Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 24 निगमित संप्रेषण तथा जनसंपर्क Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
आज के समय में निगमित संप्रेषण का क्या महत्व है?
उत्तर:
आजकल निगमित संप्रेषण का उपयोग एक सकारात्मक निगमित छवि प्रदर्शित करने, साझेदारों के साथ मजबूत सम्बन्ध निर्मित करने, जनता को नए उत्पाद और उपलब्धियों की जानकारी देने के लिए जनसम्पर्क साधन के रूप में किया जाता है। इसी दृष्टि से आज के समय में निगमित संप्रेषण का अत्यधिक महत्व है।
दूसरे, निगमित संप्रेषण स्थानीय और वैश्विक स्तर पर कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, नियोजकों तथा अन्य व्यक्तियों के साथ संप्रेषण का एक सक्षम और प्रभावी मार्ग है।
तीसरे, कर्मचारियों के साथ संप्रेषण करने से रोजगार तुष्टि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा इससे कनिष्ठ कर्मचारी को लाभ पहुंचता है। अतः कर्मचारियों की उत्पादकता और उनके सशक्तिकरण की दृष्टि से आज के समय में निगमित संप्रेषण का अत्यधिक महत्व है।
प्रश्न 2.
निगमित संप्रेषण के प्रकार्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
निगमित संप्रेषण के. प्रमुख प्रकार्य ये हैं-
प्रश्न 3.
आन्तरिक और बाह्य संप्रेषणों की तुलना कीजिए।
उत्तर-आन्तरिक और बाह्य संप्रेषणों की तुलना
आन्तरिक तथा बाह्य संप्रेषणों की तुलना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गई है-
(1) आन्तरिक संप्रेषण संगठन के नियोक्ता और कर्मचारियों के मध्य होता है, जबकि बाह्य संप्रेषण संगठन के सदस्यों और बाहरी दुनिया के बीच होता है।
(2) आन्तरिक संप्रेषण किसी संगठन को बाँधे रखने, कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने, पारदर्शिता को प्रोत्साहित करने और धीरे-धीरे होने वाली क्षति को कम करने में एक महत्वपूर्ण साधन समझा जाता है। दूसरी तरफ, बाह्य संप्रेषण संगठन के बाहर सरकार, उसके विभागों, ग्राहकों, वितरकों, अंतर निगमित संस्थाओं, जनसाधारण आदि को संदेश संप्रेषित कर जनता के साथ अच्छे सम्बन्धों को प्रोत्साहित करता है।
(3) आंतरिक संप्रेषण नियोजन, निर्देशन, समन्वयन, प्रेरणा आदि जैसे प्रबंधकीय प्रकार्यों को करने में मदद करता है। दूसरी तरफ बाह्य संप्रेषण संगठन की सकारात्मक छवि का सृजन करने, ब्रांड संरक्षण और जनसम्पर्क जैसे महत्वपूर्ण प्रकार्यों को करने में सहायता करता है और इनमें वृद्धि करता है।
प्रश्न 4.
संप्रेषण के कार्यक्षेत्र में क्रांति लाने वाले एक मात्र कारक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रौद्योगिकी-प्रौद्योगिकी विशेष रूप से सूचना एवं संप्रेषण प्रौद्योगिकी ने संप्रेषण के कार्य क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। इसने विश्वभर में विविध सूचनाओं, ज्ञान और समाचारों के द्वार खोल दिए हैं। सूचना और संप्रेषण प्रौद्योगिकी में सूचना के प्रसंस्करण और संप्रेषण के सभी तकनीकी साधन सम्मिलित हैं, जबकि इसमें तकनीकी दृष्टि से प्री-डिजिटल प्रौद्योगिकी, जिसमें कागज आधारित लेखन सम्मिलित है। यह प्रायः डिजिटल प्रौद्योगिकियों को बताने के उपयोग में आती है, जिसमें संप्रेषण विधियां, संप्रेषण तकनीकें, संप्रेषण उपकरण, संचार माध्यम के साथ-साथ सूचनाओं के भंडारण, प्रसंस्करण की तकनीकें भी सम्मिलित हैं। यह सूचना प्रौद्योगिकी और टेलीकॉम प्रौद्योगिकी का संयुक्त रूप है।
प्रश्न 5.
मौखिक और शब्दोत्तर कौशलों की सूची बनाइए और प्रत्येक वर्ग से किन्हीं तीन को संक्षिप्त रूप में समझाइए।
उत्तर:
मौखिक या श्रवण कौशल
श्रवण या मौखिक कौशल एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसके तीन भाग होते हैं-
(1) सुनना, (2) समझना और (3) प्रतिक्रिया। यथा-
(1) सुनना-सुनना हमारे शरीर का एक भौतिक पहलू है, जिसमें ध्वनियों को ग्रहण करना और उनका अर्थ निकालना शामिल होता है। हम बातचीत के हिस्से के रूप में ये शब्द सुन सकते हैं। यह मौखिक कौशलता का पहला भाग है।
(2) समझना-समझना वह है, जहाँ हमारा मस्तिष्क हमारे द्वारा सुने गए शब्दों का प्रक्रमण करके पूरी बातचीत के संदर्भ में उनके अर्थ निकालता है। इस स्तर पर हमें जानकारी संप्रेषित होती है। हमने जो सुना उसे हम समझ लेते हैं।
(3) प्रतिक्रिया या उत्तर-शब्द को समझ लेने के बाद मौखिक कौशल का आखिरी भाग प्रतिक्रिया या उत्तर देना है। बातचीत में प्रतिक्रिया करना प्रदर्शित करता है कि जो कहा गया है, हमने उसे सुना है और हम वक्ता के उद्देश्य को समझते हैं। प्रतिक्रिया में हमारे द्वारा समझी गई जानकारी पर क्रिया करने हेतु निर्णय लेना और संभवतः अपने विचार या टिप्पणियों के साथ उत्तर देना सम्मिलित हो सकता हैं।
शब्दोत्तर कौशल (प्रस्तुतीकरण कौशल)
यह कौशल विचारों और जानकारी को संप्रेषित करने में प्रयुक्त होता है। एक अच्छे प्रस्तुतीकरण में सम्मिलित हैं-
(1) विषय-वस्तु, (2) रूपरेखा, (3) पैकेजिंग और (4) मानवीय तत्व। यथा-
(1) वषय वस्त-विषय-वस्त में वह जानकारी होती है जिसकी लोगों को आवश्यकता होती है। जानकारी उतनी होनी चाहिए जितनी एक बैठक में श्रोता ग्रहण कर सकें।
(2) रूपरेखा-रूपरेखा में एक औचित्यपर्ण प्रारंभ. बीच का भाग और अन्त होना चाहिए। यह क्रम से व्यवस्थित होनी चाहिए ताकि श्रोता इसे समझ सके। प्रस्तुतकर्ता को ध्यान रखना चाहिए कि वह श्रोताओं का ध्यान आकर्षित कर सके।
(3) पैकेजिंग-पैकेजिंग का अर्थ विषय-वस्तु के सही उपयोग से है।
प्रश्न 6.
आज के जनसम्पर्क के अर्थ और महत्व को समझाइए।
उत्तर:
जनसम्पर्क का अर्थ-जनसम्पर्क की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
जनसम्पर्क का महत्व (प्रकार्य)
जनसम्पर्क किसी भी संगठन का महत्वपूर्ण प्रकार्य या गतिविधि है। इसके महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया-
(1) जनसम्पर्क नीति-जनसम्पर्क एजेन्सियां जनसम्पर्क नीति को विकसित और अनुशासित करती है और इसे शीर्ष प्रबंधकों और सभी विभागों के साथ साझा करती है।
(2) वक्तव्य और प्रेस विज्ञप्तियां-जनसम्पर्क कार्मिकों द्वारा निगमित वक्तव्य, प्रेस विज्ञप्तियां और अधिकारियों के भाषण आदि तैयार किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में वे कंपनी, उत्पाद या नीतियों की सकारात्मक छवि को निर्मित अ करते हैं।
(3) प्रचार करना-प्रोत्साहन अभियानों की योजनाएं बनाकर संचार माध्यमों द्वारा कंपनी की गतिविधियों और नीतियों का प्रचार करना भी जनसम्पर्क का कार्य है।
(4) संबंध बनाना-जनसम्पर्क कार्मिक जनसम्पर्क के माध्यम से सरकारी इकाइयों के साथ स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर संबंध बनाते हैं। वे समाज के साथ अच्छे पड़ौसियों जैसे सम्बन्ध बनाते हैं। इसमें पर्यावरण संरक्षण मानकों का अनुपालन, स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर देना, इलाके के विकास कार्यक्रमों में सहयोग करना और भाग लेना शामिल है। कंपनी, साझेदारों और अन्य निवेशकों के मध्य संप्रेषण और सम्बन्ध बनाए रखना भी जनसम्पर्क का एक महत्वपूर्ण कार्य है। कभी-कभी जनसम्पर्क एजेन्सियों को वार्षिक/त्रैमासिक रिपोर्ट भी तैयार करनी पड़ती है और साझेदारों के साथ बैठकर योजनाएं तैयार करनी पड़ती हैं।
(5) प्रकाशन-कभी-कभी जनसम्पर्क एजेन्सियों को संस्थानिक पत्रिकाएँ तैयार करने और प्रकाशित करने का काम भी करना पड़ता है।
(6) अन्य महत्वपूर्ण कार्य-उपर्युक्त प्रकार्यों के अतिरिक्त जनसम्पर्क अधिकारी या जनसम्पर्क एजेन्सियां कम्पनी की सकारात्मक छवि सृजित करने, कंपनी के संकट को निपटाने, कर्मचारियों को प्रेरित करने, किसी उत्पाद के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करने, उत्पाद का विज्ञापन करने तथा किसी घटना की पूर्व सूचना देने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
अपने इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जनसम्पर्क अधिकारी/जनसम्पर्क एजेन्सियां अनेक योजनाएँ बनाती हैं, जैसे किसी भी कार्यक्रम से पहले पत्रकार सम्मेलन बुलाना, प्रेस विज्ञप्ति देना तथा स्नेह मिलन कार्यक्रम करना आदि।
स्पष्ट है कि जनसम्पर्क किसी भी संगठन की महत्वपूर्ण गतिविधि है।
प्रश्न 7.
आपके विचार से जनसम्पर्क के कौनसे दो क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं और क्यों?
उत्तर:
हमारे विचार से जनसम्पर्क के निम्नलिखित दो क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं-(1) प्रेस से सम्बन्ध, (2) अन्य संचार माध्यमों से समन्वय। यथा-
(1) प्रेस से सम्बन्ध-जनसम्पर्क व्यक्तियों को प्रेस के सभी स्तरों अर्थात् संपादक से संवाददाता तक, मधुर सम्बन्ध रखने होते हैं क्योंकि प्रेस और जनसम्पर्क दोनों अपनी रोजी-रोटी के लिए परस्पर निर्भर हैं। पत्रकारों को व्यापार में बने रहने के लिए समाचार चाहिए और जनसम्पर्क को प्रचार चाहिए। इस प्रकार दोनों अन्तर्निर्भर हैं।
प्रेस से सम्बन्ध बनाए रखने के लिए जनसम्पर्क अधिकारी संगठन के उत्पाद के प्रचार के लिए अच्छी लिखी हुई और सही समय पर प्रेस विज्ञप्तियाँ उपलब्ध कराना, संवाददाताओं को उनके लेख लिखने में मदद करना, आसान उपलब्धता, प्रेस की आलोचना से दूर रहना, पक्षपात और कुछ पत्रों का अनुचित पक्ष लेने से बचना आदि तथ्य अच्छे प्रेस सम्बन्धों पर निर्भर करते हैं। जनसम्पर्क कर्मी प्रेस के माध्यम से संगठन के उत्पाद या सेवाओं की जानकारी के प्रचार-प्रसार के समय संगठन की संस्कृति को भी सामने लाते हैं।
(2) अन्य संचार माध्यमों से समन्वय-अन्य श्रव्य-दश्य संचार माध्यमों, फिल्मों, प्रदर्शनियों, विज्ञापन पटों, कठपुतली और लोकगीतों का उपयोग जनसम्पर्क विभाग के प्रचालनों के दायरे में आते हैं। इन्हें रेडियो, दूरदर्शन से भी अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने होते हैं। इन संचार माध्यमों से जनसम्पर्क अधिकारियों के समन्वय के अन्तर्गत अच्छी सार्वजनिक बातचीत और फोन परं शिष्ट बातचीत आती है। ये संगठन की सकारात्मक छवि में योगदान दे सकती हैं क्योंकि बोले गए शब्द अभी भी संप्रेषण के सबसे पुराने तरीकों में से एक हैं।
प्रश्न 8.
जनसम्पर्क कार्य के सिद्धान्त क्या हैं?
उत्तर:
जनसम्पर्क कार्य के सिद्धान्त आर्थर पेज ने अपने दर्शन के क्रियान्वयन के माध्यम के रूप में जनसम्पर्क के निम्नलिखित सात सिद्धान्त बताए हैं-
(1) सच बताइए-जनता को यह जानने दीजिए कि क्या हो रहा है और कंपनी के चरित्र, विचारों तथा प्रथाओं का यथार्थ चित्र प्रस्तुत कीजिए।
(2) काम द्वारा सिद्ध कीजिए-संगठन के प्रति जनता की धारणा 90 प्रतिशत उससे बनती है, जो वह करता है और 10 प्रतिशत उससे जो वह कहता है। अतः काम के द्वारा संगठन की धारणा को बनाना चाहिए।
(3) ग्राहकों की सुनिए-कंपनी को अच्छी सेवा देने के लिए यह समझना आवश्यक है कि जनता क्या चाहती है और उसकी क्या आवश्यकताएँ हैं। कंपनी के उत्पादों, नीतियों और प्रथाओं के बारे में मिली जन प्रतिक्रिया को शीर्ष निर्णयकर्ताओं और अन्य कर्मचारियों को सूचित करते रहिये।
(4) आने वाले कल के लिए प्रबंध कीजिए-जनता की प्रतिक्रिया का पूर्वानुमान लगाइए और कठिनाई पैदा करने वाले तरीकों को हटा दीजिए। प्रतिष्ठा बनाइए।
(5) जनसम्पर्क को भलीभांति संचालित कीजिए-जनसम्पर्क को इस तरह संचालित कीजिए जैसे कि सारी कंपनी उस पर निर्भर करती है। निगमित संबंध एक प्रबंधन प्रकार्य है। किसी भी निगमित नीति को यह जाने बिना कि उसका जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, लागू नहीं करना चाहिए। जनसम्पर्क व्यावसायिक एक नीति निर्माता होता है जो कि विविध प्रकार की निगमित संप्रेषण गतिविधियों को संभालने के योग्य होता है। .
(6) कंपनी का वास्तविक चरित्र उसके लोगों द्वारा प्रदर्शित होता है-एक कंपनी के बारे में सबसे सशक्त राय-अच्छी या बुरी-उसके कर्मचारियों के शब्दों और कार्यों से ही बनती है। फलतः प्रत्येक कर्मचारी जनसम्पर्क में शामिल होता है। निगमित संप्रेषण का उत्तरदायित्व है कि प्रत्येक कर्मचारी की क्षमता को बढ़ाएँ और ग्राहकों, मित्रों, साझेदारों और सार्वजनिक पदाधिकारियों के प्रति ईमानदार, ज्ञानवान बनें।
(7) शांत, धैर्यवान और प्रसन्नचित रहिए-जानकारी और जनसम्पर्कों के दृढ़ और तार्किक ध्यान के साथ अच्छे जनसम्पर्क के लिए आधार तैयार कीजिए। जब संकट खड़ा होता है तो ठंडे दिमाग वाले ही सर्वश्रेष्ठ संप्रेषण करते हैं।
प्रश्न 9.
निगमित संप्रेषण, जनसम्पर्क और संचार माध्यम में परस्पर क्या संबंध है?
उत्तर:
निगमित संप्रेषण और संचार माध्यमों में सम्बन्ध
निगमित संप्रेषण में दो प्रकार के संप्रेषणों का अधिक उपयोग होता है-(1) आंतरिक सम्प्रेषण, और (2) बाह्य संप्रेषण।
जहाँ आंतरिक संप्रेषण संगठन के नियोक्ता और कर्मचारियों के मध्य होता है, वहाँ बाह्य सम्प्रेषण संगठन के बाहर सरकार, उसके विभागों, ग्राहकों, वितरकों, अंतरनिगमित संस्थाओं, जनसाधारण इत्यादि को संदेश संप्रेषित करने से सम्बन्धित है। इसके लिए लिखित और मौखिक दोनों संचार माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। लिखित संचार माध्यमों में पत्र, ज्ञापन, संस्थानिक पत्रिकाएँ, पोस्टर, बुलेटिन, वार्षिक रिपोर्ट आदि सम्मिलित होते हैं।
आजकल निगमित संप्रेषण का उपयोग एक सकारात्मक निगमित छवि प्रदर्शित करने, साझेदारों के साथ मजबूत सम्बन्ध निर्मित करने, जनता को नए उत्पाद तथा उपलब्धियों की जानकारी देने के लिए जनसम्पर्क साधन के रूप में किया जता है। चाहे वह निगमित संस्था, कंपनी, संगठन, संस्थान, गैर-सरकारी संगठन अथवा एक सरकारी प्रतिष्ठान हो, सभी को सम्मानजनक छवि और प्रतिष्ठा की आवश्यकता होती है। प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, जानकारी की उपलब्धता और संचार माध्यमों की बहुलता ने अधिकांश संगठनों के लिए 'प्रतिष्ठा प्रबंधन' को प्राथमिक बना दिया है।
जनसम्पर्क और संचार माध्यमों में सम्बन्ध
जनसम्पर्क और संचार माध्यमों के सम्बन्ध को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) प्रेस से सम्बन्ध-जनसम्पर्ककर्मी व अधिकारी को प्रेस के सभी स्तरों अर्थात् सम्पादक से संवाददाता तक, मधुर सम्बन्ध रखने होते हैं। प्रेस और जनसम्पर्क दोनों अपनी रोजी-रोटी के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। पत्रकारों को व्यापार में बने रहने के लिए समाचार चाहिए और जनसम्पर्क को संगठन के उत्पाद या सेवाओं की जानकारी देने के लिए प्रचार चाहिए। प्रेस से मधुर सम्बन्ध बनाए रखकर जनसम्पर्क कर्मी अच्छी लिखी हुई और सही समय पर प्रेस विज्ञप्तियां उपलब्ध करा पाते हैं, संवाददाता उन्हें लेख लिखने में मदद करते हैं तथा उनकी आसान उपलब्धता बनी रहती है। साथ ही संगठन प्रेस की आलोचना से दूर बना रहता है।
(2) अन्य संचार माध्यमों से समन्वय-अन्य श्रव्य-दृश्य संचार माध्यमों-रेडियो, दूरदर्शन, फिल्मों, प्रदर्शनियों, विज्ञापन पट्टों, कठपुतली और लोकगीतों का उपयोग तथा उनसे अच्छे सम्बन्ध बनाए रखना जनसंम्पर्क विभाग के प्रचालनों के दायरे में आता है।
(3) विज्ञापन देना-एक उत्पाद स्वयं के गुणों के आधार पर नहीं बिकता, इसका विज्ञापन करना पड़ता है। विज्ञापन करने का उद्देश्य जानकारी फैलाना, लोगों को उत्पाद के उपयोग के लिए राजी करना या प्रभावित करना हो सकता है। विज्ञापन देने के लिए बहुत से संचार माध्यम हैं, जैसे-समाचार-पत्र, रेडियो, टी.वी. आदि। इस प्रकार जनसम्पर्क विभाग को विज्ञापन देने के लिए संचार माध्यमों से सम्बन्ध बनाए रखने होते हैं।