RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम् Questions and Answers, Notes Pdf.

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RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

आधुनिक युग में संचार-साधनों का विस्फोट दिखलाई देता है, फिर भी मानव-जीवन में पत्रों का महत्त्व है। हम प्रतिदिन पत्र की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। व्यक्तिगत एवं पारिवारिक समाचार का आदान-प्रदान करने के लिए, व्यावसायिक कार्य के लिए, प्रशासनिक कार्य के लिए, निमन्त्रण देने के लिए और विभिन्न अवसरों पर शुभकामना आदि सन्देश भेजने के लिए हम पत्र-व्यवहार करते हैं। 

पत्र-लेखन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश -

पत्र-लेखन भी एक कला है। पत्र जितना संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप में लिखा जायेगा, वह पाठक को उतना ही अधिक प्रभावित करेगा। अतः पत्र लिखने से पूर्व निम्नलिखित बातों एवं नियमों का ध्यान रखना चाहिए -

1. पत्र-लेखन बहुत सरल एवं स्पष्ट भाषा में होना चाहिए। 
2. पत्र जिस उद्देश्य से लिखा गया हो, उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। 
3. पत्र में अनावश्यक बातों एवं विशेषणों का परित्याग करना चाहिए। इनमें पाण्डित्य-प्रदर्शन का प्रयास नहीं करना चाहिए। 
4. पत्र यथासंभव संक्षिप्त व सारगर्भित होना चाहिए। 
5. जिसके लिए पत्र भेजा जा रहा हो, उसके सम्मान तथा शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखना चाहिए। 

पत्र के प्रकार -

सामान्यतया पत्र दो प्रकार के होते हैं -
(क) व्यक्तिगत पत्र (अनौपचारिक पत्रम्)। 
(ख) व्यावसायिक अथवा कार्यालयीय पत्र (औपचारिकं पत्रम्)। 

(क) व्यक्तिगत अथवा अनौपचारिक पत्र जो पत्र

परिचित या सम्बन्धी जनों को लिखे जाते हैं, उन्हें व्यक्तिगत पत्र कहते हैं। व्यक्तिगत पत्र के सामान्य रूप से आठ अंग होते हैं - 

1. माङ्गलिक पद। 
2. स्थान और दिनाङ्क। 
3. सम्बोधन। 
4. नमस्कार, अभिवन्दना अथवा आशीर्वचन। 
5. कुशल-सूचना। 
6. सन्देश। 
7. उपसंहार। 
8. प्रेषक का परिचय और हस्ताक्षर। 

व्यक्तिगत पत्र के उदाहरण - 

1. पिता के लिए पत्र। 
2. माता के लिए पत्र। 
3. मित्र के लिए पत्र। 
4. सखी के लिए पत्र।
5. छोटे भाई के लिए पत्र। 
6. शुभ-कामना के लिए पत्र -

(अ) दीपावली की शुभकामनाएँ। 
(ब) नववर्ष की शुभकामनाएँ। 
(स) अन्य शुभकामनाएँ। 

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

व्यक्तिगत पत्र का प्रारूप 
माङ्गलिक पद 

स्थान और दिनांक 

सम्बोधन 
नमस्कार, अभिवन्दना अथवा आशीर्वचन 
कुशलसूचना 

सन्देश 

उपसंहार 

प्रेषक का परिचय व हस्ताक्षर 

पत्र का प्रारम्भ - प्राचीन परम्परा के अनुसार पत्र के ऊपरी भाग पर मध्य में मांगलिक शब्द, जैसे - 'श्री गणेशाय नमः', 'ॐ', 'श्रीरामः', 'श्री:' आदि लिखा जाता है। पत्र के दायें कोने पर स्थान का नाम अथवा संक्षिप्त पता व दिनांक का उल्लेख करना चाहिए। 

सम्बोधन - पत्र के बायीं ओर किनारे पर आदरसूचक या स्नेहसूचक शब्दों द्वारा सम्बोधन किया जाना चाहिए। जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसी के अनुरूप सम्बोधन का प्रयोग किया जाना चाहिए। अपने से बड़ों या पूज्यजनों को सम्बोधित करते समय बहुवचन में श्रीमन्तः, श्रद्धेयाः, परमसम्माननीयाः, परमादरणीयाः आदि का प्रयोग करना चाहिए। अपने बराबर वालों के लिए प्रिय, प्रियवर, बन्धुवर आदि का प्रयोग तथा अपने से छोटों के लिए आयुष्मन, चिरंजीव, प्रेयान का प्रयोग किया जाता है। 

अभिवादन - अभिवादन का प्रयोग केवल व्यक्तिगत पत्रों में होता है। इनमें अपने से बड़ों के लिए प्रणामः, प्रणतिः, चरणयोर्नतिः, सादराभिवादनम् आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बराबर वालों के लिए नमस्ते, वन्दे, अभिनन्दनम् आदि का प्रयोग तथा अपने से छोटों के लिए शुभाशिषः, स्वस्ति, आशी: आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 

मुख्य विषय - अभिवादन के बाद उसके नीचे वाली पंक्ति से मुख्य विषय लिखा जाता है। यह विषय प्रसंगानुसार छोटा या बड़ा हो सकता है। विषय का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार होना चाहिए कि पत्र पढ़ने वाले पर उसका पूर्ण प्रभाव पड़े। 

निवेदन - मुख्य विषय की प्रस्तुति के बाद नीचे दाहिनी ओर निवेदक के रूप में भवदाज्ञाकारी, भवदीयः, भावत्कः, विनीतः, शुभेच्छु: आदि शब्दों का प्रयोग अपने सम्बन्धानुसार करना चाहिए। उसके बाद पत्र लिखने वाले को अपना नाम लिखना चाहिए। 

पता - यह भी पत्र का आवश्यक अंग होता है। सामान्य पत्रों में सबसे ऊपर या अन्त में लेखक अपना पूरा पता लिखता है। इसके साथ ही कार्ड, अन्तर्देशीय या लिफाफे पर जिसे पत्र भेजा जाता है, उसका पूरा पता पूर्णतया स्पष्ट रूप से लिखा जाता है। उस पर पोस्ट ऑफिस, नगर, गाँव, जिला, प्रान्त तथा पिनकोड का उल्लेख किया जाता है। 

विशेष - परीक्षा में पत्र लिखते समय यह ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए कि प्रश्न-पत्र में जिसे पत्र लिखने के लिए कहा जाये तथा जिस नाम व जगह से लिखने का उल्लेख हो, परीक्षार्थी को स्वयं का वही नाम व जगह मानकर 

प्रश्न - पत्र में निर्दिष्ट सम्बोधन का ही उल्लेख करना चाहिए। 

[नोट - परीक्षा में कभी-कभी प्रदत्त संकेतों को आधार बनाकर किसी ग्रन्थ के वैशिष्ट्य को दर्शाते हुए पत्र लिखना पूजा जाता है। अतः यहाँ तदनुसार ही अभ्यासार्थ पत्र दिये जा रहे हैं।] 

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अभ्यासार्थ अनौपचारिकं पत्रम् 

निर्देश - निम्नलिखितसंकेताधारितपदैः कस्यचिद् ग्रन्थस्य वैशिष्ट्यमधिकृत्य संस्कृतेन पत्रमेकं लिखत - 

1. पित्रे पत्रम् 

संकेतपदानि - पितृचरणेषु, प्रणतिः, कुशलं, पत्रम्, पठित्वा, वृत्तम्, ज्ञातवान्। अधुना, विद्यालये, अभिज्ञान-शाकुन्तलस्य, नाटकस्य, भविष्यति, नाटकेषु, सर्वश्रेष्ठम्, महाकविकालिदासविरचितम्, सप्तषु अङ्केषु, विभक्तम्, नाट्यकलायाः, पूर्णपरिपाकः, प्रधानरसः शृङ्गारः, सर्वत्र, वैदर्भीरीतेः, मानवप्रकृत्योः, रागात्मकः घनिष्ठः सम्बन्धः, विश्वसाहित्ये, स्वीकृतम्। 
उत्तर :

47/173, मानसरोवरः, 
जयपुरतः 
दिनाङ्कः 18/12/20XX

पूजनीयेषु पितृचरणेषु, 
सादरं प्रणतिः। 
अत्र कुशलं तत्रास्तु। भवदीयं स्नेहापूरितं पत्रं मया अधैव प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा गृहस्य सर्वमपि वृत्तं ज्ञातवान्। अधुना मम विद्यालये वार्षिकोत्सवस्य आयोजनस्य अभ्यासः प्रचलति। तस्मिन् समारोहे मम कक्षायाः छात्रा: महाकविकालिदासविरचितम् 'अभिज्ञान-शाकुन्तलम्' इति नाटकस्य अभिनयं करिष्यन्ति। नाटकेऽस्मिन् मयाऽपिभागं गृहीतम्। 

नाटकमिदं सप्तषु अङ्केषु विभक्तमस्ति। इदं नाटकं समस्तेषु नाटकेषु सर्वश्रेष्ठं मन्यते। अस्य नाटकस्य चतुर्थोऽङ्कः तु अतीव श्रेष्ठः। समारोहे अस्यैव अभिनयं भविष्यति। अस्मिन् नाटके नाट्यकलायाः पूर्णपरिपाक दृश्यते। शाकुन्तलस्य प्रधानरसः शृङ्गारः उक्ति। कालिदासेन सर्वत्र वैदर्भीरीतेः प्रयोगः कृतः। अस्मिन् नाटके कालिदासेन मानवप्रकृत्योः मध्ये रागात्मकः घनिष्ठः सम्बन्धः स्थापितः। नाटकमिदं विश्वसादित्ये अमूल्यरत्नरूपेण स्वीकृतमस्ति। 
आशासे भवन्तः अपि अस्मिन् समारोहे अवश्यमेव आगत्य अस्माकं उत्साहवर्धनं करिष्यन्ति। पूज्यायाः मातुश्चरणयो: मम प्रणतिः कथनीया, भगिन्यै छवये सस्नेहमाशिषः। 

भवदाज्ञाकारी पुत्रः 
अभ्युत्कर्षः 

2. मात्रे पत्रम्। 

संकेतपदानि - मातृचरणेषु, सादरं, तवास्तु, भवत्याः, स्नेहापूरितपत्रं, पठित्वा, सर्वमपि, ज्ञातवती, ममाध्ययनं, प्रचलति, ह्यः, संस्कृत-निबन्ध-प्रतियोगिता, मया, महाकविमाधविरचितं शिशुपालवधमहाकाव्यम्, अधिकृत्य, लिखितम्, अस्मिन् महाकाव्ये, विंशतिः सर्गाः, शिशुपालवधमहाकाव्यस्य, बृहत्वय्याम्, भाषा-शैली, प्राञ्जला, प्रौढा, अलंकारैः अलंकृता, प्रकृतिवर्णनम्, 'माघे सन्ति त्रयो गुणाः' नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते, सूक्तयः महत्त्वं, सूचयन्ति, ममाभिवन्दनम्, पत्रोत्तर-प्रतीक्षायाम्। 
उत्तर :

अजयमेरुतः 
दिनाङ्का : 18/11/20XX 

श्रद्धेयेषु मातृचरणेषु 
सादरं वन्दनानि! 
अत्र कुशलं तत्रास्तु। 
भवत्याः स्नेहापूरितपत्रं अद्यैव प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा गृहस्य सर्वमपि वृत्तं ज्ञातवती। ममाध्ययनं सम्यक् प्रचलति। अतः भवत्या काऽपि चिन्ता न विधेया। ह्यः मम विद्यालये 'संस्कृत-निबन्ध-प्रतियोगिता' आसीत्। मया अपि अस्यां प्रतियोगितायां भागं गृहीत्वा महाकविमाघविरचितं 'शिशुपालवधमहाकाव्यम्' अधिकृत्य निबन्धं लिखितम्। 
 
शिशुपालवधमहाकाव्यस्य गणना बृहत्वय्यां भवति। अस्मिन् महाकाव्ये विंशतिः सर्गाः सन्ति। अस्य भाषा-शैली प्राञ्जला, प्रौढ़ा, अलंकारैः अलंकृता चास्ति। अस्य प्रकृतिवर्णनं तु अत्यन्तम् अद्भुतं वर्तते। अस्मिन् महाकाव्ये उपमालंकारस्य, अर्थगौरवस्य, पदलालित्यस्य च वैशिष्ट्यं दृश्यते, अत एवोक्तम् 'माघे सन्तित्रयो गुणाः।' अस्य विपुलशब्दभण्डारं दृष्ट्वा एव केनापिकथितम्-"नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते।" एताः सूक्तयः अस्य महत्त्वं सूचयन्ति। 
पितृचरणयोः ममाभिवन्दनम्। शेषं सर्वं कुशलम्। भवत्याः पत्रोत्तर-प्रतीक्षायाम् - 

भवत्याः पुत्री 
सुरभिः

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम् 

3. मित्राय पत्रम् 

संकेतपदानि - मित्रवर्य महेन्द्र!, कुशलं, अद्य, प्राप्य, हर्षमनुभवामि, भवतः, सम्यक्, इति ज्ञात्वा, प्रसन्नता, जाता, ममाध्ययनं, श्वः, विद्यालये, 'मुद्राराक्षसम्' इति संस्कृतनाटकस्य, चलचित्रस्य, प्रदर्शनं, मया, पूर्वमपि, एतत्, दृष्टम्, सर्वश्रेष्ठम्, चाणक्यस्य, बुद्धिकौशलं, नन्दवंशस्य, विनाशं कृत्वा, चन्द्रगुप्तस्य, राज्याभिषेकं, करोति, अमात्यराक्षसस्य, प्रधानमन्त्रीपदे, नियोजनार्थं, कूटनीतेः प्रयोगं कृत्वा, सफलो, राजनीतिकौशलस्य, विशिष्टम्, धारयति। ज्येष्ठेभ्यो प्रणामाः, कनिष्ठेभ्यश्च, राजेशः। 
उत्तर : 

बीकानेरतः 
दिनाङ्काः 16/10/20XX 

मित्रवर्य महेन्द्र! 
नमो नमः, 
अत्र कुशलं तत्रास्तु। 
अद्य चिरात् तव पत्रं प्राप्य अहमतीव हर्षमनुभवामि। भवतः अध्ययनं सम्यक् प्रचलतीति ज्ञात्वा महती प्रसन्नता जाता। अत्र ममाध्ययनमपि सम्यक् प्रचलति। श्व: मम विद्यालये 'मुद्राराक्षसम्' इति संस्कृतनाटकमधिकृत्य निर्मितस्य चलचित्रस्य प्रदर्शनं भविष्यति। मया पूर्वमपि एतत् चलचित्रं दृष्टम्।
वस्तुतः महाकविविशाखदत्तविरचितं 'मुद्राराक्षसम्' नाटकं सुप्रसिद्धमस्ति। नाटकमिदं राजनैतिकदृष्ट्या सर्वश्रेष्ठमस्ति। अस्मिन् चाणक्यस्य बुद्धिकौशलं वर्णितमस्ति। तेन स्वस्य बुद्धिकौशलेन विना युद्धमेव नन्दवंशस्य विनाशं कृत्वा तस्य सिंहासने चन्द्रगुप्तस्य राज्याभिषेकं कृतम्। तथा च तेन नन्दस्य स्वामी-भक्तस्य अमात्यराक्षसस्थापि चन्द्रगुप्तस्य प्रधानमन्त्रीपदे नियोजनार्थं कूटनीतेः विशिष्टं प्रयोग कृतम् तथा सफलोऽभवत्। नाटकमिदं राजनीतिकौशलस्य प्रदर्शने विशिष्टं स्थानं धारयति। भवान् अपि यथावसरं चलचित्रमिदम् अवश्यमेव पश्यतु। 
सर्वेभ्यो ज्येष्ठेभ्यो प्रणामाः कनिष्ठेभ्यश्च आशिषः वक्तव्याः। 

भवदभिन्नं मित्रम् 
राजेशः 

4. अनुजाय पत्रम्

संकेतपदानि-जयपुरतः, अनुराग! परमात्मनः, कामये, अद्यैव, पत्रं, पठित्वा, त्वया, पत्रे, तव, विद्यालये, स्वप्नवासवदत्तानाटकस्य, छात्राः, भाग, गृहीतवान्, नाटकमिदं, भासेन विरचितं, विश्वप्रसिद्धम्, नाटकस्य पञ्चमाङ्के, 'स्वप्न-दृश्यम्', मार्मिकं, नाटकीयमहत्त्वेन, आश्रित्य, नामकरणम्, नायकनायिकयो: मेलनस्य, कल्पना, अभूतपूर्वं, सहृदयाह्लादरकं, भाषा सरला, सहजा, अकृत्रिमा, वैदर्भीरीत्याः प्रसादगुणस्य, प्रयोगः कृतः। मातृपितृचरणेषु, ममाभिवन्दनम्, अनुजायै, स्नेहाशिषः, प्रेषणीयम्, शुभाकाङ्क्षी, आदित्यः। 
उत्तर :

जयपुरतः 
दिनाङ्का : 18/09/20XX 

प्रिय अनुज अनुराग! 
शुभाशीर्वादाः। 
अत्र सर्वं कुशलमस्ति। 
तव कुशलतां परमात्मनः सर्वदा कामये। अद्यैव तव पत्रं प्राप्तम्। पठित्वा प्रसन्नता जाता। त्वया पत्रे लिखितं यत् तव विद्यालये महाकविभासविरचितस्य 'स्वप्नवासवदत्ता' इति नाटकस्य अभिनयं छात्रा: करिष्यन्ति। त्वमपि नाटकस्याभिनये भागं गृहीतवान्, इति ज्ञात्वा प्रसन्नोऽस्मि। 

वस्तुतः नाटकमिदं भासेन विरचितं विश्वप्रसिद्धमस्ति। अस्य नाटकस्य पञ्चमाङ्के घटितं 'स्वप्नदृश्यम्' अत्यन्तं भावपूर्ण मार्मिकं नाटकीय-महत्त्वेन परिपूर्णं चास्ति। इममेव दृश्यमाश्रित्य कविना नाटकस्य नामकरणं कृतमस्ति। महाकवेः भासस्य नायकनायिकयोः मेलनस्य एतादृशी कल्पना संस्कृत-साहित्यजगति अभूतपूर्वं सहृदयालादकं चास्ति। अस्य नाटकस्य भाषा सरला, सहजा, अकृत्रिमा चास्ति। भासेन स्वकाव्ये वैदर्भीरीत्याः प्रसादगुणस्य च बहुलतया प्रयोगः कृतः। भालस्य नाटकेऽस्मिन् बहुविधायाः शैल्याः प्रयोगः प्राप्यते। 

अहं शीतकालीनावकाशेषु गृहमागत्य स्थास्यामि। त्वया स्वाध्ययने प्रवृत्तिः विधेया। अस्मिन् नाट्याभिनयेऽपि त्वया स्वस्य भूमिकायाः निर्वहनं कुशलतया कर्त्तव्या। मातृपितृचरणेषु ममाभिवन्दनम्। अनुजायै गरिमायै स्नेहाशिषः सूचयतु। पत्रोत्तरमवश्यं शीघ्रं च प्रेषणीयम्। 

तव शुभाकाङ्क्षी 
आदित्यः

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम् 

5. भ्रात्रे पत्रम्

संकेतपदानि - भ्रातृचरणेषु, प्रणामाः, तत्रास्तु, भवतः, वृत्तम्, ज्ञातवान्, ममाध्यनं, प्रचलति, आयोजनम्, ह्यः, शूद्रकविरचितस्य, मृच्छकटिकस्य प्रकरणस्य, दशाङ्काः , तत्कालिक-समाजदशायाः, वर्णनं, उज्जयिनी, समृद्धा, काव्यशैली, सरलतमा, दीर्घः समासः, गाढोबन्धश्च, नवानां भावानाम्, जागरुके, शृङ्गारस्य पुष्टं रूपं, वर्षायाः वर्णनं, अतिसफलमस्ति, आधुनिकयुगेऽपि, अक्षुण्णम्। सार्वकालिकतां, पाश्चात्याः आलोचकाः, प्रशंसन्ति। मातृपितृचरणेषु, पुत्रः, रघुवीरः। 
उत्तर :
भरतपुरतः 
दिनाङ्काः 7/12/20XX 

परमश्रद्धेयेषु भ्रातृचरणेषु, 
सादरं प्रणामाः, 

अत्र कुशलं तत्रास्तु। भवतः स्नेहापूरितं पत्रं मया अद्यैव प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा गृहस्य सर्वमपि वृत्तं ज्ञातवान्. ममाध्ययनं सम्यक् प्रचलति। अतः भवता काऽपि चिन्ता न कार्या। ह्यः अस्माकं विद्यालये महाकविशूद्रकविरचितस्य 'मृच्छकटिकम्' इति प्रकरणस्य अभिनयं छात्रैः कृतम्। 'मृच्छकटिकम्' विश्वविश्रुतमेकं प्रकरणमस्ति। अस्मिन् दशाङ्काः सन्ति। अस्मिन् मृच्छकटिके तत्कालिक-समाजदशायाः विस्तृतं वर्णनं कृतमस्ति। अस्य नायकः चारुदत्तः नायिका च वसन्तसेना वर्तते।

नाट्ये वर्णितकथानुसारेण तस्मिन् समये उज्जयिनी भारतवर्षस्य समृद्धनगरी आसीत्। अस्य काव्यशैली सरलतमा, दीर्घः समासः, गाढोबन्धश्च वर्तते। नवानां भावानाम् उद्भावने जागरुके एतस्मिन् काव्ये शृङ्गारस्य पुष्टं रूपं दर्शनीयमस्ति। वर्षायाः वर्णनं नितान्तं हृदयावर्जकम्। शूद्रकेण मृच्छकटिके राजन्यायभवनस्य यद् वर्णनं कृतं तद् अतिहृद्यम्। वस्तुतः नाटकमिदम् अतिसफलमस्ति। आधुनिकयुगेऽपि अस्य महत्त्वम् अक्षुण्णम्। अस्य सार्वकालिकतां दृष्ट्वा पाश्चात्याः आलोचकाः अपि इदं नाटकं प्रशंसन्ति। 
मातृपितृचरणेषु मदीयाः प्रणामाः। शेषं सर्वं कुशलतम्।

भवतः अनुजः 
रघुवीरः 

6. सखी प्रति पत्रम् 

संकेतपदानि - मनीषा, कुशलम्, अद्य, प्राप्य, हर्षमनुभवामि, भवती, नृत्यप्रतियोगितायां, प्रथमस्थानं, ज्ञात्वा, प्रसन्नता, सफलतायै, अभिनन्दनम्, भवत्सकाशमागन्तुं ममाभिलाषा, आगमिष्यामि, ममाध्ययनम्, निर्विघ्नं, प्रचलेत्, मम विद्यालये, भट्टनारायणस्य, वेणीसंहारम्' इति नाटकस्य, अभिनयः कीर्तिभूतम्, महाभारतस्य, कथावस्तु आश्रित्य, विरचितम्, षडङ्काः , आदर्शभूतम्, मुख्योद्देश्य, द्रौपद्याः अपमानस्य प्रतिकारत्वम्, राज्यप्राप्तिस्तु, अवान्तरं फलवत्वम्, कविना, निर्वहणं, कथोपकथनं, प्रभावोत्पादकम्, वीररसप्रधानं, परमरमणीयमस्ति। 
सर्वेभ्यो ज्येष्ठेभ्यो, प्रणामाः, सूचयतु, प्रिया सखी, हर्षिता। 
उत्तर :

उदयपुरतः 
दिनाङ्का: 20/12/20XX

प्रियसखि मनीषा! 
सस्नेह नमस्ते!
अत्र कुशलं तत्रास्तु। 
अद्य चिरात् तव पत्रं प्राप्य अहमतीव हर्षमनुभवामि। भवती स्वविद्यालये आयोजितायां नृत्यप्रतियोगितायां प्रथमं स्थानं प्राप्तवती, इति ज्ञात्वा महती प्रसन्नता जाता। सफलतायै अभिनन्दनम्। भवत्सकाशमागन्तुं वारं-वारं ममाभिलाषा भवति। ग्रीष्मावकाशे अहं भवत्समीपमागमिष्यामि। 
अत्र ममाध्ययनं सम्यक् प्रचलति, आशासे भवत्याः अध्ययनमपि निर्विघ्नं प्रचलेत्। मम विद्यालये आगामी मासे महाकवि भट्टनारायण विरचितस्य 'वेणीसंहारम्' इति नाटकस्य अभिनयं भविष्यति। अहमपि नाटकेऽस्मिन् अभिनयं करिष्यामि। भट्टनारायणस्य कीर्तिभूतम् नाटकमिदं महाभारतस्य कथावस्तु आश्रित्य विरचितमस्ति। अस्मिन् नाटके षडङ्काः सन्ति। शास्त्रीयदृष्ट्या 'वेणीसंहारम्' आदर्शभूतं नाटकमस्ति। अस्य नाटकस्य मुख्योद्देश्यं द्रौपद्याः अपमानस्य प्रतिकारत्वम्, राज्यप्राप्तिस्तु अवान्तरं फलवत्वम्। कविना अस्य सम्यक् निर्वहणं कृतम्। अस्य कथोपकथनं प्रभावोत्पादकमस्ति। वेणीसंहारं वीररसप्रधानं नाटकमस्ति। वस्तुतः नाटकमिदं नाट्यदृष्ट्या नितान्तनिर्दोषम्, काव्यदृष्ट्याऽपि परमरमणीयमस्ति। 
सर्वेभ्यो: ज्येष्ठेभ्यो पूज्यजनेभ्यश्च मम प्रणामाः निवेदनीयाः। पत्रोत्तरेण अन्यवार्ता सूचयतु। शेषं कुशलम्। 

भवदीया प्रिया सखी 
हर्षिता 

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

7. पितरं प्रति पुत्रस्य पत्रम्

संकेतपदानि-पितृचरणेषु, प्रणतिः, तत्रास्तु, स्नेहापूरितं, पठित्वा, वृत्तं, अर्द्धवार्षिकी परीक्षा, प्रचलति, दत्तचित्तो, स्वास्थ्यमपि, परीक्षानन्तरम्, गृहं, संस्कृतस्य प्रश्न-पत्रे, उत्तररामचरितनाटकस्य, वैशिष्ट्ययम्, वर्णितम्, सर्वोत्कृष्टं, सप्ताङ्केषु, करुणरसेन, आपूरितं, सरसं, रामस्य, उत्तरार्द्धस्य, कथा निबद्धा, 'उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते', कविता, स्वानुभूत्या, संसारस्य विषादवेदनयोः, चित्रणम्, सीतावियोगे, रामः रोदिति, ग्रावाऽपि, उत्तररामचरिते, करुणरसः, सर्वप्रमुखः घोषितः। 
मातुश्चरणयोः, अनुजाय, पुत्रः, रमेशः।
उत्तर :

जयपुरतः 
दिनाङ्का: 6/12/20XX 

परमश्रद्धेयेषु पितृचरणेषु 
सादरं प्रणतिः। 
अत्र कुशलं तत्रास्तु। 
भवदीयं स्नेहपूरितं पत्रं मया अद्यैव प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा गृहस्य सर्वमपि वृत्तं ज्ञातवान्। अधुना मम अर्द्धवार्षिकी परीक्षा प्रचलति। अतोऽहमध्ययने दत्तचित्तोऽस्मि। स्वास्थ्यमपि समीचीनम्। परीक्षानन्तरम् शीघ्रमेव गृहं आगमिष्यामि। 

परीक्षायां संस्कृतस्य प्रश्न-पत्रे मया निबन्धलेखने महाकवि-भवभूतिविरचितस्य उत्तररामचरितनाटकस्य वैशिष्टयं वर्णितम्। 'उत्तररामचरितम्' भवभूते: नाट्यप्रतिभायाः सर्वोत्कृष्टं नाटकमस्ति। सप्ताङ्केषु निबद्धं करुणरसेन आपूरितं सरसं मधुरञ्चनाटकमिदम्। अत्र रामस्य जीवनस्य उत्तराद्धस्य कथा निबद्धा अस्ति। अस्य नाटकस्य वैशिष्ट्यं दृष्ट्वा एव कथितम् "उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते।" कविना नाटकेऽस्मिन् स्वानुभूत्या संसारस्य विषादवेदनयोः सम्यक् चित्रणं कृतमस्ति। सीतावियोगे न केवलं रामः रोदिति अपितु ग्रावाऽपि रोदिति। उत्तररामचरिते तेन करुणरसः एव सर्वप्रमुखः घोषितः। 

पूज्यायाः मातुश्चरणयोः मम प्रणतिः कथनीया। अनुजाय कपिलाय संस्नेहमाशिषः। शेषं सर्वं कुशलम्। 

भवदाज्ञाकारी पुत्रः 
रमेशः

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम् 

(ख) व्यावसायिक एवं कार्यालय सम्बन्धी पत्र 
(औपचारिकं पत्रम्) 

1. व्यावसायिक पत्र - व्यवसाय अथवा व्यापार से सम्बन्धित, क्रयादेश आदि के लिए फर्मों तथा व्यापारियों को लिखे जाने वाले पत्र इस श्रेणी में आते हैं। पत्र सम्पादकों को लिखे जाने वाले पत्र भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। 

2. रकारी पत्र - सरकारी कार्यालयों, अधिकारियों एवं शासन या व्यवस्था से सम्बन्धित जो पत्र लिखे जाते हैं, वे इस श्रेणी में आते हैं। सरकार के विभिन्न विभागों में भेजे जाने वाले तथा राज्य व केन्द्र सरकार के मध्य पारस्परिक पत्र व्यवहार से सम्बन्धित जो पत्र लिखे जाते हैं वे इस श्रेणी में आते हैं। सरकारी संस्थाओं तथा अन्य संस्थाओं में नौकरी प्राप्त करने, अवकाश लेने हेतु लिखे जाने वाले पत्र आवेदन-पत्र कहलाते हैं। 

3. विविध पत्र - उपर्युक्त पत्रों के अलावा लिखे जाने वाले बधाई-पत्र, निमन्त्रण-पत्र, सूचना-पत्र, विज्ञप्ति, संवेदना-पत्र आदि इस श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। 

इस प्रकार के पत्रों में भी आठ अंग (भाग) होते हैं -
 
1. दिनांक - पत्र के प्रारम्भ में ऊपरी भाग में दायीं तरफ पत्र-प्रेषण की दिनांक का उल्लेख करना चाहिए। 
2. लेखक का संकेत-पत्र के प्रारम्भ में ऊपरी भाग में बाईं ओर पत्र लिखने वाले का संकेत लिखना चाहिए। लेखक के पद का निर्देश भी करना उचित होता है। 
3. स्वीकार करने वाले का संकेत - लेखक के संकेत के नीचे के भाग में पत्र स्वीकार करने वाले का संकेत होता है। स्वीकार करने वाले के नाम का उल्लेख करना अनिवार्य नहीं है, फिर भी उसके पद का उल्लेख अवश्य करना 
चाहिए। 
4. विषय का नाम - स्वीकार करने वाले के संकेत के नीचे के भाग में विषय-नाम का भाग होता है। वहाँ जिस विषय में पत्र लिखा जाता है, एक वाक्य में उस विषय का उल्लेख किया जाता है। 
5. सम्बोधन - पत्र स्वीकार करने वाले के पद का उल्लेख करके उसका सम्बोधन होता है। 
6. प्रतिपाद्य विषय - विषय के भाग में साक्षात् विषय को प्रस्तुत किया जाता है। कुशलता, प्रश्न आदि पत्र में नहीं होते हैं। 
7. उपसंहार - उपसंहार में सामान्य रूप से 'भवदीय', 'भवदीया' आदि होते हैं। 
8. हस्ताक्षर और पद - हस्ताक्षर के साथ पद का निर्देश भी होता है। 

व्यावसायिक-कार्यालय सम्बन्धी पत्रों के उदाहरण - 

1. पुस्तक-विक्रेता को पुस्तक-क्रय करने हेतु पत्र। 
2. विद्यालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर आमन्त्रण-पत्र।
3. पत्रिका-सम्पादक के लिए पत्र।
4. नगरपालिका प्रशासक के लिए पत्र। 

व्यावसायिक-कार्यालयीय पत्र के अंगों का प्रारूप - 

पास से (प्रेषक का स्थान) 
लेखक का संकेत 
पास में, 
स्वीकार (प्राप्तकर्ता) करने वाले का संकेत 
विषय-विषय का नाम 
सम्बोधन 
प्रतिपाद्य विषय 
उपसंहार 

हस्ताक्षर और पद 

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

1. पुस्तक-प्रेषणार्थं पत्रम् 

संके तपदानि - ब्रह्मानन्दः, टोंक (राजस्थानम्), निदेशक :, राजस्थान-संस्कृत-अकादमी, संस्कृतसाहित्येतिहासक्रयणसन्दर्भे, प्रकाशितः, ग्रन्थः, अवलोकितः, ग्रन्थेऽस्मिन्, वैदिकवाङ्मयतः आधुनिकवाङमयपर्यन्तं, संस्कृतस्य ग्रन्थानां, लेखकानां, परिचयः सरलसंस्कृतमाध्यमेन, प्रदत्तः, वैशिष्ट्येन, प्रभावितः, कृपया, एका प्रति, डाकद्वारा, प्रेषयितुं, रूप्यकाणि, प्रेषयामि, सधन्यवादम्। 
उत्तर :

दिनाङ्कः 11/12/20XX 

प्रेषकः - 
ब्रह्मानन्दशर्मा 
व्याख्याता (संस्कृतम्) 
राजकीय उच्चमाध्यमिक विद्यालयः 
टोंक, राजस्थानम् 
प्रेषितिः - 
श्रीमान् निदेशकमहोदयः 
राजस्थान-संस्कृत-अकादमी 
जयपुरम् 
विषयः - संस्कृतसाहित्येतिहासक्रयणसन्दर्भे। 
महोदयः, 
राजस्थान-संस्कृत-अकादमीद्वारा प्रकाशितः 'संस्कृतसाहित्येतिहास' नामको ग्रन्थः मयाऽवलोकितः। ग्रन्थेऽस्मिन् वैदिकवाङ्मयतः आधुनिक-वाङ्मयपर्यन्तं सकलमपि संस्कृतसाहित्यं सरलसंस्कृतमाध्यमेन लिखितम्। अनेन संस्कृतसाहित्यस्य ज्ञानं सरलतया भवितुमर्हति। अतः अस्य ग्रन्थस्य एका प्रति डाकद्वारा प्रेषयितुं व्यवस्थां कुर्वन्तु इति निवेदयामि। एतदर्थं  पञ्चाशतरुप्यकाणि अग्रिमरूपेण प्रेषयामि। पुस्तकप्राप्तिसमयेऽवशिष्टं धनम् अप्यहं प्रेषयिष्ये। 

भवदीयः 
(ब्रह्मानन्दशर्मा) 
व्याख्याता-संस्कृतम् 

2. ग्रन्थप्रकाशनार्थं पत्रम् 

संकेतपदानि - जितेन्द्र अग्रवालः, जयपुरम्, संजीव-प्रकाशनम्, सरल-व्याकरणम्, विद्यालयीयः छात्राणां कृते, बहूपयोगी, सन्धि-समास-प्रत्यय-कारकादीनाम्, शब्द-रूपाणि, धातु-रूपाणि, पत्र-लेखनम्, निबन्धलेखनम्, अनुच्छेद लेखनम्, अन्यापि छात्रोपयोगिनी, प्रदत्तानि, अस्याः मूलहस्तलिखिता प्रतिः, प्रकाशनाय, प्रेषयामि। आशासे भवन्तः, प्रकाशनं, कृत्वा, ममोत्साहवर्धनं, करिष्यन्ति। सधन्यवादम्। 
उत्तर :

दिनाङ्कः 16/8/20XX 

प्रेषकः -  
जितेन्द्रः अग्रवालः 
व्याख्याता 
47/173, मानसरोवरः, जयपुरम् 
प्रेषितिः - 
प्रकाशकमहोदयः, 
संजीव-प्रकाशनम् 
चौड़ा रास्ता, जयपुरम्। 
विषयः - सरल-संस्कृत-व्याकरणस्य पुस्तकं प्रकाशनाय। 
महोदयः, 
मया उच्चमाध्यमिकस्तरीय विद्यालयानां छात्राणां कृते सरल-संस्कृत-व्याकरणस्य पुस्तकं लिखितम्। पुस्तकमिदं बहूपयोगिनी वर्तते। अस्मिन् पुस्तके मया विविधोदाहरणैः सरलभाषाया संस्कृतस्य सन्धिः-समास-प्रत्यय-कारकादीनाम्, शब्द-रूपाणाम्, धातु-रूपाणां च नियमानां समुल्लेखः कृतः। एतदतिरिच्य पत्र-लेखनम्, निबन्ध-लेखनम्, अनुच्छेद लेखनम् अन्याः च व्याकरणस्य सिद्धान्ताः सम्यक्तया प्रतिपादिताः। 
अहं पुस्तकस्यास्य मूलहस्तलिखिता प्रतिः भवत्सकासे प्रकाशनाय प्रेषयामि। आशासे, भवन्तः स्वप्रकाशनात् पुस्तकस्यास्य प्रकाशनं कृत्वा ममोत्साहवर्धनं करिष्यन्ति। 
सधन्यवादम्। 

भवदीयः 
(जितेन्द्र-अग्रवाल:) 
व्याख्याता

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम् 

3. पुस्तकप्रेषणार्थम् पत्रम् 

संकेतपदानि-प्रेषकः, रामप्रसादः, अलवस्म्, निदेशकः, राजस्थान-संस्कृत-अकादमी, जयपुरम्, सुबोध-संस्कृत व्याकरणम्, प्रकाशितः, ग्रन्थः, अवलोकितः, अस्मिन् ग्रन्थे, व्याकरणस्य, सन्धि-समास-कारकादीनाम्, नियमानाम्, सरलतया, प्रतिपादनम्, ग्रन्थस्य, पञ्चप्रतयः, व्यवस्थां निवेदयामि, शतम् रुप्यकाणि, प्रेषयामि, अवशिष्टं धनं, भवदीयः। 
उत्तर : 

दिनाङ्कः 28/9/20XX

प्रेषकः - 
रामप्रसादः जांगिड़ 
व्याख्याता 
राजकीय उच्च माध्यमिक-विद्यालयः, 
गंज, अलवरम्
प्रेषितिः - 
श्रीमान् निदेशकमहोदयः 
राजस्थान-संस्कृत-अकादमी 
जयपुरम् 
विषयः - सुबोध-संस्कृत-व्याकरणस्य पुस्तकं क्रयार्थम्। 
महोदयः! 
राजस्थान-संस्कृत-अकादमीद्वारा प्रकाशितं 'सुबोध-संस्कृत-व्याकरणम्' इति पुस्तकं मया अवलोकितम्। अस्मिन् ग्रन्थे संस्कृतस्य छात्राणां कृते व्याकरणस्य सन्धि-समास-कारकादीनां नियमानां सरलतया प्रतिपादनं कृतम्। अनेनाहमतीव प्रभावितोऽस्मि। कृपया अस्य ग्रन्थस्य पञ्चप्रतयः डाकद्वारा प्रेषयितुं व्यवस्था करणीया। एतदर्थमहं शतं रुप्यकाणि अग्रिमरूपेण प्रेषयामि। पुस्तकप्राप्तिसमयेऽवशिष्टं धनमपि प्रेषयिष्ये। 
सधन्यवादम्। 

भवतीयः 
(रामप्रसादः जांगिड़) 
व्याख्याता 

4. प्रधानाचार्याय प्रार्थना-पत्रम् 

संकेतपदानि - प्रधानाचार्यमहोदयः, भरतपुरम्, गीतायाः श्लोक-पाठ-प्रतियोगितायाम्, सम्मेलनार्थम्, सम्पूर्णवाङ्मयस्य, गौरवंभूतं रत्नमिव, उपनिषदाम्, श्रुतीनां, सारतत्त्वं प्रस्तौति, कर्मयोगस्य प्रतिपादनं, महत्त्वं प्रकटयति, गीतायाः उपदेशाः जीवनस्योन्नतिः कारकाः, महत्त्वं दृष्ट्वा एव, मह्यम्, रोचते, आयोजिता, भविष्यति, अहमपि, भागं गृहीतुमिच्छामि, आज्ञाकारी, रवीन्द्रः। 
उत्तर : 
सेवायाम्, 
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः, 
विवेकानन्द-उच्चमाध्यमिक-विद्यालयः, 
भरतपुरम्। 
विषयः - गीतायाः श्लोक-पाठ-प्रतियोगितायां सम्मेलनार्थम्। 
महोदय! 
सविनयं निवेदनमस्ति यत् अस्माकं विद्यालये यस्याः श्रीमद्भगवद्गीतायाः श्लोकपाठप्रतियोगितायाः आयोजनं भविष्यति, तस्यां प्रतियोगितायाम् अहमपि भागं गृहीतुमिच्छामि। यतोहि गीता न केवलं संस्कृतसाहित्यस्य अपितु सम्पूर्ण वाङ्मयस्य सर्वोच्चं गौरवभूतं समुज्ज्वलं रत्नमिवास्ते। इयं गीता न केवलं सर्वासामपि उपनिषदाम्, अपितु श्रुतीनामपि सारतत्त्वं प्रस्तौति। कर्मयोगस्य प्रतिपादनं तु गीतायाः विशिष्टं महत्त्वं प्रकटयति। गीतायाः उपदेशाः जीवनस्योन्नतिकारकाः सन्ति। गीतायाः मानवजीवने विशिष्टं महत्त्वं दृष्ट्वा एव गीता मह्यम् अतीव रोचते। 
अतः प्रार्थना अस्ति यत् गीतायाः श्लोकपाठ-प्रतियोगितायां सम्मेलनार्थं मामपि अनुमति प्रदाय कृतार्थयन्तु भवन्तः। 

दिनांकः 18-12-20xx 

भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः 
रवीन्द्रः
कक्षा-11 

RBSE Class 11 Sanskrit रचना संकेताधारितम् पत्र-लेखनम्

5. प्रधानाचार्याय-प्रार्थना-पत्रम्

संकेतपदानि-विद्यालयस्य पत्रिकायाम् लघुलेखः प्रकाशनार्थम्, सविनयम्, मया, महाकविकालिदासविरचितस्य, रघुवंशस्य वैशिष्ट्यमधिकृत्य, एकः लघुलेखः, रघुवंशस्य एकोनविंशतिसर्गेषु, सूर्यवंशीनृपाणां, राज्ञः दिलीपपस्य गौ-सेवायाः, रघु-कौत्स-संवादः, इन्दुमती-स्वयंवरवर्णनादयः, वर्णितम्, कृपया, मम लघुलेखस्य, प्रकाशनं, कृतार्थयन्तु, शिष्यः, महेशः। 
उत्तर : 
सेवायाम्, 
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया: 
राजकीय-उच्चमाध्यमिक विद्यालयः, 
जोधपुरम् 
विषय: - विद्यालयस्य पत्रिकायां लघुलेखाः प्रकाशनार्थम्। 
महोदयः, 
सविनयं निवेदनमस्ति यत् विद्यालयस्य वार्षिकपत्रिकायां प्रकाशनार्थं मया महाकविकालिदासविरचितस्य रघुवंशमहाकाव्यस्य वैशिष्ट्यं वर्णयन् एकः लघुलेखः लिखितः। रघुवंशमहाकाव्यस्य एकोनविंशतिसर्गेषु महाकविना सूर्यवंशीयनृपाणाम्, राज्ञः दिलीपस्य गौ-सेवाव्रतस्य, रघु-कौत्स-सेवादस्य, इन्दुमती-स्वयंवरस्य इत्यादीनां वैशिष्ट्यपूर्ण वर्णनं कृतमस्ति। मया एतेषां संक्षेपेण वर्णनं लेखेऽस्मिन् कृतम्। रघुवंशस्य वैशिष्ट्येन परिपूर्णो लेखोऽयं पाठकानां कृते रुचिकरं भविष्यतीति मे विश्वासः।
अतः कृपया मदीयः लेखः विद्यालयस्य पत्रिकायां प्रकाशितः कृत्वा कृतार्थवन्तु भवन्तः। 
दिनाङ्क: - 17-03-20XX 

भवताम् आज्ञानुवर्ती 
शिष्यः 
महेशः

Prasanna
Last Updated on Aug. 22, 2022, 2:35 p.m.
Published Aug. 20, 2022