RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 1 प्रबन्ध की प्रकृति एवं महत्त्व

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RBSE Class 12 Business Studies Chapter 1 Notes प्रबन्ध की प्रकृति एवं महत्त्व

→ वर्तमान समय में प्रबन्ध की आवश्यकता प्रत्येक संगठन में होती है, चाहे वह कम्प्यूटर के विनिर्माता हैं अथवा हस्तशिल्प के उपभोक्ता की वस्तुओं में व्यापार करते हैं या फिर केश-सजा सेवाएँ प्रदान करते हैं एवं वह गैरव्यावसायिक संगठन भी हो सकते हैं। कोई भी संगठन हो तथा उसके कुछ भी उद्देश्य हों, उन सब में एक चीज समान हैं और वह है प्रबन्ध एवं प्रबन्धक।

→ वस्तुतः संगठन चाहे वह बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबन्ध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबन्ध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें।

→ प्रबन्ध में पारस्परिक रूप से सम्बन्धित वे कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबन्धक करते हैं, चाहे टाटा स्टील के जमशेद टाटा हों या फिर नामची डिज़ाइनर कैंडल्स की स्मिता राय। प्रबन्धक अलग-अलग कार्यों पर अलग समय लगाते हैं। संगठन के उच्च स्तर पर बैठे प्रबन्धक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबन्धकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 1 प्रबन्ध की प्रकृति एवं महत्त्व

→ अवधारणा: प्रबन्ध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया जाता है। प्रबन्ध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदान करता है। प्रबन्ध यह देखता है कि कार्य पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किये जायें (अर्थात् प्रभावपूर्णता) कम-से-कम साधन एवं न्यूनतम लागत (अर्थात् कार्य क्षमता) पर हो। इस प्रकार प्रबन्ध उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा करने की प्रक्रिया है। अन्य शब्दों में, प्रबन्ध संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उद्यम के संसाधनों का कुशलता एवं प्रभावी ढंग से नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियन्त्रण की प्रक्रिया है।

→ प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ

  • प्रबन्ध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है,
  • प्रबन्ध सर्वव्यापी है,
  • प्रबन्ध बहुआयामी है। इसके प्रमाण हैं--कार्य का प्रबन्ध, लोगों का प्रबन्ध, परिचालन का प्रबन्ध,
  • प्रबन्ध एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है,
  • प्रबन्ध एक सामूहिक प्रक्रिया है,
  • प्रबन्ध एक गतिशील कार्य है,
  • प्रबन्ध एक अमूर्त शक्ति है।

→ प्रबन्ध के उद्देश्य-प्रबन्ध के उद्देश्य हैं

  • संगठनात्मक उद्देश्य-अपने अस्तित्व को बनाये रखना, लाभ कमाना, व्यवसाय की बढ़ोतरी करना
  • सामाजिक उद्देश्य
  • कर्मचारीगण संबंधी उद्देश्य।

→ प्रबन्ध का महत्त्व:
प्रबन्ध का महत्त्व इस रूप में है क्योंकि यह

  • सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
  • प्रबन्ध क्षमता में वृद्धि करता है।
  • गतिशील संगठन का निर्माण करता है।
  • व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  • समाज के विकास में सहायक होता है।

→ प्रबन्ध की प्रकृति
(1) प्रबन्ध एक कला है क्योंकि

  • सफल प्रबन्धक प्रबन्ध कला का उद्यम के दिनप्रतिदिन के प्रबन्ध में उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है।
  • कला की भाँति प्रबन्ध के भी कुछ सर्वमान्य सिद्धान्त हैं, जिनका उपयोग प्रबन्ध के विद्यार्थी अपनी सजनात्मकता के आधार पर अलग-अलग करते हैं ।
  • कला की भाँति प्रबन्ध अपने ज्ञान का उपयोग परिस्थितिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्तिनुसार एवं दक्षतानुसार करता है।

(2) प्रबन्ध एक विज्ञान के रूप में प्रबन्ध एक विज्ञान है क्योंकि

  • विज्ञान की भाँति प्रबन्ध भी क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है। इसके अपने सिद्धान्त एवं नियम हैं जो समय-समय पर विकसित हुए हैं।
  • प्रबन्ध के सिद्धान्त भी विभिन्न संगठनों में बार-बार के परीक्षण एवं अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं।
  • प्रबन्ध के सिद्धान्त, विज्ञान के सिद्धान्तों के समान विशुद्ध नहीं होते हैं और न ही उनकी तरह उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जाता है।

(3) प्रबन्ध एक पेशे के रूप में-प्रबन्ध एक पेशा है क्योंकि इसमें पेशे की कुछ विशेषताएँ होती हैं जो निम्न हैं

  • सम्पूर्ण विश्व में प्रबन्ध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है ।
  • पेशे की भाँति प्रबन्ध में भी ज्ञान एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • प्रबन्ध में लगे प्रबन्धकों के कई संगठन हैं जिन्होंने अपने सदस्यों के कार्यों के नियमन के लिए आचार संहिता बनायी है।
  • प्रबन्ध का मूल उद्देश्य संगठन को अपने उद्देश्यों की. प्राप्ति में सहायता करना है।।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 1 प्रबन्ध की प्रकृति एवं महत्त्व

→ प्रबन्ध के स्तर

  1. उच्च स्तरीय प्रबन्ध
  2. मध्यस्तरीय प्रबन्ध
  3. पर्यवेक्षीय अथवा प्रचालन प्रबन्ध ।

→ प्रबन्ध के कार्य

  1. नियोजन
  2. संगठन
  3. कर्मचारी नियुक्तिकरण
  4. निर्देशन
  5. नियन्त्रण।

→ समन्वय प्रबंध का सार है: समन्वय वह शक्ति है जो प्रबन्ध के अन्य सभी कार्यों को एक दूसरे से बांधती है। यह एक ऐसा धागा है जो संगठन के कार्य में निरन्तरता बनाये रखने के लिए क्रय, उत्पादन, विक्रय एवं वित्त जैसे सभी कार्यों को पिरोये रखता है। समन्वय प्रबन्ध का सार है क्योंकि यह संगठन के परस्पर निर्भर क्रियाओं एवं विभिन्न विभागों की गतिविधियों की एकात्मकता की प्रक्रिया है।

→ समन्वय की प्रकृति

  • समन्वय सामूहिक कार्यों में एकात्मकता लाता है।
  • समन्वय कार्यवाही में एकता लाता है।
  • समन्वय निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • समन्वय सर्वव्यापी कार्य है।
  • समन्वय सभी प्रबन्धकों का उत्तरदायित्व है।
  • समन्वय सोचा-समझा कार्य है।

→ समन्वय का महत्त्व:
बड़े संगठनों में व्याप्त विभिन्न प्रकार की जटिलताओं की स्थिति में समन्वय जैसे विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। संगठन के आकार, कार्यात्मक विभेदीकरण तथा विशिष्टीकरण की स्थिति में समन्वय का अत्यधिक महत्त्व होता है।

→ इक्कीसवीं शताब्दी में प्रबंधन:
जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियाँ एवं देशों की सीमाएँ धुंधली पड़ती जा रही हैं एवं सम्प्रेषण की नई-नई तकनीकों के विकास के कारण विश्व को एक 'वैश्विक गाँव' समझा जाने लगा है, अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सांस्कृतिक संबंधों का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। आज का संगठन एक वैश्विक संगठन है जिसका प्रबन्ध वैश्विक परिदृश्य में ही किया जाता है। वैश्विक प्रबंधक वह है जिसके पास 'हार्ड' एवं 'सॉफ्ट' | दोनों प्रकार के कौशल हैं। ऐसे में प्रबन्धकों की भूमिका में भी परिवर्तन आया है।

Prasanna
Last Updated on July 2, 2022, 3:14 p.m.
Published June 17, 2022