These comprehensive RBSE Class 11 Economics Studies Notes Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास will give a brief overview of all the concepts.
→ परिचय:
भारतीय अर्थव्यवस्था में हमें आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण की गुणवत्ता की बलि देनी पड़ी है। हमें देश के विकास के साथ-साथ पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों का भी ध्यान रखना चाहिए तथा ध्यानपूर्वक धारणीय विकास के पथ को चुनना चाहिए।
→ पर्यावरण : परिभाषा और कार्य :
पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत और सभी संसाधनों की समग्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है। पर्यावरण के अन्तर्गत सभी जैविक तथा अजैविक तत्त्वों को शामिल किया जाता है जो परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते | हैं। प्रमुख जैविक तत्त्व पक्षी, पशु, पौधे, वन, मत्स्य आदि हैं तथा हवा, पानी भूमि आदि प्रमुख अजैविक तत्त्व हैं।
→ पर्यावरण के चार प्रमुख कार्य हैं
पर्यावरण अपने कार्यों को तभी सफलतापूर्वक कर सकता है जब ये कार्य उसकी धारण क्षमता की सीमा में हों। यदि ये कार्य उसकी धारण क्षमता की सीमा से बाहर हों तो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या तथा विकसित देशों के समृद्ध उपभोग एवं उत्पादन मानकों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वर्तमान में हमारे सम्मुख पर्यावरण संकट उत्पन्न हो रहा है। जल प्रदूषण बढ़ गया है तथा जल के स्रोत निरन्तर कम हो गए। नए संसाधनों की खोज में भारी राशि व्यय करनी पड़ रही है। वायु प्रदूषण बढ़ रहा है जिससे कई रोग हो रहे हैं। वैश्विक उष्णता तथा ओजोन क्षय में भी वृद्धि हुई है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ते औद्योगिकीकरण ने पर्यावरण समस्या को और बढ़ा दिया है तथा पर्यावरण की अवशोषी क्षमता पर दबाव बढ़ गया है। वर्तमान में हमारे सम्मुख पर्यावरण संसाधनों तथा सेवाओं की मांग अधिक है तथा पूर्ति बहुत कम है।
→ भारत की पर्यावरण स्थिति :
भारत पर्यावरणीय संसाधनों से सम्पन्न है; यहाँ अच्छी भूमि, नदियाँ, वन, खनिज पदार्थ, महासागर, पर्वत आदि संसाधन हैं । दक्षिण के पठार की काली मिट्टी कपास की खेती हेतु उत्तम है। गंगा का मैदान काफी उपजाऊ है। देश में लौह अयस्क, कोयला, प्राकृतिक गैस के पर्याप्त भंडार हैं। इनके अतिरिक्त देश में कई प्रकार के खनिज साधन मिलते हैं । किन्तु देश में बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, औद्योगिकीकरण आदि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। देश में कई प्रकार की पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
→ देश में प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ निम्न हैं:
→ देश में भूमि अपक्षय की मुख्य समस्या है जिसके निम्न कारण हैं
भारत में बढ़ती जनसंख्या से भू-संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। देश में वन भूमि बहुत कम है तथा मृदा क्षरण की भी प्रमुख समस्या है। शहरी इलाकों में बढ़ते वाहनों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। बढ़ते औद्योगिकीकरण से भी देश में शहरीकरण, प्रदूषण तथा दुर्घटनाएँ बढ़ रही हैं। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था में पर्यावरण सम्बन्धी कई चुनौतियाँ हैं।
→ धारणीय विकास :
अर्थव्यवस्था तथा पर्यावरण परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं । पर्यावरण को ध्यान में रखे बिना किये जाने वाले विकास से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धारणीय विकास की अवधारणा में भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत गरीबों के जीवन के भौतिक मानकों को ऊँचा उठाने पर बल दिया जाता है, इसके अन्तर्गत निर्धनों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का उपाय किया जाता है तथा उन्हें सभी बुनियादी आवश्यकताएँ उपलब्ध करवायी जाती हैं, साथ ही भावी पीढ़ी हेतु अच्छी गुणवत्ता वाली परिसम्पत्तियों का भंडार छोड़ने पर बल दिया जाता है।
→ विख्यात पर्यावरणवादी अर्थशास्त्री हरमन डेली के अनुसार धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए निम्न आवश्यकताएँ हैं
→ धारणीय विकास की रणनीतियाँ :
(i) ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग: देश में थर्मल तथा हाइड्रो पॉवर का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनसे विभिन्न प्रकार के प्रदूषण फैलते हैं। अतः धारणीय विकास के तहत ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग किया जाना चाहिए।
(ii) ग्रामीण क्षेत्रों में एल.पी.जी. व गोबर गैस: ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी, उपले तथा अन्य जैविक पदार्थों का इस्तेमाल ईंधन के रूप में करते हैं, इसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में कम कीमत पर तरल पेट्रोलियम गैस (एल.पी.जी.) प्रदान की जा रही है तथा गोबर गैस संयन्त्र आसान ऋण और सहायिकी देकर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इससे पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तथा ऊर्जा का अपव्यय भी न्यूनतम होगा।
(iii) शहरी क्षेत्रों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG): शहरी क्षेत्रों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस का प्रयोग किया जा रहा है जिससे वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है।
(iv) वायु शक्ति: कई क्षेत्रों में पवन चक्कियों द्वारा बिजली प्राप्त की जाती है, इससे पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। किन्तु इसकी प्रारम्भिक लागत काफी अधिक आती है।
(v) फोटो वोल्टीय सेल द्वारा सौर शक्ति: फोटोवॉल्टिक सेलों की सहायता से सौर ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार से विद्युत उत्पन्न करने से पर्यावरण पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
(vi) लघु जलीय प्लांट: पहाड़ी क्षेत्रों में झरनों पर मिनिहाइडल प्लांट लगाए जाते हैं जिससे झरनों की ऊर्जा से छोटे टरबाइन चलाए जाते हैं एवं इनसे बिजली का उत्पादन होता है। इस प्रकार के जलीय प्लांटों से पर्यावरण पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
(vii) पारंपरिक ज्ञान व व्यवहार: प्राचीन समय पर विभिन्न आर्थिक कार्य परम्परागत प्रणालियों से किए जाते थे किन्तु वर्तमान में हम परम्परागत प्रणालियों को छोड़ रहे हैं। वर्तमान में हम पुनः परम्परागत प्रणालियों के प्रयोग को बढ़ावा दे रहे हैं।
(viii) जैविक कंपोस्ट खाद: विगत कुछ वर्षों से कृषि में रासायनिक खाद का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है। इसका पर्यावरण तथा भूमि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अब इन प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए जैविक कम्पोस्ट खाद का प्रयोग बढ़ रहा है। जैविक कंपोस्ट खाद का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है।।
(ix) जैविक कीट नियन्त्रण: देश में विगत वर्षों में कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया गया जिसके अनेक प्रतिकूल प्रभाव पड़े। अतः देश में इन प्रतिकूल प्रभावों के बचने का एक उपाय जैविक कीट नियन्त्रण है। इसमें रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीट नियन्त्रकों का प्रयोग किया जाता है।