RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 जैव-अणु

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 जैव-अणु Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Chemistry in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Chemistry Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Chemistry Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 12 Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

RBSE Class 12 Chemistry जैव-अणु InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
ग्लूकोस तथा सुक्रोस जल में विलेय हैं जबकि साइक्लोहेक्सेन अथवा बेन्जीन जल में अविलेय हैं। समझाइए।
उत्तर:
ग्लूकोस में पाँच – OH समूह तथा सुक्रोस में आठ – OH समूह होते हैं। ये - OH समूह जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं जबकि साइक्लोहेक्सेन व बेन्जीन में – OH समूह उपस्थित न होने के कारण वे जल में अविलेय होते हैं। 

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प्रश्न 2. 
लैक्टोस के जल-अपघटन से किन उत्पादों के बनने की अपेक्षा करते हैं? 
उत्तर:
लैक्टोस जल-अपघटन पर मोनोसकेराइड के दो अणु देता है।
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प्रश्न 3.
p-ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को कैसे समझाएंगे?
उत्तर:
ग्लूकोस के चक्रीय हेमीऐसीटिल रूप में C - 1 पर एक - OH समूह होता है जो जलीय विलयन में अपघटित होकर विवृत श्रृंखला का ऐल्डिहाइडी रूप उत्पन्न करता है जो NH2OH से अभिक्रिया करके संगत ऑक्सिम बनाता है, इसलिए ग्लूकोस में ऐल्डिहाइड समूह होता है। दूसरी ओर जब ग्लूकोस ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड से अभिक्रिया करता है तब यह पेन्टाऐसीटेट बनाता है जब यह पेन्टाएसीटेट NH2OH से क्रिया करता है तो ग्लूकोस ऑक्सिम नहीं बनाता है।
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इससे सिद्ध होता है कि ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह नहीं होता है।

प्रश्न 4. 
ऐमीनो अम्लों के गलनांक एवं जल में विलेयता सामान्यतः संगत हैलो अम्लों की तुलना में अधिक होती है। समझाइए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल ज्विटर आयन के रूप में पाये जाते हैं। (H3N+ - CHR - COO- विटर आयन)
इस द्विध्रुवी लवण जैसे गुण के कारण इनमें प्रबल द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण होते हैं इसलिए इनके गलनांक हैलो अम्लों, जिनमें लवण जैसा गुण नहीं होता है, से उच्च होते हैं। चूंकि इनमें लवण जैसे गुण होते हैं अतः ये जल में आसानी से विलेय हो जाते हैं, जबकि हैलो अम्लों की जल में उच्च विलेयता नहीं होती है।

प्रश्न 5. 
अण्डे को उबालने पर उसमें उपस्थित जल कहाँ चला जाता है?
उत्तर:
अण्डे को उबालने पर प्रोटीनों का विकृतीकरण होता है तथा अण्डे में उपस्थित जल विकृतीकृत प्रोटोनों में सम्भवतः हाइड्रोजन आबन्ध द्वारा अवशोषित या अधिशोषित हो जाता है।

प्रश्न 6. 
हमारे शरीर में विटामिन C संचित क्यों नहीं होता?
उत्तर:
विटामिन C जल में विलय होता है, इसलिए यह मूत्र के साथ सरलता से उत्सर्जित हो जाता है तथा शरीर में संचित नहीं होता है। अत: इसकी नियमित मात्रा लेना हमारे लिए आवश्यक होता है।

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प्रश्न 7. 
यदि DNA के थायमीन युक्त न्यूक्लिओटाइड का जल-अपघटन किया जाए तो कौन-कौन से उत्पाद बनेंगे?
उत्तर:
थायमीन के अतिरिक्त, दो उत्पाद 2-डिऑक्सी-D-राइबोस तथा फॉस्फोरिक अम्ल हैं।

प्रश्न 8. 
जब RNA का जल-अपघटन करते हैं तो प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं होता। यह तथ्य RNA की संरचना के विषय में क्या संकेत देता है?
उत्तर:
DNA अणु में दो कुण्डलिनियों में चार पूरक क्षारक परस्पर युग्म बनाये रखते हैं, जैसे:
साइटोसीन (C) सदैव ग्वानीन (G) के साथ तथा थायमीन (T) सदैव ऐडेनीन (A) के साथ युग्मन करता है। इसलिए जब एक DNA अणु जल अपघटित होता है तो साइटोसीन की मोलर मात्राएँ सदैव ग्वानीन के तुल्य तथा इसी प्रकार ऐडेनीन की मोलर मात्राएँ सदैव थायमीन के तुल्य होती RNA में चार क्षारक हैं-साइटोसीन, ग्वानीन, ऐडेनीन, यूरेसिल। RNA की चारों धारकों की मात्राओं में कोई भी सम्बन्ध नहीं होता है। इसका कारण RNA का एक कुण्डलिनी के रूप में होना होता है अर्थात् इससे सिद्ध होता है कि RNA की संरचना एक कुण्डलिनी की होती है।

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प्रश्न 1. 
मोनोसैकेराइड क्या होते हैं? 
उत्तर:
मोनोसैकेराइड: वे कार्बोहाइड्रेट जिनको पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन को और अधिक सरल यौगिकों में जल अपघटित नहीं किया जा सकता है, मोनोसैकेराइड कहलाते हैं।
उदाहरण: ग्लूकोस, फ्रक्टोस, राइबोस आदि। 

प्रश्न 2. 
अपचायी शर्करा क्या होती हैं?
उत्तर:
वे सभी शर्कराएँ जिनमें कार्बोहाइड्रेट समूह होता है तथा जो फेहलिंग विलयन को Cu2O के लाल अवक्षेप में अथवा टॉलेन अभिकर्मक को धात्विक Ag में अपचयित कर देती हैं, अपचायी शर्करा कहलाती हैं।
उदाहरण: मोनोसैकेराइड, सुक्रोस को छोड़कर अन्य डाइसैकेराइड आदि।

प्रश्न 3. 
पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो मुख्य कार्यों को लिखिए।
उत्तर:

  1. कोशिका भित्ति के लिए संरचनात्मक पदार्थ-पॉलिसैकेराइड सेलुलोस कोशिका भित्ति के मुख्य संरचनात्मक पदार्थ के रूप में कार्य करता है।
  2. संचित खाद्य पदार्थ-पॉलिसकेराइड स्टार्च पौधों में प्रमुख संचित खाद्य पदार्थ होता है। 

प्रश्न 4. 
निम्नलिखित को मोनोसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड में वर्गीकृत कीजिए। 
राइबोस, 2-डिऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलेक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस।
उत्तर:

  • मोनोसैकेराइड: राइबोस, 2 - डिऑक्सीराइयोस, गैलेक्टोस तथा फ्रक्टोस।
  • डाइसकेराइड: माल्टोस, लैक्टोस। 

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प्रश्न 5. 
ग्लाइकोसाइडी बन्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ग्लाइकोसाइडी बन्ध: डाइसकेराइडों का जल-अपघटन तनु अम्ल अथवा एन्जाइमों की उपस्थिति में करने पर मोनोसैकराइड की दो समान अथवा असमान इकाइयाँ प्राप्त होती हैं। ये मोनोसैकेराइड की इकाइयाँ आपस में ग्लाइकोसाइडी अथवा ऑक्साइड बन्ध के द्वारा बंधी होती हैं।
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प्रश्न 6. 
ग्लाइकोजन क्या होता है तथा ये स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है? 
उत्तर:
ग्लाइकोजन: प्राणी शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहीत रहता है। चूंकि इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है, अतः इसे प्राणी स्टार्च भी कहा जाता है। 

ग्लाइकोजन

स्टार्च

1. यह प्राणी शरीर में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट होता है।

1. यह पौधों में प्रमुख संगृहीत पॉलिसकेराइड है।

2. यह ऐमिलोपेक्टिन से अधिक शाखित होता है।

2. इसमें ऐमिलोपेक्टिन थोड़ा कम शाखित होता है।

3. इसमें केवल एक प्रकार की शाखित संरचनाएँ ही पायी जाती हैं।

3. जबकि स्टार्च में दो भाग होते है-एक एमाइलोज जो कि α -  D - ग्लूकोस की अशाखित श्रृंखला होती है जबकि दूसरा भाग ऐमिलोपेक्टिन होता है जो कि α - D - ग्लूकोस की शाखित शृंखला होती है।


प्रश्न 7. 
(अ) सुक्रोस तथा (ब) लैक्टोस के जल- अपघटन से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
(अ) सुक्रोस का जल-अपघटन-सुक्रोस का जल-अपघटन करने पर ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस प्राप्त होता है।
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(ब) लैक्टोस का जल-अपघटन-लैक्टोस जल- अपघटित होकर ग्लूकोस तथा गैलेक्टोस का एक-एक अणु देता है।
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प्रश्न 8. 
स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अन्तर क्या है?
उत्तर:
स्टार्च ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन से मिलकर बनता है। ऐमिलोस α - D-ग्लूकोस का रेखीय बहुलक होता है, जबकि सेलुलोस β - D. ग्लूकोस का रेखीय बहुलक होता है। ऐमिलोस में एक ग्लूकोस इकाई का C - 1 अन्य ग्लूकोस इकाई के C - 4 से α - ग्लाइकोसाइडी बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। इसे निम्नांकित चित्र में देखा जा सकता है।
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सेलुलोस β - D - ग्लूकोस से बनी ऋजु श्रृंखला युक्त पॉलिसकेराइड है जिसमें एक ग्लूकोस इकाई के C - 1 तथा दूसरी ग्लूकोस इकाई के C - 4 के मध्य ग्लाइकोसाइडी बन्ध बनता है।

प्रश्न 9.
क्या होता है जब D - ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं।
(1) HI
(2) ब्रोमीन जल,
(3) HNO3
उत्तर:
1. HI से क्रिया: जब ग्लूकोस को HI के साथ अधिक देर तक गर्म करते हैं तो-हेक्सेन बनता है जो यह सिद्ध करता है कि ग्लूकोस में छ: कार्बन इकाईं एक सीध में होती हैं।
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2. ब्रोमीन जल से क्रिया-ग्लूकोस के ब्रोमीन जल जैसे दुर्बल ऑक्सीकरण कर्मक द्वारा ऑक्सीकरण से छ: कार्बन परमाणु युक्त ग्लूकोनिक अम्ल बनता है जो यह सिद्ध करता है कि ग्लूकोस का कार्बोनिल समूह एक ऐल्डिहाइड समूह है। 
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3. HNO3  से क्रिया-लूकोस तथा ग्लूकोनिक अम्ल दोनों की क्रिया HNO3 से करने पर, दोनों का ही ऑक्सीकरण हो जाता है तथा वे सैकेरिक अम्ल में परिवर्तित हो जाते हैं जो यह सिद्ध करता है कि ग्लूकोस में एक प्राथमिक ऐल्कोहॉल समूह उपस्थित होता है।
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प्रश्न 10. 
ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकती हैं।
उत्तर:
ग्लूकोस प्रकृति में मुक्त अथवा संयुक्त अवस्था में मिलता है। यह मोठे फलों तथा शहद में उपस्थित होता है। पके हुए अंगूर में भी बहुत अधिक मात्रा में ग्लूकोस होता है।
ग्लूकोस के विरचन की विधियाँ (Methods of Preparation of Glucose):
(1) सुक्रोस (इक्षु-शर्करा) से ( from Suerose): सुक्रोस को तनु HCI अथवा H2SO4 के साथ ऐल्कोहॉलिक विलयन में उबालने पर ग्लूकोस व फ्रक्टोस समान मात्रा में प्राप्त होते हैं।
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(2) स्टार्च से (From Stareh): औद्योगिक स्तर पर ग्लूकोस को स्टार्च के जल-अपघटन से प्राप्त किया जाता है। इसके लिए स्टार्च को तनु H2SO4 के साथ 393K दाब पर उबाला जाता है। 
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ग्लूकोस सेलुलोस ग्लू कोस की संरचना (Structure of Glucose) ग्लूकोस एक ऐल्डोहेक्सोस है जिसे डेक्सट्रोस कहते हैं। यह अनेक कार्बोहाइड्रेटों जैसे-स्टार्च, सेलुलोस आदि का एकलक है। यह पृथ्वी पर अधिकता में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है। निम्नलिखित प्रमाणों के आधार पर इसकी संरचना निम्नानुसार है।
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(1) अणुसूत्र-अणु भार निर्धारण तथा तात्विक विश्लेषण के आधार पर इसका अणु सूत्र C6H12O6 है।

(2) पाँच: OH समूह की उपस्थिति-ग्लूकोस ऐसीटिलक्लोराइड या ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड से क्रिया करके पेन्टाऐसीटिल ग्लूकोस देता है जो ग्लूकोस में पाँच – OH समूह की उपस्थिति को प्रदर्शित करता है। 
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चूँकि ग्लूकोस गर्म करने पर कोई जल का अणु नहीं देता, अतः ग्लूकोस में सभी – OH समूह अलग-अलग कार्बन पर उपस्थित हैं।

(3) एक - CHO ऐल्डिहाइड समूह की उपस्थिति
(i) ग्लूकोज हाइड्रोजन सायनाइड (HCN) के साथ सायनोहाइडिन देता है तथा हाइड्रोक्सिल ऐमीन के साथ क्रिया करके ऑक्सिम बनाता है। इससे ग्लूकोस में एक - CHO समूह की पुष्टि होती है।
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(ii) ब्रोमीन जल जैसे दुर्बल ऑक्सीकरण कर्मक द्वारा ऑक्सीकृत होकर यह ऑक्सीकरण से छ: कार्बन परमाणु युक्त कार्बोक्सिलिक अम्ल (ग्लूकोनिक अम्ल) देता है।
इससे सिद्ध होता है कि ग्लूकोस का कार्बोनिल समूह RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 जैव-अणु 16 ऐल्डिहाइड समूह (-CHO) के रूप में उपस्थित है। 
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(4) कार्बोनिल RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 जैव-अणु 16 समूह की उपस्थिति- ग्लूकोस हाइड्रॉक्सिल ऐमीन से क्रिया कर ऑक्सिम देता है जो यह सिद्ध करता है कि इसमें RBSE Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 14 जैव-अणु 16 समूह उपस्थित है। 
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(5) कार्बन परमाणुओं की सीधी श्रृंखला: HI के साथ लम्बे समय तक गरम करने पर यह हेक्सेन देता है जो यह प्रदर्शित करता है कि सभी छ: कार्बन परमाणु एक सीधी श्रृंखला में जुड़े हैं। 
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(6) प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह की उपस्थिति: ग्लूकोस तथा ग्लूकोनिक अम्ल दोनों ही नाइट्रिक अम्ल के द्वारा ऑक्सीकरण से एक डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल, सैकेरिक अम्ल बनाते हैं। यह ग्लूकोस में प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह की उपस्थिति को दर्शाता है। 
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(7) ग्लूकोस के द्वारा प्रदर्शित कुछ अन्य अभिक्रियाएँ:
(i) अपचयन (Reduction): ग्लूकोस सॉर्बिटॉल में अपचयित हो जाता है जब इसका अपचयन Ni जैसे उत्प्रेरक की उपस्थिति में कराते
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(ii) ईथर का निर्माण (Formation of Ethers): ग्लूकोस की क्रिया डाइमेथिल सल्फेट के साथ क्षार की उपस्थिति में कराने पर पेन्टा-मेथिल व्युत्पन्न प्राप्त होता है। 
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(iii) ओसाजोन का निर्माण (Formation of Osaxone): ग्लूकोस फेनिल हाइड्राजीन के साथ क्रिया करके फेनिल हाइड्राजोन बनाता है। लेकिन जब ग्लूकोस की क्रिया फेनिल हाइड्राजीन की अधिकता में करते हैं तो गर्म करने पर ओसाजोन बनता है। 
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(iv) फेहलिंग विलयन के साथ अभिक्रिया (Reaction with Fehling solution): फेहलिंग विलयन एक गहरा नीला विलयन होता 'है, इसे फेहलिंग A (जलीय CuSO4 विलयन) तथा फेहलिंग B (जलीय NaOH विलयन जिसे रोसैल लवण (Roschell's salt) की थोड़ी-सी मात्रा द्वारा बनाया जाता है) के समान आयतन को मिलाकर बनाया जाता है। जब ग्लूकोस के साथ इस विलयन को गर्म करते हैं तो Cu2O का लाल अवक्षेप प्राप्त होता है। 
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(V) टॉलेन अभिकर्मक से क्रिया (Reaction with Tollen's reagent): टॉलेन अभिकर्मक अमोनिकल सिल्वर नाइट्रेट का विलयन होता है। जब साफ परखनली में ग्लूकोस के साथ टॉलेन अभिकर्मक को गर्म करते हैं तो नली की तली पर चमकदार दर्पण एकत्रित होता है।
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(Vi) PCl5  से अभिक्रिया (Reaction with PCl5): ग्लूकोस PCl5 से क्रिया करके 2, 3, 4, 5, 6-पेन्टाक्लोरोहेक्सनैल बनाता है। 
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(vii) किण्वन (Fermentation): ग्लूकोज आसानी से एन्जाइम जाइमेज की उपस्थिति में किण्वन द्वारा एथिल ऐल्कोहॉल व CO2 में बदलता है।
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(vii) निर्जलीकरण (Dehydration): जब ग्लूकोस को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करते हैं तो कार्बन का काला अवक्षेप प्राप्त होता है। 
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(ix) सान्द्र HCl के साथ किया (Reaction with Cone. HCl): जब ग्लूकोज को सान्द्र HCl  के साथ गर्म करते हैं, तो लिबूरिक अम्ल प्राप्त होता है। 
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फिशर का निष्कर्ष (Conclusion of Fischer): बहुत-से अन्य गुणों के अध्ययन के उपरान्त फिशर ने विभिन्न –OH समूहों की सही दिक्-स्थान व्यवस्था को दर्शाया। इसका सही विन्यास संरचना I द्वारा निरूपित होता है। ग्लूकोनिक अम्ल को संरचना II तथा सैकेरिक अम्ल को संरचना II द्वारा निरूपित करते हैं।
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ग्लूकोस को सही रूप में D(+) -ग्लूकोस नाम देते हैं। ग्लूकोस के नाम से पहले लिखा 'D' इसके विन्यास को निरूपित करता है जबकि "(+)' अणु की दक्षिण ध्रुवण पूर्णकता को निरूपित करता है। यह स्मरणीय है कि 'D' व '' का, यौगिक की 5वण पूर्णकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। 'D' व 'L' संकेत चिों का अर्थ नीचे दिया गया है। तथा संकेत चिह्नों का अर्थ-ग्लूकोस के नाम से पहले 'D' इसके विन्यास को बताता है तथा (+) अणु की दक्षिण ध्रुवण धूर्णकता को बताता है। 'D' तथा '' का यौगिक की ध्रुवण धूर्णकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। ये किरैल कार्बन परमाणुओं के चारों ओर परमाणुओं या समूहों की सापेक्षिक स्थितियों को प्रदर्शित करते हैं।

ग्लिसरेल्डिहाइड (C3H6O) एक किरैल कार्बन (असममित कार्बन) परमाणु वाला ऐल्डोट्रायोस है। ग्लिसरेल्डिहाइड के दो प्रतिबिम्ब रूप होते हैं। जो निम्न हैं 
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वे सभी यौगिक जिनका सहसम्बन्ध रासायनिक रूप से ग्लिसरैल्डिहाइड के (+) समावयवी से स्थापित किया जा सकता है, D विन्यास वाले कहलाते हैं। जबकि वे जिनका सहसम्बन्ध ग्लिसरैल्डिहाइड के (-) समावयवी से स्थापित किया जा सकता है L - विन्यास वाले कहलाते हैं। मोनोसैकराइड के विन्यास के निर्धारण के लिए सबसे नीचे वाले असममित कार्बन परमाणु (जैसा कि नीचे दर्शाया गया है) की तुलना करते हैं जैसे कि (+) ग्लूकोस में सबसे नीचे वाले असममित कार्बन परमाणु में –OH समूह दाई ओर है जिसकी तुलना (1) ग्लिसरैल्डिहाइड से की जा सकती है अतः इसका विन्यास D निर्धारित किया जाता है। इस तुलना के लिए संरचना को इस प्रकार लिखा जाता है कि सर्वाधिक ऑक्सीकृत कार्बन परमाणु शीर्ष पर रहें।
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प्रश्न 11. 
आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं?
उत्तर:

  • आवश्यक ऐमीनो अम्ल: वे-ऐमीनो अम्ल जो जीवों के स्वास्थ्य तथा उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं, परन्तु शरीर में संश्लेषित नहीं होते हैं, आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं। उदाहरण-वैलोन, ल्यूसीन, आर्जिनीन आदि।
  • अनावश्यक ऐमीनो अम्ल: जबकि वे ऐमीनो अम्ल जो जीवों के स्वास्थ्य तथा उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं तथा शरीर में संश्लेषित हो सकते हैं, अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं।
  • उदाहरण: ग्लाइसीन, ऐलानीन, ऐस्पार्टिक अम्ल आदि।

प्रश्न 12. 
प्रोटीन के सन्दर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए।
(1) पेप्टाइड बन्ध, 
(2) प्राथमिक संरचना, 
(3) विकृतीकरण।
उत्तर:
(1) पेप्टाइड बन्ध-पेप्टाइड बन्ध: COOH समूह तथा - NH2 समूह के मध्य बना आबन्ध होता है। जब दो एक जैसे या भिन्न-भिन्न ऐमीनो अम्ल आपस में संयोग करते हैं तो संयोग के दौरान एक जल अणु मुक्त होता है तथा यहाँ पेप्टाइड बन्ध- CONH+ बनता है। चूँकि यहाँ उत्पाद दो ऐमीनो अम्ल से बनता है अत: इसे डाइपेप्टाइड - कहते है।
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(2)
प्रोटीन α -ऐमीनो अम्लों के बहुलक होते हैं जो कि आपस में पेप्टाइड आबन्ध अथवा पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े होते हैं। पेप्टाइड आबन्ध - COOH समूह तथा - NH2 समूह के मध्य बनता है। प्रोटीनों के बनाने के लिए दो एक जैसे अथवा भिन्न ऐमीनो अम्लों के अणुओं के मध्य अभिक्रिया एक अणु के ऐमीनो समूह तथा दूसरे अणु के कार्बोक्सिल समूह के मध्य संयोग से होती है जिसके फलस्वरूप एक जल का अणु मुक्त होता है तथा पेप्टाइड आबन्ध (CONH) बनता है।
यहाँ पर प्रोटीन दो ऐमीनो अम्लों के जुड़ने से बन रहा है, अत: इसे डाइपेप्टाइड (Dipeptide) कहते हैं।
उदाहरण:
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उपर्युक्त उदाहरण में ग्लाइसीन का कार्बोक्सिल समूह, ऐलानीन के 'ऐमीनो समूह के साथ संयोग करता है तथा हमें एक डाइपेप्टाइड, ग्लाइसिल ऐलानीन प्राप्त होता है।

  1. ट्राइपेप्टाइड (Tripeptides): यदि तीन ऐमीनो अम्ल आपस में संयोग कर प्रोटीन बनाएँ, तो इसे ट्राइपेप्टाइड कहते हैं।
  2. टेट्रापेप्टाइड (Tetrapeptides): यदि चार.ऐमीनो अम्ल आपस में संयोग कर प्रोटीन बनाएँ, तो इसे टेट्रापेप्टाइड कहते हैं।

इसी प्रकार पाँच, छः तथा अधिक ऐमीनो अम्लों के संयोग से बनने वाली प्रोटीन पेन्टापेप्टाइड, हेक्सापेप्टाइड तथा पॉलिपेप्टाइड कहलाती हैं।

एक पॉलिपेप्टाइड, में 100 से अधिक ऐमीनो अम्ल होते हैं जिनका आण्विक द्रव्यमान 10000 से अधिक होता है। ये प्रोटीन कहलाते हैं।
आण्विक आकृति के आधार पर प्रोटीनों का वर्गीकरण:
आण्विक आकृति के आधार पर प्रोटीनों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया हैहैं।

  1. रेशेदार प्रोटीन 
  2. गोलिकाकार प्रोटीन

1. रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Proteins): अब पॉलिपेप्टाइड की शृंखलाएँ समानान्तर होती है तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड आवन्ध द्वारा संयुक्त रहती है तो रेशासम (रेशे जैसी) संरचना बनती है। इस प्रकार के प्रोटीन सामान्यतः जल में अविलेय होते हैं। रेशेदार प्रोटीन के सामान्य उदाहरण किरैटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) आदि हैं। 

2. गोलिकाकार प्रोटीन (Globular Proteins): जब पॉलिपेप्टाइड की श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती हैं तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। गोलिकाकार प्रोटीन सामान्यतः जल में विलेय होती हैं। इन्सुलिन तथा ऐल्बुमिन इनके सामान्य उदाहरण हैं।

चूंकि इस प्रकार की प्रोटीन में श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती है अत: इनकी इकाइयों के मध्य लगने वाला अन्तराआश्विक बल कमजोर होता है। इसी कारण ये जल, अम्ल, क्षार आदि में घुलनशील होते हैं।
उदाहरण:

  1. कुछ गोलिकाकार प्रोटीन एन्जाइमों की तरह कार्य करती हैं। जैसे-इन्सुलिन, थायरोग्लोबिन।
  2. कुछ गोलिकाकार प्रोटीन एन्टीबॉडी (Antibodies) की तरह कार्य करती है।

(3) प्रोटीनों का विकृतीकरण (Denaturation of Proteins):
जैविक निकाय में पाई जाने वाली विशेष त्रिविम संरचना तथा जैविक सक्रियता वाले प्रोटीन, प्राकृत प्रोटीन कहलाते हैं। जब प्राकृत प्रोटीन में भौतिक परिवर्तन करते हैं, जैसे-ताप में परिवर्तन अथवा रासायनिक परिवर्तन करते हैं, जैसे- pH में परिवर्तन, तो हाइड्रोजन आबन्धों में अस्तव्यस्तता उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण गोलिका (ग्लोब्यूल) खुल जाती है और हेलिक्स अकुण्डलित हो जाती है तथा प्रोटीन अपनी जैविक सक्रियता को खो देता है। इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं। विकृतीकरण के दौरान 2 तथा 3° संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं परन्तु ।' संरचना अप्रभावित रहती है। उबालने पर अण्डे की सफेदी का स्कंदन विकृतीकरण का एक सामान्य उदाहरण है। एक अन्य उदाहरण दही का जमना है जो दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है।
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प्रश्न 13. 
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या।
उत्तर:
किसी प्रोटीन की द्वितीयक संरचना का सम्बन्ध प्रोटीन की आकृति से हैं। इसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला विद्यमान होती है। प्रोटीन की द्वितीयक संरचना में दो प्रकार की संरचनाएँ होती हैं

  1. α - हेलिक्स संरचना-प्रोटीन की इस संरचना में पॉलिपेप्टाइड की रैखिक श्रृंखला की आकृति एक मुड़े हुए रिबन की भाँति होती है। यह विशिष्ट आकार हाइड्रोजन बन्धों द्वारा बैंधा होता है।
  2. β - प्लीटेड शीट संरचना-इसमें पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएं एक-दूसरे की ओर विपरीत दिशा में हाइड्रोजन बन्ध के द्वारा जुड़ती हैं। प्रोटीन में ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्धों के द्वारा जुड़े होते हैं।

प्रश्न 14. 
प्रोटीन की त-हेलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौन-से आबन्ध सहायक होते हैं?
उत्तर:
हेलिक्स संरचना में पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला आपस में हाइड्रोजन बन्ध के द्वारा जुड़ी होती है अर्थात् हाइड्रोजन बन्ध प्रोटीन की a-हेलिक्स संरचना के स्थायीकरण में सहायक होती है।

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प्रश्न 15. 
रेशेदार तथा गोलिकाकार प्रोटीन को विभेदित करें।
उत्तर:
आण्विक आकृति के आधार पर प्रोटीनों का वर्गीकरण:
आण्विक आकृति के आधार पर प्रोटीनों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया हैहैं।

  1. रेशेदार प्रोटीन 
  2. गोलिकाकार प्रोटीन

1. रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Proteins): अब पॉलिपेप्टाइड की शृंखलाएँ समानान्तर होती है तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड आवन्ध द्वारा संयुक्त रहती है तो रेशासम (रेशे जैसी) संरचना बनती है। इस प्रकार के प्रोटीन सामान्यतः जल में अविलेय होते हैं। रेशेदार प्रोटीन के सामान्य उदाहरण किरैटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) आदि हैं। 

2. गोलिकाकार प्रोटीन (Globular Proteins): जब पॉलिपेप्टाइड की श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती हैं तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। गोलिकाकार प्रोटीन सामान्यतः जल में विलेय होती हैं। इन्सुलिन तथा ऐल्बुमिन इनके सामान्य उदाहरण हैं।

चूंकि इस प्रकार की प्रोटीन में श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती है अत: इनकी इकाइयों के मध्य लगने वाला अन्तराआश्विक बल कमजोर होता है। इसी कारण ये जल, अम्ल, क्षार आदि में घुलनशील होते हैं।
उदाहरण:

  1. कुछ गोलिकाकार प्रोटीन एन्जाइमों की तरह कार्य करती हैं। जैसे-इन्सुलिन, थायरोग्लोबिन।
  2. कुछ गोलिकाकार प्रोटीन एन्टीबॉडी (Antibodies) की तरह कार्य करती है।


प्रश्न 16. 
ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझायेंगे? 
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल सामान्यतः रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस होते हैं। ये जल में विलेय तथा उच्च गलनांकी ठोस होते हैं जो सामान्य ऐमीनो तथा कार्बोक्सिलिक अम्लों की भांति व्यवहार नहीं करते, अपितु लवणों की भाँति गुण दर्शाते हैं। इसका कारण एक ही अणु में अम्लीय (कार्बोक्सिल समूह) तथा क्षारकीय (ऐमीनो समूह) समूहों की उपस्थिति है। जलीय विलयन में कार्बोक्सिल समूह एक प्रोटॉन मुक्त कर सकता है, जबकि ऐमीनो समूह एक प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है जिसके फलस्वरूप एक द्वि-ध्रुवीय आयन बनता है जिसे ज्विटर आयन अथवा उभयाविष्ट आयन कहते हैं। यह उदासीन होता है, परन्तु इसमें धनावेश तथा ऋणावेश दोनों ही उपस्थित होते हैं।
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उभवाविष्ट आयनिक रूप से ऐमीनो अम्ल उभयधौं प्रकृति दाते हैं तथा वे अम्लों एवं क्षारकों दोनों के साथ अभिक्रिया करते हैं।

प्रश्न 17. 
एन्जाइम क्या होते हैं?
उत्तर:
एन्जाइम जैव-उत्प्रेरक होते हैं। जीवधारियों में होने वाली विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं में समन्वयन के कारण ही जीवन सम्भव होता है। उदाहरणार्थ: भोजन का पाचन, उपयुक्त अणुओं का अवशोषण तथा अन्तत: ऊर्जा का उत्पादन। इस प्रक्रम में अभिक्रियाएँ एक अनुक्रम में होती हैं तथा ये सभी अभिक्रियाएँ शरीर में मध्यम परिस्थितियों में सम्पन्न होती हैं। यह अभिक्रियाएँ कुछ जैव-उत्प्रेरकों की सहायता से होती हैं। इन्हीं जैव-उत्प्रेरकों को एन्जाइम कहा जाता है।

रासायनिक रूप में लगभग सभी एन्जाइम गोलिकाकार प्रोटीन होते हैं। एन्जाइम किसी विशेष अभिक्रिया अथवा विशेष क्रियाधार के लिए विशिष्ट होते हैं अर्थात् प्रत्येक जैव-तन्त्र के लिए भिन्न एन्जाइम की आवश्यकता होती है, इसलिए एन्जाइम अन्य प्रचलित उत्प्रेरकों से भिन्न होते हैं। ये अत्यन्त सक्रिय होते हैं तथा इनकी अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा की ही आवश्यकता होती है। ये अनुकूल ताप (310K) तथा pH (74) पर एवं एक वायुमण्डलीय दाब के अन्तर्गत कार्य करते हैं।

प्रश्न 18. 
प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
विकृतीकरण के दौरान प्रोटीन की 2 तथा 3° संरचनाएँ नष्ट हो जाती है, परन्तु 1" संरचना अप्रभावित रहती है। विकृतीकरण के कारण गोलिकाकार प्रोटीन (जल में विलेय) रेशेदार प्रोटीन (जल में अविलेय) में परिवर्तित हो जाती है तथा उनकी जैविक सक्रियता नष्ट हो जाती है। उदाहरणार्थ-उबालने पर अण्डे की सफेदी का स्कन्दन।

प्रश्न 19.
विटामिनों को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है ? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।
उत्तर:
जल तथा वसा में विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है।
(i) वसा विलेय विटामिन (Fat Soluble Vitamins): इस वर्ग में उन विटामिन्स को रखा गया है जो वसा तथा तेल में विलेय होते हैं, परन्तु जल में अविलेय। ये विटामिन A, D, E तथा K हैं। ये यकृत तथा ऐडिपोस (वसा संगृहीत करने वाला) ऊतक में संग्रहीत रहते हैं।

(ii) जल विलेय विटामिन (Water Soluble Vitamins): B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय होते हैं। जल में विलेय विटामिन की पूर्ति हमारे भोजन के द्वारा नियमित रूप से होनी चाहिए, क्योंकि ये आसानी से मूत्र के द्वारा उत्सर्जित हो जाते हैं। ये हमारे शरीर में संचित नहीं होते (B12 को छोड़कर)।
रक्त के थक्के जमने के लिए विटामिन K उत्तरदायी है।

प्रश्न 20. 
विटामिन A तथा C हमारे लिए आवश्यक क्यों है? उनके महत्वपूर्ण स्रोत दें।
उत्तर:
विटामिन A की कमी से हमारे शरीर में जीरॉपथैल्मिया (आँख के कॉर्निया का कठोरीकरण) तथा रात्रि अन्धता रोग हो जाता है। इसका मुख्य स्रोत मछली के यकृत का तेल, गाजर, मक्खन तथा दूध हैं। विटामिन C की कमी से स्कर्वी (मसूड़ों से रक्त बहना) तथा पायरिया (दाँतों का ढीलापन व रक्त-स्राव) रोग हो जाते हैं। इसका मुख्य स्रोत नींबू, फल, आँवला, हरे पत्ते की सब्जियाँ हैं।

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प्रश्न 21. 
न्यूक्लीक अम्ल क्या होते हैं? इनके दो महत्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लीक अम्ल (Nucleic Acid): न्यूक्लीक अम्ल वे जैव-अणु होते हैं जो सभी जीवित कोशिकाओं के नाभिकों में न्यूक्लिओ-प्रोटीन अथवा क्रोमोसोम के रूप में पाए जाते हैं।
न्यूक्लीक अम्ल दो प्रकार के होते हैं:

  1. डी-ऑक्सीराइबोस न्यूक्लिक अम्ल (DNA), 
  2. राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA)

चूँकि न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लिओटाइडों की लम्बी शृंखला वाले बहुलक होते हैं, अंत: ये पॉलिन्यूक्लिओटाइड कहलाते हैं।
न्यूक्लिक अम्लों के महत्वपूर्ण कार्य:

  1. प्रोटीन संश्लेषण: कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण विभिन्न RNA अणुओं द्वारा होता है। किसी भी विशेष प्रोटीन के संश्लेषण का सन्देश DNA में उपस्थित होता है।
  2. स्वप्रतिकरण: DNA आनुवंशिकता का रासायनिक आधार है। इसे आनुवंशिक सूचनाओं के संग्राहक के रूप में जाना जाता है। DNA विशिष्ट प्रजातियों एवं किसी भी व्यक्ति की पहचान के लिए उत्तरदायी होता है। कोशिका विभाजन के समय DNA अणु स्वप्रतिकरण में सक्षम होता है तथा पुत्री कोशिका में समान DNA रज्जुक का अन्तरण होता है।

प्रश्न 22. 
न्यूक्लिओसाइड तथा न्यूक्लिओटाइड में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
न्यूक्लिओसाइड (Nucleoside): क्षारक एवं एक शर्करा अणु के संयोजित रूप को न्यूक्लियोसाइड कहते हैं।
DNA  में चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोसाइड होते हैं। 

  1. डी-ऑक्सीसाइटिडीन 
  2. डी-ऑक्सीथाइमिडीन 
  3. डी-ऑक्सीऐडेनोसीन 
  4. डी-ऑक्सीग्वानोसीन।

RNA  में डी-ऑक्सीराइबोस शर्करा के स्थान पर राइबोस शर्करा तथा थायमीन के स्थान पर यूरेसिल क्षारक होता है।
एक न्यूक्लिओसाइड में शर्करा का कार्बन-1 (C-1) पिरिमिडीन के पहले स्थान वाले नाइट्रोजन-9 (N - 9) के साथ जुड़ा रहता है अर्थात् एक क्षार शर्करा इकाई न्यूक्लिओसाइड कहलाती है।

उदाहरण:
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न्यूक्लिओटाइड (Nucleotide): एक न्यूक्लिओसाइड के साथ एक फॉस्फोरिक अम्ल के एक अणु के संयोग से एक न्यूक्लिओटाइड बनता है। फॉस्फेट समूह शर्करा के C-5 से अथवा C-3 से संलग्न रहता है। . शर्करा में फॉस्फेट समूह के संलग्न स्थान के अनुसार ही इन न्यूक्लिओटाइडों को क्रमश: 5 P 3 OH अथवा 3'P 5 OH न्यूक्लिओटाइड कहते हैं।
अर्थात् क्षार-शर्करा-फॉस्फोरिक अम्ल इकाई को न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। उदाहरण: ऐडेनोसीन डाइफॉस्फेट।
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प्रश्न 23. 
DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं। समझाइए।
उत्तर:
DNA अयु के दोनों रज्जुक आपस में हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़े होते हैं जिसमें एक रज्जुक के प्यूरीन क्षारक तथा अन्य के पिरिमिडीन भारक के मध्य हाइड्रोजन बन्ध होता है। DNA के रग्जुकों में ग्वानीन (G) तथा साइटोसीन (C) के मध्य एवं ऐडेनोसीन (A) तथा थायमीन (T) के मध्य दो हाइड्रोजन बन्ध द्वारा युग्मन होता है। इसी क्षारक युग्मन सिद्धान्त के कारण एक रम्जुक में धारकों का अनुक्रम दूसरे रज्जुक में क्षारकों के अनुक्रम को स्वतः व्यवस्थित कर देता है। अत: DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
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प्रश्न 24. 
DNA तथा RNA में महत्वपूर्ण संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अन्तर लिखिए। 
उत्तर:
महत्वपूर्ण संरचनात्मक:
DNA

  •  यह केन्द्र में पाये जाने वाले क्रोमोसोम में पाया जाता
  • इसमें डी-ऑक्सीराइबोस शर्करा होती है। 
  • DNA में क्षार ऐडेनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तथा थायमीन होते हैं। 
  • इसको द्विकुण्डलित हेलिक्स संरचना होती है।

RNA

  •  यह मुख्यतः कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।
  • इसमें राइबोस शर्करा होती है। 
  • RNA में क्षार ऐडेनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तथा यूरेसिल होते हैं। 
  • इसकी एक सूत्री कुण्डली संरचना होती है।

क्रियात्मक अन्तर:

DNA

  • DNA में प्रतिकरण (Replication) का विशिष्ट गुण होता है। 
  • DNA आनुवंशिक प्रभावों के संचरण को नियन्त्रित करते हैं।

RNA

  • ये सामान्यतः प्रतिकरण नहीं करते हैं। 
  • यह प्रोटीन संश्लेषण को नियन्त्रित करते हैं।

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प्रश्न 25. 
कोशिका में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौन-से हैं?
उत्तर:
कोशिका में पाये जाने वाले विभिन प्रकार के RNA

  1. राइबोसोमल RNA (r-RNA) 
  2. सन्देशवाहक RNA (m-RNA) 
  3. अन्तरण RNA (r-RNA)
Prasanna
Last Updated on Nov. 25, 2023, 10:09 a.m.
Published Nov. 24, 2023