RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

RBSE Class 9 Sanskrit भ्रान्तो बालः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए-) 
(क) कः तन्द्रालुः भवति? 
(ख) बालकः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्? 
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अवभवन्? 
(घ) चटकः कया तृणशलाकादिकम् आददाति? 
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति? 
(च) बालकः कीदृशं श्वानं पश्यति? 
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि? 
उत्तराणि :
(क) बालः। 
(ख) पुष्पोद्यानम्।
(ग) मधुकराः। 
(घ) चञ्च्वा। 
(ङ) वटद्रुमस्य।
(च) पलायमानम्। 
(छ) निदाघदिवसे।

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 2. 
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-) 
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्? 
(बालक कब खेलने के लिए निकल गया?) 
उत्तरम् :  
बालः विद्यालयगमनकाले क्रीडितुं अगच्छत्।
(बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकल गया।) 

(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्? 
(बालक के मित्र किसलिए शीघ्रता कर रहे थे?) 
उत्तरम् :  
बालस्य मित्राणि पाठं स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन्।
(बालक के मित्र पाठ को याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता कर रहे थे।) 

(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान्। 
(भ्रमर ने बालक के बुलावे का किस कारण से तिरस्कार किया था?) 
उत्तरम् :  
मधुकरः मधुसंचये व्यस्त आसीत् अनेन सः तस्य आह्वानं तिरस्कृतवान्। 
(भ्रमर पुष्प-रस का संग्रह करने में व्यस्त था, इसलिए उसने उसके बुलावे का तिरस्कार किया।) 

(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्? 
(बालक ने किस प्रकार के चिड़े को देखा?) 
उत्तरम् :
बालकः तृणानाददानं चटकं अपश्यत्। 
(बालक ने घास के तिनकों को ग्रहण किये हए चिडे को देखा।) 

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(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्? 
(बालक ने चिड़े को किस प्रकार का लालच दिया?)
उत्तरम् :  
बालकः लोभं ददन् उवाच त्यज शुष्कं तृणं अहं ते स्वादुभोजनं दास्यामि। 
(बालक ने लालच देते हुए कहा-सूखे घास के तिनके को त्यागो, मैं तुम्हें स्वादिष्ट भोजन दूंगा।) 

(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
(दु:खी बालक ने कुत्ते से क्या कहा?) 
उत्तरम् :  
खिन्नः बालकः अकथयत्-रे मनुष्याणां मित्र! किं पर्यटसि वृथा? आगच्छ अत्र शीतलछायायां क्रीडावः। 
(दुःखी बालक ने कहा-अरे मनुष्यों के मित्र ! व्यर्थ में क्यों घूम रहे हो? आओ, यहाँ शीतल छाया में हम दोनों खेलते हैं।) 

(छ) भग्नमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत्?
(नष्ट हुए मनोरथ वाले बालक ने क्या सोचा?) 
उत्तरम् :
भग्नमनोरथः बालः अचिन्तयत्-जगति सर्वे निज निजकार्ये व्यस्ताः, अहमिव न कोऽपि वृथा कालक्षेपं नयति। अहमपि स्वोचितं करोमि। 
(नष्ट हुए मनोरथ वाले बालक ने सोचा-संसार में सभी लोग अपने-अपने कार्य में व्यस्त हैं, मेरी तरह कोई भी व्यर्थ में समय नहीं बिता रहा है। मैं भी अपने लिए उचित कार्य को करता हूँ।)

प्रश्न 3. 
निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत - 
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य। 
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि॥ 
उत्तर : 
इस संसार में सफल जीवन हेतु प्रत्येक प्राणी को स्वोचित कर्म को नियमित रूप से करना होता है। सम्पूर्ण प्रकृति जैसे सूर्य का प्रतिदिन समय पर उदित होना, वक्षों का समय पर फलना-फलना, बादलों यही संकेत करता है कि इसी प्रकार मनुष्य को भी अपना-अपना कर्म समय पर नियमित रूप से करना चाहिए। क्योंकि जीव-जन्तु भी ऐसा ही करते हैं। जैसे प्रस्तुत श्लोक में कुत्ते का अपने कर्म (स्वामिभक्ति) को बड़ी तत्परता से करते हुए दिखाया गया है। वह रक्षा कर्म में थोड़ी भी असावधानी नहीं करता। 

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प्रश्न 4. 
'भ्रान्तो बालः' इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत। 
उत्तर : 
प्रस्तुत कहानी में एक भ्रान्त (पथभ्रष्ट) बालक को अपने अध्ययनकर्म की अपेक्षा खेलकूद में व्यर्थ में समय बिताते हए दिखाया गया है कि संसार में जब अन्य सभी प्राणी, जीव-जन्तु भी अपने-अपने कर्म को तल्लीन होकर करते हैं तो मनुष्य को भी अपना कर्म अवश्य करना चाहिए, उसे समय को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। वह बालक कभी भ्रमर को अपने साथ खेलने के लिए आह्वान करता है, तो कभी चटक को, कभी कुत्ते को। परन्तु सभी स्वोचित कर्म में तल्लीन होने के कारण उसके साथ कोई भी खेलने को तैयार नहीं होता। थककर उसे यह एहसास होता है कि उसे भी अपने कर्म के प्रति प्रमाद नहीं करना चाहिए अपितु विद्यालय जाकर विद्या ग्रहण करनी चाहिए। और कुछ समय पश्चात् उसी बालक ने विद्वत्ता में सफलता (प्रसिद्धि) प्राप्त की तथा खूब धन-सम्पत्ति को भी प्राप्त किया। 

प्रश्न 5. 
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत - 
(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि। 
उत्तरम् :  
कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि? 

(ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्। 
उत्तरम् :  
चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत्? 

(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति। 
उत्तरम् : 
कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति? 

(घ) सः महती वैदुषीं लब्धवान्। 
उत्तरम् : 
सः काम् लब्धवान्? 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(ङ) 
रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति। 
उत्तरम् : 
कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति? 

प्रश्न 6. 
'एतेभ्यः नमः' इति उदाहरणमनुसृत्य नमः इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत। 
उत्तरम् : 

  • नमः शिवायः। 
  • गुरवे नमः। 
  • शारदायै नमः। 
  • पित्रे नमः। 
  • परमात्मने नमः। 

प्रश्न 7.
'क' स्तम्भे समस्तपदानि 'ख' स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत - 

'क' स्तम्भः

'ख' स्तम्भः

(क) दृष्टिपथम्

1. पुष्पाणाम् उद्यानम्

(ख) पुस्तकदासाः

2. विद्यायाः व्यसनी

(ग) विद्याव्यसनी

3. दृष्टेः पन्थाः

(घ) पुष्पोद्यानम्

4. पुस्तकानां दासाः

उत्तरम् :   

'क' स्तम्भः

'ख' स्तम्भः

(क) दृष्टिपथम्

3. दृष्टेः पन्थाः

(ख) पुस्तकदासाः

4. पुस्तकानां दासाः

(ग) विद्याव्यसनी

2. विद्यायाः व्यसनी

(घ) पुष्पोद्यानम्

1. पुष्पाणाम् उद्यानम्

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(अ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत - 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः 1
उत्तरम् 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः 2

परियोजनाकार्यम् - 

प्रश्न (क) एकस्मिन् स्फोरकपत्रे (chart-paper) एकस्य उद्यानस्य चित्रं निर्माय संकलय्य वा पञ्चवाक्येषु तस्य वर्णनं कुरुत। 
उत्तरम् 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः 3

वर्णनम् 

  1. इदम् एकम् उद्यानम् वर्तते। 
  2. अत्र विविधानि पुष्पाणि शोभन्ते। 
  3. पुष्पेषु भ्रमराः तिष्ठन्ति। 
  4. उद्याने त्रयः बालकाः सन्ति। 
  5. उद्याने अनेके वक्षाः, पक्षिणः च सन्ति। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(ख) परिश्रमस्य महत्त्वम्' इति विषये हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा पञ्च वाक्यानि लिखत। 
उत्तर :

परिश्रम रूपी सीढ़ी से ही सफलता रूपी शिखर पर पहुँचा जा सकता है। सभी महान् व्यक्तियों की सफलता का मूलमंत्र भी 'परिश्रम' ही है। 
इस संसार में सभी जीव-जन्तु यहाँ तक कि चींटी भी परिश्रम के द्वारा ही जीवन-यापन करती है। 
परिश्रम से ही सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं, केवल इच्छा करने से नहीं। 
धन लक्ष्मी भी परिश्रमी व्यक्ति का ही वरण करती है। 
अतः मनुष्य को परिश्रमशील होना चाहिए, क्योंकि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।

RBSE Class 9 Sanskrit भ्रान्तो बालः Important Questions and Answers

प्रश्न 1. 
"कश्चन बालः क्रीडितुं निर्जगाम।" 
उपर्युक्तवाक्यस्य रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तं प्रत्ययं वर्तते 
(अ) क्तवतु 
(ब) क्त्वा। 
(स) क्त 
(द) तुमुन् 
उत्तर :
(द) तुमुन्

प्रश्न 2. 
"विरमन्त्वेते वराकाः पुस्तकदासाः।" 
उपर्युक्तवाक्यस्य रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तसन्धेः नाम वर्तते 
(अ) गुण 
(ब) दीर्घ 
(स) यण 
(द) वृद्धि 
उत्तर :
(स) यण 

प्रश्न 3. 
"एते.-मानुषेषु नोपगच्छन्ति।" 
उपर्युक्तवाक्यस्य रिक्तस्थाने पूरणीयं समुचितं पदमस्ति 
(अ) पक्षिणः 
(ब) पक्षिणं 
(स) पक्षिणा 
(द) पक्षिभिः 
उत्तर :
(अ) पक्षिणः 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 4. 
"नम एतेभ्यः यैर्मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता।" 
उपर्युक्तवाक्यस्य रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तविभक्तिः का? 
(अ) तृतीया 
(ब) चतुर्थी 
(स) पंचमी 
(द) षष्ठी 
उत्तर :
(ब) चतुर्थी

प्रश्न 5. 
"कथमस्मिन् ........ प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति।"। 
उपर्युक्तवाक्यस्य रिक्तस्थाने पूरणीयपदं वर्तते 
(अ) जगत् 
(ब) जगतः 
(स) जगति 
(द) जगते 
उत्तर :
(स) जगति 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-
(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
भ्रान्तः बालः कुत्र निर्जगाम? 
(भ्रमित बालक कहाँ निकल गया?) 
उत्तर : 
भ्रान्तः बालः क्रीडितुं निर्जगाम। 
(भ्रमित बालक खेलने के लिए निकल गया।) 

प्रश्न 2. 
सर्वेऽपि बालकाः किमर्थं त्वरमाणा बभवः? 
(सभी बालक किसलिए शीघ्रता कर रहे थे?) 
उत्तर : 
सर्वेऽपि बालकाः पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः। 
(सभी बालक पहले दिन का पाठ याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता कर रहे थे।) 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 3. 
तन्द्रालुर्बाल: एकाकी कुत्र प्रविवेश? 
(आलसी बालक अकेला ही कहाँ प्रवेश कर गया?) 
उत्तर : 
तन्द्रालुर्बालः एकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश। 
(आलसी बालक अकेला ही किसी बगीचे में प्रवेश कर गया।) 

प्रश्न 4. 
भ्रान्तः बालः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं कं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत?
(भ्रमित बालक ने फूलों के बगीचे में घूमते हुए किसे देखकर उसको खेलने के लिए बुलाया?) 
उत्तर : 
भ्रान्तः बालः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं द्रष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत। 
(भ्रमित बालक ने फूलों के बगीचे में घूमते हुए भौरे को देखकर उसे खेलने के लिए बुलाया।) 

प्रश्न 5. 
मधुकरः किम् अगायत्? (भौरे ने क्या गाया?) 
उत्तर : 
सः अगायत्-"वयं हिं मधुसंग्रहव्यग्रा" इति। 
(उसने गाया कि-"हम मधु संग्रह करने में व्यस्त हैं।") 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 6. 
भ्रान्तेन बालकेन कीदृशं चटकम् अपश्यत्? (भ्रमित बालक ने किस प्रकार के चिड़े को देखा?) 
उत्तर : 
भ्रान्तेन बालकेन चञ्च्वा तृणशलाकादिकमाददानं चटकम् अपश्यत्। 
(भ्रमित बालक ने चोंच में तिनकों, सींक आदि को ग्रहण किये हुए चिड़े को देखा।) 

प्रश्न 7. 
भ्रान्तः बालः चटकाय किं दातुं कथयति? 
(भ्रमित बालक चिड़े को क्या देने के लिए कहता है?)
उत्तर : 
भ्रान्तः बाल: चटकाय स्वादूनिभक्ष्यकवलानि दातुं कथयति।
(भ्रमित बालक चिड़े को स्वादिष्ट खाने के लिए उपयुक्त कौर देने को कहता है।) 

प्रश्न 8. 
चटकः कस्मिन् कार्ये व्यग्रो बभूव? 
(चिड़ा.किस कार्य में व्यस्त हो गया?) 
उत्तर : 
चटक: नीडनिर्माणकार्ये व्यग्रो बभूव। 
(चिड़ा घोंसला बनाने के कार्य में व्यस्त हो गया।) 

प्रश्न 9. 
पक्षिणो केषु नोपगच्छन्ति? 
(पक्षी किनके पास नहीं जाते हैं?) 
उत्तर : 
पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। 
(पक्षी मनुष्यों के पास नहीं जाते हैं।)

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 10. 
भ्रान्तः बालः कथं विनितमनोरथः अभवत्? 
(भ्रमित बालक कैसे नष्ट मनोरथ वाला हो गया है?) 
उत्तर : 
सर्वैरेव निषिद्धः भ्रान्तः बालः विनितमनोरथः अभवत्। 
(सभी के द्वारा निषेध करने से भ्रमित बालक नष्ट मनोरथ वाला हो गया।) 

प्रश्न 11.
भ्रान्तः बालः विद्याव्यसनी भूत्वा किं किं लेभे? 
(भ्रमित बालक ने विद्या-व्यसनी होकर क्या-क्या प्राप्त किया?) 
उत्तर : 
भ्रान्तः बालः विद्याव्यसनी भूत्वा महती प्रथां सम्पदं च लेभे। 
(भ्रमित बालक ने विद्या-व्यसनी होकर महान् प्रसिद्धि एवं सम्पत्ति को प्राप्त किया।) 

प्रश्न 12.
कः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम? 
(कौन विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकल गया?) 
उत्तर : 
भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। 
(भ्रमित बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकल गया।) 

प्रश्न 13. 
ऐते वराकाः कथं विरमन्तु? (ये बेचारे कैसे बने रहे?) 
उत्तर : 
ऐते वराकाः पुस्तकदासाः विरमन्तु।
(ये बेचारे पुस्तकों के दास बने रहे।) 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 14. 
के मम वयस्याः सन्तु? (कौन मेरे मित्र होवें?) 
उत्तर : 
ऐते निष्कुटवांसिनः प्राणिनो मम वयस्याः सन्तु। 
(ये वृक्ष की कोटरों में रहने वाले प्राणी मेरे मित्र होवें।) 

प्रश्न 15. 
पुष्पोद्याने कः मधुकरं क्रीडाहेतोराह्वयत्? 
(बगीचे में किसने भौरे को खेलने के लिए बुलाया?) 
उत्तर : 
पुष्पोद्याने भ्रान्तः बालः मधुकरं क्रीडाहेतोराह्वयत्। 
(बगीचे में भ्रमित बालक ने भौरे को खेलने के लिए बुलाया।) 

प्रश्न 16. 
'वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा' इति कोऽगायत्? 
('हम मधुसंग्रह में व्यस्त हैं' ऐसा किसने गाया?) 
उत्तर : 
इति मधुकरः अगायत्। (ऐसा भौरे ने गाया।) 

प्रश्न 17. 
'रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि निदाघदिवसे?' इति कः कं प्रति कथयति?
('अरे मनुष्यों के मित्र! गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो?' ऐसा कौन किससे कहता है?)
उत्तर : 
इति भ्रान्तः बालः श्वान प्रति कथयति। (ऐसा भ्रमित बालक कुत्ते से कहता है।) 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 18. 
स्वामी श्वानं कथं पोषयति? 
(स्वामी कुत्ते को कैसे पालता है?) 
उत्तर : 
स्वामी श्वानं पुत्रप्रीत्या पोषयति। 
(स्वामी कुत्ते को पुत्र के समान प्रेम से पालता है।) 

प्रश्न 19. 
अस्मिन् जगति प्रत्येकं कुत्र निमग्नो भवति? 
(इस संसार में प्रत्येक कहाँ संलग्न होता है?) 
उत्तर : 
अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। 
(इस संसार में प्रत्येक अपने-अपने कार्य में संलग्न होता है।) 

प्रश्न 20. 
कोऽपि किम् न सहते? 
(कोई भी क्या सहन नहीं करता है?) 
उत्तर : 
कोऽपि वृथा कालक्षेपं न सहते। 
(कोई भी व्यर्थ में समय बिताना सहन नहीं करता है।) 

(ख) प्रश्न निर्माणम् - 

प्रश्न 1. 
रेखाडितपदान्यधिकत्य प्रश्ननिर्माणं करुत - 

  1. कश्चन भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। 
  2. तेन सह क्रीडितुं कोऽपि वयस्येषु उपलभ्यमानः नासीत्। 
  3. सर्वेऽपि बालकाः विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः बभूवुः। 
  4. तन्द्रालुर्बालः एकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेशः। 
  5. अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि। 
  6. अहं भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यास्य मुखं द्रक्ष्यामि। 
  7. एते निष्कुटवासिन एव प्राणिनो मम वयस्याः सन्तु। 
  8. सः पुष्पोद्याने व्रजन्तं मधुकरं दृष्टवान्। 
  9. बालः तं मधुकरं क्रीडाहेतोराह्वयत्। 
  10. मधुकरः द्विस्त्रिरस्याह्वानमेव न मानयामास। 
  11. ततो भूयो भूयः बालः हठम् आचरति। 
  12. अनेन कीटेन मिथ्यागर्वं कृतम्। 
  13. भ्रमितः बालः चटकमेकम् अपश्यत्। 
  14. ते स्वादूनि भक्ष्यकवलानि दास्यामि। 
  15. एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। 
  16. सः बालः पलायमानं कमपि श्वानम् अवालोकयत्। 
  17. स्वामी मां पुत्रप्रीत्या पोषयति। 
  18. सर्वैरेवं निषिद्धः सः बालः विनितमनोरथः अभवत्। 
  19. अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। 
  20. सः विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं लेभे। 

उत्तर : 
प्रश्न-निर्माणम् -

  1. कश्चन भ्रान्तः बालः कदा क्रीडितुं निर्जगाम?
  2. तेन सह क्रीडितुं कोऽपि केषु उपलभ्यमानः नासी? 
  3. के विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः बभूवुः? 
  4. तन्द्रालुबल: एकाकी कुत्र प्रविवेश? 
  5. अहं कथं विनोदयिष्यामि? 
  6. अहं भूयः कस्य मुखं द्रक्ष्यामि? 
  7. एते के मम वयस्याः सन्तु? 
  8. सः पुष्पोद्याने कम् दृष्टवान्? 
  9. बालः कम् क्रीडाहेतोराह्वयत्? 
  10. मधुकरः किम् न मानयामास? 
  11. ततो भूयो भूयः बालः किम् आचरति? 
  12. अनेन कीटेन किम् कृतम्? 
  13. भ्रमितः बालः कम् अपश्यत्? 
  14. ते स्वादूनि कानि दास्यामि? 
  15. एते पक्षिणो केषु नोपगच्छन्ति? 
  16. सः बालः पलायमानं कम् अवालोकय? 
  17. स्वामी मां कथं पोषयति? 
  18. कथं सः बालः विनितमनोरथः अभवत्? 
  19. अस्मिन् जगति प्रत्येकं कुत्र निमग्नो भवति? 
  20. सः किम् भूत्वा महती वैदुषीं लेभे? 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

(ग) कथाक्रम-संयोजनम् -

प्रश्न 1. 
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां कथाक्रमानुसारेण संयोजनं कुरुत - 

  1. न कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं सहते। 
  2. एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। 
  3. भ्रान्तः बालः चिन्तयामास-अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि। 
  4. स्वोचितमहमपि करोमीति विचार्य सः पाठशालामुपजगाम। 
  5. सः मधुकरं क्रीडा हेतोराह्वयत्। 
  6. नमः एतेभ्यः यैर्मे तन्द्रालुतायां कुत्सा सम्पादिता। 
  7. चटकपोतः स्वकर्मव्यग्रो बभूव। 
  8. कुक्कुरः आह-स्वामिनो गृहे रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यम्। 
  9. अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। 
  10. मधुकरः द्विस्त्रिरस्याद्वानमेव न मानयामास। 

उत्तर : 
वाक्य-संयोजनम् 

  • भ्रान्तः बालः चिन्तयामास-अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि। 
  • सः मधुकरं क्रीडाहेतोराह्वयत्। 
  • मधुकरः द्विस्त्रिरस्याद्वानमेव न मानयामास। 
  • अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। 
  • चटकपोतः स्वकर्मव्यग्रो बभूव। 
  • एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। 
  • कुक्कुरः आह-स्वामिनो गृहे रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यम्। 
  • न कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं सहते। 
  • नमः एतेभ्यः यैर्मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। 
  • स्वोचितमहमपि करोमीति विचार्य सः पाठशालामुपजगाम। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रश्न 2. 
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां क्रमसहितं संयोजनं कृत्वा लिखत - 

  1. सर्वैरेव निषिद्धः स बालः विचारं कृत्वा त्वरितं पाठशालामुपजगाम। 
  2. चटकः तु 'नीडः कार्यो बटद्रुशाखायां तद्यामि कार्येण' इत्युक्त्वा गतवान्। 
  3. ततः विद्याव्यसनी भूत्वा सः महती वैदुषीं प्रथां सम्पदं च लेभे। 
  4. सः एकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश। 
  5. खिन्नः बालकः परिक्रम्य कमपि श्वानमवालोकयत्। 
  6. मधुकरः अगायत् - 'वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा' इति।
  7. सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्। 
  8. कश्चन भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। 
  9. त्यज शुष्कमेतत् तृणम् स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि। 
  10. बालः अन्यतो दत्तदृष्टिश्चटकमेकं दृष्ट्वा अवदत्-'एहि क्रीडावः।' 

उत्तर : 
बाक्य-संयोजनम्

  • कश्चन भ्रान्तः बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। 
  • सः एकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश। 
  • सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्। 
  • मधुकरः अगायत्-'वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा' इति। 
  • बालः अन्यतो दत्तदृष्टिश्चटकमेकं दृष्ट्वा अवदत्-'एहि क्रीडावः।' 
  • त्यज शुष्कमेतत् तृणम् स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि। 
  • चटकः तु 'नीडः कार्यों बद्रुशाखायां तद्यामि कार्येण' इत्युक्त्वा गतवान्।
  • खिन्नः बालकः परिक्रम्य कमपि श्वानमवालोकयत्। 
  • सर्वैरेव निषिद्धः स बालः विचारं कृत्वा त्वरितं पाठशालामुपजगाम। 
  • ततः विद्याव्यसनी भूत्वा सः महती वैदुषीं प्रथां सम्पदं च लेभे। 

भ्रान्तो बालः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ 'संस्कृत प्रौढपाठावलिः' नामक ग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इस कथा में एक ऐसे बालक का चित्रण है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में लगा रहता है। यहाँ तक कि वह खेलने के लिए पशु-पक्षियों तक का आवाहन (आह्वान) करता है किन्तु कोई उसके साथ खेलने के लिए तैयार नहीं होता। इससे वह बहुत निराश होता है। अन्ततः उसे बोध होता है कि सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं। केवल वही बिना किसी काम के इधर-उधर घूमता रहता है। वह निश्चय करता है कि अब व्यर्थ में समय गँवाना छोड़कर अपना कार्य करेगा। 

पाठ के गद्यांशों का सप्रसङ्ग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या -

1. भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतस्ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः। तन्द्रालुर्बालो लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन्नेकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश। स चिन्तयामास-विरमन्त्वेते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि। ननु भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम्। सन्त्वेते निष्कुटवासिन एव प्राणिनो मम वयस्या सन्तु इति। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • भ्रान्तः = भ्रमित। 
  • कश्चन = कोई। 
  • क्रीडितम् = खेलने के लिए। 
  • निर्जगाम = निकल गया। 
  • केलिभिः = खेल द्वारा (क्रीडाभिः)। 
  • कालं क्षेप्तुम् = समय बिताने के लिए। 
  • वयस्येषु = मित्रों में, सहपाठियों में (मित्रेषु)। 
  • यतः = क्योंकि। 
  • स्मृत्वा = याद करके। 
  • त्वरमाणाः = शीघ्रता करते हुए। 
  • तन्द्रालुः = आलसी। 
  • दृष्टिपथम् = निगाह को। 
  • परिहरन् = बचाता हुआ। 
  • एकाकी = अकेला। 
  • प्रविवेश = प्रविष्ट हो गया। 
  • चिन्तयामास = सोचा। 
  • एते वराकाः = इन बेचारों को। 
  • विरमन्तु = रहने दो। 
  • पुस्तकदासाः = पुस्तकों के गुलाम। 
  • आत्मानम् = स्वयं को। 
  • विनोदयिष्यामि = मनोरंजन करूँगा। 
  • भूयः = फिर से। 
  • द्रक्ष्यामि = देखूगा। 
  • उपाध्यायस्य = गुरु का। 
  • निष्कुटवासिनः = वृक्ष के कोटर में रहने वाले। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भ्रान्तो बालः' नामक पाठ से उद्धृत है, जो मूलतः 'संस्कृत प्रौढपाठावलिः' नामक ग्रन्थ से संकलित किया गया है। इस अंश में एक भ्रमित बालक की गतिविधियों का चित्रण हुआ है, वह अध्ययन में मन न लगाकर खेलने के लिए अकेला ही बाहर निकल जाता है। 

हिन्दी-अनुवाद - कोई भटका (पथभ्रष्ट) बालक विद्यालय जाने के समय पर खेलने के लिए बाहर निकल गया। लेकिन उसके साथ खेलकूद में समय बिताने के लिए, उस समय कोई भी साथी (मित्र) उसे नहीं मिल रहा था। क्योंकि वे सभी पहले दिन के (विद्यालय में पठित) पाठों को याद कर विद्यालय जाने की जल्दी में थे। आलसी वह बालक लज्जा (शर्म) के कारण उनकी निगाह बचाकर अकेला ही किसी उद्यान (बाग) में चला जाता है। 

उसने सोचा- "रहने दो इन बेचारे पुस्तकदासों को अर्थात् ये किताबी कीड़े मेरे साथ खेलने नहीं चलते हैं तो रहने दो। मैं तो अपना मनोरंजन ही करूँगा। नहीं तो फिर से उस कुपित शिक्षक का मुँह देखना पड़ेगा। (विद्यालय में गया तो) ठीक है, मैं इन कोटरवासियों (वृक्ष के कोटर रूपी घर में रहने वाले) पक्षियों को ही साथी बना लेता हूँ।" (पक्षी ही मेरे साथ खेलने वाले साथी होंगे।) 

सप्रसङ्गसंस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'भ्रान्तो बालः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् पाठे अध्ययनात् विमुखस्य एकस्य भ्रमितबालकस्य व्यवहारपरिवर्तनस्य कथा वर्तते। प्रस्तुतांशे भ्रमित बालकस्य पठनसमये क्रीडनार्थं बहिर्गमनस्य तस्य विचाराणां च वर्णनं वर्तते। 

संस्कृत-व्याख्या-कोऽपि भ्रमितः बालकः विद्यालयगमनकाले खेलितुं निष्क्रान्तः। परन्तु तेन बालकेन साकं क्रीडाभिः समयं यापयितुं तदा न कोऽपि मित्रेषु प्राप्तः आसीत्। यतोहि ते सर्वेऽपि मित्रजनाः पूर्वदिवसस्य पठितपाठानां स्मरणं कृत्वा विद्यालयं प्रति गन्तुं त्वरां कुर्वन्तः आसन्। अलसः बालकः लज्जावशात् तेषां मित्राणां दृष्टिमार्गमपि परित्यजन् एकाकी एव कमपि उपवनं प्रविष्टवान्। 

अर्थात् सः भ्रमितः बालकः विद्यालयं न गत्वा एकाकी एव क्रीडनार्थं उद्यानं प्रति अगच्छत्। सः भ्रान्तः बालकः उद्याने एकाकी आगत्य विचारं कृतवान्—ऐते पुस्तकानां दासाः अधमजनाः दूरीभवन्तु। अहं तु भूयः स्वामेव विनोदयुक्तं करिष्यामि। निश्चयेन पुनः क्रोधयुक्तस्य गुरोः मुखम् अवलोकयिष्यामि। इमे वृक्षकोटरनिवासिनः एव मदीय मित्राणि भवन्तु। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  • क्रीडितुम् - क्रीड् + तुमुन्। 
  • निर्जगाम - निर् + गम् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
  • केलिभिः - केलि शब्द, तृतीया विभक्ति, बहुवचन।
  • क्षेप्तुम् - क्षिप् + तुमुन्। 
  • वयस्येषु - वयस्य शब्द, सप्तमी, विभक्ति, बहुवचन। 
  • उपलभ्यमानः - उप + लभ् + यत् + शानच्। 
  • यतस्ते - यतः + ते (विसर्ग-सत्व सन्धि)। 
  • स्मृत्वा - स्मृ + क्त्वा। 
  • बभूवुः - भू धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। 
  • परिहरन्-परि + हृ + शत। 
  • विरमन्त्वेते-विरमन्तु + एते (यण् सन्धि)। 
  • द्रक्ष्यामि-दृश् धातु, लृट् लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

2. अथ स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत्। स द्विस्त्रिरस्याह्वानमेव न मानयामास। ततो भूयो भूयः हठमाचरितबाले सोऽगायत्-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति। तदा स बालः 'कृतमनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन' इत्यन्यतो दत्तदृष्टिचटकमेकं चञ्च्वा तृणशलाकादिकमाददानमपश्यत्। उवाच च-"अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्राडावः। त्यज शुष्कमेतत् तृणम् स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि" इति। स तु 'नीडः कार्यों बटद्रमशाखायां तद्यामि कार्येण' इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभव।

कठिन-शब्दार्थ : 

  • पुष्योद्यानम् = बगीचा।
  • व्रजन्तम् = जाते हुए (गच्छन्तम्)। 
  • मधुकरम् = भ्रमर को (भ्रमरम्)। 
  • दृष्ट्वा = देखकर। 
  • आह्वत् = बुलाया। 
  • न मानयामास = नहीं माना। 
  • भूयो भूयः = बार-बार। 
  • हठमाचरति = हठ करने पर। 
  • अगायत् = गाया। 
  • मधुरसंग्रह व्यग्राः = पुष्प-रस के संग्रह में लगे हुए। 
  • मिथ्यागवितेन = झूठे गर्व वाले। 
  • कीटेन = कीड़े के द्वारा। 
  • अन्यतः = दूसरी ओर। 
  • दत्तदृष्टिः = निगाह करके। 
  • चटकम् = चिड़िया। 
  • चञ्च्वा = चोंच से। 
  • तृणशलाकादिकम् = घास के तिनके को। 
  • आददानम् = ले जाते हुए को। 
  • चटकपोत! = चिड़िया के बच्चे!। 
  • एहि = आओ। 
  • शुष्कम् = सूखे। 
  • स्वादूनि = स्वादयुक्त। 
  • भक्ष्यकवलानि = खाने के लिए उपयुक्त कौर। 
  • ते = तुम्हें। 
  • बटद्रुमशाखायाम् = वटवृक्ष की शाखा पर।
  • नीडः = घोंसला। 
  • यामि = जाता हूँ। 
  • स्वकर्मव्यग्रः = अपने कार्य में संलग्न। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भ्रान्तो बालः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने आलस्य त्यागकर तथा इधर-उधर भटकते हुए अपना समय व्यर्थ में न गंवाकर अपने कर्तव्य में संलग्न होने की प्रेरणा प्रदान की है। प्रस्तुत अंश में भ्रमित बालक द्वारा बगीचे में जाकर एक भ्रमर तथा चिड़िया के बच्चे को अपने साथ खेलने हेतु बुलाये जाने का एवं उनके द्वारा अपने कार्य की व्यस्तता बतलाते हुए उसके साथ व्यर्थ में खेलने से मना किये जाने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - उसके बाद उसने बगीचे में जाते हुए भ्रमर को देखा तो उसे अपने साथ खेलने के लिए बुलाया। दो-तीन बार उसके बुलाने पर भी वह भ्रमर नहीं माना। तब उस बालक के बार-बार हठ (जिद) करने पर वह गाने लगा अर्थात् "हम तो मधु (फूलों का मीठा रस, शहद) का संचय करने में व्यस्त हैं।" (हमारे पास खेलने को समय नहीं है)।

तब उस बालक ने "व्यर्थ में, गर्व (घमण्ड) से युक्त इस कीड़े को रहने दो।" अतः दूसरी ओर निगाह करने पर, चोंच में घास (सूखी घास) के तिनके ले जाते हुए चटक (नर चिड़िया) को देखा और (वह) बोला-"अरे प्रिय चिड़े। (चिड़िया के बच्चे) तुम मनुष्य (मेरे) मित्र बनोगे, चलो खेलते हैं। छोड़ो इस सूखी घास को, मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने के लिए उपयुक्त कौर दूंगा। परन्तु वह तो 'वटवृक्ष की शाखा' (टहनी) पर घोंसला बनाना है, इसलिए मुझे तो कार्य (करना) है, मैं जा रहा हूँ। यह कहकर अपना कार्य करने में व्यस्त हो गया। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्गः-प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'भ्रान्तो बालः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अध्ययनात् विमुखः एकः भ्रमितः बालकः विद्यालयगमनकाले एकाकी एवं क्रीडितुम् उद्यानं गच्छति। प्रस्तुतांशे उद्याने क्रीडनार्थं कमपि अन्विष्यमाणस्य भ्रान्तबालकस्य विचाराणां तथा भ्रमरनिषेधानन्तरं चटकपोतस्य आह्वानस्य तस्यापि च निषेधस्य वर्णनं वर्तते। 

संस्कृत-व्याख्या - तदनन्तरं सः भ्रान्तः बालः कुसुमोपवनं भ्रमन्तं भ्रमरं विलोक्य तं भ्रमरं खेलितुम् आमन्त्रितवान्। द्वि-त्रिवारं आमन्त्रितोऽपि स भ्रमरः तस्य बालकस्य वचनं प्रति किञ्चिदपि ध्यानं न दत्तवान्। तदनन्तरं वारम्वारं आग्रहपूर्वकं व्यवहारं कुर्वति सति बालके सः भ्रमरः अवदत्-वयं भ्रमराः पुष्परससंकलनतत्पराः स्म। 

यदा भ्रमरेण तेन भ्रमितबालकेन सह क्रीडितुं निषेधः कृतः, तदा सः बालकः स्वमनसि अवदत् - 'अनेन व्यर्थाहङ्कारयुक्तेन कीटेन भ्रमरेण निषेधः कृतः' अतस्तेन बालकेन अन्यत्र दृष्टिः दत्तः, ततः सः एकं खगं (चिटिका) चञ्चुपुटेन तृणशलाकादिकं गृह्णान्तम् दृष्टवान्। सः अवदत्-"अरे पक्षीशिशुः (चटकशिशुः)! मम मानवस्य सखा भवतु, आगच्छ आवां खेलावः। इदं शुष्कतृणशलाकं त्यज, अहं तुभ्यं स्वादिष्टानि भक्षणीयग्रासाः प्रदास्यामि।" किन्तु सोऽपि चटकपोतः"बटवृक्षस्य शाखायां मया नीड़ः निर्मितव्यः, तस्मात् अनेन कार्येणारं गच्छामि" इति कथयित्वा सः स्वस्य कार्येषु तत्परोऽभवत्। अर्थात् चटकपोतेनापि तेन सह क्रीडितुं निषेधः कृतः। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  1. पुष्योद्यानम् - पुष्प + उद्यानम् (गुण सन्धि)। 
  2. व्रजन्तम् - व्रज + शतृ, द्वितीया विभक्ति, एकवचन। 
  3. दृष्ट्वा - दृश् + क्त्वा। 
  4. आह्वयत - आ + ह्वे धातु, लङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 
  5. आचरति - आ + चर् धातु, लट् लकार प्रथम पुरुष, एकवचन। 
  6. सोऽगायत् - सः + अगायत् (विसर्ग-ओत्व सन्धि)। 
  7. इत्यन्यतः - इति + अन्यतः (यण् सन्धि)। 
  8. तु, लट् लकार, उत्तम पुरुष, द्विवचन। 
  9. तद्यामि - तत् + यामि (व्यञ्जन सन्धि)। 
  10. शाखायाम् - शाखा शब्द, सप्तमी विभक्ति, एकवचन। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

3. तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तदन्वेषयाम्यपरं मानुषोचितं विनोदयितारमिति परिक्रम्य पलायमानं कमपि श्वानमवालोकयत्। प्रीतो बालस्तमित्थं संबोधयामास-रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम्। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत् 
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य। 
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि॥ इति। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • खिन्नः = दुःखी। 
  • मानुषेषु = मनुष्यों के। 
  • नोपगच्छन्ति = पास नहीं जाते हैं। 
  • अन्वेषयामि = खोजता हूँ। 
  • विनोदयितारम् = मनोरंजन करने वाले को। 
  • परिक्रम्य = घूमकर। 
  • पलायमानं = भागते हुए को। 
  • श्वानम् = कुत्ते को (कुक्कुरम्)। 
  • अवालोकयत् = देखा। 
  • प्रीतः = प्रसन्न। 
  • संबोधयामास = संबोधित किया। 
  • पर्यटसि = भ्रमण कर रहे हो। 
  • निदाघदिवसे = गर्मी के दिन में। 
  • प्रच्छायशीतलम् = शीतल छाया का। 
  • तरुमूलम् = पेड़ के नीचे। 
  • क्रीडासहायम् = खेल में सहयोगी। 
  • अनुरूपम् = उपयुक्त। 
  • कुक्कुरः = कुत्ता। 
  • माम् = मुझको। 
  • पुत्रप्रीत्या = पुत्र के समान प्रसन्नता से। 
  • पोषयति = पालन-पोषण करता है। 
  • रक्षानियोगकरणात् = रक्षा के कार्य में लगे होने से। 
  • ईषदपि = थोड़ा-सा भी। 
  • भ्रष्टव्यम् = हटना चाहिए। 

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भ्रान्तो बालः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में भ्रमित बालक द्वारा अपने साथ खेलने हेतु अन्य किसी को न पाकर एक कुत्ते को ही बुलाने का तथा उस कुत्ते द्वारा भी अपने स्वामी के कार्य की व्यस्तता बताते हुए उसके साथ खेलने से मना कर दिये जाने की घटना का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - इसके बाद दुःखी हुए उस बालक ने पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते, इसलिए मनुष्य की तरह मनोरंजन करने वाले किसी अन्य (प्राणी) को देखता (खोजता) हूँ (ऐसा सोचकर) घूमकर उसने भागे जाते हुए एक कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुए बालक ने उसे इस प्रकार से सम्बोधित किया—“अरे। मनुष्य के मित्र! क्यों तुम इस गर्मी के दिन में (व्यर्थ) भटक रहे हो? इस पेड़ के नीचे की सघन और शीतल (ठण्डी) छाया का आश्रय ले लो। मैं भी तुम्हारे 
जैसे किसी, साथ खेलने वाले (सहयोगी) की तलाश में था।" कुत्ते ने उत्तर दिया भाँति प्रसन्नतापूर्वक भोजन देता है (पोषण करता है) उस स्वामी के घर की रक्षाकर्म (रखवाली) को करने में मैं जरा भी असावधानी नहीं कर सकता।" (अतः मैं जा रहा हूँ।) 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'भ्रान्तो बालः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। यदा भ्रमरेण चटकपोतेन च भ्रमितबालकेन सह क्रीडितुं निषेधः कृतः तदा खिन्नः सः बालकः क्रीडनाय एकं कुक्कुरमाह्वायतीति अंशेऽस्मिन् वर्णितम्।

संस्कृत-व्याख्या - तदनन्तरं दुःखी भूत्वा सः भ्रान्तः बालकः विचारं करोति यत् इमे खगाः मनुष्येषु समीपं न गच्छन्ति। तस्मात् अन्यं कमपि मानवोचितं मनोरञ्जनकारिणम् अन्वेषयामि = अन्वेषणं करोमि। एवं विचार्य परिक्रम्य च सः बालकः धावन्तं कमपि कुक्कुरम् अपश्यत्। प्रसन्नो भूत्वा सः बालकः तम् कुक्कुरं प्रति एवं प्रकारेण संबोधनं कृतवान् अरे मानवानां सखे! अस्मिन् ग्रीष्मकाले किमर्थं भ्रमसि? वृक्षस्य अधः शीतलच्छायायाः सेवनं कृत्वा स्वस्य परिश्रमजन्यं स्वेदं मर्जय। अहमपि मया सह क्रीडनार्थं सहायकरूपेण भवदनुरूपमेव अवलोकयामि। 

तदनन्तरं श्वानः प्रत्युत्तरेण एवम् अवदत्-यः मम स्वामी मां पुत्रवत् प्रेम्णा पालयति, तस्य भर्तुः गेहे सुरक्षाकार्यात् मया अल्पमात्रमपि न पतितव्यम्। अत एवाहं गच्छामि। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी 

  1. उपगच्छन्ति - उप + गम् धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। 
  2. परिक्रम्य - परि + क्रम् + ल्यप्। 
  3. अवालोकयत् - अव + आ + लोक् धातु, लङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 
  4. मानुषाणाम् - मानुष शब्द, षष्ठी विभक्ति, बहुवचन। 
  5. अस्मिन् - अस्मद् शब्द, सप्तमी विभक्ति, एकवचन। 
  6. प्रत्याह - प्रति + आह (यण् सन्धि)। 
  7. भ्रष्टव्यम् - भ्रश् + तव्यत्। 

सर्वै एवं निषिद्धः स बालो विनितमनोरथः सन्-'कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। न कोऽप्यहमिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैर्मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितमहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालामुपजगाम।। 
ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महती वैदुषी प्रथां सम्पदं च अलभत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • सर्वैरेवम् = सभी के द्वारा इस प्रकार।
  • निषिद्धः = मना किया गया। 
  • विजितमनोरथः = टूटी इच्छाओं वाला। 
  • जगति = संसार में। 
  • स्वस्वकृत्ये = अपने-अपने कार्य में।
  • वृथा = व्यर्थ में। 
  • कालक्षेपं = समय बिताना। 
  • सहते = सहन करता है। 
  • तन्द्रालुतायां = आलस्य में। 
  • कुत्सा = घृणाभाव। 
  • समापादिता = उत्पन्न कर दिया है। 
  • विचार्य = विचार करके। 
  • त्वरितं = शीघ्र ही। 
  • उपजगाम = चला गया। 
  • विद्याव्यसनी = विद्या में रत रहने वाला। 
  • महतीम् = महान्। 
  • वैदुषीम् = विद्वान् के योग्य। 
  • प्रथां = प्रसिद्धि को। 
  • सम्पदं = सम्पत्ति को। 
  • अलभत् = प्राप्त किया। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 6 भ्रान्तो बालः

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भ्रान्तो बालः' नामक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में एक भ्रमित बालक के मन में आलस्य के प्रति घृणा उत्पन्न होने का तथा विद्याभ्यासी बनकर उसके द्वारा प्रसिद्धि एवं सम्पत्ति प्राप्त करने की घटना का प्रेरणास्पद वर्णन हुआ है। 

हिन्दी-अनुवाद - सभी के द्वारा इस प्रकार से मना कर दिए जाने पर खण्डित काम (निराश) वह बालक किस प्रकार से इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कार्य में तल्लीन रहता है। मेरी तरह कोई भी व्यर्थ में समय व्यतीत नहीं करता। इन सभी (प्राणियों) को नमन है जिन्होंने मुझमें आलस्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी। अतः मैं भी अपने योग्य कार्य करता हूँ, यह सोचकर वह शीघ्र पाठशाला में चला गया। तब से लेकर वह (भ्रान्त) बालक विद्याभ्यासी बनकर महान् विद्वज्जनयोग्य प्रसिद्धि को तथा सम्पदा (धन-धान्य) को प्राप्त हुआ। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'भ्रान्तो बालः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् पाठे एका कथामाध्यमेन अध्ययनात् विमुखस्य भ्रान्तबालकस्य व्यवहारपरिवर्तनस्य विद्याध्ययने तस्य तत्परतायाश्च प्रेरणास्पदं वर्णनं वर्तते। प्रस्तुतांशे उद्याने भ्रमितस्य बालकस्य हृदयपरिवर्तनस्य यथार्थ चित्रणं वर्तते। 

संस्कैत-व्याख्या - भ्रमर-खग-कुक्कुरादिभिः सकलजनैः भ्रमितबालकेन सह क्रीडनाय निषिद्धः सः बालकः नष्टमनोरथो भूत्वा विचारयति यत्-"केन प्रकारेण अस्मिन् संसारे सर्वेऽपि स्व-स्व कार्येषु संलग्नाः भवन्ति। कोऽपि तथा व्यर्थं समय न यापयति यथाऽहम्। ऐभ्यः सर्वेभ्यः नमः, यैः मम आलस्यवृत्तिं समाप्ता कृता। अत एव अहमपि स्वानुरूपं कार्यं करोमि, इत्थं विचारं कृत्वा सः बालः शीघ्रमेव विद्यालयम् अगच्छत्।तस्मात् कालादेव सः बालकः विद्याग्रहणे तत्परो भूत्वा महान् विद्वत्तां, प्रसिद्धिं, सम्पत्तिं च प्राप्तवान्। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  • सर्वैरेवम् - सर्वैः + एवम् (विसर्ग-रुत्व सन्धि)। 
  • निषिद्धः - नि + षिद् + क्त। 
  • जगति - जगत् शब्द, सप्तमी विभक्ति, एकवचन। 
  • एतेभ्य: - एतद् शब्द, चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन। 
  • विचार्यः - वि + चर् + णिच् + ल्यप्। 
  • भूत्वा - भू + क्त्वा।
Prasanna
Last Updated on May 25, 2022, 9:39 a.m.
Published May 24, 2022