Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 English Kaleidoscope Non-fiction Chapter 5 The Argumentative Indian Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 12 English are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 12 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Our team has come up with job letter class 12 to ensure that students have basic grammatical knowledge.
Understanding the Text :
Question 1.
What is Sen's interpretation of the positions taken by Krishna and Arjuna in the debate between them?
[Note Sen's comment : 'Arjuna's contrary arguments are not really vanquished... There remains a powerful case for "faring well’ and not just ‘faring forward'.]
श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अपने बीच हुई तार्किक बहस में जो स्थान प्राप्त किया है, उसकी सेन ने किस प्रकार व्याख्या की है?
[सेन की व्याख्या पर ध्यान दें-अर्जुन के विरोधी तर्क वास्तव में पराजित नहीं हुए हैं,... इसमें 'विदाई' का हमेशा एक शक्तिशाली मामला बना रहेगा केवल 'आगे बढ़ने के लिए ही नहीं।]
Answer:
The author says that the Bhagvad Gita portrays the message of faring forward inspite of all the challenges. Krishna advocates that one should fare forward without thinking about the consequences. But Sen feels the contemporary world quite different. It is full of terrorism, insecurity, wars and violence. So in his opinion, the message of Arjuna 'faring well' is more appropriate.
Arjuna's contrary remarks should not be ignored. To support his statement, he takes the example of J. R. Oppenheimer, the physicist who developed the nuclear weapons. Sen firmly believes that simply ‘faring forward' is not judicious in this era of violence. The best solution will be to judge the situation sensibly and then take the appropriate actions. Therefore, he supports Arjuna's decision of 'faring well' and not just forward.
लेखक कहता है कि श्रीमद्भगवद्गीता सभी चुनौतियों के बावजूद अपना कार्य करने का सन्देश देती है। श्रीकृष्ण इस बात का समर्थन करते हैं कि व्यक्ति को परिणाम की चिन्ता किए बिना हमेशा आगे बढ़कर कर्म करना चाहिए। लेकिन सेन समकालीन संसार को बिल्कुल अलग मानता है। यह आतंकवाद, असुरक्षा, युद्ध और हिंसा से भरा हुआ है । अत: उसके विचार में अर्जुन का सन्देश कि कार्य को सोच-समझकर करना चाहिए, ज्यादा प्रासंगिक है।
अर्जुन के विरोधी विचारों को नजरन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। अपने वक्तव्य के समर्थन में वह भौतिक विज्ञानी जे.आर. ओपनहीमर का उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसने नाभिकीय हथियारों को विकसित किया। सेन दृढ़तापूर्वक विश्वास करता है कि सिर्फ 'कर्म करते हुए आगे बढ़ना' वर्तमान हिंसा के युग में 'न्यायोचित' नहीं है। सर्वश्रेष्ठ समाधान यह होगा कि परिस्थिति को गम्भीरतापूर्वक समझा जाए और उसके बाद उचित कदम उठाये जायें। इसलिए, वह अर्जुन के सोचसमझकर आगे बढ़ने के निर्णय का समर्थन करता है, केवल कर्म करने का नहीं।
Question 2.
What are the three major issues Sen discusses here in relation to India's dialogic tradition?
वे तीन कौनसी मुख्य समस्याएँ हैं जिनके बारे में सेन भारत की संवादात्मक परम्परा के बारे में बताता है?
Answer:
The three issues that Sen discusses in relation to India's dialogic tradition are the issues of gender, caste and voice. There was a time when arguments and disputations were confined to some elite groups. It is also true that the contribution of some women scholars can't be ignored. Gargi, Maitreyi and Draupadi actively participated in argumentation.
Sarojini Naidu and Nellie Sen Gupta are famous for their argumentative politics. Some poets like Kabir, Ravidas, Dadu, Mira Bai protested against the social barriers and inequality though they belonged to the weaker section of society. Thus, class, caste, gender, voice are no barriers in relation to India's dialogic tradition.
तीन समस्याएँ जिनके बारे में सेन भारत की संवादात्मक परम्परा से बताता है, वे लिंग, जाति और आवाज की समस्याएँ हैं। एक समय था जब तर्क और मतभेद कुछ आभिजात्य वर्ग के लिए ही सीमित थे। यह भी सत्य है कि कुछ महिला विदुषियों के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। गार्गी, मैत्रेयी और द्रौपदी ने सक्रिय रूप से तर्कों में भाग लिया।
सरोजिनी नायडू और नेली सेनगुप्ता तार्किक राजनीति के लिए प्रसिद्ध हैं। कबीर, रविदास, दाद, मीराबाई जैसे कुछ कवियों ने सामाजिक बाधाओं और असमानता का विरोध किया यद्यपि वे समाज के कमजोर वर्ग से सम्बन्धित थे। इस प्रकार, वर्ग, जाति, लिंग, आवाज भारत की संवादात्मक परम्परा के लिए कोई भी बाधा नहीं हैं।
Question 3.
Sen has sought here to dispel some misconceptions about democracy in India. What are these misconceptions?
सेन ने यहाँ पर भारत में लोकतन्त्र के बारे में कुछ भ्रान्तियों को दूर करने का प्रयास किया है। वे भ्रान्तियाँ कौन-कौनसी हैं?
Answer:
According to the writer, democracy in India is a subject of persistent arguments which are very helpful for the development of democracy. But it is also true that two major misconceptions about democracy in India have crept in. These misconceptions are-
(1) that the concept of democracy was a gift to India from the western world and India simply adopted and implemented democracy after its independence.
(2) That democracy is most suitable form of Government in India because of its history. So it is necessary that India should avoid both these misconceptions.
लेखक के अनुसार, भारत में लोकतन्त्र लगातार तर्कों की विषयवस्तु रही है जो कि लोकतन्त्र के विकास में अत्यधिक सहायक है। लेकिन यह भी सत्य है कि भारत में लोकतन्त्र के बारे में दो प्रमुख भ्रान्तियाँ इसमें समाहित हो गई हैं। ये भ्रान्तियाँ हैं-
(1) कि भारत में लोकतन्त्र पश्चिमी देशों द्वारा प्रदत्त एक उपहार था और भारत ने सामान्य रूप से स्वतन्त्रता के बाद उसे स्वीकार कर लिया और लागू कर दिया।
(2) कि लोकतन्त्र भारत में इसके इतिहास के कारण सर्वाधिक उपयुक्त सरकार का स्वरूप है। अतः यह आवश्यक है कि भारत को इन दोनों ही भ्रान्तियों से बचना चाहिए।
Question 4.
How, according to Sen, has the tradition of public discussion and interactive reasoning helped the success of democracy in India?
सेन के अनुसार, सार्वजनिक बहस की परम्परा और आपसी तर्कशक्ति ने भारत में लोकतन्त्र की सफलता में किस प्रकार सहायता प्रदान की है?
Answer:
Sen is of the opinion that democracy is closely and intimately related to public discussion and interactive reasoning which helped in the success of democracy in India. He has a firm belief that persistent arguments are inherit part of public life in India. In India, there is no imposition of any singular perspective because it is an outcome of reasoning which introduced multiple perspectives.
Common people of every section of society participated in this democratic system so their opinion is an inherent structure of democracy. Thus, the tradition of public discussion and interactive reasoning helped the success of democracy in India.
सेन का मत है कि लोकतन्त्र सार्वजनिक बहस और आपसी तर्कशक्ति से अत्यन्त नजदीक से सम्बन्धित है, जिसने भारत में लोकतन्त्र की सफलता के लिए अत्यन्त सहायता प्रदान की है। उसका दृढ़ विश्वास है कि लगातार तर्क भारत में सार्वजनिक जीवन में अन्तर्निहित है।
भारत में, किसी भी एक उद्देश्य को दबाव से लागू नहीं किया गया है क्योंकि यह तर्कशक्ति का परिणाम है जिसने अनगिनत उद्देश्यों का प्रतिपादन किया है। समाज के प्रत्येक वर्ग के साधारण लोगों ने इस लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में भाग लिया इसलिए उनका मत लोकतन्त्र के ढाँचे में अन्तर्निहित है। इस प्रकार सार्वजनिक बहस की परम्परा और आपसी तर्कशक्ति ने भारत में लोकतन्त्र की सफलता में अत्यधिक सहायता प्रदान की है।
Page 179.
Question 1.
Sen quotes Eliot's lines: 'Not fare well/But fare forward voyagers'. Distinguish between ‘faring forward'
(Krishna's position in the Gita) and ‘faring well' (the position that Sen advocates).
सेन इलियट की पंक्तियों का उद्धरण देता है-'विदाई नहीं, लेकिन समुद्री यात्रियों की तरह और आगे बढ़ना।' 'और आगे बढ़ो' (श्रीकृष्ण की गीता में स्थिति) तथा 'विदाई' (वह स्थिति जिसकी सेन वकालत करता है) के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Answer:
According to author, Krishna has exhorted in the Gita, that Arjuna should not think of the fruit of action whatever it may be. But he should just fare forward and do his duty that is to fight in the battlefield without thinking about the consequences of the battle.
But the author is of the opinion that a person should "farewell" not just "forward". He says so because in the modern times, the circumstances are completely changed so we should be aware about the doubts and destructive consequences of our action. So we should take any action after complete discussion.
लेखक के अनुसार, गीता में, श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया है कि अर्जुन को अपने कार्य के प्रतिफल के बारे में नहीं सोचना चाहिए, वह चाहे कुछ भी हो। लेकिन उसे केवल आगे बढ़ना चाहिए और अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और युद्ध के परिणामों के बारे में बिना सोचे-विचारे उसे युद्ध क्षेत्र में युद्ध करना चाहिए।
लेकिन लेखक का मत है कि व्यक्ति को सोचना-समझना चाहिए केवल आगे नहीं बढ़ना चाहिए। वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि आधुनिक समय में परिस्थितियाँ पूरी तरह से बदल गई हैं इसलिए हमें सन्देहों और हमारे कार्य के विध्वंसात्मक परिणामों के बारे में सचेत रहना चाहिए। अतः हमें कोई भी कार्य पूर्ण रूप से विचार-विमर्श के बाद ही करना चाहिए।
Question 2.
Sen draws a parallel between the moral dilemma in the KrishnaArjuna dialogue and J. R. Oppenheimer's response to the nuclear explosion in 1945. What is the basis for this?
सेन ने श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद और जे.आर. ओपनहीमर के 1945 में नाभिकीय विस्फोट के उत्तरदायित्व के बीच एक समानता प्रदर्शित की है। इसका आधार क्या है ?
Answer:
There is a close resemblance between the Krishna-Arjuna dialogue and J. R. : Oppenheimer. Oppenheimer invented the weapons for mass murder which were used in Second World War of 1945. He was a great follower of Krishna. He was responsible for killing of so many people. He did not repent for his action but the modern world is quite different.
In the contemporary world, we can't be blind to the consequences of our actions. Today we are facing different types of global problems. The most serious problem is terrorism which is a serious threat for security. Apart it, growing poverty, confrontation, financial crisis, regional problems and nuclear power are some of the other threats. This is the reason why we can't neglect Arjuna's consequential doubts and follow Krishna's arguments of action.
श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद और जे.आर. ओपनहीमर में अत्यधिक समानता है। ओपनहीमर ने समूह हत्या के लिए हथियारों का आविष्कार किया जिनका प्रयोग 1945 के द्वितीय विश्व युद्ध में किया गया। वह श्रीकृष्ण का घनिष्ठ अनुयायी था। वह इतने अधिक लोगों की हत्या का उत्तरदायी था। उससे अपने कार्यों का पश्चात्ताप नहीं हुआ लेकिन आधुनिक संसार पूरी तरह से भिन्न है। समकालीन संसार में हम अपने कार्यों के प्रति आँखें बन्द नहीं कर सकते।
आज हम विभिन्न प्रकार की संसार भर की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सर्वाधिक गम्भीर समस्या आतंकवाद है जो कि सुरक्षा के लिए गम्भीर चुनौती है। इसके अतिरिक्त, बढ़ती हुई गरीबी, संघर्ष, आर्थिक विपन्नता, क्षेत्रीय समस्याएँ और नाभिकीय शक्ति अन्य चुनौतियाँ हैं। यही कारण है कि हम अर्जुन के परिणामों के प्रति सन्देहों को नजरन्दाज नहीं कर सकते हैं और श्रीकृष्ण के कार्य करने के तर्क का अनुसरण नहीं कर सकते हैं।
Page 186.
Question 1.
Maitreyi's remark-what should I do with that by which I do not become immortal'—is a rhetorical question cited to illustrate both the nature of the human predicament and the limitations of the material world. What is the connection that Sen draws between this and his concept of economic development?
मैत्रेयी का वक्तव्य-"मैं उस चीज का क्या करूँ जिससे मैं अमर नहीं हो सकती"-यह एक अभिव्यक्ति की शोभायुक्त प्रश्न है जिसका उद्धरण मानवीय श्रेणियों की प्रकृति और भौतिक संसार की सीमाओं दोनों के लिए ही किया जाता है। इसके बीच में और सेन के आर्थिक विकास के बीच सेन क्या सम्बन्ध स्थापित करता है?
Answer:
According to the writer, Yajnavalkya, the scholar and teacher, told Maitreyi, his wife, that wealth is not powerful enough to help a person to achieve immortality. The author's concept regarding economic development is somewhat different. According to him, this issue concrns between income and achievement, between commodities we can buy and the actual capabilities, we can enjoy and between our economic wealth and our ability to live as we would like.
While there is a connection between opulence and our ability to achieve what we value. He says that wealth or economic luxury is not so important as life and death. So we should ponder over about it for a free and satisfied life.
लेखक के अनुसार, याज्ञवल्क्य जो कि विद्वान और शिक्षक थे, ने अपनी पत्नी मैत्रेयी को बताया कि धन अमरता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है। लेखक का आर्थिक विकास का सिद्धान्त काफी अलग है। उसके अनुसार, यह प्रश्न आय और उपलब्धि के बीच, वस्तुएँ जिन्हें हम खरीद सकते हैं तथा वास्तविक क्षमताएँ जिनका हम आनन्द उठा सकते हैं और हमारे आर्थिक धन तथा हमारे रहने की योग्यता जैसा हम रहना चाहें, के बीच होता है। जबकि समृद्धि और हमारी योग्यता जिसे हम महत्त्व देते हैं, के बीच सम्बन्ध होता है। वह कहता है कि धन अथवा आर्थिक समृद्धि इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना जीवन और मृत्यु । इसलिए हमें एक स्वतन्त्र और संतुष्ट जीवन व्यतीत करने के लिए इसके बारे में सोचना चाहिए।
Question 2.
It is important to see that the Indian argumentative tradition has frequently crossed the barriers of gender, caste, class and community. List the examples cited by Sen to highlight this.
यह देखना महत्त्वपूर्ण है कि भारतीय तार्किक परम्परा ने लिंग, जाति, वर्ग तथा समुदाय की बाधाओं को बिना किसी रुकावट के पार किया है। इसे प्रदर्शित करने के लिए सेन द्वारा दिये गये उदाहरणों की सूची बनाइए।
Answer:
Amartya Sen is an eminent scholar who has put a number of examples to show that people of lower social strata worked hard to maintain the argumentative tradition of India. In Mahabharata, we find that it was Draupadi who was the motivating factor of the Battle of Mahabharata who made Yudhisthira ready to fight the war. She did so by her eloquent mocking dialogues.
The dialogues of Bhrigu and Bhardavaja in Mahabharata are on the heights of argumentative nature. Apart it, the poets of the Hindu Bhakti Movement rose against the prevailing social barriers with their sharp arguments.
They were from the weakest section of society. Some of them were Kabir, Dadu, Ravidas, Sena and Meera Bai. Along with it, the argumentative tradition was given an eminent place by women scholars also. These women scholars contributed a lot to maintain the tradition. Sarojini Naidu was the first woman President of Indian National Congress who was elected in 1925 while Nelli Sen Gupta was second who was elected in 1933. Krishna Menon put a record of nine hours non-stop speech at the UNO.
In our scriptures specially in Upanishads, Gargi and Maitreyi participated in the arguing combat. They put a lot of questions also. Rani Laxmi Bai or the Rani of Jhansi challenged the British rule. Thus, it is evident that argumentative tradition has been continuing since long without any barrier of cost, creed, gender, class or community.
अमर्त्य सेन एक महान विद्वान है जिसने यह दिखाने के लिए अनगिनत उदाहरण प्रस्तुत किये हैं कि निम्न सामाजिक स्तर के लोगों ने भारत की तार्किक परम्परा को बनाये रखने के लिए कठिन परिश्रम किया। महाभारत में, हम पाते हैं कि वह द्रौपदी ही थी जो महाभारत के युद्ध का प्रेरणात्मक तत्व थी जिसने युद्ध लड़ने के लिए युधिष्ठिर को तैयार किया था। ऐसा उसने अपने विस्तृत व्यंग्यात्मक संवादों के माध्यम से किया। महाभारत में भृगु और भारद्वाज के संवाद तार्किक प्रकृति की ऊँचाइयों पर हैं।
इसके अतिरिक्त, हिन्दू भक्ति आन्दोलन के कवि भी अपने तीक्ष्ण तों के साथ व्याप्त सामाजिक बाधाओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए। वे समाज के सबसे कमजोर वर्ग से थे। उनमें से कुछ थे-कबीर, दाद, रविदास, सेना और मीरा बाई। इसके साथ-साथ, तार्किक परम्परा को महिला विद्वानों द्वारा महानतम स्थान तक पहुँचाया गया।
इन महिला विद्वानों ने परम्परा को बनाये रखने के लिए अत्यधिक योगदान दिया। सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष थी जिसका निर्वाचन 1925 में हुआ था जबकि नेली सेन गुप्ता द्वितीय थी जिसका निर्वाचन 1933 में हुआ था। कृष्णा मेनन ने संयुक्त राष्ट्र में नौ घण्टे लम्बे भाषण का रिकॉर्ड बनाया।
हमारे धर्मग्रन्थों विशेषकर उपनिषदों में, गार्गी और मैत्रेयी ने तार्किक द्वन्द्व में सहभागिता की। उन्होंने अनेकों प्रश्न पूछे। रानी लक्ष्मीबाई अथवा झांसी की रानी ने ब्रिटिश राज्य को चुनौती दी। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि तार्किक परम्परा जाति, पंथ, लिंग, वर्ग अथवा समुदाय की किसी भी बाधा के बिना लम्बे समय से लगातार चली आ रही है।
Talking about the Text :
Question 1.
Does Amartya Sen see argumentation as a positive or a negative value?
अमर्त्य सेन तार्किकता को सकारात्मक महत्त्व देता है अथवा नकारात्मक?
Answer:
Amartya Sen is an eminent scholar. He always sees argumentation as a positive perspective. Arguments develop intellectual standard. Argumentation helped to put heterodoxy in Indian politics. It is also helpful to remove all the barriers of inequality from our society.
Through argumentation, the opinion of masses is put into action which helps in maintaining democracy in our country. Argumentation is a dence to protect our country on international stage. In this way, we can say that Sen firmly believes the importance of argumentation for proper functioning of democracy in India.
अमर्त्य सेन एक महान विद्वान है। वह हमेशा तर्क को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है। तर्क बौद्धिक स्तर को विकसित करता है। तार्किक शक्ति ने ही भारतीय राजनीति में विरोधी गुणों को समाहित किया। यह हमारे समाज में से असमानता की सारी बाधाओं को समाप्त करने में सहायक है।
तार्किक शक्ति के द्वारा जनसाधारण की भावना को क्रियाशील किया जाता है जो कि हमारे देश में लोकतन्त्र को बनाये रखने में सहायता प्रदान करती है। तार्किक शक्ति ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की सुरक्षा का एक उदाहरण है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सेन दृढ़तापूर्वक भारत में लोकतन्त्र के उचित कार्यान्वयन के लिए तर्कशक्ति को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानता है।
Question 2.
How is the message of the Gita generally understood and portrayed? What change in interpretation does Sen suggest?
प्रायः गीता का सन्देश किस प्रखार समझा जाता है और प्रदर्शित किया जाता है ? व्याख्या में परिवर्तन के लिए सेन कौनसे सुझाव देता है ?
Answer:
Gita is considered to be portrayed in a sense that we should do our duty without thinking about the results. It is an exhortation given by Krishna of faring forward. But Sen thinks something different. He suggests that along with Krishna's faring forward, Arjuna's faring well should also be considered in the present scenario.
In the present time the world is quite different. It is full of violence, wars and terrorism. So he says that our attitude can't be indifferent to the consequences. Thus, Sen suggests that while putting our action, we should keep Arjuna's arguments in our mind.
गीता के बारे में विश्वास किया जाता है कि इसका प्रदर्शन इस भावना पर आधारित है कि हमें अपना कर्म परिणामों की बिना चिन्ता किए करना चाहिए। यह श्रीकृष्ण का उपेदश है जिसमें वह हमेशा कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। लेकिन सेन इससे अलग सोचता है। वह सलाह देता है कि श्रीकृष्ण के कर्म करने की प्रेरणा के साथ-साथ हमें अर्जुन के सोच-समझकर कार्य करने के विचार को भी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ध्यान में रखना चाहिए।
वर्तमान समय में संसार पूरी तरह से भिन्न है। यह हिंसा, युद्ध और आतंकवाद से भरा हुआ है। इसलिए वह कहता है कि हमारा दृष्टिकोण परिणामों के प्रति तटस्थ नहीं हो सकता। इस प्रकार, सेन सलाह देता है कि अपना कर्म करते हुए अर्जुन के तर्कों को भी हमें अपने मस्तिष्क में रखना चाहिए।
Appreciation :
This essay is an example of argumentative writing. Supporting statements with evidence is a feature of this kind of writing. For each of the statements given below state the supportive evidence provided in the essay
(i) Prolixity is not alien to India.
(ii) The arguments are also, often enough, substantive.
(iii) This admiration for the Gita, and Krishna's arguments in particular, has been a lasting phenomenon in parts of European culture.
(iv) There remains a powerful case for ‘faring well’, and not just 'forward'.
यह निबन्ध तार्किक लेखन का उदाहरण है। इस प्रकार के लेखन की विशेषता वक्तव्यों को प्रमाण सहित प्रस्तुत करना होता है। नीचे दिये गये प्रत्येक वाक्य के लिए निबन्ध में दिये गये प्रमाणों को प्रस्तुत कीजिये
(i) भारत में कोई बात विस्तार से बताना अन्जान बात नहीं है। (ii) तर्क प्रायः पर्याप्त रूप से मौलिक होते हैं।
(iii) गीता के प्रति यह प्रशंसा और विशेष रूप से श्रीकृष्ण के तर्क यूरोप की संस्कृति का अहम् हिस्सा रहे हैं।
(iv) सोच-समझकर कार्य करने के लिए भी एक शक्तिशाली परिप्रेक्ष्य बना रहा है केवल कर्म करने के लिए ही नहीं।
Answer:
It is true that the author has put supportive evidences with his arguments in the essay. Below are the supportive evidences for each of the statements—
(i) This statement is referred to Krishna Menon who was the defence minister of India from 1957 to 1962. He led a delegation to the UNO where he delivered the longest speech of nine hours.
(ii) The Bhagvad Gita which is a small fraction of Epic Mahabharata presents a tussle between two contrary moral positions. It presents the exhortation of Krishna to do one's duty and Arjuna's doubts about ill consequences.
(iii) Some European poets and scholars appreciated the Bhagvad Gita in the Nineteenth Century. One of them was Wilhelm von Humboldt who said Gita to be "the most beautiful, perhaps the only true philosophical song existing in any known tongue” Eliot in his poem Four Quartets summaries Krishna's views as 'And do not think of the fruit of action!' Fare forward, while Christopher Isherwood translated the Gita into English.
(iv) In the present scenario, it has been important that we should think over the consequences of the action in addition to consider Krishna's exhortation for doing one's duty without caring of the result. Today's world is full of terrorism, wars, violence, insecurity and gruelling poverty. So it has been essential to think about the result. J. R. Oppenheimer who developed the weapon of mass destruction in the World War II, followed Krishna's argument to 'faring forward' but today, we'll have to go with Arjuna's faring well also.
(i) यह वक्तव्य कृष्ण मेनन का सन्दर्भ है जो कि 1957 से 1962 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे । उसने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के एक प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया था जहाँ पर उसने सबसे लम्बा नौ घण्टे का भाषण दिया था।
(ii) भगवद्गीता जो कि महाभारत महाकाव्य का एक छोटा सा भाग है, वह दो विपरीत नैतिक स्थितियों में विवाद को प्रस्तुत करती है। यह श्रीकृष्ण के बिना फल की चिन्ता किए कर्म करने और अर्जुन के उसके दुष्परिणामों के बारे में सन्देहों को प्रस्तुत करती है।
(iii) यूरोप के कुछ कवियों और विद्वानों ने उन्नीसवीं शताब्दी में भगवद्गीता की प्रशंसा की। उनमें से एक -Wilhelm von Humboldt था जिसने गीता को 'सबसे शानदार, शायद किसी भी ज्ञात भाषा में स्थित दार्शनिक गीत जो कि सत्य है', माना। ईलियट ने अपनी कविता Four Quartets में श्रीकृष्ण के दृष्टिकोण को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया है, "और कर्म के फल के बारे में मत सोचो! कर्म करते रहो।" जबकि क्रिस्टोफर ईशरवुड ने गीता का अंग्रेज में अनुवाद किया। .
(iv) वर्तमान समय में, यह महत्त्वपूर्ण हो गया है कि हम अपने कर्म के परिणाम के बारे में भी विचार करें, श्रीकृष्ण के इस उपदेश के साथ कि फल की चिन्ता किए बिना कर्म करते चले जाओ। आज का संसार आतंकवाद, युद्ध, हिंसा, असुरक्षा और दुष्कर गरीबी से भरा हुआ है। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि परिणाम के बारे में सोचा जाए। जे.आर. ओपनहीमर जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध में सामूहिक नरसंहार के हथियारों को विकसित किया था, उसने श्रीकृष्ण के कर्म करने के तर्क का पालन किया लेकिन आज, हमें अर्जुन के सोच-समझकर कार्य करने के तर्क को भी ध्यान में रखना पड़ेगा।
Language Work :
Question 1.
(a) The opening two paragraphs have many words related to the basic idea of using words (particularly in speech) like 'prolixity'. List them. You may look for more such words in the rest of the essay.
Answer:
(i) Loquaciousness
(ii) colossally
(iii) stimulation
(iv) perspective
(v) incessant
(vi) disputations
(vii) substantive
(viii) vindication
(b) Most of the statements Sen makes are tempered with due qualification, e.g., The arguments are also, often enough, quite substantive'. Pick out other instances of qualification from the text.
Answer:
(i) moral position
(ii) profound doubts
(iii) tragic desolation
(iv) unjust usurpers
(v) manifest problems
(vi) regional peace
(vii) arguing compact
(viii) gruelling poverty
Task
Examine the noun phrases in these sentences from the text
1. The second woman head of the Indian National Congress, Nellie Sengupta, was elected in 1933.
2. This concerns the relation - and the distance - between income and achievement.
3. This may be particularly significant in understanding the class basis of the rapid spread of Buddhism, in particular, in India.
Answer:
Noun phrases are as follows :
यह सत्य है कि लेखक ने निबन्ध में अपने तर्कों के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। नीचे प्रत्येक वक्तव्य के पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं
1. the Indian National Congress, Nellie Sengupta.
2. the distance between income and achievement.
3. the class basis of the rapid spread of Buddhism.
Question 1.
What do you know about the loquaciousness of the Indians?
आप भारतीयों के बातूनीपन के बारे में क्या जानते हैं ?
Answer:
According to the writer, the magnificance of the Ramayan and the Mabharata is displayed openly as the arguments and counter arguments that are found everywhere from that very time or period to the record of the conquest speech at the UN. It is an evident of loquaciousness of the Indians and their ability to speak and argue since time immemorial.
लेखक के अनुसार, रामायण और महाभारत की श्रेष्ठता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित की गई है जिसमें तर्क और प्रतितर्क शामिल किये गये हैं जो कि प्रत्येक स्थान पर प्राप्त होते हैं ठीक उसी समय से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे लम्बे भाषण तक। यह ज्ञात समय से भी पूर्व के समय से भारतीयों और उनके बोलने तथा तर्क करने की क्षमता के बातूनीपन का प्रमाण है।
Question 2.
What is the substantiality in arguments of Indians?
भारतीयों के तर्कों में क्या वास्तविक है?
Answer:
The writer refers to the dilemma when he quotes the names of Krishna and Arjuna. He says that Krishna's message on following the duty and Arjuna's message on considering the aftermath are put in the Bhagvad Gita. These are the scholars that bring the debate to discussion to show the extent to which those ethical issues are relevant even today though a long time has passed since then.
लेखक उस विडम्बना का सन्दर्भ देता है जब वह श्रीकृष्ण और अर्जुन के नामों का उल्लेख करता है। वह कहता है कि श्रीकृष्ण का अपना कर्त्तव्य पालन का सन्देश और अर्जुन का उसके परिणामों पर विचार करने का सन्देश भगवद्गीता में दिया गया है। ये वे विद्वान हैं जो इस तर्क को उस सीमा तक दिखाने के लिए तर्क-वितर्क में लेकर आते हैं जहाँ पर नैतिक समस्याएँ आज भी प्रासंगिक हैं जबकि तब से एक लम्बा समय गुजर चुका है।
Question 3.
How does Sen explore the other side' of women?
सेन ने महिलाओं के दूसरे पक्ष' का किस प्रकार प्रस्तुतीकरण किया है?
Answer:
It is true that Sen has explored the unexplored side of women and presents them as critical, questioning the men and showing their intellectual side which is often neglected by scholars. He refers Gargi .questioning Yajnavalkya and Maitreyi questioning Yajnavalkya, her husband, on the immortality through wealth acquisition. He also refers Draupadi who instigates Yudhisthir to fight a battle against Kaurvas.
यह सत्य है कि सेन ने महिलाओं के उस पक्ष को भी खोजा है जो अभी तक अछूता था, और उन्हें आलोचक, पुरुषों से प्रश्न पूछते हुए और अपनी बौद्धिक क्षमता को दिखाते हुए प्रस्तुत किया है जिसे प्रायः विद्वान नजरन्दाज कर देते हैं। उसने गार्गी को याज्ञवल्क्य से और मैत्रेयी को अपने पति याज्ञवल्क्य से प्रश्न पूछते हुए प्रस्तुत किया है जिसमें वह धन के द्वारा अमरता प्राप्त करने के लिए कहती है । उसने द्रौपदी का भी सन्दर्भ दिया है जो युधिष्ठिर को कौरवों के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए कहती है।
Question 4.
How does the author present disadvantage as a comparative concept?
लेखक ने प्रतिकूल स्थिति को तुलनात्मक सिद्धान्त के रूप में किस प्रकार प्रस्तुत किया है ?
Answer:
The author revolves around his thesis that disadvantage is a comparative concept. He is of the opinion that Indians have been questioning orthodoxy for a long time. He finds that noted scholar of past India belonged to a lower strata and had a humble background. He also faces the 'leveling feature of the then scholars to find equality reflected in writings like Mahabharata and Bhavisya Purana.
लेखक अपने लेख के चारों ओर घूमता है कि प्रतिकूल स्थिति एक तुलनात्मक सिद्धान्त है। उसका मत है कि भारतीय रूढ़िवादिता पर लम्बे समय से प्रश्न पूछते रहे हैं। वह पाता है कि प्राचीन भारत के विद्वान समाज के निम्न वर्ग से सम्बन्धित थे और उनकी पृष्ठभूमि अत्यन्त छोटी थी। वह उस समय के 'एकरूपता में विश्वास रखने वाले' विद्वानों को खोजता है जिन्होंने महाभारत और भविष्य पुराण जैसे ग्रन्थों में समानता के बारे में लिखा है।
Question 5.
How can you say that democracy is not a quintessentially between India?
आप कैसे कह सकते हैं कि लोकतन्त्र विशिष्ट रूप से पश्चिमी विचार नहीं है?
Answer:
The author claims that democracy was not gifted to India post independence in 1947 but it is deeply rooted in Indian history. He talks of Ashoka's council. It is fascinating to see the level of wisdom and which he calls to be 'anti-imperial' outlook possessed by Jain philosophers when they tell this to Alexander while he was in India, "You'll soon be dead and then you will own just as much of the earth as well suffice to bury you."
लेखक दावा करता है कि लोकतन्त्र भारत को 1947 में स्वतन्त्रता के बाद उपहारस्वरूप नहीं दिया गया था बल्कि इसकी भारतीय इतिहास में गहरी जड़ें हैं। वह अशोक की सभा के बारे में बताता है। यह देखना सुखद आश्चर्यदायक है कि बौद्धिकता का स्तर क्या है जिसे वह 'साम्राज्यवाद-विरोधी' दृष्टिकोण कहता है जिसे जैन दार्शनिकों ने लम्बे समय तक रखा जब उन्होंने यह बात सिकन्दर को बताई जब वह भारत में था, "तुम शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे और फिर उसके बाद तुम्हारे पास केवल उतनी ही भूमि होगी जितनी तुम्हें दफनाने के लिए पर्याप्त होगी।"
Question 6.
What is the importance of dialogue in the essay?
निबन्ध में संवाद का क्या महत्त्व है ?
Answer:
The author syas that from the epics, the argumentative tradition is traced out from the argument of Krishna and Arjuna that is put into Bhagvad Gita. Both the sides of the argument is iven equal importance, “A defeated argument that refuses to be orbliterated can remain very alive.” These dialogues of Krishna and Arjuna are borrowed by European culture and certain famous personalities like J. Robert Oppenheimer.
लेखक कहता है कि महाकाव्यों से लेकर, संवाद की परम्परा को श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से पहचाना जा सकता है जो कि भगवद्गीता में प्रस्तुत की गई है। संवाद के दोनों ही पक्षों को बराबर महत्त्व दिया गया है, "एक पराजित संवाद जो कि नष्ट होने से इन्कार कर देता है, पूरी तरह से सजीव रह सकता है।" इन श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादों को यूरोप की संस्कृति और जे. राबर्ट ओपनहीमर जैसे कुछ प्रसिद्ध व्यक्तित्वों ने इन ग्रन्थों से लिया है।
Question 7.
How can you say that democracy as public reasoning is not practised in India?
आप कैसे कह सकते हैं कि भारत में सार्वजनिक तार्किकता के रूप में लोकतन्त्र व्यवहार में नहीं है ?
Answer:
The author says that Indian democracy is formed by the impact of the British. But it is also true that the definition of democracy is ‘government by discussion' but unfortunately it was never practised in India. People in India have lost their argumentative tradition and they accept all policies without questioning it because the privileged upper elite male community occupied the place of Britishers in Independent India and ruled it according to their desire.
लेखक कहता है कि भारतीय लोकतन्त्र ब्रिटिश प्रभाव से स्थापित हुआ। लेकिन यह भी सत्य है कि लोकतन्त्र की परिभाषा 'तार्किक सरकार' है लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में यह कभी चलन में नहीं आयी। भारत में लोग अपनी तर्कशक्ति की परम्परा को भूल चुके हैं और वे सभी नीतियों को बिना प्रश्न पूछे स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि अधिकार सम्पन्न उच्च पुरुष वर्ग ने स्वतन्त्र भारत में ब्रिटेन के लोगों का स्थान ले लिया और अपनी इच्छानुसार उस पर शासन किया।
Question 8.
What do you mean by secularism in India?
भारत में धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हो?
Answer:
Secularism in India is peculiar. It is "no man should be interfered with on account of religion and anyone is to be followed to go over to a religion that pleases him.” Thus, secularism in India gives place for Hindus, Buddhists, Jains, Jews, Christians, Muslims, Parsees, Sikhs and other communities. The origin of all these religions may be discussed from history.
भारत में धर्मनिरपेक्षता विचित्र है। यह कहती है, "किसी भी व्यक्ति को धर्म के कारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और कोई भी व्यक्ति उस धर्म को स्वीकार करने के लिए स्वतन्त्र है जो उसकी इच्छा है।" इस प्रकार, भारत में धर्मनिरपेक्षता हिन्दुओं, बौद्धों, जैन, यहूदी, ईसाई, मुसलमान, पारसी, सिख और अन्य समुदायों को स्थान प्रदान करती है। इन सभी धर्मों की प्रारम्भिकता की इतिहास के परिप्रेक्ष्य में व्याख्या की जा सकती है।
Question 9.
What do you mean by sceptics, agnostics and atheists?
संशयवाद, संदेह करने वाला और नास्तिक से आपका क्या आशय है ?
Answer:
The author says that all these concepts sceptics, agnostics and atheists are explained by religious secularism and heterodoxy that may be found out from the traditional past of India. India produced religious literature in a large quantity which is attempting to arrive at a solution regarding the religious problems through which these concepts come into existence.
लेखक कहता है कि संशयवाद, संदेह करने वाला और नास्तिक इन सभी सिद्धान्तों की धर्मनिरपेक्षता और परम्परा विरोध के द्वारा व्याख्या की जाती है जो परम्परागत भारतीय भूतकाल में पाये जा सकते हैं। भारत में एक बहुत बड़ी मात्रा में धार्मिक साहित्य का लेखन किया जो कि धार्मिक समस्याओं के समाधान की कोशिश कर रहा है, जिनके माध्यम से ये सिद्धान्त अस्तित्व में आये।
Question 10.
What do you mean by science, epistemology and heterodoxy?
विज्ञान, सच्चे ज्ञान का अध्ययन और परम्परा विरोध से आपका क्या अभिप्राय है?
Answer:
The writer is of the opinion that before the history of scientific contributions across the world began. It had already begun in India. So many evidences are found about it. Indian philosophers had started their writing about philosophical understanding before it appeared in the western mind. But it was not recognized as India was considered to be backward and no country gave any importance to it.
लेखक इस मत का है कि पूरे संसार में वैज्ञानिक योगदानों के इतिहास से पूर्व ही यह भारत में पहले ही प्रारम्भ हो चुके थे। इस बारे में अनेकों प्रमाण प्राप्त होते हैं। भारतीय दार्शनिकों ने अपना लेखन दार्शनिक सिद्धान्तों के बारे में पहले ही प्रारम्भ कर दिया था जब यह पश्चिमी देशों के मस्तिष्क में आया। लेकिन उसको पहचान नहीं मिली क्योंकि भारत को पिछड़ा हुआ माना जाता था और कोई भी देश उसे महत्त्व नहीं देता था।
Question 11.
Who translated Gita into English? What was its effect?
गीता का अंग्रेजी में किसने अनुवाद किया? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
Answer:
Christopher Isherwood was extremely influenced with the Gita and he translated the Gita into English. This admiration for Gita and for Krishna's arguments in particular has been a lasting phenomenon in parts of European culture. It was widely praised by Wilhelm von Humboldt as 'the most beautiful perhaps the only true philosophical song existing in any known tongue’.
क्रिस्टोफर ईशरवुड गीता से अत्यधिक प्रभावित हुआ और उसने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। गीता की यह प्रशंसा और विशेष रूप से श्रीकृष्ण के तर्क यूरोप की संस्कृति में अत्यधिक प्रभावशाली रहे हैं। इसकी Wilhelm von Humboldt द्वारा अत्यधिक प्रशंसा की गई जब उसने गीता की इस तरह प्रशंसा की, "सर्वाधिक सौन्दर्ययुक्त, शायद एकमात्र सत्य दार्शनिक गीत जो कि किसी भी भाषा में अस्तित्व में आया हो।"
Question 12.
What is Maitreyi's another philosophical aspect?
मैत्रेयी का दूसरा दार्शनिक पक्ष क्या है?
Answer:
Maitreyi's another philosophical aspect is of more immediate interest. This aspect puts the relationship with the distance. It tries to find out the relationship between income and achievement, between the commodities we can buy and the actual capabilities, we can enjoy, between our economic wealth and our ability to live as we would like to live and our worldly interest as well.
मैत्रेयी का दूसरा दार्शनिक सिद्धान्त और ज्यादा स्पष्ट एवं रोचक है। यह पक्ष दूरी के साथ सम्बन्ध को स्थापित करता है। यह आय और उपलब्धि के बीच, वस्तुओं जिन्हें हम खरीद सकते हैं तथा हमारी वास्तविक क्षमता जिसका हम आनन्द उठा सकते हैं, के बीच, हमारी आर्थिक सम्पन्नता और रहने की योग्यता जिस प्रकार हम रहना चाहें और हमारी सांसारिक रुचियों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है।
Long Answer Type Questions :
Question 1.
What do you know about gender, caste and voice?
लिंग, जाति और ध्वनि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Answer:
According to the author, the tradition of argumentes is confined to an exclusive part of male elite. This is the section of society which has taken the place left by the Britishers in India. It is said that the ruling system in India is patriarchal, yet, it had and has women leaders governing the country. It has been traced from ancient text of Upanishad and Indian history.
Such women leaders are not elected in any part of the world including Britain and the US. So far as the question of caste concerns, it is obvious that the argument has not come to an end yet. This is centred on Hinduism which is a Brahmin dominated orthodoxy. In this system, other underprivileged people changed their religion to get education to be privileged.
लेखक के अनुसार, तर्क-वितर्क की परम्परा विस्तृत रूप से पुरुष प्रधान श्रेष्ठ वर्ग तक सीमित रही है। यह समाज का वह वर्ग है जिसने भारत में अंग्रेजों द्वारा छोड़े गये स्थान को ग्रहण किया है। कहा जाता है कि भारत में शासन करने की पितृसत्तात्मक परम्परा है लेकिन फिर भी इसमें महिला नेताओं द्वारा देश का शासन चलाने की परम्परा थी। इसको प्राचीन ग्रन्थ उपनिषद और भारतीय इतिहास में प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार की महिला नेता ब्रिटेन और अमेरिका सहित विश्व के किसी भी भाग में निर्वाचित नहीं की जाती है।
जहाँ तक जाति का प्रश्न है, यह स्पष्ट है कि अभी तक इस बहस का अन्त नहीं हुआ है। यह हिन्दुत्व पर केन्द्रित है जो कि ब्राह्मणों की अधिकार सम्पन्न कट्टरता है। इस प्रथा में दूसरे वंचित वर्गों ने शिक्षा प्राप्त करके अधिकार सम्पन्न बनने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर लिया।
Question 2.
What is the importance of arguments according to the author?
लेखक के अनुसार तर्क-वितर्कों की क्या महत्ता है ?
Answer:
According to the author, there was a time when people developed themselves through arguments. Even our women folk was also so strong that they could defeat men. Even today, argumentative heritage of India is needed to peep into the impact of different influences that have shaped India and its traditions. No doubt, the argumentative spirit helped in the development of democracy, intellectual and social history of India. The author has presented positive notes praising the importance of arguments.
The essay not only presents the list of the riches of India but challenges the world countries also who are depended on the third world countries. It is also true that India is not the same as before. The argument seems to become extinct and acceptance has taken its place in the modern time.
लेखक के अनुसार, एक समय था जब लोग अपने आप को तर्क-वितर्क के द्वारा विकसित करते थे। यहाँ तक कि हमारी महिलाएं भी इतनी मजबूत थीं कि वे पुरुष को पराजित कर सकती थीं। आज भी भारत की तार्किक विरासत को विभिन्न प्रभावों में झाँकने की आवश्यकता है जिन्होंने भारत और उसकी परम्पराओं का निर्माण किया है। निःसन्देह, तार्किक गहनता ने भारत में लोकतन्त्र, बौद्धिक तथा सामाजिक इतिहास को विकसित करने में सहायता प्रदान की है।
लेखक ने तर्क की महत्ता की प्रशंसा करते हुए सकारात्मक विचार प्रस्तुत किए हैं। निबन्ध न केवल भारत की समृद्धि की एक सूची प्रस्तुत करता है बल्कि विश्व के देशों की चुनौतियों को भी प्रस्तुत करता है जो तृतीय विश्व के देशों पर निर्भर हैं। यह भी सत्य है कि भारत अब पहले जैसा नहीं रहा है। ऐसा लगता है कि तर्क समाप्त हो गया है और आधुनिक समय में स्वीकृति ने उसका स्थान ले लिया है।
Question 3.
What do you know about the story in the “Brihadaranyaka Upanishad?"
'बृहदारण्यक उपनिषद्' की कहानी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Answer:
In 'Brihadaranyaka Upanishad, there is a story about the famous arguing combat in which Yajnavalkya who was an outstanding scholar and teacher, has to face questions for the assembled gathering of pundits and here is a woman scholar Gargi who sharply puts questions before him wish her sharpest edge to the intellectual interrogation and says that she will ask only two questions. She further says that if he is able to answer the questions, then, none of the pundits can never defeat him.
Yajnavalkya anyhow tries to satisfy her with his answers and says that he is not competent enough to examine the theological merits. Gargi very cleverly tackles it and says that all of them should consider it an achievement if they can get away after bowing to him because no one can ever defeat him to know nature of God.
'बृहदारण्यक उपनिषद्' में प्रसिद्ध 'तर्कयुक्त द्वन्द्व' के बारे में एक कहानी कही गई है जिसमें याज्ञवल्क्य, जो एक महान विद्वान और अध्यापक थे, को वहाँ इकट्ठा हुए पण्डितों के प्रश्नों का सामना है कि भारत में शासन करने की पितृसत्तात्मक परम्परा है लेकिन फिर भी इसमें महिला नेताओं द्वारा देश का शासन चलाने की परम्परा थी।
इसको प्राचीन ग्रन्थ उपनिषद और भारतीय इतिहास में प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार की महिला नेता ब्रिटेन और अमेरिका सहित विश्व के किसी भी भाग में निर्वाचित नहीं की जाती है। जहाँ तक जाति का प्रश्न है, यह स्पष्ट है कि अभी तक इस बहस का अन्त नहीं हुआ है। यह हिन्दुत्व पर केन्द्रित है जो कि ब्राह्मणों की अधिकार सम्पन्न कट्टरता है। इस प्रथा में दूसरे वंचित वर्गों ने शिक्षा प्राप्त करके अधिकार सम्पन्न बनने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर लिया।
Question 2.
What is the importance of arguments according to the author?
लेखक के अनुसार तर्क-वितर्कों की क्या महत्ता है ?
Answer:
According to the author, there was a time when people developed themselves through arguments. Even our women folk was also so strong that they could defeat men. Even today, argumentative heritage of India is needed to peep into the impact of different influences that have shaped India and its traditions. No doubt, the argumentative spirit helped in the development of democracy, intellectual and social history of India.
The author has presented positive notes praising the importance of arguments. The essay not only presents the list of the riches of India but challenges the world countries also who are depended on the third world countries. It is also true that India is not the same as before. The argument seems to become extinct and acceptance has taken its place in the modern time.
लेखक के अनुसार, एक समय था जब लोग अपने आप को तर्क-वितर्क के द्वारा विकसित करते थे। यहाँ तक कि हमारी महिलाएं भी इतनी मजबूत थीं कि वे पुरुष को पराजित कर सकती थीं। आज भी भारत की तार्किक विरासत को विभिन्न प्रभावों में झाँकने की आवश्यकता है जिन्होंने भारत और उसकी परम्पराओं का निर्माण किया है।
निःसन्देह, तार्किक गहनता ने भारत में लोकतन्त्र, बौद्धिक तथा सामाजिक इतिहास को विकसित करने में सहायता प्रदान की है। लेखक ने तर्क की महत्ता की प्रशंसा करते हुए सकारात्मक विचार प्रस्तुत किए हैं।
निबन्ध न केवल भारत की समृद्धि की एक सूची प्रस्तुत करता है बल्कि विश्व के देशों की चुनौतियों को भी प्रस्तुत करता है जो तृतीय विश्व के देशों पर निर्भर हैं। यह भी सत्य है कि भारत अब पहले जैसा नहीं रहा है। ऐसा लगता है कि तर्क समाप्त हो गया है और आधुनिक समय में स्वीकृति ने उसका स्थान ले लिया है।
Question 3.
What do you know about the story in the “Brihadaranyaka Upanishad?"
'बृहदारण्यक उपनिषद्' की कहानी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Answer:
In 'Brihadaranyaka Upanishad, there is a story about the famous arguing combat in which Yajnavalkya who was an outstanding scholar and teacher, has to face questions for the assembled gathering of pundits and here is a woman scholar Gargi who sharply puts questions before him wish her sharpest edge to the intellectual interrogation and says that she will ask only two questions.
She further says that if he is able to answer the questions, then, none of the pundits can never defeat him. Yajnavalkya anyhow tries to satisfy her with his answers and says that he is not competent enough to examine the theological merits. Gargi very cleverly tackles it and says that all of them should consider it an achievement if they can get away after bowing to him because no one can ever defeat him to know nature of God.
'बृहदारण्यक उपनिषद्' में प्रसिद्ध 'तर्कयुक्त द्वन्द्व' के बारे में एक कहानी कही गई है जिसमें याज्ञवल्क्य, जो एक महान विद्वान और अध्यापक थे, को वहाँ इकट्ठा हुए पण्डितों के प्रश्नों का सामना करना था और वहाँ पर एक महिला विदुषी गार्गी भी है। वह अपनी प्रश्न पूछने की तीक्ष्ण बुद्धि चातुर्य से याज्ञवल्क्य से तीक्ष्ण प्रश्न पूछती है और कहती है कि वह केवल दो प्रश्न ही पूछेगी।
वह आगे कहती है कि यदि वह (याज्ञवल्क्य) उत्तर देने में समर्थ होंगे तो कोई भी विद्वान पण्डित उन्हें कभी पराजित नहीं कर सकेगा। याज्ञवल्क्य किसी भी प्रकार से अपने उत्तरों से उसे संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं और कहते हैं कि वह धार्मिक गुणों के परीक्षण के लिए पर्याप्त योग्य नहीं है।
गार्गी बड़ी चतुराई से इस बात को संभालती है और कहती है कि उन सभी को यह एक उपलब्धि माननी चाहिए यदि वे सभी उसके सामने झुकने के बाद चले जायें क्योंकि कोई भी ईश्वर की प्रकृति जानने के लिए उसे पराजित नहीं कर सकेगा।
Question 4.
What does Draupadi say in the sixth century version of Kiratarjuniya by Bharvi?
छठवीं शताब्दी में भारवि द्वारा लिखित 'किरातार्जुनीय' में द्रौपदी क्या-क्या कहती है ?
Answer:
In the sixth century version of 'Kiratarjuniya' by Bharvi, Draupadi says that it is not good for a woman to advise a king. In fact it is an insult of the king. But she is compelled to do so because her own troubles. That's why she is ready to take such a step that is not good for a woman.
She further addresses the king and says that a king like him who is as brave as Indra himself and who has ruled the earth uninterruptedly for a long time but now he has thrown away the entire kingdom as an elephant who tears off the garland with his own trunk. She goes on saying that if he does not want to do heroic deeds and wants to live peacefully, she should throw away his royal dress and become a hermit and make offerings in the sacred fire.
छठवीं शताब्दी में भारवि द्वारा लिखित 'किरातार्जुनीय' में द्रौपदी कहती है कि एक महिला के लिए यह ठीक नहीं है कि वह किसी राजा को कोई सलाह दे। वास्तव में, यह राजा का अपमान है। लेकिन वह ऐसा करने के लिए बाध्य हो गई है क्योंकि उसकी अपनी समस्याएँ हैं। यही कारण है कि वह ऐसा कदम उठाने के लिए तैयार है जो कि एक महिला के लिए ठीक नहीं है। वह आगे राजा को सम्बोधित करती है और कहती है कि उस जैसा राजा जो स्वयं इन्द्र के समान बलशाली है और जिसने बिना रुके.
एक लम्बे समय तक पृथ्वी पर शासन किया हो, लेकिन अब उसने सम्पूर्ण साम्राज्य को दूर फेंक दिया है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक हाथी अपनी ही सूंड से अपनी फूलमाला को तोड़कर फेंक देता है। वह कहना जारी रखती है कि यदि वह वीरता के कार्य करना नहीं चाहता है और शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है तो उसे अपने राजसी वस्त्र उतारकर फेंक देने चाहिए और एक संन्यासी बन जाना चाहिए और हवन कुण्ड में पवित्र आहुतियाँ डालनी चाहिए।
Question 5.
What are the twin pitfalls that should be avoided?
वे दो खतरे कौनसे हैं जिनसे बचा जाना चाहिए?
Answer:
According to the author, there are twin pitfalls and we have to avoid them.
(1) People of India should think that democracy is not just a gift of the Western world and India simply accepted it when it become independent.
(2) People shouldn't assume that there is something unique feature in Indian history that makes the country completely suitable for democracy. We'll have to ponder over it that democracy is intimately connected with public discussion and interactive reasoning. And it is also true that tradition of public discussion exists across the world, not just in the west. And if this tradition is maintained and continued, democracy becomes easier to implement in the country and then it can be presented easily.
लेखक के अनुसार दो खतरे हैं और हमें उन दोनों से बचना है-
(1) भारत के लोगों को यह देखना चाहिए कि लोकतन्त्र पश्चिम के देशों की ओर से केवल एक उपहार नहीं है और भारत ने इसे सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया जब वह स्वतन्त्र हुआ।
(2) लोगों को यह नहीं मानना चाहिए कि भारतीय इतिहास में एक ऐसा विशेष तत्व है जो कि देश को पूरी तरह से लोकतन्त्र के योग्य बनाता है। हमें इस पर विचार करना होगा कि लोकतन्त्र सार्वजनिक बहस और तार्किक वार्तालाप से गहराई से जुड़ा हुआ है। और यह भी सत्य है कि सार्वजनिक बहस की परम्परा पूरे विश्व में विद्यमान है, केवल पश्चिमी देशों में नहीं। और यदि इस परम्परा को बनाये रखा गया और लगातार चलाये रखा गया तो लोकतन्त्र को देश में लागू करना अत्यन्त सरल हो जाता है और उसके बाद उसे आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है।
Seen Passages
Passage 1.
Prolixity is not alien to us in India. We are able to talk at some length. Krishna Menon's record of the longest speech ever delivered at the United Nations (nine hours non-stop), established half a century ago (when Menon was leading the Indian delegation), has not been equalled by anyone from anywhere. Other peaks of loquaciousness have been scaled by other IndiAnswer:We do like to speak.
Questions :
1. What idea does the author want to convey through beginning line?
प्रारम्भिक पंक्ति के माध्यम से लेखक कौनसा विचार प्रस्तुत करना चाहता है ?
2. What is the record of teh longest speech at the United Nations (UNO)?
संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे लम्बे भाषण का क्या रिकॉर्ड है?
3. Explain the line, "we do like to speak.”
इस पंक्ति की व्याख्या कीजिए, "हमें बोलना पसन्द है।"
Answers :
1. Through the beginning line, the author wants to convey that it has been a tradition since long in India to put one's views in a lengthy way.
प्रारम्भिक पंक्ति के माध्यम से लेखक विचार प्रस्तुत करना चाहता है कि भारत में एक लम्बे समय से अपने विचारों को वृहद् रूप में रखने की परम्परा चली आ रही है।
2. Krishna Menon was the Defence Minister of India from 1957 to 1962. He delivered the longest speech of nine hours at the UNO.
कृष्ण मेनन 1957 से 1962 तक भारत का रक्षा मंत्री था। उसने संयुक्त राष्ट्र में सबसे लम्बा नौ घण्टे का भाषण दिया था।
3. “We do like to speak” suggests that Indians come in the habit of speaking too much. They always try to speak in a lengthy and zigzag way.
'हमें बोलना पसन्द है' इस बात का संकेत देता है कि भारतीयों की ज्यादा बोलने की आदत है। वे हमेशा लम्बे और घुमावदार तरीके से बोलने की कोशिश करते हैं।
Passage 2.
The arguments are also, often enough, quite substantive. For example, the famous Bhagavad Gita, which is one small section of the Mahabharata, presents a tussle between two contrary moral positions-Krishna's emphasis on doing one's duty, on one side, and Arjuna's focus on avoiding bad consequences (and generating good, on the other.
The debate occurs on the eve of the great war that is a central event in the Mahabharata. Watching the two armies readying for war, profound doubts about the correctness of what they are doing are raised by Arjuna, the peerless and invincible warrior in the army of the just and honourable royal family (the Pandavas) who are about to fight the unjust usurpers (the Kauravas).
Questions :
1. What are the two contrary morals in the Bhagvad Gita?
भगवद्गीता में दो विरोधी नैतिकताएँ क्या हैं?
2. When did this debate between Krishna and Arjuna take place?
कृष्ण और अर्जुन के बीच यह तर्क-वितर्क कब हुआ?
3. Who is Arjuna?
अर्जुन कौन है?
Answers :
1. The two opposite morals in the Gita are - Krishna's emphasis on doing one's duty on one side and Arjuna's focus on avoiding bad consequences.
गीता में दो विपरीत नैतिकताएँ हैं-श्रीकृष्ण का कर्म करने पर जोर एक ओर तथा दूसरी ओर अर्जुन का दुष्परिणामों से बचने पर ध्यान केन्द्रित करना।
2. The debate took place on the eve of the great war that is a central event in the Mahabharata. It was the time when both armies were standing face to face.
यह तर्क-वितर्क महान युद्ध की पूर्व संध्या पर हुआ था जो कि महाभारत में केन्द्रीयकृत घटना है। यह वह समय था जब दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं।
3. Arjuna is the peerless and invincible warrior in the army of just and honourable royal family of Pandavas who is to fight against Kauravas.
अर्जुन अद्वितीय और अजेय योद्धा है जो पाण्डवों के न्यायप्रिय और सम्माननीय राजसी परिवार की सेना में है जिसे कौरवों के विरुद्ध युद्ध लड़ना है।
Passage 3.
Isherwood in fact translated the Bhagavad Gita into English. This admiration for the Gita, and for Krishna's arguments in particular, has been a lasting phenomenon in parts of European culture. It was spectacularly praised in the early nineteenth century by Wilhelm von Humboldt as 'the most beautiful, perhaps the only true philosophical song existing in any known tongue’.
In a poem in Four Quartets, Eliot summarises Krishna's view in the form of an admonishment: 'And do not think of the fruit of action! Fare forward'. Eliot explains: 'Not fare well/But fare forward, voyagers'.
Questions :
1. What is the lasting phenomenon in European Culture?
यूरोप की संस्कृति में लम्बे समय तक रहने वाला क्या प्रभाव है ?
2. What does Wilhelm von Humboldt say about the Gita?
Wilhelm von Humboldt गीता के बारे में क्या कहता है ?
3. How does Eliot summarize Krishna's views?
ईलियट ने श्रीकृष्ण के सन्देशों का किस प्रकार संक्षेपीकरण किया है ?
Answers :
1. The admiration for the Gita and Krishna's argumentative message in particular has always been a lasting phenomenon in the European Culture.
गीता के प्रति प्रशंसनीय भाव और विशेष रूप से श्रीकृष्ण के तार्किक सन्देश हमेशा से यूरोप की संस्कृति में लम्बे समय तक रहने वाला प्रभाव है।
2. Wilhelm von Humboldt says about Gita as "the most beautiful, perhaps the only true philosophical song existing in any known language.”
गीता के बारे में Wilhelm von Humboldt कहता है कि यह, "सबसे शानदार, शायद किसी भी ज्ञात भाषा में एकमात्र एक सत्य दार्शनिक ग्रन्थ है।"
3. Eliot summarizes Krishna's views thus—“And do not think of the fruit of action!
Fare forward.” इलियट ने श्रीकृष्ण के संदेश को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया है-"और अपने कर्म के प्रतिफल के बारे में मत सोचो! कर्म करते हुए आगे बढ़ो।"
Passage 4.
As we reflect on the manifest problems of our global world (from terrorism, wars and violence to epidemics, insecurity and gruelling poverty), or on India's special concerns (such as economic development, nuclear confrontation or regional peace), it is important to take on board Arjuna's consequential analysis, in addition to considering Krishna's arguments for doing one's duty. The univocal ‘message of the Gita' requires supplementation by the broader argumentative wisdom of the Mahabharata, of which the Gita is only one small part.
Questions :
1. What problems does the world face today?
संसार आज कौनसी समस्याओं का सामना कर रहा है?
2. What problems particularly does India face?
विशेष रूप से भारत कौनसी समस्याओं का सामना कर रहा है?
3. According to the author, what does 'message of the Gita' require?
लेखक के अनुसार, 'गीता के सन्देश' की क्या आवश्यकता है?
Answers :
1. The problems that the world faces today are terrorism, wars, violence, epidemics, insecurity and grueling poverty.
संसार आज जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, वे हैं-आतंकवाद, युद्ध, हिंसा, महामारी, असुरक्षा और दुष्क गरीबी।
2. India is facing all those problems that are being faced globally but India's particular problems are economic development, nuclear confrontation and regional peace.
भारत उन सभी समस्याओं का सामना कर रहा है जिनका पूरे संसार द्वारा सामना किया जा रहा है लेकिन भारत की विशेष समस्याएँ हैं-आर्थिक विकास, नाभिकीय संघर्ष और क्षेत्रीय शान्ति ।
3. According to the author, it is required to take on board Arjuna's consequential analysis, in addition to consider Krishna's arguments for doing one's duty.
लेखक के अनुसार, श्रीकृष्ण के अपना कर्म करते रहने के सन्देश के साथ-साथ अर्जुन के परिणाम की व्याख्या पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
Passage 5.
Interestingly, Yajnavalkya's wife Maitreyi raises a profoundly important motivational question when the two discuss the reach of wealth in the context of the problems and predicaments of human life, in particular what wealth can or cannot do for us. Maitreyi wonders whether it could be the case that if "the whole earth, full of wealth' were to belong just to her, she could achieve immortality through it.
'No', responds Yajnavalkya, “like the life of rich people will be your life. But there is no hope of immortality by wealth’. Maitreyi remarks: “What should I do with that by which I do not become immortal?'
Questions :
1. What does Maitreyi want to get in exchange of wealth?
मैत्रेयी धन के बदले में क्या प्राप्त करना चाहती है?
2. What does Yajnavalkya respond?
याज्ञवल्क्य क्या उत्तर देते हैं ?
3. What does Maitreyi remark when she comes to know that the can't be immortal?
जब मैत्रेयी को पता चलता है कि वह अमर नहीं हो सकती है तो वह क्या प्रतिक्रिया देती है ?
Answers :
1. Maitreyi wants to know whether it could be the case that if “the whole earth, full of wealth" were to belong to her, she could achieve immortality through it.
मैत्रेयी यह जानना चाहती है कि अपने मामले में यदि 'सम्पूर्ण पृथ्वी, धन से भरी हुई' जो उसकी हो, क्या वह इससे अमरता प्राप्त कर सकती है।
2. Yajnavalkya responds that with a huge money, she will lead a life of rich people but even then she can't become immortal.
याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं कि इतनी विशाल समृद्धि से वह एक धनी व्यक्ति का जीवन व्यतीत करेगी परन्तु फिर भी वह अमर नहीं हो सकती है।
3. When Maitreyi comes to know that she can't be immortal, she remarks: “what should I do with that by which I do not become immortal ?”
जब मैत्रेयी को पता चलता है कि वह अमर नहीं हो सकती है तो वह प्रतिक्रिया देती है-"मैं उसका क्या करूँ जिसके द्वारा मैं अमर नहीं हो सकती?"
Passage 6.
It is very important to avoid the twin pitfalls of
(1) taking democracy to be just a gift of the Western world that India simply accepted when it became independent, and
(2) assuming that there is something unique in Indian history that makes the country singularly suited to democracy. The point, rather, is that democracy is intimately connected with public discussion and interactive reasoning. Traditions of public discussion exist across the world, not just in the West. And to the extent that such a tradition can be drawn on, democracy becomes easier to institute and also to preserve.
Questions :
1. What are the twin pitfalls?
दो खतरे क्या हैं ?
2. What is democracy intimately connected with?
लोकतन्त्र किस बात से गहराई से जुड़ा हुआ है?
3. What does public discussion bring to democracy?
सार्वजनिक तर्क-वितर्क लोकतन्त्र के लिए क्या देता है?
Answers :
1. The twin pitfalls are---
(1) Democracy is a gift to India from the western world,
(2) there is something unique in Indian history which is suitable to democracy.
दो खतरे हैं--
(1) लोकतन्त्र भारत के लिए पश्चिमी दुनिया का उपहार है।
(2) भारतीय इतिहास में .. कोई अनोखी बात है जो लोकतन्त्र के लिए उपयुक्त है।
2. Democracy is intimately connected with public discussion and interactive reasoning, without which, it becomes lifeless.
लोकतन्त्र सार्वजनिक तर्क-वितर्क तथा आपसी तार्किक योग्यता से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसके बिना यह निर्जीव हो जाता है।
3. When democracy is implemented in the country, such a tradition brings democracy to become easier and also to preserve.
जब लोकतन्त्र किसी देश में लागू किया जाता है, तो ऐसी परम्परा लोकतन्त्र को सरल तथा सुरक्षित बना देती है।
About the Author :
Amartya Sen was awarded the Nobel Prize in Economics in 1998 for his contribution in the field of welfare economics. He is Lamont Professor at Harvard. This text forms the opening sections of the first essay in Sen's book of the same title published in 2005.
The sub-title of the book is 'Writings on Indian Culture, History and Identity'. Sen argues in this essay that in India there has been a long Amartya Sentradition of questioning the truth of ideas through discussion Born 1933. and dialogue.
लेखक के बारे में :
अमर्त्य सेन को 1998 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उनको यह पुरस्कार कल्याण अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया था। वह हार्वर्ड में लेमॉन्ट प्रोफेसर हैं। यह निबन्ध सन् 2005 में सेन की इसी शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक के प्रथम निबन्ध के प्रारम्भिक अंशों का भाग है। इस पुस्तक का उप-शीर्षक 'राइटिंग्स ऑन इण्डियन कल्चर, हिस्ट्री एण्ड आईडेन्टिटी' है। सेन इस निबन्ध में तर्क देता है कि भारत में तर्क-वितर्क और संवाद के माध्यम से विचारों की सत्यता के बारे में प्रश्न पूछने की एक लम्बी परम्परा रही है।
About the Essay :
The present essay has been taken from the book in which essays have been put with the same title.The Argumentative Indian. It is written by Amartya Sen, Nobel Lawreate and economist. It is a collection of essays that discusses India's history and identity, focusing on the traditions of public debate and intellectual pluralism.
The present essay has brought together a selection of writings from Sen who emphasizes the need to understand contemporary India and Indian society in the light of its long argumentative tradition. The author argues that the understanding and utilization of this argumentative tradition are extremely important in the present scenario. He presents the need for the success of India's democracy, the removal of inequalities related to class, caste, gender and community and to defend it secular politics.
निबन्ध के बारे में :
वर्तमान निबन्ध उस पुस्तक से लिया गया है जिसमें इसी शीर्षक से निबन्धों को संग्रहीत किया गया है-The Argumentative Indian । इसे अमर्त्य सेन द्वारा लिखा गया है जो कि नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्ता और अर्थशास्त्री हैं। यह निबन्धों का संग्रह है जो कि भारत के इतिहास और पहचान के बारे में बताता है और मुख्य रूप के सार्वजनिक तर्कों और बौद्धिक बहुलतावाद पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है।
वर्तमान निबन्ध ने सेन के लेखों के चयन को एक साथ प्रस्तुत किया है जो समकालीन भारत और भारतीय समाज को इसकी लम्बे तर्कयुक्त परम्पराओं की रोशनी में समझने की आवश्यकता पर बल देता है। लेखक तर्क देता है कि वर्तमान समय में इस तार्किक परम्परा को समझना और उसका उपयोग करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह भारत के लोकतन्त्र की सफलता, वर्ग, जाति, लिंग और समुदाय से सम्बन्धित असमानताओं की समाप्ति और अपनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति की सफलता की आवश्यकता को प्रस्तुत करता है।
कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद
Prolixity is...........disputations. (Pages 176-177)
कठिन शब्दार्थ-prolixity (प्रोलिक्सिटि) = lengthy, अतिविस्तार से बताना। alien (एलिअन्) = a distant thing, अत्यधिक दूर, अन्जान । delegation (डेलिगेश्न्) = a group of people, प्रतिनिधिमण्डल। loquaciousness (लक्वेशस्नस्) = to talk a lot, बातूनी, गप्पबाजी। colossally (कलॉस्लि) = extremely large, अति विशाल । stimulation (स्टिम्युलेश्न्) = more active, सक्रिय। dilemmas (डाइलेमास्) = anxiety, कठिन स्थिति, दुविधा। perspectives (पस्पेटिव्स्) = in a reasonable way, परिप्रेक्ष्य । incessant (इन्सेस्न्ट्) = never stopping, अविराम, निरन्तर | disputations (डिस्प्यू टेश्न्) = disagreement, विवाद, झगड़ा।
हिन्दी अनुवाद-भारत में हमारे लिए विस्तार से बताना कोई अन्जान बात नहीं है। हम एक सीमा तक बात करने में सक्षम हैं। कृष्णा मेनन का सबसे लम्बे भाषण का जो आधी शताब्दी पूर्व संयुक्त राष्ट्र में दिया गया था (लगातार नौ घण्टे तक) (जब वह एक प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व कर रहा था) उसकी आज तक कहीं से भी किसी के भी द्वारा बराबरी नहीं की जा सकी है। अधिक बोलने की ऊँचाइयों को अन्य भारतीयों के द्वारा ही प्राप्त किया गया है। हमें बोलना बहुत पसन्द है।
यह कोई नई आदत नहीं है । संस्कृत के प्राचीन महाकाव्य 'रामायण' और 'महाभारत' जिनकी तुलना लगातार 'इलियड' और 'ओडिसी' से की जाती है, वे उन ग्रन्थों से अत्यधिक विशाल हैं जिनका विनम्र होमर व्यवस्थित कर सकता था। वास्तव में, महाभारत अकेली ही इलियड और ओडिसी दोनों को एक साथ रखने पर भी उनसे सात गुना बड़ी है।
निश्चित रूप से 'रामायण' और 'महाभारत' महान् महाकाव्य हैं-मैं अत्यधिक खुशी के साथ याद करता हूँ कि मेरा अपना जीवन भी अत्यन्त समृद्ध हुआ जब मेरा उनसे प्रथम आमना-सामना तब हुआ जब मैं अधीर युवक के रूप में बौद्धिक सक्रियता के साथ-साथ सिर्फ मनोरंजन के लिए उन्हें खोज रहा था। लेकिन वे अपनी मुख्य कहानी के चारों ओर गुंथी हुई एक के बाद एक कहानी के रूप में आगे बढ़ते हैं और वे संवाद, दुविधा तथा स्थानापन्न परिप्रेक्ष्य से परिपूर्ण हैं । और हम जनसाधारण के तर्क और विरोधी तर्कों का सामना करते हैं जो कि लगातार बहस एवं विवादों के रूप में फैले हुए हैं।
Dialogue ............ consequences are. (Page 177)
कठिन शब्दार्थ-substantive (सब्स्टै न्टिव) = fundamental, मौलिक, मूलभूत । tussle (टस्ल) = a fight, संघर्ष । peerless (पिअ(र)लेस्) = unique, अद्वितीय, अनुपम। invincible (इन्विन्सब्ल) = which cannot be defeated, जिसे पराजित न किया जा सके | usurpers (यूजप्स्) = to take by force, शक्ति से हड़प लेना। slaughter (स्लॉट्()) = to kill, मार देना। incarnation (इन्कानेश्न्) = life on earth, अवतार लेना। charioteer (चैरिअटिअ(र्)) = the driver of a vehicle pulled by horses, सारथी। articulating (आ'टिक्यलटिङ्) = good repression, कुशल अभिव्यक्ति । rely (रिलाई) = believe, विश्वास।
कृष्णा मेनन 1957 से 1962 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया था और 23 जनवरी, 1957 को भारत के कश्मीर के प्रति दृष्टिकोण के पक्ष में अभूतपूर्व नौ घण्टे का भाषण दिया था। ध्यान केन्द्रित करता है।
वर्तमान निबन्ध ने सेन के लेखों के चयन को एक साथ प्रस्तुत किया है जो समकालीन भारत और भारतीय समाज को इसकी लम्बे तर्कयुक्त परम्पराओं की रोशनी में समझने की आवश्यकता पर बल देता है। लेखक तर्क देता है कि वर्तमान समय में इस तार्किक परम्परा को समझना और उसका उपयोग करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह भारत के लोकतन्त्र की सफलता, वर्ग, जाति, लिंग और समुदाय से सम्बन्धित असमानताओं की समाप्ति और अपनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति की सफलता की आवश्यकता को प्रस्तुत करता है।
कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद
Prolixity is ...........disputations. (Pages 176-177)
कठिन शब्दार्थ-prolixity (प्रोलिक्सिटि) = lengthy, अतिविस्तार से बताना। alien (एलिअन्) = a distant thing, अत्यधिक दूर, अन्जान । delegation (डेलिगेश्न्) = a group of people, प्रतिनिधिमण्डल। loquaciousness (लक्वेशस्नस्) = to talk a lot, बातूनी, गप्पबाजी। colossally (कलॉस्लि) = extremely large, अति विशाल । stimulation (स्टिम्युलेश्न्) = more active, सक्रिय। dilemmas (डाइलेमास्) = anxiety, कठिन स्थिति, दुविधा। perspectives (पस्पेटिव्स्) = in a reasonable way, परिप्रेक्ष्य । incessant (इन्सेस्न्ट्) = never stopping, अविराम, निरन्तर | disputations (डिस्प्यू टेश्न्) = disagreement, विवाद, झगड़ा।
हिन्दी अनुवाद-भारत में हमारे लिए विस्तार से बताना कोई अन्जान बात नहीं है। हम एक सीमा तक बात करने में सक्षम हैं। कृष्णा मेनन* का सबसे लम्बे भाषण का जो आधी शताब्दी पूर्व संयुक्त राष्ट्र में दिया गया था (लगातार नौ घण्टे तक) (जब वह एक प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व कर रहा था) उसकी आज तक कहीं से भी किसी के भी द्वारा बराबरी नहीं की जा सकी है। अधिक बोलने की ऊँचाइयों को अन्य भारतीयों के द्वारा ही प्राप्त किया गया है। हमें बोलना बहुत पसन्द है।
यह कोई नई आदत नहीं है । संस्कृत के प्राचीन महाकाव्य 'रामायण' और 'महाभारत' जिनकी तुलना लगातार 'इलियड' और 'ओडिसी' से की जाती है, वे उन ग्रन्थों से अत्यधिक विशाल हैं जिनका विनम्र होमर व्यवस्थित कर सकता था। वास्तव में, महाभारत अकेली ही इलियड और ओडिसी दोनों को एक साथ रखने पर भी उनसे सात गुना बड़ी है। निश्चित रूप से 'रामायण' और 'महाभारत' महान् महाकाव्य हैं-मैं
अत्यधिक खुशी के साथ याद करता हूँ कि मेरा अपना जीवन भी अत्यन्त समृद्ध हुआ जब मेरा उनसे प्रथम आमना-सामना तब हुआ जब मैं अधीर युवक के रूप में बौद्धिक सक्रियता के साथ-साथ सिर्फ मनोरंजन के लिए उन्हें खोज रहा था। लेकिन वे अपनी मुख्य कहानी के चारों ओर गुंथी हुई एक के बाद एक कहानी के रूप में आगे बढ़ते हैं और वे संवाद, दुविधा तथा स्थानापन्न परिप्रेक्ष्य से परिपूर्ण हैं । और हम जनसाधारण के तर्क और विरोधी तर्कों का सामना करते हैं जो कि लगातार बहस एवं विवादों के रूप में फैले हुए हैं।
Dialogue..............consequences are. (Page 177)
कठिन शब्दार्थ-substantive (सब्स्टै न्टिव) = fundamental, मौलिक, मूलभूत । tussle (टस्ल) = a fight, संघर्ष । peerless (पिअ(र)लेस्) = unique, अद्वितीय, अनुपम। invincible (इन्विन्सब्ल) = which cannot be defeated, जिसे पराजित न किया जा सके | usurpers (यूजप्स्) = to take by force, शक्ति से हड़प लेना। slaughter (स्लॉट्()) = to kill, मार देना। incarnation (इन्कानेश्न्) = life on earth, अवतार लेना। charioteer (चैरिअटिअ(र्)) = the driver of a vehicle pulled by horses, सारथी। articulating (आ'टिक्यलटिङ्) = good repression, कुशल अभिव्यक्ति । rely (रिलाई) = believe, विश्वास।
कृष्णा मेनन 1957 से 1962 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया था और 23 जनवरी, 1957 को भारत के कश्मीर के प्रति दृष्टिकोण के पक्ष में अभूतपूर्व नौ घण्टे का भाषण दिया था।
हिन्दी अनुवाद-संवाद और महत्त्व तर्क भी प्रायः पर्याप्त मात्रा में पूरी तरह से मौलिक होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध भगवद्गीता, जो कि महाभारत का एक छोटा सा अंश है, भी दो विपरीत नैतिक कर्त्तव्यों के बीच संघर्ष प्रस्तुत करती है-एक ओर श्रीकृष्ण का अपने कर्तव्य पालन की भावना पर जोर, और दूसरी ओर अर्जुन का दुष्प्रभावों को बचाने (और अच्छे प्रभावों को उत्पन्न करना) पर जोर देना।
यह वाद-विवाद महान युद्ध के एक दिन पहले घटित होता है जो कि महाभारत की एक मुख्य घटना है। दोनों सेनाओं को युद्ध के लिए तैयार होता हुआ देखकर अर्जुन द्वारा जो कुछ भी वे कर रहे थे, उसकी सत्यता पर गहन संदेह उठाया गया। न्यायप्रिय और सम्माननीय राजसी परिवार (पाण्डव) की सेना में अद्वितीय और अजेय योद्धा हैं जो कि अन्यायी और धोखे से राज्य हड़प लेने वालों (कौरव) के विरुद्ध युद्ध करने वाले हैं।
अर्जुन प्रश्न उठाता है कि केवल एक न्यायप्रियता का समर्थन करने के लिए क्या यह सही है कि केवल सत्यता के प्रति चिन्तित हुआ जाए और दयनीयता तथा हत्याओं के प्रति तटस्थ हुआ जाए-अपने ही सगे-सम्बन्धियों के प्रति-जिसका कि युद्ध निःसन्देह कारण बनेगा। श्रीकृष्ण जो मनुष्य के रूप में दिव्य अवतार हैं, (वास्तव में वह अर्जुन के सारथी भी हैं) अर्जुन के तर्कों का प्रतिवाद करते हैं। उनका (श्रीकृष्ण का)
प्रत्युत्तर कर्म के सिद्धान्त की कुशल अभिव्यक्ति का स्वरूप धारण कर लेता है-जो कि व्यक्ति के कार्य करने की प्राथमिकता पर आधारित है-जिनका भारतीय दर्शनशास्त्र में बार-बार वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना कर्तव्य पालन करने पर जोर देते हैं बिना उसके परिणामों का मूल्यांकन किए हुए और परिणामों के प्रति तटस्थ रहते हुए। यही एक न्यायोचित कारण है, और, एक योद्धा तथा सेनापति के रूप में उसके ऊपर अपने पक्ष का पूरा उत्तरदायित्व है, अतः अर्जुन अपने उत्तरदायित्वों से दूर नहीं हट सकता है, युद्ध का चाहे जो भी परिणाम हो।
Krishna's hallowing ................... just forward. (Page 178)
कठिन शब्दार्थ-hallowing (हैलाइङ) = running after with challenge, ललकार कर पीछा करना। treatise (ट्रीटिस) = a long formal book, विषय विशेष का वर्णन करने वाली पुस्तक। eloquently (एलक्वट्लि ) = able to express opinion, वाणी के प्रयोग में कुशल । endorsed (इन्डास्ड्) = to say publicly, सार्वजनिक तौर पर कहना। admonishment (अड्मॉनिश्मन्ट) = scold, डाँटना, फटकारना । desolation (डेसलेश्न्) = very sad, उदास, निराश । carnage (कानिज्) = mass murder, नरसंहार । gangetic (गैन्गेटिक) = related to the Ganga, गंगा नदी से सम्बन्धित। vindication (विन्डिकेश्न्) = to prove to be true, न्यायसंगत सिद्ध करना। vanquished (वैक्विश्ड) = to defeat, पराजित करना।
हिन्दी अनुवाद-श्रीकृष्ण की कर्त्तव्य के प्रति पीछा करने की माँग तर्क को जीत लेती है, कम से कम इसे धार्मिक परिप्रेक्ष्य में तो ऐसा ही देखा जाता है। वास्तव में श्रीकृष्ण का अर्जुन के साथ वार्तालाप, जो भगवद्गीता है, वह हिन्दू दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत एक महान धार्मिक ग्रन्थ बन गई है जो मुख्य रूप से अर्जुन के सन्देहों को 'दूर' करने पर केन्द्रित है। श्रीकृष्ण की नैतिक स्थिति को अनेक दार्शनिक और साहित्यिक व्यक्तियों द्वारा सार्वजनिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है जिनमें क्रिस्टोफर ईशरवुड और टी.एस. इलियट शामिल हैं ।
वास्तव में ईशरवुड ने भगवद्गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। गीता की प्रशंसा एवं सम्मान और विशेष रूप से श्रीकृष्ण के तर्क यूरोपीय संस्कृति पर लम्बे समय तक प्रभाव डालते रहेंगे। उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में Wilhelm von Humboldt द्वारा गीता की असाधारण रूप से प्रशंसा की गई जिसमें उसने गीता को "सर्वाधिक शानदार, शायद एकमात्र सत्य दार्शनिक गीत जो किसी भाषा में उपलब्ध हो" कहा। 'Four Quartets' कविता में, इलयिट ने श्रीकृष्ण के विचारों को एक चेतावनी के रूप में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है-
"और अपने कार्य के फल के बारे में बिल्कुल भी मत सोचो! केवल आगे बढ़ते रहो।" इलियट व्याख्या करता है, “विदाई नहीं बल्कि आगे बढ़ो, समुद्री यात्रियों की तरह हमेशा आगे बढ़ते रहो।" लेकिन फिर भी, एक तर्क-वितर्क में जिसमें दो तार्किक पक्ष हैं, महाभारत महाकाव्य स्वयं ही दोनों विरोधी तर्कों को अत्यधिक सावधानी और सहानुभूति के साथ कर्म के अनुसार प्रस्तुत करता है। वास्तव में, वह दुःखद निराशा जो कि युद्ध के बाद तथा नरसंहार के बाद हुआ-विस्तृत रूप में गंगा के विशाल मैदान में-महाभारत के अन्त को दिखाता हुआ प्रतीत होता है, यह सब अर्जुन गहन सन्देहों को न्यायसंगत सिद्ध करता है। अर्जुन के विरोधी तर्क वास्तव में पराजित नहीं हुए हैं, इसका कोई अन्तर नहीं आता कि भगवद्गीता का क्या 'सन्देश' है। इसमें हमेशा 'विदाई' का एक शक्तिशाली मामला बना रहेगा केवल 'आगे बढ़ने'के लिए ही नहीं।
J. Robert .... one small part. (Pages 178-179)
कठिन शब्दार्थ-nuclear (न्यूक्लिअ(र्)) = energy from central part of an atom, आण्विक ऊर्जा । explosion (इक्स्प्लोशन्) = a violent bursting, विस्फोट । justification (जस्टिफिकेशन्) = good reason, स्वीकार्य कारण। compulsion (कम्पलश्न्) = forceful, विवशता, बाध्य करना। contemporary (कन्टेम्प्ररि) = belonging to the same time, समकालीन। manifest (मैनिफेस्ट्) = to show, प्रकट करना। gruelling (ग्रूअलिङ्) = very tiring, बहुत थकाने वाला। confrontation (कॉन्फ्रन्टेशन्) = an argument, संघर्ष या विवाद। consequential (कॉन्सिक्वेन्श्ल ) = happening as a result, परिणामस्वरूप। univocal (यूनिवॅकॅल) = without doubt, असंदिग्ध । supplementation (सप्लिमन्टेश्न्) = added to something, परिशिष्ट, अनुपूरक।
हिन्दी अनुवाद-जे. रॉबर्ट ओपनहीमर जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अत्यन्त ताकतवर 'सामूहिक विनाश के हथियार' को विकसित करने वाले अमेरिकी दल के नेतृत्वकर्ता थे, वे श्रीकृष्ण के शब्दों का उद्धरण देते हुए द्रवित हो गये थे (मैं मृत्यु हूँ, इस संसार को नष्ट करने वाला) जब उन्होंने 16 जुलाई, 1945 को मनुष्य द्वारा निर्मित पहले परमाणु विस्फोट की शक्ति को देखा। उस सलाह की तरह जो अर्जुन ने एक योद्धा की तरह, जो कि न्याय के लिए लड़ रहा हो, अपने कर्त्तव्य के बारे में प्राप्त की, भौतिक विज्ञानी ओपनहीमर ने अपनी बम बनाने की तकनीकी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए और उसे न्यायोचित सिद्ध करने का आधार प्राप्त कर लिया कि कौन सा पक्ष स्पष्ट रूप से सही है।
सूक्ष्म निरीक्षण करते हुए-वास्तव में आलोचना करते हुए-अपने कार्यों की आलोचना करते हुए, ओपनहीमर ने बाद में कहा, "जब आप किसी ऐसी वस्तु को देखते हो जो तकनीकी रूप से शानदार होती है तो आप आगे बढ़ते हो और उस कार्य को करते हो और अपनी तकनीकी सफलता को प्राप्त करने के बाद आप तर्क करते हो कि इस बारे में क्या किया जाए।" 'आगे बढ़ते रहने' की अनिवार्यता के बावजूद अर्जुन की चिन्ता के प्रदर्शन का भी एक कारण था-इतने सारे लोगों की हत्या करने के बाद भी अच्छा परिणाम कैसे आ सकता है ? और मैं विजय, साम्राज्य अथवा खुशियों को केवल अपने पक्ष के लिए ही क्यों प्राप्त करने की कोशिश करूँ।
ये तर्क पूरी तरह से समकालीन संसार के लिए भी उपयुक्त हैं। कार्य करने का मामला जिसे व्यक्ति अपना कर्त्तव्य मानता है, वह अत्यन्त शक्तिशाली होना चाहिए, परन्तु हम उन परिणामों के प्रति तटस्थ कैसे रह सकते हैं जो हमारे का करने के पश्चात् उत्पन्न होंगे जिसे करना हम अपना न्यायोचित कर्त्तव्य मानते हैं ? जब हम अपने वैश्विक संसार की समस्याओं को देखते हैं (आतंकवाद युद्धों और महामारियों के कारण हिंसा, असुरक्षा और अत्यधिक गरीबी) और भारत के विशेष सन्दर्भ में (जैसे आर्थिक विकास, आण्विक संघर्ष अथवा क्षेत्रीय शान्ति) तो अर्जुन के व्याख्या के परिणामस्वरूप यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है, इसके अतिरिक्त कार्य करने के श्रीकृष्ण के तर्कों पर विचार करना भी जरूरी हो जाता है। गीता के असंदिग्ध सन्देश को महाभारत द्वारा एक विस्तृत तर्कयुक्त ज्ञान को पूरक रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जिसका कि गीता एक छोटा सा अंश है।
माध्यमिक के छात्र के रूप में, जब मैंने अपने संस्कृत के अध्यापक से पूछा कि क्या यह कहने की अनुमति है कि दिव्य श्रीकृष्ण एक अपूर्ण और न समझाने योग्य तर्क देकर चले गये, तो उसने उत्तर दिया, "हो सकता है कि तुम ऐसा कह सकते हो परन्तु तुम्हें ऐसा पर्याप्त सम्मान के साथ कहना चाहिए।" मैंने कहीं दूसरी जगह आलोचना प्रस्तुत की-मैं पर्याप्त सम्मान के साथ आशा करता हूँ- श्रीकृष्ण के धर्मशास्त्र को अर्जुन के परिणामात्मक परिप्रेक्ष्य के पक्ष में रहते हुए, 'Consequential Evaluation and Practical Reason' दर्शनशास्त्र का शोध पत्र-97 (Sept. 2000).
Gender, Caste .....elected in 1933. (Page 180)
कठिन शब्दार्थ-disputations (डिस्प्यू टेश्न्) = a disagreement, विवाद, झगड़ा। confined (कन्फाइन्ड्) = very small, बहुत छोटा, सीमित। exclusive (इक्स्क्लू सिव्) = in a broader range, विस्तृत रूप से। elite (एलीट) = an important section of society because of power and money, शक्ति और धन के कारण समाज का महत्त्वपूर्ण वर्ग । segments (सेगमन्ट्स्) = a section, भाग ।
community (कम्यूनटि) = people of a particular place or area, किसी विशेष स्थान के लोग। relevance (रेलवन्स्) = important and useful, प्रासंगिक। roost (रूस्ट) = a place for birds to rest, पक्षियों का बसेरा । pursuits (पस्यूट्स्) = try to achieve, प्राप्त करने की कोशिश करना negligible (नेप्लिजब्ल) = unimportant, नगण्य । revolutionary (रेवलूशनरि) = great changes, क्रान्तिकारी।
हिन्दी अनुवाद-लिंग, जाति और आवाज लेकिन फिर भी पूछे जाने के लिए एक गम्भीर प्रश्न है कि क्या तर्क और मतभेदों की परम्परा को भारतीय जनता के एक महत्त्वपूर्ण वर्ग तक सीमित कर दिया गया है-शायद शक्ति और धन सम्पन्न पुरुष वर्ग के सदस्यों के लिए। वास्तव में, यह आशा करना अत्यन्त कठिन है कि तर्कयुक्त सहभागिता को जनता के सभी भागों में एक रूप से विभाजित किया जाये, क्योंकि भारत में लिंग, वर्ग, जाति और समुदाय के आधार
(जो कि वर्तमान समय में और ज्यादा है) पर अत्यन्त गहन असमानता है। तर्कयुक्त परम्परा की सामाजिक उपादेयता गम्भीर रूप से सीमित हो जाएगी यदि लाभ न प्राप्त करने वाले वर्गों को इस सहभागिता से वंचित कर दिया गया। लेकिन फिर भी यह कहानी यहाँ पर अत्यन्त जटिल है उससे ज्यादा जितना कि साधारण सामान्यीकरण प्राप्त कर सकता है।
मैं लिंग से शुरू करता हूँ। इसमें थोड़ा सा सन्देह हो सकता है कि भारत में पुरुष वर्ग ने तार्किक क्षेत्र में विस्तृत रूप से घुसपैठ कर ली है। परन्तु इस सबके बावजूद महिलाओं की राजनैतिक मार्गदर्शन तथा बौद्धिक उपलब्धि में नगण्य नहीं किया गया है। आज यह विशेष रूप से राजनीति में पूरी तरह से स्पष्ट है। वास्तव में, भारत में बुहत से मुख्य भूमिका में जो राजनीतिक दल हैं-राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल-उनका वर्तमान में महिलाओं द्वारा नेतृत्व किया जा रहा है और भूतकाल में भी इस प्रकार का नेतृत्व किया गया था।
लेकिन कांग्रेस दल के नेतृत्व द्वारा भारतीय स्वतन्त्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में भी चीन और रूस दोनों की क्रान्तियों को एक साथ रखने से भी ज्यादा भारत में महिलाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। शायद यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष सरोजनी नायडू का चयन 1925 में हुआ था जो ब्रिटेन की एक प्रमुख राजनीतिक दल की प्रथम महिला नेता (मार्गरेट थैचर 1975 में) के चुनाव से पचास वर्ष पूर्व हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की द्वितीय महिला अध्यक्षा नेली सेनगुप्ता का चुनाव 1933 में हुआ था।
Earlier or later ..............nature of God'. (Page 181)
कठिन शब्दार्थ-vocal (वोक्ल) = related with the voice, स्वर से सम्बन्धित। celebrated (सेलिब्रेटिड्) = famous, प्रसिद्ध। interlocutors (इन्टलॉक्यट()) = a person talking to the other on behalf of somebody else, किसी अन्य संगठन की ओर से बात करने वाला व्यक्ति।
कांग्रेस दल की अध्यक्षता किसी भी तरह से केवल औपचारिक नहीं थी। वास्तव में, सुभाषचन्द्र बोस के चयन ने (लगातार बढ़ते हुए और शक्ति अर्जित करते हुए व्यक्ति के अन्दर देशभक्ति की ज्वाला प्रकट करते हुए-जो ब्रिटिश राज की प्रतिरोधक थी) 1938 एवं 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में दल में आन्तरिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर दी और मोहनदास गाँधी बोस को बाहर करने के लिए अथक प्रयास करते रहे।
यह सुरक्षित था-पूर्ण रूप से सामाजिक आचरण अथवा आकर्षण विहीन नहीं-बोस के अध्यक्षीय भाषण के थोड़े समय बाद जिसमें उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों से एक कठोर 'निश्चित समय सीमा' में भारत को छोड़ने अथवा कम अहिंसात्मक विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए कहा, कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका दल को दिशा निर्देश देने में महत्त्वपूर्ण रही है। 2004 के आम चुनावों में, जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में विजयी होकर आई तो उसने भी उसी स्थिति में रहने का निश्चय किया बजाय प्रधानमंत्री बनने के।
Gender, Caste .....elected in 1933. (Page 180)
कठिन शब्दार्थ-disputations (डिस्प्यू टेश्न्) = a disagreement, विवाद, झगड़ा। confined (कन्फाइन्ड्) = very small, बहुत छोटा, सीमित। exclusive (इक्स्क्लू सिव्) = in a broader range, विस्तृत रूप से। elite (एलीट) = an important section of society because of power and money, शक्ति और धन के कारण समाज का महत्त्वपूर्ण वर्ग । segments (सेगमन्ट्स्) = a section, भाग । community
(कम्यूनटि) = people of a particular place or area, किसी विशेष स्थान के लोग। relevance (रेलवन्स्) = important and useful, प्रासंगिक। roost (रूस्ट) = a place for birds to rest, पक्षियों का बसेरा । pursuits (पस्यूट्स्) = try to achieve, प्राप्त करने की कोशिश करना negligible (नेप्लिजब्ल) = unimportant, नगण्य । revolutionary (रेवलूशनरि) = great changes, क्रान्तिकारी।
हिन्दी अनुवाद-लिंग, जाति और आवाज लेकिन फिर भी पूछे जाने के लिए एक गम्भीर प्रश्न है कि क्या तर्क और मतभेदों की परम्परा को भारतीय जनता के एक महत्त्वपूर्ण वर्ग तक सीमित कर दिया गया है-शायद शक्ति और धन सम्पन्न पुरुष वर्ग के सदस्यों के लिए। वास्तव में, यह आशा करना अत्यन्त कठिन है कि तर्कयुक्त सहभागिता को जनता के सभी भागों में एक रूप से विभाजित किया जाये, क्योंकि भारत में लिंग, वर्ग, जाति और समुदाय के आधार
(जो कि वर्तमान समय में और ज्यादा है) पर अत्यन्त गहन असमानता है। तर्कयुक्त परम्परा की सामाजिक उपादेयता गम्भीर रूप से सीमित हो जाएगी यदि लाभ न प्राप्त करने वाले वर्गों को इस सहभागिता से वंचित कर दिया गया। लेकिन फिर भी यह कहानी यहाँ पर अत्यन्त जटिल है उससे ज्यादा जितना कि साधारण सामान्यीकरण प्राप्त कर सकता है।
मैं लिंग से शुरू करता हूँ। इसमें थोड़ा सा सन्देह हो सकता है कि भारत में पुरुष वर्ग ने तार्किक क्षेत्र में विस्तृत रूप से घुसपैठ कर ली है। परन्तु इस सबके बावजूद महिलाओं की राजनैतिक मार्गदर्शन तथा बौद्धिक उपलब्धि में नगण्य नहीं किया गया है। आज यह विशेष रूप से राजनीति में पूरी तरह से स्पष्ट है। वास्तव में, भारत में बुहत से मुख्य भूमिका में जो राजनीतिक दल हैं-राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल-उनका वर्तमान में महिलाओं द्वारा नेतृत्व किया जा रहा है और भूतकाल में भी इस प्रकार का नेतृत्व किया गया था।
लेकिन कांग्रेस दल के नेतृत्व द्वारा भारतीय स्वतन्त्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में भी चीन और रूस दोनों की क्रान्तियों को एक साथ रखने से भी ज्यादा भारत में महिलाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। शायद यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष सरोजनी नायडू का चयन 1925 में हुआ था जो ब्रिटेन की एक प्रमुख राजनीतिक दल की प्रथम महिला नेता (मार्गरेट थैचर 1975 में)* के चुनाव से पचास वर्ष पूर्व हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की द्वितीय महिला अध्यक्षा नेली सेनगुप्ता का चुनाव 1933 में हुआ था।
Earlier or later .............nature of God'. (Page 181)
कठिन शब्दार्थ-vocal (वोक्ल) = related with the voice, स्वर से सम्बन्धित। celebrated (सेलिब्रेटिड्) = famous, प्रसिद्ध। interlocutors (इन्टलॉक्यट()) = a person talking to the other on behalf of somebody else, किसी अन्य संगठन की ओर से बात करने वाला व्यक्ति।
कांग्रेस दल की अध्यक्षता किसी भी तरह से केवल औपचारिक नहीं थी। वास्तव में, सुभाषचन्द्र बोस के चयन ने (लगातार बढ़ते हुए और शक्ति अर्जित करते हुए व्यक्ति के अन्दर देशभक्ति की ज्वाला प्रकट करते हुए-जो ब्रिटिश राज की प्रतिरोधक थी) 1938 एवं 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में दल में आन्तरिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर दी और मोहनदास गाँधी बोस को बाहर करने के लिए अथक प्रयास करते रहे।
यह सुरक्षित था-पूर्ण रूप से सामाजिक आचरण अथवा आकर्षण विहीन नहीं-बोस के अध्यक्षीय भाषण के थोड़े समय बाद जिसमें उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों से एक कठोर 'निश्चित समय सीमा' में भारत को छोड़ने अथवा कम अहिंसात्मक विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए कहा, कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका दल को दिशा निर्देश देने में महत्त्वपूर्ण रही है। 2004 के आम चुनावों में, जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में विजयी होकर आई तो उसने भी उसी स्थिति में रहने का निश्चय किया बजाय प्रधानमंत्री बनने के।
dialectical (डाइअलेक्टक्ल ) = language of a particular area, किसी विशेष क्षेत्र की भाषा। combat (कॉम्बैट्) = a fight, संघर्ष, द्वन्द्व। interrogation (इन्टेरगेश्न्) = to ask questions, पूछताछ । fray (फ्रे) = annoy, नाराज। venerable (वेनरब्ल) = respected, आदरणीय । expounding (इक्सपाउन्डिङ्) = a systematic explanation, व्यवस्थित व्याख्या।
हिन्दी अनुवाद-चाहे पहले की बात हो या बाद की, ये विकसित अवस्थाएँ तुलनात्मक रूप से वर्तमान समय के ही उत्पाद हैं । लेकिन सुदूर भूतकाल के बारे में क्या? बहस अथवा वार्तालाप में महिलाओं की परम्परागत भूमिका भारत में पुरुषों की तुलना में निश्चित रूप से अत्यन्त अल्प बताई गई है
(जैसा कि विश्व के अधिकतर देशों के साथ भी सत्य है)। लेकिन यह सोचना एक गलती होगी कि महिलाओं के द्वारा वाणीगत नेतृत्व प्रत्येक स्थिति में कमजोर रहा है जो कि भारत के भूतकाल में हुआ है। वास्तव में, यदि हम प्राचीन भारत के सम्पूर्ण रूप में वापस जाएँ तो पायेंगे कि सबसे ज्यादा प्रसिद्ध संवादों में जिनमें कुछ संवादों में महिलाएँ शामिल हैं, के सबसे ज्यादा तीक्ष्ण प्रश्न महिला वार्ताकारों के द्वारा पूछे गये। इसे यहाँ तक कि उपनिषदों में भी पहचाना जा सकता है-भाषायी प्रबन्ध जो कि ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी से लिखे गये और जिन्हें प्रायः हिन्दू दर्शनशास्त्र की आधारशिला माना जाता है।
उदाहरण के लिए, बृहदारण्यक उपनिषद में हमें प्रसिद्ध 'तार्किक संघर्ष' के बारे में बताया गया है जिसमें याज्ञवल्क्य, एक असाधारण विद्वान और अध्यापक, को पण्डितों की एक सभा द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सामना करना पड़ा, और इसमें गार्गी नाम की विदुषी महिला थी, जिसने अपनी प्रखर बुद्धि से बौद्धिक प्रश्नों के उत्तर दिये । वह इस संघर्ष में बिना किसी विशेष संकोच के प्रवेश करती है-सम्माननीय ब्राह्मणों! आपकी अनुमति से मैं उनसे केवल दो प्रश्न ही पूछूगी। यदि वह मेरे प्रश्नों के उत्तर देने में समर्थ हो जायेंगे, तो तब आप में से कोई भी उन्हें ईश्वर की प्रकृति की व्याख्या के बारे में कभी भी पराजित नहीं कर सकोगे।
Even though Gargi, ............... become immortal?' (Pages 181-182)
कठिन शब्दार्थ-pedagogue (पेडगॉग्) = a teacher, एक शिक्षक । valiantly (वैलिअलि ) = full of courage, साहसपूर्वक। mutineers (म्यूटिनिअ()) = revolutionary, विद्रोही। imagery (इमिजरि) = a word picture, शब्द चित्र । penitrating (पेनिट्रेटिङ्) = piercing, चुभने वाला। approaches (अप्रोच्ज्) = to come near, और पास आना । substantive (सब्स्टे न्टिव्) = प्राचीन, मौलिक। predicament (प्रिडिकमन्ट) = condition, हालत, दुर्दशा।।
हिन्दी अनुवाद-यद्यपि गार्गी एक बुद्धिजीवी और शिक्षक के रूप में, एक सेना की नेतृत्वकर्ता नहीं थीं (उदाहरणस्वरूप झांसी की रानी के रूप में एक दूसरी वीरांगना-जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में 'क्रान्तिकारियों' के साथ बहादुरी से लड़ी-जैसा कि एन्टोनिओ फ्रेजर ने वर्णन किया है, वह संसार की 'योद्धा रानियों में से एक थीं) उसका शब्द चित्र आश्चर्यजनक रूप से योद्धा जैसा है- "याज्ञवल्क्य, मेरे पास तुमसे पूछने के लिए दो प्रश्न हैं।
विदेह और काशी (बनारस) के शासक के रूप में, जो कि योद्धाओं की श्रृंखला से आते हैं, वह अपने बिना प्रत्यंचा के धनुष के साथ हाथ में दो तीक्ष्ण बाण लेकर अपने दुश्मन के पास पहुँचते हैं, ठीक उसी प्रकार मैं दो प्रश्नों के साथ तुम्हारे पास आई हूँ जिनके आपको उत्तर देने हैं।" यद्यपि याज्ञवल्क्य गार्गी को अपने उत्तरों से संतुष्ट करने की कोशिश करता है (मैं इस आदान-प्रदान के धार्मिक गुणों का परीक्षण करने में सक्षम नहीं हूँ और मैं उनके वार्तालाप की मौलिक विषयवस्तु पर अपनी प्रतिक्रिया देने से स्वयं को रोकूँगा)।
गार्गी इस बात को शानदार तरीके से स्वीकार करती है, लेकिन फिर से बिना किसी अनावश्यक विनम्रता के कहती है-"आदरणीय ब्राह्मण, यदि आप उसके सामने झुककर जा सकें तो इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में मानना चाहिए। निश्चित रूप से, आप में से कोई भी ईश्वर की प्रकृति की व्याख्या करने में कभी भी पराजित नहीं कर सकते हैं।" अत्यन्त रोचक तरीके से, याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी ने अत्यन्त गहनता से महत्त्वपूर्ण प्रेरणादायक प्रश्न उठाये जिस समय वे दोनों मानवीय जीवन की समस्या और दुर्दशा के सन्दर्भ में धन की पहुँच के बारे में वार्तालाप कर रहे थे, विशेष रूप से कि धन हमारे लिए क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है।
मैत्रेयी को आश्चर्य होता है कि क्या यह मामला हो सकता है कि यदि 'सम्पूर्ण पृथ्वी, धन से समृद्ध' उसकी होती तो क्या वह इससे अमरता को प्राप्त कर सकती थी। 'नहीं' याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, "धनी लोगों की तरह ही तुम्हारा भी जीवन होगा। लेकिन धन के द्वारा अमरता की कोई आशा नहीं है।" मैत्रेयी प्रतिक्रिया देती है-"मैं उस सम्पूर्ण धन का क्या करूँ जिसके द्वारा मैं अमर भी नहीं हो सकती हूँ।"
Maitreyi's rhetorical ................ Draupadi. (Pages 182-183) anfor greate-rhetorical = a question that does not expect an answer, ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर अपेक्षित नहीं है, अभिव्यक्ति की शोभा । capabilities (केपबिलटि) = capacity, योग्यता, क्षमता | opulence (ऑपयलन्स्) = decorated with expensive material, भव्य, शानदार। linkage (लिन्के) = struck, संयोजन। transcendental (ट्रैन्सेन्ड्न्ट्ल ) = beyond normal human experience, तर्क या समझ से परे। relevance (रेलवन्स्) = appropriate, प्रासंगिक। classical (क्लैसिक्ल) = serious, गम्भीर व कालजयी, शास्त्रीय । reluctant (रिलक्टन्ट) = not wanting to do, अनिच्छुक। eloquant (एलक्वन्ट्) = effective, वाक्चातुर्य, प्रभावशाली। instigator (इन्स्टिगेट्(र)) = to make start, उकसाना।।
हिन्दी अनुवाद-मैत्रेयी के अभिव्यक्ति की शोभायुक्त प्रश्नों को मानवीय दुर्दशा की प्रकृति और भौतिक संसार की सीमाओं दोनों को ही प्रदर्शित करने के लिए भारतीय धार्मिक दर्शनशास्त्र का बार-बार उद्धरण दिया गया है। लेकिन इस आदान-प्रदान का एक दूसरा भी पक्ष है जो कि कुछ तरह से, और ज्यादा रोचक है। इसमें आय और उपलब्धि के बीच, वे वस्तुएँ जो हम खरीदते हैं और वास्तविक क्षमताएँ जिनका हम आनन्द उठाते हैं, के बीच, हमारी आर्थिक समृद्धि एवं हमारी रहने की योग्यता जिस तरह से हम रहना चाहें के बीच के सम्बन्ध और दूरी की भावना शामिल है।
* जबकि भव्यता और हमारी उपलब्धि की योग्यता, जिसे हम महत्त्व देते हैं, के बीच जो सम्बन्ध है उनके बीच का सम्बन्ध अत्यधिक घनिष्ठ हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। मैत्रेयी की सांसारिक चिन्ताएँ तर्क से परे प्रासंगिक हो सकती हैं (जैसा कि भारतीय धार्मिक विवेचकों ने कई शताब्दियों से विवेचन किया है) लेकिन साथ ही निश्चित रूप से उनकी सांसारिक रुचि रही है। यदि हमारी सोच लम्बे जीवन और ठीक प्रकार के जीवन की स्वतन्त्रता पर है तो हमारा ध्यान सीधे जीवन और मृत्यु पर केन्द्रित होना चाहिए, और केवल धन और आर्थिक समृद्धि पर नहीं।
महाकाव्यों और शास्त्रीय कहानियों में अथवा लिखे गये इतिहास में महिला प्रवक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किये गये तर्क हमेशा कोमल और शान्ति-प्रेम की छवि के साथ तर्कसंगत नहीं होते हैं जो कि प्रायः महिलाओं को ही दिया जाता है। महाभारत की महाकाव्य कहानी में, आदर्शवादी राजा युधिष्ठिर, जो कि रक्तरंजित युद्ध में शामिल होने के अनिच्छुक थे, और उसे राजगद्दी को हड़पने वालों के विरुद्ध उचित नाराजगी के साथ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसमें सबसे प्रभावशाली उकसाने वाली उसकी पत्नी द्रौपदी है।
In the sixth ............... unconcealed derision). (Page 183)
कठिन शब्दार्थ-verson (वश्न्) = the same basic thing but presented in a different way, रूपान्तर। rutting (रटिङ्) = a line from wheel, excited पहिये की लकीर, कामोत्तेजना। forbearance (फॉबेअ(र)न्स्) = patient and sympathetic, आत्मसंयम, सहिष्णुता। royalty (रॉइअल्टि) = members of a royal family, राजपरिवार के सदस्य । embrace (इम्ब्रेस्) = to put. arms around, आलिंगन करना। derision (डिरिशन्) = mock, उपहास।
हिन्दी अनुवाद-इस संवाद के छठवीं शताब्दी के संस्करण में, जिसे भारवि द्वारा लिखित किरातार्जुनीय में प्रस्तुत किया गया है, द्रौपदी इस प्रकार कहती है मैत्रेयी का मुख्य प्रश्न (मैं उसका क्या करूँ जिसके द्वारा मैं अमर नहीं हो सकती?) मेरे लिए उन्नति की समझ की व्याख्या करने और अभिप्रेरित करने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था, जो जी.एन.पी. अथवा जी.डी.पी. द्वारा विकास को जानने के लिए परजीवी नहीं है-मेरे 'विकास स्वतन्त्रता के रूप' को देखें (New York: Knopf, and Oxford : ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1999), p. I.
एक महिला के लिए आप जैसे व्यक्ति को सलाह देना
लगभग एक अपमान है।
लेकिन फिर भी, मेरी गहन समस्याएँ मुझे बाध्य कर रही हैं,
स्त्रीत्व के व्यवहार की सीमाओं को लाँघने के लिए
और यह मुझसे बुलवा रहा है।
तुम्हारी जाति के राजाओं ने, जो इन्द्र के समान बहादुर हैं,
पृथ्वी पर एक लम्बे समय तक शासन किया है,
बिना किसी अवरोध के, लेकिन अब अपने स्वयं के हाथ से ही तुमने उसे अब दूर फेंक दिया है,
एक उत्तेजनापूर्ण हाथी के समान जो तोड़ देता है,
अपनी ही फूलमाला को अपनी सूंड से.........
यदि आप साहसिक कार्यों का बहिष्कार करते हो,
और आत्म संयम को भविष्य की खुशियों का पथ देखते हो,
तो अपने धनुष को दूर फेंक दो, जो कि राजपरिवार के सदस्य होने का प्रतीक है,
अपने बालों में गाँठें बाँध लो यहीं पर ठहरो और पवित्र अग्नि में आहुतियाँ दो!
यह देखना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है कि अर्जुन-कृष्ण के इस वाद-विवाद
में द्रौपदी किस पक्ष में थी, जो कि बाद में ठीक इसी क्रम में ये घटनाएँ घटित होती हैं, जिस समय तक युधिष्ठिर लड़ाई लड़ने के लिए अपना चयन कर चुका होता है (एक स्थानीय संन्यासी के जीवन का आलिंगन करने के स्थान पर, जो कि मजाक बनाते हुए उसकी पत्नी ने उसे अपनाने के लिए कहा था, वह खुले तौर पर उपहास का पात्र बनता है)।
If it is important ............................possibly provide. (Pages 183-184)
कठिन शब्दार्थ-encounters (इन्काउन्ट) = danger difficulty, खतरा, कठिनाई। orthodoxy (ऑथडॉक्स्)ि = traditional beliefs, पुरातनपंथी, कट्टर। protesters (प्रटेस्ट्(र)स) = doing opposite, विरोध करने वाला। affluent (ऐफ्लुअन्ट्) = having a lot of money, समृद्ध। dominated (डॉमिनेटड्) = more powerful, अधिक प्रभावशाली। underprivileged (अन्ड 'प्रिवलिस्ड्) = having less money and rights, शोषित ।
rebellious (रिबेल्यस्) = to violate rules, अवज्ञा करने वाला। levelling (लेव्लिङ्) = equal surface, समतल। exalted (इग्जॉल्ट्ड् ) = to rise, उन्नत। substantial (सब्स्टैन्श्ल ) = large amount, बड़ी मात्रा। expositions (इक्स्पोजिश्न्) = explanation, विवरण। hierarchy (हाइअराकि) = lowest to the highest level, उत्तराधिकार | sceptical (स्केप्टिक्ल) = incredible, अविश्वासपूर्ण। monolithic (मॉनलिथिक्) = a large single standing block of stone, एक ही पत्थर से बना बड़ा खम्भा।
हिन्दी अनुवाद-यदि भारतीय तार्किक परम्परा को मनुष्यों के विस्तृत संरक्षण के रूप न देखना महत्त्वपूर्ण है तो यह भी समझना आवश्यक है कि तार्किक शास्त्रार्थ भी सामान्य रूप से वर्ग और जाति के बन्धनों को पार करते रहे हैं। वास्तव में, धार्मिक कट्टरता को चुनौती भी प्रायः सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों के प्रवक्ताओं की ओर से आती है।
वास्तव में यह हानि एक तुलनात्मक अवधारणा है। जब ब्राह्मणों की कट्टरता प्राचीन भारत में दूसरे समूहों के सदस्यों द्वारा विवादित हो गई (जिनमें व्यापारी और शिल्पकार शामिल थे) तो यह तथ्य कि विरोधी प्रायः अत्यधिक धनी थे, इस तथ्य से ध्यान भंग नहीं करने चाहिए कि, ब्राह्मणों द्वारा अधिकार युक्त कट्टरता के सन्दर्भ में, वे वास्तव में विशेष रूप से शोषित थे। इसे, विशेष रूप में, भारत में बौद्ध धर्म के तीव्र प्रसार में वर्ग आधारित महत्त्व को विशेष रूप से समझना जरूरी है। धर्मगुरु वर्ग की श्रेष्ठता को कम मानने की प्रवृत्ति ने इन प्रारम्भिक विरोधी धार्मिक आन्दोलनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाई, जिनमें जैन और बौद्ध शामिल थे। इसमें एक 'समान गुण' भी शामिल था जो न केवल मानवीय गुणों के सन्देश में दिखाई देता है, जिनके लिए ये आन्दोलन खड़े हुए, बल्कि ये तर्क की प्रकृति में भी शामिल हैं जिनका प्रयोग अति उच्च स्थानों पर स्थापित उन लोगों के श्रेष्ठता के दावों को भी कम महत्त्वपूर्ण बनाने में किया जाता है। प्रारम्भिक बौद्ध और जैन साहित्य में बड़े भाग में विरोध और प्रतिरोध का विवरण प्राप्त होता है।
जाति विभाजन के विरुद्ध आन्दोलन जो कि भारतीय इतिहास में बार-बार दिखाई दिये, जिन्हें विभिन्न स्तर की सफलता भी प्राप्त हुई है, उन्होंने कट्टर विश्वासों पर प्रश्न पूछने में तार्किक रूप से भरपूर उपयोग किया है। इनमें से अनेकों विरोधी तर्कों को महाकाव्यों में शामिल किया गया है, जो संकेत देते हैं कि उत्तराधिकार का विरोध जाति व्यवस्था के प्रारम्भिक दिनों में भी अनुपस्थित नहीं था।
हम नहीं जानते हैं कि वे लेखक जिनके प्रति अविश्वासपूर्ण तर्क दिये गये, वे इन व्यक्त किये गये सन्देहों के वास्तविक रचनाकार थे अथवा पहले से ही स्थापित प्रश्नों के विवरण के मात्र वाहक थे, परन्तु महाकाव्यों में असमानता विरोधी तर्कों की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति के साथ-साथ अन्य शास्त्रीय दस्तावेज हमें तार्किक परम्परा में पहुँचने की सम्पूर्ण अन्तर्दृष्टि प्रदान करते हैं बजाय 'हिन्दू दृष्टिकोण' के तथाकथित एकमात्र विवरण के जो आसानी से उपलब्ध कर सकता है।
For example,......... among others. (Pages 184 -185)
कठिन शब्दार्थ-Responds (रिस्पॉन्ड्स् ) = to answer, उत्तर देना । variations (वेअरिएशन्) = change or difference, परिवर्तन अथवा अन्तर। genealogical (जीनिऑलजिकल) = study of family history, पारिवारिक इतिहास का अध्ययन । obliterated (अब्लिट्रेटेड्) = to remove all signs, सभी चिह्नों को मिटा देना। mystical (मिस्टिक्ल) = strange and wonderful, विचित्र और आश्चर्यजनक । exponents (इक्स्पोनन्ट्) = able to perform, अतिनिपुण व्यक्ति। egalitarianism (इगैलिटेअरिअनिज्म) = principle of equal rights, समानतावाद। disparate (डिस्परट्) = different in character or quality, आचरण और गुण में भिन्न। heretical (हेरटिक्ल) = not following beliefs, विधर्मी।
हिन्दी अनुवाद-उदाहरण के लिए, जब, महाभारत में, भृगु भारद्वाज को बताते हैं कि जाति विभाजन विभिन्न मनुष्यों में शारीरिक गुणों में अन्तर, जो कि उनकी त्वचा के रंग से दिखाई देता है, के कारण होता है, तो भारद्वाज न केवल प्रत्येक जाति में त्वचा के विभिन्न रंगों के महत्त्व की ओर इशारा करते हुए उत्तर देते हैं
(यदि विभिन्न रंग विभिन्न जातियों की ओर इशारा करते हैं, तो सभी जातियाँ मिश्रित जातियाँ होती हैं), बल्कि और ज्यादा गहन प्रश्न पूछते हैं-"हम सभी इच्छा, क्रोध, भय, दुःख, चिन्ता, भूख और श्रम से प्रभावित प्रतीत होते हैं, फिर हमारे बीच जाति की भिन्नता किस प्रकार हो सकती है?" एक दूसरे प्राचीन ग्रन्थ 'भविष्य पुराण' में भी वंशानुगत अविश्वास व्यक्त किया गया है-"क्योंकि चारों जातियों के लोग ईश्वर की ही सन्तान हैं, इसलिए वे सभी एक ही जाति के हैं।
सभी मनुष्यों के पिता एक ही हैं और एक ही पिता की सन्तान में अलग-अलग जातियाँ नहीं हो सकती हैं।" इन सन्देहों पर एक दिन में विजय प्राप्त नहीं की जा सकती है लेकिन विभिन्न दृष्टिकोणों के बीच तर्क-वितर्क के शास्त्रीय सम्बन्धों को मिटाया नहीं जा सकता है।
काफी बाद के समय को देखने के लिए, 'मध्यकालीन रहस्यवादी कवियों' की परम्परा जो पन्द्रहवीं शताब्दी तक ठीक प्रकार से स्थापित हो गयी थी, जिनमें अति कुशाग्र व्यक्ति शामिल थे, जो हिन्दुओं के भक्ति आन्दोलन के समानतावाद तथा मुस्लिम सूफियों दोनों से ही अत्यधिक प्रभावित थे, और उनका सामाजिक बन्धनों का पूरी तरह से बहिष्कार जाति और वर्ग के वर्गीकरण से सम्बन्धित तर्कों को तीव्र रूप से बाहर लाते हैं।
इनमें से बहुत से कवि अत्यन्त साधारण आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमियों से आये, और सामाजिक विखण्डन के साथ-साथ भिन्न धार्मिक बन्धनों पर उनके प्रश्न पूछने के द्वारा इन बनावटी प्रतिबन्धों की उपयोगिता से इन्कार के लिए गहन प्रयास दृष्टिगत हुए हैं। यह एक शानदार बात है कि विरोधी दृष्टिकोण रखने वाले अनेकों विद्वान श्रमिक वर्ग में से आये-कबीर, शायद उनमें सबसे महान
कवि, एक जुलाहा थे, दादू रुई इकट्ठा करने वाले थे, रविदास जूते बनाने वाले थे, सेना एक नाई थे और इसी प्रकार और भी लोग थे।* साथ ही इन आन्दोलनों के बहुत से उभरते हुए महान व्यक्तित्व महिलाएँ थीं, जिनमें वास्तव में प्रसिद्ध मीराबाई भी शामिल हैं (जिनके गीत चार सौ साल बाद आज भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं)। साथ ही अन्दल, दया-बाई, सहजो-बाई और क्षेमा अन्य महान व्यक्तित्वों में शामिल हैं।
In dealing with .................secular priorities. (Pages 185-186)
कठिन शब्दार्थ-Contribution (कॉन्ट्रिब्यूशन्) = something that you give, योगदान । inequities (इन्एक्विटिज्) = lack of fairness, निष्पक्षता का अभाव । tutored (ट्यूटड्) = one who teaches, शिक्षक। dispossessed (डिसपजेज्ड्) = lack of security, सुरक्षा का अभाव । substantive (सब्स्टे न्टिव्) = original, मूलभूत । heterodoxy (हेटेरोडॉक्सी ) = against customs and traditions, परम्परा विरोधी । persistent (पसिस्टन्ट्) = determined, दृढ़ संकल्प । emergence (इमन्स ) = to appear, प्रकटन । priorities (प्राइऑरटिज्) = most important, प्राथमिकता।
हिन्दी अनुवाद-समकालीन असमानता की समस्या का सामना करते हुए, तर्कयुक्त परम्परा की प्रासंगिकता और पहुँच का उस योगदान के सन्दर्भ में परीक्षण किया जाना चाहिए जो इन पक्षपातपूर्ण बातों का विरोध कर सके और कम मूल्यांकन कर सके जो कि समकालीन भारतीय समाज की अत्यधिक विशेषताएँ हैं।
उस सन्दर्भ में यह मान लेना एक बहुत बड़ी गलती होगी कि अच्छी तरह शिक्षित किये गये सम्भावित प्रभावपूर्णता और सन्तुलित तर्कों के कारण सामान्य रूप से तर्कयुक्त परम्परा अधिकार सम्पन्न और सुशिक्षित व्यक्तियों का पक्ष ले बजाय उनके जो लोग सुरक्षा के अभाव और वंचित रूप से रह रहे हैं। वास्तव में, भारतीय बौद्धिक इतिहास के सर्वाधिक शक्तिशाली तर्कों में से कुछ सबसे कम अधिकार सम्पन्न समूहों के बारे में रहे हैं, जो कि इन दावों की मूलभूत शक्ति द्वारा प्रयोग किये गये हैं बजाय सुशिक्षित भाषा ज्ञानयुक्त विकसित बुद्धि चातुर्य पर प्रयोग करने के।
जनता के तर्कों के रूप में लोकतन्त्र क्या तार्किक परम्परा की समृद्धि आज उपमहाद्वीप के जीवन में बहुत बड़ा अन्तर प्रस्तुत करती है ? मैं तर्क दूँगा कि यह करती है, और अनेकों विभिन्न प्रकारों से। यह हमारे सामाजिक संसार और संस्कृति की प्रकृति को सजाती और संवारती है। यह भारत में कार्यों की स्वाभाविक स्थिति को परम्परा विरोधी बनाने में सहायता प्रदान करता है; दृढ़ संकल्पित तर्क हमारे सार्वजनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण अंश हैं। यह भारतीय राजनीति को अत्यन्त गहराई से प्रभावित करता है, और मैं तर्क देता हूँ कि यह भारतीय लोकतन्त्र के विकास और धर्मनिरपेक्ष प्राथमिकताओं के प्रकटीकरण के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है।
The historical roots....................also to preserve. (Pages 186-187)
कठिन शब्दार्थ-Roots (रूट्स्) = underground part of a tree, जड़। temptation (टेम्प्टेश्न्) = greed, प्रलोभन, लालच । globe (ग्लोब्) = the earth, पृथ्वी । toleration (टॉलरेश्न्) = to endure, सहनशीलता। resolutely (रेजलूट्लि ) = great determination, दृढ़तापूर्वक । pitfalls (पिट्फॉल्स) = a danger or difficulty, खतरा। interactive (इन्टरऐक्टिव) = work and influence of each other, एक-दूसरे से सम्बन्धित।
हिन्दी अनुवाद-भारत में लोकतन्त्र की ऐतिहासिक जड़ें विचार करने योग्य हैं, केवल इसलिए कि सार्वजनिक तर्क के सम्बन्ध को प्रायः लोकतन्त्र के लिए भारतीय विश्वसनीयता के सन्दर्भ में याद किया जाए ताकि ब्रिटिश प्रभाव को साधारण रूप में याद किया जा सके (इस तथ्य के बावजूद कि इस तरह का प्रभाव लगभग एक सौ अन्य देशों पर भी प्रभाव डाल चुका था जिनका उदय एक ऐसे साम्राज्य में हुआ जिसका सूर्य कभी डूबता नहीं था)।
यह मामला, फिर भी, केवल भारत पर लागू नहीं होता है; सामान्य रूप से, सार्वजनिक तर्क की परम्परा सम्पूर्ण पृथ्वी पर लोकतन्त्र की जड़ों से अत्यन्त घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इस पर क्षिति मोहन सेन को देखिए, भारत का मध्यकालीन रहस्यवाद जिसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने आगे बढ़ाया, बंगाली से मनमोहन घोष द्वारा अनुवादित (London: Luzac, 1930).
लेकिन क्योंकि भारत सार्वजनिक तर्कों की परम्परा को बनाये रखने में विशेष रूप से सौभाग्यशाली रहा है, परम्परा विरोधी बौद्धिकता के प्रति सहिष्णुता रखते हुए, और यह सामान्य सम्बन्ध भारत में विशेष रूप से प्रभावपूर्ण रहा है। जब, आधी शताब्दी से भी ज्यादा समय पूर्व, स्वतन्त्र भारत पश्चिमी देशों को छोड़कर दृढ़तापूर्वक लोकतन्त्रात्मक संविधान का चयन करने वाला प्रथम देश बना, तो उसने न केवल उस बात का उपयोग किया जो कुछ यूरोप और अमेरिका (विशेषकर ग्रेट ब्रिटेन के) के सांगठानिक अनुभवों से उसने सीखा था बल्कि उसने अपनी सार्वजनिक तर्क की परम्परा और तार्किक परम्परा विरोधी विचारधारा से भी बहुत कुछ सीखा।
इस समय दोनों खतरों से बचना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है-
(1) कि लोकतन्त्र को सिर्फ पश्चिमी दुनिया की ओर से दिया गया उपहार मान लेना जिसे भारत ने साधारण रूप से स्वीकार किया, जब वह स्वतन्त्र हुआ, और
(2) यह मान लेना कि भारतीय इतिहास में कोई विशेष बात है जिसके कारण देश एकमात्र लोकतन्त्र के लिए उपयुक्त है। इसके बजाय केन्द्र बिन्दु यह है कि लोकतन्त्र सार्वजनिक तर्कों और परस्पर तार्किक बातों से गहराई से जुड़ा हुआ है। सार्वजनिक तर्कों की परम्परा सम्पूर्ण संसार में विद्यमान है केवल पश्चिमी देशों में ही नहीं है। और यह प्रसारित करने के लिए कि ऐसी परम्परा को बनाये रखा जा सकता है, लोकतन्त्र संगठित करने और सुरक्षित रखने में और ज्यादा सरल हो जाता है।