Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 14 पारितंत्र Important Questions and Answers.
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पारितंत्र में समुदाय संरचना के दो विशिष्ट गुणों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रजाति संगठन (Species composition) तथा स्तरीकरण (Stratification) व पोषी संरचना (Trophic structure)
प्रश्न 2.
तालाब के पारितंत्र में द्वितीयक पोषण स्तर बनाने वाले किसी जीव का नाम लिखिए।
उत्तर:
जन्तु प्लवक (Zooplanktons)
प्रश्न 3.
सकल प्राथमिक उत्पादकता में से नेट प्राथमिक उत्पादकता को घटा देने पर किसका मान प्राप्त होता है?
उत्तर:
पादपों द्वारा श्वसन में उत्पन्न जैव मात्रा का।
प्रश्न 4.
काष्ठ का अपघटन धीमा क्यों होता है? एक कारण बताइये।
उत्तर:
काष्ठ प्रमुखत: लिग्निन (lignin) का बना होता है तथा अपघटन की दर अपरद के रासायनिक संघटन पर निर्भर करती है। लिग्निन व काइटिन का अपघटन धीमा होता है।
प्रश्न 5.
कोई जीव अपने समुदाय/ प्राकृतिक परिवेश में कौन - सा स्थान ग्रहण करता है उसका आधार लिखिष्ट।
उत्तर:
पोषण का स्रोत (Source of nutrition)
प्रश्न 6.
स्टैंडिंग क्रॉप की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी पोषण स्तर में किसी निर्दिष्ट समय पर उपस्थित जीवित पदार्थ की मात्रा स्टैडिंग क्रॉप (Standing crop) कहलाती है। इसे प्रति इकाई क्षेत्र में जैवभार या संख्या के रूप में मापा जाता है।
प्रश्न 7.
ऊर्जा के पारिस्थितिक पिरामिड में किस पोषक स्तर में ऊर्जा की मात्रा सर्वाधिक होती है?
उत्तर:
पहले अर्थात उत्पादकों (producers) के स्तर में।
प्रश्न 8.
अनुक्रमण में बाद में आने वाले समुदाय अपने से पहले वाले समुदाय से किन गुणों में भिन्न होते हैं?
उत्तर:
प्रजातियों की संख्या बढ़ जाती है, प्रजातियों की विविधता बढ़ जाती है तथा कुल जैव मात्रा में वृद्धि होती है।
प्रश्न 9.
नग्न चट्टान पर पौधों की वृद्धि को सीमित करने वाले दो कारक बताइये।
उत्तर:
मृदा की कमी (absence of soil), जल की कमी व शुष्कता।
प्रश्न 10.
जलारम्भी व शुष्कारम्भी अनुक्रमण में क्या प्रमुख समानता है?
उत्तर:
दोनों समोद्भिदी (mesophytic) परिस्थितियों की ओर अग्रसर होते है।
प्रश्न 11.
एक अध्ययन के अनुसार प्रतिवर्ष जैवमण्डल में कार्बन की कितनी मात्रा का प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थिरीकरण होता है?
उत्तर:
4x1013 किया।
प्रश्न 12.
एक गहरे जलीय पारितंत्र में पाये जाने वाले प्रभावी उत्पादकों के नाम लिखिए? प्राथमिक उपभोक्ता के लिए एक अन्य क्या नाम दिया जा सकता है?
उत्तर:
पादप प्लवक (Phytoplankton)
प्राथमिक उपभोक्ता जन्तु प्लवक (Zooplankton)
प्रश्न 13.
शाकाहारी जन्तु को सम्पूर्ण प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त नहीं होती है। कारण लिखिए।
उत्तर:
एक स्तर में उपलब्य कुल ऊर्जा का केवल 10% ही अगले स्तर पर उपलब्ध हो पाता है। प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा श्वसन में व्यय हो जाती है।
प्रश्न 14.
अपरद खाद्य श्रृंखला का आरम्भन बिन्दु क्या होता है?
उत्तर:
पादपों व जन्तुओं के मृत अवशेष या अपरद (detritus)।
प्रश्न 15.
नेट प्राथमिक उत्पादकता व सकल उत्पादकता में एक अन्तर बताइये।
उत्तर:
सकल प्राथमिक उत्पादकता में से श्वसनीय हानि (respiratory losses) को निकाल देने पर शुद्ध या नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होती है
GPP - R = NPP
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केंचुए तथा जीवाणु द्वारा अपरद पर प्रक्रिया का नाम लिखिष्ट तथा उसकी क्रियाविधि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केंचुए की अपरद पर क्रिया खण्डन या फ्रेगमेण्टेशन (Fragmentation) कहलाती है। ये अपरद को खाकर उसे छोटे-छोटे कणों में विभाजित कर देते हैं। खण्डन से अपरदकणों का सतही क्षेत्रफल कई गुना बढ़ जाता है। केंचुए को आहारनाल में इसका पल्वेराइजेशन (Pulvarisation) हो जाता है। जीवाणुओं की अपरद पर क्रिया अपचयन (Catabolism) कहलाती है। जीवाणुओं द्वारा स्रावित बहिकोशिकीय एंजाइम खण्डित अपरद को सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं।
प्रश्न 2.
किसी पारितन्त्र में उत्पादकता क्या है? किसी पारितंत्र में सकल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता के मध्य संबन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उत्पादकता (Produtivity)
किसी भी पारितन्त्र को क्रियाशील व वहनीय (sustainable) बनाये रखने के लिए सौर ऊर्जा का निरन्तर निवेश (constant input of solar energy) मौलिक आवश्यकता है। पारितन्त्र के शेष सभी कार्य पारितन्त्र में सौर ऊर्जा के निवेश (input) पर आधारित हैं। सरलतम शब्दों में जैव भार (biomass) उत्पादन की दर उत्पादकता कहलाती है। उत्पादकता दो प्रकार की होती है - प्राथमिक उत्पादकता (Primary productivity) तथा द्वितीयक उत्पादकता ((Secondary productivity)
प्राथमिक उत्पादन (Primary Production)
हरे पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में एक निश्चित समयावधि में प्रति इकाई क्षेत्र द्वारा उत्पादित जैवभार (biomass) या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा प्राथमिक उत्पादन कहलाती है। जैवभार उत्पादन की दर को ही उत्पादकता (productivity) कहते हैं। उत्पादकता को g-2m-1y-1 (ग्राम प्रति वर्ग मी० प्रति वर्ष) या किलो कैलोरी प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष (K cal m-2)y-1 के रूप में व्यक्त किया जाता है। इससे विभिन्न पारितन्त्रों की उत्पादकता का अध्ययन किया जा सकता है। प्राथमिक उत्पादकता को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
सकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity - GPP)
किसी पारितन्त्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण के दौरान कुल कार्बनिक पदार्थ के उत्पादन की दर होती है।
नेट प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary productivity - NPP)
पौधों द्वारा श्वसन की प्रक्रिया में सकल प्राथमिक उत्पादन के एक बड़े भाग का उपभोग कर लिया जाता है। अब पौधों में शेष बची कार्बनिक पदार्थ की मात्रा नेट प्राथमिक उत्पादकता कहलाती है। अर्थात सकल प्राथमिक उत्पादकता मे से श्वसनीय हानि (respiratory losses) को घटा देने पर नेट प्राथमिक उत्पादकता (NPP) ज्ञात हो जाती है।
GPP – R = NPP
नेट प्राथमिक उत्पादकता परपोधियों (heterotrophs) जैसे शाकाहारी व अपघटनकर्ताओं के लिए पौधों में उपलब्ध जैव मात्रा होती है। उपभोक्ता के पोषण स्तर पर ऊर्जा के स्वांगीकरण (assimilation) की दर द्वितीयक उत्पादकता (Secondary Productivity) कहलाती है। अर्थात् उपभोक्ताओं द्वारा नये कार्बनिक पदार्थ के निर्माण की दर द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है। यहाँ यह विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता है कि उपभोक्ताओं का भोजन उत्पादकों द्वारा तैयार किया गया था, अतः द्वितीयक उत्पादकता केवल इस उपलब्ध खाद्य के उपभोक्ताओं द्वारा जैवभार निर्माण हेतु उपभोग की परिचायक है। उपभोक्ता स्वयं किसी प्रकार का उत्पादन नहीं कर सकते इसीलिए इसे द्वितीयक उत्पादकता कहा जाता है।
प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Primary Productivity)
प्राथमिक उत्पादकता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
(A) पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors)
वास्तव में प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं-
(B) पादप प्रजाति का प्रकार
(C) प्रजाति की प्रकाश संश्लेषणीय दक्षता (Photosynthetic efficiency of Species)
(D) पोषकों की उपलब्धता (Availability of nutrients)
जैसे प्रकाश संश्लेषण हेतु कच्चे माल CO2 व H2O व आवश्यक खनिजों की उपलब्धता। यह भिन्न-भिन्न प्रकार के पारितन्त्रों में भिन्न - भिन्न होती है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों (tropical regions) में प्राथमिक उत्पादकता प्राय: सदैव उच्च बनी रहती है, जबकि शीतोष्ण (temperate) क्षेत्रों में कम ताप का इस पर सीमाकारी (limiting) प्रभाव पड़ता है। अत: यह कम होती है। मरुस्थलों (deserts) में प्राथमिक उत्पादकता सबसे कम होती है, पूरे जैवमण्डल (biosphere) की वार्षिक नेट प्राथमिक उत्पादकता कार्बनिक
पदार्थ, शुष्क भार (dry weight) के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आंकी गई है। पृथ्वी के धरातल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से ढंका है लेकिन इसकी उत्पादकता लगभग 55 विलियन टन ही है। शेष मात्रा स्थलीय भाग पर उत्पन्न होती है।
समुद्रीय पारितन्त्र में कम उत्पादकता के प्रमुख कारण हैं-
प्रश्न 3.
एक स्वस्थ पारितंत्र प्रदान करने वाली चार महत्वपूर्ण सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पारितंत्र सेवाएँ (Ecosystem Services)
स्वस्थ पारितंत्र, मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त वरदान है। यह अनेक आर्थिक, पर्यावरणीय, व सौन्दर्य बोध की वस्तुओं व सेवाओं का आधार है। पारितंत्र की प्रक्रियाओं के उत्पादों को ही पारितंत्र सेवाएँ (ecosystem services) नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए स्वस्थ वन निम्न प्रकार से मनुष्य के लिए लाभकारी है-
(a) वनों के नियामक कार्य (Regulatory functions of the forests) वायुमण्डल में आक्सीजन व कार्बन डाइ आक्साइड की मात्रा का नियमन करना। यह बड़ी मात्रा में वायु का शुद्धीकरण करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन इतनी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन गैस का उत्पादन करते हैं कि उन्हें पृथ्वी के फेफड़े (lungs of the earth) कहा जाता है। यह उर्वरक मृदा उत्पन्न करते हैं।
(b) वनों के सुरक्षात्मक कार्य (Protective functions of the forests)
वनों के सुरक्षात्मक प्रभाव स्थानीय व वैश्विक दोनों स्तरों पर होते हैं-
(c) वनों के उत्पादक कार्य (Productive functions of the forests) वनों से अनेक महत्त्वपूर्ण उत्पाद मिलते हैं। जैसे काष्ठ, गैर काष्ठ वन उत्पादन (non wood forest products) व अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थ।
(d) वनों के सामाजिक, आर्थिक कार्य अनेक लोग अपनी आजीविका हेतु वनों पर निर्भर हैं। इनका प्रयोग शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहरों, पर्यटन, आमोद - प्रमोद (recreation) आदि हेतु किया जा रहा है।
(e) सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) वन आँखों को शीतलता, मन को शांति व प्रेरणा देने वाले माने जाते हैं। इनका सौन्दर्य मनुष्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
संक्षेप में बन वायु व जल को शुद्ध करते हैं, सूखे व बाढ़ के प्रकोप को कम करते हैं, पोषकों का चक्रण करते हैं, उर्वरक मृदा उत्पादित करते हैं, वन्यजीवों को पर्यावास उपलब्ध कराते हैं, जैव विविधता संरक्षण करते हैं। फसलों के परागण में मदद करते हैं, कार्बन सिंक की तरह कार्बन का संग्रह करते हैं तथा साथ ही सौन्दर्य बोध व सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करते है जैव, विविधता द्वारा दी जाने वाली इन सेवाओं के मूल्य को आँकना कठिन है लेकिन फिर भी जैव विविधता की इन अमूल्य सेवाओं को मूल्य का टैग देने का प्रयास तो होना ही चाहिए।
रॉबर्ट कोन्सटांजा (Robert constanza) व उनके सहयोगियों ने प्रकृति को जीवन रक्षक सेवाओं (life supporting services) का मूल्य आँकने का कार्य किया है। शोधार्थियों ने इस मौलिक पारितंत्र सेवाओं की एक वर्ष की कीमत 33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (33 trillion US $) तय की है। इन सेवाओं के महत्त्व के बारे में कभी सोचा ही नहीं जाता क्योंकि यह मुफ्त में प्राप्त है। लेकिन गौर से देखने पर पता लगता है कि इनके द्वारा किये गये कार्य इतने बड़े है कि यह वैश्विक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (global gross national product) जो कि यू एस डालर 18 ट्रिलियन है, के लगभग दो गुने के बराबर है। पारितंत्र द्वारा प्रदत्त सभी सेवाओं में से मृदा निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसकी कीमत कुल कीमत की लगभग 50 प्रतिशत है, पोषण चक्रण व मनोरंजन इसमें 10 - 10 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। जबकि जलवायु नियमन व वन्य जीवों के पर्यावास कीमत कुल कीमत की लगभग 6 प्रतिशत हैं।
प्रश्न 4.
उत्पादकता, सकल प्राथमिक उत्पादकता और शुद्ध उत्पादकता के बीच पारस्परिक संबंध का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्पादकता (Produtivity)
किसी भी पारितन्त्र को क्रियाशील व वहनीय (sustainable) बनाये रखने के लिए सौर ऊर्जा का निरन्तर निवेश (constant input of solar energy) मौलिक आवश्यकता है। पारितन्त्र के शेष सभी कार्य पारितन्त्र में सौर ऊर्जा के निवेश (input) पर आधारित हैं। सरलतम शब्दों में जैव भार (biomass) उत्पादन की दर उत्पादकता कहलाती है। उत्पादकता दो प्रकार की होती है - प्राथमिक उत्पादकता (Primary productivity) तथा द्वितीयक उत्पादकता ((Secondary productivity)
प्राथमिक उत्पादन (Primary Production)
हरे पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में एक निश्चित समयावधि में प्रति इकाई क्षेत्र द्वारा उत्पादित जैवभार (biomass) या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा प्राथमिक उत्पादन कहलाती है। जैवभार उत्पादन की दर को ही उत्पादकता (productivity) कहते हैं। उत्पादकता को g-2m-1y-1 (ग्राम प्रति वर्ग मी० प्रति वर्ष) या किलो कैलोरी प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष (K cal m-2)y-1 के रूप में व्यक्त किया जाता है। इससे विभिन्न पारितन्त्रों की उत्पादकता का अध्ययन किया जा सकता है। प्राथमिक उत्पादकता को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
सकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity - GPP)
किसी पारितन्त्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण के दौरान कुल कार्बनिक पदार्थ के उत्पादन की दर होती है।
नेट प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary productivity - NPP)
पौधों द्वारा श्वसन की प्रक्रिया में सकल प्राथमिक उत्पादन के एक बड़े भाग का उपभोग कर लिया जाता है। अब पौधों में शेष बची कार्बनिक पदार्थ की मात्रा नेट प्राथमिक उत्पादकता कहलाती है। अर्थात सकल प्राथमिक उत्पादकता मे से श्वसनीय हानि (respiratory losses) को घटा देने पर नेट प्राथमिक उत्पादकता (NPP) ज्ञात हो जाती है।
GPP – R = NPP
नेट प्राथमिक उत्पादकता परपोधियों (heterotrophs) जैसे शाकाहारी व अपघटनकर्ताओं के लिए पौधों में उपलब्ध जैव मात्रा होती है। उपभोक्ता के पोषण स्तर पर ऊर्जा के स्वांगीकरण (assimilation) की दर द्वितीयक उत्पादकता (Secondary Productivity) कहलाती है। अर्थात् उपभोक्ताओं द्वारा नये कार्बनिक पदार्थ के निर्माण की दर द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है। यहाँ यह विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता है कि उपभोक्ताओं का भोजन उत्पादकों द्वारा तैयार किया गया था, अतः द्वितीयक उत्पादकता केवल इस उपलब्ध खाद्य के उपभोक्ताओं द्वारा जैवभार निर्माण हेतु उपभोग की परिचायक है। उपभोक्ता स्वयं किसी प्रकार का उत्पादन नहीं कर सकते इसीलिए इसे द्वितीयक उत्पादकता कहा जाता है।
प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Primary Productivity)
प्राथमिक उत्पादकता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
(A) पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors)
वास्तव में प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं-
(B) पादप प्रजाति का प्रकार
(C) प्रजाति की प्रकाश संश्लेषणीय दक्षता (Photosynthetic efficiency of Species)
(D) पोषकों की उपलब्धता (Availability of nutrients)
जैसे प्रकाश संश्लेषण हेतु कच्चे माल CO2 व H2O व आवश्यक खनिजों की उपलब्धता। यह भिन्न-भिन्न प्रकार के पारितन्त्रों में भिन्न - भिन्न होती है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों (tropical regions) में प्राथमिक उत्पादकता प्राय: सदैव उच्च बनी रहती है, जबकि शीतोष्ण (temperate) क्षेत्रों में कम ताप का इस पर सीमाकारी (limiting) प्रभाव पड़ता है। अत: यह कम होती है। मरुस्थलों (deserts) में प्राथमिक उत्पादकता सबसे कम होती है, पूरे जैवमण्डल (biosphere) की वार्षिक नेट प्राथमिक उत्पादकता कार्बनिक
पदार्थ, शुष्क भार (dry weight) के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आंकी गई है। पृथ्वी के धरातल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से ढंका है लेकिन इसकी उत्पादकता लगभग 55 विलियन टन ही है। शेष मात्रा स्थलीय भाग पर उत्पन्न होती है।
समुद्रीय पारितन्त्र में कम उत्पादकता के प्रमुख कारण हैं-
प्रश्न 5.
उन खाद्य श्रृंखलाओं के नाम बताइये जो जलीय पारितन्त्र तथा स्थलीय पारितन्त्र में ऊर्जा के बड़े भाग का प्रवाह करती है। इन दोनों खाद्य श्रृंखलाओं में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर:
जलीय पारितन्त्र में - चारण खाद्य श्रृंखला (Grazing Food Chain - GFC) स्थलीय पारितन्त्र में-अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus Food Chain - DFC) अन्तर के लिए एन सी ई आर टी अभ्यास प्रश्न 6(a) का उत्तर देखें।
प्रश्न 6.
संलग्न दिया गया पारिस्थितिक पिरामिड किस प्रकार का है, पहचानिए तथा ऐसी दशाओं मे संख्या का पिरामिड तथा जैव संहति (जैवभार) के पिरामिड का एक - एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
यह उल्टा (inverted) पारिस्थितिक पिरामिड है। उल्टे पिरामिड में उत्पादक स्तर सबसे छोटा तथा उसके बाद के एक या अधिक स्तर बड़े होते हैं। उदाहरण-वृक्ष की संख्या का पारिस्थितिक पिरामिड बनाने पर वृक्षावृक्षों की संख्या कम तथा उस पर निर्भर कीटों की संख्या अधिक होती है। उन कीटों का भक्षण करने वाले पक्षियों की संख्या कम होगी अत: उक्त प्रकार का पिरामिड प्राप्त होगा। सागरीय परितन्त्र में जैवमात्रा (biomass) के पिरामिड में पादप प्लवकों की जैव मात्रा कम व मछलियों की अधिक होती है, अत: उल्टा पिरामिड प्राप्त होता है।
प्रश्न 7.
अपरदहारी (detritivore) तथा अपघटक में एक अन्तर उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
वह जीव जो अपरद (detritus) का भक्षण कर इसका खण्डन (fragmentation) कर देते है अर्थात इसे छोटे-छोटे कणों में विभक्त कर इसका सतही क्षेत्र बढ़ा देते हैं अपरदहारी (detritivore) कहलाते हैं, जैसे केंचुए व कुछ क्रस्टेशियम, मौलस्क। अपघटक जीव अपरद या खण्डित अपरद को अपने बाहा कोशिकीय एंजाइमों की मदद से अपघटित कर सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं अर्थात् ये अपचय (Catabolism) के लिए उत्तरदायी हैं, जैसे- जीवाणु व कवक।
प्रश्न 8.
ऊर्जा का एक आदर्श पिरामिड बनाएँ जब 1000000 जूल सूर्य का प्रकाश उपस्थित है। इसके सभी पोषण स्तरों को नामांकित करें।
उत्तर:
प्राथमिक उत्पादक उनको उपलब्ध कुल ऊर्जा का केवल 1 प्रतिशत NPP में परिवर्तित कर पाते हैं।
प्रश्न 9.
क्या यह सम्भव है कि कोई प्रजाति एक ही पारितन्त्र में और एक ही समय पर एक से अधिक पोषण स्तर प्राप्त किए हो? एक उदाहरण की सहायता से समझाइये।
उत्तर:
हाँ! एक दी गई प्रजाति उसी पारितन्त्र में एक ही समय में एक से अधिक पोषक स्तर प्राप्त कर सकती है। उदाहरण के लिए एक गौरव्या (Sparrow) अगर दाना, बीज या फल खाती है तब वह प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumer) होगी। लेकिन अगर यह किसी लार्वा या कीट को खा लेती है तो द्वितीयक उपभोक्ता (secondary consumer) होगी।
प्रश्न 10.
जैव संहति के दो भिन्न प्रकार के पिरामिडों के बीच उनका एक - एक उदाहरण देकर अन्तर बताइये
उत्तर:
(a) किसी पारितंत्र में पोषण संरचना व पोषण कार्य का प्राफीय निरूपण पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है। इसमें प्रथम स्तर अर्थात उत्पादक स्तर पिरामिड का आधार तथा अन्य पोषक स्तर क्रमशः इसके ऊपरी भाग बनाते हैं। शीर्ष भाग (apex) खाद्य श्रृंखला के सर्वोच्च उपभोक्ता द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पारिस्थितिक पिरामिड बनाने में पोषण स्तरों के तीन पहलुओं, संख्या, जैवभार (जैव मात्रा) या ऊर्जा को आधार बनाया जा सकता है,
अत: पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं
लेकिन संख्या व जैव भार के पिरामिड उल्टे (inverted) भी हो सकते है। उल्टे पिरामिड का अर्थ है कि उत्पादकों की संख्या का या जैव भार उपभोक्ताओं के किसी एक या अधिक स्तरों से कम होता है। जैसे किसी वृक्ष के जैव संख्या पिरामिड में उत्पादक वृक्ष की संख्या एक व उस पर आश्रित कीटों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसी प्रकार सागरीय (marine) पारितंत्र में उत्पादकों का जैव भार उन्हें खाने वाली मछलियों के जैव भार से कम होता है। इस प्रकार एक उल्टा (inverted pyramid) प्राप्त होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
(a) किसी पारितंत्र में पोषण स्तर क्या होता है? इसके संदर्भ में 'स्थित शस्य (खड़ी फसल)' का क्या अभिप्राय है?
(b) किसी पारितन्त्र में प्रथम पोषक स्तर की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
(c) एक प्राकृतिक पारितन्त्र में अपरद खाद्य श्रृंखला, चारण खाद्य श्रृंखला से किस प्रकार सम्बद्ध है?
उत्तर:
(a) ऊर्जा प्रवाह मॉडल (Energy Flow Model)
किसी पारितन्त्र में ऊर्जा प्रवाह को प्रदर्शित करने वाली सरलीकृत योजना को निम्न चित्र में प्रदर्शित किया जा रहा है-
ऊर्जा प्रवाह में दो तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-
(i) ऊर्जा प्रवाह एकदिशीय होता है (Energy flow is unidirectional) अर्थात ऊर्जा सिर्फ एक दिशा में प्रवाहित होती है उत्पादक से शाकाहारी (प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता) में तथा शाकाहारी से मांसाहारी (द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता में। यह उल्टी दिशा में स्थानान्तरित नहीं हो सकती।
(ii) क्रमिक पोषण स्तरों में प्रवाहित ऊर्जा की मात्रा क्रमशः कम होती जाती है। उदाहरण के लिए पौधों द्वारा सकल रूप से उत्पादित कर्जा का एक भाग श्वसन के रूप में व्यय हो जाता है तथा शाकाहारियों के लिए केवल नेट प्राथमिक उत्पादन ही उपलब्ध होता है। जन्तु इसके केवल कुछ भाग का ही उपयोग कर पाते हैं। पौधों की अपेक्षा अधिक सक्रिय होने के कारण जन्तु पौधों से प्राप्त ऊर्जा का एक बड़ा भाग अगले पोषण स्तर को स्थानान्तरित करने से पहले स्वयं ही प्रयोग कर लेते हैं। ऊर्जा स्थानान्तरण के प्रत्येक पद पर खाद्य श्रृंखला से ऊर्जा के उल्लेखनीय भाग की हानि हो जाती है। अत: स्थानान्तरित की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा प्रत्येक अगले स्तर पर कम होती जाती है।
स्टेंडिंग क्रॉप (Standing Crop)
किसी समय विशेष पर किसी पोषण स्तर (trophic level) में उपस्थित जीवित पदार्थ की मात्रा स्टेडिंग क्रॉप (standing crop) कहलाती है। स्टेंडिंग क्रॉप को इकाई क्षेत्र में जैव मात्रा (biomass) या संख्या के रूप में मापा जाता है।
जीवित जीवधारियों की मात्रा जैव मात्रा (biomass) कहलाती है। किसी प्रजाति की जैव मात्रा को ताजे भार या शुष्क भार (fresh or dry weight) के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। शुष्क भार (dry weight) के रूप में जैव मात्रा के मापन को अधिक परिशुद्ध (accurate) माना जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि जीवों में जल की मात्रा अलग - अलग होती है तथा जल से किसी प्रकार की ऊर्जा की प्राप्ति नहीं होती।
10 प्रतिशत का नियम (10 Percent Rule): "किसी भी पोषण स्तर में उपलब्ध कुल ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत ही अगले पोषण स्तर के लिए स्थानान्तरित होता है।"
उदाहरण के लिए अगर एक शाकाहारी समष्टि 1000 किग्रा० पादप पदार्थ का भक्षण करती है तब केवल 100 किग्रा० शाकाहारियों के ऊतकों में जैवभार के रूप में परिवर्तित होगा, इसका 10% अर्थात् 10 किग्रा० द्वितीयक स्तर के उपभोक्ताओं अर्थात् मांसाहारी जन्तुओं को तथा मात्र 1 किग्रा० तृतीय स्तर के उपभोक्ताओं को मिलेगा।
चूंकि अगले पोषण स्तर के उपभोक्ताओं को बहुत कम ऊर्जा उपलब्ध होती है, अतः खाद्य श्रृंखला के सबसे बायीं ओर के जीवों (तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता/सर्वोच्च उपभोक्ता) को अत्यल्प ऊजा प्राप्त होती है। इसी कारण से किसी भी खाद्य श्रृंखला में पदों की संख्या सीमित (4 से 5 पद) होती है। दूसरे शब्दों में श्वसनीय व अन्य ऊर्जा हानियाँ इतनी अधिक होती है कि चार या पाँच पोषण स्तरों के बाद स्थित जीव को अत्यल्प ऊर्जा प्राप्त होती है।
छोटी खाद्य श्रृंखलाएँ बड़ी खाद्य श्रृंखलाओं की अपेक्षा अधिक ऊर्जा उपलब्ध कराती है। उदाहरण के लिए ऊर्जा हानि
(b) ऊर्जा प्रवाह मॉडल (Energy Flow Model)
किसी पारितन्त्र में ऊर्जा प्रवाह को प्रदर्शित करने वाली सरलीकृत योजना को निम्न चित्र में प्रदर्शित किया जा रहा है-
ऊर्जा प्रवाह में दो तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-
(i) ऊर्जा प्रवाह एकदिशीय होता है (Energy flow is unidirectional) अर्थात ऊर्जा सिर्फ एक दिशा में प्रवाहित होती है उत्पादक से शाकाहारी (प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता) में तथा शाकाहारी से मांसाहारी (द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता में। यह उल्टी दिशा में स्थानान्तरित नहीं हो सकती।
(ii) क्रमिक पोषण स्तरों में प्रवाहित ऊर्जा की मात्रा क्रमशः कम होती जाती है। उदाहरण के लिए पौधों द्वारा सकल रूप से उत्पादित कर्जा का एक भाग श्वसन के रूप में व्यय हो जाता है तथा शाकाहारियों के लिए केवल नेट प्राथमिक उत्पादन ही उपलब्ध होता है। जन्तु इसके केवल कुछ भाग का ही उपयोग कर पाते हैं। पौधों की अपेक्षा अधिक सक्रिय होने के कारण जन्तु पौधों से प्राप्त ऊर्जा का एक बड़ा भाग अगले पोषण स्तर को स्थानान्तरित करने से पहले स्वयं ही प्रयोग कर लेते हैं। ऊर्जा स्थानान्तरण के प्रत्येक पद पर खाद्य श्रृंखला से ऊर्जा के उल्लेखनीय भाग की हानि हो जाती है। अत: स्थानान्तरित की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा प्रत्येक अगले स्तर पर कम होती जाती है।
स्टेंडिंग क्रॉप (Standing Crop)
किसी समय विशेष पर किसी पोषण स्तर (trophic level) में उपस्थित जीवित पदार्थ की मात्रा स्टेडिंग क्रॉप (standing crop) कहलाती है। स्टेंडिंग क्रॉप को इकाई क्षेत्र में जैव मात्रा (biomass) या संख्या के रूप में मापा जाता है।
जीवित जीवधारियों की मात्रा जैव मात्रा (biomass) कहलाती है। किसी प्रजाति की जैव मात्रा को ताजे भार या शुष्क भार (fresh or dry weight) के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। शुष्क भार (dry weight) के रूप में जैव मात्रा के मापन को अधिक परिशुद्ध (accurate) माना जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि जीवों में जल की मात्रा अलग - अलग होती है तथा जल से किसी प्रकार की ऊर्जा की प्राप्ति नहीं होती।
10 प्रतिशत का नियम (10 Percent Rule): "किसी भी पोषण स्तर में उपलब्ध कुल ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत ही अगले पोषण स्तर के लिए स्थानान्तरित होता है।"
उदाहरण के लिए अगर एक शाकाहारी समष्टि 1000 किग्रा० पादप पदार्थ का भक्षण करती है तब केवल 100 किग्रा० शाकाहारियों के ऊतकों में जैवभार के रूप में परिवर्तित होगा, इसका 10% अर्थात् 10 किग्रा० द्वितीयक स्तर के उपभोक्ताओं अर्थात् मांसाहारी जन्तुओं को तथा मात्र 1 किग्रा० तृतीय स्तर के उपभोक्ताओं को मिलेगा।
चूंकि अगले पोषण स्तर के उपभोक्ताओं को बहुत कम ऊर्जा उपलब्ध होती है, अतः खाद्य श्रृंखला के सबसे बायीं ओर के जीवों (तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता/सर्वोच्च उपभोक्ता) को अत्यल्प ऊजा प्राप्त होती है। इसी कारण से किसी भी खाद्य श्रृंखला में पदों की संख्या सीमित (4 से 5 पद) होती है। दूसरे शब्दों में श्वसनीय व अन्य ऊर्जा हानियाँ इतनी अधिक होती है कि चार या पाँच पोषण स्तरों के बाद स्थित जीव को अत्यल्प ऊर्जा प्राप्त होती है।
छोटी खाद्य श्रृंखलाएँ बड़ी खाद्य श्रृंखलाओं की अपेक्षा अधिक ऊर्जा उपलब्ध कराती है। उदाहरण के लिए ऊर्जा हानि
(c) खाद्य श्रृंखला (Food Chain)
अपने सरलतम रूप में खाद्य सम्बन्ध (घास, हिरन, बाघ व सूक्ष्मजीव) ही खाद्य शृंखला (Food chain) कहे जाते हैं। "खाद्य ऊर्जा के स्थानान्तरण को प्रदर्शित करता विभिन्न पोषण स्तर के जीवों का अन्तः सम्बन्धित रेखित अनुक्रम खाद्य शृंखला कहलाता है।" खाद्य श्रृंखला का प्रत्येक पद एक पोषण स्तर (trophic level) का प्रतिनिधित्व करता है।" खाद्य शृंखला दो प्रकार की होती है-
(a) एक साधारण चारण (grazing) खाद्य श्रृंखला यहाँ दिखाई गई है।
वन पारितन्त्र
वृक्ष → शाकाहारी स्तनधारी → लोमड़ी → बाघ
(b) दूसरे प्रकार की खाद्य शृंखला को अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus Food chain) कहा जाता है। यह मृत कार्बनिक पदार्थ से प्रारम्भ होती है। मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में शामिल सभी जीव इस अपरद खाद्य श्रृंखला के भाग होते हैं जैसे अपरदहारी (detritivore) केंचुए तथा अपघटक जीव (decomposers) जैसे जीवाणु व कवक। यह जीव अपनी कर्जा व पदार्थों की आवश्यकता मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से पूरी करते हैं। अपरद या खण्डित अपरद के पाचन के लिए जीवाणु व कवक जैसे सूक्ष्मजीव बाह्य कोशिकीय पाचक एंजाइमों का स्रावण करते हैं। मृत कार्यनिक पदार्थ के पाचन में बने सरल पदार्थ इन सूक्ष्मजीवों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। जलीय पारितन्त्रों में चारण खाद्य शृंखला (जी एफ सी) कर्जा प्रवाह का प्रमुख माध्यम है जबकि स्थलीय पारितन्त्रों में ऊर्जा का एक बड़ा भाग अपरद खाद्य श्रृंखला के रूप में प्रवाहित होता है। इन दोनों प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। कुछ स्तरों पर अपरद खाद्य शृंखला, चारण खाद्य श्रृंखला से जुड़ी रहती है। अपरद खाद्य पंखला के अनेक जीव चारण खाद्य श्रृंखला के जीवों के शिकार बन जाते हैं। उदाहरण के लिए पक्षी, केचुए का भक्षण करते हैं। प्रकृति में अनेक जीव सर्वाहारी (Omnivorous) होते हैं। कॉकरोच व कौए जैसे जीव दोनों प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं को जोड़ते हैं।
प्रश्न 2.
आर्थिक, पर्यावरणीय क्या सौन्दर्यपरक वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापक परिसर के लिए पूर्वप्रेक्षित स्वस्थ पारितन्त्र सेवाओं की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पारितंत्र सेवाएँ (Ecosystem Services)
स्वस्थ पारितंत्र, मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त वरदान है। यह अनेक आर्थिक, पर्यावरणीय, व सौन्दर्य बोध की वस्तुओं व सेवाओं का आधार है। पारितंत्र की प्रक्रियाओं के उत्पादों को ही पारितंत्र सेवाएँ (ecosystem services) नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए स्वस्थ वन निम्न प्रकार से मनुष्य के लिए लाभकारी है-
(a) वनों के नियामक कार्य (Regulatory functions of the forests) वायुमण्डल में आक्सीजन व कार्बन डाइ आक्साइड की मात्रा का नियमन करना। यह बड़ी मात्रा में वायु का शुद्धीकरण करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन इतनी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन गैस का उत्पादन करते हैं कि उन्हें पृथ्वी के फेफड़े (lungs of the earth) कहा जाता है। यह उर्वरक मृदा उत्पन्न करते हैं।
(b) वनों के सुरक्षात्मक कार्य (Protective functions of the forests)
वनों के सुरक्षात्मक प्रभाव स्थानीय व वैश्विक दोनों स्तरों पर होते हैं-
(c) वनों के उत्पादक कार्य (Productive functions of the forests) वनों से अनेक महत्त्वपूर्ण उत्पाद मिलते हैं। जैसे काष्ठ, गैर काष्ठ वन उत्पादन (non wood forest products) व अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थ।
(d) वनों के सामाजिक, आर्थिक कार्य अनेक लोग अपनी आजीविका हेतु वनों पर निर्भर हैं। इनका प्रयोग शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहरों, पर्यटन, आमोद - प्रमोद (recreation) आदि हेतु किया जा रहा है।
(e) सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) वन आँखों को शीतलता, मन को शांति व प्रेरणा देने वाले माने जाते हैं। इनका सौन्दर्य मनुष्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
संक्षेप में बन वायु व जल को शुद्ध करते हैं, सूखे व बाढ़ के प्रकोप को कम करते हैं, पोषकों का चक्रण करते हैं, उर्वरक मृदा उत्पादित करते हैं, वन्यजीवों को पर्यावास उपलब्ध कराते हैं, जैव विविधता संरक्षण करते हैं। फसलों के परागण में मदद करते हैं, कार्बन सिंक की तरह कार्बन का संग्रह करते हैं तथा साथ ही सौन्दर्य बोध व सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करते है जैव, विविधता द्वारा दी जाने वाली इन सेवाओं के मूल्य को आँकना कठिन है लेकिन फिर भी जैव विविधता की इन अमूल्य सेवाओं को मूल्य का टैग देने का प्रयास तो होना ही चाहिए।
रॉबर्ट कोन्सटांजा (Robert constanza) व उनके सहयोगियों ने प्रकृति को जीवन रक्षक सेवाओं (life supporting services) का मूल्य आँकने का कार्य किया है। शोधार्थियों ने इस मौलिक पारितंत्र सेवाओं की एक वर्ष की कीमत 33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (33 trillion US $) तय की है। इन सेवाओं के महत्त्व के बारे में कभी सोचा ही नहीं जाता क्योंकि यह मुफ्त में प्राप्त है। लेकिन गौर से देखने पर पता लगता है कि इनके द्वारा किये गये कार्य इतने बड़े है कि यह वैश्विक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (global gross national product) जो कि यू एस डालर 18 ट्रिलियन है, के लगभग दो गुने के बराबर है। पारितंत्र द्वारा प्रदत्त सभी सेवाओं में से मृदा निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसकी कीमत कुल कीमत की लगभग 50 प्रतिशत है, पोषण चक्रण व मनोरंजन इसमें 10 - 10 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। जबकि जलवायु नियमन व वन्य जीवों के पर्यावास कीमत कुल कीमत की लगभग 6 प्रतिशत हैं।
प्रश्न 3.
पारिस्थितिक पिरामिड किसे कहते हैं? इसकी गणना में किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। घास के मैदान की पारिस्थितिक तन्त्र एवं ऊर्जा प्रवाह के पिरामिड का चित्र बनाइए।
अथवा
पारिस्थितिकीय अनुक्रमण किसे कहते हैं? इसके विभिन्न चरणों को बताइए। जलारंभी एवं शुष्कारंभी अनुक्रमण समझाते हुए इनके रेखीय आरेख बनाइए।
उत्तर:
पारिस्थितिक पिरामिड (Ecological Pyramids)
किसी पारितन्त्र में पोषण संरचना (trophic structure) का आरेखीय प्रदर्शन पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है। पोषण संरचना को पारिस्थितिक पिरामिड के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है जिसमें प्रथम पोषण स्तर या उत्पादक स्तर, पिरामिड का आधार (base) तथा अन्य क्रमिक स्तर इसके चोटी या शिखाय (apex) तक के स्तर बनाते है। शिखर का प्रतिनिधित्व कौन - सा स्तर करेगा इसका निर्धारण खाद्य श्रृंखला में स्तरों की संख्या से होता है। खाद्य शृंखला का सबसे बायीं ओर का स्तर पिरामिड का शिखान बनाता है।
पिरामिड के आकार से आप सभी भली - भाँति परिचित हैं। पिरामिड का आधार चौड़ा, फैला हुआ होता है तथा यह शिखान (apex) की ओर पतला या संकरा होता जाता है। पारिस्थितिक पिरामिड तीन सामान्य प्रकार के होते हैं-
(a) संख्या का पिरामिड
(b) जैव मात्रा का पिरामिड तथा
(c) ऊर्जा का पिरामिड।
(a) संख्या का पिरामिड (The Pyramid of Numbers)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है संख्या के पिरामिड में व्यष्टि (individual) जीवों की संख्या को प्रदर्शित किया जाता है। आगे दिये गये चित्र को देखने से स्पष्ट होता है कि प्राथमिक उत्पादकों (PP) की संख्या सबसे अधिक, उनको खाने वाले शाकाहारी जन्तुओं की संख्या उत्पादकों से कम तथा शाकाहारियों को खाने वाले द्वितीयक उपभोक्ताओं मांसाहारियों की संख्या, शाकाहारियों की संख्या से कम है। इस पोषण संरचना में तृतीयक उपभोक्ता श्रेणी (Tertiary consumer) में मात्र 3 जीव हैं। स्पष्ट है, पिरामिड का आधार जो उत्पादकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है, सबसे चौड़ा तथा शिखर जो तृतीयक उपभोक्ताओ का परिचायक है, सबसे सँकरा है।
(b) जैव मात्रा का पिरामिड (The Pyramid of Biomass)
जीवों की संख्या को एक जीव में उपस्थित शुष्क भार (dry weight) से गुणा करने पर जीवों की कुल जैव मात्रा (जैव भार) प्राप्त हो जाती है। बड़ी झीलों व खुले समुद्र में जहाँ एक मात्र उत्पादक शैवाल (algae) ही होती हैं, शाकाहारियों (जन्तु प्लवकों) का भार उत्पादकों से अधिक हो सकता है। इसका कारण शाकाहारियों द्वारा बड़ी तेजी से शैवालों का भक्षण है।
उल्टे पिरामिड (Inverted Pyramid) का अर्थ है, उत्पादकों को प्रदर्शित कर रहा स्तर छोटा व उसके बाद के एक या अधिक बड़े स्तर। अत: इसका आकार ऐसा भी बन सकता है जिसके शीर्ष व आधार छोटे तथा बीच का भाग बड़ा हो। लेकिन इसे उल्टा पिरामिड कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, एक वृक्ष पर अपने पोषण के लिए निर्भर कीटों की संख्या, इन कीटों को खाने वाली छोटी चिड़ियों की संख्या तथा इन छोटे पक्षियों को आहार बनाने वाले पक्षियों की संख्या को लेकर बनाया गया संख्या का पिरामिड उल्टा होगा। इसमें एक वृक्ष पर हजारों कीट होंगे। उन पर निर्भर रहने वाले उनसे कम संख्या में पक्षी होंगे। इन छोटे पक्षियों का भक्षण करने वाले कुछ बड़े पक्षी होंगे। समुद्र में जैव मात्रा (biomass) का पिरामिड भी प्रायः उल्टा (inverted) होता है क्योंकि मछलियों की जैव मात्रा पादप प्लवकों की जैव मात्रा से बहुत अधिक होती है।
(c) ऊर्जा का पिरामिड (The Pyramid of Energy)
ऊर्जा के पिरामिड में विभिन्न पोषक स्तरों में ऊर्जा के प्रवाह की दर (rate of energy flow) या उत्पादकता (productivity) को प्रदर्शित किया जाता है।
ऊर्जा पिरामिड का महत्व (significance of Pyramid of energy)
अधिकांश पारितन्त्रों में, सभी प्रकार के पिरामिड - संख्या के, ऊर्जा के व जैवमात्रा के सौधे (upright) होते हैं। इसका अर्थ यह है कि शाकाहारियों की अपेक्षा, उत्पादकों की संख्या व जैवमात्रा अधिक होती है तथा मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों की संख्या व जैव मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार नीचे के पोषण स्तरों में ऊर्जा की मात्रा अधिक व ऊपर के स्तरों में क्रमश: कम होती जाती है। इन आंकड़ों से हमेशा सीधा (upright) पिरामिड बनता है। लेकिन इस सामान्यीकरण के कुछ अपवाद भी है। संख्या (number) व जैवमात्रा के पिरामिड उल्टे (inverted) भी हो सकते हैं, अर्थात् पिरामिड का आधार ऊपर के एक या अधिक टियर (tier) से छोटा होता है। ऊर्जा का पिरामिड हमेशा ही सीधा होता है वह कभी - भी उल्टा (inverted) नहीं हो सकता, अगर पारितंत्र में उपस्थित खाद्य के सभी स्रोतों को दृष्टिगत रखा जाया यह हमेशा सीधा इसलिए होता है क्योकि जब ऊर्जा एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर को स्थानान्तरित होती है तब प्रत्येक पद पर कुछ ऊर्जा की ऊष्मा के रूप में हानि हो जाती है।
ऊर्जा के पिरामिड में प्रत्येक स्तर (tier) प्रत्येक पोषण स्तर (ropic level) पर प्रति इकाई क्षेत्र में एक वर्ष या दिये समय पर उपलब्ध ऊर्जा की मात्रा को प्रदर्शित करता है। पिरामिड बनाते समय ऊर्जा की मात्रा, जैव मात्रा व संख्या सम्बन्धी प्रत्येक गणना में उस पोषण स्तर के सभी जीवों को शामिल करना आवश्यक होता है। अगर हम प्रत्येक पोषण स्तर के केवल कुछ जीवों को अपनी गणना का आधार बनाते हैं तो हमारा कोई भी सामान्यीकरण या व्यापकीकरण प्रयास सत्यता से परे होगा। साथ ही एक ही जीव एक ही समय में दो पोषक स्तरों में शामिल हो जायेगा। पोषण स्तर वास्तव में एक कार्यात्मक स्तर का प्रतिनिधित्व करता है किसी प्रजाति विशेष का नहीं। एक प्रजाति एक पारितंत्र में एक ही समय में दो पोषक स्तरों को प्राप्त कर सकती है। उदाहरण के लिए जब एक छोटा पक्षी जैसे गौरेय्या फल खाती है तब यह प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumer) होती है लेकिन जब वह लार्वा या वर्म खाती है तब वह द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary consumer) बन जाती है।
पारिस्थितिक पिरामिडों की सीमाएँ (Limitutions of ocological pyramids)
अथवा
पारिस्थितिक अनुक्रमण (Ecological Succession)
जैव समुदाय गतिज (dynamic) होते हैं व समय के साथ बदलते हैं। पारिस्थितिक विकास (Ecological development) जिसे पारिस्थितिक अनुक्रमण (ecological succession) के रूप में जाना जाता है, प्रत्येक समुदाय का एक विशिष्ट लक्षण है। बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों की अनुक्रिया में जैव समुदायों के संघटन (composition) व संरचना में होने वाला सतत परिवर्तन ही पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाता है। यह बदलाव क्रमिक (sequential), नियमबद्ध (orderly) तथा भौतिक पर्यावरण में बदलावों के समानान्तर होता है। इन बदलावों के फलस्वरूप अन्त में ऐसे समुदाय का विकास होता है जो कि अपने पर्यावरण के साथ लगभग साम्यावस्था (equilibrium) में होता है। इसे चरम समुदाय कहा जाता है।
किसी स्थान विशेष के प्रजाति संगठन (species composition) में होने वाला क्रमिक व अनुमानयोग्य (predietable) परिवर्तन पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाता है।
अत: पारिस्थितिक अनुक्रम की परिभाषा के निम्न तीन प्रमुख बिन्दु हैं-
समुदायों का पूरा क्रम जो किसी नियत स्थान पर एक दूसरे को प्रतिस्थापित (replace) करता है सेरे (Sere) कहलाता है। आपेक्षिक रूप से, अंतरण करने वाले समुदाय (transitory communities) सेरल समुदाय (Seral communities) या विकासीय अवस्थाएँ कहलाती हैं। जबकि अन्तिम स्थायी तंत्र घरम समुदाय (Climax community) कहलाता है। अनुक्रमण के दौरान कुछ प्रजातियाँ किसी क्षेत्र में स्थापित होकर बस जाती है तथा उनकी समाष्टियां बढ़ने लगती हैं जबकि अन्य प्रजातियों की समष्टियाँ घटती है व वहाँ से विलोपित भी हो सकती हैं। एक के बाद एक बदलने वाली अर्थात् क्रमिक सेरल अवस्थाओं (Seral stages) में जीवों की प्रजातियों की विविधता में परिवर्तन होते हैं, प्रजातियों की संख्या व जीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है, साथ ही कुल जैव मात्रा (total - biomass) में वृद्धि होती है। इसीलिए क्लीमेंट (Clement 1916) के अनुसार, "अनुक्रम एक प्राकृतिक क्रिया है जिसमें अनेक समूहों या पादप समुदायों द्वारा क्रमिक रूप से एक ही क्षेत्र का औपनिवेशन (Colonization) होता है।" आज के समय में हम विश्व में जो भी समुदाय देखते हैं वह पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से लेकर अब तक लाखों वर्ष के अनुक्रमण के कारण ही अपने वर्तमान स्वरूप में आ सके हैं।
अनुक्रमण निम्न प्रकार का हो सकता है-
प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession): समुदायों का विकास ऐसे स्थानों पर भी हो सकता है जहाँ पहले कभी किसी प्रकार की वनस्पति नहीं थी जैसे ठण्डा हुआ लावा, नग्न चट्टान (bare rocks), नया बना जलाशय आदि। इन आरम्भिक आधारी पदार्थों (Primitive Substratum) से प्रारम्भ होने वाला अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession) कहलाता है। एक नये जैव समुदाय का स्थापन प्राय: धीमा होता है। विभिन्न प्रकार के जीवों से बने जैव समुदाय की स्थापना से पहले वहाँ मृदा (soil) का होना आवश्यक होता है। प्राकृतिक प्रक्रिया में जो प्रमुखतः जलवायु पर निर्भर है नग्न, चट्टान पर उपजाऊ मिट्टी बनने में कई सौ वर्षों से लेकर कई हजार वर्षों तक का समय लगता है।
द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession): ऐसे स्थानों से जहाँ की वनस्पति का किन्हीं कारणों से विनाश हो गया है, प्रारम्भ हुआ अनुक्रमण द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary succession) कहलाता है। जैसे वनों की आग या कटाव या बाढ़ के बाद खाली पड़े खेतों में हुआ अनुक्रमण। इस प्रकार के अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण की अपेक्षा तेजी से होते है। इनकी संख्या भी अधिक होती है। क्योंकि यहाँ मृदा पहले से उपलब्ध होती है। पारिस्थितिक अनुक्रमणों का विवरण सामान्यतः वनस्पति में हुए बदलावों पर केन्द्रित होता है। लेकिन वनस्पति में हुए बदलाव जन्तुओं के शरण स्थल/आवास तथा खाद्य को प्रभावित करते हैं। अर्थात वनस्पति में हुआ किसी भी प्रकार का बदलाव वहाँ की जन्तु समष्टियों को प्रभावित करता है। अतः अनुक्रमण के जारी रहने पर जन्तुओं व अपघटकों की संख्या व प्रकार भी परिवर्तित होते हैं। मनुष्य की गतिविधियों का पारिस्थितिक विकास अर्थात अनुक्रमण पर भी प्रभाव पड़ता है। प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रमण के दौरान किसी भी समय होने वाला प्राकृतिक व मानव प्रेरित विघ्न जैसे वनों की आग, वनों का कटान आदि अनुक्रमण की किसी भी सेरल अवस्था (Seral stage) को इसकी पूर्ववर्ती अवस्था में बदल देता है।
मानवजनित या प्राकृतिक आपदायें ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर देती हैं जो कुछ प्रजातियों के लिए प्रेरक व कुछ अन्य के लिए बाधक का कार्य करती हैं। कुछ प्रजातियाँ इन परिस्थितयों में पूर्ण रूप से विलोपित हो जाती हैं। वह पौधे जो किसी नग्न भूमि (ऐसा स्थान जहाँ पहले कोई वनस्पति न हो) पर सबसे पहले आधिपत्य जमाते हैं मूल अन्वेषक या पायोनियर प्रजातियाँ (Pioneer species) कहलाते हैं। ऐसी प्रजातियों के समूह पायोनियर समुदाय (Pioneer community) बनाते हैं। सामान्यतः पायोनियर प्रजाति उच्च वृद्धि दर तथा छोटी जीवन अवधि वाली होती है। समय के साथ पायोनियर समुदाय अलग प्रकार के समुदाय द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है, जिसका प्रजाति संयोजन अलग होता है। द्वितीय समुदाय को तृतीय समुदाय द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है। चरम समुदाय के विकसित होने तक यही क्रम जारी रहता है। ये विस्थापित होने वाले समुदाय ही सेरल अवस्था या सेरल समुदाय बनाते हैं। चरम समुदाय (Climax community) स्थिर होते हैं व पर्यावरणीय परिस्थितियों के समान बने रहने पर इनकी प्रजाति संरचना में बदलाव नहीं होता। इन समुदायों का अनुक्रम (sequence) जो अनुक्रमण के समय एक के बाद एक दूसरे को विस्थापित करता है एक सेरे (Sere) का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रश्न 4.
"प्रायः कहा जाता है कि ऊर्जा के पिरामिड सीधे (आधार से ऊपर की ओर) होते हैं। दूसरी तरफ जैवमात्रा का पिरामिड सीधा अथवा उल्टा दोनों ही प्रकार का हो सकता है।" उदाहरणों और आरेखों की सहायता से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(a) किसी पारितंत्र में पोषण संरचना व पोषण कार्य का प्राफीय निरूपण पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है। इसमें प्रथम स्तर अर्थात उत्पादक स्तर पिरामिड का आधार तथा अन्य पोषक स्तर क्रमशः इसके ऊपरी भाग बनाते हैं। शीर्ष भाग (apex) खाद्य श्रृंखला के सर्वोच्च उपभोक्ता द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पारिस्थितिक पिरामिड बनाने में पोषण स्तरों के तीन पहलुओं, संख्या, जैवभार (जैव मात्रा) या ऊर्जा को आधार बनाया जा सकता है,
अत: पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं
लेकिन संख्या व जैव भार के पिरामिड उल्टे (inverted) भी हो सकते है। उल्टे पिरामिड का अर्थ है कि उत्पादकों की संख्या का या जैव भार उपभोक्ताओं के किसी एक या अधिक स्तरों से कम होता है। जैसे किसी वृक्ष के जैव संख्या पिरामिड में उत्पादक वृक्ष की संख्या एक व उस पर आश्रित कीटों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसी प्रकार सागरीय (marine) पारितंत्र में उत्पादकों का जैव भार उन्हें खाने वाली मछलियों के जैव भार से कम होता है। इस प्रकार एक उल्टा (inverted pyramid) प्राप्त होता है।
प्रश्न 5.
पारितन्त्र में ऊर्जा प्रवाह से आप क्या समझते हैं? विभिन्न पोषण स्तरों में से होते हुए ऊर्जा प्रवाह को समझाइये। एक खाद्य श्रृंखला का आरेखी चित्र बनाइये।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह: ऊर्जा प्रवाह किसी भी पारितंत्र का विशिष्ट गुण है कर्जा प्रवाह ऊष्मागतिकी के प्रथम व द्वितीय नियमों (First and second laws of thermodynamics) का पालन करता है।
ऊर्जा प्रवाह की दो प्रमुख स्थितियाँ हैं सूर्य की विकिरण ऊर्जा का रूपान्तरण तथा खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा प्रवाह। हरे पौधे कुल आपतित सूर्य के प्रकाश की लगभग 50% मात्रा जो कि प्रकाश संश्लेषणीय सक्रिय विकिरण (PAR) होती है। में से 2 - 10 प्रतिशत प्रकाश संश्लेषण के रूप में स्थिर करते हैं। अर्थात सूर्य की विकिरण ऊर्जा (Radiant energy) खाद्य पदार्थ की रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) में परिवर्तित हो जाती है। पौधों में कुल उत्पादन सकल उत्पादन (gross production) कहलाता है। श्वसनीय हानि (Respiratory loss) के बाद बची जैव मात्रा शाकाहारियों हेतु उपलब्ध होती है। पारितंत्र के अन्य सभी जीव इसी रासायनिक ऊर्जा (भोजन) से अपनी ऊर्जा आवश्यकताएं पूरी करते हैं। पौधों से यह ऊर्जा खाद्य श्रृंखला के माध्यम से सभी जीवधारियों को स्थानान्तरित कर दी जाती है।
हरे पौधों को पारितंत्र में प्राथमिक उत्पादक कहा जाता है क्योंकि सौर ऊर्जा के रूपान्तरण (transformation) के बाद यही सभी उपभोक्ताओं (जन्तुओं व अपघटकों) तक ऊजा के स्थानान्तरण (transfer) का स्रोत है।
इस प्रकार खाद्य ऊर्जा उत्पादकों से शाकाहारी जन्तुओं अर्थात प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं में, शाकाहारियों से इनको खाने वाले प्राथमिक मांसाहारियों (Primary carnivores) या द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं में, प्राथमिक मांसाहारियों से द्वितीय मांसाहारियों (Secondary carnivores) में व अन्त में सर्वोच्च मांसाहारी (top carnivores) तक स्थानान्तरित होती है। प्रत्येक स्थानान्तरण में ऊर्जा की ऊष्मा के रूप में हानि होती है। पौधों की मृत्यु के बाद उनके शरीर को प्रयोग न की गई ऊर्जा तथा जन्तुओं की मृत्यु के बाद उनके शरीर की ऊर्जा साथ ही जन्तुओं के अपशिष्ट पदार्थों की ऊर्जा, मृत कार्बनिक पदार्थ के रूप में अपपटक जीवों को प्राप्त हो जाती है तथा अपरद खाद्य शृंखला (ditritus food chian) का मार्ग अपनाती है। एक पोषण स्तर में उपलब्ध ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत भाग ही अगले पोषण स्तर में उपलब्ध हो पाता है। इसे 10 प्रतिशत का नियम कहते है।
प्रश्न 6.
पारिस्थितिक पिरामिड से आप क्या समझते हैं? घास के मैदान में जैवमात्रा पिरामिड का वर्णन चित्र की सहायता से कीजिए
उत्तर:
(a) किसी पारितंत्र में पोषण संरचना व पोषण कार्य का प्राफीय निरूपण पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है। इसमें प्रथम स्तर अर्थात उत्पादक स्तर पिरामिड का आधार तथा अन्य पोषक स्तर क्रमशः इसके ऊपरी भाग बनाते हैं। शीर्ष भाग (apex) खाद्य श्रृंखला के सर्वोच्च उपभोक्ता द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पारिस्थितिक पिरामिड बनाने में पोषण स्तरों के तीन पहलुओं, संख्या, जैवभार (जैव मात्रा) या ऊर्जा को आधार बनाया जा सकता है,
अत: पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं
लेकिन संख्या व जैव भार के पिरामिड उल्टे (inverted) भी हो सकते है। उल्टे पिरामिड का अर्थ है कि उत्पादकों की संख्या का या जैव भार उपभोक्ताओं के किसी एक या अधिक स्तरों से कम होता है। जैसे किसी वृक्ष के जैव संख्या पिरामिड में उत्पादक वृक्ष की संख्या एक व उस पर आश्रित कीटों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसी प्रकार सागरीय (marine) पारितंत्र में उत्पादकों का जैव भार उन्हें खाने वाली मछलियों के जैव भार से कम होता है। इस प्रकार एक उल्टा (inverted pyramid) प्राप्त होता है।
प्रश्न 7.
अपघटन किसे कहते हैं? एक स्थलीय पारितन्त्र में अपघटन का वर्णन कीजिए। इसका आरेखीय निरूपण बनाइये।
उत्तर:
उत्पादन एवं अपघटन (Production and Decomposition)
उत्पादन (Production): सरल पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का निर्माण उत्पादन कहलाता है। सामान्य रूप से उत्पादन शब्द का प्रयोग हरे पौधों या उत्पादकों द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड व जल की मदद से जटिल कार्बनिक पदार्थों के निर्माण के लिए किया जाता है। इस प्रकार के उत्पादन को प्राथमिक उत्पादन (Primary Production) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की विकिरण ऊर्जा (radiant energy) खाद्य पदार्थों की रासायनिक ऊर्जा में बदल जाती है। उपभोक्ता के स्तर पर देखने पर, शाकाहारियों (herbivores) द्वारा खाद्य ऊर्जा का स्वांगीकरण (assimilation) द्वितीयक उत्पादन (Secondary Productoin) कहलाता है। यह एक उपचयी क्रिया है। इसमें ऊर्जा आवश्यक होती है।
अपघटन (Decomposition): मृत कार्बनिक पदार्थों के जटिल यौगिकों का अपघटक सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु व कवकों द्वारा विघटित कर सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड व जल में बदल दिया जाना अपघटन कहलाता है। वास्तव में अपघटन की अभिक्रिया प्रकाश संश्लेषण (उत्पादन) की क्रिया के ठीक विपरीत है। अपघटन प्रमुख रूप से एक अपचयी (Catabolic) अभिक्रिया है तथा इसमें ऊर्जा मुक्त होती है।
प्रक्रिया व उत्पाद: सुविधा की दृष्टि से अपघटन की प्रक्रिया को निम्न चरणों बाँटा जा सकता है जो साथ - साथ सम्पन्न होती हैं-
स्यूमीकरण (Humification): इस प्रक्रिया में अपचय के बाद उमस का निर्माण होता है। स्यूमस गहरे रंग का (काला - कत्थई) एमार्फस (amorphous) पदार्थ है जिसका अपघटन बहुत धीमा होता है। यह पोषकों, खनिजों के भण्डार के रूप में कार्य करता है।
खनिजीभवन (Miniralization): जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस प्रक्रिया में खनिज पदार्थ जैसे कि NH4+, Ca++, Mg++ व K+ आदि धीरे - धीरे मुक्त होते हैं।
उत्पादन एवं अपघटन (Production and Decomposition)
उत्पादन (Production): सरल पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का निर्माण उत्पादन कहलाता है। सामान्य रूप से उत्पादन शब्द का प्रयोग हरे पौधों या उत्पादकों द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड व जल की मदद से जटिल कार्बनिक पदार्थों के निर्माण के लिए किया जाता है। इस प्रकार के उत्पादन को प्राथमिक उत्पादन (Primary Production) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की विकिरण ऊर्जा (radiant energy) खाद्य पदार्थों की रासायनिक ऊर्जा में बदल जाती है। उपभोक्ता के स्तर पर देखने पर, शाकाहारियों (herbivores) द्वारा खाद्य ऊर्जा का स्वांगीकरण (assimilation) द्वितीयक उत्पादन (Secondary Productoin) कहलाता है। यह एक उपचयी क्रिया है। इसमें ऊर्जा आवश्यक होती है।
अपघटन (Decomposition): मृत कार्बनिक पदार्थों के जटिल यौगिकों का अपघटक सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु व कवकों द्वारा विघटित कर सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड व जल में बदल दिया जाना अपघटन कहलाता है। वास्तव में अपघटन की अभिक्रिया प्रकाश संश्लेषण (उत्पादन) की क्रिया के ठीक विपरीत है। अपघटन प्रमुख रूप से एक अपचयी (Catabolic) अभिक्रिया है तथा इसमें ऊर्जा मुक्त होती है।
प्रश्न 8.
(i) पोषण चक्रण क्या है?
(ii) भूमण्डल में कार्बन चक्र को आरेखित चित्र बनाकर समझाइये।
उत्तर:
पोषण चक्रण (Nutrient Cycling)
सभी जीवधारियों की वृद्धि, विकास, प्रजनन व विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिए विविध प्रकार के पोषकों (nutrients) की आवश्यकता होती है। यह पोषक वास्तव में विभिन्न रासायनिक तत्व हैं जैसे कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि जिनका प्रमुख स्रोत मृदा ही होती है।
स्थायी अवस्था (Standing Stage): कार्बन, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्सियम आदि पोषकों की किसी निर्दिष्ट समय पर भूमि में उपस्थित मात्रा स्थायी अवस्था या स्टैडिंग स्टेट (Standing state) कही जाती है। पोषकों की स्थायी अवस्था पारितंत्र के साथ बदलती रहती है। एक ही पारितंत्र में विभिन्न ऋतुओं (seasons) में भी स्थायी, अवस्था भिन्नता प्रदर्शित करती पारितंत्र से पोषक तत्व कभी समाप्त नहीं होते तथा अनन्त काल तक बार - बार चक्रित होते रहते हैं। पोषक तत्वों के किसी पारितंत्र के विभिन्न घटकों से गुजरने को पोषण चक्रण (Nutrient cycling) कहते हैं। ऊर्जा प्रवाह जो कि एकदिशीय होता है, के विपरीत पोषक तत्वों का लगातार जीवों व उनके भौतिक पर्यावरण के बीच विनिमय (exchange) होता रहता है। अत: पोषक चक्रण में पोषक तत्वों का पारितंत्र के विविध घटकों में संग्रह (storage) व स्थानान्तरण (transfer) दोनों ही शामिल है ताकि इन पोषकों का बार-बार प्रयोग किया जा सके। पोषण चक्र को जैव भू - रासायनिक चक्र (bio geochemical cycles) भी कहा जाता है (जैव = जीव, भू = चट्टान, जल या वायु अर्थात भूमि का कोई भी भाग)। लेकिन जैव भू रासायनिक चक्र को क्षेत्रीय या वैश्विक सन्दर्भो में प्रयुक्त किया जाता है। पोषण चक्रण दो प्रकार के होते हैं-
गैसीय पोषण चक्रण (Gaseous nutrient cycling)
गैसीय पोषण चक्रण में भण्डार वायुमण्डल होता है। यह पोषक जलमण्डल (hydrosphere) में भी स्थित हो सकते हैं। नाइट्रोजन चक्र व कार्बन चक्र के लिए भण्डार वायुमण्डल है।
अवसादी पोषण चक्रण (Sedimentary Nutrient Cyeling)
अवसादी पोषण चक्रण में भण्डार धरती का पटल (earth crust) होता है। फास्फोरस व सल्फर प्रमुख अवसादी पोषण चक्र हैं। पोषण चक्रण को निम्न तीन पहलुओं के अध्ययन द्वारा समझा जा सकता
पोषकों की आवक या अन्तर्वाह (Influx)
पारितंत्र पोषकों को बाह्य स्रोतों से प्राप्त कर बाद के प्रयोग के लिए संग्रह करते हैं। चट्टानों की वेदरिंग (Weathering), सहजीवियों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण, वर्षा आदि आवक के तरीके हैं। पोषकों की जावक या बहिर्वाह (Efflux or output) पोषक तत्व पारितंत्र से निकलते रहते हैं। इनमें से अनेक दूसरे पारितंत्र की आवक बन जाते हैं। बहकर जाने वाला पानी, मृदा अपरदन (soil erosion) विनाइट्रीकरण (denitrification), फसलों की कटाई व वनों से लकड़ी का निकलना जावक के उदाहरण हैं। ऐसे पारितंत्र जिनमें मानवीय दखल नहीं होता है। पोषकों की आवक व जावक लगभग समान होती है।
आन्तरिक पोषण चक्रण (Internal Nutrient Cycling)
इसमें पौधों द्वारा पोषकों का अवशोषण, मृत कार्बनिक पदार्थ के अपघटन द्वारा पोषकों का पुनर्जनन (regeneration) प्रमुख रूप से शामिल हैं। पोषकों का पादपों द्वारा अधिक अपटेक होने व इसके चक्रण की मात्रा के बढ़ जाने पर यह स्टैडिंग क्रॉप (standing crop) में जमा हो जाता है। पर्यावरणीय कारक जैसे मृदा, नमी, pH व तापमान आदि पोषकों की वायुमण्डल में मुक्ति की दर का नियमन करते हैं। भण्डार का कार्य पोषकों की कमी को पूरा करना है जो कि पोषकों के पारितंत्र में मुक्त अवस्था में आने या अन्तर्वाह (influx) तथा इसके स्थिर हो जाने अर्थात् भण्डार में जमा हो जाने, जिसे बहिर्वाह (efflux) कहते हैं, में हुए असन्तुलन के कारण होती हैं।
पारितंत्र - कार्बन चक्र (Ecosystem - carbon ayde)
कार्बन को जीवन का आधार माना जाता है। यह जीवद्रव्य के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यौगिकों जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, नाभिकीय अम्ल सभी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संघटक है। कार्बन किसी जीव के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग बनाता है। जीवों में जल के बाद कार्बन की ही सर्वाधिक मात्रा होती है।
भण्डार (Reservoir)
कार्बन की कुल वैश्विक (global) मात्रा में 71 प्रतिशत कार्बन महासागरों में घुलित अवस्था में पाया जाता है। यह सागरीय भण्डार (Oceanic reservoir) ही वायुमण्डल में कार्बन डाइ आक्साइड की मात्रा का नियमन करता है। वायुमण्डल में कुल वैश्विक कार्बन की मात्रा का केवल 1 प्रतिशत स्थित होता है। जीवाश्म ईंधन भी कार्बन के भण्डार का प्रतिनिधित्व करते हैं। अत: कोयले में स्थित कार्बन, ग्रेफाइट, पेट्रोलियम कार्बन के भण्डार हैं।
चक्रण (Recycle)
कार्बन चक्र में वायुमण्डल, सागर, जीवित व मृत जीवधारी शामिल हैं। जीवधारियों में अधिकांश कार्बन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से प्रवेश करता है। एक अनुमान के अनुसार जीवमण्डल (biosphere) में 4 x 1013 किया कार्बन का प्रतिवर्ष प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्थिरीकरण होता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बने कार्बनिक पदार्थ पौधों (उत्पादकों) से उपभोक्ताओं को स्थानान्तरित हो जाते हैं। कार्बन की एक उल्लेखनीय मात्रा कार्बन डाई आक्साइड के रूप में उत्पादकों व उपभोक्ताओं के द्वारा किये गये श्वसन में मुक्त होती है। पेड़ - पौधों व जन्तुओं के मृत शरीर तथा मल - मूत्र जिनमें कार्बन यौगिक एकत्रित होते हैं, सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित (decompose) कर दिये जाते है। इससे कार्बन डाई आक्साइड मुक्त हो जाती है। सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन स्थलीय तथा जलीय दोनों ही पर्यावरणों में होता है। स्थिरीकृत (fixed) कार्बन की कुछ मात्रा अवसाद (Sediment) में नष्ट हो जाती है व परिवहन से हट जाती है। कार्बन निम्न तरीकों से भी कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमण्डल में मुक्त होता है-
मानवीय गतिविधियों का कार्बन चक्र पर गहरा असर पड़ा है। तेजी से हो रही वनों की कटाई (deforestation) तथा ऊर्जा प्राप्ति व परिवहन के लिए हो रहे जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक प्रयोग से वायुमण्डल में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मुक्ति की दर तेजी से बढ़ी है।
प्रश्न 9.
(i) पारिस्थतिक अनुक्रमण किसे कहते हैं?
(ii) प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रमण में अन्तर बताइये।
(iii) खाली एवं नग्न क्षेत्रों में पादपों का अनुक्रमण समझाइये।
(iv) कुंज चरण का चित्र बनाइये।
उत्तर:
पारिस्थितिक अनुक्रमण (Ecological Succession)
जैव समुदाय गतिज (dynamic) होते हैं व समय के साथ बदलते हैं। पारिस्थितिक विकास (Ecological development) जिसे पारिस्थितिक अनुक्रमण (ecological succession) के रूप में जाना जाता है, प्रत्येक समुदाय का एक विशिष्ट लक्षण है। बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों की अनुक्रिया में जैव समुदायों के संघटन (composition) व संरचना में होने वाला सतत परिवर्तन ही पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाता है। यह बदलाव क्रमिक (sequential), नियमबद्ध (orderly) तथा भौतिक पर्यावरण में बदलावों के समानान्तर होता है। इन बदलावों के फलस्वरूप अन्त में ऐसे समुदाय का विकास होता है जो कि अपने पर्यावरण के साथ लगभग साम्यावस्था (equilibrium) में होता है। इसे चरम समुदाय कहा जाता है।
किसी स्थान विशेष के प्रजाति संगठन (species composition) में होने वाला क्रमिक व अनुमानयोग्य (predietable) परिवर्तन पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाता है।
अत: पारिस्थितिक अनुक्रम की परिभाषा के निम्न तीन प्रमुख बिन्दु हैं-
समुदायों का पूरा क्रम जो किसी नियत स्थान पर एक दूसरे को प्रतिस्थापित (replace) करता है सेरे (Sere) कहलाता है। आपेक्षिक रूप से, अंतरण करने वाले समुदाय (transitory communities) सेरल समुदाय (Seral communities) या विकासीय अवस्थाएँ कहलाती हैं। जबकि अन्तिम स्थायी तंत्र घरम समुदाय (Climax community) कहलाता है। अनुक्रमण के दौरान कुछ प्रजातियाँ किसी क्षेत्र में स्थापित होकर बस जाती है तथा उनकी समाष्टियां बढ़ने लगती हैं जबकि अन्य प्रजातियों की समष्टियाँ घटती है व वहाँ से विलोपित भी हो सकती हैं। एक के बाद एक बदलने वाली अर्थात् क्रमिक सेरल अवस्थाओं (Seral stages) में जीवों की प्रजातियों की विविधता में परिवर्तन होते हैं, प्रजातियों की संख्या व जीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है, साथ ही कुल जैव मात्रा (total - biomass) में वृद्धि होती है। इसीलिए क्लीमेंट (Clement 1916) के अनुसार, "अनुक्रम एक प्राकृतिक क्रिया है जिसमें अनेक समूहों या पादप समुदायों द्वारा क्रमिक रूप से एक ही क्षेत्र का औपनिवेशन (Colonization) होता है।" आज के समय में हम विश्व में जो भी समुदाय देखते हैं वह पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से लेकर अब तक लाखों वर्ष के अनुक्रमण के कारण ही अपने वर्तमान स्वरूप में आ सके हैं।
अनुक्रमण निम्न प्रकार का हो सकता है-
प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession): समुदायों का विकास ऐसे स्थानों पर भी हो सकता है जहाँ पहले कभी किसी प्रकार की वनस्पति नहीं थी जैसे ठण्डा हुआ लावा, नग्न चट्टान (bare rocks), नया बना जलाशय आदि। इन आरम्भिक आधारी पदार्थों (Primitive Substratum) से प्रारम्भ होने वाला अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession) कहलाता है। एक नये जैव समुदाय का स्थापन प्राय: धीमा होता है। विभिन्न प्रकार के जीवों से बने जैव समुदाय की स्थापना से पहले वहाँ मृदा (soil) का होना आवश्यक होता है। प्राकृतिक प्रक्रिया में जो प्रमुखतः जलवायु पर निर्भर है नग्न, चट्टान पर उपजाऊ मिट्टी बनने में कई सौ वर्षों से लेकर कई हजार वर्षों तक का समय लगता है।
द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession): ऐसे स्थानों से जहाँ की वनस्पति का किन्हीं कारणों से विनाश हो गया है, प्रारम्भ हुआ अनुक्रमण द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary succession) कहलाता है। जैसे वनों की आग या कटाव या बाढ़ के बाद खाली पड़े खेतों में हुआ अनुक्रमण। इस प्रकार के अनुक्रमण प्राथमिक अनुक्रमण की अपेक्षा तेजी से होते है। इनकी संख्या भी अधिक होती है। क्योंकि यहाँ मृदा पहले से उपलब्ध होती है। पारिस्थितिक अनुक्रमणों का विवरण सामान्यतः वनस्पति में हुए बदलावों पर केन्द्रित होता है। लेकिन वनस्पति में हुए बदलाव जन्तुओं के शरण स्थल/आवास तथा खाद्य को प्रभावित करते हैं। अर्थात वनस्पति में हुआ किसी भी प्रकार का बदलाव वहाँ की जन्तु समष्टियों को प्रभावित करता है। अतः अनुक्रमण के जारी रहने पर जन्तुओं व अपघटकों की संख्या व प्रकार भी परिवर्तित होते हैं। मनुष्य की गतिविधियों का पारिस्थितिक विकास अर्थात अनुक्रमण पर भी प्रभाव पड़ता है। प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रमण के दौरान किसी भी समय होने वाला प्राकृतिक व मानव प्रेरित विघ्न जैसे वनों की आग, वनों का कटान आदि अनुक्रमण की किसी भी सेरल अवस्था (Seral stage) को इसकी पूर्ववर्ती अवस्था में बदल देता है।
मानवजनित या प्राकृतिक आपदायें ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर देती हैं जो कुछ प्रजातियों के लिए प्रेरक व कुछ अन्य के लिए बाधक का कार्य करती हैं। कुछ प्रजातियाँ इन परिस्थितयों में पूर्ण रूप से विलोपित हो जाती हैं। वह पौधे जो किसी नग्न भूमि (ऐसा स्थान जहाँ पहले कोई वनस्पति न हो) पर सबसे पहले आधिपत्य जमाते हैं मूल अन्वेषक या पायोनियर प्रजातियाँ (Pioneer species) कहलाते हैं। ऐसी प्रजातियों के समूह पायोनियर समुदाय (Pioneer community) बनाते हैं। सामान्यतः पायोनियर प्रजाति उच्च वृद्धि दर तथा छोटी जीवन अवधि वाली होती है। समय के साथ पायोनियर समुदाय अलग प्रकार के समुदाय द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है, जिसका प्रजाति संयोजन अलग होता है। द्वितीय समुदाय को तृतीय समुदाय द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है। चरम समुदाय के विकसित होने तक यही क्रम जारी रहता है। ये विस्थापित होने वाले समुदाय ही सेरल अवस्था या सेरल समुदाय बनाते हैं। चरम समुदाय (Climax community) स्थिर होते हैं व पर्यावरणीय परिस्थितियों के समान बने रहने पर इनकी प्रजाति संरचना में बदलाव नहीं होता। इन समुदायों का अनुक्रम (sequence) जो अनुक्रमण के समय एक के बाद एक दूसरे को विस्थापित करता है एक सेरे (Sere) का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रश्न 10.
खाद्य श्रृंखला की परिभाषा लिखिष्ट। यह कितने प्रकार की होती है? खाद्य श्रृंखला व खाध जाल में अन्तर लिखिए। खाद्य श्रृंखला का आरेख चित्र बनाइये।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला (Food Chain)
अपने सरलतम रूप में खाद्य सम्बन्ध (घास, हिरन, बाघ व सूक्ष्मजीव) ही खाद्य शृंखला (Food chain) कहे जाते हैं। "खाद्य ऊर्जा के स्थानान्तरण को प्रदर्शित करता विभिन्न पोषण स्तर के जीवों का अन्तः सम्बन्धित रेखित अनुक्रम खाद्य शृंखला कहलाता है।" खाद्य श्रृंखला का प्रत्येक पद एक पोषण स्तर (trophic level) का प्रतिनिधित्व करता है।" खाद्य शृंखला दो प्रकार की होती है-
(a) एक साधारण चारण (grazing) खाद्य श्रृंखला यहाँ दिखाई गई है।
वन पारितन्त्र
वृक्ष → शाकाहारी स्तनधारी → लोमड़ी → बाघ
(b) दूसरे प्रकार की खाद्य शृंखला को अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus Food chain) कहा जाता है। यह मृत कार्बनिक पदार्थ से प्रारम्भ होती है। मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में शामिल सभी जीव इस अपरद खाद्य श्रृंखला के भाग होते हैं जैसे अपरदहारी (detritivore) केंचुए तथा अपघटक जीव (decomposers) जैसे जीवाणु व कवक। यह जीव अपनी कर्जा व पदार्थों की आवश्यकता मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से पूरी करते हैं। अपरद या खण्डित अपरद के पाचन के लिए जीवाणु व कवक जैसे सूक्ष्मजीव बाह्य कोशिकीय पाचक एंजाइमों का स्रावण करते हैं। मृत कार्यनिक पदार्थ के पाचन में बने सरल पदार्थ इन सूक्ष्मजीवों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। जलीय पारितन्त्रों में चारण खाद्य शृंखला (जी एफ सी) कर्जा प्रवाह का प्रमुख माध्यम है जबकि स्थलीय पारितन्त्रों में ऊर्जा का एक बड़ा भाग अपरद खाद्य श्रृंखला के रूप में प्रवाहित होता है। इन दोनों प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। कुछ स्तरों पर अपरद खाद्य शृंखला, चारण खाद्य श्रृंखला से जुड़ी रहती है। अपरद खाद्य पंखला के अनेक जीव चारण खाद्य श्रृंखला के जीवों के शिकार बन जाते हैं। उदाहरण के लिए पक्षी, केचुए का भक्षण करते हैं। प्रकृति में अनेक जीव सर्वाहारी (Omnivorous) होते हैं। कॉकरोच व कौए जैसे जीव दोनों प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं को जोड़ते हैं।
प्रश्न 2.
आर्थिक, पर्यावरणीय क्या सौन्दर्यपरक वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापक परिसर के लिए पूर्वप्रेक्षित स्वस्थ पारितन्त्र सेवाओं की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पारितंत्र सेवाएँ (Ecosystem Services)
स्वस्थ पारितंत्र, मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त वरदान है। यह अनेक आर्थिक, पर्यावरणीय, व सौन्दर्य बोध की वस्तुओं व सेवाओं का आधार है। पारितंत्र की प्रक्रियाओं के उत्पादों को ही पारितंत्र सेवाएँ (ecosystem services) नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए स्वस्थ वन निम्न प्रकार से मनुष्य के लिए लाभकारी है-
(a) वनों के नियामक कार्य (Regulatory functions of the forests) वायुमण्डल में आक्सीजन व कार्बन डाइ आक्साइड की मात्रा का नियमन करना। यह बड़ी मात्रा में वायु का शुद्धीकरण करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन इतनी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन गैस का उत्पादन करते हैं कि उन्हें पृथ्वी के फेफड़े (lungs of the earth) कहा जाता है। यह उर्वरक मृदा उत्पन्न करते हैं।
(b) वनों के सुरक्षात्मक कार्य (Protective functions of the forests)
वनों के सुरक्षात्मक प्रभाव स्थानीय व वैश्विक दोनों स्तरों पर होते हैं-
(c) वनों के उत्पादक कार्य (Productive functions of the forests) वनों से अनेक महत्त्वपूर्ण उत्पाद मिलते हैं। जैसे काष्ठ, गैर काष्ठ वन उत्पादन (non wood forest products) व अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थ।
(d) वनों के सामाजिक, आर्थिक कार्य अनेक लोग अपनी आजीविका हेतु वनों पर निर्भर हैं। इनका प्रयोग शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहरों, पर्यटन, आमोद - प्रमोद (recreation) आदि हेतु किया जा रहा है।
(e) सौन्दर्य बोध (Aesthetic value) वन आँखों को शीतलता, मन को शांति व प्रेरणा देने वाले माने जाते हैं। इनका सौन्दर्य मनुष्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
संक्षेप में बन वायु व जल को शुद्ध करते हैं, सूखे व बाढ़ के प्रकोप को कम करते हैं, पोषकों का चक्रण करते हैं, उर्वरक मृदा उत्पादित करते हैं, वन्यजीवों को पर्यावास उपलब्ध कराते हैं, जैव विविधता संरक्षण करते हैं। फसलों के परागण में मदद करते हैं, कार्बन सिंक की तरह कार्बन का संग्रह करते हैं तथा साथ ही सौन्दर्य बोध व सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करते है जैव, विविधता द्वारा दी जाने वाली इन सेवाओं के मूल्य को आँकना कठिन है लेकिन फिर भी जैव विविधता की इन अमूल्य सेवाओं को मूल्य का टैग देने का प्रयास तो होना ही चाहिए।
रॉबर्ट कोन्सटांजा (Robert constanza) व उनके सहयोगियों ने प्रकृति को जीवन रक्षक सेवाओं (life supporting services) का मूल्य आँकने का कार्य किया है। शोधार्थियों ने इस मौलिक पारितंत्र सेवाओं की एक वर्ष की कीमत 33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (33 trillion US $) तय की है। इन सेवाओं के महत्त्व के बारे में कभी सोचा ही नहीं जाता क्योंकि यह मुफ्त में प्राप्त है। लेकिन गौर से देखने पर पता लगता है कि इनके द्वारा किये गये कार्य इतने बड़े है कि यह वैश्विक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (global gross national product) जो कि यू एस डालर 18 ट्रिलियन है, के लगभग दो गुने के बराबर है। पारितंत्र द्वारा प्रदत्त सभी सेवाओं में से मृदा निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसकी कीमत कुल कीमत की लगभग 50 प्रतिशत है, पोषण चक्रण व मनोरंजन इसमें 10 - 10 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। जबकि जलवायु नियमन व वन्य जीवों के पर्यावास कीमत कुल कीमत की लगभग 6 प्रतिशत हैं।
खाद्य जाल (Food Web)
प्रकृति में खाद्य शृंखलाएँ एकाकी या पृथक्कित (isolated) नहीं होतीं। उनके प्राकृतिक अन्तः सम्बन्ध (natural Interconnections) उन्हें एक जाल का रूप दे देते हैं यही जाल, खाद्य जाल (Food web) कहलाता है। इसका अर्थ यह है कि प्रकृति में खाद्य सम्बन्धों को केवल सीधी रेखाओं वाली खाद्य शृंखला द्वारा नहीं दर्शाया जा सकता है एक शाकाहारी जन्तु अनेक प्रकार के पौधों व उनके उत्पादों का प्रयोग करता है। शेर के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार के माँसाहारी जन्तु शाकाहारी जीवों को अपना आहार बनाते हैं। खाद्य की उपलब्धता व पसन्द के आधार पर एक पोषण स्तर के विभिन्न जीवों के निचले पोषण स्तर के एक से अधिक जीवों से खाद्य सम्बन्ध होते है।
उदाहरण के लिए एक चूहा अनेक प्रकार के तनों, जड़ों, फलों व दानों से अपना भोजन प्राप्त करता है। चूहे को सांप द्वारा तथा सांप को बड़े बाज द्वारा खा लिया जाता है। साँप चूहे के अतिरिक्त मेढ़क भी खाता है। चूहे को सीधे बिल्ली भी खा सकती है। खाद्य श्रृंखलाओं का यही जाल (Net work), खाद्य जाल (Food web) कहलाता है। खाद्य जाल जीवों की खाद्य आपूर्ति के वैकल्पिक मार्ग प्रदर्शित करता है। खाद्य श्रृंखलाओं का एक और विशिष्ट लक्षण है कि उच्च पोषण स्तर के सदस्यों की संख्या क्रमशः कम होती जाती है। खाद्य श्रृंखलाओं के अध्ययन के दो स्पष्ट लाभ हैं, पहला, यह हमें पारितन्त्र में जीवों के प्रकार (संघटन) से अवगत कराती है तथा दूसरा यह ऊर्जा स्थानान्तरण के विभिन्न पदों की जानकारी देती है। किसी भी खाद्य शृंखला में प्रत्येक पद को एक पोषण स्तर (trophic level) के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे-
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पोषण स्तर का वर्गीकरण प्रजाति विशिष्ट नहीं होता। एक दी गई प्रजाति एक या एक से अधिक पोषण स्तरों का प्रतिनिधित्व कर सकती है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित)
प्रश्न 1.
प्राथमिक उत्पादक कहलाते हैं-
(a) परपोषी
(b) स्वपोषी
(c) मृतजीवी
(d) परजीवी।
उत्तर:
(b) स्वपोषी
प्रश्न 2.
फॉस्फोरस का प्राकृतिक भण्डार कौन - सा है?
(a) समुद्री जल
(b) प्राणि अस्थियाँ
(c) शैल
(d) जीवाश्मा
उत्तर:
(c) शैल
प्रश्न 3.
द्वितीयक उत्पादकता किसके द्वारा नये कार्बनिक पदार्थ बनाने की दर है?
(a) उत्पादक
(b) परजीवी
(c) उपभोक्ता
(d) अपघटक
उत्तर:
(c) उपभोक्ता
प्रश्न 4.
अपघटन के दौरान घटित होने वाली कौन - सी प्रक्रिया का सही वर्णन किया गया है?
(a) खण्डीभवन केंचुए जैसे जीवों द्वारा होता है
(b) स्यूमस (humification) इसके कारण गहरे रंग का पदार्थ अर्थात स्यूमस एकत्रित हो जाता है जिसमें बहुत तीव्र गति से जीवाण्विक क्रिया होती है।
(c) अपचय पूर्णत: अवायवीय परिस्थितियों में, अपघटन का अन्तिम चरण
(d) निक्षालन - जल में घुलनशील अकार्बनिक पोषक मृदा की ऊपरी पर्तो पर आ जाते है
उत्तर:
(a) खण्डीभवन केंचुए जैसे जीवों द्वारा होता है
प्रश्न 5.
किसी तालाब पारितन्त्र में निम्नलिखित में से कौन से एक प्रकार के जीव एक से अधिक पोषण स्तरों पर पाये जाते हैं?
(a) पादप प्लवक
(b) मछलियाँ
(c) जन्तु प्लवक
(d) मेढक
उत्तर:
(b) मछलियाँ
प्रश्न 6.
तालाब के इकोसिस्टम में ऊर्जा का पिरामिड हमेशा होता है-
(a) उल्टा
(b) सीधा
(c) अनियमित आकार का
(d) रेखीय।
उत्तर:
(b) सीधा
प्रश्न 7.
निम्न में से कौन - सा मनुष्य द्वारा निर्मित पारितन्त्र है?
(a) हरबेरियम
(b) एक्वेरियम
(c) ऊतक संवर्धन
(d) वन।
उत्तर:
(b) एक्वेरियम
प्रश्न 8.
बेन्थिक जीव अधिकांशतः प्रभावित होते हैं-
(a) जंगल की तली तक प्रकाश के पहुंचने से
(b) जल की सतह के विक्षोभ से
(c) जलीय पारिस्थितिक तन्त्र के अवसाद - लक्षणों से
(d) मृदा की जल धारण क्षमता से।
उत्तर:
(c) जलीय पारिस्थितिक तन्त्र के अवसाद - लक्षणों से
प्रश्न 9.
उल्टा पिरामिड पाया जाता है-
(a) जलीय तन्त्र के जैवभार के पिरामिड में
(b) पास स्थल का ऊर्जा का पिरामिड
(c) घास स्थल का जैवभार का पिरामिड
(d) जलीय तन्त्र का संख्या का पिरामिड।
उत्तर:
(a) जलीय तन्त्र के जैवभार के पिरामिड में
प्रश्न 10.
एक निश्चित क्षेत्र में प्राथमिक उत्पादकों की संख्या सर्वाधिक होगी
(a) तालाब इकोसिस्टम में
(b) घास के मैदान में
(c) मरुस्थल में
(d) वनों के इकोसिस्टम में।
उत्तर:
(a) तालाब इकोसिस्टम में
HOTS Higher Order Thinking Skills
प्रश्न 1.
खाद्य जाल की संकल्पना खाद्य श्रृंखला से पारिस्थितिक रूप से अधिक वास्तविक क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला किसी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य कर्जा के स्थानान्तरण को विभिन्न जीवों के एक रेखीय अनुक्रम द्वारा प्रदर्शित करती है। लेकिन प्रकृति में हमेशा ऐसा ही नहीं होता, अनेक बार, अनेक जन्तु बैकल्पिक खाद्य मार्ग का चयन करते हैं। प्रकृति में अनेक जीव एक से अधिक पोषण स्तरों का भी प्रतिनिधित्व कर सकते है। यह दोनों ही स्थितियाँ खाद्य जाल द्वारा ही प्रदर्शित की जा सकती हैं, खाद्यखला द्वारा नहीं। अत: पारिस्थितिक रूप से खाद्य जाल, खाद्य श्रृंखला से अधिक वास्तविक है।
प्रश्न 2.
पारितन्त्रों के बीच स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। उदाहरण से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारितन्त्र, यद्यपि एक स्वशासी (autonomous) व स्वतन्त्र इकाई है जो साम्यावस्था बनाये रखकर अपने सभी कार्यों का सफल संचालन करने में सक्षम होती है लेकिन फिर भी, पारितन्त्र को एक अलग-थलग इकाई नहीं माना जा सकता। एक पारितन्त्र की आवक (influx) किसी दूसरे पारितन्त्र की जावक (efflux) को प्रदर्शित करती है। साइबेरियन क्रेन जैसे पक्षी तो हजारों किमी दूर के पारितन्त्रों में सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। स्थलीय पारितन्त्र का कोई परभक्षी कभी जलीय पारितंत्र के जीव को तथा जलीय पारितंत्र का परभक्षी (मगर, घड़ियाल) कभी स्थलीय पारितन्त्र के शिकार को खा जाता है। स्थलीय पारितन्त्र की पेड़ से गिरी पत्तियाँ हवा के साथ उड़कर किसी तालाब में पहुंच सकती है अत: इकोसिस्टम के बीच स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती।
प्रश्न 3.
जीवों में जीवभार या जीव संहति (biomass) को शुष्क भार के रूप में क्यों मापा जाता है?
उत्तर:
शुष्क भार, ऊर्जा सम्बन्धी गणनाओं हेतु सही या यथार्थ परिणाम देता है क्योकि जीवों में जल की मात्रा अलग-अलग होती है अर्थात फ्रेश वेट (fresh weight) के आधार पर तुलना उचित नहीं। दूसरा जल किसी प्रकार की ऊर्जा नहीं देता। अत: ऊर्जा गणनाओं में जल की अधिक मात्रा का कोई अर्थ नहीं होता।
प्रश्न 4.
किसी पारितन्त्र की प्राथमिक उत्पादकता ज्ञात करते समय पादपों के अतिरिक्त अन्य किस वर्ग के जीवों के योगदान को भी देखना चाहिए।
उत्तर:
साएनोबैक्टीरिया या नौले हरे शैवाल, रसायन संश्लेषी।
प्रश्न 5.
खेतों में जुताई करने व अधिक भरा पानी निकाल देने से उत्पादकता क्यों बढ़ जाती है?
उत्तर:
जुताई (ploughing) व ड्रेनेज से खेत की मिट्टी में पर्याप्त हवा (aeration) प्राप्त हो जाती है। आक्सीजन, अपघटन करने वाले सूक्ष्मजीवों के लिए आवश्यक होती है। अत: अपघटन बढ़ने से पौधों को
अधिक खनिज प्राप्त होते हैं। यह क्रिया नाइट्रीफिकेशन भी बढ़ाती है। इससे पौधों की जड़ों को भी पर्याप्त आक्सीजन मिल जाती है।
प्रश्न 6.
बर्फ से घिरे पहाड़ों पर मृत जानवरों के शव बिना किसी क्षति के वर्षों तक कैसे पड़े रहते हैं?
उत्तर:
मृत जीव (कार्बनिक पदार्थ), सूक्ष्म जीवों जैसे कवक व जीवाणुओं की क्रिया द्वारा अपघटित होते हैं। इन सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन बाध्य कोशिकीय एन्जाइमों की मदद से होता है। एन्जाइमों की सक्रियता के लिए अनुकूल ताप (25° से 35°C) तथा पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। बर्फ से घिरे पहाड़ों पर तापमान कम होता है अर्थात सूक्ष्म जीवीय क्रियाएँ सम्पन्न नहीं होती, अत: अपघटन नहीं होता तथा जीव शरीर वर्षों तक वैसे ही पड़ा रहता है।
NCERT EXEMPLAR PROBLEMS
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीवाणु व कवक जैसे अपघटक होते हैं-
(i) स्वपोषी (Autotrophs)
(ii) परपोषी (Heterotrophs)
(iii) मृतजीवी (Saprotrophs)
(iv) रसायन स्वपोषी (Chemonutotrophs)
सही उत्तर का चुनाव कीजिए
(a) i व iii
(b) i व iv
(c) ii व iii
(d) i व ii
उत्तर:
(c) ii व iii
प्रश्न 2.
सूक्ष्मजीवों द्वारा की जाने वाली खनिजीकरण (mineralization) की प्रक्रिया किसकी मुक्ति में मदद करती है-
(a) स्यूमस से अकार्बनिक पोषक
(b) अपरद से अकार्बनिक व कार्बनिक दोनों प्रकार के पोषक
(c) ह्यूमस से कार्बनिक पोषक
(d) अपरद से अकार्बनिक पोषक तथा स्यूमस का निर्माण।
उत्तर:
(a) स्यूमस से अकार्बनिक पोषक
प्रश्न 3.
उत्पादकता जैव भार उत्पादन की दर है जिसे अभिव्यक्त किया जाता है-
(i) (Kcal m-3) yr-1
(ii) g-2 yr-1
(iii) g-1yr-1
(iv) (Kcal m-2) yr-1
(a) ii
(b) iii
(c) ii व iv
(d) i व iii
उत्तर:
(c) ii व iv
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन एक उत्पादक नहीं है?
(a) स्माइरोगाइरा (Spirogyra)
(b) एगेरिकस (Agaricus)
(c) वालवॉक्स (Volvox)
(d) नास्टॉक (Nastoc)
उत्तर:
(b) एगेरिकस (Agaricus)
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन - सा पारितन्त्र नेट प्राथमिक उत्पादकता के सन्दर्भ में सर्वाधिक उत्पादक है-
(a) मरुस्थल
(b) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन
(c) महासागर
(d) शीतोष्ण वन
उत्तर:
(b) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन
प्रश्न 6.
संख्या का पिरामिड होता है-
(a) हमेशा सीधा
(b) हमेशा उल्टा
(c) या तो सीधा या उल्टा
(d) न सीधा और न उल्टा।
उत्तर:
(c) या तो सीधा या उल्टा
प्रश्न 7.
पौधों की पत्तियों पर आपतित सौर ऊर्जा में से लगभग कितनी प्रकाश संश्लेषण में रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है-
(a) 1 प्रतिशत से कम
(b) 2% से 10%
(c) 30%
(d) 50%
उत्तर:
(b) 2% से 10%
प्रश्न 8.
निम्न में से कहाँ अपघटन की प्रक्रिया सर्वाधिक तीव्र होगी?
(a) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन
(b) दक्षिणी ध्रुव
(c) शुष्क मरु क्षेत्र
(d) एल्पाइन क्षेत्र
उत्तर:
(a) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन
प्रश्न 9.
स्थलीय पारितन्त्र में नेट प्राथमिक उत्पादकता का कितने प्रतिशत शाकाहारियों द्वारा स्वांगीकृत किया जाता है?
(a) 1%
(b) 10%
(c) 40%
(d) 90%
उत्तर:
(b) 10%
प्रश्न 10.
पारिस्थितिक अनुक्रमण के समय समुदायों में होने वाले बदलाव होते हैं-
(a) नियमबद्ध व निश्चित क्रम में
(b) यादृच्छिक
(c) अत्यधिक तीव्र
(d) भौतिक पर्यावरण से अप्रभावित।
उत्तर:
(a) नियमबद्ध व निश्चित क्रम में
प्रश्न 11.
इडेफिक कारक सम्बन्धित होते हैं-
(a) जल से
(b) मृदा से
(c) आपेक्षिक आर्द्रता से
(d) ऊंचाई (altitude) से
उत्तर:
(b) मृदा से
प्रश्न 12.
निम्न में से कौन - सी प्राकृतिक पारितन्त्रों द्वारा दी जाने वाली एक पारितन्त्र सेवा है?
(a) पोषण चक्रण
(b) मृदा अपरदन की रोक
(c) प्रदूषकों का अवशोषण तथा वैश्विक ऊष्मायन (global warming) के खतरे में कमी
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 13.
गैसीय प्रकार के जैव भू - रासायनिक चक्र हेतु भण्डार होता है-
(a) स्ट्रेटीस्फीयर
(b) एटमॉस्फीयर
(c) आयोनीस्फीयर
(d) लिथोस्फीयर।
उत्तर:
(b) एटमॉस्फीयर
प्रश्न 14.
निम्न में से किस जैव भू - रासायनिक चक्र में श्वसनीय हानि नहीं होती-
(a) फॉस्फोरस
(b) नाइट्रोजन
(c) सल्फर
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 15.
जैव भार का उल्टा पिरामिड निम्न में से किस पारितन्त्र में पाया जाता है-
(a) वन
(b) समुद्री
(c) घास का मैदान
(d) दुन्द्रा
उत्तर:
(b) समुद्री
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी पारिस्थितिक पिरामिड का आधारी टियर (base tier) क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर:
उत्पादक
प्रश्न 2.
किन परिस्थितियों में अनुक्रमण की प्रक्रिया में कोई अवस्था विशेष, अपने से पहले वाली अवस्था में वापस आ सकती है?
उत्तर:
प्राकृतिक व मानव प्रेरित विक्षोभों जैसे वनों का कटान, वन अग्नि आदि।
प्रश्न 3.
निम्न को ऊर्ध्वाधर स्तरीकरण (Vertical stratification) के रूप में व्यवस्थित करें घास, झाड़ी, टीक, अमेरेन्धस।
उत्तर:
सबसे नीचे से ऊपर की ओर घास, अमेरेन्चस, झाड़ी, टीक
प्रश्न 4.
एक ऐसे सर्वाहारी (Omnivore) जीव का नाम लिखिए जो चारण खाद्य श्रृंखला व अपरद खाद्य श्रृंखला दोनों को साझा करता है।
उत्तर:
गौरेय्या, कौआ।
प्रश्न 5.
गौरेय्या के अतिरिक्त कोई ऐसा सामान्य जीव बताइये जो किसी पारितन्त्र में एक समय में दो पोषण स्तर ग्रहण करता है।
उत्तर:
मनुष्या
प्रश्न 6.
क्रस्टोज, फोलिओज व फूटीकोज लाइकेन में से कौन पायोनियर प्रजाति होते हैं?
उत्तर:
क्रस्टोज (Crustose) लाइकेन।
प्रश्न 7.
केंचुए, मृदीय किलनी (soil mites), व डंग वीटल (dung beetle) में क्या समान है?
उत्तर:
सभी अपरदहारी (detritivore) हैं।
प्रश्न 8.
शाकाहारी स्तर पर ऊर्जा के स्वांगीकरण की दर द्वितीयक उत्पादकता क्यों कहलाती है?
उत्तर:
ऐसा इसलिए क्योंकि शाकाहारी उपभोक्ताओं को उपलब्ध जैव भार पादपों की प्राथमिक उत्पादकता का फल होता है।
प्रश्न 9.
प्रकृति में पोषण चक्र जैव भू - रासायनिक चक्र क्यों कहे जाते हैं?
उत्तर:
चूंकि पोषण चक्रण में पोषकों का चक्रण जीवधारी (जैव), भौतिक पर्यावरण (मृदा, भूपर्पटी के भाग) से होता है तथा यह पोषक स्वयं रासायनिक तत्व होते हैं।
प्रश्न 10.
किसी पारितन्त्र में ऊर्जा का परम स्रोत क्या है?
उत्तर:
सूर्य (The Sun)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उच्च पोषण स्तर के जीवों को उपलब्ध ऊर्जा की मात्रा कम होती है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
किसी भी खाद्य श्रृंखला में किसी पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत भाग ही अगले पोषक स्तर में स्वांगीकृत हो पाता है, यह 10 प्रतिशत का नियम है। अत: खाद्य श्रृंखला की दायीं ओर अर्थात उच्च पोषण स्तरों में ऊर्जा की मात्रा क्रमश: कम होती जाती है तथा 3 या 4 स्तर पर अत्यल्प ऊर्जा उपलब्ध होती है। जैसे
प्रश्न 2.
किसी पारितन्त्र में पोषण स्तरों की संख्या सीमित होती है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
किसी भी खाद्य श्रृंखला में किसी पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत भाग ही अगले पोषक स्तर में स्वांगीकृत हो पाता है, यह 10 प्रतिशत का नियम है। अत: खाद्य श्रृंखला की दायीं ओर अर्थात उच्च पोषण स्तरों में ऊर्जा की मात्रा क्रमश: कम होती जाती है तथा 3 या 4 स्तर पर अत्यल्प ऊर्जा उपलब्ध होती है। जैसे
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अपघटन की उच्च दर का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर:
अपघटन (decomposition) की दर जलवायुगत कारकों जैसे तापमान, व मृदीय जल की मात्रा पर निर्भर करती है। ये कारक ही सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में ताप व नमी दोनों की ही अनुकूलतम स्थितियाँ होती है। ये परिस्थितियाँ सूक्ष्मजीवों की वृद्धि तेज कर अपघटन प्रक्रिया तेज कर देती हैं।
प्रश्न 4.
विभिन्न पोषण स्तरों में ऊर्जा का प्रवाह एक विशीय व गैर चक्रीय होता है। समझाइये।
उत्तर:
सूर्य की सौर ऊर्जा हरे पौधों के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य की विकिरण ऊर्जा को खाद्य की रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते है। पौधों से यह ऊर्जा शाकाहारियों में शाकाहारियों से प्राथमिक मांसाहारी में व प्राथमिक मांसाहारी से द्वितीयक मांसाहारी में 10% के नियमानुसार स्थानान्तरित होती है। इसमें काफी कर्जा हर स्तर पर ऊष्मा के रूप में मुक्त हो जाती है तथा पुनः वापस नहीं आती। पोषण स्तरों में स्थानान्तरित ऊर्जा सूर्य की दिशा में वापस (revert back) नहीं हो सकती। अतः यह एकदिशीय होता है चक्रीय नहीं।
प्रश्न 5.
प्राथमिक उत्पादकता विभिन्न पारितन्त्रों में भिन्न - भिन्न होती है, समझाइये।
उत्तर:
प्राथमिक उत्पादकता किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों, उनकी प्रकाश संश्लेषणी दक्षता (Photosynthetic efficiencies), पोषको की उपलब्धता तथा अनेक पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करती है, चूंकि विभिन्न पारितन्त्रों में यह परिस्थितियाँ अलग - अलग होती हैं अत: उत्पादकता भी भिन्न - भिन्न होती है।
प्रश्न 6.
अपूर्ण पारितन्त्र क्या है? उपयुक्त उदाहरण की मदद से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारितन्त्र को स्वशासी (autonomous) कहा जाता है, यह एक स्थायी साम्यावस्था प्रदर्शित करने वाला तन्त्र है। कुछ पारितन्त्र न तो स्वशासी होते है वन साम्यावस्था प्रदर्शित करते हैं। इन्हें अपूर्ण पारितंत्र (incomplete ecosystem) कहा जाता है। उदाहरण के लिए अगर एक्वेरियम (aquarium) में उत्पादक नहीं लिए गये हैं तब यह अपूर्ण पारितन्त्र होगा इसमें मछलियों को खाद्य आपूर्ति बाह्य स्रोतों से करनी होती है। मानव निर्मित कृत्रिम पारितन्त्र प्रायः अपूर्ण होते है। समुद्र की तली में उत्पादक नहीं होते। अत: यह भी अपूर्ण पारितन्त्र है।
प्रश्न 7.
इस चित्र में दिए गए 1,2,3,4 स्थान विभिन्न पोषक स्तरों को प्रदर्शित करते हैं। उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
1. प्रथम पोषण स्तर पौधे
2. द्वितीय पोषण स्तर प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी)
3. तृतीय पोषण स्तर द्वितीयक उपभोक्ता (प्राथमिक मांसाहारी)
4. चतुर्थ पोषण स्तर, तृतीयक उपभोक्ता (सर्वोच्च मांसाहारी)