RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Home Science Solutions Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य

RBSE Class 12 Home Science जनपोषण तथा स्वास्थ्य Textbook Questions and Answers

पृष्ठ 83

Home Science Class 12 Chapter 3 Question Answer In Hindi प्रश्न 1. 
निम्नलिखित शब्दों को समझाइए-
बौनापन, जन्म के समय कम भार वाला शिशु, आई.डी.डी., क्षयकारी, कुपोषण का दोहरा भार, मरास्मस, क्वाशिओरकोर, समुदाय। 
उत्तर:
बौनापन-कुपोषण के कारण बच्चे की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है और इसके कारण वयस्क होने पर उसके शरीर का कद छोटा रह जाता है, कुपोषण की इस समस्या को बौनापन कहते हैं। इस प्रकार बौनापन तब होता है, जब शरीर की ऊंचाई आयु के अनुरूप उपयुक्त ऊंचाई से कम होती है। 

जन्म के समय कम भार वाला शिश-जन्म के समय कम भार वाले शिश से अभिप्राय यह है कि जन्म के समय उसका भार 2.5 kg. से कम होता है। 

आई.डी.डी.-आई.डी.डी. का अभिप्राय है-आयोडीन हीनता विकार। आयोडीन हीनता विकार एक पारिस्थितिक परिघटक है, जो अधिकतर मृदा (मिट्टी) में आयोडीन की कमी से होता है। इसमें आयोडीन की कमी से थायरायड ग्रंथि बढ़ जाती है और उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। 

क्षयकारी-जब किसी व्यक्ति का भार उसकी ऊँचाई की तुलना में पर्याप्त नहीं होता है तो इसे क्षयकारी कहा जाता है। 
कुपोषण का दोहरा भार-कुपोषण के दोहरे भार का आशय यह है कि कुपोषण को दोनों रूपों-अल्पपोषण और अतिपोषण-का होना। 

मरास्मस-भोजन और ऊर्जा की कमी से होने वाला गंभीर अल्प पोषण 'मरास्मस' कहलाता है। क्वाशिओरकोर-प्रोटीन की कमी से उत्पन्न स्थिति 'क्वाशिओरकोर' कहलाती है। 

समुदाय-समुदाय लोगों का एक ऐसा विशिष्ट समूह होता है, जिसमें कुछ सामान्य विशेषताएँ पाई जाती हैं, जैसे-एक जैसी भाषा, एक ही सरकार अथवा एक जैसी स्वास्थ्य समस्यायें। 

Class 12 Home Science Chapter 3 Question Answer In Hindi प्रश्न 2. 
जन पोषण समस्याओं से जूझने के लिए उपयोग में लाई जा सकने वाली विभिन्न कार्यनीतियों की विवेचना कीजिए। 
उत्तर:
जन पोषण समस्यायें-जन पोषण समस्याओं से अभिप्राय समाज में अल्पपोषण और अतिपोषण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से है, जैसे-अल्पभारी, बौनापन, क्षयकारी, मरास्मस, क्वाशिओरकोर, मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अतिभार, गठिया आदि की समस्यायें। 

जन पोषण समस्याओं से जूझने के लिए उपयोग में लाई जा सकने वाली कार्यनीतियाँ
विभिन्न कार्यनीतियाँ हैं जिनका उपयोग जनपोषण समस्याओं से जूझने के लिए किया जा सकता है। इनका मोटे रूप से निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है- 
(अ) आहार अथवा भोजन-आधारित कार्यनीतियाँ-ये कार्यनीतियाँ निवारक और व्यापक योजनाएँ हैं जो पोषण हीनताओं पर काबू पाने के लिए एक माध्यम के रूप में भोजन का प्रयोग करती हैं। ये सूक्ष्म पोषकों की कमी को रोकने के लिए, सूक्ष्म पोषक-समृद्ध खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और उपयोग को बढ़ाकर, महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। 

भोजन आधारित कार्यनीति के कार्य-

  • इस कार्यनीति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह दीर्घोपयोगी है और इसके लाभ लम्बी अवधि तक मिलते रहेंगे। 
  • इसके दूसरे लाभ हैं कि ये कार्यनीतियाँ लागत प्रभावी हैं और विभिन्न सांस्कृतिक और आहारी परंपराओं के लिए अपनाए जा सकते हैं। 
  • तीसरे, इनमें अतिमात्रा और आविषालुता का खतरा नहीं होता, जैसे-पोषक-आधारित औषधीय दृष्टिकोणों में हो सकता है। 

भोजन आधारित उपागम-कुछ महत्त्वपूर्ण भोजन आधारित उपागमों में सम्मिलित हैं-आहारी विविधता और रूपांतरण या परिवर्तन, बागवानी हस्तक्षेप जैसे-घरेलू बागवानी, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, भोजन पुष्टिकरण आदि। 

(ब) पोषण-आधारित अथवा औषधीय दृष्टिकोण-पोषण-आधारित अथवा औषधीय दृष्टिकोण में संवेदनशील समूहों अर्थात् उन लोगों को जिनमें कमी का खतरा है और वे जिनमें पोषण की कमी है, को पोषक पूरक भोजन पदार्थ दिए जाते हैं।

यह भारत में विटामिन-A और लौह तत्त्व के लिए उपयोग की जाने वाली एक अल्पावधि नीति है। ये पूरक कार्यक्रम अधिकतर महँगे होते हैं और इनमें क्या शामिल किया जाता है, इस सम्बन्ध में समस्यायें भी हो सकती हैं। विभिन्न पोषकों के लिए मुख्य लक्ष्य समूह भिन्न-भिन्न होते हैं। 

उक्त दोनों कार्यनीतियों को निम्न सारणी में प्रदर्शित किया गया है 
सारणी-जन पोषण समस्याओं को कम करने के लिए विभिन्न हस्तक्षेप 
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य 1
भोजन-आधारित अथवा आहार-आधारित नीतियाँ
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य 2

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य

जन पोषण तथा स्वास्थ्य प्रश्न 3. 
जन स्वास्थ्य पोषण क्या है? 
उत्तर:
जन स्वास्थ्य पोषण से आशय-जन स्वास्थ्य पोषण, अध्ययन का वह क्षेत्र है जो अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबंधित है। इसका लक्ष्य अल्प पोषण और अतिपोषण दोनों की रोकथाम करना तथा लोगों के अनुकूलतम पोषण स्तर को बनाए रखना है। 

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह पोषण सम्बन्धी रोगों/समस्याओं का समाधान करने वाली सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए इन पोषण संबंधी रोगों/समस्याओं का समाधान करता है। जन स्वास्थ्य आहार विशेषज्ञ या व्यावसायिक जनसंख्या को प्रभावित करने वाली समस्याओं के समाधान के लिए बड़े पैमाने पर सुनियोजित और बहुविषयक पद्धतियों का उपयोग करते हैं। 

अतः जन स्वास्थ्य पोषण बहुविषयक प्रकृति का है और जीव विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान विषयों की बुनियाद पर टिका हुआ है। यह पोषण के अन्य क्षेत्रों, जैसे-नैदानिक पोषण और आहारिकी, से भिन्नता रखता है, क्योंकि इसके लिए समुदाय/जनता, विशेषकर अतिसंवेदनशील समूहों की समस्याओं के समाधान के लिए व्यावसायिक की आवश्यकता है। 

स्पष्ट है कि जन स्वास्थ्य पोषण, ज्ञान का एक विशिष्ट भाग है, जो पोषणात्मक, जैविक, व्यवहार सम्बन्धी सामाजिक और प्रबंधन विज्ञानों से विकसित हुआ है। इसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-"समाज के संगठित प्रयासों/कार्यवाही द्वारा स्वास्थ्य को उन्नत करने और परिस्थितियों/रोगों की रोकथाम करते हुए जीवन-अवधि को दीर्घ बनाने की कला और विज्ञान जन-स्वास्थ्य पोषण है।" 

Class 12 Home Science Chapter 3 Question Answer प्रश्न 4. 
भारत किन सामान्य पोषण समस्याओं का सामना कर रहा है? 
उत्तर:
भारत में पोषण सम्बन्धी समस्यायें 
भारत निम्नलिखित सामान्य पोषण समस्याओं का सामना कर रहा है- 
(अ) प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण की समस्या (पी.ई.एम.)-प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण की समस्या जरूरतों की अपेक्षा कम भोजन लेने से होती है अर्थात् यह समस्या ऊर्जा और प्रोटीन के अपर्याप्त अंतर्ग्रहण से उत्पन्न होती है। 

बच्चों को प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण से ग्रसित होने का खतरा अधिक होता है, यद्यपि बड़ी उम्र के लोगों को और जो लोग क्षयरोग, एड्स जैसे रोगों से ग्रसित हैं, उनको भी इस कुपोषण का खतरा रहता है। 

इसका निर्धारण मानवमितिक मापों (भार और/अथवा ऊँचाई) द्वारा किया जाता है। 
भोजन और ऊर्जा की कमी से होने वाला गंभीर अल्पपोषण 'मरास्मस' कहलाता है और प्रोटीन की कमी से उत्पन्न स्थिति 'क्वाशिओरकोर' कहलाती है। ऊर्जा और प्रोटीन की कमी से उत्पन्न होने वाली अन्य पोषण समस्यायें हैं-व्यक्ति का अल्पभारी होना, क्षयकारी होना तथा बौनापन। 

(ब) सूक्ष्म पोषकों की कमी-यदि आहार में ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा कम होती है, तो इसमें अन्य पोषकों, विशेषकर सूक्ष्म पोषकों, जैसे-खनिजों और विटामिनों की मात्रा भी कम होने की संभावना होती है। 

सूक्ष्म पोषकों की कमी से जन स्वास्थ्य संबंधी मुख्य समस्यायें लौहतत्त्व, विटामिन A तथा आयोडीन व जिंक की होती हैं। इसके अतिरिक्त विटामिन B12, फोलिक अम्ल, कैल्सियम, विटामिन D और राइबोफ्लेविन में भी समस्यायें बढ़ रही हैं। यथा- 
(i) लौह तत्त्व की कमी से अरक्तता-यह विश्व का सर्वाधिक सामान्य पोषण विकार है जो विकसित और अविकसित दोनों प्रकार के देशों में व्याप्त है। भारत में इसके प्रति संवेदनशील वर्ग हैं-गर्भधारण करने वाली कम आयु की महिलाएँ, किशोर बालिकाएँ, गर्भवती महिलाएँ और विद्यालयी आयु वाले बच्चे। 

लौह तत्त्व की कमी से अरक्तता तब होती है, जब शरीर में हीमोग्लोबिन का बनना काफी कम हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। 

लौहतत्त्व की कमी के कारण दिखाई देने वाले लक्षणों में सम्मिलित हैं-सामान्य पीलापन, नेत्र-श्लेष्मा, जीभ, नख-परतों और कोमल तालु में पीलापन। इसके कारण व्यक्ति थोड़े से श्रम से हाँफना, थकावट महसूस करना तथा निढाल महसूस करता है। बच्चों में इससे संज्ञानात्मक क्रियायें बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। 

(ii) विटामिन A की कमी ( वी.ए.डी.)-विटामिन A की कमी से रतौंधी हो जाती है और यदि सही उपाय नहीं किए जाते तो यह पूर्ण अंधता में बदल जाती है। दूसरे, इसकी कमी से रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, शरीर की वृद्धि प्रभावित होती है। इसकी कमी छोटे बच्चों के अंधेपन का मुख्य कारण होती है। 

(iii) आयोडीन हीनता विकार-आयोडीन हीनता विकार एक पारिस्थितिक परिघटक है जो अधिकतर मृदा (मिट्टी) में आयोडीन की कमी से होती है। भारत के जो राज्य आयोडीन हीनता विकार से ग्रसित हैं, वे हैं-जम्मू और कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का हिमालयी क्षेत्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश। 

आयोडीन की कमी के कारण थायरॉइड हार्मोन अपर्याप्त मात्रा में बनता है, जिसका संश्लेषण थायरॉइड ग्रंथि द्वारा होता है। आयोडीन की कमी से थायरॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है और यह बढ़ा हुआ भाग थायरॉड गलगण्ड कहलाता है, जो आयोडीन हीनता की सामान्य अभिव्यक्ति है। गर्भावस्था में आयोडीन की कमी से भ्रूण के मानसिक मंदन और जन्मजात विकृतियों के रूप सामने आते हैं। 

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Jan Poshan Tatha Swasthya प्रश्न 5. 
आई.डी.ए. और आई.डी.डी. के परिणाम क्या होते हैं?
उत्तर:
आई.डी.ए. अर्थात् आयरन की कमी से अरक्तता के परिणाम-आयरन की कमी से अरक्तता तब होती है, जब शरीर में हीमोग्लोबीन बनना काफी कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। चूंकि शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है, इसलिए किसी भी शारीरिक परिश्रम से साँस फूलने लगती है और व्यक्ति थकावट की शिकायत करता है तथा निढाल हो जाता है। इसके कारण सामान्य शरीर में, नेत्र-श्लेष्मा, जीभ, नख-परतों और तालु में पीलापन आ जाता है। आई.डी.ए. से बच्चों में एकाग्र रह पाने की अवधि, स्मरण शक्ति, ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति आदि संज्ञानात्मक क्रियायें बुरी तरह प्रभावित होती है।

आई.डी.डी. अर्थात् आयोडीन हीनता विकार के परिणाम-आयोडीन की कमी के कारण थॉयराइड हार्मोन अपर्याप्त मात्रा में बनता है, जिसका संश्लेषण थाइराइड ग्रंथि द्वारा होता है। आयोडीन की कमी से थॉयराइड ग्रंथि बढ़ जाती है और यह बढ़ा हुआ भाग थाइरॉइड गलगण्ड कहलाता है, जो आयोडीन हीनता की बहुत सामान्य अभिव्यक्ति है। 

गर्भावस्था में आयोडीन की कमी से भ्रूण के मानसिक मंदन और जन्मजात विकृतियों के रूप में दुष्परिणाम सामने आते हैं।

Prasanna
Last Updated on Nov. 30, 2023, 12:03 p.m.
Published Nov. 29, 2023