RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Chapter 16 Important Questions पर्यावरण के मुद्दे

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
मोटरगाड़ियों में ईधन के रूप में सीसा रहित पेट्रोल प्रयोग करने के दो लाभों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर

  • सीसा रहित (lead free) पेट्रोल प्रयोग करने से वाहन से होने वाले प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है (सीसा, जोकि घातक प्रदूषक है, मुक्त नहीं होता।) 
  • कैटेलिक कनवर्टर (उत्प्रेरक परिवर्तक) की सक्रियता बनी रहती है। 

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प्रश्न 2. 
उतोरकी परिवर्तकों (कैटेलिटिक कनवर्टरों) से लैस मोटर वाहनों के लिए सीसारहित पेट्रोल के उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर:
क्योकि पेट्रोल में सीसा कैटेलिटिक कनवर्टरों के उतारेक (catalyst) को निष्क्रिय कर देता है। 

प्रश्न 3. 
अच्छी ओजोन कहाँ स्थित होती है? इसे अच्छी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
अच्छी ओजोन वायुमण्डल के स्ट्रेटोस्फीयर (stratosphere) भाग में उपस्थित होती है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी पर जीवन के लिए एक सुरक्षात्मक आवरण का कार्य करती है, अत: अच्छी कहलाती है। 

प्रश्न 4. 
वायुमण्डल में उपस्थित चार ग्रीन हाउस गैसों के नाम दीजिए।
उत्तर:
कार्बन डाइ ऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व क्लोरोफ्लुओरो कार्बन।

प्रश्न 5. 
त्वरित सुपोषण क्या है?
उत्तर:
घरों व उद्योगों के बहि:स्राव में उपस्थित प्रदूषको (पोषकों जैसे नाइट्रेट व फॉस्फेट) के कारण सुपोषण (eutrophication) की प्रक्रिया में आई तेजी त्वरित सुपोषण कहलाती है। इससे जलाशय में काल प्रभावन (aging) बहुत तेजी से होता है। इसे कल्चरल बूट्रोफिकेशन भी कहते हैं। 

प्रश्न 6. 
पर्यावरण पर वनोन्मूलन से पड़ने वाला एक कुप्रभाव बताइये?
उत्तर:
वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैस, कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि। 

प्रश्न 7. 
स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
उत्प्रेरक परिवर्तक (catalytic converter) हानिकारक प्रदूषकों को कम हानिकारक या हानिरहित पदार्थों में बदल देते हैं। जैसे - हाइड्रोकार्बन्स को CO2 व जल में, CO को CO2 में तथा नाइट्रिक ऑक्साइड को नाइट्रोजन में।

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प्रश्न 8. 
स्वचालित वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का उपयोग क्यों करना चाहिए?
उत्तर:

  • सीसा रहित (lead free) पेट्रोल प्रयोग करने से वाहन से होने वाले प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है (सीसा, जोकि घातक प्रदूषक है, मुक्त नहीं होता।) 
  • कैटेलिक कनवर्टर (उत्प्रेरक परिवर्तक) की सक्रियता बनी रहती है

प्रश्न 9. 
जल के उचित निकास के बिना सिंचाई, फसल की वृद्धि के लिए नुकसानदेह है? क्यों?
उत्तर:
यह जलाक्रांत (water logging) उत्पन्न कर देती है। इसके कारण मृदा के लवण भूमि की सतह पर आकर एक परत के रूप में जम जाते है। यह जड़ों के चारों ओर भी जमा हो जाते हैं तथा लवणता (salinity) को जन्म दे सकते है। इससे फसल को नुकसान होता है। अधिक पानी के कारण पौधे गिर भी सकते हैं। 

प्रश्न 10. 
वायुमण्डल के किस भाग में अच्छा ओजोन' पाया जाता है? वायु स्तम्भ में ओजोन की मोटाई मापन की इकाई का नाम लिखिए।
उत्तर:
समतापमण्डल था स्ट्रेटोस्फीयर, डोबसन यूनिड (DU) 

प्रश्न 11. 
उत्प्रेरक परिवर्तकों (कैटेलिटिक कनवर्टरों) से लैस वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग किया जाना क्यों बेहतर होता है?
उत्तर:
क्योकि पेट्रोल में सीसा कैटेलिटिक कनवर्टरों के उतारेक (catalyst) को निष्क्रिय कर देता है। 

प्रश्न 12. 
आइकोर्निया केसीपेस को बंगाल का आतंक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
आइकोर्निया क्रेसीपेस (जलकुम्भी) जलाशयों में इसको हटाने की दर से अधिक तेजी से बढ़ता है तथा पूरे जलाशय पर छा जाता है। यह जलाशय के पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी पैदा कर देता है। यह अपनी अतिवृद्धि से जलमागों को अवरुद्ध कर देता है तथा जलाशय को दलदल में बदल देता है। 

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प्रश्न 13. 
ओजोन की मोटाई मापने की इकाई का नाम लिखिए। 
उत्तर:
डोअसन इकाई (Dobson Unit - DU)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
नगरों में अपशिष्ट जल एवं औद्योगिक वहिःसाव को प्राकृतिक जल स्रोतों में निर्मुक्त करने से जलीय जीवन पर विनाशकारी (घातक प्रभाव पड़ रहा है। इस वहिःस्राव को प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जित करने से पहले इनके वांछित जैविक उपचार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
घरेलू वाहित मल और औद्योगिक बहिःस्राव (Domestic Sewage and Industrial Effluents)
घरेलू वाहित मल (sewage) व इसके उपचार के बारे में आप अध्याय 10 में पढ़ चुके है। कुल 0.1 प्रतिशत अशुद्धियों के कारण वाहित मल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रह पाता। सीवेज में निम्न तीन प्रकार की अशुद्धियाँ (impurities) पाई जाती हैं-

  1. निलम्बित ठोस (Suspended Solids): जैसे बालू, गाद व चिकनी मिट्टी। 
  2.  कोलाइडी पदार्थ (Colloidal materials): जैसे मल पदार्थ (fecal material) जीवाणु, कपड़े व कागज के रेशे।
  3. विलेय पदार्थ (Dissolved Materials): जैसे पोषक (nutrients) नाइट्रेट, अमोनिया, फास्फेट, सोडियम, कैल्शियम।

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वाहित मल या सीवेज से अधुलित ठोस पदार्थों को हटाना अपेक्षाकृत आसान है लेकिन फास्फेट, नाइट्रेट जैसे लवणों का अन्य पोषकों विषैले धातु आयनों व घुलित कार्बनिक पदार्थ का अलग करना कठिन है। प्रदूषित जल के रंग में बदलाव, निलम्बित कणों के कारण टर्विडिटी (turbidity) में बदलाव, स्वाद में बदलाव, झाग निर्माण आदि जल प्रदूषण के कारण होने वाले बदलाव हैं। वाहितमल में प्रमुख रूप से जैव अपघटनीय (Biodegradable) कार्बनिक पदार्थ होता है। यह कार्बनिक पदार्थ जीवाणु व अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में अपघटित कर दिया जाता है।

बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा (मिलीग्राम में) जो 1 लीटर जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रयोग की जाती है, बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड या बी ओ डी कहलाती है। अधिक बी ओ डी का अर्थ है जल में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति अर्थात अधिक प्रदूषित जल। बी.ओ.डी. जितनी कम होगी जल में प्रदूषण का स्तर उतना ही कम होगा। शुद्ध जल की बी.ओ.डी. 1 से भी कम होती है। इस प्रकार बी.ओ.डी. के आकलन से सीवेज जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा जानी जा सकती है। सूक्ष्मजीव, कार्बनिक पदार्थ के वायवीय अपघटन (aerobic oxidation) में चूंकि ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं अतः जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved Oxygen) की मात्रा कम हो जाती है। अत: बी.ओ.डी. का घुलित ऑक्सीजन (डी.ओ) से व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध (inverse relationship) है। उदाहरण के लिए किसी अत्यधिक प्रदूषित जलाशय में बी.ओ.डी. अधिक होगी लेकिन घुलित ऑक्सीजन या डी.ओ. कम होगी। नीचे दिये चित्र में एक नदी में होने वाला वह बदलाव दिया गया है जो उसमें वाहितमल सीवेज के विसर्जन के कारण होता है। नदी में इस वाहितमल के गिरने से उसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के जैव अपघटन के लिए सूक्ष्मजीव बहुत - सी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं।
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फलस्वरूप सीवेज विसर्जन बिन्दु से अनुप्रवाह जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved oxygen - DO) की मात्रा में तेजी से कमी आती है। जल में ऑक्सीजन की कमी होने से मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है। लेकिन प्रवाह की दिशा में आगे जाने पर DO बढ़ जाती है तथा BOD कम हो जाती है, अत: जल जीव पुनः प्रकट हो जाते है। शैवाल प्रस्फुटन (Algal bloom) जल में अत्यधिक मात्रा में पोषक पदार्थों की उपस्थिति के कारण मुक्त प्लावी अर्थात स्वतंत्र रूप से तैरने वाली (free floating) शैवाल जो प्लवक (planktons) कही जाती है, की अतिशय वृद्धि होती है। इस प्लवकीय (planktonic) वृद्धि को शैवाल प्रस्फुटन (algal bloom) कहा जाता है।

शैवाल प्रस्फुटन या एल्गल ब्लूम जल को एक विशिष्ट रंग प्रदान कर देते है। एल्गल ब्लूम दुर्गन्धकारी (foul smelling) भी होते हैं क्योंकि इनमें शैवाल च जीवाणुओं का सड़ना भी प्रारम्भ हो जाता है। जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती है तथा मछलियों की मृत्यु होने लगती है। शैवाल प्रस्फुटन बनाने वाले कुछ शैवाल मनुष्य व अन्य जन्तुओं के लिए बहुत जहरीले होते हैं।

जलकुम्भी: बंगाल का आतंक (Water hyacinth a terror of the Bengal) 
सुंदर नीले फूलों वाली जलकुम्भी (Water hyacinth) का पौधा एक जलीय खरपतवार (weed) है, जिसका वैज्ञानिक नाम आइकोनिया क्रेसीपेस (Eichhornia crassipes) है। इन पौधों को इनके सुन्दर फूलों के कारण भारत में लाया गया था। जलकुम्भी आज विश्व का सबसे हठीला व दुसाध्य जलीय खरपतवार (noxious aquatic weed) बन गया है। जल - कुम्भी में तेजी से वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) होता है तथा अतिशय वृद्धि के कारण यह सारे जलमार्गों व जलाशय को ढक देता है। इसी कारण से इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। जलकुम्भी के पौधे सुपोषी जलाशयों (Eutrophic water bodies) में प्रचुर मात्रा में वृद्धि करते है। इनसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) भी तेजी से होता है। अत: वे एक समृद्ध जल वाले जलाशय को शीघ्र ही दलदली व सूखे स्थान में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में ये पौधे जलाशय की पारितंत्र गतिकी में असंतुलन पैदा कर देते हैं। हमारे घरों के व अस्पतालों के वाहित मल में अनेक प्रकार के अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव (Pathogenic microbes) हो सकते हैं। इस प्रकार के वाहित मल का बिना उपचार के जलाशयों में विसर्जन अनेक प्रकार के गम्भीर जलजन्य रोगों जैसे अतिसार (dysentery), टायफाइड, पीलिया (jaundice) व हैजा (cholera) का कारण बन सकता है।

औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste) 
घरेलु बाहित मल के विपरीत उद्योगों जैसे पेट्रोलियम, कागज निर्माण, धातु निष्कर्षण व प्रसंस्करण (metal extraction and processing) रसायन उत्पादन (Chemical manufact) आदि में अनके प्रकार के विषाक्त पदार्थ (toxic materials) हो सकते हैं। इन पदार्थों में भारी धातुएँ (heavy metals) सर्व प्रमुख हैं। भारी धातुएँ वे धात्विक तत्व हैं जिनका घनत्व >5g/cm3 (ग्राम/सेमी') होता है। जैसे मरकरी, कैडमियम, कॉपर, लेड आदि। विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिक (organic compounds) भी औद्योगिक अपशिष्टों के प्रमुख घटक हैं।

एकीकृत अपशिष्ट जल उपचार: केस अध्ययन (A case study of integrated waste water treatment) 
सीवेज तथा अन्य अपशिष्ट जल कृत्रिम व प्राकृतिक विधियों के समाकलित वा एकीकृत रूप द्वारा पूर्ण रूप से उपचारित किये जा सकते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य के उत्तरी तटीय इलाकों पर बसा अरकाटा (Areata) कस्बा है। यहाँ के लोगों ने हम्बोल्ट स्टेट यूनीवर्सिटी (Humboldt State University) के जीव वैज्ञानिकों के सहयोग से अपशिष्ट जल के उपचार की एक एकीकृत विधि विकसित की।
यह सभी कार्य प्राकृतिक तंत्र (Natural system) में ही सम्पन्न किये गये। इस विधि के दो प्रमुख पद थे-

(a) परम्परागत छानना (Filtration), अवसादन (Sedimentation) व क्लोरीन उपचार (Chlorine treatment) यह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के प्राथमिक उपचार के समान ही है जिसमें भौतिक अशुद्धियों को भौतिक क्रियाओं (Physical processes) द्वारा अलग किया जाता है। छानना व अवसादन इसी प्रकार की क्रियाएँ हैं इससे बड़ी - बड़ी अघुलनशील/तैरने वाली अशुद्धियाँ सीवेज व अपशिष्ट जल से अलग हो जाती है। क्लोरीन का प्रयोग रोगजनक सूक्ष्मजीवों (pathogenic microbes) को मारने के लिए किया जाता है। इसके बाद भी जल में अनेक विषैले रसायन जैसे भारी धातु व अन्य घुलित पदार्थ (dissolved material) होते हैं। इन्हें अलग करने के लिए एक नवाचार (innovative method) अपनाया गया। 

(b) जीव विज्ञानियों ने 60 हेक्टेयर में फैले मार्श लैंड (marsh land) को 6 आपस में जुड़े भागों में बाँट दिया। इन 6 भागों में उचित पेड़ - पौधे, शैवाल (algae) व फंजाई, जीवाणु रोप दिये गये है। इन अलग - अलग प्रकार के जीवों ने प्रदूषकों (pollutants) को अवशोषित (absorb) किया, उदासीन (neutralize) किया तथा स्वांगीकृत (assimilare) किया। अतः जैसे - जैसे पानी इन दलदली क्षेत्रों में बहता रहा वह प्राकृतिक रूप से साफ होता रहा। इन दलदली क्षेत्रों ने एक अभयारण्य (santuary) का भी कार्य किया। इस अभयारण्य में उच्च श्रेणी की जैव विविधता (biodiversity) भी विकसित हुई जिसमें मछलियाँ, विभिन्न प्रकार के पक्षी व अन्य जन्तु थे। इस अनूठे कार्य को फ्रेन्ड्स ऑफ द अरकाटा मार्श (Friends of the Areata Marsh - FOAM) ने सम्पन्न किया।

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प्रश्न 2. 
शहर के नजदीक एक तालाब भ्रमण के दौरान रंग - बिरंगे शैवाल आच्छादित विशाल जल क्षेत्र को देख दर्शक अत्यंत हर्षित/ आहलादित हर। 
(a) जीव विज्ञान के विद्यार्थी होने के नाते क्या आप उनके इस आहालब से सहमत हैं? अपने उत्तर की पुष्टि हेतु प्रमाण दीजिए। 
(b) शैवाल की इस प्रकार की वृद्धि के कारण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
घरेलू वाहित मल और औद्योगिक बहिःस्राव (Domestic Sewage and Industrial Effluents)
घरेलू वाहित मल (sewage) व इसके उपचार के बारे में आप अध्याय 10 में पढ़ चुके है। कुल 0.1 प्रतिशत अशुद्धियों के कारण वाहित मल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रह पाता। सीवेज में निम्न तीन प्रकार की अशुद्धियाँ (impurities) पाई जाती हैं-

  1. निलम्बित ठोस (Suspended Solids): जैसे बालू, गाद व चिकनी मिट्टी। 
  2. कोलाइडी पदार्थ (Colloidal materials): जैसे मल पदार्थ (fecal material) जीवाणु, कपड़े व कागज के रेशे।
  3. विलेय पदार्थ (Dissolved Materials): जैसे पोषक (nutrients) नाइट्रेट, अमोनिया, फास्फेट, सोडियम, कैल्शियम।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 2
वाहित मल या सीवेज से अधुलित ठोस पदार्थों को हटाना अपेक्षाकृत आसान है लेकिन फास्फेट, नाइट्रेट जैसे लवणों का अन्य पोषकों विषैले धातु आयनों व घुलित कार्बनिक पदार्थ का अलग करना कठिन है। प्रदूषित जल के रंग में बदलाव, निलम्बित कणों के कारण टर्विडिटी (turbidity) में बदलाव, स्वाद में बदलाव, झाग निर्माण आदि जल प्रदूषण के कारण होने वाले बदलाव हैं। वाहितमल में प्रमुख रूप से जैव अपघटनीय (Biodegradable) कार्बनिक पदार्थ होता है। यह कार्बनिक पदार्थ जीवाणु व अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में अपघटित कर दिया जाता है।

बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा (मिलीग्राम में) जो 1 लीटर जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रयोग की जाती है, बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड या बी ओ डी कहलाती है। अधिक बी ओ डी का अर्थ है जल में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति अर्थात अधिक प्रदूषित जल। बी.ओ.डी. जितनी कम होगी जल में प्रदूषण का स्तर उतना ही कम होगा। शुद्ध जल की बी.ओ.डी. 1 से भी कम होती है। इस प्रकार बी.ओ.डी. के आकलन से सीवेज जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा जानी जा सकती है। सूक्ष्मजीव, कार्बनिक पदार्थ के वायवीय अपघटन (aerobic oxidation) में चूंकि ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं अतः जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved Oxygen) की मात्रा कम हो जाती है। अत: बी.ओ.डी. का घुलित ऑक्सीजन (डी.ओ) से व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध (inverse relationship) है। उदाहरण के लिए किसी अत्यधिक प्रदूषित जलाशय में बी.ओ.डी. अधिक होगी लेकिन घुलित ऑक्सीजन या डी.ओ. कम होगी। नीचे दिये चित्र में एक नदी में होने वाला वह बदलाव दिया गया है जो उसमें वाहितमल सीवेज के विसर्जन के कारण होता है। नदी में इस वाहितमल के गिरने से उसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के जैव अपघटन के लिए सूक्ष्मजीव बहुत - सी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 3
फलस्वरूप सीवेज विसर्जन बिन्दु से अनुप्रवाह जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved oxygen - DO) की मात्रा में तेजी से कमी आती है। जल में ऑक्सीजन की कमी होने से मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है। लेकिन प्रवाह की दिशा में आगे जाने पर DO बढ़ जाती है तथा BOD कम हो जाती है, अत: जल जीव पुनः प्रकट हो जाते है। शैवाल प्रस्फुटन (Algal bloom) जल में अत्यधिक मात्रा में पोषक पदार्थों की उपस्थिति के कारण मुक्त प्लावी अर्थात स्वतंत्र रूप से तैरने वाली (free floating) शैवाल जो प्लवक (planktons) कही जाती है, की अतिशय वृद्धि होती है। इस प्लवकीय (planktonic) वृद्धि को शैवाल प्रस्फुटन (algal bloom) कहा जाता है।

शैवाल प्रस्फुटन या एल्गल ब्लूम जल को एक विशिष्ट रंग प्रदान कर देते है। एल्गल ब्लूम दुर्गन्धकारी (foul smelling) भी होते हैं क्योंकि इनमें शैवाल च जीवाणुओं का सड़ना भी प्रारम्भ हो जाता है। जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती है तथा मछलियों की मृत्यु होने लगती है। शैवाल प्रस्फुटन बनाने वाले कुछ शैवाल मनुष्य व अन्य जन्तुओं के लिए बहुत जहरीले होते हैं।

जलकुम्भी: बंगाल का आतंक (Water hyacinth a terror of the Bengal) 
सुंदर नीले फूलों वाली जलकुम्भी (Water hyacinth) का पौधा एक जलीय खरपतवार (weed) है, जिसका वैज्ञानिक नाम आइकोनिया क्रेसीपेस (Eichhornia crassipes) है। इन पौधों को इनके सुन्दर फूलों के कारण भारत में लाया गया था। जलकुम्भी आज विश्व का सबसे हठीला व दुसाध्य जलीय खरपतवार (noxious aquatic weed) बन गया है। जल - कुम्भी में तेजी से वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) होता है तथा अतिशय वृद्धि के कारण यह सारे जलमार्गों व जलाशय को ढक देता है। इसी कारण से इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। जलकुम्भी के पौधे सुपोषी जलाशयों (Eutrophic water bodies) में प्रचुर मात्रा में वृद्धि करते है। इनसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) भी तेजी से होता है। अत: वे एक समृद्ध जल वाले जलाशय को शीघ्र ही दलदली व सूखे स्थान में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में ये पौधे जलाशय की पारितंत्र गतिकी में असंतुलन पैदा कर देते हैं। हमारे घरों के व अस्पतालों के वाहित मल में अनेक प्रकार के अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव (Pathogenic microbes) हो सकते हैं। इस प्रकार के वाहित मल का बिना उपचार के जलाशयों में विसर्जन अनेक प्रकार के गम्भीर जलजन्य रोगों जैसे अतिसार (dysentery), टायफाइड, पीलिया (jaundice) व हैजा (cholera) का कारण बन सकता है।

औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste) 
घरेलु बाहित मल के विपरीत उद्योगों जैसे पेट्रोलियम, कागज निर्माण, धातु निष्कर्षण व प्रसंस्करण (metal extraction and processing) रसायन उत्पादन (Chemical manufact) आदि में अनके प्रकार के विषाक्त पदार्थ (toxic materials) हो सकते हैं। इन पदार्थों में भारी धातुएँ (heavy metals) सर्व प्रमुख हैं। भारी धातुएँ वे धात्विक तत्व हैं जिनका घनत्व >5g/cm3 (ग्राम/सेमी') होता है। जैसे मरकरी, कैडमियम, कॉपर, लेड आदि। विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिक (organic compounds) भी औद्योगिक अपशिष्टों के प्रमुख घटक हैं।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 3. 
जब किसी नदी में शहरी वाहितमल का विसर्जन किया जाता है तो नवी के लक्षणों पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
घरेलू वाहित मल और औद्योगिक बहिःस्राव (Domestic Sewage and Industrial Effluents)
घरेलू वाहित मल (sewage) व इसके उपचार के बारे में आप अध्याय 10 में पढ़ चुके है। कुल 0.1 प्रतिशत अशुद्धियों के कारण वाहित मल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रह पाता। सीवेज में निम्न तीन प्रकार की अशुद्धियाँ (impurities) पाई जाती हैं-

  1. निलम्बित ठोस (Suspended Solids): जैसे बालू, गाद व चिकनी मिट्टी। 
  2. कोलाइडी पदार्थ (Colloidal materials): जैसे मल पदार्थ (fecal material) जीवाणु, कपड़े व कागज के रेशे।
  3. विलेय पदार्थ (Dissolved Materials): जैसे पोषक (nutrients) नाइट्रेट, अमोनिया, फास्फेट, सोडियम, कैल्शियम।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 2
वाहित मल या सीवेज से अधुलित ठोस पदार्थों को हटाना अपेक्षाकृत आसान है लेकिन फास्फेट, नाइट्रेट जैसे लवणों का अन्य पोषकों विषैले धातु आयनों व घुलित कार्बनिक पदार्थ का अलग करना कठिन है। प्रदूषित जल के रंग में बदलाव, निलम्बित कणों के कारण टर्विडिटी (turbidity) में बदलाव, स्वाद में बदलाव, झाग निर्माण आदि जल प्रदूषण के कारण होने वाले बदलाव हैं। वाहितमल में प्रमुख रूप से जैव अपघटनीय (Biodegradable) कार्बनिक पदार्थ होता है। यह कार्बनिक पदार्थ जीवाणु व अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में अपघटित कर दिया जाता है।

बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा (मिलीग्राम में) जो 1 लीटर जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रयोग की जाती है, बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड या बी ओ डी कहलाती है। अधिक बी ओ डी का अर्थ है जल में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति अर्थात अधिक प्रदूषित जल। बी.ओ.डी. जितनी कम होगी जल में प्रदूषण का स्तर उतना ही कम होगा। शुद्ध जल की बी.ओ.डी. 1 से भी कम होती है। इस प्रकार बी.ओ.डी. के आकलन से सीवेज जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा जानी जा सकती है। सूक्ष्मजीव, कार्बनिक पदार्थ के वायवीय अपघटन (aerobic oxidation) में चूंकि ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं अतः जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved Oxygen) की मात्रा कम हो जाती है। अत: बी.ओ.डी. का घुलित ऑक्सीजन (डी.ओ) से व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध (inverse relationship) है। उदाहरण के लिए किसी अत्यधिक प्रदूषित जलाशय में बी.ओ.डी. अधिक होगी लेकिन घुलित ऑक्सीजन या डी.ओ. कम होगी। नीचे दिये चित्र में एक नदी में होने वाला वह बदलाव दिया गया है जो उसमें वाहितमल सीवेज के विसर्जन के कारण होता है। नदी में इस वाहितमल के गिरने से उसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के जैव अपघटन के लिए सूक्ष्मजीव बहुत - सी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं।
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फलस्वरूप सीवेज विसर्जन बिन्दु से अनुप्रवाह जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved oxygen - DO) की मात्रा में तेजी से कमी आती है। जल में ऑक्सीजन की कमी होने से मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है। लेकिन प्रवाह की दिशा में आगे जाने पर DO बढ़ जाती है तथा BOD कम हो जाती है, अत: जल जीव पुनः प्रकट हो जाते है। शैवाल प्रस्फुटन (Algal bloom) जल में अत्यधिक मात्रा में पोषक पदार्थों की उपस्थिति के कारण मुक्त प्लावी अर्थात स्वतंत्र रूप से तैरने वाली (free floating) शैवाल जो प्लवक (planktons) कही जाती है, की अतिशय वृद्धि होती है। इस प्लवकीय (planktonic) वृद्धि को शैवाल प्रस्फुटन (algal bloom) कहा जाता है।

शैवाल प्रस्फुटन या एल्गल ब्लूम जल को एक विशिष्ट रंग प्रदान कर देते है। एल्गल ब्लूम दुर्गन्धकारी (foul smelling) भी होते हैं क्योंकि इनमें शैवाल च जीवाणुओं का सड़ना भी प्रारम्भ हो जाता है। जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती है तथा मछलियों की मृत्यु होने लगती है। शैवाल प्रस्फुटन बनाने वाले कुछ शैवाल मनुष्य व अन्य जन्तुओं के लिए बहुत जहरीले होते हैं।

जलकुम्भी: बंगाल का आतंक (Water hyacinth a terror of the Bengal) 
सुंदर नीले फूलों वाली जलकुम्भी (Water hyacinth) का पौधा एक जलीय खरपतवार (weed) है, जिसका वैज्ञानिक नाम आइकोनिया क्रेसीपेस (Eichhornia crassipes) है। इन पौधों को इनके सुन्दर फूलों के कारण भारत में लाया गया था। जलकुम्भी आज विश्व का सबसे हठीला व दुसाध्य जलीय खरपतवार (noxious aquatic weed) बन गया है। जल - कुम्भी में तेजी से वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) होता है तथा अतिशय वृद्धि के कारण यह सारे जलमार्गों व जलाशय को ढक देता है। इसी कारण से इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। जलकुम्भी के पौधे सुपोषी जलाशयों (Eutrophic water bodies) में प्रचुर मात्रा में वृद्धि करते है। इनसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) भी तेजी से होता है। अत: वे एक समृद्ध जल वाले जलाशय को शीघ्र ही दलदली व सूखे स्थान में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में ये पौधे जलाशय की पारितंत्र गतिकी में असंतुलन पैदा कर देते हैं। हमारे घरों के व अस्पतालों के वाहित मल में अनेक प्रकार के अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव (Pathogenic microbes) हो सकते हैं। इस प्रकार के वाहित मल का बिना उपचार के जलाशयों में विसर्जन अनेक प्रकार के गम्भीर जलजन्य रोगों जैसे अतिसार (dysentery), टायफाइड, पीलिया (jaundice) व हैजा (cholera) का कारण बन सकता है।

औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste) 
घरेलु बाहित मल के विपरीत उद्योगों जैसे पेट्रोलियम, कागज निर्माण, धातु निष्कर्षण व प्रसंस्करण (metal extraction and processing) रसायन उत्पादन (Chemical manufact) आदि में अनके प्रकार के विषाक्त पदार्थ (toxic materials) हो सकते हैं। इन पदार्थों में भारी धातुएँ (heavy metals) सर्व प्रमुख हैं। भारी धातुएँ वे धात्विक तत्व हैं जिनका घनत्व >5g/cm3 (ग्राम/सेमी') होता है। जैसे मरकरी, कैडमियम, कॉपर, लेड आदि। विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिक (organic compounds) भी औद्योगिक अपशिष्टों के प्रमुख घटक हैं। 

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प्रश्न 4.
(a) उन किन्हीं दो स्थानों के नाम बताइए जहाँ स्थिर वैद्युत अवक्षिपितों को लगाना अनिवार्य होता है। ऐसा करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? 
(b) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित की कोई एक सीमा बताइए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण का नियंत्रण (Control Of Air Pollution)
तापीय विद्युत गृह भट्टियों व अन्य स्रोतो से प्रदूषकों के साथ - साथ हानिरहित गैसें जैसे ऑक्सीजन व नाइट्रोजन भी निकलती है। औद्योगिक इकाइयों व ऑटोमोबाइल से प्रदूषकों को वायुमण्डल में मुक्त करने से पहले ही इन्हें हानिरहित गैसों में बदल दिया जाना चाहिए। निलंबित कणिकामय पदार्थ (Suspended Particulate Matter) को नियंत्रित करने वाली युक्तियों में वैद्युत अवक्षेपित्र प्रमुख है। 

(a) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र या इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर (Electrostatic Precipitator) यह कणिकामय पदार्थ को नियंत्रित करने वाली सबसे व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली युक्ति है। यह थर्मल पावर प्लांट के एग्जास्ट (exhaust) में उपस्थित 99 प्रतिशत से भी अधिक कणिकामय पदार्थ को अलग कर देती है। विसर्जन कोरोन लाइन केंद्र बिदु तक सण आवेशित तार दर्शाना है।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 4
इन वैद्युत खुक्तियों में कणिकामय पदार्थ को उन पर उपस्थित आवेश (charge) के आधार पर अलग किया जाता है। इन युक्तियों में इलैक्ट्रोड तार को हजारों वोल्ट पर रखा जाता है। यह एक कोरोना उत्पन्न कर देता है जिससे इलेक्ट्रॉन मुक्त होते है। इलेक्ट्रॉन धूल के कणों से जुड़कर उन्हें ऋण आवेशित बना देते है। एनोडरूपी संग्राही प्लेट (Collecting plates) तल की ओर आ जाती है व आवेशित धूल कणों को आकर्षित करती है। इसमें संग्राही प्लेटों के बीच वायु का वेग कम रखा जाता है जिससे धूल के र कण नीचे बैठ जायें।

(b) मार्जक या स्क्रबर (Serubber) 
स्क्रबर शुष्क (dry) या आई (wet) पैकिंग पदार्थों के बने होते हैं तथा धूल के कण व विषैली गैसों प्रमुखतः सल्फर डाइ ऑक्साइड को अलग करने के काम आते हैं। इस युक्ति में प्रदूषित गैस को बेग के साथ स्क्रबर से गुजारा जाता है साथ ही इस प्रदूषित एक्जास्ट पर जल या चूने की फुआर (spray)
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डाली जाती है। जल की बूंदें धूल जैसे कणिकामय पदार्थ व विषैली गैसों को अलग कर देती हैं। चूना (lime) विशेष रूप से सल्फर डाइ ऑक्साइड को अलग कर देता है। इससे अमोनिया जैसी गैस भी अलग हो सकती है। 

स्वचालित वाहनों के प्रदूषण का नियंत्रण 

1. स्वचालित वाहन का उचित स्थिति में रखरखाव, नियमित रूप से प्रदूषण स्तर की जांच प्रदूषण को काफी हद तक कम कर देता है। इनसे बिना दहन हुए हाइड्रोकार्बन का न निकलना सुनिश्चित होना चाहिए। 

2. लेड मुक्त (lead free) पेट्रोल व डीजल का प्रयोग प्रदूषकों को कम कर देता है। कम सल्फर वाले डीजल का प्रयोग अच्छा है। 

3. कैटेलिटिक कन्वर्टर (Catalytic converters): कैटेलिटिक कन्वर्टर या उत्प्रेरक परिवर्तक (catalytic converter) में महंगी धातु जैसे प्लेटीनम - पैलेडियम व रोडियम का उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में प्रयोग किया जाता है। एग्जास्ट में उपस्थित विषाक्त गैसें जब ऑटोमोबाइल में फिट किये गये इन विशिष्ट उत्प्रेरकों से होकर गुजरती हैं तब वे अहानिकारक गैसों में परिवर्तित कर दी जाती हैं। यह युक्तियाँ, अदग्ध अर्थात बिना जले हाइड्रो कार्बन (unburnt hydrocarbon) को कार्बन डाइ ऑक्साइड तथा जल में बदल देती है। यह परिवर्तक जहरीली कार्बन मोनो ऑक्साइड को कार्बन डाइ ऑक्साइड में तथा नाइट्रिक ऑक्साइड को नाइट्रोजन गैस में बदल देते हैं। कैटेलिटिक कनर्वटर लगे वाहनों में विशेष रूप से बिना सीसे वाले पेट्रोल (unleaded petrol) का प्रयोग करना चाहिए क्योकि पेट्रोल में उपस्थित लेड, इनके उत्प्रेरक (catalyst) को निष्क्रिय कर देता है।

एग्जास्ट गैसें अन्दर 
हाइड्रोकार्बन्स (HC) 
कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) 
नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx)
स्वचालित वाहन (ऑटोमोबाइल्स) जनित प्रदूषक रोकथाम 

  1. वाहनों को ईंधन उपयोग में अधिक दक्ष (fuel efficient) बनाना 
  2. मल्टीपाइन्ट फ्यूल इंजेक्शन इंजिन (Multipoint Fuel Injection Engines) का प्रयोग 
  3. उत्प्रेरकीय परिवर्तन (catalytic converter) का प्रयोग 
  4. वाहनों में सीसा मुक्त व गन्धक मुक्त ईंधन का प्रयोग 
  5. ईंधन शोधन नीति (Fuel Rifining Policy) में समयानुकूल परिवर्तन ट्रेफिक का निबांध चलते रहना, रुके वाहनों से अधिक प्रदूषक निकलते हैं 
  6. सोलर कार, हाइड्रोजन कार का विकास 
  7. पुराने वाहनों को हटाना 
  8. वाहन ईंधन मानकों का सख्ती से पालन

स्वचालित वाहनजन्य वायु प्रदूषण का नियंत्रण: दिल्ली में किया गया एक अध्ययन (Controlling automobile air pollution: A case studay of Delhi) 
दिल्ली में स्वचालित वाहनों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण वहाँ वायु प्रदूषण का स्तर देश में सर्वाधिक है। यहाँ कारों की संख्या गुजरात व पश्चिम बंगाल में उपलब्ध कुल कारों की संख्या से भी अधिक है। 1990 अर्थात बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में दिल्ली का विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 41 शहरों में चौथा स्थान था। दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी विकराल हो गई कि सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (Public interest litigation - PIL) दायर की गई। 

सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी सघन गुण - दोष विवेचना के बाद सरकार को निश्चित समयावधि के अन्दर कड़े यथोचित उपाय करने के निर्देश दिये। इन निर्देशों में दिल्ली में चलने वाले सभी सार्वजनिक वाहनों अर्थात बसों को डीजल से संपीड़ित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas - CNG) में परिवर्तित करने का निर्देश भी शामिल था। वर्ष 2002 के अन्त तक दिल्ली में चलने वाली सभी सार्वजनिक बसों को सौ एन जी में परिवर्तित कर दिया गया। 

सी एन जी डीजल से निम्न प्रकार बेहतर है-

  • सी एन जी वाहनों में पेट्रोल व डीजल की अपेक्षा अधिक कारगर दंग - से जलती है। (burns most efficiently) तथा इसकी अत्यल्प मात्रा बिना जली शेष बचती है। 
  • यह पेट्रोल व डीजल की अपेक्षा सस्ती है। 
  • इसमें डीजल और पेट्रोल के विपरीत न तो मिलावट (adulteration) की जा सकती है और न ही इसकी साइफन विधि द्वारा चोरी की जा सकती है। 

डीजल से सी एन जी परिवर्तन की सबसे बड़ी बाधा वह पाइप लाइन बिछाने की थी जो वितरण केन्द्र अर्थात सी एन जी पम्प को इसकी आपूर्ति कर सकें तथा साथ ही इसकी निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित कर सके। दिल्ली में इसके साथ-साथ वाहनों के प्रदूषण को कम करने के अन्य उपाय भी किये गए जैसे-पुराने वाहनों को हटाना (Phasing out of old vehicles), गैर सीसा पेट्रोल (unleaded petrol) का प्रयोग, सल्फर की कम मात्रा वाले पेट्रोल व डीजल का प्रयोग, वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक (catalytic converters) का प्रयोग, वाहनों के लिए कड़े प्रदूषण स्तर नियमों को लागू
करना।

भारत सरकार ने एक नई स्वचालित ईधन नीति (auto fuel policy) के तहत देश के शहरों में वाहन प्रदूषण को कम करने के लिए एक कार्य योजना बनाई। ईधन के अधिक कठोर मानकों का अर्थ है पेट्रोल व डीजल में सल्फर व एरोमेटिक्स की मात्रा में नियमित रूप से कमी करना। उदाहरण के लिए, यूरो II मानकों के अनुसार डीजल में सल्फर की मात्रा 350 पास पर मिलियन (ppm) तथा पेट्रोल में यह मात्रा 150 पी पी एम (ppm) होनी चाहिए। इसी प्रकार सम्बन्धित ईंधन में एरोमेटिक्स 42 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए। कार्य योजना के अनुसार पेट्रोल व डीजल में सल्फर का स्तर 50 ppm कर इसको 35 प्रतिशत स्तर पर ला देना था। ईधन के अनुरूप वाहनों के इन्जन में भी सुधार की आवश्यकता बनी रहेगी। यूरो ॥ मानकों के समतुल्य भारत स्टेज II अभी दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पूणे, सूरत, कानपुर और आगरा में लागू है। इसे रोड मैप के अनुसार 1 अप्रैल 2005 से देश के सभी स्वचालित वाहनों के लिए लागू किया जाना था। अप्रैल 1,2005 से इन सभी 11 शहरों में यूरो III के उत्सर्जन मानक लागू होने थे तथा अप्रैल 1, 2010 से यूरो के I देश के बाकी सभी शहरों के लिए, इंधन व ऑटोमोबाइल हेतु 2010 में यूरो III उत्सर्जन (emission) नियम लागू होने थे। इन प्रयासों के कारण दिल्ली की वायु की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। एक आकलन के अनुसार सन् 1997 से लेकर 2005 के बीच दिल्ली की वायु में CO2 व SO2 के स्तरों में उल्लेखनीय गिरावट आई।

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प्रश्न 5. 
वायु प्रदूषण किसे कहते हैं। वाहनों द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किए गए प्रयासों को बताइट। 
अथवा 
प्रदूषण किसे कहते हैं? प्लास्टिक अपशिष्ट के उपचार सम्बन्धी अध्ययन एवं प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण (Air Pollution)
वायु के गुणों में किसी अी प्रकार का अवांछित भौतिक, रासायनिक व जैविक परिवर्तन वायु प्रदूषण कहलाता है।
बायु मनुष्य के पर्यावरण के सर्वप्रमुख घटकों में से एक है। मनुष्य व अन्य स्थलीय जीवों के जीवित बने रहने के लिए शुर्धा वायु आवश्यक होती है। इससे हमारी श्वसन सम्बन्षी औवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं।

वायु प्रदूषण के स्रोत (Sources of Air Pollution)

  1. औद्योगिक इकाइयाँ (Industrial Units): तापीय विद्धुत गृह (Thermal Power House), विभिन्न प्रकार की भट्टियाँ व गलाई इकाइयाँ (Smeiters) रिफाइनरी व अन्य औद्रोगिक प्रतिष्ठान हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं।
  2. ऑटोमोबाइल या स्वचालित वाहन (Automobiles)-बड़े शहरों मे मोटर वाहन या स्वचालित वाहन वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। समय के साथ छोटे शहरों व कस्बों में भी स्वचालित वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ये अनेक प्रकार के गैसीय व कणिकामय पदार्थ प्रदूषकों के रूप में मुक्त करते हैं। दिल्ली व कोलकाता में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत स्वचालित वाहन ही है।
  3. ईंधन का जलना (Combustion of Fuels) -जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम प्रदूषण के स्रोत हैं। जलाऊ लकड़ी, गाय का गोबर आदि भी अनेक गैसीय व कणिकामय प्रदूषक वायु में मुक्त करते हैं।
  4. कृषि (Agriculture)-कृषि में प्रयोग किये जाने वाले पेस्टीसाइड्स जिनका उपयोग स्प्रे करके किया जाता है। वायु को प्रदूषित करते हैं। मेथेन, एक ग्रीन हाउस गैस, धान के खेतों व गोवंश के गोबर से निकलकर वायु प्रदूषण में योगदान करती है।
  5. अन्य स्रोत हैं पत्थर कटाई, सिलिका डस्ट, विकिरण आदि। प्रदूषण स्रोत किसी औद्योगिक इकाई की तरह स्थिर (fixed) अथवा स्वचालित वाहनों की तरह चलायमान (mobile) हो सकता है। कस्बे व शहर वायु प्रदूषण के बड़े क्षेत्र में फैले स्रोत हैं।

अथवा 

वायु प्रदूषण (Air Pollution)
वायु के गुणों में किसी अी प्रकार का अवांछित भौतिक, रासायनिक व जैविक परिवर्तन वायु प्रदूषण कहलाता है।
बायु मनुष्य के पर्यावरण के सर्वप्रमुख घटकों में से एक है। मनुष्य व अन्य स्थलीय जीवों के जीवित बने रहने के लिए शुर्धा वायु आवश्यक होती है। इससे हमारी श्वसन सम्बन्षी औवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं।

वायु प्रदूषण के स्रोत (Sources of Air Pollution)

  1. औद्योगिक इकाइयाँ (Industrial Units): तापीय विद्धुत गृह (Thermal Power House), विभिन्न प्रकार की भट्टियाँ व गलाई इकाइयाँ (Smeiters) रिफाइनरी व अन्य औद्रोगिक प्रतिष्ठान हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं।
  2. ऑटोमोबाइल या स्वचालित वाहन (Automobiles)-बड़े शहरों मे मोटर वाहन या स्वचालित वाहन वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। समय के साथ छोटे शहरों व कस्बों में भी स्वचालित वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ये अनेक प्रकार के गैसीय व कणिकामय पदार्थ प्रदूषकों के रूप में मुक्त करते हैं। दिल्ली व कोलकाता में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत स्वचालित वाहन ही है।
  3. ईंधन का जलना (Combustion of Fuels) -जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम प्रदूषण के स्रोत हैं। जलाऊ लकड़ी, गाय का गोबर आदि भी अनेक गैसीय व कणिकामय प्रदूषक वायु में मुक्त करते हैं।
  4. कृषि (Agriculture)-कृषि में प्रयोग किये जाने वाले पेस्टीसाइड्स जिनका उपयोग स्प्रे करके किया जाता है। वायु को प्रदूषित करते हैं। मेथेन, एक ग्रीन हाउस गैस, धान के खेतों व गोवंश के गोबर से निकलकर वायु प्रदूषण में योगदान करती है।
  5. अन्य स्रोत हैं पत्थर कटाई, सिलिका डस्ट, विकिरण आदि। प्रदूषण स्रोत किसी औद्योगिक इकाई की तरह स्थिर (fixed) अथवा स्वचालित वाहनों की तरह चलायमान (mobile) हो सकता है। कस्बे व शहर वायु प्रदूषण के बड़े क्षेत्र में फैले स्रोत हैं।

ठोस अपशिष्ट (Solid Waste) 
घरों, ऑफिसों, दुकानों, स्कूल - कॉलेजों व अस्पतालों आदि से कूड़ेदान में फेंका गया वह अपशिष्ट जो कि नगरपालिका द्वारा संग्रहित व निस्तारित (disposed) किया जाता है। नगर पालिका का ठोस अपशिष्ट (Municipal solid waste) कहा जाता है। कूड़ेदान में फेंका जाने वाला अपशिष्ट ठोस अपशिष्ट (solid waste) है। अर्थात कागज, काँच की बोतलें, चीनी मिट्टी का सामान, प्लास्टिक, एल्युमीनियम कैन (aluminium can) पॉलिथीन, धातुएँ, रबर, चमड़ा, वस्त्र, खाद्य अपशिष्ट विभिन्न प्रकार के ठोस अपशिष्ट हैं जो नगर पालिका स्तर पर एकत्रित होते हैं तथा सार्वजनिक कड़ा स्थल पर देर के रूप में पड़े रहते हैं। कबाड़ की तरह फेंके गये अन्य पदार्थ जैसे कम्प्यूटर फ्लॉपी, सीडी, नट - बोल्ट, टायर - घ्यूब, निर्माण सामग्री का अपशिष्ट, कीचड़ मृत जन्तु, हड्डी भी इन्हीं अपशिष्टों की सूची में शामिल हैं। ये विभिन्न परेशानियों का कारण बनते हैं। शहरों व कस्बों में इनके अनेक बड़े - बड़े ढेर लागे होते हैं। इनके ढेर दृश्य प्रदूषण (Visual Pollution) पैदा करते हैं। अपने देश में कई.मिलियन टन ठोस अपशिष्ट तो सड़कों के किनारे व अन्य स्थानों पर खुले ही में फेंक दिये जाते है। ठोस अपशिष्ट का निस्तारण बड़े शहरों की एक प्रमुख समस्या है। 

तृतीय प्रदूषण (Third Pollution) ठोस अपशिष्ट में उपस्थित विभिन्न प्रकार के विषैले रेसायन, भारी धातुएँ मृदा को प्रदूषित करती हैं तथा वर्षाकाल में जल के साथ भूमि के अन्दर जाकर (after percolation) भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर सकती हैं, अत: ठोस अपशिष्ट प्रदूषण तृतीय प्रदूषण कहा जाता है। 

ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन (Solid waste management) 
(a) खुले में निस्तारण व जलाना (Open disposal and burning): पहले ठोस अपशिष्ट को जलाकर इसके आयतन को कम किया जाता था। लेकिन यह विधि अनेक खामियों के कारण सफल नहीं रही। खुले स्थान में अपशिष्ट को जलाने से निम्न हानि है-

  1. अपशिष्ट पूरी तरह नहीं जल पाता। 
  2. अपशिष्टों के खुले ढेर अनेक पीड़कों (pests) जैसे चूहे, मक्खी व कॉकरोच के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करते हैं। 
  3. अपशिष्टों को जलाने से अनावश्यक वायुमण्डलीय प्रदूषण होता है। 
  4. अस्पतालों के खुले अपशिष्ट से अनेक संक्रामक रोग फैलने का खतरा रहता है। 
  5. खुले अपशिष्ट पर पल रहे चूहों की तलाश में अनेक परभक्षी पक्षी वहाँ मंडराते रहते हैं। एयरपोर्ट के नजदीक ऐसे अपशिष्ट ढेरों के पास के पक्षियों से हवाई सुरक्षा को खतरा रहता है। 

(b) सैनटरी लैंडफिल (Sanitary Landfill): सैनटरी सैंडफिल में अपशिष्टों को एक बड़े गडे (Trench) में भर दिया जाता है। इससे पहले अपशिष्ट को सघनीकृत (compact) किया जा सकता है तथा प्रतिदिन मिट्टी से ढक दिया जाता है। इसका संचालन स्वीकार्य मानकों के अनुसार यांत्रिक (mechanical) ढंग से किया जाता है। लैंडफिल अपशिष्ट निस्तारण का सही समाधान नहीं है क्योकि बड़े शहरों में अपशिष्ट उत्पादन की दर इतनी तेज है कि सभी लैंडफिल स्थल इसके सामने छोटे लगने लगते है। साथ ही इससे हानिकारक व विषाक्त रसायनों के भूमिगत जल में सीपेज (seepage) का भी खतरा रहता है अर्थात इसी सीपेज से भूमिगत जल के प्रदूषित होने की संभावना होती है।

(c) अपशिष्ट निस्तारण का '3 R' तरीका (3 R method of waste disposal): ठोस अपशिष्ट निस्तारण का एक पारिस्थितिक मित्र (ecofriendly) तरीका है 3R का। इनका अर्थ है-न्यूनीकरण (Reduce), पुनर्प्रयोग (Reuse) व पुनर्चक्रण (Recycle) इस विधि में कस्बे या शहर से उपजे सभी प्रकार के अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-

  • जैव अपघटनीय (Biodegradable) अपशिष्ट
  • पुनर्चक्रण योग्य अपशिष्ट (Recyclable waste)
  • अजैव अपघटनीय (Non biodegradable) 

अत: प्रत्येक छोटी इकाई जैसे घर, ऑफिस, दुकान आदि के स्तर पर ही अपशिष्ट को इन श्रेणियों में अलग - अलग करना आवश्यक होता है। इस कार्य के लिए अलग - अलग प्रकार के कूड़ेदान (dustbins) प्रयोग किये जा सकते है।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 6
कूड़ा बीनने वाले (rag pickers) व कबाड़ी वाले ठोस अपशिष्ट से विभिन्न प्रकार के पदार्थों को अलग - अलग कर महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करते हैं। जैव अपघटनीय पदार्थ को गहरे कम्पोस्ट गढ्डे (compost pit) में डालकर प्राकृतिक अपघटन के लिए छोड़ दिया जाता है। यह अपशिष्ट को संसाधन में परिवर्तित करने का उपाय है। जैव अपघटनीय पदार्थ को कम्पोस्ट पिट में बन्द कर देने से यह कॉकरोच, चूहों व मक्खियों का प्रजनन स्थल नहीं बनता, इससे रोगों का खतरा नहीं होता, साथ ही उपयोगी जैविक खाद भी मिल जाती है।

अपशिष्ट का कम से कम उत्पादन, आज समय की मांग है। इस 'रिड्यूस विधि को अपनाकर हम आधी समस्या को उसके प्रारम्भ होने से पहले ही समाप्त कर सकते है। कम अपशिष्ट हमारा प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए। अभी तक हम अजैव अपघटनीय पदार्थों का जाने - अनजाने देर लगाने पर आमादा हैं। वैश्विक बाजारीकरण ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। किसी भी रेडीमेड खाने की वस्तु का उदाहरण लीजिए, बिस्किट, चाकलेट, चिप्स, नमकीन सभी आकर्षक' पैकेटों में बन्द है। इनमें से एक या अधिक स्तर अजैव अपघटनीय प्लास्टिक के हैं। यही नहीं पानी भी प्लास्टिक की बोतलों और पाठच में उपलब्ध हैं। दूध, दही, सब्जी, फल, मसाले, टूथपेस्ट, क्या नहीं लाते प्लास्टिक में हम? इनकी आकर्षक, रंग - बिरंगी पैकिंग से आकर्षित होकर हम स्वयं अपने स्वास्थ्य से तो खिलवाड़ कर ही रहे है साथ ही साथ पर्यावरण प्रदूषण में भी सक्रिय योगदान कर रहे है। सभी राज्य सरकारें प्लास्टिक पैकिंग, पॉलिथीन के प्रयोग को कम करने का प्रयास कर रही हैं। अनेक शहरों, राज्यों ने विशेष प्रकार की पॉलिथीन के ऊपर प्रतिबन्ध लगाया है। 'इकोफ्रेन्डली' (eco friendly) पैकिंग विकसित करने का कार्य भी जारी है। इसमें हम अपना छोटा - सा योगदान देकर अपने पर्यावरण की बड़ी सेवा कर सकते हैं। हम पॉलिथीन की जगह अपना रोजमर्रा का सामान कपड़े के बने थैले में लाएँ तो समस्या की गम्भीरता कम हो सकती है। निर्णय आपका है, भविष्य की पीढ़ियों को हमें उसी प्रकार का स्वच्छ व सुन्दर पर्यावरण सौपना है जैसा कि हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त किया था।

भस्मीकरण (Incineration) अस्पतालों से खतरनाक अपशिष्ट उत्पादित होते है जिनमें हानिकारक रसायनों के साथ - साथ, रोगजनक सूक्ष्मजीव (pathogenic microbes) भी उपस्थित होते हैं। रक्त, पस (Pus) ऊतक और कोशिकाओं वाले इस अपशिष्ट के सावधानीपूर्ण उपचार व निस्तारण की आवश्यकता होती है। भस्मीकरण अर्थात् पूर्णत: जलाना इसका एक अच्छा विकल्प है। अस्पतालों में अपशिष्ट के निस्तारण हेतु भस्मीकरण (incineration) अनिवार्य बना दिया गया है। इस प्रक्रिया द्वारा अपशिष्ट का मूल आयतन भी काफी कम किया जा सकता हैं।

ताप अपघटन (Pyrolysis) आक्सीजन के अभाव अर्थात अनॉक्सी अवस्था में दहन पाइरोलिसिस कहलाता है। 
पुनर्चक्रण (Recycle) बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने का एक महत्वपूर्ण उपाय अपशिष्ट में उपस्थित उपयोगी पदार्थों का पुनः चक्रण (recycling) या पुनः प्राप्ति या रिकवरी (recovery) है। पुनः चक्रण से पृथ्वी पर अपशिष्टों का अनावश्यक जमाव नहीं होता, साथ ही यह बारम्बार प्रयोग होता रहता है, अत: संसाधनों का भी संरक्षण (conservation) होता है। कागज, पॉलीथीन व प्लास्टिक, काँच आदि का पुनर्चक्रण आसानी से किया जा सकता है। जैव अपघटनीय पदार्थों का पुनर्चक्रण का आप अध्ययन कर चुके हैं।

प्लास्टिक अपशिष्ट के उपचार से सम्बन्धित एक अध्य यन (Case Study of Remedy for Plastic Waste) 
बंगलौर में रहने वाले प्लास्टिक की बोरियों के उत्पादनकर्ता अहमद खान ने प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निबटने का एक नवाचार (innovative) तरीका विकसित किया है। अहमद खान पिछले कुछ दशकों से प्लास्टिक के थैलों का उत्पादन करते आ रहे हैं। कुछ वर्षों पहले उन्होंने अनुभव किया कि प्लास्टिक अपशिष्टों का एकत्रित होना एक हमेशा ही बढ़ने वाली समस्या है। उनकी कम्पनी ने इस अपशिष्ट से एक पुनः चक्रित (recycled), रूपान्तरित प्लास्टिक पॉलीब्लेंड (polyblend) बनाना प्रारम्भ किया जो महीन पाउडर के रूप में था। इस मिश्रण को सड़क बनाने में प्रयोग होने वाले बिटुमेन (bitumen) के साथ मिश्रित किया गया। वहाँ के आर वी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (RV college of Engineering) तथा बंगलौर सिटी कॉरपोरेशन (Bangalore City Corporation) के सहयोग से अहमद खान ने यह सिद्ध किया कि बिटुमेन के साथ पॉलीब्लेंड के मिश्रण से बनी सड़क की गुणवत्ता केवल बिटुमेन से बनी सड़क से बेहतर होती है। पॉलीब्लेंड, बिटुमेन के जल प्रतिकर्षी गुण (Water repellant properties) में बढ़ोत्तरी कर सड़को की आयु तीन गुना बढ़ा देता है। पॉलीब्लेंड बनाने के लिए किसी भी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकता है। उस समय कूड़ा बीनने वाले (rag pickers) को एक किया० पॉलीथीन के लिए मात्र 0.40 पैसे का भुगतान किया जाता था। खान ने प्रति क्रिगा ₹ 6 की दर से भुगतान प्रारम्भ किया। सन् 2002 तक बंगलौर में पॉलीब्लेंड का प्रयोग कर 40 किमी. लम्बी सड़क तैयार हो चुकी थी। पॉलीथीन जैसे अजैव अपघटनीय अपशिष्ट से छुटकारा दिलाने का यह प्रयास सराहनीय है।

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 6. 
जलीय खाद्य श्रृंखला में DDT की जैव आवर्धन परिघटना को एक प्रवाह चार्ट की सहायता से दर्शाइये।
उत्तर:
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 1

प्रश्न 7. 
उत्प्रेरकी परिवर्तक (कैटेलिटिक कनवर्टर) में प्रयोग की जाने वाली दो धातुओं के नाम लिखिए। वह किस प्रकार पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं?
उत्तर:
धातुएँ - प्लेटीनम, पैलेडियम व रोडियम।
जब उत्सर्जी गैसें कैटेलिटिक कनवर्टर से गुजरती हैं तब हानिकारक प्रदूषक हानिरहित पदार्थों/कम हानिकारक पदार्थों में बदल जाते हैं जैसे - बिना जले हाइड्रोकार्बन-कार्बन डाइ ऑक्साइड व जल में बदल जाते है। कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) में बदल जाती है। नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन गैस में बदल जाती है।

प्रश्न 8. 
कोई ऐसी चार विधियाँ बताइये जिनके द्वारा मोटर वाहनों से निकलने वाले वायु प्रदूषण के कारकों को नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर:

  1. वाहनों में डीजल के स्थान पर सी एन जी का प्रयोग करना।
  2. वाहनों में सीसा मुक्त (lead free) पेट्रोल का प्रयोग करना। 
  3. वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग करना। 
  4. वाहनों का उचित रखरखाव करना तथा भारत/यूरो के अद्यतन मानकों का प्रयोग करना। 

प्रश्न 9. 
यदि किसी ताप विद्युत संयंत्र का स्थिर वैधुत अवक्षेपित्र काम करना बन्द कर दे तो क्या परिणाम होंगे?
उत्तर:
स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र या इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर (Electrostatic precipitator) का प्रयोग धर्मल पावर प्लांट में कणिकीय पदार्थ (Particulate matter) को हटाने के लिए किया जाता है। यदि यह काम नहीं करेगा तो संयंत्र से निकलने वाले एजास्ट से कणिकीय पदार्थ अलग नहीं होंगे तथा इससे वायुमण्डलीय प्रदूषण बढ़ेगा। 

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प्रश्न 10. 
(a) उन ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखिर जो वैश्विक ऊष्मायन उत्पन्न करती हैं। 
(b) इनमें से कौन - सी ओजोन परत में छिद्र के लिए भी उत्तरदायी हैं। यह कैसे होता है?
उत्तर:
(a) कार्बन डाइ ऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व क्लोरोफ्लुओरो कार्बन। 
(b) क्लोरोफ्लुओरो कार्बन के कारण ओजोन का क्षरण (depletion) होता है। यह निम्न प्रकार होता है-
वायुमण्डल के निचले स्तर में मुक्त हुई क्लोरोफ्लुओरोकार्बन गैसें ऊपर उठकर स्ट्रेटोस्फीयर तक पहुँच जाती हैं। यहाँ इन पर पराबैंगनी किरणे क्रिया पर इनसे क्लोरीन (Cl) परमाणु मुक्त कर देती हैं। क्लोरीन ओजोन का विघटन करता है जिससे आण्विक आक्सीजन (O2) निकलती है। क्लोरीन परमाणु इस क्रिया में प्रयुक्त नहीं होते तथा केवल उतोरक (catalyst) की तरह कार्य करते हैं। अत: CFCs के मुक्त होने पर इसके द्वारा बनी क्लोरीन से ओजोन का विघटन लगातार जारी रहता है। 

प्रश्न 11. 
तापीय बिजलीघरों में अहानिकारक गैसों के साथ - साथ कणिकीय तथा गैसीय प्रदुषक भी निकलते हैं। 
(i) निकलने वाली किन्हीं दो अहानिकारक गैसों के नाम लिखिर। 
(ii) वायु में से कणिकीय प्रदूषकों को हटा देने में सर्वाधिक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली युक्ति का नाम लिखिए। यह युक्ति किस प्रकार कार्य करती है समझाइये?
उत्तर:
(i) अहानिकारक गैसे - नाइट्रोजन व आक्सीजन
(ii) कणिकीय पदार्थ हटाने वाली युक्ति स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (Electrostatic Precipitator) यह युक्ति थर्मल पावर प्लांट के एग्जास्ट (exhaust) में उपस्थित 99 प्रतिशत कणिकीय पदार्थ को हटा देती है। इसमें कई हजार वोल्ट के इलेक्ट्रोड होते है जो इलेक्ट्रान मुक्त करने वाले कोरोना का निर्माण करते हैं। मुक्त हुए इलेक्ट्रान धूल के कणों से चिपककर उन्हें अणावेशित बना देते हैं। एनोडरूपी संग्राहक प्लेट इन आवेशित धूल के कणों को नीचे आकर एकत्रित करती रहती है। इन प्लेटों के बीच वाय का वेग इतना कम रखते है जिससे धूल के कण नीचे बैठ सकें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
जलीय खाद्य श्रृंखला में होने वाले 'डी०डी०टी० के जैव आवर्धन का वर्णन कीजिए। खाद्य श्रृंखला के अंतिम पोषण स्तर के जीवों पर इस प्रक्रम के प्रतिकूल (ऋणात्मक) प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जैव आवर्धन या बायोमैग्नीफिकेशन (Biomagnification)
जैव आवर्धन (Biological Concentration/Biological amplification) वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी विषाक्त अजैव अपघटनीय (non biodegradable) पदार्थ का सान्द्रण खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक अगले स्तर में बढ़ता रहता है। कुछ विषाक्त पदार्थ जो औद्योगिक अपशिष्ट में अक्सर पाये जाते हैं, जलीय खाद्य श्रृंखला में जैव आवर्धन प्रदर्शित. कर सकते हैं। जैव आवर्धन इसलिए होता है क्योंकि एक जीवधारी द्वारा एकत्रित किया गया विषाक्त पदार्थ उसके द्वारा उपापचयित (metabolise) नहीं होता। न ही जीव इस पदार्थ को उत्सर्जन द्वारा शरीर से बाहर निकाल पाता है। प्रत्येक स्तर के जीव में एकत्रित यह विषाक्त पदार्थ अगले पोषण स्तर (trophic level) के जीव में स्थानान्तरित हो जाता है।

डी.डी.टी (DDT) व मरकरी के जैव आवर्धन के अनेक उदाहरणों का अध्ययन किया जा चुका है। संलग्न चित्र में एक जलीय खाद्य श्रृंखला (aquatic food chain) में DDT का जैव आवर्धन दिखाया गया है। इस प्रकार क्रमिक पोषण स्तरों में डी.डी.टी. का सान्द्रण क्रमशः बढ़ता जाता है। उदाहरण के लिए आरम्भ में जल में अगर डी.डी.टी. की सान्द्रता 0.003 पी.पी.बी (ppb = parts per billion) है, तो यहाँ से प्रारम्भ हुए जैव आवर्धन में मछली खाने वाले पक्षी में डी.डी.टी. की मात्रा 25 पी.पी.एम. (ppm - parts per million) हो सकती है। पक्षियों में डी.डी.टी. का उच्च सान्द्रण कैल्शियम उपापचय (calcium metabolism) में गड़बड़ी पैदा कर देता है। फलस्वरूप उनके अण्डों का कवच (egg shell) पतला हो जाता है तथा समय से पहले ही टूट जाता है। इससे पक्षियों की समष्टि का आकार घटता जाता है। खाद्य शृंखलाओं की व्यापकताओं के कारण जैव आवर्धन दूर - दराज के पक्षियों में भी देखा गया है।
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प्रश्न 2. 
बंगलर में प्लास्टिक की बोरी के उत्पादनकर्ता अहमद खान ने "प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या का एक आदर्श हल बैंड निकाला। ठोस अपशिष्ट निपटान की चुनौतियों के समाधान हेतु अहमद खान द्वारा किए गए प्रयासों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्लास्टिक अपशिष्ट के उपचार से सम्बन्धित एक अध्य यन (Case Study of Remedy for Plastic Waste) 
बंगलौर में रहने वाले प्लास्टिक की बोरियों के उत्पादनकर्ता अहमद खान ने प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निबटने का एक नवाचार (innovative) तरीका विकसित किया है। अहमद खान पिछले कुछ दशकों से प्लास्टिक के थैलों का उत्पादन करते आ रहे हैं। कुछ वर्षों पहले उन्होंने अनुभव किया कि प्लास्टिक अपशिष्टों का एकत्रित होना एक हमेशा ही बढ़ने वाली समस्या है। उनकी कम्पनी ने इस अपशिष्ट से एक पुनः चक्रित (recycled), रूपान्तरित प्लास्टिक पॉलीब्लेंड (polyblend) बनाना प्रारम्भ किया जो महीन पाउडर के रूप में था। इस मिश्रण को सड़क बनाने में प्रयोग होने वाले बिटुमेन (bitumen) के साथ मिश्रित किया गया। वहाँ के आर वी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (RV college of Engineering) तथा बंगलौर सिटी कॉरपोरेशन (Bangalore City Corporation) के सहयोग से अहमद खान ने यह सिद्ध किया कि बिटुमेन के साथ पॉलीब्लेंड के मिश्रण से बनी सड़क की गुणवत्ता केवल बिटुमेन से बनी सड़क से बेहतर होती है।

पॉलीब्लेंड, बिटुमेन के जल प्रतिकर्षी गुण (Water repellant properties) में बढ़ोत्तरी कर सड़को की आयु तीन गुना बढ़ा देता है। पॉलीब्लेंड बनाने के लिए किसी भी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकता है। उस समय कूड़ा बीनने वाले (rag pickers) को एक किया० पॉलीथीन के लिए मात्र 0.40 पैसे का भुगतान किया जाता था। खान ने प्रति क्रिगा ₹ 6 की दर से भुगतान प्रारम्भ किया। सन् 2002 तक बंगलौर में पॉलीब्लेंड का प्रयोग कर 40 किमी. लम्बी सड़क तैयार हो चुकी थी। पॉलीथीन जैसे अजैव अपघटनीय अपशिष्ट से छुटकारा दिलाने का यह प्रयास सराहनीय है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित)

प्रश्न 1. 
समताप मण्डल में क्लोरीन का एक अकेला परमाणु निम्नलिखित में ओजोन के कितने अणुओं को विघटित करने में समर्थ है? 
(a) 10,000
(b) 50,000 
(c) 100,000 
(d) 1000000 
उत्तर:
(c) 100,000 

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प्रश्न 2. 
मिनेमाटा प्रदूषण से होने वाला एक रोग है। यह किसके परिणामस्वरूप होता है?
(a) समुद्र में तेल के रिसाव 
(b) DDT के द्वारा
(c) औद्योगिक अपशिष्टों में उपस्थित पारे द्वारा
(d) आर्सेनिक के एकत्रीकरण द्वारा। 
उत्तर:
(c) औद्योगिक अपशिष्टों में उपस्थित पारे द्वारा

प्रश्न 3. 
क्योटो प्रोटोकोल का अनुमोदन कहाँ हुआ था
(a) COP - 3 
(b) COP - 5 
(c) COP - 6 
(d) COP - 4
उत्तर:
(a) COP - 3 

प्रश्न 4. 
चावल के खेत से निकलने वाली गैस जो पृथ्वी के बढ़ते तापमान से सम्बन्धित है-
(a) CO2
(b) क्लोरीन 
(c) H2S
(d) मेथेन। 
उत्तर:
(d) मेथेन। 

प्रश्न 5. 
DDT अवशेष तेजी से खाद्य श्रृंखला में गुजरते हुए जैव आवर्धन पैदा करते हैं क्योंकि DDT 
(a) वसाओं में घुलनशील है 
(b) मामूली तौर पर विषाक्त है 
(c) जलीय प्राणियों के लिए अविषाक्त
(d) जल में घुलनशील है। 
उत्तर:
(a) वसाओं में घुलनशील है 

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प्रश्न 6. 
वायुमण्डल में ओजोन की सुरक्षात्मक पर्त पायी जाती है
(a) ट्रोपोस्फीयर में 
(b) आयोनोस्फीयर में
(c) स्ट्रेटोस्फीयर में 
(d) वायुमण्डल में 
उत्तर:
(c) स्ट्रेटोस्फीयर में 

प्रश्न 7. 
निम्न में से कौन - सी ग्रीन हाउस गैस नहीं है-
(a) जलवाष्प
(b) कार्बन डाइ ऑक्साइड 
(c) मेथेन
(d) ऑक्सीजन में 
उत्तर:
(d) ऑक्सीजन में 

प्रश्न 8. 
वायु अधिनियम 1987 में संशोधन कर किस एक को प्रदूषक के रूप में सम्मिलित किया गया। 
(a) जल
(b) ध्वनि 
(c) धूल
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ध्वनि 

प्रश्न 9. 
ग्रीन हाउस प्रभाव किसकी उपस्थिति के कारण होता है?
(a) वायुमण्डल में ओजोन पर्त 
(b) पृथ्वी पर पहुंचने वाला इन्फ्रारेड प्रकाश 
(c) वायुमण्डल में नमी की पर्त
(d) वायुमण्डल में CO2
उत्तर:
(d) वायुमण्डल में CO2

प्रश्न 10. 
प्रदूषित जल के जैविक उपचार का उद्देश्य होता है
(a) BOD को कम करना 
(b) BOD को बढ़ाना 
(c) अवसादन को कम करना 
(d) अवसादन को बढ़ाना।
उत्तर:
(a) BOD को कम करना 

HOTS : Higher Order Thinking Skill Questions

प्रश्न 1. 
फसलों की उच्च उत्पादकता वाली किस्मों से जल प्रदूषण जैसी समस्याएँ कैसे उत्पन्न हुई है। समझाइये। 
उत्तर:
उच्च उत्पादकता वाली किस्मों (high yielding varieties) के लिए पोषक पदार्थों (रासायनिक उर्वरक) एवं जल दोनों की मांग अधिक है। खेतों में अधिक नाइट्रोजन व फास्फोरस उर्वरक प्रयोग करने पर वह वर्षा में खेतों से बहे पानी (run off water) के साथ जलाशयों में पहुंच जाते हैं। यहाँ यह सुपोषीकरण (eutrophication) में तेजी लाते है। खेतों में जलाक्रांत (waterlogging) व लवणता (salinity) को समस्या भी उच्च उत्पादकता किस्मों के इन्हीं गुणों से जुड़ी है। 

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प्रश्न 2. 
नाभिकीय परीक्षणों पर रोक लगाने के उद्देश्य से चलाये जा रहे जनमानस के विरोध अभियानों का आधार क्या है? 
उत्तर:
नाभिकीय प्रदूषण सबसे खतरनाक प्रदूषण है। यह वायु, जल व मृदा तीनों को ही प्रदूषित करता है। अतः पृथ्वी पर कोई ऐसा स्थान नही बचता जो नाभिकीय प्रदूषण से अछूता हो। इसकी उच्च मात्रा तत्काल जानलेवा होती है। यद्यपि नाभिकीय ऊर्जा का अनेक शान्तिपूर्ण कार्यों (ऊर्जा उत्पादन) हेतु प्रयोग किया जाता है मगर नाभिकीय (रेडियो सक्रिय) पदार्थों के प्राप्त करने, भण्डारण, परिवहन, अपशिष्ट निस्तारण आदि सभी स्तर पर अनेक खतरों को दृष्टिगत रखते हुए ही इसका विरोध किया जाता है। 

प्रश्न 3. 
औद्योगिक बहिःसाव का प्रबन्धन म्यूनिसिपिल वाहित मल के प्रबन्धन से कठिन क्यों है? 
उत्तर:
म्यूनिसिपल वाहितमल में प्राथमिक उपचार में छानने व अवसादन के बाद जैव अपघटनीय कार्बनिक अशुद्धियाँ ही बचती हैं जिन्हें सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट में ही जैविक उपचार के पद में अलग किया जा सकता है, लेकिन औद्योगिक बहिःस्राव (industrial effluents) में अनेक अजैव अपघटनीय (non biodegradable) प्रदूषक व भारी धातुएँ (heavy metals) हो सकती हैं जो पर्यावरण को अधिक प्रदूषित करती हैं व इन्हें आसानी से निस्तारित नहीं किया जा सकता। 

प्रश्न 4. 
घरेलू वाहित मल से नदियों में होने वाले प्रदूषण को कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है? 
उत्तर:
नदियों में विसर्जित करने से पहले अगर वाहितमल को सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट में उपचारित कर लिया जाय तो जल का प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही पोषक उर्वरक व बायोगैस के रूप में ऊजा मुफ्त मिलेगी।

NCERT EXEMPLAR PROBLEMS

बहुविकल्पीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
अजैव अपघटनीय पदार्थों का निर्माण कौन करता है? 
(a) प्रकृति
(b) संसाधनों का अत्यधिक दोहन 
(c) मनुष्य
(d) प्राकृतिक आपदायें 
उत्तर:
(c) मनुष्य

प्रश्न 2. 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार वह कण जो मनुष्य के स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुंचा सकते हैं किस व्यास के होते
(a) 2.5 माइक्रोमीटर 
(b) 5.0 माइक्रोमीटर
(c) 10 माइक्रोमीटर 
(d) 7.5 माइक्रोमीटर 
उत्तर:
(a) 2.5 माइक्रोमीटर 

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प्रश्न 3. 
रिकार्डिंग स्टुडियो या आडिटोरियम जैसे कमरों को ध्वनिरोधी (sound proof) बनाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला पदार्थ
(a) कपास (cotton) 
(b) नारियल रेशे (coir) 
(c) लकड़ी (wood)
(d) स्टाइरो फोम (styro foam)। 
उत्तर:
(d) स्टाइरो फोम (styro foam)।

प्रश्न 4. 
संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas - CNG) है अधिकतम
(a) प्रोपेन
(b) मेथेन 
(c) ऐथेन
(d) ब्यूटेन। 
उत्तर:
(b) मेथेन 

प्रश्न 5. 
दुनिया का सर्वाधिक समस्याजनक जलीय खरपतवार है-
(a) एजोला
(b) वोल्फिया 
(c) आइकोर्निया 
(d) ट्रैपा
उत्तर:
(c) आइकोर्निया 

प्रश्न 6. 
निम्न में से कौन - सा जैव आवर्धन करता है-
(a) SOR
(b) मरकरी 
(c) DDT
(d) b व c दोनों 
उत्तर:
(d) b व c दोनों 

प्रश्न 7. 
DDT का विस्तृत रूप है
(a) डाइक्लोरो डाइ फेनिल ट्राइ क्लोरोऐथेन 
(b) डाइक्लोरो डाइ ऐधिल ट्राइ क्लोरोऐथेन 
(c) डाइक्लोरो डाइ पाइरीडिल ट्राइ क्लोरोऐथेन
(d) डाइ क्लोरो डाइफेनिल टेट्राक्लोरो एसीटेट। 
उत्तर:
(a) डाइक्लोरो डाइ फेनिल ट्राइ क्लोरोऐथेन 

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प्रश्न 8. 
निम्न में से किस पदार्थ के जैव अपघटन में सर्वाधिक समय लगता
(a) कॉटन
(b) कागज 
(c) हड्डी
(d) जूर। 
उत्तर:
(c) हड्डी

प्रश्न 9. 
निम्न में से गलत कथन कौन - सा है-
(a) मांट्रियल प्रोटोकोल ओजोन के क्षरण करने वाले पदार्थों के उत्सर्जन के नियंत्रण से सम्बन्धित है। 
(b) मेथेन व कार्बन डाइ ऑक्साइड ग्रीन हाउस गैसें हैं 
(c) डोबसन इकाई का प्रयोग ऑक्सीजन की मात्रा मापने में होता है 
(d) अस्पतालों के अपशिष्ट के निस्तारण के लिए इनसोनेरेटर (incinerators) का उपयोग आवश्यक है। 
उत्तर:
(c) डोबसन इकाई का प्रयोग ऑक्सीजन की मात्रा मापने में होता है 

प्रश्न 10. 
निम्न में से कौन - सा कमरे के अन्दर (Indoor) अधिक रासायनिक प्रदूषण करता है?
(a) कोयले का जलना 
(b) कुकिंग गैस का जलना 
(c) मच्छर प्रतिकर्षक कॉइल का जलना
(d) रूम स्प्रे 
उत्तर:
(c) मच्छर प्रतिकर्षक कॉइल का जलना

प्रश्न 11. 
स्वच्छ जलीय जलाशयों पर कई पाई जाने वाली हरी परत है
(a) नील हरित शैवाल 
(b) लाल शैवाल 
(c) हरे शैवाल
(d) a व c दोनों 
उत्तर:
(d) a व c दोनों

प्रश्न 12. 
ध्वनि की व्यावहारिक तीव्रता जिसे एक व्यक्ति बिना किसी असुविधा के सहन कर सकता है
(a) 150dB
(b) 215 dB
(c) 30dB
(d) 70dB 
उत्तर:
(d) 70dB 

प्रश्न 13. 
अपशिष्ट जल से निम्न में से किस प्रकार की अशुद्धि निकाला जाना सर्वाधिक सुलभ है
(a) जीवाणु
(b) कोलॉइड 
(c) पुलित ठोस
(d) निलम्बित ठोस 
उत्तर:
(d) निलम्बित ठोस 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 14. 
निम्न में से कौन - सा रोग संदूषित जल के कारण नहीं होता
(a) हिपेटाइटिस B 
(b) पोलिया
(c) हैजा
(d) टायफॉइड 
उत्तर:
(a) हिपेटाइटिस B 

प्रश्न 15. 
कालमा वा में दिये पदों का मिलान कर सही विकल्प का चुनाव कीजिए

कॉलम ।

कॉलम ॥

(A) UV

(i) जैव आवर्धन

(B) जैव अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ

(ii) सुपोषीकरण

(C) DDT

(iii) स्नो ब्लाइंडनेस

(D) फॉस्केट

(iv) BOD


(a) A → ii, B → i,C → iv,D → iii 
(b) A → iii, B → ii,C → iv, D → i 
(c) A → iii, B → iv,C → i,D → ii 
(d) A → iii, B → i,C → iv, D → ii
उत्तर:
(c) A → iii, B → iv,C → i,D → ii 

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
किस वर्ष वायु प्रदूषण रोकधाम व नियन्त्रण) अधिनियम में संशोधन कर ध्वनि को एक प्रदूषक के रूप में शामिल किया गया? 
उत्तर:
1987. 

प्रश्न 2. 
ऐसे शहर का नाम लिखिए जहाँ सड़क का पूरा सार्वजनिक परिवहन सी एन जी आधारित है। 
उत्तर:
दिल्ली। 

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प्रश्न 3. 
पानी की टंकियों से समय - समय पर गाद निकाली (desilting) जाती है। पानी में इस गाद (silt) का क्या संभावित स्रोत हो सकता है?
उत्तर:
आपूर्ति के स्रोत से पानी के साथ आने वाले मृदा कण।

प्रश्न 4. 
पॉलीब्लेंड के लिए कच्चा माल क्या है? 
उत्तर:
पॉलीथीन/प्लास्टिक अपशिष्ट।

प्रश्न 5. 
कल्चरल यूट्रोफिकेशन क्या है? 
उत्तर:
घरों व उद्योगों के बहि:स्राव में उपस्थित प्रदूषको (पोषकों जैसे नाइट्रेट व फॉस्फेट) के कारण सुपोषण (eutrophication) की प्रक्रिया में आई तेजी त्वरित सुपोषण कहलाती है। इससे जलाशय में काल प्रभावन (aging) बहुत तेजी से होता है। इसे कल्चरल बूट्रोफिकेशन भी कहते हैं। 

प्रश्न 6. 
कणिकामय पदार्थ के मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दो हानिकारक प्रभावों के नाम लिखिए।
उत्तर:
यह कण साँस के साथ श्वसन मार्ग में चले जाते हैं तथा वहाँ उत्तेजना (irritability) व शोथ (inflammation) उत्पन्न करते है। ये फेफड़ों को क्षति पहुँचाते हैं। 

प्रश्न 7. 
घरेलू अपशिष्ट द्वारा जल में उपस्थित तीन प्रमुख प्रकार की अशुद्धियाँ क्या है? 
उत्तर:
परेलू वाहित मल के विभिन्न घटक निम्नलिखित है-
जल = 99.9%, अशुद्धियाँ 0.1% 
अशुद्धियाँ (Impurities) 
(a) निलम्बित ठोस (suspended solids): रेत, गाद (silt) व क्ले 
(b) कोलोइड पदार्थ (colloidal matter) मल, जीवाणु, कागज व कपड़े के रेशे 
(c) घुलित पदार्थ - पोषक तत्व (नाइट्रेट, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्सियम) 
जब उसमें से बड़ी अशुद्धियाँ छानकर (filtration) व अवसादन जैसी भौतिक प्रक्रियाओं से अलग कर दी गई हो।
वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव: वाहितमल को नदी में बिना उपचार (reatment) के डालने से, नदी में विसर्जन बिन्दु (dicharge point) से अपवाह (down stream) के जल में निम्न परिवर्तन होंगे-
कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होगी अतः बायोकेमीकल आक्सीजन डिमांड - BOD की मात्रा बढ़ जायेगी। 
घुलित आक्सीजन (DO) को मात्रा में कमी आयेगी। 
साथ ही नदी के पानी में विभिन्न प्रकार के निलम्बित ठोसों के पहुंचने से वह गंदला (turbid) हो जायेगा। मुलित पोषक व प्रदूषक जल के रसायन को परिवर्तित कर देंगे। इन बदलावों से जलीय जीवन (जन्तु व पौधे) जैसे मछली प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा। 
जल में अनेक प्रकार के रोगजनकों सूक्ष्मजीवों के मिल जाने से जलजन्य रोगों जैसे पेचिश, टायफाइड, हैजा व पीलिया का खतरा बढ़ जायेगा। जल पीने योग्य नहीं रहेगा। 

प्रश्न 8. 
शैवाल प्रस्फुटन क्या है? 
उत्तर:
घरेलू वाहित मल और औद्योगिक बहिःस्राव (Domestic Sewage and Industrial Effluents)
घरेलू वाहित मल (sewage) व इसके उपचार के बारे में आप अध्याय 10 में पढ़ चुके है। कुल 0.1 प्रतिशत अशुद्धियों के कारण वाहित मल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रह पाता। सीवेज में निम्न तीन प्रकार की अशुद्धियाँ (impurities) पाई जाती हैं-
1. निलम्बित ठोस (Suspended Solids): जैसे बालू, गाद व चिकनी मिट्टी। 
2. कोलाइडी पदार्थ (Colloidal materials): जैसे मल पदार्थ (fecal material) जीवाणु, कपड़े व कागज के रेशे।
3. विलेय पदार्थ (Dissolved Materials): जैसे पोषक (nutrients) नाइट्रेट, अमोनिया, फास्फेट, सोडियम, कैल्शियम।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 2
वाहित मल या सीवेज से अधुलित ठोस पदार्थों को हटाना अपेक्षाकृत आसान है लेकिन फास्फेट, नाइट्रेट जैसे लवणों का अन्य पोषकों विषैले धातु आयनों व घुलित कार्बनिक पदार्थ का अलग करना कठिन है। प्रदूषित जल के रंग में बदलाव, निलम्बित कणों के कारण टर्विडिटी (turbidity) में बदलाव, स्वाद में बदलाव, झाग निर्माण आदि जल प्रदूषण के कारण होने वाले बदलाव हैं। वाहितमल में प्रमुख रूप से जैव अपघटनीय (Biodegradable) कार्बनिक पदार्थ होता है। यह कार्बनिक पदार्थ जीवाणु व अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में अपघटित कर दिया जाता है।

बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा (मिलीग्राम में) जो 1 लीटर जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रयोग की जाती है, बायोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड या बी ओ डी कहलाती है। अधिक बी ओ डी का अर्थ है जल में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति अर्थात अधिक प्रदूषित जल। बी.ओ.डी. जितनी कम होगी जल में प्रदूषण का स्तर उतना ही कम होगा। शुद्ध जल की बी.ओ.डी. 1 से भी कम होती है। इस प्रकार बी.ओ.डी. के आकलन से सीवेज जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा जानी जा सकती है। सूक्ष्मजीव, कार्बनिक पदार्थ के वायवीय अपघटन (aerobic oxidation) में चूंकि ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं अतः जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved Oxygen) की मात्रा कम हो जाती है। अत: बी.ओ.डी. का घुलित ऑक्सीजन (डी.ओ) से व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध (inverse relationship) है। उदाहरण के लिए किसी अत्यधिक प्रदूषित जलाशय में बी.ओ.डी. अधिक होगी लेकिन घुलित ऑक्सीजन या डी.ओ. कम होगी। नीचे दिये चित्र में एक नदी में होने वाला वह बदलाव दिया गया है जो उसमें वाहितमल सीवेज के विसर्जन के कारण होता है। नदी में इस वाहितमल के गिरने से उसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के जैव अपघटन के लिए सूक्ष्मजीव बहुत - सी ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 3
फलस्वरूप सीवेज विसर्जन बिन्दु से अनुप्रवाह जल में घुलित ऑक्सीजन (disolved oxygen - DO) की मात्रा में तेजी से कमी आती है। जल में ऑक्सीजन की कमी होने से मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है। लेकिन प्रवाह की दिशा में आगे जाने पर DO बढ़ जाती है तथा BOD कम हो जाती है, अत: जल जीव पुनः प्रकट हो जाते है। शैवाल प्रस्फुटन (Algal bloom) जल में अत्यधिक मात्रा में पोषक पदार्थों की उपस्थिति के कारण मुक्त प्लावी अर्थात स्वतंत्र रूप से तैरने वाली (free floating) शैवाल जो प्लवक (planktons) कही जाती है, की अतिशय वृद्धि होती है। इस प्लवकीय (planktonic) वृद्धि को शैवाल प्रस्फुटन (algal bloom) कहा जाता है।

शैवाल प्रस्फुटन या एल्गल ब्लूम जल को एक विशिष्ट रंग प्रदान कर देते है। एल्गल ब्लूम दुर्गन्धकारी (foul smelling) भी होते हैं क्योंकि इनमें शैवाल च जीवाणुओं का सड़ना भी प्रारम्भ हो जाता है। जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती है तथा मछलियों की मृत्यु होने लगती है। शैवाल प्रस्फुटन बनाने वाले कुछ शैवाल मनुष्य व अन्य जन्तुओं के लिए बहुत जहरीले होते हैं।

जलकुम्भी: बंगाल का आतंक (Water hyacinth a terror of the Bengal) 
सुंदर नीले फूलों वाली जलकुम्भी (Water hyacinth) का पौधा एक जलीय खरपतवार (weed) है, जिसका वैज्ञानिक नाम आइकोनिया क्रेसीपेस (Eichhornia crassipes) है। इन पौधों को इनके सुन्दर फूलों के कारण भारत में लाया गया था। जलकुम्भी आज विश्व का सबसे हठीला व दुसाध्य जलीय खरपतवार (noxious aquatic weed) बन गया है। जल - कुम्भी में तेजी से वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) होता है तथा अतिशय वृद्धि के कारण यह सारे जलमार्गों व जलाशय को ढक देता है। इसी कारण से इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। जलकुम्भी के पौधे सुपोषी जलाशयों (Eutrophic water bodies) में प्रचुर मात्रा में वृद्धि करते है।

इनसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) भी तेजी से होता है। अत: वे एक समृद्ध जल वाले जलाशय को शीघ्र ही दलदली व सूखे स्थान में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में ये पौधे जलाशय की पारितंत्र गतिकी में असंतुलन पैदा कर देते हैं। हमारे घरों के व अस्पतालों के वाहित मल में अनेक प्रकार के अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव (Pathogenic microbes) हो सकते हैं। इस प्रकार के वाहित मल का बिना उपचार के जलाशयों में विसर्जन अनेक प्रकार के गम्भीर जलजन्य रोगों जैसे अतिसार (dysentery), टायफाइड, पीलिया (jaundice) व हैजा (cholera) का कारण बन सकता है।

औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste) 
घरेलु बाहित मल के विपरीत उद्योगों जैसे पेट्रोलियम, कागज निर्माण, धातु निष्कर्षण व प्रसंस्करण (metal extraction and processing) रसायन उत्पादन (Chemical manufact) आदि में अनके प्रकार के विषाक्त पदार्थ (toxic materials) हो सकते हैं। इन पदार्थों में भारी धातुएँ (heavy metals) सर्व प्रमुख हैं। भारी धातुएँ वे धात्विक तत्व हैं जिनका घनत्व >5g/cm3 (ग्राम/सेमी') होता है। जैसे मरकरी, कैडमियम, कॉपर, लेड आदि। विभिन्न प्रकार के कार्बनिक यौगिक (organic compounds) भी औद्योगिक अपशिष्टों के प्रमुख घटक हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
संकर वाहन प्रौद्योगिकी क्या है? उचित उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
पेट्रोल व सी एन जी दोनों ही से चलने वाले वाहन संकर या हाइब्रिड वाहन कहलाते हैं व इस तकनीक को हाइब्रिड वेहिकिल प्रौद्योगिकी कहा जाता है। क्योकि सी एन जी को एक 'ग्रीन' (पारिस्थितिक मित्र) ईधन माना जाता है अत: जीवाश्म ईंधन का संरक्षण होता है तथा पर्यावरणीय प्रदूषण कम होता है। 

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प्रश्न 2. 
क्या यह सही है कि किसी जलाशय के जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो जाने पर जल सेप्टिक हो जाता है। एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिससे जलाशय में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है। 
उत्तर:
जी हाँ जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो जाने पर पानी 'सेप्टिक हो जाता है। कार्यनिक पदार्थ जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में कमी कर देते हैं। 

प्रश्न 3. 
किसी एक ग्रीन हाउस गैस का नाम बताइये तथा इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन का स्रोत बताइये? इसके हानिकारक प्रभाव क्या है? 
उत्तर:
ग्रीन हाउस गैसे - कार्बन डाइ ऑक्साइड व मेथेन, कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्रोत - जीवाश्म इंधन का जलना, प्रभाव - वैश्विक तापायन (global warming) 

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प्रश्न 4. 
स्नो ब्लाइंडनेस से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
सो ब्लाइंडनेस (Snow blindness) पराबैगनी B किरणों की उच्च मात्रा द्वारा आँखों के कार्निया में उत्पन्न किया शोथ (inflammation) है, इसके कारण आंखों को स्थायी क्षति हो सकती है तथा इसे पराबैगनी केरेटाइटिस (ultraviolet keratitis) भी कहा जाता है। 

प्रश्न 5. 
इलेक्ट्रोस्टेटिक पेसिपिटेटर किस प्रकार कार्य करता है? 
उत्तर:

  1. वाहनों में डीजल के स्थान पर सी एन जी का प्रयोग करना।
  2. वाहनों में सीसा मुक्त (lead free) पेट्रोल का प्रयोग करना। 
  3. वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग करना। 
  4. वाहनों का उचित रखरखाव करना तथा भारत/यूरो के अद्यतन मानकों का प्रयोग करना। 
Bhagya
Last Updated on Dec. 4, 2023, 10:15 a.m.
Published Dec. 3, 2023