Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sanskrit संस्कृतसाहित्यस्य इतिहासः संस्कृतसाहित्यस्य प्रमखकाव्यानां परिचयः Questions and Answers, Notes Pdf.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 11 Sanskrit are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 11 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts.
[ध्यातव्य-यहाँ हम छात्रों के अभ्यासार्थ संस्कृत-साहित्य के प्रमुख काव्यों का परिचय अतिलघूत्तरात्मक एवं लघूत्तरात्मक प्रश्नों के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही विषय-वस्तु को हृदयङ्गम कराने की दृष्टि से प्रश्नोत्तर में संस्कृत का हिन्दी-अर्थ भी दिया गया है।]
1. वैदिक वाङ्मय
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न: 1.
संस्कृत साहित्य रूप वृक्षस्य मूलं किमस्ति?
(संस्कृत साहित्य रूपी वृक्ष का मूल क्या है?)
उत्तरम् :
संस्कृत साहित्य रूप वृक्षस्य मूलं वेदः अस्ति।
(संस्कृत साहित्य रूपी वृक्ष का मूल वेद है।)
प्रश्नः 2.
सर्वासां विद्यानां निधानं कः कथ्यते?
(सभी विद्याओं का खजाना किसे कहा जाता है?)
उत्तरम् :
सर्वासां विद्यानां निधानं 'वेदः' कथ्यते।
(सभी विद्याओं का खजाना 'वेद' को कहा जाता है।)
प्रश्नः 3.
'वेद' शब्दः कस्याः धातोः निष्पन्नः तस्याश्च कोऽर्थः?
('वेद' शब्द किस धातु से बना है तथा उसका अर्थ क्या है?)
उत्तरम् :
'वेद' शब्द: ज्ञानार्थक 'विद्' धातोः निष्पन्नः तस्याश्च अर्थः क्रियते-'येन ज्ञानं प्राप्यते।'
('वेद' शब्द: ज्ञानार्थक 'विद' धातु से बना है, जिसका अर्थ किया जाता है जिसके द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जावे।')
प्रश्न: 4.
विश्वस्य सर्वप्रथमं वाङ्मयं किमस्ति?
(संसार का सर्वप्रथम वाङ्मय क्या है?)
उत्तरम् :
विश्वस्य सर्वप्रथमं वाङ्मयं वेदः' वर्तते।
(संसार का सर्वप्रथम वाङ्मय 'वेद' है।)
प्रश्नः 5.
वेदाः कति सन्ति? नामानि लिखत।
(वेद कितने हैं? नाम लिखिए।)
उत्तरम् :
वेदाः चत्वारः सन्ति - ऋग्वेदः यजुर्वेदः सामवेदः अथर्ववेदश्च।
(वेद चार हैं-1. ऋग्वेद, 2. यजुर्वेद, 3. सामवेद और 4. अथर्ववेद।)
प्रश्नः 6.
वेदस्य कति अंगानि सन्ति तेषां किं च नामानि?
(वेद के कितने अंग हैं तथा उनके क्या नाम हैं?)
उत्तरम् :
वेदस्य षड् अंगानि यानि 'वेदाङ्ग' नाम्ना प्रसिद्धानि सन्ति। तेषां नामानि-शिक्षा, छन्द, व्याकरणम्, निरुक्तम्, कल्पम्-ज्योतिष च सन्ति।
(वेद के छ: अंग हैं जो वेदाङ्ग नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके नाम क्रमशः शिक्षा, छन्द, व्याकरण, निरुक्त, कल्प तथा ज्योतिष हैं।)
प्रश्नः 7.
'वेदान्त' कः कथ्यते कथं च?
('वेदान्त' किसे कहते हैं तथा क्यों?)
उत्तरम् :
'उपनिषद्' वेदान्त इति कथ्यते यतो हि 'उपनिषद्' वेदस्य अन्तिमः भागः वर्तते।
('वेदान्त' उपनिषद् को कहते हैं क्योंकि उपनिषद् वेद के अन्तिम भाग हैं।)
प्रश्नः 8.
'आरण्यकम्' कः कथ्यते?
(आरण्यक किसे कहते हैं?)
उत्तरम् :
अरण्ये पठिताः वेदभागाः 'आरण्यकम्' कथ्यते।
(अरण्य (जंगल) में पढ़े जाने वाले वेदभाग को 'आरण्यक' कहते हैं।)
प्रश्न: 9.
सर्वासां भारतीयविद्यानां आधाराः के सन्ति?
(सभी भारतीय विद्याओं के आधार कौन हैं?)
उत्तरम् :
सर्वासां भारतीयविद्यानां आधाराः वेदाः सन्ति।
(सभी भारतीय विद्याओं के आधार वेद हैं।)
प्रश्न: 10.
आरण्यकभागः केषां कृते उपयोगी भवति?
(आरण्यक भाग किनके लिए उपयोगी होता है?)
उत्तरम् :
आरण्यकभागः वानप्रस्थानां कृते उपयोगी भवति।
(आरण्यक भाग वानप्रस्थों के लिए उपयोगी होता है।)
प्रश्न: 11.
वेदस्य निर्मलं चक्षुः किं मतः?
(वेद का निर्मल नेत्र क्या माना गया है?)
उत्तरम् :
वेदस्य निर्मलं चक्षुः ज्योतिषशास्त्रम् मतम्।
(वेद का निर्मल नेत्र ज्योतिषशास्त्र को माना गया है।)
प्रश्न: 12.
वेदस्य पादौ किं मतौ?
(वेद के चरण किसे माना गया है?)
उत्तरम् :
वेदस्य पादौ छन्दः मतः।
(वेद के चरण छन्दशास्त्रं को माना गया है।)
प्रश्न: 13.
वेदपुरुषस्य मुखं किं मतम्?
(वेद रूपी पुरुष का मुख किसे माना गया है?)
उत्तरम् :
वेदपुरुषस्य मुखं व्याकरणम् मतम्।
(वेद रूपी पुरुष का मुख व्याकरण को माना गया है।)
प्रश्न: 14.
सूक्तमण्डल भेदेन कः वेदः विभक्तः?
(सूक्तमण्डल भेद से कौनसा वेद विभक्त है?)
उत्तरम् :
सूक्तमण्डल भेदेन ऋग्वेदः विभक्तः।
(सूक्तमण्डल भेद से ऋग्वेद विभक्त है।)
प्रश्न: 15.
याकोबी महोदयस्य मते ऋग्वेदस्य रचनाकाल: किमस्ति?
(याकोबी महोदय के मत में ऋग्वेद का रचनाकाल क्या है?)
उत्तरम् :
याकोबी महोदयस्य मते ऋग्वेदस्य रचनाकालः 4500 ईस्वी तः पूर्वमेव निर्धार्यते।
(याकोबी महोदय के मत में ऋग्वेद का रचनाकाल 4500 ईस्वी से पूर्व ही निर्धारित किया जाता है।)
प्रश्न: 16.
ऋग्वेदे कति मण्डलानि सन्ति?
(ऋग्वेद में कितने मण्डल हैं?)
उत्तरम् :
ऋग्वेदे दशमण्डलानि सन्ति।
(ऋग्वेद में दस मण्डल हैं।)।
प्रश्न: 17.
ऋग्वेदस्य मण्डलविभागः केन कृतः?
(ऋग्वेद का मण्डल विभाग किसके द्वारा किया गया है?)
उत्तरम् :
ऋग्वेदस्य मण्डलविभागः शाकल महर्षिणा कृतः।
(ऋग्वेद का मण्डल विभाग शाकल महर्षि ने किया है।)
प्रश्न: 18.
यास्केन कः ग्रन्थः लिखितः?
(यास्क द्वारा कौनसा ग्रन्थ लिखा गया?)
उत्तरम् :
यास्केन निरुक्तः ग्रन्थः लिखितः।
(यास्क द्वारा निरुक्त ग्रन्थ लिखा गया।)
प्रश्न: 19.
शिक्षायाः किम् प्रयोजनम्?
(शिक्षा का क्या प्रयोजन है?)
उत्तरम् :
शिक्षायाः प्रयोजनं वेदमन्त्राणां शुद्धोच्चारणमस्ति।
(शिक्षा का प्रयोजन वेद मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण है।)
प्रश्न: 20.
अथर्ववेद कथम् अनेन नाम्ना ज्ञायते?
(अथर्ववेद इस नाम से क्यों जाना जाता है?)
उत्तरम् :
महर्षिणा अथर्वणा दृष्टत्वात् अयं वेदः अथर्ववेद नाम्ना ज्ञायते।
(महर्षि अथर्वन् द्वारा दृष्ट होने से यह वेद अथर्ववेद नाम से जाना जाता है।)
प्रश्न: 21.
यज्ञविधानदृष्ट्या कति पुरोहिताः आवश्यकाः आसन्? तेषां नामानि अपि लिखत।
(यज्ञविधान की दृष्टि से कितने पुरोहित आवश्यक थे? उनके नाम भी लिखिए।)
उत्तरम् :
यज्ञविधानदृष्ट्या चत्वारः पुरोहिताः आवश्यकाः आसन्। तेषां नामानि सन्ति - होता, उद्गाथा, अध्वर्युः ब्रह्मा च।
(यज्ञ विधान की दृष्टि से चार पुरोहित आवश्यक थे। उनके नाम हैं...होता, उद्गाथा, अध्वर्यु तथा ब्रह्मा।)
प्रश्न: 22.
अथर्ववेदस्य प्राचीनतमं नाम किं आसीत्?
(अथर्ववेद का सबसे प्राचीन नाम क्या था?)
उत्तरम् :
अथर्ववेदस्य प्राचीनतमं नाम 'अथर्वाङ्गिरस' आसीत्।
(अथर्ववेद का सबसे प्राचीन नाम 'अथर्वाङ्गिरस' था।)
प्रश्न: 23.
सामगानस्य प्राणाः के सन्ति?
(सामगान के प्राण क्या हैं?)
उत्तरम् :
सामगानस्य प्राणा: स्वराः सन्ति।
(सामगान के प्राण स्वर हैं।)
प्रश्न: 24.
विषयस्य दृष्ट्या ऋग्वेदस्य मन्त्राणां कति काण्डेषु विभाजनं कृतम्?
(विषय की दृष्टि से ऋग्वेद के मन्त्रों का कितने काण्डों में विभाजन किया गया है?)
उत्तरम् :
विषयस्य दृष्ट्या ऋग्वेदस्य मन्त्राणां त्रीषु काण्डेषु विभाजनं कृतम्-कर्म, उपासना ज्ञानं च।
(विषय की दृष्टि से ऋग्वेद के मन्त्रों का तीन काण्डों में विभाजन किया गया है-कर्म, उपासना तथा ज्ञान।)
प्रश्न: 25.
वेदस्य प्राचीनतमा संहिता का स्वीकृता?
(वेद की प्राचीनतम संहिता किसे स्वीकार किया गया है?)
उत्तरम् :
वेदस्य प्राचीनतमा संहिता ऋग्वेदसंहिता स्वीकृता।
(वेद की प्राचीनतम संहिता ऋग्वेद संहिता स्वीकार की गयी है।)
प्रश्न: 26.
यजुर्वेदे कस्य प्रधानता वर्तते?
(यजुर्वेद में किसकी प्रधानता है?)
उत्तरम् :
यजुर्वेदे कर्मकाण्डस्य प्रधानता वर्तते।
(यजुर्वेद में कर्मकाण्ड की प्रधानता है।)
प्रश्न: 27.
यजुर्वेदस्य कति भागाः वर्तन्ते?
(यजुर्वेद के कितने भाग हैं?)
उत्तरम् :
यजुर्वेदस्य द्वौ भागौ स्त:-कृष्णयजुर्वेदः शुक्लयजुर्वेदश्च।
(यजुर्वेद के दो भाग हैं-कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।)
प्रश्नः 28.
अथर्ववेदः केषां संग्रह ग्रन्थः वर्तते?
(अथर्ववेद किनका संग्रह ग्रन्थ है?)
उत्तरम् :
अथर्ववेदः मन्त्रतन्त्राणां संग्रह ग्रन्थः वर्तते।
(अथर्ववेद मन्त्र एवं तन्त्रों का संग्रह ग्रन्थ है।)
प्रश्न: 29.
शतपथ ब्राह्मणस्य सम्बन्धः केन सह वर्तते?
(शतपथ ब्राह्मण का सम्बन्ध किससे है?)
उत्तरम् :
शतपथ ब्राह्मणस्य सम्बन्धः शुक्लयजुर्वेदेन सह वर्तते।
(शतपथ ब्राह्मण का सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद से है।)
प्रश्नः 30.
'गोपथ ब्राह्मणस्य सम्बन्धः केन वेदेन सह वर्तते?
('गोपथ ब्राह्मण का सम्बन्ध किस वेद से है?)
उत्तरम् :
'गोपथ' ब्राह्मणस्य सम्बन्धः अथर्ववेदेन सह वर्तते?
('गोपथ' ब्राह्मण का सम्बन्ध अथर्ववेद से है।)
प्रश्नः 31.
ब्राह्मणग्रन्थानां वर्ण्यविषयः किं वर्तते?
(ब्राह्मण ग्रन्थों का वर्ण्य-विषय क्या है?)
उत्तरम् :
ब्राह्मणग्रन्थानां वर्ण्यविषयः मूलतः विधिः, अर्थवादः विनियोगश्च वर्तते।
(ब्राह्मण ग्रन्थों का वर्ण्य-विषय मूलतः विधि, अर्थवाद एवं विनियोग है।)
प्रश्न: 32.
'रहस्यग्रन्थाः' कान् कथयन्ति?
(रहस्य ग्रन्थ किनको कहते हैं?)
उत्तरम् :
आरण्यकान रहस्यग्रन्थाः अपि कथयन्ति।
आरण्यकों को रहस्य ग्रन्थ भी कहते हैं।)
प्रश्न: 33.
आरण्यकानां वर्ण्यविषयः किं अस्ति?
(आरण्यकों का वर्ण्य-विषय क्या है?)
उत्तरम् :
आरण्यकानां वर्ण्यविषयः ब्रह्मविद्याविवेचनं यज्ञानां च गूढातिगूढरहस्यानां प्रतिपादनमस्ति।
(आरण्यकों का वर्ण्य-विषय ब्रह्मविद्या का विवेचन तथा यज्ञों के गूढातिगूढ़ रहस्यों को प्रतिपादन करना रहा है।)
प्रश्न: 34.
'उपनिषद्' शब्दः कथं निष्पन्नः?
('उपनिषद्' शब्द कैसे निष्पन्न हुआ है?)
उत्तरम् :
'उपनिषद्' शब्द: 'उप' नि उपसर्गपूर्वक सद्धातो: क्विप् प्रत्यय-संयोगेन निष्पन्नः।
('उपनिषद्' शब्द 'उप' एवं 'नि' उपसर्गपूर्वक 'सद्' धातु से क्विप् प्रत्यय लगाकर बना है।)
प्रश्न: 35.
ऋग्वेदस्य कति उपनिषदः सन्ति?
(ऋग्वेद के कितने उपनिषद् हैं?)
उत्तरम् :
ऋग्वेदस्य द्वौ उपनिषदौ स्त: - (i) ऐतरेय उपनिषद् (ii) कौषीतकी उपनिषद् च।
[ऋग्वेद के दो उपनिषद् हैं - (i) ऐतरेय उपनिषद् तथा (ii) कौषीतकी उपनिषद्।
प्रश्न: 36.
उपनिषदाम् प्रमुख प्रतिपाद्यं किमस्ति?
(उपनिषदों का प्रमुख प्रतिपाद्य क्या है?)
उत्तरम् :
उपनिषदाम प्रमुख प्रतिपाद्यं अध्यात्म' वर्तते।
(उपनिषदों का प्रमुख प्रतिपाद्य अध्यात्म है।)
प्रश्नः 37.
वेदपुरुषस्य घ्राणं किमस्ति?
[वेद पुरुष का घ्राण (घ्राणेन्द्रिय) क्या है?]
उत्तरम् :
वेदपुरुषस्य घ्राणं शिक्षा अस्ति।
(वेद पुरुष का घ्राण शिक्षा है।)
प्रश्न: 38.
कल्पसूत्राणां कति भेदाः सन्ति?
(कल्पसूत्रों के कितने भेद हैं?)
उत्तरम् :
कल्पसूत्राणां चत्वारः भेदाः सन्ति-श्रौतसूत्रम्, गृह्यसूत्रम्, धर्मसूत्रम् शुल्वसूत्रञ्च।
(कल्पसूत्रों के चार भेद हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा शुल्वसूत्र।)
प्रश्न: 39.
गृह्यसूत्रेषु कस्य वर्णनं विद्यते?
(गृह्यसूत्रों में किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
गृह्यसूत्रेषु आचारयागानां षोडश संस्काराणां च वर्णनं विद्यते।
(गृह्यसूत्रों में आचार यागों व सोलह संस्कारों का वर्णन है।)
प्रश्नः 40.
त्रयाणां वेदानां ज्योतिषां प्रणेता कः अस्ति?
(तीनों वेदों के ज्योतिषशास्त्रों का प्रणेता कौन है?)
उत्तरम् :
त्रयाणां वेदानां ज्योतिषां प्रणेता लगधोमुनिः अस्ति।
(तीनों वेदों के ज्योतिषशास्त्रों के प्रणेता लगध मुनि हैं।)
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न: 1.
'वेद' शब्दस्य संक्षेपेण व्याख्यां कुरुत।
('वेद' शब्द की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।)
उत्तरम् :
'वेद' शब्द: सत्तार्थक, विचारणार्थक प्राप्त्यर्थकश्च विद् धातोः 'घञ्' प्रत्ययस्य संयोगेन निष्पन्नः। 'वेद' शब्दस्य अर्थः 'ज्ञान', 'ज्ञानस्य विषयः', 'ज्ञानस्य साधनं च क्रियते'। 'वेद्यन्ते ज्ञाप्यन्ते धर्मादिपुरुषार्थचतुष्ट्योपाया येन स वेदः।' कृष्णयजुर्भाष्यस्य भूमिकायां सायणाचार्येण निगदितम्-'इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोर लौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेदः।' उक्त कथनस्य समर्थने सायणाचार्येण प्रमाणमपि प्रदर्शितम्
"प्रत्यक्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न बुध्यते।।
एनं विदन्ति वेदेन तस्मात् वेदस्य वेदता ॥"
('वेद' शब्द सत्तार्थक, विचारणार्थक तथा प्राप्त्यर्थक 'विद्' धातु से 'घञ्' प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न होता है। 'वेद' शब्द का अर्थ 'ज्ञान', 'ज्ञान का विषय', 'ज्ञान का साधन' किया जाता है। धर्मादि चार पुरुषार्थों की प्राप्ति के उपाय जिसके द्वारा बताये जाते हैं, उसे वेद कहते हैं। कृष्णयजुर्भाष्य की भूमिका में सायणाचार्य ने कहा है-'अभीष्ट की प्राप्ति तथा अनिष्ट के परिहारार्थ अलौकिक उपाय को बताने वाले ग्रन्थ को वेद कहा गया है।' उक्त कथन के समर्थन में सायणाचार्य ने प्रमाण भी प्रदर्शित किया है-"प्रत्यक्ष अथवा अनुमिति द्वारा जिस अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता, उस श्रेयः साधनीभूत स्वर्गादि रूप अर्थ को जो 'शब्दराशि' बोधित करता है, वही वेद शब्द का अर्थ है।")
प्रश्नः 2.
वेदानां महत्त्वं संक्षेपेण विलिख्यताम्।
(वेदों का महत्त्व संक्षेप में लिखिये।)
उत्तरम् :
वेदाः संसारे प्राचीनतमाः ग्रन्थाः सन्ति। 'वेद' एव आर्याणां धर्मस्य आधारशिला वर्तते। वेदोऽखिलोधर्ममूलम्' इदं मनुवचनं प्रसिद्धमेव वर्तते। इदमेव कारणमस्ति यत् भारतीयसंस्कृतेः अध्ययने वेदानाम् स्थानं सर्वप्रथमं वर्तते। भारतीय विद्यानां आधाराः अपि वेदा एव सन्ति। भारतीयसंस्कृते: भारतीयसभ्यतायाश्च भव्यप्रासाद: वेदरूषिणी सुदृढ़ आधारशिलायां अधिष्ठितं वर्तते। वेद एव भारतीयानां दिव्य नेत्राणि सन्ति, यानि सर्वदा दोषशून्याः भवन्ति। वेदानां महत्त्वं विज्ञाय पाश्चात्य विदुषा मैक्समूलरमहोदयेन उक्तम्
"यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले।
तावत् ऋग्वेद महिमा लोकेषु प्रचरिष्यति।"
(वेद संसार में प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। 'वेद' ही आर्यों के धर्म की आधारशिला हैं। 'वेदोऽखिलोधर्ममूलम्' मनु का यह वचन प्रसिद्ध ही है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति के अध्ययन में वेदों का स्थान सर्वप्रथम है। भारतीय विद्याओं का आधार भी वेद ही हैं। भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता का भव्य प्रासाद 'वेद' रूपी सुदृढ़ आधारशिला पर अधिष्ठित है। वेद ही भारतीयों के दिव्य नेत्र हैं, जो सर्वदा दोषशून्य रहते हैं। वेदों के महत्त्व को समझकर पाश्चात्य विद्वान् मैक्समूलर महोदय ने कहा है-"जब तक पृथ्वी पर पर्वत एवं नदियाँ रहेंगी तब तक ऋग्वेद की महिमा संसार में प्रचलित रहेगी।")
प्रश्न: 3.
ऋग्वेदस्य परिचयः संक्षेपेण लिखत। (ऋग्वेद का परिचय संक्षेप में लिखिये।)
उत्तरम् :
वैदिकसाहित्यस्य अखिलरचनासु ऋग्वेदः प्राचीनतमः महत्त्वपूर्णश्च अस्ति। छन्दोबद्धकारणात् इयं संहिता 'ऋग्वेदसंहिता' इति कथ्यते। अयं ऋग्वेदः सूक्तमण्डलभेदेन द्विधा विभक्तः अस्ति। ऋग्वेदस्य संगठनं द्वाभ्याम् क्रमाभ्याम् विहितः-अष्टकक्रमः मण्डलक्रमश्च। अष्टकक्रमानुसारेण ऋग्वेदः अष्ट अष्टकेषु विभाजितः। प्रति अष्टके अष्ट-अष्ट अध्यायाः सन्ति। एवम् अष्टकक्रमानुसारेण ऋग्वेदे अष्ट अष्टकानि चतुष्षष्ठी अध्यायाः सप्तदशोत्तर सहस्राणि च सूक्तानि प्राप्यन्ते। मण्डलक्रमानुसारेण ऋग्वेदः दशमण्डलेषु विभक्तः। तत्र पञ्चाशीतयः अनुवाकाः वर्तन्ते। ऋग्वेदस्य देवता 'ब्रह्म' वर्तते, तत्र गायत्रीछन्दः वर्णश्च श्वेतः वर्तते।
(वैदिक साहित्य की समस्त रचनाओं में ऋग्वेद प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। छन्दोबद्ध होने से यह संहिता 'ऋग्वेदसंहिता' कहलाती है। यह ऋग्वेद सूक्तमण्डल भेद से दो भागों में विभाजित है। ऋग्वेद का संगठन दो प्रकार के क्रमों से किया गया है-अष्टक क्रम तथा मण्डल क्रम। अष्टक क्रम के अनुसार ऋग्वेद को आठ अष्टकों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक अष्टक में आठ-आठ अध्याय हैं। इस प्रकार अष्टक क्रम के अनुसार ऋग्वेद में आठ अष्टक, 64 अध्याय तथा 1017 सूक्त हैं। मण्डल क्रम के अनुसार ऋग्वेद 10 मण्डलों में विभक्त है। वहाँ 85 अनुवाक हैं। ऋग्वेद का देवता 'ब्रह्म' है, 'गायत्री' छन्द है एवं वर्ण श्वेत है।)
प्रश्न: 4.
वेदानां रचनाकालविषये विदुषां मतं संक्षेपेण लिखत।
(वेदों के रचनाकाल के विषय में विद्वानों के मत संक्षेप में लिखिए।)
उत्तरम् :
वेदः विश्वसाहित्यस्य प्राचीनतमः निधिः वर्तते। केचन विद्वान्सः वेदान् अपौरुषेयान् मन्यन्ते। तेषां कथनमस्ति यत् एतादृश्याः ज्ञानराशेः निर्माणं मानवेन संभवः नास्ति। तथापि केचित् पाश्चात्य भारतीयविद्वान्स: वेदानां कालनिर्धारणस्य प्रयासं कृतवन्तः। तेषु प्रमुखाः सन्ति
(वेद विश्वसाहित्य की प्राचीनतम निधि हैं। कुछ विद्वान् वेदों को अपौरुषेय मानते हैं। उनका कथन है कि ऐसी ज्ञानराशि का निर्माण मानव द्वारा संभव नहीं है। फिर भी कुछ पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने वेदों का काल निर्धारण करने का प्रयास किया है। उनमें प्रमुख हैं -
धर तिलक महोदय ने नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार ऋग्वेद का रचनाकाल 4500 ई.पू. माना है। संक्षेप में वेदों का रचनाकाल 4500 ईस्वी पूर्व से 1500 ई.पू. तक निर्धारित किया गया है।)
प्रश्न: 5.
यजुर्वेदस्य परिचयः संक्षेपेणं लिखत।
(यजुर्वेद का परिचय संक्षेप में लिखिए।)
उत्तरम् :
'यजुष्' शब्दस्य अर्थ वर्तते - पूजा यज्ञञ्च। यजुर्वेदे कर्मकाण्डस्य प्राधान्यं वर्तते। यज्ञस्य समुचितां इतिकर्तव्यतां यजुर्वेद एव निगदति। अतएव यजुर्वेदस्य ऋत्विग् अध्वर्युः कथ्यते। यजुर्वेदस्य द्वौ भागौ स्तः कृष्णः शुक्लश्च। कृष्णयजुर्वेदे छन्दोबद्ध-मन्त्राणां गद्यात्मकविनियोगानां च साक्षात्कारं भवति। शुक्लयजुर्वेदे उक्त द्वयोरेव तत्वयोः अभावः वर्तते। महर्षिपतञ्जल्या महाभाष्ये यजुर्वेदस्य एकादशशाखानां उल्लेखं कृतवान्।
परन्तु साम्प्रतम् एतासु पञ्चशाखाः उपलब्धाः सन्ति - (क) काठक संहिता, (ख) कपिष्ठल कठ संहिता, (ग) मैत्रायणी संहिता, (घ) तैत्तिरीय संहिता (ङ) वाजसनेयी संहिता च।।
(यजुष्' शब्द का अर्थ है - पूजा एवं यज्ञ। यजुर्वेद में कर्मकाण्ड की प्रधानता है। यज्ञ की समुचित इतिकर्तव्यता को यजुर्वेद ही बतलाता है। अतएव यजुर्वेद का ऋत्विग् 'अध्वर्यु' कहलाता है। यजुर्वेद के दो भाग हैं - कृष्ण एवं शुक्ल। कृष्ण यजुर्वेद में छन्दोबद्ध मन्त्रों तथा गद्यात्मक विनियोगों के दर्शन होते हैं। शुक्ल यजुर्वेद में उक्त दोनों ही तत्त्वों का अभाव है। महर्षि पतञ्जलि ने महाभाष्य में यजुर्वेद की 11 शाखाओं की उल्लेख किया है। इनमें से केवल पाँच शाखायें उपलब्ध हैं - (क) काठक संहिता, (ख) कपिष्ठल कठ संहिता, (ग) मैत्रायणी संहिता, (घ) तैत्तिरीय संहिता तथा (ङ) वाजसनेयी संहिता।)
प्रश्नः 6.
सामवेदस्य महत्त्वं संक्षेपेण लिखत।
(सामवेद का महत्त्व संक्षेप में लिखिये।)
उत्तरम् :
'साम' शब्दस्य शाब्दिक अर्थोऽस्ति-'देवान् प्रसन्नकर्ता गानम्। संगीतशास्त्रस्य उद्गमरूपे सामवेदस्य महार्घता सुप्रमाणिता वर्तते। यदा पञ्चमनाट्यवेदस्य भरतमुनिना रचना कृता तदा 'मीत तत्त्वं' सामवेदात् जग्राह -
'जग्राह पाठ्यं ऋग्वेदात्
सामभ्यो गीतमेव च।'
सामस्य महत्त्वं प्रदर्शयन् 'शतपथ ब्राह्मणे' उक्तम्-'नासामो यज्ञो भवति।' अर्थात् सामं विना यज्ञं न भवति। अतएव वृहद्देवतायाम् उक्तम् यत् 'यः पुरुषः सामं वेत्ति सैव वेद रहस्यं जानाति - 'सामानि यो वेत्ति स वेद तत्त्वम्। गीतायां भगवता श्रीकृष्णेन स्वयमेव निगदितम्-'वेदानां सामवेदोऽस्मि।'
('साम' शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'देवों को प्रसन्न करने वाला गान'। संगीतशास्त्र के उदगम के रूप में सामवेद की महार्घता सुप्रमाणित है। जब पञ्चम नाट्यवेद की भरतमुनि द्वारा रचना की गई तब 'गीत' तत्त्व सामवेद से ही ग्रहण किया गया था - 'ऋग्वेद से पाठ्य ग्रहण किया गया तथा सामवेद से गीत को ग्रहण किया गया था।' साम के महत्त्व को दर्शाते हुए 'शतपथ ब्राह्मण' में कहा गया है...'साम के बिना यज्ञ नहीं होता है। इसलिए वृहद्देवता में कहा गया है कि 'जो पुरुष 'साम' को जानता है वही वेद के रहस्य को जानता है।' गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है - 'वेदों में मैं 'सामवेद' हूँ।')
प्रश्न: 7.
अथर्ववेदस्य संक्षिप्त परिचयं लिखत।
(अथर्ववेद का संक्षिप्त परिचय लिखिये।)
उत्तरम् :
अथर्ववेदः - अथर्ववेदः मन्त्रतन्त्राणाम् संग्रहग्रन्थः वर्तते। चतुषु वैदिक संहितासु अन्तिमस्थानं अथर्ववेदस्य वर्तते। अंगिरावंशीय अथर्वाऋषिणा दृष्टत्वात् अयं वेदः 'अथर्ववेद संहिता' इति नाम्नः ज्ञायते। अथर्ववेदस्य प्राचीनतर नाम 'अथर्वाङ्गिरस' आसीत्। कालान्तरं संक्षिप्तो भूत्वा अयं अथर्ववेदः निगदितः। अथर्वन्' शब्दात् पवित्रं श्वेतं वा अभिचारः आङ्गिरसात् च अपवित्रं अश्वेतं श्यामं वा अभिचारस्य अर्थः गृह्यते। अथर्ववेदे वैदिककालीन अनेक विद्यानां महाविद्यानां च वर्णन वर्तते। अस्य प्रथमभागः सप्तकाण्डात्मक वर्तते। द्वितीयभागे अष्टमकाण्डात् द्वादशकाण्डपयेन्त अंशः संग्रहितः। द्वादशकाण्डस्य पृथ्वीसूक्तं अतिमहत्त्वपूर्ण मन्यते।
(अथर्ववेद-अथर्ववेद मन्त्र एवं तन्त्रों का संग्रह ग्रन्थ है। चारों वैदिक संहिताओं में अन्तिम स्थान अथर्ववेद का है। अंगिरावंशीय अथर्वा ऋषि द्वारा दृष्ट होने के कारण इस वेद को अथर्ववेद संहिता के नाम से जाना जाता है। अथर्ववेद का प्राचीनतर नाम 'अथर्वाङ्गिरस' था। कालान्तर में संक्षिप्त होकर यह अथर्ववेद कहलाने लगा। अथर्वन् शब्द से पवित्र या श्वेत अभिचार (जादू-टोना) और अङ्गिरस से अपवित्र या काला जादू का अर्थ ग्रहण किया जाता है। अथर्ववेद में वैदिककालीन अनेक विद्याओं एवं महाविद्याओं का वर्णन हुआ है। इसका प्रथम भाग सप्तकाण्डात्मक है। द्वितीय भाग में आठवें काण्ड से बारहवें काण्ड तक का अंश संग्रहित है। बारहवें काण्ड का पृथ्वी सूक्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है।)
प्रश्नः 8.
ब्राह्मणग्रन्थानां संक्षेपेण परिचयं दीयताम्।
(ब्राह्मण ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय दीजिए।)
उत्तरम् :
वेदब्राह्मणयोः अति घनिष्ठ सम्बन्धः वर्तते। ब्राह्मणग्रन्थाः संहितानां परिशिष्टाः सन्ति। आपस्तम्बऋषिणा मन्त्र ब्राह्मणयोः समवायमेव वेदसंज्ञा प्रदत्ता। उभयोः प्रमुख उद्देश्यं यज्ञानां प्रतिपादनमस्ति। एवं ब्राह्मणग्रन्थाः ते उच्यन्ते, येषु यज्ञीयविधानं निहितं वर्तते। यज्ञानां कर्मकाण्डस्य व्याख्यां प्रस्तुतीकरणं ब्राह्मणग्रन्थानां कार्यमस्ति। इमे ब्राह्मणग्रन्थाः गद्यात्मकं. विवरणात्मकं च सन्ति।
प्रत्येकं वेदस्य स्व-स्व ब्राह्मणाः सन्ति ! ऋग्वेदस्य द्वौ ब्राह्मणौ स्त:-ऐतरेय कौषीतकी च। कौषीतकी शांखायनमपि कथयन्ति। सामवेदेन सम्बन्धः तवल्कारः अथवा आर्षेयः, शुक्लयजुर्वेदेन सम्बन्धः शतपथब्राह्मणः, कृष्णयजुर्वेदेन सम्बन्धः तैत्तिरीयः मैत्रायणी च अथर्ववेदेन सम्बन्धः 'गोपथ ब्राह्मणः वर्तते।
(वेद एवं ब्राह्मणों का बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। ब्राह्मण ग्रन्थ संहिताओं के परिशिष्ट हैं। आपस्तंब ऋषि ने मंत्र तथा ब्राह्मण दोनों के समवाय को ही वेद संज्ञा प्रदान की है। मन्त्र एवं ब्राह्मण दोनों का प्रमुख उद्देश्य यज्ञों का प्रतिपादन ही है। इस प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थ वे कहलाते हैं जिनमें यज्ञीय विधान निहित हैं। यज्ञों के कर्मकाण्ड की व्याख्या प्रस्तुत करना ब्राह्मण ग्रन्थों का कार्य है। ये ब्राह्मण ग्रन्थ गद्यात्मक तथा विवरणात्मक हैं।
प्रत्येक वेद के अपने-अपने ब्राह्मण हैं। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं - ऐतरेय तथा कौषीतकी। कौषीतकी को शांखायन भी कहते हैं। सामवेद से सम्बन्ध तवल्कार या आर्षेय, शुक्ल यजुर्वेद से 'शतपथ', कृष्ण यजुर्वेद से सम्बन्ध 'तैत्तिरीय', मैत्रायणी तथा अथर्ववेद से सम्बन्ध 'गोपथ ब्राह्मण है।)
प्रश्नः 9.
'शतपथब्राह्मणे' संक्षेपेण टिप्पणी लिख्यताम्।
('शतपथ ब्राह्मण' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
अयं ग्रन्थः वैदिकसाहित्यस्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थः वर्तते। अस्य ब्राह्मणस्य सम्बन्धः शुक्लयजुर्वेदेन सह वर्तते। अस्मिन् शत अध्यायाः वर्तन्ते, अतएव अस्य नाम 'शतपथ' जातः। काण्वमाध्यन्दिनयोः उभयोः शाखयोः ब्राह्मणः शतपथ: वर्तते। यज्ञानां विस्तृत वर्णनेन सार्द्ध अस्मिन् अनेकानि प्राचीनानि आख्यानानि वर्तन्ते। सायणाचार्येण शतपथब्राह्मणस्य मक्तकण्ठेन प्रशंसा कता। तेन कथितम यत शतपथब्राह्मणस्य मार्मिकाध्ययनेन अध्यात्मविद्यायाः ज्ञानं, वैदिकविषयानां ज्ञानं पुराकल्पस्य इतिहासस्य च ज्ञानं, अन्यसाधनैः यत्र बाधितं वर्तते तत्र शतपथस्य अध्ययनेन अनायासेन प्राप्यते।
(यह ग्रन्थ वैदिक साहित्य का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ब्राह्मण का सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद से है। इसमें सौ अध्याय हैं, अतएव इसका नाम 'शतपथ' पड़ा। काण्व व माध्यन्दिन दोनों शाखाओं का ब्राह्मण शतपथ है। यज्ञों के विस्तृत वर्णन के साथ-साथ इसमें कई प्राचीन आख्यान हैं। सायणाचार्य ने शतपथ ब्राह्मण की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। उन्होंने कहा है कि शतपथ ब्राह्मण के मार्मिक अध्ययन से अध्यात्म विद्या का ज्ञान, वैदिक विषयों का ज्ञान एवं पुराकल्प के इतिहास का ज्ञान, अन्य साधनों से जहाँ बाधित है वहाँ शतपथ के अध्ययन से सहज ही हो जाता है।)
प्रश्नः 10.
प्रमख उपनिषदः कति सन्ति? तासाम प्रतिपाद्यविषयस्य संक्षेपेण विवेचनं करुत।
(प्रमुख उपनिषद् कितने हैं? उनके प्रतिपाद्य विषय का संक्षेप में विवेचन कीजिए।)
उत्तरम् :
उपनिषदां संख्याविषये विदुषां वैमत्यं वर्तते। मुक्तिकोपनिषदानुसारेण ऋग्वेद-शुक्लयजुर्वेद-कृष्णयजुर्वेद सामवेद-अथर्ववेदेन सम्बद्धा क्रमशः दश, एकोनविंशतिः, द्वादश, षोडश एकत्रिंशत् चोपनिषदः सन्ति। मद्रासस्य अड्यारपुस्तकालये उपनिषदां संख्या अष्टाधिक शतं वर्तते। एतासु अधोलिखित दश प्राचीनतमा प्रामाणिकं च मन्यते -
"ईश केन कठ प्रश्न मुण्डक माण्डुक्यतित्तिरः
ऐतरेयं च छान्दोग्यं वृहदारण्यकं दश ॥'
ऐतेषां उपरि आचार्यशङ्करेण स्वमहत्त्वपूर्ण भाष्यमपि लिखितम्।
उपनिषत्सु इहलोकपरलोकयोः दार्शनिकजिज्ञासाः अभिव्यक्ताः जाताः। जगत्, ब्रह्म, उत्पत्तिः, विनाशः, आत्मा परमात्मा इत्यादयः गूढाः विषयाः अत्र प्रस्तुताः। जगतः मिथ्यात्वं जीवात्मापरमात्मयो: अभिन्नता उपनिषत्सु प्रतिपादितम्।
(उपनिषदों की संख्या के विषय में विद्वानों में वैमत्य है। मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद, कृष्ण यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद से सम्बद्ध क्रमशः 10, 19, 12, 16 तथा 31 उपनिषदें हैं। मद्रास के अड्यार पुस्तकालय में उपनिषदों की संख्या 108 है। इनमें से निम्नांकित दस को प्राचीनतम तथा प्रामाणिक माना जाता है 'ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य तथा वृहदारण्यक।' इन पर आचार्य शंकर ने अपना महत्त्वपूर्ण भाष्य भी लिखा है। उपनिषदों में इहलोक व परलोक की दार्शनिक जिज्ञासायें अभिव्यक्त हुई हैं। संसार, ब्रह्म, उत्पत्ति, विनाश, आत्मा-परमात्मा इत्यादि गूढ़ विषय यह त किये गये हैं। संसार का मिथ्यात्व एवं जीवात्मा व परमात्मा की अभिन्नता उपनिषदों में प्रतिपादित की गई है।)
प्रश्न: 11.
आरण्यकग्रन्थानां प्रतिपाद्यविषयस्य संक्षेपेण विवेचनं कुरुत।
(आरण्यक ग्रन्थों के प्रतिपाद्य विषय का संक्षेप में विवेचन कीजिए।)
उत्तरम् :
आरण्यकानां रचना ब्राह्मणग्रन्थानां परिशिष्टभागस्य रूपे संजाता। आरण्यकानां स्वरूपं रहस्यमयं वर्तते। एतेषाम् मुख्यविषयः ब्रह्मविद्यायाः विवेचनं यज्ञानां गूढातिगूढ़ रहस्यानां च प्रतिपादनमस्ति। आरण्यकेषु यज्ञानां आध्यात्मिकं तात्त्विकं स्वरूपस्य च विवेचनं लभ्यते। यज्ञादतिरिक्तं प्राणविद्यायाः विवेचनमपि आरण्यकानां विशिष्टविषयः कथयितुं शक्यते। आरण्यकेषु प्रतिपादितम् यत् प्राणा एव चराचरस्य एकमात्रं आधार अस्ति। सम्पूर्णजगत् प्राणैरेव आवृत्तमस्ति। जगतः समस्ताप्राणिनः प्राणैरेव चेतनतां स्वीकुर्वन्ति। मुख्यतः आरण्यकाः अध्यात्मतत्त्वस्य विवेचनां कुर्वन्ति। यज्ञानां आदिदैविकस्वरूपस्य विवरणमपि प्रस्तुतं कुर्वन्ति।
(आरण्यकों की रचना ब्राह्मण ग्रन्थों के परिशिष्ट भाग के रूप में हुई है। आरण्यकों का स्वरूप रहस्यमय है। इनका मुख्य विषय ब्रह्म-विद्या का विवेचन तथा यज्ञों के गूढातिगूढ़ रहस्यों का प्रतिपादन करना रहा है। आरण्यकों में यज्ञों के
आध्यात्मिक एवं तात्विक स्वरूप का विवेचन उपलब्ध होता है। यज्ञ के अतिरिक्त प्राण विद्या का विवेचन भी आरण्यकों का विशिष्ट विषय कहा जा सकता है। आरण्यकों में बतलाया गया है कि प्राण ही चराचर का एकमात्र आधार है। सम्पूर्ण जगत् प्राण से ही आवृत्त है। संसार के समस्त प्राणी प्राण द्वारा ही चेतनता को अपनाते हैं। मुख्यतः आरण्यक अध्यात्म तत्त्व का विवेचन करते हैं। यज्ञों के आधिदैविक स्वरूप का विवरण भी प्रस्तुत करते हैं।)
2. लौकिक-साहित्य
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
(i) रामायणम् (रामायण)
प्रश्न: 1.
'आदिकविः' 'आदिकाव्यं च कः मन्यते?
('आदिकवि' व 'आदिकाव्य' किसे माना गया है?)
उत्तरम् :
आदिकवि: वाल्मीकिः आदिकाव्यं च रामायणं मन्यते।
(आदिकवि वाल्मीकि तथा आदिकाव्य रामायण को माना गया है।)
प्रश्न: 2.
रामायणे कस्य वर्णनं कृतम्?
(रामायण में किसका वर्णन किया गया है?)
उत्तरम् :
रामायणे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामस्य वर्णनं कृतम्।
(रामायण में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का वर्णन किया गया है।)
प्रश्न: 3.
'चतुर्विंशतिसाहस्त्री संहितां' कः ग्रन्थः कथ्यते?
('चतुर्विंशतिसाहस्री संहिता' कौनसा ग्रन्थ कहा जाता है?)
उत्तरम् :
रामायणम् 'चतुर्विंशतिसाहस्री संहिता' कथ्यते।
(रामायण को 'चतुर्विंशतिसाहस्री संहिता' ग्रन्थ कहा जाता है।)
प्रश्न: 4.
रामायणस्य कथावस्तु कति काण्डेषु विभक्ता वर्तते?
(रामायण की कथावस्तु कितने काण्डों में विभक्त है?)
उत्तरम् :
रामायणस्य कथावस्तु सप्तकाण्डेषु विभक्ता वर्तते।
(रामायण की कथावस्तु सात काण्डों में विभक्त है।)
प्रश्न: 5.
रामायणे प्रक्षिप्तकाण्डानि कानि सन्ति?
(रामायण में प्रक्षिप्तकाण्ड कौनसे हैं?)
उत्तरम् :
रामायणे प्रक्षिप्तकाण्डे बालकाण्डोत्तरकाण्डे च मन्येते।
(रामायण में प्रक्षिप्तकाण्ड बालकाण्ड व उत्तरकाण्ड माने गये हैं।)
प्रश्नः 6.
रामायणस्य सन्दर्भ जैकोबी महोदयः कां मान्यतां प्रस्तुतं कृतवान्?
(रामायण के सन्दर्भ में जैकोबी महोदय ने क्या मान्यता प्रस्तुत की?)
उत्तरम् :
रामायणस्य सन्दर्भे जैकोबी महोदयः प्रमाणितमकरोत् यत् प्रारंभे रामायणे केवलं पञ्च एव काण्डानि आसन।
(रामायण के सन्दर्भ में जैकोबी ने प्रमाणित किया कि प्रारम्भ में रामायण में केवल पाँच ही काण्ड थे।)
प्रश्न: 7.
रामायणकाले स्त्रीणां स्थितिः कीदृशी आसीत्?
(रामायण काल में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी?)
उत्तरम् :
रामायणकाले स्त्रीणां स्थितिः श्रेष्ठा मर्यादिता चासीत्।
(रामायण काल में स्त्रियों की स्थिति श्रेष्ठ एवं मर्यादित थी।)
प्रश्न: 8.
रामायणकालीन समाजस्य मूल आधारः किमासीत्?
रामायणकालीन समाज का मूलाधार क्या था?)।
उत्तरम् :
रामायणकालीन समाजस्य मूलाधारः धर्म आसीत्।
(रामायणकालीन समाज का मूल आधार धर्म था।)
प्रश्न: 9.
रामायणे कस्य रसस्य प्राधान्यं वर्तते?
(रामायण में किस रस की प्रधानता है?)
उत्तरम् :
रामायणे अङ्गीरसः करुणः अन्ये च रसाः अङ्गीभूताः सन्ति।
(रामायण में अङ्गीरस करुण तथा अन्य रस अंगभूत हैं।)
प्रश्न: 10.
काव्यदृष्ट्या रामायणस्य भाषा कीदृशी वर्तते?
(काव्य की दृष्टि से रामायण की भाषा कैसी है?)
उत्तरम् :
काव्यदृष्ट्या रामायणस्य भाषा सरला, ललिता, प्राञ्जला परिष्कृता चास्ति।
(काव्य की दृष्टि से रामायण की भाषा सरल, ललित, प्राञ्जल तथा परिष्कृत है।)
प्रश्न: 11.
वाल्मीकिरामायणस्य महत्त्वं कस्मिन् रूपे वर्तते?
(वाल्मीकि रामायण का महत्त्व किस रूप में है?)
उत्तरम् :
वाल्मीकिरामायणं भारतीयसंस्कृतेः सर्वश्रेष्ठं सम्मानितं च गृहस्थाश्रमस्य महान् काव्यमस्ति। अस्यादर्श: अस्ति-गृहस्थजीवनस्य पूर्णाभिव्यक्तिः।
(वाल्मीकि रामायण भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ एवं सम्मानित गृहस्थ आश्रम का महान् काव्य है। इसका आदर्श है-गृहस्थ जीवन की पूर्ण अभिव्यक्ति।)
(ii) महाभारतम् (महाभारत)
प्रश्न: 1.
विश्वस्य सम्पूर्ण साहित्ये सर्वाधिकविशालग्रन्थः कः?
(संसार के सम्पूर्ण साहित्य में सर्वाधिक विशाल ग्रन्थ कौनसा है?)
उत्तरम् :
विश्वस्य सम्पर्ण साहित्ये 'महाभारतम' सर्वाधिकविशालग्रन्थः अस्ति।
(संसार के सम्पूर्ण साहित्य में 'महाभारत' सर्वाधिक विशाल ग्रन्थ है।)
प्रश्न: 2.
कः ग्रन्थः शतसाहस्त्री संहिता उक्तः?
(कौनसा ग्रन्थ शतसाहस्त्री संहिता कहा गया है?)
उत्तरम् :
'महाभारतम्' 'शतसाहस्त्री संहिता' उक्तः।
('महाभारत' 'शतसाहस्री संहिता' कहा गया है।)
प्रश्नः 3.
महाभारतस्य अन्यनामानि कानि सन्ति?
(महाभारत के अन्य नाम क्या-क्या हैं?)
उत्तरम् :
महाभारतस्य अन्यनामानि 'कार्णवेदः', 'पञ्चमवेदः', 'शतसाहस्त्री-संहिता' इत्यादयः सन्ति।
(महाभारत के अन्य नाम 'कार्णवेद', 'पञ्चम वेद' तथा 'शतसाहस्री संहिता' आदि हैं।)
प्रश्न: 4.
महाभारतं कस्मात् विश्वकोशः पञ्चमवेदश्च कथ्यते?
(महाभारत किसलिए विश्वकोश तथा पञ्चम वेद कहलाता है?)
उत्तरम् :
महाभारते इतिहास, धर्मनीतिदर्शनानां अमूल्यनिधिः अस्ति, अतएव विश्वकोशः पञ्चमवेदश्च कथ्यते।
(महाभारत में इतिहास, धर्म-नीति तथा दर्शन की अमूल्य निधि है, इसलिए विश्वकोश तथा पञ्चमवेद कहलाता)
प्रश्न: 5.
श्रीमद्भगवद्गीता कस्यांशः वर्तते?
(श्रीमद्भगवद्गीता किसका अंश है?)
उत्तरम् :
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतस्य एकांशः वर्तते।
(श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का एक अंश है।)
प्रश्नः 6.
महाभारतस्य विकासस्य कति सोपानानि सन्ति?
(महाभारत के विकास के कितने सोपान हैं?)
उत्तरम् :
महाभारतस्य विकासस्य त्रीणि सोपानानि सन्ति - जयः, भारतम् महाभारतम् च।
(महाभारत के विकास के तीन सोपान हैं- जय, भारत तथा महाभारत।)
प्रश्नः 7.
'कार्णवेदः' कः कथ्यते तस्य रचनाकारस्य मूलनाम किमस्ति?
(कार्ण वेद किसे कहा जाता है तथा उसके रचनाकार का मल नाम क्या है?)
उत्तरम् :
'महाभारतम्' 'कार्णवेदः कथ्यते, अस्य रचनाकारस्य मूलनाम श्रीकृष्ण-द्वैपायनः अस्ति।
(महाभारत को कार्ण वेद कहा जाता है तथा इसके रचनाकार का मूल नाम श्रीकृष्ण द्वैपायन है।)
प्रश्न: 8.
मैकडोनलस्य मतानुसारेण जयकाव्ये कति श्लोकाः सन्ति?
(मैकडोनल के मतानुसार जयकाव्य में कितने श्लोक हैं?)
उत्तरम् :
मैकडोनलस्य मतानुसारेण जयकाव्ये अष्टौशतान्यधिक अष्टौ सहस्राणि श्लोकाः सन्ति।
(मैकडोनल के मतानुसार जयकाव्य में 8800 श्लोक हैं।)
प्रश्नः 9.
वर्तमान महाभारतम् कति पर्वसु विभाजितमस्ति?
(वर्तमान महाभारत कितने पर्यों में विभाजित है?)
उत्तरम् :
वर्तमान महाभारतम् अष्टादश पर्वसु विभाजितमस्ति।
(वर्तमान महाभारत 18 पर्यों में विभाजित है।)
प्रश्नः 10.
महाभारतस्य अनुशासनपर्वणि कस्य विषयस्य वर्णनं वर्तते?
(महाभारत के अनुशासन पर्व में किस विषय का वर्णन है?)
उत्तरम् :
महाभारतस्य अनुशासनपर्वणि दान-धर्म-दर्शनानां विस्तृतविवेचनमस्ति। सूर्य उत्तरायणे जाते भीष्मस्य स्वर्गगमनं वर्णनं वर्तते।
(महाभारत के अनुशासन पर्व में दान, धर्म, दर्शन आदि का विस्तृत विवेचन है। सूर्य के उत्तरायण होने पर भीष्म के स्वर्ग गमन का वर्णन है।)
प्रश्न: 11.
डॉ. वचनदेवकुमारस्य मतानुसारेण महाभारतस्य रचना कदा अभवत्?
(डॉ. वचनदेव कुमार के मतानुसार महाभारत की रचना कब हुई?)
उत्तरम् :
डॉ. वचनदेवकुमारस्य मतानुसारेण महाभारतस्य रचना ईसा पूर्व 3100 वर्ष पूर्व अभवत्।
(डॉ. वचनदेव कुमार के मतानुसार महाभारत की रचना ईसा पूर्व 3100 वर्ष पहले हुई थी।)
प्रश्न: 12.
महाभारतम् महाकाव्यम् पुराणं वा?
(महाभारत महाकाव्य है या पुराण?)
उत्तरम् :
महाभारतम् न केवलं महाकाव्यम् अस्ति न केवलं पुराणमस्ति अपितु इतिहासपुराणमस्ति।
(महाभारत न केवल महाकाव्य है और न पुराण अपितु 'इतिहासपुराण' है।)
(iii) महाकाव्यम् (महाकाव्य)
प्रश्न: 1.
महाकाव्यस्य संक्षिप्तलक्षणं किमस्ति?।
(महाकाव्य का संक्षिप्त लक्षण क्या है?)
उत्तरम् :
महाकाव्यस्य संक्षिप्तलक्षणं 'सर्गबद्धो महाकाव्यम्' इत्यस्ति।
(महाकाव्य का संक्षिप्त लक्षण 'महाकाव्य सर्गबद्ध होना चाहिए' इस प्रकार है।)
प्रश्न: 2.
महाकाव्ये प्रधानरसः कः स्यात्?
(महाकाव्य में प्रधान रस कौनसा होना चाहिए?)
उत्तरम् :
महाकाव्ये शृङ्गार-वीर-करुण रसेषु कोऽपि एकः प्रधानरसः स्यात् अन्ये च रसाः अङ्गीभूताः स्यात्।
(महाकाव्य में शृङ्गार, वीर और करुण रसों में से कोई एक प्रधान तथा शेष रस अङ्गीभूत होने चाहिए।)
प्रश्न: 3.
मंगलाचरणम् कतिविधम् प्राप्यते?
(मंगलाचरण कितने प्रकार के प्राप्त होते हैं?)
उत्तरम् :
मंगलाचरणम् त्रिविधम् प्राप्यते - नमस्कारात्मकम्, आशीर्वादात्मकम् वस्तुर्निर्देशात्मकञ्च।
(मंगलाचरण तीन प्रकार के प्राप्त होते हैं-नमस्कारात्मक, आशीर्वादात्मक तथा वस्तुनिर्देशात्मक।)
प्रश्न: 4.
महाकाव्यस्य नायकः कीदृशः भवेत्?
(महाकाव्य का नायक कैसा होना चाहिए?)
उत्तरम् :
महाकाव्यस्य नायकः कोऽपि देवता अथवा श्रेष्ठकुलोत्पन्नः क्षत्रियः भवेत्।
(महाकाव्य का नायक कोई देवता अथवा श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न क्षत्रिय होना चाहिए।)
प्रश्नः 5.
संस्कृतस्य बौद्धकविषु कस्य स्थानं सर्वोच्चमस्ति?
(संस्कृत के बौद्ध कवियों में किसका स्थान सर्वोच्च है?)
उत्तरम् :
संस्कृतस्य बौद्धकविषु अश्वघोषस्य स्थानं सर्वोच्चमस्ति।
(संस्कृत के बौद्ध कवियों में अश्वघोष का स्थान सर्वोच्च है।)
प्रश्नः 6.
अश्वघोषस्य स्थितिकालः किं मन्यते?
(अश्वघोष का स्थितिकाल क्या माना जाता है?)
उत्तरम् :
अश्वघोषस्य स्थितिकालः ई.पू. प्रथम शताब्दी मन्यते।
(अश्वघोष का स्थितिकाल ई. पूर्व प्रथम शताब्दी माना जाता है।)
प्रश्नः 7.
अश्वघोषः कति महाकाव्याना रचयिता अस्ति?
(अश्वघोष कितने महाकाव्यों के रचयिता हैं?)
उत्तरम् :
अश्वघोषः द्वयोः महाकाव्ययोः रचयिता अस्ति - बुद्धचरितम् सौन्दरनन्दश्च।
(अश्वघोष दो महाकाव्यों के रचयिता हैं - बुद्धचरित एवं सौन्दरनन्द।)
प्रश्न: 8.
अश्वघोषस्य मातुः किं नाम आसीत्?
(अश्वघोष की माता का क्या नाम था?)
उत्तरम् :
अश्वघोषस्य मातुः नाम सुवर्णाक्षी आसीत्।
(अश्वघोष की माता का नाम सुवर्णाक्षी था।)
प्रश्नः 9.
बुद्धचरितस्य कति सर्गाः उपलब्धाः?
(बुद्धचरित के कितने सर्ग उपलब्ध हैं?)
उत्तरम् :
बुद्धचरितस्य अष्टविंशतिः सर्गाः उपलब्धाः।
(बुद्धचरित के 28 सर्ग उपलब्ध हैं।)
प्रश्नः 10.
बुद्धचरितस्य प्रमुख रसः किमस्ति?
(बुद्धचरित का प्रमुख रस क्या है?)
उत्तरम् :
बुद्धचरितस्य प्रमुख रसः शान्तः अस्ति।
(बुद्धचरित का प्रमुख रस शान्त है।)
प्रश्न: 11.
बुद्धचरितस्य भाषा कीदृशी अस्ति?
(बुद्धचरित की भाषा कैसी है?)
उत्तरम् :
बुद्धचरितस्य भाषा सरला, प्रसाद माधुर्यगुण युक्ताचास्ति।
(बुद्धचरित की भाषा सरल तथा प्रसाद एवं माधुर्य गुण से युक्त है।).
प्रश्न: 12.
सौन्दरनन्दमहाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?
(सौन्दरनन्द महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
सौन्दरनन्दमहाकाव्ये अष्टादश सर्गाः सन्ति।
(सौन्दरनन्द महाकाव्य में 18 सर्ग हैं।)
प्रश्न: 13.
सौन्दरनन्दमहाकाव्यस्य किं वैशिष्टयं वर्तते?
(सौन्दरनन्द महाकाव्य की क्या विशेषता है?)
उत्तरम् :
सौन्दरनन्दमहाकाव्ये काव्यत्वदर्शनयोः द्वयोः परस्परविरोधी ध्रुवयोः एकीकरणं संजातम्।
(सौन्दरनन्द महाकाव्य में काव्यत्व एवं दर्शन दो विरोधी ध्रुवों का एकीकरण हुआ है।)
प्रश्न: 14.
सौन्दरनन्दमहाकाव्यस्य शैली कीदृशी वर्तते?
(सौन्दरनन्द महाकाव्य की शैली कैसी है?)
उत्तरम् :
सौन्दरनन्दमहाकाव्यस्य शैली शुद्धवैदर्भी वर्तते।
(सौन्दरनन्द महाकाव्य की शैली शुद्ध वैदर्भी है।)
प्रश्न: 15.
सौन्दरनन्दस्य बंगलाभाषायां अनवादः केन प्रकाशितः?
(सौन्दरनन्द का बंगला भाषा में अनुवाद किसने प्रकाशित किया?)
उत्तरम् :
सौन्दरनन्दस्य बंगलाभाषायां अनुवादः डॉ. विमलचन्द्र लाहा महोदयेन प्रकाशितः।
(सौन्दरनन्द का बंगला भाषा में अनुवाद डॉ. विमलचन्द्र लाहा ने प्रकाशित किया था।)
प्रश्न: 16.
लघुत्रयी इति नाम्ना कानि काव्यानि प्रसिद्धानि सन्ति?
(लघुत्रयी के नाम से कौन-कौनसे काव्य प्रसिद्ध हैं?)
उत्तरम् :
महाकवि कालिदासस्य 'कुमारसंभवम्', 'रघुवंशम्' 'मेघदूत' च काव्यानि लघुत्रयी इति नाम्ना प्रसिद्धानि सन्ति।
(महाकवि कालिदास के कुमारसंभव, रघुवंश और मेघदूत काव्य लघुत्रयी के नाम से प्रसिद्ध हैं।)
प्रश्नः 17.
'कुमारसंभवम्' महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?
('कुमारसंभवम्' महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'कमारसंभवम' महाकाव्ये सप्तदश सर्गाः सन्ति।
('कुमारसंभवम्' महाकाव्य में सत्रह सर्ग हैं।)
प्रश्न: 18.
मल्लिनाथेन कुमारसंभवस्य कतिसर्गेषु टीका लिखिता?
(मल्लिनाथ ने कुमारसंभव के कितने सर्गों पर टीका लिखी है?)
उत्तरम् :
मल्लिनाथेन कुमारसंभवस्य प्रारंभिक अष्टसर्गेषु टीका लिखिता।
(मल्लिनाथ ने कुमारसंभव के प्रारम्भिक आठ सर्गों पर टीका लिखी है।)
प्रश्न: 19.
कुमारसंभवस्य कस्मिन् सर्गे पार्वती शिवयोः रतिक्रीडावर्णन
(कुमारसंभव के किस सर्ग में शिव-पार्वती की रतिक्रीडा का वर्णन है?)
उत्तरम् :
कुमारसंभवस्य अष्टम् सर्गे पार्वती शिवयोः रतिक्रीडावर्णनम् अस्ति।
(कुमारसंभव के आठवें सर्ग में शिव-पार्वती की रतिक्रीड़ा का वर्णन है।)
प्रश्न: 20.
कुमारसंभवमहाकाव्यस्य कथायाः प्रारंभः कुत्रतः कृतः?
('कुमारसंभव' महाकाव्य की कथा का प्रारम्भ कहाँ से किया गया है?)
उत्तरम् :
कुमारसंभवमहाकाव्यस्य कथायाः प्रारंभः हिमालयवर्णनात् कृतः।
('कुमारसंभव' महाकाव्य की कथा का प्रारम्भ हिमालय वर्णन से किया गया है।)
प्रश्न: 21.
कुमारसंभवमहाकाव्यस्य कः सन्देशः अस्ति?
(कुमारसंभव महाकाव्य का क्या सन्देश है?)
उत्तरम् :
कुमारसंभवमहाकाव्यस्य सन्देशः अन्याये न्यायस्य विजयः अस्ति।
(कुमारसंभवमहाकाव्य का सन्देश अन्याय पर न्याय की विजय है।)
प्रश्न: 22.
रघुवंशस्य नायकः कोऽस्ति?
(रघुवंश का नायक कौन है?)
उत्तरम् :
रघुवंशस्य सूर्यवंशी अनेके राजानः नायकाः सन्ति।
(रघुवंश के सूर्यवंशी अनेक राजा नायक हैं।)
प्रश्न: 23.
रघुवंशमहाकाव्यस्य वैशिष्ट्यं संक्षेपेण लिखत।
(रघुवंश महाकाव्य की विशेषता संक्षेप में लिखिए।)
उत्तरम् :
रघुवंशमहाकाव्यं महाकाव्यस्य लक्षणोपेतमस्ति। भाषा सरला अस्ति। वैदर्भी रीत्याः प्रयोगः काव्यं लालित्यं माधुर्यं प्रतिनयति।
(रघुवंश महाकाव्य महाकाव्य के लक्षणों से युक्त है। भाषा सरल है। वैदर्भी रीति का प्रयोग काव्य को लालित्य एवं माधुर्य की ओर ले जाता है।)
प्रश्न: 24.
कालिदासः कस्याम् रीतौ सन्दर्भे विशिष्यते?
(कालिदास किस रीति के प्रयोग में विशेष कुशल हैं?)
उत्तरम् :
कालिदासः वैदर्भी रीति सन्दर्भे विशिष्यते।
(कालिदास वैदर्भी रीति के प्रयोग में विशेष कुशल हैं।)
प्रश्न: 25.
संस्कृतसाहित्यस्य इतिहासे भारविः कस्याः शैल्याः प्रवर्तकरूपे प्रसिद्धः?
(संस्कृत साहित्य के इतिहास में भारवि किस शैली के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं?)
उत्तरम् :
संस्कृतसाहित्यस्य इतिहासे भारविः अलंकृत शैल्याः प्रवर्तकरूपे प्रसिद्धः।
(संस्कृत साहित्य के इतिहास में भारवि अलंकृत शैली के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं।)
प्रश्नः 26.
'किरातार्जुनीयम्' महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?
('किरातार्जुनीयम' महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'किरातार्जुनीयम्' महाकाव्ये अष्टादश सर्गाः सन्ति।
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य में अठारह सर्ग हैं।)
प्रश्न: 27.
'वियम्' महाकाव्ये कस्य कथा अस्ति?
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य में किसकी कथा है?)
उत्तरम् :
'किरातार्जुनीयम्' महाकाव्ये किरातवेशधारिणः शिवस्य अर्जुनस्य च कथा अस्ति।
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य में किरात रूपधारी शिव तथा अर्जुन की कथा है।)
प्रश्न: 28.
विद्वद्भिः भारवेः स्थितिकालः कः स्वीकृतः?
(विद्वानों द्वारा भारवि का स्थितिकाल क्या स्वीकृत किया गया है?)
उत्तरम् :
विद्वद्भिः भारवेः स्थितिकालः षष्ठ शतकस्य अन्तिमचरणे स्वीकृतः।
(विद्वानों के द्वारा भारवि का स्थितिकाल षष्ठ शतक के अन्तिम चरण में स्वीकार किया गया है।)
प्रश्न: 29.
'किरातार्जुनीयम्' इति महाकाव्यस्य मूलकथानकः कुत्रतः गृहीतः?
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य का मूल कथानक कहाँ से लिया गया है?)
उत्तरम् :
'किरातार्जुनीयम्' इति महाकाव्यस्य मूलकथानकः महाभारतात् गृहीतः।
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य का मूल कथानक महाभारत से लिया गया है।)
प्रश्न: 30.
संस्कृतवाङ्मये भारविः केन कारणेन प्रसिद्धः?
(संस्कृत वाङ्मय में भारवि किस कारण से प्रसिद्ध है?)
उत्तरम् :
संस्कृतवाङ्मये भारविः स्व अर्थगौरवाय प्रसिद्धः।
(संस्कृत वाङ्गमय में भारवि अपने अर्थगौरव के लिए प्रसिद्ध है।)
प्रश्न: 31.
'शिशुपालवधम् कस्य रचना अस्ति?
('शिशुपालवधम्' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'शिशुपालवधम्' महाकविमाघस्य रचना अस्ति।
('शिशुपालवधम्' महाकवि माघ की रचना है।)
प्रश्न: 32.
'माघे सन्ति त्रयो गुणा:'-त्रयाणां गुणानां नामानि लिखत।
(माघ में तीनों गुण हैं..तीनों गुणों के नाम लिखिए।)
उत्तरम् :
त्रयाणां गुणानां नामानि-उपमा, अर्थगौरवं पदलालित्यं च सन्ति।
(तीनों गुणों के नाम-उपमा, अर्थगौरव तथा पदलालित्य हैं।)
प्रश्न: 33.
माघः कस्मिन् प्रदेशे न्यवसत्? (माघ किस प्रदेश में रहते थे?)
उत्तरम् :
माघः राजस्थानप्रदेशस्य जालौर जनपदस्य भीनमालनगरे न्यवसत्।
(माघ राजस्थान प्रदेश के जालौर जिले के भीनमाल नगर में रहते थे।)
प्रश्न: 34.
'नैषधीयचरितं' कस्य रचना अस्ति, तस्मिन् कति सर्गाः सन्ति?
('नैषधीयचरितं' किसकी रचना है,? उसमें कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'नैषधीयचरितं' श्रीहर्षस्य रचना अस्ति, तस्मिन् द्वाविंशतिः सर्गाः सन्ति।
('नैषधीयचरितं' श्रीहर्ष की रचना है, उसमें 22 सर्ग हैं।)
प्रश्नः 35.
'वृहत्त्रयी' का कथ्यते?
('वृहत्त्रयी' किसे कहते हैं?) .
उत्तरम् :
भारवेः 'किरातार्जुनीयम्' माधस्य 'शिशुपालवधम्' श्रीहर्षस्य च नैषधीयचरितम्' इति त्रयाणाम् महाकाव्यानां समूहः 'वृहत्त्रयी' कथ्यते।
(भारवि का 'किरातार्जुनीयम्', माघ का 'शिशुपालवधम्' तथा श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरितम्' इन तीनों महाकाव्यों का समूह 'वृहत्त्रयी' कहलाता है।)
प्रश्न: 36.
'रावणवधम्' कस्य रचना अस्ति? अस्मिन् कति सर्गाः पद्यानि च सन्ति?
('रावणवध' किसकी रचना है? इसमें कितने सर्ग तथा पद्य हैं?)
उत्तरम् :
'रावणवधम्' महाकवि भट्टेः रचना अस्ति। अस्मिन् द्वाविंशति सर्गाः 1624 पद्यानि च सन्ति।
('रावणवध' महाकवि भट्टि की रचना है। इसमें 22 सर्ग तथा 1624 पद्य हैं।)
प्रश्न: 37.
संस्कृतवाङ्मये शास्त्रकाव्यं लेखनस्य परम्परायाः श्रीगणेशः केन कृतम्?
(संस्कृत वाङ्मय में शास्त्रकाव्य लिखने की परम्परा का श्रीगणेश किसने किया?)
उत्तरम् :
संस्कृतवाङ्मये शास्त्रकाव्यं लेखनस्य परम्परायाः श्रीगणेशः महाकवि भट्टिना कृतम्।
(संस्कृत वाङ्मय में 'शास्त्र-काव्य' लिखने की परम्परा का श्रीगणेश महाकवि भट्टि ने किया।)
प्रश्न: 38.
भट्टिकाव्ये कति काण्डानि सन्ति, कानि च तेषां नामानि?
(भट्टि काव्य में कितने काण्ड हैं तथा उनके क्या नाम हैं?)
उत्तरम् :
भट्टिकाव्ये चत्वारि काण्डानि सन्ति। तेषां नामानि क्रमशः प्रकीर्णकाण्डम्', 'अधिकारकाण्डम्', 'प्रसन्नकाण्डम्' 'तिङ्न्तकाण्डं च सन्ति।
(भट्टि काव्य में चार काण्ड हैं। उनके नाम क्रमशः 'प्रकीर्णकाण्ड', 'अधिकारकाण्ड', 'प्रसन्नकाण्ड' तथा 'तिङ्न्तकाण्ड' हैं।)
प्रश्न: 39.
'जानकीहरणम्' कस्य कृतिरस्ति?
('जानकीहरणम्' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'जानकीहरणम्' महाकविकुमारदासस्य कृतिरस्ति।
('जानकीहरणम्' महाकवि कुमारदास की कृति है।)
प्रश्न: 40.
'हरविजयम्' कस्य कृतिरस्ति ? अस्मिन् कति सर्गाः वर्तन्ते?
('हरविजयम्' किसकी कृति है? इसमें कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'हरविजयम्' रत्नाकरस्य कृतिरस्ति। अस्मिन पञ्चाशन सर्गाः सन्ति।
('हरविजयम्' रत्नाकर की कृति है। इसमें 50 सर्ग हैं।)
प्रश्न: 41.
'राघवपाण्डवीयम्' कस्य कृतिरस्ति? अस्मिन् महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?
('राघवपाण्डवीयम्' किसकी कृति है? इस महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'राघवपाण्डवीयम्' माधवभट्टस्य कृतिरस्ति। अस्मिन् महाकाव्ये त्रयोदश सर्गाः सन्ति।
('राघवपाण्डवीयम्' माधवभट्ट की कृति है। इस महाकाव्य में तेरह सर्ग हैं।)
प्रश्न: 42.
श्रीहर्षः कस्य सभाकविरासीत्?
(श्रीहर्ष किसके सभा कवि थे?)
उत्तरम् :
श्रीहर्षः कान्यकुब्जस्य नृपविजयचन्द्रस्य सभाकविरासीत्।
(श्रीहर्ष कान्यकुब्ज (कन्नौज) के राजा विजयचन्द्र के सभा कवि थे।)
प्रश्न: 43.
'सेतुबन्ध' महाकाव्यम् कस्य कृतिरस्ति?
('सेतुबन्ध' महाकाव्य किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'सेतुबन्ध' महाकाव्यम् प्रवरसेनस्य कृतिरस्ति।
('सेतुबन्ध' महाकाव्य प्रवरसेन की रचना है।)
प्रश्न: 44.
'हयग्रीववधस्य' रचयिता कः आसीत?
('हयग्रीव वध' महाकाव्य का रचयिता कौन था?)
उत्तरम् :
'हयग्रीववधस्य' रचयिता महाकवि भर्तृमेण्ठः आसीत्।
('हयग्रीव वध' के रचयिता महाकवि भर्तमेण्ठ थे।)
प्रश्न: 45.
'रामचरितम्' नाम्नः महाकाव्यस्य रचना केन कृता?
('रामचरितम्' नामक महाकाव्य की रचना किसने की?)
उत्तरम् :
'रामचरितम्' नाम्नः महाकाव्यस्य रचना कवि अभिनन्देन कृता।
('रामचरितम्' नामक महाकाव्य की रचना कवि अभिनन्द ने की।)
प्रश्न: 46.
'श्रीकण्ठचरितम्' महाकाव्यस्य रचना केन कृता? अस्मिन् महाकाव्ये कति सर्गाः सन्ति?
('श्रीकण्ठचरितम्' महाकाव्य की रचना किसने की? इस महाकाव्य में कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'श्रीकण्ठचरितम्' महाकाव्यस्य रचना काश्मीरी कवि मतेन कृता। अस्मिन् महाकाव्ये पञ्चविंशतिः सर्गाः सन्ति।
('श्रीकण्ठचरितम्' महाकाव्य की रचना काश्मीरी कवि मङ्क्ष द्वारा की गई। इस महाकाव्य में पच्चीस सर्ग हैं।)
प्रश्न: 47.
'सीताचरितम्' कस्य कृतिरस्ति?
('सीताचरितम्' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'सीताचरितम्' डॉ. रेवाप्रसादद्विवेदिनः कृतिरस्ति।
('सीताचरितम्' डॉ. रेवाप्रसाद द्विवेदी की कृति है।)
प्रश्न: 48.
'शिवराज्योदयम्' महाकाव्यं कस्य कृतिरस्ति?
('शिवराज्योदयम्' महाकाव्य किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'शिवराज्योदयम्' महाकाव्यम् डॉ. श्रीधरभास्कर वर्णेकरस्य कृतिरस्ति।
('शिवराज्योदयम्' महाकाव्य डॉ. श्रीधरभास्कर वर्णेकर की कृति है।)
प्रश्नः 49.
'लेनिनामृतम्' कस्य कृतिरस्ति?
('लेनिनामृतम्' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'लेनिनामृतम्' श्री पद्मशास्त्रिणः कृतिरस्ति।
('लेनिनामृतम्' श्री पद्मशास्त्री की रचना है।)
प्रश्न: 50.
'हरनामामृतम्' कीदृशं काव्यं कस्य च कृतिरस्ति?
('हरनामामृतम्' कैसा काव्य है तथा किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'हरनामामृतम्' एकं महाकाव्यमस्ति पं. विद्याधरशास्त्रिणश्च कृतिरस्ति।
('हरनामामृतम्' एक महाकाव्य है तथा पं. विद्याधरशास्त्री की कृति है।)
(iv) ऐतिहासिकं महाकाव्यम् (ऐतिहासिक महाकाव्य)
प्रश्नः 51.
पद्मगुप्तपरिमलः कस्य राज्ञः सभाकविरासीत्?
(पद्मगुप्त परिमल किस राजा के सभाकवि थे?)
उत्तरम् :
पद्मगुप्तपरिमल: प्रथमवाक्पतिराज उपाधिधारिणः राजामुञ्जस्य सभाकविरासीत्।
(पद्मगुप्त परिमल प्रथम वाक्पतिराज उपाधिधारी राजा मुञ्ज के सभाकवि थे।)
प्रश्न: 52.
संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमे ऐतिहासिकं महाकाव्यं किम् अस्ति?
(संस्कृत साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य कौनसा है?)
उत्तरम् :
संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमम् ऐतिहासिकमहाकाव्यं 'नवसाहसाङ्कचरितम्' अस्ति।
(संस्कृत साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य 'नवसाहसांकचरितम्' है।)
प्रश्न: 53.
'नवसाहसाङ्कचरितम्' कस्य कृतिरस्ति? अस्मिन् कति सर्गाः सन्ति?
('नवसाहसाङ्कचरितम्' किसकी कृति है? इसमें कितने सर्ग हैं?)
उत्तरम् :
'नवसाहसाङ्कचरितम्' पद्मगुप्तपरिमलस्य कृतिरस्ति? अस्मिन् अष्टादश सर्गाः सन्ति।
('नवसाहसाङ्कचरितम्' पद्मगुप्त परिमल की कृति है। इसमें 18 सर्ग हैं।)
प्रश्न: 54.
अस्मिन् काव्ये कस्य मुख्यरूपेण वर्णनं वर्तते?
(इस काव्य में मुख्य रूप से किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
अस्मिन् काव्ये धारानगर्याः नृपस्य नवसाहसाङ्क उपाधिधारिणः सिन्धुराजस्य राजकुमारी शशिप्रभया साकं विवाहस्य प्रमुखरूपेण वर्णनमस्ति।
(इस काव्य में धारानगरी के राजा नवसाहसाङ्क उपाधिधारी सिन्धु राजा का राजकुमारी शशिप्रभा से विवाह का प्रमुख रूप से वर्णन है।)
प्रश्न: 55.
'विक्रमाङ्कदेवचरितम्' कस्य कृतिरस्ति?
('विक्रमाङ्कदेवचरितम्' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'विक्रमाङ्कदेवचरितम्' काश्मीरी कवेः विल्हणस्य कृतिरस्ति।
('विक्रमाङ्कदेवचरितम्' काश्मीरी कवि विल्हण की कृति है।)
प्रश्नः 56.
विल्हणस्य जन्म कुत्र अभवत्?
(विल्हण का जन्म कहाँ हुआ था?)
उत्तरम् :
विल्हणस्य जन्म काश्मीरान्तर्गते खोनमुखग्रामे एकस्मिन् ब्राह्मणपरिवारे अभवत्।
(विल्हण का जन्म काश्मीर के अन्तर्गत खोनमुख गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।)
प्रश्नः 57.
विक्रमाङ्कदेवचरितस्य प्रति सर्वप्रथम कः कुत्र प्राप्तवान्?
('विक्रमाङ्कदेवचरितम्' की प्रति सर्वप्रथम किसने, कहाँ प्राप्त की?)
उत्तरम् :
विक्रमाङ्कदेवचरितस्य प्रति सर्वप्रथमं डॉ. बूल्हर महोदयः जैसलमेरस्य जैनभण्डारात् प्राप्तवान्।
('विक्रमाङ्कदेवचरितम्' महाकाव्य की प्रति सर्वप्रथम डॉ. बूल्हर ने जैसलमेर के जैन भण्डार से प्राप्त की थी।)
प्रश्न: 58.
कल्हणः कुत्रत्यः कविरासीत्? अनेन विरचितस्य महाकाव्यस्य किमभिधानमस्ति?
(कल्हण कहाँ के कवि थे? इनके द्वारा विरचित महाकाव्य का क्या नाम है?)
उत्तरम् :
कल्हण : काश्मीरी कविरासीत्। अनेन विरचितस्य महाकाव्यस्य नाम 'राजतरंगिणी' अस्ति।
(कल्हण काश्मीरी कवि थे। इनके द्वारा विरचित महाकाव्य का नाम 'राजतरंगिणी' है।)
प्रश्न: 59.
राजतरंगिणी कीदृशं काव्यमस्ति? अस्मिन् केषाम् वर्णनम् अस्ति?
(राजतरंगिणी कैसा काव्य है? इसमें किनका वर्णन है?)
उत्तरम् :
राजतरंगिणी ऐतिहासिक महाकाव्यमस्ति। अस्मिन् काश्मीरस्य नृपाणां शासनकालस्य क्रमानुसारवर्णनम् अस्ति।
(राजतरंगिणी ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसमें काश्मीर के राजाओं के शासन काल का क्रमानुसार वर्णन है।)
प्रश्न: 60.
'राजतरंगिणी' इत्यस्य कोऽर्थः? अस्मिन् ग्रन्थे कति तरंगाः सन्ति?
('राजतरंगिणी' का क्या अर्थ है? इस ग्रन्थ में कितनी तरंगें हैं?)
उत्तरम् :
'राजतरंगिणी' इत्यस्य 'राज्ञां नदी' अर्थः अस्ति। अयं ग्रन्थः अष्टतरंगेषु विभक्तः अस्ति।
('राजतरंगिणी' का अर्थ है-'राजाओं की नदी'। यह ग्रन्थ में आठ तरंगों में विभाजित है।)
प्रश्न: 61.
'सोमपालविजयः' कस्य कृतिरस्ति? ('सोमपालविजय' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'सोमपालविजयः' काश्मीरी कविः जल्हणस्य कृतिरस्ति।
('सोमपालविजय' काश्मीरी कवि जल्हण की कृति है।)
प्रश्नः 62.
'कुमारपालचरितस्य' रचयिता कोऽस्ति?
('कुमारपालचरित' के रचयिता कौन हैं?)
उत्तरम् :
'कुमारपालचरितस्य' रचयिता जैन आचार्य हेमचन्द्रः अस्ति।
('कुमारपालचरितम्' के रचयिता जैन आचार्य हेमचन्द्र हैं।)
प्रश्न: 63.
अधोलिखित महाकाव्यानां रचयितार: के सन्ति?
(निम्नलिखित महाकाव्यों के रचयिता कौन हैं?)
उत्तरम्
महाकाव्यम् (महाकाव्य) रचयितारः (रचयिता)
(v) गीतिकाव्यम् (गीतिकाव्य) अथवा खण्डकाव्यम् (खण्डकाव्य)
प्रश्न: 1.
साहित्यदर्पणे खण्डकाव्यस्य किं लक्षणम् कृतम्?
('साहित्यदर्पण' में खण्डकाव्य का क्या लक्षण किया गया है?)
उत्तरम् :
साहित्यदर्पणे खण्डकाव्यस्य लक्षणम् इत्थं कृतम्
'खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्येक देशानुसारि च।'
(साहित्य दर्पण में खण्डकाव्य का लक्षण इस प्रकार किया गया है -
खण्डकाव्य में मानव जीवन के किसी एक पक्ष का उद्घाटन अथवा किसी एक घटना का चित्रण किया जाता है।)
प्रश्न: 2.
गीतिकाव्यस्य किं वैशिष्ट्यं भवति?
(गीतिकाव्य' की क्या विशेषता होती है?)
उत्तरम् :
गीतिकाव्यस्य इदं वैशिष्ट्यं यत् तस्मिन् रसवत्ता, लालित्ययुक्त मधुरपदावली प्रासादिक शैली च भवति।
('गीतिकाव्य' की यह विशेषता होती है कि उसमें रसवत्ता, लालित्ययुक्त मधुर पदावली एवं प्रासादिक शैली होती है।)
प्रश्न: 3.
गीतिकाव्यस्य उद्गमस्थलं कं मन्यते?
('गीतिकाव्य' का उद्गम स्थल किसे माना जाता है?)
उत्तरम् :
गीतिकाव्यस्य उद्गमस्थलमपि वेद एव मन्यते।
('गीतिकाव्य' का उद्गम स्थल भी वेद ही माना जाता है।)
प्रश्न: 4.
'सन्देशकाव्यस्य' अपरम् अभिधानम् किमस्ति?
('सन्देशकाव्य' का दूसरा नाम क्या है?)
उत्तरम् :
'सन्देश काव्यस्य' अपरम् अभिधानम् 'दूतकाव्यमस्ति'।
('सन्देशकाव्य' का दूसरा नाम 'दूतकाव्य' है।)
प्रश्न: 5.
संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमं दूतकाव्यं कोऽस्ति?
(संस्कृत साहित्य का प्रथम दूत काव्य कौनसा है?)
उत्तरम् :
संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमदूतकाव्यं कालिदास विरचितम् मेघदूतमस्ति।
(संस्कृत साहित्य का प्रथम दूतकाव्य कालिदास विरचित 'मेघदूत' है।)
प्रश्नः 6.
'ऋतुसंहारम्' महाकाव्यमस्ति अथवा खण्डकाव्यम्?
('ऋतुसंहार' महाकाव्य है अथवा खण्डकाव्य?)
उत्तरम् :
'ऋतुसंहारम् ' महाकविकालिदासेन विरचितम् खण्डकाव्यमस्ति।
('ऋतुसंहार' महाकवि कालिदास विरचित खण्डकाव्य है।)
प्रश्न: 7.
मेघदूतं कति भागेषु विभक्तमस्ति?
(मेघदूत कितने भागों में विभाजित है?)।
उत्तरम् :
'मेघदूतम्' द्विभागेषु विभक्तमस्ति-पूर्वमेघः उत्तरमेघश्च।
('मेघदूत' दो भागों में विभाजित है-पूर्वमेघ तथा उत्तरमेघ।)
प्रश्नः 8.
'सूर्यशतकस्य' रचयिता को आसीत्?
('सूर्यशतक' के रचयिता कौन थे?)
उत्तरम् :
सूर्यशतकस्य रचयिता हर्षवर्धनस्य सभापण्डितः श्री मयूरभट्टः आसीत्।
(सूर्यशतक के रचयिता हर्षवर्धन के सभापण्डित श्री मयूर भट्ट थे।)
प्रश्नः 9.
'गाथा सप्तशती' कस्य रचना अस्ति?
('गाथा सप्तशती' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'गाथा सप्तशती' महाकवि हालस्य रचना अस्ति।
('गाथा सप्तशती' महाकवि हाल की रचना है।)
प्रश्न: 10.
'आर्यासप्तशती' कस्य रचना अस्ति?
('आर्यासप्तशती' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'आर्यासप्तशती' गोवर्द्धनाचार्यस्य रचना अस्ति।
('आर्यासप्तशती' गोवर्द्धनाचार्य की रचना है।)
प्रश्न: 11.
गीत गोविन्दस्य रचयिता कः आसीत्?
('गीत गोविन्द' के रचयिता कौन थे?)
उत्तरम् :
गीत गोविन्दस्य रचयिता महाकविः जयदेवः आसीत्।
('गीत गोविन्द' के रचयिता महाकवि जयदेव थे।)
प्रश्न: 12.
महाकविभर्तहरिणा विरचितं शतकत्रयस्य नामानि लिखत।
(महाकवि भर्तृहरि विरचित शतकत्रय के नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
महाकविभर्तृहरिणा विरचितं शतकत्रयस्य नामानि क्रमशः
(i) नीतिशतकम्, (ii) शृंगारशतकम् (iii) वैराग्यशतकं च सन्ति।
(महाकवि भर्तृहरि द्वारा रचित शतकत्रय के नाम क्रमशः
(i) नीतिशतक, (ii) श्रृंगारशतक तथा (iii) वैराग्यशतक हैं।)
प्रश्न: 13.
'पवनदूतं' कस्य कृतिरस्ति?
('पवनदूत' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'पवनदूतम्' धोयी कवेः कृतिरस्ति।
('पवनदूतम्' धोयी कवि की कृति है।)
प्रश्न 14.
'चौरपञ्चाशिका' कस्य कृतिरस्ति?
('चौरपञ्चाशिका' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'चौरपञ्चाशिका' महाकवि विल्हणस्य कृतिरस्ति।
('चौरपञ्चाशिका' महाकवि विल्हण की कृति है।)
प्रश्न: 15.
'भामिनी विलासः' कस्य कवेः कृतिरस्ति?
('भामिनी विलास' किस कवि की कृति है?)
उत्तरम् :
'भामिनी विलासः' पण्डितराज जगन्नाथस्य कृतिरस्ति।
('भामिनी विलास' पण्डितराज जगन्नाथ की कृति है।)
प्रश्न: 16.
'घटकर्परः' कः आसीत्?
('घटकर्पर' कौन थे?)
उत्तरम् :
'घटकर्परः कालिदासस्य समकालीनः कविरासीत्, सः विक्रमस्य सभायाः नवरत्नेषु एकः आसीत्।
('घटकर्पर' कालिदास के समकालीन कवि थे, वे विक्रम की सभा के नवरत्नों में से एक थे।)
प्रश्न: 17.
'सौन्दर्यलहरी' किम् अस्ति? अस्य रचयिता कोऽस्ति?
('सौन्दयेलहरी' क्या है? इसके रचयिता कौन हैं?)
उत्तरम् :
'सौन्दर्यलहरी' स्तोत्र साहित्यस्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थः अस्ति। अस्य रचयिता आद्य शंकराचार्यः अस्ति।
('सौन्दर्यलहरी' स्तोत्र साहित्य का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके रचयिता आद्य शंकराचार्य हैं।)
प्रश्न: 18.
अधोलिखित कृतीनाम् कृतिकारस्य अभिधानम् लिखत।
(अधोलिखित कृतियों के कृतिकार का नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
कृतिः - कृतिकारः
(vi) गद्य-साहित्यम् (गद्य-साहित्य)
प्रश्न: 1.
गद्यकाव्यं कतिविभागेषु विभक्तम्?
(गद्य काव्य को कितने विभागों में विभाजित किया गया है?)
उत्तरम् :
गद्यकाव्यं द्वयोः भागयोः विभक्तम् - (1) वैदिकसाहित्यस्य गद्यम् (2) लौकिकसाहित्यस्य च गद्यम्।
(गद्य काव्य को दो भागों में विभक्त किया गया है - (1) वैदिक साहित्य का गद्य तथा (2) लौकिक साहित्य का गद्य।)
प्रश्न: 2.
'त्रयः दण्डी प्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः। ते त्रयः प्रबन्धाः के सन्ति?
(दण्डी विरचित तीन प्रबन्ध तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं। वे तीन प्रबन्ध कौनसे हैं?)
उत्तरम् :
ते त्रयः प्रबन्धाः दशकुमारचरितम्, अवन्तिसुन्दरीकथा काव्यादर्शश्च सन्ति।
(वे तीन प्रबन्ध काव्य दशकुमारचरित् अवन्ति सुन्दरी कथा तथा काव्यादर्श हैं।)
प्रश्न: 3.
'दशकुमारचरितस्य' किं कथ्यमस्ति?
('दशकुमारचरित' का कथ्य क्या है?)
उत्तरम् :
‘दशकुमारचरिते' दश राजकुमाराणां पर्यटनस्य साहसिक कार्याणां च हृदयग्राही वर्णनमस्ति।
('दशकुमारचरित' में दस राजकुमारों के पर्यटन तथा साहसिक कार्यों का वर्णन है।)
प्रश्न: 4.
सुबन्धोः एकमात्ररचनायाः किमभिधानमस्ति?
(सुबन्धु की एकमात्र रचना का क्या नाम है?)
उत्तरम् :
सुबन्धोः एकमात्र रचनायाः अभिधानम्. वासवदत्ता' अस्ति।
(सुबन्धु की एकमात्र रचना का नाम 'वासवदत्ता' है।)
प्रश्नः 5.
'वासवदत्तायाः' कथायाः आधारः किमस्ति?
('वासवदत्ता' की कथा का आधार क्या है?)
उत्तरम् :
'वासवदत्तायाः' कथायाः आधारः युवक युवत्योः प्रणय कथा अस्ति।
('वासवदत्ता' की कथा का आधार युवक-युवती की प्रणय कथा है।)
प्रश्न: 6.
'दशकुमारचरितस्य' वर्तमानोपलब्धं स्वरूपं कति भागेषु विभक्तम्?
('दशकुमारचरित' का वर्तमान उपलब्ध स्वरूप कितने भागों में विभाजित है?)
उत्तरम् :
दशकुमारचरितस्य वर्तमानोपलब्धं स्वरूपं त्रिषु भागेषु विभक्तमस्ति - (1) पूर्वपीठिका, (2) दशकुमारचरित (3) उत्तरपीठिका च।
(दशकुमारचरित का वर्तमान उपलब्ध स्वरूप तीन भागों में विभाजित, है - (1) पूर्वपीठिका (2) दशकुमारचरित तथा (3) उत्तरपीठिका।)
प्रश्नः 7.
बाणभट्टः कस्य राजकविरासीत्?
(बाणभट्ट किसके राजकवि थे?)
उत्तरम् :
बाणभट्टः सम्राट हर्षवर्धनस्य राजकविरासीत्।
(बाणभट्ट सम्राट हर्षवर्धन के राजकवि थे।)।
प्रश्नः 8.
बाणभट्टस्य स्थितिकालः कः मन्यते?
(बाणभट्ट का स्थितिकाल क्या माना जाता है?)
उत्तरम् :
बाणभट्टस्य स्थितिकालः सप्तमशताब्याः पूर्वार्द्धः मन्यते।
(बाणभट्ट का स्थितिकाल सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है।)
प्रश्न: 9.
'तिलक मंजरी' कस्य कृतिरस्ति?
(तिलक मंजरी किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
तिलक मंजरी धनपालस्य कृतिरस्ति।
(तिलक मंजरी धनपाल की कृति है।)
प्रश्न: 10.
'वेमभूपालचरितम्' कस्य रचना अस्ति?
('वेमभूपालचरितम्' किनकी रचना है?)
उत्तरम् :
वेमभूपालचरितम् वामनभट्ट बाणस्य रचना अस्ति।
('वेमभूपालचरितम्' वामनभट्ट बाण की रचना है।)
प्रश्न: 11.
'शिवराजविजयम्' कीदृशं काव्यमस्ति? अस्य रचयिता कोऽस्ति?
(शिवराज विजयम् कैसा काव्य है? इसके रचयिता कौन हैं?)
उत्तरम् :
'शिवराजविजयम्' एकं ऐतिहासिकं उपन्यासमस्ति। अस्य रचयिता पण्डित अम्बिकादत्त व्यासः अस्ति।
('शिवराजविजयम्' एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसके रचयिता पण्डित अम्बिकादत्त व्यास हैं।)
प्रश्न: 12.
शिवराजविजयस्य प्रधानरसः किम् अस्ति?
('शिवराजविजय' का प्रधान रस क्या है?)
उत्तरम् :
शिवराजविजयस्य प्रधानरस: वीरः अस्ति।
(शिवराजविजय का प्रधान रस वीर रस है।)
प्रश्न: 13.
श्री अम्बिकादत्त व्यासस्य भाषा शैली कीदृशी वर्तते?
(श्री अम्बिकादत्त व्यास की भाषा-शैली कैसी है?)
उत्तरम् :
श्री अम्बिकादत्त व्यासस्य भाषा शैली रोचकमस्ति, तस्यां माधुर्य-ओज-प्रसाद गुणानां सुष्ठु प्रयोगः संजातः।
(श्री अम्बिकादत्त व्यास की भाषा-शैली रोचक है। उसमें माधुर्य-ओज एवं प्रसाद गुण का सुन्दर प्रयोग हुआ है।)
प्रश्न: 14.
चम्पू काव्यस्य किं लक्षणमस्ति? (चम्पू काव्य का क्या लक्षण है?)
उत्तरम् :
गद्य पद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते।
(गद्य एवं पद्य से मिश्रित काव्य 'चम्पू' कहलाता है।)
प्रश्न: 15.
'नलचम्पू' काव्यस्य रचयिता कः आसीत्?
('नलचम्पू' काव्य के रचयिता कौन थे?)
उत्तरम् :
'नलचम्पू' काव्यस्य रचयिता त्रिविक्रम भट्टः आसीत्।
('नलचम्पू' काव्य के रचयिता त्रिविक्रम भट्ट थे।)
प्रश्नः 16.
अधोलिखित रचनानां रचनाकारस्य नामानि लिखत।
(निम्नलिखित रचनाओं के रचनाकार का नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
रचना - रचनाकारः
(vii) आख्यान साहित्यम् पशुकथाश्च
(आख्यान साहित्य व पशु कथाएँ)
प्रश्न: 17.
आख्यान साहित्यं कति भागेषु विभक्तम्?
(आख्यान साहित्य को कितने भागों में विभाजित किया गया है?)
उत्तरम् :
आख्यान साहित्यं मूलतः द्विभागेषु विभक्तम्-(1) नीति कथा (2) लोक कथाश्च।
[आख्यान साहित्य को मूलतः दो भागों में विभाजित किया गया है - (1) नीतिकथायें तथा (2) लोककथायें।]
प्रश्न: 18.
नीतिकथा साहित्यस्य प्राचीनतमः ग्रन्थः कोऽस्ति?
(नीतिकथा साहित्य का प्राचीनतम ग्रन्थ कौनसा है?)
उत्तरम् :
नीतिकथा साहित्यस्य प्राचीनतमः ग्रन्थः पञ्चतन्त्रमस्ति।
(नीतिकथा साहित्य का प्राचीनतम ग्रन्थ पञ्चतन्त्र है।)
प्रश्न: 19.
पञ्चतन्त्रस्य लेखकस्य अभिधानं किमस्ति?
(पञ्चतन्त्र के लेखक का क्या नाम है?)
उत्तरम् :
पञ्चतन्त्रस्य लेखकस्य अभिधानम् पं. विष्णु शर्मा अस्ति।
(पञ्चतन्त्र के लेखक का नाम पं. विष्णु शर्मा है।)
प्रश्नः 20.
हितोपदेशस्य रचयिता कोऽस्ति?
(हितोपदेश के रचयिता कौन हैं?)
उत्तरम् :
हितोपदेशस्य रचयिता नारायण पण्डितः अस्ति।
(हितोपदेश के रचयिता नारायण पण्डित हैं।)
प्रश्न: 21.
'हितोपदेशे कति परिच्छेदाः सन्ति? नामान्यपि लिखत।
(हितोपदेश में कितने परिच्छेद हैं? नाम भी लिखिये।)
उत्तरम् :
हितोपदेशे चत्वारः परिच्छेदाः सन्ति - येषां नामानि क्रमशः मित्रलाभः, सुहृद्भेदः, विग्रहः सन्धिश्च सन्ति।
(हितोपदेश में चार परिच्छेद हैं जिनके नाम क्रमशः मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह तथा सन्धि हैं।)
प्रश्न: 22.
लोककथासु कस्याः सर्वोच्च स्थानं वर्तते? (लोक-कथाओं में किसका सर्वोच्च स्थान है?)
उत्तरम् :
लोककथासु 'वृहत्कथायाः' सर्वोच्च स्थानं वर्तते।
(लोक-कथाओं में 'वृहत्कथा' का सर्वोच्च स्थान है।)
प्रश्नः 23.
मूल वृहत्कथा कस्यां भाषायां आसीत?
(मूल 'वृहत्कथा' किस भाषा में थी?)
उत्तरम् :
मूल वृहत्कथा पैशाची प्राकृत भाषायां आसीत्।
(मूल वृहत्कथा पैशाची प्राकृत भाषा में थी।)
प्रश्न: 24.
'वृहत्कथा मंजरी' कस्य कृतिरस्ति?
('वृहत्कथा मंजरी' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'वहत्कथा मंजरी' आचार्य क्षेमेन्द्रस्य कतिरस्ति।
('वृहत्कथा मंजरी' आचार्य क्षेमेन्द्र की रचना है।)
प्रश्न: 25.
'कथासरित्सागरः' कस्य कृतिरस्ति?
('कथासरित्सागर' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'कथासरित्सागरः' सोमदेव भट्टस्य कृतिरस्ति।
(कथासरित्सागर' सोमदेव भट्ट की कृति है।)
प्रश्न: 26.
सोमदेवः कस्य समकालीनः आसीत्? कथासरित्सागरस्य रचनाकालः किमस्ति?
(सोमदेव किसके समकालीन थे? कथासरित्सागर का रचनाकाल क्या है?)
उत्तरम् :
सोमदेवः काश्मीरस्य नृपतेः अनन्तस्य क्षेमेन्द्रस्य च समकालीनः आसीत्। कथासरित्सागरस्य रचनाकाल: 1037 ई. अस्ति।
(सोमदेव काश्मीर के राजा अनन्त तथा क्षेमेन्द्र के समकालीन थे। कथासरित्सागर का रचनाकाल 1037 ई. है।)
प्रश्न: 27.
अधोलिखित ग्रन्थानां लेखकस्य नामानि लिखत।
(अग्रलिखित ग्रन्थों के लेखक का नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
ग्रन्थः - लेखकस्य नाम
(viii) नाट्य-साहित्यम्
(नाट्य साहित्य)
प्रश्न: 1.
नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी सर्वाधिक प्राचीन मतम् कुत्र प्राप्यते?
(नाटक की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्राचीनतम मत कहाँ प्राप्त होता है?)
उत्तरम् :
नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी सर्वाधिक प्राचीनमतम् नाट्यशास्त्रस्य प्रथमाध्याये प्राप्यते।
(नाटक की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्राचीनतम मत नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में प्राप्त होता है।)
प्रश्न: 2.
नाट्योत्पत्तिविषये प्रो. कोनो महोदयस्य का मान्यता अस्ति?
(नाटक की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रो. कोनो की क्या मान्यता है? )
उत्तरम् :
नाट्योत्पत्तिविषये प्रो. कोनो महोदयस्य मान्यता अस्ति यत् छायानृत्यानां अनुकृत्या नाटकानां उत्पत्तिरभवत्।
(नाट्योत्पत्ति के विषय में प्रो. कोनो महोदय की मान्यता है कि छाया नृत्यों की अनुकृति से नाटकों की उत्पत्ति हुई।)
प्रश्नः 3.
संस्कृतनाट्यसाहित्यस्य जनकः कः कथ्यते?
(संस्कृत नाट्य साहित्य का जनक किसे कहा जाता है?)
उत्तरम् :
संस्कृतनाट्यसाहित्यस्य जनकः भासः कथ्यतेः।
(संस्कृत नाट्य साहित्य का जनक भास को कहा जाता है।)
प्रश्न: 4.
'भासनाटकचक्रस्य' अन्वेषणं केन कृतम्?
(भासनाटकचक्र की खोज किसके द्वारा की गई?)
उत्तरम् :
'भासनाटकचक्रस्य' अन्वेषणं महामहोपाध्याय श्री टी. गणपति शास्त्रिणा कृतम्।
(भास नाटक चक्र की खोज महामहोपाध्याय श्री टी. गणपति शास्त्री द्वारा की गई।)
प्रश्नः 5.
भारतीय विद्वान्स: कालिदासस्य स्थितिकालः किं मन्यन्ते?
(भारतीय विद्वान् कालिदास का स्थितिकाल क्या मानते हैं?)।
उत्तरम् :
भारतीय विद्वान्सः कालिदासस्य स्थितिकालः ई. पू. 57 ई. मन्यन्ते।
(भारतीय विद्वान् कालिदास का स्थितिकाल ई. पू. 57 ई. मानते हैं।)
प्रश्न: 6.
महाकवि भासस्यसमयः विद्वद्भिः किं निर्धारितः?
(महाकवि भास का समय विद्वानों द्वारा क्या निर्धारित किया गया है?)
उत्तरम् :
महाकवि भासस्यसमयः विद्वद्भिः चतुर्थ शताब्दी ई. पूर्व निर्धारितः।'
(महाकवि भास का समय विद्वानों द्वारा चतुर्थ शताब्दी ई. पूर्व निर्धारित किया गया है।)
प्रश्नः 7.
'दूतवाक्यम्' कस्य कृतिरस्ति?
('दूतवाक्यम्' किसकी कृति है?)
उत्तरम् :
'दूतवाक्यम्' भासस्य कृतिरस्ति।
('दूतवाक्यम्' भास की कृति है।)
प्रश्नः 8.
भास विरचितानि कति नाटकानि सन्ति?
(भास द्वारा विरचित कितने नाटक हैं?)
उत्तरम् :
भास विरचितानि त्रयोदश नाटकानि सन्ति।
(भास द्वारा विरचित तेरह नाटक हैं।)
प्रश्न: 9.
भास विरचितं सर्वश्रेष्ठम् नाटकं कोऽस्ति?
(भास विरचित सर्वश्रेष्ठ नाटक कौनसा है?)
उत्तरम् :
भास विरचितम् सर्वश्रेष्ठं नाटकं 'स्वप्नवासवदत्तम्' अस्ति।
(भास विरचित सर्वश्रेष्ठ नाटक 'स्वप्नवासवदत्तम्' है।)
प्रश्नः 10.
भासविरचितं लोककथा सम्बन्धी नाटकानां नामानि लिखता।
(भास विरचित लोक-कथा सम्बन्धी नाटकों के नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
भास विरचितं लोक कथा सम्बन्धी नाटकानि चत्वारि सन्ति-1. प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, 2. स्वप्नवासवदत्तम्, 3. अविमारकम् 4. चारुदत्तम् च।
(भास विरचित लोक-कथा सम्बन्धी चार नाटक हैं-1. प्रतिज्ञायौगन्धरायण, 2. स्वप्नवासवदत्तम् 3. अविमारकम् तथा 4. चारुदत्तम्।)
प्रश्नः 11.
'प्रतिमा' नाटके कति अंकाः सन्ति?
('प्रतिमा' नाटक में कितने अंक हैं?)
उत्तरम् :
'प्रतिमा' नाटके सप्ताङ्काः सन्ति।
('प्रतिमा' नाटक में सात अंक हैं।)
प्रश्न: 12.
प्रतिमा नाटकस्य कथावस्तु कुत्रतः गृहीता?
(प्रतिमा नाटक की कथावस्तु कहाँ से ली गई है?)
उत्तरम् :
प्रतिमा नाटकस्य कथावस्तु रामायणात् गृहीता।
(प्रतिमा नाटक की कथावस्तु रामायण से ली गई है।)
प्रश्न: 13.
मध्यमव्यायोगस्य कथावस्तुनः किमाधारः तस्मिन् कति अंकाश्च सन्ति?
(मध्यम व्यायोग की कथावस्तु का क्या आधार है तथा उसमें कितने अंक हैं?)
उत्तरम् :
मध्यम व्यायोगस्य कथावस्तुनः आधारः महाभारतमस्ति। तस्मिन् केवलं एकाङ्क अस्ति।
(मध्यम व्यायोग की कथावस्तु का आधार महाभारत है। उसमें केवल एक अंक है।)
प्रश्नः 14.
'मृच्छकटिकम्' कस्य कृतिरस्ति? तस्मिन् कत्यङ्काः च सन्ति?
('मृच्छकटिकम्' किसकी कृति है तथा उसमें कितने अंक हैं?)
उत्तरम् :
'मृच्छकटिकम्' शूद्रकस्य कृतिरस्ति। तस्मिन् दशाङ्काः सन्ति।
('मृच्छकटिकम्' शूद्रक की कृति है तथा उसमें दस अंक हैं।)
प्रश्न: 15.
'मृच्छकटिकस्य' मूलकथ्यं किमस्ति?
('मृच्छकटिक' का मूल कथ्य क्या है?)
उत्तरम् :
'मृच्छकटिके' उज्जयिन्याः प्रसिद्ध वेश्या वसन्तसेनायाः दरिद्र चारुदत्तेन साई प्रेम्नः वर्णनं अस्ति।
('मृच्छकटिक' में उज्जयिनी की प्रसिद्ध वेश्या वसन्तसेना का दरिद्र चारुदत्त के साथ प्रेम का वर्णन है।)
प्रश्न: 16.
'मृच्छकटिकम् कस्याः विधायाः रूपकमस्ति?
('मृच्छकटिकम्' किस विधा का रूपक है?)
उत्तरम् :
'मृच्छकटिकम्' प्रकरणविधाया: रूपकमस्ति।
('मृच्छकटिकम्' प्रकरण विधा का रूपक है।)
प्रश्न: 17.
महाकवि कालिदास विरचितानि कति नाट्यानि सन्ति?
(महाकवि कालिदास विरचित कितने नाट्य हैं?)।
उत्तरम् :
महाकवि कालिदास विरचितानि त्रीणि नाट्यानि सन्ति - (i) मालविकाग्निमित्रम्, (ii) विक्रमोर्वशीयम्, (iii) अभिज्ञान शाकुन्तलम् च।
(महाकवि कालिदास विरचित तीन नाट्य हैं - (i) मालविकाग्निमित्रम्, (ii) विक्रमोर्वशीयम् तथा (iii) अभिज्ञानशाकुन्तलम्।)
प्रश्न: 18.
अभिज्ञानशाकुन्तलस्य सर्वश्रेष्ठाङ्कः कोऽस्ति?
(अभिज्ञानशाकुन्तल का सर्वश्रेष्ठ अंक कौन सा है?)
उत्तरम् :
अभिज्ञानशाकुन्तलस्य सर्वश्रेष्ठाङ्क चतुर्थाङ्कः अस्ति।
(अभिज्ञानशाकुन्तल का सर्वश्रेष्ठ अंक चतुर्थ अंक है।)
प्रश्न: 19.
मालविकाग्निमित्रे कस्य वर्णनमस्ति?
(मालविकाग्निमित्र में किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
'मालविकाग्निमित्रे' शुङ्गवंशीय नृपः अग्निमित्रस्य महिष्याः परिचारिका मालविकायाश्च प्रेम्णः वर्णनमस्ति।
(मालविकाग्निमित्र में शुङ्गवंशीय राजा अग्निमित्र तथा रानी की परिचारिका मालविका के प्रेम का वर्णन है।)
प्रश्न: 20.
अभिज्ञानशाकुन्तलस्य विदूषकस्य किमभिधानमस्ति?
(अभिज्ञान शाकुन्तल के विदूषक का क्या नाम है?)
उत्तरम् :
अभिज्ञानशाकुन्तलस्य विदूषकस्य अभिधानं माढव्यः अस्ति।
(अभिज्ञान शाकुन्तल के विदूषक का नाम माढव्य है।)
प्रश्न: 21.
विक्रमोर्वशीये कत्यङ्काः सन्ति? अस्य कथावस्तु काऽस्ति?
('विक्रमोर्वशीय' में कितने अंक हैं? इसकी कथावस्तु क्या है?)
उत्तरम् :
विक्रमोर्वशीय पञ्चाङ्काः सन्ति। अस्मिन् पुरुरवा-उर्वश्याः प्रसिद्धा पौराणिका कथा वर्णितास्ति।
('विक्रमोर्वशीय' में पांच अंक हैं। इसमें पुरुरवा-उर्वशी की प्रसिद्ध पौराणिक कथा वर्णित है।)
प्रश्न: 22.
हर्षवर्धनः कतिरूपकाणां रचनां अकरोत्? तेषां नामानि लिखत।
(हर्षवर्धन ने कितने रूपकों की रचना की? उनके नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
हर्षवर्धनः त्रयाणां रूपकाणां रचनामकरोत्। तेषां नामानि (i) प्रियदर्शिका (ii) रत्नावली (iii) नागानन्दम् च सन्ति।
[हर्षवर्धन ने तीन रूपकों की रचना की-(i) प्रियदर्शिका, (ii) रत्नावली तथा (iii) नागानन्द।]
प्रश्न: 23.
नागानन्दनाटके कत्यङ्काः सन्ति?
('नागानन्द' नाटक में कितने. अंक हैं?)
उत्तरम् :
नागानन्दनाटके पञ्चाङ्काः सन्ति।
('नागानन्द' नाटक में पांच अंक हैं।)
प्रश्न: 24.
भवभूति विरचितानि कति नाटकानि सन्ति? तेषां नामानि कानि सन्ति?
(भवभूति विरचित कितने नाटक हैं? उनके नाम क्या हैं?)
उत्तरम् :
भवभूति विरचितानि त्रीणि नाटकानि सन्ति। तेषां नामानि (i) महावीरचरितम् (ii) मालतीमाधवम् (iii) उत्तररामचरितम् च सन्ति।
(भवभूति विरचित तीन नाटक हैं। उनके नाम (i) महावीरचरितम्, (ii) मालतीमाधवम् तथा (iii) उत्तररामचरितम् .. हैं।)
प्रश्न: 25.
भवभूतेः श्रेष्ठं नाटकं किमस्ति?
(भवभूति का श्रेष्ठ नाटक कौन सा है?)
उत्तरम् :
भवभूतेः श्रेष्ठं नाटकं उत्तररामचरितमस्ति?
(भवभूति का श्रेष्ठ नाटक 'उत्तररामचरितम्' है।)
प्रश्न: 26.
महावीरचरिते कस्य वर्णनमस्ति?
('महावीरचरितम्' में किसका वर्णन है?)
उत्तरम् :
'महावीरचरितम्' रामकथया सम्बन्धितं नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके रामस्य महावीररूपं प्रति नाटककारस्य ध्यानं अधिकमस्ति।
('महावीरचरितम्' रामकथा से सम्बन्धित नाटक है। इस नाटक में राम के महावीर रूप की ओर नाटककार का ध्यान अधिक रहा है।)
प्रश्न: 27.
'मुद्राराक्षसम्' कस्य कृतिरस्ति? अस्मिन् कत्यङ्काः सन्ति?
('मुद्राराक्षस' किसकी कृति है? इसमें कितने अंक हैं?)
उत्तरम् :
'मुद्राराक्षसम्' विशाखदत्तस्य कृतिरस्ति। अस्मिन् सप्ताङ्काः सन्ति।
('मुद्राराक्षसम्' विशाखदत्त की कृति है। इसमें सात अंक हैं।)
प्रश्न: 28.
'मुद्राराक्षसम्' कीदृशं नाटकमस्ति?
(मुद्राराक्षसम् कैसा नाटक है?)।
उत्तरम् :
'मुद्राराक्षसम्' राजनीति कूटनीतिप्रधानं च नाटकमस्ति।
(मुद्राराक्षसम् राजनीति एवं कूटनीति प्रधान नाटक है।)
प्रश्न: 29.
'वेणीसंहारम्' कस्य रचना अस्ति?
('वेणीसंहार' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'वेणीसंहारम्' श्री भट्टनारायणस्य रचना अस्ति।
('वेणीसंहार' श्री भट्टनारायण की रचना है।)
प्रश्न: 30.
वेणीसंहारे कत्यङ्काः सन्ति?
(वेणीसंहार में कितने अंक हैं?)
उत्तरम् :
वेणीसंहारे षष्ठाङ्काः सन्ति।
(वेणीसंहार में छः अंक हैं।)
प्रश्न: 31.
वेणीसंहारे कस्य रसस्य प्राधान्यं वर्तते?
('वेणीसंहार' में किस रस की प्रधानता है?)
उत्तरम् :
वेणीसंहारे वीररसस्य प्राधान्यं वर्तते।
(वेणीसंहार में वीर रस की प्रधानता है।)
प्रश्न: 32.
मालतीमाधवम्' कस्याः विधायाः रूपकमस्ति?
('मालतीमाधवम्' किस विधा का रूपक है?)
उत्तरम् :
'मालतीमाधवम्' प्रकरणविधायाः रूपकमस्ति।
('मालतीमाधवम्' प्रकरण विधा का रूपक है।)
प्रश्न: 33.
'अनर्घराघव' किमस्ति?
('अनर्घराघव' क्या है?)
उत्तरम् :
'अनर्घराघवम्' मुरारि विरचितम् प्रसिद्धनाटकमस्ति। इदं रामायणं आश्रित्य लिखतम्।
('अनर्घराघवम्' मुरारि विरचित प्रसिद्ध नाटक है। यह रामायण को आधार बनाकर लिखा गया है।)
प्रश्नः 34.
राजशेखरस्य त्रीणि रूपकानि कानि सन्ति?
(राजशेखर के तीन रूपक कौनसे हैं?)
उत्तरम् :
राजशेखरस्य त्रीणि रूपकानि सन्ति - (i) बालरामायणम् (ii) विद्धशालभंजिका (iii) कर्पूरमञ्जरी च।
[राजशेखर के तीन रूपक हैं-(i) बालरामायण (ii) विद्धशालभंजिका तथा (iii) कर्पूरमञ्जरी]
प्रश्न: 35.
उत्तररामचरिते कस्य रसस्य प्राधान्यमस्ति?
(उत्तररामचरित में किस रस की प्रधानता है?)
उत्तरम् :
'उत्तररामचरिते' करुणरसस्य प्राधान्यमस्ति।
('उत्तररामचरित' में करुण रस की प्रधानता है।)
प्रश्न: 36.
'आश्चर्य चूडामणिः कस्य कृतिरस्ति?
('आश्चर्य चूडामणि' किसकी कृति है?).
उत्तरम् :
'आश्चर्य चूडामणिः' कविशक्तिभद्रस्य कृतिरस्ति।
('आश्चर्य चूडामणि' कवि शक्तिभद्र की कृति है।)
प्रश्न: 37.
'आश्चर्य चूडामणिः' कीदृशं काव्यमस्ति?
('आश्चर्य चूडामणि' कैसा काव्य है?)
उत्तरम् :
आश्चर्य चूडामणिः सप्ताङ्कानां नाटकमस्ति।
('आश्चर्य चूडामणि' सात अंकों का नाटक है।)
प्रश्न: 38.
'हनुमन्नाटकम्' कस्य कृतिरस्ति?
('हनुमन्नाटक' किसकी रचना है?)
उत्तरम् :
'हनुमन्नाटकम्' दामोदरमिश्रस्य कृतिरस्ति।
('हनुमन्नाटक' दामोदर मिश्र की रचना है।)
प्रश्न: 39.
अधोलिखित कृतीनाम् रचनाकारणां नामानि लिखत।
(अधोलिखित कृतियों के रचनाकारों के नाम लिखिये।)
उत्तरम् :
कृतिः - रचनाकारस्य नाम
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
लौकिक साहित्यम् (लौकिक साहित्य)
प्रश्न: 1.
वाल्मीकिरामायणस्य महत्त्वं संक्षेपेण लिखत।
(वाल्मीकि रामायण का महत्त्व संक्षेप में लिखिये।)
उत्तरम् :
संस्कृत साहित्ये वाल्मीकिविरचितं रामायणं आदिकाव्यं कथ्यते। वाल्मीकिः आदिकविः रूपेण प्रसिद्धः वर्तते। वाल्मीकिरामायणं भारतीय संस्कृते: सर्वश्रेष्ठं सम्मानित गृहस्थाश्रमस्य च महान् काव्यमस्ति। अस्यादर्शः वर्तते - गृहस्थजीवनस्य पूर्णाभिव्यक्तिः। इदं भारतवर्षस्य एकं सर्वोत्कृष्टं धार्मिकं नैतिकं ऐतिहासिकं च ग्रन्थरत्नमस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे भारतीय संस्कृतेः यावत् भव्यरूपं उपलब्धं भवति तावत् अन्यत्र दुर्लभमस्ति। अस्मिन् केवलं रामरा एव वर्णनं नास्ति अपितु अयं भारतीयराष्ट्रीय एकतायाः अपि एक: आदर्श: ग्रन्थः अस्ति, भौगोलिक एकतायाश्च प्रतीकमपि वर्तते। रामायणस्य महत्त्वं उपजीव्य काव्यस्य रूपेऽपि वर्तते।
(संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि विरचित 'रामायण' आदि काव्य कहलाता है। वाल्मीकि आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। वाल्मीकि रामायण भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ एवं सम्मानित गृहस्थ आश्रम का महान् काव्य है। इसका आदर्श है--गृहस्थ जीवन की पूर्ण अभिव्यक्ति। यह भारतवर्ष का एक सर्वोत्कृष्ट धार्मिक, नैतिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ रत्न है। इस ग्रन्थ में भारतीय संस्कृति का जितना भव्य रूप उपलब्ध होता है, उतना अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें केवल राम रावण के युद्ध एवं पराजय का ही वर्णन नहीं है अपितु यह भारतीय राष्ट्रीय एकता का भी एक आदर्श ग्रन्थ है तथा भौगोलिक एकता का भी प्रतीक है। रामायण का महत्त्व उपजीव्य काव्य के रूप में भी है।)
प्रश्न: 2.
संस्कृत साहित्ये महाभारतस्य वैशिष्ट्यं लिखत। (संस्कृत साहित्य में महाभारत का वैशिष्ट्य लिखिये।)
उत्तरम् :
विश्वस्य सम्पूर्ण साहित्ये महाभारतम् सर्वाधिकविशाल ग्रन्थः अस्ति। अयं एकः विश्वकोशात्मक ग्रन्थः अस्ति। महाभारतं न केवलं महाकाव्यमस्ति, न केवलं पुराणमस्ति अपितु इतिहासपुराणमस्ति। अयं भारतीयसाहित्यस्य एकः एतादृशः ग्रन्थः वर्तते, यस्मिन् तत्कालीनं सर्वेषां साहित्यिक-सांस्कृतिक-धार्मिक-राजनैतिकविषयानां एकत्र समावेशः वर्तते। अयं विशाल ग्रन्थः शतशाहस्री' इत्युक्तः यतोहि अस्मिन् एक लक्ष श्लोकाः सन्ति। काव्यमिदं अनेकानां काव्यानां उपजीव्यमस्ति। अतएव उक्तम्
"धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदि हास्ति यदन्यत्र यन्ने हास्ति न तत् क्वचित्।"
(विश्व के सम्पूर्ण साहित्य में महाभारत सर्वाधिक विशाल ग्रन्थ है। यह एक विश्वकोशात्मक ग्रन्थ है। महाभारत न केवल महाकाव्य है, न केवल पुराण है, अपितु इतिहास पुराण है। यह भारतीय साहित्य का एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें तत्कालीन सभी साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक आदि विषयों का एकत्र समावेश है। इस विशाल ग्रन्थ को , 'शतसाहस्री' कहा गया है क्योंकि इसमें एक लाख श्लोक हैं। यह काव्य अनेक काव्यों का उपजीव्य है।) इसलिए कहा गया है--"धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के सम्बन्ध में जो यहाँ है, वही अन्यत्र भी है और जो यहाँ नहीं है, वह अन्यत्र भी नहीं है।")
प्रश्न: 3.
'बुद्धचरितम्' महाकाव्यस्य संक्षिप्त परिचयं लिखत।
('बुद्धचरितम्' महाकाव्य का संक्षेप में परिचय लिखिये।)
उत्तरम् :
इदं महाकाव्यं महाकवि अश्वघोषविरचितमस्ति। अस्मिन् महाकाव्ये अष्टविंशतिः सर्गाः सन्ति। अस्मिन् महाकाव्ये भगवतः बुद्धस्य जीवनं, उपदेशान् सिद्धान्तान् च काव्यमयी शैल्याम् प्रस्तुतं कृतम्। इदं सम्पूर्ण पुस्तकं तिब्बती भाषायां तथा तिब्बती भाषायाः चीनीभाषायाः अनुवादरूपे प्राप्यते। संस्कृत भाषायां तु इदं सप्तदश सर्गेषु एव उपलब्धं भवति। अश्वघोषस्य अस्य महाकाव्यस्य आधारः 'ललितविस्तरः' नाम्नः बौद्धग्रन्थः वर्तते। अस्मिन् ग्रन्थे विषयस्य प्रतिपादनं शोभनं सुव्यवस्थितं च कृतम्। अस्मिन् अश्वघोषस्य कविः दार्शनिकश्च उभे रूपे दृश्येते। अस्य महाकाव्यस्य भाषा-शैली अतिसरला मधुराश्चास्ति। अलंकारणां सीमिति प्रयोगः वर्तते। स्थाने-स्थाने प्राकृतिक-वर्णनं अतिसजीवं वर्तते।
(यह महाकाव्य महाकवि अश्वघोष विरचित है। इस महाकाव्य में 28 सर्ग हैं। इस महाकाव्य में भगवान् बुद्ध के जीवन, उपदेश तथा सिद्धान्तों को काव्यमयी शैली में प्रस्तुत किया गया है। यह सम्पूर्ण पुस्तक तिब्बती भाषा एवं तिब्बती भाषा से चीनी भाषा के अनुवाद में प्राप्त होती है। संस्कृत भाषा में तो यह सत्रह सर्गों में ही उपलब्ध होती है। अश्वघोष के इस महाकाव्य का आधार 'ललित विस्तर' नामक बौद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में विषय का प्रतिपादन सुन्दर एवं सुव्यवस्थित है। इसमें अश्वघोष का कवि एवं दार्शनिक, दोनों रूप दिखाई देते हैं। इस महाकाव्य की भाषा-शैली अति सरल एवं मधुर है। अलंकारों का सीमित प्रयोग है। स्थान-स्थान पर प्राकृतिक वर्णन अत्यन्त सजीव है।
प्रश्न: 4.
रघुवंशम् महाकाव्यस्य संक्षेपेण परिचयं प्रदेयम्।
(रघुवंश महाकाव्य का संक्षेप में परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
'रघुवंशम्' महाकवि कालिदासेन विरचितं एकं श्रेष्ठं महाकाव्यमस्ति। डॉ. वचनदेवकुमारस्य शब्देषु "रघुवंशम् संस्कृत साहित्यस्य सुरम्य प्रासादस्य मणिमण्डितं प्रवेशद्वारमंस्ति। संस्कृत साहित्योद्यानस्य मनोरमः सरसिजः, मण्डित सरोवरः वर्तते।" अस्मिन् महाकाव्ये एकोनविंशतिः सर्गाः सन्ति। एतेषु सर्गेषु रघुवंशीय नृपाणां जीवनचरित्रं वर्णितमस्ति। अस्मिन महाकाव्ये रामचरितादतिरिक्तं दिलीपस्य नन्दिनीसेवा, रघुजन्म, रघोः दिग्विजयः, इन्दुमती स्वयंवरः, अजविलापः, शून्यायोध्यायाः कारुणिक स्थितिः इत्यादयः प्रत्येक घटनायाः शोभनं रुचिरतम शैल्यां च वर्णनं वर्तते, यत् बलात् पाठकान् आकर्षितं करोति। उपमाऽलंकारस्य शोभनं वर्णनं अस्मिन् महाकाव्ये वर्तते। संक्षेपेण रघुवंशम् संस्कृत साहित्यस्य दैदीप्यमानं नक्षत्रं अद्वितीयं सर्वाङ्ग सुन्दरं च काव्यमस्ति।
('रघुवंश' महाकवि कालिदास विरचित एक श्रेष्ठ महाकाव्य है। डॉ. वचनदेव कुमार के शब्दों में, "रघुवंश संस्कृत साहित्य के सुरम्य प्रासाद का मणिमण्डित प्रवेश-द्वार है। संस्कृत साहित्योद्यान का मनोरम सरसिज मण्डित सरोवर है।" इस महाकाव्य में 19 सर्ग हैं। इन सर्गों में रघुवंशी राजाओं का जीवन चरित्र वर्णित है। इस महाकाव्य में रामचरित के अतिरिक्त दिलीप की नन्दिनी सेवा, रघुजन्म, रघु की दिग्विजय, इन्दुमती स्वयंवर, अजविलाप, शून्य अयोध्या की कारुणिक स्थिति आदि प्रत्येक घटना का सुन्दर और रुचिरतम शैली में वर्णन है, जो बलात् पाठकों को आकर्षित करता है। उपमा अलंकार का सुन्दर प्रयोग इस महाकाव्य में है। संक्षेप में, रघुवंश संस्कृत साहित्य का दैदीप्यमान नक्षत्र एवं अद्वितीय सर्वाङ्ग सुन्दर काव्य है।)
प्रश्नः 5.
'किरातार्जुनीयम्' महाकाव्ये संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
किरातार्जुनीयम्-इदं अलंकारवादीयुगस्य प्रवर्तकमहाकविभारविना विरचितं एकमात्रं महाकाव्यमस्ति। इदं संस्कृतसाहित्ये भारवेः अमरकीर्तेः स्तम्भः वर्तते। अस्य महाकाव्यस्य कथावस्तु महाभारतात् गृहीता। अस्मिन् अष्टादश सर्गाः सन्ति। अस्य महाकाव्यस्य प्रारंभः 'श्री' शब्देन भवति प्रत्येकं सर्गरयान्ते च 'लक्ष्मीः' शब्दस्य प्रयोगः कृतः। अस्य महाकाव्यस्य प्रधानरसः वीरोऽस्ति। पाशुपतास्त्रस्य प्राप्तिरेव अस्य महाकाव्यस्य फलमस्ति। इदं महाकाव्यं स्व अर्थगौरवाय प्रसिद्धमस्ति। विद्वात्समाजः कालिदासस्य उपमायाः इव भारवे अर्थगौरवे मुग्धः वर्तते 'भारवेरर्थगौरवम'। प्रसिद्धः टीकाकारः मल्लिनाथः भारवेः कवितां नारिकेल फल सन्निमं उक्त–नारिकेलफल सन्निमं वचो भारवेः।' भारविः नीते विशेषरूपेण राजनीत्याः विशिष्टः ज्ञाता प्रतीयते। सूक्तीनां प्रचुरप्रयोगः अस्य महाकाव्यस्य महती विशेषता अस्ति। वंशस्थ छन्दसः शोभनं प्रयोगः अस्मिन् महाकाव्ये कविना कृतः।
(किरातार्जुनीयम्-यह अलंकारवादी युग के प्रवर्तक महाकवि भारवि विरचित एकमात्र महाकाव्य है। यह संस्कृत र कीर्ति का आधार स्तम्भ है। इस महाकाव्य की कथावस्तु महाभारत से ली गई है। इसमें अठारह सर्ग हैं। इस महाकाव्य का प्रारंभ 'श्री' शब्द से होता है तथा प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में 'लक्ष्मी' शब्द का प्रयोग किया गया है। इस महाकाव्य का प्रधान रस वीर है। पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति ही इस महाकाव्य का फल है। यह महाकाव्य अपने अर्थगौरव के लिए प्रसिद्ध है। विद्वत्समाज कालिदास की उपमा के समान भारवि के अर्थगौरव पर मुग्ध है'भारवेरर्थगौरवम्'। प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने भारवि की कविता को नारियल फल के समान बताया है। भारवि नीति; विशेष रूप से राजनीति के विशिष्ट ज्ञाता प्रतीत होते हैं। सूक्तियों का प्रयोग इस महाकाव्य की महती विशेषता है। 'वंशस्थ' छन्द का सुन्दर प्रयोग इस महाकाव्य में कवि द्वारा किया गया है।)
प्रश्नः 6.
रावणवध महाकाव्यस्य परिचयं संक्षेपेण लिखत।
('रावणवध' महाकाव्यं का परिचय संक्षेप में लिखिये।)।
उत्तरम् :
'रावणवध' महाकाव्यं महाकवि भट्टिना विरचितमस्ति। विद्वत्समाजे अस्य काव्यस्य नाम 'भट्टिका एव प्रचलितम्। अयं रामकाव्य परम्परायाः सुविख्यातः ग्रन्थः अस्ति। अस्मिन् महाकाव्ये द्वाविंशतिः सर्गाः सन्ति। चतुर्दा काण्डेषु इदं महाकाव्यं विभक्तम्- (i) प्रकीर्णकाण्डः (ii) अधिकारकाण्डः (iii) प्रसन्नकाण्डः (iv) तिङन्तकाण्डश्च। एतेषु काण्डेषु काव्येन सह क्रमशः व्याकरणस्य ज्ञानं प्रदत्तम्। काव्येन व्याकरणेन च सार्द्ध अत्र नीतेः अपि समावेशः वर्तते। इत्थ इदं शास्त्र काव्यमस्ति।
('रावणवध' महाकाव्य महाकवि भट्टि विरचित है। विद्वानों के समाज में इस काव्य का नाम 'भट्टि काव्य' प्रसिद्ध है। यह रामकाव्य परम्परा का सुविख्यात ग्रन्थ है। इस महाकाव्य में 22 सर्ग हैं। चार काण्डों में यह महाकाव्य विभाजित है - (i) प्रकीर्ण काण्ड, (ii) अधिकार काण्ड (iii) प्रसन्न काण्ड तथा (iv) तिडन्त काण्ड। इन काण्डों में काव्य और व्याकरण के साथ यहाँ नीति का भी समावेश है। इस प्रकार यह 'शास्त्र काव्य' है।)
प्रश्नः 7.
'शिशुपालवधम्' महाकाव्यस्य संक्षेपेण परिचयं प्रदेयम्।
('शिशुपालवध' महाकाव्य का संक्षेप में परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
'शिशुपालवधम्' महाकविना माघेन विरचितं एकं महाकाव्यं अस्ति। अस्य महाकाव्यस्य कथानकं महाभारतात् गृहीतम्। अस्मिन् महाकाव्ये विंशतिः सर्गाः सन्ति। संस्कृत महाकाव्यस्य वृहत्रयां अस्य महाकाव्यस्य महत्त्वपूर्ण स्थानमस्ति। अस्य महाकाव्यस्य नायकः श्रीकृष्णः प्रतिनायकश्च शिशुपालः अस्ति। महाकाव्येऽस्मिन् उपमा, अर्थगौरवम्, पदलालित्यमिति गुण वयं प्राप्यन्ते। 'मेघे माघे' गतं वयः उक्तिः महाकाव्यस्य लोकप्रियतां गहनतां च व्यनक्ति। माघस्य सम्पूर्ण महाकाव्यं प्राञ्जलभाषया, प्रौढशैल्या उदात्तभावनाभिश्च परिपूर्णमस्ति। माघस्य प्रकृति वर्णनमपि अत्युद्भुतं वर्तते। 'नवसर्ग गते माघे नवशब्दो न विद्यते' उक्तिः माघस्य अगाधपाण्डित्यं बहुज्ञतां च प्रस्तुतं करोति।
('शिशुपालवध' महाकवि माघ विरचित एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य का कथानक महाभारत से लिया गया है। इस महाकाव्य में बीस सर्ग हैं। संस्कृत महाकाव्य की बृहत्त्रयी में इस महाकाव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस महाकाव्य के नायक श्रीकृष्ण तथा प्रतिनायक शिशुपाल हैं। इस महाकाव्य में उपमा, अर्थगौरव एवं पदलालित्य–तीनों गुण प्राप्त होते हैं। 'मेघे माघे गतं वयः' उक्ति माघ महाकाव्य की लोकप्रियता एवं गहनता को व्यक्त करती है। माघ का सम्पूर्ण महाकाव्य प्राञ्जल भाषा, प्रौढ़ शैली तथा उदात्त भावनाओं से परिपूर्ण है। माघ का प्रकृति वर्णन अत्यन्त अद्भुत है। 'नव सर्ग गते माघे नवशब्दो न विद्यते' उक्ति माघ के अगाध पाण्डित्य व बहुज्ञता को प्रस्तुत करती है।)
प्रश्न: 8.
'नैषधीयचरितम्' महाकाव्ये संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('नैषधीयचरित' महाकाव्य पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
'नैषधीयचरितम्'-संस्कृत साहित्यस्य वृहत्त्रयां परिगणितं इदं महाकाव्यं कविवर श्री हर्षेण विरचितमस्ति। श्री हर्षः काश्मीरी कविरासीत्। सः कान्यकुब्जस्य राजा विजयचन्द्रस्य सभाकविरासीत्। श्री हर्षः न केवलं प्रथमश्रेण्याः महाकवि रासीत् अपितु प्रकाण्डपण्डितोऽपि आसीत्। तस्मिन् पाण्डित्यस्य वैदग्ध्यस्य च अनुपमः समन्वयः आसीत्।
नैषधीयचरिते द्वाविंशतिः सर्गाः सन्ति। महाभारतस्य नलोपाख्यानं अधिकृत्य अस्य महाकाव्यस्य रचना कृता। नलदमयन्त्योः प्रेम-विवाह. तपोः विरहः.मिलनं प्रेमक्रीडादिनाम चित्रमेव अस्मिन महाकाव्ये विशे सर्वश्रेष्ठं महाकाव्यं मन्यते। सामान्यपाठकः इमं ग्रन्थं ज्ञातुं साहसं कर्तुं न शक्नोति। 'इदं महाकाव्यं श्रृंगारामृत शीतगुः' निगदितम्। अस्य काव्यस्य सम्बन्धे इयं उक्तिः प्रसिद्धा वर्तते 'उदिते नैषधे काव्ये क्वः माघः क्व च भारविः।' (संस्कृत साहित्य की 'वृहत्वयी' में परिगणित यह महाकाव्य कविवर श्री हर्ष द्वारा विरचित है। श्री हर्ष काश्मीरी कवि थे। वे कन्नौज के राजा विजय चन्द्र के सभा कवि थे। श्री हर्ष न केवल प्रथम श्रेणी के महाकवि ही थे अपितु प्रकाण्ड पण्डित भी थे। उनमें पाण्डित्य तथा वैदग्ध्य का अनुपम समन्वय था।
'नैषधीयचरित' में 22 सर्ग हैं। महाभारत के नलोपाख्यान को आधार बनाकर इस महाकाव्य की रचना की गई। नल दमयन्ती के प्रेम विवाह, विरह, मिलन, प्रेम-क्रीड़ा आदि का चित्र ही इस महाकाव्य में विशेष रूप से किया गया है। वृहत्वयी में यह सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता है। सामान्य पाठक इस ग्रन्थ को समझने का साहस नहीं कर सकता। यह महाकाव्य 'शृंगारामृत शीतगुः' कहा गया है। इस महाकाव्य के सम्बन्ध में यह उक्ति प्रसिद्ध है. 'उदिते नैषधे काव्ये क्वः माघः क्व च भारविः'। नैषध काव्य का उदय होने पर कहाँ तो माघ तथा कहाँ भारवि? अर्थात् दोनों ही उसके समक्ष नहीं ठहर पाये।)
प्रश्नः 9.
'माघे सन्ति त्रयो गुणाः' आशयं स्पष्टं कुरुत। ('माघ में तीनों गुण हैं' आशय स्पष्ट कीजिये।)
उत्तरम् :
शिशुपालवधस्य काव्यसौन्दर्यं विलोक्य विद्वज्जनाः कथयिन्त-'माघे सन्ति त्रयो गुणाः'। अर्थात् शिशुपालवधे उपमा वैचित्र्यम्, अर्थस्य गांभीर्यं पद लालित्यं च एते त्रयो गुणाः वर्तन्ते। यथा संगीतशास्त्रस्य आधारः षडजादयः सप्तस्वराः सन्ति तथैव वाङ्मयस्य आधारः कादयः वर्णाः सन्ति।
"वर्णैः कतियमैरेव ग्रथितस्य स्वरैरिव
अनन्तता वाङ्मय स्याहो, गेयस्येव विचित्रता।"
अर्थान्तरन्यासालंकार माध्यमेन अर्थगौरवमपि द्रष्टव्यम्- 'वृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति।' भाषायां माधस्य अधिकारः आसीत्। अतः महाकाव्ये पदलालित्यं तु स्थाने स्थाने मिलति। यथा-वसन्तकालीनशोभायाः वर्णने
"मधुरया मधु बोधित माधवी, मधुसमृद्धि समेधित मेधया।"
('शिशुपालवध' के काव्य सौन्दर्य को देखकर विद्वज्जन कहते हैं - "माघ के काव्य में तीनों गुण हैं।" अर्थात् शिशुपालवध में उपमा की विचित्रता, अर्थ की गंभीरता तथा पदलालित्य, ये तीनों गुण विद्यमान हैं। जैसे संगीतशास्त्र का आधार षड्ज आदि स्वरों से रचित गीत की विचित्र अनन्तता होती है उसी प्रकार कुछ वर्षों से ग्रथित वाङ्मय की विचित्रता होती है। अर्थान्तरन्यास अलंकार के माध्यम से अर्थगौरव भी देखने योग्य हैं - 'बड़ों की सहायता से छोटे भी कार्य सम्पन्न कर लेते हैं।' भाषा पर तो माघ का अधिकार था। अतः महाकाव्य में पदलालित्य तो स्थान-स्थान पर मिलता है। जैसा कि वसन्तकालीन शोभा के वर्णन में मधुरया मधु. .. मेधया।)
प्रश्न: 10.
'नवसाहसाडूचरिते' संक्षेपेण टिप्पणी विलिख्यताम्।
('नवसाहसाङ्कचरित' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
नवसाहसाङ्कचरितम्-इदं पद्यगुप्त परिमलं विरचितं प्रथमैतिहासिकं महाकाव्यमस्ति। अस्य रचनाकालः 1005 ई. समीपमस्ति। पद्मगुप्तपरिमलः प्रथमवाक्पतिराज उपाधिधारिणः राजा मुञ्जस्य सभा कविरासीत्। मुञ्ज मृत्योपरान्तं तस्य पुत्रस्य सिन्धुराजनवसाहसाङ्कस्य अय राजकविः बभूव। सिन्धुराजस्य भव्यस्वागतेन अयं अत्यधिक प्रभावितः अभवत् तस्य प्रशस्तौ च 'नवसाहसाङ्कचरितस्य' रचनामकरोत्।
अस्मिन् महाकाव्ये अष्टादश सर्गाः सन्ति। यद्यपि इदं प्रशस्ति महाकाव्यमस्ति तथापि ऐतिहासिक तथ्यानां ग्रन्थेऽस्मिन् रक्षा कृता। ऐतिहासिक तथ्याः अत्र सुरक्षिताः। अस्य काव्यस्य द्वादशसर्गे सिन्धुराजस्य पूर्ववर्ती समस्तः परमारवंशी नृपाणां कालक्रमानुसारेण वर्णनमस्ति, यस्य सत्यता शिलालेखैः प्रमाणितं संजातम्। काव्यस्थ दृष्ट्या इदं महाकाव्यं वैदर्भीरीत्याः उत्कृष्टोदाहरणं अस्ति। अत्र प्रसादगुणस्य चारुता द्रष्टव्या।
(यह पद्य गुप्त परिमल विरचित प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसका रचनाकाल 1005 ई. के आसपास है। पद्मगुप्त परिमल पहले वाक्पतिराज उपाधिधारी राजा मुञ्ज के सभा कवि थे। मुञ्ज की मृत्यु के बाद उसके पुत्र सिन्धुराज नवसाहसाङ्क के ये राजकवि बने। सिन्धुराज के भव्य स्वागत से ये अत्यधिक प्रभावित हुये तथा उनकी प्रशस्ति में 'नवसाहसाङ्क' की रचना की।
इस महाकाव्य में अठारह सर्ग हैं। यद्यपि यह प्रशस्ति काव्य है, फिर भी ऐतिहासिक तथ्यों की इस ग्रन्थ में रक्षा की गई है। इसमें ऐतिहासिक तथ्य सुरक्षित हैं। इस काव्य के बारहवें सर्ग में सिन्धुराज के पूर्ववर्ती समस्त परमारवंशी राजाओं के कालक्रमानुसार वर्णन हैं, जिसकी सत्यता शिलालेखों से प्रमाणित हो चुकी है। काव्य की दृष्टि से यह महाकाव्य वेदभी रीति का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रसाद गुण की चारुता इसमें द्रष्टव्य है।)
प्रश्न: 11.
'विक्रमाङ्कदेवचरिते' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('विक्रमाङ्क देव चरितम्' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
इदं महाकवि विल्हणेन विरचितम्। इतिवृत्तस्य यथार्थतया ऐतिहासिक महाकाव्य परम्परायां इदं महाकाव्यं कालक्रमानुसारेण द्वितीय स्थानं भवते। अस्य रचनाकाल: 1085 ई. समीपम् वर्तते। अस्मिन् महाकाव्ये अष्टादश सर्गाः सन्ति। अस्मिन् चालुक्यवंशीय प्रसिद्धनपस्य विक्रमादित्यस्य तस्य वंशस्य च विस्तरेण वर्णनमस्ति। विक्रमादित्यस्य पिता आश्वमल्लस्य मृत्योः, राजकुमारी चन्द्रलेखया सह तस्य विवाहः, चोलानां पराजयः इत्यादि घटनानां विशद वर्णनं अस्मिन् ग्रन्थे संजातः। तत्कालीन शिलालेखैः आसाम् घटनानां ऐतिहासिकता प्रमाणितं भवति। काव्यस्य दृष्ट्या विल्हण: वैदर्भीमार्गस्य कविरासीत्। सम्पूर्ण ग्रन्थे माधुर्य प्रसादयोः पर्याप्तं पुटं वर्तते। इदं सम्पूर्ण महाकाव्यं प्रसादपूर्ण वैदर्भीरीत्याः सफलं उदाहरणमस्ति।
(यह महाकवि विल्हण द्वारा विरचित है। इतिवृत्त की यथार्थता के कारण ऐतिहासिक महाकाव्य परम्परा में यह महाकाव्य कालक्रमानुसार द्वितीय स्थान रखता है। इसका रचनाकाल 1085 ई. के आसपास है। इस महाकाव्य में 18 सर्ग हैं। इसमें चालुक्यवंशीय प्रसिद्ध विक्रमादित्य (षष्ठम्) तथा उनके वंश का विस्तार से वर्णन किया गया है। विक्रमादित्य के पिता आश्वमल्लदेव की मृत्यु, राजकुमारी चन्द्रलेखा से इनका विवाह, चोलों की पराजय आदि घटनाओं का विशद वर्णन इस ग्रन्थ में हुआ है। तत्कालीन शिलालेखों से इन घटनाओं की ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। काव्य की दृष्टि से विल्हण वैदर्भी मार्ग के कवि थे। सम्पूर्ण ग्रन्थ में माधुर्य तथा प्रसाद का पर्याप्त पुट है। यह सम्पूर्ण म म्पूर्ण महाकाव्य प्रसाद वैदर्भी रीति का सफल उदाहरण है।)
प्रश्न: 12.
मेघदूतस्य सामान्य परिचयः प्रदेयः।
(मेघदूत का सामान्य परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
मेघदूतम्-भारतीय गीतिकाव्यपरम्परायां महाकविकालिदासेन विरचितं मेघदूतं सर्वश्रेष्ठं गीतिकाव्यमस्ति। इदं न केवलं गीतिकाव्यपरम्परायाः आदिग्रन्थः वर्तते अपितु दूतकाव्यपरम्परायाः अपि इदमेव प्रथमं काव्यमस्ति। मेकडोनल प्रभृतिभिः विद्वद्भिः इदं गीतिरत्नं सर्वश्रेष्ठं काव्यं च निगदितम्। डॉ. वचनदेवकुमारस्यानुसारेण "इदं सनातन विरहीमानवस्य व्याकुल हृदयस्य प्रथम अनुष्टुप् अस्ति। मेघस्य वर्षगाँठस्य महिम्न स्तोत्रं, सन्देशपरक गीतिकाव्यस्य दूतकाव्यस्य वा सर्वाधिक मूल्यवान् रत्नमस्ति।"
अस्मिन् गीतिकाव्ये 121 पद्यानि सन्ति। एतेषु पद्येषु कविः कालिदासः एकस्य विरहीपक्षस्य मनोव्यथायाः मार्मिकं चित्रणं कृतवान्। अस्य द्वौ भागौ स्तः पूर्वमेघः उत्तरमेघश्च। पूर्वमेघे धनपति कुबेरस्य निर्वासित एकस्य विरहीयक्षस्य मनोव्यथायाः मार्मिकं चित्रणमस्ति। उत्तरमेघे च अलकापुर्याः, यक्षयवनस्य यक्षिण्याविरहदशायाश्च वर्णनं वर्तते। संक्षेपेण पूर्व मेघः बाह्य प्रकृत्या मनोरमं चित्रमस्ति तु उत्तरमेघः अन्तः प्रकृतेः अनुभवापरि प्रतिष्ठितं अभिरामं वर्णनमस्ति। इदं कालिदासस्य मानव प्रकृतेः बाह्य प्रकृतेश्च सूक्ष्म निरीक्षणस्य भव्यागारमस्ति। सम्पूर्ण मेघदूते मन्दाक्रान्ता छन्द वर्तते।
(मेघदूत-भारतीय गीतिकाव्य परम्परा में महाकवि कालिदास विरचित मेघदूत सर्वश्रेष्ठ गीतिकाव्य है। यह न केवल गीतिकाव्य की परम्परा का आदि ग्रन्थ है अपितु दूतकाव्य की परम्परा का भी यही प्रथम काव्य है। मेकडोनल आदि विद्वानों ने "इसे गीति रत्न एवं सर्वश्रेष्ठ काव्य कहा है।" डॉ. वचनदेव कुमार के अनुसार "यह सनातनविरही मानव के व्याकुल हृदय का प्रथम अनुष्टुप् है। मेघ की वर्षगाँठ का महिम्न स्तोत्र, सन्देशपरक गीतिकाव्य या दूतकाव्य का सबसे मूल्यवान रत्न है।"
इस गीतिकाव्य में 121 पद्य हैं। इन पद्यों में कवि ने एक विरही यक्ष की मनोव्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। इसके दो भाग हैं - पूर्वमेघ तथा उत्तरमेघ। पूर्व मेघ में धनपति कुबेर के निर्वासित एक विरही यक्ष की मनोव्यथा का मार्मिक चित्रण है। उत्तरमेघ में अलकापुरी, यक्ष भवन एवं यक्षिणी की विरह दशा का वर्णन किया गया है। संक्षेप में, पूर्वमेघ बाह्य प्रकृति का मनोरम चित्र है तो उत्तरमेघ अन्तः प्रकृति के अनुभव पर प्रतिष्ठित अभिराम वर्णन है। यह कालिदास के मानव प्रकृति तथा बाह्य प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण का भव्य भण्डार है। सम्पूर्ण मेघदूत में मन्दाक्रान्ता छन्द है।
प्रश्न: 13.
'ऋतुसंहारे' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('ऋतुसंहार' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
'ऋतुसंहारम्' कविकालिदासस्य आद्या कृतिः वर्तते। अस्मिन् षट् सर्गाः 144 पद्याः च सन्ति। अस्मिन् षट्-ऋतूनां यथाक्रमं वर्णनं वर्तते। सर्वाधिकविस्तृतं वर्णनं वसन्त ऋतोः वर्तते। अस्य काव्यस्य भाषा-शैली सरला सरसा च वर्तते। सम्पूर्णकाव्यं प्रसादगुणेन ओतप्रोतं वर्तते। अनुप्रासमय शब्द विन्यासः, पद्यस्य प्रवाह: जटिलता रहिता भाषा च सर्वत्र दृष्टिगतं भवति। उदाहरणस्वरूपेण इदं पद्यं द्रष्टव्यमस्ति
"द्रुमा : सपुष्याः, सलिलं सपद्मम्,
स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः।
सुखाः प्रदोषाः दिवसाश्च रम्याः
सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते॥"
('ऋतुसंहार' कवि कालिदास की प्रथम कृति है। इसमें छः सर्ग तथा 144 पद्य हैं। इसमें छः ऋतुओं का यथाक्रम वर्णन है। सवाधिक विस्तृत वर्णन वसन्त ऋतु का है। इस काल की भाषा-शैली सरल तथा सरस है। सम्पर्ण काव्य प्रसाद गुण से ओत-प्रोत है। अनुप्रासमय शब्द विन्यास, पद्य का प्रवाह जटिलता रहित भाषा - सर्वत्र दृष्टिगत होती है। उदाहरणस्वरूप यह पद्य द्रष्टव्य है
"वृक्ष पुष्पों से युक्त हैं, जल कमल सहित है, स्त्रियाँ काम-भावनाओं से परिपूर्ण हैं, सुगन्धित पवन (बह रहा है)। प्रदोष का समय सुखप्रद है, दिन सुन्दर है, सारा दृश्य जगत वसन्त की चारुता से प्रिय तथा स्निग्ध प्रतीत होता है।")
प्रश्न: 14.
'नीतिशतके ' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('नीतिशतक' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
अथवा
भर्तृहरेः कृतित्वस्य संक्षेपेण परिचयः प्रदेयः।
(भर्तृहरि के कृतित्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
भर्तृहरि विरचितानि त्रीणि शतकानि सन्ति (i) नीतिशतकम्, (ii) श्रृंगार शतकम् (iii) वैराग्यशतकञ्च। गीतिकाव्यपरम्परायां एतेषां त्रयाणां विशिष्ट स्थानमस्ति। सर्वविध मानवानां कृते सर्वासु अवस्थासु इमानि त्रीणि शतकानि प्रेरणास्पद ग्रन्थाः सन्ति। भर्तृहरिः वस्तुतः जनकविरासीत्। सः संसारस्य सर्वप्रकारस्य सम्यक् प्रकारेण अनुभवं कृतवान्। अस्य अनुभवस्य परिणतिरेव इमे त्रयः ग्रन्थाः सन्ति।
नीतिशतके मुख्यतः दशखण्डः सन्ति, प्रत्येके खण्डे दश पद्यानि सन्ति। अस्य ग्रन्थस्य एक एकं पद्यं पठितुं योग्यं उपदेशात्मकं च वर्तते। एतेषु पद्येषु विद्या-वीरता, साहस, सत्संगतिः, परोपकारपरायणता सदृ पदावल्यां वर्णनं कृतम्। नीतिशतकस्य प्रसिद्ध पदानां प्रचारः प्रायः समग्रभारतवर्षे वर्तते। अस्य ग्रन्थस्य काश्चित् सूक्तयः अत्र द्रष्टव्याः सन्ति (i) 'विभूषणं मौनम पण्डितानाम्'। (ii) सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते।' (iii) सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम्
(भर्तृहरि विरचित तीन शतक हैं - (i) नीतिशतक, (ii) शृंगारशतक तथा (iii) वैराग्य शतक। गीतिकाव्य परम्परा में इन तीनों शतकों का विशिष्ट स्थान है। सभी प्रकार के मनुष्यों के लिए ये तीनों शतक प्रेरणास्पद ग्रन्थ हैं। भर्तृहरि वस्तुतः जनकवि थे। उन्होंने संसार का सभी प्रकार का अच्छी तरह से अनुभव किया था। उस अनुभव की परिणति ही ये तीनों ग्रन्थ हैं। 'नीतिशतक' में मुख्यतः 10 खण्ड हैं। प्रत्येक खण्ड में 10 पद्य हैं। इस ग्रन्थ का एक-एक पद्य पढ़ने योग्य एवं उपदेशात्मक है। इन पद्यों में विद्या-वीरता, साहस, सत्संगति, परोपकारपरायणता जैसी उदार वृत्तियों का अति सरस पदावली में वर्णन किया गया है। नीतिशतक के प्रसिद्ध पदों का प्रचार प्रायः समग्र भारतवर्ष में है। इस ग्र सूक्तियाँ यहाँ पर द्रष्टव्य हैं (i) मूों का मौन ही आभूषण है। (ii) सभी गुण स्वर्ण में निवास करते हैं। (iii) सत्संगति मनुष्य का कहो क्या नहीं करती है? अर्थात् सब कुछ करती है।)
प्रश्नः 15.
'गीतगोविन्दस्य' संक्षेपेण परिचयं प्रस्तुतं कुरुत।
('गीतगोविन्द' का संक्षेप में परिचय प्रस्तुत कीजिये।)
उत्तरम् :
'गीतगोविन्दम्' जयदेवेन विरचितम् सुप्रसिद्धं गीतिकाव्यमस्ति। गीतगोविन्दस्यरचना सर्वथा मौलिकमस्ति। इदं गीतिकाव्यं वस्तुतः शृंगारिकभक्त्याः रमणीयतमा कृतिरस्ति, यस्याम् श्रीकृष्णस्य गोपीनाम् च रास क्रीडानां वर्णनमस्ति। श्रीकृष्णः तत्र नायकः गोपिकाश्च नायिकाः।
वस्तुतः 'गीतगोविन्दम्' गीतिकाव्यस्य मुकुटमणिरस्ति। अस्मिन् द्वादश सर्गाः सन्ति। प्रत्येकं सर्गः गीतैः समन्वितः वर्तते। अस्मिन् गीतिकाव्ये संक्षिप्तता, सरलता, सांगीतिकता, अनुभूतिप्रवणता, भावसंकेन्द्रणं इत्यादयः स्वचरम सीमायां विद्यमानाः सन्ति। इमे ताललय समन्विता: वर्तन्ते गेयता च पूर्णमात्रायां अस्ति। जयदेवः कोमलकान्त पदावल्यै विख्यातः वर्तते। अस्मिन् काव्ये प्रत्येक शब्दात् सांगीतिकता आविर्भवति, रसश्च प्रस्फुटति।।
('गीतगोविन्दम्' जयदेव द्वारा विरचित सुप्रसिद्ध गीतिकाव्य है। गीत गोविन्द की रचना सर्वथा मौलिक है। यह गीतिकाव्य वस्तुतः शृंगारिक भक्ति की रमणीयतम कृति है, जिसमें श्रीकृष्ण व गोपियों की रास-क्रीड़ाओं का वर्णन है। श्रीकृष्ण नायक हैं तथा गोपियाँ नायिकायें हैं।
वस्तुतः 'गीत गोविन्द' गीतिकाव्य का मुकुटमणि है। इसमें बारह सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग गीतों से समन्वित है। इस गीतिकाव्य में संक्षिप्तता, सरलता, सांगीतिकता, अनुभूतिप्रवणता, भाव-संकेन्द्रण इत्यादि अपनी चरम सीमा में विद्यमान हैं। ये ताललय से समन्वित हैं तथा गेयता पूरी मात्रा में है। जयदेव कोमलकान्त पदावली के लिए प्रसिद्ध हैं। इस काव्य में प्रत्येक शब्द से सांगीतिकता छलकती है, रस टपकता है।)
प्रश्न: 16.
गद्यकाव्यस्य प्रमुखभेदानां संक्षेपेण परिचयः प्रदेयः। (गद्यकाव्य के प्रमुख भेदों का संक्षेप में परिचय दीजिए।)
उत्तरम् :
गद्यकाव्यस्य प्रमुख द्वौ भेदौ स्तः-(i) कथा (ii) आख्यायिका च। कथा-यस्याः कथानकं सर्वथा आविष्कृतं भवति-यथा-कादम्बरी। आख्यायिका-या वास्तविक जनैः घटनाभिश्च निर्मिता भवति। अस्यां मौलिकतां मुक्तप्रश्रयं मिलति, यद्यपि अस्याः प्रमुख पात्राणि ऐतिहासिक व्यक्तयः भवन्ति। अस्याः उदाहरणम्-बाणभट्टविरचितम् हर्षचरितमस्ति।
(गद्यकाव्य के प्रमुख दो भेद हैं-(i) कथा तथा (ii) आख्यायिका। कथा-जिसका कथानक सर्वथा आविष्कृत होता है। इसका उदाहरण कादम्बरी है। आख्यायिका-जो वास्तविक व्यक्तियों और घटनाओं से निर्मित होती है। इसमें मौलिकता को मुक्त प्रश्रय मिलता है। यद्यपि इसके प्रमुख पात्र ऐतिहासिक व्यक्ति ही होते हैं। इसका उदाहरण बाणभट्ट विरचित 'हर्षचरित' है।)
प्रश्न: 17.
'दशकुमारचरिते' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('दशकुमारचरित' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
'दशकुमारचरितम्' महाकवि दण्डिना विरचितमस्ति। संस्कृत-साहित्यस्य गौरवमयी गद्यकाव्य त्रयां अस्य ग्रन्थस्य महत्त्वपूर्ण स्थानमस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे आख्यानानां रोमांचकता कौतूहलपूर्णता च वर्तते। अयं ग्रन्थः दशकुमाराणां विचित्रचरित्रस्य प्रशंसनीयः संग्रहः अस्ति। 'दशकुमारचरितस्य' कथानकं छलछद्मपूर्ण कृत्यैः चमत्कारिका लौकिकैश्च घटनाभिः पूर्णमस्ति। इदमेव कारणमस्ति यत् इमं 'धर्तानां रोमांसः अपि कथ्यते। अस्मिन ग्रन्थे पुष्पपर्याः नृपस्य राजहंसस्य पुत्रानां तस्य मन्त्रिपुत्राणां च कथा अस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे दण्ड्याः रचनाकौशलमपि दर्शनीयमस्ति। ग्रन्थेऽस्मिन् कथानां क्रमः प्रशंसनीयः वर्तते। ग्रन्थोऽयं वैदर्भी रीत्यां विरचितमस्ति। अयं ग्रन्थः पदलालित्याय प्रसिद्धमस्ति।
('दशकुमारचरितम्' महाकवि दण्डी द्वारा विरचित है। संस्कृत साहित्य की गौरवमयी गद्यकाव्यत्रयी में इस ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रन्थ में आख्यानों की रोमांचकता तथा कौतूहलपूर्णता है। यह ग्रन्थ दशकुमारों के विचित्र चरित्र का प्रशंसनीय संग्रह है। 'दशकुमारचरित' का कथानक छल-छद्मपूर्ण कृत्यों, चमत्कारिक एवं अलौकिक घटनाओं से पूर्ण है। यही कारण है कि इसे 'धूर्तों का रोमांस' भी कहा जाता है। इस ग्रन्थ में पुष्पपुरी के राजा राजहंस के पुत्रों तथा उनके मंत्रियों के पुत्रों की कथा है। इस ग्रन्थ में दण्डी का रचना-कौशल भी दर्शनीय है। इस ग्रन्थ में कथाओं का क्रम प्रशंसनीय है। यह ग्रन्थ वैदर्भी रीति में लिखा गया है। यह ग्रन्थ पद-लालित्य के लिए प्रसिद्ध है।)
प्रश्न: 18.
वासवदत्तायां संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('वासवदत्ता' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
संस्कृत गद्यसाहित्यकारेषु प्रसिद्धः महाकविः सुबन्धुना विरचितं 'वासवदत्ता' नाम्नः गद्यकाव्यं अतिप्रसिद्धमस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे राजकुमार कन्दर्पकेतो: राजकुमारी वासवदत्तायाश्च प्रेमकथायाः चित्रणमस्ति। अस्य कथानकं अतिलघुः वर्तते परन्तु कविना प्रकृतिवर्णनेन, सौन्दर्यचित्रणेन, स्वस्य पण्डित्यप्रदर्शनेन च इदं विशालकायं निर्मितम्। अत एव इयं रचना श्लेषबहुला वर्तते। कविना स्वयमेव उक्तम्-प्रत्यक्षर श्लेषमय-प्रपञ्चविन्यास वैदग्धनिधिप्रबन्धम्। अस्य वर्णन शक्तिरपि अपरिमिता। इमानि वर्णनानि एव वासवदत्तायाः प्रधान भागाः सन्ति। अस्य ग्रन्थस्य समासेषु अपि ओजः माधुर्यगुणं च वर्तते। स्थानविशेषे अतिलघुवाक्यविन्यासेऽपि कविः सिद्धहस्तः अस्ति।
(संस्कृत गद्य साहित्यकारों में प्रसिद्ध महाकवि सुबन्धु द्वारा रचित 'वासवदत्ता' नामक गद्य काव्य अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में राजकुमार कन्दर्पकेतु तथा राजकुमारी वासवदत्ता की प्रेमकथा का चित्रण है। इसका कथानक अत्यन्त लघु है परन्तु कवि ने प्रकृति वर्णन, सौन्दर्य चित्रण तथा स्वयं के पाण्डित्य प्रदर्शन से इसे विशालकाय बना दिया है। इसलिए यह रचना श्लेषबहुला है। कवि ने स्वयं कहा है कि यह काव्य प्रत्येक अक्षर से श्लेष गुम्फित है। इनकी वर्णन शक्ति भी अपार है। ये वर्णन ही वासवदत्ता के प्रधान भाग हैं। इस ग्रन्थ के समासों में भी ओज तथा माधुर्य गुण हैं। स्थान विशेष पर अत्यन्त छोटे वाक्य लिखने में भी कवि सिद्धहस्त है।)
प्रश्न: 19.
'कादम्बरी' ग्रन्थे संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('कादम्बरी' ग्रन्थ पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
कादम्बरी-इयं न केवलं बाणभट्टस्य अपितु समस्त संस्कृतसाहित्यस्य सर्वोत्कृष्ट गद्य रचना अस्ति। इयमेव तस्य अमरकृतिः वर्तते, यया सः अद्यापि यशः शरीरेण जीविताः सन्ति। बाणस्य अस्याः कथायाः बीजः 'वृहत्कथायां' मिलति।
कादम्बरी भागद्वयं विभक्तम्-पूर्वभागः उत्तरभागश्च। बाणस्य मृत्योपरान्तं कादम्बरीकथा अपूर्णा अभवत् अतः तस्याः उत्तरभागः बाणस्य पुत्रेण लिखितमासीत्। महाकविः बाणभट्टः कादम्बर्याः प्रारंभः विंशति पद्यानाम् प्रस्तावनोपरान्तं कृतवान्। एतेषु पद्येषु देवस्तुतिः, गुरुवन्दना, खलनिन्दा इत्यादिनां वर्णनं कृत्वा स्ववंशक्रमस्य उल्लेखं कृतवान्। कथायाः प्रारंभः नृपशूद्रकस्य वर्णनेन कृतः। अस्मिन् ग्रन्थे त्रयाणां जन्मनां घटनाः गुम्फिताः सन्ति।
डॉ. वचनदेवकुमारस्य मतानुसारेण 'कादम्बरी' संस्कृत गद्य साहित्यस्य महार्घमणिरस्ति। कादम्बरी वस्तुतः कादम्बरी (मदिरा) वर्तते। एकस्य श्रेष्ठगद्यकाव्यस्य सम्पूर्ण गुणैः इयं कादम्बरी युक्ता वर्ततेः। भाषा-शैल्याः दृष्ट्याऽपि 'कादम्बरी' एकः उत्तमः ग्रन्थः अस्ति।।
(कादम्बरी-यह न केवल बाणभट्ट की अपितु समस्त संस्कृत साहित्य की सर्वोत्कृष्ट गद्य रचना है। यही उनकी अमर कृति है। जिससे वे आज भी यशः शरीर से जीवित हैं। बाण की इस कथा का बीज 'वृहत्कथा' में मिलता है।
'कादम्बरी' दो भागों में विभक्त है - पूर्व भाग तथा उत्तर भाग। बाण की मृत्यु के बाद कादम्बरी की कथा अपूर्ण रह गई थी, अतः उसका उत्तर भाग बाण के पुत्र ने लिखा था। महाकवि बाणभट्ट ने 'कादम्बरी' का प्रारंभ 20 पद्यों की एक प्रस्तावना के पश्चात् किया है। इन 20 पद्यों में देवस्तुति, गुरु-वन्दना, खलनिन्दा आदि का वर्णन करके अन्त में अपने वंश क्रम का उल्लेख किया है। कथा का वर्णन राजा शूद्रक के वर्णन से किया है। इस ग्रन्थ में तीन जन्मों की घटनायें गुम्फित हैं।
डॉ. वचनदेव कुमार के मतानुसार 'कादम्बरी' संस्कृत गद्य साहित्य का महार्घमणि है। कादम्बरी वस्तुतः कादम्बरी (मदिरा) है। एक श्रेष्ठ गद्य काव्य के सम्पूर्ण गुणों से यह कादम्बरी युक्त है। भाषा एवं शैली की दृष्टि से 'कादम्बरी' एक उत्तम ग्रन्थ है।)
प्रश्न: 20.
'शिवराजविजये' संक्षेपेण टिप्पणी लेख्यः।
('शिवराजविजय' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
कादम्बर्याः परम्परायां विरचितं अम्बिकादत्तव्यासस्य 'शिवराजविजयः' नाम्नः गद्यकाव्यं एक: उत्कृष्टोपन्यासः वर्तते। व्यास महोदयेन विरचितं संस्कृतस्य अयं ऐतिहासिक उपन्यासः वर्तते पूर्णरूपेण चापं मौलिकमस्ति। अयं संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमोपन्यासः वर्तते। अस्मिन् छत्रपति शिववीरस्य विजयगाथायाः अत्यधिकं ओजपूर्णं वर्णनम् विद्यते।।
य द्वे स्वतन्त्रकथाधारे समानान्तरं प्रवाहमाना भवतः। एकस्याः कथायाः नायकः छत्रपतिः शिवाजी अस्ति अपरस्याः कथायाश्च नायकः रायसिंहः अस्ति। परन्तु द्विधा विभक्तमपि इमे कथानके अनेन काव्यकौशलेन सार्द्ध परस्परं आबद्धं संश्लिष्टं च भूत्वा चलतः यत् न तु पृथक्-पृथक् प्रतीतं भवतः न च अनयोः विकासे कुत्रापि शैथिल्यं नागतम्। अस्य उपन्यासस्य नायकः वीरतायाः मूर्तिः महाराजा शिवाजी अस्ति प्रतिनायकश्च मुगलानां अन्तिम सम्राट् औरङ्गजेबः अस्ति। अस्य उपन्यासस्य प्रधानरसः वीरः वर्तते। उपन्यासस्य भाषा सहजा-सरला भावानुकूला च वर्तते।
('कादम्बरी' की परम्परा में विरचित अम्बिकादत्त व्यास का 'शिवराजविजय' नामक गद्य काव्य एक उत्कृष्ट उपन्यास है। व्यासजी द्वारा विरचित संस्कृत का यह ऐतिहासिक उपन्यास है तथा पूर्णरूपेण मौलिक है। यह संस्कृत साहित्य का प्रथम उपन्यास है। इसमें छत्रपति शिवाजी की विजय-गाथा का बड़ा ही ओजपूर्ण वर्णन है। अपरिमिता। इमानि वर्णनानि एव वासवदत्तायाः प्रधान भागाः सन्ति। अस्य ग्रन्थस्य समासेषु अपि ओजः माधुर्यगुणं च वर्तते। स्थानविशेषे अतिलघुवाक्यविन्यासेऽपि कविः सिद्धहस्तः अस्ति।
(संस्कृत गद्य साहित्यकारों में प्रसिद्ध महाकवि सुबन्धु द्वारा रचित 'वासवदत्ता' नामक गद्य काव्य अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में राजकुमार कन्दर्पकेतु तथा राजकुमारी वासवदत्ता की प्रेमकथा का चित्रण है। इसका कथानक अत्यन्त लघु है परन्तु कवि ने प्रकृति वर्णन, सौन्दर्य चित्रण तथा स्वयं के पाण्डित्य प्रदर्शन से इसे विशालकाय बना दिया है। इसलिए यह रचना श्लेषबहुला है। कवि ने स्वयं कहा है कि यह काव्य प्रत्येक अक्षर से श्लेष गुम्फित है। इनकी वर्णन शक्ति भी अपार है। ये वर्णन ही वासवदत्ता के प्रधान भाग हैं। इस ग्रन्थ के समासों में भी ओज तथा माधुर्य गुण हैं। स्थान विशेष पर अत्यन्त छोटे वाक्य लिखने में भी कवि सिद्धहस्त है।)
प्रश्न: 19.
'कादम्बरी' ग्रन्थे संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('कादम्बरी' ग्रन्थ पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
कादम्बरी-इयं न केवलं बाणभट्टस्य अपितु समस्त संस्कृतसाहित्यस्य सर्वोत्कृष्ट गद्य रचना अस्ति। इयमेव तस्य अमरकृतिः वर्तते, यया सः अद्यापि यशः शरीरेण जीविता: सन्ति। बाणस्य अस्याः कथायाः बीजः 'वृहत्कथायां' मिलति।
कादम्बरी भागद्वयं विभक्तम्-पूर्वभागः उत्तरभागश्च। बाणस्य मृत्योपरान्तं कादम्बरीकथा अपूर्णा अभवत् अतः तस्याः उत्तरभाग: बाणस्य पुत्रेण लिखितमासीत्। महाकविः बाणभट्टः कादम्बर्याः प्रारंभः विंशति पद्यानाम् प्रस्तावनोपरान्तं कृतवान्। एतेषु पद्येषु देवस्तुतिः, गुरुवन्दना, खलनिन्दा इत्यादिनां वर्णनं कृत्वा स्ववंशक्रमस्य उल्लेखं कृतवान्। कथायाः प्रारंभः नृपशूद्रकस्य वर्णनेन कृतः। अस्मिन् ग्रन्थे त्रयाणां जन्मनां घटना: गुम्फिताः सन्ति।
डॉ. वचनदेवकुमारस्य मतानुसारेण 'कादम्बरी' संस्कृत गद्य साहित्यस्य महार्घमणिरस्ति। कादम्बरी वस्तुतः कादम्बरी (मदिरा) वर्तते। एकस्य श्रेष्ठगद्यकाव्यस्य सम्पूर्ण गुणैः इयं कादम्बरी युक्ता वर्ततेः। भाषा-शैल्याः दृष्ट्याऽपि 'कादम्बरी' एकः उत्तमः ग्रन्थः अस्ति।
(कादम्बरी-यह न केवल बाणभट्ट की अपितु समस्त संस्कृत साहित्य की सर्वोत्कृष्ट गद्य रचना है। यही उनकी अमर कृति है। जिससे वे आज भी यशः शरीर से जीवित हैं। बाण की इस कथा का बीज 'वृहत्कथा' में मिलता है। 'कादम्बरी' दो भागों में विभक्त है-पूर्व भाग तथा उत्तर भाग। बाण की मृत्यु के बाद कादम्बरी की कथा अपूर्ण रह गई थी, अतः उसका उत्तर भाग बाण के पुत्र ने लिखा था। महाकवि बाणभट्ट ने 'कादम्बरी' का प्रारंभ 20 पद्यों की एक प्रस्तावना के पश्चात् किया है।
इन 20 पद्यों में देवस्तुति, गुरु-वन्दना, खलनिन्दा आदि का वर्णन करके अन्त में अपने वंश क्रम का उल्लेख किया है। कथा का वर्णन राजा शूद्रक के वर्णन से किया है। इस ग्रन्थ में तीन जन्मों की घटनायें गुम्फित हैं। डॉ. वचनदेव कुमार के मतानुसार 'कादम्बरी' संस्कृत गद्य साहित्य का महाघमणि है। कादम्बरी वस्तुतः कादम्बरी (मदिरा) है। एक श्रेष्ठ गद्य काव्य के सम्पूर्ण गुणों से यह कादम्बरी युक्त है। भाषा एवं शैली की दृष्टि से 'कादम्बरी' एक उत्तम ग्रन्थ है।)
प्रश्न: 20.
'शिवराजविजये' संक्षेपेण टिप्पणी लेख्यः।
('शिवराजविजय' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)।
उत्तरम् :
कादम्बर्याः परम्परायां विरचितं अम्बिकादत्तव्यासस्य 'शिवराजविजयः' नाम्नः गद्यकाव्यं एकः उत्कृष्टोपन्यासः वर्तते। व्यास महोदयेन विरचितं संस्कृतस्य अयं ऐतिहासिक उपन्यासः वर्तते पूर्णरूपेण चापं मौलिकमस्ति। अयं संस्कृतसाहित्यस्य प्रथमोपन्यासः वर्तते। अस्मिन् छत्रपति शिववीरस्य विजयगाथायाः अत्यधिकं ओजपूर्णं वर्णनम् विद्यते।
अस्य उपन्यासस्य द्वे स्वतन्त्रकथाधारे समानान्तरं प्रवाहमाना भवतः। एकस्याः कथायाः नायकः छत्रपतिः शिवाजी अस्ति अपरस्याः कथायाश्च नायकः रायसिंहः अस्ति। परन्तु द्विधा विभक्तमपि इमे कथानके अनेन काव्यकौशलेन सार्द्ध परस्परं आबद्धं संश्लिष्टं च भूत्वा चलतः यत् न तु पृथक्-पृथक् प्रतीतं भवतः न च अनयोः विकासे कुत्रापि शैथिल्यं नागतम्। अस्य उपन्यासस्य नायकः वीरतायाः मूर्तिः महाराजा शिवाजी अस्ति प्रतिनायकश्च मुगलानां अन्तिम सम्राट औरङ्गजेबः अस्ति। अस्य उपन्यासस्य प्रधानरसः वीरः वर्तते। उपन्यासस्य भाषा सहजा-सरला भावानुकूला च वर्तते।
('कादम्बरी' की परम्परा में विरचित अम्बिकादत्त व्यास का 'शिवराजविजय' नामक गद्य काव्य एक उत्कृष्ट उपन्यास है। व्यासजी द्वारा विरचित संस्कृत का यह ऐतिहासिक उपन्यास है तथा पूर्णरूपेण मौलिक है। यह संस्कृत साहित्य का प्रथम उपन्यास है। इसमें छत्रपति शिवाजी की विजय-गाथा का बड़ा ही ओजपूर्ण वर्णन है।
इस उपन्यास की दो स्वतंत्र कथा धाराएँ समानान्तर प्रवाहमान होती हैं। एक कथा के नायक स्वयं छत्रपति शिवाजी हैं तथा द्वितीय कथा के नायक रायसिंह हैं। परन्तु द्विधा विभक्त भी वे कथानक इस काव्य-कौशल के साथ परस्पर आबद्ध एवं संश्लिष्ट होकर चलते हैं कि न तो अलग-अलग प्रतीत होते हैं और न इनके विकास में कहीं भी शैथिल्य आया है। इस उपन्यास के नायक वीरता की मूर्ति महाराजा शिवाजी हैं तथा प्रतिनायक मुगलों के अन्तिम सम्राट् औरंगजेब हैं। इस उपन्यास का प्रधान रस वीर है। उपन्यास की भाषा-शैली सहज-सरल एवं भावानुकूल है।)
प्रश्न: 21.
पञ्चतन्त्रस्य संक्षेपेण परिचयः देयः।
(पञ्चतन्त्र का संक्षेप में परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
पञ्चतन्त्रम् नीतिकथा साहित्यस्य प्रथमं काव्यमस्ति। प्रायः सर्वेषाम् विचारकानां इदं यतमस्ति यत् पञ्चतन्त्रं विश्वसाहित्याय भारतीयसाहित्यस्य महनीयदेनमस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे नीते: अतिमनोहराः शिक्षाप्रदाः च कथाः संगृहीताः सन्ति। अस्य ग्रन्थस्य रचनाकारः पण्डित विष्णु शर्मा आसीत्। अस्य रचनाकालः ख्रिष्टस्य तृतीय शताब्दी स्वीकर्तुं शक्यते। अस्मिन् ग्रन्थे पञ्चतन्त्राणि (भागाः) सन्ति येषां नामानि क्रमशः (i) सुहृद्भेदः (ii) मित्रलाभः, (ii) सन्धि-विग्रहः, (iv) लब्ध प्रणाशः, (v) अपरिक्षित कारकं च सन्ति। ग्रन्थेऽस्मिन् नृपस्य अमरशक्तेः मूर्ख पुत्राणां मूर्खत्वं दूरीकर्तुं कथा शैली स्वीकृत सदुपदेशं संप्रेषितम्। अत्र लघुकथा माध्यमेन राजनीते: शिक्षा प्रदत्ता।
पञ्चतन्त्रं एका मौलिक परिष्कृता रचना अस्ति। अस्याः महती विशेषता अस्याः उपदेशात्मकतायां अस्ति। पशुपक्षीणां सामान्य कथामाध्यमेन अस्मिन् ग्रन्थे व्यावहारिक जीवनस्य आदर्शाः सिद्धान्ताश्च प्रस्तुतः। ग्रन्थेऽस्मिन् पाखण्डादि दोषान् दूरीकर्तुम् सद् गुणान् च स्थापयितुं प्रयासः प्रवर्तते। पञ्चतन्त्रस्य शैली सरला भाषा च विषयानुकूला वर्तते।
('पञ्चतन्त्र' नीति कथा साहित्य का प्रथम काव्य है। प्रायः सभी विचारकों का यह मत है कि 'पञ्चतन्त्र' विश्व साहित्य को भारतीय साहित्य की महनीय देन है। इस ग्रन्थ में नीति की अत्यन्त मनोहर शिक्षाप्रद कहानियाँ संगृहीत हैं। इस ग्रन्थ के रचनाकार पण्डित विष्णु शर्मा थे। इसका रचनाकाल ईसा की तीसरी शताब्दी स्वीकार की जा सकती है। इस ग्रन्थ में पाँच तन्त्र (भाग) हैं, जिनके नाम क्रमशः (i) सुहृद्भेद, (ii) मित्रलाभ, (iii) सन्धि-विग्रह, (iv) लब्ध प्रणाश एवं (v) अपरिक्षित कारक हैं। इस ग्रन्थ में राजा अमरशक्ति के मूर्ख पुत्रों के मूर्खत्व को दूर करने के लिए कथा शैली को स्वीकार कर उपदेश दिये हैं। यहाँ लघु कथा के माध्यम से राजनीति की शिक्षा दी गई है।
पञ्चतन्त्र एक मौलिक, परिष्कृत रचना है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी उपदेशात्मकता में है। पशु-पक्षियों की सामान्य कहानियों के द्वारा इस ग्रन्थ में व्यावहारिक जीवन के आदर्श व सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। इस ग्रन्थ में पाखण्ड आदि दोषों को दूर करने के लिए और सद्गुणों को स्थापित करने के लिए प्रयास किया गया है। पञ्चतन्त्र की शैली सरल तथा भाषा विषयानुकूल है।)
प्रश्न: 22.
हितोपदेशस्य सामान्य परिचयः प्रदेयः।
(हितोपदेश का सामान्य परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
नीतिकथासु पञ्चतन्त्रोपरान्तं हितोपदेशस्य स्थानं वर्तते। अस्य लेखकः नारायण पण्डितः मन्यते। बंगदेशस्य राज्ञः धवलचन्द्रस्य आदेशानुसारेण नारायणपण्डितेन एता: कथा: संकलिताः। विदुषां सहमतिः वर्तते यत् अस्य रचना चतुर्दश शताब्द्यां भविता। अस्मिन् ग्रन्थे कथास्तु गद्यभाषायां सन्ति उपदेशाश्च पद्येषु। अस्य कथानां मूलाधारः पञ्चतन्त्र एव। ग्रन्थस्य प्रस्तावनायां इदं तथ्यं स्वीकृतम्-'पञ्चतन्त्रात्तथाऽन्यस्माद् ग्रन्थादाकृष्य लिख्यते।' अस्य उद्देश्यं पाटलिपुत्रस्य नृपस्य सुदर्शनस्य अल्पमतिपुत्रेभ्यः नीते: शिक्षा प्रदानं आसीत्।।
हितोपदेशस्य चत्वारः परिच्छेदाः सन्ति-मित्रलाभः, सुहृद्भेदः, विग्रहः सन्धिश्च। अस्मिन् काव्ये त्रिचत्वारिंशत कथाः सन्ति। तत्र पञ्चविंशतिः कथास्तु पञ्चतन्त्रतः संकलिताः। ग्रन्थस्य भाषा सरसा, सरला सूक्तियुक्ता च वर्तते। पद्यानां संख्या पञ्चतन्त्रापेक्षयाअधिका। कथानां पात्राणि पशुपक्षिणः सन्ति। ग्रन्थकारस्य कथनमस्ति यत् हितोपदेशं पठित्वा संस्कृत भाषायां पटुता, वाण्यां विदग्धतानीतिविधायां च दक्षता प्राप्यते
"तो हितोपदेशोऽयं पाटवं संस्कृतोक्तिषु।
वाचां सर्वत्र वैचित्र्यं नीति विद्यां ददाति च।।"
(नीति कथाओं में पञ्चतन्त्र के पश्चात् हितोपदेश का स्थान है। इसके लेखक नारायण पण्डित माने जाते हैं। बंगाल देश के राजा धवलचन्द्र के आदेशानुसार नारायण पण्डित ने ये कथायें संकलित की। विद्वानों की सहमति है कि इसकी रचना 14वीं सदी में हुई होगी। इस ग्रन्थ में कथाएँ तो गद्य भाषा में हैं और उपदेश पद्य में हैं। इसकी कथाओं का मूलाधार पञ्चतन्त्र है। ग्रन्थ की प्रस्तावना में यह बात स्वीकार की गई है--"पञ्चतन्त्र तथा अन्य ग्रन्थ से आकर्षित होकर यह ग्रन्थ लिखा गया है।" इसका उद्देश्य पाटलिपुत्र के राजा सुदर्शन के अल्पमति पुत्रों को नीति की शिक्षा प्रदान करना था।
हितोपदेश के चार परिच्छेद हैं-मित्रलाभ, सुहृदभेद, विग्रह एवं सन्धि। इस काव्य में 43 कथाएँ हैं। पच्चीस कथायें पञ्चतन्त्र से संकलित हैं। ग्रन्थ की भाषा सरल, सरस तथा सूक्तियुक्त है। पद्यों की संख्या पञ्चतन्त्र की अपेक्षा अधिक है। कथा के पात्र पशु-पक्षी हैं। ग्रन्थकार का कथन है कि हितोपदेश को पढ़कर संस्कृत भाषा में पटुता, वाणी में विदग्धता एवं नीति विद्या में दक्षता प्राप्त हो जाती है
'श्रुतो हितोपदेशोऽयं पाटवं संस्कृतोक्तिषु।
वाचां सर्वत्र वैचित्र्यं नीति विद्यां ददाति च॥')
प्रश्नः 23.
भासस्य कृतित्वस्य संक्षेपेण परिचयो देयः।
(भास के कृतित्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।)
उत्तरम् :
भासः संस्कृत नाट्यसाहित्यस्य 'जनकः' कथ्यते। नाटककाररूपे अस्य नाम अतिप्राचीन कालादेव प्रसिद्धमस्ति। भासविरचितानि त्रयोदश रूपकाणि सन्ति। एतेषां कृत्वीनां मूलतः त्रीणि स्रोतानि सन्ति-रामायणम्, महाभारतम् लोककथा च।
(i) रामायणाश्रित कृतयः - (1) प्रतिमानाटकम् (2) अभिषेक नाटकम्।
(ii) महाभारताश्रित कृतयः - (1) मध्यम व्यायोगः, (2) कर्णभारः, (3) उरुभङ्गः, (4) बालचरितम्, (5) पञ्चरात्रम्, (6) दूतवाक्यम्, (7) दूत घटोत्कचम्।
(iii) लोककथाश्रित अथवा कल्पनाश्रित कृतयः-(1) प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, (2) स्वप्नवासवदत्तम्, (3) अविमारकम्, (4) चारुदत्तम्।
(भास संस्कृत नाट्य साहित्य के 'जनक' कहे जाते हैं। नाटककार के रूप में इनका नाम अत्यन्त प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। भास विरचित तेरह रूपक हैं। इन कृतियों के मूलतः तीन स्रोत हैं - रामायण, महाभारत तथा लोककथायें।
(i) रामायणाश्रित कृतियाँ - (1) प्रतिमा नाटक (2) अभिषेक नाटक।
(ii) महाभारताश्रित कृतियाँ - (1) मध्यम व्यायोग, (2) कर्णभार, (3) उरुभङ्ग, (4) बालचरितम्, (5) पञ्चरात्रम्, (6) दूतवाक्यम्, (7) दूत घटोत्कच।।
(iii) लोक-कथाश्रित अथवा कल्पनाश्रित कृतियाँ-(1) प्रतिज्ञायौगन्धरायण, (2) स्वप्नवासवदत्तम्, (3) अविमारक, (4) चारुदत्तम।)
प्रश्न: 24.
'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटकोपरि संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
भासविरचितरूपकेषु इदं सर्वश्रेष्ठमस्ति। अस्मिन् नाटके षष्ठाङ्काः सन्ति। इदं. प्रतिज्ञायौगन्धरायणस्य उत्तरार्द्धमस्ति। अस्मिन् पद्मावत्या साकं विवाह:, राज्ञा अवजितम् राजस्यस्य प्राप्ते: वर्णनमस्ति। अस्य नाटकस्य नामकरणं नृपेस्य उदयनेन स्वप्ने वासवदत्ताः दर्शनोपरि आधारितमस्ति। स्वप्नदृश्यः संस्कृत नाट्य साहित्य स्वविशेषस्थानं धत्ते।
इदं नाटकं नाट्यकलायाः सर्वोत्तमा परिणतिरस्ति। अस्मिन् नाटके नाटकीय संविधानम्, कथोपकथनम्, चरित्र चित्रणम्, प्राकृतिकवर्णनं रसानां च शोभनं सामञ्जस्यं पूर्णपरिपाकं भजते। मानवहृदयस्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावदशानां चित्रणं अस्मिन् नाटके सर्वत्र दृष्टुं शक्यते। अस्मिन् नाटके भासस्य काव्यकलायाः उत्कर्षः पर्याप्तमात्रायां परिलक्षितं भवति। नाटकस्य नायकः उदयन: वासवदत्ता च नायिका अस्ति।
(भास विरचित रूपकों में यह सर्वश्रेष्ठ है। इस नाटक में छः अंक हैं। यह प्रतिज्ञायौगन्धरायण का उत्तरार्द्ध है। इसमें पद्मावती से विवाह तथा राजा द्वारा खोये हुये राज्य की प्राप्ति का वर्णन है। इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है। स्वप्न वाला दृश्य संस्कृत नाट्य साहित्य में अपना विशेष स्थान रखता है।
यह नाटक नाट्यकला की सर्वोत्तम परिणति है। इस नाटक में नाटकीय संविधान, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, प्राकृतिक वर्णन तथा रसों का सुन्दर सामञ्जस्य पूर्ण परिपाक को प्राप्त हुये हैं। मानव हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावदशाओं का चित्रण इस नाटक में सर्वत्र देखा जा सकता है। इस नाटक में भास की काव्य कला का उत्कर्ष पर्याप्त मात्रा में परिलक्षित होता है। नाटक का नायक उदयन तथा नायिका वासवदत्ता है।)
प्रश्न: 25.
'अभिज्ञानशाकुन्तले' संक्षेपेण टिप्पणी लेखनीयः।
('अभिज्ञानशाकुन्तल' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
अभिज्ञानशाकुन्तलम्-इदं न केवलं कालिदासस्य अपितु संस्कृतनाट्य साहित्यस्य सर्वश्रेष्ठ नाटकमस्ति। इदं न तु ऐतिहासिकं, न वैदिकं अपितु महाभारतमाश्रित्य लिखितम्। महाभारतात् कथां गृहीत्वा नाटककारः कालिदासः तां स्वप्रतिभया कल्पनाशक्त्या च मनोवांछित रूपं प्रदत्तवान्। अभिज्ञानशाकुन्तलम् अपार्थिव कल्पनारूपिणी उद्यान वाटिकायाः अमृतमयी पारिजातलता अस्ति। वाण्याः वरदपुत्रस्य इदं अक्षयं आलेख्यमस्ति। अस्मिन् कालिदासस्य नाट्यकलायाः पूर्णपरिपाकः संजातः। विद्वद्भिः इदं नाटकं सर्वश्रेष्ठं प्रमाणितं कृतम् उक्तम् च 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्यां शकुन्तला।' अस्मिन् नाटके सप्ताङ्काः सन्ति। अस्य सप्ताङ्केषु शकुन्तला दुष्यन्तयोः प्रणयः वियोगःपुनर्मिलनस्य च कथा वर्णिता।
शाकुन्तलस्य कथायाः नायकः नृपः दुष्यन्तः अस्ति। नायिका कण्वकन्या शकुन्तला अस्ति। कथायोजनायाः दृष्ट्या शकुन्तलायाः कथानकं रुचिकरं अन्त:सूत्रेण अनुस्यूतं चास्ति। अस्मिन् नाटके स्वाभाविक चारित्रिक उदात्तता मानवीय संवेदनानां च अदभुतं समन्वयं वर्तते। कथावस्तुना सार्द्ध पात्रयोजना चरित्र चित्रणमपि प्रशंसनीयं वर्तते। अस्य नाटकस्य रसयोजनाऽपि प्रशंसनीया वर्तते। भाषा-शैल्याः दृष्ट्या शाकुन्तलं श्रेष्ठमस्ति। अस्य भाषा अतिप्राञ्जला, परिमार्जिता, परिष्कृता, प्रसादपूर्णा चास्ति।
(अभिज्ञानशाकुन्तलम्-यह न केवल कालिदास का अपितु संस्कृत नाट्य साहित्य का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। यह न तो ऐतिहासिक, न वैदिक अपितु महाभारत के आधार पर लिखा गया है। महाभारत से कथा लेकर नाटककार कालिदास ने उसे अपनी प्रतिभा एवं कल्पना-शक्ति से मनोवांछित रूप प्रदान किया है। 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' अपार्थिव कल्पना की अमतमयी पारिजात लता है। वाणी के वरद पुत्र का यह अक्षय आलेख्य है। इसमें कालिदास की नाट्यकला का पूर्ण परिपाक हुआ है। विद्वानों ने इस नाटक को सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित किया है तथा कहा है
"काव्यों में नाटक सुन्दर है तथा नाटकों में शाकुन्तल नाटक सुन्दर है।"
इस नाटक में सात अंक हैं। इसके सात अंकों में दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रणय, वियोग तथा पुनर्मिलन की कथा वर्णित है। शाकुन्तल की कथा का नायक राजा दुष्यन्त है। नायिका कण्व कन्या शकुन्तला है।
कथा योजना की दृष्टि से शाकुन्तल का कथानक रुचिकर एवं अन्त:सूत्र से अनुस्यूत है। इस नाटक में स्वाभाविक रमणीयता, चारित्रिक उदात्तता और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत समन्वय है। कथावस्तु के साथ पात्र योजना एवं चरित्र चित्रण भी प्रशंसनीय है। इस नाटक की रस योजना भी प्रशंसनीय है। भाषा शैली की दृष्टि से शाकुन्तल श्रेष्ठ है। इसकी भाषा अतिप्राञ्जल, परिमार्जित, परिष्कृत तथा प्रसादपूर्ण है।)
प्रश्न: 26.
'मृच्छकटिके' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('मृच्छकटिक' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
शूद्रकेण विरचितं 'मृच्छकटिकम्' सम्पूर्ण संस्कृत नाट्यसाहित्ये एक अद्वितीयं प्रकरणमस्ति। न केवलं यानकस्य दृष्ट्या अपितु चरित्रचित्रणस्य, कथोपकथनस्य, भाषा शैल्याः रसयोजनायाश्च दृष्ट्या संस्कृत नाट्यपरम्परायां अस्य विशिष्ट स्थानं वर्तते। अस्मिन् प्रकरणे दशाङ्काः सन्ति। अस्य नायकः चारुदत्तः नायिका च वसन्तसेना वर्तते।
अस्मिन् प्रकरणे तत्कालीन समाजस्य सजीवं यथार्थं च चित्रणं मिलति। अस्य पात्राणि सार्वभौमिकानि सन्ति। प्रकरणे सर्वत्र पात्रानुकूल भाषायाः प्रयोगः कृतः। प्रकरणे सूक्तीनां बाहुल्यं वर्तते। अस्मिन् प्रकरणे अङ्गीरसः शृङ्गारः अस्ति। हास्यरसस्य अभिव्यञ्जनायाः दृष्ट्या इदं संस्कृत नाट्य साहित्यस्य सर्वश्रेष्ठरूपकमस्ति।
(शूद्रक विरचित 'मृच्छकटिक' सम्पूर्ण संस्कृत नाट्य साहित्य में एक अद्वितीय प्रकरण है। न केवल कथानक की
कथोपकथन, भाषा शैली तथा रसयोजना की दृष्टि से संस्कृत नाट्य परम्परा में इसका विशिष्ट स्थान है। इस प्रकरण में दस अंक हैं। इसका नायक चारुदत्त तथा नायिका वसन्तसेना है।
इस प्रकरण में तत्कालीन समाज का सजीव एवं यथार्थ चित्रण मिलता है। इसके पात्र सार्वभौमिक हैं। प्रकरण में सर्वत्र पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रकरण में सूक्तियों का बाहुल्य है। इस प्रकरण में अङ्गीरस शृंगार है। हास्य रस की अभिव्यञ्जना की दृष्टि से यह संस्कृत नाट्य साहित्य का सर्वश्रेष्ठ रूपक है।)
प्रश्न: 27.
'नागानन्द' नाटके संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('नागानन्द' नाटक पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
इदं नाटकं बौद्धाख्याने आधारितमस्ति। अस्य रचयिता श्री हर्षवर्द्धनः अस्ति। अस्मिन् पञ्चाङ्काः सन्ति। अस्मिन् नाटके जीमूतवाहन नाम्नः राजकुमारस्य आत्मोत्सर्गस्य वर्णनं वर्तते। अस्य नाटकस्य पूर्वार्द्ध विद्याधर कुमार जीमूतवाहनस्य सिद्धकन्या मलयवत्याश्च प्रेमकथायाः रोचकं वर्णनं वर्तते। उत्तरार्द्ध जीमूतवाहनेन वैनतेयस्य सर्पभक्षणत्यागस्य शिक्षा प्रदत्ता।
अस्य नाटकस्य नायकः जीमूतवाहनः अस्ति। सः पितृभक्तेः उज्ज्वलप्रतीकं अस्ति। सः 'परोपकाराय सतां विभूतयः' इत्यस्य उदाहरणमस्ति। अस्य नाटकस्य अङ्गीरसः वीरः वर्तते। वीरेऽपि दयावीरस्य प्राधान्यं वर्तते। करुणरसस्य सुष्ठु प्रयोगः कृतः। नाटकेऽस्मिन् प्रसादगुणयुत वैदर्भी रीत्याः प्रयोगः कृतः।
(यह नाटक बौद्ध आख्यान पर आधारित है। इसके रचयिता श्री हर्षवर्द्धन हैं। इसमें पाँच अंक हैं। इस नाटक में जीमूतवाहन नामक राजकुमार के आत्मोत्सर्ग का वर्णन है। इस नाटक के पूर्वार्द्ध में विद्याधर कुमार जीमूतवाहन और सिद्ध कन्या मलयवती की प्रेमकथा का रोचक वर्णन है। उत्तरार्द्ध में जीमूतवाहन द्वारा गरुड़ के सर्प भक्षण त्याग की शिक्षा दी गई है।
इस नाटक का नायक जीमूतवाहन है। वह पितृभक्ति का उज्ज्वल प्रतीक है। वह 'परोपकाराय सतां विभूतयः' का उदाहरण है। इस नाटक का अङ्गीरस वीर है। वीर में भी दयावीर की प्रधानता है। करुण रस का अच्छा प्रयोग किया गया है। इस नाटक में प्रसाद गुण युक्त वैदर्भी रीति का प्रयोग किया गया है।)
प्रश्न: 28.
'उत्तररामचरिते' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
('उत्तररामचरित' पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
भवभूतिविरचितनाटकेषु इदं सर्वश्रेष्ठं अस्ति। इदं सप्ताङ्कानां करुणरसयुक्तं सरसं मधुरं च नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके रामस्य जीवनस्य उत्तरार्द्ध कथा निबद्धा। अत एव अस्य नामकरणं 'उत्तररामचरितम्' इति निर्धारितम्। अस्य नाटकस्य मूलाधारः रामायणस्य उत्तरकाण्डमस्ति।
अस्य नाटकस्य नायकः श्रीरामः नायिका च सीता अस्ति। अस्मिन् नाटके सप्ताङ्काः सन्ति। तृतीयाङ्कः अस्य नाटकस्य प्राणस्वरूपमस्ति। इदं नाटकं न केवलं करुणरसस्य पूर्णपरिपाकस्य दृष्ट्या अपितु नाटकीय संविधानस्य दृष्ट्यापि उत्कृष्ट नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके भावपक्षस्य चित्रणे भवभूति अतिकुशलः प्रतीयते। भवभूतेः प्रकृतिवर्णनमपि संस्कृत साहित्ये विशिष्ट स्थानं भजते। प्रकृतेः मृदुपक्षस्य कटुपक्षस्य च समानरूपेण तेन वर्णनम् कृतम्। भाषा शैल्या: दृष्ट्यापि उत्तररामचरितं एकं श्रेष्ठं नाटकमस्ति। नाटके तेन भावानुकूल भाषायाः प्रयोगः कृतः। अत एव विद्वद्भिः उक्तम्-'उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते।'
(भवभूति विरचित नाटकों में यह सर्वश्रेष्ठ है। यह सात अंकों का करुण रस युक्त सरस एवं मधुर नाटक है। इस नाटक में राम के जीवन की उत्तरार्द्ध कथा निबद्ध है। इसलिए इसका नामकरण 'उत्तररामचरितम्' रखा गया है। इस नाटक का मूल आधार रामायण का उत्तरकाण्ड है।
इस नाटक के नायक श्रीराम तथा नायिका सीता है। इस नाटक में सात अंक हैं। तृतीय अंक इस नाटक का प्राण स्वरूप है। यह नाटक न केवल करुण रस के पूर्ण परिपाक की दृष्टि से अपितु नाटकीय संविधान की दृष्टि से भी उत्कृष्ट नाटक है। इस नाटक में भावपक्ष के चित्रण में भवभूति अति कुशल प्रतीत होते हैं। भवभूति का प्रकृति वर्णन भी संस्कृत साहित्य में विशिष्ट स्थान रखता है। प्रकृति के कोमल पक्ष तथा कठोर पक्ष का समान रूप से कवि ने वर्णन किया है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी उत्तररामचरित एक श्रेष्ठ नाटक है। नाटक में उन्होंने भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। इसलिए विद्वानों ने कहा है - 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते।')
प्रश्न: 29.
'मुद्राराक्षस' नाटके संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
'मुद्राराक्षस' नाटक पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
मुद्राराक्षसम्-इदं विशाखदत्त विरचितं एकमात्रं नाटकमस्ति। संस्कृत नाट्यसाहित्ये अस्य नाटकस्य अनुपम स्थानमस्ति। इदं सप्ताङ्कानां नाटकमस्ति। इदं स्वकीय श्रेण्याः एकं स्वतन्त्रं नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके परम्परागत श्रृंगारस्य आलम्बन उद्दीपनयोः वर्णनं न विधाय महाकवि विशाखदत्तेन राजनीतिप्रधानं एकस्य मौलिकनाटकस्य रचनामकरोत्। अस्य नाटकस्य कथावस्तु कूटनीतिपूर्णा अस्ति।
इदं घटना प्रधानं नाटकमस्ति। रसस्य दृष्ट्या इदं वीररसप्रधानं नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके नायिकायाः अभावः वर्तते। विदूषकस्यापि अस्मिन् नाटके अभावः वर्तते। अस्य नाटकस्य नाटकीय वातावरणं पूर्णरूपेण तेजस्वितया ओतप्रोतमस्ति। विषयवस्तुदृष्ट्या, भाषा-शैलीदृष्ट्या, चरित्रचित्रणदृष्ट्या च इदं सफलं नाटकमस्ति। कार्या इद सफल नाटकमस्ति। कार्यान्विति दृष्ट्यापि इदं सफलं वर्तते। नायकस्य विषये विदुषां वैमत्यं वर्तते।
(मुद्राराक्षसम्-यह विशाखदत्त विरचित एकमात्र नाटक है। संस्कृत नाट्य साहित्य में इस नाटक का अनुपम स्थान है। यह सात अंकों का नाटक है। यह अपनी श्रेणी का एक स्वतन्त्र नाटक है। इस नाटक में परम्परागत श्रृंगार के आलम्बन एवं उद्दीपन का वर्णन न कर, महाकवि विखाखदत्त के राजनीति प्रधान एक मौलिक नाटक की रचना की। इस नाटक की कथावस्तु कूटनीतिपूर्ण है। यह घटना प्रधान नाटक है। रस की दृष्टि से यह वीर रस प्रधान नाटक है। इस नाटक में नायिका का अभाव है। विदूषक का भी इस नाटक में अभाव है। इस नाटक का नाटकीय वातावरण पूर्णरूपेण तेजस्विता से ओतप्रोत है। विषयवस्तु की दृष्टि से, भाषा-शैली की दृष्टि से तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह सफल नाटक है। कार्यान्विति की दृष्टि से भी यह सफल है। नायक के विषय में विद्वानों में मतभेद है।)
प्रश्न: 30.
'वेणीसंहारे' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
(वेणीसंहार पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
वेणीसंहार-इदं भट्टनारायणविरचितं एकं नाटकमस्ति। अस्य नाटकस्य कथावस्तु महाभारतस्य एकस्यां प्रसिद्ध घटनायां आधारितमस्ति परन्तु नाटकीय सौन्दर्यार्थम् कविना तस्यां पर्याप्त परिवर्तनं कृतम्। नाटकेऽस्मिन् षष्ठाङ्काः सन्ति। इदं नाटकं संस्कृतस्य वीररसप्रधान नाटकेषु विशेष लोकप्रियमस्ति। अस्य रचना नाट्यशास्त्रस्य नियमानुकूलं जाता। इदमेव कारणमस्ति यत् धनञ्जयेन स्वकीय दशरूपके अस्य श्लोकाः उदाहरणरूपे उद्धृताः। अस्य कथोपकथनं नाटकीय दृष्ट्या प्रभावोत्पादकं सन्ति।
नाटकस्य तृतीयाङ्कः कवेः नाटकीय कौशलस्य कवित्वशक्तेश्च परिचायकः अस्ति। पात्राणां व्यक्तित्वं अस्य नाटकस्य वैशिष्ट्यमस्ति। भीमस्य भीषणता, कर्णस्याहंकारः, अश्वत्थाम्नः रोष, दुर्योधनस्य स्थिरता विलासप्रियता च विशेषणरूपेण अंकिताऽस्ति। नाटकीय संविधानस्य दृष्ट्या इयमेका श्रेष्ठा कृतिः वर्तते। नाटकस्य पात्रयोजना प्रशंसनीया वतेते परन्तु नायकत्वस्य प्रश्नः विवादास्पदं वर्तते। केचित् विद्वान्सः युधिष्ठिर, केचित् भीमसेन केचिच्च दुयोधन अस्य नाटकस्य नायकं मन्यन्ते।
(यह भट्टनारायण विरचित एक नाटक है। इस नाटक की कथावस्तु महाभारत की एक प्रसिद्ध घटना पर आधारित है परन्तु नाटकीय सौन्दर्य के लिए कवि ने उसमें पर्याप्त परिवर्तन किया है। इस नाटक में छ: अंक हैं। यह नाटक संस्कृत के वीर रस प्रधान नाटकों में विशेष लोकप्रिय है। इसकी रचना नाट्यशास्त्र के नियमों के सर्वथा अनुकूल हुई है। यही कारण है कि धनञ्जय ने अपने दशरूपक में इसके श्लोक उदाहरण रूप में उद्धृत किये हैं। इसके कथोपकथन नाटकीय दृष्टि से प्रभावोत्पादक हैं। तृतीय अंक कवि के नाटकीय कौशल एवं कवित्व शक्ति का परिचायक है। पात्रों का व्यक्तित्व इस नाटक की विशेषता है। भीम की भीषणता, कर्ण का अहंकार, अश्वत्थामा का रोष, दुर्योधन की स्थिरता एवं विलासप्रियता विशेष रूप से अंकित है। नाटकीय संविधान की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ कृति है। नाटक की पात्र योजना प्रशंसनीय है परन्तु नायकत्व का प्रश्न विवादास्पद है। कुछ विद्वान् युधिष्ठिर को, कुछ भीमसेन को तो अन्य कुछ दुर्योधन को इस नाटक का नायक मानते हैं।)
प्रश्न: 31.
'प्रसन्नराघवम्' नाटके संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
(प्रसन्नराघव नाटक पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
प्रसन्नराघवम्-इदं जयदेवविरचितं नाटकमस्ति। इदं नाटकं मूलतः रामायणोपरि आधारितमस्ति। स्वकौशलं प्रदर्शितं कर्तुं कविना मूलकथावस्तौ अनेकानि परिवर्तनानि कृतानि। इदं सप्ताङ्कानां नाटकमस्ति। अस्मिन् नाटके सीता स्वयंवरात् रामस्य अयोध्यां आगमन पर्यन्तं कथायाः वर्णनमस्ति।
अस्मिन् नाटके नाट्य कौशलस्य अपेक्षा कवित्वस्य प्राचुर्यं वर्तते। भवभूतेरिव जयदेवस्यापि संस्कृत भाषायां असामान्यः अधिकारः आसीत्। तस्य शैली वैदर्भी वर्तते, यस्यां प्रासादिकतायाः सर्वत्र दर्शनं भवन्ति। भाषायां अद्भुत् विकासः लालित्यं च वर्तते। संक्षेपेण, इदं नाटकं कल्पनावैभवेन, रसनिवेशेन, शब्दविलासेन सूक्ति सौन्दर्येण च संस्कृत नाटकेषु स्वकीय महत्त्वपूर्ण स्थानं भजते।
(प्रसन्नराघव - यह जयदेव विरचित नाटक है। यह नाटक मूलतः रामायण पर आधारित है। अपना कौशल प्रदर्शित करने के लिए कवि ने मूल कथावस्तु में अनेक परिवर्तन किये हैं। यह सात अंकों का नाटक है। इस नाटक में सीता स्वयंवर से राम के अयोध्या लौटने तक की कथा का वर्णन है।)
इस नाटक में नाट्यकौशल की अपेक्षा कवित्व का प्राचर्य है। भवभूति के समान ही जयदेव का भी संस्कृत भाषा पर असामान्य अधिकार था। उनकी शैली वैदर्भी है, जिसमें प्रासादिकता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। भाषा में अद्भुत विकास एवं लालित्य है। संक्षेप में, यह नाटक कल्पना वैभव, रस निवेश, शब्द विलास एवं सूक्ति सौन्दर्य के कारण संस्कृत नाटकों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।)
प्रश्न 32.
'बालरामायणे' संक्षेपेण टिप्पणी लिखत।
(बालरामायण पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिये।)
उत्तरम् :
बालरामायणम्-इदं राजशेखरेण विरचितं एकं महानाटकमस्ति। अस्मिन् दशाङ्काः सन्ति। इदं रामायणे आधारितमस्ति। अस्य प्रस्तावना अतिदीर्घा वर्तते। नाटकस्य अङ्काः अपि अतिदीर्घा: वर्तन्ते। सम्पूर्ण नाटके 741 पद्यानि सन्ति। एतेषु अपि 203 पद्यानि शार्दूलविक्रीडित छन्दसि वर्तन्ते, 89 पद्यानि च स्रग्धरा छन्दसि वर्तते। अस्मिन् नाटके कथानकस्य अनावश्यकं विस्तारः कृतः। रामेण सम्बद्धाः घटनानां अपेक्षा रावणेन सम्बद्धाः घटनाः अधिकवर्णिताः सन्ति।
(यह राजशेखर विरचित एक महानाटक है। इसमें दस अंक हैं। यह रामायण पर आधारित है। इसकी प्रस्तावना बहुत लम्बी है। नाटक के अंक भी अत्यधिक लम्बे हैं। सम्पूर्ण नाटक में 741 पद्य हैं। इनमें भी 203 पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में हैं तथा 89 पद्य स्रग्धरा छन्द में हैं। इस नाटक में कथानक का अनावश्यक विस्तार किया गया है। राम से सम्बद्ध घटनाओं की अपेक्षा रावण से सम्बद्ध घटनायें अधिक वर्णित हैं।)