These comprehensive RBSE Class 11 Economics Studies Notes Chapter 4 निर्धनता will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Economics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Economics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Economics Notes to understand and remember the concepts easily.
→ प्रस्तावना:
निर्धनता का निवारण करना तथा न्यूनतम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना हमारी पंचवर्षीय योजनाओं का प्रमुख लक्ष्य रहा है। इस हेतु सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाए गए। किन्तु आज भी देश में लगभग 30 करोड़ लोग हैं जो अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं।
→ निर्धन कौन है?
निर्धन वे लोग होते हैं जो अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं, जिनके पास आवास की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होती है, जिन्हें दोनों समय का भोजन भी प्राप्त नहीं होता है तथा जिन्हें बुनियादी साक्षरता एवं कौशल भी प्राप्त नहीं होता। निर्धनों की अनेक समस्याएँ पाई जाती हैं। उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता, भोजन के अभाव में उन्हें अनेक गंभीर बीमारियाँ लग जाती हैं। निर्धन लोग जीवन भर ऋणग्रस्त रहते हैं। अधिकांश निर्धनों को बिजली एवं स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। निर्धन लोग ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं मजदूरी पर निर्भर रहते हैं।
→ निर्धनों की पहचान कैसे होती है?:
भारत में सर्वप्रथम निर्धनता रेखा की अवधारणा का विचार दादाभाई नौरोजी ने दिया। उन्होंने 'जेल की निर्वाह लागत' का आकलन किया। भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जनसंख्या आकलन हेतु योजना आयोग ने 1962 में एक अध्ययन दल का गठन किया। 1979 में एक अन्य दल 'प्रभावी उपयोग मांग और न्यूनतम आवश्यकता अनुमानन कार्य बल' का गठन किया तथा वर्ष 1989 व 2005 में भी 'विशेषज्ञ दल' का गठन किया गया। निर्धनता के आधार | पर जनसंख्या को दो भागों में बांटा जा सकता है-निर्धन तथा गैर निर्धन; जिसमें निर्धन को भी पूर्णतः निर्धन, बहुत निर्धन एवं निर्धन उपवर्ग में बाँटा गया।
(i) निर्धनता का वर्गीकरण:
निर्धनता का वर्गीकरण कई आधार पर किया जा सकता है। एक विधि के अनुसार निर्धनता के दो प्रकार हैं-सदा निर्धन और सामान्यतः निर्धन। इन दोनों वर्गों को चिरकालीन निर्धन वर्ग का नाम भी दिया जा सकता है। एक अन्य वर्गीकरण के अनुसार निर्धनता के दो प्रकार हैं-निरन्तर निर्धन तथा यदाकदा निर्धन । इन दोनों वर्गों को अल्पकालीन निर्धन वर्ग का नाम भी दिया जा सकता है।
(ii) निर्धनता रेखा:
निर्धनता को मापने की कई विधियाँ हैं। एक विधि के अनुसार न्यूनतम कैलोरी उपभोग के आधार पर निर्धनता का मापन किया जाता है। इसके अनुसार जिन व्यक्तियों का प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी से कम उपभोग है उन्हें निर्धनता रेखा से नीचे माना जाता है। वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा को ग्रामीण क्षेत्रों में 816 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोग तथा शहरी क्षेत्रों में 1000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोग के रूप में परिभाषित किया गया। कई विद्वान निर्धनता की पहचान हेतु मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय उपयुक्त माप नहीं मानते। अनेक कारक और भी हैं जिनका निर्धनता से सम्बन्ध है। निर्धनता के आंकलन हेतु सरकारी विधियों की सीमाओं के कारण कई विद्वानों ने वैकल्पिक विधियों का भी प्रयोग किया है जैसे अमर्त्य सेन का 'सेन सूचकांक', इसके अतिरिक्त 'निर्धनता अंतराल सूचकांक', 'वर्गित निर्धनता अंतराल' आदि।
→ भारत में निर्धनों की संख्या
भारत में पिछले कुछ वर्षों में निर्धन लोगों की संख्या में निरन्तर कमी आ रही है। भारत में वर्ष 1973-74 में निर्धनों की कुल संख्या 320 मिलियन से अधिक थी, यह कम होकर वर्ष 2011-12 में 270 मिलियन हो गई। वर्ष 1973-74 में देश की 55 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे थी वह वर्ष 2011-12 में 22 प्रतिशत रह गई। भारत की अधिकांश निर्धनता ग्रामीण क्षेत्रों में है। देश में निर्धनता अनुपात में धीमी गति से कमी हो रही है। किन्तु शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की संख्याओं का अन्तर कम नहीं हुआ है। भारत की बड़ी निर्धन जनसंख्या केवल छः राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, प. बंगाल, तमिलनाडु व ओडिशा में बसी है।
→ निर्धनता क्यों होती है?
भारत में निर्धनता के अनेक कारण हैं। निर्धनता के निम्न कारण हैं
इसके अलावा देश में व्याप्त निम्न समस्याएँ भी निर्धनता को बढ़ाती हैं-
भारत में औपनिवेशिक शासन के कारण भी निर्धनता में निरन्तर वृद्धि हुई थी; क्योंकि औपनिवेशिक शासन की अधिकांश नीतियाँ भारतीयों का शोषण करने की थीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भी अनेक कारणों से देश में निर्धनता बनी हुई है; जैसे— भूमि सुधार कार्यक्रमों का सफलता से क्रियान्वयन नहीं होना, छोटे किसान एवं उनके छोटे खेत, भूमि का कम उपजाऊ एवं वर्षा पर निर्भर होना, रोजगार के वैकल्पिक अवसरों का अभाव, सूखा एवं प्राकृतिक आपदाएँ आदि।
→ निर्धनता निवारण के लिए नीतियाँ और कार्यक्रम
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में निर्धनता उन्मूलन प्रमुख उद्देश्य रहा है। निर्धनता उन्मूलन का लक्ष्य प्रायः सभी पंचवर्षीय योजनाओं का रहा है, प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं का यह मुख्य लक्ष्य रहा। वर्ष 1970 में निर्धनता उन्मूलन हेतु 'काम के बदले अनाज' कार्यक्रम चलाया गया। इसके पश्चात् कई स्वरोजगार कार्यक्रम यथा ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री की रोजगार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना आदि चलाए गए।
ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की गारन्टी प्रदान करने वाला महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 जारी किया गया जिसमें प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक इच्छुक वयस्क को वर्ष में 100 दिनों के लिए अकुशल शारीरिक श्रम कार्य उपलब्ध करवाने की गारण्टी दी गई। इसके अतिरिक्त निर्धनों के खाद्य उपभोग और पोषण स्तर को प्रभावित करने वाले तीन कार्यक्रम सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, एकीकृत बाल विकास योजना तथा मध्यावकाश भोजन योजना प्रमुख रहे। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, वाल्मीकि अम्बेडकर आवास योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम आदि भी चलाए जा रहे हैं। सरकार ने गरीब लोगों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने की भी कुछ योजनाएँ प्रारम्भ की हैं। वर्ष 2014 में प्रधानमन्त्री जन-धन योजना प्रारम्भ की गई।
→ निर्धनता निवारणं कार्यक्रम:
एक समीक्षा स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् निर्धनता निवारण हेतु चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के फलस्वरूप देश में निर्धनता में कमी आई है। किन्तु इन कार्यक्रमों से कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं हुए। आज भी निर्धनों को बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। इन कार्यक्रमों का पूरा लाभ निर्धनों को नहीं मिला तथा इन कार्यक्रमों से आशान्वित लाभ प्राप्त नहीं हो पाए हैं।