Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 10 बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
बच्चे, युवा और वृद्धजन क्यों संवेदनशील होते हैं?
उत्तर:
बच्चे, युवा और वृद्धजन संवेदनशील होते हैं, इनकी संवेदनशीलता के कारण भिन्न-भिन्न हैं, जिन्हें निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(अ) बच्चों की संवेदनशीलता के कारण-
(1) बच्चे संवेदनशील होते हैं क्योंकि बाल्यावस्था सभी क्षेत्रों में तीव्र विकास की अवधि होती है और एक क्षेत्र का विकास अन्य सभी क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करता है। बच्चे के सभी क्षेत्रों में इष्टतम रूप से बढ़ने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि बच्चे की भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, प्रेम, पालन और प्रोत्साहन की आवश्यकताओं को समग्र रूप से पूरा किया जाये। प्रतिकूल अनुभवों का बच्चे के विकास पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
(2) सभी बच्चे संवेदनशील होते हैं. लेकिन कछ बच्चे दसरों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं। ये वे बच्चे हैं जो इतनी चुनौतीपूर्ण स्थितियों और कठिन परिस्थितियों में जीते हैं कि उनकी भोजन, स्वास्थ्य, देखभाल और पालन-पोषण की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती हैं और यह उनकी पूरी क्षमताओं का विकास होने से रोकता है।
(ब) युवाओं की संवेदनशीलता के कारण-युवावस्था अनेक कारणों से संवेदनशील अवधि होती है। यथा-
(1) 13 से 19 वर्ष की युवावधि में युवकायुवतियाँ अपने शरीर में होने वाले अनेक जैविक परिवर्तनों के साथ सामञ्जस्य बैठाने के प्रयास करते हैं/करती हैं जिनका उनकी सेहत और पहचान के बोध पर असर होता है।
(2) 20 से 35 वर्ष की युवावधि वह अवधि है जब व्यक्ति एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए तैयारी करता है जिनमें से आजीविका कमाना, विवाह करना और उसके बाद पारिवारिक जीवन प्रारंभ करना इस काल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं।
(3) निरंतर प्रतिस्पर्धी होती दुनिया में साथियों का दबाव और बेहतर करने के दबाव उनकी संवेदनशीलता के अन्य कारक हैं, जो अत्यधिक तनाव और परेशानी पैदा कर सकते हैं।
(4) जब परिवार/परिवेश किशोरों को सकारात्मक सहायता/सहारा प्रदान नहीं कर पाता है तो कुछ किशोर शराब या नशीली दवाओं के सेवन के आदी भी हो जाते हैं।
(स) वृद्धजनों की संवेदनशीलता के कारण-भारत में 60 वर्ष या अधिक आयु के व्यक्तियों को वरिष्ठ नागरिक माना जाता है। वृद्धजन निम्नलिखित प्रमुख कारणों से संवेदनशील समूह हैं-
प्रश्न 2.
युवाओं के लिए किस प्रकार के कार्यक्रम उपयुक्त होते हैं?
उत्तर:
चुवाओं के लिए कार्यक्रम
सामाजिक रूप से उपयोगी और आर्थिक रूप से उत्पादक होने के लिए युवाओं को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण, लाभदायक रोजगार और व्यक्तिगत विकास और तरक्की के लिए उचित अवसरों की आवश्यकता होती है।
दूसरे, उन्हें अपेक्षित आश्रय, स्वच्छ परिवेश और अच्छी मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं, सभी प्रकार के शोषणों के विरुद्ध सामाजिक सुरक्षा, संरक्षण और युवाओं से संबंधित मुद्दों से सरोकार रखने वाली निर्णायक संस्थाओं और सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में उपयुक्त साझीदारी के अवसरों तक पहुँच कराने वाले कार्यक्रम उपयुक्त होते हैं।
तीसरे, उनके लिए खेलों, शारीरिक शिक्षा, साहसी और मनोरंजनात्मक अवसरों तक पहुँच कराने वाले कार्यक्रम उपयुक्त रहते हैं।
प्रश्न 3.
वृद्धजनों के संदर्भ में कुछ सरोकार क्या है?
उत्तर:
वृद्धजनों के संदर्भ में प्रमुख सरोकार
वृद्धजनों के संदर्भ में प्रमुख सरोकार निम्नलिखित हैं-
(1) स्वास्थ्य-वृद्धावस्था में अनेक व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य एक प्रमुख सरोकार होता है क्योंकि वृद्धजन कम शारीरिक शक्ति और रक्षा क्रियाविधियों के कारण रोगों के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
(2) अनेक अक्षमताएँ-बीमारियों के अतिरिक्त उम्र बढ़ने के साथ अनेक अक्षमताएँ, जैसे—दृष्टि कमजोर होना और मोतियाबिन्द के कारण अंधापन, तंत्रिका विकार के कारण बहरापन, गठिया के कारण चलने-फिरने में परेशानी और देखभाल कर पाने में अक्षमता आदि भी उनके सरोकार हैं।।
(3) अकेलापन-वृद्धजनों के संदर्भ में एक अन्य सरोकार उनका अकेलापन है। उनका यह अकेलापन अनेक कारणों से संभव है, जैसे-कुछ बच्चों के विवाह हो जाने अथवा आजीविका कमाने के लिए परिवार से बाहर चले जाने के कारण अकेलेपन की पीड़ा झेलते हैं। इसके अलावा महानगरों में शहरी जीवन की अनेक विशेषताओं, जैसे—छोटा परिवार, एकल परिवार, बुजुर्गों की देखभाल के लिए समय की कमी, रहने के लिए सीमित स्थान, महँगे रहन-सहन, अधिक कार्य घंटे आदि के कारण वृद्धजनों को संयुक्त परिवार की तुलना में कम सहायता मिल पाती है। अतः अनेक वृद्धजन ऐसे समय में अकेले रहते हैं, जब परिवार का सहारा उनके लिए सबसे अधिक आवश्यक होता है।
(4) आर्थिक निर्भरता-अनेक वृद्ध व्यक्ति आर्थिक रूप से बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं, जिसकी वजह से वे तनाव महसूस कर सकते हैं।
प्रश्न 4.
बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों में से प्रत्येक के लिए दो कार्यक्रमों के बारे में बताइए।
उत्तर:
(अ) बच्चों के लिए कार्यक्रम बच्चों के लिए दो प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
(1) भारत सरकार की समेकित बाल विकास सेवाएँ (आई.सी.डी.एस.)-यह विश्व का सबसे बड़ा आरंभिक बाल्यावस्था कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य समेकित तरीके से छः वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, आरंभिक अधिगम/शिक्षा की आवश्यकताओं को पूरा करना है, जिससे उनके विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
यह कार्यक्रम माताओं के लिए स्वास्थ्य पोषण और स्वच्छता शिक्षा, तीन से छः वर्ष की आयु के बच्चों के लिए अनौपचारिक विद्यालय पूर्व शिक्षा, छ: वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों तथा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पूरक भोजन, वृद्धि की निगरानी तथा मूलभूत स्वास्थ्य देखरेख सेवाओं जैसे-छ: वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए टीकाकरण और विटामिन-ए-पूरकों को प्रदान करता है।
इस कार्यक्रम से वर्तमान में 41 करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। ये सेवाएँ आँगनबाड़ी नामक देखरेख केन्द्र पर समेकित तरीके से दी जाती हैं।
(2) एस.ओ.एस. बाल गाँव-यह एक स्वतंत्र गैर-सरकारी सामाजिक संगठन है जिसने अनाथ और परित्यक्त बच्चों की दीर्घावधि देखरेख के लिए परिवार अभिगम आरंभ किया है।
उद्देश्य-एस.ओ.एस. बाल गाँवों का उद्देश्य ऐसे बच्चों को परिवार आधारित दीर्घावधि की देखरेख प्रदान करना है जो किन्हीं कारणों से अपने जैविक परिवारों के साथ नहीं रहते हैं।
पारिवारिक संगठन का स्वरूप-प्रत्येक एस.ओ.एस. घर में एक माँ होती है जो 10-15 बच्चों की देखभाल करती है। यह इकाई एक परिवार की तरह रहती है और बच्चे एक बार फिर संबंधों और प्रेम का अनुभव करते हैं जिससे उन्हें अपने त्रासद अनुभवों से उबरने में सहायता मिलती है। ये बच्चे एक स्थिर पारिवारिक परिवेश में पलते हैं और एक स्वतंत्र युवा वयस्क बनने तक उनकी व्यक्तिगत रूप से सहायता की जाती है।
सहायक ग्राम-परिवेश का निर्माण-एस. ओ. एस. परिवार एक साथ रहते हैं। सहायक ग्राम परिवेश बनाते हैं। ये स्थानीय समुदायों के साथ जुड़े रहते हैं और सामाजिक जीवन में योगदान देते हैं।
(ब) भारत में युवाओं के लिए कार्यक्रम
भारत में युवाओं के दो प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
(1) राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.)-इस योजना का उद्देश्य विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों को समाज सेवा और राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रमों में शामिल करना है। ये कार्यक्रम हैं-सड़कों का निर्माण और मरम्मत; विद्यालय की इमारत, गाँव के तालाब, ताल आदि के निर्माण; पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुधार, जैसे-वृक्षारोपण; तालाबों से खरपतवार निकालना, गड्ढे खोदना; स्वास्थ्य एवं सफाई से संबंधित कार्यकलाप, परिवार कल्याण, बाल-देखरेख, सामूहिक टीकाकरण, शिल्प, सिलाई-बुनाई और सहकारी संघों का आयोजन तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि।
राष्ट्रीय सेवा योजना के विद्यार्थी समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न राहत और पुनर्वास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए भी स्थानीय अधिकारियों को सहायता प्रदान करते हैं।
(2) स्काउट और गाइड-सरकार स्काउट और गाइड के प्रशिक्षण, रैलियों और जम्बूरियों आदि के आयोजन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
इसका उद्देश्य लड़के और लड़कियों में निष्ठा, देशभक्ति और दूसरों के प्रति विचारशील होने की भावना को बढ़ावा देकर उनके चरित्र को विकसित करना है। यह संतुलित शारीरिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देता है और समाज सेवा की भावना विकसित करता है।
(स) भारत में वृद्धजनों के लिए कार्यक्रम
भारत में वृद्धजनों के लिए चलाए जा रहे दो प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
(1) विश्राम गृह/सतत देखभाल गृह-वृद्धावस्था सदनों में रहने वाले ऐसे बुजुर्गों के लिए विश्राम गृह/सतत देखभाल गृह चलाए जा रहे हैं, जो गंभीर रूप से बीमार हों और जिन्हें सतत नर्सिंग देखभाल और आराम की आवश्यकता हो।
(2) राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना-यह योजना ऐसे बुजुर्गों के लिए बनी है जिन्हें निराश्रित माना जाता है अर्थात् जिनके पास अपना निजी अथवा परिवारजनों से वित्तीय सहायता द्वारा आजीविका का साधन नहीं होता है।
लाभार्थियों को 65 वर्ष से अधिक का होना चाहिए और उनके पास अपना आयु प्रमाण-पत्र और निराश्रित होने का प्रमाण-पत्र चाहिए। राज्य सरकारें अपने निजी संसाधनों से इस राशि को बढ़ा सकती हैं।
प्रश्न 5.
बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के लिए अपना निजी संस्थान खोलने की योजना बनाने वाले किसी व्यक्ति को आप क्या सलाह देंगे?
उत्तर:
बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के लिए अपना निजी संस्थान खोलने की योजना बनाने वाले व्यक्ति को हम सलाह देंगे कि उसे लक्ष्य समूह की आवश्यकताओं और देखभाल के तरीकों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए उसे निम्नलिखित कौशलों और क्षमताओं का विकास करना चाहिए-
(1) जन कौशल-किसी संस्थान को चलाने का अर्थ है कि उसे विभिन्न पदों पर काम करने वाले भिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों से बातचीत करनी है। नीचे लोगों के कुछ ऐसे समूहों का उल्लेख किया गया है जिनसे उसे बातचीत करनी पड़ सकती है-
(i) समुदाय/समाज-बच्चों के लिए कोई कार्यक्रम अथवा संस्थान तभी सफल होगा, जब समाज में उसके शामिल होने या उसके अपना होने की भावना होगी। ऐसा तब होता है जब कार्यक्रम के शुरूआत से ही उन लोगों को सम्मिलित करने की योजना बनाई जाती है, जिनके लिए उसे बनाया जाता है।
जन-भागीदारी से योजना बनाना और उसका प्रबंधन व क्रियान्वयन करना किसी भी प्रभावी कार्यक्रम/संस्थान के आधार स्तंभ होते हैं । अतः समाज के साथ संबंध और समाज की भागीदारी को बढ़ावा देना उसके काम के प्रमुख पक्ष होने चाहिए।
(ii) निजी क्षेत्र-निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थान, कंपनियों और संगठन ऐसे नवचारी कार्यक्रमों के संस्थानों की सहायता के लिए व्यापक तौर पर आगे आए हैं। यह निजी क्षेत्र के लिए सामाजिक दायित्वों को पूरा करने का एक अवसर है। इन समूहों से उस उद्यमी को बातचीत करने के कौशल व क्षमताओं का विकास करना आवश्यक है।
(iii) सरकारी अधिकारी-उद्यमी को वित्तीय सहायता और अन्य विधिक आवश्यकताओं को पूरा करने, जैसे विभिन्न कार्यों के लिए सरकारी विभागों से बातचीत करने की आवश्यकता हो सकती है।
(iv) संगठन में काम करने वाले व्यक्ति-संगठन को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वहाँ के सभी लोगों (लाभार्थी और कर्मचारियों) के बीच आपस में सौहार्द्रपूर्ण संबंध हों। किसी भी संगठन की सफलता के लिए यह एक प्रमुख कारक है।
(2) प्रशासनिक कौशल-किसी संगठन/संस्थान को चलाने में वित्तीय हिसाब-किताब रखना, व्यक्तियों की भर्ती कराना, स्थान किराए पर देना, उपकरण खरीदना, रिकार्ड और सामान का हिसाब रखना शामिल हैं। यद्यपि इनमें से प्रत्येक पहलू के लिए कोई अन्य व्यक्ति विशेष कार्यरत हो सकता है, लेकिन उद्यमी के लिए भी यह आवश्यक और सहायक हो सकता है कि उसे इनमें से प्रत्येक मुद्दे की मूलभूत समझ होनी चाहिए।
(3) उपयुक्त स्थान के सभी पहलुओं पर विचार करना-जो व्यक्ति किसी जरूरतमंद लक्ष्य समूह के लिए कोई नया संस्थान स्थापित करना चाहता है उसे उक्त कौशलों व क्षमताओं के साथ-साथ उस स्थान के सभी पक्षों पर भी विचार कर लेना चाहिए जहाँ वह काम करेगा, जिससे लक्षित लाभार्थी को लाभ हो और उन्हें प्रदान की जाने वाली सेवाओं का संयोजन, संगठन चलाने के लिए वित्तीय सहायता, जानकारी वाले कर्मचारियों की भर्ती व संबंधित अन्य क्रियाकलापों को करना है।
(4) स्पष्ट और पूर्ण संकल्पना-हम उसे यह भी सलाह देंगे कि संस्थान के संबंध में उसकी स्पष्ट और पूर्ण ना होनी चाहिए कि उसका लक्ष्य क्या है और संगठन उसे कैसे पूरा करेगा? ऐसा व्यक्ति ही उस कार्य को पूरा करने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध हो सकता है।
प्रश्न 6.
बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर बनाने के लिए आपको जिन कौशलों और जानकारी की आवश्यकता होगी, उसके बारे में बताइए।
उत्तर:
बच्चों/युवाओं और वृद्धजनों के लिए संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर/रोजगार के लिए एक योजनाकार, प्रबंधक और परीक्षक की क्षमताओं और कौशलों का होना आवश्यक है। यथा-
(1) जन कौशल-बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर बनाने के लिए उसमें भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमियों वाले लोगों से बातचीत करने का कौशल होना आवश्यक है। क्योंकि उसे वहाँ विभिन्न पदों पर काम करने वाले भिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों से बातचीत करनी है। ये समूह हैं-समुदाय या समाज, निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थान, सरकारी अधिकारी तथा संगठन में काम करने वाले विभिन्न कर्मचारी तथा लाभार्थी आदि।
(2) प्रशासनिक कौशल-बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के संस्थानों और कार्यक्रमों में प्रबंधन में करिअर बनाने के लिए उसमें संगठन के प्रबंधन करने में वित्तीय हिसाब-किताब रखना, व्यक्तियों की भर्ती करना, उपकरण खरीदना, रिकार्ड रखना तथा सामान का हिसाब रखने का कौशल होना आवश्यक है।
(3) शैक्षिक योग्यता-इस क्षेत्र में करिअर की तैयारी के लिए उसमें कुछ प्रशिक्षण योग्यताओं का भी होना आवश्यक है। क्योंकि इस करिअर के लिए प्रबंधक में बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के बारे में जानकारी अर्जित करना और उनके प्रति समझ विकसित करना है। इसके लिए उसे गृह विज्ञान अथवा सामाजिक कार्य अथवा समाज विज्ञान की किसी अन्य शाखा में पूर्व स्नातक डिग्री प्राप्त करना आवश्यक है। यह डिग्री कार्यक्रम सामान्यतः जनसंख्या के इन तीनों संवेदनशील समूहों पर केन्द्रित होते हैं। आप पूर्व स्नातक डिग्री के बाद वे रोजगार बाजार में प्रवेश कर सकते हैं।