Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित द्वारा जिस प्रकार की जैव विविधता प्रदर्शित होती है, नाम लिखिए।
(i) भारत में आम की 1000 किस्में
(ii) हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में उग रहे राउवाल्फिया वोमिटोरिया में रेजरपीन की कार्यक्षमता तथा सान्द्रण के सन्दर्भ में पाई जाने वाली विभिन्नताएं।
उत्तर:
(i) आनुवंशिक विविधता
(ii) आनुवंशिक विविधता।
प्रश्न 2.
प्रमुख पृष्ठधारी वर्गकों को प्रदर्शित करते निम्न चित्र में a व b की पहचान करिये।
उत्तर:
(a) स्तनधारी (Mammals)
(b) उभयचर (amphibian)
प्रश्न 3.
संलग्न दिये गये पाई चार्ट में जिसमें अकशेरुकियों की वैश्विक जैव विविधता में उनकी आनुपातिक संख्या दर्शायी गयी है, a तथा b क्या है नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) कौट
(b) मौलस्का।
प्रश्न 4.
भारत के दो अत्यधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों के नाम लिखिष्ट।
उत्तर:
प्रश्न 5.
विश्व में आर्किड्स की लगभग कितनी प्रजातियाँ हैं?
उत्तर:
विश्व में आर्किड्स की लगभग 20,000 प्रजातियाँ हैं।
प्रश्न 6.
किस वैज्ञानिक को जैव विविधता शब्द को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है?
उत्तर:
एडवर्ड विल्सन (Edward Wilson)
प्रश्न 7.
भारत में एम्फीबियन अर्थात उभयचरों की सर्वाधिक विविधता किस क्षेत्र में पाई जाती है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट (Western Ghat)
प्रश्न 8.
किस वैज्ञानिक के यथार्थवादी व वैज्ञानिक आधार वाले अनुमान यह बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर प्रजाति विविधता की संख्या 7 मिलियन है?
उत्तर:
राबर्ट मे (Robert May)
प्रश्न 9.
निम्न पाई चार्ट में, जिसमें पौधों की जैव विविधता निरूपित करते हुए प्रमुख वर्गकों (Taxa) की स्पीशीज आनुपातिक संख्या दर्शाई गई है, अनामांकित क्षेत्र तथा bक्या है? नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) कवक (Fungi)
(b) आवृतबीजी (angiosperms)
प्रश्न 10.
जन्तुओं में सबसे बड़ा (प्रजाति समृद्ध) समूह कौन - सा है?
उत्तर:
कौट (कुल जन्तुओं का 70 प्रतिशत)
प्रश्न 11.
भारत का स्थलीय क्षेत्रफल विश्व के कुल स्थलीय भूभाग का कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
2.4 प्रतिशत।
प्रश्न 12.
भारत में पादपों की लगभग कितनी प्रजातियाँ अभिलेखित हैं?
उत्तर:
लगभग 45000
प्रश्न 13.
भारत में पक्षियों की लगभग कितनी प्रजातियाँ अभिलेखित हैं?
उत्तर:
लगभग 1200
प्रश्न 14.
पृथ्वी पर जैव विविधता का समृद्धतम क्षेत्र किस भाग को माना जाता है?
उत्तर:
अमेजन उष्ण कटिबन्धीय वर्षों वन को
प्रश्न 15.
किस वैज्ञानिक ने अपने फील्ड अध्ययनों में स्पष्ट किया कि ऐसे क्षेत्र जिनमें अधिक प्रजातियाँ होती हैं वह उत्पादकता में साल दर साल कम भिन्नता दर्शाते हैं?
उत्तर:
डेविड टिलमैन (David Tilman)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राणि उद्यान (पार्क), वानस्पतिक उद्यान तथा वन्य जीव सफारी के अतिरिक्त ऐसे तीन उपायों (तरीकों) की व्याख्या कीजिए, जिनके द्वारा संकटोत्पन्न पादपों तथा जंतुओं का बाह्य स्थाने (एक्स सीटू) संरक्षण किया जा रहा है।
उत्तर:
बाह्य स्थाने संरक्षण (Ex situ conservation)
जैव विविधता संरक्षण के इस तरीके में संकटापन्न (threatened) जन्तु व पादप प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाकर एक अन्य व्यवस्था में ले आया जाता है जहाँ उनको पूरी सुरक्षा व संरक्षण प्रदान किया जाता है। जैसे जन्तु पार्क, वानस्पतिक पार्क, वाइल्ड लाइफ सफारी पार्क आदि।
जन्तु पार्क (Zoological Parks or Zoos): प्राणि उद्यान, जन्तु उद्यान या जू (200) ऐसा संरक्षण प्रयास है जिसमें जन्तुओं को चारदीवारी (enclosures) के बीच सीमित रखा जाता है। यहाँ यह जनता के अवलोकनार्थ होते हैं व प्रजनन भी कर सकते हैं। प्राणि उद्यानों में घरेलू जन्तुओं की बजाय वन्य जीवों (wild animals) को ही रखा जाता है इन्हें संरक्षण पार्क की भी संज्ञा दी गई है। भारत में केरल के तिरुवनन्तपुरम स्थित प्राणि उद्यान भारत का सबसे प्राचीन प्राणि उद्यान है।
वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden): वानस्पतिक उद्यान सुरक्षित सीमाओं वाला संरक्षित क्षेत्र है जिसमें शाक, क्षुष, वृक्ष, आरोही पौधे, आर्किड्स सभी प्रकार के पौधे उगाये जाते है। पौधों को अगर उनके प्राकृतिक आवास में विलुप्त होने का खतरा हो तब वानस्पतिक उद्यान व आरबोरेटा (Arboreta) - जहाँ कुछ विशेष वृक्ष प्रजातियाँ उगाई जाती है - संरक्षण का बेहतर विकल्प है। आज बाह्य स्थाने संरक्षण का तरीका पौधों व जन्तुओं को सिर्फ चारदीवारी तक सीमित करने तक ही नहीं रह गया है। संरक्षण के नये तरीके विकसित हुए हैं जैसे
क्रायो बैंक (Cryo bank): इस विधि में संकटापन्न प्रजातियों के ऊतकों (tissues), परागकण, भ्रूण (embryo), युग्मक (gametes) आदि को द्रव नाइट्रोजन में -196°C पर संग्रहित किया जाता है। इस परिस्थिति में वह जीवनक्षम (viable) बने रहते हैं। अनेक जीन बैंकों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। यह विधि अपेक्षाकृत महंगी है, व तकनीकी योग्यता की मांग करती है।
ऊतक संवर्धन (Tissue culture): इस विधि में संकटापन्न पादप प्रजातियों का ऊतक संवर्धन विधि से प्रजनन (propagation) किया जाता
सीड बैंक (Seed Bank): पौधों को उनके बीज के रूप में संरक्षित करना बादास्थाने संरक्षण की महत्त्वपूर्ण विधि है। यह जर्मप्लाज्म के संरक्षण का एक आसान तरीका भी है। इसमें कम स्थान की आवश्यकता होती है। वन्य संकटापन्न जातियों के बीजों को सीड बैंक में आसानी से संग्रहित किया जा सकता है। अनेक प्रजातियों के बीज कम ताप (-20°C) तथा कम आर्द्रता (5-10%) पर रखने पर हजारों वर्षों तक निष्क्रिय बने रहते हैं। पात्रे निषेचन-जन्तुओं में अण्डों का पात्रे या इन विट्रो निषेचन (in vitro fertilization) कर प्रजनन दर बढ़ायी जा रही है।
प्रश्न 2.
जैव विविधता के बाह्य स्थाने (एक्स - सीटू) संरक्षण के छः लाभों की सूची बनाइए।
उत्तर:
बाह्य स्थाने संरक्षण (Ex situ conservation)
जैव विविधता संरक्षण के इस तरीके में संकटापन्न (threatened) जन्तु व पादप प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाकर एक अन्य व्यवस्था में ले आया जाता है जहाँ उनको पूरी सुरक्षा व संरक्षण प्रदान किया जाता है। जैसे जन्तु पार्क, वानस्पतिक पार्क, वाइल्ड लाइफ सफारी पार्क आदि।
जन्तु पार्क (Zoological Parks or Zoos): प्राणि उद्यान, जन्तु उद्यान या जू (200) ऐसा संरक्षण प्रयास है जिसमें जन्तुओं को चारदीवारी (enclosures) के बीच सीमित रखा जाता है। यहाँ यह जनता के अवलोकनार्थ होते हैं व प्रजनन भी कर सकते हैं। प्राणि उद्यानों में घरेलू जन्तुओं की बजाय वन्य जीवों (wild animals) को ही रखा जाता है इन्हें संरक्षण पार्क की भी संज्ञा दी गई है। भारत में केरल के तिरुवनन्तपुरम स्थित प्राणि उद्यान भारत का सबसे प्राचीन प्राणि उद्यान है।
वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden): वानस्पतिक उद्यान सुरक्षित सीमाओं वाला संरक्षित क्षेत्र है जिसमें शाक, क्षुष, वृक्ष, आरोही पौधे, आर्किड्स सभी प्रकार के पौधे उगाये जाते है। पौधों को अगर उनके प्राकृतिक आवास में विलुप्त होने का खतरा हो तब वानस्पतिक उद्यान व आरबोरेटा (Arboreta) - जहाँ कुछ विशेष वृक्ष प्रजातियाँ उगाई जाती है - संरक्षण का बेहतर विकल्प है। आज बाह्य स्थाने संरक्षण का तरीका पौधों व जन्तुओं को सिर्फ चारदीवारी तक सीमित करने तक ही नहीं रह गया है। संरक्षण के नये तरीके विकसित हुए हैं जैसे
क्रायो बैंक (Cryo bank): इस विधि में संकटापन्न प्रजातियों के ऊतकों (tissues), परागकण, भ्रूण (embryo), युग्मक (gametes) आदि को द्रव नाइट्रोजन में -196°C पर संग्रहित किया जाता है। इस परिस्थिति में वह जीवनक्षम (viable) बने रहते हैं। अनेक जीन बैंकों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। यह विधि अपेक्षाकृत महंगी है, व तकनीकी योग्यता की मांग करती है।
ऊतक संवर्धन (Tissue culture): इस विधि में संकटापन्न पादप प्रजातियों का ऊतक संवर्धन विधि से प्रजनन (propagation) किया जाता
सीड बैंक (Seed Bank): पौधों को उनके बीज के रूप में संरक्षित करना बादास्थाने संरक्षण की महत्त्वपूर्ण विधि है। यह जर्मप्लाज्म के संरक्षण का एक आसान तरीका भी है। इसमें कम स्थान की आवश्यकता होती है। वन्य संकटापन्न जातियों के बीजों को सीड बैंक में आसानी से संग्रहित किया जा सकता है। अनेक प्रजातियों के बीज कम ताप (-20°C) तथा कम आर्द्रता (5-10%) पर रखने पर हजारों वर्षों तक निष्क्रिय बने रहते हैं। पात्रे निषेचन-जन्तुओं में अण्डों का पात्रे या इन विट्रो निषेचन (in vitro fertilization) कर प्रजनन दर बढ़ायी जा रही है।
प्रश्न 3.
"नार्वे की अपेक्षा भारत में पारितंत्र विविधता अधिक है।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? कारण बताते हुए अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
अथवा
आनुवंशिक जैव विविधता तथा जातीय (स्पीशीज) जैव विविधता में अन्तर लिखिए जो जैविक संगठन के सभी स्तरों में परिलक्षित होते हैं।
उत्तर:
जैव विविधता (Biodiversity)
"जैव विविधता" (Biodiversity) शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। ग्रीक बायो (bio) अर्थात जीवन तथा लैटिन 'डाइवरसस (diversus) अर्थात विभिन्न। अतः जैव विविधता का सरलतम अर्थ है पृथ्वी पर जीवों की विविधता। सामान्य सन्दों में जीवों के विभिन्न समूहों में प्रजातियों की संख्या जीव विविधता कही जाती है। जीव विविधता या 'बायोडाइवर्सिटी' शब्द को सामाजिक जीव वैज्ञानिक (Sociobiologist) एडवर्ड विल्सन (Edward Wilson) ने लोकप्रिय बनाया। वास्तव में, पृथ्वी पर जीवन के बारे में एक अर्थपूर्ण समझ विकसित करने के लिए हमें प्रजातियों की कुल संख्या ही नहीं उनके बारे में और बहुत कुछ जानने की आवश्यकता है। इसीलिए एडवर्ड विल्सन जैसे वैज्ञानिकों ने विविधता को जैविक संगठन के तीन स्तरों के रूप में वर्णित किया है। ये स्तर है - आनुवंशिक विविधता, प्रजातीय विविधता व पारिस्थितिकीय विविधता। वस्तुत: जैव विविधता से अभिप्राय उस सकल विविधता से है जो जैविक संगठन के किसी भी स्तर पर पाई जाती है।
(a) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity): आनुवंशिक विविधता एक समष्टि (population) के विभिन्न सदस्यों की विविधता से सम्बंधित है। अर्थात यह एक प्रजाति में जीनों (genes) की विभिन्नताओं से सम्बंध रखती है। यह अंतर एलील स्तर पर, जीन स्तर पर या क्रोमोसोम स्तर पर हो सकता है। जैव विविधता शब्द सन् 1985 में डब्ल्यू जी रोसेन (W.G. Rosen) ने प्रतिपादित किया था। ऐसी समष्टियाँ जिनमें उच्च स्तर की आनुवंशिक विविधता होती है, परिवर्तित पर्यावरण में बेहतर अनुकूलन विकसित करने में सक्षम हो सकती हैं। अगर किसी प्रजाति की समष्टि बहुत छोटी व पृथक्कित (isolated) है तब इसकी आनुवंशिक विविधता में हुई हानि से इसके विलुप्त होने का बड़ा खतरा होता है। दूसरी ओर, एक प्रजाति अपने विस्तृत वितरण क्षेत्र में उच्च आनुवंशिक विविधता दर्शा सकती है। हिमालय की विभिन्न श्रेणियों में उगने वाले औषधिय पौधे राऊबोल्फिया बोमिटोरिया (Rauwolfia vomitoria) की आनुवंशिक विविधता उसके द्वारा उत्पादित सक्रिय रसायन रेजरपिन (Reserpine) की सान्द्रता व क्षमता से सम्बंधित हो सकती है। अर्थात आनुवंशिक विविधता प्रदर्शित करने वाले विभिन्न जीवों के मानवोपयोगी गुण भिन्न - भिन्न हो सकते हैं, जिनसे मनुष्य को लाभ मिल सकता है। भारत में धान के 50,000 से भी अधिक विभेद व आम की 1000 से भी अधिक किस्में हैं। ये नई प्रजाति की उत्पत्ति हेतु कच्चा माल या आधार बनाती हैं।
(b) प्रजातीय विविधता (Species Diversity): यह प्रजाति (species) स्तर की विविधता है, वास्तव में प्रजातियाँ, विविधता की विशिष्ट इकाई हैं तथा पारितंत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अत: प्रजाति के विलोपन का समय पारितंत्र पर प्रभाव पड़ता है। प्रजाति विविधता के मापन का सरलतम तरीका प्रति इकाई क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या है। इसे प्रजाति समृद्धता (species richness) कहा जाता है। प्रकृति में प्रजाति के प्रकार व संख्या दोनों ही भिन्न होती है जिससे विविधता और बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाटों (westerm ghats) में उभयचर प्रजातियों की विविधता पूर्वी घाटों की अपेक्षा अधिक है।
(c) पारिस्थितिकीय विविधता (Ecological Diversity): पारिस्थितिकीय या इकोलॉजीकल विविधता को भूदृश्य विविधता (Landscape diversity) भी कहा जाता है। इसका अर्थ है एक बड़े लैंडस्केप में पारस्परिक क्रिया करने वाले पारितंत्रों का समूह। उदाहरण के लिए किसी भूदृश्य में घास के मैदान हो सकते हैं, पहाड़ हो सकते हैं, नदियाँ व वन आदि हो सकते हैं।
भारत में पारितंत्र के स्तर पर मरुस्थल, वर्षा वन, मैग्रोव, कोरल रीफ, आई क्षेत्र (wet lands), नदी मुहाने (estuaries) तथा एल्पाइन मेडो (alpine meadows) जैसे विविध क्षेत्र है अतः यहाँ पारितंत्र विविधता स्केंडीनेवियाई देश नावें से बहुत अधिक है। नावें एक ठण्डा देश है अत: वहाँ वर्षा वन, मैगोंव आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जैव विकास के लाखों वर्षों के सफर में प्रकृति में इस समृद्ध जैव विविधता का विकास हुआ है। लेकिन अगर जैव विविधता में हो रही क्षति अपनी वर्तमान दर पर जारी रही तो यह अनूठी सम्पदा दो शताब्दी से भी कम समय में हमारे हाथों से निकल सकती है। अत: आज जैव विविधता व इसका संरक्षण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे बने हुए हैं, क्योंकि वैश्विक स्तर पर अधिक से अधिक लोग इस तथ्य को जान चुके हैं कि जैव विविधता का संरक्षण इस ग्रह पर स्वयं मनुष्य के जीवित बने रहने व कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
प्रश्न 4.
स्वस्थाने संरक्षण से संकटापन्न स्पीशीज को मदद मिल सकती है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
जैव विविधता हानियों के किन्हीं तीन कारणों के नाम बताइए तथा उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वस्थाने संरक्षण (in situ conservation)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है स्वस्थाने (in situ) संस्क्षण नीति में पूरे पारितंत्र (ecosystem) का संरक्षण किया जाता है। इस नीति में प्रारूपिक पारितंत्र समूहों को सुरक्षित क्षेत्रों का एक पूरा जाल बनाकर संरक्षित किया जाता है। अनेक देश विकास बनाम संरक्षण (development versus conservation) के विवाद में इस कदर उलझे हैं कि उन्हें अपनी सारी जैविक सम्पदा को संरक्षित करना अवास्तविक व अस्वभाविक लगता है तथा आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं जान पड़ता। तो दूसरी ओर विलुप्तिकरण से बचने हेतु संरक्षण की बाट जोह रही प्रजातियों की संख्या इतनी अधिक है कि उनके सामने संरक्षण के उपलब्ध साधन अपर्याप्त जान पड़ते हैं। प्रतिष्ठित संरक्षणविदों (conservationits) ने इस समस्या को सुलझाने का प्रयास वैश्विक स्तर पर किया है।
जैव विविधता हॉटस्पॉट (Biodiversity Hotspots)
विश्व के कुछ क्षेत्रों को संरक्षणविदों ने जैव विविधता हॉटस्पॉट का नाम दिया है क्योंकि वहाँ प्रजाति समृद्धता उच्च स्तर की है। अप्रत्याशित रूप से प्रजातियों की अत्यधिक संख्या के साथ - साथ वहाँ उच्च स्थानिकता या एण्डेमिज्म (endemism) भी पायी जाती है। स्थानिकता या एण्डेमिज्म का तात्पर्य है- 'प्रजाति किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष तक सीमित है तथा विश्व में और कहीं नहीं पाई जाती।' विश्व की ज्ञात उच्च पादप प्रजातियों में से लगभग 44% तथा लगभग 35% स्थलीय पृष्ठधारी (terrestrial vertebrate) प्रजातियाँ लगभग 35% हॉटस्पॉट में पायी जाती है जबकि सभी हॉटस्पॉट विश्व के कुल स्थलीय क्षेत्र के मात्र 1.4% भाग तक सीमित है। प्रारम्भ में 25 जैव विविधता हॉटस्पॉट की पहचान की गई थी लेकिन बाद में इस सूची में 9 हॉट स्पॉट और जोड़े गये जिससे इनकी कुल संख्या 34 हो गई। दुर्भाग्य से ये हॉटस्पॉट ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ तेजी से पर्यावासों की हानि हो रही है। इनमें से तीन हॉटस्पॉट हमारे अपने देश की असाधारण रूप से उच्च जैव विविधता को दर्शाते है ये हैं-
विश्व के कुछ अन्य प्रमुख हॉटस्पॉट है मैडागास्कर द्वीप समूह, दक्षिणी अफ्रीका का केप क्षेत्र, कैलीफोर्निया के तटीय क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का ग्रेट - बैरियर रीफ (Great barrier Reef of Australia)। संसार के सारे हॉटस्पॉट मिलकर विश्व के कुल स्थलीय क्षेत्र का कुल 2 प्रतिशत से भी कम भाग बनाते हैं। इन हॉटस्पॉट की विशेष सुरक्षा द्वारा विलोपन की दर को 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
हॉटस्पॉट को चिन्हित करने की कसौटी-
भारत में सुरक्षित क्षेत्र तंत्र (Protected Area Network in India)
अपने देश में पारिस्थितिक रूप से अनूठे और जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों की 5 सुरक्षा व संरक्षण के लिए सभी स्तरों पर अनेक प्रयास हुए हैं। भारत विश्व के विशाल जैव विविधता क्षेत्रों (Mega Diversity Countries) में से एक है। न विश्व की जैविक विविधता में भारत का योगदान लगभग 8% है जबकि यह विश्व के मात्र 2.4 प्रतिशत स्थलीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत में 14 बायोस्फीयर रिजर्व, 90 राष्ट्रीय पार्क, 448 वन्य जीव अभयारण्य समृद्ध जैविक सम्पदा की सुरक्षा व संरक्षण हेतु बनाये गये है।
अथवा
जैव विविधता की क्षति के कारण (Causes of biodiversity losses)
विलुप्तिकरण पर प्रभावी रोक लगाने के लिए यह आवश्यक है कि इसके कारणों को सही सही पहचान की जाय। शोधार्थियों ने पाया है कि इसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इनमें चार प्रमुख कारण है जिनको पातकी चौकड़ी' इविल क्वाटेंट (Evil Quartet) की संज्ञा दी गई है।
(i) पर्यावासीय क्षति तथा विखंडन (Habitat Loss and Fragmentation): पर्यावासीय क्षति तथा विखंडन प्रजातियों के विलुप्तिकरण का प्रमुख कारण है। पर्यावासीय क्षति सभी प्रकार के पारितंत्रों में हुई है लेकिन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में हुई इस अति ने बड़ी तबाही मचाई है। एक समय में वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत से अधिक भाग पर फैले हुए थे जो अब मात्र 6 प्रतिशत भाग पर सिमट गये हैं। उनका तेजी से विनाश हो रहा है। जब तक आप यह अध्याय पूरा पढ़ पायेंगे तब तक 1000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वर्षा वनों का सफाया कर दिया जायेगा। अमेजन के वर्षा वन इतने व्यापक व विशाल है कि इन्हें अपने नीले प्रह पृथ्वी के फेफड़े (lungs of planet earth) कहा जाता है। यह पृथ्वी पर जैव विविधता के समृद्धतम् क्षेत्रों में से एक है तथा इनमें जीव जन्तुओं की लाखों प्रजातियाँ हैं। इसे सोयाबीन की खेती करने या पशुओं के लिए चारा उगाने हेतु काटा जा रहा है।
जब बड़े - बड़े पर्यावासों को विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों के कारण छोटे - छोटे खण्डों में विभक्त किया जाता है तब यह प्रक्रिया विखण्डन (fragmentation) कहलाती है। जैसे किसी बड़े वन क्षेत्र के बीच से हाइ - वे बना देना। खण्डों में बटने के कारण अनेक प्रजातियों की होम रेन्ज (home range) व टेरिटरी (territory) बदल जाती है तथा उनके जीवन के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है। अनेक स्तनधारी व पक्षी जिन्हें बड़ी टेरिटरी (territories) की आवश्यकता होती है तथा अनेक ऐसे जंतु जिनमें प्रवास (migration) जीवन की प्रमुख घटना है, इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। परिणामस्वरूप उनकी समष्टि का आकार घट जाता है। पूर्ण क्षति के अतिरिक्त, अनेक आवासों में प्रदूषण (pollution) के कारण हुई क्षति से अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट पैदा हुआ है। पर्यावासों में हानि से प्रवासी जन्तु (migratory animals) विशेष रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके प्रवास के मार्ग की हानि से उनका जीवन चक्र वाधित होता है।
(ii) अतिदोहन (Over - exploitation): अतिदोहन तब होता है जब किसी वन्य समष्टि (wild population) से लिए जाने वाले जीवों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उस जीव समष्टि का आकार बहुत कम होने लगता है। समष्टि का आकार जितना छोटा होता है उतना ही अधिक मूल्यवान इसका जीव हो जाता है तथा उस जीव प्रजाति के थोड़े बहुत बचे जीवों को पकड़ने के लिए उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलने लगता है। वैसे तो मानव अपनी आवश्यकताएं प्रारम्भ से ही प्रकृति से पूर्ण करता रहा है लेकिन जब लालच आवश्यकताओं से बड़ा हो जाता है तब प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन प्रारम्भ हो जाता है।
पिछले 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ मनुष्य द्वारा किये गये अतिदोहन के कारण विलुप्त हुई हैं जैसे स्टेलर सी काउ (Steller's sea cow), पैसेन्जर पिजन (passenger pigeon) आदि। आज वैश्विक स्तर पर अनेक समुद्री मछलियों (marine fishes) का अतिदोहन हो रहा है, इससे व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो गया है।
(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien species invasion): विदेशी प्रजाति जिन्हें विजातीय (alien) प्रजाति भी कहा जाता है किसी पारितंत्र के मूल (native) सदस्य नहीं होते अर्थात कोई भी गैर मूल (non native) प्रजाति उस पारितंत्र के लिए विदेशी या विजातीय प्रजाति कही जाती है। विश्व के सभी क्षेत्रों के पारितंत्रों में ऐसे विशिष्ट जीवों का समूह होता है जो एक ही स्थान पर साथ-साथ विकसित हुए होते हैं। नये स्थान पर प्रवास अनेक अवरोधों जैसे समुद्र, पहाड़, नदी, मरुस्थल आदि के कारण सम्भव नहीं होता। मानव ने अनेक कारणों से विदेशी प्रजातियों का नये पारितंत्रों में प्रवेश कराया है, जैसे कृषि व उद्यानिकी के लिए, स्वयं के औपनिवेशन के कारण, आकस्मिक परिवहन। जब विदेशी प्रजातियाँ किसी नये क्षेत्र में प्रवेश करती है तब इनमें से कुछ आक्रामक (invasive) हो जाती हैं तथा यह मूल या देशी प्रजातियों के समष्टि आकार में कमी या उनका पूर्ण विलुप्तिकरण कर देती है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
जब पूर्वी अफ्रीका की लेक विक्टोरिया में नील नदी की मछली नाइल पर्च (Nile perch) का प्रवेश कराया गया तो वहाँ की मूल निवासी 200 से भी अधिक प्रजातियों की सिचलिड मछलियों (cichlid fishes) की अनूठी पारिस्थितिक जमात (ecological assemblage) विलुप्त हो गई। अर्थात एक प्रकार की विजातीय मछली ने 200 से भी अधिक प्रकार की देशी प्रजातियों को समाप्त कर दिया। गाजर घास या पार्थेनियम (Parthenium), जलकुम्भी (water hyacinth - Ficchornia) तथा लेंटेना कमारा (Lantana camara) इसी प्रकार के विदेशी, आक्रमणकारी (invasire) खरपतवार है जिन्होंने स्थानीय पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है तथा एक खतरा बन गये है। हमारे देश में मत्स्य पालन में उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरिआस गैरीपिनस (Clarias gariepinus) को अवैध रूप से प्रवेश दिलाया गया। लेकिन आज यह हमारी नदियों में रहने वाली देशी कैटफिश प्रजातियों के लिए खतरा बन गयी है।
(iv) सहविलुप्ति (Co - extinctions): जब कोई प्रजाति विलुप्त होती है, तब उस प्रजाति पर अविकल्पी रूप में निर्भर रहने वाली अन्य पादप व जन्तु प्रजातियाँ भी विलुप्त हो जाती हैं। उदाहरण के लिए जब कोई पोषक मछली (host fish) किसी कारण से विलुप्त होती है तब इस पर अविल्पीरूप में निर्भर रहने वाले परजीवियों को भी विलुप्ति का सामना करना पड़ता है। इसका एक और उदाहरण सह - विकास (co - evolution) प्रदर्शित करने वाले पादप और उसका परागणकर्ता से सहोपकारी सम्बंध का है। इनमें से किसी भी एक के विलुप्त होने पर दूसरा स्वयं विलुप्त हो जाता है।
प्रश्न 5.
जैव विविधता संरक्षण कितनी प्रकार से किया जाता है? किसी जीव को विलोपन के संकट से बचाने के लिए किस प्रकार से संरक्षण करेंगे?
उत्तर:
हमें जैव विविधता को क्यों संरक्षित करना चाहिए? (Why should we conserve Biodiversity?)
जैव विविधता संरक्षण के अनेक प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ है सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है - संकीर्ण लाभ वाले, व्यापक लाभ वाले व नैतिक।
(a) संकीर्ण लाभ वाले (Larrowly utilitarian): अनेक जीव प्रजातियों से हमें प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होते है। इसीलिए इस समूह के लाभों को प्रत्यक्ष लाभ (direct advantage) भी कहा जा सकता है जैव विविधता के प्रत्यक्ष लाभों की सूची इतनी बड़ी है कि सबको यहाँ शामिल करना सम्भव नहीं। कुछ महत्त्वपूर्ण लाभों का यहाँ वर्णन किया जा रहा है-
औषधीय मूल्य (Medicinal value): विश्व में चिकित्सकों द्वारा उपचार हेतु दी जाने वाली अधिकांश औषधियाँ मूल रूप में जीवधारियों से ही प्राप्त की गई थी। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर बाजार में बिकने वाली 25 प्रतिशत से अधिक औषधियाँ पौधों से प्राप्त की जाती हैं। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में 25000 से अधिक पादप प्रजातियों से प्राप्त औषधियों को परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों में प्रयोग किया जाता है। अभी उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों से हजारों ऐसी पादप प्रजातियाँ खोजी जानी बाकी हैं जिनका चिकित्सीय कार्यों में उपयोग हो सकता है। आर्थिक महत्व के जैव उत्पादों की आण्विक (molecular), आनुवंशिक (genetic) व प्रजाति स्तर की विविधता सम्बंधी अनुसंधान बायो प्रोस्पेक्टिग (Bioprospecting) कहलाता है। आज पूरे विश्व में अनेकानेक नये - नये जैव उत्पादों की बायो प्रोस्पेक्टिग की जा रही है। इससे ऐसे देश जो जैव विविधता से समृद्ध है मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
कृषीय महत्व (Agriculture Value): मानव पौधों से अनेक प्रकार के खाद्य उत्पाद प्राप्त करता है। खाद्यान्न, दलहन (pulses) व फल कुछ उदाहरण हैं। जैव विविधता ही इंधन हेतु लकड़ी, रेशे (fibre) निर्माण सामग्री (timber) आदि का स्त्रोत है। आनुवंशिक विविधता पादप प्रजनन में संकरण अथवा जैव प्रौद्योगिकी की मदद से वांछित जीन के फसलों पौधों में स्थानान्तरण हेत अत्यधिक महत्त्व की शाधार्थियों ने जैव विविधता की इन सभी सेवाओं को मूल्य का टैग (price tag) देने का प्रयास किया है।
औद्योगिक मूल्य (Industrial value): अनेक उद्योग जैविक संसाधनों पर आधारित हैं। टैनिन (tannins), सुश्रीकेन्ट (lubricants), डाई (dye) रेजिन (resins) व इत्र (perfumes), रबर, वी-वैक्स, शहद आदि। इसके अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित औद्योगिक उत्पाद जिनका अध्ययन आप पहले कर चुके हैं।
(b) व्यापक लाभ वाले (Broadly Utilitarian): जैव विविधता प्रकृति द्वारा प्रदान की जाने वाली पारितंत्र सेवाओं (ecosystem services) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लाभ अप्रत्यक्ष (indirect) लाभ है क्योकि यह व्यापक है तथा आसानी से दिखाई देने वाले नहीं है। मनुष्य का पृथ्वी पर जीवित बने रहना भी पारितंत्र सेवाओं के कारण सम्भव होता है। इनके अप्रत्यक्ष लाभ निम्न हैं-(पारितंत्र कार्यों में जैव विविधता की भूमिका)
जैव भू रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycle): कर्जा प्रवाह तथा पोषण चक्रण पारितंत्रों के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं। पारितंत्र की जैव विविधता विभिन्न प्रकार के पोषण चक्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। हम, इन जैव भू रासायनिक चक्रों पर स्वच्छ जल, वायुमण्डल से कार्बन डाइ आक्साइड के हटाने व उसकी जगह आक्सीजन मुक्त करने, नाइट्रोजन के स्थिरीकरण व अपघटन आदि के लिए पूर्णत: निर्भर हैं। एक अनुमान के अनुसार तेजी से घटते अमेजन के वर्षा वन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित कुल आक्सीजन का 20 प्रतिशत मुक्त करते हैं।
अपशिष्ट निस्तारण (Waste Disposal): पारितंत्र में अपघटक मृत कार्बनिक पदार्थों व अन्य अपशिष्टों को अकार्बनिक पोषकों में परिवर्तित कर उत्पादकों द्वारा पुनः प्रयोग किये जाने योग्य बना देते है। जैव समुदाय भारी धातु (heavy metal) व पेस्टीसाइड्स का विघटन करने व अचलायमान बनाने में भी सक्षम होते है। स्वच्छ जल की उपलब्धता - वन व अन्य प्राकृतिक पारितंत्र स्पंज प्रभाव (sponge effect) प्रदर्शित करते हैं। वह जल को सोख लेते हैं व नियमित अंतराल पर जल को मुक्त भी करते हैं। यह बाढ़ रोकते हैं, वर्षा लाने में सहायक है, भूमिगत जल रिचार्ज करते है।
•वन मृदा अपरदन (Soil erosion) रोकते है
• जलवायु का नियमन करते है (Regulate climate)
वन कार्बन डाइ आक्साइड प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में प्रयोग करते है तथा बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करते हैं अत: ग्लोबल वार्मिंग (global warming) कम करते हैं। जैविक पीड़क नियंत्रण में प्राकृतिक परभक्षियों व परजीवियों का प्रयोग किया जाता है। अनेक पौधों में परागण विभिन्न प्रकार के जन्तुओं द्वारा होता है जैसे मधुमक्खियाँ, ततैये, तितली, गुबरैले (शृंग), पक्षी व चमगादड़ आदि। सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) एक घने जंगल से गुजरने, चिड़ियों की। मधुर चहचहाअट सुनने, आर्किड्स का सौन्दर्य निहारने, प्रकृति की समप्रता का अवलोकन करने जैसे सुख अनमोल हैं, इनका कोई मूल्य नही आंका जा सकता।
(c) नैतिक तर्क (The Ethical Argument): यह ग्रह हम लाखों अन्य जीव प्रजातियों के साथ साझा करते हैं। इस पर अन्य सभी जीवों का भी उतना ही अधिकार है जितना हमारा। पृथ्वी के बुद्धिमानतम प्राणी होने के नाते अपने सभी साझेदारों का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। हमें दार्शनिक व आध्यात्मिक रूप से यह जानने की आवश्यकता है कि प्रत्येक जीव का एक अन्तर्निहित मूल्य होता है चाहे यह हमारे लिए तात्कालिक रूप से किसी आर्थिक या प्रत्यक्ष महत्व का न हो। सभी जीवधारियों की देखभाल करना और आने वाली मानव पीढ़ियों को एक स्वस्थ संतुलित पर्यावरण हस्तांतरित करना भी हमारी जिम्मेदारी है। "We do not weave the web of life, we are simply a strand of it, whatever we do to the web, we do it to ourselves."
प्रश्न 6.
जैव विविधता किसे कहते हैं? जैव विविधता की क्षति के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैव विविधता की क्षति के कारण (Causes of biodiversity losses)
विलुप्तिकरण पर प्रभावी रोक लगाने के लिए यह आवश्यक है कि इसके कारणों को सही सही पहचान की जाय। शोधार्थियों ने पाया है कि इसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इनमें चार प्रमुख कारण है जिनको पातकी चौकड़ी' इविल क्वाटेंट (Evil Quartet) की संज्ञा दी गई है।
(i) पर्यावासीय क्षति तथा विखंडन (Habitat Loss and Fragmentation): पर्यावासीय क्षति तथा विखंडन प्रजातियों के विलुप्तिकरण का प्रमुख कारण है। पर्यावासीय क्षति सभी प्रकार के पारितंत्रों में हुई है लेकिन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में हुई इस अति ने बड़ी तबाही मचाई है। एक समय में वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत से अधिक भाग पर फैले हुए थे जो अब मात्र 6 प्रतिशत भाग पर सिमट गये हैं। उनका तेजी से विनाश हो रहा है। जब तक आप यह अध्याय पूरा पढ़ पायेंगे तब तक 1000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वर्षा वनों का सफाया कर दिया जायेगा। अमेजन के वर्षा वन इतने व्यापक व विशाल है कि इन्हें अपने नीले प्रह पृथ्वी के फेफड़े (lungs of planet earth) कहा जाता है। यह पृथ्वी पर जैव विविधता के समृद्धतम् क्षेत्रों में से एक है तथा इनमें जीव जन्तुओं की लाखों प्रजातियाँ हैं। इसे सोयाबीन की खेती करने या पशुओं के लिए चारा उगाने हेतु काटा जा रहा है।
जब बड़े - बड़े पर्यावासों को विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों के कारण छोटे - छोटे खण्डों में विभक्त किया जाता है तब यह प्रक्रिया विखण्डन (fragmentation) कहलाती है। जैसे किसी बड़े वन क्षेत्र के बीच से हाइ - वे बना देना। खण्डों में बटने के कारण अनेक प्रजातियों की होम रेन्ज (home range) व टेरिटरी (territory) बदल जाती है तथा उनके जीवन के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है। अनेक स्तनधारी व पक्षी जिन्हें बड़ी टेरिटरी (territories) की आवश्यकता होती है तथा अनेक ऐसे जंतु जिनमें प्रवास (migration) जीवन की प्रमुख घटना है, इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। परिणामस्वरूप उनकी समष्टि का आकार घट जाता है। पूर्ण क्षति के अतिरिक्त, अनेक आवासों में प्रदूषण (pollution) के कारण हुई क्षति से अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट पैदा हुआ है। पर्यावासों में हानि से प्रवासी जन्तु (migratory animals) विशेष रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके प्रवास के मार्ग की हानि से उनका जीवन चक्र वाधित होता है।
(ii) अतिदोहन (Over - exploitation): अतिदोहन तब होता है जब किसी वन्य समष्टि (wild population) से लिए जाने वाले जीवों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उस जीव समष्टि का आकार बहुत कम होने लगता है। समष्टि का आकार जितना छोटा होता है उतना ही अधिक मूल्यवान इसका जीव हो जाता है तथा उस जीव प्रजाति के थोड़े बहुत बचे जीवों को पकड़ने के लिए उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलने लगता है। वैसे तो मानव अपनी आवश्यकताएं प्रारम्भ से ही प्रकृति से पूर्ण करता रहा है लेकिन जब लालच आवश्यकताओं से बड़ा हो जाता है तब प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन प्रारम्भ हो जाता है।
पिछले 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ मनुष्य द्वारा किये गये अतिदोहन के कारण विलुप्त हुई हैं जैसे स्टेलर सी काउ (Steller's sea cow), पैसेन्जर पिजन (passenger pigeon) आदि। आज वैश्विक स्तर पर अनेक समुद्री मछलियों (marine fishes) का अतिदोहन हो रहा है, इससे व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो गया है।
(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien species invasion): विदेशी प्रजाति जिन्हें विजातीय (alien) प्रजाति भी कहा जाता है किसी पारितंत्र के मूल (native) सदस्य नहीं होते अर्थात कोई भी गैर मूल (non native) प्रजाति उस पारितंत्र के लिए विदेशी या विजातीय प्रजाति कही जाती है। विश्व के सभी क्षेत्रों के पारितंत्रों में ऐसे विशिष्ट जीवों का समूह होता है जो एक ही स्थान पर साथ-साथ विकसित हुए होते हैं। नये स्थान पर प्रवास अनेक अवरोधों जैसे समुद्र, पहाड़, नदी, मरुस्थल आदि के कारण सम्भव नहीं होता। मानव ने अनेक कारणों से विदेशी प्रजातियों का नये पारितंत्रों में प्रवेश कराया है, जैसे कृषि व उद्यानिकी के लिए, स्वयं के औपनिवेशन के कारण, आकस्मिक परिवहन। जब विदेशी प्रजातियाँ किसी नये क्षेत्र में प्रवेश करती है तब इनमें से कुछ आक्रामक (invasive) हो जाती हैं तथा यह मूल या देशी प्रजातियों के समष्टि आकार में कमी या उनका पूर्ण विलुप्तिकरण कर देती है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
जब पूर्वी अफ्रीका की लेक विक्टोरिया में नील नदी की मछली नाइल पर्च (Nile perch) का प्रवेश कराया गया तो वहाँ की मूल निवासी 200 से भी अधिक प्रजातियों की सिचलिड मछलियों (cichlid fishes) की अनूठी पारिस्थितिक जमात (ecological assemblage) विलुप्त हो गई। अर्थात एक प्रकार की विजातीय मछली ने 200 से भी अधिक प्रकार की देशी प्रजातियों को समाप्त कर दिया। गाजर घास या पार्थेनियम (Parthenium), जलकुम्भी (water hyacinth - Ficchornia) तथा लेंटेना कमारा (Lantana camara) इसी प्रकार के विदेशी, आक्रमणकारी (invasire) खरपतवार है जिन्होंने स्थानीय पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है तथा एक खतरा बन गये है। हमारे देश में मत्स्य पालन में उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरिआस गैरीपिनस (Clarias gariepinus) को अवैध रूप से प्रवेश दिलाया गया। लेकिन आज यह हमारी नदियों में रहने वाली देशी कैटफिश प्रजातियों के लिए खतरा बन गयी है।
(iv) सहविलुप्ति (Co - extinctions): जब कोई प्रजाति विलुप्त होती है, तब उस प्रजाति पर अविकल्पी रूप में निर्भर रहने वाली अन्य पादप व जन्तु प्रजातियाँ भी विलुप्त हो जाती हैं। उदाहरण के लिए जब कोई पोषक मछली (host fish) किसी कारण से विलुप्त होती है तब इस पर अविल्पीरूप में निर्भर रहने वाले परजीवियों को भी विलुप्ति का सामना करना पड़ता है। इसका एक और उदाहरण सह - विकास (co - evolution) प्रदर्शित करने वाले पादप और उसका परागणकर्ता से सहोपकारी सम्बंध का है। इनमें से किसी भी एक के विलुप्त होने पर दूसरा स्वयं विलुप्त हो जाता है।
प्रश्न 7.
कोई ऐसी चार तकनीकों की सूची बनाइये जिनमें जैव विविधता के बाह्यस्थाने (एक्स सिटू) संरक्षण के नियम को प्रयुक्त किया जाता है?
उत्तर:
प्रश्न 8.
"किसी भी समुदाय की स्थिरता उसकी अपनी स्पीशीज सम्पन्नता पर निर्भर होती है।" ऐसा कहा जाना डैविड टिलमैन ने प्रयोग द्वारा किस प्रकार प्रदर्शित किया, लिखिए?
उत्तर:
डेविड टिलमैन ने पारितेत्रों पर दीर्घावधि (लम्बे समय) प्रयोग आउटडोर प्लॉट के उपयोग द्वारा किये। टिलमैन ने पाया कि ऐसे प्लॉट ने जिनमें अधिक प्रजातियाँ थीं, साल दर साल कुल जैव मात्रा उत्पादन में कम भिन्नता प्रदर्शित की। अर्थात अधिक प्रजाति वाले भूखण्ड अधिक स्थिर थे। उन्होंने यह भी पाया कि अधिक विविधता अधिक उत्पादक होती है।
प्रश्न 9.
जैव विविधता हानि के चार कारणों की सूची बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 10.
जैव विविधता क्षति के किन्हीं दो कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रजाति क्षति या जैव विविधता में क्षति के निम्न प्रमुख कारण हैं-
1. पर्यावास हानि व खण्डन (Habitat loss and Fragmentation): जैव विविधता में क्षति का यह प्रमुख कारण है। पर्यावासों विशेषकर वनों व कोरलरीफ में क्षति के कारण प्रजातियाँ तेजी से विलुप्त हो रही हैं। बड़े पर्यावास को छोटा कर देने से, जैसे विशाल वन क्षेत्र में सड़क निर्माण से पर्यावास का खण्डन हो जाता है जिससे पक्षी व स्तनधारी जैसी अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों का कटान जैव विविधता हानि का सबसे बड़ा कारण है। प्रदूषण से भी अनेक प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हुआ है।
2. अतिदोहन (Over exploitation): मनुष्य के लालच के चलते पिछले 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ उनके अति दोहन के कारण बिलुप्त हुई हैं जैसे पैसेंजर पिजन, स्टेलर सी काउ व अनेक समुद्री मछलियाँ आदि।
3. विदेशी प्रजातियों का आक्रमण: किसी पर्यावरण में जाने - अनजाने विदेशी (alien) प्रजाति के प्रवेश से उसके आक्रमणकारी प्रभाव के कारण उस पारितंत्र की अनेक मूल प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, पूर्वी अफ्रीका में नाइल पर्व नामक मछली के प्रवेश से वहाँ की मूल 200 से अधिक चिकलिड प्रजातियों की मछलियाँ विलुप्त हो गई। भारत में गाजर घास (पार्थेनियम) जलकुम्भी (Eicchornia) व लेन्टाना इसी प्रकार की आक्रमणकारी खरपतवार हैं जो अब पारिस्थितिक चुनौती बन गयी है।
4. सह विलुप्ति (Co extinction): ऐसी प्रजातियाँ जिनमें अविकल्पी पारस्परिक सम्बंध होते हैं, के एक जोड़ीदार के विलुप्त होने पर दूसरा स्वयं विलुप्त हो जाता है। जैसे पादप - परागणकर्ता में से किसी एक के विलुप्त होने पर दूसरे का विलुप्त होना।
प्रश्न 11.
स्वस्थाने व बाह्यस्थाने संरक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्व स्थाने व बाह्यस्थाने संरक्षण में अन्तर
स्वस्थाने संरक्षण (in situ conservation) |
बाह्यस्थाने संरक्षण (ex situ conservation) |
1. पूरे पारितंत्र का संरक्षण है। |
यह प्रजाति विशेष का संरक्षण है। |
2. किसी प्रजाति के साथ उसके साथ पारस्परिक सम्बंध वाली सभी प्रजातियों का संरक्षण हो जाता है। |
केवल उसी प्रजाति का संरक्षण होता है। |
3. बायोस्फीयर रिजर्व, नेशनल पार्क आदि इसके उदाहरण हैं। |
वानस्पतिक उद्यान, जंतु पार्क बाहास्थाने संरक्षण के तरीके हैं। |
प्रश्न 12.
क्रायो प्रिजरवेशन क्या है? इसका एक उपयोग लिखिए।
उत्तर:
पादप व जन्तु ऊतकों, कोशिकाओं को निम्न ताप -196°C पर द्रव नाइट्रोजन में परिरक्षित करने की विधि क्रायो प्रिजरवेशन कहलाती है। इस विधि द्वारा जैव विविधता संरक्षण के एक्स सिटू प्रयास में संकटग्रस्त प्रजातियों को जीवनक्षम (viable) व जननक्षम (fertile) स्थिति में लम्बे समय तक बनाया रखा जा सकता है।
प्रश्न 14.
पारिस्थितिकीविदों द्वारा विश्व के कुछ क्षेत्रों को जैव विविधता का हॉट स्पॉट क्यों घोषित किया गया है। भारत के किन्हीं दो हॉट स्पॉट के नाम लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर जैव विविधता का वितरण एक समान नहीं है। कुछ क्षेत्र ऐसे है जो प्रजातियों से अत्यधिक समृद्ध हैं तथा यहाँ उच्च स्तर की स्थानिकता (endemism) पायी जाती है। अर्थात यहाँ ऐसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो विश्व में और कहीं नहीं पाई जातीं। इन्हीं क्षेत्रों को हॉट स्पॉट नाम दिया गया है। अब तक ऐसे कुल 34 स्थानों की पहचान हो चुकी है। भारत में 3 हॉट स्पॉट हैं। पश्चिमी घाट, इण्डो बर्मा क्षेत्र व हिमालय।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व में हर जगह प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए जैव विविधता संरक्षण के प्रति अत्यधिक चिंता है। तीन कारण देते हुए इसकी व्याख्या कीजिष्ट। ऐसे विभिन्न उपायों को लिखिए जो हमारे देश में बाधों की समष्टि बढ़ाने में सहायक सिद्ध
उत्तर:
हमें जैव विविधता को क्यों संरक्षित करना चाहिए? (Why should we conserve Biodiversity?)
जैव विविधता संरक्षण के अनेक प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ है सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है - संकीर्ण लाभ वाले, व्यापक लाभ वाले व नैतिक।
(a) संकीर्ण लाभ वाले (Larrowly utilitarian): अनेक जीव प्रजातियों से हमें प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होते है। इसीलिए इस समूह के लाभों को प्रत्यक्ष लाभ (direct advantage) भी कहा जा सकता है जैव विविधता के प्रत्यक्ष लाभों की सूची इतनी बड़ी है कि सबको यहाँ शामिल करना सम्भव नहीं। कुछ महत्त्वपूर्ण लाभों का यहाँ वर्णन किया जा रहा है-
औषधीय मूल्य (Medicinal value): विश्व में चिकित्सकों द्वारा उपचार हेतु दी जाने वाली अधिकांश औषधियाँ मूल रूप में जीवधारियों से ही प्राप्त की गई थी। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर बाजार में बिकने वाली 25 प्रतिशत से अधिक औषधियाँ पौधों से प्राप्त की जाती हैं। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में 25000 से अधिक पादप प्रजातियों से प्राप्त औषधियों को परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों में प्रयोग किया जाता है। अभी उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों से हजारों ऐसी पादप प्रजातियाँ खोजी जानी बाकी हैं जिनका चिकित्सीय कार्यों में उपयोग हो सकता है। आर्थिक महत्व के जैव उत्पादों की आण्विक (molecular), आनुवंशिक (genetic) व प्रजाति स्तर की विविधता सम्बंधी अनुसंधान बायो प्रोस्पेक्टिग (Bioprospecting) कहलाता है। आज पूरे विश्व में अनेकानेक नये - नये जैव उत्पादों की बायो प्रोस्पेक्टिग की जा रही है। इससे ऐसे देश जो जैव विविधता से समृद्ध है मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
कृषीय महत्व (Agriculture Value): मानव पौधों से अनेक प्रकार के खाद्य उत्पाद प्राप्त करता है। खाद्यान्न, दलहन (pulses) व फल कुछ उदाहरण हैं। जैव विविधता ही इंधन हेतु लकड़ी, रेशे (fibre) निर्माण सामग्री (timber) आदि का स्त्रोत है। आनुवंशिक विविधता पादप प्रजनन में संकरण अथवा जैव प्रौद्योगिकी की मदद से वांछित जीन के फसलों पौधों में स्थानान्तरण हेत अत्यधिक महत्त्व की शाधार्थियों ने जैव विविधता की इन सभी सेवाओं को मूल्य का टैग (price tag) देने का प्रयास किया है।
औद्योगिक मूल्य (Industrial value): अनेक उद्योग जैविक संसाधनों पर आधारित हैं। टैनिन (tannins), सुश्रीकेन्ट (lubricants), डाई (dye) रेजिन (resins) व इत्र (perfumes), रबर, वी-वैक्स, शहद आदि। इसके अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित औद्योगिक उत्पाद जिनका अध्ययन आप पहले कर चुके हैं।
(b) व्यापक लाभ वाले (Broadly Utilitarian): जैव विविधता प्रकृति द्वारा प्रदान की जाने वाली पारितंत्र सेवाओं (ecosystem services) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लाभ अप्रत्यक्ष (indirect) लाभ है क्योकि यह व्यापक है तथा आसानी से दिखाई देने वाले नहीं है। मनुष्य का पृथ्वी पर जीवित बने रहना भी पारितंत्र सेवाओं के कारण सम्भव होता है। इनके अप्रत्यक्ष लाभ निम्न हैं-(पारितंत्र कार्यों में जैव विविधता की भूमिका)
जैव भू रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycle): कर्जा प्रवाह तथा पोषण चक्रण पारितंत्रों के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं। पारितंत्र की जैव विविधता विभिन्न प्रकार के पोषण चक्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। हम, इन जैव भू रासायनिक चक्रों पर स्वच्छ जल, वायुमण्डल से कार्बन डाइ आक्साइड के हटाने व उसकी जगह आक्सीजन मुक्त करने, नाइट्रोजन के स्थिरीकरण व अपघटन आदि के लिए पूर्णत: निर्भर हैं। एक अनुमान के अनुसार तेजी से घटते अमेजन के वर्षा वन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित कुल आक्सीजन का 20 प्रतिशत मुक्त करते हैं।
अपशिष्ट निस्तारण (Waste Disposal): पारितंत्र में अपघटक मृत कार्बनिक पदार्थों व अन्य अपशिष्टों को अकार्बनिक पोषकों में परिवर्तित कर उत्पादकों द्वारा पुनः प्रयोग किये जाने योग्य बना देते है। जैव समुदाय भारी धातु (heavy metal) व पेस्टीसाइड्स का विघटन करने व अचलायमान बनाने में भी सक्षम होते है। स्वच्छ जल की उपलब्धता - वन व अन्य प्राकृतिक पारितंत्र स्पंज प्रभाव (sponge effect) प्रदर्शित करते हैं। वह जल को सोख लेते हैं व नियमित अंतराल पर जल को मुक्त भी करते हैं। यह बाढ़ रोकते हैं, वर्षा लाने में सहायक है, भूमिगत जल रिचार्ज करते है।
•वन मृदा अपरदन (Soil erosion) रोकते है
• जलवायु का नियमन करते है (Regulate climate)
वन कार्बन डाइ आक्साइड प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में प्रयोग करते है तथा बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करते हैं अत: ग्लोबल वार्मिंग (global warming) कम करते हैं। जैविक पीड़क नियंत्रण में प्राकृतिक परभक्षियों व परजीवियों का प्रयोग किया जाता है। अनेक पौधों में परागण विभिन्न प्रकार के जन्तुओं द्वारा होता है जैसे मधुमक्खियाँ, ततैये, तितली, गुबरैले (शृंग), पक्षी व चमगादड़ आदि। सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) एक घने जंगल से गुजरने, चिड़ियों की। मधुर चहचहाअट सुनने, आर्किड्स का सौन्दर्य निहारने, प्रकृति की समप्रता का अवलोकन करने जैसे सुख अनमोल हैं, इनका कोई मूल्य नही आंका जा सकता।
(c) नैतिक तर्क (The Ethical Argument): यह ग्रह हम लाखों अन्य जीव प्रजातियों के साथ साझा करते हैं। इस पर अन्य सभी जीवों का भी उतना ही अधिकार है जितना हमारा। पृथ्वी के बुद्धिमानतम प्राणी होने के नाते अपने सभी साझेदारों का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। हमें दार्शनिक व आध्यात्मिक रूप से यह जानने की आवश्यकता है कि प्रत्येक जीव का एक अन्तर्निहित मूल्य होता है चाहे यह हमारे लिए तात्कालिक रूप से किसी आर्थिक या प्रत्यक्ष महत्व का न हो। सभी जीवधारियों की देखभाल करना और आने वाली मानव पीढ़ियों को एक स्वस्थ संतुलित पर्यावरण हस्तांतरित करना भी हमारी जिम्मेदारी है। "We do not weave the web of life, we are simply a strand of it, whatever we do to the web, we do it to ourselves."
प्रश्न 2.
(a) हमें जैव विविधता संरक्षण की क्यों आवश्यकता है? हम ऐसा किस प्रकार कर सकते हैं?
(b) जैव विविधता के हॉट स्पॉटों और पवित्र उपवनों वे महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(a) हमें जैव विविधता को क्यों संरक्षित करना चाहिए? (Why should we conserve Biodiversity?)
जैव विविधता संरक्षण के अनेक प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ है सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है - संकीर्ण लाभ वाले, व्यापक लाभ वाले व नैतिक।
(a) संकीर्ण लाभ वाले (Larrowly utilitarian): अनेक जीव प्रजातियों से हमें प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होते है। इसीलिए इस समूह के लाभों को प्रत्यक्ष लाभ (direct advantage) भी कहा जा सकता है जैव विविधता के प्रत्यक्ष लाभों की सूची इतनी बड़ी है कि सबको यहाँ शामिल करना सम्भव नहीं। कुछ महत्त्वपूर्ण लाभों का यहाँ वर्णन किया जा रहा है-
औषधीय मूल्य (Medicinal value): विश्व में चिकित्सकों द्वारा उपचार हेतु दी जाने वाली अधिकांश औषधियाँ मूल रूप में जीवधारियों से ही प्राप्त की गई थी। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर बाजार में बिकने वाली 25 प्रतिशत से अधिक औषधियाँ पौधों से प्राप्त की जाती हैं। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में 25000 से अधिक पादप प्रजातियों से प्राप्त औषधियों को परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों में प्रयोग किया जाता है। अभी उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों से हजारों ऐसी पादप प्रजातियाँ खोजी जानी बाकी हैं जिनका चिकित्सीय कार्यों में उपयोग हो सकता है। आर्थिक महत्व के जैव उत्पादों की आण्विक (molecular), आनुवंशिक (genetic) व प्रजाति स्तर की विविधता सम्बंधी अनुसंधान बायो प्रोस्पेक्टिग (Bioprospecting) कहलाता है। आज पूरे विश्व में अनेकानेक नये - नये जैव उत्पादों की बायो प्रोस्पेक्टिग की जा रही है। इससे ऐसे देश जो जैव विविधता से समृद्ध है मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
कृषीय महत्व (Agriculture Value): मानव पौधों से अनेक प्रकार के खाद्य उत्पाद प्राप्त करता है। खाद्यान्न, दलहन (pulses) व फल कुछ उदाहरण हैं। जैव विविधता ही इंधन हेतु लकड़ी, रेशे (fibre) निर्माण सामग्री (timber) आदि का स्त्रोत है। आनुवंशिक विविधता पादप प्रजनन में संकरण अथवा जैव प्रौद्योगिकी की मदद से वांछित जीन के फसलों पौधों में स्थानान्तरण हेत अत्यधिक महत्त्व की शाधार्थियों ने जैव विविधता की इन सभी सेवाओं को मूल्य का टैग (price tag) देने का प्रयास किया है।
औद्योगिक मूल्य (Industrial value): अनेक उद्योग जैविक संसाधनों पर आधारित हैं। टैनिन (tannins), सुश्रीकेन्ट (lubricants), डाई (dye) रेजिन (resins) व इत्र (perfumes), रबर, वी-वैक्स, शहद आदि। इसके अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित औद्योगिक उत्पाद जिनका अध्ययन आप पहले कर चुके हैं।
(b) व्यापक लाभ वाले (Broadly Utilitarian): जैव विविधता प्रकृति द्वारा प्रदान की जाने वाली पारितंत्र सेवाओं (ecosystem services) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लाभ अप्रत्यक्ष (indirect) लाभ है क्योकि यह व्यापक है तथा आसानी से दिखाई देने वाले नहीं है। मनुष्य का पृथ्वी पर जीवित बने रहना भी पारितंत्र सेवाओं के कारण सम्भव होता है। इनके अप्रत्यक्ष लाभ निम्न हैं-(पारितंत्र कार्यों में जैव विविधता की भूमिका)
जैव भू रासायनिक चक्र (Biogeochemical cycle): कर्जा प्रवाह तथा पोषण चक्रण पारितंत्रों के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं। पारितंत्र की जैव विविधता विभिन्न प्रकार के पोषण चक्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। हम, इन जैव भू रासायनिक चक्रों पर स्वच्छ जल, वायुमण्डल से कार्बन डाइ आक्साइड के हटाने व उसकी जगह आक्सीजन मुक्त करने, नाइट्रोजन के स्थिरीकरण व अपघटन आदि के लिए पूर्णत: निर्भर हैं। एक अनुमान के अनुसार तेजी से घटते अमेजन के वर्षा वन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पृथ्वी के वायुमण्डल में उपस्थित कुल आक्सीजन का 20 प्रतिशत मुक्त करते हैं।
अपशिष्ट निस्तारण (Waste Disposal): पारितंत्र में अपघटक मृत कार्बनिक पदार्थों व अन्य अपशिष्टों को अकार्बनिक पोषकों में परिवर्तित कर उत्पादकों द्वारा पुनः प्रयोग किये जाने योग्य बना देते है। जैव समुदाय भारी धातु (heavy metal) व पेस्टीसाइड्स का विघटन करने व अचलायमान बनाने में भी सक्षम होते है। स्वच्छ जल की उपलब्धता - वन व अन्य प्राकृतिक पारितंत्र स्पंज प्रभाव (sponge effect) प्रदर्शित करते हैं। वह जल को सोख लेते हैं व नियमित अंतराल पर जल को मुक्त भी करते हैं। यह बाढ़ रोकते हैं, वर्षा लाने में सहायक है, भूमिगत जल रिचार्ज करते है।
•वन मृदा अपरदन (Soil erosion) रोकते है
• जलवायु का नियमन करते है (Regulate climate)
वन कार्बन डाइ आक्साइड प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में प्रयोग करते है तथा बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करते हैं अत: ग्लोबल वार्मिंग (global warming) कम करते हैं। जैविक पीड़क नियंत्रण में प्राकृतिक परभक्षियों व परजीवियों का प्रयोग किया जाता है। अनेक पौधों में परागण विभिन्न प्रकार के जन्तुओं द्वारा होता है जैसे मधुमक्खियाँ, ततैये, तितली, गुबरैले (शृंग), पक्षी व चमगादड़ आदि। सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) एक घने जंगल से गुजरने, चिड़ियों की। मधुर चहचहाअट सुनने, आर्किड्स का सौन्दर्य निहारने, प्रकृति की समप्रता का अवलोकन करने जैसे सुख अनमोल हैं, इनका कोई मूल्य नही आंका जा सकता।
(c) नैतिक तर्क (The Ethical Argument): यह ग्रह हम लाखों अन्य जीव प्रजातियों के साथ साझा करते हैं। इस पर अन्य सभी जीवों का भी उतना ही अधिकार है जितना हमारा। पृथ्वी के बुद्धिमानतम प्राणी होने के नाते अपने सभी साझेदारों का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। हमें दार्शनिक व आध्यात्मिक रूप से यह जानने की आवश्यकता है कि प्रत्येक जीव का एक अन्तर्निहित मूल्य होता है चाहे यह हमारे लिए तात्कालिक रूप से किसी आर्थिक या प्रत्यक्ष महत्व का न हो। सभी जीवधारियों की देखभाल करना और आने वाली मानव पीढ़ियों को एक स्वस्थ संतुलित पर्यावरण हस्तांतरित करना भी हमारी जिम्मेदारी है। "We do not weave the web of life, we are simply a strand of it, whatever we do to the web, we do it to ourselves."
(b) स्वस्थाने संरक्षण (in situ conservation)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है स्वस्थाने (in situ) संस्क्षण नीति में पूरे पारितंत्र (ecosystem) का संरक्षण किया जाता है। इस नीति में प्रारूपिक पारितंत्र समूहों को सुरक्षित क्षेत्रों का एक पूरा जाल बनाकर संरक्षित किया जाता है। अनेक देश विकास बनाम संरक्षण (development versus conservation) के विवाद में इस कदर उलझे हैं कि उन्हें अपनी सारी जैविक सम्पदा को संरक्षित करना अवास्तविक व अस्वभाविक लगता है तथा आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं जान पड़ता। तो दूसरी ओर विलुप्तिकरण से बचने हेतु संरक्षण की बाट जोह रही प्रजातियों की संख्या इतनी अधिक है कि उनके सामने संरक्षण के उपलब्ध साधन अपर्याप्त जान पड़ते हैं। प्रतिष्ठित संरक्षणविदों (conservationits) ने इस समस्या को सुलझाने का प्रयास वैश्विक स्तर पर किया है।
जैव विविधता हॉटस्पॉट (Biodiversity Hotspots)
विश्व के कुछ क्षेत्रों को संरक्षणविदों ने जैव विविधता हॉटस्पॉट का नाम दिया है क्योंकि वहाँ प्रजाति समृद्धता उच्च स्तर की है। अप्रत्याशित रूप से प्रजातियों की अत्यधिक संख्या के साथ - साथ वहाँ उच्च स्थानिकता या एण्डेमिज्म (endemism) भी पायी जाती है। स्थानिकता या एण्डेमिज्म का तात्पर्य है- 'प्रजाति किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष तक सीमित है तथा विश्व में और कहीं नहीं पाई जाती।' विश्व की ज्ञात उच्च पादप प्रजातियों में से लगभग 44% तथा लगभग 35% स्थलीय पृष्ठधारी (terrestrial vertebrate) प्रजातियाँ लगभग 35% हॉटस्पॉट में पायी जाती है जबकि सभी हॉटस्पॉट विश्व के कुल स्थलीय क्षेत्र के मात्र 1.4% भाग तक सीमित है। प्रारम्भ में 25 जैव विविधता हॉटस्पॉट की पहचान की गई थी लेकिन बाद में इस सूची में 9 हॉट स्पॉट और जोड़े गये जिससे इनकी कुल संख्या 34 हो गई। दुर्भाग्य से ये हॉटस्पॉट ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ तेजी से पर्यावासों की हानि हो रही है। इनमें से तीन हॉटस्पॉट हमारे अपने देश की असाधारण रूप से उच्च जैव विविधता को दर्शाते है ये हैं-
• पश्चिमी घाट व श्रीलंका (Western Ghats and Sri Lanka)
इण्डो बर्मा (Indo Burma)
हिमालय (Himalaya)
विश्व के कुछ अन्य प्रमुख हॉटस्पॉट है मैडागास्कर द्वीप समूह, दक्षिणी अफ्रीका का केप क्षेत्र, कैलीफोर्निया के तटीय क्षेत्र, आस्ट्रेलिया का ग्रेट - बैरियर रीफ (Great barrier Reef of Australia)। संसार के सारे हॉटस्पॉट मिलकर विश्व के कुल स्थलीय क्षेत्र का कुल 2 प्रतिशत से भी कम भाग बनाते हैं। इन हॉटस्पॉट की विशेष सुरक्षा द्वारा विलोपन की दर को 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
हॉटस्पॉट को चिन्हित करने की कसौटी-
भारत में सुरक्षित क्षेत्र तंत्र (Protected Area Network in India)
अपने देश में पारिस्थितिक रूप से अनूठे और जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों की 5 सुरक्षा व संरक्षण के लिए सभी स्तरों पर अनेक प्रयास हुए हैं। भारत विश्व के विशाल जैव विविधता क्षेत्रों (Mega Diversity Countries) में से एक है। न विश्व की जैविक विविधता में भारत का योगदान लगभग 8% है जबकि यह विश्व के मात्र 2.4 प्रतिशत स्थलीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत में 14 बायोस्फीयर रिजर्व, 90 राष्ट्रीय पार्क, 448 वन्य जीव अभयारण्य समृद्ध जैविक सम्पदा की सुरक्षा व संरक्षण हेतु बनाये गये है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन - सा एक्स सिटू पादप संरक्षण में प्रयोग नहीं होता है।
(a) क्षेत्र जीन बैंक
(b) बीज बैंक
(c) स्थानान्तरी जुताई
(d) वानस्पतिक उद्यान।
उत्तर:
(c) स्थानान्तरी जुताई
प्रश्न 2.
वैश्विक जैव विविधता में किन प्रजातियों की संख्या अधिकतम है?
(a) शैवाल
(b) लाइकेन
(c) कवक
(d) मॉस एवं फर्न
उत्तर:
(c) कवक
प्रश्न 3.
सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है-
(a) समुद्रतटीय क्षेत्रों में
(b) ध्रुवीय क्षेत्रों में
(c) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों में
(d) शीतोष्ण वर्षा वनों में।
उत्तर:
(c) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों में
प्रश्न 4.
WWF के लोगो में प्रयुक्त जन्तु है-
(a) टाइगर
(b) हार्न बिल
(c) जाइन्ट पान्डा
(d) ध्रुवीय भालू
उत्तर:
(c) जाइन्ट पान्डा
प्रश्न 5.
निम्न में से जैव विविधता में हानि का कारण है-
(a) पर्यावास हानि
(b) बाह्य प्रजाति का आक्रमण
(c) प्रदूषण
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 6.
जन्तु व पादपों को सर्वोत्तम सुरक्षा मिलती है-
(a) जन्तु उद्यान में
(b) वानस्पतिक उद्यान में
(c) वन्य जीव अभयारण्य में
(d) राष्ट्रीय पार्क में
उत्तर:
(d) राष्ट्रीय पार्क में
प्रश्न 7.
रेड डेटा बुक किसके द्वारा प्रकाशित होती है-
(a) पर्यावरण व वन मंत्रालय
(b) IUCN
(c) NEERI
(d) WWFI
उत्तर:
(d) WWFI
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन - सी भारत में विदेशी प्रजाति है-
(a) लेबियो रोहिता
(b) पोक्रेट
(c) क्लेरियस बेट्रेकस
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) क्लेरियस बेट्रेकस
प्रश्न 9.
रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क स्थित है-
(a) राजस्थान में
(b) गुजरात में
(c) मध्य प्रदेश में
(d) उत्तर प्रदेश में।
उत्तर:
(a) राजस्थान में
प्रश्न 10.
प्रजातियों की विलुप्ति का सबसे बड़ा कारण है-
(a) मूसलाधार वर्षा
(b) दीर्घकालीन सूखा
(c) वन विनाश
(d) प्रदूषण।
उत्तर:
(c) वन विनाश
प्रश्न 11.
भारत का जलीय राष्ट्रीय जन्तु है-
(a) गंगा की डालफिन
(b) घड़ियाल
(c) रोहू मछली
(d) खेल।
उत्तर:
(a) गंगा की डालफिन
प्रश्न 12.
दुधवा राष्ट्रीय पार्क है-
(a) उत्तर प्रदेश में
(b) मध्य प्रदेश में
(c) छत्तीसगढ़ में
(d) बिहार में।
उत्तर:
(a) उत्तर प्रदेश में
प्रश्न 13.
जैव विविधता की अवधारणा विकसित की
(a) डेविड टिलमैन ने
(b) नामन मायर ने
(c) पॉल एहरलिच ने
(d) चाल्र्स डार्विन ने।
उत्तर:
(b) नामन मायर ने
प्रश्न 14.
भारत में शेर पाये जाते हैं-
(a) जिम कार्बेट पार्क में
(b) रणथम्भौर में
(c) सरिस्का में
(d) गिर वन में।
उत्तर:
(d) गिर वन में।
प्रश्न 15.
भारत में प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना प्रारम्भ हुई-
(a) 1973 में
(b) 1981 में
(c) 1988 में
(d) 1996 में।
उत्तर:
(a) 1973 में
HOTS (Higher Order Thinking Skill Questions)
प्रश्न 1.
वन्य जीवों (जैव विविधता) की आधुनिक कृषि में क्या भूमिका है?
उत्तर:
वन्य जीवों की विभिन्न समष्टियाँ उनकी आनुवंशिक विविधता प्रदर्शित करती हैं। फसली पौधों व जन्तुओं के प्रजनन हेतु वन्य जीव आनुवंशिक विविधता के स्रोत (source of genetic material) की भाँति कार्य करते हैं। इनका प्रयोग पारम्परिक प्रजनन या आनुवंशिक अभियांत्रिकी की मदद से वांछित जीन (जैसे प्रतिरोधकता) के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। अत: पादप प्रजनन व जन्तु प्रजनन में इनकी महती भूमिका है।
प्रश्न 2.
वन्य जीवन का विनाश अनैतिक क्यों माना जाता है?
उत्तर:
मनुष्य ही पृथ्वी पर एकमात्र प्रजाति है जो अपने चारों ओर उपस्थित प्रजाति विविधता देख उसका दोहन करता आ रहा है। मनुष्य को यह पता है कि यह जैव विविधता 3.5 अरब वर्षों तक सतत रूप से चले जैव विकास का परिणाम है। एक बार एक प्रजाति के समाप्त हो जाने पर उसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। अत: किसी प्रजाति के विनाश के लिए उत्तरदायी होना मनुष्य के लिए अनैतिक होगा। अपनी जैव विविधता को अपने अगली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना हमारा नैतिक व जैव विकासीय (evolutionary) उत्तरदायित्व है।
प्रश्न 3.
पादपों की विभिन्न किस्मों को संरक्षित करना क्यों आवश्यक है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी पादप प्रजाति की विभिन्न किस्में आनुवंशिक विविधताओं की स्रोत होती हैं तथा पादप प्रजनन (plant breeding) में इनका विशिष्ट महत्व होता है। कुछ दशकों पहले धान के एक नये पीड़क ब्राउन प्लांट हॉपर ने समूची धान की खेती के लिए चुनौती उत्पन्न कर दी थी क्योंकि सभी नयी किस्में इस पीड़क के लिए ग्राह्य थीं। खोजने पर पता चला कि केरल में पायी जाने वाली कुछ धान की किस्में इस पीड़क (pest) के लिए प्रतिरोधी हैं। इन किस्मों के आनुवंशिक पदार्थ से वांछित जीन प्राप्त कर उच्च उत्पादन वाली धान की किस्मों को प्रतिरोधी बनाया गया। अत: प्रत्येक पुरानी व नयी सभी किस्मों को संरक्षित रखना आवश्यक है। यह जैव विविधता का आनुवंशिक स्तर पर संरक्षण है।
प्रश्न 4.
स्वस्थाने संरक्षण, बाह्यस्थाने संरक्षण से बेहतर माना जाता है। क्या आप सोचते हैं कि परिस्थितिवश बाह्यस्थाने संरक्षण भी बेहतर हो सकता है?
उत्तर:
वन्य जीवों के किसी प्राकृतिक आवास, राष्ट्रीय पार्क या अभयारण्य में प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, वनों की आग या भूकम्प आदि के आने पर वन्य जीवों को जन्तु पाकों (zoological park) में रखकर उनकी प्राणरक्षा की जा सकती है।
प्रश्न 5.
शुक्राणु बैंक कुछ वन्य जीवों के संरक्षण में कैसे सहायक हैं?
उत्तर:
शुक्राणु बैंक में शुक्राणुओं का क्रायो प्रिजरवेशन किया जा सकता है। इन शुक्राणुओं का प्रयोग किसी संकटापन्न जन्तु की छोटी समष्टि में अन्तःप्रजनन (इनब्रीडिंग) को रोकने के लिए किया जा सकता है। बहिः प्रजनन से जीव का संकर ओज बढ़ेगा। साथ ही वन्य जीव को दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित करने की आवश्यकता नहीं होगी। इस हेतु पात्रे निषेचन (in vitro fertilization) व भ्रूण स्थानान्तरण तकनीक भी प्रयोग की जा सकती है।
प्रश्न 6.
विदेशी या बाह्य प्रजातियों के प्रवेश के क्या कारण हैं?
उत्तर:
विदेशी (alien) प्रजातियाँ किसी पारितंत्र की मूल प्रजातियों नहीं होती अर्थात गैर देशज (non native) प्रजातियों को बाह्य प्रजाति कहा जाता है। यह अनेक प्राकृतिक अवरोधों जैसे नदी, समुद्र, पहाड़ आदि के कारण नये पर्यावरण में प्रवेश नहीं कर पातीं। लेकिन मनुष्य इनके स्थानान्तरण के लिए प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से उत्तरदायी है। वह निम्न कारणों से बाहा प्रजातियों को नये पारितंत्र में प्रवेश कराता है।
औपनिवेशन (colonization): जब मनुष्य स्वयं किसी नये पर्यावास में जाता है तो अपने साथ कुछ पेड़ - पौधे व जीव - जन्तु भी ले जाता है। कृषि व उद्यानिकी के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु। आकस्मिक परिवहन द्वारा कुछ बाम प्रजातियाँ अनजाने में नये स्थानों में आ जाती है जैसे गाजर घास, पीली कटेली (Argemone mexicana) आदि।
NCERT EXEMPLAR PROBLEMS
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन - से देश में जैव विविधता सर्वाधिक है?
(a) ब्राजील
(b) दक्षिणी अफ्रीका
(c) रूस
(d) भारत
उत्तर:
(a) ब्राजील
प्रश्न 2.
निम्न में से कौन - सा जैव विविधता हानि का कारण नहीं है।
(a) पर्यावास का नष्ट होना
(b) बाह्य प्रजातियों का प्रवेश
(c) जन्तुओं को जन्तु पाकों में रखना
(d) प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन
उत्तर:
(b) बाह्य प्रजातियों का प्रवेश
प्रश्न 3.
निम्न में कौन - सी प्रजाति भारत के सन्दर्भ में आक्रमणकारी नहीं है?
(a) लेन्टाना
(b) सायनोडॉन
(c) पार्थीनियम
(d) आइकार्निया
उत्तर:
(c) पार्थीनियम
प्रश्न 4.
निम्न में से कहाँ आपको पिचर प्लांट मिल सकता है?
(a) पूर्वोत्तर भारत के वर्षा वन
(b) सुन्दर वन
(c) थार मरुस्थल
(d) पश्चिमी घाट
उत्तर:
(a) पूर्वोत्तर भारत के वर्षा वन
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन - सा जैव विविधता हॉट स्पॉट का मुख्य गुण नहीं है?
(a) प्रजातियों की बड़ी संख्या
(b) स्थानिक (एडेमिक) प्रजातियों की प्रचुरता
(c) बड़ी संख्या में बाह्य प्रजातियाँ
(d) पर्यावासों का विनाश।
उत्तर:
(c) बड़ी संख्या में बाह्य प्रजातियाँ
प्रश्न 6.
कॉलम A में दिये जन्तुओं को कॉलम B में दिये उनके स्थानों से मिलाइये
कॉलम A |
कॉलम B |
डोडो |
अफीका |
क्वागा |
रूस |
थाइलेसिन |
मारीशस |
स्टेलर सी काउ |
आस्ट्रेलिया |
निम्न में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-
(a)I - a, II - c, III - b, IV - d
(b) I - d, II - c, III - a, IV - b
(c) I - c, II - a, III - b, IV - d
(d) I - c, II - a, III - d, IV - b
उत्तर:
(d) I - c, II - a, III - d, IV - b
प्रश्न 7.
एक सींग वाला गैंडा किस अभयारण्य/राष्ट्रीय पार्क में विशिष्ट रूप से पाया जाता है?
(a) बांदीपुर
(b) काजीरंगा
(c) कारबेट पार्क
(d) कान्हा
उत्तर:
(b) काजीरंगा
प्रश्न 8.
निम्न में से किस समूह में संकटापन्न प्रजातियों की संख्या सबसे अधिक है?
(a) कौट
(b) स्तनधारी
(c) उभयचर
(d) सरीसृप
उत्तर:
(c) उभयचर
प्रश्न 9.
निम्न में से कौन - सी भारत की एक आपदाग्रस्त प्रजाति है-
(a) राउवोल्फिया सर्पेन्टाइना
(b) सेन्टेलम अल्बम (चंदन)
(c) साइकस बेडोमी
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 10.
नीचे दिये पारितंत्रों में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है-
(a) मैंग्रोव वन में
(b) मरुस्थल में
(c) कोरलरीफ में
(d) एल्पाइन मेडो में।
उत्तर:
(c) कोरलरीफ में
प्रश्न 11.
सक्रिय रसायन रेजरपीन प्राप्त किया जाता है-
(a) धतूरा से
(b) राउवोल्फिया से
(c) एट्रोपा से
(d) पेपेवर से।
उत्तर:
(b) राउवोल्फिया से
प्रश्न 12.
निम्न में से सर्वाधिक प्रजाति विविधता पाई जाती है-
(a) आवृतबीजियों में
(b) शैवालों में
(c) आयोफाइट में
(d) कवक में।
उत्तर:
(d) कवक में।
प्रश्न 13.
निम्न में से किस स्थान पर मौसमी परिवर्तन निम्नतम होंगे?
(a) उष्ण कटिबन्ध
(b) शीतोष्ण क्षेत्र
(c) एल्पाइन
(d) a तथा b
उत्तर:
(a) उष्ण कटिबन्ध
प्रश्न 14.
सन् 1992 में रियो डि जेनेरो में जैव विविधता पर हुआ ऐतिहासिक सम्मेलन जाना जाता है-
(a) CITES सम्मेलन
(b) द अर्थ सम्मिट
(c) G - 16 सम्मिट
(d) MAB प्रोग्राम
उत्तर:
(b) द अर्थ सम्मिट
प्रश्न 15.
पैसेन्जर कबूतर का विलुप्तिकरण किसके कारण हुआ?
(a) परभक्षी पक्षियों की बढ़ी संख्या
(b) मनुष्य द्वारा अति दोहन
(c) खाद्य पदार्थों की कमी
(d) बर्ड फ्लू विषाणु संक्रमण
उत्तर:
(b) मनुष्य द्वारा अति दोहन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एन्डेमिक व विदेशी प्रजाति के बीच क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्थानिक या क्षेत्रज (endemic) प्रजाति किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष तक सीमित रहती है तथा अन्य स्थानों पर नहीं पाई जाती। विदेशी या बाह्य (exotic) प्रजाति किसी अन्य पारितंत्र/भौगोलिक क्षेत्र से किसी नये क्षेत्र में प्रवेश करायी जाती है।
प्रश्न 2.
पादप राउवोल्फिया वोमिटोरिया की आनुवंशिक भिन्नताएं क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
आनुवंशिक विभिन्नताएँ इस पादप से प्राप्त होने वाली ड्रग रेजरपीन (reserpine) के उत्पादन को प्रभावित करती हैं।
प्रश्न 3.
रेड डेटा बुक क्या है?
उत्तर:
यह IUCN (इण्टरनेशनल यूनियन फॉर कन्जरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसॉसेज) द्वारा प्रकाशित पुस्तक है जिसमें विश्व में विलुप्ति का खतरा झेल रही संकटापन्न (threatened) प्रजातियों की जानकारी होती है।
प्रश्न 4.
भारत में विशाल पारिस्थितिक भिन्नताओं का क्या कारण है?
उत्तर:
भारत विविध जलवायुगत व स्थलाकृतिक विभिन्नताओं का संगम है। भारत के एक भाग की जलवायु उप उष्ण कटिबन्धीय (subtropical) है जो विविधता की पोषक है, साथ ही दुनिया की सबसे ऊंची पर्वतमाला, अनेक नदियाँ, आईक्षेत्र, मैग्रोव, मरुस्थल, बड़ी तटीय रेखा ने इसे पारिस्थितिक विविधता प्रदान की है।
प्रश्न 5.
बायोप्रोस्पेक्टिग शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी जीव के आर्थिक महत्व के उत्पाद की आण्विक (molecular), आनुवंशिक व प्रजाति स्तरीय विभिन्नता की जांच बायोप्रोस्पेक्टिंग (Bioprospecting) कहलाती है।
प्रश्न 6.
भूतकाल में प्रजातियों की सामूहिक विलुप्ति के क्या कारण थे?
उत्तर:
सामूहिक विलुप्ति (mass extinction) के कारण इस तरह हो सकते है - बड़े जलवायुगत परिवर्तन (climatic change) जो या तो कान्टीनेन्टल ड्रिफ्ट (continental drift) अथवा किसी उल्का पिण्ड के पृथ्वी से टकराने के बाद उत्पन्न हुए। अत: टेक्टोनिक या समुद्रीय (oceanic) या जलवायुगत कारणों से जीव विलुप्त हुए।
लघु उत्तरीय प्रस्न
प्रश्न 1.
वर्तमान में हो रहा प्रजाति विलुप्तिकरण पहले सामूहिक विलुप्ति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
आज हो रही प्रजाति विलुप्ति का प्रमुख कारण मानवीय (anthropogenic) क्रियाकलाप हैं जबकि पहले की विलुप्तियाँ प्राकृतिक आपदाओं के कारण थीं। दूसरा आज विलुप्ति की दर पहले की विलुप्ति से कई गुना अधिक है।
प्रश्न 2.
अपने दैनिक प्रेक्षणों के आधार पर एक उदाहरण दीजिए जिसमें एक प्रजाति के विलुप्त होने पर दूसरी का भी विलुप्तिकरण हो जाता है।
उत्तर:
अगर कोई प्रजाति विलुप्त होती है तब इस प्रजाति से अविकल्पी (obligatory) रूप में पारस्परिक क्रिया करने वाली प्रजाति भी विलुप्त हो जाती है जैसे - किसी मछली के विलुप्त होने पर उस पर निर्भर परजीवी प्रजातियों भी विलुप्त हो जाती हैं। कुछ कीट या स्तनधारी भी केवल एक प्रकार के पौधों को ही खाते है। उस पौधे के विलुप्त होने पर कीट या स्तनधारी भी विलुप्त हो जाएंगे।
प्रश्न 3.
जीवाणुओं की जैव विविधता के अध्ययन के लिए परम्परागत विधियों क्यों उपयुक्त नहीं है?
उत्तर:
अनेक जीवाणुओं का सामान्य प्रयोगशाला परिस्थितियों में संवर्धन नहीं किया जा सकता। इससे उनकी आकारिकी, जैव रासायनिक व अन्य गुणों के निर्धारण में समस्याएँ आती है जो उनके मूल्यांकन हेतु
आवश्यक हैं।
प्रश्न 4.
क्या यह सही है कि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है।
उत्तर:
पृथ्वी के अपनी अक्ष पर \(23 \frac{1}{2}\)° झुका होने के कारण सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती है जबकि ध्रुवों पर यह विसरित (diffused) हो जाती हैं। जब कोई भूमध्य रेखा से प्रवों की ओर चलता है तो दिन की अवधि कम होती जाती है व रात की अवधि बढ़ती है। भूमध्य रेखा पर दिन व रात की अवधि समान होती है।
प्रश्न 5.
उष्ण कटिबन्धीय व उप उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में शीतोष्ण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक जैव विविधता का क्या कारण है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा के दोनों ओर अर्थात उष्ण कटिबंधीय व उप उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में ताप व वर्धा दोनों अनुकूल हैं। यहाँ प्रकाश (सौर ऊर्जा) की उपलब्धता शीतोष्ण क्षेत्र से अधिक है। अत: उत्पादकता अधिक है। ये क्षेत्र लम्बे समय तक बाधा रहित रहे हैं जबकि शीतोष्ण क्षेत्रों में अनेक हिमयुग आये हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में मौसमी परिवर्तन प्रबल नहीं है, अर्थात मौसम सदा एक - सा रहता है।
प्रश्न 6.
अन्य जन्तु समूहों की अपेक्षा उभयचरों का विलुप्ति के लिए अधिक भेद्य होने के क्या संभावित कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
उभयचर (amphibians) को प्रजनन के लिए बाह्य जल आवश्यक होता है क्योंकि इनमें चाहा निषेचन होता है अतः इनके पर्यावास विशिष्ट है। इनके लिए स्थल के साथ - साथ जलीय पर्यावास भी आवश्यक होता है। पूर्ण रूप से स्थलीय जन्तुओं के सामने यह समस्या नहीं है। उभयचरों के परभक्षी भी अधिक हैं।
प्रश्न 7.
मानवीय कारणों के अतिरिक्त जैव विविधता में हानि के दो अन्य कारणों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वनों की आग (forest fire), ज्वालामुखी गतिविधियाँ, भूकम्प (earthquake) आदि।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समझाइये किस प्रकार बाहरी प्रजाति के आक्रमण से किसी क्षेत्र की प्रजाति विविधता कम हो जाती है?
उत्तर:
प्रश्न 2.
एक व्यक्ति के रूप में आप जैव विविधता की हानि को कैसे रोकेंगे?
उत्तर:
हिन्ट (Hints): निम्न बिन्दुओं को विस्तार दें।