Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 9 विशेष शिक्षा और सहायक सेवाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
विशेष शिक्षा' से आपका क्या अभिप्राय है? किसी शिक्षक को 'विशेष शिक्षक' क्यों कहते हैं?
उत्तर:
विशेष शिक्षा-विशेष शिक्षा का अभिप्राय विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए, शैक्षिक प्रावधानों से है अर्थात् उन बच्चों के लिए जिनमें एक या एक से अधिक अपंगताएँ होती हैं और जिनकी भिन्न आवश्यकताएँ होती हैं। ये विशेष शैक्षिक आवश्यकताएँ कहलाती हैं। इस प्रकार विशेष शिक्षा का अर्थ सभी व्यवस्थाओं, जैसे-कक्षा, घर, सड़क और जहाँ कहीं भी बच्चे जा सकते हैं, वहाँ ऐसे बच्चों के लिए विशेष रूप से रचित निर्देशों से है।
विशेष शिक्षा, दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए पृथक अथवा विशिष्ट शिक्षा नहीं है। यह एक ऐसा उपागम है जो उनके लिए सीखना सुगम बनाता है और विभिन्न क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी को संभव बनाता है, जिनमें वे अपनी अक्षमता अथवा विद्यालय के कारण भाग नहीं ले पाते। अतः विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को सदैव एक अलग संस्थान में नहीं पढ़ना पड़ता। उनमें से अधिकांश बच्चे विद्यालय की सामान्य कक्षाओं में आसानी से पढ़ सकते हैं। कुछ गंभीर कठिनाइयों वाले बच्चों को ही अलग से बनाई गई कक्षाओं में पढ़ाया जाता है।
विशेष शिक्षक-जो शिक्षक/अध्यापक विशेष शिक्षा प्रदान करते हैं, वे विशेष शिक्षक कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
'समावेशी शिक्षा' को आप कैसे समझायेंगे?
उत्तर:
समावेशी शिक्षा-जब विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले बच्चे/विद्यार्थी सामान्य कक्षाओं में अपने साथियों के साथ पढ़ते हैं तो यह व्यवस्था 'समावेशी शिक्षा' कहलाती है। इस उपागम को निर्देशित करने वाला दर्शन यह है कि विविध आवश्यकताओं (शैक्षिक, शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक) वाले विद्यार्थियों को एक साथ ऐसी आयु उपयुक्त कक्षाओं में रखा जाए, जिससे बच्चे अपनी अधिगम क्षमताओं को इष्टतम रूप से प्राप्त कर सकें। वे जिस विद्यालय अथवा कार्यक्रम के भाग होते हैं, अपनी पाठ्यचर्या शिक्षण विधियों और भौतिक संरचना में उपयुक्त समायोजन और रूपान्तरण करते हैं जिससे उनकी शिक्षा सुगम हो सके।
प्रश्न 3.
विशेष और समावेशी शिक्षा के विभिन्न मॉडलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विशेष और समावेशी शिक्षा के मॉडल
विशेष और समावेशी शिक्षा के अनेक मॉडल हैं, जिनमें विशेष शिक्षक, विशेष शिक्षा आवश्यकताओं वाले बच्चों के . लिए कार्य कर सकते हैं। ये मॉडल निम्नलिखित हैं-
(1) विशेष विद्यालय/कार्यक्रम-कुछ विद्यालय/कार्यक्रम केवल दिव्यांग बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं। ऐसे अधिकांश विद्यालय विशिष्ट दिव्यांगताओं वाले, जैसे-बौद्धिक दोष, प्रमस्तिष्क घात (सेरीब्रलपाल्सी) अथवा दृष्टि दोष वाले बच्चों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये विशेष विद्यालय/कार्यक्रम की श्रेणी में आते हैं और इनके लिए विशेष शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो उन विशिष्ट दिव्यांगताओं वाले बच्चों के लिए कार्य करने में प्रशिक्षित हों।
(2) सामान्य शिक्षा विद्यालय/कार्यक्रम-एक सामान्य शिक्षा विद्यालय या सामान्य शिक्षा कार्यक्रम के अपने परिसर में ही विशेष शिक्षा आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए भी कार्यक्रम चलाया जा सकता है कुछ अथवा सभी विद्यार्थियों को उनकी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर कुछ समय के लिए नियमित कक्षाओं में रखा जाता है। ऐसी व्यवस्था में विशेष शिक्षक पूर्णतः केवल विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले बच्चों को ही नहीं पढ़ाते हैं, बल्कि सामान्य कक्षा के शिक्षकों को भी शिक्षा सम्बन्धी सहायता प्रदान करते हैं।
(3) समावेशी सामान्य विद्यालय-समावेशी सामान्य विद्यालय का अर्थ है कि विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले विद्यार्थी नियमित कक्षाओं में पढ़ते हैं। विशेष शिक्षक फिर नियमित शिक्षकों के साथ काम का समन्वय करते हैं और विद्यालय के संसाधन कक्ष में विद्यार्थियों को अतिरिक्त शिक्षा सहायता प्रदान करते हैं।
प्रश्न 4.
उन सहायक सेवाओं के नाम बताइए जो बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली विशेष शिक्षा को संभव बनाती हैं?
उत्तर:
विशेष शिक्षा को संभव बनाने वाली सहायक सेवाएँ
विशेष और समावेशी शिक्षा के प्रभावी होने के लिए बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों और अभिभावकों के लिए सहायता सेवाएँ भी उपलब्ध होनी चाहिए। ये सहायक सेवाएँ विद्यालय के अन्दर अथवा समुदाय में स्थित हो सकती हैं, जहाँ ये आसानी से परिवार की पहुँच में हों। ये सहायक सेवाएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 5.
दिव्यांगता को परिभाषित कीजिए। बाल्यावस्था की दिव्यांगताओं को किस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
दिव्यांगता की परिभाषा-विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार, "दिव्यांगता, एक समावेशी शब्द है जिसमें दोष, सीमित क्रियाकलाप और भागीदारी में कठिनाई शामिल हैं। कुछ बच्चे शारीरिक, संवेदी अथवा मानसिक दोषों के साथ जन्म लेते हैं। कुछ अन्य बच्चों में वृद्धि के दौरान कुछ दोष विकसित हो जाते हैं, जो उनके दैनिक कार्यों को करने की उनकी क्षमता कम कर देते हैं। शैक्षिक संदर्भ में इन्हें दिव्यांग बच्चा कहते हैं।"
दिव्यांगताओं का वर्गीकरण
बाल्यावस्था की दिव्यांगताओं का वर्गीकरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
प्रश्न 6.
एक विशेष शिक्षक बनने के लिए किस प्रकार के ज्ञान और कौशलों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
एक विशेष शिक्षक हेतु आवश्यक ज्ञान और कौशल
एक विशेष शिक्षक बनने के लिए व्यक्ति के लिए निम्नलिखित ज्ञान और कौशलों की आवश्यकता होती है-
(i) संवेदनशीलता विकसित करना-विशेष शिक्षकों से दिव्यांग बच्चों के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने की उम्मीद की जाती है। वे ऐसे शब्दों और भाषा का प्रयोग करके यह काम कर सकते हैं। जैसे-सबसे पहले बच्चों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें। फिर उनके साथ इस धारणा के साथ काम करें कि वे बच्चे भी अन्य सभी बच्चों की भाँति सीख सकते हैं और विकास कर सकते हैं। ऐसा करके वे उन बच्चों में व उनके अभिभावकों में उम्मीद जमा सकते हैं । दिव्यांग बच्चे के प्रति व्यक्ति असम्मान अथवा महज दया और सहानुभूति का भाव, उनके प्रति असंवेदनशीलता और सम्मान की कमी को दर्शाते हैं।
(ii) दिव्यांगता के बारे में जानकारी-चूँकि विशेष शिक्षक, विशेष शिक्षा आवश्यकता वाले बच्चों के साथ काम पर ध्यान देते हैं। अतः उन्हें विभिन्न प्रकार की दिव्यांगताओं की प्रकृति, इन दिव्यांगताओं वाले बच्चों की विकासात्मक विशेषताओं और उससे संबंधित ऐसी कठिनाइयों अथवा विसंगतियों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए, प्रमस्तिष्कघात (सेरीब्रलपाल्सी) वाले बच्चों में कुछ हद तक बौद्धिक दोष भी हो सकते हैं, फिर भी वे अन्य बहुत से काम कर सकते हैं।
(iii) अंतर्वैयक्तिक कौशल-जो व्यक्ति बातचीत करने में अच्छे होते हैं, वे विशेष शिक्षक के रूप में प्रभावी हो सकते हैं। इसके साथ ही साथ वे प्रशिक्षण से बातचीत करने के कौशल विकसित कर सकते हैं। इनकी बच्चों के साथ व्यक्तिगत रूप से अथवा समूह में काम करने के लिए आवश्यकता होती है।
प्रायः बच्चों के माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को मार्गदर्शन और परामर्श सेवा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए अंतर्वैयक्तिक कौशल काफी उपयोगी होता है।
(iv) शिक्षण कौशल-विशेष शिक्षक के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाने की कला और विज्ञान को जानने की आवश्यकता होती है, जिसे शिक्षा शास्त्र कहते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि किसी विशेष विषय, जैसे, विज्ञान, समाज-विज्ञान अथवा गणित पढ़ाने में उसे सक्षम होना चाहिए। शिक्षक को संकल्पनाओं और पाठों को हिस्सों में बाँटकर सरल करना आना चाहिए जिससे विद्यार्थी सिद्धान्तों और उनके अर्थों को पूरी तरह समझ सकें।
प्रश्न 7.
यदि किसी व्यक्ति को विशेष शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता हो तो आप उसे क्या सलाह देंगे?
उत्तर:
विशेष शिक्षा में जीविका के लिए तैयार करना
यदि किसी व्यक्ति को विशेष शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता है तो हम उसे यह सलाह देंगे कि विशेष और समावेशी शिक्षा में विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों की बढ़ती माँग के कारण इस क्षेत्र में जीविका काफी आकर्षक प्रतीत होती है। इसलिए विशेष शिक्षा में जीविका हेतु उसे इस क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण लेना चाहिए और भारत में निःशक्तता से संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले व्यावसायिकों और कार्मिकों के लिए सभी प्रकार का प्रशिक्षण भारतीय पुनर्वास परिषद (आर. आई. सी.) द्वारा नियंत्रित होता है। यह स्वायत्त संस्था अनेक मान्यता प्राप्त संस्थानों के द्वारा देश भर में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री स्तर के पाठ्यक्रमों के पैकेजों में विशेष प्रशिक्षण सुविधा देती है। इस प्रकार विभिन्न स्तरों के प्रशिक्षण द्वारा विशेष शिक्षा के क्षेत्र में आना संभव है।
वर्तमान में उपलब्ध कुछ पाठ्यक्रम और सेवा-पूर्व प्रशिक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) बाल्यावस्था विशेष शिक्षा में सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना-इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की समावेश समर्थित प्रारंभिक बाल्यावस्था विशेष शिक्षा में सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम अभ्यर्थी को प्रारंभिक बाल्यावस्था विशेष/समावेशी शिक्षक बनने के योग्य बनाता है। इस पाठ्यक्रम को करने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कक्षा X पास होना है। उच्च योग्यता प्राप्त व्यक्ति भी इसे कर सकते हैं।
(2) विशेष शिक्षा में स्नातक डिग्री लेना-किसी भी क्षेत्र में स्नातक डिग्री लेने के बाद विशेष शिक्षा में स्नातक डिग्री अभ्यर्थी को विशेष या समावेशी विद्यालय में शिक्षक बनने के योग्य बनाती है, ऐसी डिग्री पारंपरिक विश्वविद्यालयों, दूरस्थ शिक्षा विद्यालयों जैसे इग्नू तथा मानसिक रूप से अक्षम लोगों के लिए राष्ट्रीय संस्थान द्वारा प्रदान की जाती है।
(3) आर.सी.ई. द्वारा मान्यता प्राप्त सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री पाठ्यक्रम को पूरा करना-जिन व्यक्तियों के पास बाल-विकास, मानव विकास, मनोविज्ञान अथवा सामाजिक कार्य जैसे क्षेत्रों में स्नातकोत्तर डिग्री हो, वे आर.सी.ई. द्वारा मान्यता प्राप्त किसी सर्टिफिकेट, डिप्लोमा अथवा डिग्री पाठ्यक्रम को प करके, जिनमें प्रवेश के लिए योग्यता स्नातकोत्तर से कम हो, विशेष शिक्षा के क्षेत्र में जीविका प्राप्त कर सकते हैं। ये योग्यताएँ उन्हें विशेष शिक्षकों के रूप में मान्यता प्रदान करती हैं।
(4) दिव्यांगता अध्ययनों में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करना-व्यक्ति दिव्यांगता अध्ययनों में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर दिव्यांगता के क्षेत्र में वृहत भूमिका निभा सकता है। स्नातकोत्तर डिग्री व्यक्ति को विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षण, अनुसंधान, कार्यक्रमों की योजना बनाने और अपना निजी संगठन स्थापित करने के योग्य बनाती है। ..
(5) मानव-विकास अथवा बाल विकास में स्नातकोत्तर अध्ययन-मानव-विकास अथवा बाल विकास के अनेक विभाग, विभिन्न-विश्वविद्यालयों में गृह-विज्ञान संकाय के अन्तर्गत बाल्यावस्था दिव्यांगता से संबंधित पाठ्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। स्नातकोत्तर अध्ययन जिसमें दिव्यांग बच्चों के लिए सैद्धान्तिक और प्रायोगिक अध्ययन सम्मिलित हैं, विद्यार्थियों को विभिन्न क्षमताओं के संस्थानों में काम करने के लिए उचित रूप से तैयार कर सकते हैं।
इस प्रकार कोई व्यक्ति उक्त किसी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर विशेष शिक्षा में सर्टिफिकेट/डिप्लोमा/स्नातक डिग्री/ स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करके विशेष शिक्षा के क्षेत्र में जीविका हेतु प्रवेश कर सकता है।