RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Home Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Home Science Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 12 Home Science Solutions Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन

RBSE Class 12 Home Science खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन Textbook Questions and Answers

पृष्ठ 99

प्रश्न 1. 
विभिन्न प्रकार के भोजन सेवा प्रतिष्ठानों की सूची बनाइए। 
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के भोजन सेवा प्रतिष्ठान-विभिन्न प्रकार के भोजन सेवा प्रतिष्ठानों को मोटे रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 

  • कल्याणकारी/गैर व्यावसायिक भोजन सेवा प्रतिष्ठान। 
  • व्यावसायिक भोजन सेवा प्रतिष्ठान। 

उक्त दोनों प्रकार के भोजन सेवा प्रतिष्ठानों की सूची को अग्र तालिका में प्रदर्शित किया गया है- 
सारणी-कल्याणकारी/गैर-व्यावसायिक और व्यावसायिक भोजन सेवाएँ प्रदान 
करने वाले भोजन सेवा प्रतिष्ठानों के प्रकार

कल्याणकारी भोजन-प्रबंध

व्यावसायिक भोजन-प्रबंध

विद्यालयों में मध्याह्न भोजन

छोटे से लेकर बड़े अति सुविधासंपन्न होटल (3 सितारा 7 सितारा), इसमें रेस्टोरेंट, ढाबे और कैफ़ै भी सम्मिलित हैं।

विद्यालयी भोजन सेवाएँ

महँगे सुख-सुविधासंपन्न रेस्टोरेंट, स्पॉ, विशिष्टता वाले रेस्टोरेंट

औद्योगिक कैंटीन (जब नियोक्ता कर्मचारियों को निःशुल्क या आर्थिक सहायता प्राप्त भोजन उपलब्ध कराते हैं) 

निजी होटल और अतिथिगृह, अवकाश शिविर

संस्थान जैसे-विद्यालय और महाविद्यालय, छात्रावास और कार्यशील महिलाओं के छात्रावास

फास्ट फूड भोजन सेवा/पैक किया भोजन (शीघ्र सेवा रेस्टोरेंट) 

विशिष्ट आवश्यकता वाले जैसे-अस्पताल

स्नैक बार (अल्पाहार गृह)

वृद्धजन आवास, नर्सिंग होम

कॉफ़ी की दुकान, विशिष्ट भोजन सेवाएँ जैसे-आइसक्रीम की दुकान, पिज्ज़ा

अनाथालय

सिनेमा हॉल, नाटकशाला, मॉल में भोजन सेवाएँ

जेल

मदिरालय

धर्मशालाएँ

सामुद्रिक, स्थलीय और वायुवीय यात्रा सेवाएँ (परिवहन भोजन प्रबंध) जैसे-वायुयान का रसोईघर, रेलगाड़ियों में बुफे-कार

लंगर, मंदिरों में भक्तों को दिया जाने वाला प्रसाद और भोजन

संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, सम्मेलनों, पार्टियों और शादियों के लिए भोजन-प्रबंध

धार्मिक आदेशों द्वारा चलाए जाने वाले भोजन कार्यक्रम, जैसे-रामकृष्ण मिशन, इस्कॉन

उद्योगों और संस्थानों के लिए (घरेलू भोजन सेवा) संविदा-आधारित भोजन प्रबंध

शिशुसदन

शंखला भोजन प्रबंध संस्थान

सरकार/नगर निगम के पूरक भोजन कार्यक्रम, जैसे-मध्याह्न भोजन कार्यक्रम, आई.सी.डी.एस. का पूरक आहार कार्यक्रम

क्लब/जिमखाना

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन

प्रश्न 2. 
व्यंजन-सूची (मेन्यू) क्या है? इसके कार्य क्या हैं? 
उत्तर:
व्यंजन-सूची (मेन्यू)-सभी खाद्य-सेवा प्रतिष्ठानों में, व्यंजन सूची (मेन्यू) का नियोजन सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि खाद्य-सेवा इकाई/संगठन की सभी गतिविधियाँ व्यंजन-सूची पर केन्द्रित होती हैं। 

व्यंजन-सूची से आशय-व्यंजन-सूची संप्रेषण का साधन है, जिससे भोजन-प्रबंधक/भोजन सेवा इकाई ग्राहक/ उपभोक्ता को सूचित करती है कि क्या खाद्य पदार्थ पेश किये जा रहे हैं। 

व्यंजन सूची तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें हैं-जलवायु, मौसम और सामग्री की उपलब्धता, मूल्य .सीमा, खाने का समय जो यह निर्धारित करते हैं कि कौनसा खाना और कौन-सी वस्तुएँ किसमें शामिल करनी हैं, जैसे सुबह का नाश्ता, अल्पाहार, दोपहर का भोजन, रात्रि का भोजन, विशेष समारोह तथा परोसे जाने वाले पेय पदार्थ, व्यंजन सूची का प्रतिरूप और परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों का क्रम आदि। 
 
व्यंजन-सूची (मेन्यू) के कार्य-व्यंजन सूची मुख्य रूप से दो प्रमुख कार्य करती है-
(A) यह ग्राहक/उपभोक्ता को सचित करती है कि क्या उपलब्ध है। 
(B) यह भोजन-प्रबंध स्टाफ को बताती है कि क्या बनाना है। 

(C) इसके अतिरिक्त एक सुनियोजित व्यंजन सूची सतर्क विचारों को दर्शाती है। यह तीन दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करती है। यथा- 

  • ग्राहक के दृष्टिकोण को जिसमें परोसे गए भोजन की मात्रा, विविधता और स्वादिष्टता के साथ-साथ परोसने के तरीके से उसे अपनी अदा की गई कीमत की वसूली की जाती है। 
  • कर्मचारियों के दृष्टिकोण को जिन्हें लिखित व्यंजन-सूची को वास्तविक खाद्य पदार्थों में बदलना होता है। 
  • प्रबंधन के दृष्टिकोण को जिन्हें लाभ, अच्छी ख्याति तथा संतुष्ट ग्राहकों के रूप में मिले संतोष से मिलता है। 

(D) व्यंजन सूची प्रतिष्ठान की एक ऐसी छवि प्रस्तुत करती है जो रेस्टोरेंट की समग्र शैली को प्रतिबिंबित करती है। एक आकर्षक और अच्छी डिजाइन वाली व्यंजन-सूची बिक्री को बढ़ाती है तथा विज्ञापन का साधन भी बन सकती है। 

प्रश्न 3. 
भोजन सेवा के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को स्पष्ट रूप से समझाइए। 
उत्तर:
आज बढ़ते जा रहे प्रवसन, शहरीकरण, वैश्वीकरण, अन्तर्राष्ट्रीय यात्राओं, पर्यटन, विभिन्न पाक प्रणालियों और विज्ञापनों की जानकारी के साथ-साथ स्थानीय लोगों की नए भोजनों का स्वाद लेने में बढ़ती रुचि के कारण विभिन्न प्रकार की पाक-प्रणालियों और विशिष्ट जातीय भोजनों की माँग बढ़ गई है। 

भोजन सेवा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक 
भोजन सेवाओं के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(1) परम्परा और संस्कृति-प्राचीन काल में भारत में जो यात्री तीर्थ यात्रा पर जाया करते थे, उनके भोजन का प्रबंधन धर्मशालाओं में होता था। आज भी ये धर्मशालाएँ कार्यरत हैं और रहने तथा खाने के लिए एक सस्ता खाना व स्थान उपलब्ध कराती हैं। विभिन्न संस्कृतियों और उनके भोजन तैयार करने के तरीकों के ज्ञान ने भी लोगों की पाक क्रिया में रुचि बढ़ाई है। 

(2) धार्मिक प्रथाएँ-धार्मिक स्थलों और मंदिरों में आने वाले भक्तों को प्रसाद या लंगर खिलाने की परम्परा ने भी भोजन सेवाओं के विकास में योगदान दिया है। इसी प्रकार रमजान के महीने में सभी लोगों को उस समय भोजन कराया जाता है जब वे रोजा खोलते हैं। ये भोज्य पदार्थ बड़ी मात्रा में उन लोगों द्वारा बनाए जाते हैं जो इन्हें बनाने में निपुण होते हैं। 

(3) औद्योगिक विकास-सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में परिवर्तनों के साथ भोजन सेवा और भोजन-प्रबंधन एक उद्योग के रूप में उभरा है क्योंकि ऐसे भोजन की बहुत अधिक माँग है जो केवल स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि साफ सुथरा, स्वास्थ्यप्रद और कलात्मक तरीके से परोसा जाता हो। 

(4) सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन-वर्तमान समय में आए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन ने खान-पान की जीवन शैली में भी परिवर्तन किया है, जिसने भोजन सेवाओं के विकास को प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, अब अधिकांश परिवार सप्ताह के अंत में अथवा कभी-कभी शाम को आनंद के लिए, खाना खाने के लिए बाजार जाने लगे हैं। इसके अतिरिक्त बहुत से परिवार अब छुट्टियों में घर से बाहर यात्राएँ करने लगे हैं। उन्हें यात्रा में और छुट्टियों की पूरी अवधि में रेस्टोरेंटों/होटलों में खाना खाना पड़ता है। परिणामस्वरूप खान-पान उद्योग का विकास हो रहा है। इसके अतिरिक्त उन परिवारों में बने बनाए भोजन की माँग.होती है, जहाँ पति-पत्नी दोनों काम पर जाते हैं तथा वहाँ पर जहाँ लोग अकेले रहते हैं, जिनके पास भोजन की सीमित सुविधाएँ हैं या जो भोजन बनाने में असमर्थ हैं। 

(5) प्रौद्योगिकीय विकास-कुछ परिस्थितियों में, अधिक समय तक टिक सकने वाले अर्थात् जल्दी खराब न होने वाले भोजन की माँग होती है। वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय प्रगति ने बड़े पैमाने पर भोजन तैयार करने वालों की गतिविधियों को सरल और कारगर बनाने में मदद की है जो अधिक प्रभावी हैं, भोजन की सुरक्षा और गुणवत्ता में सुधार लाने वाली तथा कम थकाने वाली हैं। 

कम्प्यूटरों के प्रयोग ने भोजन सेवा विकास में बहुत अधिक योगदान दिया है, जिससे केवल रिकार्डों के रख रखाव, हिसाब आदि रखने के लिए ही नहीं, बल्कि भोजन के ऑन लाइन आर्डर, विश्व के विभिन्न भागों में विनिर्मित होने वाले खाद्य सेवा सम्बन्धी विभिन्न उपकरणों की जानकारी और विभिन्न व्यंजनों के बनाने की विधियाँ भी प्राप्त की जाती हैं। 

(6) वैश्वीकरण-वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने भी भोजन सेवा विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वैश्वीकरण के कारण मनुष्य, सेवा, सामान व तकनीक का एक देश से दूसरे देश में आना-जाना बढ़ा है। परिणामतः एक देश में विभिन्न राज्यों की पाक-शैलियाँ, पाक-व्यंजन बनाये जाने लगे हैं, एक देश के विशिष्ट व्यंजन दूसरे देशों में लोकप्रिय हुए हैं और बनाए तथा खाए जाने लगे हैं। इसने पाक प्रणाली विज्ञान को एक रुचिपूर्ण क्षेत्र बना दिया है और नए व्यावसायिक अवसर उपलब्ध कराए हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन

प्रश्न 4. 
कल्याणकारी और व्यावसायिक भोजन प्रबंध में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
कल्याणकारी और व्यावसायिक भोजन प्रबंध में अन्तर 
कल्याणकारी और व्यावसायिक भोजन प्रबंध में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं- 
(1) उद्देश्य सम्बन्धी अन्तर-कल्याणकारी सेवाओं का मुख्य उद्देश्य परोपकार और सामाजिक सेवा होता है। इन सेवाओं को करने वाले संगठनों या व्यक्तियों का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि लोगों को ठीक तरीके से भरपेट खिलाया गया और यदि उनके व्यापार के माध्यम से कोई लाभ हुआ है, तो वह गौण महत्त्व का है। 

दूसरी तरफ व्यावसायिक सेवाओं का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। ऐसे लोग या संगठन लाभ कमाने के लिए खाद्य सामग्री और पेय पदार्थ बेचते हैं।

(2) लाभार्थी या उपभोक्ता सम्बन्धी अन्तर-कल्याणकारी प्रतिष्ठानों में भोजन सेवा जनसाधारण को उपलब्ध नहीं होती, यह तो केवल उस संस्थान/संगठन के सदस्यों के लिए होती है जिसके लिए सेवा चलाई जा रही है। 
दूसरी तरफ व्यावसायिक भोजन प्रबंध सेवाएँ और प्रतिष्ठान सामान्यजनों के प्रयोग के लिए खुले होते हैं। 

(3) प्रतिस्पर्धा सम्बन्धी अन्तर-कल्याणकारी भोजन सेवाओं के प्रबंधकों को व्यापार के दृष्टिकोण से किन्हीं अन्य भोजन प्रबंधकों के साथ मुकाबला नहीं करना पड़ता क्योंकि उसका काम केवल नियोक्ता संस्थान से संबंधित होता है।

दूसरी तरफ व्यावसायिक भोजन सेवा प्रबंधकों को व्यापार के दृष्टिकोण से इसी प्रकार के अन्य भोजन संस्थानों के प्रबंधकों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होती है क्योंकि इनका काम जन सामान्य से संबंधित होता है। 

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 4 खान-पान व्यवस्था और भोजन सेवा प्रबंधन

प्रश्न 5. 
एक खाद्य सेवा प्रतिष्ठान के प्रबंधक से संबंधित विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खाद्य-सेवा प्रतिष्ठान के प्रबंधक के कार्य
एक खाद्य सेवा प्रतिष्ठान के प्रबन्धक से सम्बन्धित विभिन्न कार्य निम्नलिखित हैं- 

(1) नियोजन-एक खाद्य सेवा प्रतिष्ठान के प्रबंधक का मूलभूत और निर्णायक कार्य है-योजना बनाना। अन्य सभी कार्य इसी पर निर्भर करते हैं। 

योजना बनाने का उद्देश्य है-पहले से सोचना/विचारना, उद्देश्यों और नीतियों को स्पष्ट रूप से निर्धारण करना और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य की उचित प्रक्रिया का चयन करना। उसमें उद्देश्यों और नीतियों के अनुसार कार्य योजना की रचना की जाती है और संस्थान सुचारु रूप से कार्य करे, इसके लिए स्टाफ के विभिन्न सदस्यों को पदानुक्रम में कार्य सौंपे जाते हैं। इस प्रकार नियोजन में निम्न प्रश्नों के उत्तर समाहित होते हैं-(i) क्या करना है? (ii) कहाँ करना है? (iii) कब करना है? (iv) कौन करेगा और कैसे करेगा? 

(2)आयोजन-आयोजन में संस्थान में कामों की पहचान करना. इसको विभिन्न पदस्थितियों में विभाजित करना प्रत्येक पद स्थिति में जनशक्ति और संसाधनों का प्रभावशाली तरीकों तथा निपुणता से प्रयोग करने के लिए विशिष्ट कौशल और योग्यता के कर्मचारियों को एक समूह में रखना सम्मिलित है। 

आयोजन में प्रबन्धन के अन्य बहुत से कार्यों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य भी शामिल है। 

(3) स्टाफ रखना-इस कार्य में जनशक्ति की नियुक्ति, उसका प्रशिक्षण और रखरखाव सम्मिलित हैं। प्रबंधक प्रायः आवश्यक ज्ञान और कौशलों वाले व्यक्तियों को ही काम पर लगाता है जिससे संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों के अनुसार वांछित परिणाम प्राप्त हो सके।
 
(4) निदेशन और कार्य सौंपना-निदेशन के लिए प्रबन्धक में संस्थान और कर्मचारियों के हित की दृष्टि से सतत आधार पर शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता और योग्यता होनी चाहिए। कार्य सौंपने में संस्थान के भीतर विभिन्न स्तरों पर उचित योग्यता वाले व्यक्तियों को कार्य-भार बाँटना सम्मिलित है। 

(5) नियंत्रण करना-खाद्य सेवा प्रतिष्ठान के प्रबंधक का एक अन्य कार्य नियंत्रण करना भी है। इसके अन्तर्गत वह यह देखता है कि निष्पादन योजना के अनुरूप हो। वह आय और व्यय के सभी मुद्दों पर ध्यान देकर लागत नियंत्रण करता है। 

(6) समन्वय करना-प्रबंधक का एक अन्य कार्य संस्थान के सभी कार्यों में समन्वय स्थापित करना भी है। उसका यह कार्य संस्थान के सुचारू रूप से चलने और उसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को परस्पर जोड़ने तथा अन्तर्सम्बन्धित करने में सहायता प्रदान करता है। 

(7) प्रतिवेदन-प्रतिवेदन के माध्यम से प्रबंधक विभागों के विभिन्न अधिकारियों, जैसे—सह प्रबंधक, प्रशासकों की रिपोर्टों, पत्रों और रिकार्डों के माध्यम से संस्थान में किये जा रहे तथा सम्पन्न हुए विभिन्न कार्यों के बारे में अवगत कराता है। संस्थान के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। 

(8) बजट बनाना-प्रबंधक का एक अन्य कार्य बजट बनाना है। यह सभी संस्थानों के लिए आवश्यक होता है। इसमें भोजन सेवा और भोजन प्रबंधन इकाइयाँ भी सम्मिलित हैं। सभी की गतिवधियाँ उपलब्ध वित्त को ध्यान में रखकर नियोजित की जाती है और प्रारंभ की जाती हैं।

Prasanna
Last Updated on July 18, 2022, 4:56 p.m.
Published July 16, 2022