त देने वाले वैज्ञानिकों के विचार से एकदम अलग है। आर.एन.ए. की एक नियामक अणु के रूप में कार्य करने क्षमता की खोज से इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है कि क्यों जीवों की संरचनात्मक व विकासीय जटिलता के साथ-साथ प्रोटीन को कोड करने वाली जीनों की संख्या में बढ़ोत्तरी आवश्यक नहीं। संभावनाएँ अनन्त हैं।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार

प्रश्न 3. 
लैक ओपेरॉन की परिभाषा दीजिए तथा एक उदाहरण देते हुए एक प्रेरकीय (Inducible operon) का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:लैक ओपेरान The Lar Operon
फ्रांसीसी आनुवंशिकीविद् फ्रेंकोइस जेकब (Francois Jacob) व वहीं के जैव रसायन विज्ञानी जेकब मोनोड (Jacque Monod) ने जीवाणु एश्चौरीचिया कोलाई (E. coli) के उपापचय पर किये अपने गहन अध्ययनों से निष्कर्ष निकाला कि आनुवंशिक पदार्थ में ओपेरान (Operon) नामक नियामक जीन इकाइयाँ होती है।

परिभाषा (Definition) 
एक ओपेरान (Operon), एक या अधिक संरचनात्मक जीन, एक संचालक जीन, एक प्रमोटर जीन, एक नियामक जीन से बना डी.एन.ए. का वह भाग ह जो एक इकाई के रूप में कार्य करता है। इसकी क्रिया बाहर से उपलब्ध एक दमनकारी या प्रेरक/सह, प्रेरक पर निर्भर करती है। जीवाणुओं की पॉलीसिस्ट्रानिक (polycistronic) संरचनात्मक जीन, एक साझे (common) प्रमोटर व नियामक जीनों से नियंत्रित होती है। आनुवंशिक पदार्थ की ऐसी इकाइयाँ ओपेरॉन (operon) कहलाती हैं।

उदाहरण के लिए लैक ओपेरान, टुप ओपेरान (trp operon), एरा ओपेरॉन (ara operon), हिस ओपेरान (his operon), वेल ओपेरान (val operon) etc. 
लैक ओपेरान निम्न घटकों से बना होता है-

  1. 3 संरचनात्मक जीन (Structural genes) 
  2. एक ओपरेटर क्षेत्र (An operator region) 
  3. एक प्रमोटर क्षेत्र (Apromoter region) 
  4. नियामक जीन (Regulatory gene) 

संरचनात्मक जीन (Structural Genes) 
लैक ओपेरान तीन संरचनात्मक जीनों (z, y व a) का बना होता है जो एक साथ अनुलेखित होती है अर्थात पॉलीसिस्ट्रानिक (polycistronic) होती हैं। डी.एन.ए. पर सबसे पहले नियामक जीन, फिर प्रमोटर क्षेत्र तथा उससे लगा हुआ ओपरेटर क्षेत्र होता है। संरचनात्मक जीन ओपरेटर के ठीक आगे स्थित होती है।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 22

तीन संरचनात्मक जीनों के कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. जीन z एंजाइम बीटा गैलेक्टोसाइडेज (ß - galactosidase) को कोड करती है। यह एंजाइम लैक्टोज अणु को इसकी मोनोमर इकाइयों ग्लूकोज व गैलेक्टोज में तोड़ देता है।
    RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 23
  2. जीन y, एंजाइम परमिऐज (Permease) के निर्माण के लिए उत्तरदायी है। यह एंजाइम कोशिका की लैक्टोज के लिए पारगम्यता (Permeability) बढ़ा देता है अर्थात यह एंजाइम कोशिका को लैक्टोज ग्रहण करने में सक्षम बनाता है। 
  3. जीन a यह जौन, ट्रांसएसीटाइलेज एंजाइम को कोड करती है। लैक्टोज के उपापचय के लिए इन तीनों संरचनात्मक जीनों के उत्पादों की आवश्यकता होती है। 

(i) ओपरेटर (An Operator): संरचनात्मक जीनों से जुड़ा वह क्षेत्र जो ओपेरॉन के स्विच की तरह कार्य करता है, ओपरेटर कहलाता है तथा संरचनात्मक जीनों के पास ही स्थित होता है। यह दमनकारी या मंदक की उपस्थिति में अनुलेखन को स्विच ऑफ (switch off) कर देता है।

(ii) प्रमोटर (Promotor): यह जीन का वह भाग है जिससे अनुलेखन के समय आर.एन.ए. पॉलीमरेज जुड़कर अनुलेखन प्रारम्भ करता है। 

(iii) नियामक जीन (Regulatory gene) या आई जीन (igene): आई शब्द यहाँ इनहिबिटर (inhibitor) या संदमक के लिए प्रयोग किया गया है इन्ड्यु सर (inducer) या प्रेरक के लिए नहीं। आई जीन (नियामक जीन) इस लैक ओपेरान के दमनकारी (repressor) को कोड करती है। 

लैक ओपेरान की कार्य प्रणाली (Working of lac operon) 
जब संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन नहीं होता व इनके उत्पाद नहीं बनते, उस समय ओपेरॉन को स्विच ऑफ (switch off) कहा जाता है। लेकिन स्विच ऑन अवस्था में अनुलेखन प्रारम्भ हो जाता है तथा इनके उत्पाद बनने लगते हैं। 

लैक्टोज की अनुपस्थिति (Absence of Lactose): लैक्टोज, इस ओपेरॉन को स्विच ऑन व स्विच ऑफ कर नियंत्रित करता है। जब जीवाण के सम्वर्धन माध्यम में लैक्टोज नहीं होता तब लैक्टोज के उपापचय (metabolism) से सम्बंधित इन संरचनात्मक जीनों (z, y, a) के उत्पाद की आवश्यकता नहीं होती। इस स्थिति में नियामक जीन i का दमनकारी (repressor) उत्पाद ओपेरेटर जीन से जुड़ जाता है। ओपेरान का दमनकारी आई जीन द्वारा हर समय बनता रहता है। इसके ओपेरेटर से जुड़ने से आर.एन.ए. पॉलीमेरेज का मार्ग रुक जाता है तथा वह संरचनात्मक जीनों का अनुलेखन नहीं कर पाता। जीवाणु कोशिका के संसाधनों व ऊर्जा की बचत के लिए यह आवश्यक भी है। दूसरे अनावश्यक व अतिरिक्त जैव रसायनों के कारण कोशिका का उपापचय भी गड़बड़ा जाता है। 

लैक्टोज की उपस्थिति (Presence of Lactose): जब जीवाणु के सम्वर्धन माध्यम में ग्लुकोज जैसे प्राथमिक कार्बन स्रोत की अनुपस्थिति में लैक्टोज उपलब्ध कराया जाता है, तब कुछ लैक्टोज अणु जीवाणु कोशिका के अन्दर पहुंच जाते हैं। ऐसा परमिऐज एंजाइम द्वारा जीवाणु कोशिका की लैक्टोज के प्रति पारगम्यता (permeability) बढ़ा देने के कारण होता है। एक अत्यंत धीमे स्तर पर लैक ओपेरॉन की जीनों की अभिव्यक्ति के कारण ही परमिऐज एंजाइम के कुछ अणु हर समय कोशिका में उपलब्ध रहते है अन्यथा लैक्टोज जैसे डाइसैकेराइड का जीवाणु कोशिका में प्रवेश सम्भव नहीं होता। लैक्टोज, जीवाणु कोशिका में दमनकारी (repressor) से क्रिया कर उसे असक्रिय (inactive) बना देता है। असक्रिय दमनकारी ओपरेटर से जुड़ने में सक्षम नहीं होता अतः आर.एन.ए. पॉलीमरेज प्रमोटर से जुड़कर - अनुलेखन प्रारम्भ कर देता है। अत: लैक्टोज को प्रेरक (inducer) कहा जाता है। यही ओपरेटर के स्विच ऑन व स्विच ऑफ के लिए उत्तरदायी होता है। स्पष्ट है लैक ओपेरॉन का नियमन, इसके आधारी पदार्थ (substrate) द्वारा एंजाइम संश्लेषण के नियमन के रूप में भी देखा जाता है। ग्लूकोज व गैलेक्टोज लैक ओपेरान के प्रेरक के रूप में कार्य नहीं कर सकते। इस प्रकार दमनकारी पदार्थ (repressor) द्वारा हुए लैक ओपेरान के नियमन को ऋणात्मक नियमन (negative regulation) कहा जाता है। लैक ओपेरान एक धनात्मक नियमन के रूप में भी कार्य करता है लेकिन इस स्तर पर उसकी चर्चा सम्भव नहीं।

प्रश्न 4. 
यूकैरियोटिक कोशिका के m RNA में होने वाले पश्च अनुलेखन रूपान्तरणों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:अनुलेखित आर.एन.ए. का प्रसंस्करण (Processing of transcribed RNA) 
जीवाणुओं में अनुलेखन से बने आर.एन.ए. को सक्रिय बनने के लिए किसी प्रसंस्करण (processing) की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही जीवाणुओं में सुस्पष्ट केन्द्रक नहीं होता तथा केन्द्रक कला का अभाव होता है अत: अनुलेखन व अनुवाद दोनों ही एक ही कक्ष (chamber) में सम्पन्न होते हैं। कभी - कभी पूर्ण अनुलेखित आर.एन.ए. के मुक्त होने से पहले ही उसके में स्वतंत्र भाग पर अनुवाद की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। अत: कोशिकाद्रव्य व में केन्द्रक में भिन्नन न हो पाने के कारण प्रोकैरियोट्स में अनुलेखन व अनुवाद: साथ-साथ सम्पन्न हो सकते हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार 29

यूकैरियोटिक कोशिकाओं में दो अतिरिक्त जटिलताएँ होती हैं-
(i) यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अंगकों (organelles) जैसे माइटोकान्ड्रिया में पाये जाने वाले आर.एन.ए. पॉलीमरेज के अतिरिक्त केन्द्रक में तीन भिन्न प्रकार के आर.एन.ए. पॉलीमरेज पाये जाते हैं। 

  • आर.एन.ए. पॉलीमरेज I: राइबोसोमल आर.एन.ए. के अनुलेखन का प्रेरण करता है।
  • आर.एन.ए. पॉलीमरेज II: मैसेन्जर आर.एन.ए. के पूर्ववती (precursor) का अनुलेखन करता है। यह आर.एन.ए. विषमांगी केन्द्रकीय आर.एन.ए. हेटेरोजेनस न्यूक्लियर आर.एन.ए. (Heterogenous Nuclear RNA Chn RNA) कहलाता है। 
  • आर.एन.ए. पॉलीमरेज III यह आर.एन.ए. पॉलीमरेज ट्रांसफर आर.एन.ए. (ERNA), 5 Sr RNA व SnRNA (स्मॉल न्यूक्लियर आर.एन.ए.) के अनुलेखन के लिए उत्तरदायी है। 

(ii) यूकैरियोट्स के अनुलेखन में दूसरी जटिलता यह है कि प्रारम्भिक अनुलेख (Primary transcript) में एक्सॉन व इंट्रान दोनों ही होते है अत: यह अक्रियाशील (non functional) होती है। अतः इस प्राथमिक अनुलेख का सम्बंधन या स्प्लाइसिंग (splicing) आवश्यक होता है। स्लाइसिंग वह प्रक्रिया है जिसमें प्रारम्भिक अनुलेख में से इंटानों को काट कर निकाल दिया जाता है तथा एक्सॉनों को सही क्रम में जोड़ दिया जाता है।
यूकैरियोट्स में RNA की स्प्लाइसिंग स्प्लाइसिओसोम (Spliceosomes) से होती है। स्लाइसिओसोम वह जटिल है। जिनमें अनेक राइबोन्यूक्लिओ प्रोटीन होती हैं। स्प्लाइसिओसोम प्राथमिक आर.एन.ए. के इंट्रान को काटकर नजदीकी एक्सानों को पुनः जोड़ देता है। प्रसंस्कारित (processed) mRNA जो अनुवाद के लिए तैयार हैं परिपक्व आर.एन.ए. कहलाता है। विषमांगी केन्द्रकीय आर.एन.ए. (hnRNA) में दो अन्य प्रक्रियाएँ भी होती हैं, यह है आच्छादन या कैपिंग तथा पुच्छन या टेलिंग। आच्छादन या कैपिंग (capping) विषमांगी केन्द्रकीय आर.एन.ए. ChnRNA) के 5' सिरे की ओर एक असामान्य, न्यूक्लियोटाइड मिथाइल ग्वानोसीन ट्राईफास्फेट (methyl guanosine triphosphate) का जुड़ना कैपिंग कहलाता है। अर्थात कैप एक रूपान्तरित ग्वानीन न्यूक्लियोटाइड है। यह अनुवाद या प्रोटीन संश्लेषण के समय राइबोसोम के जुड़ने में मदद करती है। 

पुच्छन या टेलिंग (Tailing): hnRNA के 3' सिरे का बहुएडीनाइलेशन (polhyadenylation) टेलिंग कहलाता है। अर्थात यह वह प्रक्रिया है जिसमें hnRNA के 3' सिरे पर 200-300 एडीनीन (A) न्यूक्लियोटाइड जुड़ जाते हैं। यह बहु A पुच्छ (Poly A tail) mRNA की केन्द्रक से बाहर आने में मदद करती है। साथ ही यह mRNA के एंजाइमों द्वारा हो सकने वाले अपघटन को रोकती है। पूर्ण रूप से प्रसंस्कारित hnRNA जिसे अब मैसेन्जर आर.एन.ए. (mRNA) कहते हैं अनुवाद के लिए अब केन्द्रक से बाहर आता है। इन जटिलताओं का महत्त्व अब वैज्ञानिक जानने लगे हैं। विखंडित जीन विन्यास संभवत: जीनोम का एक प्राचीन गुण है। इंट्रानों की उपस्थिति इनकी प्राचीनता इंगित करती है तथा स्प्लाइसिंग की प्रक्रिया आर.एन.ए. संसार के प्रभावी होने की परिचायक है। ऐसे आर.एन.ए. जिनमें उत्प्रेरण की क्षमता होती है राइबोजाइम (ribozymes) कहलाते हैं। प्रौकरियोटिक व यूकैरियोटिक दोनों प्रकार की कोशिकाओं में राइबोजाइम की उपस्थिति यह स्पष्ट संकेत देती है कि कोशिका के विकासीय इतिहास में आर.एन.ए., डी.एन.ए. से पहले आये होंगे।

Bhagya
Last Updated on Dec. 4, 2023, 10:06 a.m.
Published Dec. 3, 2023