RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 15 तरंगें

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RBSE Class 11 Physics Chapter 15 Notes तरंगें

→ तरंग गति-किसी कम्पन करते स्रोत के कारण उत्पन्न विक्षोभ अर्थात् हलचल अर्थात् ऊर्जा के किसी अन्य बिन्दु तक संचरण प्रारूप को ही
तरंग कहते हैं और ऊर्जा संचरण विधि को तरंग गति कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है(i) यांत्रिक तरंगें ये वे तरंगें हैं जिन्हें संचरण करने के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। इन तरंगों को 'प्रत्यास्थ तरंगें' भी कहते हैं।

→ विद्युत चुम्बकीय तरंगें जिन तरंगों के संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात् ये तरंगें निर्वात में भी संचरण
करती हैं, 'विद्युत चुम्बकीय तरंगें' कहलाती हैं। ये अनुप्रस्थ प्रकृति की होती हैं। यांत्रिक तरंगें भी दो प्रकार की होती हैं
(i) अनुप्रस्थ तरंगें इस प्रकार की तरंग में माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् अपनी माध्य स्थिति के इर्द-गिर्द रेखीय आवृत्ति गति करते हैं। उदाहरणार्थ, तनी हुई डोरी में उत्पन्न तरंगें, जल के पृष्ठ पर उत्पन्न तरंगें, इत्यादि।
(ii) अनुदैर्घ्य तरंगें-इस प्रकार की तरंगों के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन करते हैं । वायु में ध्वनि संचरण अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में होता है। अनुदैर्घ्य तरंगों की गति में माध्यम का संपीडन तथा विरलन होता है। उदाहरणार्थ, वायु में ध्वनि तरंगें, छड़ों में रगड़ के कारण उत्पन्न तरंगें इत्यादि। तरंग वेग माध्यम में विक्षोभ जिस वेग से गतिमान होता है, उसे तरंग वेग कहते हैं।

→ धनात्मक x-दिशा में संचरित ज्यावक्रीय तरंग का विस्थापन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है
y = a sin (kx - ωt + Φ)
यहाँ a तरंग का आयाम, k कोणीय तरंग संख्या, कोणीय आवृत्ति, (kx - ωt + Φ) कला, तथा Φ कला-नियतांक अथवा प्रारंभिक कला कोण है।

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 15 तरंगें 

→ किसी प्रगामी तरंग की तरंगदैर्घ्य λ, उसके किन्हीं ऐसे दो क्रमागत बिंदुओं के बीच की दूरी के बराबर होती है जो किसी क्षण पर समान कला में होते हैं। अप्रगामी तरंगों के लिए यह दो क्रमागत निस्पंदों अथवा प्रस्पंदों के बीच की दूरी के दोगुने के बराबर होती है।

→ प्रगामी तरंगें

  • यह एक नियत वेग से माध्यम में आगे बढ़ती हैं।
  • माध्यम के समस्त कण एक साथ माध्य स्थिति में नहीं आते हैं।

→ अप्रगामी तरंगें-जब दो पूर्णतः समान तरंगें (आवृत्ति, आयाम, तरंगदैर्घ्य तथा चाल समान) एक ही सीधी रेखा में परस्पर विपरीत दिशा में गति करते हुए, परस्पर अध्यारोपित होती हैं तो अप्रगामी तरंगों का निर्माण होता है। इन तरंगों के माध्यम में ऊर्जा का संचरण नहीं होता हैं।

→ अप्रगामी तरंगों के लक्षण

  • ये तरंगें माध्यम में आगे नहीं बढ़ती हैं, अपने ही स्थान पर स्थिर रहकर फैलती व सिकुड़ती हैं।
  • अप्रगामी तरंगों के अनुदैर्घ्य होने की स्थिति में निस्पन्दों (Nodes) पर दाब तथा घनत्व में परिवर्तन अधिकतम।

→ निस्पंद-अप्रगामी तरंग में कुछ कण अपने स्थान पर सदैव स्थिर रहते हैं तथा इन बिन्दुओं पर कण का आयाम सदैव शून्य रहता है। इन्हें निस्पंद कहते हैं।

→ प्रस्पंद-अप्रगामी तरंग में कुछ बिन्दु ऐसे होते हैं जहाँ माध्यम के कण अधिकतम आयाम से कम्पन करते हैं। ये बिन्दु प्रस्पंद कहलाते हैं।

→ किसी तरंग के आवर्तकाल T को उस समय द्वारा परिभाषित किया जाता है जिसमें माध्यम का कोई अवयव अपना एक दोलन पूर्ण करता है। यह तरंग की कोणीय आवृत्ति ω से इस प्रकार संबंधित होता है
T = \(\frac{2 \pi}{\omega}\)

→ किसी तरंग की आवृत्ति n को 1/T के रूप में परिभाषित की जाती है तथा आवृत्ति व कोणीय आवृत्ति में निम्नलिखित संबंध होता है
n = \(\frac{\omega}{2 \pi}\)

→ प्रगामी तरंग की चाल v = \(\frac{\omega}{\mathrm{k}}=\frac{\lambda}{\mathrm{T}}\) = nλ

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 15 तरंगें

→ तानित डोरी में अनुप्रस्थ तरंग की चाल-किसी तानित डोरी पर, अनुप्रस्थ तरंग की चाल उस डोरी के गुणों से निर्धारित होती है। यदि किसी डोरी में तनाव T है तथा डोरी का एकांक लम्बाई का द्रव्यमान m है तो उस डोरी में अनुप्रस्थ तरंग की चाल,
v = \(\sqrt{\frac{\mathrm{T}}{\mathrm{m}}}\)
यदि डोरी के पदार्थ का घनत्व d तथा डोरी की त्रिज्या r हो तो
m = πr²d
V = \(\sqrt{\frac{\mathrm{T}}{\pi r^2 d}}\)

→ अनुदैर्घ्य तरंग की चाल–ध्वनि की चाल(i) ध्वनि तरंगें अनुदैर्घ्य यांत्रिक तरंगें होती हैं जो ठोसों, द्रवों तथा गैसों में गमन कर सकती हैं। यदि किसी माध्यम का आयतन प्रत्यास्थता
गुणांक K तथा घनत्व d है तो उस माध्यम में ध्वनि तरंगों की चाल
v = \(\sqrt{\frac{K}{d}}\)
(i) धातु की छड़ में अनुदैर्घ्य तरंगों की चाल
v = \(\sqrt{\frac{\mathrm{Y}}{d}}\)
(iii) किसी गैस में, चूँकि K = γP, अतः ध्वनि की चाल
यहाँ γ गैस की दो विशिष्ट ऊष्माओं का अनुपात (γ = Cp/Cv), d गैस का घनत्व तथा P गैस का दाब है।

→ तरंगों के अध्यारोपण का सिद्धान्त:
जब दो या दो से अधिक तरंगें किसी माध्यम में गमन करती हैं, तब माध्यम के किसी अवयव का विस्थापन प्रत्येक तरंग के विस्थापनों का सदिश योग होता है। इसे तरंगों के अध्यारोपण का सिद्धान्त कहते हैं।
y = y1 + y2
अध्यारोपण का सिद्धान्त व्यतिकरण की परिघटना का मूल है।

→ एक ही डोरी में गमन करती दो ज्यावक्रीय तरंगें अध्यारोपण के सिद्धांत के अनुसार संकलन अथवा निरसन द्वारा व्यतिकरण की परिघटना प्रदर्शित करती हैं । यदि समान आयाम a तथा समान आवृत्ति वाली परंतु कला में कला-नियतांक Φ के अंतर वाली दो तरंगें एक ही दिशा में गतिमान हैं तो उनके व्यतिकरण का परिणाम एक एकल तरंग होती है जिसकी आवृत्ति भी उनके समान होती है
y = [2a cos \(\frac{1}{2}\)Φ]sin(kx - ωt + \(\frac{1}{2}\)Φ)
यदि Φ = 0 अथवा 2π का पूर्णांक गुणज हो तो तरंगें एकदम समान कला में होती हैं तथा व्यतिकरण संपोषी होता है; यदि Φ = π अथवा π रेडियन का विषम गुणज हो तो तरंगें एकदम विपरीत कलाओं में होती हैं तथा व्यतिकरण विनाशी होता है।

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 15 तरंगें

→ तरंगों का परावर्तन-किसी प्रगामी तरंग या स्पंद की किसी दृढ़ परिसीमा से परावर्तन में π कलान्तर उत्पन्न होता है तथा खुले परिसीमा से परावर्तन में कोई कलान्तर उत्पन्न नहीं होता है। इस प्रकार के कथन को गणितीय रूप में हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैंकिसी आपतित तरंग के लिये
y = asin (kx - ωt)

  • दृढ़ परिसीमा से परावर्तित तरंग के लिये
    y = -asin (kx + ωt)
  • खुली परिसीमा से परावर्तित तरंग के लिये
    y = asin (kx + ωt) |

→ विपरीत दिशाओं में गतिशील दो सर्वसम तरंगों के व्यतिकरण से अप्रगामी तरंगें उत्पन्न होती हैं। दोनों सिरों पर परिबद्ध तानित डोरी में उत्पन्न अप्रगामी तरंगों को इस प्रकार व्यक्त किया जाता है
y = (2a sin kx) cos ωt

→ अप्रगामी तरंगों का एक अभिलक्षण यह है कि इसमें शून्य विस्थापन की निश्चित अवस्थितियाँ जिन्हें निस्पंद कहते हैं तथा अधिकतम विस्थापन की निश्चित अवस्थितियाँ जिन्हें प्रस्पंद कहते हैं, होती हैं। दो क्रमागत निस्पंदों अथवा दो क्रमागत प्रस्पंदों के बीच है।

l लम्बाई की डोरी के दोनों सिरों पर कम्पन आवृत्तियाँ निम्न से ज्ञात करते हैं
n = \(\frac{r \mathrm{v}}{2 l}\), r = 1, 2, 3.... यहाँ पर v तरंग की चाल है। |

→ किसी निकाय की न्यूनतम संभावित स्वाभाविक आवृत्ति को निकाय की मूल विधा या प्रथम गुणावृत्ति कहते हैं। दोनों सिरों पर परिबद्ध l = लम्बाई के तानित डोरी के लिये n=y होता है जो कि उपरोक्त समीकरण में n = 1 रखने से प्राप्त होता है।

→ L लम्बाई की कोई नली जिसका एक सिरा बंद तथा दूसरा सिरा खुला हो, जैसे वायु-कॉलम, निम्नलिखित आवृत्तियों से कंपन करता है
n = (r+\(\frac{l}{2}\))\(\frac{v}{2l}\) r = 0, 1, 2, 3....
उपरोक्त संबंध द्वारा निरूपित आवृत्तियों का सेट इस प्रकार के निकाय के दोलन की प्रसामान्य विधाएँ होती हैं। इस संबंध द्वारा r = 0 के लिए प्राप्त निम्नतम आवृत्ति \(\frac{v}{4l}\) है, जो इस प्रकार के निकाय की मूल विधा अथवा गुणावृत्ति होती है।

→ दोनों सिरों से परिबद्ध, l लम्बाई की तानित डोरी अथवा एक सिरे से बंद तथा दूसरे सिरे पर मुक्त वायु-कॉलम जिन आवृत्तियों से कमान करते हैं, उन्हें इन निकायों की प्रसामान्य विधायें कहते हैं। इनमें से प्रत्येक आवृत्ति निकाय की अनुनाद आवृत्ति होती है।

→ विस्पन्द-जब लगभग समान आवृत्ति की दो ध्वनि तरंगें एक ही दिशा में चलते हुए परस्पर अध्यारोपित होती हैं तो समय के साथ तरंगें समान कला व विपरीत कला में आकर क्रमश: अधिकतम व न्यूनतम ध्वनियाँ उत्पन्न करती रहती हैं। समय के साथ ध्वनि की तीव्रता में आने वाले इस नियमित चढ़ाव-उतार की घटना को विस्पन्द की घटना कहते हैं।
कुल कम्पन - x = \(\left[\frac{\mathrm{n}_1}{\mathrm{n}_1-\mathrm{n}_2}\right]\)
विस्पन्द का आवर्तकाल- T = \(\frac{1}{\mathrm{n}_1-\mathrm{n}_2}\)
विस्पन्द आवृत्ति–n = \(\frac{1}{T}\) = n1 - n2.

→ डॉप्लर प्रभाव-जब किसी स्थिर ध्वनि स्रोत से ध्वनि उत्पन्न होती है तो उससे कुछ दूरी पर स्थित स्थिर श्रोता को स्रोत से उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति में कोई परिवर्तन का आभास नहीं होता है परन्तु जब ध्वनि स्रोत एवं श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति में परिवर्तन प्रतीत होता है, इसे 'डॉप्लर का प्रभाव' कहते हैं।

→ डाप्लर का प्रभाव जबकि स्रोत गतिमान हो तथा श्रोता स्थिर हो
(i) जब स्रोत श्रोता की ओर गति करता है
n' = n\(\left(\frac{v}{v-v_S}\right)\)
अतः आभासी आवृत्ति (n') वास्तविक आवृत्ति (n) से अधिक होगी।

(ii) स्रोत स्थिर श्रोता से दूर जा रहा है
n" = n\(\left(\frac{v}{v-v_S}\right)\)
आभासी आवृत्ति (n") वास्तविक आवृत्ति (n) से कम होगी।

(iii) स्रोत स्थिर श्रोता के पास से गुजरता है अतः आभासी आवृत्ति में परिवर्तन ।
Δn = n' - n"
यदि vs < < v हो तो vs2 को v2 की अपेक्षा नगण्य मानते हैं।
Δn = \(\left(\frac{2 \mathrm{v}_{\mathrm{s}}}{\mathrm{v}}\right)\)n

→ डॉप्लर का प्रभाव जबकि श्रोता गतिशील तथा ध्वनि स्रोत स्थिर है
(i) श्रोता, ध्वनि स्रोत की ओर गतिशील है
n' = n\(\left(\frac{v+v_0}{v}\right)\)
इस स्थिति में आभासी आवृत्ति (n') का मान वास्तविक आवृत्ति (n) से अधिक होता है।

(ii) श्रोता ध्वनि स्रोत से दूर जा रहा है
n" = n\(\left(\frac{v-v_0}{v}\right)\)
आभासी आवृत्ति (n") का मान वास्तविक आवृत्ति (n) से कम होता है।

(iii) श्रोता, स्थिर स्रोत को पार करता है
Δn = \(\left(\frac{2 v_0}{v}\right)\)n

→ डॉप्लर का प्रभाव जबकि स्रोत एवं श्रोता दोनों गतिशील हैं
n' = n\(\left(\frac{v \pm v_0}{v \pm v_s}\right)\)

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 15 तरंगें

→ डॉप्लर प्रभाव के उपयोग

  • विमान का वेग ज्ञात करने में
  • तारों तथा गैलेक्सी के वेग का अनुमान लगाने में
  • सूर्य की घूर्णन चाल ज्ञात करने में,
  • पनडुब्बी का वेग ज्ञात करने में।

→ डॉप्लर प्रभाव के सीमा बन्धन ध्वनि स्रोत, श्रोता एवं माध्यम प्रत्येक का वेग ध्वनि वेग से कम हो यदि इनका वेग ध्वनि के वेग से अधिक है तो तरंगाग्र विकृत हो जाता है तथा प्रघाती तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। डॉप्लर प्रभाव प्रेक्षित नहीं होता है। उदाहरण जैसे-जेट विमान।

Prasanna
Last Updated on Oct. 19, 2022, 2:16 p.m.
Published Oct. 19, 2022