RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Chapter 11 Important Questions जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम


अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
दो एण्डोन्यूक्लिएज के नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) Eco RI
(b) Hin dII

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प्रश्न 2. 
प्लामिह pBR 322 में पाये जाने वाले दो प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन के नाम लिखिए।
उत्तर:
(a) ampR
(b) tetR

प्रश्न 3. 
क्षारक युग्मों के ऐसे अनुक्रम को क्या कहते हैं जिसे पढ़ने के अभिविन्यास को समान रखने पर डी एन ए की दोनों लड़ियों को एक जैसा पढ़ा जाता है।
उत्तर:
पैलिन्ड्रोम (Palindrome)
5' GAATTC 3'
3' CTTAAG 5'

प्रश्न 4. 
उस तकनीक का नाम लिखिए जिसके द्वारा डीएनए खण्डों को अलग कर सकते हैं।
उत्तर:
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस (Gel electrophoresis)

प्रश्न 5. 
जीवाणु कोशिका में मिलने वाले वर्तुल डी एन ए का प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर:
जीवाणु को एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता प्रदान करने वाले इस बाहा गुणसूत्रीय डी एन ए को क्लोनिंग वाहक (Cloning Vector) के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

प्रश्न 6. 
उस पोषी कोशिका का प्रकार लिखिए जो विजातीय ही एन ए को जीनगन विधि द्वारा प्रविष्ट कराने हेतु उपयुक्त होती है।
उत्तर:
पादप कोशिका (Plant cell)। 

प्रश्न 7. 
विजातीय या बाह्य ही एन ए के लिए क्रोमोसोम के किसी भी भाग पर जुड़ना व सामान्य सप से प्रतिकृतिकरण करना संभव क्यों नहीं होता है?
उत्तर:
बाह्य डी एन ए (Alien DNA) को क्रोमोसोम/प्लाज्मिड के प्रतिकृतिकरण के उद्गम (Origin of replication) या (ori) के साथ जोड़ने पर ही इसका प्रतिकृतिकरण (replication) होता है। ori वह स्थान है जहाँ प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है। इसमें उचित क्लोनिंग स्थल होना भी आवश्यक है। 

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प्रश्न 8. 
पुनर्योगज ही एन ए तकनीक में जीवाणु कोशिका व कवक कोशिकाओं से डी एन ए प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त एंजाइम के नाम लिखिष्ट।
उत्तर:
जीवाणु कोशिका से डी एन ए प्राप्त करने के लिए लाइसोजाइम (lysozyme), कवक कोशिका से डी एन ए प्राप्त करने के लिए काइटिनेज (Chitinase)।

प्रश्न 9. 
शब्द विस्तार कीजिए EFB तथा PCR. 
उत्तर:
EFB: यूरोपियन फैडरेशन आफ बायोटैक्नोलॉजी (European Federation of Biotechnology)
PCR: पॉलिमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction)

प्रश्न 10. 
जीवाणु ई. कोलाई में एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता जीन स्थानान्तरण के लिए इसे पहली बार किस प्राकृत जीवाणु से प्राप्त किया गया? 
उत्तर:
साल्मोनेला टाइफीम्युरियम (Salmonella typhimurium) से। 

प्रश्न 11. 
प्रथम पुनर्योगज डी एन ए अणु बनाने वाले वैज्ञानिकों का नाम लिखिए। 
उत्तर:
स्टेनले कोहेन व हरबर्ट बोयर (Stanley Cohen and H. Boyer)। 

प्रश्न 12. 
जैव प्रौद्योगिकी में आण्विक कैंची शब्द किसके लिए प्रयोग किया जाता है? 
उत्तर:
प्रतिबन्ध एन्जाइम (restriction endonuclease enzymes) के लिए। 

प्रश्न 13. 
रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से बनने वाले ही एन ए के चिपचिपे (अनुलग्नी) सिरे किस रूप में लाभकारी हैं? 
उत्तर:
डी एन ए के सिरों का चिपचिपापन (Stichiness) एंजाइम डी एन ए लाइगेज की क्रिया में मदद करता है। 

प्रश्न 14. 
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में पराबैंगनी प्रकाश में दिखाई देने के लिए ही एन ए को किस पदार्थ से अभिरंजित (Stain) किया जाता है? 
उत्तर:
इथिडियम ब्रोमाइड (ethidium bromide) से। 

प्रश्न 15. 
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में सामान्यतः किस जैल का प्रयोग किया जाता है? इसे कहाँ से प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
एगारोज (agarose) जैल, इसके बनाने में प्रयुक्त होने वाला पदार्थ अगर समुद्री घासों (Sea weeds) जैसे लाल शैवाल से प्राप्त किया जाता है। 

प्रश्न 16. 
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में डी एन ए की पृथक्कित पट्टियों को काटकर निकालना व उससे डी एन ए प्राप्त करना क्या कहलाता है।
उत्तर:
क्षालन (Eleution)। 

प्रश्न 17. 
किसी एक वरणयोग्य चिहक का उदाहरण दीजिष्ट। 
उत्तर:
एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता जीन ampR तथा tetR आदि। 

प्रश्न 18. 
क्लोनिंग बाहक PBR 322 के किस स्थान पर एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता जीन tetR उपस्थित होती है? 
उत्तर:
Bam H1 स्थल पर। 

प्रश्न 19. 
PBR 322 में rop का क्या काम हैं। 
उत्तर:
रोप (rop) इस प्रकार की प्रोटीन को कोड करता है जो प्लामिड के प्रतिकृतिकरण में मदद करता है। 

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प्रश्न 20. 
मिट्टी में पाये जाने वाले एक ऐसे जीवाणु का नाम लिखिए जो प्राकृतिक जेनेटिक इंजीनियर की तरह कार्य कर वांछित जीन को पोषक कोशिका में प्रविष्ट करा देता है। 
उत्तर:
एप्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस (Agrobacterium tumifaciens)। 

प्रश्न 21. 
एग्रोबैक्टीरियम के किस प्लाजिमड में फेर - बदल - कर इसका प्रयोग जीन ट्रांसफर में किया जाता है? 
उत्तर:
Ti प्लाज्मिड का। 

प्रश्न 22. 
पोषी जीवाणु कोशिका को बाह्य डी एन ए ग्रहण करने में सक्षम बनाने हेतु किस ताप पर क्षणिक ताप आघात या हीट शॉक दिया जाता है। 
उत्तर:
42°C पर। 

प्रश्न 23. 
जीन गन में उच्च वेग के कणों हेतु किन धातुओं का प्रयोग किया जाता है? 
उत्तर:
स्वर्ण व टंग्सटन का। 

प्रश्न 24. 
दीर्घ अणुओं को डी एन ए से अलग करने के बाद डी एन ए का अवक्षेपण कैसे किया जाता है? 
उत्तर:
मिश्रण में अति ठण्डा (Chilled) इथेनॉल डालने पर डी एन ए अवक्षेपित हो जाता है। 

प्रश्न 25. 
पी सी आर में किस विशेष प्रकार का डी एन ए पॉलीमरेज प्रयोग किया जाता है? 
उत्तर:
Taq डी एन ए पॉलीमरेज जो ताप स्थायी (Thermostable) होता है।

प्रश्न 26. 
पी सी आर में प्रयोग किये जाने वाले डी एन ए पॉलीमरेज का स्रोत क्या है? 
उत्तर:
इस Taq पॉलीमरेज को जीवाणु थर्मस एक्वेटिकस (Thermus aquaticus) से प्राप्त किया जाता है। 

प्रश्न 27. 
पुनर्योगज प्रोटीन को परिभाषित कीजिए। 
उत्तर:
अगर किसी प्रोटीन को कोड करने वाली जीन किसी विषमजात (heterogenous) पोषक में अभिव्यक्त होती है तब इसे पुनर्योगज प्रोटीन कहते हैं। अर्थात पुनर्योगज डी एन ए की अभिव्यक्ति से बनी जीन पुनर्योगज प्रोटीन होगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
सभी क्लोनिंग संवाहकों में वरण योग्य चिन्हक होते हैं। पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी में इनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वरण योग्य चिन्हक (Selectable marker) 
किसी वाहक में 'ori' के अतिरिक्त एक वरण या चयन योग्य चिन्तक (selectable marker) की भी आवश्यकता होती है। चिन्हक (marker) की तरह पहचान बताने वाले यह स्थल अरूपान्तरित (non transformants) जीवाणु की पहचान करने व उन्हें समाप्त करने में मदद करते हैं तथा चयनित रूप से रूपान्तरित कोशिकाओं की वृद्धि में सहायक होते हैं।

रूपान्तरण (Transformation) वह प्रक्रिया है जिसमें डी एन ए का एक खण्ड जीवाणु कोशिका में प्रविष्ट कराया जाता है। जिन्होंने इस खण्ड को ग्रहण कर लिया वह जीवाणु रूपान्तरित (transformants) तथा ऐसा कर , पाने में अक्षम अरूपान्तरित (non transformants) कहलाते हैं।

एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coti) जीवाणु में एंटीबायोटिक्स, जैसे 'एम्पीसिलिन, क्लोरेम्फेनीकॉल (chloramphenicol), टेट्रासाइक्लिन या कैनामाइसिन के लिए प्रतिरोधकता (resistance) प्रदान करने वाले जीन को महत्त्वपूर्ण वरण योग्य चिन्हक माना जाता है। सामान्यतः ई. कोलाई जीवाणु में इनमें से किसी भी एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता नहीं होती। अत: प्रतिरोधकता ग्रहण करना उनके रूपान्तरण (ransformation) का परिचायक हैं।

प्रश्न 2. 
(a) नीचे दी गई पॉलीमरेज शृंखला अभिक्रिया के चक्र में चरण A तथा B को पहचान कर लिखिए।
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(b) चरण B में उपयोग किए जाने वाले एंजाइम का विशिष्ट अभिलक्षण लिखिए।
उत्तर:
(a) A = तापानुशीलन, B = प्रसार। 
(b) चरण B में Taq पॉलीमरेज एन्जाइम का प्रयोग किया जाता है। यह एन्जाइम तापस्थायी होता है तथा उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है। 

प्रश्न 3. 
जेल विद्युत कण संचलन (जेल-इलेक्ट्रोफोरेसिस) तकनीक की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डी एन ए खण्ड का पृथक्करण व विलगन (Separation and Isolation of DNA Fragments) 
रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा डी एन ए को काटने पर डी एन ए के टुकड़े या खण्ड (fragments) प्राप्त होते हैं। इन खण्डों को जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीक द्वारा अलग कर सकते हैं।

जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) 
डी एन ए खण्ड ऋणावेशित (negatively charged) होते हैं। डी एन ए के खण्ड में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक फास्फेट समूह (phosphate group) होता है। अतः विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए अणुओं में कुल आवेश भिन्न - भिन्न होता है। आवेशों की इन भिन्नताओं का उपयोग विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए खण्डों को एक विद्युत क्षेत्र (electrical field) में रखकर तथा उनको बलपूर्वक धनावेशित इलेक्ट्रोड (positively charged electrode) एनोड की ओर भेजकर अलग करने में किया जाता है। इस कार्य को एक जेल (gel) में सम्पन्न किया जाता है तथा इसीलिए यह तकनीक जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस कहलाती है। बहुत बड़े खण्डों के लिए प्रायः - एगारोज (agarose) का प्रयोग किया जाता है। एगारोज जैल, समुद्री घास (Sea weeds) या सही मायनों में कुछ लाल शैवालों (red algae) से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक बहुलक (natural polymer) अगर - अगर (agar agar) से प्राप्त होता है। छोटे खण्डों के लिए पॉलीएक्रिलेमाइड (polyacrylamide) जेल का प्रयोग होता है। 

अत: डी एन ए खण्डों का पृथक्करण (separation) दो सिद्धान्तों पर आधारित होता है। 

  • अलग किये जा रहे आवेशित अणुओं (ऋणावेशित DNA खण्ड) की वैद्युत संचलनी चलन क्षमता (electrophoretic mobilities) 
  • जेल (एगारोज) का चलनी प्रभाव (sieving effect)।

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डी एन ए खण्डों का अलग होना उनके आकार पर निर्भर करता है। छोटे - छोटे खण्ड दूर तक व एनोड की ओर पहले जाते हैं। (एनोड के धनावेश से यह तेजी से उसकी ओर खिंच सकते हैं तथा चलनी माध्यम से इनका रोध नहीं होता) चित्र में कूपों (wells) की ओर प्रदर्श लिए जाते हैं अर्थात डी एन ए के खण्ड जिन्हें अलग - अलग करना हो कप की तरफ लिए जाते है तथा यह दूसरी अर्थात विपरीत दिशा में गति करते हैं। उपरोक्त चित्र में पहले नम्बर के रूप में बिना उपचारित, अर्थात ऐसा डी एन ए लिया है जिसको रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से काटा नहीं गया है। स्पष्ट है यह चहुत बड़ा अणु है अतः जेल में इसका चलना मुश्किल है। अन्य कूपों में डी एन ए के उपचारित (digested or treated) प्रदर्श लिए गये हैं। इनके छोटे - छोटे खण्ड चलनी प्रभाव तथा वैद्यत संचलनी गति (electrophoretic mobility) के कारण आसानी से आगे बढ़ जाते हैं।

अभिरंजन (staining): डी एन एन प्राकृतिक अवस्था में एक रंगहीन अणु है अत: डी एन ए के पृचक्कित खण्डों को एगारोज माध्यम में देखा नहीं जा सकता। इसलिए पहले डी एन ए खण्डों को इथिडियम ब्रोमाइड (ethidium bromide) नामक यौगिक से अभिरंजित (stain) किया जाता है। रंग दिये गये अर्थात अभिरंजित डी एन ए खण्डों को पराबैंगनी प्रकाश (ultraviolet light) में देखने पर यह चमकीले नारंगी रंग के दिखाई देते हैं। बिना अभिरंजन के (without staining) व बिना पराबैंगनी प्रकाश के डी एन ए खण्डों को नहीं देखा जा सकता। अभिरंजन (रंगने) के बाद भी यह दृश्य प्रकाश में दिखाई नहीं देते। रंगने पर यह नारंगी पट्टियों (bands) के रूप में दिखाई देते हैं। 

क्षालन या एल्यूशन (Elution): जेल माध्यम पर अलग हो गयी डी एन ए की पट्टियों को काटकर निकालना तथा इन जेल के टुकड़ों से डी एन ए को निष्कर्षित (extract) करना क्षालन (elution) कहलाता है। इस प्रकार अलग किये गये डी एन ए खण्डों का प्रयोग इन्हें वाहक से जोड़कर पुनर्योगज डी एन ए (Recombinant DNA) बनाने में किया जाता हैं।

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प्रश्न 4. 
जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं में सर्वाधिक उपयोग किए जाने वाले बायोरिएक्टर का नाम लिखिए। इस बायोरिएक्टर के अनिवार्य संघटकों का उल्लेख कीजिए जिससे अधिक मात्रा में वांछित उत्पाद पाने के लिए संवर्द्धन माध्यम को अनुकूलतम परिस्थितियों उपलब्ध करायी जा सके।
उत्तर:
विलोडन हौज रिएक्टर (Stirred Tank Reactor) 
एक सरल विलोडन हौज रिएक्टर या स्टिर्ड टैक रिएक्टर (Stirred tank reactor) को चित्र में दिखाया गया है। यह स्टेनलेस स्टील का बना एक बेलनाकार पात्र होता है। इसमें भरे माध्यम के अवयवों को मिलाने (mixing) के उद्देश्य से इसकी तलौ उत्तल (convex) या घुमावदार (curved) होती है। यह विशालकाय होते है व इनमें हजारों लीटर संवर्धन माध्यम प्रयोग किया जा सकता है। इसमें उत्पन्न अधिक ऊष्मा के कारण बढ़े ताप को कम करने के लिए इसके चारों ओर ठण्डा पानी डाले जाने की भी व्यवस्था होती है।

इसका विलोडक (stirrer), माध्यम का समांगी मिश्रण व ऑक्सीजन की सभी स्थानों पर पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करता है। इसके एजीटेटर (agitator) को एक मोटर की सहायता से घुमाया जाता है जिससे इसमें लगी चपटी पट्टियाँ माध्यम को अच्छी तरह मिला देती हैं। यह कोशिकाओं को निलम्बित (suspended) अवस्था में बनाये रखने में भी मदद करता है।
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जैवरिएक्टर में ताप नियंत्रण, pH नियंत्रण, वातन या वायु संचालन (aeration) आदि के भी समुचित प्रबन्ध होते हैं। जैवरिएक्टर में प्रदशों के आवधिक (periodic) निरीक्षण के लिए सैम्पलिंग पोर्ट (sampling port) होते हैं। इन प्रदर्शों (samples) द्वारा सम्वर्धन माध्यम की जाँच कर उससे प्रक्रिया की गति अथवा आवश्यकताओं के बारे में जाना जा सकता है। इसी निरीक्षण के आधार पर माध्यम में आधारी पदार्थ (substrate) या किसी विशेष पोषक आदि को मिलाया जाता है। 

विडोलित टैंक रिएक्टर का महत्व (Importance of Stirred Tank Reactor) 
विडोलित टैक रिएक्टर सूक्ष्मजीवीय/ कोशिकीय उत्पाद के व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन हेतु एक बेहतर विकल्प है। क्योंकि इसमें सूक्ष्मजीवों के बड़े स्तर पर किये जाने वाले उत्पादन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के सभी उपाय उपलब्ध है। इसमें pH व ताप नियंत्रण, फोम नियंत्रण के पर्याप्त उपाय हैं, साथ ही विलोडन (stirring) व वातन (aeration) के समुचित प्रबन्ध हैं। 

दण्ड विलोडक हौज जैवरिएक्टर या स्पार्ड स्टिर्ड टैंक जैवरिएक्टर (Sparged Stirred Tank Bioreactor) 
यह स्टिर्ड टैंक जैवरिएक्टर का एक परिवर्तित रूप है। इसमें विलोडक (stirrer) एक छड़ (rod) के रूप में होता है न कि चपटे फलक वाले प्रेरक (flat blade impellar) के रूप में। इसमें वायु छोटे - छोटे बुलबुलों के रूप जैवरिएक्टर में प्रवेश करायी जाती है। इस हेतु एक स्पार्जर (sparger) का प्रयोग किया जाता है। छोटे बुलबुले प्रभावी तरीके से ऑक्सीजन स्थानान्तरण क्षेत्र में वृद्धि करते हैं। ऑक्सीजन स्थानान्तरण के लिए सतही क्षेत्र (surface area) भी बढ़ा हुआ होता है। अतः यह बेहतर प्रकार का जैवरिक्टर है।

प्रश्न 5. 
जैव प्रौद्योगिकी में निम्नलिखित की भूमिकाओं की व्याख्या कीजिए
(a) प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिऐज। 
(b) जेव विद्युत कण संचलन।
(c) pBR 322 में वरणात्मक चिन्हका
उत्तर:
(a) प्रतिबन्धन एंजाइम (Restriction Enzymes)
20वीं शताब्दी के सातवें दशक (सन् 1963) में जीवाणु एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coli) में जीवाणुभोजी (bacteriophage) से बचाव करने वाले दो एंजाइम की खोज हुई। जीवाणुओं को यह एंजाइम दो प्रकार से इन विषाणुओं के संक्रमण से बचाते थे-

  • अपने डी एन ए में मेथिल समूह (methyl groups) जोड़कर 
  • विषाणु के डी एन ए को काटकर अर्थात उसे खण्डों में विभक्त कर।

इन एंजाइमों को रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज (Restriction Endonuclease) कहा गया। इनको रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज नाम देने के निम्न कारण थे-

  • यह विषाणुओं के डी एन ए को काटकर इनका गुणन रोकते हैं, उनकी वृद्धि को बाधित (restrict) करते हैं अत: रेस्ट्रिक्शन (restriction) कहलाते हैं। 
  • यह नाभिकीय अम्ल (DNA) का विघटन करते हैं अत: न्यूक्लिएज (nuclease) कहलाते हैं। 
  • यह नाभिकीय अम्ल को सिरों की ओर से नहीं अपितु बीच में से काटते हैं अत: एंडोन्यूक्लिएज कहलाते हैं। 

इन रेस्ट्रिक्शन एंजाइम की खोज ने ही जेनेटिक इंजीनियरिंग जिसे तकनीकी रूप से डी एन ए पुनर्योगज तकनीक (DNA Recombinant Technology) कहते हैं, की आधारशिला रखी। इन एंजाइमों की खोज व इन पर कार्य के लिए डब्ल्यू. आर्बर, एच. स्मिथ व डी. नेथेन्स (W. Arber, H. Smith and D. Nathans) को सन् 1978 का चिकित्सा व कार्यिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। Hind II सबसे पहले खोजा गया रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज था।

प्रतिबंध एंडोन्यूक्लिएज का नामकरण (Nomenclature of Restriction Endonuclease) 
प्रतिबंध एंडोन्यूक्लिएज के नामकरण हेतु निम्न मान्यताएं निर्धारित की गई हैं-

  1. नाम का पहला अक्षर उस वंश (genus) के नाम का पहला अक्षर होता है जिस वंश में एंजाइम की सबसे पहले खोज हुई। इसे बड़े (capital) अक्षर में लिखते हैं। जैसे अगर कोई एंजाइम एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coli) से प्राप्त होता है तो उस एंजाइम का पहला अक्षर E होगा। 
  2. एंजाइम के नाम के दूसरे व तीसरे अक्षर उस जीवाणु जिससे यह प्राप्त हुए हैं की प्रजाति के नाम (specific name) के पहले व दूसरे अक्षर होते हैं। इन्हें छोटे अक्षरों में लिखा जाता है। जैसे जीवाणु हीमोफिलस इन्फ्लु एंजी (Haemophilus influenzae) से H के बाद in लिया गया अत: नाम होगा Hin. 
  3. शुरू के इन तीन अक्षरों को इटैलिक्स में अर्थात तिरछा लिखा जाता है। 
  4. विभेद (strain) या प्रारूप (type) या प्लाज्मिड का नाम उपर्युक्त तीन अक्षरों के साथ लिखते हैं। लेकिन यह इटैलिक्स में नहीं लिखे जाते।

उदाहरण के लिए, अगर एश्चीरिचिया कोलाई (E. coli) जीवाणु में RI प्लाज्मिड का नाम है अत: एंजाइम का नाम Eco RI होगा। इसी प्रकार हीमोफिलस इन्फ्लु एंजी (H. influenzae) के विभेद d III से रेस्ट्रिक्शन एंजाइम प्राप्त हुआ तो उसका नाम Hind III होगा। एंजाइम Eco RI का नाम एश्चौरिचिया कोलाई RY 13 से लिया गया है इसमें R अक्षर इसके विभेद (strain) से लिया गया है। इन एंजाइम के बाद में दिये गये रोमन नम्बर वह क्रम बताते हैं जिसमें वह, उस जीवाणु विभेद से प्राप्ता किये गये थे। आज 900* से भी अधिक रेस्ट्रिक्शन एंजाइमों की जानकारी प्राप्त की जा चुकी है जिन्हें जीवाणुओं के 230 से भी अधिक विभेदों से प्राप्त किया गया है। इनमें से प्रत्येक एंजाइम अलग - अलग (भिन्न) पहचान अनुक्रमों (Recognition sites) को पहचानता है। सबसे पहले खोजा गया रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज Hind II डी एन ए अणु को छ: क्षारक क्रमों के एक विशिष्ट अनुक्रम की पहचान कर एक विशिष्ट बिन्दु पर काटता है। इस विशिष्ट क्षारक अनुक्रम को Hind II के लिए पहचान अनुक्रम (recognition sequence) कहा गया।

(b) डी एन ए खण्ड का पृथक्करण व विलगन (Separation and Isolation of DNA Fragments) 
रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा डी एन ए को काटने पर डी एन ए के टुकड़े या खण्ड (fragments) प्राप्त होते हैं। इन खण्डों को जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीक द्वारा अलग कर सकते हैं।

जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) 
डी एन ए खण्ड ऋणावेशित (negatively charged) होते हैं। डी एन ए के खण्ड में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक फास्फेट समूह (phosphate group) होता है। अतः विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए अणुओं में कुल आवेश भिन्न - भिन्न होता है। आवेशों की इन भिन्नताओं का उपयोग विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए खण्डों को एक विद्युत क्षेत्र (electrical field) में रखकर तथा उनको बलपूर्वक धनावेशित इलेक्ट्रोड (positively charged electrode) एनोड की ओर भेजकर अलग करने में किया जाता है। इस कार्य को एक जेल (gel) में सम्पन्न किया जाता है तथा इसीलिए यह तकनीक जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस कहलाती है। बहुत बड़े खण्डों के लिए प्रायः - एगारोज (agarose) का प्रयोग किया जाता है। एगारोज जैल, समुद्री घास (Sea weeds) या सही मायनों में कुछ लाल शैवालों (red algae) से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक बहुलक (natural polymer) अगर - अगर (agar agar) से प्राप्त होता है। छोटे खण्डों के लिए पॉलीएक्रिलेमाइड (polyacrylamide) जेल का प्रयोग होता है। 

अत: डी एन ए खण्डों का पृथक्करण (separation) दो सिद्धान्तों पर आधारित होता है। 

  • अलग किये जा रहे आवेशित अणुओं (ऋणावेशित DNA खण्ड) की वैद्युत संचलनी चलन क्षमता (electrophoretic mobilities) 
  • जेल (एगारोज) का चलनी प्रभाव (sieving effect)।

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डी एन ए खण्डों का अलग होना उनके आकार पर निर्भर करता है। छोटे - छोटे खण्ड दूर तक व एनोड की ओर पहले जाते हैं। (एनोड के धनावेश से यह तेजी से उसकी ओर खिंच सकते हैं तथा चलनी माध्यम से इनका रोध नहीं होता) चित्र में कूपों (wells) की ओर प्रदर्श लिए जाते हैं अर्थात डी एन ए के खण्ड जिन्हें अलग - अलग करना हो कप की तरफ लिए जाते है तथा यह दूसरी अर्थात विपरीत दिशा में गति करते हैं। उपरोक्त चित्र में पहले नम्बर के रूप में बिना उपचारित, अर्थात ऐसा डी एन ए लिया है जिसको रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से काटा नहीं गया है। स्पष्ट है यह चहुत बड़ा अणु है अतः जेल में इसका चलना मुश्किल है। अन्य कूपों में डी एन ए के उपचारित (digested or treated) प्रदर्श लिए गये हैं। इनके छोटे - छोटे खण्ड चलनी प्रभाव तथा वैद्यत संचलनी गति (electrophoretic mobility) के कारण आसानी से आगे बढ़ जाते हैं।

अभिरंजन (staining): डी एन एन प्राकृतिक अवस्था में एक रंगहीन अणु है अत: डी एन ए के पृचक्कित खण्डों को एगारोज माध्यम में देखा नहीं जा सकता। इसलिए पहले डी एन ए खण्डों को इथिडियम ब्रोमाइड (ethidium bromide) नामक यौगिक से अभिरंजित (stain) किया जाता है। रंग दिये गये अर्थात अभिरंजित डी एन ए खण्डों को पराबैंगनी प्रकाश (ultraviolet light) में देखने पर यह चमकीले नारंगी रंग के दिखाई देते हैं। बिना अभिरंजन के (without staining) व बिना पराबैंगनी प्रकाश के डी एन ए खण्डों को नहीं देखा जा सकता। अभिरंजन (रंगने) के बाद भी यह दृश्य प्रकाश में दिखाई नहीं देते। रंगने पर यह नारंगी पट्टियों (bands) के रूप में दिखाई देते हैं। 

क्षालन या एल्यूशन (Elution): जेल माध्यम पर अलग हो गयी डी एन ए की पट्टियों को काटकर निकालना तथा इन जेल के टुकड़ों से डी एन ए को निष्कर्षित (extract) करना क्षालन (elution) कहलाता है। इस प्रकार अलग किये गये डी एन ए खण्डों का प्रयोग इन्हें वाहक से जोड़कर पुनर्योगज डी एन ए (Recombinant DNA) बनाने में किया जाता हैं।

(c) वरण योग्य चिन्हक (Selectable marker) 
किसी वाहक में 'ori' के अतिरिक्त एक वरण या चयन योग्य चिन्तक (selectable marker) की भी आवश्यकता होती है। चिन्हक (marker) की तरह पहचान बताने वाले यह स्थल अरूपान्तरित (non transformants) जीवाणु की पहचान करने व उन्हें समाप्त करने में मदद करते हैं तथा चयनित रूप से रूपान्तरित कोशिकाओं की वृद्धि में सहायक होते हैं।

रूपान्तरण (Transformation) वह प्रक्रिया है जिसमें डी एन ए का एक खण्ड जीवाणु कोशिका में प्रविष्ट कराया जाता है। जिन्होंने इस खण्ड को ग्रहण कर लिया वह जीवाणु रूपान्तरित (transformants) तथा ऐसा कर , पाने में अक्षम अरूपान्तरित (non transformants) कहलाते हैं।

एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coti) जीवाणु में एंटीबायोटिक्स, जैसे 'एम्पीसिलिन, क्लोरेम्फेनीकॉल (chloramphenicol), टेट्रासाइक्लिन या कैनामाइसिन के लिए प्रतिरोधकता (resistance) प्रदान करने वाले जीन को महत्त्वपूर्ण वरण योग्य चिन्हक माना जाता है। सामान्यतः ई. कोलाई जीवाणु में इनमें से किसी भी एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता नहीं होती। अत: प्रतिरोधकता ग्रहण करना उनके रूपान्तरण (ransformation) का परिचायक हैं।

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प्रश्न 6. 
पीसीआर तकनीक का उपयोग करते हुए लाभकारी जीन का प्रवर्धन किस प्रकार किया जाता है। चित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
पॉलीमरेज चेन रिएक्श न (Polymerase Chain Reaction - PCR) 
पी सी आर का उपयोग करते हुए लाभकारी जीन का प्रवर्धन पुनयोगज डी एन ए तकनीक का अगला पद है। पी सी आर का अर्थ है - पालीमरेज चेन रिएक्शन अर्थात पॉलीमरेज शृंखला अभिक्रिया। वांछित डी एन ए की पर्याप्त मात्रा में प्राप्ति के लिए पी सी आर का प्रयोग किया जाता है। इस विधि द्वारा इन विट्रो (in vitro) अर्थात प्रयोगशालायी परिस्थितियों में वांछित जीन की 1 अरब (1 billion) प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। पी सी आर तकनीक को सन् 1985 में कैरी मुलिस (Kary Mullis) ने विकसित किया। जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

पी सी आर का सिद्धान्त: यह तकनीक इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जब डी एन ए अणु को उच्च ताप पर लाया जाता है तब इसका विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है। जिससे इसके दोनों रज्जुक अलग-अलग हो जाते हैं। डी एन ए पॉलीमरेज एंजाइम इन दोनों अलग हुए रज्जुकों को प्रतिलिपि (replica) तैयार कर देता है फलस्वरूप मूल द्विरज्जुकी अणु प्राप्त हो जाता है। प्रतिक्रिया को उच्च ताप पर सक्रिय डी एन ए पॉलीमरेज की सहायता से बार-बार दोहराने से डी एन ए की अनेक प्रतियाँ मिल जाती हैं। 

पीसी आर की आवश्यकताएँ (Requirements of PCR) 
पी सी आर के लिए निम्न मौलिक आवश्यकताएँ हैं-

  1. DNA साँचा अर्थात् वह डी एन ए जिसकी प्रतियाँ बननी हैं, आवर्धन होना है। 
  2. न्यूक्लियोटाइड प्राइमर (Nucleotide primers) - 10 - 18 न्यूक्लियोटाइड (क्षारक युग्म) लम्बे डी एन ए खण्ड। यह वांछित डी एन ए खण्ड के 3' सिरे पर स्थित क्षारक क्रमों के पूरक होते हैं। यह रासायनिक रूप से संश्लेषित ओलिगोन्यूक्लियोटाइड होते हैं जो डी एन ए क्षेत्र के पूरक होते हैं। 
  3. उच्च ताप सहनशील डी एन ए पॉलीमरेज (high temperature stable DNA polymerase) प्राय: Taq Polymerase का प्रयोग होता है। इसे जीवाणु थर्मस एक्वेटिकस (Thermus aquaticus) से प्राप्त किया जाता है। 
  4. डिऑक्सी राइबोन्यूक्लियोटाइड्स तथा Mg++ आयन (Deoxyribonucleotides and Mg++ ion।

पी सी आर विधि (PCR Procedure) 

(A) निष्क्रियकरण या विकृतिकरण (Denaturation): पुनयोंगज डी एन ए जिसका आवर्धन करना है को 94°C पर गर्म किया जाता है। जिससे इसका विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है। गर्म करने से इसके दोनों रज्जुक अलग - अलग हो जाते हैं।
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(B) एनीलिंग (Annealing): अगली प्रक्रिया एनीलिंग में प्रत्येक डी एन ए रज्जुक एक साँचे (template) की तरह कार्य करता है। इसे ओलिगो न्यूक्लियोटाइड प्राइमर की उपस्थिति में कुछ ठण्डा किया जाता है। एनीलिंग की प्रक्रिया में दो प्राइमर प्रत्येक डी एन ए एकल रज्जुक के साथ संकरित (hybridize) हो जाते हैं। यह संकरण ही एनीलिंग कहलाता है। 

(C) विस्तार (Extension): एनीलिंग के बाद अगला पद विस्तार का होता है इसमें टैक (Taq) पॉलीमरेज एंजाइम प्राइमर के 3'OH का प्रयोग कर डी एन ए के पूरक रज्जुक का संश्लेषण करता है। प्राइमर एक दूसरे की ओर विस्तारित होते हैं, अत: दो प्राइमर के बीच स्थित डी एन ए की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है। Taq पॉलीमरेज थमोस्टेबिल (thermostable) होता है तथा उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है। यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाने के कारण डी एन ए की एक अरब प्रतियाँ बन जाती हैं। 

पी सी आर के उपयोग (Uses of PCR)
(a) किसी भी जीन की बहुत-सी प्रतियाँ (copies) प्राप्त करना। इन्हें डी एन ए क्लोनिंग या डी एन ए अनुक्रमण ज्ञात करने (DNA Sequencing) में प्रयोग किया जाता है। 
(b) जीनोम के डी एन ए की बहुरूपता के अध्ययन में। 
(c) फोरेसिंक साइंस में, डी एन ए फिंगर प्रिटिंग में भी पी सी आर आवश्यक होती है।

प्रश्न 7. 
महत्वपूर्ण जैव प्रौद्योगिकी अभिक्रिया को निष्पादित करने के लिए निम्नलिखित को उनके सही क्रम में पुनर्व्यवस्थित कीजिए।
(a) उपयोगी DNA की प्रतिकृतियों का पात्रे (इन विट्रो) संश्लेषण 
(b) ओलिगोन्यूक्लियोटाइडों का रासायनिक संश्लेषण 
(c) डी एन ए पॉलीमरेज एंजाइम 
(d) डी एन ए का सम्पूरक क्षेत्र (Complimentary region) 
(e) जीनोमिक DNA टेम्पलेट 
(f) मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड (Nucleotides Provided) 
(g) प्राइमर 
(h) तापस्थायी (थर्मोस्टेबिल) DNA पॉलीमरेज (थर्मस ऐक्वेटिकस से) 
(i) द्विलड़ीय DNA का विकृतीकरण (denaturation) 
उत्तर:
इसका सही क्रम होगा-
(b) ओलिगोन्यूक्लियोटाइडों का रासायनिक संश्लेषण 
(c) डी एन ए पॉलीमरेज एंजाइम 
(i) द्विलडीय डी एन ए का विकृतीकरण 
(e) जीनोमिक डी एन ए टेम्पलेट 
(d) डी एन ए का सम्पूरक क्षेत्र 
(g) प्राइमर 
(h) तापस्थायी (थर्मोंस्टेबिल) डी एन ए पॉलीमरेज (थर्मस एक्वेटिकस से) 
(f) मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड 
(a) उपयोगी डी एन ए प्रतिकृतियों का पात्रे (इन विट्रो) संश्लेषण। 

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प्रश्न 8. 
बायोरिएक्टर क्या है? इसकी कार्यप्रणाली समझाइए।
उत्तर:
(क) प्रतिकृतिकरण का उद्भव (Origin of replication or 'ori'): किसी प्लाज्मिड या वाहक का वह स्थान जहाँ से प्रतिकृतिकरण (replication) प्रारम्भ होता है प्रतिकृतिकरण उत्पत्ति स्थल या ओरि (ori) कहलाता है। इसकी उपस्थिति किसी वाहक (cloning vector) का आवश्यक गुण है। अगर किसी विजातीय (alien) डी एन ए को इस अनुक्रम के साथ जोड़ दिया जाए जो वह पोषी कोशिका के अन्दर प्रतिकृतिकरण कर सकता है। यह अनुक्रम ही जोड़े गये डी एन ए की प्रतिकृति संख्या (copy number) के लिए भी उत्तरदायी होता है।

(ख) बायोरिएक्टर (Bioreactor): बायोरिएक्टर स्टेनलेस स्टील से बना एक बेलनाकार पात्र है जिसे किसी रिकाम्बीनेट प्रोटीन/उत्पाद को प्राप्त करने के लिए, सूक्ष्मजीवों या अन्य कोशिकाओं के सम्वर्धन हेतु प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग व्यावसायिक स्तर पर बड़ी मात्रा प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। स्टिर्ड टैंक बायोरिएक्टर (Stirred tank Bioreactar) में माध्यम को मिश्रित करने के लिए एक सशक्त विलोडक (Stirrer) के साथ - साथ, ताप नियंत्रक, वातन (Aeration). pH नियंत्रक, फोम नियंत्रक आदि की सुविधा होती है। स्माई रैक रिएक्टर (Sparged tank reactar) में वायु के छोटे छोटे बुलबुले एक स्पार्जर (Sparger) द्वारा माध्यम में प्रवेश कराये जाते है। जो माध्यम का आक्सीजन से बेहतर सम्पर्क स्थापित करने में मदद करते हैं। 

(ग) अनुप्रवाह संसाधन (Downstream Processing) रिकाम्बीनेट प्रोटीन/उत्पाद प्राप्त करने हेतु जैव रासायनिक अवस्था के बाद उत्पाद का पृथक्करण व शुद्धिकरण (Separation and purification) अनुप्रवाह संसाधन (Downstream processing) कहलाता है। इसके बाद किये संरूपणों (Formulation) व कड़े गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षणों के बाद ही कोई उत्पाद विपणन हेतु तैयार होता है। 

प्रश्न 9. 
जीन क्लोनिंग में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस के कार्य को समझाइए।
उत्तर:
जीन क्लोनिंग में एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस जीवाणु पादप कोशिकाओं के सम्पर्क में आकर अपना Ti प्लाज्मिड पादप कोशिका में प्रविष्ट करा देता है। इस प्लाज्मिड का एक भाग T डी एन ए पादप कोशिका के आनुवंशिक पदार्थ से जुड़कर द्विबीजपत्रियों में ट्यूमर उत्पन्न कर देता है। आज इस जीवाणु को हानिरहित बनाकर इसके प्राकृतिक तंत्र को पौधों में मानव के लिए उपयोगी जीनों के स्थानान्तरण में प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ है कि एनोबैक्टीरियम के Ti प्लामिड को एक महत्वपूर्ण क्लोनिंग वाहक (cloning vector) के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

प्रश्न 10. 
आनुवंशिक इंजीनियरिंग किसे कहते हैं? पुनर्योगज डी एन ए निर्माण की तकनीक समझाइए।
उत्तर:
पुनर्योगज डी एन ए तकनीक को ही बोलचाल की भाषा में आनुवंशिक इंजीनियरिंग (Genetic engineering) कहा जाता है। जीवों के फीनोटाइप में वांछित फेरबदल के उद्देश्य से उनके आनुवंशिक पदार्थ में किया फेरबदल (Genetic manipulation) आनुवंशिक इंजीनियरिंग कहलाता है। इसमें पुनयोंगज डी एन ए का निर्माण, जीन क्लोनिंग व जौम ट्रांसफर शामिल हैं। पुनर्योगज डी एन ए तकनीक एक जटिल प्रक्रिया है। जिसे निम्न कार्यों द्वारा सम्पन्न किया जाता हैडी एन ए का पृथक्करण (isolation), रेस्ट्रिक्शन एडोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा डी एन ए का खण्डन, वांछित डी एन ए खण्ड का पृथक्कण (जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस), बाह्य डी एन ए को वाहक (Vector) से जोड़ना, (इस प्रकार दो जीवों के डी एन ए के जुड़ने से पुनर्योगज डी एन ए बन जाता है) इस पुनर्योगज डी एन ए को पोषक कोशिका में स्थानान्तरित किया जाता है। इन पोषक कोशिकाओं का बड़ी मात्रा में व्यावसायिक स्तर पर सम्वर्धन कर वांछित उत्पाद प्राप्त कर लिया जाता है।

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प्रश्न 11. 
पुनर्योगज डी एन ए तकनीक के चरण विशिष्ट अनुक्रम में लिखिए। आनुवंशिक पदार्थ (डी एन ए) के पृथक्करण की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्योगज डी एन ए प्रौद्योगिकी अनेक पदों वाली एक जटिल प्रक्रिया है। इसके विभिन्न पद क्रमानुसार निम्नलिखित हैं-

  1. डी एन ए का विलगन या पृथक्करण (Isolation of DNA)।
  2. रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज द्वारा डी एन ए का खण्डन (Fragmentation of DNA by restriction endonuclease enzyme)।
  3. वांछित डी एन ए खण्ड का विलगन (Isolation of desired DNA fragment)।
  4. विलगित डी एन ए खण्ड को संवाहक के डी एन ए से जोड़ना (Ligation of isolated DNA fragment with DNA of vector)।
  5. पुनयोगज डी एन ए का परपोषी में स्थानान्तरण (Transferring the recombinant DNA into the host)।
  6. परपोषी कोशिकाओं का माध्यम में व्यापक स्तर पर संवर्धन (Culturing the host cells in a medium at large scale)।
  7. वांछित उत्पाद का निष्कर्षण (Extraction of the desired product)।

आनुवंशिक पदार्थ डी एन ए का पृथक्करण (Isolation of DNA): डी एन ए प्राप्त करने के लिए पादप/जीवाणु/कवक कोशिकाओं को सबसे पहले निम्नानुसार उपचारित किया जाता हैपादप कोशिका एंजाइम सेल्युलेज (Cellulase) द्वारा। जीवाणु कोशिका एंजाइम लाइसोजाइम (Lysozyme) द्वारा। कवक कोशिका एंजाइम काइटिनेज (Chitinase) द्वारा। डी एन एन अणु को प्राप्त करने के लिए लिपिड व प्रोटिन की बनी कलाओं (Membranes) तथा डी एन ए के साथ पाये जाने वाले अनेक दीर्घ अणुओं जैसे प्रोटीन, आर एन ए आदि को हटाया जाता है। अत: मिश्रण को प्रोटीन हटाने के लिए प्रोटिएजेज, लिपिड हटाने के लिए लाइपेजेज, आर एन ए हटाने के लिए आर एन ए ऐज आदि से उपचारित किया जाता है। बाद में इसमें अति ठण्डा एथेनॉल (Chilled ethanol) डालकर डी एन ए को शुद्ध रूप में अवक्षेपित (Precipitate) कर दिया जाता है। इसे स्पूलिंग (Spooling) से हटाया जाता है। 

प्रश्न 12. 
पुनर्योगज डी एन ए किसे कहते हैं? जैल वैद्युत संचालन तकनीक से डी एन एखण्ड के पृथक्करण एवं विलगन की प्रक्रिया समझाइये।
उत्तर:
ऐसे डी एन ए जिसमें वांछित फीनोटाइप पाने के उददेश्य से कोई विजातीय (alien) डी एन ए खण्ड जोड़ दिये गये हों पुनयोंगज डी एन ए (recombinant DNA) कहलाता है।

आनुवंशिक पदार्थ (डी एन ए) का पृथक्करण (Isolation of Genetic Material, DNA) 
सभी कोशिकीय जीवों में, बिना किसी अपवाद के आनुवंशिक पदार्थ नाभिकीय अम्ल ही होते हैं तथा सभी कोशिकीय जीवों में यह आनुवंशिक पदार्थ डी एन ए होता है। डी एन ए को रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज एंजाइम से काटने के लिए डी एन ए का शुद्ध रूप में होना आवश्यक है। यह अन्य दीर्घ अणुओं, जैसे - प्रोटीन, आर एन ए आदि से मुक्त होना चाहिए। चूंकि डी एन ए केन्द्रक में स्थित होता है अत: इस एक पहुँच बनाने के लिए कोशिका भित्ति अगर उपस्थित है तो उसका हटाना, कोशिका कला (cell membrane) का हटाना, केन्द्रक कला (nuclear membrane) का हटाना आवश्यक होता है। कोशिका को विखण्डित करने पर डी एन ए अन्य दीर्घ अणुओं, जैसे - आर एन ए, प्रोटीन, पॉलीसैकेराइड व लिपिड्स के साथ मुक्त होता है। जीवाणु कोशिका को लाइसोजाइम (lysoxyme) से, पादप कोशिका को सेल्यूलेज (cellulase) से व कवक कोशिका को काइटिनेज (chitinase) से उपचारित किया जाता है।
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केन्द्रक में डी एन ए अणु हिस्टोन (histone) प्रोटीन के साथ गुंथे रहते हैं। दीर्घ अणुओं (macromolecules) को डी एन ए से हटाने के लिए इन्हें विभिन्न एंजाइमों से उपचारित किया जाता है। आर एन ए को हटाने के लिए राइबोन्यूक्लिऐज (ribonuclease), प्रोटीन को हटाने के लिए प्रोटिएज (protease) का प्रयोग किया जाता है। अन्य अणुओं को उचित उपचार से हटा देने के बाद इसमें अत्यधिक ठण्डा एथेनॉल (chilled ethanol) मिलाने पर शुद्धीकृत डी एन ए अवक्षेपित (precipitate) हो जाता है। इसे निलम्बन (suspension) में महीन धागों के रूप में देखा जा सकता है। इस डी एन ए को धागों के रूप में हटाना स्पूलिंग (spooling) कहा जाता है।

प्रश्न 13. 
PCR तकनीक में प्रयोग किये जाने वाले DNA पॉलीमरेज का नाम बताइए। बताइये इसका उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
PCR तकनीक में टैक (Taq) डी एन ए पॉलीमरेज का प्रयोग किया जाता है। PCR तकनीक में द्विरज्जुकी डी एन ए के दोनों रज्जुकों को अलग अलग करने के लिए उच्चताप पर डी एन ए का विकृतिकरण (denaturation) किया जाता है। अत: PCR तकनीक में कार्य करने वाले डी एन ए पॉलीमरेज का ताप स्थायी (thermostable) होना आवश्यक होता है। यही नये अणुओं का निर्माण करता है। Taq एक
ताप स्थायी एंजाइम है। 

प्रश्न 14. 
पुनर्योगज प्रौद्योगिकी में किसी बैक्टीरियल कोशिका के भीतर वांछित DNA खण्ड को प्रवेश कराने में इस्तेमाल की जाने वाली कोई चार विधियों लिखिए।
उत्तर:

  1. जीवाणु कोशिका को कम ताप पर Ca++ आयन से उपचारित करा के उन्हें पुनयोंगज डी एन ए के साथ बर्फ पर रखना, 42°C का क्षणिक हीटशॉक तथा फिर बर्फ पर रखना। 
  2. बायोलिस्टिक (Biolistics) या जीन गन विधि - डी एन ए से विलेपित स्वर्ण या टंगस्टन कणों की उच्च वेग पर बमबारी कराके। 
  3. हानिरहित रोगजनक (Disarmed pathogen)।
  4. माइक्रो इंजैक्शन। 

प्रश्न 15. 
एक रेस्ट्रिक्शन न्यूक्लिएज किस प्रकार कार्य करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज एंजाइम डी एन ए की पूरी लम्बाई का निरीक्षण कर एक विशिष्ट पहचान अनुक्रम (recognition sequence) की पहचान करता है। यह पहचान स्थल (recognition sites) प्राय: पैलिन्ड्रोम (Palindromic) होते हैं। उदाहरण के लिए Eco RI किसी डी एन ए के पैलिन्ड्रोम में G व A के बीच का स्थान पहचानता है।
                ↓
        5' G AA TTC 3'
       3' CTT AA G 5'
                 ↑
रेस्ट्रिक्शन एंजाइम डी एन ए को पेलिन्डोम के मध्य से थोड़ा - सा अलग लेकिन दो विपरीत रज्जुकों पर दो समान क्षारकों के बीच काटता है। इससे सिरों पर एक रज्जुकी भाग रह जाते हैं। इन बाहर की ओर निकले
एक रज्जुकी क्षेत्रों को चिपचिपे सिरे (Sticky end) कहते हैं। 

प्रश्न 16. 
(i) आण्विक कैची क्या है? एक उदाहारण दीजिए।
(ii) पुनर्योगज DNA तकनीक में इनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
(i) प्रतिबन्धन एंडोन्यूक्लिएज (Restriction endonuclease) एंजाइम को ही आण्विक कैंची कहा जाता है। उदाहरण Eco RI 
(ii) पुनयोंगज DNA तकनीक अर्थात जेनेटिक इंजीनियरिंग की आधारशिला इन्हीं रेस्ट्रिक्शन एंजाइम की खोज के बाद रखी गयी। यह एंजाइम किसी डी एन ए की पूरी लम्बाई की जाँच कर उनके विशिष्ट पहचान स्थलों (Recognition sites) की पहचान कर वहाँ से काट देते हैं। यह विशिष्ट (specific) होते हैं व डी एन ए को निश्चित स्थान पर ही काट सकते हैं। इनके द्वारा किसी डी एन ए से लक्ष्य जीन को अलग कर, वाहक डी एन ए को भी इसी एंजाइम से काटकर, खाली स्थान में लक्ष्य जीन जोड़ा जा सकता है। इसे पुनर्योगज DNA कहते हैं। 

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प्रश्न 17. 
ई. कोलाई (E.coli) के वैक्टर के संलग्न चित्र में (a) ori. (b) ampR तथा (c) rop का महत्व बताइए।
उत्तर:
(a) Ori किसी प्लाज्मिड या अन्य वाहक का वह क्रम जहाँ से प्रतिकृतिकरण (replication) प्रारम्भ होता है ओरि (ori) कहलाता है। इस वाहक की कापी संख्या (copy number) के लिए यही अनुक्रम उत्तरदायी होता है। अगर किसी वाहक DNA को इस क्रम से जोड़ दिया जाए तो उसका भी प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ हो जाता है।
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(b) ampR एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन चयन योग्य चिहक (selectable marker) के रूप में प्रयोग होते हैं। दो एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन होने पर एक रूपान्तरकारी कोशिकाओं का अरूपान्तकारी कोशिकाओं से पहचानने में तथा दूसरा पुनर्योगज (recombinant) को अपुनयोगज (non recombinants) से पहचानने में प्रयोग होता है। 
(c) रोप (rop) उन प्रोटीनों को कोड करता है जो प्लाज्मिड के प्रतिकृतिकरण में भाग लेती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
(a) पॉलीमेरेज श्रृंखला अभिक्रिया के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए तथा इसमें उपयोग में आने वाले एंजाइमों की विशिष्ट भूमिका की व्याख्या कीजिए। 
(b) निम्न क्षेत्रों में पीसीआर के उपयोग का उल्लेख कीजिए
(i) जैव प्रौद्योगिकी।
(ii) नैदानिकी (निदानशास्त्र)
उत्तर:
पॉलीमरेज चेन रिएक्श न (Polymerase Chain Reaction - PCR) 
पी सी आर का उपयोग करते हुए लाभकारी जीन का प्रवर्धन पुनयोगज डी एन ए तकनीक का अगला पद है। पी सी आर का अर्थ है - पालीमरेज चेन रिएक्शन अर्थात पॉलीमरेज शृंखला अभिक्रिया। वांछित डी एन ए की पर्याप्त मात्रा में प्राप्ति के लिए पी सी आर का प्रयोग किया जाता है। इस विधि द्वारा इन विट्रो (in vitro) अर्थात प्रयोगशालायी परिस्थितियों में वांछित जीन की 1 अरब (1 billion) प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। पी सी आर तकनीक को सन् 1985 में कैरी मुलिस (Kary Mullis) ने विकसित किया। जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

पी सी आर का सिद्धान्त: यह तकनीक इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जब डी एन ए अणु को उच्च ताप पर लाया जाता है तब इसका विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है। जिससे इसके दोनों रज्जुक अलग-अलग हो जाते हैं। डी एन ए पॉलीमरेज एंजाइम इन दोनों अलग हुए रज्जुकों को प्रतिलिपि (replica) तैयार कर देता है फलस्वरूप मूल द्विरज्जुकी अणु प्राप्त हो जाता है। प्रतिक्रिया को उच्च ताप पर सक्रिय डी एन ए पॉलीमरेज की सहायता से बार-बार दोहराने से डी एन ए की अनेक प्रतियाँ मिल जाती हैं। 

पीसी आर की आवश्यकताएँ (Requirements of PCR) 
पी सी आर के लिए निम्न मौलिक आवश्यकताएँ हैं-

  1. DNA साँचा अर्थात् वह डी एन ए जिसकी प्रतियाँ बननी हैं, आवर्धन होना है। 
  2. न्यूक्लियोटाइड प्राइमर (Nucleotide primers) - 10 - 18 न्यूक्लियोटाइड (क्षारक युग्म) लम्बे डी एन ए खण्ड। यह वांछित डी एन ए खण्ड के 3' सिरे पर स्थित क्षारक क्रमों के पूरक होते हैं। यह रासायनिक रूप से संश्लेषित ओलिगोन्यूक्लियोटाइड होते हैं जो डी एन ए क्षेत्र के पूरक होते हैं। 
  3. उच्च ताप सहनशील डी एन ए पॉलीमरेज (high temperature stable DNA polymerase) प्राय: Taq Polymerase का प्रयोग होता है। इसे जीवाणु थर्मस एक्वेटिकस (Thermus aquaticus) से प्राप्त किया जाता है। 
  4. डिऑक्सी राइबोन्यूक्लियोटाइड्स तथा Mg++ आयन (Deoxyribonucleotides and Mg++ ion।

पी सी आर विधि (PCR Procedure) 

(A) निष्क्रियकरण या विकृतिकरण (Denaturation): पुनयोंगज डी एन ए जिसका आवर्धन करना है को 94°C पर गर्म किया जाता है। जिससे इसका विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है। गर्म करने से इसके दोनों रज्जुक अलग - अलग हो जाते हैं।
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(B) एनीलिंग (Annealing): अगली प्रक्रिया एनीलिंग में प्रत्येक डी एन ए रज्जुक एक साँचे (template) की तरह कार्य करता है। इसे ओलिगो न्यूक्लियोटाइड प्राइमर की उपस्थिति में कुछ ठण्डा किया जाता है। एनीलिंग की प्रक्रिया में दो प्राइमर प्रत्येक डी एन ए एकल रज्जुक के साथ संकरित (hybridize) हो जाते हैं। यह संकरण ही एनीलिंग कहलाता है। 

(C) विस्तार (Extension): एनीलिंग के बाद अगला पद विस्तार का होता है इसमें टैक (Taq) पॉलीमरेज एंजाइम प्राइमर के 3'OH का प्रयोग कर डी एन ए के पूरक रज्जुक का संश्लेषण करता है। प्राइमर एक दूसरे की ओर विस्तारित होते हैं, अत: दो प्राइमर के बीच स्थित डी एन ए की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है। Taq पॉलीमरेज थमोस्टेबिल (thermostable) होता है तथा उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है। यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाने के कारण डी एन ए की एक अरब प्रतियाँ बन जाती हैं। 

पी सी आर के उपयोग (Uses of PCR)
(a) किसी भी जीन की बहुत-सी प्रतियाँ (copies) प्राप्त करना। इन्हें डी एन ए क्लोनिंग या डी एन ए अनुक्रमण ज्ञात करने (DNA Sequencing) में प्रयोग किया जाता है। 
(b) जीनोम के डी एन ए की बहुरूपता के अध्ययन में। 
(c) फोरेसिंक साइंस में, डी एन ए फिंगर प्रिटिंग में भी पी सी आर आवश्यक होती है।

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प्रश्न 2. 
पुनर्योगज डीएनए किसे कहते हैं? जेल विद्युत कण संचलन तकनीक से DNA खण्डों का प्रथक्करण एवं विलगन प्रक्रिया को समझाइए।
उत्तर:
डी एन ए खण्ड का पृथक्करण व विलगन (Separation and Isolation of DNA Fragments) 
रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम द्वारा डी एन ए को काटने पर डी एन ए के टुकड़े या खण्ड (fragments) प्राप्त होते हैं। इन खण्डों को जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस तकनीक द्वारा अलग कर सकते हैं।

जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) 
डी एन ए खण्ड ऋणावेशित (negatively charged) होते हैं। डी एन ए के खण्ड में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक फास्फेट समूह (phosphate group) होता है। अतः विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए अणुओं में कुल आवेश भिन्न - भिन्न होता है। आवेशों की इन भिन्नताओं का उपयोग विभिन्न लम्बाई वाले डी एन ए खण्डों को एक विद्युत क्षेत्र (electrical field) में रखकर तथा उनको बलपूर्वक धनावेशित इलेक्ट्रोड (positively charged electrode) एनोड की ओर भेजकर अलग करने में किया जाता है। इस कार्य को एक जेल (gel) में सम्पन्न किया जाता है तथा इसीलिए यह तकनीक जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस कहलाती है। बहुत बड़े खण्डों के लिए प्रायः - एगारोज (agarose) का प्रयोग किया जाता है। एगारोज जैल, समुद्री घास (Sea weeds) या सही मायनों में कुछ लाल शैवालों (red algae) से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक बहुलक (natural polymer) अगर - अगर (agar agar) से प्राप्त होता है। छोटे खण्डों के लिए पॉलीएक्रिलेमाइड (polyacrylamide) जेल का प्रयोग होता है। 

अत: डी एन ए खण्डों का पृथक्करण (separation) दो सिद्धान्तों पर आधारित होता है। 

  • अलग किये जा रहे आवेशित अणुओं (ऋणावेशित DNA खण्ड) की वैद्युत संचलनी चलन क्षमता (electrophoretic mobilities) 
  • जेल (एगारोज) का चलनी प्रभाव (sieving effect)।

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डी एन ए खण्डों का अलग होना उनके आकार पर निर्भर करता है। छोटे - छोटे खण्ड दूर तक व एनोड की ओर पहले जाते हैं। (एनोड के धनावेश से यह तेजी से उसकी ओर खिंच सकते हैं तथा चलनी माध्यम से इनका रोध नहीं होता) चित्र में कूपों (wells) की ओर प्रदर्श लिए जाते हैं अर्थात डी एन ए के खण्ड जिन्हें अलग - अलग करना हो कप की तरफ लिए जाते है तथा यह दूसरी अर्थात विपरीत दिशा में गति करते हैं। उपरोक्त चित्र में पहले नम्बर के रूप में बिना उपचारित, अर्थात ऐसा डी एन ए लिया है जिसको रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से काटा नहीं गया है। स्पष्ट है यह चहुत बड़ा अणु है अतः जेल में इसका चलना मुश्किल है। अन्य कूपों में डी एन ए के उपचारित (digested or treated) प्रदर्श लिए गये हैं। इनके छोटे - छोटे खण्ड चलनी प्रभाव तथा वैद्यत संचलनी गति (electrophoretic mobility) के कारण आसानी से आगे बढ़ जाते हैं।

अभिरंजन (staining): डी एन एन प्राकृतिक अवस्था में एक रंगहीन अणु है अत: डी एन ए के पृचक्कित खण्डों को एगारोज माध्यम में देखा नहीं जा सकता। इसलिए पहले डी एन ए खण्डों को इथिडियम ब्रोमाइड (ethidium bromide) नामक यौगिक से अभिरंजित (stain) किया जाता है। रंग दिये गये अर्थात अभिरंजित डी एन ए खण्डों को पराबैंगनी प्रकाश (ultraviolet light) में देखने पर यह चमकीले नारंगी रंग के दिखाई देते हैं। बिना अभिरंजन के (without staining) व बिना पराबैंगनी प्रकाश के डी एन ए खण्डों को नहीं देखा जा सकता। अभिरंजन (रंगने) के बाद भी यह दृश्य प्रकाश में दिखाई नहीं देते। रंगने पर यह नारंगी पट्टियों (bands) के रूप में दिखाई देते हैं। 

क्षालन या एल्यूशन (Elution): जेल माध्यम पर अलग हो गयी डी एन ए की पट्टियों को काटकर निकालना तथा इन जेल के टुकड़ों से डी एन ए को निष्कर्षित (extract) करना क्षालन (elution) कहलाता है। इस प्रकार अलग किये गये डी एन ए खण्डों का प्रयोग इन्हें वाहक से जोड़कर पुनर्योगज डी एन ए (Recombinant DNA) बनाने में किया जाता हैं।

प्रश्न 3. 
(i) किसी क्लोनकारी वाहक में क्या विशेषताएँ होनी चाहिए? वर्णन कीजिए। 
(ii) ऐसा क्यों है कि डी एन ए, कोशिका झिल्ली से होकर नहीं गुजर सकता? समझाइए। किसी जीवाणु कोशिका को माध्यम में से पुनर्योगज डी एन ए को ग्रहण कर सकने में किस प्रकार सक्षम बनाया जाता है?
उत्तर:
(i) एक वाहक में निम्न गुणों का होना आवश्यक है-
प्रतिकृतिकरण की उत्पत्ति (Origin of Replication or Ori) 
किसी प्लाज्मिड या वाहक का वह स्थान जहाँ से प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है प्रतिकृतिकरण का उत्पत्ति स्थल या ओरि (Ori) कहलाता है। अर्थात यह डी एन ए का वह अनुक्रम (sequence) है जहाँ से प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है। अगर किसी विजातीय (alien) डी एन ए को इस अनुक्रम के साथ जोड़ दिया जाय तो वह पोषक कोशिका के अन्दर प्रतिकृतिकरण (replication) कर सकता है। यह अनुक्रम ही जोड़े गये डी एन ए की प्रतिकृति संख्या (copy number) के नियंत्रण के लिए भी उत्तरदायी होता है। अत: लक्ष्य डी एन ए की अधिक संख्या में प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए इसे ऐसे वाहक में क्लोन करना चाहिए जिसका उद्भव स्थल या (Ori) अधिक प्रतिलिपि संख्या (copy number) बनाने में सक्षम हो।
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प्रतिकृतिकरण के इन उद्गम स्थलों को 'Ori" कहा जाता है। प्लाज्मिड में ऐसे क्रम प्राकृतिक रूप से उपस्थित होते हैं, परन्तु प्लामिड में अनेक अनावश्यक जीन भी होती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए प्राकृतिक प्लामिड में आवश्यक फेरबदल कर ऐसे रूप बनाये गये हैं जो क्लोनिंग में सहायक हों। इसी प्रकार का एक प्लाज्मिड pBR 322 है।

(ii) पुनर्योगज डी एन ए के साथ रूपान्तरण हेतु सक्षम परपोषी (Competent Host for transformation with recombinant DNA) 
विजातीय (alien) डी एन ए के खण्ड को उचित वाहक से जोड़ देने के बाद इसे जीवाणु, पौधे या जंतु परपोषी में स्थानान्तरित किया जाता है। डी एन ए एक जलरागी या हाइड्रोफिलिक (hydrophilic) अणु है इसलिए यह कोशिका कला जैसी (जलरोधी (hydrophobic) लिपिड द्विपरत) से पार नहीं हो पाता। जीवाणु कोशिका द्वारा पर्याप्त मात्रा में पुनर्योगज डी एन ए जिसे काइमेरिक डी एन ए (chimeric DNA) भी कहा जाता है, का ग्रहण सुनिश्चित करने के लिए इसका उपचारण आवश्यक होता है। अर्थात जीवाणु कोशिकाओं को कुछ विशिष्ट उपचार द्वारा पुनर्योगज डी एन ए को ग्रहण करने में सक्षम (competent) बनाया जाता है। इस कार्य के लिए सबसे पहले परपोषी कोशिकाओं को कम ताप पर द्विसंयोजी धनायन (divalent cation) जैसे कैल्सियम के विशिष्ट सान्द्रण से उपचारित किया जाता है। इस उपचार से डी एन ए की कोशिकाभित्ति के छिद्रों से होकर कोशिका में प्रवेश की दक्षता बढ़ जाती है। अब इन कोशिकाओं को पुनर्योगज डी एन ए के साथ बर्फ (ice) पर व कुछ समय बाद थोड़े समय के लिए 42°C ताप पर रखा जाता है। थोड़ी - सी देर के लिए अधिक ताप पर रखना ताप प्रघात (heat shock) कहलाता है। ताप प्रघात के बाद जीवाणुओं को फिर से बर्फ पर रख दिया जाता है। इस उपचार से पुनयोगज डी एन ए परपोषी कोशिका में प्रवेश कर जाता है। कैल्सियम आयन कैल्सियम क्लोराइड (CaCl2) के रूप में उपलब्ध कराये जाते हैं।
पुनर्योगज डी एन ए के परपोषक कोशिका में प्रवेश की अन्य विधियाँ 
पुनर्योगज डी एन ए को केवल कैल्सियम क्लोराइड के उपचार द्वारा ही जीवाणु कोशिका में प्रवेश नहीं कराया जाता। इस कार्य हेतु निम्न विधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है-
(a) सूक्ष्म अन्तः क्षेपण (Micro injection): जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस विधि में पुनयोगज डी एन ए को किसी जंतु कोशिका के केन्द्रक में सीधे ही अन्तःक्षेपित (inject) कर दिया जाता है।

(b) बायोलिस्टिक या जीन गन (Biolistic orgenegun): यह विधि कोशिकाओं के लिए अधिक उपयुक्त है। इस विधि में कोशिका पर सोने (gold) या टंगस्टन (tungston) के अति सूक्ष्म व डी एन ए से विलेपित (DNA coated) उच्च वेग के कणों से प्रहार या बमबारी की जाती है। कणों में उच्च वेग पैदा करने के लिए प्रणोदकारी (projectile gun) का प्रयोग किया जाता है। यह कण कोशिकाओं के अनेक स्तरों व संरचनाओं को वेधने में सक्षम होते हैं तथा केन्द्रक में पहुँचकर रूपान्तरण कर देते हैं।

(c) अहानिकारक रोगजनक वाहक (Disarmed pathogens vectors): इस विधि में प्राकृतिक रोगजनकों की रोगकारी प्रकृति को समाप्त कर उनकी 'जीन डिलीवरी' करने की क्षमता का प्रयोग वांछित जीन का स्थानान्तरण करने में किया जाता है। जैसे रेट्रोवाइरस (retrovirus) तथा एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस। इसके अलावा इलेक्ट्रीपरिशन (electroporation), मध्यस्थ जीन स्थानान्तरण (liposome mediated gene transfer) कायिक संकरण (somatic hybridization) जीन स्थानान्तरण की अन्य विधियाँ है।

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प्रश्न 4. 
(i) पुनर्योगज ही एन ए तकनीक में वाहकों के योगदान का वर्णन कीजिए तथा दो उदाहरण दीजिए। 
(ii) पुनर्योगज डी एन ए तकनीक के विभिन्न चरणों को केवल चित्रों की सहायता से प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
(i) पौधों व जन्तुओं में जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक (Vectors for Cloning genes in Plants and Animals)
वांछित जीनों को पादप व जन्तुओं में स्थानान्तरित करना मनुष्य ने जीवाणुओं और विषाणुओं से सीखा है। प्रकृति में जीवाणु व विषाणु बहुत पुराने समय से इस कला में निपुण हैं कि कैसे पादप व जन्तु कोशिका (यूकैरियोट) में अपने जीन प्रविष्ट कराके उन्हें स्वयं के लिए लाभकारी पदार्थों के निर्माण हेतु रूपान्तरित कर दिया जाये।

एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस (Agrobacterium fumifaciens) 
मृदा (soil) में पाया जाने वाला एक दण्डाकार जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस एक कुशल जेनेटिक इंजीनियर के रूप में कार्य करता है। यह जीवाणु पौधों में क्राउन गॉल (crown gall) रोग का कारक है। इस रोग में पौधों की कोशिकाएँ अनियंत्रित वृद्धि करके अर्बुद या ट्यूमर (tumor) बना देती हैं। एप्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस अनेक द्विबीजपत्री पौधों (dicot plant) में इस प्रकार के ट्यूमर बनाता है। यह ट्यूमर रोगजनक जीवाणु के लिए आवश्यक रसायनों का उत्पादन करते हैं।

यह जीवाणु स्वयं पादप कोशिका में प्रवेश नहीं करता अपितु जीवाणु का एक प्लाज्मिड, जिसे Ti प्लाज्मिड (ट्यूमर इन्ड्युसिंग प्लाज्मिड - tumor inducing plasmid) कहते हैं, पोषक कोशिका में प्रविष्ट करा दिया जाता है। Ti प्लाज्मिड जीवाणु के उपविभेदों (virulent strains) में पाया जाता है तथा पादप कोशिका में ट्यूमर उत्पन्न करता है। इस प्लाज्मिड का सिर्फ एक छोटा सा भाग ही जिसे टी - डी एन ए (T - DNA) कहते हैं पादप कोशिका के जीनोम में समावेशित होता है इसीलिए इसे ट्रांसफर डी एन ए कहते हैं। इसमें नाइट्रोजन स्थिरीकरण, रोग प्रतिरोधकता आदि के लाभकारी जीन जोड़े गये हैं तथा इसकी रोग पैदा करने की क्षमता को समाप्त कर दिया है। आज इस जीवाणु के Ti प्लाज्मिड में उपस्थित प्राकृतिक तंत्र को उपयोगी जीनों के स्थानान्तरण में प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ है कि एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस के Ti प्लाज्मिड को एक महत्त्वपूर्ण क्लोनिंग वाहक (cloning vector) के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें इस प्रकार के फेरबदल (manipulations) किये गये हैं जिनसे यह पौधों के लिए रोगकारी नहीं रहा लेकिन फिर भी मनुष्य के लाभकारी अर्थात वांछित जीनों को विभिन्न प्रकार के पौधों में पहुँचाने/स्थानान्तरित करने में सक्षम है।

जन्तु विषाणु (Animal Viruses) 
जन्तुओं में रेट्रोवाइरस (retroviruses) सामान्य कोशिका को कैंसर कोशिकाओं में रूपान्तरित कर देते हैं। पश्च विषाणु को हानिरहित (harmless) बनाकर इसका प्रयोग जन्तु कोशिकाओं में वांछित जीन पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। जीन थेरेपी (gene therapy) में यही विधि अपनाई जाती है। इस प्रकार रोगजनकों द्वारा उनके यूकैरियोटिक पोषकों में जीन डिलीवरी (gene delivery) की तकनीक का अध्ययन कर, रोगजनकों के साधनों का उपयोग (उनको हानिरहित बनाकर) वाहक के रूप में, मनुष्य के लिए लाभकारी जीनों के स्थानान्तरण में किया जा रहा है।

(ii) पुनर्योगज डी एन ए प्रौद्योगिकी अनेक पदों वाली एक जटिल प्रक्रिया है। इसके विभिन्न पद क्रमानुसार निम्नलिखित हैं-

  1. डी एन ए का विलगन या पृथक्करण (Isolation of DNA)।
  2. रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज द्वारा डी एन ए का खण्डन (Fragmentation of DNA by restriction endonuclease enzyme)।
  3. वांछित डी एन ए खण्ड का विलगन (Isolation of desired DNA fragment)।
  4. विलगित डी एन ए खण्ड को संवाहक के डी एन ए से जोड़ना (Ligation of isolated DNA fragment with DNA of vector)।
  5. पुनयोगज डी एन ए का परपोषी में स्थानान्तरण (Transferring the recombinant DNA into the host)।
  6. परपोषी कोशिकाओं का माध्यम में व्यापक स्तर पर संवर्धन (Culturing the host cells in a medium at large scale)।
  7. वांछित उत्पाद का निष्कर्षण (Extraction of the desired product)।

बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित) 

प्रश्न 1. 
एक रासायनिक अभिक्रिया में प्रतिबन्धन एन्डोन्यूक्लिएज द्वारा जनित ही एन ए खण्डों को किसके द्वारा अलग किया जा सकता-
(a) अपकेन्द्रीकरण 
(b) पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया 
(c) वैद्युत संचालन (इलेक्ट्रोफोरेसिस)
(d) प्रतिबन्धन मापन। 
उत्तर:
(c) वैद्युत संचालन (इलेक्ट्रोफोरेसिस)

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प्रश्न 2. 
जीव और उसकी कोशिका भित्ति निम्नीकारक एंजाइम के लिए निम्नलिखित में से कौन सुमेलित नहीं है-
(a) जीवाणु - लाइसोजाइम 
(b) पादप कोशिकाएँ - सैल्यूलेज 
(c) शैवाल - मिथाइलेज
(d) कवक - काइटिनेजा 
उत्तर:
(c) शैवाल - मिथाइलेज

प्रश्न 3. 
अपुनर्योगजी जीवाणुओं की नीली निवह के विपरीत पुनर्योगजी जीवाणुओं की निवह श्वेत दिखाई देती है? क्योंकि-
(a) अपुनर्योगजी जीवाणुओं में बीटा गैलेक्टोसाइडेज रहता है 
(b) अपुनयोंगजी जीवाणुओं में एल्फा गैलेक्टोसाइडेज का निवेशन निष्क्रियण होता है। 
(c) पुनर्योगजी जीवाणुओं में एल्फा गैलेक्टोसाइडेज का निवेशन निष्क्रियण होता है 
(d) पुनयोंगजी जीवाणुओं में ग्लाइकोसाइडेज एन्जाइम का निष्क्रियण होता है। 
उत्तर:
(c) पुनर्योगजी जीवाणुओं में एल्फा गैलेक्टोसाइडेज का निवेशन निष्क्रियण होता है 

प्रश्न 4. 
न्यूक्लिएज एन्जाइम जो पॉलीन्यूक्लियोटाइड के मुक्त सिरों पर आक्रमण करते हैं, कहलाते हैं-
(a) एंडोन्यूक्लिएज 
(b) एक्सोन्यूक्लिएज 
(c) पॉलीमरेज
(d) काइनेजा 
उत्तर:
(b) एक्सोन्यूक्लिएज

प्रश्न 5. 
पहला पुनर्योगज ही एन ए बनाया
(a) कोहेन व बोयर ने 
(b) स्मिथ व नाथांस ने
(c) फ्लोरे व चेन ने 
(d) हरगोविन्द खराना ने। 
उत्तर:
(a) कोहेन व बोयर ने 

प्रश्न 6. 
निम्न में से कौन - सा जेनेटिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होता है-
(a) RNA पॉलीमरेज 
(b) DNA पॉलीमरेज
(c) रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज 
(d) न्यूक्लिएज। 
उत्तर:
(c) रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज 

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प्रश्न 7. 
जेनेटिक इंजीनियरिंग में प्लाज्मिड का प्रयोग होता है क्योंकि वह-
(a) आसानी से उपलब्ध है 
(b) इनका स्वतः प्रतिकृतिकरण होता है 
(c) पोषक के क्रोमोसोम से जुड़ सकते हैं
(d) निष्क्रिय होते हैं। 
उत्तर:
(b) इनका स्वतः प्रतिकृतिकरण होता है 

प्रश्न 8. 
पादपों की जेनेटिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होने वाला जीवाणु है-
(a) बेसीलस सब्टिलिस 
(b) साल्मोनेला
(c) एग्रोबैक्टीरियम 
(d) माइकोबैक्टीरियमा 
उत्तर:
(c) एग्रोबैक्टीरियम 

प्रश्न 9. 
रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज उपस्थित होते हैं-
(a) स्तनधारियों की कोशिकाओं में 
(b) जीवाणुभोजियों में 
(c) बैक्टीरिया में 
(d) पादप कोशिकाओं में।
उत्तर:
(c) बैक्टीरिया में 

प्रश्न 10. 
रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज काटता है-
(a) डी एन ए के दोनों रज्जुकों के सिरों पर 
(b) डी एन ए के किसी एक रज्जुक को सिरे पर 
(c) डी एन ए के दोनों रज्जुकों को अन्दर के विशिष्ट स्थलों पर 
(d) डी एन ए के एक रज्जुक को पहचान स्थल (recognition site) पर। 
उत्तर:
(c) डी एन ए के दोनों रज्जुकों को अन्दर के विशिष्ट स्थलों पर 

प्रश्न 11. 
निम्न में से कौन - सा एक रासायनिक चाकू (Chemical Sealpel) है?
(a) Eco RI
(b) ampR 
(c) tetR
(d) ori and rop
उत्तर:
(a) Eco RI

प्रश्न 12. 
पहला पुनर्योगज डी एन ए बनाने में एन्टीबायोटिक प्रतिरोधी जीन प्राप्त किया गया था? 
(a) एग्रोबैक्टीरियम से 
(b) ई. कोलाई से 
(c) साल्मोनेला टाइफीम्यरियम से
(d) बेसिलस थूरिन्जिजिएंसिस से। 
उत्तर:
(c) साल्मोनेला टाइफीम्यरियम से

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प्रश्न 13. 
पॉलीमरेज चेन रिएक्शन महत्त्वपूर्ण होती है-
(a) प्रोटीन संश्लेषण में 
(b) डी एन ए संश्लेषण में
(c) डी एन ए आवर्धन में 
(d) जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में। 
उत्तर:
(c) डी एन ए आवर्धन में 

प्रश्न 14. 
थर्मस एक्वेटिकस जीवाणु से प्राप्त होता है-
(a) TH प्लाज्मिड
(b) T डी एन ए 
(c) Taq पॉलीमरेज 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(c) Taq पॉलीमरेज 

प्रश्न 15. 
एगारोज जैल में प्रयुक्त मैट्रिक्स का स्रोत है-
(a) समुद्री घास
(b) बायोरिएक्टर 
(c) नाभिकीय अम्ल मिश्रण 
(d) सेल्युलेज। 
उत्तर:
(a) समुद्री घास

प्रश्न 16. 
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में डी एन ए को पराबैंगनी प्रकाश में दृश्य बनाने हेतु प्रयोग होता है-
(a) क्षालन का
(b) इथिडियम ब्रोमाइड का 
(c) एनोड का
(d) Ca++ व बर्फ का। 
उत्तर:
(b) इथिडियम ब्रोमाइड का 

प्रश्न 17. 
जीनगन में किस धातु के कणों पर डी एन ए लेपित कर उनको उच्च वेग से पोषी कोशिका पर प्रेक्षित किया जाता है-
(a) सोडियम व पोटैशियम 
(b) स्वर्ण व टंग्सटन
(c) रेडियम व पैलेडियम 
(d) आर्सेनिक व मरकरी। 
उत्तर:
(b) स्वर्ण व टंग्सटन

प्रश्न 18. 
जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में एनोड की ओर सबसे पहले पहुंचने वाले होंगे-
(a) बिना पचा डी एन ए 
(b) डी एन ए का सबसे बड़ा खण्ड 
(c) डी एन ए का सबसे छोटा खण्ड
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(c) डी एन ए का सबसे छोटा खण्ड

प्रश्न 19. 
एनीलिंग की प्रक्रिया में
(a) डी एन ए के दोनों रज्जुक अलग-अलग हो जाते हैं। 
(b) प्राइमर डी एन ए रज्जुक से संकरित हो जाता है 
(c) डी एन ए के विस्तार की गति तीन हो जाती है
(d) PCR प्रक्रिया रुक जाती है
उत्तर:
(b) प्राइमर डी एन ए रज्जुक से संकरित हो जाता है 

प्रश्न 20. 
एन्टीबायोटिक प्रतिरोधक जीन का प्लामिह वाहक के साथ जोड़ा जाना किससे सम्भव हुआ। 
(a) DNA पॉलीमरेज से 
(b) एक्सोन्यूक्लिएज से 
(c) DNA लाइगेज से
(d) एंडोन्यूक्लिएज से।
उत्तर:
(c) DNA लाइगेज से

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प्रश्न 21. 
निम्न में से कौन - सा एक प्लाज्मिड है-
(a) AIU I
(b) Hind III 
(c) Eco RI
(d) PBR 322
उत्तर:
(d) PBR 322

प्रश्न 22. 
दो जनकों के वांछित गुणों को संतति में लाने का अचूक उपाय है-
(a) संकरण
(b) जेनेटिक इंजीनियरिंग 
(c) घरेलूकरण 
(d) उत्परिवर्तन। 
उत्तर:
(b) जेनेटिक इंजीनियरिंग 

प्रश्न 23. 
काइमेरिक डी एन ए (Chimerie DNA) का निर्माण सम्भव है-
(a) उत्परिवर्तन से
(b) इकेवाना से 
(c) जेनेटिक इंजीनियरिंग से 
(d) जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस से। 
उत्तर:
(c) जेनेटिक इंजीनियरिंग से 

प्रश्न 24. 
बायोरिएक्टर में क्या आवश्यक है-
(a) ताप नियन्त्रण
(b) pH नियन्त्रण 
(c) वातन (aeration) 
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 25. 
E.coll क्लोनिंग वाहक pBR 322 के दिये जा रहे आरेखीय प्रतिवर्श में निम्नलिखित में से किस एक विकल्प के भाग (भागों) की सही पहचान की गई है-
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(a) Ori - मूल कर्तन एंजाइम
(b) Rop - घट गया परासरण दाब 
(c) Hind III, Eco RI चयनशील चिह्नक
(d) ampR, tetR एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन। 
उत्तर:
(d) ampR, tetR एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन। 

प्रश्न 26. 
DNA के पृथक्करण में ठण्डा इथेनॉल मिलाने से
(a) DNA अवक्षेपित हो जाता है 
(b) DNA को मुक्त करने के लिए कोशिका खुल जाती है 
(c) रेस्ट्रिक्शन एंजाइम का कार्य सरल हो जाता है
(d) प्रोटीन्स जैसे हिस्टोस अलग हो जाते हैं। 
उत्तर:
(a) DNA अवक्षेपित हो जाता है 

प्रश्न 27. 
विलोडन टैंक बायोरिएक्टर में तली (base) होती है
(a) चपटी (flat) 
(b) उत्तल (concave), बाहर को उभरी 
(c) नुकीली (Pointed)
(d) निश्चित नहीं रहता। 
उत्तर:
(b) उत्तल (concave), बाहर को उभरी 

प्रश्न 28. 
कौन - सा वाहक DNA के केवल एक छोटे टुकड़े को क्लोन कर सकता है-
(a) प्लाज्मिड 
(b) कास्मिड 
(c) जीवाणु का कृत्रिम गुणसूत्र
(d) यीस्ट का कृत्रिम गुणसूत्र। 
उत्तर:
(a) प्लाज्मिड 

प्रश्न 29. 
पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादित पहला हार्मोन है-
(a) थायराक्सिन
(b) प्रोजेस्टेरान 
(c) इंसुलिन
(d) एस्ट्रोजना
उत्तर:
(c) इंसुलिन

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प्रश्न 30. 
DNA पनर्योगज तकनीक में प्रयुक्त होते हैं-
1. रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज 
2. DNA लाइगेज 
3. क्लोनिंग वाहक
4. इलैक्ट्रोफोरेसिस। 
(a) 1,2
(b) 2,3 
(c) 1,3
(d) 1,2,3,4
उत्तर:
(d) 1,2,3,4

HOTS Higher Order Thinking Skills 

प्रश्न 1. 
एप्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस को प्राकृतिक जेनेटिक इंजीनियर क्यों कहा जाता है? 
उत्तर:
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस (Agrobacterium tumifaciens) मिट्टी में पाया जाने वाला एक जीवाणु है जो प्राकृतिक रूप से पौधों की आनुवंशिक संरचना में फेरबदल करने में सक्षम होता है। यह वांछित प्रोटीन प्राप्त करने के लिए अपने Ti प्लाज्मिड के एक खण्ड T - DNA को पादप कोशिका के जीनोम में स्थापित कर देता है। इसके कारण पादप कोशिकाओं की अनियन्त्रित वृद्धि होती है तथा वह इस जीवाणु के लिए आवश्यक प्रोटीन का निर्माण करती है। जेनेटिक इंजीनियरिंग का कार्य भी वांछित फीनोटाइप के लिए जीवों की आनुवंशिक संरचना में फेर-बदल (manipulation) है। चूंकि यह जीवाणु इस कार्य को स्वतः प्राकृतिक रूप से करता है अत: इसे प्राकृतिक (जेनेटिक) इंजीनियर कहा जाता है। वास्तव में मनुष्य ने यूकेरियोटिक कोशिका में जीनों का स्थानान्तरण इसी प्रकार के जीवाणुओं व विषाणुओं से सीखा है।

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प्रश्न 2. 
बायोरिएक्टर में ताप नियंत्रण की आवश्यकता क्यों होती है? 
उत्तर:
बायोरिएक्टर एक बड़ा पात्र होता है जिसमें हजारों लीटर संवर्धन माध्यम में सूक्ष्मजीवों/कोशिकाओं की वृद्धि होती है। इन जीवित कोशिकाओं की उपापचयी क्रियाओं में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह बढ़ा ताप/ऊष्मा की मात्रा जीवधारियों के लिए घातक होती है तथा प्रक्रिया को रोक सकती है। अतः बायोरिएक्टर में ताप का अनुकूल स्तर पर रखना अर्थात नियंत्रण करना आवश्यक होता है। 

प्रश्न 3. 
संक्रमणकारी जीवाणुभोजियों (bacteriophage) से जीवाणु अपनी रक्षा कैसे करते हैं? 
उत्तर:
विषाणुओं से रक्षा करने में जीवाणु दो रणनीतियाँ (strategies) अपनाते हैं। पहला, वह ऐसे रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिऐज एंजाइम पैदा करते हैं जो जीवाणुभोजी के डी एन ए के विशिष्ट स्थलों की पहचानकर उसे टुकड़ों में काट देते हैं। इससे विषाणु निष्क्रिय हो जाता है। जीवाणु अपने डी एन ए को अपने स्वयं के रेस्ट्रिक्शन एंजाइम से बचाने के लिए मेथिलीकरण (methylation) का सहारा लेते हैं। यह अपने डी एन ए में मिलने वाले समान पहचान स्थलों के कुछ क्षारकों (A या G) का मेथिलीकरण कर देते हैं जिससे रेस्ट्रिक्शन एंजाइम उन्हें पहचान नहीं पाते तथा वह बचे रहते हैं।

NCERT EXEMPLAR PROBLEMS 

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
एक एंजाइम जो DNA के सिरों से न्यूक्लियोटाइड्स को हटाता है होगा-
(a) एंडोन्यूक्लिएज 
(b) एक्जोन्यूक्लिऐज
(c) डी एन ए लाइगेज 
(d) Hind II
उत्तर:
(b) एक्जोन्यूक्लिऐज

प्रश्न 2. 
एक जीवाणु से दूसरे जीवाणु तक आनुवंशिक पदार्थ का वाइरस की मध्यस्थता से स्थानान्तरण कहलाता है-
(a) ट्रांसडक्शन (पारगमन) 
(b) काजूगेशन (संयुग्मन)
(c) ट्रांसफार्मेशन (रूपान्तरण) 
(d) ट्रांसलेशन (अनुवाद)। 
उत्तर:
(a) ट्रांसडक्शन (पारगमन) 

RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

प्रश्न 3. 
एगारोज जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस से पृथक किये डी एन ए के निरीक्षण के सन्दर्भ में निम्न में से कौन - सा कथन सही है-
(a) डी एन ए को दृश्य प्रकाश में देखा जा सकता है। 
(b) डी एन ए को बिना अभिरंजित किये दृश्य प्रकाश में देखा जा सकता है। 
(c) इथिमियम ब्रोमाइड से अभिरंजित कर DNA को दृश्य प्रकाश में देखा जा सकता है। 
(d) इथिमियम ब्रोमाइड से अभिरंजित डी एन ए को पराबैंगनी प्रकाश डालने पर देखा जा सकता है। 
उत्तर:
(d) इथिमियम ब्रोमाइड से अभिरंजित डी एन ए को पराबैंगनी प्रकाश डालने पर देखा जा सकता है। 

प्रश्न 4. 
रेस्ट्रिक्शन एंजाइम में 'रेस्ट्रिक्शन (प्रतिबन्धन) का क्या अर्थ है
(a) एंजाइम द्वारा DNA में फास्फोडाइएस्टर बन्धों का तोड़ना 
(b) डी एन ए को केवल विशिष्ट स्थानों पर काटना 
(c) जीवाणुओं में बैक्टिरियोफेज (जीवाणुभोजी) के गुणन पर रोक
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(c) जीवाणुओं में बैक्टिरियोफेज (जीवाणुभोजी) के गुणन पर रोक

प्रश्न 5. 
निम्न में से किस की अनुपस्थिति में पुनर्योगज DNA बनाया जा सकता है-
(a) रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज 
(b) डी एन ए लाइगेज
(c) डी एन ए खण्ड 
(d) ई. कोलाई। 
उत्तर:
(d) ई. कोलाई। 

प्रश्न 6. 
एगारोज जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस में डी एन ए अणुओं का पृथक्करण उनके किस गुण पर होता है-
(a) केवल आवेश 
(b) केवल आकार 
(c) आवेश व आकार का अनुपात
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(b) केवल आकार 

प्रश्न 7. 
प्लाज्मिड का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण जो इसे वाहक बनाता है-
(a) प्रतिकृतिकरण उद्भव (ori) 
(b) वरणयोग चिह्नक की उपस्थिति 
(c) रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज के पहचान स्थल की उपस्थिति
(d) इसका आकार। 
उत्तर:
(a) प्रतिकृतिकरण उद्भव (ori) 

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प्रश्न 8. 
जीवाणुओं से ही एन ए के पृथक्करण के समय कौन - सा एंजाइम प्रयोग नहीं होता-
(a) लाइसोजाइम 
(b) राइबोन्यूक्लिएज 
(c) डीआक्सीराइबोन्यूक्लिएज 
(d) प्रोटिएज।
उत्तर:
(c) डीआक्सीराइबोन्यूक्लिएज 

प्रश्न 9. 
निम्न में से किसने पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (PCR) को लोकप्रिय बनाया है-
(a) डी एन ए टेम्पलेट की सहज उपलब्धता
(b) संश्लेषित प्राइमर की उपलब्धता 
(c) सस्ते डि ऑक्सी राइबोन्यूक्लियोटाइडों की उपलब्धता
(d) तापस्थायी (थोंस्टेबिल) डी एन ए पॉलीमरेज की उपलब्धता। 
उत्तर:
(d) तापस्थायी (थोंस्टेबिल) डी एन ए पॉलीमरेज की उपलब्धता। 

प्रश्न 10. 
किसी वाहक में एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता की जीन प्रायः किसके चयन में मदद करती है-
(a) सक्षम (competent) कोशिका के 
(b) रूपान्तरित कोशिका के 
(c) पुनर्योगज कोशिका के
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(b) रूपान्तरित कोशिका के 

प्रश्न 11. 
जीवाणु के रूपान्तरण में ताप आघात (हीटशॉक) प्रक्रिया किसमें मदद करती है-
(a) डी एन ए के कोशिका भित्ति से जुड़ने में 
(b) कल्प परिवहन प्रोटीन (Membrane transport proteins) से होकर डी एन ए के ग्रहण करने (Uptake) में 
(c) जीवाणु कोशिका भित्ति में उपस्थित अस्थायी या अनित्य छिद्रों द्वारा DNA ग्रहण (Uptake) में 
(d) एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता जीन की अभिव्यक्ति में। 
उत्तर:
(c) जीवाणु कोशिका भित्ति में उपस्थित अस्थायी या अनित्य छिद्रों द्वारा DNA ग्रहण (Uptake) में 

प्रश्न 12. 
पुनर्योगज DNA अणु के निर्माण में डी एन ए लाइगेज की भूमिका
(a) दो DNA खण्डों के बीच फास्फोडाइएस्टर बन्ध का निर्माण 
(b) डी एन ए खण्डों के चिपचिपे सिरों (sticky ends) के बीच हाइड्रोजन बन्ध बनाना 
(c) सभी प्यूरीन व पिरीमिडीन क्षारकों को जोड़ना
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(a) दो DNA खण्डों के बीच फास्फोडाइएस्टर बन्ध का निर्माण 

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प्रश्न 13. 
निम्न में से कौन - सा बैक्टीरिया रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज का स्रोत नहीं है-
(a) हीमोफिलस इनफ्लुएंजो 
(b) एश्चारिधिया कोलाई 
(c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस
(d) बेसीलस एमिलओली 
उत्तर:
(c) एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिएंस

प्रश्न 14. 
PCR (पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) में निम्न में से कौन - से पद (Taq) टैक पॉलीमरेज द्वारा उत्प्रेरित होते हैं-
(a) डी एन ए अणु का विकृतिकरण (denaturation) 
(b) टेम्प्लेट डी एन ए में प्राइमर की एनीलिंग 
(c) टेम्प्लेट डी एन ए पर प्राइमर सिरे का विस्तार
(d) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(c) टेम्प्लेट डी एन ए पर प्राइमर सिरे का विस्तार

प्रश्न 15. 
निम्न में से किस को PCR तकनीक के विकास के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया-
(a) हरबर्ट बोयर
(b) हरगोविन्द खोराना 
(c) कैरी मुलिस
(d) आर्थर कोर्नबर्ग। 
उत्तर:
(c) कैरी मुलिस

प्रश्न 16. 
रेस्ट्रिक्शन एंजाइम के सन्दर्भ में निम्न में से कौन - सा कथन सही नहीं है-
(a) यह एक पैलिन्ड्रोमिक अनुक्रम की पहचान करता है। 
(b) यह एक एंडोन्यूक्लिएज है। 
(c) इसे विषाणुओं से प्राप्त किया जाता है। 
(d) यह विभिन्न प्रकार के डी एन ए अणुओं में एक ही प्रकार के चिपचिपे सिरे बनाता है।
उत्तर:
(c) इसे विषाणुओं से प्राप्त किया जाता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
प्लाज्मिड वाहक की प्रतिलिपि संख्या (copy number) किस प्रकार पुनर्योगज प्रोटीन की उत्पादित मात्रा से जुड़ी है? 
उत्तर:
प्लाज्मिड वाहक से ही विजातीय (alien) डी एन ए जोड़कर पुनयोगज डी एन ए बनाया जाता है। पोषक में जितनी इस प्लाज्मिड की काफी संख्या होगी बाह्य जीन भी उसी के साथ गुणित होगा अतः उत्पाद की मात्रा बढ़ जायेगी।

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प्रश्न 2. 
पुनर्योगज DNA बनाने के लिए क्या आप एक एक्सोन्यूक्लिएज का चयन करेंगे? 
उत्तर:
नहीं, एक्सोन्यूक्लिऐज रैखिक डी एन ए अणु के मुक्त सिरों पर क्रिया करते हैं। इनसे चिपचिपे सिरे वाले डी एन ए खण्डों का निर्माण नहीं होता। अत: यह डी एन ए की लम्बाई कम करते - करते उसे पूरा विघटित कर देगे। वर्तुल (circular) प्लाजिमड को काटने में यह समर्थ नहीं होते। 

प्रश्न 3. 
किसी वाहक के अन्दर रेस्ट्रिक्शन एंजाइम के लिए एक से अधिक पहचान स्थल नहीं होने चाहिए। टिप्पणी कीजिए। 
उत्तर:
अगर किसी वाहक में रेस्ट्रिक्शन एंजाइम हेतु एक से अधिक पहचान स्थल हैं तब वाहक के अनेक खण्ड हो जायेंगे। अतः पुनयोगज DNA नहीं बन पायेगा। 

प्रश्न 4. 
आनुवंशिक पदार्थ (DNA) के पृथक्करण के समय मिश्रण में प्रोटिएज डालने का क्या महत्व है? 
उत्तर:
प्रोटिएजेज (Proteases) प्रोटीन को पहुंचाने वाले एंजाइम हैं। कोशिका में डी एन ए के साथ अनेक प्रोटीन सम्बद्ध रहती हैं। DNA को शुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हें हटाना आवश्यक है अन्यथा यह डी एन ए पर रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज की क्रिया में बाधक होगी। 

प्रश्न 5. 
पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (PCR) में विकृतिकरण (denaturation) पद सम्पन्न नहीं किया गया। इससे PCR प्रक्रिया पर क्या प्रभाव होगा। 
उत्तर:
PCR में डी एन ए टेम्पलेट पर ही नये डी एन ए अणु का निर्माण होता है। जब विकृतिकरण नहीं होगा तो डी एन ए के एक रज्जुकी टेम्पलेट नहीं बनेंगे। अत: न तो एनीलिंग होगी न नये रज्जुक का निर्माण। 

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प्रश्न 6. 
एक ऐसे पुनर्योगज टीके (vaccine) का नाम लिखिए जो आजकल टीकाकरण कार्यक्रम में प्रयोग किया जा रहा है? 
उत्तर:
हिपेटाइटिस B टीका - Eugenix

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
जीन क्लोनिंग का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
जीन क्लोनिंग (Gene cloning): वह प्रक्रिया है जिसमें एक वांछित जीन किसी वाहक के साथ जोड़ दी जाती है। इस प्रकार बने पुनर्योगज (recombinant) डी एन ए को रूपान्तरण की प्रक्रिया में किसी पोषक (Host) कोशिका में प्रविष्ट करा दिया जाता है। प्रत्येक कोशिका में इस प्रकार का एक बाह्य जीन होता है। जब इन कोशिकाओं को सम्वर्धित किया जाता है तब जीन का भी गुणन होता है। यही जीन क्लोनिंग है। 

प्रश्न 2. 
एक वाइन बनाने वाला और एक आण्विक जीवविज्ञानी जिसने एक पुनर्योगज वैक्सीन विकसित की है, दोनों ही अपने को जैव प्रौद्योगिकीविद् या बायाटैक्नोजिस्ट समझते हैं। आपकी दृष्टि में कौन सही है? 
उत्तर:
दोनों ही सही हैं। जैव प्रौद्योगिकी एक व्यापक क्षेत्र है तथा जो किसी प्राकृतिक जीव, इसके किसी भाग तथा साथ ही आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित जीवधारियों द्वारा मनुष्य के लिए लाभकारी उत्पादों व सेवाओं के निर्माण से सम्बन्धित है। वाइन बनाने वाला यीस्ट के किसी विभेद को लेकर व्यापारिक स्तर पर फमेन्टर में वाइन बनाता है जबकि आण्विक जीवविज्ञानी ने एंटीजन के जीन को क्लोन किया है, जिससे व्यापक स्तर पर एंटीजन का उत्पादन होता है। 

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प्रश्न 3. 
आपने किसी जीन को प्लाज्मिड वाहक से जोड़कर कर पुनर्योगज ही एन ए अणु तैयार किया है। गलती से तुम्हारे किसी मित्र ने उस पात्र में जिसमें पुनर्योगज डी एन ए था, एक्सोन्यूक्लिएज एंजाइम हाल दिया। आपका प्रयोग किस प्रकार प्रभावित होगा? 
उत्तर:
प्लाज्मिड वाहक चक्रीय (circular) होते हैं अतः इस प्रयोग में पुनर्योगज डी एन ए चक्रीय होगा। अतः एक्सोन्यूक्लिऐज डालने से डी एन ए के मुक्त सिरों के अभाव में पुनयोंगज डी एन ए को कोई नुकसान नहीं होगा तथा प्रयोग अप्रभावित रहेगा। एक्सोन्यूक्लिएज, डी एन ए के सिरों (ends) से न्यूक्लियोटाइड हटाते हैं। 

प्रश्न 4. 
पुनर्योगज डी एन ए के निर्माण में प्रयोग किये जाने वाले रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम, डी एन ए को विशिष्ट पहचान स्थल पर काटते हैं। क्या हानि होती अगर वह डी एन ए को विशिष्ट पहचान
स्थलों पर न काटते? 
उत्तर:
अगर रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम डी एन ए को विशिष्ट पहचान स्थलों की बजाय किसी सांयोगिक स्थान पर काटते तब वांछित जीन व प्लाज्मिड डी एन ए में जुड़ने योग्य अनुलग्नी या चिचिपे सिरे नहीं बनते। इन जुड़ने योग्य सिरों की अनुपस्थिति में पुनर्योगज डी एन ए निर्माण सम्भव नहीं होता। 

प्रश्न 5. 
एक प्लाज्मिड ही एनएव एक रैखिक डी एन ए (दोनों समान आकार के) दोनों में रेस्ट्रिक्शन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम के लिए एक - एक पहचान स्थल है। जब इन्हें काटकर एगारोज जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा पृथक किया गया तब प्लाज्मिड ने एक पट्टी दिखाई जबकि खिक डी एन ए ने दो खण्ड दिखाये। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
प्लाज्मिड एक चक्रीय (circular) डी एन ए अणु है। एंजाइम से काटने पर यह रेखीय (linear) हो जाता है लेकिन इसके टुकड़े नहीं होते, जबकि रेखीय डी एन ए अणु एंजाइम द्वारा काटने पर दो खण्डों में बँट जाता है। अत: एगारोज जेल पर दो पट्टियाँ दिखाई देती हैं।
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प्रश्न 6. 
नीचे दिये चित्र में A, B C क्षेत्रों को पहचानिए।
RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम 10
उत्तर:
A = Bam HI
B = Pst I
C = ampR प्रतिरोधक जीन। 

प्रश्न 7. 
नीचे दिये गये PCR के चित्र में पद A, B C पहचान कर उनकी व्याख्या कीजिए।
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उत्तर:
A = विकृतिकरण (denaturation)
B = एनीलिंग
C विस्तार = एनीलिंग के बाद अगला पद विस्तार का होता है इसमें टैक (Taq) पॉलीमरेज एंजाइम प्राइमर के 3'OH का प्रयोग कर डी एन ए के पूरक रज्जुक का संश्लेषण करता है। प्राइमर एक दूसरे की ओर विस्तारित होते हैं, अत: दो प्राइमर के बीच स्थित डी एन ए की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है। Taq पॉलीमरेज थमोस्टेबिल (thermostable) होता है तथा उच्च ताप पर भी सक्रिय रहता है। यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाने के कारण डी एन ए की एक अरब प्रतियाँ बन जाती हैं। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
पुनर्योगज (recombinants) के चयन के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता चिहक की अपेक्षा रंग उत्पन्न करने वाले पदार्थं को कोड करने वाली चिड़क जीन का निवेशीय निष्क्रियकरण अधिक कारगर सिद्ध हुआ है। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
वरण योग्य चिन्हक (Selectable marker) 
किसी वाहक में 'ori' के अतिरिक्त एक वरण या चयन योग्य चिन्तक (selectable marker) की भी आवश्यकता होती है। चिन्हक (marker) की तरह पहचान बताने वाले यह स्थल अरूपान्तरित (non transformants) जीवाणु की पहचान करने व उन्हें समाप्त करने में मदद करते हैं तथा चयनित रूप से रूपान्तरित कोशिकाओं की वृद्धि में सहायक होते हैं।

रूपान्तरण (Transformation) वह प्रक्रिया है जिसमें डी एन ए का एक खण्ड जीवाणु कोशिका में प्रविष्ट कराया जाता है। जिन्होंने इस खण्ड को ग्रहण कर लिया वह जीवाणु रूपान्तरित (transformants) तथा ऐसा कर , पाने में अक्षम अरूपान्तरित (non transformants) कहलाते हैं।

एश्चीरिचिया कोलाई (Escherichia coti) जीवाणु में एंटीबायोटिक्स, जैसे 'एम्पीसिलिन, क्लोरेम्फेनीकॉल (chloramphenicol), टेट्रासाइक्लिन या कैनामाइसिन के लिए प्रतिरोधकता (resistance) प्रदान करने वाले जीन को महत्त्वपूर्ण वरण योग्य चिन्हक माना जाता है। सामान्यतः ई. कोलाई जीवाणु में इनमें से किसी भी एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता नहीं होती। अत: प्रतिरोधकता ग्रहण करना उनके रूपान्तरण (ransformation) का परिचायक हैं।

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प्रश्न 2. 
एक बायोरिएक्टर की डिजाइन को चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। आपकी प्रयोगशाला में एक फ्लास्क तथा बायोरिएक्टर जो कोशिकाओं की सतत संवर्धन विधि से वृद्धि करने में सक्षम है, की तुलना कीजिए। उत्तर:
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  1. जैवरिएक्टर में किसी पुनयोंगज प्रोटीन/उत्पाद का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है जो पलास्क में संभव नहीं है।
  2. जैवरिएक्टर में ताप नियंत्रण, pH नियंत्रण हेतु प्रावधान होते हैं। 
  3. प्रदर्श को सैम्पलिंग पोर्ट (sampling port) से निकालकर निरीक्षण कर यथानुसार उपाय किये जा सकते हैं। 
  4.  फोम ब्रेकर (foam braker) की व्यवस्था होती है। 
Bhagya
Last Updated on Dec. 4, 2023, 10:14 a.m.
Published Dec. 3, 2023