RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

RBSE Class 9 Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए) 
(क) कविः कां सम्बोधयति? 
(ख) कविः वाणीं कां वादयितुं प्रार्थयति? 
(ग) कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति? 
(घ) गीतिं कथं गातुं कथयति? 
(ङ) सरसाः रसालाः कदा लसन्ति? 
उत्तराणि-
(क) वाणीम् (सरस्वतीम्)। 
(ख) वीणाम्। 
(ग) नवीनाम्। 
(घ) मृदुम्। 
(ङ) वसन्ते। 

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प्रश्न 2. 
पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए) 
(क) कविः वाणी किं कथयति? 
(कवि सरस्वती से क्या कहता है?) 
उत्तरम्  : 
कविः कथयति यत् "अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।" 
(कवि कहता है कि "हे सरस्वती! नवीन वीणा को बजाइए।") 

(ख) वसन्ते किं भवति? 
(वसन्त में क्या होता है?) 
उत्तरम्  : 
वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललित-कोकिलाकाकलीनां कलापाः च विलसन्ति। 
वसन्त में मधुर आम्रपुष्पों से पीली बनी हुई सरस आम्र के वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित होती हैं तथा उन पर बैठी हुई एवं मनमोहक ध्वनि करती हुई कोयलों की ध्वनियाँ (कलरव) भी सुशोभित होती हैं। 

(ग) सलिलं तव वीणामाकर्ण्य कथम् उच्चलेत? 
(जल तुम्हारी वीणा को सुनकर किस प्रकार उछल पड़े?) 
उत्तरम्  : 
सलिलं तव वीणामाकर्ण्य सलीलम् उच्चलेत्। 
(जल तुम्हारी वीणा को सुनकर क्रीडा करता हुआ उछल पड़े।) 

(घ) कविः भगवती भारती कस्याः नद्याः तटे (कुत्र) मधुमाधवीनां नतां पंक्तिम् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति? 
(कवि भगवती सरस्वती से किस नदी के तट पर कहाँ मधुर मालती लताओं की झुकी हुई पंक्ति को देखकर वीणा बजाने के लिए कहता है?) 
उत्तरम्  : 
कविः यमुनायाः सवानीरतीरे मधुमाधवीनां नतां पंक्तिं अवलोक्य भगवतीं वीणां वादयितुं कथयति। 
(कवि यमुना नदी के बेंत से घिरे हुए तट पर मधुर मालती लताओं की झुकी हुई पंक्ति को देखकर वीणा बजाने के लिए कहता है।) 

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प्रश्न 3. 
'क' स्तम्भे पदानि, 'ख' स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि। तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत -

'क' स्तम्भः

'ख' स्तम्भः

(क) सरस्वती

1. तीरे

(ख) आम्रम्

2. अलीनाम्

(ग) पवनः

3. समीरः

(घ) तटे

4. वाणी

(ङ) भ्रमराणाम्

5. रसालः

उत्तरम् :

'क' स्तम्भः

'ख' स्तम्भः

(क) सरस्वती

4. वाणी

(ख) आम्रम्

5. रसालः

(ग) पवनः

3. समीरः

(घ) तटे

1. तीरे

(ङ) भ्रमराणाम्

2. अलीनाम्

प्रश्न 4. 
अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य संस्कृतभाषया वाक्यरचनां कुरुत 
(क) निनादय 
(ख) मन्दमन्दम् 
(ग) मारुतः 
(घ) सलिलम् 
(ङ) सुमनः। 
उत्तरम् :
(क) निनादय-हे सरस्वती! नवीनां वीणां मधुरं निनादय। 
(ख) मन्दमन्दम्-वसन्ते वायुः मन्दमन्दं वहति। 
(ग) मारुतः-मलयमारुतः सुखदः भवति। 
(घ) सलिलम्-गङ्गायाः सलिलम् अमृततुल्यं भवति। 
(ङ) सुमनः-प्रफुल्लः सुमनः सर्वेषां मनः मोहयति। 

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प्रश्न 5. 
प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत 
उत्तर : 
हे वाग्देवी ! नूतन वीणा बजाओ। कोई सुन्दर नीति से युक्त गीत, मनोहर ढंग से गाओ। इस वसन्त काल में मधुर आम्र पुष्पों से पीली बनी सरस (रसीले) आमों के वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं और उन पर बैठे तथा मनभावन कूक (कलरव) करते कोकिलों के समूह भी शोभायमान हैं। 
अतः हे वाग्देवी! (अब आप) नूतन वीणा बजाइये। 

प्रश्न 6. 
अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत - 
(क) कठोरम् - ................
(ख) कटु - ................ 
(ग) शीघ्रम् - ................ 
(घ) प्राचीनम् - ................ 
(ङ) नीरसः - ................ 
उत्तरम् :
(क) कठोरम् - मृदुम् 
(ख) कटु - मधुरम् 
(ग) शीघ्रम् - मन्दम् 
(घ) प्राचीनम् - नवीनम् 
(ङ) नीरसः - सरसः। 

परियोजनाकार्यम् - 

प्रश्न :
पाठेऽस्मिन् वीणायाः चर्चा अस्ति। अन्येषां पञ्चवाद्ययन्त्राणां चित्रं रचयित्वा संकलय्य वा तेषां नामानि लिखत। 
उत्तरम् :
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः 1
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः 2

RBSE Class 9 Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठप्रश्नाः -

प्रश्न 1. 
अये वाणि! नवीना ......... निनादय। रिक्तस्थाने पूरणीयपदमस्ति - 
(अ) वीणाम् 
(ब) वीणायाः 
(स) वीणा 
(द) वीणायाम् 
उत्तरम् :
(अ) वीणाम् 

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प्रश्न 2. 
'वसन्ते लसन्तीह सरसा रसाला' - इत्यत्र रेखाङ्कितपदे सन्धिः वर्तते - 
(अ) गुण' 
(ब) अयादि 
(स) दीर्घ 
(द) यण 
उत्तरम् :
(स) दीर्घ 

प्रश्न 3. 
"मन्दमन्दं सनीरे समीरे. ..........।'' रिक्तस्थाने पूरणीय क्रियापदं किम्? 
(अ) वहन्ति 
(ब) वहति 
(स) वहसि 
(द) वहतः 
उत्तरम् :
(ब) वहति 

प्रश्न 4. 
'नतां पंक्तिमालोक्य. .........' इत्यत्र रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तप्रत्ययः कः? 
(अ) तव्यत्
(ब) क्त्वा 
(स) यत् 
(द) ल्यप् 
उत्तरम् :
(द) ल्यप् 

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प्रश्न 5. 
'ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुजे' इति पदेषु का विभक्तिः? 
(अ) सप्तमी 
(ब) द्वितीया 
(स) चतुर्थी 
(द) तृतीया 
उत्तरम् :
(अ) सप्तमी

लघूत्तरात्मक प्रश्न :

संस्कृत में प्रश्नोत्तर - 
 
प्रश्न 1. 
वाणिः कीदृशीं वीणां निनादयतु? 
(सरस्वती कैसी वीणा को बजावे?) 
उत्तर : 
वाणिः नवीनां वीणां निनादयतु। (सरस्वती नवीन वीणा को बजावे।) 

प्रश्न 2. 
कविः कीदृशीं गीतिं गातुं कथयति? (कवि किस प्रकार का गीत गाने को कहता है?) 
उत्तर : 
कविः ललित-नीति-लीनां गीतिं गातुं कथयति। (कवि सुन्दर नीतियों से युक्त गीत गाने को कहता है।) 

प्रश्न 3. 
वसन्ते कीदृशाः रसाला: लसन्ति? (वसन्त में कैसे आम सुशोभित होते हैं?) 
उत्तर : 
वसन्ते सरसाः रसाला: लसन्ति। (वसन्त में रसयुक्त आम सुशोभित होते हैं।) 

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प्रश्न 4. 
ललितकोकिलाकाकलीनां कलापाः कदा विलसन्ति? 
(मनोहर कोयलों की कूज का समूह कब सुशोभित होता है?) 
उत्तर : 
ललितकोकिलाकाकलीनां कलापा: वसन्ते विलसन्ति। 
(मनोहर कोयलों की कूज का समूह वसन्त में सुशोभित होता है।) 

प्रश्न 5. 
कस्याः तीरे सनीरे समीरे मन्दं मन्दं वहति? 
(किसके किनारे पर जलकणों से युक्त शीतल वायु धीरे-धीरे बहती है?) 
उत्तर : 
कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दं मन्दं वहति। 
(यमुना के तट पर जलकणों से युक्त शीतल वायु धीरे-धीरे बहती है।) 

प्रश्न 6. 
कीदृशीं पंक्तिम् अवलोकयतु? (किस प्रकार की पंक्ति को देखो?) 
उत्तर : 
मधुमाधवीनां नतां पंक्तिम् अवलोकयतु। (मधुर मालती लताओं की झुकी हुई पंक्ति को देखो।) 

प्रश्न 7. 
स्वनन्तीम् केषां ततिं प्रेक्ष्य वीणां निनादय? (ध्वनि करती हुई किनकी पंक्ति को देखकर वीणा बजाओ?) 
उत्तर : 
स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य वीणां निनादय। 
(ध्वनि करती हुई काले भौंरों की पंक्ति को देखकर वीणा बजाओ।) 

प्रश्न 8. 
किम् आकर्ण्य सुमं चले? (क्या सुनकर पुष्प हिलने लगे?) 
उत्तर : 
वाणे: अदीनां वीणाम् आकर्ण्य सुमं चलेत्। 
(सरस्वती की ओजस्विनी वीणा को सुनकर पुष्प हिलने लगे।) 

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प्रश्न 9. 
वसन्ते नदीनां कान्तसलिलं किं कुर्यात? 
(वसन्त में नदियों का स्वच्छ जल क्या करे?) 
उत्तर : 
वसन्ते नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। (वसन्त में नदियों का स्वच्छ जल उच्छलित हो उठे।)

प्रश्न 10. 
'भारतीवसन्तगीतिः' पाठः मूलतः कुतः संकलितः? 
('भारतीवसन्तगीतिः' पाठ मूलतः कहाँ से संकलित है?) 
उत्तर : 
'भारतवसन्तगीतिः' पाठः मूलतः 'काकली' इति गीतसंग्रहात् संकलितः। 
('भारतवसन्तगीतिः' पाठ मूल रूप से 'काकली' नामक गीतसंग्रह से संकलित है।) 

प्रश्न 11. 
कविः नवीनां वीणां निनादयितुं कां प्रति कथयति? 
(कवि नवीन वीणा बजाने के लिए किससे कहता है?) 
उत्तर : 
कविः नवीनां वीणां निनादयितुं वाणिं प्रति कथयति। 
(कवि नवीन वीणा बजाने के लिए सरस्वती से कहता है।) 

प्रश्न 12. 
मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभतमालाः कदा लसन्ति? 
(सुन्दर आम्रपुष्प की पीले वर्ण की पंक्तियाँ कब सुशोभित होती हैं?) 
उत्तर : 
मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमाला: वसन्ते लसन्ति। 
(सुन्दर आम्रपुष्प की पीले वर्ण की पंक्तियाँ वसन्त-ऋतु में सुशोभित होती हैं।) 

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प्रश्न 13. 
मन्दमन्दं किम् वहति? (धीरे-धीरे क्या बहता है?) 
उत्तर : 
सनीरं समीरं मन्दमन्दं वहति। (जलयुक्त वायु धीरे-धीरे बहती है।) 

प्रश्न 14. 
कलिन्दात्माजा का वर्तते? 
(कलिन्द की पुत्री कौन है?) 
उत्तर :
कलिन्दात्मजा यमुनानदी वर्तते। 
(कलिन्द की पुत्री यमुना नदी है।) 

प्रश्न 15. 
कविः मधुमाधवीनां कीदृशां पंक्तिं द्रष्टुं कथयति? 
(कवि मधुर मालती लताओं की कैसी पंक्ति देखने के लिए कहता है?) 
उत्तर : 
कविः मधुमाधवीनां नतां पतिं द्रष्टुं कथयति। 
(कवि मधुर मालती लताओं की झुकी हुई पंक्ति को देखने के लिए कहता है।) 

प्रश्न 16. 
अलीनां ततिः कुत्र कुत्र ध्वनिं कुर्वन्ति? 
(भ्रमरों की पंक्ति कहाँ-कहाँ पर ध्वनि करती है?) 
उत्तर : 
अलीनां ततिः ललितपल्लवे पादपे, पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुङ्गे च ध्वनि कुर्वन्ति। 
(भ्रमरों की पंक्ति मन को आकर्षित करने वाले पत्तों से युक्त वृक्षों पर, पुष्पों के समूह पर तथा सुन्दर कुञ्जों में ध्वनि (गुञ्जार) करती है।)

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प्रश्न 17. 
नदीनां कान्तसलिलं कथम् उच्छले? (नदियों का स्वच्छ जल कैसे उच्छलित हो उठे?) 
उत्तर : 
नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। (नदियों का स्वच्छ जल क्रीड़ा करता हुआ उच्छलित हो उठे।) 

प्रश्न 18. 
सरस्वत्याः अदीनां वीणाम् आकर्ण्य किम् चले? 
(सरस्वती की ओजस्विनी वीणा सुनकर क्या हिल उठे?) 
उत्तर : 
सरस्वत्याः अदीनां वीणाम् आकर्ण्य नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत्। 
(सरस्वती की ओजस्विनी वीणा को सुनकर पूर्णतया शान्त पुष्प हिल उठे।) 

प्रश्न-निर्माणम् -

प्रश्न 1. 
रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत - 

  1. अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। 
  2. अये वाणि! ललित-नीतिलीनां गीति मृदुं गाय। 
  3. इह वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति। 
  4. वसन्ते ललितकोकिलाकाकलीनां कलापाः विलसन्ति।
  5. वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः लसन्ति। 
  6. यमुना कलिन्दात्मजानाम्नाऽपि ज्ञायते। 
  7. सवानीरतीरे समीरं मन्दमन्दं वहति। 
  8. मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोकयतु। 
  9. सनीरं मन्दमन्दं समीरम् अनुभवतु। 
  10. ललितपल्लवे पादपे खगाः कलरवं कुर्वन्ति। 
  11. पुष्पपुळे भ्रमराः गुञ्जन्ति। 
  12. मञ्जुकुञ्ज जनाः भ्रमन्ति। 
  13. सरस्वत्याः अदीनां वीणां श्रुत्वा सुमं चलेत्। 
  14. नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। 
  15. जनाः वीणां श्रुत्वा मोदन्ते। 
  16. अयं पाठः 'काकली' इति गीतसंग्रहात् संकलितः। 

उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम 

  1. अये वाणि! काम् निनादय? 
  2. अये वाणि! कीदृशीं गीतिं मृदु गाय? 
  3. इह वसन्ते के लसन्ति? 
  4. वसन्ते कासां कलापाः विलसन्ति? 
  5. कदा मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः लसन्ति?
  6. का कलिन्दात्मजानाम्नाऽपि ज्ञायते? 
  7. कुत्र समीरं मन्दमन्दं वहति? 
  8. कासां नतां पक्तिम् अवलोकयतु? 
  9. कीदृशं समीरम् अनुभवतु? 
  10. ललितपल्लवे पादपे के कलरवं कुर्वन्ति? 
  11. कुत्र भ्रमरा: गुञ्जन्ति? 
  12. कुत्र जनाः भ्रमन्ति? 
  13. कस्याः अदीनां वीणां श्रुत्वा सुमं चले? 
  14. कासां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छले? 
  15. जनाः किम् श्रुत्वा मोदन्ते? 
  16. अयं पाठः कुतः संकलितः?

भारतीवसन्तगीतिः Summary and Translation in Hindi

1. यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः। 
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत् सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु॥

अन्वय - यस्यां (भूमौ) समुद्रः, उत सिन्धुः आपः (सन्ति), यस्याम् अन्नं कृष्टयः सं बभूवुः, यस्याम् इदं जिन्वति प्राणदेजत्, सा भूमिः नः पूर्वपेये दधातु। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' के 'मङ्गलम्' से उद्धृत किया गया है। इसमें मातृभूमि की महिमा का वर्णन करते हुए हम सभी के लिए आवश्यक खाद्य-पदार्थ प्रदान करने की मंगल-कामना की गई है। 

हिन्दी-अनुवाद - जिस (भूमि) में महासागर, नदियाँ और जलाशय (झील, सरोवर आदि) विद्यमान हैं, जिसमें अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ उपजते हैं तथा कृषि, व्यापार आदि करने वाले लोग सामाजिक संगठन बना कर रहते हैं, जिस (भूमि) में ये साँस लेते (प्राणत्) प्राणी चलते-फिरते हैं; वह मातृभूमि हमें प्रथम भोज्य पदार्थ (खाद्य-पेय) प्रदान करे। 

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2. यस्याश्चतस्त्रः प्रदिशः पृथिव्या यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः। 
या बिभर्ति बहुधा प्राणदेजत् सा नो भूमिर्गोष्वप्यन्ने दधातु॥ 
अन्वय - यस्याः पृथिव्याः चतस्त्रः प्रदिशः, यस्याम् अन्नं कृष्टयः सं बभूवुः, या बहुधा प्राणदेजत् बिभर्ति, सा भूमिः नः गोषु अपि अन्ने दधातु। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' के 'मङ्गलम्' से उद्धृत किया गया है। इसमें मातृभूमि की महिमा का वर्णन करते हुए हम सभी के लिए आवश्यक खाद्य-पदार्थ प्रदान करने की मंगल-कामना की गई है। 

हिन्दी-अनुवाद - जिस भूमि में चार दिशाएँ तथा उपदिशाएँ अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ (फल, शाक आदि) उपजाती हैं; जहाँ कृषि-कार्य करने वाले सामाजिक संगठन बनाकर रहते हैं, जो (भूमि) अनेक प्रकार के प्राणियों (साँस लेने वालों तथा चलने-फिरने वाले जीवों) को धारण करती है, वह मातृभूमि हमें गौ आदि लाभप्रद पशुओं तथा खाद्य पदार्थों के विषय में सम्पन्न बना दे। 

3. जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम्। 
सहस्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरन्ती॥ 

अन्वय - बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं जनं यथा औकसं बिभ्रती ध्रुवा इव अनपस्फुरन्ती धेनुः इव पृथिवी मे द्रविणस्य सहस्रं धारादुहाम्। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' के 'मङ्गलम्' से उद्धृत किया गया है। इसमें मातृभूमि की महिमा का वर्णन करते हुए हम सभी के लिए आवश्यक खाद्य-पदार्थ प्रदान करने की मंगल-कामना की गई है। 

हिन्दी-अनुवाद - अनेक प्रकार से विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले तथा अनेक धर्मों को मानने वाले जन-समुदाय को, एक ही घर में रहने वाले लोगों के समान, धारण करने वाली तथा कभी नष्ट न होने देने वाली स्थिर-जैसी यह पृथ्वी हमारे लिए धन की सहस्रों धाराओं का उसी प्रकार दोहन करे जैसे कोई गाय बिना किसी बाधा के दूध देती हो।

पाठ-परिचय :

प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रख्यात कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना 'काकली' नामक गीत-संग्रह से संकलित है। इसमें सरस्वती की वन्दना करते हुए कामना की गई है कि हे सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिससे मधुरमञ्जरियों से पीत पंक्तिवाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुञ्जार और नदियों का (लीला के साथ बहता हुआ) जल, वसन्त ऋतु में मोहक हो उठे। स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गयी यह गीतिका. एक नवीन चेतना का आवाहन करती है तथा ऐसे वीणास्वर की परिकल्पना करती है जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करे। 

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पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद :

1. निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम् 
मृदुं गाय गीति ललित-नीति-लीनाम्। 
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः 
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः 
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्॥1॥ 
निनादय...॥ 

अन्वय - अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललित-नीति-लीनां गीतिं मृदुं गाय। इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललित-कोकिला-काकलीनां कलापाः (विलसन्ति)। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

कठिन-शब्दार्थ :

  • अये वाणि! = हे सरस्वती!। 
  • नवीनां = नवीन (नूतनाम्)। 
  • निनादय = बजाओ/गुंजित करो (नितरां वादय)। 
  • ललितनीतिलीनाम् = सुन्दर नीतियों से युक्त (सुन्दरनीतिसंलग्नाम्)। 
  • मृदुम् = कोमल (मधुरं, चारुः)। 
  • गाय = गाओ (स्तु)। 
  • इह = यहाँ (अत्र)। 
  • वसन्ते = वसन्त-काल में। 
  • मञ्जरी = आम्रपुष्प (आम्रकुसुमम्)। 
  • पिञ्जरीभूतमाला: = पीले वर्ण से युक्त पंक्तियाँ (पीतपङ्क्तयः)।
  • सरसाः = मधुर (रसपूर्णाः)। 
  • रसालाः = आम के वृक्ष (आम्राः)। 
  • लसन्ति = सुशोभित हो रही हैं (शोभन्ते)। 
  • ललित = मनोहर (मनोहरः)।
  • कोकिलाकाकलीनां = कोयलों की आवाज (कोकिलानां ध्वनिः)। 
  • कलापाः = समूह (समूहाः)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गीति हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भारतीवसन्तगीतिः' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ पं. जानकी वल्लभ शास्त्री के प्रसिद्ध गीत-संग्रह 'काकली' से संकलित किया गया समें वाणी की देवी सरस्वती की वन्दना करते हुए वसन्तकालीन मनमोहक तथा अद्भुत प्राकृतिक शोभा का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - हे सरस्वती! नवीन वीणा को बजाओ। सुन्दर नीतियों से युक्त गीत मधुरता से गाओ। इस वसन्त-काल में मधुर आम्र-पुष्पों से पीली बनी हुई सरस आम के वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं और उन पर बैठी हुई एवं मधुर ध्वनियाँ करती हुई कोयलों के समूह भी सुशोभित हो रहे हैं। हे सरस्वती! आप नवीन वीणा बजाइए एवं मधुर गीत गाइए। 

भावार्थ - भारत देश में वसन्त-ऋतु का अत्यधिक महत्त्व है। इस समय प्राकृतिक शोभा सभी के मन को सहज ही आकर्षित करती है। आम के वृक्षों पर मञ्जरियाँ सुशोभित होती हैं तथा उन पर बैठी हुई कोयल मधुर कूजन से सभी के मन को मोह लेती है। कवि ने यहाँ इसी प्राकृतिक सुषमा का सुन्दर वर्णन करते हुए वाग्देवी सरस्वती से नवीन वीणा बजाकर मधुर गीत सुनाने के लिए प्रार्थना की है। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे 
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे 
नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम्॥ 
निनादय...॥ 

अन्वय - कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति) मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अलोक्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • कलिन्दात्मजायाः = यमुना नदी के (यमुनायाः)। 
  • सवानीरतीरे = बेंत की लता से युक्त तट पर (वेतसयुक्ते तटे)। 
  • सनीरे = जल से पूर्ण (सजले)। 
  • समीरे = हवा में (वायौ)। 
  • मन्दमन्दं = धीरे-धीरे (शनैःशनैः)।
  • वहति = बह रही है (चलति)। 
  • मधुमाधवीनां = मधुर मालती लताओं का (मधुमाधवीलतानाम्)। 
  • नताम् = झुकी हुई (नतिप्राप्ताम्)। 
  • अलोक्य = देखकर (दृष्ट्वा)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गीति हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भारतीवसन्तगीतिः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ पं. जानकी वल्लभ शास्त्री के प्रसिद्ध गीत-संग्रह "काकली' से संकलित है। इसमें वाणी की देवी सरस्वती की वन्दना करते हुए यमुना नदी के तट पर झुकी हुई मधुर मालती लताओं की शोभा का चित्रण किया गया है। कवि कहता है कि-

हिन्दी-अनुवाद - बेंत की लताओं से युक्त यमुना नदी के तट पर जल-कणों से युक्त शीतल पवन के धीरे-धीरे बहते हुए तथा मधुर मालती की लताओं को झुकी हुई देखकर हे सरस्वती! आप कोई नवीन वीणा बजाइए। 

भावार्थ - यहाँ कवि ने यमुना नदी के तट की वसन्तकालीन प्राकृतिक शोभा का मनोहारी चित्रण किया है। भारतीय संस्कृति के इस मनोहारी वैशिष्ट्य को दर्शाते हुए कवि ने भारतीय लोगों के हृदय में देश-प्रेम की भावना जागृत करने के लिए माता सरस्वती से नवीन वीणा की तान छेड़ने की प्रार्थना की है। 

3. ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुजे 
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्ज,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्॥ 
निनादय....॥ 

अन्वय - ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे मञ्जुकुञ्ज मलय-मारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • ललितपल्लवे = मन को आकर्षित करने वाले पत्ते (मनोहरपत्रे)। 
  • पादपे = वृक्ष पर (वृक्षे)। 
  • पुष्यपुजे = पुष्पों के समूह पर (पुष्पसमूहे)। 
  • मञ्जुकुजे = सुन्दर लताओं से आच्छादित स्थल पर (शोभनलताविताने)। 
  • मलय-मारुतोचुम्बिते = चन्दन वृक्ष की सुगन्धित वायु से स्पर्श किये गये पर (मलयानिलसंस्पृष्टे)। 
  • स्वनन्तीम् = ध्वनि करती हुई (ध्वनि कुर्वन्तीम्)। 
  • अलीनां = भ्रमरों के (भ्रमराणाम्)। 
  • मलिनाम् = मलिन (कृष्णवर्णाम्)। 
  • ततिम् = पंक्ति को (पंक्तिम्)। 
  • प्रेक्ष्य = देखकर (दृष्ट्वा)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गीति हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भारतीवसन्तग्रीतिः' शीर्षक पाठ से उद्धत है। मूलतः यह पाठ पं. जानकी वल्लभ शास्त्री के प्रसिद्ध गीत-संग्रह 'काकली' से संकलित है। इसमें वाणी की देवी सरस्वती की वन्दना करते हुए भारतवर्ष में वसन्तकालीन शोभा के प्रसंग में कवि ने पुष्पित वृक्षों पर गुजार करते हुए भंवरों का रम्य वर्णन किया है। कवि माँ सरस्वती से कहता है कि 

हिन्दी-अनुवाद - चन्दन-वृक्ष की सुगन्धित वायु से स्पर्श किये गये, मन को आकर्षित करने वाले पत्तों से युक्त वृक्षों, पुष्पों के समूह तथा सुन्दर कुञ्जों पर काले भौंरों की गुजार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे सरस्वती ! नवीन वीणा को बजाओ। 

भावार्थ - इस गीतिका में कवि ने भारत देश के हिमालयी प्रान्तों की महकती प्रकृति का सुन्दर चित्रण करते हुए वहाँ वसन्त के समय चन्दन वृक्षों के स्पर्श से शीतल व सुगन्धित वायु का, कोमल कोंपलों वाले पादपों, बगीचों तथा उन पर गुजार करती भ्रमर-पंक्तियों का उल्लेख किया है। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

4. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम् 
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्, 
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम्॥ 
निनादय....॥ 

अन्वय - तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • अदीनाम् = ओजस्विनी (ओजस्विनीम्)। 
  • आकर्ण्य = सुनकर (श्रुत्वा)। 
  • नितान्तम् = पूर्णतया (अत्यधिकम्)। 
  • शान्तिशीलम् = शान्ति से युक्त (शान्तियुक्तम्)। 
  • सुमम् = पुष्प को (कुसुमम्)। 
  • चलेत् = चल पड़े, हिल उठे (गच्छेत्)। 
  • कान्तसलिलम् = स्वच्छ जल (मनोहरजलम्)। 
  • सलीलम् = क्रीड़ा करता हुआ (क्रीडासहितम्)। 
  • उच्छलेत् = उच्छलित हो उठे (ऊर्ध्वं गच्छेत्)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गीति हमारी पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'भारतीवसन्तगीतिः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ पं. जानकी वल्लभ शास्त्री के प्रसिद्ध गीत-संग्रह 'काकली' से संकलित किया गया है। इसमें वसन्तकालीन शोभा का चित्रण करते हुए सरस्वती देवी से नवीन वीणा का निनाद छेड़ने की मंगल कामना की गई है। कवि कहता है कि - 

हिन्दी-अनुवाद - हे वाग्देवी सरस्वती! तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर, लताओं के अत्यन्त शान्त (निश्चल) पुष्प हिलने लगे (नाचने लगे) तथा नदियों का निर्मल, मधुर जल हिलोरें लेता हुआ (केलि, क्रीड़ा करता हुआ) उछलने लगा। अतः हे वाग्देवी! (अब आप) कोई नूतन वीणा बजाइये। 

भावार्थ - माँ भारती से (वाग्देवी से) कामना करता हुआ कवि कहता है कि वह वीणा पर कोई ऐसा अद्भुत व अपूर्व राग छेडे, ऐसी कोई नतन तान साधे कि उसे सनकर प्रकति के साथ-साथ भारत की शान्त व निष्क जनता जाग उठे। लोगों के हृदयों में उसी प्रकार ओज प्रवाहित हो जाए जिस प्रकार नदी के निश्चल जल में तरङ्गों का नर्तन होने लगता है। सम्पूर्ण भारतवासी स्वदेश रक्षा तथा मातृभूमि प्रेम से ओतप्रोत हो जाएँ।

Prasanna
Last Updated on May 23, 2022, 9:59 a.m.
Published May 20, 2022