RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990)

Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990) Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1. 
किसी देश की आर्थिक प्रणाली अथवा अर्थव्यवस्था हो सकती है। 
(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था 
(ब) समाजवादी अर्थव्यवस्था 
(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990) 

प्रश्न 2. 
भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की अर्थव्यवस्था है। 
(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था 
(ब) समाजवादी अर्थव्यवस्था 
(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3. 
योजना आयोग का अध्यक्ष होता है। 
(अ) राष्ट्रपति 
(ब) मुख्यमन्त्री
(स) प्रधानमन्त्री
(द) गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक। 
उत्तर:
(स) प्रधानमन्त्री

प्रश्न 4. 
योजना आयोग की स्थापना की गई।
(अ) वर्ष 1947 में 
(ब) वर्ष 1950 में 
(स) वर्ष 1955 में 
(द) वर्ष 1960 में।
उत्तर:
(अ) वर्ष 1947 में 

प्रश्न 5. 
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का प्रमुख लक्ष्य है। 
(अ) संवृद्धि 
(ब) आधुनिकीकरण
(स) आत्मनिर्भरता 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(ब) आधुनिकीकरण

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प्रश्न 6. 
हरित क्रान्ति की विशेषता है। 
(अ) उच्च उत्पादकता वाले बीजों (HYV) का उपयोग 
(ब) रासायनिक उर्वरकों का उपयोग 
(स) कीटनाशकों का अधिक उपयोग 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 7. 
स्वतन्त्रता के समय व्यावसायिक दृष्टि से भारत की अधिकांश जनसंख्या किस क्षेत्र पर निर्भर थी। 
(अ) कृषि क्षेत्र पर 
(ब) उद्योग क्षेत्र पर 
(स) सेवा क्षेत्र पर 
(द) निर्माण क्षेत्र पर।
उत्तर:
(अ) कृषि क्षेत्र पर 

रिक्त स्थान वाले प्रश्ननीचे दिए गए वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

प्रश्न 1. 
वर्ष...........में प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में योजना आयोग का गठन किया गया था।
उत्तर:
1950 

प्रश्न 2. 
...........व्यवस्था में निजी सम्पत्ति का कोई स्थान नहीं होता है क्योंकि प्रत्येक वस्तु राज्य की होती है।
उत्तर:
समाजवादी 

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प्रश्न 3. 
भारतीय अर्थव्यवस्था एक...........अर्थव्यवस्था है।
उत्तर:
मिश्रित

प्रश्न 4. 
महालनोबिस ने...........में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आई.एस.आई.) की स्थापना की।
उत्तर:
कोलकाता

प्रश्न 5. 
अर्थव्यवस्था के विकास के साथ-साथ...........क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जाता है।
उत्तर:
सेवा

प्रश्न 6. 
स्वतन्त्रता के समय देश की...........प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित थी।
उत्तर:
6.75

सत्य / असत्य वाले प्रश्ननीचे दिए गए कथनों में सत्य / असत्य कथन छाँटिए:

प्रश्न 1. 
किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश ही विपणित अधिशेष कहलाता है।
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 2. 
औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 में उद्योगों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया। 
उत्तर:
असत्य 

प्रश्न 3. 
वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान सेवा क्षेत्रक का है। 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4. 
प्रशुल्क व कोटे से आयातों में वृद्धि होती है। 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5. 
भारतीय अर्थव्यवस्था एक समाजवादी अर्थव्यवस्था है।
उत्तर:
असत्य 

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प्रश्न 6. 
द्वितीय पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी।
उत्तर: 
असत्य 

सुमेलित करने वाले प्रश्ननिम्न को सुमेलित कीजिए:

प्रश्न 1. 

1. योजना आयोग का अध्यक्ष

(अ) कृषि क्षेत्रक

2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार

(ब) उच्च उत्पादकता वाले बीजों का प्रयोग

3. भारत की जी.डी.पी. में सर्वाधिक योगदान

(स) 65 प्रतिशत

4. भारत की जी.डी.पी. में सबसे कम योगदान

(द) प्रधानमन्त्री

5. हरित क्रान्ति की प्रभुख विशेषता

(य) महालनोबिस के विचार

6. 1990 में कृषि पर निर्भर जनसंख्या

(र) सेवा क्षेत्रक

उत्तर:

1. योजना आयोग का अध्यक्ष

(द) प्रधानमन्त्री

2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार

(य) महालनोबिस के विचार

3. भारत की जी.डी.पी. में सर्वाधिक योगदान

(र) सेवा क्षेत्रक

4. भारत की जी.डी.पी. में सबसे कम योगदान

(अ) कृषि क्षेत्रक

5. हरित क्रान्ति की प्रभुख विशेषता

(ब) उच्च उत्पादकता वाले बीजों का प्रयोग

6. 1990 में कृषि पर निर्भर जनसंख्या

(स) 65 प्रतिशत


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
पं. जवाहरलाल नेहरू भूतपूर्व सोवियत संघ की किस नीति के पक्षधर नहीं थे?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू सोवियत संघ की उस नीति के पक्षधर नहीं थे, जिसमें उत्पादन के सभी साधन सरकार के स्वामित्व के अन्तर्गत थे। 

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प्रश्न 2. 
आर्थिक प्रणाली अथवा अर्थव्यवस्था के प्रकारों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक प्रणाली अथवा अर्थव्यवस्था के तीन प्रकार हैं।

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था 
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था 
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 3. 
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन का निर्धारण किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन बाजार की शक्तियों पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 4. 
समाजवाद में उत्पादन एवं वितरण का निर्णय कौन करता है?
उत्तर:
समाजवाद में उत्पादन एवं वितरण का निर्णय सरकार करती है।

प्रश्न 5. 
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता था?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता था।

प्रश्न 6. 
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य क्या हैं?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य संवृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता एवं समानता हैं। 

प्रश्न 7. 
संवृद्धि का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
संवृद्धि का अर्थ है देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना। 

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प्रश्न 8. 
भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना किसके विचारों पर आधारित थी?
उत्तर:
भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना सांख्यिकीविद् प्रशान्तचन्द्र महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी।

प्रश्न 9. 
महालनोबिस ने किस संस्था की स्थापना की?
उत्तर:
महालनोबिस ने कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आई. एस. आई.) की स्थापना की।

प्रश्न 10. 
सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य से है।

प्रश्न 11. 
सहायिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उत्पादन कार्यों के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली मौद्रिक सहायता को सहायिकी कहा जाता है।

प्रश्न 12. 
प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर:
प्रशुलक लगाने पर आयातित वस्तु महँगी हो जाती है, जो वस्तु के प्रयोग को हतोत्साहित करती है।

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प्रश्न 13. 
भारत सरकार द्वारा भू-सुधार हेतु किए गए किन्हीं दो प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. जींदारी एवं जागीरदारी प्रथा का अन्त करना। 
  2. भूमि की अधिकतम सीमा का निर्धारण।

प्रश्न 14. 
मिश्रित अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह अर्थव्यवस्था जिसमें आर्थिक क्रियाओं पर सरकार एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है?

प्रश्न 15. 
हरित क्रान्ति में उच्च उत्पादकता बीजों (HYV) का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव किन खाद्यान्न फसलों पर हुआ?
उत्तर:
उच्च उत्पादकता बीजों (HYV) का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव गेहूँ एवं चावल की फसलों पर पड़ा।

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प्रश्न 16. 
हरित क्रान्ति के कोई दो सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. देश का खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना। 
  2. फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होना।

प्रश्न 17. 
भारत में हरित क्रान्ति का कोई एक नकारात्मक पहलू बताइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति के फलस्वरूप खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के बावजूद कृषि पर निर्भर जनसंख्या में कोई कमी नहीं आई। 

प्रश्न 18. 
आयात प्रतिस्थापन नीति का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
इस नीति का उद्देश्य वस्तुओं की पूर्ति आयात के बदले घरेलू उत्पादन द्वारा करना है।

प्रश्न 19. 
लघु उद्योगों का कोई एक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
लघु उद्योग श्रम प्रधान होने के कारण अधिक रोजगार अवसरों का सृजन करते हैं।

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प्रश्न 20. 
कृषि आगत से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कृषि आगत से तात्पर्य कृषि उत्पादन में प्रयुक्त किए जाने वाले संसाधनों से है जो कृषि उत्पादन में अपनी भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 21. 
भारत में आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया कब प्रारम्भ हुई?
उत्तर:
भारत में आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया 1 अप्रैल, 1951 से प्रारम्भ हुई।

प्रश्न 22. 
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की सार्थकता के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. समाजवादी समाज की स्थापना में सहायक, 
  2. निजी क्षेत्र के एकाधिकार व केन्द्रीयकरण पर नियन्त्रण।

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प्रश्न 23. 
आर्थिक नियोजन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुसार प्राथमिकताएँ निर्धारित कर संसाधनों का प्रयोग करना आर्थिक नियोजन है।

प्रश्न 24. 
समाजवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण का निर्णय कौन करता है?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण का निर्णय सरकार करती है।

प्रश्न 25. 
भारतीय योजना का निर्माता किसे माना जाता 
उत्तर:
प्रो. प्रशान्तचन्द्र महालनोबिस को भारतीय योजना का निर्माता माना जाता है।

प्रश्न 26. 
कृषि सहायिकी के विपक्ष में दो तर्क दीजिए। 
उत्तर:

  1. सरकारी कोष पर अनावश्यक बोझ पड़ता।
  2. निर्धन किसानों को इसका लाभ प्राप्त नहीं हुआ।

प्रश्न 27. 
कर्वे समिति का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर:
कर्वे समिति का सम्बन्ध ग्राम एवं लघु उद्योगों से हो?

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प्रश्न 28. 
आयात संरक्षण के दो प्रकार बताइए।
उत्तर:

  1. प्रशुल्क 
  2. कोटा। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर निजी स्वामित्व होता है। इसे बाजार अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है क्योंकि इस अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन करना है तथा उसका वितरण कैसे करना है, इसका निर्धारण बाजार की शक्तियों द्वारा होता है।

प्रश्न 2. 
मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था, वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आर्थिक क्रियाओं पर सरकार एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है अर्थात् सरकार तथा बाजार दोनों एक साथ तीन प्रश्नों के उत्तर देते हैं कि क्या उत्पादन किया जाए, किस प्रकार से उत्पादन हो तथा  उत्पादन का वितरण किस प्रकार किया जाए।

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प्रश्न 3. 
लघु उद्योगों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लघु उद्योगों की स्थापना हेतु काफी कम पूँजी की आवश्यकता होती है अतः इन्हें कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। ये ग्रामीण विकास का आधार होते हैं। इसके अतिरिक्त लघु उद्योगों में प्रायः श्रम-प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाता है अतः ये रोजगार के अधिक अवसर सृजित करते हैं।

प्रश्न 4. 
भारत सरकार ने लघु उद्योगों के संरक्षण हेतु क्या प्रयास किए?
उत्तर:
भारत सरकार ने लघु उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बचाने हेतु अनेक उत्पादों को लघु उद्योगों हेतु आरक्षित कर दिया, जिन्हें बड़े उद्योग उत्पादित नहीं करते थे। इसके अतिरिक्त सरकार ने लघु उद्योगों को कई प्रकार की रियायतें प्रदान की। लघु उद्योगों से कम उत्पाद शुल्क वसूल किया गया तथा इनके लिए कम ब्याज दरों पर ऋण की व्यवस्था भी की गई।

प्रश्न 5. 
देश के उद्योगों को आयातों की प्रतिस्पर्धा से संरक्षण हेतु सरकार द्वारा क्या उपाय अपनाए गए?
उत्तर:
सरकार द्वारा देश के उद्योगों को आयातों की प्रतिस्पर्धा से संरक्षण हेतु प्रशुल्क एवं कोटा की नीति अपनायी गई। प्रशुल्क के अन्तर्गत आयात वस्तुओं पर ऊँची दर से कर लगाया गया जिससे आयातित वस्तुएँ महंगी हो गई एवं आयात हतोत्साहित होते हैं। कोटा के अन्तर्गत आयातित वस्तु की आयात मात्रा निश्चित कर दी गई, उस वस्तु का उस निर्धारित सीमा से अधिक आयात नहीं किया जा सकता - है। इसके परिणामस्वरूप भी आयातों में कमी आई तथा देशी उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से संरक्षण मिलता है।

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प्रश्न 6. 
भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अत्यन्त पिछड़ी हुई थी, इसमें बेरोजगारी तथा निर्धनता की प्रमुख समस्याएँ थीं। उस समय देश में आर्थिक विषमताएँ व्याप्त थीं तथा देश आधारित संरचना के आधार पर भी अत्यन्त पिछड़ा हुआ था एवं आधुनिकीकरण  का अभाव था। उस समय देश में कृषि एवं उद्योगों की स्थिति भी काफी पिछड़ी हुई थी। अतः देश में इन सभी समस्याओं के साथ-साथ समाधान हेतु आर्थिक नियोजन की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 7. 
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 के अन्तर्गत उद्योगों को कितने भागों में वर्गीकृत किया गया?
उत्तर:
इस नीति के अन्तर्गत उद्योगों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया

  1. प्रथम वर्ग में वे उद्योग शामिल थे जिन पर राज्य का स्वामित्व था।
  2. द्वितीय वर्ग में वे उद्योग थे जिन पर सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व था।
  3. तृतीय वर्ग में वे उद्योग सम्मिलित थे जिन पर निजी स्वामित्व था। 

प्रश्न 8. 
क्या कीमतें वस्तुओं की उपलब्धता की संकेतक हैं?
उत्तर:
हाँ, कीमतें वस्तुओं की उपलब्धता की संकेतक हैं। यदि वस्तु की उपलब्धता कम हो जाती है तो वस्तु की कीमतों में वृद्धि हो जाती है। इसी प्रकार यदि वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ जाती है तो वस्तुओं की कीमतों में कमी आ जाती है। उदाहरण के लिए पैट्रोल की कीमत में वृद्धि इसकी कमी को दर्शाता है।

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प्रश्न 9.
समाजवादी अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें सभी आर्थिक क्रियाओं पर सरकार का स्वामित्व होता है। इस अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय सरकार द्वारा लिए जाते हैं। सरकार समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन करती है। सरकार का उद्देश्य आर्थिक लाभ के साथ-साथ समाज कल्याण भी होता है।

प्रश्न 10. 
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के संवृद्धि के लक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के संवृद्धि के लक्ष्य के अन्तर्गत उत्पादन व उत्पादन क्षमता में वृद्धि का लक्ष्य रखा जिसके फलस्वरूप देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो सके। साथ ही देश के अन्दर परिवहन, बैंकिंग आदि सेवाओं का विस्तार हो सके। अतः संवृद्धि लक्ष्य का तात्पर्य है कि देश में वस्तुओं एवं सेवाओं का अधिक से अधिक उत्पादन किया जाए।

प्रश्न 11. 
भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सेवा क्षेत्र के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की सेवाओं, यथा बैंकिंग, बीमा, संचार आदि को सम्मिलित किया जाता है। भारत में सेवा क्षेत्र का निरन्तर विस्तार हो रहा है। भारत में वर्ष 1950 - 51 में 17.2 प्रतिशत लोग सेवा क्षेत्र पर निर्भर थे जो वर्ष 1990 - 91 में बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गए। 1950 - 51 में देश के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्र का योगदान मात्र 28 प्रतिशत था वह वर्ष 1990 - 91 में बढ़कर 40.5 प्रतिशत हो गया।

प्रश्न 12. 
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अभिप्राय भारत में छठे दशक के मध्य कृषि उत्पादन में हुई भारी वृद्धि से लिया जाता है जो एक अल्प समय में उन्नत बीजों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग द्वारा सम्भव हुआ है। देश में कृषि के क्षेत्र में इस तकनीक द्वारा एकाएक उत्पादन में वृद्धि सम्भव हुई जिसके कारण इसे क्रान्ति का नाम दिया गया।

प्रश्न 13. 
हरित क्रान्ति के कोई चार सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप - फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
  2. हरित क्रान्ति के फलस्वरूप भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हो गया।
  3. हरित क्रान्ति से देश में सिंचाई सुविधाओं में विस्तार हुआ।
  4. हरित क्रान्ति से कृषकों की आय में वृद्धि हुई।

प्रश्न 14.
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि एवं कृषि से र सम्बद्ध क्रियाओं को शामिल किया जाता है। भारत में वर्ष 1950 - 51 में देश की लगभग 70.1 प्रतिशत जनसंख्या - कृषि पर निर्भर थी जो घटकर 1990 - 91 में 66.8 प्रतिशत हो गई। इसी प्रकार वर्ष 1950 - 51 में सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 59 प्रतिशत था जो घटकर 1990 - 91 में 34.9 प्रतिशत हो गया।

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प्रश्न 15. 
काश्तकारी सुधारों का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भारत में भूमि सुधारों के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों में काश्तकारी कानूनों में सुधार किया गया। इसे ही काश्तकारी सुधार कहा जाता है। इसके अन्तर्गत सबसे पहले लगान का न्यायोचित निर्धारण किया गया तथा उनकी वसूली को सरल बनाया गया। इसके अतिरिक्त काश्तकारों को भूमि के स्वामित्व के अधिकार प्रदान किये गए ताकि उन्हें आसानी से भूमि से बेदखल नहीं किया जा सके। काश्तकारों को भू-स्वामियों द्वारा बेदखली से सुरक्षा प्रदान करने हेतु विभिन्न राज्यों में पुनर्ग्रहण अधिकार यथासम्भव सीमित करने के प्रयास किए गए।

प्रश्न 16. 
भारत में कृषि क्षेत्रक में सुधार हेतु किए गए किन्हीं दो प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. जमींदारी एवं जागीरदारी प्रथा का अन्त-भारत में स्वतंत्रता के समय जमींदारी एवं जागीरदारी प्रथा प्रचलन में थी जिसमें कृषकों का अत्यधिक शोषण होता था। भारत में कृषि क्षेत्रक में सुधार लाने हेतु भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी एवं जागीरदारी प्रथा का अन्त किया गया।
  2. बिचौलियों का उन्मूलन-स्वतंत्रता के समय भारत में बिचौलियों के द्वारा कृषकों की अधिकांश उपज को हड़प लिया जाता था। अतः देश में भूमि सुधार कार्यक्रमों के अन्तर्गत बिचौलियों का उन्मूलन किया गया।

प्रश्न 17. 
भारत में हरित क्रान्ति को लागू करने के पीछे क्या कारण था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय देश की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी किन्तु कृषि की स्थिति अत्यन्त पिछड़ी हुई थी। कृषि में उत्पादन एवं उत्पादकता काफी नीची थी तथा कृषि में पुरानी तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर थी क्योंकि सिंचाई सुविधाओं का नितान्त अभाव था। इस कारण देश में कृषि क्षेत्र के विकास, उत्पादन में वृद्धि करने, उत्पादकता में वृद्धि करने, उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाने, सिंचाई सुविधाओं में विस्तार करने तथा उच्च उत्पादकता वाले बीजों का प्रयोग बढ़ाने हेतु हरित क्रान्ति को लागू किया गया।

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प्रश्न 18. 
भारत में हरित क्रान्ति से प्राप्त होने वाले कोई दो लाभ बताइए। 
उत्तर:
(1) फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि:हरित क्रान्ति के अन्तर्गत उच्च उत्पादकता वाले बीजों का उपयोग किया गया, सिंचाई सुविधाओं में विस्तार के प्रयास किए गए, उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि की गई तथा कीटनाशकों के उपयोग में भी वृद्धि की गई। इन सबके फलस्वरूप देश में फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई जिससे कृषकों की आय में वृद्धि हुई।

(2) खाद्यानों में आत्मनिर्भरता: हरित क्रान्ति में उन्नत एवं अधिक उपज देने वाले बीजों, उर्वरकों तथा अन्य कृषि आदानों का प्रयोग किया गया। इससे कम समय में तैयार होने वाली फसलों का विस्तार हुआ तथा देश खाद्यान्नों की दृष्टि से आत्म-निर्भर हो गया।

प्रश्न 19. 
भारत में हरित क्रान्ति की विभिन्न सफलताओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में हरित क्रान्ति की प्रमुख सफलताएँ निम्न प्रकार हैं।

  1. हरित क्रान्ति के फलस्वरूप विभिन्न फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई।
  2. हरित क्रान्ति से खाद्यान्नों के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई जिसके फलस्वरूप देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हो गया।
  3. हरित क्रान्ति से किसानों के विपणित अधिशेष में वृद्धि हुई।
  4. हरित क्रान्ति से खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ा जिससे खाद्यान्नों की कीमतों में कमी आई।
  5. हरित क्रान्ति से देश में खाद्यान्नों के सुरक्षित स्टॉक में वृद्धि हुई।
  6. सरकार द्वारा अनेक अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की गई।
  7. हरित क्रान्ति से अधिक उपज देने वाली फसलों का क्षेत्र विस्तार हुआ।
  8. हरित क्रान्ति से वैज्ञानिक कृषि को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 20. 
प्राथमिक क्षेत्रक तथा द्वितीयक क्षेत्रक में अन्तर बताइए।
उत्तर:
किसी भी अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि एवं कृषि सम्बद्ध क्रियाओं को शामिल किया जाता है। कृषि सम्बद्ध क्रियाओं में पशुपालन, वानिकी, मत्स्य पालन आदि को शामिल किया जाता है; जबकि द्वितीयक क्षेत्र में उन क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनके द्वारा किसी एक प्रकार की वस्तु को अन्य प्रकार की वस्तु में बदला जाता है। द्वितीयक क्षेत्र में मुख्य रूप से विनिर्माण एवं उद्योगों को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 21. 
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के कोई दो लक्ष्य बताइए।
उत्तर:
(1) संवृद्धि: संवृद्धि के लक्ष्य के अन्तर्गत देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया। इसमें देश में उत्पादन क्षमता में| वृद्धि कर राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना मुख्य लक्ष्य था।

(2) आधुनिकीकरण: आधुनिकीकरण के अन्तर्गत देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु नई तकनीकों के उपयोग में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया, साथ ही देश में सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन करने का लक्ष्य भी रखा गया।

प्रश्न 22. 
हरित क्रान्ति की कोई दो विफलताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) आर्थिक एवं सामाजिक विषमता: भारत में हरित क्रान्ति का लाभ मुख्य रूप से बड़े एवं सम्पन्न किसानों को ही मिला, छोटे किसानों को हरित क्रान्ति का अधिक लाभ नहीं मिल पाया। अतः हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश में आर्थिक एवं सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हुई है।

(2) क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि: हरित क्रान्ति का लाभ मुख्य रूप से कुछ सम्पन्न राज्यों को ही प्राप्त हुआ क्योंकि वहाँ की सरकार एवं कृषक सम्पन्न थे जबकि कुछ राज्यों को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुए। अत: हरित क्रान्ति से क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि हुई। 


प्रश्न 23. 
पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था में अन्तर बताइए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व होता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण, बाजार शक्तियों द्वारा तय होता है जबकि इसके विपरीत समाजवादी अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर सरकार का स्वामित्व होता है तथा वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के सम्बन्ध में निर्णय लोगों की आवश्यकताओं के आधार पर सरकार द्वारा लिया जाता है।

RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990)

प्रश्न 24. 
पूँजीवादी तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था में तुलना कीजिए।
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व होता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण, बाजार शक्तियों द्वारा तय होता है। जबकि मिश्रित अर्थव्यवस्था, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण है। इसमें देश की विभिन्न आर्थिक क्रियाओं पर सरकार एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है। उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय सरकार एवं बाजार दोनों द्वारा लिए जाते हैं।

प्रश्न 25. 
"कृषि सहायिकी का कोई औचित्य नहीं है।" इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
अथवा 
भारत में कृषि सहायिकी के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि सहायिकी का लाभ केवल सम्पन्न किसानों को ही मिला अतः कृषि सहायिकी का कोई औचित्य नहीं रहा। इसके अतिरिक्त निर्धन कृषकों को कृषि सहायिकी का अधिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। सहायिकी के कारण केवल सरकारी कोष पर ही अनावश्यक बोझ पड़ा है अत: कृषि सहायिकी को समाप्त कर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त वर्ष 1960 के दशक के अन्त तक देश में कृषि उत्पादकता की वृद्धि से भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हो गया था अतः सहायिकी का कोई औचित्य नहीं रहा है।

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प्रश्न 26. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में कृषि सहायिकी देने की क्या आवश्यकता थी? 
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारतीय कृषि अत्यन्त पिछड़ी हुई थी तथा कृषकों की आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त दयनीय थी अतः कषि क्षेत्र में सहायिकी देना अत्यन्त आवश्यक था। भारत में हरित क्रान्ति के अन्तर्गत छोटे किसानों को नई HYV प्रौद्योगिकी को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए कृषि सहायिकी आवश्यक थी। उर्वरकों का उपयोग करने हेतु कृषकों को उर्वरक सहायिकी देना आवश्यक था अन्यथा वे ऊँची कीमत पर उर्वरक खरीद कर उपयोग करने में समर्थ नहीं थे। इसके अतिरिक्त सहायिक़ी समाप्त करने से गरीब एवं अमीर के बीच आर्थिक असमानताओं में और अधिक वृद्धि हो जाती। अतः स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में कृषि सहायिकी देना आवश्यक था।

प्रश्न 27. 
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्रक में भूमि सुधार कार्यक्रमों की क्या आवश्यकता थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय देश में अधिकांश भूमि पर जमींदारों एवं जागीरदारों का आधिपत्य था तथा वे कृषकों का शोषण करते थे अत: भूमि सुधार आवश्यक था। इसके अतिरिक्त कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु कृषकों को भू-स्वामित्व सौंपना आवश्यक था जिसके लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों की आवश्यकता पड़ी। स्वतन्त्रता के समय कृषि में बिचौलियों द्वारा कृषकों का शोषण किया जाता था अत: उन बिचौलियों के उन्मूलन के लिए भूमि सुधारों की आवश्यकता हुई। स्वतंत्रता के समय भूमि के असमान वितरण के कारण आर्थिक असमानता व्याप्त थी अत: आर्थिक समानता के उद्देश्य की पूर्ति हेतु भूमि सुधार आवश्यक थे। इस प्रकार स्वतंत्रता के समय कृषि की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी तथा उस स्थिति में सुधार हेतु भूमि सुधार कार्यक्रम आवश्यक थे।

प्रश्न 28. 
भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के महत्त्व निम्न प्रकार हैं।

  1. सार्वजनिक उपक्रम समाजवादी समाज की स्थापना में सहायक हैं।
  2. सार्वजनिक उपक्रमों के फलस्वरूप देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
  3. सार्वजनिक उपक्रम देश के पिछड़े हुए एवं अविकसित क्षेत्रों के विकास में सहायक हैं।
  4. सार्वजनिक उपक्रम रोजगार अवसरों में वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  5. सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत एवं पूँजीगत उद्योगों का विकास होता है।
  6. सार्वजनिक उपक्रमों का राष्ट्र की सुरक्षा में भी महत्त्व है।
  7. सार्वजनिक उपक्रम राष्ट्र के कल्याण में योगदान देते हैं।

प्रश्न 29. 
योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
योजना इसकी व्याख्या करती है कि किसी देश के संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए। योजना के कुछ सामान्य तो कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं, जिनको एक निर्दिष्ट समयावधि में प्राप्त करना होता है। भारत में योजनाएँ पाँच वर्ष हेतु बनाई जाती हैं अतः इसे पंचवर्षीय योजना कहा जाता है। हमारे योजना के प्रलेखों में केवल पाँच वर्ष की योजना अवधि में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों का ही उल्लेख नहीं किया गया है अपितु उसमें आगामी 20 वर्षों में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों का भी उल्लेख होता है। इस दीर्घकालीन योजना को परिप्रेक्ष्यात्मक योजना कहते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि सभी योजनाओं। के सभी लक्ष्य समान रहें। 

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प्रश्न 30. 
प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का जन्म 1893 में कोलकाता में हुआ था। यह एक विख्यात सांख्यिकीविद् थे। सांख्यिकी विषय में उनके योगदान के कारण उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के विचारों पर ही आधारित थी। महालनोबिस ने कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की।

प्रश्न 31. 
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् नेताओं एवं |चिन्तकों ने आर्थिक विकास का कौनसा मार्ग अपनाया?
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् नेहरू तथा अन्य नेताओं और चिन्तकों ने मिलकर स्वतंत्र भारत के लिए पूँजीवाद तथा समाजवाद के अतिवादी व्याख्या के किसी विकल्प की खोज की। बुनियादी तौर पर यद्यपि उन्हें समाजवाद से सहानुभूति थी किन्तु उन्होंने ऐसी आर्थिक प्रणाली अपनाई जो उनके विचारों में समाजवाद की श्रेष्ठ विशेषताओं से युक्त, किन्तु कमियों से मुक्त थी। इसके अनुसार भारत एक ऐसा समाजवादी समाज होगा, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्रक एक सशक्त क्षेत्रक होगा, जिसके अन्तर्गत निजी सम्पत्ति और लोकतंत्र का भी स्थान होगा। सरकार अर्थव्यवस्था के लिए योजना बनायेगी। निजी क्षेत्रक को भी योजना प्रयास का एक अंग बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

प्रश्न 32. 
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के आधुनिकीकरण के लक्ष्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में आधुनिकीकरण पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य लक्ष्य है। वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादकों को नई-नई प्रौद्योगिकी अपनानी पड़ती है, नई प्रौद्योगिकी को अपनाना ही आधुनिकीकरण है। आधुनिकीकरण केवल नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना भी है, जैसे यह स्वीकार करना कि महिलाओं का अधिकार भी पुरुषों के समान होना चाहिए। परम्परागत समाज में नारी का कार्यक्षेत्र घर की सीमाओं तक सीमित मान लिया जाता है। आधुनिक समाज में नारी की प्रतिभाओं का घर से बाहर बैंकों, कारखानों, विद्यालयों आदि स्थानों पर प्रयोग किया जाता है और ऐसा करने वाला समाज ही अधिकांशतः समृद्ध होता है।

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प्रश्न 33. 
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोई राष्ट्र आधुनिकीकरण और आर्थिक संवृद्धि, अपने अथवा अन्य राष्ट्रों से आयातित संसाधनों के प्रयोग के द्वारा कर सकता है। भारत की प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में आत्मनिर्भरता को महत्व दिया गया, जिसका अर्थ है कि उन चीजों के आयात से बचा जाए, जिनका कि देश में ही उत्पादन संभव है। आत्मनिर्भरता का उद्देश्य अन्य देशों पर खाद्याना हेतु निर्भरता कम करने हेतु आवश्यक था। इसके अतिरिक्त यह आशंका भी थी कि आयातित खाद्यान्न, विदेशी प्रौद्योगिकी और पूंजी पर निर्भरता किसी न किसी रूप में हमारे देश की नीतियों में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ाकर हमारी संप्रभुता में बाधा डाल सकती थी अत: आत्मनिर्भरता आवश्यक है।

प्रश्न 34. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश के औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण क्यों थी?
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उद्योगपतियों के पास हमारी अर्थव्यवस्था के विकास हेतु उद्योग में निवेश करने के लिए अपेक्षित पूँजी नहीं थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय इतना बड़ा बाजार भी नहीं था, जिसमें उद्योगपतियों को मुख्य परियोजनाएं शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलता। इन्हीं कारणों से राज्य को आद्योगिक क्षेत्र को प्रोत्साहन देने में व्यापक भूमिका निभानी पड़ी तथा सरकार ने कई सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की। इसके अतिरिक्त भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिए द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योगों का नियंत्रण करेगी।

प्रश्न 35. 
लघु उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वर्ष 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति, जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता था, ने इस बात की संभावना पर विचार किया कि ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने हेतु लघु उद्योगों का प्रयोग किया जाए। लघु उद्योगों की किसी इकाई की परिसम्पत्तियों के लिए दिये जाने वाले अधिकतम निवेश के संदर्भ में दी जाती है। समय के साथ-साथ निवेश की यह सीमा परिवर्तित होती रही है। 1950 में लघु औद्योगिक इकाई उसे कहा जाता था, जो पाँच लाख रुपये का अधिकतम निवेश करती थी। वर्तमान में लघु उद्योगं हेतु अधिकतम निवेश की सीमा 25 लाख से पाँच करोड एवं सेवा क्षेत्र के लघु उद्योग हेतु यह सीमा 10 लाख से 2 करोड रुपये कर दी गई है।

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प्रश्न 36. 
भारत की आयात प्रतिस्थापन की नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इस नीति को आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है। इस नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू उत्पादन द्वारा पूर्ति करना है। उदाहरण के लिए, विदेश में निर्मित वाहनों का आयात करने के स्थान पर उन्हें भारत में ही निर्मित करने के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए। इस नीति के अनुसार सरकार द्वारा विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया गया।

प्रश्न 37. 
संरक्षण की नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संरक्षण की नीति से हमारा तात्पर्य हमारे घरेलू उद्योग - धन्धों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाते हुए संरक्षण प्रदान करना है। संरक्षण की नीति इस धारणा पर आधारित है कि विकासशील देशों के उद्योग अधिक विकसित देशों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं। यह माना जाता है कि यदि घरेलू उद्योगों को संरक्षण दिया जाता है, तो समय के साथ वे प्रतिस्पर्धा करना भी सीख लेंगे। भारत सरकार द्वारा संरक्षण की नीति के तहत प्रशुल्क एवं कोटा नीति द्वारा आयातों को नियन्त्रित कर घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया गया।

प्रश्न 38. 
भारत में उद्योगों हेतु लाइसेन्स प्रणाली के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् देश में उद्योगों की स्थापना हेतु पहले सरकार से लाइसेन्स लेना पड़ता था। किसी उद्योग को शुरू करने के लिए आवश्यक लाइसेन्स का कुछ औद्योगिक घरानों के द्वारा दुरुपयोग किया गया। बड़े उद्योगपति नई फर्म शुरू करने के लिए नहीं, बल्कि नए प्रतिस्पर्धियों को रोकने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर लेते थे। परमिट लाइसेंस राज के अत्यधिक नियमन के कारण कुछ फर्मे कार्यकुशल नहीं बन पाई। उद्योगपति अपने उत्पादन के विषय में विचार करने की अपेक्षा लाइसेन्स प्राप्त करने की कोशिश में सम्बन्धित मंत्रालयों में लॉबी बनाने में समय व्यतीत करते थे। 

प्रश्न 39. 
भारत में औद्योगिक विकास पर विभिन्न नीतियों के पड़ने वाले किन्हीं चार प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. विभिन्न नीतियों के फलस्वरूप देश के औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई। औद्योगिक क्षेत्र द्वारा प्रदत्त जी.डी.पी. का अनुमान वर्ष 1950 - 51 में 11.8 प्रतिशत था वह बढ़कर वर्ष 1990 - 91 में 24.6 प्रतिशत हो गया। 
  2. वर्ष 1950 - 51 से वर्ष 1990 - 91 के मध्य देश में औद्योगिक क्षेत्रक की वार्षिक संवृद्धि दर 6 प्रतिशत रही। 
  3. लघु उद्योगों के संवर्द्धन से उन लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए जिनके पास व्यवसाय में प्रवेश करने हेतु बड़ी मात्रा में पूंजी नहीं थी। 
  4. विदेशी प्रतिस्पर्धा के प्रति संरक्षण से उन इलेक्ट्रोनिकी व ऑटोमोबाइल क्षेत्रकों में देशी उद्योगों का विकास हुआ |जिनका विकास बिना संरक्षण के संभव नहीं था। 

निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
वर्ष 1950 से 1990 के मध्य भारत मे कृति त्र के विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर:
वर्ष 1950 से 1990 के मध्य भारत में कृषि क्षेत्र के विकास को स्पष्ट करें। 7 वृद्धि से है। इसमें देश में उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर व राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना मुख्य न लक्ष्य था।
(1) भू-सुधार: स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय कृषि व्यवस्था काफी पिछड़ी हुई थी अतः कृषि व्यवस्था में सुधार हेतु सरकार द्वारा अनेक भू-सुधार कार्यक्रम अपनाए गए। इसके अन्तर्गत सरकार ने जमींदार एवं जागीरदार प्रथा का अन्त किया तथा बिचौलियों का उन्मूलन किया। इसके अन्तर्गत काश्तकारी सुधारों में लगान का उचित नियमन किया गया तथा काश्तकारों को भूमि के मालिकाना हक प्रदान किए। सरकार ने इन भूमि सुधारों के अन्तर्गत अधिकतम भू-सीमा का निर्धारण किया। हालांकि देश में भू-सुधार कार्यक्रमों में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो पायी।

(2) आधुनिकीकरण: आधुनिकीकरण के अन्तर्गत न देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु नई तकनीकों के उपयोग में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया, साथ ही देश में सामाजिक  दृष्टिकोण में परिवर्तन करने का लक्ष्य भी रखा गया। इसके अतिरिक्त महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करने का प्रयास किया गया।

(3) आत्मनिर्भरता: पंचवर्षीय योजनाओं में देश को आत्मनिर्भर बनाना भी एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। इसके अन्तर्गत देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में इतनी वृद्धि करना है ताकि देश आत्मनिर्भर हो सके तथा इन वस्तुओं एवं सेवाओं हेतु अन्य देशों पर निर्भर न रहे। इसमें खाद्यान्न के लिए अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने का लक्ष्य रखा गया।

(4) समानता: पंचवर्षीय योजनाओं का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य समानता है। इसके अन्तर्गत सरकार योजना के माध्यम से देश में आर्थिक एवं सामाजिक समानता लाने का प्रयास कर रही है। क्योंकि केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के द्वारा ही जनसाधारण के जीवन में अधिक सुधार नहीं लाया जा सकता अत: इन सबके साथ आर्थिक एवं सामाजिक समानता आवश्यक है।

(5) अन्य लक्ष्य: उपर्युक्त लक्ष्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य निम्न प्रकार हैं-गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन, राष्ट्रीय आय में वृद्धि, आधारभूत उद्योगों का विस्तार, स्थायित्व के साथ विकास, जनसंख्या नियन्त्रण आदि।

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प्रश्न 2. 
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु नियोजन का मार्ग अपनाया। इस हेतु सरकार पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करती है। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य निम्न प्रकार हैं।

(1) संवृद्धि: संवृद्धि के लक्ष्य के अन्तर्गत देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया। संवृद्धि का अभिप्राय उत्पादक पूंजी के अधिक भंडार या परिवहन, बैंकिंग आदि सहायक सेवाओं का विस्तार या उत्पादक पूँजी तथा सेवाओं की दक्षता में वृद्धि से है। इसमें देश में उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना मुख्य लक्ष्य था।

(2) आधुनिकीकरण: आधुनिकीकरण के अन्तर्गत देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु नई तकनीकों के उपयोग में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया, साथ ही देश में सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन करने का लक्ष्य भी रखा गया। इसके अतिरिक्त महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करने का प्रयास किया गया।

(3) आत्मनिर्भरता: पंचवर्षीय योजनाओं में देश को आत्मनिर्भर बनाना भी एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। इसके अन्तर्गत देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में इतनी वृद्धि करना है ताकि देश आत्मनिर्भर हो सके तथा इन वस्तुओं एवं सेवाओं हेतु अन्य देशों पर निर्भर न रहे। इसमें खाद्यान्न के लिए अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने का लक्ष्य रखा गया।

(4) समानता: पंचवर्षीय योजनाओं का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य समानता है। इसके अन्तर्गत सरकार योजना के माध्यम से देश में आर्थिक एवं सामाजिक समानता लाने का प्रयास कर रही है। क्योंकि केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के द्वारा ही जनसाधारण के जीवन में अधिक सुधार नहीं लाया जा सकता अतः इन सबके साथ आर्थिक एवं सामाजिक समानता आवश्यक है।

(5) अन्य लक्ष्य: उपर्युक्त लक्ष्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य निम्न प्रकार हैं-गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन, राष्ट्रीय आय में वृद्धि, आधारभूत उद्योगों का विस्तार, स्थायित्व के साथ विकास, जनसंख्या नियन्त्रण आदि।

प्रश्न 3. 
औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 के विभिन्न प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 भारत में सरकार द्वारा उद्योगों पर नियन्त्रण एवं औद्योगिक विकास हेतु औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 की घोषणा की गई। यह प्रस्ताव ही द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बना। इन प्रस्तावों में सरकार के उद्योगों को तीन भागों में वर्गीकृत किया पहला, वे उद्योग जिन पर केवल राज्य का स्वामित्व था, दूसरा वे उद्योग जिन पर राज्य व निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व था तथा तृतीय वे उद्योग थे जिन पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व था।

सरकार ने निजी क्षेत्र पर नियन्त्रण करने हेतु लाइसेन्सिंग प्रणाली को अपनाया तथा साथ ही पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग खोलने वाले निजी उद्यमियों हेतु विभिन्न रियायतों एवं कर लाभों की घोषणा सरकार द्वारा की गई। इस प्रकार देश में सन्तुलित औद्योगिक विकास करने के प्रयास किए गए। साथ ही सरकार ने लाइसेंसिंग नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्र में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किया। इसके अतिरिक्त सरकार ने लघु उद्योगों के विकास हेतु भी अनेक प्रयास किये तथा कुछ उत्पादों को केवल लघु क्षेत्र हेतु आरक्षित किया गया।

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प्रश्न 4. 
भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में लघु उद्योगों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्त्व भारतीय अर्थव्यवस्था के औद्योगिक विकास में लघु उद्योगों का विशेष महत्व है। लघु उद्योगों में कम पूँजी की आवश्यकता पड़ती है अतः इन उद्योगों में कम पूंजी विनियोग कर अधिक उत्पादन संभव है। इसके अतिरिक्त कम पूंजी आवश्यकता के कारण इन उद्योगों की स्थापना शीघ्रता से तथा कहीं भी की जा सकती है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में भी इन उद्योगों का विशेष महत्व है। लघु उद्योग आय व सम्पत्ति का न्यायोचित वितरण करने में सहायक होते हैं।

लघु उद्योगों में कम पूंजी लगती है तथा इन उद्योगों में प्रायः श्रम प्रधान तकनीकों का प्रयोग किया जाता है अत: इन उद्योगों में कम पूँजी विनियोजित कर रोजगार के अधिक अवसर सृजित किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त लघु उद्योगों से राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तथा अर्थव्यवस्था का विकेन्द्रीकरण होता है। लघु एवं कुटीर उद्योगों के माध्यम से कृषि में लगे अतिरिक्त श्रमिकों को आसानी से नियोजित किया जा सकता है। इस प्रकार लघु उद्योग देश में गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में सहायक होते।

प्रश्न'5. 
"भारत में हरित क्रान्ति पूर्णतः सफल नहीं रही।" इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
अथवा 
हरित क्रान्ति की विभिन्न असफलताओं अथवा विफलताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति की विफलताएँ:
भारत में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप अनेक लाभ हुए किन्तु कुछ क्षेत्र में यह नीति असफल रही। हरित क्रान्ति की प्रमुख असफलताएँ अथवा विफलताएँ निम्न प्रकार हैं।
(1) आर्थिक एवं सामाजिक विषमता: भारत में हरित क्रान्ति का लाभ मुख्य रूप से बड़े एवं सम्पन्न किसानों को ही प्राप्त हुआ, छोटे किसान इन लाभों से वंचित ही रहे। अत: हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश में आर्थिक एवं सामाजिक विषमताओं में वृद्धि हुई है।

(2) क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि: हरित क्रान्ति का लाभ मुख्य रूप से कुछ सम्पन्न राज्यों को ही प्राप्त हुआ क्योंकि वहां की सरकार एवं कृषक सम्पन्न थे जबकि कुछ राज्यों को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ अत: हरित क्रान्ति से क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि हुई।

(3) कुछ फसलों तक ही सीमित: हरित क्रान्ति की सफलता केवल कुछ ही फसलों, जैसे-गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार तथा बाजरे तक ही सीमित रही। अन्य फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

(4) महंगे साधनों का प्रयोग: हरित क्रान्ति के अन्तर्गत महंगे बीजों, रासायनिक खाद तथा महंगे कीटनाशकों का उपयोग किया गया जिनका लाभ छोटे व गरीब किसानों को प्राप्त नहीं हुआ।

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प्रश्न 6. 
विभिन्न प्रकार की आर्थिक प्रणालियों को - स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
आर्थिक प्रणाली के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक प्रणालियों के प्रकार आर्थिक प्रणालियां मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती।
(1) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था: पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व होता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण बाजार शक्तियों द्वारा में तय होता है। अतः पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को बाजार अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है।

(2) समाजवादी अर्थव्यवस्था: समाजवादी में अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं पर सरकार का स्वामित्व होता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के सम्बन्ध में निर्णय सरकार द्वारा ही लिए जाते हैं। क्योंकि यह माना जाता है कि सरकार यह जानती है कि देश के लोगों के हित में क्या है? समाजवादी अर्थव्यवस्था में लोगों की वैयक्तिक इच्छाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया ए जाता है। समाजवादी व्यवस्था में निजी संपत्ति का कोई त | स्थान नहीं होता क्योंकि प्रायः प्रत्येक वस्तु राज्य के अधीन - होती है।

(3) मिश्रित अर्थव्यवस्था: मिश्रित अर्थव्यवस्था, नों पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण ही है। इसमें देश की विभिन्न आर्थिक क्रियाओं पर सरकार एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है। उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय सरकार एवं बाजार दोनों द्वारा लिए जाते हैं मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र उन वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध करवाता है, जिनका वह अच्छा उत्पादन कर सकता है तथा सरकार उन आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओ को उपलब्ध कराती है, जिन्हें निजी क्षेत्र उपलब्ध कराने में विफल रहता है।

प्रश्न 7. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा को क्यों अपनाया गया?
उत्तर:
भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ। भारत पर ब्रिटिश शासकों ने लगभग दो सौ वर्षों तक शासन किया तथा भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था स्वतंत्रता के समय काफी पिछड़ी हुई अवस्था में थी। स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे सम्मुख राष्ट्र के नव निर्माण की चुनौती थी। स्वतन्त्र भारत के नेताओं को अन्य बातों के साथ-साथ यह तय करना था कि हमारे देश में कौन-सी आर्थिक प्रणाली सबसे उपयुक्त रहेगी, जो केवल कुछ लोगों के लिए नहीं वरन् सर्व जनकल्याण के लिए कार्य करेगी। विभिन्न प्रकार की आर्थिक प्रणालियाँ हो सकती हैं।

जवाहरलाल नेहरू को समाजवाद का प्रतिमान सबसे अच्छा लगा किन्तु वे भूतपूर्व सोवियत संघ की उस नीति के पक्षधर नहीं थे, जिसमें उत्पादन के सभी संसाधन सरकार के स्वामित्व के अन्तर्गत थे। इसके अलावा पूँजीवाद भी - भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं था। नेहरू तथा स्वतंत्र भारत के अनेक नेताओं एवं चिन्तकों ने स्वतंत्र भारत के लिए पूँजीवाद तथा समाजवाद के अतिवादी व्याख्या के किसी विकल्प की खोज की। बुनियादी तौर पर यद्यपि उन्हें समाजवाद से सहानुभूति थी, किन्तु फिर भी उन्होंने ऐसी आर्थिक प्रणाली अपनाई जो उनके विचार में समाजवाद की श्रेष्ठ विशेषताओं से युक्त, किन्तु कमियों से मुक्त थी।

इसके अनुसार भारत एक ऐसा समाजवादी समाज होगा, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्रक एक सशक्त क्षेत्रक होगा, जिसके अन्तर्गत निजी सम्पत्ति और लोकतंत्र का भी स्थान होगा। सरकार अर्थव्यवस्था के लिए योजना बनायेगी। निजी क्षेत्रक को भी योजना प्रयास का एक अंग बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। अत: भारत में अर्थव्यवस्था की दशा को देखते हुए देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा को अपनाया गया था।

प्रश्न 8. 
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्रक के विकास हेतु किए भूमि सुधार की कमियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता के समय देश में कृषि क्षेत्रक की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी तथा कृषकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति भी काफी खराब थी। अतः देश में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्रक के विकास हेतु भूमि सुधार कार्यक्रम अपनाए गए। इसके अन्तर्गत कृषि क्षेत्रक |के विकास हेतु अनेक कार्य किए गए। किन्तु देश में भूमि सुधार कार्यक्रम पूरी तरह सफल नहीं हो पाए तथा इनमें कई कमियाँ रह गईं। देश में भूमि सुधार कार्यक्रमों की प्रमुख कमियाँ निम्न प्रकार हैं।
(1) भूमि सुधार कार्यक्रमों के तहत बिचौलियों का उन्मूलन कर समानता के लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति नहीं हो पाई थी।

(2) कानून की कमियों का लाभ उठाकर कुछ क्षेत्रों में बड़े जमींदारों एवं बड़े किसानों ने बहुत बड़े-बड़े भूखण्डों पर अपना स्वामित्व बनाए रखा।

(3) कुछ मामलों में काश्तकारों को बेदखल कर दिया गया और भू-स्वामियों ने स्वयं को किसान भू-स्वामी अर्थात् वास्तविक कृषक होने का दावा किया।

(4) कृषकों को भूमि का स्वामित्व मिलने के बाद भी निर्धनतम कृषि श्रमिकों को भूमि सुधारों से कोई लाभ नहीं हो पाया। 

(5) भूमि सुधार के तहत अधिकतम भूमि सीमा |निर्धारण कानून में भी बाधाएँ आई। बड़े जमींदारों ने इस कानून को न्यायालयों में चुनौती दी, जिसके कारण इसे लागू करने में देरी हुई। इस अवधि में अपनी भूमि निकट सम्बन्धियों आदि के नाम कराकर कानून से बच गए। कानून में भी अनेक कमियाँ थीं, जिनके द्वारा बड़े जमीदारों ने भूमि पर अधिकार बनाए रखने के लिए लाभ उठाया।

(6) कई प्रान्तों की सरकारें वास्तविक किसानों को भूमि देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध नहीं थीं अत: उन प्रान्तों में आज भी जोतों में भारी असमानता बनी हुई है।

RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 - 1990)

प्रश्न 9. 
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अपनायी गई भारत की व्यापार नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी, तकनीकी रूप से इस नीति को आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है। आयात प्रतिस्थापन का तात्पर्य आयात की जाने वाली वस्तुओं का अपने देश में ही उत्पादन करना है। इस नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू उत्पादन द्वारा पूर्ति करना है। उदाहरण के लिए, विदेश में निर्मित वाहनों का आयात करने के स्थान पर उन्हें भारत में ही निर्मित करने के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए।

इस नीतिके अनुसार, सरकार ने विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया। भारत में संरक्षण नीति के दो प्रकार रह एक प्रशुल्क तथा दूसरा कोटा। प्रशुल्क आयातित वस्तु पर लगाए जाने वाला कर है। प्रशुल्क लगाने से आयातित वस्तु अधिक मंहगी हो जाएगी तथा लोग उस वस्तु की कम मांग करेंगे तथा उस वस्तु का आयात कम होगा। कोटे में वस्तुओं की मात्रा निश्चित कर दी जाती है जिसे आयात किया जा सकता है।

कोटा एवं प्रशुल्क का प्रभाव यह होता है कि उनसे आयात नियन्त्रित हो जाते हैं और उनसे विदेशी प्रतिस्पर्धा से देशी फर्मों की रक्षा होती है। अतः भारत में व्यापार नीति के अन्तर्गत संरक्षण की नीति को अपनाया गया। संरक्षण की नीति इस धारणा पर आधारित है कि विकासशील देशों के उद्योग अधिक विकसित देशों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं। यह माना जाता है कि यदि घरेलू उद्योगों का संरक्षण किया जाता है तो समय के साथ वे प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं। हमारे योजनाकारों को यह आशंका थी कि यदि आयातों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाता है तो विलासिता की वस्तुओं के आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च होने की संभावना बढ़ जाती है। 1980 के दशक के मध्य से भारत ने निर्यात संवर्द्धन की नीति को अपनाया।


प्रश्न 10. 
भारत में औद्योगिक विकास पर विभिन्न नीतियों का क्या प्रभाव पड़ा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में अपनाई गई विभिन्न नीतियों का देश के औद्योगिक विकास पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ा है, जिसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. देश के औद्योगिक उत्पादन में इन नीतियों के फलस्वरूप वृद्धि हुई। औद्योगिक क्षेत्रक द्वारा प्रदत्त जी.डी.पी. का अनुमान वर्ष 1950 - 51 में 11.8 प्रतिशत था वह बढ़कर वर्ष 1990 - 91 में 24.6 प्रतिशत हो गया।
  2. वर्ष 1950 - 51 से 1990 - 91 में मध्य देश में औद्योगिक क्षेत्रक की वार्षिक संवृद्धि दर 6 प्रतिशत रही।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के कारण भारत का औद्योगिक क्षेत्रक विविधतापूर्ण बन गया एवं देश का तीव्र औद्योगिक विकास संभव हुआ।
  4. लघु उद्योगों के संवर्द्धन से उन लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए जिनके पास व्यवसाय में प्रवेश करने हेतु बड़ी मात्रा में पूँजी नहीं थी।
  5. विदेशी प्रतिस्पर्धा के प्रति संरक्षण से उन इलेक्ट्रोनिकी व ऑटोमोबाइल क्षेत्रकों में देशी उद्योगों का विकास हुआ जिनका विकास बिना संरक्षण के संभव नहीं था।
  6. वर्ष 1991 के पश्चात् देश में निजीकरण की नीति को अपनाया गया जिससे देश के औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला। भारत में अब कुछ क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी क्षेत्रों को निजी क्षेत्रक हेतु खोल दिया गया है।
  7. भारत में लाइसेन्स राज के अन्तर्गत उद्योगपतियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था, उन्हें लाइसेन्स प्राप्त करने में अनेक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं, लाइसेन्स प्रणाली की समाप्ति के पश्चात् देश में तीव्र औद्योगिक विकास को बल मिला है।
  8. प्रारंभ में आयात प्रतिस्थापन की नीति अपनाई गई। इससे हमारे घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिला तथा उनका पर्याप्त विकास हुआ।
  9. भारत में अपनाई गई निर्यात संवर्द्धन की नीति का भी देश के औद्योगिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा तथा निर्यात से जुड़े उद्योगों का तीव्र विकास हुआ।
Prasanna
Last Updated on July 13, 2022, 12:35 p.m.
Published July 12, 2022