Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 4 Hindi Chapter 9 खेजड़ी Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 4 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 4 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts.
सोचें और बताएँ -
प्रश्न 1.
खेजड़ी के बारे में अच्छी बातें कौनकौनसी हैं?
उत्तर :
खेजड़ी रेगिस्तान के धोरों में अकेली मस्त खड़ी रहती है। इसके सहारे कई जीव-जन्तु पलते हैं। |खेजड़ी के पत्ते ऊँट का भोजन हैं और खेजड़ी राहगीरों को विश्राम के लिए छाया देती है।
प्रश्न 2.
खेजड़ी कौन-कौनसे मौसम सहन करती है?
उत्तर :
खेजड़ी सरदी और गरमी का मौसम सहन करती है।
प्रश्न 3.
खेजड़ी के पत्ते किस-किस काम आते हैं?
उत्तर :
खेजड़ी के पत्ते ऊँट के खाने के काम आते हैं। गरीब लोग खेजड़ी के पत्तों के ऊपर बिछौना डालकर सोते हैं।
लिखें -
प्रश्न 1.
सही उत्तर का क्रमाक्षर कोष्ठक में लिखें।
(क) धन-धन शब्द आए हैं
(अ) कैर के लिए
(ब) बोरड़ी के लिए
(स) खेजड़ी की छाँव के लिए
(द) नीम के लिए।
उत्तर :
(स) खेजड़ी की छाँव के लिए।
(ख) खेजड़ी की डाल पर बैठकर कूकती है -
(अ) कौआ
(ब) कोयल
(स) ऊँट
(द) कुरजाँ।
उत्तर :
(ब) कोयल।
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें -
(अ) नितरा ................ थारै।
(ब) आँधी और ............ तूं खेले।
(स) पंथी रुक ............. करै है।
उत्तर :
(अ) ओळयूँ-दोळयूँ
(ब) डुगट
(स) बिसराम।
प्रश्न 3.
खेजड़ी के साथी कौन-कौन से पेड़ हैं?
उत्तर :
कैर और बेर के पेड खेजडी के साथी हैं।
प्रश्न 4.
खेजड़ी से क्या लाभ हैं? लिखिए।
उत्तर :
खेजड़ी से पक्षियों को, पशुओं को और राहगीरों को छाया मिलती है। खेजड़ी के पत्ते ऊँट के भोजन के काम आते हैं। मरुस्थल की गर्मी व तपती धूप में लोगों का एकमात्र सहारा खेजड़ी ही है।
प्रश्न 5.
खड़ी एकली यूँ मदमाती।
कैर, बोरड़ी थारा साथी।
धोरों में यूँ कीकर जीवै?
कियाँ रेत में खावै-पीवै?
उक्त पंक्तियों का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
तू अकेली अपनी ही मस्ती में खड़ी है। कैर और बेर के पेड़ या झाड़ियाँ तेरे साथी हैं। तू रेत के टीलों के बीच कैसे जीवित रह पाती है तथा वहाँ रेत में क्या और कैसे खाती-पीती है।
भाषा की बात -
खेजड़ी के पास हरिण कुलाँचे भरता है। खेजड़ी' और 'हरिण' संज्ञा शब्द हैं। पाठ में आए ऐसे ही संज्ञा शब्दों को छाँटकर लिखें।
उत्तर :
वाक्य - संज्ञा
मरुस्थल में सब गाँव, ढाणी, - मरुस्थल, गाँव,
मजरे तुम्हारा नमन करते हैं - ढाणी, मजरा
मोर, कमेड़ी और कोयल बोलते - मोर, कमेड़ी,
हैं, गोडावण के जोड़े आते हैं - कोयल, गोडावण
कभी डाल पर कोयल बोलती है, - कोयल, कौए
कभी कौए काँव-काँव करते हैं -
ऊँट, पत्ते खाकर अरड़ाता है - ऊँट, पत्ते
राहगीर खेजड़ी की छाँव में - राहगीर, खेजड़ी
विश्राम करते हैं -
पाठ में अनुस्वार (.) अनुनासिक (*) एवं ण वाले शब्द आए हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखें।
उत्तर :
यह भी करें -
खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है। अपने शिक्षक/ शिक्षिका की सहायता से राजस्थान राज्य के राज्य फूल, राज्य पक्षी, राज्य पश के बारे में जानकारी कर लिखें।
उत्तर :
राज्य फूल - रोहिड़ा
राज्य पक्षी - गोडावण
राज्य पशु - चिंकारा व ऊँट
वस्तुनिष्ठ प्रश्न -
प्रश्न 1.
काँव-काँव किसकी आवाज है?
(अ) कोयल
(ब) कमेड़ी
(स) कुरजाँ
(द) कौआ।
उत्तर :
(द) कौआ।
प्रश्न 2.
खेजड़ी के आस-पास कौन कुलाँचे भरता है?
(अ) ऊँट
(ब) मोर
(स) काला हिरण
(द) कौआ।
उत्तर :
(स) काला हिरण
प्रश्न 3.
खेजड़ी के पत्ते कौन खाता है?
(अ) हिरण
(ब) ऊँट
(स) गोडावण
(द) कुरजाँ।
उत्तर :
(ब) ऊँट
प्रश्न 4.
रेगिस्तान में रेत के गुबार को कहते हैं -
(अ) डुगट
(ब) बयार
(स) लू
(द) हवा।
उत्तर :
(अ) डुगट
रिक्त स्थान भरो -
1. कैर, ....... थारा साथी। (मोर/बोरड़ी)
2. धन-धन थारी ......... खेजडी। (पातड़ी/छाँव)
3. लू री लपटी ......... लेवै। (कागला/लावा)
4. दाझण लागै ......... खेजड़ी। (पाँव/लावा)
उत्तर :
1. बोरड़ी
2. छाँव
3. लावा
4. पाँव
सत्य/असत्य -
1. खेजड़ी आँधी और बारिश से खेलती है। (सत्य/असत्य)
2. खेजड़ी के पास गोडावण के जोड़े घूमते हैं। (सत्य/असत्य)
3. खेजड़ी बारह महीनों हरी-भरी रहती है। (सत्य/असत्य)
4. खेजड़ी के पत्ते कोयल खाती है। (सत्य/असत्य)
उत्तर :
1. असत्य
2. सत्य
3. सत्य
4. असत्य।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
एक मील में कितने कोस होते हैं?
उत्तर :
एक मील में दो कोस होते हैं।
प्रश्न 2.
खेजड़ी के आस-पास कौनसे पक्षी बोलते हैं?
उत्तर :
खेजड़ी के आस-पास मोर, कमेड़ी, कोयल, कुरजाँ, गोडावण आदि पक्षी बोलते हैं।
प्रश्न 3.
ऊँट क्या करता है?
उत्तर :
ऊँट खेजड़ी के पत्ते खाकर अरड़ाता है।
प्रश्न 4.
खेजड़ी की बलैयाँ कौन लेता है?
उत्तर :
तेज चलती हुई लू खेजड़ी की बलैयाँ लेती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
कवि ने खेजड़ी की सहनशीलता के बारे में क्या कहा है?
उत्तर :
कवि ने कहा है कि खेजड़ी इतनी सहनशील है कि तपते मरुस्थल में अकेली खड़ी रहती है। सरदी-गर्मी और लू के थपेड़े सहकर भी कभी 'उफ' तक नहीं कहती।
प्रश्न 2.
कवि को खेजड़ी के सम्बन्ध में क्या आश्चर्य होता है?
उत्तर :
कवि को आश्चर्य होता है कि खेजडी इन रेतीले धोरों में कैसे जीवित रहती है और इस रेत में क्या और कैसे खाती है-पीती है।
प्रश्न 3.
कवि ने खेजड़ी की छाया को धन्य क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने कहा है कि तपते रेगिस्तान में जहाँ दूर-दूर तक न पानी है और न कोई अन्य वृक्ष, वहीं खेजडी सभी पक्षियों, जानवरों और राहगीरों को छाया देकर शीतलता प्रदान करती है। कवि ने इसलिए ही खेजड़ी की छाया को धन्य कहा है।
प्रश्न 4.
खेजड़ी वृक्ष का परिचय दीजिए।
उत्तर :
खेजड़ी वृक्ष को सन् 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था। इसे रेगिस्तान का कल्पवृक्ष, जांटी और शमी भी कहा जाता है। वैसे तो यह सारे राजस्थान में पाया जाता है, परन्तु राजस्थान के पश्चिमी इलाके में अधिक पाया जाता है।
पाठ परिचय - प्रस्तुत राजस्थानी कविता में राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजड़ी के महत्त्व का वर्णन किया गया है। खेजड़ी का वृक्ष विपरीत परिस्थितियों में भी पूरी जीवटता के साथ अकेला ही रेतीले धोरों में खड़ा मस्ती से जीवित रहता है। रेगिस्तान की तपती गर्मी में पक्षियों, जानवरों और राहगीरों का यह एकमात्र सहारा है। खेजड़ी की छाया धन्य है, खेजड़ी धन्य है।
खेजड़ी कठिन शब्दार्थ एवं सरलार्थ :
मुरधर माँही थनै नमै सब,
ढाणी-मजरा-गाँव, खेजड़ी!
कियाँ बखायूँ थारी माया,
धन-धन थारी छाँव, खेजड़ी!!
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - कवि कहता है कि हे खेजड़ी! मरुधरा यानी राजस्थान की रेतीली धरती के ढाणी, मजरे और गाँवों के सभी लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं। मैं तेरी महिमा का कैसे बखान करूँ। हे खेजड़ी! तू धन्य है, तेरी छाया धन्य है!
खड़ी एकली यूँ मदमाती!
कैर, बोरडी 'थारा साथी!!
धोरों में यूँ कींकर जीवै?
कियाँ रेत में खावै-पीवै?
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - तू अकेली ही अपनी मस्ती में खड़ी है। कैर तथा बेर के पेड़/झाड़ियाँ तेरे साथी हैं। पर यह समझ में नहीं आता कि तू रेतीले धोरों में कैसे जीवित रह पाती है और वहाँ रेत में कैसे खाती-पीती है।
कोसाँ ताँईं नजर न आवै,
जळ रौ कोई ठाँव, खेजड़ी!
तो भी बारह मास हरी यूँ,
धन-धन थारी छाँव, खेजड़ी!!
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - कवि कहता है कि हे खेजड़ी! रेत के धोरों में कोसों तक दूर-दूर तक कहीं भी पानी का कोई स्थान नहीं दिखाई देता है। (दो मील का एक कोस होता है।) इसके बावजूद भी तू वर्ष के बारह महीनों हरी रहती है। हे खेजड़ी! तू धन्य है, तेरी छाया धन्य है!
नित रा ओळयूँ-दोळयूँ थारै।
काळा हिरण कुलाँचाँ मारै।
मोर, कमेड़ी, कुरजाँ बोले।
गोडावण रा जोड़ा डोलै॥
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - रोजाना तेरे आस-पास काले हिरन कुलाँचे भरते हैं। मोर, कमेड़ी (एक चिड़िया गुरगल) और कुरजाँ नाम के पक्षी बोलते हैं और गोडावण पक्षी के जोड़े घूमते हैं।
कदै डाळ पै कोयल कूकै,
करै कागला काँव, खेजड़ी!
ऊँट पातड़ा खा अरड़ावै,
धन-धन थारी छाँव खेजड़ी!!
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - कवि कहता है कि हे खेजड़ी! तेरी डाली पर कभी कोयल कहकती है और कभी कौए काँव-काँव करते हैं। ऊँट तेरे पत्ते खाकर अरड़ाते (आवाज करते) रहते हैं। हे खेजड़ी! तू धन्य है, तेरी छाया धन्य है!
स्याळौ और उनाळी झेलै।
आँधी और डुगट तूं खेलै॥
लू री लपटों लावा लेवै।
पण उफ! तक कोनी केवै॥
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - तुम सरदी और गरमी सहन करती हो, तो कभी धूल भरी हवाओं से और रेत के गुबार से खेलती हो। तेजी से चलती हुई लू की लपटें तुम्हारी बलैया लेती हैं, लाड़ लड़ाती हैं, पर तुम इतनी सहनशील हो कि इतनी गरमी को झेलते हुए भी 'उफ' तक नहीं करती हो।
म्हाँ लोगों रा, जूता तक में,
दाझण लागै पाँव, खेजड़ी!
पंथी रुक बिसराम करै है,
धन-धन थारी छाँव, खेजड़ी!!
कठिन शब्दार्थ :
सरलार्थ - कवि कहता है कि हे खेजड़ी! लू तथा गरमी से जूतों में भी हमारे पाँव जलने लगते हैं, पर तुम्हारी छाया में राहगीर कुछ देर ठहरकर आराम करते हैं। हे खेजड़ी! तू धन्य है, तेरी छाया धन्य है!