RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 6 परिक्षेपण के माप

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RBSE Class 11 Economics Chapter 6 Notes परिक्षेपण के माप

→ प्रस्तावना:
औसत, वितरण के केवल एक पहलू के बारे में बताता है अर्थात् मानों का प्रतिनिधि आकार। उदाहरण के लिए दो परिवारों की औसत आय एक समान है किन्तु उन परिवारों में व्यक्तिगत आय में भिन्नता हो सकती है। अतः वितरण को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें मानों के प्रसरण को जानने की आवश्यकता पड़ती है। अतः औसत के आधार पर प्राप्त ज्ञान अपर्याप्त होता है अतः हमें परिक्षेपण के मानों की आवश्यकता पड़ती है। परिक्षेपण यह दर्शाता है कि वितरण का मान उसके औसत मान से कितना भिन्न है।

→ विचरण विभिन्नता के विस्तार को निर्धारित करने हेतु कुछ निश्चित मान हैं, जो निम्न प्रकार हैं
(क) परास
(ख) चतुर्थक विचलन
(ग) माध्य विचलन
(घ) मानक विचलन।
इन मापों के अतिरिक्त जो संख्यात्मक मान देते हैं, परिक्षेपण के अनुमान के लिए आरेखीय विधि भी हैं।

→ मानों के प्रसारण पर आधारित माप
परास (Range):
परास किसी वितरण में अधिकतम माप (L) एवं न्यूनतम मान (S) के बीच का अन्तर है अर्थात् R = L - S। परास का अधिक मान अधिक परिक्षेपण दर्शाता है तथा इसके विपरीत कम मान निम्न परिक्षेपण को दर्शाता है। परास की कुछ सीमाएँ हैं किन्तु परास को समझना काफी आसान एवं सरल है।

परास की गणना करते समय व्यक्तिगत, खण्डित तथा अखण्डित श्रेणी में उपर्युक्त सूत्र का ही प्रयोग किया जाता है। खण्डित तथा अखण्डित श्रेणी में विस्तार की गणना में आवृत्ति का ध्यान नहीं रखा जाता है। अखण्डित श्रेणी में प्रथम वर्गान्तर की निचली सीमा (S) तथा अन्तिम वर्गान्तर की ऊपरी सीमा (L) लेकर विस्तार ज्ञात किया जाता है।

RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 6 परिक्षेपण के माप 

→ चतुर्थक विचलन (Quartile Deviation):
किसी वितरण में उच्च या निम्न किसी भी चरम मान की उपस्थिति परिक्षेपण के माप के रूप में परास की उपयोगिता को घटा सकती है। अतः हमें एक ऐसे माप की जरूरत पड़ती है जो बाह्य मूल्यों से अनुचित रूप से प्रभावित न हो। अतः चतुर्थक विचलन ज्ञात किया जाता है। इसे अर्धअन्तर चतुर्थक परास भी कहा जाता है।
किसी भी श्रेणी में तृतीय चतुर्थक तथा प्रथम चतुर्थक के अन्तर को ही अन्तर चतुर्थक विस्तार कहा जाता है। इसे सूत्र रूप में निम्न प्रकार लिखेंगे
अन्तर चतुर्थक विस्तार = Q3 - Q1
किसी श्रेणी के तृतीय व प्रथम चतुर्थक के अन्तर का आधा चतुर्थक विचलन होता हैचतुर्थक विचलन या अर्द्ध-अन्तर चतुर्थक विस्तार (Q.D.) = \(\frac{\mathrm{Q}_{3}-\mathrm{Q}_{1}}{2}\)
व्यक्तिगत श्रेणी, खण्डित श्रेणी तथा अखण्डित श्रेणी तीनों में अन्तर चतुर्थक परास तथा चतुर्थक विचलन अथवा अर्द्ध-अन्तर चतुर्थक विस्तार ज्ञात करने हेतु उपर्युक्त सूत्र का ही प्रयोग किया जाता है। Q1 तथा Q3 को निम्न सूत्रों की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है
Q1 = L + \(\frac{\frac{n}{4}-c . f .}{f}\) × i
Q3 = L + \(\frac{\frac{3 n}{4}-c . f}{f}\) × i

यहाँ L = संगत चतुर्थक वर्ग की निम्न सीमा है, c.f. = चतुर्थक वर्ग के पूर्ववर्ती वर्ग की संचयी आवृत्ति है, f = चतुर्थक वर्ग की आवृत्ति है तथा i = चतुर्थक वर्ग का अन्तराल है।

→ औसत से परिक्षेपण के माप:
परास और चतुर्थक विचलन यह परिकलन करने का प्रयास नहीं करते हैं कि मान अपने औसत से कितनी दूर है, फिर भी मानों के प्रसरण के परिकलन द्वारा वे परिक्षेपण के बारे में एक अच्छा अनुमान दे देते हैं। दो माप, जो कि मानों के अपने औसत से विचलन पर आधारित होते हैं वे हैं-माध्य विचलन और मानक विचलन।

→ विचलन ज्ञात किया जाता है अर्थात् |d| ज्ञात किया जाता है। इसके पश्चात् प्रत्येक |d| के मान को इसकी संगत बारम्बारता से गुणा किया जाता है तथा इन्हें जोड़कर Σf|d| प्राप्त किया जाता है तथा निम्न सूत्र की सहायता से माध्य विचलनं ज्ञात किया जाता है
M.D. (Median) = \(\frac{\sum f|d|}{\sum f}\)

→ मानक विचलन (Standard Deviation):
माध्य विचलन की गणना करते समय ऋणात्मक विचलनों को भी धनात्मक माना जाता है अर्थात् बीजगणितीय नियमों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। इस अशुद्धि को दूर करने हेतु मानक विचलन अथवा प्रमाप विचलन की गणना की जाती है। प्रमाप अथवा मानक विचलन की गणना केवल समान्तर माध्य की सहायता से की जाती है।

→ असमूहित आँकड़ों के लिए मानक विचलन का परिकलन-व्यक्तिगत श्रेणी के मानक विचलन के परिकलन के लिए चार वैकल्पिक विधियाँ उपलब्ध हैं। इन सभी विधियों के द्वारा मानक विचलन का मान एक ही प्राप्त होता है। ये विधियाँ निम्न प्रकार हैं
(क) वास्तविक माध्य विधि
(ख) कल्पित माध्य विधि
(ग) प्रत्यक्ष विधि
(घ) पद-विचलन विधि।

(क) वास्तविक माध्य विधि अथवा प्रत्यक्ष विधि-इस विधि में श्रेणी का समान्तर माध्य (X̄) ज्ञात किया जाता है तथा श्रेणी के प्रत्येक मूल्य में से समान्तर माध्य घटाकर विचलन (d) ज्ञात किया जाता है। इसके पश्चात् प्रत्येक विचलन का वर्ग करके उसका योग (Σd2) ज्ञात किया जाता है। वर्गों के योग में मदों की संख्या का भाग देकर निम्न सूत्र द्वारा प्रमाप विचलन ज्ञात किया जाता है
σ = \(\sqrt{\frac{\sum \mathrm{d}^{2}}{\mathrm{n}}}\)

(ख) कल्पित माध्य विधि:
यह विधि समान्तर माध्य पूर्ण अंक में न आने पर उपयुक्त रहती है। इसमें श्रेणी में दिए गये मूल्यों में से किसी एक को कल्पित माध्य माना जाता है तथा कल्पित माध्य से श्रेणी के सभी मूल्यों का विचलन निकालकर उसका योग (Σd) निकाला जाता है, विचलनों का वर्ग करके उसका योग (Σd2) किया जाता है तथा निम्न सूत्र की सहायता से प्रमाप अथवा मानक विचलन निकाला जाता है
σ = \(\sqrt{\frac{\sum \mathrm{d}^{2}}{\mathrm{n}}-\left(\frac{\Sigma \mathrm{d}}{\mathrm{n}}\right)^{2}}\)

(ग) प्रत्यक्ष विधि-मानक विचलन के लिए मानों से सीधे भी अर्थात् विचलनों को बिना लिए भी परिकलित किया जा सकता है, इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है
σ = \(\sqrt{\frac{\sum X^{2}}{n}-(\bar{X})^{2}}\)

(घ) पद-विचलन विधि-यदि मान किसी समापवर्तक से विभाज्य है तो उसे विभाजित किया जा सकता है तथा उसके पश्चात् मानक विचलन की गणना निम्न सूत्र की सहायता से की जा सकती है
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{d}^{\prime 2}}{\mathrm{n}}}\) × C (C = समापवर्तक)
वैकल्पिक तौर पर किसी समापवर्तक द्वारा मानों को विभाजित करने की अपेक्षा, विचलनों को किसी समापवर्तक से विभाजित किया जाता है। उस समय निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाएगा
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{d}^{\prime 2}}{\mathrm{n}}-\left(\frac{\Sigma \mathrm{d}^{\prime}}{\mathrm{n}}\right)^{2}}\) × C
संतत बारम्बारता वितरण अथवा अखण्डित श्रेणी में मानक विचलन का परिकलन-असमूहित आँकड़ों की भाँति समूहित आँकड़ों में अखण्डित श्रेणी में मानक विचलन को किसी भी अनलिखित विधि द्वारा परिकलित किया जा सकता है

(क) वास्तविक माध्य विधि
(ख) कल्पित माध्य विधि
(ग) पद-विचलन विधि।

(क) वास्तविक माध्य विधि अथवा प्रत्यक्ष विधि-इस हेतु सर्वप्रथम श्रेणी के सभी वर्गों के मध्य मूल्य ज्ञात | किए जाते हैं। इन मध्य मूल्यों को सम्बन्धित आवृत्ति से गुणा करके, उनका योग करके Σfd की गणना की जाती है तथा इसके आधार पर समान्तर माध्य की गणना की जाती है। इसके पश्चात् माध्य से मध्य बिन्दु का विचलन (d) की गणना की जाती है। इस विचलन के साथ संगत बारम्बारता से गुणा करके Σfd ज्ञात किया जाता है। fd मानों को d से गुणा करके Σfd2 की गणना की जाती है तथा निम्न सूत्र द्वारा प्रमाप अथवा मानक विचलन की गणना की जाती है
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{fd}^{2}}{\mathrm{n}}}\)

(ख) कल्पित माध्य विधि:
सर्वप्रथम वर्गों के मध्य बिन्दु की गणना की जाती है। किसी कल्पित माध्य से मध्य बिन्दुओं के विचलन (d) की गणना की जाती है । d के मान को संगत बारम्बारता से गुणा करके fd की गणना की जाती है। d मानों के साथ fd के मानों को गुणा करके fd- की प्राप्ति की जाती है तथा निम्न सूत्र की सहायता से मानक विचलन का परिकलन किया जाता है
σ = \(\sqrt{\frac{\sum \mathrm{fd}^{2}}{\mathrm{n}}-\left(\frac{\sum \mathrm{fd}}{\mathrm{n}}\right)^{2}}\)

(ग) पद-विचलन विधि:
इस विधि में वर्ग के मध्य बिन्दुओं का परिकलन करके किसी भी स्वैच्छिक | मूल्य से इसका विचलन निकाला जाता है। इसके पश्चात् विचलनों में समापवर्तक (C) का भाग दिया जाता है तथा d' प्राप्त किया जाता है। d मूल्यों को संगत बारम्बारता (1) से गुणा कर fd' का मूल्य प्राप्त किया जाता है, | fd' को पुनः d' से गुणा करके fd'2 ज्ञात किया जाता है। इसके पश्चात् निम्न सूत्र की सहायता से मानक विचलन की गणना की जाती है
σ = \(\sqrt{\frac{\sum \mathrm{fd}^{\prime 2}}{\Sigma \mathrm{f}}-\left(\frac{\sum \mathrm{fd}^{\prime}}{\sum \mathrm{f}}\right)^{2}}\) × C

RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 6 परिक्षेपण के माप

→ परिक्षेपण के निरपेक्ष तथा सापेक्ष माप-परास, चतुर्थक विचलन, माध्य विचलन, मानक विचलन आदि सभी परिक्षेपण के निरपेक्ष माप हैं, जो कभी-कभी निर्वचन में कठिन होते हैं। निरपेक्ष माप विचरण के प्रसरण के बारे में भ्रामक अनुमान दे सकते हैं, विशेष रूप से तब जब औसतों में महत्वपूर्ण अन्तर हो। अतः परिक्षेपण के सापेक्ष मान प्रयुक्त किए जाते हैं। प्रत्येक निरपेक्ष मान के लिए एक संबद्ध प्रतिरूप होता है जो निम्न प्रकार हैं
RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 6 परिक्षेपण के माप 1
→ लारेंज वक्र (Lorenz Curve):
लारेंज वक्र अपकिरण का माप ज्ञात करने की एक बिन्दु रेखीय विधि है। लारेंज वक्र का प्रयोग संचयी रूप में व्यक्त सूचनाओं की परिवर्तनशीलता की मात्रा को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह दो या दो से अधिक वितरणों की परिवर्तनशीलता की तुलना में विशेष उपयोगी है। इस विधि में यदि लारेंज वक्र समान वितरण की रेखा से अधिक पास है तो विचरण कम होगा और यदि वक्र इस रेखा से दूर है तो विचरण अधिक होगा। इस वक्र की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसके द्वारा वितरण का संख्यात्मक माप ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

Prasanna
Last Updated on July 4, 2022, 10:53 a.m.
Published July 4, 2022