RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Home Science Solutions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

RBSE Class 12 Home Science कार्य, आजीविका तथा जीविका Textbook Questions and Answers

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कार्य, आजीविका तथा जीविका के प्रश्न उत्तर प्रश्न 1. 
वे कौनसे तरीके हैं, जिनसे कार्य को समझा जा सकता है? 
उत्तर:
वे तरीके जिनसे कार्य को समझा जा सकता है, निम्नलिखित हैं-

  • कार्य व्यक्ति के लिए एक नौकरी और अनेक व्यक्तियों के लिए आजीविका का साधन है। 
  • कार्य एक ऐसा कर्त्तव्य भी है जिसमें बाध्यता का बोध निहित है। 
  • कार्य नौकरी और आय प्राप्ति द्वारा आजीविका की सुरक्षा का माध्यम है। 
  • कार्य धर्म अथवा कर्त्तव्य के रूप में, स्वयं के सच्चे व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है जो स्वयं और आस-पास के व्यक्तियों के जीवन की गणवत्ता को प्रभावित करता है। 
  • कार्य हमारे आध्यात्मिक आचरण का एक भाग भी है। 
  • कार्य स्वयं की सृजन-क्षमता का माध्यम है। 
  • यह आनंद और पूर्ण मानसिक संतुष्टि का स्रोत है। 
  • कार्य करना और अपनी जीविका उपार्जित करना मूलतः भावी आशा, स्वाभिमान और गरिमा के लिए अवसर प्रदान करता है। 
  • कार्य पद, शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है। 
  • कार्य एक लाभप्रद अनुभव है। 
  • यह मूल्यों और अभिलाषा को प्रतिबिंबित करने वाला साधन है। 

Class 12 Home Science Chapter 1 Question Answer In Hindi प्रश्न 2. 
नौकरी और जीविका में भेद कीजिए। 
उत्तर:
नौकरी और जीविका में भेद-नौकरी और जीविका में अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है- 
(1) अधिकांश कार्य धन कमाने के लिए हो सकते हैं। इन कार्यों को परम्परागत रूप से नौकरी' कहा जाता है। लेकिन बहुत से कार्य व्यक्ति जीविका के लिए, नौकरी के अतिरिक्त कुछ अलग कार्य भी करते हैं। अतः जीविका मात्र एक नौकरी से कुछ अधिक है। नौकरी और जीविका में प्रमुख अन्तर यह होता है कि "नौकरी उसके निमित्त कार्य करना है जबकि जीविका जीवन को बेहतर बनाने की प्रबल इच्छा और आगे बढ़ने, विकसित होने तथा चुने हुए कार्यक्षेत्र में स्वयं को प्रमाणित करने की आवश्यकता से जुड़ा हुआ है।" 

वर्तमान समय में मात्र नौकरी प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। सफलता प्राप्ति के लिए यह अति आवश्यक है कि वह निरंतर नए कौशल सीखे और उन्हें उन्नत करे, विषय की नई जानकारी प्राप्त करे और अपनी कार्यक्षमता बढ़ाए या उसमें वृद्धि करे। 

(2) नौकरी में कार्य मुख्य रूप से आय का स्रोत होता है। उदाहरण के लिए अपने परिवार की सहायता प्रदान करने के लिए नौकरी करना। इसमें व्यक्ति को नौकरी करने का संतोष अर्जित आय के रूप में होता है। दूसरी तरफ जीविका में व्यक्ति अपने कार्य को निरन्तर उन्नत, व्यावसायिक रूप में उच्च पद, स्तर, वेतन और उत्तरदायित्व के रूप में देखता है। एक व्यक्ति जो जीविका के लिए कार्य करता है, पर्याप्त समय और ऊर्जा लगाता है, क्योंकि ऐसा करने पर ही उसे भविष्य में लाभ होता है। ऐसे लोगों को जो नौकरी को जीविका के रूप में देखते हैं, नौकरी के दौरान निरन्तर बढ़ने और उपलब्धियाँ प्राप्त करने से संतुष्टि प्राप्त होती है। 

(3) तीसरे, नौकरी में कार्य को अपनी मनपसन्द जीविका के रूप में न देखकर उससे होने वाली आय के रूप में ही देखा जाता है, जबकि जीविका में कार्य को मनपसंद मानकर चला जाता है और उसे करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है। 

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Home Science Class 12 Chapter 1 Question Answer In Hindi प्रश्न 3. 
अर्थपूर्ण कार्य से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
अर्थपूर्ण कार्य-अर्थपूर्ण कार्य समाज अथवा अन्य लोगों के लिए उपयोगी होता है, जिसे जिम्मेदारी से किया जाता है और करने वाले के लिए आनन्ददायक होता है। यह कार्य करने वाले को अपने कौशल अथवा समस्या समाधान की योग्यता के लिए समर्थ बनाता है। 

जब कोई व्यक्ति अर्थपूर्ण कार्यों में सम्मिलित होता है तो उसमें पहचान, महत्त्व और प्रतिष्ठा का बोध होता है। जब किये गए कार्य का परिणाम अर्थपूर्ण (सफल) होता है, तब वह व्यक्तिगत विकास में योगदान देता है, अपने आप में विश्वास एवं महत्त्व जागृत करता है और अंततः इससे कार्य को सम्पन्न करने की क्षमता मिलती है। 

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कक्षा 12 गृह विज्ञान अध्याय 1 प्रश्न उत्तर प्रश्न 4. 
निम्नलिखित शब्दों को संक्षेप में समझाइए-
(अ) जीवन-स्तर 
(ब) जीवन की गुणवत्ता। 
उत्तर: 
(अ) जीवन-स्तर
जीवन-स्तर से आशय-जीवन-स्तर सामान्य रूप से धन-दौलत और आराम के स्तर, भौतिक सामग्री और उपलब्ध आवश्यकताओं का द्योतक है। यह वह सुगमता है जिससे एक समय में और एक स्थान पर रहने वाले लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं। जीवन के, आर्थिक-स्तर का सम्बन्ध उन भौतिक परिस्थितियों से है, जिनमें लोग रहते हैं, साथ ही सामग्री और सेवाओं से है, जिन्हें वे काम में लेते हैं और आर्थिक स्रोत से है, जहाँ तक उनकी पहुँच है। 

जीवन-स्तर के कारक-जीवन-स्तर मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर आधारित होता है-

  • आय,
  • रोजगार की गुणवत्ता और उपलब्धता,
  • माल और सेवाओं की लागत
  • सकल घरेलू उत्पाद,
  • राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि,
  • घरों की गुणवत्ता और उनकी खरीदने की सामर्थ्य
  • प्रति वर्ष सवेतन छुट्टियाँ
  • शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता
  • बीमारी के प्रसंग,
  • आर्थिक और राजनैतिक स्थिरता,
  • सामाजिक विषमताएँ,
  • गरीबी,
  • आधारभूत ढाचा
  • आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदेन के लिए उपलब्ध धन और कार्य के घंटे
  • बेहतर स्वास्थ्य देखभाल की सामर्थ्य
  • जीवन प्रत्याशा,
  • राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक स्वतंत्रताएँ,
  • पर्यावरणीय गुणवत्ता,
  • सुरक्षा और
  • जलवायु। 

जीवन-स्तर का उपयोग-जीवन-स्तर का उपयोग प्रायः क्षेत्रों अथवा देशों की परस्पर तुलना के लिए किया जाता है। ऐसी तुलना करके उस क्षेत्र या देश के प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है। जीवन-स्तर का एक माप विकास सूचकांक भी है जिसे 1990 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने विकसित किया था। विकास सूचकांक में जन्म के समय जीवन की प्रत्याशा, प्रौढ़ साक्षरता-दर और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद शामिल हैं। 

(ब) जीवन की गुणवत्ता 
(1) जीवन की गुणवत्ता से आशय-जीवन की गुणवत्ता में केवल जीवन के भौतिक मानक ही सम्मिलित नहीं हैं, बल्कि मानव जीवन के दूसरे अमूर्त पहलू भी सम्मिलित हैं, जैसे-अवकाश, सुरक्षा, सांस्कृतिक स्रोत, सामाजिक जीवन, भौतिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय गुणवत्ता इत्यादि। 

जीवन की गुणवत्ता मापने के कारण-जीवन की गुणवत्ता मापने के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं- 

  • दासता तथा उत्पीड़न से स्वतंत्रता, आंदोलन की स्वतंत्रता, अपने देश में आवास की स्वतंत्रता, विचारों की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता तथा रोजगार के स्वतंत्र विकल्प। 
  • समान कानूनी सुरक्षा, भेदभाव से मुक्ति, समान कार्य के लिए समान वेतन। 
  • विवाह का अधिकार, पारिवारिक जीवन का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार, निजी गोपनीयता का अधिकार, न्यायोचित वेतन का अधिकार, मत देने का अधिकार, विश्राम और अवकाश का अधिकार, शिक्षा का अधिकार तथा मानव गरिमा का अधिकार।
  • दोष सिद्ध न होने तक निर्दोष माना जाए। 

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Home Science Class 12 Chapter 1 Question Answer प्रश्न 5. 
जेंडर और लिंग (सेक्स) शब्दों से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
(1) लिंग (सेक्स) से आशय-सेक्स (लिंग) शब्द आनुवांशिकी, जनन अंगों इत्यादि के आधार पर जैविक वर्ग से संबंधित है। नर शब्द लड़कों और पुरुषों को बताता है जबकि मादा शब्द लड़कियों और महिलाओं को दर्शाता है। लिंग का बाहरी प्रमाण प्राथमिक यौन अंगों या जननांगों से होता है। ऐसा xx और xy अथवा अन्य दूसरे गुणसूत्रों के संयोजन के कारण होता है। 

सामान्यतः मानव जाति को दो लिंगों में बाँटा गया है-पुरुष और स्त्रियाँ। परन्तु अभी हाल में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पारजेंडर (ट्रांसजेंडर) के रूप में तीसरे लिंग को मान्यता दी है। 

(2) जेंडर-जेंडर शब्द सामाजिक पहचान पर आधारित है। जेंडर में स्त्री-पुरुष के भेद को यौन अंगों की भिन्नताओं के आधार पर नहीं, बल्कि कार्यात्मक भिन्नता के आधार पर स्थापित किया जाता है। 

प्रत्येक समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ तय करती हैं कि विभिन्न जेंडरों को कैसा व्यवहार करना है और उन्हें किस प्रकार के कार्य करने हैं। इस प्रकार बचपन से ही व्यक्ति की पहचान बन जाती है। किसी भी समाज अथवा समुदाय के सदस्यों द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के अनुरूप अपनी भूमिका निभाना विशिष्ट रूप से अपेक्षित है। इस प्रकार स्त्री-पुरुष की भूमिका की पहचान के मानदण्ड बनते हैं और स्थापित हो जाते हैं। समय के साथ, ये मानदण्ड और प्रथाएँ उनके लिए रूढिबद्ध हो गईं और तब यह प्रत्येक सदस्य का सामान्य और अपेक्षित व्यवहार समझा जाने लगा। ये मानदण्ड व प्रथाएँ सामान्यतः पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं और निरन्तर चलने में रहते हैं। 

इससे स्पष्ट होता है कि जेंडर शब्द की रचना सामाजिक रूप से कार्यात्मक भिन्नताओं की आधार पर हुई है। 

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 गृह विज्ञान अध्याय 1 प्रश्न 6. 
गृहणियाँ कौन होती हैं? परिवार की अर्थव्यवस्था में उनका क्या योगदान होता है? 
उत्तर:
गृहणियाँ-घर चलाने वाली महिलाओं को सामान्यतः गृहणियाँ कहा जाता है। घर पर किये जाने वाले उनके कार्यों का मूल्यांकन शायद ही किया जाता है और इसे आर्थिक गतिविधि के रूप में भी नहीं गिना जाता है। 

परिवार की अर्थव्यवस्था में गृहणियों का योगदान-परिवार की अर्थव्यवस्था में गृहणियों के योगदान को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है- 
(1) अनेक घरेलू कार्यों को करना-गृहणियाँ परिवार के भरण-पोषण के लिए अपने जीवन के सभी स्तरों-माँ, बहन, बेटी, पत्नी और दादी के रूप में घरेलू काम-काज या परिवार के अन्य कार्य करती हैं। उसके लिए उन्हें जीवन-भर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार का योगदान परिवार के अन्य सदस्यों को अधिक दक्षता से उनकी. भूमिका निभाने और कर्त्तव्य पूरा करने में सहायक होता है। अतः महिलाओं द्वारा किये गए घरेलू कार्य को आर्थिक योगदान और उत्पादन गतिविधि की तरह महत्त्व देने की आवश्यकता है। 

(2) कामकाजी गृहणियों का योगदान-पूरे भारत में गृहणियाँ उत्पादन संबंधी कार्यों और विपणन सम्बन्धी कार्यों से जुड़ी हैं। ग्रामीण भारत में स्त्रियाँ कृषि और पशुपालन में गहनता से जुड़ी हुई हैं और शहरी क्षेत्रों में भी निर्माण कार्यों में या घरेलू सहायिका के रूप में रोजगार प्राप्त कर रही हैं। ये सभी कामकाजी गृहणियाँ किसी न किसी रूप में परिवार की आय में भी योगदान कर रही हैं। बहुत से परिवारों में अकेले महिलाएँ ही कमाने वाली होती हैं। 

वर्तमान में महिलाओं ने अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में भाग लेना शुरू कर दिया है और उनमें बहुत-सी उच्च पदों पर आसीन हैं। इससे महिलाओं पर दोहरा भार पड़ गया है क्योंकि अभी भी उनसे घर के अधिकांश काम-काज करने और मुख्य देखभाल करने वाली बने रहने की अपेक्षा की जाती है। 

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Class 12 Home Science Chapter 1 प्रश्न 7.
महिलाओं को परिवार और समाज में पहचान कैसे मिलेगी? 
उत्तर:
कमाने की सक्रिय भागीदारी और परिवार के संसाधनों में योगदान देने के बावजूद स्त्रियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और स्वतंत्र रहने की मनाही है। इस कारण स्त्रियाँ निरन्तर शक्तिहीन रहती चली आ रही हैं। समय की माँग है कि उन्हें शिक्षित करें, सशक्त बनाएँ, समर्थ बनाएँ और समाज में उचित स्थान और अपनी बात कहने का अधिकार दें। 

महिलाओं को परिवार व समाज में पहचान दिलाने की पहले-महिलाओं को परिवार व समाज में पहचान दिलाने के लिए अग्रलिखित बातों का किया जाना आवश्यक है- 

  • महिलाएँ तब तक सशक्त नहीं हो सकती जब तक कि घर पर किए जाने वाले उनके कार्यों का मूल्य नहीं आँका जाता और उसे सवेतन कार्य के बराबर नहीं माना जाता। अत: महिलाओं द्वारा किए गए घरेलू कार्य को आर्थिक योगदान और उत्पादन गतिविधि की तरह महत्त्व देने की आवश्यकता है। 
  • स्त्रियों को परिवार व समाज में स्वतंत्र निर्णय लेने और स्वतंत्र रहने की स्वीकति मिलनी चाहिए। 
  • कुशल कारीगरों की आवश्यकता के कारण स्त्रियों की भागीदारी के अवसरों में कमी आई है। अतः स्त्रियों के हितों की रक्षा के लिए कौशलों को विकसित करने वाली प्रशिक्षण सुविधाओं में वृद्धि की जानी चाहिए। 
  • स्त्रियों को शिक्षित किया जाये, उन्हें सशक्त और समर्थ बनाया जाये तथा उन्हें समाज में अपनी बात कहने का अधिकार दें। 

Class 12 Home Science Chapter 1 Question Answer प्रश्न 8. 
भारत में महिलाओं को समानता की गारंटी कैसे दी जाती है? 
उत्तर: 
भारत में महिलाओं को समानता की गारंटी 
भारत में महिलाओं को समानता की गारंटी संवैधानिक अधिकार, अधिनियम और सरकारी पहलों के माध्यम से निम्न प्रकार दी जाती है- 
(1) संवैधानिक अधिकार-(i) भारत का संविधान सभी क्षेत्रों में पुरुषों और स्त्रियों को समानता की गारंटी देता है। संविधान के अनुच्छेद 16 में सरकार के किसी भी दफ्तर में रोजगार या नियुक्ति सम्बन्धी मामलों में सभी नागरिकों को बराबर के अवसरों की गारंटी दी गई है। यह जाति, पंथ, रंग, प्रजाति अथवा लिंग के आधार पर किसी रोजगार अथवा दफ्तर के संदर्भ में भेदभाव को रोकता है। 

(ii) संविधान यह भी माँग करता है कि महिला मजदूरों को काम करने के लिए मानवोचित परिस्थितियाँ दी जाएँ और किसी भी प्रकार के शोषण से उन्हें बचाया जाए और उनकी शैक्षिक तथा आर्थिक प्राप्तियों के लिए सहायता और प्रोत्साहन दिया जाए। 

(iii) भारतीय संविधान महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने के लिए राज्य को शक्तियाँ प्रदान करता 

(2) अधिनियम-भारत में बहुत से ऐसे अधिनियम हैं जो महिलाओं की समानता के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा करते हैं, जैसे-1948 का फैक्ट्री अधिनियम, 1951 का बागान श्रम अधिनियम, 1952 का खदान अधिनियम, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 जो महिलाओं को विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में सुरक्षा उपलब्ध कराता है। 

इसके अतिरिक्त फैक्टी अधिनियम की धारा 48 कहती है कि यदि किसी उद्योग या फैक्ट्री में तीस से अधिक महिलाएँ नियुक्त की जाती हैं तो शिशु सदनों की व्यवस्था रखनी चाहिए। छः वर्ष से छोटे बच्चों की देखभाल इन शिशु सदनों में होगी, जिसका प्रबंधन उद्योग को ही करना होगा। 

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Home Science Class 12 Chapter 1 In Hindi प्रश्न 9. 
महिलाओं के हित में सरकार के क्या प्रयास हैं? 
उत्तर:
महिलाओं के हित में सरकारी पहल-

  • श्रम मंत्रालय में महिला मजदूरों की समस्याओं का निपटारा करने के लिए महिला प्रकोष्ठों की स्थापना की गई। 
  • समान प्रकृति के कार्य सुनिश्चित करने के लिए, समान पारिश्रमिक अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम को लागू करने के लिए समाज कल्याण विभाग ने महिलाओं के लिए 'राष्ट्रीय कार्य योजना' को हाथ में लिया। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाने हेतु और महिलाओं के काम तथा उनकी आर्थिक एवं उत्पादक गतिविधियों में भागीदारी पर श्रम कानूनों का पुनरावलोकन करने हेतु योजना आयोग द्वारा एक कार्यकारी समूह भी बनाया गया। 
  • महिलाओं द्वारा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर डेटाबेस निर्माण के लिए योजना आयोग द्वारा एक परिचालन समिति भी बनाई गई। 
  • पिछले कुछ वर्षों में, महिला विकास कार्यक्रमों की मूल अवधारणा में परिवर्तन की पहल हुई है। प्रारंभ के दशकों में महिला सम्बन्धी कार्यक्रम कल्याणकारी दष्टिकोण की ओर लक्षित थे: धीरे-धीरे यह अवसर की समानता की तरफ और अंतिम रूप से विकास के दृष्टिकोण पर आधारित हो गए।

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Class 12th Home Science Chapter 1 प्रश्न 10. 
बाल श्रम से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
बाल श्रम-"बाल-श्रम सामान्यतः पन्द्रह वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की गई आर्थिक गतिविधि को कहा जाता है।" यह परिभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की 'अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संस्था' द्वारा दी गई है। 

सरकारों और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने काम के लिए आयु सम्बन्धी नियम पारित कर रखे हैं जो विश्व में अलग अलग हैं। उदाहरण के लिए मिस्र में यह आयु 12 वर्ष है, फिलीपींस और भारत में यह 14 वर्ष है तथा हांगकांग में 15 वर्ष है।

आई.एल.ओ. सम्मेलनों ने हलके कामों के लिए 12 या 13 वर्ष की आयु की मान्यता दी हुई है किन्तु जोखिम भरे कार्यों को 18 वर्ष की आयु से पहले करने की अनुमति नहीं है। आई.एल.ओ. ने उन देशों के लिए न्यूनतम आयु. 15 वर्ष तय की है, जहाँ अनिवार्य स्कूली शिक्षा 15 वर्ष तक पूरी हो जाती है। 

बाल श्रम में केवल आयु ही नहीं, काम का प्रकार और काम की परिस्थितियाँ सोच विचार के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेषज्ञों ने ऐसे संकटों की पहचान की है। हमारे देश के बाल श्रम अधिनियम में 50 से अधिक ऐसे व्यवसायों की सूची दी हुई है, जो बच्चों के लिए संकटदायी हैं। इनमें घरों में किया जाने वाला घरेलू कार्य और होटलों तथा रेस्टोरेंटों में किए जाने वाले सेवा कार्य भी सम्मिलित हैं। 

Home Science Chapter 1 Class 12 In Hindi Medium प्रश्न 11. 
उस बच्चे के जीवन और दुर्दशा का वर्णन कीजिए जिसे आपने घरेलू मजदूर के रूप में अथवा ढाबे या छोटे रेस्टोरेंट में काम करते देखा हो। 
उत्तर:
सामाजिक और पारिवारिक स्तरों पर बहुत से कारक बच्चों को काम करने के लिए विवश करते हैं। इनमें अन्य कई कारणों के साथ गरीबी और परिवार पर कर्जा, परिवारों का गाँवों से शहरों की ओर स्थानान्तरण, माता-पिता की मृत्यु, आदि शामिल हैं। 

भारत में अनेक घरों में पैसे देकर छोटी लड़कियों से घरेलू कार्य कराया जाता है। अपने पारिवारिक गरीबी के कारण ये लड़कियाँ घरेलू कार्य करने को मजबूर होती हैं। इन घरों में इन घरेलू कार्य करने वाली लड़कियों से दुर्व्यवहार, अनावश्यक डाट-फटकार की जाती है जिसे वे सहन करने को मजबूर होती हैं। इससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, शारीरिक और भावनात्मक कुशलता खतरे में पड़ जाती है अर्थात् वे शिक्षा से वंचित रह जाती हैं या उन्हें बीच में ही स्कूल छोड़ देना पड़ता है, उनका स्वास्थ्य कमजोर रहता है, वे कुपोषण की शिकार हो जाती हैं तथा उनकी शारीरिक व भावात्मक कुशलता की उपेक्षा होती है। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास रुक जाता है। 

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Home Science Class 12 Chapter 1 Notes In Hindi प्रश्न 4. 
निम्नलिखित शब्दों को समझाइये-
(अ) कार्य-जीवन की गुणवत्ता 
(ब) जीवन कौशल। 
उत्तर 
(अ) कार्य-जीवन की गुणवत्ता 
संस्थाओं द्वारा कर्मचारियों के कार्य जीवन की गुणवत्ता को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह कर्मचारियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक समझा जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि लोग जब अपनी कार्य की परिस्थितियों से संतुष्ट होते हैं, तब वे बेहतर काम करते हैं। कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने के लिये जितना उनकी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करना आवश्यक है, उतना ही उनकी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करना महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार कार्य-जीवन की गुणवत्ता में कर्मचारियों की आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करना निहित है। इसमें अनेक संदर्भ शामिल होते हैं, जो केवल कार्य पर ही आधारित नहीं होते, जैसे-नौकरी और जीविका संतुष्टि, वेतन के साथ-साथ संतोष और साथियों के साथ अच्छे सम्बन्ध, काम में तनाव का न होना, निर्णय करने में भागीदारी के अवसर होना, कार्य/जीविका और घर में संतुलन होना तथा खुशहाली का सामान्य बोध होना। 

(ब) जीवन-कौशल अर्थ-जीवन-कौशल वे क्षमताएं हैं जो लोगों को समुचित तरीकों से व्यवहार करने योग्य बनाती हैं, विशेष रूप से उन परिस्थितियों में जो उनके लिए चुनौतीपूर्ण होती हैं। 
 
जीवन-कौशल जीवन पर्यन्त काम आते हैं। इसलिए ये लोगों को जीवन की दैनिक आवश्यकताओं और चुनौतियों से निपटने में सहायता करते हैं तथा सभी परिस्थितियों में जीवन को प्रोत्साहित करते हैं तथा स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए समर्थ बनाते हैं। 

प्रमुख जीवन-कौशल-विशेषज्ञों द्वारा पहचाने गए दस जीवन-कौशल निम्नलिखित हैं- 

  • स्व जागरूकता, 
  • संप्रेषण, 
  • निर्णय लेना, 
  • सृजनात्मक चिंतन, 
  • मनोभावों से जूझना, 
  • परानुभूति, 
  • अंतर्वैयक्तिक सम्बन्ध, 
  • समस्या सुलझाना, 
  • आलोचनात्मक चिंतन, 
  • तनाव से जूझना।

उचित और पर्यास ज्ञान, अभिवत्तियाँ और मल्य व्यक्ति को समचित जीवन कौशलों को विकसित करने में समर्थ बनाते हैं और नकारात्मक अथवा अनुचित व्यवहार को रोकते हैं। नीचे दिए गए संकल्पनात्मक मॉडल में इसे दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका 1

रोकथाम जीवन-कौशल का महत्त्व-

  • समुचित जीवन कौशल स्वयं लोगों के स्वास्थ्य एवं विकास को प्रोत्साहन देने में सहायता करते हैं। 
  • जिन समुदायों में ऐसे व्यक्ति रहते हैं, वे उन समुदायों के विकास में भी मदद करते हैं। 
  • ये व्यक्तियों को समाज में प्रभावशाली और रचनात्मक रूप में कार्य करने में योगदान देते हैं। 

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Home Science Chapter 1 Question Answer प्रश्न 13. 
श्रम के महत्त्व का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
श्रम के महत्त्व का अर्थ-श्रम के महत्त्व का अर्थ है कि व्यक्ति जो कुछ कार्य करता है, उस पर उसे गर्व होता है। 

अब्राहम लिंकन एक किसान का बेटा था और वह निर्धन बालक से उन्नति कर अमेरिका का राष्ट्रपति बना। इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी एक निर्धन चाय बेचने वाले का बेटा है जो श्रम के माध्यम से उन्नति कर भारत का प्रधानमंत्री बना है। महात्म गाँधी श्रम की महत्ता के ज्वलंत उदाहरण हैं। वे वर्धा में अपने आश्रम में झाडू लगाते थे और साफ-सफाई भी करते थे। उन्होंने कभी इन कामों को करने में छोटा अथवा अपमान का अनुभव नहीं किया। इस संदर्भ में यह याद रखना आवश्यक है कि व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उसे मूल्यों और नैतिकता के आधार पर आंकना चाहिए। 

Home Science Class 12 Chapter 1 प्रश्न 14. 
व्यावसायिक जीवन में मूल्यों और नैतिकता की भूमिका को संक्षेप में समझाइए। 
उत्तर:
मूल्य से आशय-मूल्य वे विश्वास, प्राथमिकताएँ अथवा मान्यताएँ हैं जो बताते हैं कि मनुष्यों के लिए क्या वांछनीय है या बेहतर है। मूल्य हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। छ: महत्त्वपूर्ण मूल्य हैं-(1) सेवा (2) सामाजिक न्याय (3) लोगों की मान-मर्यादा (4) उपयोगिता (5) मानव सम्बन्धों का महत्त्व तथा (6) ईमानदारी। 

नैतिकता-नैतिकता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-"एक व्यक्ति या व्यवसाय के विभिन्न सदस्यों के आचरण को परिचालन करने वाले नियम।" 

व्यावसायिक जीवन में मूल्यों एवं नैतिकता की भूमिका-

  • कार्य-स्थल पर मूल्य और नैतिकता समय और धन के अपव्यय को कम करने में सहायक होते हैं। 
  • व्यावसायिक जीवन में मूल्य और नैतिकता कर्मचारी के मनोबल, आत्मविश्वास और उत्पादकता को बढ़ाते हैं। 
  • नैतिकता को अपनाने वाला व्यक्ति अपने सहकर्मियों से आदर पाता है और उन्हें भी नैतिकता अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

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प्रश्न 15. 
रचनात्मकता में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
रचनात्मक में वृद्धि करने की विधियाँ निम्नलिखित हैं- 

  • प्रत्यक्ष अनुभव 
  • खेल खेलना 
  • पहेलियों का हल निकालना 
  • उपजीविका 
  • ललित कलाएँ 
  • पढ़ना 
  • लिखना 
  • विचार मंथन 
  • अपनी अनुभूतियों को समझना और उनमें सुधार करना 
  • प्रश्न पूछना 
  • चिंतन और कल्पना करना। यहाँ तक कि सपनों में खो जाना। 

उपर्युक्त विधियों को अपनाकर रचनात्मकता में वृद्धि की जा सकती है। 

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प्रश्न 16. 
नवप्रवर्तन से आप क्या समझते हैं? समझाकर लिखिए। 
उत्तर:
नवप्रवर्तन-नव प्रवर्तन कुछ ऐसा होता है जो लीक से हटकर हो और बेहतर हो। इस प्रकार नवप्रवर्तन का अर्थ वर्तमान उत्पाद या सेवा का ऐसा नवीकरण या बदलाव होता है जो उससे बेहतर हो। 

नवप्रवर्तन के लिए दो शर्ते हैं-एक तो वर्तमान स्थिति से असंतुष्टि और दूसरे रचनात्मक सोच, जो काम को बेहतर था उसमें कुछ नया करना चाहती है। नवप्रवर्तन की व्याख्या कुछ भिन्न कार्य अथवा कोई अनुप्रयोग करने के सम्बन्ध में की जा सकती है। नवप्रवर्तन चाहे कुछ भी हो, इसमें सामान्यतः 1 प्रतिशत कुछ नया होता है और 99 प्रतिशत मेहनत होती है।

प्रश्न 17. 
रोजगार संतुष्टि क्या होती है और इसका क्या महत्त्व है? 
उत्तर:
रोजगार संतुष्टि-रोजगार संतुष्टि से आशय कार्य से प्राप्त संतुष्टि से है, जो एक प्रवृत्ति है अर्थात् मात्रात्मक उपलब्धि की व्यक्तिगत भावना से जुड़ी एक आंतरिक अवस्था है। इसलिए यह एक जटिल और बहु आयामी संकल्पना है, जिसका अर्थ भिन्न-भिन्न लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। 

पिछले कुछ वर्षों से रोजगार संतुष्टि को रोजगार डिजाइन व कार्य संगठन तथा कार्यगत जीवन की गुणवत्ता की व्यापक पहुँच के साथ अधिक निकटता से जोड़ दिया गया है। 

रोजगार संतुष्टि में व्यक्ति अपने रोजगार से संतुष्ट होते हैं, आत्मविश्वासी होते हैं और अपने काम और जीवन में सक्षम होने का अनुभव करते हैं। 

रोजगार संतुष्टि देने वाले रोजगार वे होते हैं जो उसे पहचान देते हैं, कौशलों में विविधता देते हैं, व्यक्ति को उत्तरदायित्व, स्वतंत्रता और कार्रवाई की स्वाधीनता और आगे बढ़ने का अवसर देते हैं। 

रोजगार संतुष्टि का महत्त्व-(1) नियोक्ता और संगठन को रोजगार संतुष्टि से जो लाभ मिलते हैं, वे हैं-

  • बेहतर निष्पादन और उत्पादकता,
  • अधिक उत्पादन और
  • कर्मचारियों की अनुपस्थिति में कमी। 

(2) रोजगार संतुष्टि से कर्मचारी को ये लाभ मिलते हैं-

  • कर्मचारी को रोजगार संतुष्टि उपलब्धि का बोध कराती है।
  • यह उन्हें आत्मविश्वास देती है।
  • यह कर्मचारियों में स्वास्थ्य कल्याण तथा जीवन-संतोष को बढ़ावा देती है।
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Last Updated on Nov. 10, 2023, 3:02 p.m.
Published Nov. 9, 2023