RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 7 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 7 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Home Science Solutions Chapter 7 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा

RBSE Class 12 Home Science प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा Textbook Questions and Answers

पृष्ठ 149

प्रश्न 1. 
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा एक ऐसी गतिविधि है जो विभिन्न स्थितियों में बाल्यावस्था को लाभ पहुंचाने के साथ ही इन मूलभूत कामों में माता-पिता और समाज की सहायता करके परिवारों को लाभान्वित करती है। 

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा पर एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित पत्र के अनुसार प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • बच्चे का समग्र विकास जिससे वह अपनी क्षमता पहचान सके। 
  • विद्यालय के लिए तैयारी।
  • महिलाओं और बच्चों के लिए सहायक सेवा प्रदान करना। 

प्रश्न 2. 
देखभाल की वे कौन-सी विभिन्न व्यवस्थाएँ हैं जिनकी आवश्यकता छोटे बच्चों को हो सकती है? 
उत्तर:
देखभाल की प्रमुख व्यवस्थाएँ निम्न हैं जिनकी आवश्यकता छोटे बच्चों को हो सकती है- 
(1) परिवार के वयस्क सदस्यों द्वारा देखभाल-छोटे बच्चे अपनी प्रत्येक जरूरत के लिए वयस्कों पर निर्भर करते हैं। यह अवधि सामान्यतः माता-पिता अथवा प्रमुख देखभाल करने वाले किसी अन्य व्यक्ति पर अत्यधिक निर्भरता की होती है, जो दादी/नानी अथवा अन्य कोई सहायक हो सकता है। 

(2) वेतन पर रखे गए व्यक्ति द्वारा देखभाल-ऐसी स्थितियों में जब माँ घर से बाहर नौकरी करती हो तो शिशु की देखभाल वैकल्पिक रूप से देखभाल करने वाले व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो परिवार का कोई सदस्य अथवा वेतन पर रखा गया कोई व्यक्ति हो सकता है। 

(3) शिशु केन्द्र (क्रेच)-वैकल्पिक देखभाल की व्यवस्था घर में अथवा किसी संस्था अथवा शिशु केन्द्र (क्रेच) में हो सकती है। शिशु केन्द्र एक संस्थागत व्यवस्था है जिसे विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों की घर में देखभाल करने वालों की अनुपस्थिति में देखभाल के लिए बनाया गया है। 

(4) दिवस देखभाल केन्द्र (डे केयर सेंटर)-दिन में देखभाल करने वाले केन्द्र, बच्चों की विद्यालय पूर्व वर्षों में देखभाल करते हैं । इसमें शिशु एवं विद्यालय पूर्व के बच्चे शामिल हो सकते हैं और घर में प्रमुख देखभालकर्ता की अनुपस्थिति में ये बच्चों की देखभाल करते हैं। 

(5) नर्सरी स्कूल-3 वर्ष से ऊपर के बच्चे बोलने, मल-मूत्र विसर्जन की गतिविधियों पर नियंत्रण और अपने आप खाना खा-पी लेने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसलिए नर्सरी स्कूल के शिक्षक बच्चों को नयी चीजों को सीखने, प्राकृतिक घटनाओं का अनुभव करने तथा अनेक प्रकार के शारीरिक, भाषायी, सामाजिक-भावनात्मक अनुभवों के दिलचस्प अवसर प्रदान करने के अवसर प्रदान करते हैं अर्थात् ये छोटे बच्चों को परिवार से बाहर के परिवेश में रहने के लिए तैयार करते हैं। 

(6) मॉन्टेसरी स्कूल-छोटे बच्चों के लिए कुछ विद्यालय पूर्व स्कूल अक्सर मॉन्टेसरी स्कूल कहलाते हैं। ये ऐसे विद्यालय हैं जो प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के उन सिद्धान्तों पर आधारित हैं, जिनकी रूपरेखा विख्यात शिक्षाविद मारिया 
मॉन्टेसरी द्वारा बनाई गई है। . 

(7) आँगनबाड़ी द्वारा विद्यालय पूर्व शिक्षा तथा देखभाल-भारत सरकार ने इस आयु समूह की आवश्यकताओं को आँगनबाड़ी द्वारा विद्यालय पूर्व शिक्षा और देखभाल की व्यवस्था की है। ये आँगनबाड़ियाँ समेकित बाल विकास सेवाओं के अन्तर्गत कार्य करती हैं। ये शहरी तथा ग्रामीण दोनों प्रकार के क्षेत्रों में हैं। 

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प्रश्न 3. 
किन कारणों से छोटे बच्चों को विद्यालय में विशेष अनौपचारिक कार्यक्रम की आवश्यकता होती है? 
उत्तर:
जब बच्चा चलना, दौड़ना, चीजों को उलटना-पलटना व बोलना सीख लेता है तो वह परिवेश के साथ सक्रिय भागीदारी करने में सक्षम हो जाता है। अपने आस-पास के लोगों और चीजों के साथ परस्पर व्यवहार से ही इस उम्र के बच्चे समस्त जानकारी एकत्र करते हैं जो वह कर सकते हैं। इस उम्र में मातृभाषा में शब्द ज्ञान तेजी से बढ़ता है और उसके साथ ही बच्चे की प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे बालू, जल, पक्षियों और अन्य सामग्रियों की समझ बढ़ती है। उनमें और अधिक जानने की जिज्ञासा प्रबल होती जाती है। 

इसलिए इस उम्र में सीखने के लिए बच्चों को विद्यालय में अनुकूल परिवेश में अनौपचारिक कार्यक्रम की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि यदि हम ऐसे बच्चों को एक जगह बैठाकर बड़े बच्चों के औपचारिक विद्यालय की भाँति पढ़ने को बाध्य करेंगे, तो उनकी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी और वे बेचैन तथा असुरक्षित महसूस करेंगे। इसलिए इस उम्र में बच्चों के सीखने का सबसे अनुकूल परिवेश अनौपचारिक कार्यक्रम है जो सुरक्षित, निरापद, प्रेमपूर्ण तथा खेल सामग्रियों से युक्त हो। 

प्रश्न 4. 
बाल-केन्द्रित उपागम से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
बाल-केन्द्रित उपागम से अभिप्राय है-छोटे बच्चों की देखभाल और शिक्षा पर केन्द्रित दृष्टिकोण। बाल केन्द्रित उपागम और खेल-खेल में सीखने का तरीका जो पढ़ाई को रुचिकर बना देता है, छोटे बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त होता है। विद्यालय पूर्व के बच्चों की शिक्षा तथा देखभाल के लिए जो विद्यालय पूर्व केन्द्र होते हैं, वे बाल-केन्द्रित उपागम पर आधारित होते हैं। ये अनौपचारिक होते हैं तथा बच्चों को सीखने का अनुकूल परिवेश प्रदान करते हैं, जो घर में सीखने के अच्छे परिवेश के लाभों का पुरक होता है। साथ ही ऐसी स्थितियों में जहाँ घर के परिवेश में कोई कमी हो, वहाँ विद्यालय पूर्व केन्द्र बच्चे की घर के बाहर वृद्धि और विकास में सहायता करने में एक प्रमुख कारक हो सकता है। 

प्रश्न 5. 
शिशु देखभाल केन्द्र क्या होता है और यह केन्द्र कौनसी सेवाएं प्रदान करता है? 
उत्तर:
शिशु देखभाल केन्द्र एक संस्थागत व्यवस्था को दिया गया नाम है जिसे विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों की घर में देखभाल करने वालों की अनुपस्थिति में देखभाल के लिए बनाया गया है। 

शिशु देखभाल केन्द्र छोटे बच्चों को सीखने के लिए अनुकूल परिवेश प्रदान करता है। अनुकूल परिवेश से आशय है कि बच्चों के सीखने व देखभाल का परिवेश सुरक्षित, निरापद, प्रेमपूर्ण, विविध प्रकार के व्यक्तियों और खेल सामग्रियों (खिलौने अथवा प्राकृतिक चीजों) से युक्त हो। 

शिशु देखभाल केन्द्र अनौपचारिक होता है। ये बच्चे की अन्य वयस्कों तथा परिवेश और वस्तुओं से संबंधित जानकारी बढ़ाते हैं तथा छोटे बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए तैयार करते हैं। एन.सी.ई.आर.टी. के प्रकाशित पत्र के अनुसार ये केन्द्र निम्न सेवाएँ प्रदान करते हैं- 

  • बच्चे का समग्र विकास करना जिससे वह अपनी क्षमता पहचान सके। 
  • बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए तैयार करना। 
  • महिलाओं और बच्चों के लिए सहायक सेवाएँ प्रदान करना।

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प्रश्न 6. 
उन कौशलों को सूचीबद्ध कीजिए जो ई.सी.सी.ई. (प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा) कार्यकर्ता में होने चाहिए। 
उत्तर:
ई.सी.सी.ई. कार्यकर्ता हेतु आवश्यक कौशल-एक ई.सी.सी.ई. कार्यकर्ता में निम्नलिखित कौशल होने चाहिए- 

  • बच्चों और उनके विकास में रुचि। 
  • बच्चों से बातचीत (अंतःक्रिया) करने की क्षमता और प्रेरणा। 
  • छोटे बच्चों की आवश्यकताओं और क्षमताओं के बारे में जानकारी। 
  • विकास के सभी क्षेत्रों में बच्चों के साथ रचनात्मक और रोचक गतिविधियों के लिए कौशल। 
  • कहानी सुनाने, खोज-बीन करने, प्रकृति सम्बन्धी और सामाजिक अन्तःक्रिया जैसे कार्यकलापों के लिए उत्साह। 
  • बच्चों की शंकाओं/प्रश्नों के उत्तर देने की इच्छा और रुचि। 
  • व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने की क्षमता, तथा। 
  • काफी लम्बे समय तक शारीरिक गतिविधियों के लिए सक्रियता और उनके लिए तत्पर रहना। 

प्रश्न 7. 
हम ई.सी.सी.ई. में जीविका के लिए किस प्रकार तैयारी कर सकते हैं? 
उत्तर:
हम ई.सी.सी.ई. में जीविका के लिए निम्न तैयारी कर सकते हैं-

  • हम बच्चों के विकास और देखभाल के मूलभूत सिद्धान्तों के बारे में अध्ययन करेंगे। 
  • इसके पाठ्यक्रम के भाग के रूप में बाल/मानव विकास और/अथवा बाल-मनोविज्ञान जैसे विषय में स्नातक पूर्व उपाधि प्राप्त करेंगे। 
  • शिक्षा पूर्ण करने के बाद इस क्षेत्र में आने के लिए इस क्षेत्र में एक वर्ष का डिप्लोमा अथवा मुक्त विश्वविद्यालय के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में डिप्लोमा प्राप्त करेंगे अथवा नर्सरी अध्यापक प्रशिक्षण क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। 
  • उक्त पाठ्यक्रमों को करने और उपाधियों को अर्जित करने के अतिरिक्त हम बच्चों के प्रति उदारता और उनसे बातचीत (अन्तःक्रिया) करने का रुझान अपने अन्दर विकसित करेंगे। 
  • हम उस समुदाय और संस्कृति की जानकारी हासिल करेंगे ताकि विद्यालय पूर्व केन्द्र की गतिविधियाँ उस सांस्कृतिक और क्षेत्रीय वातावरण के अनुकूल हों।
  • हम उन प्रशासनिक और प्रबंधीय कौशलों में सक्षम बनेंगे जिनकी रिकॉर्ड रखने, लेखाकरण, रिपोर्ट लिखने आदि के लिए आवश्यकता होती है जिससे संस्थान उचित रिकॉर्ड रख सके तथा अभिभावकों के साथ सम्पर्क और अन्तःक्रिया प्रभावी और अर्थपूर्ण हो सके। 
  • हम विविध कलाओं के कौशलों से युक्त होने का प्रयास करेंगे क्योंकि कहानी सुनाने, नृत्य, संगीत, भीतरी तथा बाहरी खेल-पूर्व गतिविधियाँ आयोजित करने के कौशल बच्चों के लिए काम करने में अत्यधिक लाभदायक होते हैं। 
  • विद्यालय पूर्व शिक्षक को अकसर अपनी पाठ योजनाओं, अपनी कार्यनीतियों और तकनीकों को छोटे बच्चों की जरूरतों के अनुसार बदलना पड़ता है। अतः बच्चों का प्रभावी शिक्षक बनने के लिए उसे उनकी कार्य-योजना के समय उनके प्रति अनुकूल और लचीला होना चाहिए। 

हम ई.सी.सी.ई. में जीविका के लिए उक्त पाठ्यक्रमों, डिप्लोमा, उपाधियों को अर्जित करने के साथ-साथ हम उक्त सेवा में प्रभावी शिक्षक बनने हेतु उपरोक्त विवेचित कौशलों और मानवीय गुणों से युक्त होने की तैयारी भी करते रहेंगे।

Prasanna
Last Updated on July 19, 2022, 3:38 p.m.
Published July 18, 2022