RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

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RBSE Class 11 Economics Chapter 5 Notes केंद्रीय प्रवृत्ति की माप 

→ प्रस्तावना:
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप आँकड़ों की संक्षिप्त रूप में व्याख्या करने की संख्यात्मक विधि है। किसी समंक श्रेणी की लगभग समस्त इकाइयों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक सरल संख्या को सांख्यिकीय माध्य कहते हैं । श्रेणी की केन्द्रीय प्रवृत्ति को व्यक्त करने वाले प्रतिनिधि मूल्य को ही केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप या माध्य कहते हैं। केन्द्रीय प्रवृत्ति या औसतों के कई सांख्यिकीय माप हैं। तीन सर्वाधिक प्रचलित औसत निम्नलिखित हैं

  • समान्तर माध्य,
  • मध्यिका,
  • बहुलक।

दो अन्य प्रकार के औसत और भी हैं, जैसे-ज्यामितीय माध्य तथा हरात्मक माध्य, जो विशिष्ट परिस्थितियों में उपयुक्त होते हैं।

→ समान्तर माध्य:
समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला माप है। समान्तर माध्य को सभी प्रेक्षणों के मूल्यों के योग को उनकी कुल संख्याओं से विभाजन के रूप में परिभाषित किया जाता है। समान्तर माध्य को X̄ से निर्देशित किया जाता है।
समान्तर माध्य का परिकलन मोटे तौर पर निम्न दो श्रेणियों के अन्तर्गत किया जा सकता है
(क) असमूहित आँकड़ों की श्रृंखला के लिए समान्तर माध्य विधि
(i) प्रत्यक्ष विधि-समान्तर माध्य ज्ञात करने हेतु श्रेणी के सभी मूल्यों का योग (ΣX) ज्ञात कर उसे प्रेक्षणों की कुल संख्या (N) से विभाजित किया जाता है, इसका सूत्र निम्न प्रकार है
X̄ = \(\frac{\Sigma X}{N}\)

(ii) कल्पित माध्य विधि-इस रीति में श्रेणी के मूल्यों में से किसी भी मूल्य को कल्पित माध्य (A) माना जाता है। श्रेणी के प्रत्येक मूल्य (X) में से कल्पित माध्य (A) को घटाकर विचलन (d) ज्ञात किये जाते हैं तथा उनका योग (2d) ज्ञात करते हैं। इस विधि में समान्तर माध्य की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है
X̄ = A + \(\frac{\Sigma \mathrm{d}}{\mathrm{N}}\)
(यहाँ X̄ = समान्तर माध्य, N = पदों की कुल संख्या, 2d = कतिपय माध्य से लिये गये विचलनों का योग, A = कल्पित माध्य है।)
कल्पित माध्य से लिए गए सभी विचलनों को समापवर्तक 'C' से विभाजित करके और भी सरल बनाया जा सकता है। इसे पद विचलन विधि कहते हैं।

(ख) समूहित आँकड़ों के लिए समान्तर माध्य का परिकलनविविक्त श्रृंखला अथवा खण्डित श्रेणी
(i) प्रत्यक्ष विधि-इस विधि में प्रत्येक प्रेक्षण की बारम्बारता को प्रेक्षण के मान से गुणा कर प्राप्त मानों को जोड़ा जाता है एवं उन्हें बारम्बारताओं के कुल योग द्वारा विभाजित किया जाता है। विविक्त श्रृंखला में प्रत्यक्ष विधि में निम्न सूत्र की सहायता से समान्तर माध्य ज्ञात किया जाता है
X̄ = \(\frac{\Sigma \mathrm{fx}}{\Sigma \mathrm{f}}\)
(यहाँ Σfx = चरों के उत्पाद तथा बारम्बारताओं के गुणनफल का योग, Σf = बारम्बारताओं का योग, X̄ = समान्तर माध्य है।)

(ii) कल्पित माध्य विधि-विविक्त श्रृंखला में कल्पित माध्य विधि में श्रेणी के मूल्यों में से किसी भी मूल्य को कल्पित माध्य (A) माना जाता है। श्रेणी के प्रत्येक मूल्य (X) में से कल्पित माध्य (A) घटाकर विचलन d =X - A ज्ञात किए जाते हैं। विचलनों (d) को आवृत्तियों (f) से गुणा करके उनका योग (Σfd) ज्ञात किया जाता है तथा उसे बारम्बारताओं के कुल योग द्वारा विभाजित किया जाता है। इस विधि में अग्र सूत्र द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात किया जाता है
X̄ = A + \(\frac{\Sigma f \mathrm{~d}}{\Sigma \mathrm{f}}\)

(ii) पद-विचलन विधि-इसमें विचलनों को समापवर्तक 'C' द्वारा विभाजित किया जाता है, जो कि परिकलन को सरल बना देता है। यहाँ संख्यात्मक अंकों के आकार को घटा कर परिकलन को सरल बनाने के लिए d' = \(\frac{\mathrm{d}}{\mathrm{C}}=\frac{\mathrm{X}-\mathrm{A}}{\mathrm{C}}\) का आकलन किया जाता है। इस विधि के अनुसार समान्तर माध्य ज्ञात करने का निम्न सूत्र है
X̄ = A + \(\frac{\Sigma \mathrm{fd}^{\prime}}{\Sigma \mathrm{f}}\) × C

RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप 

→ संतत श्रृंखला अथवा अखण्डित श्रेणी
(i) प्रत्यक्ष विधि:
श्रेणी के प्रत्येक वर्ग की दोनों सीमाओं का योग कर दो का भाग दिया जाता है तथा मध्य मूल्य (m) ज्ञात किया जाता है। इसके पश्चात् समान्तर माध्य गणना की प्रक्रिया व सूत्र खण्डित अथवा विविक्त श्रेणी के समान ही रहता है। सूत्र निम्न प्रकार है
X̄ = \(\frac{\Sigma \mathrm{fm}}{\Sigma \mathrm{f}}\)
(यहाँ = X̄ = समान्तर माध्य, Σfm = बारम्बारता एवं मध्य मूल्य के गुणनफलों का योग, Σf = बारम्बारताओं का योग है।)

(ii) कल्पित माध्य विधि:
श्रेणी के प्रत्येक वर्ग के मध्य मूल्य ज्ञात करने के पश्चात् समान्तर माध्य की गणना, प्रक्रिया व सूत्र विविक्त अथवा खण्डित श्रेणी के समान ही है।
सूत्र इस प्रकार होगा- X̄ = A + \(\frac{\Sigma \mathrm{fd}}{\Sigma \mathrm{f}}\)

(iii) पद-विचलन विधि:
श्रेणी के प्रत्येक वर्ग के मध्य मूल्य ज्ञात करने के पश्चात् समान्तर माध्य की गणना, प्रक्रिया व सूत्र विविक्त अथवा खण्डित श्रेणी के समान ही होगा। इसमें समान्तर माध्य ज्ञात करने का निम्न सूत्र होगा
X̄ = A + \(\frac{\Sigma \mathrm{fd}^{\prime}}{\Sigma \mathrm{f}}\) × C
भारित समान्तर माध्य: भारित समान्तर माध्य को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
\(\frac{\mathrm{W}_{1} \mathrm{X}_{1}+\mathrm{W}_{2} \mathrm{X}_{2}+\ldots \ldots+\mathrm{W}_{\mathrm{n}} \mathrm{X}_{\mathrm{n}}}{\mathrm{W}_{1}+\mathrm{W}_{2}+\ldots \ldots+\mathrm{W}_{\mathrm{n}}}=\frac{\Sigma_{\mathrm{Wx}}}{\Sigma \mathrm{w}}\)
अथवा न \(\frac{\Sigma_{\mathrm{XW}}}{\Sigma_{\mathrm{W}}}\)

→ मध्यिका:
मध्यिका उस चर का स्थितिक मान है, जो वितरण को दो समान भागों में बाँट देता है। एक भाग के अन्तर्गत सभी मान मध्यिका मान से अधिक या उसके बराबर होते हैं और दूसरे भाग के सभी मान उससे कम या उसके बराबर होते हैं। जब आँकड़ा समुच्चय को, उनके परिमाण के क्रम में व्यवस्थित किया जाये तो मध्यवर्ती मान मध्यिका होता है। मध्यिका का अभिकलन-आँकड़ों को क्रमशः सबसे छोटे से सबसे बड़े की ओर व्यवस्थित करते हुए मध्यिका को मध्य मान द्वारा आसानी से अभिकलित किया जा सकता है।
(i) व्यक्तिगत श्रेणी में मध्यिका की गणना-इसमें सर्वप्रथम श्रेणी को मूल्यों के बढ़ते हुए या घटते हुए क्रम में लिखा जाता है तथा मूल्यों के साथ क्रम-संख्या भी लिखी जाती है। इसके पश्चात् निम्न सूत्र द्वारा मध्यिका संख्या की गणना की जाती है
मध्यिका संख्या = \(\left(\frac{\mathrm{N}+1}{2}\right)\) वें मद का आकार
यहाँ N = मदों की संख्या है।
मध्यिका संख्या के सामने का मूल्य मध्यिका होगा।

(ii) विविक्त श्रृंखला अथवा खण्डित श्रेणी में मध्यिका की गणना:
इस श्रेणी में भी सर्वप्रथम एक आवृत्ति में दूसरी आवृत्ति को जोड़कर संचयी आवृत्ति (cf) ज्ञात की जाती है। इसके पश्चात् अग्र सूत्र की सहायता से मध्यिका संख्या की गणना की जाती है
मध्यिका संख्या = \(\left(\frac{\mathrm{N}+1}{2}\right)\) वीं इकाई यहाँ N = आवृत्तियों का योग है।
मध्यिका की यह इकाई ऊपर से जिस संचयी आवृत्ति में आती है उसके सामने वाले मूल्य को ही मध्यिका मूल्य कहेंगे।

(ii) संतत श्रृंखला अथवा अखण्डित श्रेणी में मध्यिका की गणना-संतत श्रृंखला में भी सर्वप्रथम एक आवृत्ति में दूसरी आवृत्ति को जोड़कर संचयी आवृत्ति ज्ञात की जाती है। इसके पश्चात् निम्न सूत्र द्वारा मध्यिका संख्या ज्ञात की जाती है = \(\frac{\mathrm{N}}{2}\) वाँ मद। मध्यिका संख्या ऊपर से जिस संचयी आवृत्ति में आती है उसके सामने वाला वर्ग ही मध्यिका वर्ग होता है। मध्यिका वर्ग की सहायता से मध्यिका का मूल्य निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाएगा
मध्यिका = L + \(\frac{N / 2-c . f}{f}\) × h
यहाँ L = मध्यिका वर्ग की निम्न सीमा है,
c.f. = मध्यिका वर्ग के पूर्ववर्ती वर्ग की संचयी बारम्बारता है,
f = मध्यिका वर्ग की बारम्बारता है,
h = मध्यिका वर्ग के अन्तराल का परिमाण है।

→ चतुर्थक: चतुर्थक वे माप हैं, जो आँकड़ों को चार बराबर भागों में विभाजित करते हैं और प्रत्येक भाग में बराबर संख्या में प्रेक्षण दिए होते हैं । यहाँ पर मुख्य रूप से तीन चतुर्थक प्रचलित हैं-प्रथम चतुर्थक या निम्न चतुर्थक, द्वितीय चतुर्थक अथवा मध्यिका तथा तृतीय चतुर्थक अथवा उच्च चतुर्थक।

→ शतमक:
शतमक वितरण को 100 बराबर भागों में विभाजित करता है। इस प्रकार हमें 99 विभाजक स्थितियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें P1, P2, P3, .........., P99 द्वारा दर्शाया जाता है। इसमें P50 मध्यिका होती है।

→ चतुर्थकों का परिकलन:
चतुर्थक की अवस्थिति ज्ञात करने की विधि ठीक वैसी ही है जैसी कि व्यष्टिगत एवं विविक्त श्रृंखलाओं में मध्यिका की थी। किसी क्रमबद्ध श्रृंखला में Q1 एवं Q3 के मान निम्नलिखित सूत्र (सिद्धान्त) से प्राप्त किए जा सकते हैं, जिसमें N प्रेक्षणों की कुल संख्या है और

Q1 = \(\left(\frac{\mathrm{N}+1}{4}\right)\) वें मद का आकार है।
Q3 = \(\frac{3(\mathrm{~N}+1)}{4}\) वें मद का आकार है।

RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 5 केंद्रीय प्रवृत्ति की माप

→ बहुलक:
बहुलक शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द 'ला मोड' से व्युत्पन्न है, जो वितरण के सर्वाधिक प्रचलित मानों का द्योतक है, क्योंकि यह श्रृंखला में सबसे अधिक बार दोहराया जाता है। बहुलक सर्वाधिक प्रेक्षित आँकड़ा मान है। इसे M के द्वारा दर्शाया जाता है। अत: बहुलक मूल्य वह मूल्य है जो श्रेणी में सबसे अधिक बार आता है।

बहुलक का अभिकलन
(i) व्यक्तिगत श्रेणी-व्यक्तिगत श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने की कई विधियाँ हैं। सामान्यतः व्यक्तिगत श्रेणी में समंक माला के विभिन्न मूल्यों में जो मूल्य सबसे अधिक बार आता है, वह बहुलक मूल्य माना जाता है।

(ii) विविक्त श्रृंखला अथवा खण्डित श्रेणी में बहुलक-खण्डित श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने की दो प्रमुख विधियाँ हैं-एक निरीक्षण विधि तथा समूहन रीति।

(iii) संतत श्रृंखला अथवा अखण्डित श्रेणी में बहुलक-सर्वप्रथम निरीक्षण द्वारा बहुलक वर्ग निश्चित कर लिया जाता है। यदि आवृत्तियाँ नियमित विधि तथा अनियमित हों तो समीकरण द्वारा बहुलक वर्ग का निर्धारण किया जाता है। इसके पश्चात् निम्न सूत्र द्वारा बहुलक ज्ञात किया जाता है
M0 = \(\frac{D_{1}}{D_{1}+D_{2}}\) × h या
L1 + \(\frac{\mathbf{f}_{1}-\mathrm{f}_{0}}{2 \mathrm{f}_{1}-\mathrm{f}_{0}-\mathrm{f}_{2}}\) × i
यहाँ L = बहुलक की निम्न सीमा, D1 = बहुलक वर्ग की बारम्बारता और बहुलक वर्ग के पूर्ववर्ती वर्ग की बारम्बारता के बीच का अन्तर, D2 = बहुलक वर्ग की बारम्बारता और बहुलक वर्ग के परवर्ती वर्ग की बारम्बारता के बीच का अन्तर, h = वितरण का वर्ग अन्तराल, L1 = बहुलक की निचली सीमा, f1 = बहुलक की आवृत्ति, f0 = बहुलक वर्ग से तुरन्त पहले की आवृत्ति, f2 = बहुलक वर्ग के तुरन्त बाद वाले वर्ग की आवृत्ति, i = वर्ग अन्तराल ।

समान्तर माध्य, मध्यिका एवं बहुलक की सापेक्षिक स्थिति-मान लीजिए यदि समान्तर माध्य = Me, मध्यिका = M; तथा बहुलक = M0 हो तो इन तीनों की सापेक्षिक स्थिति निम्न प्रकार व्यक्त करेंगे
Me > Mi > M0
दो माध्यों का मूल्य ज्ञात होने पर तीसरे माध्य का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है । इस हेतु निम्न सूत्रों को काम में लिया जाता है
Z = 3M – 2X̄
M = \(\frac{1}{3}\)(2X̄ + Z)
X̄ = \(\frac{1}{2}\)(3M - Z)

Prasanna
Last Updated on July 4, 2022, 10:48 a.m.
Published July 4, 2022