Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
प्रश्न 1.
अंग्रेजी शासन से पूर्व भारत किन उद्योगों के उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में सुविख्यात था।
(अ) सूती व रेशमी वस्त्र
(ब) धातु आधारित शिल्प कलाएँ
(स) बहुमूल्य मणि रत्न आधारित शिल्पकलाएँ
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 2.
औपनिवेशिक काल में राष्ट्रीय आय के आकलनकर्ताओं में सम्मिलित थे।
(अ) दादाभाई नौरोजी
(ब) आर.सी. देसाई
(स) डॉ. वी,के.आर.वी. राव
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक काल में भारतीयों का मुख्य व्यवसाय।
(अ) कृषि
(ब) उद्योग
(स) सेवा
(द) विदेशी व्यापार।
उत्तर:
(अ) कृषि
प्रश्न 4.
औपनिवेशिक काल में भारतीय कृषि उत्पादकता की कमी हेतु उत्तरदायी कारण था।
(अ) प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर
(ब) सिंचाई सुविधाओं का अभाव
(स) उर्वरकों का नगण्य अभाव
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) सिंचाई सुविधाओं का अभाव
प्रश्न 5.
टाटा आयरन स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना।
(अ) 1901 में
(ब) 1907 में
(स) 1917 में
(द) 1921 में।
उत्तर:
(द) 1921 में।
प्रश्न 6.
औपनिवेशिक काल में निम्न में से कौनसा कार्यक्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत आता था।
(अ) रेल
(ब) विद्युत उत्पादन
(स) संचार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 7.
'सेवा क्षेत्र' किस क्षेत्र को कहते हैं।
(अ) प्राथमिक
(ब) द्वितीयक
(स) औद्योगिक
(द) तृतीयक
उत्तर:
(द) तृतीयक
प्रश्न 8.
भारत में सर्वप्रथम जनगणना हुई।
(अ) 1861
(ब) 1981
(स) 1901
(द) 1911
उत्तर:
(ब) 1981
रिक्त स्थान वाले प्रश्न:
नीचे दिए गए वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
प्रश्न 1.
.............के मलमल ने उत्कृष्ट कोटि के सूती वस्त्र के रूप में विश्वभर में बहुत ख्याति अर्जित की थी।
उत्तर:
ढाका
प्रश्न 2.
भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व ............ वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अधीन था।
उत्तर:
दो सौ
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक काल में भारत में...........सबसे बड़ा। व्यवसाय था। (कृषि / विनिर्माण) 14. टाटा आयरन स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना
उत्तर:
1907
प्रश्न 5.
'इण्डियन डिवाइडेड' पुस्तक के लेखक.......... थे।
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 6.
औपनिवेशिक काल में पटसन उद्योग............तक ही सीमित रहा।
उत्तर:
बंगाल प्रान्त
सत्य / असत्य वाले प्रश्ननीचे दिए गए कथनों में सत्य / असत्य कथन छाँटिए:
प्रश्न 1.
20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से भी कम रही।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
भारत में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीनी, सीमेन्ट, कागज आदि के कुछ कारखाने भी स्थापित हुए।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक काल में भारत का आधे से अधिक व्यापार चीन के साथ होता था।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 4.
स्वेज नहर एक प्राकृतिक जलमार्ग है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 5.
भारत में सर्वप्रथम जनगणना 1981 में हुए।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी।
उत्तर:
सत्य
मिलान करने वाले प्रश्ननिम्न को सुमेलित कीजिए:
प्रश्न 1.
1. 'इण्डिया डिवाइडेड' पुस्तक लेखक |
(अ) 1907 |
2. 'इकनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' के लेखक |
(ब) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
3. टाटा एयरलाइंस की स्थापना |
(स) रमेशचन्द्र दत्त |
4. टाटा आयरन स्टील कम्पनी की स्थापना |
(द) 1932 |
5. जनसंख्या महाविभाजक वर्ष |
(य) बी.एच. बेडेन |
6. 'द लैड सिस्टम ऑफ ब्रिटिश इण्डिया' पुस्तक लेखक |
(र) 1921 |
उत्तर:
1. 'इण्डिया डिवाइडेड' पुस्तक लेखक |
(ब) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
2. 'इकनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' के लेखक |
(स) रमेशचन्द्र दत्त |
3. टाटा एयरलाइंस की स्थापना |
(द) 1932 |
4. टाटा आयरन स्टील कम्पनी की स्थापना |
(र) 1921 |
5. जनसंख्या महाविभाजक वर्ष |
(य) बी.एच. बेडेन |
6. 'द लैड सिस्टम ऑफ ब्रिटिश इण्डिया' पुस्तक लेखक |
(अ) 1907 |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता से पूर्व ढाका की कौनसी वस्तु विश्वविख्यात थी?
उत्तर:
भारतीय स्वतन्त्रता से पूर्व ढाका की मलमल विश्वभर में विख्यात थी।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता पूर्व भारत में कृषि उत्पादकता में कमी के क्या कारण थे?
उत्तर:
स्वतन्त्रता पूर्व प्रौद्योगिकी के निम्न स्तर, सिंचाई सुविधाओं के अभाव एवं उर्वरकों के कम प्रयोग के कारण कृषि उत्पादकता कम थी।
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक शासन का भारतीय शिल्पकलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन की नीतियों के फलस्वरूप भारतीय शिल्पकलाओं का पतन हो गया।
प्रश्न 4.
औपनिवेशिक शासन काल में भारत की साक्षरता दर कितनी थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन काल में भारत की साक्षरता दर 16 प्रतिशत थी।
प्रश्न 5.
ब्रिटिश शासन काल में भारत की महिला साक्षरता दर कितनी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन काल में भारत की महिला साक्षरता दर मात्र 7 प्रतिशत थी।
प्रश्न 6.
ब्रिटिश शासन काल में भारत की कोई दो जनांकिकीय विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
ब्रिटिश शासन काल में भारत की शिशु मृत्युदर कितनी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन काल में भारत की शिशु मृत्युदर 218 प्रति हजार थी।
प्रश्न 8.
औपनिवेशिक काल में देश के अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
प्रश्न 9.
औपनिवेशिक काल में कितनी प्रतिशत जनसंख्या विनिर्माण क्षेत्र में लगी हुई थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या विनिर्माण क्षेत्र में लगी हुई थी।
प्रश्न 10.
औपनिवेशिक काल में कितनी जनसंख्या सेवा क्षेत्र में लगी हुई थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में लगभग 15 से 20 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्र में लगी हुई थी।
प्रश्न 11.
प्राथमिक क्षेत्र में किन क्रियाओं को सम्मिलित कया जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र में कृषि एवं कृषि सम्बद्ध क्रियाओं को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 12.
व्यावसायिक संरचना का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
व्यावसायिक संरचना से अभिप्राय कार्यशील नसंख्या का उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में विभाजन से है।
प्रश्न 13.
तृतीयक क्षेत्र का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्र का तात्पर्य सेवाओं के उत्पादन से
प्रश्न 14.
औपनिवेशिक शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला एक सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत में रेल परिवहन, जल परिवहन एवं संचार सुविधाओं का विकास हुआ।
प्रश्न 15.
अंग्रेजों द्वारा भारत में विकसित की गई महँगी तार व्यवस्था का मुख्य ध्येय क्या था?
उत्तर:
भारत में विकसित की गई महंगी तार व्यवस्था का मुख्य ध्येय कानून व्यवस्था को बनाए रखना था।
प्रश्न 16.
उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
युद्ध में विजय या अन्य विधियों का प्रयोग कर किसी दूसरे देश को अपने अधीन बनाना उपनिवेशवाद कहलाता है।
प्रश्न 17.
टाटा आयरन स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
टाटा आयरन स्टील कंपनी (TISCO) की स्थापना 1907 में हुई।
प्रश्न 18.
मृत्यु - दर का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वर्ष भर में प्रति हजार जनसंख्या पर मरने वालों की संख्या को मृत्यु- दर कहा जाता है।
प्रश्न 19.
द्वितीयक क्षेत्र में किसे सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण तथा उद्योगों को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 20.
औपनिवेशिक शासन काल के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कोई दो नकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 21.
औपनिवेशिक शासनकाल के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कोई दो सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 22.
औपनिवेशिक शासकों की आर्थिक नीतियों का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासकों की आर्थिक नीतियों का मूल उद्देश्य अपने मूल देश के आर्थिक हितों का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना था।
प्रश्न 23.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई एवं गतिशील थी।
लघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
अंग्रेजी शासन से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
औपनिवेशिक शासन काल में कृषि पर पड़ने वाले कोई तीन प्रतिकूल प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
औपनिवेशिक काल की राजस्व व्यवस्था ने जमींदारों द्वारा किए शोषण में किस प्रकार वृद्धि की?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में जमींदारी व्यवस्था प्रारम्भ की गई, जिसके तहत जमींदारों ने कृषकों का अत्यन्त शोषण किया। औपनिवेशिक शासन काल की राजस्व व्यवस्था ने जमींदारों के इस शोषण को और बढ़ा दिया क्योंकि सरकार द्वारा राजस्व की निश्चित राशि कोष में जमा कराने की तिथियाँ पूर्व में निर्धारित कर दी जाती थीं उस तिथि पर रकम जमा न करवाने पर जमींदारों के अधिकार छीन लिए जाते थे अत: जमींदारों द्वारा रकम एकत्र करने हेतु कृषकों पर अत्यधिक अत्याचार किया जाने लगा।
प्रश्न 4.
औपनिवेशिक काल में कृषि में निम्न उत्पादकता के कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में कृषि की निम्न उत्पादकता के मुख्य कारण दोषपूर्ण जमींदारी प्रथा, प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, उर्वरकों का नगण्य प्रयोग आदि थे। इसके अतिरिक्त औपनिवेशिक शासकों तथा जमींदारों ने भी कृषि में सुधार हेतु कोई प्रयास नहीं किए बल्कि कृषकों का शोषण किया जिससे कृषि उत्पादकता काफी निम्न बनी रही।
प्रश्न 5.
औपनिवेशिक शासन काल में शिल्पकलाओं के पतन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के फलस्वरूप भारतीय शिल्पकलाओं का पतन हो गया। उस समय शिल्पकलाओं के पतन तथा अन्य उद्योगों का विकास न होने से भारत में भारी मात्रा में बेरोजगारी फैल गई तथा स्थानीय उत्पादों में कमी हो गई। किन्तु भारतीय बाजारों की मांग में वृद्धि के फलस्वरूप अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड में निर्मित उत्पादों को ऊंची कीमतों पर भारतीयों को बेचना प्रारम्भ किया, जिससे अंग्रेजों को भारी लाभ की प्राप्ति हुई।
प्रश्न 6.
औपनिवेशिक शासन का भारतीय उद्योगों पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ा? कोई तीन बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शासन के अन्तर्गत अंग्रेजों द्वारा बनाई सड़कों के पीछे मुख्य ध्येय क्या था?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन काल में सड़कों का विकास काफी सीमित रहा तथा उन्होंने जो सड़कों का निर्माण करवाया था उसके पीछे भी उनका स्वयं का स्वार्थ था। जो सड़कें उन्होंने बनाईं, उनका ध्येय भी देश के भीतर उनकी सेनाओं के आवागमन की सुविधा तथा देश के भीतरी भागों से कच्चे माल को निकटतम रेलवे स्टेशन या बन्दरगाह तक पहुँचाने में सहायता करना मात्र था।
प्रश्न 8.
रेल विकास का भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना पर पड़ने वाले कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 9.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत पर अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्षों तक शासन किया जिसके अन्तर्गत उन्होंने कई तरीकों से अर्थव्यवस्था का शोषण किया। स्वतन्त्रता के समय भारतीय कृषि काफी पिछड़ी हुई थी। भारतीय उद्योगों की स्थिति भी दयनीय थी तथा कई परम्परागत उद्योग एवं शिल्पकलाओं का पतन हो गया था। देश में आधारभूत संरचना का अभाव था तथा देश के सम्मुख गरीबी एवं बेरोजगारी की मुख्य समस्या थी। देश में जन स्वास्थ्य सेवाओं एवं अन्य सामाजिक। सेवाओं का नितान्त अभाव था।
प्रश्न 10.
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्रक की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्रक की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी। उस समय कृषि क्षेत्र में तो विस्तार हुआ किन्तु कृषि उत्पादकता में निरन्तर कमी आई। औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भूव्यवस्था प्रणालियों तथा जमींदारों के शोषण के कारण कृषि क्षेत्र की स्थिति और भी खराब हो गई थी तथा इन प्रणालियों के फलस्वरूप कृषकों की दुर्दशा में भी वृद्धि हो गई थी।
देश के कुछ क्षेत्रों में कृषि के व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिला किन्तु इसका लाभ भी कुछ बड़े किसानों को ही प्राप्त हुआ। उस समय छोटे किसानों के पास कृषि क्षेत्र में निवेश करने हेतु न तो संसाधन थे और न ही कोई तकनीक एवं प्रेरणा थी।
प्रश्न 11.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के परम्परागत उद्योगों एवं शिल्पकलाओं का पतन हो गया था। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना होने लगी तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में भारत में लोहा एवं इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग, सीमेन्ट उद्योग आदि का विकास प्रारंभ हुआ। किन्तु स्वतंत्रता के समय भारत में भावी औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु पूँजीगत उद्योगों का प्रायः अभाव था। अतः स्वतंत्रता के समय औद्योगिक दृष्टि से भारत की स्थिति काफी पिछड़ी हुई थी।
प्रश्न 12.
औपनिवेशिक काल में भारत के विऔद्योगीकरण के कोई तीन प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 13.
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के विदेशी व्यापार की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनाई गई औपनिवेशिक नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप, आकार एवं दिशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। इन औपनिवेशिक नीतियों के फलस्वरूप भारत मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया था। भारत का आधे से अधिक व्यापार केवल इंग्लैण्ड के साथ ही होता था। यह अवश्य था कि भारत का विदेशी व्यापार भारत के पक्ष में था किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इसकी भारत को भारी लागत चुकानी पड़ती थी।
प्रश्न 14.
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) जनांकिकीय विशेषता:
स्वतन्त्रता के समय भारत की जनसंख्या काफी अधिक थी। इसके साथ ही देश में साक्षरता की दर काफी नीची थी, शिशु मृत्यु - दर काफी अधिक थी तथा जीवन प्रत्याशा काफी कम थी।
(2) व्यावसायिक संरचना:
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की लगभग 70 से 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी तथा 10 प्रतिशत जनसंख्या विनिर्माण एवं 15 से 20 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्र पर निर्भर थी।
(3) आधारिक संरचना:
औपनिवेशिक काल में देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाक तार व्यवस्था का विकास तो हुआ किन्तु वह पर्याप्त नहीं था। अर्थव्यवस्था में सड़कों का अभाव था।
प्रश्न 15.
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता के निम्न कारणों को स्पष्ट कीजिए
(1) ब्रिटिश शासन की दोषपूर्ण नीतियाँ
(2) कृषि का पिछड़ापन
(3) दोषपूर्ण भूव्यवस्था।
उत्तर:
(1) ब्रिटिश शासन की दोषपूर्ण नीतियाँब्रिटिश शासकों की नीतियाँ काफी दोषपूर्ण एवं स्वार्थपूर्ण थौं वे विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में अपने देश को लाभ पहुंचाने हेतु स्वार्थपूर्ण नीतियाँ बनाते थे ताकि भारत का अत्यधिक शोषण हो एवं ब्रिटेन को अत्यधिक लाभ प्राप्त हो।
(2) कृषि का पिछड़ापन: औपनिवेशिक काल में भारतीय कृषि काफी पिछड़ी हुई अवस्था में थी तथा संसाधनों के अभाव एवं अंग्रेजों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण यह निरन्तर पिछड़ती चली गई।
(3) दोषपूर्ण भू: व्यवस्था - अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई भू - व्यवस्था प्रणालियाँ अत्यन्त दोषपूर्ण एवं अंग्रेजों के हित में थीं अतः कृषि की स्थिति दयनीय हो गई एवं देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो गई।
प्रश्न 16.
औपनिवेशिक काल में हुए कृषि के व्यावसायीकरण का लाभ भारतीय कृषकों को क्यों नहीं मिला?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में देश के कुछ क्षेत्रों में कृषि का व्यावसायीकरण हुआ जिससे नकदी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई। किन्तु कृषि के व्यावसायीकरण का लाभ भारतीय कृषकों को नहीं मिला क्योंकि उन्हें खाद्यान्न की खेती के स्थान पर नकदी फसलों का उत्पादन करना पड़ता था जिसे वे अंग्रेजों को कम कीमत पर बेचने पर मजबूर थे, जिनका प्रयोग अंतत: इंग्लैण्ड में लगे कारखानों में किया जाता था।
प्रश्न 17.
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता के किन्हीं तीन कारणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) पक्षपातपूर्ण व्यापार नीतियाँ:
अंग्रेजों की व्यापारिक नीतियाँ अत्यन्त पक्षपातपूर्ण थीं इन नीतियों के फलस्वरूप भारत कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया, जिससे देश के उद्योग| धन्धे नष्ट हो गए।
(2) असन्तुलित औद्योगिक विकास:
अंग्रेजों ने अपनी सुविधा एवं अपने स्वार्थ के अनुसार देश के उद्योगों का विकास किया जिसके फलस्वरूप देश का औद्योगिक विकास काफी अपर्याप्त एवं असन्तुलित ढंग से हुआ।
(3)विकास कार्यक्रमों की उपेक्षा:
ब्रिटिश शासन काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक विकास कार्यक्रमों पर अत्यन्त कम राशि व्यय की गई जिससे देश की स्थिति अत्यन्त पिछड़ गई।
प्रश्न 18.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित तीन प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 19.
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्मुख उपस्थित अग्र चुनौतियों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए
(1) औद्योगिक क्षेत्र का पिछड़ापन
(2) निर्धनता
(3) आधार संरचना का अपर्याप्त विकास।
उत्तर:
(1) औद्योगिक क्षेत्र का पिछड़ापन:
अंग्रेजों की शोषणकारी एवं आर्थिक निष्कासन की नीतियों के फलस्वरूप स्वतंत्रता के समय देश का औद्योगीकरण क्षेत्र अत्यन्त पिछड़ा हुआ था तथा लघु, कुटीर एवं परम्परागत उद्योग लगभग नष्ट हो गए थे।
(2) निर्धनता:
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की एक बड़ी चुनौती निर्धनता थी, देश में अधिकांश लोग अपनी दैनिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पाते थे।
(3) आधार संरचना का अपर्याप्त विकास:
अंग्रेजों ने रेलों, पत्तनों, जल परिवहन, डाक - तार आदि का विकास तो किया किन्तु यह अपर्याप्त था तथा विशेष रूप से सड़कों का नितान्त अभाव था।
प्रश्न 20.
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले किन्हीं दो सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कृषि का व्यवसायीकरण:
अंग्रेजों की नीतियों से वैसे तो भारतीय कृषकों का शोषण हुआ किन्तु देश के कुछ भागों में कृषि के व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिला जिसके फलस्वरूप नकदी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई।
(2) आधुनिक उद्योगों की स्थापना:
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना हुई, विशेष रूप से पटसन उद्योग की स्थापना का श्रेय अंग्रेजों को ही दिया जा सकता है। साथ ही दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् देश में चीनी, सीमेन्ट, कागज आदि उद्योगों का भी विकास हुआ।
प्रश्न 21.
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले निम्न सकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट कीजिए-
(1) विदेशी व्यापार को बढ़ावा
(2) आधारभूत संरचना का विकास।
उत्तर:
(1) विदेशी व्यापार को बढ़ावा:
अंग्रेजों ने अपने शासन काल में विदेशी व्यापार को बढ़ाने हेतु कई प्रयास किए। विदेशी शासनकाल के अन्तर्गत भारतीय आयात - निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता भारत का निर्यात अधिशेष था।
(2) आधारभूत संरचना का विकास:
औपनिवेशिक शासनकाल में देश में आधारभूत संरचना का भी विकास हुआ। विशेष रूप से देश में रेल परिवहन, जल परिवहन, पत्तनों तथा संचार व्यवस्था का विकास हुआ जिसका देश के व्यापार तथा परिवहन पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। इन आधारभूत सुविधाओं के फलस्वरूप देश में कृषि के व्यवसायीकरण को भी बढ़ावा मिला।
प्रश्न 22.
ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व भारतीय कृषि की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व भारतीय कृषि की स्थिति काफी अच्छी थी। ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व भारतीय कृषक अपनी इच्छा से कृषि उत्पादन कार्य करते थे तथा उस समय उत्पाद एवं उत्पादकता दोनों अधिक थीं तथा भारतीय व्यापारी यहाँ से कई कृषि उत्पादों का अन्य देशों को निर्यात करते थे। ब्रिटिश शासनकाल से पूर्व यहाँ के शासक भी कृषि विकास हेतु अपना योगदान देते थे। कृषक काफी समृद्ध थे तथा अपना जीवनयापन आराम से कर रहे थे। भारतीय कृषि भूमि भी काफी उपजाऊ थी तथा लगान की दर भी उचित थी।
प्रश्न 23.
ब्रिटिश शासन काल की राजस्व व्यवस्था किस प्रकार कृषि क्षेत्रक की गतिहीनता में सहायक बनी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान उनकी राजस्व व्यवस्था भी कृषि क्षेत्रक की गतिहीनता में मददगार बनी। उस समय भारत की राजस्व व्यवस्था भी अंग्रेजों की स्वार्थ पूर्ति के अनुरूप ही थी। इस व्यवस्था के अन्तर्गत राजस्व की निश्चित राशि सरकार के कोष में जमा करवाने की तिथियां पूर्व निर्धारित थी तथा उस तिथि पर राजस्व न जमा करवाने वाले जमींदारों से उनके अधिकार छीन लिए जाते थे। अत: जमींदार अपने राजस्व की रकम समय पर जमा करवाने हेतु कृषकों पर भारी लगान लगाते थे तथा तरह| तरह से उनका शोषण करते थे। इसके फलस्वरूप देश में कृषि एवं कृषकों की दशा और अधिक बिगड़ गई।
प्रश्न 24.
"निर्यात अधिशेष की भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत भारी लागत चुकानी पड़ी।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन काल में भारतीय आयात-निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि भारत के निर्यात, आयातों से अधिक थे। किन्तु इस अधिशेष की भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत भारी लागत चुकानी पड़ी। देश के आन्तरिक बाजारों में अनाज, कपड़ा और मिट्टी का तेल जैसी अनेक आवश्यक वस्तुएँ मुश्किल से उपलब्ध हो पाती थीं। इसके अतिरिक्त निर्यात अधिशेष का देशा में सोने तथा चाँदी के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वास्तव में इसका प्रयोग तो अंग्रेजों की भारत पर शासन करने के लिए की गई व्यवस्था का खर्च उठाने के लिए ही हो जाता था।
प्रश्न 25.
औपनिवेशिक काल में भारतीय कृषि की पिछड़ी हुई अवस्था हेतु जिम्मेदार कोई तीन कारण बताइये।
उत्तर:
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएँ थीं?
अथवा
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं अथवा अर्थव्यवस्था की स्थिति को निम्न बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है:
(1) निम्नस्तरीय आर्थिक विकास:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय आर्थिक विकास की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अत्यन्त पिछड़ी हुई थी। औपनिवेशिक नीतियों के द्वारा अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया। ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर भी अत्यन्त कम रही।
(2) कृषि क्षेत्रक:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय कृषि अत्यन्त पिछड़ी अवस्था में थी। औपनिवेशिक काल में कृषि क्षेत्र में तो विस्तार हुआ किन्तु कृषि उत्पादकता में निरन्तर कमी आई। औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-व्यवस्था प्रणालियों एवं जमींदारों के शोषण के कारण कृषि क्षेत्र की स्थिति और भी खराब हो गई तथा कृषकों की दुर्दशा में वृद्धि हुई। देश के कुछ क्षेत्रों में कृषि के व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिला किन्तु इसका लाभ भी कुछ बड़े कृषकों को ही मिला।
(3) औद्योगिक क्षेत्रक:
औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के परम्परागत उद्योगों एवं शिल्पकलाओं का पतन हो गया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना होने लगी तथा बीसवीं
शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में लोहा व इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग, सीमेन्ट उद्योग आदि का विकास प्रारम्भ हुआ। किन्तु स्वतन्त्रता के समय औद्योगिक दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई ही थी तथा पूँजीगत उद्योगों का अभाव था।
(4) विदेशी व्यापार:
औपनिवेशिक नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप, आकार एवं दिशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भारत मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया। साथ ही भारत का आधे से भी अधिक व्यापार केवल इंग्लैण्ड के साथ ही होता था। यह अवश्य था कि भारत का विदेशी व्यापार भारत के पक्ष में था परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इसकी भारत को भारी लागत चुकानी पड़ती थी।
(5) जनांकिकीय विशेषता:
भारत की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हुई तथा स्वतन्त्रता के समय भारत की जनसंख्या काफी अधिक थी। वर्ष 1951 में भारत की जनसंख्या 39.1 करोड़ थी। इसके साथ ही देश में साक्षरता की दर बहुत नीची थी, शिशु मृत्यु-दर काफी अधिक थी तथा जीवन प्रत्याशा काफी कम थी। देश में जन स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव था तथा देश में अत्यधिक निर्धनता व्याप्त थी।
(6) व्यावसायिक संरचना:
स्वतन्यता के समय भारत की व्यावसायिक संरचना काफी असन्तुलित थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की लगभग 70 से 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी तथा 10 प्रतिशत जनसंख्या विनिर्माण एवं 15 से 20 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्र पर निर्भर थी। जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना में क्षेत्र के आधार पर काफी विषमता व्याप्त थी।
(7) आधारिक संरचना:
औपनिवेशिक काल में देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाक - तार व्यवस्था का विकास हुआ परन्तु वह पर्याप्त नहीं था। अर्थव्यवस्था में सड़कों का अभाव था।
प्रश्न 2.
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता के कारण ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं
(1) ब्रिटिश शासन की दोषपूर्ण नीतियाँ:
ब्रिटिश शासकों की नीतियाँ दोषपूर्ण एवं स्वार्थपूर्ण थीं। वे विभिन्न = आर्थिक क्षेत्रों में अपने देश को लाभ पहुंचाने हेतु स्वार्थपूर्ण नीतियाँ बनाते थे ताकि भारत का अत्यधिक शोषण हो एवं ब्रिटेन को अत्यधिक लाभ प्राप्त हो। अत: उनकी ये दोषपूर्ण नीतियाँ अर्थव्यवस्था की दुर्दशा एवं गतिहीनता का मुख्य कारण थीं।
(2) कृषि का पिछड़ापन:
भारतीय कृषि औपनिवेशिक काल में काफी पिछड़ी हुई थी तथा संसाधनों के अभाव एवं अंग्रेजों की दोषपूर्ण भू-व्यवस्था प्रणालियों व जमींदारों के शोषण के कारण यह निरन्तर पिछड़ती चली गई।
(3) दोषपूर्ण भू - व्यवस्था:
अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई भू - व्यवस्था प्रणालियाँ अत्यन्त दोषपूर्ण एवं अंग्रेजों के हित में थी अतः कृषि की स्थिति दयनीय हो गई एवं देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो गई।
(4) पक्षपातपूर्ण व्यापारिक नीतियाँ:
अंग्रेजों की व्यापारिक नीतियाँ भी अत्यन्त पक्षपातपूर्ण थीं। इन नीतियों के फलस्वरूप भारत कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया जिससे देश के उद्योग - धन्धे नष्ट हो गए।
(5) साधनों का बाह्य निष्कासन: अंग्रेजों ने आधारभूत संसाधनों का विकास तो किया किन्तु यह उनके द्वारा आर्थिक साधनों के बाह्य निष्कासन का साधन बन गया। इसके अतिरिक्त भी अंग्रेजों ने अनेक तरीकों से देश के धन को ब्रिटेन भेजा।
(6) असन्तुलित औद्योगिक विकास: अंग्रेजों ने अपनी सुविधा एवं अपने स्वार्थ के अनुसार देश में उद्योगों का विकास किया जिसके फलस्वरूप देश का औद्योगिक विकास अत्यन्त असन्तुलित हुआ। जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
(7) विकास कार्यक्रमों की उपेक्षा:
ब्रिटिश शासन काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक विकास कार्यक्रमों पर अत्यन्त कम राशि व्यय की गई जिससे देश की स्थिति अत्यन्त पिछड़ गई।
प्रश्न 3.
ब्रिटिश शासन काल के अन्तर्गत भारत की आधारिक संरचना पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन काल के दौरान देश में रेल परिवहन का विकास हुआ तथा साथ ही सड़क परिवहन, जल परिवहन एवं संचार व्यवस्था का भी विकास हुआ। अंग्रेजों ने देश में आधारिक संरचना के विकास को बढ़ावा तो दिया किन्तु इसके पीछे भी उनका स्वयं का स्वार्थ था।
अंग्रेजों ने सेना के आवागमन एवं कच्चे माल को बन्दरगाहों तक पहुँचाने हेतु परिवहन व्यवस्थाओं का विकास किया। रेल व सड़क परिवहन द्वारा अंग्रेज कच्चे माल को जहाजों एवं निर्मित माल को जहाजों से बाजार तक पहुंचाते थे। आधारिक संरचना का विकास तो हुआ किन्तुं यह विकास अपर्याप्त एवं असन्तुलित था जिसका लाभ भारतीयों को न मिलकर अंग्रेजों को अधिक मिला।
ब्रिटिश शासन काल में सड़कों एवं रेलों के विकास के साथ - साथ आन्तरिक व्यापार तथा समुद्री जलमार्गों के विकास पर भी ध्यान दिया गया किन्तु उनके ये उपाय सन्तोषजनक नहीं थे। ब्रिटिश शासन काल में ग्रामीण क्षेत्रों तक माल पहुंचाने में सक्षम सभी मौसम हेतु उपयुक्त सड़कों का अभाव बना रहा। अंग्रेजों द्वारा संचार व्यवस्था का विकास तो किया गया किन्तु वह अत्यन्त महंगी थी।
प्रश्न 4.
ब्रिटिश शासन काल के अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्रक पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत अंग्रेजों की दोषपूर्ण नीतियों के फलस्वरूप देश में किसी सुदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास नहीं हो पाया। देश के अधिकांश परम्परागत उद्योगों एवं शिल्पकलाओं का पतन हो गया था। अंग्रेजों ने अपनी नीतियों के द्वारा भारत को कच्चे माल का निर्यातक बना दिया जिसके फलस्वरूप भारतीय उद्योग - धन्धे नष्ट हो गए एवं व्यापक बेरोजगारी फैल गई तथा अंग्रेजों ने भारत को एक बाजार के रूप में विकसित कर दिया जहाँ वे अपने देश का निर्मित माल ऊँची कीमतों पर बेचते थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कुछ आधुनिक उद्योगों का विकास आरम्भ हुआ किन्तु उनकी उन्नति अत्यन्त धीमी रही, केवल सूती वस्त्र उद्योग एवं पटसन उद्योग का विकास हो सका। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में देश में लोहा एवं इस्पात उद्योग का विकास प्रारम्भ हुआ। इसी प्रकार दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् देश में चीनी उद्योग, कागज उद्योग, सीमेन्ट उद्योग आदि का विकास प्रारम्भ हुआ। किन्तु इन सभी उद्योगों की विकास दर अत्यन्त धीमी थी।
औपनिवेशिक काल में देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने वाले पूँजीगत उद्योगों का विकास नहीं हो पाया। इसके अतिरिक्त औपनिवेशिक काल में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का क्षेत्र भी अत्यन्त सीमित रहा सार्वजनिक क्षेत्र प्रायः रेलों, विद्युत उत्पादन, संचार, बन्दरगाहों और कुछ विभागीय उपक्रमों तक ही सीमित था।