RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Chapter 12 Important Questions जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
प्राक़ इंसुलिन में होने वाले उस रासायनिक परिवर्तन का उल्लेख कीजिए जिसके द्वारा वह परिपक्व इंसुलिन की तरह कार्य करने में सक्षम हो जाता है।
उत्तर:
प्राक् इंसुलिन से C - पेप्टाइड के हटने पर वह परिपक्व इंसुलिन की तरह कार्य करने में सक्षम हो जाता है।

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प्रश्न 2. 
एहीनोसीन डिएमीनेज नामक रोग का एंजाइम प्रतिस्थापन चिकित्सा पद्धति द्वारा उपचार किये गये बच्चों के लिए समय समय पर उपचार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
यह पूर्ण व स्थायी उपचार नहीं है क्योकि रोग, ADA एंजाइम को कोड करने वाली जीन के विलोपन (deletion) से होता है। अत: इसका उपचार जीन थेरेपी द्वारा ही किया जा सकता है जो ADA का लगातार उत्पादन सुनिश्चित करती है।

प्रश्न 3. 
स्टेम कोशिका क्या है?
उत्तर:
स्टेम कोशिकाएँ विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ हैं जो बार - बार विभाजित होकर नई स्टेम कोशिकाओं तथा ऐसी वंशज कोशिकाएं बनाती हैं जो विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में विकसित होने की क्षमता रखती है। जैसे- जन्तु की भ्रूणीय कोशिकाएँ। 

प्रश्न 4. 
सुकेन्द्रकी कोशिकाओं के भीतर mRNA के मौनीकरण में ट्रांसपोजीनों की भूमिका बताइए।
उत्तर:
किसी परजीवी में आर एन ए अंतरक्षेप (RNA interferance) के लिए ds RNA की आवश्यकता होती है। यह mRNA का मौनीकरण कर देते हैं। यूकैरियोटिक कोशिकाओं के लिए इस सम्पूरक (Complemantary) RNA का स्रोत चलाय मान जेनेटिक एलीमेंट अर्थात ट्रांसपोजोन हो सकते है। 

प्रश्न 5. 
मानव इंसुलिन में c पेप्टाइड की भूमिका बताइए।
उत्तर:
मनुष्य में इंसुलिन का उत्पादन प्रोइंसुलिन के रूप में होता है जिसमें A तथा B पेप्टाइड के साथ एक C पेप्टाइड भी होता है। परिपक्वन के समय C पेप्टाइड हटा दिया जाता है। पेप्टाइड इंसुलिन को असक्रिय अवस्था में बनाये रखने का कार्य करता है। 

प्रश्न 6. 
उस जीवाणु का नाम लिखिए जिससे Bt जीवविष निर्मित होता है।
उत्तर:
बसौलस थूरिन्जिएन्सिस (Bacillus thuringiensis)। 

प्रश्न 7. 
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का एक उपयोग बताइए।
उत्तर:
पुनर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा मानव इंसुलिन का निर्माण। 

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प्रश्न 8. 
आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीवों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ऐसे जीव जिनके आनुवंशिक पदार्थ में किसी अन्य जीव का अर्थात विजातीय कार्यशील डी एन ए प्रतिस्थापित करा दिया गया हो, आनुवंशिकत: रूपान्तरित जीव (Genetically modified organism) या पारजीनी जीव (transgenic organism) कहलाते हैं, जैसे- बीटी कपास।

प्रश्न 9. 
इंसुलिन की दो छोटी पालीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ परस्पर किस प्रकार जुड़ी होती है?
उत्तर:
डाइसल्फाइड बंधों द्वारा। 

प्रश्न 10. 
किस फसल पर अमेरिकी कम्पनी ने 1997 में अमेरिकन पेटेंट व ट्रेडमार्क कार्यालय द्वारा पेटंट अधिकार प्राप्त किया था।
उत्तर:
बासमती चावल पर। 

प्रश्न 11. 
कपास के वॉलवर्म तथा कोर्न वोरर को नियंत्रित करने वाले काई जीन का नाम लिखिए।
उत्तर:
वालवर्म का नियंत्रण cry IAC व cry II Ab द्वारा कार्न बोरर का नियंत्रण cry IAb द्वारा।

प्रश्न 12. 
किसी फसली पौधे में क्राई प्रोटीन को कोडित करने वाली जीन का प्रवेश क्यों कराया जाता है?
उत्तर:
क्राई प्रोटीन को कोडित करने वाली जीन ट्रांसजैनिक पौधों में कीटनाशक क्राई प्रोटीन बनाती है जिससे पौधों को कीट प्रतिरोधकता प्राप्त होती है। इससे रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता भी कम होती है। 

प्रश्न 13. 
पारजीनी गाय रोजी के दूध की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
रोजी के दूध में मानव प्रोटीन अल्फा लेक्टैल्ब्यूमिन की अधिक मात्रा 2.4g/L होने से यह अन्य गायों के दूध की अपेक्षा अधिक पोषक मान वाला था। 

प्रश्न 14. 
जी ई ए सी का क्या कार्य है?
उत्तर:
जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमिटी (Genetic Engineering approval committee - GEAC) भारत सरकार द्वारा स्थापित संगठन है जो जी एम शोधों की मान्यता तथा जनसेवा कार्यों हेतु निर्मुक्त जी एम जीवों से सम्बन्धित सुरक्षा पर निर्णय लेता है। 

प्रश्न 15. 
तम्बाकू के पौधे की जड़ों को संक्रमित करने वाले गोल क्रमि परजीवी का नाम लिखिए। 
उत्तर:
मेलोड्डेगाइन इनकोगनिटा (Meloidegyne incognita)। 

प्रश्न 16. 
पहला पुनर्योगज मानव इंसुलिन किस कम्पनी द्वारा बनाया गया? 
उत्तर:
अमेरिका की एली लिली (Eli Lily) कम्पनी द्वारा। 

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प्रश्न 17. 
कौन सी आण्विक जाँच एंटीजन एंटीबडी पारस्परिक क्रिया पर आधारित है? 
उत्तर:
एलाइजा (ELISA) 

प्रश्न 18. 
एम्फीसीमा के उपचार हेतु कौन सी मानव प्रोटीन का प्रयोग किया जाता है? 
उत्तर:
अल्फा एंटीट्रिप्सिन (α - Antitrypsin)। 

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
कुछ विशेष जीवों को 'जीएमओ' क्यों कहा जाता है? जिन विभिन्न रूपों (तरीकों) में जीएमओ पौधे मानव के लिए उपयोगी एवं लाभकारी सिद्ध हुए हैं, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर:
आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (Genetically Modified Organisms)
जीवधारी (पादप, जीवाणु, कवक व जन्तु आदि) जिनके जीनों (genes) को फेरबदल करके परिवर्तित कर दिया गया है, आनुवंशिकतः रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड (genetically modified) जीव कहलाते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रित जीव (GMO) स्वयं उनकी ही जीन की एक या कुछ अतिरिक्त प्रतियों को प्रविष्ट अथवा मौन करके या आनुवंशिक ढांचे में उलट फेर कर बनाये जा सकते हैं या इनके आनुवंशिक ढाँचे में किसी विजातीय/बाह्य (alien) जीन को समाविष्ट करा दिया जाता है। इस अवस्था में इन्हें पारजीनी जीव (Transgenic Organism) कहा जाता है। पारजीनी जीवों के लिए बोलचाल की भाषा में जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म ही कहा जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों का निर्माण ट्रांसजेनिक जन्तुओं के निर्माण से सरल है। अनेक पौधों में एक अकेली कोशिका पूरे पौधे का निर्माण कर सकती है। कोशिका में ट्रांसजीन को एग्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया या अन्य अनेक विधियों द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। इस आनुवंशिक रूपान्तरित कोशिका से ऊतक सम्वर्धन द्वारा पूरा पौधा तैयार किया जा सकता है।

जेनेटिकली मॉडीफाइड (आनुवंशिकतः रूपान्तरित) पौधे अनेक प्रकार से लाभकारी हैं, जैसे-

  1. पौधों में प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों अर्थात अजैविक दबावों (abiotic stresses) जैसे अत्यधिक कम ताप, सूखा (drought), जल भराव (water logging), लवण सान्द्रता व ताप आदि को सहन करने की क्षमता (tolerance) का विकास। 
  2. रासायनिक पीड़कनाशियों (Chemical pesticides) पर निर्भरता कम करना अर्थात पीड़करोधी (Pest resistant) किस्मों का विकास। 
  3. कटाई के पश्चात होने वाली (Post harvest) हानियों को कम करना। (जैसे- फसलों का तेजी से पककर नष्ट हो जाना, दानों का टूट जाना आदि।) 
  4. पौधों की भूमि से खनिज लवण अवशोषित करने की दक्षता में वृद्धि। 
  5. खाद्य पदार्थों के पोषण मान (nutritional value) में वृद्धि जैसे "विटामिन A से समृद्ध चावल, ऐसी फसलों का विकास जिनकी पचनीयता (digestibility) अधिक हो, विशिष्ट खनिज, अमीनों अम्ल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। 

इसके अतिरिक्त ऐसी फसलें जिनमें वृद्धि तीव्र हो या वांछित कृषीय गुण (agronomic traits) हों तथा पैदावार अधिक हो। जैव प्रौद्योगिकी के कृषि में उपयोगों की इस लम्बी सूची में से यहाँ उदाहरण के लिए, पौड़क रोधी पौधे (Pest resistant plants) विकसित करने का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है। इससे फसल उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ संश्लेषित कृषि रसायनों पर हमारी निर्भरता कम होगी। बीटी विष (Bt toxin) जीवाणु बेसीलस थूरिन्जिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा बनाया जाता है। इसी जीवाणु के संक्षेपाक्षर से बीटी (Bt) नाम बना है। पुनर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा इस विष को कोड करने वाली जीन को जीवाणु से प्राप्त कर इन्हें फसली पौधों के जीनोम में प्रविष्ट कराया गया है। पौधों में इस जीन की अभिव्यक्ति से उन्हें पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) प्राप्त हुई है जिससे रासायनिक कीटनाशियों पर निर्भरता समाप्त हुई है। सही शब्दों में, यह जैव पीड़कनाशी (biopesticide) का निर्माण है। इस प्रकार बीटी कपास, बीटी मक्का, बीटी धान, बीटी, टमाटर बीटी आलू व बीटी सोयाबीन जैसी फसलें तैयार की गई हैं।

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प्रश्न 2. 
मानव शरीर में इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा प्राकहॉर्मोन/प्राकइंसुलिन के रूप में सावित किया जाता है। प्राकइंसुलिन की पॉलिपेप्टाइड संरचना का व्यवस्थित आरेख नीचे दर्शाया गया है। शरीर में इस प्राकईसुलिन को क्रियाशील होने से पहले संसाधित होने की आवश्यकता होती है। नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
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(a) क्रियाशील (प्रकार्यात्मक) होने के लिए इसके संसाधित होने की अवधि में प्राकइंसुलिन में होने वाले परिवर्तन लिखिए। 
(b) उस तकनीक का नाम लिखिाए जिसके उपयोग द्वारा एली लिली नामक अमेरिकी कम्पनी ने मानव इंसुलिन का वाणिज्यिक स्तर पर उत्पादन किया।
(c) क्रियाशील (प्रकार्यात्मक) इंसुलिन के दो पॉलिपेप्टाइड्स रासायनिक रूप से कैसे जुड़े होते हैं?
उत्तर:
(a) क्रियाशील होने के लिए प्राइंसुलिन C - पेप्टाइड को हटा दिया जाता है। जिससे यह क्रियाशील रूप में आ जाता है। 
(b) पुनयोगज DNA तकनीक (Recombinant DNA technology)।
(c) क्रियाशील इंसुलिन के दो पॉलीपेप्टाइड्स डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते है।

प्रश्न 3. 
फसल उत्पादन बढ़ाने के लिष्ट जीएमओ के उपयोग से प्राप्त होने वाले चार लाभों की सूची बनाइए।
उत्तर:
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) 
खाद्य उत्पादन में वृद्धि सम्बन्धी मौलिक जानकारी आप अध्याय 9 में प्राप्त कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न तीन वैकल्पिक नीतियाँ प्रमुख रूप से अपनाई जाती हैं-
(a) कृषि रसायनों (agrochemicals) पर आधारित कृषि 
(b) जैविक खेती (organic farming) 
(c) आनुवंशिक अभियान्त्रित फसलों (genetically engineered crops) पर आधारित कृषि। 

आप यह पढ़ चुके है कि भारत में हुई हारित क्रान्ति से खाद्य उत्पादन तीन गुना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हरित क्रान्ति जैसी सफलता भी बौनी पड़ती जा रही है। हरित क्रान्ति के कारण हुई उत्पादन में वृद्धि के अनेक कारण थे। यह नि:सन्देह, आंशिक रूप से, उन्नत किस्मों की फसलों के प्रयोग से ही सम्पन्न हुई। लेकिन इसके अन्य बड़े कारण खेती की बेहतर प्रबन्धन व्यवस्था व कृषि रसायनों (उर्वरक व पीड़कनाशी) का व्यापक उपयोग थे। भारत जैसे विकासशील देश के अधिकांश किसान इन महंगे कृषि रसायनों का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं, अर्थात एप्रोकैमिकल्स बहुत महंगे है। दूसरे फसलों की उपलब्ध किस्मों के आधार पर पारम्परिक प्रजनन तकनीकों से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में आशाएँ हैं। इसके उपयोग द्वारा वर्तमान स्तर के खेतों से ही अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ऐसे पौधे तैयार किये जा सकते हैं जिनकी इन कृषि रसायनों पर निर्भरता न हो या नगण्य हो ताकि इन कृषि रसायनों द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। आनुवंशिक रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (Genetically Modified Organisms) इसका विकल्प हो सकते हैं। उन्हीं के द्वारा एक नयी वहनीय (Sustainable) पर्यावरण मित्र (ecofriendly) हरित क्रान्ति की आशा की जा रही है। 

आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (Genetically Modified Organisms) 
जीवधारी (पादप, जीवाणु, कवक व जन्तु आदि) जिनके जीनों (genes) को फेरबदल करके परिवर्तित कर दिया गया है, आनुवंशिकतः रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड (genetically modified) जीव कहलाते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रित जीव (GMO) स्वयं उनकी ही जीन की एक या कुछ अतिरिक्त प्रतियों को प्रविष्ट अथवा मौन करके या आनुवंशिक ढांचे में उलट फेर कर बनाये जा सकते हैं या इनके आनुवंशिक ढाँचे में किसी विजातीय/बाह्य (alien) जीन को समाविष्ट करा दिया जाता है। इस अवस्था में इन्हें पारजीनी जीव (Transgenic Organism) कहा जाता है। पारजीनी जीवों के लिए बोलचाल की भाषा में जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म ही कहा जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों का निर्माण ट्रांसजेनिक जन्तुओं के निर्माण से सरल है। अनेक पौधों में एक अकेली कोशिका पूरे पौधे का निर्माण कर सकती है। कोशिका में ट्रांसजीन को एग्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया या अन्य अनेक विधियों द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। इस आनुवंशिक रूपान्तरित कोशिका से ऊतक सम्वर्धन द्वारा पूरा पौधा तैयार किया जा सकता है। 

जेनेटिकली मॉडीफाइड (आनुवंशिकतः रूपान्तरित) पौधे अनेक प्रकार से लाभकारी हैं, जैसे-

  1. पौधों में प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों अर्थात अजैविक दबावों (abiotic stresses) जैसे अत्यधिक कम ताप, सूखा (drought), जल भराव (water logging), लवण सान्द्रता व ताप आदि को सहन करने की क्षमता (tolerance) का विकास। 
  2. रासायनिक पीड़कनाशियों (Chemical pesticides) पर निर्भरता कम करना अर्थात पीड़करोधी (Pest resistant) किस्मों का विकास। 
  3. कटाई के पश्चात होने वाली (Post harvest) हानियों को कम करना। (जैसे- फसलों का तेजी से पककर नष्ट हो जाना, दानों का टूट जाना आदि।) 
  4. पौधों की भूमि से खनिज लवण अवशोषित करने की दक्षता में वृद्धि। 
  5. खाद्य पदार्थों के पोषण मान (nutritional value) में वृद्धि जैसे "विटामिन A से समृद्ध चावल, ऐसी फसलों का विकास जिनकी पचनीयता (digestibility) अधिक हो, विशिष्ट खनिज, अमीनों अम्ल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। 

इसके अतिरिक्त ऐसी फसलें जिनमें वृद्धि तीव्र हो या वांछित कृषीय गुण (agronomic traits) हों तथा पैदावार अधिक हो। जैव प्रौद्योगिकी के कृषि में उपयोगों की इस लम्बी सूची में से यहाँ उदाहरण के लिए, पौड़क रोधी पौधे (Pest resistant plants).विकसित करने का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है। इससे फसल उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ संश्लेषित कृषि रसायनों पर हमारी निर्भरता कम होगी। बीटी विष (Bt toxin) जीवाणु बेसीलस थूरिन्जिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा बनाया जाता है। इसी जीवाणु के संक्षेपाक्षर से बीटी (Bt) नाम बना है। पुनर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा इस विष को कोड करने वाली जीन को जीवाणु से प्राप्त कर इन्हें फसली पौधों के जीनोम में प्रविष्ट कराया गया है। पौधों में इस जीन की अभिव्यक्ति से उन्हें पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) प्राप्त हुई है जिससे रासायनिक कीटनाशियों पर निर्भरता समाप्त हुई है। सही शब्दों में, यह जैव पीड़कनाशी (biopesticide) का निर्माण है। । इस प्रकार बीटी कपास, बीटी मक्का, बीटी धान, बीटी, टमाटर बीटी आलू व बीटी सोयाबीन जैसी फसलें तैयार की गई हैं।

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प्रश्न 4. 
तंबाकू के पौधों में मिल्वाडेगाइन इनकोगनीशिया के संक्रमण के नियंत्रण में एप्रोवैक्टीरियम संवाहक के रूप में उपयोग किस प्रकार सहायक रहा है? सही अनुक्रम में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पीड़क प्रतिरोधी पौधे (Pest Resistent Plants)
अनेक प्रकार के सूत्र कृमि (गोलकृमि) या निमेटोड (nematode) मनुष्य सहित विभिन्न प्रकार के जन्तुओं व पौधों में परजीवी के रूप में जीवन - यापन करते हैं। फसली पौधों में इन गोलकृमियों द्वारा रोग फैलाने के उदाहरण कम नहीं हैं तथा इनसे फसलों की उत्पादकता में उल्लेखनीय कमी आती है। मेलोइडेगाइन इनकोगनिटा (Meloidegyne incognita) नामक एक गोलकृमि तम्बाकू के पौधों की जड़ों को संक्रमित कर उसकी पैदावार को काफी कम कर देता है। इसके संक्रमण को रोकने के लिए एक अनूठी रणनीति को अपनाया गया जो आर एन ए अन्तरक्षेप (RNA interference; RNAi) प्रक्रिया पर आधारित है। आर एन ए अन्तरक्षेप या आर एन ए इन्टरफेरेंस (RNAi) सभी यूकेरियोटिक जीवों में कोशिकीय सुरक्षा की एक विधि है। 

आर एन ए अन्तरक्षेप (RNA Interference - RNAI) 
आर एन ए अन्तरक्षेप या आर एन ए इन्टरफेरेस एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें आर एन ए अणु विशिष्ट एम आर एन ए (m RNA) अणुओं को निष्क्रिय कर जीन की अभिव्यक्ति (expression of gene) को रोक देते हैं। इस विधि में द्विरज्जुकी आर एन ए (ds RNA) जो जीव के किसी वांछित जीन से सम्बन्धित है, का प्रवेश होने से उस जीन से अनुलेखित (transcribed) एम आर एन ए (mRNA) अणुओं का निष्क्रियण हो जाता है। m RNA की अनुपस्थिति में सम्बंधित प्रोटीन का निर्माण नहीं होता, फलस्वरूप लक्ष्य जीन का कार्य सम्पन्न नहीं हो पाता। इस घटना को आर एन ए माध्यित अन्तरक्षेप या RNAi कहा जाता है। निमेटोड, पौधों या मनुष्य, किसी की कोशिकाओं में द्विरज्जुकी आर एन ए (ds RNA) नहीं बनते। लेकिन अनेक विषाणुओं में द्विरज्जुकी आर एन ए पाये जाते हैं। अतः आर एन ए आई (RNAi) प्रणाली का विकास शायद सुरक्षा के लिए हुआ है। वैज्ञानिकों ने RNAi का प्रयोग किसी लक्ष्य जीन के कार्य को नष्ट करने के लिए किया है। अगर परजीवी के ऐसे जीन को लक्ष्य बनाया जाय जो परजीवी के जीवित रहने के लिए आवश्यक है तब पोषक जीव को संक्रमण से बचाया जा सकता है।

इस जीन से सम्बन्धित द्विरज्जुकी आर एन ए को पोषक के माध्यम से 'डिलीवर' किया जाय तो यह परजीवी में आर एन ए इन्टरफेरेंस उत्पन्न कर देगा। mRNA द्वारा अनुवाद के रुकने को साइलैंसिंग (Silencing) कहते है। पादपों में सम्पूरक आर एन ए का स्रोत आर एन ए जीनोम वाले किसी विषाणु का संक्रमण या ट्रांसपोजोन (transposons) जिन्हें चलायमान आनुवंशिक तत्व (mobile genetic elements) कहा जाता है हो सकते हैं। यह आर एन ए के माध्यम से प्रतिकृतिकरण करते हैं। एग्रोबैक्टीरियम वाहकों का उपयोग कर गोलकृमि विशिष्ट जीनों को पोषक कोशिका में प्रविष्ट कराया गया। डी एन ए की यह प्रविष्टि इस प्रकार की थी कि इससे सेंस व एन्टी सेंस दोनों प्रकार के आर एन ए का निर्माण पोषक कोशिकाओं में हुआ। इन पूरक आर एन ए ने मिलकर द्विरज्जुकी आर एन ए का निर्माण कर दिया जिसने आर एन ए आई (RNAi) प्रारम्भ कर दी तथा लक्ष्य जीन से बने निमेटोड के विशिष्ट mRNA को निष्क्रिय कर दिया। फलस्वरूप परजीवी ट्रांसजेनिक पोषक में जीवित रहने में सक्षम नहीं रहा। इस प्रकार ट्रांसजेनिक पौधे को परजीवी से सुरक्षा प्राप्त हो गई।
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आर एन ए इन्टरफेरंस की क्रिया विधि
ds RNA को डाइसर (dicer) छोटे - छोटे si RNA (स्माल इन्टरफेरिंग RNA) में काट देता है। Si RNA डाइसर युग्म अन्य घटकों (एन्जाइम) से मिलकर RNA इन्ड्यूस्ड साइलेसिंग काम्पलैक्स RISC बनाता है। Si RNA खुल जाता है, रज्जुक अलग - अलग हो जाते हैं। खुला हुआ si RNA पूरक m RNA से बन्ध बनाता है। मशीनरी m RNA को लक्ष्य बनाती है। लक्ष्य आर एन ए के टुकड़े - टुकड़े कर दिये जाते हैं।

प्रश्न 5. 
कृत्रिम इंसुलिन के उत्पादन में निहित विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आनुवंशिकतः निर्मित इंसुलिन (Genetically Engineered Insulin) 
मनुष्य में होने वाला मधुमेह (diabetes mellitus) रोग इंसुलिन के न बनने अथवा कम मात्रा में बनने के कारण होता है। इस रोग का उपचार रोगी को इंसुलिन हामोन देकर किया जाता है। इंसुलिन एक प्रोटीन हार्मोन है। पहले के समय में मधुमेह के रोगियों के उपचार हेतु इंसुलिन को बूचड़खाने (Slaughter house)) में मारे गये जानवरों जैसे मवेशियों व सुअर से प्राप्त किया जाता था। जानवरों से प्राप्त इंसुलिन को लेने से कुछ मनुष्यों में एलर्जी या बाह्य प्रोटीन के कारण होने वाली अन्य प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाएं होने लगती थीं। इससे संक्रमण का खतरा भी बना रहता था। लेकिन पुनर्योगज डी एन ए तकनीक ने इन सभी समस्याओं का एक बेहतरीन हल प्रस्तुत कर दिया है। मानव की कोशिकाओं से इंसुलिन कोड करने वाली जीन को किसी प्लामिड से जोड़कर इस पुनयोंगज डी एन ए को जीवाणु कोशिका में क्लोन करने से पुनयोगज इंसुलिन (Recombinant insulin) प्राप्त होती है। 

इंसुलिन (Insulin) 
इन्सुलिन एक प्रोटीन हार्मोन है जो दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं (polypeptide chains) से बना होता है। इन शृंखलाओं को श्रृंखला A व शृंखला B नाम दिये गये हैं। यह दोनों श्रृंखलाएँ डाइसल्फाइड बन्धों -(disulphide bonds) द्वारा आपस में जुड़ी होती है। मनुष्य सहित सभी स्तनधारियों में इंसुलिन का संश्लेषण एक प्राक हॉमोन या प्रो-हॉमोन के रूप में होता है। किसी भी प्रो एंजाइम की तरह प्रो हामोंन को भी पूर्ण रूप से परिपक्व व क्रियाशील (functional) बनने के लिए प्रसंस्करण (processing) की आवश्यकता होती है।
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सन् 1983 में अमेरिका की एली लिली कम्पनी (Eli Lilly company) ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर करोड़ों मधुमेह रोगियों का जीवन आसान बनाया। एली लिली कम्पनी ने इंसुलिन की A तथा B श्रृंखलाओं को कोडित करने वाले डी एन ए अनुक्रमों (DNA sequences) को संश्लेषित किया तथा इनको जीवाणु ई० कोलाई (Escherichia coli) के प्लाज्मिड से जोड़कर पुनयोगज डी एन ए बनाया। इस पुनयोंगज डी एन ए के कारण जीवाणु कोशिका दो अलग-अलग शृंखलाएँ A व B बनाने में सक्षम हो गई। इस प्रकार शृंखला A तथा B को अलग - अलग प्राप्त किया गया तथा बाद में इन्हें डाइसल्फाइड,बन्धों से जोड़कर सक्रिय इंसुलिन प्राप्त कर ली गई। इंसुलिन पहली प्रोटीन श्री जिसकी प्राथमिक संरचना (Primary structure) सबसे पहले ज्ञात की गई। इंसुलिन प्रोटीन के अमीनों अम्लों के क्रम की सबसे पहले जानकारी फ्रेडरिक सांगेर (Frederick Sanger) ने दी। इसकी A शृंखला में 21 तथा B श्रृंखला में 30 अमीनो अम्ल होते हैं। दो शृंखलाओं के बीच डाइसल्फाइड बन्धA शृंखला के 7वें तथा 20वें एमीनों अम्लों तथा B श्रृंखला के 7वें व 19वें अमीनों अम्लों के बीच होता है। इंसुलिन की सन 1921 में हुई खोज के बाद से यह विज्ञान के सबसे अधिक अध्ययन किये गये अणुओं में से एक है।

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प्रश्न 6. 
Bt कपास के पौधों पर भरण पोषण करने वाले लेपिडोप्टेरा कीट क्यों मर जाते हैं? समझाकर बताइए कि ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
बीटी कपास (Bt Cotton)
बेसीलस थूरिन्जिएंसिस (Bacillus thuringiensis) जीवाणु के कुछ विभेद एक ऐसी प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो विविध समूहों के कीटों को मारने में सक्षम होती है। इससे प्रभावित होने वाले कीट हैं-
तम्बाकू का वडवर्म (Budworm of tobacco), आमींवर्म (armyworm) जैसे लेपिडोप्टेरन कीट (Lepidopteren insects) गुबरैले (मूंग) या बीटल (Beetles) अर्थात कोलियोप्टेरन (Coleopteran) कीट। मक्खी, मच्छर जैसे डिप्टीरन (Dipteran) कीट (लेपिडोप्टेरा, कोलियोप्टेरा तथा डिप्टीरा कीट वर्ग के विभिन्न गण (Order) हैं)। बेसीलस थूरिन्जिएंसिस अपनी वृद्धि की एक विशिष्ट प्रावस्था में ही प्रोटीन क्रिस्टल बनाते हैं। इन क्रिस्टलों में ही एक विषैली कीटनाशी प्रोटीन (insecticidal protein) होती है।
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यह विषैली प्रोटीन अर्थात बीटी एक असक्रिय रूप (inactive form) में उपस्थित रहती है, जिसके कारण इसका जीवाण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता। लेकिन कीट द्वारा इस प्रोटीन को खा लेने के बाद यह कीट की आहारनाल की क्षारीय pH के कारण सक्रिय रूप में बदल जाती है। वास्तव में पहले अघुलनशील रूप में उपस्थित विषैली प्रोटीन अधिक pH या क्षारीयता के कारण घुलनशील (Soluble) बन जाती है। यह सक्रियत विष (Activated toxin) मध्यांत्र की उपकलीय (एपीथौलियल) कोशिकाओं से जुड़कर उसमें छिद्रों का निर्माण कर देती हैं। इससे कोशिकाएँ फूल कर फट जाती हैं तथा परिणामस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है। इसी सिद्धान्त पर इस जीवाणु की विषैले प्रभाव वाली प्रोटीन को कोड करने वाली जीन को कपास के साथ - साथ अन्य पौधों में प्रविष्ट कराया गया है। इस प्रोटीन को क्राई (Cry) नाम दिया गया है तथा इसे कैपीटल C बनाकर सीधे अक्षरों में लिखा जाता है। इस प्रोटीन को कोड करने वाली जीन को भी cry जीन कहा जाता है लेकिन इसे अंग्रेजी के छोटे अक्षर c से ही तथा इटैलिक्स में (तिरछा) लिखा जाता है। बीटी विष (Bt toxins) के भी अनेक प्रकार हैं तथा अधिकांश बीटी विष, कीट समूह विशिष्ट (insect group specific) होते है। इसका अर्थ है कि किसी विशिष्ट प्रकार का बीटी विष विशिष्ट प्रकार के कीटों के लिए ही प्रभावी होता है। 

अतः जीनों (genes) का चुनाव चयनित फसल तथा लक्ष्य कीट (target insect) पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए-
जीन cry IAC तथा cry IIAb (क्राई I एसी व क्राई II एबी) द्वारा कोडित प्रोटीन कॉटन बॉलवर्म (Cotton bollworm) को नियन्त्रित करते हैं जबकि जीन cry IAb (क्राई I एबी) द्वारा निर्मित प्रोटीन मक्का के छेदक अर्थात कार्न बोरर (Corn borer) के नियन्त्रण हेतु प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 7. 
चिकित्सा में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग का क्या महत्व है? जैव, प्रौद्योगिकी मानव इन्सुलिन के उत्पादन में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Medicine) 
सुरक्षित व अत्यधिक प्रभावी औषधियों के व्यावसायिक उत्पादन के कारण पुनर्योगज डी एन ए प्रौद्योगिकी ने स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बनाई है। पुनयोंगज चिकित्सीय उत्पादों (recombinant therapeuties) के मनुष्य पर किसी प्रकार के हानिकार. प्रभाव नहीं होते। उदाहरण के लिए, किसी टीके को मृत सूक्ष्मजीव या निर्बलीकृत सूक्ष्मजीव से तैयार करने पर शरीर में आवश्यक एन्टीजन (antigens) के अतिरिक्त अनेक प्रकार के रसायनों का प्रवेश होता है जो शरीर में अवांछित प्रतिरक्षी प्रक्रिया (immunological response) या संक्रमण पैदा कर सकते हैं। इसी प्रकार मनुष्य के प्रयोग के लिए किसी हार्मोन को किसी गैर मानव/non human अन्य स्तनधारी से प्राप्त करने पर कुछ अन्य अनावश्यक रसायनों का शरीर में प्रवेश हो जाता है जो एलर्जी जैसी प्रतिरक्षी क्रियाओं का कारण बनते हैं। पुनयोंगज प्रोटीन/उत्पादों के साथ यह समस्याएं नहीं होती तथा वह किसी प्रकार की अवांछित प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं करते न इनसे संक्रमण का भय रहता है। आज पूरे विश्व में 30 से भी अधिक औषधिय उत्पाद मनुष्य के प्रयोग हेतु स्वीकृत किये जा चुके हैं इनमें से 12 की भारत में बिक्री हो रही है।

आनुवंशिकतः निर्मित इंसुलिन (Genetically Engineered Insulin) 
मनुष्य में होने वाला मधुमेह (diabetes mellitus) रोग इंसुलिन के न बनने अथवा कम मात्रा में बनने के कारण होता है। इस रोग का उपचार रोगी को इंसुलिन हामोन देकर किया जाता है। इंसुलिन एक प्रोटीन हार्मोन है। पहले के समय में मधुमेह के रोगियों के उपचार हेतु इंसुलिन को बूचड़खाने (Slaughter house)) में मारे गये जानवरों जैसे मवेशियों व सुअर से प्राप्त किया जाता था। जानवरों से प्राप्त इंसुलिन को लेने से कुछ मनुष्यों में एलर्जी या बाह्य प्रोटीन के कारण होने वाली अन्य प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाएं होने लगती थीं। इससे संक्रमण का खतरा भी बना रहता था। लेकिन पुनर्योगज डी एन ए तकनीक ने इन सभी समस्याओं का एक बेहतरीन हल प्रस्तुत कर दिया है। मानव की कोशिकाओं से इंसुलिन कोड करने वाली जीन को किसी प्लामिड से जोड़कर इस पुनयोंगज डी एन ए को जीवाणु कोशिका में क्लोन करने से पुनयोगज इंसुलिन (Recombinant insulin) प्राप्त होती है। 

इंसुलिन (Insulin) 
इन्सुलिन एक प्रोटीन हार्मोन है जो दो पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं (polypeptide chains) से बना होता है। इन शृंखलाओं को श्रृंखला A व शृंखला B नाम दिये गये हैं। यह दोनों श्रृंखलाएँ डाइसल्फाइड बन्धों -(disulphide bonds) द्वारा आपस में जुड़ी होती है। मनुष्य सहित सभी स्तनधारियों में इंसुलिन का संश्लेषण एक प्राक हॉमोन या प्रो-हॉमोन के रूप में होता है। किसी भी प्रो एंजाइम की तरह प्रो हामोंन को भी पूर्ण रूप से परिपक्व व क्रियाशील (functional) बनने के लिए प्रसंस्करण (processing) की आवश्यकता होती है।
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सन् 1983 में अमेरिका की एली लिली कम्पनी (Eli Lilly company) ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर करोड़ों मधुमेह रोगियों का जीवन आसान बनाया। एली लिली कम्पनी ने इंसुलिन की A तथा B श्रृंखलाओं को कोडित करने वाले डी एन ए अनुक्रमों (DNA sequences) को संश्लेषित किया तथा इनको जीवाणु ई० कोलाई (Escherichia coli) के प्लाज्मिड से जोड़कर पुनयोगज डी एन ए बनाया। इस पुनयोंगज डी एन ए के कारण जीवाणु कोशिका दो अलग-अलग शृंखलाएँ A व B बनाने में सक्षम हो गई। इस प्रकार शृंखला A तथा B को अलग - अलग प्राप्त किया गया तथा बाद में इन्हें डाइसल्फाइड,बन्धों से जोड़कर सक्रिय इंसुलिन प्राप्त कर ली गई। इंसुलिन पहली प्रोटीन श्री जिसकी प्राथमिक संरचना (Primary structure) सबसे पहले ज्ञात की गई। इंसुलिन प्रोटीन के अमीनों अम्लों के क्रम की सबसे पहले जानकारी फ्रेडरिक सांगेर (Frederick Sanger) ने दी। इसकी A शृंखला में 21 तथा B श्रृंखला में 30 अमीनो अम्ल होते हैं। दो शृंखलाओं के बीच डाइसल्फाइड बन्धA शृंखला के 7वें तथा 20वें एमीनों अम्लों तथा B श्रृंखला के 7वें व 19वें अमीनों अम्लों के बीच होता है। इंसुलिन की सन 1921 में हुई खोज के बाद से यह विज्ञान के सबसे अधिक अध्ययन किये गये अणुओं में से एक है।

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प्रश्न 8. 
GMO किसे कहते हैं? एक किसान के लिए GMO के संभावी किन्हीं पाँच लाभों की सूची बनाइए।
उत्तर:
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) 
खाद्य उत्पादन में वृद्धि सम्बन्धी मौलिक जानकारी आप अध्याय 9 में प्राप्त कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न तीन वैकल्पिक नीतियाँ प्रमुख रूप से अपनाई जाती हैं-
(a) कृषि रसायनों (agrochemicals) पर आधारित कृषि 
(b) जैविक खेती (organic farming) 
(c) आनुवंशिक अभियान्त्रित फसलों (genetically engineered crops) पर आधारित कृषि। 
आप यह पढ़ चुके है कि भारत में हुई हारित क्रान्ति से खाद्य उत्पादन तीन गुना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हरित क्रान्ति जैसी सफलता भी बौनी पड़ती जा रही है। हरित क्रान्ति के कारण हुई उत्पादन में वृद्धि के अनेक कारण थे। यह नि:सन्देह, आंशिक रूप से, उन्नत किस्मों की फसलों के प्रयोग से ही सम्पन्न हुई। लेकिन इसके अन्य बड़े कारण खेती की बेहतर प्रबन्धन व्यवस्था व कृषि रसायनों (उर्वरक व पीड़कनाशी) का व्यापक उपयोग थे। भारत जैसे विकासशील देश के अधिकांश किसान इन महंगे कृषि रसायनों का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं, अर्थात एप्रोकैमिकल्स बहुत महंगे है। दूसरे फसलों की उपलब्ध किस्मों के आधार पर पारम्परिक प्रजनन तकनीकों से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में आशाएँ हैं। इसके उपयोग द्वारा वर्तमान स्तर के खेतों से ही अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ऐसे पौधे तैयार किये जा सकते हैं जिनकी इन कृषि रसायनों पर निर्भरता न हो या नगण्य हो ताकि इन कृषि रसायनों द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। आनुवंशिक रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (Genetically Modified Organisms) इसका विकल्प हो सकते हैं। उन्हीं के द्वारा एक नयी वहनीय (Sustainable) पर्यावरण मित्र (ecofriendly) हरित क्रान्ति की आशा की जा रही है। 

प्रश्न 9. 
आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित पादपों के किन्ही तीन संभावित अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(a) पौधों में पौड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) का विकास जिससे रासायनिक पीड़कनाशियों पर निर्भरता में कमी आती है, जैसे बीटी कपास। 
(b) बेहतर गुणवत्ता, बढ़ा पोषक मान जैसे विटामिन A समृद्ध चावल। 
(c) फसल कटाई के बाद की हानि में कमी जैसे अधिक शैल्फ अवधि वाले टमाटर। 

प्रश्न 10. 
अमेरिकी कम्पनी, एली लिली ने DNA प्रौद्योगिकी की जानकारी को मानव इंसुलिन उत्पादन में किस प्रकार प्रयुक्त किया?
उत्तर:
अमेरिकी एली लिली कम्पनी ने सन् 1983 में इंसुलिन की A व B श्रृंखलाओं को कोड करने वाले डी एन ए खण्ड तैयार किये तथा इनकों जीवाणु एश्चीरिचिया कोलाई (E - coli) के प्लामिड में प्रविष्ट करा दिया। इस प्रकार जीवाणु द्वारा A व B शृंखलाओं का अलग-अलग उत्पादन हुआ। इनको प्राप्त कर बाद में डाइसल्फाइड (disulfide) बंधों द्वारा जोड़कर संक्रिय इंसुलिन प्राप्त कर ली गई। 

प्रश्न 11. 
पारजीनी (ट्रांसजैनिक) जंतुओं के जैविक उत्पादों के उत्पादन में योगदान को समझाइए।
उत्तर:
पारजीनी जंतुओं की मदद से औषधीय महत्व के सस्ते व सुरक्षित द प्राप्त किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए - एम्फीसीमा के उपचार में प्रयोग की जाने वाली मानव प्रोटीन अल्फा एंटीट्रिप्सिन को ट्रांसजैनिक भेड़ के दूध से प्राप्त किया गया है। ट्रांसजैनिक गाय रोजी का दूध मानव प्रोटीन अल्फा लैक्टेल्ल्यूमिन से समृद्ध (2.4g/L) था जो सामान्य दूध से अधिक पोषक मान वाला है। 

प्रश्न 12. 
मधुमेह रोगियों को अगर असंसाधित प्राक इंसुलिन दिया जाए तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
असंसाधित प्राक इंसुलिन एक असक्रिय अणु होता है। इसमें परिपक्वन होने पर C पेप्टाइड हट जाता है जिससे यह सक्रिय हो जाता है। मधुमेह रोगी को प्राक इंसुलिन देने पर रोगी का रक्त शर्करा स्तर कम नहीं होगा अर्थात प्राक इंसुलिन निष्प्रभावी रहेगा। 

प्रश्न 13. 
किसी शिशु या भ्रूण में चिन्हित किए गये जीन दोषों का उपचार किस तकनीक द्वारा किया जाता है? उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर:
शिशुओं या भ्रूण में चिन्हित किए गयें जीन दोषों के उपचार के लिए जीन थरेपी (gene therapy) का प्रयोग किया जाता है। एडीनोसीन डिएमीनेज न्यूनता (ADA deficiency) इसी प्रकार का रोग है। रोग के उपचार हेतु ADA को कोड करने वाली सामान्य जीन को अस्थि मज्जा कोशिकाओं से प्राप्त कर प्रारम्भिक भूणीय अवस्था अथवा शिशु की कोशिकाओं में प्रविष्ट करा दिया जाता है। यह रोग का स्थायी उपचार सिद्ध हो सकता है। 

प्रश्न 14. 
कुछ जीवाणुओं द्वारा संश्लेषित बीटी (Bt) आविष प्रोटीन के रवे कीटों को तो मार देते हैं परन्तु स्वंय को नहीं। कथन को कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बेसीलस थूरिन्जिएंसिस द्वारा उत्पन्न कीटनाशी विष जीवाणु में असक्रिय प्राकविष (inactive protoxin) के रूप में उपस्थित होता है। कीट द्वारा इसे खाने पर यह कीट की आंत की क्षारीय pH के कारण घुलनशील सक्रिय रूप (Soluble active) रूप में बदल जाता है। यह विष मध्यांत्र की एपीथीलियम कोशिकाओं से चिपककर उनमें छिद्र कर देता है जिससे वह फूलकर फट जाती है तथा कीट की मृत्यु हो जाती है।

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प्रश्न 15. 
(a) मनुष्यों में ADA न्यूनता का कारण व प्रभावित होने वाले तंत्र का नाम बताइए। 
(b) उस वाहक का नाम बताइए जिसका प्रयोग ADA - DNA को मानव की प्रापक (recipient) कोशिका में पहुँचाने के लिए किया जाता है। प्रापक कोशिकाओं का नाम बताइए।
उत्तर:
(a) कारण - एडीनोसीन डिएमीनेज एंजाइम को कोड करने वाली जीन के विलोपन (deletion) से होता है। प्रभावित तंत्र-प्रतिरक्षा तंत्र (immune System) ADA एंजाइम शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। 
(b) वाहक - ADA जीन स्थानान्तरण के लिए रिट्रोवाइरस (retrovirus) का प्रयोग किया जाता है। प्रापक कोशिकाए - लिम्फासाइट। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
(i) मानवों में अग्न्याशय से नावित प्रोइंसुलिन परिपक्व इंसुलिन से किस प्रकार भिन्न है?
(ii) r DNA प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए मानव कार्यशील इंसुलिन किस प्रकार बनाई गई? समझाइये।
(iii) इस प्रकार तैयार की गई कार्यशील इंसुलिन को इससे पूर्व मधुमेह रोगियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली इंसुलिन से बेहतर क्यों माना जाता है?
उत्तर:
(i) प्रो इंसुलिन c पेप्टाइड की उपस्थिति के कारण असक्रिय होती है। परिपक्व इंसुलिन में c पेप्टाइड नहीं पाया जाता अत: यह सक्रिय होती है। 
(ii) 

  • क्रियाशील होने के लिए प्राइंसुलिन C - पेप्टाइड को हटा दिया जाता है। जिससे यह क्रियाशील रूप में आ जाता है। 
  • पुनयोगज DNA तकनीक (Recombinant DNA technology)।
  • क्रियाशील इंसुलिन के दो पॉलीपेप्टाइड्स डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते है।

(iii) पहले के समय में इंसुलिन को जानवरों जैसे मवेशियों और सुअर के अन्याशय से प्राप्त किया जाता था जो बाह्य पदार्थों (विजातीय पदार्थों) के कारण एलर्जी व संक्रमण का स्रोत हो सकती थी। TDNA प्रौद्योगिकी से बनी इंसुलिन पूर्णत: सुरक्षित अधिक कारगर है। 

प्रश्न 2.
(i) निमेटोड (सूत्रकृमि) का नाम लिखिए जो तम्बाकू के पौधे पर आक्रमण करता है तथा उसे नष्ट कर देता है। 
(ii) इस समस्या के निदान के लिए पारजीनी तम्बाक पौधा किस प्रकार उत्पादित किया जाता है?
उत्तर:
(i) जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमिटी (Genetic Engineering approval committee - GEAC) भारत सरकार द्वारा स्थापित संगठन है जो जी एम शोधों की मान्यता तथा जनसेवा कार्यों हेतु निर्मुक्त जी एम जीवों से सम्बन्धित सुरक्षा पर निर्णय लेता है। 
(ii) कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) 
खाद्य उत्पादन में वृद्धि सम्बन्धी मौलिक जानकारी आप अध्याय 9 में प्राप्त कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न तीन वैकल्पिक नीतियाँ प्रमुख रूप से अपनाई जाती हैं-

  • कृषि रसायनों (agrochemicals) पर आधारित कृषि 
  • जैविक खेती (organic farming) 
  • आनुवंशिक अभियान्त्रित फसलों (genetically engineered crops) पर आधारित कृषि। 

आप यह पढ़ चुके है कि भारत में हुई हारित क्रान्ति से खाद्य उत्पादन तीन गुना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हरित क्रान्ति जैसी सफलता भी बौनी पड़ती जा रही है। हरित क्रान्ति के कारण हुई उत्पादन में वृद्धि के अनेक कारण थे। यह नि:सन्देह, आंशिक रूप से, उन्नत किस्मों की फसलों के प्रयोग से ही सम्पन्न हुई। लेकिन इसके अन्य बड़े कारण खेती की बेहतर प्रबन्धन व्यवस्था व कृषि रसायनों (उर्वरक व पीड़कनाशी) का व्यापक उपयोग थे। भारत जैसे विकासशील देश के अधिकांश किसान इन महंगे कृषि रसायनों का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं, अर्थात एप्रोकैमिकल्स बहुत महंगे है। दूसरे फसलों की उपलब्ध किस्मों के आधार पर पारम्परिक प्रजनन तकनीकों से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में आशाएँ हैं। इसके उपयोग द्वारा वर्तमान स्तर के खेतों से ही अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ऐसे पौधे तैयार किये जा सकते हैं जिनकी इन कृषि रसायनों पर निर्भरता न हो या नगण्य हो ताकि इन कृषि रसायनों द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। आनुवंशिक रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (Genetically Modified Organisms) इसका विकल्प हो सकते हैं। उन्हीं के द्वारा एक नयी वहनीय (Sustainable) पर्यावरण मित्र (ecofriendly) हरित क्रान्ति की आशा की जा रही है। 

प्रश्न 3. 
पारजीनी जन्तु क्या है? जैविक उत्पादों के उत्पादन में इनका क्या योगदान है? अन्य लाभों की सिर्फ सूची बना। 
उत्तर:
पारजीनी जन्तु (Transgenic Animals) 
ऐसे जन्तु जिनके आनुवंशिक पदार्थ में फेरबदल करके कोई अभिव्यक्त होने वाला विजातीय/बाह्य जीन प्रविष्ट करा दिया गया हो पारजीनी जन्तु या ट्रांसजेनिक एनीमल (uansgenic animals) कहलाते हैं। अनेक प्रकार के ट्रांसजेनिक जन्तुओं का निर्माण किया गया है जिनमें चूहे, खरगोश, सूअर, भेड़, गाय व मछली प्रमुख है, लेकिन सभी पारजीनी जन्तुओं में लगभग 95 प्रतिशत संख्या चूहों की है। पहले पारजीनी जन्तु चूहे थे। इन चूहों को विजातीय वृद्धि हार्मोन जीन को प्रविष्ट कर बनाया गया। इन चूहों का आकार सामान्य चूहों के आकार से दो गुना था। मानव वृद्धि हार्मोन को प्रविष्ट कराकर ट्रांसजेनिक मछली का निर्माण किया गया है जो आकार में सामान्य मछलियों से काफी बड़ी व भारी है। 

पारजीनी जन्तुओं के निर्माण के निम्न लाभ हैं-
(i) सामान्य कार्यिकी व विकास (Normal physiology and development)
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ट्रांसजेनिक जन्तुओं का निर्माण विशेष रूप से इस प्रकार किया जा सकता है जिससे यह जाना जा सके कि जीनों का नियमन (regulation) किस प्रकार होता है? तथा कैसे वह शरीर की सामान्य क्रियाओं व विकास को प्रभावित करते हैं? उदाहरण के लिए: इन जन्तुओं के निर्माण से वृद्धि में भागीदार जटिल कारकों, जैसे-इंसुलिन लाइक प्रोथ फैक्टर (Insulin like growth factor) का अध्ययन किया जाता है। इस कार्य हेतु अन्य प्रजातियों के जीनों का ट्रांसजीन (transgene) के रूप में प्रयोग किया जाता है जो इस वृद्धिकारक (growth factor) के निर्माण में बाधक होते हैं। अब इस वृद्धि कारक की अनुपस्थिति में जो जैविक प्रभाव होते हैं उनका अध्ययन किया जाता है। इससे वृद्धिकारक की स्पष्ट जैविक भूमिका का सही - सही पता लग जाता है।

(ii) रोगों का अध्ययन (Study of diseases) अनेक पारजीनी जन्तुओं को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है जिससे यह पता लग सके कि जीनों (genes) की रोग के विकास में क्या भूमिका है। यह इस प्रकार से तैयार किये जाते हैं जिससे वह मानव रोगों के अध्ययन के लिए एक नमूने या मॉडल के रूप में कार्य करें जिससे रोगों के नये उपचारों की सम्भावनाओं का अध्ययन किया जा सके। आज मनुष्य के अनेक रोगों जैसे-कैसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, रयूमेटॉइड अर्थराइटिस व एल्जिमर रोग (Alzheimer's disease) के लिए पारजीनी नमूने उपलब्ध है।

(iii) जैविक उत्पाद (Biological Products) रोगों के उपचार में प्रयोग होने वाली कुछ औषधियों में जैविक उत्पाद होते हैं लेकिन इन उत्पादों का निर्माण प्रायः काफी महंगा होता है। ऐसे जैविक उत्पादों का निर्माण पारजीनी जन्तुओं की मदद से किया गया है। इस प्रक्रिया में वांछित जैविक उत्पाद को कोड करने वाली जीन को किसी जन्तु में प्रविष्ट करा दिया जाता है। मानव प्रोटीन α - 1 एण्टीट्रिप्सिन (α - 1 antitrypsin) जिसका प्रयोग एम्फीसीमा रोग के उपचार में किया जाता है, को कोड करने वाली जीन को जन्तु में प्रविष्ट कराके पारजीनी जन्तु बनाये गये हैं। फिनाइल कीटोन्यूरिया व सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसे रोगों के उपचार हेतु इसी प्रकार के प्रयास किये जा रहे है। सन् 1997 में पहली ट्रांसजैनिक गाय 'रोजी (Rosie)' का निर्माण किया गया। इसका दूध मानव प्रोटीन अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन (alpha lactalbumin) से समृद्ध था। यह मानव शिशुओं के लिए गाय के प्राकृतिक दूध की अपेक्षा अधिक पोषक मान वाला सन्तुलित उत्पाद था। इसमें अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन की मात्रा 2.4gm/L थी। 

आण्विक खेती (Molecular Farming): ट्रांसजैनिक जन्तुओं की मदद से औषधियों व अन्य अणुओं का निर्माण आण्विक खेती (Molecular Farming) कहा जाता है। एल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन (Alpha - 1 Antitrypsin) प्रोटीन एल्फा - 1 एंटीट्रिप्सिन (AAT) का उत्पादन यकृत (liver) में होता है। यह एंजाइम लिवर व फेफड़ों को संक्रमणों से बचाता है। यह श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBCs) से एक एंजाइम मुक्त कर अपना कार्य सम्पन्न करता है। AAT को कोड करने वाली जीन में म्यूटेशन हो जाने से AAT नहीं बनता। फलस्वरूप WBCs से मुक्त होने वाला रक्षात्मक एंजाइम अपना कार्य नहीं कर पाता। वयस्क व्यक्तियों में इसकी कमी से एम्फीसीमा रोग हो जाता है। इसकी कमी से हिपेटाइटिस व लिवर सिरोसिस भी उत्पन्न हो सकती है। ट्रांसजैनिक भेड़ उन रोगियों की मदद कर सकती है जिनमें AAT की कमी से एम्फिसीमा रोग उत्पन्न हो गया है। इन जन्तुओं को इस प्रकार आनुवंशिकतः रूपान्तरित किया गया है जिससे उनके दूध में मनुष्य की प्रोटीन AAT उपस्थित होती है। इस दूध से AAT की आपूर्ति अनेक देशों में अभी प्रारम्भिक दौर में है। 

ट्रांसजैनिक बकरी में TPA (टिश्यू प्लाज्मोजन एक्टीवेटर) को कोड करने वाली जीन को डाला गया है। एल्फा लैक्टेल्ब्यूमिन को LALBA भी कहा जाता है जिसको मनुष्यों में LAL.BA जीन द्वारा कोड किया जाता है। यह लगभग सभी स्तनधारियों के दूध में उपस्थित होता है। ऐसे ट्रांसजैनिक सूअरों का निर्माण किया गया है जिनमें मानव बृद्धि हार्मोन को कोड करने वाली जीन प्रविष्ट करायी गई थी इनकी वृद्धि सामान्य सूअरों से अधिक थी तथा इनमें उपत्वचीय वसा की मात्रा भी कम थी। मानव एंटीजन वाले सुअरों का निर्माण किया गया है जिनके अंगों को मानव में प्रत्यारोपित करने की सम्भावनाओं पर कार्य किया गया है। 

(iv) टीका सुरक्षा (Vaccine Safety) मनुष्य में प्रयोग किये जाने से पहले किसी टीके की सुरक्षा के परीक्षण के लिए पारजीनी चूहों का विकास किया गया है। पारजीनी चूहों का प्रयोग पोलियो वैक्सीन की सुरक्षितता के परीक्षण के लिए किया गया है। अगर यह प्रयोग विश्वसनीय व सफल रहे तो टीका सुरक्षा जाँच के लिए बन्दर के स्थान पर चूहों का प्रयोग किया जा सकेगा।

(v) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण (Chemical Safety Testing) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण को आविषालुता सुरक्षा परीक्षण कहा जाता है। इसकी प्रक्रिया वही है जो औषधियों की आविषालुता (toxicity) के परीक्षण में प्रयोग की जाती है। इस प्रकार के पारजीनी जन्तु बनाये जाते हैं, जिनमें ऐसी जीन होती है जो उन्हें गैर पारजीनी या सामान्य जन्तुओं की अपेक्षा, विषाक्त पदार्थों के लिए अधिक संवेदनशील बनाती हैं। अब इन जन्तुओं को विष पदार्थों के सम्पर्क में लाया जाता है तथा प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के जन्तुओं में आविषालुता परीक्षण करने से परिणाम कम समय में प्राप्त हो जाते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित) 

प्रश्न 1. 
शब्द धूम्यूलिन (Humulin) का प्रयोग किया जाता है-
(a) मानव इंसुलिन के लिए 
(b) असंशोधित प्राक इंसुलिन के लिए 
(c) एंटीबायोटिक के लिए
(d) एंजाइम के लिए। 
उत्तर:
(a) मानव इंसुलिन के लिए

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प्रश्न 2. 
निम्न में से किसका rDNA प्रौद्योगिकी द्वारा सीधे उत्पादन किया जाता है-
(a) पैराफीन वैक्स 
(b) इंटरफेरॉन
(c) ल्यूटीनाइजिंग हामोंन 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(b) इंटरफेरॉन

प्रश्न 3. 
कैंसर उपचार हेतु जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से बनाई गई औषधि 
(a) इंटरफेरान
(b) HGH 
(c) TSH
(d) इंसुलिन। 
उत्तर:
(a) इंटरफेरान

प्रश्न 4. 
इंसुलिन की A व B पृखलाएँ किस बंध से जुड़ी होती है-
(a) फास्फोडाएस्टर बंध
(b) डाइसल्फाइड बंध
(c) हाइड्रोजन बंध 
(d) ग्लाइकोसिडिक बंध। 
उत्तर:
(b) डाइसल्फाइड बंध

प्रश्न 5. 
रिवर्स ट्रॉसक्रिप्टेज द्वारा बनाया गया DNA कहलाता है-
(a) rDNA
(b) cDNA 
(c) dsDNA
(d) zDNA. 
उत्तर:
(b) cDNA 

प्रश्न 6. 
मेलोइडेगाइन इनकोगनिटा है-
(a) एक जीवाणु
(b) एक द्विबीजपत्री पोषक 
(c) एक सूत्रकृमि
(d) पारजीनी कीटा
उत्तर:
(c) एक सूत्रकृमि

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प्रश्न 7. 
Cry II Ab किसके नियंत्रण में काम आती है-
(a) बालवर्म
(b) कान वोरर 
(c) सभी कीट
(d) सभी सूत्र कृमि। 
उत्तर:
(a) बालवर्म

प्रश्न 8. 
गोल्डन राइस किससे समृद्ध है-
(a) क्लोरोफिल से
(b) स्वर्ण भस्म से 
(c) बीटा कैरोटिन से 
(d) उपर्युक्त सभी से। 
उत्तर:
(c) बीटा कैरोटिन से 

प्रश्न 9. 
आर एन ए अन्तरक्षेप में किसका मौनीकरण होता है-
(a) परजीवी के mRNA का 
(b) पोषक के ds RNA का
(c) परजीवी के अनुलेखन का 
(d) ट्रांसपोजोन का। 
उत्तर:
(a) परजीवी के mRNA का 

प्रश्न 10. 
जीन थेरेपी द्वारा उपचार का प्रारम्भ हुआ-
(a) 2006 में
(b) 1990 में 
(c) 1972 में
(d) 1999 में। 
उत्तर:
(b) 1990 में 

प्रश्न 11. 
ADA एंजाइम किस तंत्र को प्रभावित करता है-
(a) प्रतिरक्षी तंत्र
(b) श्वसन तंत्र 
(c) प्रजनन तंत्र
(d) त्वचा। 
उत्तर:
(a) प्रतिरक्षी तंत्र

प्रश्न 12. 
एम्फीसीमा के उपचार में प्रयुक्त होता है-
(a) अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन 
(b) एंटीजन एंटीबाडी जटिल
(c) अल्फा I एंटीट्रिप्सिन 
(d) PKU
उत्तर:
(c) अल्फा I एंटीट्रिप्सिन 

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प्रश्न 13.
किस भारतीय जैव संसाधन को पेटेन्ट कराने के प्रयास बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने किए हैं-
(a) बासमती चावल 
(b) हल्दी 
(c) नीम
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 14. 
एक अनुमान के अनुसार भारत में धान की लगभग कितनी किस्में
(a) 2000
(b) 20000
(c) 200000
(d) 5975
उत्तर:
(c) 200000

प्रश्न 15. 
rDNA तकनीक द्वारा एलि लिली कम्पनी ने इंसुलिन उत्पादन कब प्रारम्भ किया-
(a) 1980 में
(b) 1982 में 
(c) 1986 में
(d) 1996 में। 
उत्तर:
(b) 1982 में 

प्रश्न 16. 
Bt विष किस माध्यम में सक्रिय होता है-
(a) अम्लीय pH पर 
(b) उदासीन pH पर
(c) क्षारीय pH पर 
(d) निम्न ताप पर। 
उत्तर:
(c) क्षारीय pH पर 

प्रश्न 17. 
कीट रोधी पौधा है-
(a) Bt कपास
(b) Bt मक्का 
(c) Bt टमाटर
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 18. 
एंटीजन एंटीबाडी अन्तःक्रिया पर आधारित जाँच विधि है-
(a) PCR
(b) rDNA 
(c) RNA
(d) ELISA
उत्तर:
(d) ELISA

प्रश्न 19. 
वर्तमान समय तक कौन सी Bt फसल भारत में किसानों द्वारा उगाई जा रही है-
(a) मक्का
(b) बैगन 
(c) सोयाबीन
(d) कपास। 
उत्तर:
(d) कपास। 

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प्रश्न 20. 
रोजी (Rosie) नाम किस प्रकार के जंतु को दिया गया 
(a) क्लोन की गई भेड़ को 
(b) हिसारडेल नस्ल की बकरी को
(c) ट्रांसजैनिक गाय को
(d) संकर घोड़ी को। 
उत्तर:
(c) ट्रांसजैनिक गाय को

प्रश्न 21. 
संक्रमण होने पर लक्षण उत्पन्न होने से पहले ही रोगाणु के बारे में जानकारी इस तकनीक से हो सकती है-
(a) MRI
(b) ELISA 
(c) CT स्कैन
(d) एन्डोस्कोपी। 
उत्तर:
(b) ELISA 

प्रश्न 22. 
जेनेटिक प्रोब में पूरक डी एन ए को पहचाना जाता है-
(a) ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा 
(b) विडाल परीक्षण द्वारा
(c) ELISA द्वारा 
(d) इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा। 
उत्तर:
(a) ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा 

प्रश्न 23. 
Bt विष उत्पादित करने वाला जीवाणु किस आकार का होता है
(a) छड़ (rod)
(b) गोल (spherical) 
(c) कौमा (comma) आकार
(d) सूत्रवत (filamentous) 
उत्तर:
(a) छड़ (rod)

प्रश्न 24. 
जी एम पौधे उद्योगों को क्या प्रदान कर सकते हैं-
(a) स्टार्च
(b) ईधन 
(c) औषधि
(d) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी 

NCERT EXEMPLAR PROBLEMS 

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
बीटी कपास नहीं है-
(a) एक GM पौधा 
(b) कीटरोधी 
(c) जीवाणु जीन अभिव्यक्त तंत्र
(d) सभी पीड़कों के लिए प्रतिरोधी 
उत्तर:
(d) सभी पीड़कों के लिए प्रतिरोधी 

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प्रश्न 2. 
मनुष्य की इंसुलिन में c पेप्टाइड है।
(a) परिपक्व इंसुलिन अणु का एक भाग 
(b) डाइसल्फाइड बंध निर्माण हेतु उत्तरदायी 
(c) प्रोइंसुलिन के परिपक्वन से इंसुलिन बनते समय हटा दिया जाता
(d) इसकी जैविक क्रिया के लिए उत्तरदायी। 
उत्तर:
(c) प्रोइंसुलिन के परिपक्वन से इंसुलिन बनते समय हटा दिया जाता

प्रश्न 3. 
GEAC का अर्थ है
(a) जीनोम इंजीनियरिंग एक्शन कमेटी 
(b) ग्राउण्ड एनवायरमेंट एक्शन कमेटी 
(c) जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी
(d) जेनेटिक एंड एनवायरमेंट एप्रूवल कमेटी। 
उत्तर:
(c) जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी

प्रश्न 4.
α - 1 एंटीट्रिप्सिन है-
(a) एक एंटेसिड (पेट की जलननाशी) 
(b) एक को - एंजाइम 
(c) अर्थराइटिस के उपचार में प्रयुक्त होता है 
(d) एम्फीसीमा के उपचार में प्रयुक्त होता है।
उत्तर:
(d) एम्फीसीमा के उपचार में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 5. 
रोगकार्यिकी (pathophysiology) है
(a) रोगजनक की कार्यिकी 
(b) पोषक की सामान्य कार्यिकी का अध्ययन 
(c) पोषक को परिवर्तित कार्यिकी का अध्ययन
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(c) पोषक को परिवर्तित कार्यिकी का अध्ययन

प्रश्न 6. 
आर एन ए अन्तरक्षेप में जीनों का मौनीकरण किसके प्रयोग से होता है
(a) ss DNA
(b) ds DNA 
(c) ds RNA
(d) ss RNA 
उत्तर:
(c) ds RNA

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प्रश्न 7. 
पहली जीन चिकित्सा किस रोग के उपचार में की गई
(a) एड्स 
(b) कैंसर 
(c) सिस्टिक फाइब्रोसिस
(d)ADA की कमी से होने वाला SCID 
उत्तर:
(d)ADA की कमी से होने वाला SCID 

प्रश्न 8. 
ADA का पूरा नाम है (जिसकी SCID रोगियों में न्यूनता होती है-
(a) एडीनोसीन डिएमीनेज 
(b) एडीनोसीन डिआक्सी एमीनेज 
(c) एस्पाटेंट डिएमीनेज 
(d) आजीनीन डिएमीनेज
उत्तर:
(a) एडीनोसीन डिएमीनेज 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
जी एम ओ शब्द का विस्तार कीजिए। यह एक संकर से किस प्रकार से भिन्न है? 
उत्तर:
जी एम ओ = जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म (Genetically Modified organism)। यह संकर (hybrid) से भिन्न है क्योंकि संकर निर्माण में दो जनकों के पूरे जीनोम का क्रास होता है। जबकि जी एम ओ में एक या कुछ वांछित विजातीय जीन किसी अन्य जीव में प्रविष्ट करा दी जाती है। 

प्रश्न 2. 
कई प्रोटीन असक्रिय रूप में सावित की जाती है। यह अनेक सूक्ष्म जीवों द्वारा उत्पन्न विषों के लिए भी सही है। बताइये कि यह विष उत्पन्न करने वाले जीव के लिए किस प्रकार लाभकारी है? 
उत्तर:
अनेक प्रोटीन व विष असक्रिय रूप में सावित किए जाते हैं। यह विशिष्ट पर्यावरण जैसे उपयुक्त pH, ताप आदि की उपस्थिति में ही सक्रिय होते हैं। इनका असक्रिय रूप में स्रावित होना जीव के लिए लाभकारी है क्योंकि इससे जीव स्वयं प्रभावित नहीं होता अर्थात उसकी मृत्यु नहीं होती। 

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प्रश्न 3. 
पहली ट्रांसजैनिक गाय का नाम बताइये। इसमें किससे सम्बन्धित जीन प्रविष्ट कराई गई थी।
उत्तर:
रोजी (Rosie) पहली ट्रांसजैनिक गाय थी। इसमें मनुष्य की अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन, प्रोटीन को कोड करने वाली जीन प्रविष्ट कराई गई थी। इसके दूध में यह प्रोटीन उपलब्ध थी। 

प्रश्न 4. 
चावल की किस किस्म के लिए यू एस ए की कम्पनी ने पेटेंट अर्जी दाखिल की थी? 
उत्तर:
भारत की बासमती चावल की किस्म को एक अर्द्धवामन किस्म से संकरित कराकर एक नई किस्म प्राप्त की गई जिसके लिए बासमती चावल के नाम से पेटेंट अर्जी दाखिल की गई थी। 

प्रश्न 5. 
क्या रोग के लक्षण उत्पन्न होने से पहले रोग की जाँच की जा सकती है। इसमें कौन सा सिद्धान्त शामिल है? 
उत्तर:
जी हाँ, संक्रामक रोगों के लक्षण उत्पन्न होने से पहले उसकी जांच सम्भव है। यह इस सिद्धान्त पर आधारित है कि रोगजनक के एंटीजन तथा उनके खिलाफ शरीर द्वारा बनाये गये एंटीबाडीज शरीर में उपस्थित होते हैं। एलाइजा द्वारा इसकी जांच की जा सकती है। आण्विक निदान की अन्य विधियाँ, जैसे- जेनेटिक खोजी (genetic probe) तथा PCR द्वारा भी जाँच सम्भव है। 

प्रश्न 6. 
ELISA का पूरा नाम लिखिए। इसके द्वारा किस रोग की पहचान की जा सकती है। 
उत्तर:
ELISA: एंजाइम लिंक्ड इम्यूनो सारबेट एसे (Enzyme Linked Immuno Sorbant Assay), एंटीजन एंटीबॉडी अन्त: क्रिया पर आधारित इस जाँच विधि का प्रयोग एड्स जैसे रोगों की जाँच में किया जाता है। 

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
जीन अभिव्यक्ति को आर एन ए की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। इस विधि को एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करें। 
उत्तर:
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) 
खाद्य उत्पादन में वृद्धि सम्बन्धी मौलिक जानकारी आप अध्याय 9 में प्राप्त कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न तीन वैकल्पिक नीतियाँ प्रमुख रूप से अपनाई जाती हैं-
(a) कृषि रसायनों (agrochemicals) पर आधारित कृषि 
(b) जैविक खेती (organic farming) 
(c) आनुवंशिक अभियान्त्रित फसलों (genetically engineered crops) पर आधारित कृषि। 
आप यह पढ़ चुके है कि भारत में हुई हारित क्रान्ति से खाद्य उत्पादन तीन गुना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हरित क्रान्ति जैसी सफलता भी बौनी पड़ती जा रही है। हरित क्रान्ति के कारण हुई उत्पादन में वृद्धि के अनेक कारण थे। यह नि:सन्देह, आंशिक रूप से, उन्नत किस्मों की फसलों के प्रयोग से ही सम्पन्न हुई। लेकिन इसके अन्य बड़े कारण खेती की बेहतर प्रबन्धन व्यवस्था व कृषि रसायनों (उर्वरक व पीड़कनाशी) का व्यापक उपयोग थे। भारत जैसे विकासशील देश के अधिकांश किसान इन महंगे कृषि रसायनों का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं, अर्थात एप्रोकैमिकल्स बहुत महंगे है। दूसरे फसलों की उपलब्ध किस्मों के आधार पर पारम्परिक प्रजनन तकनीकों से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में आशाएँ हैं। इसके उपयोग द्वारा वर्तमान स्तर के खेतों से ही अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ऐसे पौधे तैयार किये जा सकते हैं जिनकी इन कृषि रसायनों पर निर्भरता न हो या नगण्य हो ताकि इन कृषि रसायनों द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। आनुवंशिक रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (Genetically Modified Organisms) इसका विकल्प हो सकते हैं। उन्हीं के द्वारा एक नयी वहनीय (Sustainable) पर्यावरण मित्र (ecofriendly) हरित क्रान्ति की आशा की जा रही है। 

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प्रश्न 2. 
ऐसे चार क्षेत्र बताइये जहाँ पौधों को आनुवंशिकतः रूपान्तरित करना लाभकारी रहा है। 
उत्तर:
आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (Genetically Modified Organisms)
जीवधारी (पादप, जीवाणु, कवक व जन्तु आदि) जिनके जीनों (genes) को फेरबदल करके परिवर्तित कर दिया गया है, आनुवंशिकतः रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड (genetically modified) जीव कहलाते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रित जीव (GMO) स्वयं उनकी ही जीन की एक या कुछ अतिरिक्त प्रतियों को प्रविष्ट अथवा मौन करके या आनुवंशिक ढांचे में उलट फेर कर बनाये जा सकते हैं या इनके आनुवंशिक ढाँचे में किसी विजातीय/बाह्य (alien) जीन को समाविष्ट करा दिया जाता है। इस अवस्था में इन्हें पारजीनी जीव (Transgenic Organism) कहा जाता है। पारजीनी जीवों के लिए बोलचाल की भाषा में जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म ही कहा जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों का निर्माण ट्रांसजेनिक जन्तुओं के निर्माण से सरल है। अनेक पौधों में एक अकेली कोशिका पूरे पौधे का निर्माण कर सकती है। कोशिका में ट्रांसजीन को एग्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया या अन्य अनेक विधियों द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। इस आनुवंशिक रूपान्तरित कोशिका से ऊतक सम्वर्धन द्वारा पूरा पौधा तैयार किया जा सकता है।

जेनेटिकली मॉडीफाइड (आनुवंशिकतः रूपान्तरित) पौधे अनेक प्रकार से लाभकारी हैं, जैसे-

  1. पौधों में प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों अर्थात अजैविक दबावों (abiotic stresses) जैसे अत्यधिक कम ताप, सूखा (drought), जल भराव (water logging), लवण सान्द्रता व ताप आदि को सहन करने की क्षमता (tolerance) का विकास। 
  2. रासायनिक पीड़कनाशियों (Chemical pesticides) पर निर्भरता कम करना अर्थात पीड़करोधी (Pest resistant) किस्मों का विकास। 
  3. कटाई के पश्चात होने वाली (Post harvest) हानियों को कम करना। (जैसे- फसलों का तेजी से पककर नष्ट हो जाना, दानों का टूट जाना आदि।) 
  4. पौधों की भूमि से खनिज लवण अवशोषित करने की दक्षता में वृद्धि। 
  5. खाद्य पदार्थों के पोषण मान (nutritional value) में वृद्धि जैसे "विटामिन A से समृद्ध चावल, ऐसी फसलों का विकास जिनकी पचनीयता (digestibility) अधिक हो, विशिष्ट खनिज, अमीनों अम्ल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। 


इसके अतिरिक्त ऐसी फसलें जिनमें वृद्धि तीव्र हो या वांछित कृषीय गुण (agronomic traits) हों तथा पैदावार अधिक हो। जैव प्रौद्योगिकी के कृषि में उपयोगों की इस लम्बी सूची में से यहाँ उदाहरण के लिए, पौड़क रोधी पौधे (Pest resistant plants) विकसित करने का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है। इससे फसल उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ संश्लेषित कृषि रसायनों पर हमारी निर्भरता कम होगी। बीटी विष (Bt toxin) जीवाणु बेसीलस थूरिन्जिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा बनाया जाता है। इसी जीवाणु के संक्षेपाक्षर से बीटी (Bt) नाम बना है। पुनर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा इस विष को कोड करने वाली जीन को जीवाणु से प्राप्त कर इन्हें फसली पौधों के जीनोम में प्रविष्ट कराया गया है। पौधों में इस जीन की अभिव्यक्ति से उन्हें पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) प्राप्त हुई है जिससे रासायनिक कीटनाशियों पर निर्भरता समाप्त हुई है। सही शब्दों में, यह जैव पीड़कनाशी (biopesticide) का निर्माण है। इस प्रकार बीटी कपास, बीटी मक्का, बीटी धान, बीटी, टमाटर बीटी आलू व बीटी सोयाबीन जैसी फसलें तैयार की गई हैं।

प्रश्न 3. 
अपने पारम्परिक ज्ञान की अवहेलना जैव पेटेन्ट के क्षेत्र में हमें काफी महंगी साबित हो सकती है। स्पष्ट करें। 
उत्तर:
भारत जैसे विकासशील देश जैव संसाधनों व पारम्परिक ज्ञान में समृद्ध हैं। हमें जागरूक रहकर इस ज्ञान, संसाधन को प्रौद्योगिकी का रूप देने की आवश्यकता है। ऐसा न करने पर अन्य देश, बहुराष्ट्रीय कम्पनी, हल्दी, तुलसी, नीम व अन्य हजारों ऐसे संसाधनों का पेटेंट प्राप्त कर हमें इन उत्पादों को ऊंचे मूल्य पर बेचेंगी। पेटेंट के अभाव में हम इनका उत्पादन करने में असमर्थ होंगे। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
ट्रांसजैनिक जंतुओं को परिभाषित कीजिए। उन चार क्षेत्रों का विस्तृत वर्णन कीजिए जिनमें इनका प्रयोग किया जा सकता है। 
उत्तर:
पारजीनी जन्तु (Transgenic Animals) 
ऐसे जन्तु जिनके आनुवंशिक पदार्थ में फेरबदल करके कोई अभिव्यक्त होने वाला विजातीय/बाह्य जीन प्रविष्ट करा दिया गया हो पारजीनी जन्तु या ट्रांसजेनिक एनीमल (uansgenic animals) कहलाते हैं। अनेक प्रकार के ट्रांसजेनिक जन्तुओं का निर्माण किया गया है जिनमें चूहे, खरगोश, सूअर, भेड़, गाय व मछली प्रमुख है, लेकिन सभी पारजीनी जन्तुओं में लगभग 95 प्रतिशत संख्या चूहों की है। पहले पारजीनी जन्तु चूहे थे। इन चूहों को विजातीय वृद्धि हार्मोन जीन को प्रविष्ट कर बनाया गया। इन चूहों का आकार सामान्य चूहों के आकार से दो गुना था। मानव वृद्धि हार्मोन को प्रविष्ट कराकर ट्रांसजेनिक मछली का निर्माण किया गया है जो आकार में सामान्य मछलियों से काफी बड़ी व भारी है। 

पारजीनी जन्तुओं के निर्माण के निम्न लाभ हैं-
(i) सामान्य कार्यिकी व विकास (Normal physiology and development)
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग 5
ट्रांसजेनिक जन्तुओं का निर्माण विशेष रूप से इस प्रकार किया जा सकता है जिससे यह जाना जा सके कि जीनों का नियमन (regulation) किस प्रकार होता है? तथा कैसे वह शरीर की सामान्य क्रियाओं व विकास को प्रभावित करते हैं? उदाहरण के लिए: इन जन्तुओं के निर्माण से वृद्धि में भागीदार जटिल कारकों, जैसे-इंसुलिन लाइक प्रोथ फैक्टर (Insulin like growth factor) का अध्ययन किया जाता है। इस कार्य हेतु अन्य प्रजातियों के जीनों का ट्रांसजीन (transgene) के रूप में प्रयोग किया जाता है जो इस वृद्धिकारक (growth factor) के निर्माण में बाधक होते हैं। अब इस वृद्धि कारक की अनुपस्थिति में जो जैविक प्रभाव होते हैं उनका अध्ययन किया जाता है। इससे वृद्धिकारक की स्पष्ट जैविक भूमिका का सही - सही पता लग जाता है।

(ii) रोगों का अध्ययन (Study of diseases) अनेक पारजीनी जन्तुओं को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है जिससे यह पता लग सके कि जीनों (genes) की रोग के विकास में क्या भूमिका है। यह इस प्रकार से तैयार किये जाते हैं जिससे वह मानव रोगों के अध्ययन के लिए एक नमूने या मॉडल के रूप में कार्य करें जिससे रोगों के नये उपचारों की सम्भावनाओं का अध्ययन किया जा सके। आज मनुष्य के अनेक रोगों जैसे-कैसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, रयूमेटॉइड अर्थराइटिस व एल्जिमर रोग (Alzheimer's disease) के लिए पारजीनी नमूने उपलब्ध है।

(iii) जैविक उत्पाद (Biological Products) रोगों के उपचार में प्रयोग होने वाली कुछ औषधियों में जैविक उत्पाद होते हैं लेकिन इन उत्पादों का निर्माण प्रायः काफी महंगा होता है। ऐसे जैविक उत्पादों का निर्माण पारजीनी जन्तुओं की मदद से किया गया है। इस प्रक्रिया में वांछित जैविक उत्पाद को कोड करने वाली जीन को किसी जन्तु में प्रविष्ट करा दिया जाता है। मानव प्रोटीन α - 1 एण्टीट्रिप्सिन (α - 1 antitrypsin) जिसका प्रयोग एम्फीसीमा रोग के उपचार में किया जाता है, को कोड करने वाली जीन को जन्तु में प्रविष्ट कराके पारजीनी जन्तु बनाये गये हैं। फिनाइल कीटोन्यूरिया व सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसे रोगों के उपचार हेतु इसी प्रकार के प्रयास किये जा रहे है। सन् 1997 में पहली ट्रांसजैनिक गाय 'रोजी (Rosie)' का निर्माण किया गया। इसका दूध मानव प्रोटीन अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन (alpha lactalbumin) से समृद्ध था। यह मानव शिशुओं के लिए गाय के प्राकृतिक दूध की अपेक्षा अधिक पोषक मान वाला सन्तुलित उत्पाद था। इसमें अल्फा लैक्टैल्ब्यूमिन की मात्रा 2.4gm/L थी। 

आण्विक खेती (Molecular Farming): ट्रांसजैनिक जन्तुओं की मदद से औषधियों व अन्य अणुओं का निर्माण आण्विक खेती (Molecular Farming) कहा जाता है। एल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन (Alpha - 1 Antitrypsin) प्रोटीन एल्फा - 1 एंटीट्रिप्सिन (AAT) का उत्पादन यकृत (liver) में होता है। यह एंजाइम लिवर व फेफड़ों को संक्रमणों से बचाता है। यह श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBCs) से एक एंजाइम मुक्त कर अपना कार्य सम्पन्न करता है। AAT को कोड करने वाली जीन में म्यूटेशन हो जाने से AAT नहीं बनता। फलस्वरूप WBCs से मुक्त होने वाला रक्षात्मक एंजाइम अपना कार्य नहीं कर पाता। वयस्क व्यक्तियों में इसकी कमी से एम्फीसीमा रोग हो जाता है। इसकी कमी से हिपेटाइटिस व लिवर सिरोसिस भी उत्पन्न हो सकती है। ट्रांसजैनिक भेड़ उन रोगियों की मदद कर सकती है जिनमें AAT की कमी से एम्फिसीमा रोग उत्पन्न हो गया है। इन जन्तुओं को इस प्रकार आनुवंशिकतः रूपान्तरित किया गया है जिससे उनके दूध में मनुष्य की प्रोटीन AAT उपस्थित होती है। इस दूध से AAT की आपूर्ति अनेक देशों में अभी प्रारम्भिक दौर में है। 

ट्रांसजैनिक बकरी में TPA (टिश्यू प्लाज्मोजन एक्टीवेटर) को कोड करने वाली जीन को डाला गया है। एल्फा लैक्टेल्ब्यूमिन को LALBA भी कहा जाता है जिसको मनुष्यों में LAL.BA जीन द्वारा कोड किया जाता है। यह लगभग सभी स्तनधारियों के दूध में उपस्थित होता है। ऐसे ट्रांसजैनिक सूअरों का निर्माण किया गया है जिनमें मानव बृद्धि हार्मोन को कोड करने वाली जीन प्रविष्ट करायी गई थी इनकी वृद्धि सामान्य सूअरों से अधिक थी तथा इनमें उपत्वचीय वसा की मात्रा भी कम थी। मानव एंटीजन वाले सुअरों का निर्माण किया गया है जिनके अंगों को मानव में प्रत्यारोपित करने की सम्भावनाओं पर कार्य किया गया है। 

(iv) टीका सुरक्षा (Vaccine Safety) मनुष्य में प्रयोग किये जाने से पहले किसी टीके की सुरक्षा के परीक्षण के लिए पारजीनी चूहों का विकास किया गया है। पारजीनी चूहों का प्रयोग पोलियो वैक्सीन की सुरक्षितता के परीक्षण के लिए किया गया है। अगर यह प्रयोग विश्वसनीय व सफल रहे तो टीका सुरक्षा जाँच के लिए बन्दर के स्थान पर चूहों का प्रयोग किया जा सकेगा।

(v) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण (Chemical Safety Testing) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण को आविषालुता सुरक्षा परीक्षण कहा जाता है। इसकी प्रक्रिया वही है जो औषधियों की आविषालुता (toxicity) के परीक्षण में प्रयोग की जाती है। इस प्रकार के पारजीनी जन्तु बनाये जाते हैं, जिनमें ऐसी जीन होती है जो उन्हें गैर पारजीनी या सामान्य जन्तुओं की अपेक्षा, विषाक्त पदार्थों के लिए अधिक संवेदनशील बनाती हैं। अब इन जन्तुओं को विष पदार्थों के सम्पर्क में लाया जाता है तथा प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के जन्तुओं में आविषालुता परीक्षण करने से परिणाम कम समय में प्राप्त हो जाते हैं।

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प्रश्न 2. 
आनुवंशिकता रूपान्तरित पौधों को प्रयोग करने के क्या लाभ हैं जिनसे सकल उत्पादन में वृद्धि होती है। 
उत्तर:
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग (Biotechnological Applications in Agriculture) 
खाद्य उत्पादन में वृद्धि सम्बन्धी मौलिक जानकारी आप अध्याय 9 में प्राप्त कर चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि खाद्य उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्न तीन वैकल्पिक नीतियाँ प्रमुख रूप से अपनाई जाती हैं-

  • कृषि रसायनों (agrochemicals) पर आधारित कृषि 
  • जैविक खेती (organic farming) 
  • आनुवंशिक अभियान्त्रित फसलों (genetically engineered crops) पर आधारित कृषि। 

आप यह पढ़ चुके है कि भारत में हुई हारित क्रान्ति से खाद्य उत्पादन तीन गुना हो गया। लेकिन यह भी सच है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हरित क्रान्ति जैसी सफलता भी बौनी पड़ती जा रही है। हरित क्रान्ति के कारण हुई उत्पादन में वृद्धि के अनेक कारण थे। यह नि:सन्देह, आंशिक रूप से, उन्नत किस्मों की फसलों के प्रयोग से ही सम्पन्न हुई। लेकिन इसके अन्य बड़े कारण खेती की बेहतर प्रबन्धन व्यवस्था व कृषि रसायनों (उर्वरक व पीड़कनाशी) का व्यापक उपयोग थे। भारत जैसे विकासशील देश के अधिकांश किसान इन महंगे कृषि रसायनों का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं, अर्थात एप्रोकैमिकल्स बहुत महंगे है। दूसरे फसलों की उपलब्ध किस्मों के आधार पर पारम्परिक प्रजनन तकनीकों से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में आशाएँ हैं। इसके उपयोग द्वारा वर्तमान स्तर के खेतों से ही अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ऐसे पौधे तैयार किये जा सकते हैं जिनकी इन कृषि रसायनों पर निर्भरता न हो या नगण्य हो ताकि इन कृषि रसायनों द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। आनुवंशिक रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (Genetically Modified Organisms) इसका विकल्प हो सकते हैं। उन्हीं के द्वारा एक नयी वहनीय (Sustainable) पर्यावरण मित्र (ecofriendly) हरित क्रान्ति की आशा की जा रही है। 

आनुवंशिकतः रूपान्तरित जीव (Genetically Modified Organisms) 
जीवधारी (पादप, जीवाणु, कवक व जन्तु आदि) जिनके जीनों (genes) को फेरबदल करके परिवर्तित कर दिया गया है, आनुवंशिकतः रूपान्तरित या जेनेटिकली मॉडीफाइड (genetically modified) जीव कहलाते हैं। आनुवंशिक अभियान्त्रित जीव (GMO) स्वयं उनकी ही जीन की एक या कुछ अतिरिक्त प्रतियों को प्रविष्ट अथवा मौन करके या आनुवंशिक ढांचे में उलट फेर कर बनाये जा सकते हैं या इनके आनुवंशिक ढाँचे में किसी विजातीय/बाह्य (alien) जीन को समाविष्ट करा दिया जाता है। इस अवस्था में इन्हें पारजीनी जीव (Transgenic Organism) कहा जाता है। पारजीनी जीवों के लिए बोलचाल की भाषा में जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म ही कहा जाता है। ट्रांसजेनिक पौधों का निर्माण ट्रांसजेनिक जन्तुओं के निर्माण से सरल है। अनेक पौधों में एक अकेली कोशिका पूरे पौधे का निर्माण कर सकती है। कोशिका में ट्रांसजीन को एग्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया या अन्य अनेक विधियों द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। इस आनुवंशिक रूपान्तरित कोशिका से ऊतक सम्वर्धन द्वारा पूरा पौधा तैयार किया जा सकता है। 

जेनेटिकली मॉडीफाइड (आनुवंशिकतः रूपान्तरित) पौधे अनेक प्रकार से लाभकारी हैं, जैसे-

  1. पौधों में प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों अर्थात अजैविक दबावों (abiotic stresses) जैसे अत्यधिक कम ताप, सूखा (drought), जल भराव (water logging), लवण सान्द्रता व ताप आदि को सहन करने की क्षमता (tolerance) का विकास। 
  2. रासायनिक पीड़कनाशियों (Chemical pesticides) पर निर्भरता कम करना अर्थात पीड़करोधी (Pest resistant) किस्मों का विकास। 
  3. कटाई के पश्चात होने वाली (Post harvest) हानियों को कम करना। (जैसे- फसलों का तेजी से पककर नष्ट हो जाना, दानों का टूट जाना आदि।) 
  4. पौधों की भूमि से खनिज लवण अवशोषित करने की दक्षता में वृद्धि। 
  5. खाद्य पदार्थों के पोषण मान (nutritional value) में वृद्धि जैसे "विटामिन A से समृद्ध चावल, ऐसी फसलों का विकास जिनकी पचनीयता (digestibility) अधिक हो, विशिष्ट खनिज, अमीनों अम्ल आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। 

इसके अतिरिक्त ऐसी फसलें जिनमें वृद्धि तीव्र हो या वांछित कृषीय गुण (agronomic traits) हों तथा पैदावार अधिक हो। जैव प्रौद्योगिकी के कृषि में उपयोगों की इस लम्बी सूची में से यहाँ उदाहरण के लिए, पौड़क रोधी पौधे (Pest resistant plants).विकसित करने का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है। इससे फसल उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ संश्लेषित कृषि रसायनों पर हमारी निर्भरता कम होगी। बीटी विष (Bt toxin) जीवाणु बेसीलस थूरिन्जिएंसिस (Bacillus thuringiensis) द्वारा बनाया जाता है। इसी जीवाणु के संक्षेपाक्षर से बीटी (Bt) नाम बना है। पुनर्योगज डी एन ए तकनीक द्वारा इस विष को कोड करने वाली जीन को जीवाणु से प्राप्त कर इन्हें फसली पौधों के जीनोम में प्रविष्ट कराया गया है। पौधों में इस जीन की अभिव्यक्ति से उन्हें पीड़क प्रतिरोधकता (Pest resistance) प्राप्त हुई है जिससे रासायनिक कीटनाशियों पर निर्भरता समाप्त हुई है। सही शब्दों में, यह जैव पीड़कनाशी (biopesticide) का निर्माण है। । इस प्रकार बीटी कपास, बीटी मक्का, बीटी धान, बीटी, टमाटर बीटी आलू व बीटी सोयाबीन जैसी फसलें तैयार की गई हैं।

Bhagya
Last Updated on Dec. 4, 2023, 10:14 a.m.
Published Dec. 3, 2023