Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 7 निर्देशन Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
अनौपचारिक संचार क्या है?
उत्तर:
वह सम्प्रेषण जो व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य आधिकारिक या औपचारिक रूप से नहीं होता है, अनौपचारिक संप्रेषण/संचार कहलाता है। इसके अंतर्गत विचारों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान संगठन की पदसोपान श्रृंखला के अनुसार नहीं होता है।
प्रश्न 2.
नेतृत्व की कौन-सी शैली शक्ति के उपयोग में विश्वास नहीं करती, जब तक कि यह बिल्कुल जरूरी न हो?
उत्तर:
अबंध अथवा मुक्त-रोक नेता (लेसिज फेयर) नेतृत्व शैली शक्ति के उपयोग में विश्वास नहीं करती जब तक कि यह बिल्कुल जरूरी न हो।
प्रश्न 3.
संचार प्रक्रिया में कौन-सा तत्त्व संदेश को शब्दों, प्रतीकों, हाव-भाव आदि में परिवर्तित करने में शामिल है?
उत्तर:
संचार प्रक्रिया में एनकोडिंग संदेश को शब्दों, प्रतीकों, हाव-भाव आदि में परिवर्तित करने में शामिल है।
प्रश्न 4.
मजदूर हमेशा अपनी अक्षमता दिखाने की कोशिश करते हैं जब उन्हें कोई नया काम दिया जाता है। वे हमेशा किसी भी तरह का काम लेने के इच्छुक नहीं होते। माँग में अचानक बढ़ोत्तरी के कारण एक फर्म अतिरिक्त आदेशों को पूरा करना चाहती है। पर्यवेक्षक को स्थिति से निपटना मुश्किल हो रहा है। निर्देशन के तत्त्व बताएँ जो पर्यवेक्षक को समस्या को संभालने में मदद कर सकते हैं।
उत्तर:
दी गई स्थिति में जो आवश्यक है वह मजदूरों को प्रेरणा प्रदान कर रहा है। पर्यवेक्षक को मजदूरों को प्रेरित करना चाहिए और उन्हें अपनी क्षमताओं के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उसे श्रमिकों की आवश्यकताओं की पहचान करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, काम करने की अनिच्छा का कारण पहचानना और काम किया जाना चाहिए।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
संचार की अर्थपूर्ण बाधाएँ क्या हैं?
उत्तर:
संचार की अर्थपूर्ण बाधाएँ संकेतिक/ संकेतीय बाधाएँ हैं । यह भाषा की वह शाखा है जो शब्दों तथा वाक्यों के अर्थ से संबंध रखती है। अर्थपूर्ण बाधाएँ उन समस्याओं तथा बाधाओं से संबंधित हैं जो संदेश की एनकोडिंग तथा डिकोडिंग करने की प्रक्रिया में उन्हें शब्दों अथवा संकेतों में परिवर्तित करते समय आती हैं। ये निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 2.
चित्र की मदद से अभिप्रेरणा की प्रक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर:
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया-अभिप्रेरणा की प्रक्रिया का अभिप्राय यह जानना है कि यह कहाँ से शुरू होकर कहाँ समाप्त होती है। अभिप्रेरणा का कार्य एक ही बार में पूरा नहीं हो जाता है बल्कि यह अनेक पदों का समूह है।
सर्वप्रथम मनुष्य की एक असंतुष्ट आवश्यकता तनाव को जन्म देती है जो उसमें आवेग उत्पन्न करता है। ये संवेग ही खोजने की प्रवृत्ति/व्यवहार का सृजन करती हैं ताकि उस आवश्यकता की पूर्ति हो सके। यदि उस आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है, तो व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है।
एक इच्छा के संतुष्ट होने पर दूसरी इच्छा उत्पन्न होती है और इस तरह यह क्रम निरन्तर चलता ही रहता है।
प्रश्न 3.
अंगूरीलता संचार के विभिन्न नेटवर्क बताएँ।
उत्तर:
अंगूरीलता सम्प्रेषण-अंगूरीलता सम्प्रेषण विभिन्न प्रकार के तन्त्र द्वारा सम्भव है। इस प्रकार के सम्प्रेषण के प्रमुख तन्त्र निम्नलिखित हैं-
इस प्रकार के अंगूरीलता सम्प्रेषण तन्त्र में 'समूह' संगठन में सबसे अधिक लोकप्रिय है।
प्रश्न 4.
निर्देशित करने के किन्हीं तीन सिद्धांतों की व्याख्या करें।
उत्तर:
निर्देशन के सिद्धान्त
अच्छा तथा प्रभावी निर्देशन प्रदान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि इसमें बहुत-सी जटिलताएँ सम्मिलित हैं। निर्देशन के कुछ मार्गदर्शक सिद्धान्त हैं जो निर्देशन की प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं। इन सिद्धान्तों को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-
1. अधिकतम व्यक्तिगत योगदान का सिद्धान्तनिर्देशन का यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि निर्देशन की तकनीकें सभी व्यक्तियों को संस्था में इस प्रकार सहायता दें कि वे अपनी सम्भावित क्षमताओं का अधिकतम योगदान सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में दे सकें और संस्था के कुशल निष्पादन के लिए कर्मचारियों की अप्रयुक्त ऊर्जा को उभार कर प्रयोग में ला सकें।
2. सांगठनिक उद्देश्यों में तालमेल का सिद्धान्त-यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि अच्छा निर्देशन वही है जो व्यक्तिगत हितों तथा सामान्य हितों में तालमेल बिठाता है तथा कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाता है कि कार्यकुशलता तथा पारिश्रमिक दोनों एकदूसरे के पूरक हैं।
3. आदेश की एकता का सिद्धान्त-निर्देशन का यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि कर्मचारी को केवल एक ही उच्च अधिकारी से आदेश मिलने चाहिए। यदि आदेश एक से अधिक अधिकारियों से मिलते हैं, तो यह भ्रान्ति पैदा करते हैं तथा संस्था में द्वन्द्व तथा अव्यवस्था फैलाते हैं।
प्रश्न 5.
एक संगठन में, विभागीय प्रबंधकों में से एक दृढ़ है और एक बार निर्णय लेने के बाद वह विरोधाभास नहीं चाहता। परिणामस्वरूप, कर्मचारियों को हमेशा लगता है कि वे तनाव में हैं और प्रबंधक के सामने अपनी राय और समस्याओं को व्यक्त करने में डरते हैं। प्रबंधक द्वारा अपने अधिकार के प्रयोग के तरीके में क्या समस्या है?
उत्तर:
प्रबंधक ने संस्था में कार्य पर एक वातावरण बना रखा है कि जिसमें प्रत्येक कर्मचारी अपने आपको तनाव में महसूस करता है। कर्मचारियों के इस तनाव को दूर करने के लिए अग्र कदमों का सहारा लिया जाना चाहिए-
प्रश्न 6.
एक प्रतिष्ठित हॉस्टल 'ज्ञानप्रदान' अपने कर्मचारियों के बच्चों को चिकित्सा सहायता और मुक्त शिक्षा प्रदान करता है। यहाँ कौन-सा प्रोत्साहन उजागर किया जा रहा है? इसकी श्रेणी बताएँ और उसी श्रेणी के किन्हीं दो प्रोत्साहनों का नाम दें।
उत्तर:
ज्ञानप्रदान अपने कर्मचारियों के बच्चों को चिकित्सा सहायता. और मुक्त शिक्षा प्रदान करता है। यहाँ अनुलाभ/परक्विजट प्रोत्साहन उजागर किया जा रहा है। अनुलाभ/परक्विजट वित्तीय प्रोत्साहन का एक प्रकार है। कुछ अन्य वित्तीय प्रोत्साहन हैं-
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक अच्छे नेतृत्वकर्ता के गुणों की व्याख्या करें। क्या महज गुण नेतृत्व की सफलता सुनिश्चित करते हैं ?
उत्तर:
एक अच्छे नेता के गुण
एक अच्छे नेता या नेतृत्व के अभाव में किसी भी व्यावसायिक संस्था व अन्य संस्थाओं की सफलता संदिग्ध ही रहती है। अतः संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में नेतृत्व की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। यद्यपि विभिन्न विद्वानों ने एक अच्छे नेता के भिन्न-भिन्न गुण आवश्यक बतलाये हैं, किन्तु एक नेता बनने के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-
1. शारीरिक विशेषताएँ-एक अच्छे नेता में कुछ शारीरिक विशेषताएँ; जैसे-कद, वजन, स्वास्थ्य, रूपरंग/उपस्थिति उसके शारीरिक व्यक्तित्व को निर्धारित करती है। ये शारीरिक विशेषताएँ लोगों को आकर्षित करती हैं। स्वास्थ्य तथा सहनशीलता एक नेता को श्रमपूर्वक कार्य करने में सहायता देती है जो दूसरों को उसी उत्साह तथा लगन से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
2. ज्ञान एवं कौशल-एक अच्छा नेता वही माना जाता है जिसमें ज्ञान एवं कौशल का गुण भी विद्यमान है। क्योंकि केवल ऐसे ही व्यक्ति अपने अधीनस्थों को सही रूप में आदेश दे सकते हैं और प्रभावित कर सकते हैं।
3. सत्यनिष्ठा/ईमानदारी-एक अच्छे नेता में सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी का गुण भी होना चाहिए। वह दूसरों के लिए एक आदर्श होना चाहिए, जिन नैतिकता तथा मूल्यों का वह प्रचारक है।
4. पहल-एक अच्छे नेता में साहस तथा पहल शक्ति की भावना अवश्य होनी चाहिए। उसे यह इन्तजार नहीं करना चाहिए कि कब उसे सुअवसर मिले, बल्कि उसे तो सुअवसर को हथियाना है तथा संस्था के लाभ के लिए प्रयोग करना है, वह करना चाहिए। .
5. सम्प्रेषण कौशल-एक अच्छा नेता तभी होता है जबकि उसमें सम्प्रेषण कला अत्यधिक हो। उसमें अपने विचारों को स्पष्ट रूप से समझाने की योग्यता होनी चाहिए तथा यह भी कि लोग उसके विचारों को समझ सकें। नेता को एक अच्छा एवं कुशल नेता ही नहीं होना चाहिए वरन् एक अच्छा श्रोता, शिक्षक, परामर्शदाता तथा विश्वासपात्र भी होना चाहिए। इस गुण के कारण ही वह अपने अनुयायियों या अधीनस्थों से कार्य करवा सकता है।
6. अभिप्रेरणा कौशल-एक अच्छे नेता में प्रभावी अभिप्रेरक का गुण भी होना चाहिए। उसे लोगों से कार्य करवाने की कला में दक्ष होना चाहिए। इसके लिए उसे लोगों की आवश्यकताओं को समझना चाहिए तथा उनकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के द्वारा उन्हें : प्रेरित करना चाहिए।
7. आत्मविश्वास-एक नेता में उच्चस्तरीय आत्म-विश्वास का गुण भी होना चाहिए। उसे कठिनाई के समय में भी आत्मविश्वास को बनाये रखना चाहिए।
8. निर्णय लेने की क्षमता-एक अच्छे नेता में निर्णय लेने की क्षमता का होना भी आवश्यक होता है। जब वह किसी तथ्य के बारे में पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो जाये और पूरे तौर पर ठीक लगे तब ही निर्णय लेना चाहिए। अपने निर्णयों को बार-बार नहीं बदलना चाहिए।
9. सामाजिक कौशल-एक नेता को सबसे मिल-जुलकर रहना चाहिए तथा अपने सहकर्मियों तथा अनुयायियों से मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। उसे व्यक्तियों को समझना चाहिए तथा उनके साथ अच्छे मानवीय सम्बन्ध बनाकर रखने चाहिए।
उपर्युक्त गुणों से यह अभिप्राय है कि एक अच्छा नेता बनने के लिए इन गुणों की आवश्यकता है परन्तु यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि ये सारे गुण एक नेता में पाये जायें। एक नेता में इन गुणों की समझ अवश्य होनी चाहिए। ये गुण ही ऐसे गुण हैं जो नेतृत्व की सफलता को निश्चित भी करते हैं।
प्रश्न 2.
मास्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर:
मास्लो की आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
एक विख्यात मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो ने अपने एक उत्कृष्ट लेख जो 1943 में प्रकाशित हुआ था, में समग्र अभिप्रेरणा के सिद्धान्त के तत्त्वों की रूपरेखा संक्षेप में दी है। मास्लो का आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धान्त मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित है। उनका अनुभव था कि प्रत्येक मनुष्य के अन्दर निम्न प्रकार की आवश्यकताएँ क्रमानुसार होती हैं-
(1) आधारभूत/शारीरिक आवश्यकताएँ-ये आवश्यकताएँ क्रम में सबसे आधारभूत हैं तथा मनुष्य की प्रारम्भिक आवश्यकताएँ हैं। भूख, प्यास, धन, नींद तथा काम (सैक्स) इत्यादि कुछ इसी प्रकार की आवश्यकताएँ हैं। सांगठनिक सन्दर्भ में आधिकारिक वेतन इन सभी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करता है।
(2) सुरक्षा आवश्यकताएँ-शारीरिक आवश्यकताओं के पश्चात् सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएँ आती हैं। ये आवश्यकताएँ सुरक्षा तथा किसी भी शारीरिक तथा मनोवेगों की क्षति से बचाव प्रदान करने का कार्य करती हैं। पद में सुरक्षा, आय स्रोत में स्थिरीकरण/नियमितता, सेवानिवृत्ति योजना, पेंशन आदि इसी प्रकार की आवश्यकताएँ हैं।
(3) संस्था से जुड़ाव/संस्था से सम्बन्ध अर्थात् सामाजिक आवश्यकताएँ-ये आवश्यकताएँ स्नेह, संस्था से सम्बन्ध, स्वीकृति अथवा मित्रता जैसे भावों से सम्बन्धित होती हैं।
(4) मान-सम्मान (प्रतिष्ठा) अर्थात् अहम आवश्यकताएँ-ये आवश्यकताएँ उन कारकों को सम्मिलित करती हैं, जैसे आत्म-सम्मान, पद-स्वायत्तता, पहचान तथा ध्यान, आदर-सत्कार, प्रशंसा इत्यादि।।
(5) आत्म-सन्तुष्टिं आवश्यकताएँ-मास्लो ने इन आवश्यकताओं को आवश्यकता-क्रम श्रृंखला में सबसे अन्त में रखा है। ये उन भावनाओं/आवेगों को बतलाती हैं जो किसी के अन्दर उस विद्यमान योग्यता की, जो वह बन सकता है। ये आवश्यकताएँ विकास, आत्म-सन्तुष्टि तथा उद्देश्यों की पूर्ति को सम्मिलित करती हैं।
मास्लो का आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा सिद्धान्त निम्नलिखित संकल्पनाओं या मान्यताओं पर आधारित है-
मास्लो का सिद्धान्त, आवश्यकताओं को अभिप्रेरणा के आधार के रूप में केन्द्रित करता है। यह सिद्धान्त बहुत ही उपयोगी सिद्धान्त सिद्ध हुआ है। यद्यपि, मास्लो के सिद्धान्त की कुछ संकल्पनाओं पर प्रश्न उठे हैं जो आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रमबद्धता से सम्बन्धित हैं। परन्तु, इन आलोचनाओं के बावजूद यह सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। क्योंकि आवश्यकताएँ चाहे वे किसी भी प्रकार से वर्गीकृत की गई हैं, व्यवहार को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह प्रबन्धकों को यह समझाने में सहायता करती है कि कर्मचारियों की आवश्यकता के स्तर को पहचान कर उसे अभिप्रेरित किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
प्रभावी संचार के लिए आम बाधाएँ क्या हैं ? उन्हें दूर करने के उपायों का सुझाव दें।
उत्तर:
प्रभावी सम्प्रेषण की सामान्य बाधाएँ
प्रभावी सम्प्रेषण में आने वाली सामान्य बाधाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर समझाया जा सकता है-
I. संकेतिक/संकेतीय बाधाएँ-
संकेतिक बाधाएँ उन समस्याओं तथा बाधाओं से सम्बन्धित हैं जो सन्देश की एनकोडिंग तथा डिकोडिंग करने की प्रक्रिया में उन्हें शब्दों अथवा संकेतों में परिवर्तित करते समय आती हैं। सामान्यतया ऐसी बाधाएँ गलत शब्दों के प्रयोग के कारण, त्रुटिपूर्ण रूपान्तरण, भिन्न अर्थ निकालने इत्यादि के कारण उत्पन्न होती हैं।
संकेतिक/संकेतीय बाधाओं में निम्नलिखित बाधाएँ सम्मिलित हैं-
II. मनोवैज्ञानिक बाधाएँ-
भावात्मक अथवा मनोवैज्ञानिक कारक सम्प्रेषकों की बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक बाधाएँ निम्नलिखित हैं-
III. सांगठनिक बाधाएँ-
वे कारक जो सांगठनिक संरचना, आधारिक सम्बन्धों, नियम तथा अधिनियम इत्यादि से सम्बन्धित हैं, कभी-कभी प्रभावी सम्प्रेषण में बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं। इस प्रकार की कुछ प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं-
IV. व्यक्तिगत बाधाएँ-
सन्देश भेजने वाले तथा सन्देश प्राप्तकर्ता दोनों के व्यक्तिगत कारक भी प्रभावी सम्प्रेषण पर असर डाल सकते हैं। अधिकारी तथा अधीनस्थों के सम्बन्ध में कुछ व्यक्तिगत बाधाएँ इस प्रकार हैं-
प्रभावी सम्प्रेषण में आने वाली
बाधाओं को दूर करने के उपाय
प्रश्न 4.
किसी कंपनी के कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न वित्तीय और गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों की व्याख्या करें।
उत्तर:
कम्पनी के कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए प्रयोग में आने वाले विभिन्न वित्तीय तथा गैर-वित्तीय प्रोत्साहन-
I. वित्तीय प्रोत्साहन-सामान्यतः निम्नलिखित वित्तीय प्रोत्साहनों को संगठन में उपयोग में लाया जा सकता है
1. वेतन तथा भत्ता-प्रत्येक कर्मचारी के लिए वेतन एक आधारिक वित्तीय प्रोत्साहन है। इसमें आधारभूत वेतन, महँगाई भत्ता तथा अन्य भत्ते शामिल हैं। इसमें समय-समय पर वेतन व भत्तों में होने वाली बढ़ोतरी भी सम्मिलित है।
2. उत्पादकता सम्बन्धित पारिश्रमिक/मजदूरी प्रोत्साहन-बहुत-सी पारिश्रमिक प्रोत्साहन योजनाओं को वित्तीय प्रोत्साहन में सम्मिलित किया जाता है, क्योंकि इनका लक्ष्य पारिश्रमिक के भुगतान को उनकी व्यक्तिगत सामूहिक स्तर की उत्पादकता के साथ जोड़कर उत्पादकता को बढ़ाना है।
3. बोनस/अधिलाभांश-बोनस वह प्रोत्साहन है जो कर्मचारियों को उनकी मजदूरी/वेतन के ऊपर अथवा अतिरिक्त दिया जाता है।
4. लाभ में भागीदारी-लाभ में भागीदारी का अर्थ कर्मचारियों को संगठन के लाभ में उनका हिस्सा देना है। यह कर्मचारियों को अपना निष्पादन सुधारने की प्रेरणा देता है ताकि वे लाभ बढ़ाने में अपना अधिकतम योगदान दे सकें।
5. सह-साझेदारी/स्कन्ध (स्टॉक) विकल्पवित्तीय प्रोत्साहन की इन योजनाओं के अन्तर्गत ङ्के कर्मचारियों को एक निर्धारित कीमत पर कम्पनी के शेयर दिये जाते हैं जो बाजार की कीमत से कम होते हैं। कुछ स्थितियों में प्रबन्ध विभिन्न प्रोत्साहन जो नकद में दिये जाते हैं उनकी जगह उन्हें शेयर भी आबंटित कर सकती है। शेयर का आबंटन कर्मचारियों में एक स्वामित्व की भावना को जाग्रत करता है तथा उन्हें प्रेरित करता है कि वे संगठन के विकास में अपना अधिकतम योगदान दें।
6. सेवानिवृत्ति लाभ-बहुत से सेवानिवृत्ति लाभ जैसे भविष्य निधि, पेंशन, ग्रेच्यूटी इत्यादि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को वित्तीय सहायता एवं सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह उस समय भी एक प्रोत्साहन का कार्य करता है जब कर्मचारी संस्था में कार्य करता है।
7. अनुलाभ/परक्विजट-बहुत-सी संस्थाएँ अपने कर्मचारियों को अनुलाभ तथा फ्रिंज बेनिफिट भी देती हैं, जैसे कार भत्ता, घर की सुविधा, चिकित्सा सहायता तथा बच्चों के लिए शिक्षा इत्यादि।
II. गैर-वित्तीय प्रोत्साहन/अमौद्रिक अभिप्रेरणा-
मनुष्य की सभी आवश्यकताएँ केवल पैसे अर्थात् वित्त से ही सन्तुष्ट नहीं होतीं। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा संवेगी कारक भी मनुष्य को अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने या अभिप्रेरित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गैर-वित्तीय प्रोत्साहन या अमौद्रिक अभिप्रेरणा मुख्यतः इन आवश्यकताओं पर केन्द्रित है। निम्नलिखित कुछ महत्त्वपूर्ण गैर-वित्तीय प्रोत्साहन या अमौद्रिक प्रेरणाएँ हैं जो मनुष्य को अभिप्रेरित करती हैं-
1. पद-प्रतिष्ठा/ओहदा-पद-प्रतिष्ठा/ओहदा को गैर-वित्तीय प्रोत्साहन योजना में सम्मिलित किया जाता है। सत्ता, उत्तरदायित्व, प्रतिफल, पहचान, अनुलाभ तथा पद-प्रतिष्ठा इत्यादि किसी व्यक्ति के प्रबन्धकीय पद पर होने के परिचायक हैं। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा मान-सम्मान/प्रतिष्ठा सम्बन्धित आवश्यकताएँ मनुष्य की पद को दी गई प्रतिष्ठा तथा सत्ता द्वारा पूरी हो जाती हैं।
2. सांगठनिक वातावरण-संस्था में कर्मचारियों को एक अच्छा वातावरण प्रदान करना भी गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों में सम्मिलित किया जाता है। जैसे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, पारिश्रमिक अभिविन्यास, कर्मचारियों का ध्यान रखना, जोखिम उठाना आदि। यदि प्रबन्धक इन सभी पहलुओं पर सकारात्मक कदम उठाता है तो यह बेहतर सांगठनिक वातावरण निर्माण/विकास में सहायता करती है।
3. जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर- प्रत्येक व्यक्ति संस्था में उच्च स्तर पर पहुँचना चाहता है। प्रबन्धकों को यह अवसर अधिक से अधिक अपने कर्मचारियों को उपलब्ध करवाकर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि कर्मचारी अपने कौशल को सुधार सकें तथा उन्हें उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्ति अथवा पदोन्नति मिल सके।
4. पद-संवर्द्धन-यदि पद-संवर्द्धन किया जाये तथा उन्हें रुचिपूर्ण बनाया जाये, तो कार्य अपने आप में कर्मचारी के लिए अभिप्रेरणा का स्रोत बन जायेगा।
5. कर्मचारियों को पहचान/मान-सम्मान देने सम्बन्धित कार्यक्रम-प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि उसके कार्य का मूल्यांकन हो तथा उसे उपयुक्त पहचान मिले। पहचान का अर्थ है उसके काम को पहचानना, उसे सराहना देना। इस प्रकार की प्रशंसा कर्मचारियों को उनके कार्य-निष्पादन के लिए की जाती है, तो वे उच्च स्तर का कार्य करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
6. पद-सुरक्षा/स्थायित्व-कर्मचारी चाहते हैं तो उनका पद सुरक्षित रहे। उन्हें अपने भविष्य की आय तथा कार्य दोनों के लिए निश्चित स्थिरता/स्थायित्व चाहिए ताकि उन्हें इन पक्षों पर चिन्ता न हो तथा अपना कार्य बड़े उत्साह से कर सकें।
7. कर्मचारियों की भागीदारी-कर्मचारियों की भागीदारी से तात्पर्य है कर्मचारियों से सम्बन्धित निर्णय लेने में उन्हें शामिल करना। इस प्रकार की भागीदारी कार्यक्रम, संयुक्त प्रबन्ध समिति, कार्यसमिति तथा जलपानगृह समिति इत्यादि में दी जा सकती है।
प्रश्न 5.
एक संगठन में सभी कर्मचारी चीजों को आसान बनाते हैं और मामूली प्रश्नों और समस्याओं के लिए किसी से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके परिणामस्वरूप हर कोई एक-दूसरे पर दायित्व डालता है और इस प्रकार कार्यालय में अक्षमता उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप गोपनीयता कम हुई है और गोपनीय जानकारी बाहर गयी है। आपके अनुसार प्रबंधक को संचार में सुधार करने के लिए कौन-सी प्रणाली अपनानी चाहिए?
उत्तर:
संगठन में कर्मचारियों को कार्य की स्वतन्त्रता मिलना संगठनात्मक उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने की प्रथम आवश्यकता है और ऐसा होना भी चाहिए, किन्तु कर्मचारियों को इतनी स्वतन्त्रता भी नहीं होनी चाहिए कि संगठन में अकुशल वातावरण बन जाये। संगठन का वातावरण अच्छा बनाने तथा संगठनात्मक उद्देश्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं-