RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार Important Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1. 
वित्तीय बाजार का प्रमुख प्रकार्य है-
(अ) बचतों को गतिशील बनाना 
(ब) मूल्य खोज को सुसाध्य बनाना
(स) वित्तीय परिसम्पत्तियों हेतु द्रवता उपलब्ध करामा
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

प्रश्न 2. 
मुद्रा बाजार कितनी अवधि की द्रव्य परिसम्पत्तियों का निपटान करता है? 
(अ) जिनकी परिपक्वता अवधि 6 महीने की हो।
(ब) जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष की हो। 
(स) जिनकी परिपक्वता अवधि तीन वर्ष की हो। 
(द) जिनकी परिपक्वता अवधि कम-से-कम पाँच वर्ष की हो। 
उत्तर:
(ब) जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष की हो। 

प्रश्न 3. 
द्रव्य बाजार प्रपत्र की परिपक्वता अवधि होती है.
(अ) अधिकतम 15 दिन
(ब) अधिकतम एक वर्ष 
(स) अधिक से अधिक तीन महीने
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं 
उत्तर:
(ब) अधिकतम एक वर्ष 

प्रश्न 4. 
वाणिज्यिक (तिजारती) पत्र की परिपक्वता अवधि होती है-
(अ) एक वर्ष 
(ब) 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक 
(स) एक दिन से 15 दिन तक
(द) एक निश्चित तिथि पर 
उत्तर:
(ब) 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 5. 
एक व्यापारिक बिल बैंक द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो इसे किस नाम से जाना जाता है-
(अ) राजकोष बिल 
(ब) वाणिज्यिक पत्र 
(स) वाणिज्यिक बिल 
(द) बचत प्रमाणपत्र
उत्तर:
(द) बचत प्रमाणपत्र

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) का एक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) का उद्देश्य सभी प्रकार की प्रतिभूतियों हेतु राष्ट्रव्यापी व्यापार सुविधा स्थापित करना है।

प्रश्न 2. 
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को वैधानिक निकाय का दर्जा कब दिया गया?
उत्तर:
30 जनवरी, 1992 को सेबी को वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 3. 
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना 'अंतरिम प्रशासनिक निकाय' के रूप में कब की गई?
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना 12 अप्रैल, 1988 को 'अंतरिम प्रशासनिक निकाय' के रूप में की गई थी।

प्रश्न 4. 
वित्तीय बाजार का क्या कार्य है?
उत्तर:
बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें अधिकाधिक उत्पादक उपयोग में लगाना।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 5. 
'बदला' किसे कहते हैं ?
उत्तर:
शेयर बाजार में लेन-देन या तो नकदी आधार पर या आगे ले जाना आधार पर किया जाता है। इस आगे ले जाने वाले आधार को 'बदला' कहा जाता है। यह एक ऐसी सुविधा है जो एक निपटान अवधि से दूसरे में एक लेन-देन की भुगतान या डिलीवरी (देयता) को रोकने की अनुमति देती है।

प्रश्न 6. 
'दलाल' को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
दलाल शेयर बाजार का सदस्य होता है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों का व्यापार किया जाता है। ये वैयक्तिक, साझेदारी फर्म अथवा निगमित निकाय के रूप में हो सकते हैं। ये क्रेता व विक्रेता के मध्य मध्यस्थ होते हैं।

प्रश्न 7. 
प्राथमिक पूँजी बाजार क्या है ?
उत्तर:
प्राथमिक पूँजी बाजार वह बाजार है जिसमें दीर्घकालीन पूँजी एकत्रित करने के लिए अंशों, ऋणपत्रों एवं अन्य प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है। इसका सम्बन्ध नये निर्गमनों से होता है।

प्रश्न 8. 
आई.पी.ओ. क्या है?
उत्तर:
इनीशियल पब्लिक ऑफर (इलेक्ट्रॉनिक आरम्भिक सार्वजनिक निर्गम)।

प्रश्न 9. 
वित्तीय बाजार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वित्तीय बाजार वित्तीय परिसम्पत्तियों के विनिमय एवं सृजन के लिए एक बाजार है। यह बचतकर्ता तथा निवेशक को जोड़ने का कार्य करता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 10. 
जब वित्तीय बाजार में विनियोजन कार्य सर्वोत्तम ढंग से निष्पादित होता है तो उसके क्या परिणाम होते हैं?
उत्तर:

  • घरानों (हाउसहोल्ड) को प्रस्तावित वापसी दर उच्च होती है।
  • उन फर्मों के लिए दुर्लभ संसाधनों का विनियोग किया जाता है, जो अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) के लिए उच्च उत्पादकता करते हैं।

प्रश्न 11. 
मुद्रा बाजार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मुद्रा बाजार का अभिप्राय एक ऐसे बाजार से है जिसमें अल्पकालीन प्रतिभूतियों में (भुगतान समय एक वर्ष) व्यवहार किया जाता है। 

प्रश्न 12. 
पूँजी बाजार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पूँजी बाजार में दीर्घकालीन प्रतिभूतियों में व्यवहार किया जाता है। इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली प्रतिभूतियों का अभिप्राय अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी बॉण्ड आदि से है।

प्रश्न 13. 
द्वितीयक बाजार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
द्वितीयक बाजार वह बाजार है जिसमें पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है। इस बाजार में व्यवहार प्रायः स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से होता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 14. 
द्वितीयक बाजार की कोई दो विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:

  • द्वितीयक बाजार तरलता उत्पन्न करता है।
  • यह नये निवेशकों को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 15. 
प्राथमिक बाजार की विशेषताएँ बतलाइये। (कोई दो)
उत्तर:

  • प्राथमिक बाजार का सम्बन्ध नये निर्गमनों से है। 
  • प्राथमिक बाजार में पूँजी एकत्रित करने की विधियाँ हैं।

प्रश्न 16. 
मुद्रा बाजार के प्रमुख अंग बतलाइये।
उत्तर:

  • ट्रेजरी (राजकोष) बिल 
  • वाणिज्यिक (या तिजारती) पत्र 
  • शीघ्रावधि 
  • बचत प्रमाणपत्र 
  • वाणिज्यिक बिल।

प्रश्न 17. 
राजकोष बिल किसे कहते हैं?
उत्तर:
राजकोष बिल मूलतः एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले भारत सरकार के द्वारा ऋण दान के रूप में दिया जाने वाला एक अल्पकालिक प्रपत्र होता है।

प्रश्न 18. 
वाणिज्यिक पत्रों की परिपक्वता अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
वाणिज्यिक पत्रों की परिपक्वता अवधि प्रायः 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 19. 
शून्य कूपन बंध पत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यह केन्द्रीय सरकार के पक्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निधि की अल्पकालीन जरूरतों के लिये जारी किया जाता है।

प्रश्न 20. 
शीघ्रावधि द्रव्य से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यह एक लघुकालिक माँग पर पुनर्भुगतान वित्त है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक होती है तथा अन्तर बैंक अन्तरण के लिए उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 21. 
वाणिज्यिक बिल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वाणिज्यिक बिल एक अल्पकालिक, पारक्रम्य (बेचनीय) स्वयं द्रवीकृत प्रपत्र है जो एक फर्म की उधार बिक्री को वित्तीयन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 22. 
'विक्रय के लिये प्रस्ताव' क्या है?
उत्तर:
इस विधि में प्रतिभूतियों को सीधे जनता को निर्गमित नहीं किया जाता है बल्कि निर्गमन/जारीकर्ता गृहों या स्टॉक दलाल जैसे माध्यमकों द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तावित किये जाते हैं।

प्रश्न 23. 
मुद्रा बाजार एवं पूँजी बाजार में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मुद्रा बाजार अल्पकालिक पूँजी जुटाता है, जबकि पूँजी बाजार मध्य से लेकर दीर्घकालिक निधि उपलब्ध कराता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 24. 
शेयर बाजार की कोई चार विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:

  • यह एक संगठित बाजार है। 
  • विभिन्न संस्थाओं द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में व्यवसाय
  • केवल अधिकृत सदस्यों द्वारा व्यवहार 
  • नकद पर सुपुर्दगी नहीं।

प्रश्न 25. 
शेयर बाजार के क्या क्रियाकलाप हैं ? (कोई दो)
उत्तर:

  • आर्थिक प्रगति हेतु भागीदारी 
  • लेन-देन की सुरक्षा।

प्रश्न 26. 
भारत में स्थापित पहले स्टॉक एक्सचेंज का नाम लिखिये।
उत्तर:
नेटिव शेयर एवं स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन, बम्बई (मुम्बई)।

प्रश्न 27. 
वर्ष 1991 में सुधारों के पश्चात् भारतीय द्वितीयक बाजार में तीन स्तरीय स्वरूप प्राप्त किया। इसमें क्या-क्या शामिल थे?
उत्तर:

  • क्षेत्रीय शेयर बाजार 
  • राष्ट्रीय शेयर बाजार 
  • ओवर द काउंटर एक्सचेंज ऑफ इण्डिया।

प्रश्न 28. 
अंश प्रमाणपत्र से आपका क्या आशय
उत्तर:
एक अंश प्रमाणपत्र एक व्यक्ति को कम्पनी द्वारा आवंटित प्रतिभूतियों के स्वामित्व का प्रमाण-पत्र होता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 29. 
ऑडलाट ट्रेडिंग या न्यून खोज व्यापार से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
100 शेयर या उससे कम के गुणकों में व्यापार को न्यून खेप व्यापार कहा जाता है।

प्रश्न 30. 
पेन्नी स्टॉक से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
ये वे प्रतिभूतियाँ होती हैं जिनकी शेयर बाजार में कोई कीमत नहीं होती है, परन्तु उनका व्यापार सट्टेबाजी में भागीदारी निभाता है।

प्रश्न 31. 
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
यह एक ऐसा स्टॉक एक्सचेंज है जिस पर मध्यम एवं बड़े आकार की कम्पनियों एवं सरकारी प्रतिभूतियों में व्यवहार किया जाता है। यह पूर्णत: कम्प्यूटरीकृत है तथा व्यवहारों की गति में तेजी व पारदर्शिता रहती है।

प्रश्न 32. 
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकता बतलाइये। (कोई दो)
उत्तर:

  • राष्ट्रीय स्तर पर एक स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकता 
  • सौदों की बढ़ती संख्या का होना।

प्रश्न 33. 
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में व्यवहार करने की प्रक्रिया बतलाइये।
उत्तर:

  • आदेश देना 
  • आदेश प्राप्त कर कम्प्यूटर को सन्देश देना 
  • मिलान प्रक्रिया की शुरुआत करना 
  • आदेश स्वीकार करना 
  • सुपुर्दगी देना व भुगतान प्राप्त करना।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 34. 
भारतीय अधिप्रति दावा पटल शेयर बाजार (ओ.टी.सी.ई.आई.) की मुख्य बात बतलाइये।
उत्तर:
यह पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत, पारदर्शी सिंगल विंडो एक्सचेंज है।

प्रश्न 35. 
भारतीय अधिप्रति दावा पटल (ओ.टी.सी. ई.आई.) ने व्यापार कब प्रारम्भ किया?
अथवा 
ओ.टी.सी.ई.आई. ने अपने व्यापार की शुरुआत कब से की थी?
उत्तर:
ओ.टी.सी.ई.आई. ने अपने व्यापार की शुरुआत नवम्बर 1992 से प्रारम्भ की थी।

प्रश्न 36. 
विभौतिकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
निवेशक को एक इलेक्ट्रॉनिक प्रविष्टि दे दी जाती है जिससे वह एक खाते में इलेक्ट्रॉनिक शेष के रूप में प्रतिभूतियाँ रख सकता है। इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रतिभूतियाँ रखने की यह प्रक्रिया विभौतिकरण कहलाती है।

प्रश्न 37. 
भारत में वर्तमान में प्रचलित प्रथम तथा सबसे बड़ी निक्षेपागार किनके द्वारा प्रवर्तित है ?
उत्तर:
इसे आई.डी.बी.आई., यू.टी.आई. तथा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा एक संयुक्त उपक्रम के रूप में प्रवर्तित किया गया था।

प्रश्न 38. 
भारतीय प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम, 1992 क्यों बनाया गया?
उत्तर:
प्रतिभूति व्यवसाय में विनियोजकों के हितों की सुरक्षा करने, स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के व्यवस्थित विकास एवं नियमन करने तथा अन्य सहायक कार्य करने के उद्देश्य से।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 39. 
'सेबी' के प्रमुख कर्त्तव्य बतलाइये।
उत्तर:

  • प्रतिभूतियों में विनियोजकों के हितों की सुरक्षा करना 
  • प्रतिभूति बाजार के विकास को गति प्रदान करना 
  • प्रतिभूति के बाजार का विनियमन करना।

प्रश्न 40. 
'सेबी' के दो विनियमन प्रकार्य बतलाइये।
उत्तर:

  • दलालों एवं उप-दलालों तथा बाजार के अन्य खिलाड़ियों का पंजीकरण करना। 
  • सामूहिक निवेश योजनाओं तथा म्युचुअल फण्डों का पंजीकरण करना।

प्रश्न 41. 
'सेबी' द्वारा गठित प्रमुख समिति के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति 
  • द्वितीयक बाजार सलाहकार समिति।

प्रश्न 42. 
'सेबी' के क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना का उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
सम्बन्धित क्षेत्र के निर्गमनकर्ता, मध्यस्थों तथा शेयर बाजारों के साथ निवेशकों की शिकायतों एवं सम्बद्ध अनुचित कार्यों को देखना क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना का मुख्य कारण है।

प्रश्न 43. 
'सेबी' के प्रमुख उद्देश्य बतलाइये। (कोई दो)
उत्तर:

  • शेयर बाजार तथा प्रतिभूति उद्योग को विनियमित करना। 
  • निवेशकों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 44. 
'सेबी' के कितने प्रकार के कार्य हैं?
उत्तर:

  • सुरक्षात्मक कार्य 
  • नियमनकर्ता 
  • विकासपूर्ण।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
एक शेयर बाजार के निम्न क्रियाकलापों को समझाइए-
(i) प्रतिभूतियों का मूल्यन/भाव 
(ii) सट्टेबाजी के लिए अवसर उपलब्ध कराना।
उत्तर:
(i) प्रतिभूतियों का मूल्यन/भाव-एक शेयर बाजार में शेयर का मूल्य/भाव उसकी माँग एवं आपूर्ति की शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है। एक शेयर बाज़ार सतत् मूल्यन या मूल्य निर्धारण का एक प्रक्रम है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों के मूल्य निर्धारित होते हैं। इस प्रकार का मूल्यन क्रेता एवं विक्रेता दोनों को ही तुरन्त महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराता है।

(ii) सट्टेबाजी के लिए अवसर उपलब्ध करानासामान्य तौर पर यह माना जाता है कि एक निश्चित अंश तक स्वस्थ सट्टेबाजी आवश्यक है जो शेयर बाजार की द्रवता एवं मूल्य निरंतरता को सुनिश्चित करती है। एक शेयर बाज़ार कानूनी प्रावधान के अंतर्गत प्रतिबंधित एवं नियंत्रित तरीके से सट्टा संबंधी क्रियाकलापों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 2. 
प्राथमिक बाजार में अस्थायी पूँजी के लिए निर्गमन की निम्न विधियों को संक्षेप में समझाइये-
(i) विक्रय के लिए प्रस्ताव 
(ii) विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव।
उत्तर:
(i) विक्रय के लिए प्रस्ताव-इस विधि के अन्तर्गत प्रतिभूतियों को सीधे जनता को निर्गमित नहीं किया जाता है, बल्कि निर्गमन/जारीकृर्ता गृहों या स्टॉक दलाल (ब्रोकर्स) जैसे माध्यमों के द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तावित किये जाते हैं। इस मामले में प्रतिभूतियों को एक कम्पनी उन ब्रोकर्स को सहमति मूल्य पर खण्डों में बेचती है जो आगे उन्हें निवेशक पुनः जनता में विक्रय कर सकें।

(ii) विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव- विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव प्राथमिक बाजार में सार्वजनिक कम्पनियों द्वारा निधि उगाहने की एक सर्वाधिक लोकप्रिय विधि है। इसमें विवरण पत्रिका जारी करने के माध्यम से जनता से अंशदान आमन्त्रित करते हैं। एक विवरणिका पूँजी उगाहने के लिए निवेशकों से प्रत्यक्ष अपील करती है जिसके लिए अखबारों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से विज्ञापन जारी किये जाते हैं।

प्रश्न 3. 
शेयर बाजार की निम्न शब्दावलियों को समझाइये-
(i) बदला 
(ii) पेन्नी स्टॉक्स।
उत्तर:
(i) बदला-बदला निपटारे (भुगतान) को अग्रनयन (या आगे बढ़ाने की) प्रणाली को सन्दर्भित करता है, विशेष रूप से बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में होता है। यह एक ऐसी सुविधा है जो एक निपटान अवधि से दूसरे में एक लेन-देन की भुगतान या डिलीवरी (देयता) को रोकने की अनुमति देता है।

(ii) पेन्नी स्टॉक्स-पेन्नी स्टॉक्स वे प्रतिभूतियाँ होती हैं जिनकी शेयर बाजार में कोई कीमत नहीं होती है. परन्तु उनका व्यापार सट्टेबाजी में भागीदारी निभाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 4. 
मुद्रा बजार को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
मुद्रा बाजार-द्रव्य या मुद्रा बाजार. एक छोटी अवधि की निधियों का बाजार है जो ऐसे द्रव्य सम्पत्तियों का निपटान करता है जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक होती है। यह एक ऐसा बाजार है जहाँ कम जोखिम, आरक्षित तथा अल्पकालिक ऋण प्रपत्र होते हैं जो कि उच्च तरल दैनिक निर्गमित तथा सक्रिय तिजारती (व्यापार योग्य) होते हैं। इनकी कोई भौतिक स्थानिकता नहीं होती है परन्तु यह ऐसी क्रिया विधि है जो टेलीफोन व इन्टरनेट के माध्यम से सम्पादित की जाती है। ये मुद्रा बाजार अस्थायी नकदी की कमी एवं देनदारियों के निपटारे की जरूरतों को पूरा करने के लिए अल्पकालिक निधि उगाहने में सक्षम होते हैं तथा आय वापसी के लिए उपयुक्त होते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक, वाणिज्यिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, बड़े औद्योगिक घराने तथा म्युचुअल फण्ड इस बाजार के प्रमुख प्रतिभागी हैं। मुद्रा बाजार के प्रमुख विलेख या प्रतिभूतियाँ राजकोष बिल, वाणिज्यिक पत्र, शीघ्रावधि द्रव्य, बचत प्रमाणपत्र तथा वाणिज्यिक बिल हैं।

प्रश्न 5. 
वाणिज्यिक बिल क्या है?
उत्तर:
वाणिज्यिक बिल-वाणिज्यिक बिल विनिमय का एक बिल है जो व्यावसायिक फर्मों की कार्यशील पूँजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। यह एक अल्पकालिक, पारक्रम्य (बेचनीय) स्वयं द्रवीकृत प्रपत्र है जो एक व्यावसायिक संस्था की उधार बिक्री की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जब माल को उधार बेचा जाता है तब माल का क्रेता देनदार बन जाता है जिसे भविष्य में एक निश्चित तिथि पर भुगतान करना होता है। माल का विक्रेता उस निश्चित तिथि तक भुगतान का इन्तजार कर सकता है या वह विनिमय के बिल का उपयोग कर सकता है। 

माल का विक्रेता (आदेशक या आहरक) बिल का आहरण करता है और क्रेता (अदाकर्ता या आदेशिती) इसे स्वीकार करता है। स्वीकार कर लिये जाने पर यह बिल एक विक्रय प्रपत्र अर्थात मार्केटेबल प्रपत्र बन जाता है जिसे व्यापारिक बिल कहा जाता है। यदि विक्रेता को बिल के परिपक्व होने से पहले वित्त की जरूरत पड़ती है तो बैंक से ये बिल बट्टा कटाकर लिये जा सकते हैं। जब बैंक द्वारा व्यापारिक बिल को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह वाणिज्यिक बिल के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 6. 
'पूँजी बाजार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि वित्त का बाजार है। इससे अभिप्राय उन सभी संगठनों, संस्थानों एवं उपकरणों से है जो दीर्घ अवधि वित्त प्रदान करते हैं। इसमें अल्प अवधि (भुगतान अवधि एक वर्ष से कम) वित्त बाजार सम्मिलित नहीं है। बाजार से विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों का निर्गमन कर धन एकत्रित किया जाता है। जैसे समता अंश या स्वामीगत प्रतिभूतियाँ, ऋणपत्र या साख प्रतिभूतियाँ, पूर्वाधिकार अंश तथा अन्य नये प्रकार की प्रतिभूतियाँ।

पूँजी बाजार में सारणियों (प्रणाली) की एक श्रृंखला समाहित होती है जिसके माध्यम से बचतों को औद्योगिक एवं वाणिज्यिक उपक्रमों तथा सामान्यतः राजकीय उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाता है। यह इन बचतों को उनके सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में प्रवर्तित कर देश को विकास एवं वृद्धि की ओर जाता है। पूंजी बाजार के अन्तर्गत विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंक तथा शेयर बाजार समाहित होते हैं। एक आदर्श पूँजी बाजार वह जाना जाता है जहाँ उचित लागत (मूल्य) पर वित्त उपलब्ध होता है। पूँजी बाजार को दो भागों में बाँटा जा सकता है-(1) प्राथमिक बाजार तथा (2) द्वितीयक या गौण बाजार। प्राथमिक बाजार को नये निर्गमन बाजार के रूप में जाना जाता है, जबकि द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज या शेयर बाजार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 7. 
स्टॉक एक्सचेंज विनियोजकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज विनियोजकों को सुरक्षा प्रदान करना-स्टॉक एक्सचेंज में उन्हीं कम्पनियों के अंशों का लेन-देन होता है जिनका सूचीयन हो चुका होता है। सूचीकृत प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रतिवर्ष स्टॉक एक्सचेंज को प्राप्त होती रहती हैं; क्योंकि सूचीकृत कम्पनियों के कार्यकलापों, विस्तार कार्यक्रमों, अधिकार एवं बोनस अंशों का निर्गमन आदि की सूचना स्टॉक एक्सचेंज को दी जानी आवश्यक होती है। इन सूचनाओं को ध्यान में रखकर निवेशक कम्पनियों में अंशों का क्रय-विक्रय का निर्णय लेकर पूर्णतः सुरक्षित हो सकता है। इसके अलावा स्टॉक एक्सचेंज अपने नियमों एवं उपनियमों के अनुसार दलालों एवं अन्य अधिकृत व्यक्तियों को सौदों का निपटारा तथा पक्षकारों को भुगतान करने के लिए भी बाध्य करते हैं। इससे निवेशकों को यथासमय अंशों की सुपुर्दगी या मूल्य का भुगतान प्राप्त होता रहता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 8. 
एक राजकोष (ट्रेजरी) बिल क्या है ?
उत्तर:
एक राजकोष (ट्रेजरी) बिल-राजकोष (ट्रेजरी) बिल मूलतः एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले भारत सरकार के द्वारा ऋण दान के रूप में दिया जाने वाला एक लघुकालिक प्रपत्र होता है। इन्हें 'शून्य कूपन बंध पत्र' के नाम से भी जाना जाता है जिन्हें केन्द्रीय सरकार के पक्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निधि की लघुकालिक जरूरतों के लिए जारी किया जाता है। ये राजकोष बिल एक वचन पत्र के स्वरूप में जारी किये जाते हैं। ये उच्च तरल तथा सुनिश्चित वापसी या लब्धि प्राप्ति युक्त तथा अदायगी के जोखिम से नगण्य हैं। इन्हें ऐसे मूल्य पर जारी किया जाता है, जो अपने अंकित मूल्य से कम के होते हैं और इनका भुगतान उसके बराबर तक किया जाता है। मूल्य पर राजकोष बिल जारी हुआ है तथा उस पर प्राप्य ब्याज के साथ उसका मोचन मूल्य के बीच अन्तर होता है जिसे 'बट्टा' कहते हैं। राजकोष बिल 25 हजार रुपये के न्यूनतम मूल्य और इसके बाद बहुगुणन से प्राप्त होता है।

प्रश्न 9. 
निजी नियोजन या विनियोग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निजी विनियोग भी एक कंपनी द्वारा संस्थागत निवेशकों तथा कुछ चयनित वैयक्तिक निवेशकों को प्रतिभूतियों का आवंटन है। यह एक सार्वजनिक निर्गमन की अपेक्षा अधिक तीव्रता से पूँजी उगाहने में मदद करता है। प्राथमिक बाजार में पहुँच कई बार अनेक आवश्यक और अनावश्यक खर्चों के खातों (लेखा) पर महँगा हो सकता है। इसलिए कुछ कंपनियाँ एक सार्वजनिक निर्गमन वहन नहीं कर सकती फलत: वे निजी विनियोग का इस्तेमाल करती हैं।

प्रश्न 10. 
अधिकार निर्गम से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एक विशेषाधिकार है जो विद्यमान शेयर धारकों को कंपनी शर्तों एवं नियमों के अनुसार नए निर्गमों को पूर्व क्रय.करने का अवसर देता है। शेयर धारकों को पहले से कब्जे वाले शेयरों के अनुपात में नए शेयरों को खरीदने का अधिकार प्रस्तावित किया जाता है।

प्रश्न 11. 
राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज में सौदों का निपटारा किस प्रकार होता है ? समझाइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज में सौदों के निपटारे की प्रक्रिया-राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज में सौदों का निपटारा निरन्तर होता रहता है। इसमें प्रत्येक कारोबारी दिन के अन्त में बकाया सौदों का निपटारा निरन्तर करना पड़ता है। प्रत्येक सौदे को आगामी दो दिनों (T+2) अंशों में निपटाया जाता है। इसके लिए कारोबारी दिन (T) के बाद 2 दिनों में (T+2) अंशों/ प्रतिभूतियों को सुपुर्दगी प्रस्तुत करनी पड़ती है अथवा खरीदी गई प्रतिभूतियों के मूल्य का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार इस व्यवस्था में यदि सोमवार को सौदा किया गया है तो बुधवार को और यदि मंगलवार को किया गया है तो गुरुवार को सौदे का निपटान हो जाता है। किन्तु इन दो दिनों की गिनती करते समय अवकाश के दिनों अर्थात् शनिवार, रविवार या अन्य अवकाश के दिनों को नहीं गिना जाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 12. 
सेंट्रल डिपोजिटरी सर्विसिस लिमिटेड से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सेंट्रल डिपोजिटरी सर्विसिस लिमिटेड प्रचालन प्रारंभ करने वाली दूसरी निक्षेपागार है। इसे बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज तथा बैंक ऑफ इडिया द्वारा प्रवर्तित किया गया था। राष्ट्र स्तर के ये दोनों निक्षेपागार मध्यवर्तियों के माध्यम से प्रचालन करते हैं, जो इलैक्ट्रॉनिक रूप से डिपोजिटरी से जुड़े रहते हैं तथा निवेशकों के साथ संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं और डिपोजिटरी प्रतिभागी के नाम से जाने जाते हैं।

प्रश्न 13. 
भारत में ओ.टी.सी.ई.आई. अपने सदस्यों/डीलरों को कौन-कौन- सी सेवाएँ उपलब्ध करा रहा है?
उत्तर:

  • नई कम्पनियों के अंश निर्गमन (IPO) की सुविधा प्रदान करता है।
  • ओटीसीआई सिक्यूरिटीज लि. के माध्यम से नेशनल एक्सचेंज में लेन-देन को सुविधा प्रदान करता है। 
  • यह एक्सचेंज शनिवार को सौदे करने की नियमित सुविधा प्रदान करता है। 
  • इस एक्सचेंज में निजी तौर पर आवंटित की गई ऋणभूतियों का सूचीयन एवं लेन-देन होता है।
  • यह एक्सचेंज में दो सत्रों में कार्य करता है। सामान्य सत्र के अतिरिक्त सायंकालीन सत्र भी होता है।
  • यह सूचीबद्ध एवं अनुमति प्राप्त प्रतिभूतियों के सौदे की सुविधा प्रदान करता है।
  • इस एक्सचेंज ने निपटारा गारन्टी कोष स्थापित किया है जिससे किसी भी सदस्य द्वारा त्रुटि किये जाने पर भी निदेशकों एवं अन्य सदस्यों को हानि नहीं होती है।

प्रश्न 14. 
प्राथमिक बाजार की मुख्य विशेषताएँ बतलाइये। (कोई चार)।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार की मुख्य विशेषताएँ-

  • नये निर्गमनों से सम्बन्ध-प्राथमिक बाजार का सम्बन्ध नये निर्गमनों से होता है जब भी कोई कम्पनी नये अंश अथवा ऋणपत्र जारी करती है तो यह प्राथमिक बाजार की ही क्रिया होती है।
  • कोई विशेष स्थान नहीं प्राथमिक बाजार किसी विशेष स्थान का नाम नहीं है। बल्कि नये निर्गमन लाने को ही प्राथमिक बाजार की क्रिया कहा जाता है।
  • पूँजी एकत्रित करने की विधियाँ-प्राथमिक बाजार में पूँजी सार्वजनिक निर्गमन, निजी प्लेसमैण्ट तथा स्वत्व निर्गमन द्वारा एकत्रित की जा सकती है।
  • यह द्वितीयक बाजार से पहले आता हैप्राथमिक बाजार में व्यवहार पहले होते हैं और इसके बाद द्वितीयक बाजार की बारी आती है।

प्रश्न 15. 
द्वितीयक बाजार (गौण बाजार) की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये। (कोई चार)।
उत्तर:
द्वितीयक बाजार की प्रमुख विशेषताएँ-

  • यह तरलता उत्पन्न करता है-द्वितीयक बाजार प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करता है। तरलता का अर्थ प्रतिभूतियों को अतिशीघ्र नकदी में बदलने से है। यह कार्य द्वितीयक बाजार द्वारा किया जाता है।
  • एक विशेष स्थान-द्वितीयक बाजार का एक विशेष स्थान होता है। यह एक्सचेंज कहलाता है। प्रतिभूतियों के सभी क्रय-विक्रय स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से ही किये जाते हैं। प्रायः अधिकत्तर प्रतिभूतियों में व्यवहार एक्सचेंज के माध्यम से ही होते हैं।
  • नये निवेशकों को प्रोत्साहित करता है-स्टॉक एक्सचेंज में अंशों व अन्य प्रतिभूतियों के भाव कमअधिक होते रहते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक नये निवेशक इस बाजार में प्रवेश करते हैं।
  • यह प्राथमिक बाजार के बाद आता है-किसी भी नई प्रतिभूति को पहली बार द्वितीयक बाजार में नहीं बेचा जा सकता है। नई प्रतिभूतियों को पहले प्राथमिक बाजार में तथा फिर द्वितीयक बाजार में बेचा जाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 16. 
भारतीय प्रतिभूति एवं विनमय बोर्ड (SEBI) का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनमय बोर्ड (SEBI) का अर्थ-शेयर बाजार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार होता है। इसके माध्यम से प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले लोगों को निवेश के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं। देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने और निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए शेयर बाजार की क्रियाओं को नियन्त्रित किया जाना अत्यन्त जरूरी हो गया था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए तथा पूँजी निर्गमन अधिनियम, 1947 की कमियों को दूर करने के लिए सेबी की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 अप्रैल, 1988 को एक अन्तरिम प्रशासनिक निकाय के रूप में की गई थी जो प्रतिभूति बाजार के क्रमबद्ध (नियमित) एवं स्वस्थ वृद्धि तथा निवेशकों की सुरक्षा को बढ़ावा प्रदान करे। 30 जनवरी, 1992 को सेबी को एक अध्यादेश के द्वारा वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया। बाद में यह अध्यादेश से हटाकर संसद के अधिनियम के रूप में, सेबी अधिनियम, 1992 में बदला गया।

प्रश्न 17. 
'सेबी' के बोर्ड का गठन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
'सेबी के बोर्ड का गठन'-सेबी' के बोर्ड का गठन निम्नलिखित सदस्यों द्वारा किया जाता है-

  • एक अध्यक्ष, जिसकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा की जायेगी।
  • दो सदस्य, जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा उन अधिकारियों में से की जायेगी, जो केन्द्रीय सरकार के वित्त तथा विधिक मन्त्रालयों के कार्यों की देखरेख कर रहे हों।
  • एक सदस्य, भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों में से।
  • पाँच अन्य सदस्य जिनमें से कम से कम तीन पूर्णकालिक सदस्य होंगे। इन सभी सदस्यों का कार्यकाल केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जायेगा।

प्रश्न 18. 
सेबी की सलाहकार समितियों के उद्देश्यों को समझाइये।
अथवा 
'सेबी' की सलाहकार समितियों के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
'सेबी' की सलाहकार समितियाँ-सेबी की दो सलाहकार समितियाँ हैं-प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति तथा द्वितीयक बाजार सलाहकार समिति। इस समिति में बाजार के खिलाड़ी (पात्र) तथा सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त निवेशक संगठन तथा पूँजी बाजार की नामी-गरामी हस्तियाँ शामिल हैं। ये 'सेबी' की नीतियों हेतु महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन देती हैं।

सेबी की सलाहकार समितियों के उद्देश्य-इन दोनों समितियों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • प्राथमिक बाजार में निवेशों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए मध्यस्थों के विनियमन से सम्बन्धित मामलों की सलाह देना।
  • भारत में प्राथमिक बाजार के विकास से सम्बन्धित मुद्दों पर सेबी को सलाह देना।
  • कम्पनियों के लिए अपेक्षित प्रकटन पर सेबी को सलाह देना।
  • प्राथमिक बाजार में सरलीकरण एवं पारदर्शिता को प्रस्तुत करने हेतु कानूनी ढाँचे में बदलाव हेतु सलाह देना।
  • देश में द्वितीयक बाजारों के विनियमन एवं विकास से सम्बन्धित मामलों के लिए सेबी बोर्ड को सलाह देना।

प्रश्न 19. 
सेबी के सुरक्षात्मक कार्य बताइये। 
उत्तर:
सेबी के सुरक्षात्मक कार्य निम्न प्रकार हैं-
(1) सेबी प्रतिभूति बाजार में धोखा-धड़ी एवं अनुचित कार्यों पर प्रतिबंध लगाती है। अनुचित व्यापारिक कार्यों में निम्न सम्मिलित हैं

  • प्रतिभूतियों के बाजार मूल्यों में वृद्धि अथवा घटोत्री के एक मात्र उद्देश्य के लिए हेराफेरी करना।
  • ऐसे झूठे कथन जिससे किसी भी व्यक्ति को प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय के लिए उकसाया जा सके।

(2) सेबी ने शेयरों के भीतरी (insider) व्यापार पर रोक लगा रखी है। आंतरिक व्यक्ति को कम्पनी की प्रतिभूतियों को प्रभावित करने वाली सूचना प्राप्त होती हैं जो जन साधारण को प्राप्त नहीं होती हैं।
(3) सेबी निवेशकों को शिक्षित करने के लिए भी कदम उठाती है।
(4) सेबी प्रतिभूति बाज़ार में उचित कार्यों एवं आचार संहिता को बढ़ावा देती है।
(5) सेबी ने ऋणपत्रधारियों के हितों के रक्षार्थ दिशा निर्देश दिए हैं जिनके अनुसार कम्पनी स्वयं के ऋणपत्रधारियों के कोषों को कहीं अन्यत्र निवेश नहीं कर सकती तथा शर्तों को बीच में ही नहीं बदल सकती।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 20. 
प्राथमिक तथा द्वितीयक बाजार में दो अन्तर बतलाइये।
उत्तर:
(1) विक्रय-प्राथमिक बाजार में नई प्रतिभूतियों का विक्रय होता है, जबकि द्वितीयक बाजार में केवल निवर्तमान शेयरों का ही व्यापार होता है।

(2) पूँजी निर्माण-प्राथमिक बाजार में कोष बचतकर्ताओं से निवेशकों को जाता है, अर्थात् प्राथमिक बाजार प्रत्यक्ष रूप से पूँजी निर्माण को बढावा देता है, जबकि द्वितीयक बाजार शेयरों को रोकड़ में परिवर्तनीयता (तरलता) को बढ़ाती है। अर्थात् द्वितीय बाजार परोक्ष रूप से पूँजी निर्माण को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 21. 
इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:
(1) यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है क्योंकि यह प्रतिभागियों को व्यावसायिक लेन-देन के दौरान समस्त प्रतिभूतियों के मूल्यों को देखने की सुविधा देता है। वे वास्तविक समय के दौरान पूरे शेयर बाजार को देख सकते हैं।

(2) देश भर के लोग तथा यहाँ तक विदेशी भी, जो शेयर बाजार में लेन-देन करना चाहते हैं, दलालों अथवा सदस्यों के माध्यम से, एक-दूसरे को जाने बिना, प्रतिभूतियों का क्रय अथवा विक्रय कर सकते हैं। अर्थात् वे दलाल के कार्यालय में बैठकर अथवा कम्प्यूटर पर लॉग ऑन करके प्रतिभूतियों का क्रय अथवा विक्रय कर सकते हैं। यह प्रणाली बड़ी संख्या में प्रतिभागियों को एक-दूसरे से व्यापार में सक्षम बनाती है जिससे शेयर बाजार में तरलता बढ़ती है।

प्रश्न 22. 
मुद्रा बाजार के वाणिज्यिक पत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वाणिज्यिक पत्र-वाणिज्यिक पत्र एक अल्पकालिक, आरक्षित वचनपत्र होता है जो बेचान के द्वारा अन्तरणीय (हस्तान्तरणीय) एवं परक्राम्य (बेचनीय) होता है तथा परिपक्व अवधि के बाद एक सुनिश्चित (स्थिर) अन्तरण या सुपुर्दगी होती है। यह विशाल एवं उधार पात्रता कम्पनियों द्वारा अल्पकालिक बाजार दर से कम दर पर पूँजी उगाहने के लिए जारी किया जाता है। इन पत्रों की परिपक्वता अवधि प्रायः 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है। वृहत् स्तरीय कम्पनियों के लिए वाणिज्यिक पत्रों का प्रचालन बैंक से उधार लेने की अपेक्षा एक विकल्प है जिन्हें सामान्यतः वित्तीय रूप से सुदृढ़ माना जाता है। इन्हें बट्टे के साथ बेचा एवं सममूल्य पर मोचित किया जाता है। इस प्रकार के पत्रों को जारी करने का वास्तविक उद्देश्य अल्पकालिक मौसमी एवं कार्यशील पूँजी की जरूरतों के लिए पूँजी उपलब्ध कराना होता है। उदाहरण के लिए, कम्पनियाँ इस प्रपत्र को सेतु वित्तीयन (ब्रिजो फाइनेंस) जैसे उद्देश्य के लिए उपयोग करती हैं।

प्रश्न 23. 
व्यापारिक तथा निपटान कार्यविधि समझाइए। 
उत्तर:
प्रतिभूतियों के व्यापार का निष्पादन अब स्वमार्गीय, स्क्रीन आधारित इलैक्ट्रॉनिक व्यापार तंत्र के माध्यम से होता है। अंशों एवं ऋणपत्रों का समस्त क्रय तथा विक्रय एक कम्प्यूटर टर्मिनल के माध्यम से किया जाता है। अब सभी शेयर बाजार इलैक्ट्रॉनिक हो गये हैं तथा व्यापार दलालों के कार्यालयों में कम्प्यूटर टर्मिनलों के माध्यम से होता है। शेयर बाजार की एक मुख्य कम्प्यूटर प्रणाली होती है जिसके कई टर्मिनल देश भर में विभिन्न स्थानों पर स्थित होते हैं। प्रतिभूतियों में व्यापार, दलालों के माध्यम से होता है जो शेयर बाजार के सदस्य होते हैं। व्यापार, शेयर बाजार के मंच से स्थानांतरित होकर दलालों के कार्यालय में पहुंच गया है। प्रत्येक दलाल की एक कम्प्यूटर टर्मिनल तक पहुँच होती है जो मुख्य शेयर बाजार से संबद्ध होता है। दोनों पक्ष लेन-देन होने के दौरान सभी शेयरों के मूल्यों के उतार-चढ़ाव सहित समस्त लेन-देन को कम्प्यूटर स्क्रीन पर, शेयर बाजार के व्यावसायिक घण्टों के दौरान देख सकते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 24. 
वित्तीय बाजारों के वर्गीकरण को चित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार 1

प्रश्न 25. 
मुद्रा बाजार से क्या अभिप्राय है? मुद्रा बाजार में प्रयुक्त किन्हीं दो प्रपत्रों को समझाइये।
अथवा 
मुद्रा बाजार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार-मुद्रा बाजार एक कम अवधि की निधियों का बाजार है जो ऐसी द्रव्य सम्पत्तियों का निपटारा करता है जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक होती है। यह एक ऐसा बाजार है जहाँ कम जोखिम, आरक्षित तथा अल्पकालिक ऋणपत्र होते हैं, जो कि उच्च तरल दैनिक निर्गमित तथा सक्रिय व्यापार योग्य होते हैं। इनकी कोई भौतिक स्थानिकता नहीं होती है। परन्तु यह ऐसी क्रियाविधि है जो टेलीफोन व इण्टरनेट के माध्यम से सम्पादित की जाती है। ये मुद्रा बाजार अस्थायी नकदी की कमी एवं देनदारियों के निपटारे की जरूरतों को पूरा करने के लिए अल्पकालिक निधि उगाहने में सक्षम होते हैं तथा आय वापसी के लिए उपयुक्त होते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक, वाणिज्यिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, बड़े औद्योगिक घराने तथा म्युचुअल फण्ड इस बाजार के प्रमुख प्रतिभागी हैं।

मुद्रा बाजार में प्रयुक्त प्रपत्र-
1. ट्रेजरी बिल-ट्रेजरी बिलों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत सरकार की ओर से लघु अवधि की देयता के रूप में निर्गमित किया जाता है तथा इन्हें बैंकों एवं जन-साधारण में विक्रय किया जाता है। इनके निर्गमन का समय 14 दिन से 364 दिन तक होता है। ये बिल विनिमय साध्य विलेख के रूप में होते हैं।

2. व्यापारिक बिल-व्यापारिक बिल सामान्यतः एक व्यावसायिक फर्म द्वारा दूसरी फर्म पर लिखे जाते हैं। ये लघु अवधि के प्रपत्र होते हैं जो सामान्यतया 90 दिन के लिए निर्गमित किये जाते हैं। ये स्वयं परिशोधित होते हैं क्योंकि भुगतानकर्ता निश्चित तिथि को इनका भुगतान करता है।

प्रश्न 26. 
एक प्राथमिक बाजार से क्या आशय है ? प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रस्तावना अवधारणा को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार का अर्थ-प्राथमिक बाजार नई दीर्घकालीन पूँजी के लिए होता है। यह वह बाजार होता है जिसमें प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है। इसे 'नया निर्गमन बाजार' भी कहा जाता है। इसका एक मुख्य कार्य बचतकर्ताओं से उनकी निवेश करने योग्य पूँजी को नये उपक्रम स्थापित करने की जरूरत वाले उद्यमियों तक या फिर जो पहली बार प्रतिभूतियों को जारी करके अपने विद्यमान व्यवसाय का विस्तार करना चाहते हैं, उस तक पहुँचाना है। प्राथमिक बाजार से एक कम्पनी दीर्घकालीन पूँजी को समता अंशों, पूर्वाधिकार या अधिमान अंशों, ऋणपत्रों, बांड तथा बचतों के रूप में उगाह सकती है। इस बाजार के निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कम्पनियाँ म्युचुअल फण्ड तथा वैयक्तिक रूप में होते हैं।

प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रस्ताव अवधारणा- इसका सम्बन्ध नये निर्गमन से होता है। इसलिए जब भी कोई कम्पनी नये अंश या ऋणपत्र जारी करती है तो यह प्रारम्भिक/प्राथमिक सार्वजनिक अवधारणा कहलाती है। इस विधि में प्रतिभूतियाँ पहले निश्चित मूल्य पर एक मध्यस्थ जो कि प्रायः अंश दलालों की फर्म होती है, को जारी की जाती है। वह प्रतिभूतियों को पुनः ऊँचे मूल्य पर आम जनता को बेचता है। इसका उद्देश्य कम्पनी द्वारा अपने आप को सार्वजनिक निर्गमन की पेचीदगियों से बचाना है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 27. 
शेयर बाजार को परिभाषित कीजिये। स्टॉक एक्सचेंज की किन्हीं दो विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शेयर बाजार का अर्थ-भारतीय प्रतिभूति (नियामक) अधिनियम के अनुसार, "शेयर बाजार का तात्पर्य व्यवसाय में प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त या निपटारा हेतु सहायता, नियमन एवं नियन्त्रण के उद्देश्य के लिए एक ऐसे वैयक्तिक निकाय का गठन किया जाता है, फिर चाहे वह नियमित (इनकोर्पोरेटेड) हो अथवा नहीं।"

स्पष्ट है कि शेयर बाजार एक संगठित बाजार या संस्था है जिसकी स्थापना व्यक्तियों के द्वारा की जाती है। यह संस्था अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी तथा अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों एवं बॉण्डों के क्रय-विक्रय तथा उनसे सम्बन्धित क्रियाओं में सहयोग प्रदान करती है तथा इनका नियमन एवं नियन्त्रण करती है।

विशेषताएँ-
(1) केवल अधिकृत सदस्यों द्वारा व्यवहारशेयर बाजार में निवेशकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रयविक्रय अधिकृत सदस्यों के माध्यम से ही किया जा सकता है।

(2) विभिन्न संस्थाओं द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में व्यवहार-शेयर बाजार में प्रायः उन संस्थाओं की प्रतिभूतियों में ही व्यवहार होता है, जो वहाँ पर सूचीबद्ध (Listed) होती हैं। एक संस्था कुछ विशेष शर्तों का पालन करके अपनी प्रतिभूति के अंश बाजार पर सूचीबद्ध करवा सकती है।

प्रश्न 28. 
शेयर बाजार का क्या अर्थ है ? इसके किन्हीं तीन-चार कार्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
शेयर बाजार का अर्थ-
नोट-शेयर बाजार के अर्थ को पूर्व प्रश्न के उत्तर में पढ़ें।
शेयर बाजार के कार्य-
1. विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विनियोग की सुविधा उपलब्ध कराना-स्कन्ध विपणि पहले से विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता (तरलता) एवं आसान विनियोग अर्थात् दोनों की ही सुविधा प्रदान करती है। यह एक ऐसा बाजार है जहाँ प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

2. प्रतिभूतियों का मूल्यन-स्कन्ध विपणि में अंश का मूल्य या भाव माँग एवं पूर्ति की ताकतों के द्वारा निर्धारित होता है। वस्तुतः शेयर बाजार सतत मूल्यन या मूल्य निर्धारण का एक द्रव्य है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों के मूल्य निर्धारित होते हैं।

3. लेन-देन की सुरक्षा-स्कन्ध विपणि की सदस्यता नियमित रहती है और इसके व्यापार को विद्यमान कानूनी ढाँचे के अनुसार संचालित किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निवेशक इस बाजार में सुरक्षित एवं निष्पक्ष लेन-देन कर सकें।

4. इक्विटी सम्प्रदाय का प्रसार-शेयर बाजार नए निर्गमों को विनियमित करके, बेहतर व्यापार व्यवहारों (आचरणों) तथा जनता को निवेश के बारे में शिक्षित करने हेतु उत्तम प्रभावी चरण उठाने के द्वारा विस्तृत शेयर स्वामित्व को सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

प्रश्न 29. 
आज के व्यापारिक जगत में शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, जो निवेशकों को एक सकारात्मक वातावरण की ओर ले जाते हैं। कोई चार कारण देकर समझाइये, कैसे?
उत्तर:
आज के व्यापारिक जगत में शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, जो निवेशकों को एक सकारात्मक वातावरण की ओर ले जाते हैं। इस दृष्टि से शेयर बाजार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विनियोग की सुविधा उपलब्ध कराना।
  • प्रतिभूतियों का मूल्यन। 
  • लेन-देन की सुरक्षा। 
  • आर्थिक प्रगति हेतु भागीदारी।

नोट-उपर्युक्त बिन्दुओं के बारे में पूर्व प्रश्न के उत्तर में पढ़ें।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 30. 
“वित्तीय बाजार एक अर्थव्यवस्था में दुर्लभ संसाधनों के विनियोजन में बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्य निष्पादित कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।" ऐसे किन्हीं चार कार्यों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
वित्तीय बाजार एक अर्थव्यवस्था में दुर्लभ संसाधनों के विनियोजन में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य निष्पादित कर अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है-
1. बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें अधिकाधिक उत्पादक उपभोग में सरणित करना- वित्त बाजार बचतकर्ताओं की बचत को निवेशकों तक हस्तान्तरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। ये बचतकर्ताओं को विभिन्न निवेशकों का चुनाव करने का विकल्प देते हैं और इस प्रकार से अधिशेष निधियों को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करता है।

2. मूल्य खोज को सुसाध्य बनाना-माँग एवं आपूर्ति की ताकतें बाजार में किसी सामान या सेवा की एक कीमत स्थापित करने में मदद करती हैं। वित्त बाजार में भी घराने (हाउसहोल्ड) निधियों के आपूर्तिकर्ता तथा व्यावसायिक फर्म माँग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों के बीच परस्पर क्रिया उस वित्तीय परिसम्पत्ति की. कीमत या मूल्य क्रय करने में मदद करती है जिसका उस विशिष्ट बाजारों में व्यापार किया जाता है।

3. वित्तीय परिसम्पत्तियों हेतु द्रवता उपलब्ध कराना-वित्तीय बाजार एक वित्तीय परिसम्पत्ति को आसानी से बेचने व खरीदने के लिए एक स्थान उपलब्ध कराता है। ऐसा करते हुए वे वित्तीय परिसम्पत्तियों को द्रवता प्रदान करते हैं।

4. लेन-देन की लागत को कम करना-वित्तीय बाजार एक वित्तीय परिसम्पत्ति के क्रय-विक्रय में खरीदने तथा बेचने वाले दोनों ही के समय प्रयासों एवं धन कोष बचाता है। अन्यथा उन्हें प्रयास करने व खोजने पर खर्च करना पड़ता है।

प्रश्न 31. 
मुद्रा बाजार के निम्नलिखित प्रपत्रों को समझाइये-
(1) बचत प्रमाण-पत्र 
(2) शीघ्रावधि द्रव्य।
उत्तर:
(1) बचत प्रमाण-पत्र-बचत प्रमाण पत्र (सी.डी.) अरक्षित, पारक्रम्य (बेचनीय), धारक रूप में लघुकालिक प्रपत्र आदि वाणिज्यिक बैंकों तथा विकास वित्त संस्थानों द्वारा जारी किए जाते हैं। यह वैयक्तिक रूप से उद्यमों/निगमों तथा कंपनियों को उनकी कठिन द्रवता की अवधि के दौरान तब जारी किए जा सकते हैं जब बैंकों में बचत दर मंद हो, लेकिन कर्ज के लिए माँग उच्च हो। यह लघु अवधि के लिए भारी मात्रा में द्रव्य संचारित करने में सहायक होते हैं।

(2) शीघ्रावधि द्रव्य-यह एक लघुकालिक माँग पर पुनर्भुगतान वित्त है, जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक होती है तथा अन्तर बैंक अन्तरण के लिए उपयोग किया जाता है। वाणिज्यिक बैंकों को न्यूनतम रोकड़ शेष अनुरक्षित करना होता है जिसे रोकड़/ नकदी आरक्षण या नकदी रिजर्व अनुपात कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर नकदी रिजर्व अनुपात परिवर्तित करता रहता है जो बाद में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों की उपलब्ध निधियों को प्रभावित करता है। शीघ्रावधि द्रव्य वह उपाय है जिसके द्वारा एक-दूसरे से नकदी उधार लेकर नकदी आरक्षण अनुपात अनुरक्षित रखने में सक्षम होते हैं। शीघ्रावधि द्रव्य में वृद्धि अन्य स्रोतों से वित्त जैसे वाणिज्यिक पत्रों या बचत प्रमाण-पत्रों से जुटाया जाता है।

प्रश्न 32. 
पूँजी बाजार (Capital Market) को परिभाषित कीजिये। पूँजी बाजार के दो भागों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
पूँजी बाजार का अर्थ-पूँजी बाजार मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि वित्त के बाजार हैं। इससे अभिप्राय उन सभी संगठनों, संस्थानों एवं उपकरणों से है जो दीर्घ अवधि वित्त प्रदान करते हैं। इसमें अल्प अवधि (भुगतान अवधि एक वर्ष से कम) वित्त बाजार सम्मिलित नहीं है। पूँजी बाजार के खण्ड
1. प्राथमिक बाजार-प्राथमिक बाजार नई दीर्घकालीन पूँजी के लिए होता है। यह वह बाजार होता है जिसमें प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है। इन बाजारों का मुख्य कार्य बचतकर्ताओं से उनकी निवेश करने योग्य पूँजी को नये उपक्रम स्थापित करने की जरूरत वाले उद्यमियों तक या फिर जो पहली बार प्रतिभूतियों को जारी करने के अपने विद्यमान व्यवसाय का विस्तार करना चाहते हैं उस तक पहुँचाते हैं। प्राथमिक बाजार से एक कम्पनी दीर्घकालीन पूँजी को समता अंशों, पूर्वाधिकार अंशों, ऋणपत्रों, बॉण्डों तथा बचतों के रूप में उगाह सकती है।

2. द्वितीयक बाजार-द्वितीयक बाजार या शेयर बाजार पूर्व निर्गमित व प्रचलित प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का बाजार है। यह बाजार विद्यमान निवेशकों को विनिवेश तथा नये निवेशकों को प्रवेश करने में सहायता करता है। इसके साथ ही यह निधियों का अधिक उत्पादक निवेशों में विनिवेश एवं पुनर्निवेश के माध्यम से निधियों को संवर्धित करके आर्थिक प्रगति में हाथ बँटाता है। प्रतिभूतियों को सेबी द्वारा निर्धारित ढाँचे के अन्तर्गत क्रय-विक्रय, चुकाई या निष्कासित एवं निपटाया जाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 33. 
'प्राथमिक' एवं 'द्वितीयक' बाजार में अन्तर्भेद कीजिये।
उत्तर:
प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार-एक तुलना
प्राथमिक बाजार (नए निर्गमों का बाजार):

  • इसमें नयी कंपनियों द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय होता है अथवा निर्वतमान कंपनियों द्वारा निवेशकों को नई प्रतिभूतियों का निर्गमन।
  • इसमें प्रतिभूतियों को कंपनी सीधे नियोजक को बेचती है (अथवा किसी मध्यस्थ के द्वारा)। 
  • इसमें कोष बचतकर्ताओं से निवेशकों को जाता है अर्थात् प्राथमिक बाजार प्रत्यक्ष रूप से पूँजी निर्माण को बढ़ावा देता है। 
  • प्राथमिक बाजार में प्रतिभूतियों का केवल क्रय होता है इनको बेचा नहीं जा सकता। 
  • इसमें मूल्य का निर्धारण एवं उसके संबंध में निर्णय कंपनी का प्रबंध लेता है। 
  • कोई स्थायी भौगोलिक स्थान निश्चित नहीं है।

द्वितीयक बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) 

  • इसमें केवल निवर्तमान शेयरों का ही व्यापार होता है।
  • निवर्तमान प्रतिभूतियों का निवेशकों के बीच विनिमय होता है। इसमें कंपनी की कोई भूमिका नहीं होती। 
  • यह शेयरों की रोकड़ में परिवर्तनीयता (तरलता) को बढ़ाती है अर्थात् द्वितीय बाजार परोक्ष रूप से पूँजी निर्माण को बढ़ावा देता है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय दोनों होता है। 
  • इसमें मूल्यों का निर्धारण प्रतिभूति की मांग एवं पूर्ति के द्वारा होता है। 
  • स्थान निश्चित होता है।

प्रश्न 34. 
सेबी को क्यों स्थापित किया गया? सेबी के चार उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सेबी की स्थापना के कारण-प्रतिभूति बाजार में व्याप्त अनेक व्यापारिक दुराचारों, यथाअनधिकृत रूप से निजी नियोजन, मूल्य की कृत्रिम वृद्धि, नये निर्गमों पर अनावश्यक अधिशुल्क, कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों की अवेहलना, स्टॉक एक्सचेंजों के नियमों एवं विनियमों तथा सूचीबद्धता की जरूरत को पूरा नहीं करना तथा अंशों की डिलीवरी में देरी आदि को समाप्त करने के लिए तथा निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए भारत सरकार ने यह निर्णय लिया कि एक नियंत्रक निकाय स्थापित किया जाना चाहिये जिसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नाम से जाना गया।

उद्देश्य-

  • शेयर बाजार तथा प्रतिभूति उद्योग को विनियमित करना ताकि क्रमबद्ध ढंग से उनकी क्रियाशीलता को बढ़ावा मिले।
  • निवेशकों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करना विशेष रूप से वैयक्तिक निवेशकों को तथा उन्हें मार्गदर्शित एवं शिक्षित करना।
  • व्यापार कदाचारों (दुराचारों) को रोकना तथा प्रतिभूति उद्योग के स्व-नियोजन द्वारा एवं इसके वैधानिक विनियमन के बीच एक सन्तुलन प्राप्त करना।
  • मध्यस्थों जैसे दलाल, मर्चेण्ट, बैंकर्स आदि के द्वारा एक आचार संहिता एवं निष्पक्ष व्यवहार को उन्हें प्रतियोगी एवं व्यावसायिक बनाने के दृष्टिकोण के साथ विकसित एवं विनियमित करना।

प्रश्न 35. 
स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख विशेषताएँ 
स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित-

  • स्टॉक एक्सचेंज एक सुव्यवस्थित संगठन है जिसको सरकार से मान्यता प्राप्त होती है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज व्यक्तियों (कृत्रिम व्यक्तियों सहित) का संगठन है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज को कम्पनी, सहकारी समिति आदि में से किसी भी रूप में पंजीकृत करवाया जा सकता है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज एक संगठित बाजार है जिसमें अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी प्रतिभूतियों, बॉण्डों आदि के लेन-देन में सुविधा प्रदान करता है। 
  • यह संगठन या केन्द्र प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय में सहायता प्रदान करता है, स्टॉक एक्सचेंज स्वयं क्रय-विक्रय नहीं करता है। 
  • प्रत्येक स्टॉक एक्सचेंज एक स्थान विशेष पर स्थापित उद्देश्य होता है किन्तु, उसके सदस्य अपने-अपने शहर एवं कार्यालय या घर से ही कारोबार कर सकते हैं। सभी दलालों को एक ही स्थान पर एकत्रित होकर आमने-सामने रहकर सौदे नहीं करने पड़ते हैं। 
  • स्टॉक एक्सचेंज में सामान्य जनता अंशों, ऋणपत्रों आदि का क्रय-विक्रय प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकती है। जनसामान्य इन केन्द्रों पर पंजीकृत सदस्यों, दलालों तथा अन्य व्यक्तियों के माध्यम से ही प्रतिभूतियों आदि का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। 
  • स्टॉक एक्सचेंजों पर पूर्ण प्रतियोगिता के सिद्धान्तों के आधार पर लेन-देन होता है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज पर लेन-देन एवं उसका निपटारा उस केन्द्र के नियमों एवं उपनियमों के अनुसार होता है। 
  • स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारी स्टॉक एक्सचेंज पर किये जाने वाले सौदों का नियमन एवं नियन्त्रण करते हैं। 
  • स्टॉक एक्सचेंज पर केवल सूचीबद्ध या अनुमति प्राप्त प्रतिभूतियों का ही क्रय-विक्रय किया जा सकता है। 
  • भारत में भारतीय प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज ही कार्य कर सकते हैं अन्य स्टॉक एक्सचेंज नहीं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 36. 
स्टॉक एक्सचेंज निवेश की सुविधा प्रदान करते हैं। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज निवेश की सुविधा प्रदान करते हैं-
1. स्टॉक एक्सचेंज के पंजीकृत दलाल, उप-दलाल आदि नवीन कम्पनियों के अंशों एवं ऋण पत्रों की जानकारी उपलब्ध कराते हैं। वे इनके लिए आवेदन फार्म के साथ-साथ आवश्यक सलाह भी प्रदान करते हैं। सूचनाएँ प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार निवेशकों को निवेश में काफी सुविधा मिलती है। 

2. पंजीकृत दलाल एवं उप-दलाल सूचीकृत एवं अनुमति प्राप्त प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में सलाह एवं सूचनाएँ देते हैं। फलतः निवेशकों को अच्छी प्रतिभूतियों में निवेश करने में सहायता मिलती है। 

3. स्टॉक एक्सचेंज के सम्बन्ध में सभी महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यों पर प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ विधिवत् एवं यथासमय प्राप्त करते हैं, उन्हें प्रकाशित करते हैं। इससे निवेशक विवेकपूर्ण निवेश निर्णय कर सकता है।

4. स्टॉक एक्सचेंज दैनिक मूल्य सूची प्रकाशित करते हैं। इन्हें देखकर निवेशक निवेश निर्णय करते हैं। 

5. ये एक्सचेंज मूल्यों में सर्वाधिक उतार-चढ़ाव वाली प्रतिभूतियों के नाम भी प्रकाशित करते हैं। इनसे निवेशक सतर्क रहता है 

6. ये एक्सचेंज सर्वाधिक व न्यूनतम लेनदेन वाली प्रतिभूतियों की सूची भी प्रकाशित करते हैं। इनसे भी निवेशक को निर्णय में सहायता मिलती है। 

7. ये एक्सचेंज ऐसा साहित्य प्रकाशित करते हैं जिसका अध्ययन कर निवेशक निर्णय कर सकते हैं।

प्रश्न 37. 
भारत में शेयर बाजार के इतिहास को संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
भारत में शेयर बाजर का इतिहास- 
भारत में शेयर बाजार का इतिहास बहुत पहले 18वीं शताब्दी के अन्त में जाता है. जब पहली बार दीर्घकालिक बेचनीय प्रतिभूतियों को जारी किया गया था। वर्ष 1850 में पहली बार कम्पनी अधिनियम लाया गया जिसके अन्तर्गत सीमित देनदारियों तथा निर्गमित प्रतिभूतियों में निवेशकों की रुचि पैदा करने जैसी विशिष्टताएँ उसके साथ थीं। भारत में प्रथम शेयर बाजार 1875 में बम्बई (मुम्बई) में नेटिव शेयर एवं स्टॉक ब्रोकर्स एसोसियेशन के रूप में स्थापित किया गया था। वर्तमान में इसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (मुम्बई शेयर बाजार) BSE के नाम से जाना जाता है।

इसका अनुगमन करते हुए अहमदाबाद में 'दी अहमदाबाद शेयर एण्ड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसियेशन' (1894), कलकत्ता में 'दी कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज एसोसियेशन' (जून, 1908) तथा मद्रास में 'मद्रास स्टॉक एक्सचेंज एसोसियेशन' (सितम्बर, 1937) का विकास हुआ। दिल्ली में 'दिल्ली स्टॉक एक्सचेंज एसोसियेशन लि.' (जून, 1947) स्थापित हुआ।

सन् 1956 में देश में नया कम्पनी अधिनियम बना। तभी देश में पहली बार प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम, 1956 भी बनाया गया। इस अधिनियम के अधीन स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की स्थापना तथा मान्यता सम्बन्धी प्रावधान किये गये। अब हमारे देश में इसी अधिनियम के अधीन स्कन्ध विनिमय केन्द्रों को मान्यता प्रदान की जाती है।

यह उल्लेखनीय है कि भारत में शेयर बाजारों की स्थापना प्रमुख व्यापार एवं वाणिज्य केन्द्रों पर हई। 1990 के दशक के प्रारम्भ तक भारतीय द्वितीयक बाजार क्षेत्रीय स्थानीय शेयर बाजार तक ही सीमित थे और बी.एस.ई. इस सूची में अग्रणी था। वर्ष 1991 के सुधारों के बाद भारतीय द्वितीय बाजार ने तीन स्तरीय स्वरूप प्राप्त किया। इसमें शामिल थे-(1) क्षेत्रीय शेयर बाजार (2) राष्ट्रीय शेयर बाजार (3) ओवर द काउंटर एक्सचेंज ऑफ इण्डिया (OTCEI)।

प्रश्न 38. 
विभौतिकीकरण से क्या तात्पर्य है ? 
उत्तर:
प्रतिभूतियों में सारा व्यापार अब कम्प्यूटर टर्मिनल के माध्यम से होता है। सम्पूर्ण प्रणाली के कम्प्यूटरीकृत होने के कारण प्रतिभूतियों के क्रय तथा विक्रय इलैक्ट्रॉनिक बहीखाता प्रविष्टि रूप में निपटाया जाता है। यह मुख्य रूप से समस्याओं, चोरी, नकली/ जाली अंतरण, अंतरण में देरी तथा भौतिक रूप में रखे गए अंश प्रमाण-पत्रों अथवा ऋणपत्रों संबंधी कागजी कार्य के उन्मूलन हेतु किया जाता है।

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निवेशक द्वारा भौतिक रूप में रखी गयी प्रतिभूतियां रद्द हो जाती हैं तथा निवेशक को एक इलैक्ट्रॉनिक प्रविष्टि अथवा संख्या दे दी जाती है जिससे वह एक खाते में इलैक्ट्रॉनिक शेष के रूप में प्रतिभूतियाँ रख सकता है। इलैक्ट्रॉनिक रूप में प्रतिभूतियाँ रखने की यह प्रक्रिया विभौतिकीकरण कहलाती है। इसके लिए निवेशक को एक संगठन जिसे निक्षेपागार (डिपोजिटरी) कहा जाता है, के पास एक डिमैट खाता खोलना होता है वस्तुतः, अब सभी प्रांरभिक सार्वजनिक निर्गम (IPOS) विभौतिकीय रूप में जारी किए जाते हैं तथा 99% से अधिक आवर्त का निपटान डिमैट रूप में सुपुर्दगी द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 39. 
मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ-

  • वित्तीय बाजार का मुख्य अंग- मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक मुख्य अंग है। इसके माध्यम से व्यापारी, उद्योगपति तथा सरकार की अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
  • अत्यधिक तरलता-मुद्रा बाजार में अत्यधिक तरलता पायी जाती है।
  • कम व्यवहार लागत-मुद्रा बाजार में किये जाने वाले व्यवहारों के लिए प्रायः दलालों की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिये यहाँ किये जाने वाले क्रय-विक्रय पर कम खर्चे वहन करने पड़ते हैं।
  • अल्पकालीन वित्तीय सम्पत्तियाँ-इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली सम्पत्तियों की अवधि अधिकतम एक वर्ष होती है।
  • दो स्वरूप-मुद्रा बाजार संगठित तथा असंगठित होते हैं। संगठित मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक तथा सहकारी बैंकों को सम्मिलित किया जाता है, जबकि असंगठित में साहूकार, देशी बैंकर, चिट फण्ड आदि को सम्मिलित किया जाता
  • सन्तुलन कार्य-मुद्रा बाजार अल्पकालीन वित्तीय पूर्ति तथा अल्पकालीन वित्तीय मांग में संतुलन स्थापित करने का कार्य करता है।
  • व्यवहारों में तेज गति-मुद्रा बाजार में तेज गति से व्यवहार होते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 40. 
निक्षेपागार से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जिस प्रकार बैंक अपने ग्राहकों के धन को सुरक्षित अभिरक्षा में रखता है, उसी प्रकार एक निक्षेपागार निवेशक की ओर से प्रतिभूतियों को इलैक्ट्रॉनिक रूप में रखता है। निक्षेपागार में एक प्रतिभूति खाता खोला जाता है, सभी अंश, निकाले जा सकते हैं या किसी भी समय बेचे जा सकते हैं। निवेशक की ओर से अंशों की सुपुर्दगी अथवा प्राप्ति हेतु अनुदेश दिए जा सकते हैं। यह एक तकनीक प्रेरित इलैक्ट्रॉनिक भण्डारण प्रणाली है। इसमें अंश प्रमाण-पत्रों, अंतरणों, फार्मों इत्यादि से संबंधित कागजी कार्यवाही नहीं होती। निवेशकों के सभी लेन-देन अधिक गति, कार्यकुशलता तथा उपयोग के साथ निपट जाते हैं क्योंकि सभी प्रतिभूतियाँ बहीखाता प्रविष्टि रीति में प्रविष्ट की जाती
हैं।

भारत में दो निक्षेपागार हैं। नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरीज लिमिटेड (एन.एस.डी.एल.), भारत में वर्तमान में प्रचालित प्रथम तथा सबसे बड़ी निक्षेपागार है। इसे आई.डी.बी.आई., यू.टी.आई. तथा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा एक संयुक्त उपक्रम के रूप में प्रवर्तित किया गया था।

प्रश्न 41. 
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख विशेषताएँ-

  • मॉडल एक्सचेंज-यह अपनी तरह का पहला एक्सचेंज है। इसमें प्रतिभूतियों के व्यवहार की पद्धति बहुत कुशल एवं पारदर्शी है।
  • विशेष स्थान रहित-एन.एस.ई. में व्यापार करने का कोई एक विशेष स्थान नहीं होता है।
  • तीन अंग-एन.एस.ई. में व्यापार की जाने प्रतिभूतियों के आधार पर इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है-थोक ऋण बाजार अंग, पूँजी बाजार अंग तथा भावी तथा विकल्प अंग।
  • आसान पहुँच-विशेष स्थान रहित एक्सचेंज होने के कारण कोई भी निवेशक यहाँ आसानी से पहुँच जाता है।
  • पारदर्शिता-एन.एस.ई. के लोकल टर्मिनल पर जाकर बाजार में विभिन्न प्रतिभूतियों में हो रहे सौदों को देखा जा सकता है। अतः इसमें पारदर्शिता बनी रहती है।
  • एक ही मूल्य-एन.एस.ई. पर सभी शहरों में प्रतिभूतियों का एक ही मूल्य होता है उस मूल्य पर ही निवेशक व्यवहार करते हैं। 
  • अन्य शेयर बाजारों में सूचीयन-NSE पर उन कम्पनियों की प्रतिभूतियों में ट्रेडिंग हो सकती है, जो अन्य शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं।
  • पहचान गुप्त रखना-NSE के किसी एक टर्मिनल पर व्यवहार करने वाले व्यक्ति की जानकारी किसी अन्य को नहीं हो सकती है। इस प्रकार निवेशक की गोपनीयता बची रहती है।

प्रश्न 42. 
सेबी के विकासपूर्ण कार्य बताइए। 
उत्तर:
सेबी के विकासपूर्ण कार्य-

  • निवेशक शिक्षा-सेबी प्रतिभूति बाजार के निवेशकों के प्रशिक्षण को प्रोत्साहन देने का कार्य करती है। यह निवेशकों के लिए कुछ मार्गदर्शक बातों का विज्ञापन करती है तथा मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें भी प्रकाशित करती है।
  • मध्यस्थों को प्रशिक्षण-सेबी प्रतिभूति बाजार के बिचोलियों के प्रशिक्षण को प्रोत्साहन देने का कार्य करती है। इन मध्यस्थों में स्टॉक के दलाल, उप-दलाल, निर्गमन बैंकर, अभिगोपक आदि को सम्मिलित किया गया है।
  • संहिता को बढ़ावा-सेबी प्रतिभूति बाजार में उचित आचरणों (व्यवहारों) तथा सभी एस.आर.ओज के लिए संहिता को बढ़ावा देने का कार्य करती है।
  • अनुसन्धान का आयोजन तथा सूचनाओं का प्रकाशन-सेबी स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के विकास को ठोस आधार प्रदान करने के लिए अनुसन्धान करने तथा उसके निष्कर्षों को प्रकाशित करने का कार्य करती है। वह प्रतिभूति बाजार के सभी भागीदारों के लिए उपयोगी सूचनाओं का नियमित रूप से प्रकाशन भी करती है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 43. 
डीमैट प्रणाली की कार्यविधि लिखिए।
उत्तर:
डीमैट प्रणाली की कार्यविधि-

  • एक निक्षेपागार प्रतिभागी (डी पी), जो एक बैंक, दलाल अथवा वित्तीय सेवा कंपनी हो सकती है, की पहचान करनी चाहिए।
  • एक खाता खोलने का फार्म, प्रलेखन (डोक्यूमैन्टेशन) (पैन कार्ड का विवरण, फोटो, मुख्तारनामा) पूर्ण कर लेना चाहिए। 
  • डी पी. को भौतिक प्रमाण पत्र के साथ विभौतिकीयकरण अनुरोध फार्म जमा करना चाहिए। 
  • यदि सार्वजनिक प्रस्ताव में अंश आवेदित किए जाएं तो डी पी तथा डीमैट खाते का सरल विवरण दिया जाना होता है तथा अंशों का आंबटन स्वतः ही डीमैट खाते में जमा हो जाता है। 
  • यदि अंश किसी दलाल के माध्यम से बेचे जाने हैं तो डी पी को खाते में डेबिट किए जाने वाले अंशों की संख्या के बारे में अनुदेशन करना होता है। 
  • शेयर बाजार को अंशों की सुपुर्दगी हेतु दलाल अपने डी पी को अनुदेश देता है। 
  • तब दलाल भुगतान प्राप्त करके अंश बेचने वाले व्यक्ति को भुगतान कर देता है। 
  • ये सभी लेन-देन 2 दिन में पूरे होने होते हैं अर्थात् अंशों की सुपुर्दगी तथा क्रेता से भुगतान T+2 प्राप्ति की निपटान अवधि के आधार पर होता है।

प्रश्न 44. 
राष्ट्रीय शेयर बाजार (एन.एस.ई.) के बाजार खण्डों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह शेयर बाजार निम्नलिखित दो खंडों को बाजार उपलब्ध कराता है-
(i) थोक विक्रय ऋण बाजार खंड (होल सेल डेब्ट मार्केट सेगमेंट)-यह खंड व्यापक दायरे की स्थिर आय प्रतिभूतियों के लिए एक व्यापार मंच प्रदान करता है जिसके अंतर्गत केंद्रीय सरकार की प्रतिभूतियाँ, राजकोष बिल, राज्य विकास ऋण सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों द्वारा जारी बंधपत्र (बांड्स) अस्थाई/चल पूँजी दर (फ्लोटिंग रेट) बंधपत्र, शून्य कूपन बंधपत्र, सूचकांक बांड (बंधपत्र), वाणिज्यिक पत्र, बचत प्रमाण-पत्र, निगमों के ऋण पत्र तथा म्युचुअल फण्ड आते हैं।

(ii) पूँजी बाजार खंड-एन.एस.ई. का पूँजी बाजार खंड इक्विटी, अधिमान (शेयर), ऋणपत्र, एक्सचेंज व्यापार फण्ड के साथ-साथ फुटकर सरकारी प्रतिभूतियों के लिए सक्षम एवं पारदर्शी मंच उपलब्ध कराता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
शेयर बाजार का अर्थ बताइये। शेयर बाजार के कार्यों (चार) को बतलाइये।
अथवा 
शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज के कार्य बतलाइये।
उत्तर:
शेयर बाजार
शेयर बाजार का आशय ऐसे विपणि स्थल से है जहाँ परं प्रतिभूतियों का विनियोग या सट्टे के लिए क्रय-विक्रय किया जाता है, जिनका कि ऐसे स्थान पर सूचीयन हो चुका है। दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसा सुसंगठित बाजार है जहाँ कम्पनियाँ, जनोपयोगी संस्थाओं, अर्द्ध-सरकारी निगमों, राजकीय उपक्रमों और सरकारी प्रतिभूतियों जैसे अंश ऋणपत्र, बॉण्ड्स आदि का क्रय-विक्रय होता है। 

प्रतिभूति अनुबन्ध (नियामक) अधिनियम, 1956 के अनुसार, "शेयर बाजार का तात्पर्य व्यवसाय में प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त या निपटान हेतु सहायता, नियमन एवं नियन्त्रण के उद्देश्य के लिए एक ऐसे वैयक्तिक निकाय का गठन किया जाना है, फिर चाहे वह निगमित (इनकार्पोरेटेड) हो या नहीं।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि स्कन्ध विनिमय केन्द्र सूचीबद्ध एवं असूचीबद्ध प्रतिभूतियों का संगठित बाजार है, जहाँ पर क्रेता एवं विक्रेता अपने दलालों के माध्यम से प्रतिभूतियों (अंशों, ऋणपत्रों) का क्रय-विक्रय करते हैं।

शेयर बाजार के कार्य 
शेयर बाजार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विनियोग की सुविधा उपलब्ध कराना-शेयर बाजार या स्कन्ध विनिमय केन्द्र पहले से विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता (तरलता) एवं आसान विनियोग अर्थात् दोनों को ही सुविधा उपलब्ध कराता है। यह एक ऐसा बाजार है जहाँ प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

2. प्रतिभूतियों का मूल्यन/भाव-स्टॉक एक्सचेंज या शेयर बाजार में शेयर (अंश) का मूल्य या भाव मांग एवं पूर्ति की ताकतों के द्वारा निर्धारित होता है। वस्तुतः शेयर बाजार सतत मूल्यन या मूल्य निर्धारण का एक प्रक्रम है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों के मूल्य निर्धारित होते हैं।

3. लेन-देन की सुरक्षा-शेयर बाजार की सदस्यता नियमित रहती है और इसके व्यापार को विद्यमान कानूनी ढाँचे के अनुसार संचालित किया जाता है। यह सुनिश्चित करना है कि निवेशक इस बाजार में सुरक्षित एवं निष्पक्ष लेन-देन कर सकें। 

4. आर्थिक प्रगति हेतु भागीदारी-एक स्टॉक एक्सचेंज में विद्यमान प्रतिभूतियों को पुनः बेचा या खरीदा जाता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। यही फिर पूँजी निर्माण एवं आर्थिक वृद्धि की ओर अगुवाई करता

5. इक्विटी संप्रदाय का प्रसार-शेयर बाजार नये निर्गमों को विनियमित करके, बेहतर व्यापार व्यवहारों तथा जनता को निवेश के बारे में शिक्षित कर विस्तृत शेयर स्वामित्व को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

6. सट्टेबाजी के अवसर उपलब्ध कराना-शेयर बाजार कानूनी प्रावधानों के अन्तर्गत प्रतिबन्धित एवं नियन्त्रित तरीके से सटे सम्बन्धी क्रियाकलापों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराता है।

7. बचत एवं निवेश की आदत को बढ़ावा देना-स्टॉक एक्सचेंज जन-साधारण में बचत एवं निवेश की आदत को बढ़ावा देता है। यह लोगों को व्यावसायिक एवं औद्योगिक कार्य-योजनाओं में निवेश के अवसर प्रदान करता है। इससे लोग अनुत्पादक सम्पत्तियों में धन नहीं लगाते हैं।

8. अतिरिक्त पूँजी जुटाना आसान-जिन कम्पनियों के कार्य एवं परिणाम अच्छे होते हैं उनके अंशों या शेयरों के अच्छे भाव रहते हैं और उनके शेयरों में ही अधिक व्यापार होता है। ऐसी कम्पनियों को पूँजी बाजार में उतरने पर पूँजी जुटाने में कोई कठिनाई नहीं आती है।

9. स्थायी बाजार उपलब्ध कराना-स्टॉक एक्सचेंज स्थायी बाजार प्रस्तुत करते हैं जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों को खरीदा एवं बेचा जा सकता है।

10. मूल्य सूचियों का प्रकाशन करना-स्टॉक एक्सचेंज दैनिक मूल्य सूचियों को प्रकाशित करते हैं। इन मूल्य सूचियों में सूचीकृत प्रतिभूतियों के विभिन्न मूल्यों पर हुए लेन-देन को दर्शाया जाता है। ये मूल्य सूचियाँ स्टॉक एक्सचेजों में प्रकाशित होती रहती हैं।

11. अधिकार अंशों तथा ऋणपत्रों के क्रयविक्रय का मंच उपलब्ध कराना-आजकल कई कम्पनियाँ विद्यमान अंशधारियों को अधिकार अंश या ऋणपत्र प्रदान करती हैं। किन्तु कई विद्यमान अंशधारी वित्तीय कठिनाइयों के कारण इन अधिकार अंशों में स्वयं धन नहीं लगा पाते। ऐसी दशा में इन अधिकार अंशों एवं ऋणपत्रों को आसानी से स्टॉक एक्सचेंज में बेचान करते है।

12. सूचीकरण करना-स्टॉक एक्सचेंज प्रतिभूतियों के सूचीकरण का कार्य भी करते हैं; क्योंकि जब तक प्रतिभूतियों का सूचीकरण नहीं हो जाता है तब तक स्टॉक एक्सचेंज में इनका क्रय-विक्रय सम्भव नहीं है। अत: स्टॉक एक्सचेंज प्रतिभूतियों का सूचीकरण कर उन्हें क्रय-विक्रय के लिए मंच प्रदान करता है।

13. बचत को गतिशीलता प्रदान करना-स्टॉक एक्सचेंज लोगों की बचतों को गतिशीलता प्रदान करते हैं।

14. पूँजी निर्माण में योगदान देना-स्टॉक एक्सचेंज बचतों को निरन्तर रूप से अंशों एवं ऋणपत्रों में विनियोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। फलतः लोग अपनी बचतों के एक भाग को स्थायी रूप से इन्हीं में लगाये रखते हैं। इससे देश में पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है।

15. नवीन निर्गमों में अंशों का आबंटन करनाआजकल स्टॉक एक्सचेंज कम्पनियों द्वारा जारी किये जाने वाले नये आबंटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये केन्द्र इन नये निर्गमों के आबंटन का आधार प्रस्तुत करते हैं तथा सभी निवेशकों को न्याय एवं समानता के आधार पर अंशों का आबंटन करते हैं।

16. सरकारी प्रतिभूतियों के लिए बाजार उपलब्ध कराना-सरकारी प्रतिभूतियाँ, जिन्हें स्वर्णिम प्रतिभूतियाँ भी कहा जा सकता है, के लिए भी स्टॉक एक्सचेंज अच्छा बाजार उपलब्ध कराते हैं।

17. बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं को सुविधा प्रदान करना-स्टॉक एक्सचेंज बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं के लिए आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करते हैं। ये संस्थाएँ इन केन्द्रों द्वारा अधिक मुद्रा को प्रतिभूतियों में तत्काल निवेश कर सकती हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर इन्हें बेचकर तत्काल मुद्रा प्राप्त कर सकती हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 2. 
प्राथमिक बाजार में नये अंश निर्गमन की किन्हीं पाँच विधियों का उल्लेख कीजिये।
अथवा 
प्राथमिक बाजार में प्रतिभूति निर्गमित करने के तरीकों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार
प्राथमिक बाजार अर्थात् नये निर्गमों का बाजार वह बाजार है जिसमें प्रतिभूतियों को पहली बार बेचा जाता है। इस बाजार में क्रेता नई निर्गमित प्रतिभूतियों को खरीदता है। प्राथमिक निर्गमन में कम्पनी प्रतिभूतियों को सीधे निवेशकर्ता को जारी करती है। प्राथमिक निर्गमों का उपयोग कम्पनी नये व्यापार के लिये या पुराने व्यापार का विस्तार करने अथवा उनके आधुनिकीकरण के लिए करती है। प्राथमिक बाजार के माध्यम से अधिशेष इकाइयों की बचत को घाटे की इकाइयों को हस्तान्तरित कर देती है जो राशि को भवन, प्लाण्ट, मशीन, तकनीक, क्रय आदि में निवेश करती है। नये निर्गमनों के बाजार में अन्य दूसरे नये दीर्घ अवधि बाह्य स्रोत जैसे वित्तीय संस्थाओं में ऋण सम्मिलित नहीं है। प्राथमिक बाजार के . निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कम्पनियाँ, म्युचुअल फण्ड तथा वैयक्तिक रूप में होते हैं।

जिन प्रतिभूतियों का प्राथमिक बाजार में निर्गमन किया जाता है उनमें सभी दीर्घ अवधि वित्तीय विलेख सम्मिलित हैं, जैसे-समता अंश, ऋण पत्र, बांड, पूर्वाधिकार अंश अथवा इनके परिवर्तित रूप। ये प्रतिभूतियाँ प्राथमिक बाजार में निम्न में से किसी भी पद्धति द्वारा निर्गमित की जा सकती हैं-

1. प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रस्तावना-प्राथमिक सार्वजनिक प्रस्तावना (IPO) किसी कम्पनी द्वारा प्रतिभूतियों की प्रथम बार बिक्री है। IPO को निम्न में से किसी भी पद्धति द्वारा लागू किया जा सकता है-

(i) विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव-इस पद्धति में पूँजी जुटाने के लिए इच्छुक कम्पनी निवेशकर्ताओं को सूचित करने एवं आकर्षित करने के लिए प्रविवरण पत्र जारी करती है। प्रविवरण पत्र में पूँजी जुटाने का उद्देश्य, कम्पनी की वित्त के क्षेत्र की पिछली उपलब्धियाँ तथा प्रवर्तकों की पृष्ठभूमि एवं अनुभव के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण दिया होता है। इन विस्तृत जानकारियों का उद्देश्य आम जनता को आय प्राप्ति तथा प्रस्तावित निवेश की जोखिम के सम्बन्ध में जानने एवं उनका मूल्यांकन करने में सहायता देना है। सार्वजनिक निर्गमन में कम्पनी आम जनता तक पहुँचती है तथा बड़ी संख्या में मध्यस्थों को अपने साथ जोड़ती है। जैसेबैंकर्स, ब्रोकर्स एवं अभिगोपनकर्ता।

(ii) विक्रय के लिए प्रस्ताव-इस पद्धति में नई प्रतिभूतियाँ निवेश करने वाले लोगों को बेचने के लिए निर्गमित करने वाली कम्पनी प्रस्तावित नहीं करती, बल्कि यह कार्य बिचौलिया/मध्यस्थ करता है। यह मध्यस्थ सम्पूर्ण प्रतिभूतियों को एक निश्चित मूल्य पर खरीदकर पुनः ऊँचे दामों पर बेच देता है। इस पद्धति का लाभ यह है कि निर्गमन करने वाली कम्पनी जनता को सीधे जारी करने की जटिल प्रक्रिया से बच जाती है। 

(iii) निजी नियोजन या विनियोग-निजी विक्रय में समस्त नई प्रतिभूतियों को एक मध्यस्थ निश्चित मूल्य पर क्रय कर लेता है और उन्हें जनता को बेचकर कुछ चुनींदा लोगों में ऊँची कीमत पर बेच देता है। जैसे कोई वित्त कम्पनी एक निश्चित मूल्य पर किसी कम्पनी के नये अंशों या ऋणपत्रों को खरीद सकती है। बाद में यह कम्पनी इन्हें निजी तौर पर प्रतिष्ठानों को बेच सकती है। इस पद्धति में सार्वजनिक निर्गम द्वारा वित्त जुटाने का व्यय वहन नहीं कर सकती। इसीलिए वह निजी तौर पर विक्रय बाजार में जाना पसन्द करती है। उपर्युक्त विधि को पृथक्-पृथक् रूप में भी गिना जा सकता है।

(iv) आरम्भिक सार्वजनिक निर्गम (ईआई.पी.ओज.)-यह शेयर बाजार में प्रतिभूतियों को ऑन-लाइन पद्धति द्वारा निर्गमित करने की नई विधि है। इसमें कम्पनी को आवेदनों को स्वीकार करने और आर्डर देने के प्रयोजन के लिए पंजीकृत दलालों को नियुक्त करना पड़ता है। कम्पनी को किसी ऐसे एक्सचेंज, जिसमें उसने अपनी प्रतिभूतियों को पहले से प्रस्तावित किया हुआ है, की बजाय किसी दूसरे केन्द्र में अपने प्रतिभूतियों को सूचीकृत करवाने के लिए आवेदन करना पड़ता है। प्रबन्धक विभिन्न मध्यस्थों के द्वारा निर्गमन से सम्बन्धित सभी क्रियाओं को संचालित करता है।

2. अधिकार निर्गम (निवर्तमान अंशधारियों के लिये)- यह एक कम्पनी द्वारा अपने निवर्तमान (विद्यमान) अंशधारियों को नये अंशों की प्रस्तावना है। प्रत्येक अंशधारक को उसके पास पहले से ही जो अंश हैं उनके अनुपात में नये अंश खरीदने का अधिकार होता है। एक अंशधारक प्रस्ताव को अपने लिए स्वीकार कर सकता है या फिर वह पूरे अधिकार को अथवा इसके एक भाग को दूसरे को सौंप सकता है। अधिकार निर्गम एक शेयरधारक के लिए मूल्यवान होते हैं; क्योंकि यह चालू मूल्य से कम मूल्य पर प्राप्त हो जाते हैं। अधिकार निर्गम अतिरिक्त पूँजी जुटाने का कम खर्चीला एवं सुविधाजनक तरीका है।

सार्वजनिक कम्पनी को अपने अधिकार अंशों का निर्गमन अनिवार्य रूप से निवर्तमान अंशधारकों को करना पड़ता है। स्टॉक एक्सचेंज भी किसी सूचीकृत कम्पनी को नये अंशों का निर्गमन बिना निवर्तमान (विद्यमान) अंशधारियों को पूर्वक्रम अधिकार के अनुमति नहीं देता है।

3. पूर्वक्रम निर्गम-यह एक चलन है जिसे कम्पनी मानती है और यह कुछ चुनींदा लोगों को पूर्वक्रम में प्रतिभूतियों का आवंटन वर्तमान बाजार मूल्य से भिन्न मूल्य पर करती है। ये लोग सामान्यतः प्रवर्तक होते हैं। इसका फायदा यह है कि राशि, सार्वजनिक निर्गम अथवा निजी व्यवस्था पद्धति की तुलना में न्यूनतम लागत पर प्राप्त हो जाती है लेकिन अधिमान्य आवंटन का कई बार कम्पनियों ने दुरुपयोग किया है।

द्वितीयक बाजार (गौण बाजार) 
द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज भी कहा जाता है जहाँ पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है अर्थात् इस बाजार में प्रचलित प्रतिभूतियों का क्रयविक्रय होता है। इस बाजार में प्रतिभूतियों का निर्गमन कम्पनी सीधे विनियोजकों को नहीं करती है। पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों को विद्यमान विनियोजक दूसरे विनियोजकों को बेच देता है। इस लेन-देन में कम्पनी बिल्कुल भी सम्मिलित नहीं है। कोई भी प्रतिभूतिधारक इसे बेच सकता है। इसी प्रकार से निवेश की इच्छा रखने वाला कम्पनी द्वारा पहले से ही निर्गमित प्रतिभूति को खरीदने की सोच सकता है। एक इच्छुक क्रेता कम्पनी से प्रतिभूति नहीं खरीद सकता; क्योंकि कम्पनी सार्वजनिक ङ्के निर्गमन के समय ही उन्हें बेच चुकी होती है । इस प्रकार से एक इच्छुक विक्रेता कम्पनी के पास प्रतिभूति की भुगतान तिथि से पहले भुगतान वापसी के लिए नहीं जा सकता।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 3. 
वित्तीय बाजार की अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वित्तीय बाजार की अवधारणा
किसी भी अर्थव्यवस्था का एक मुख्य हिस्सा व्यवसाय होता है। व्यवसाय में मुख्य रूप से दो क्षेत्र समाहित होते हैं-प्रथम, घरेलू जो कि निधियों को बचाता है और द्वितीय, व्यावसायिक फर्म जो इन निधियों को निवेशित करती है। एक वित्तीय बाजार इन दोनों के बीच निधियों को संचालित करते हुए बचतकर्ता तथा निवेशक दोनों को जोड़ने में मदद करता है। यह मुद्रा, पूँजी अथवा वित्तीय संसाधनों को बचतकर्ता से ऋण लेने वाले उद्यमियों को हस्तान्तरित करने में सहायक होता है। बचत वे परिवार करते हैं जिनकी आय उनके खर्चों से अधिक होती है। कम्पनी एवं फर्म भी आय को संचित कर बचत करती है। यह बचत स्वामियों की होती है। निवेश क्रियाएँ व्यावसायिक क्षेत्र द्वारा की जाती हैं। व्यावसायिक क्षेत्र वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन के लिए प्रयोग कर आधिक्य इकाइयों की बचत को निवेश में बदल देता है।

इस प्रकार से बचत एवं निवेश कार्य दो भिन्न समूह होते हैं। वित्त बाजार बचत और अधिशेष वाली इकाइयों और बचत एवं घाटे वाली इकाइयों के बीच एक कड़ी एवं माध्यम का कार्य करता है। इस प्रकार से वित्त बाजार ऋण लेने वालों तथा ऋण देने वालों अर्थात् दोनों को ही मिलकर बना है। यह उन लोगों को धन उपलब्ध करवाता है, जो उसका उपयोग करने के बदले पर्याप्त प्रतिफल देने को तैयार होते हैं ।

इस प्रकार वित्तीय बाजार बचतकर्ता तथा निवेशक को जोड़ते हुए जो कार्य करता है उसे एक विनियोजित व्यवसाय या कार्य कहा जाता है। यह निवेशक के लिए उपलब्ध पूँजी को उनके सर्वाधिक उत्पादन निवेश अवसर में विमियोजित करता है। जब यह विनियोजन का कार्य पूरा होता है तो इससे दो परिणाम सामने आते हैं-

  • घरानों (हाउसहोल्ड) को प्रस्तावित वापसी दर उच्च होती है।
  • उन फर्मों के लिए दुर्लभ संसाधनों में विनियोग किया जाता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए उच्च उत्पादकता करते हैं।

यहाँ दो प्रमुख वैकल्पिक कार्य हैं जो वित्तीय बाजार द्वारा किये जा सकते हैं। एक तो घराने (हाउसहोल्ड) अपनी अधिशेष निधि (जमा पूँजी) को जमा करा सकते हैं जो बदले में इन निधियों को ऋण के रूप में व्यावसायिक फर्म को दे सकते हैं। दूसरे रूप में वित्तीय बाजार का उपयोग करने वाले एक व्यवसाय द्वारा प्रस्तावित शेयर एवं ऋण पत्र खरीद सकते हैं। जिस प्रक्रिया द्वारा निधियों का विनियोजन किया जाता है उसे वित्तीय मध्यस्थता कहते हैं। बैंक तथा वित्तीय बाजार आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं और वे घरानों (हाउसहोल्ड) को यह चुनने का अवसर देते हैं कि वे अपनी बचत कहाँ लगाना चाहते हैं।

वस्तुतः वित्तीय बाजार वित्तीय परिसम्पत्तियों के विनिमय एवं सृजन के लिए एक बाजार है। ये वित्तीय बाजार वहीं अस्तित्व में आते हैं जहाँ वित्तीय लेन-देन होते हैं । ये वित्तीय लेन-देन वित्तीय परिसम्पत्ति की रचना के स्वरूप हो सकते हैं जैसे कि एक कम्पनी द्वारा अंशों या ऋण पत्रों के आरम्भिक निर्गमन अथवा विद्यमान वित्तीय परिसम्पत्तियों जैसे कि समता अंशों, ऋण पत्रों, बॉण्डों का क्रय एवं विक्रय करना आदि।

प्रश्न 4. 
पूँजी बाजार का अर्थ एवं प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार का अर्थ-पूँजी बाजार (कैपिटल मार्केट) वह बाजार है जिसके माध्यम से दीर्घकालीन पूँजी, ऋण एवं समता दोनों ही, उगाहे या वर्धित एवं निवेशित किये जा सकते हैं। अन्य शब्दों में, इससे अभिप्राय उन सभी संगठनों, संस्थानों एवं उपकरणों से है जो दीर्घ अवधि वित्त प्रदान करते हैं। इसमें अल्प अवधि वित्त बाजार सम्मिलित नहीं है जिसमें भुगतान अवधि एक वर्ष से कम है। संगठन एवं संस्थान जो पूँजी बाजार के घटक हैं उनमें नये निर्गम बाजार एवं शेयर बाजार सम्मिलित हैं। म्युचुअल फण्ड, बीमा कम्पनियाँ, निवेश ब्राण्ड भी पूँजी बाजार के घटक हैं।

पूँजी बाजार के अन्तर्गत सारणियों (प्रणाली) की एक श्रृंखला भी समाहित होती है जिसके माध्यम से एक समुदाय की बचतों को औद्योगिक एवं वाणिज्य उद्यमों तथा राजकीय. उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाता है। पूँजी बाजार इन बचतों को उनके सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में लगाकर देश के विकास एवं वृद्धि की ओर जाता है। एक आदर्श पूँजी बाजार वह होता है जहाँ उचित लागत या मूल्य पर वित्त उपलब्ध होता है।

इस प्रकार पूँजी बाजार व्यावसायिक क्षेत्र की लम्बी अवधि की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने पर ध्यान देता है। व्यावसायिक संस्थाएँ इस प्रकार का दीर्घ अवधि के निवेश हेतु वित्त जुटाने के लिए उपयोग करती हैं। इन संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों को निर्गमित कर धन एकत्रित किया जाता है।

पूँजी बाजार की प्रकृति 
1. पूँजी बाजार वित्तीय बाजार का मुख्य अंग है-पूँजी बाजार देश के औद्योगिक क्षेत्र को अधिकतम वित्तीय आवश्यकताओं (दीर्घकालीन) को पूरा करने में अहम भूमिका निभाने का कार्य करता है। यह पूँजी बाजार का मुख्य अंग है।

2. दो अंग-पूँजी बाजार के दो अंग होते हैंप्राथमिक बाजार-यह ऐसा बाजार है जिसमें दीर्घकालीन पूँजी एकत्रित करने के लिए नये निर्गमन लाये जाते हैं। द्वितीयक (गौण) 'बाजार-यह वह बाजार होता है जिसमें पूर्व-निर्गमित (विद्यमान) प्रतिभूतियों का क्रयविक्रय किया जाता है।

3. दो स्वरूप-पूँजी बाजार के दो स्वरूप होते हैं-प्रथम, संगठित पूँजी बाजार जिसमें विभिन्न बैंक आती हैं। द्वितीय, असंगठित बाजार जिसमें देशी बैंकर्स, सेठ-साहूकार आदि आते हैं।

4. दीर्घकालीन प्रतिभूतियों में व्यवहार-पूँजी बाजार में दीर्घकालीन प्रतिभूतियों में व्यवहार किया जाता है।

5. प्रतिभूतियों में तरलता लाना-पूँजी बाजार विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों को क्रय-विक्रय का एक मंच उपलब्ध करवाकर उनमें तरलता लाता है।

6. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन देना-पूँजी बाजार लोगों को विनियोग के अवसर प्रदान करता है। विनियोग से लोगों को लाभ होता है। वे इस लाभ का अधिकांश भाग वापस पूँजी बाजार में लगाते हैं। यह क्रम निरन्तर चलता ही रहता है। इस तरह पूँजी बाजार पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन देता है। 

7. दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना-पूँजी बाजार की प्रकृति सरकार और औद्योगिक क्षेत्र की दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने की है।

8. माँग एवं पूर्ति में संतुलन बनाये रखना-पँजी बाजार की प्रकृति दीर्घकालीन वित्त की माँग तथा पूर्ति में सन्तुलन बनाये रखने की भी होती है।

9. व्यावसायिक स्वामित्व अनेक लोगों के हाथों में हस्तान्तरित होना-पूँजी बाजार में कम्पनियों के अंशों का क्रय-विक्रय होता है। इससे व्यवसाय का स्वामित्व अनेक लोगों के पास हस्तान्तरित हो जाता है। पूँजी बजार के अभाव में व्यावसायिक स्वामित्व कुछ ही लोगों के हाथों में केन्द्रित हो सकता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 5. 
प्राथमिक बाजार तथा द्वितीयक बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार की प्रमुख विशेषताएँ प्राथमिक बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्राथमिक बाजार का सम्बन्ध नये निर्गमनों से है-प्राथमिक बाजार की यह प्रमुख विशेषता है कि इसका सम्बन्ध नये निर्गमनों से है। जब भी कोई कम्पनी नये अंश अथवा ऋण पत्र जारी करती है तो यह प्राथमिक बाजार की ही क्रिया होती है।

2. कोई विशेष स्थान नहीं प्राथमिक बाजार किसी विशेष स्थान का नाम नहीं है बल्कि नये निर्गमन लाने को ही प्राथमिक बाजार कहते हैं।

3. प्राथमिक बाजार का नम्बर द्वितीयक बाजार से पहले आता है-प्राथमिक बाजार की यह भी एक मुख्य विशेषता है कि इसमें व्यवहार पहले होते हैं, उसके बाद ही द्वितीयक बाजार का नम्बर आता है।

4. प्राथमिक बाजार में पूँजी एकत्रित करने की कई विधियाँ-प्राथमिक बाजार में पूँजी एकत्रित करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं, जिनके माध्यम से पूँजी एकत्रित की जाती है-
(1) सार्वजनिक निर्गमन द्वारा-इस विधि में कम्पनी अपना प्रविवरण जनता में जारी करके जनता को अंश अथवा ऋण पत्र खरीदने के लिए आमन्त्रित करती है।
(2) निजी प्लेसमेंट-इस विधि में कम्पनी अपने अंशों को जनता को नहीं बेचती वरन् वह उन्हें बड़ी वित्तीय संस्थाओं या दलालों को बेच देती है। ये वित्तीय संस्थाएँ या दलाल इन अंशों को पुनः अपने ग्राहकों को बेचते हैं।
(3) अधिकार निर्गमन-विद्यमान कम्पनियाँ जिन्होंने पहले से ही अंश निर्गमन किये हुए हैं, वे नये अंशों का निर्गमन करती हैं तो नये अंश बेचने के लिए पहले विद्यमान (पुराने) अंशधारियों को आमंत्रित करती हैं। विद्यमान अंशधारियों को इस प्रकार से अंशों का निर्गमन अधिकार निर्गमन कहलाता है।

5. दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति-जब भी कोई कम्पनी अपनी दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति करना चाहती है तो उसे नये निर्गमन के लिए प्राथमिक बाजार में प्रवेश करना होता है। कम्पनियाँ प्रायः समता अंश, पूर्वाधिकार अंश, ऋण पत्र आदि प्रतिभूतियों को दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राथमिक बाजार में ही नये निर्गमन लाती हैं।

6. निवेशक-प्राथमिक बाजार के निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कम्पनियाँ, म्युचुअल फण्ड तथा वैयक्तिक रूप में होते हैं।

7. नया निर्गमन बाजार-प्राथमिक बाजार को नये निर्गमन बाजार के रूप में भी जाना जाता है।

द्वितीयक बाजार की विशेषताएँ 
द्वितीयक बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करना-हायक बाजार प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करता है। तरलता का तात्पर्य प्रतिभूतियों को अतिशीघ्र नकदी में बदलने से है।
  • यह प्राथमिक बाजार के बाद आता है-किसी भी नई प्रतिभूति को पहली बार द्वितीयक बाजार में नहीं बेचा जा सकता है। नई प्रतिभूतियों को पहले प्राथमिक बाजार में बेचा जाता है तत्पश्चात् ही द्वितीयक बाजार का नम्बर आता है।
  • नये निवेशकों को प्रोत्साहन-द्वितीयक बाजार अर्थात् शेयर बाजार में अंशों व अन्य प्रतिभूतियों के भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। मूल्यों के अन्तर के आधार पर लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक नये-पुराने निवेशक इस बाजार में प्रवेश करते हैं तथा देश के औद्योगिक क्षेत्र में विनियोग को बढ़ावा देते हैं।
  • एक विशेष स्थान निश्चित होना-द्वितीयक बाजार का एक विशेष स्थान होता है, जिसे स्कन्ध विनिमय केन्द्र कहते हैं। सामान्यतया अधिकतर प्रतिभूतियों में व्यवहार द्वितीयक बाजार के माध्यम से ही अधिक होता है।
  • वर्तमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विक्रयताद्वितीयक बाजार वर्तमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विक्रयता उपलब्ध करता है। 

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 6. 
मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये। वर्तमान युग में इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार की विशेषताएँ 
मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • वित्तीय बाजार का मुख्य अंग-मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक मुख्य अंग है। इस बाजार के माध्यम से व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा सरकार की अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता
  • अत्यधिक तरलता-मुद्रा बाजार की एक मुख्य विशेषता यह है कि इस बाजार में अत्यधिक तरलता पायी जाती है।
  • कम लागत आना-मुद्रा बाजार में किये जाने वाले व्यवहारों के लिए प्रायः दलालों की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार इस स्रोत से पूँजी प्राप्त करने में कम लागत आती है।
  • अल्पकालीन वित्तीय सम्पत्तियाँ-मुद्रा बाजार में व्यवहार की जाने वाली सम्पत्तियों की अवधि अधिकतम एक वर्ष होती है। वित्तीय सम्पत्तियों का अर्थ वित्तीय प्रलेखों से है।
  • माँग एवं पूर्ति में सन्तुलन बनाना-मुद्रा बाजार की एक विशेषता यह है कि यह अल्पकालीन वित्तीय पूर्ति तथा अल्पकालीन वित्तीय माँग में सन्तुलन स्थापित करने का कार्य करता है।
  • तीव्र गति से व्यवहार-मुद्रा बाजार में किये जाने वाले व्यवहार तीव्र गति से होते हैं; क्योंकि अधिकतर व्यवहार टेलीफोन व मोबाइल से ही होते हैं। शेष कार्यवाही तो बाद में होती है।
  • दो स्वरूप-मुद्रा बाजार के दो स्वरूप होते हैं-संगठित-इसमें रिजर्व बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक तथा सहकारी बैंकों को सम्मिलित किया जाता है। असंगठित मुद्रा बाजार के अन्तर्गत साहूकार, देशी बैंक, चिटफण्ड आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • उप-बाजारों का समूह-मुद्रा बाजार के अनेक उप-बाजार इस प्रकार हैं-कॉलमनी बाजार, राजकोष बिल बाजार तथा कॉमर्शियल पेपर बाजार आदि।
  • प्रमुख प्रतिभागी-बाजार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, वाणिज्यिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, औद्योगिक घराने तथा म्युचुअल फण्ड आदि हैं।

मुद्रा बाजार का महत्त्व 
वर्तमान युग में मुद्रा बाजार का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • निवेश के अच्छे अवसर प्रदान करना-मुद्रा बाजार का महत्त्व इस रूप में है कि यह अल्पकालीन निवेशक के अच्छे अवसर प्रदान करता है।
  • अत्यधिक सुरक्षा-मुद्रा बाजार का महत्त्व इसलिए भी अधिक है कि इसमें जारी किये जाने वाले प्रपत्र सर्वाधिक सुरक्षित होते हैं।
  • अधिक तरलता-मुद्रा बाजार में क्रय किये जाने वाले प्रपत्रों में अत्यधिक तरलता रहती है। इन्हें अतिशीघ्र तथा जब चाहे तब नकदी में बदला जा सकता है।
  • अल्पकालीन वित्त-मुद्रा बाजार का महत्त्व इस रूप में भी है कि इसकी सहायता से सरकार, बैंकों एवं उद्योगपतियों को वित्तीय आवश्यकता आसानी से पूरी हो जाती है।
  • सरकार का मार्गदर्शन-मुद्रा बाजार के विभिन्न पक्षकार सरकार की आर्थिक नीतियाँ निर्धारित करने में सहायता करते हैं।
  • सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन-मुद्रा बाजार के विभिन्न अंग जैसे रिजर्व बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक आदि सरकारी नीतियों को कार्यान्वित करने में सहयोग करते हैं।

प्रश्न 7. 
स्टॉक एक्सचेंज की उपयोगिता बतलाइये। 
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज की उपयोगिता
भारत जैसे विकासशील देश के लिए स्टॉक एक्सचेंजों की उपयोगिता अत्यधिक है। भारत के औद्योगिक विकास का श्रेय इन्हें ही जाता है। सुसंगठित एवं विकसित स्टॉक एक्सचेंज के अभाव में औद्योगिक प्रगति कठिन नहीं रहती है। क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज पूँजी के गढ़ होते हैं। ये बचत और पूँजी निर्माण के द्वारा बड़े तथा जोखिमपूर्ण उद्योगों की स्थापना में सहायता करते हैं। स्टॉक एक्सचेंज के लेन-देन से विनियोजकों को विनियोजन के उच्च स्तर मिलते हैं तथा उनका मार्गदर्शन भी होता है। इनके सहयोग से सरकार को भी नीतिनिर्धारण में सहायता मिलती है। वस्तुतः स्टॉक एक्सचेंजों का सामान्य निवेशक से लेकर सम्पूर्ण राष्ट्र के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

निवेशकों की दृष्टि से लाभ-

  • निवेश की सुविधा-स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों को उनके धन के निवेश की सेवा प्रदान करते हैं। निवेशक स्टॉक एक्सचेंज के दलालों के माध्यम से अंशों, ऋण पत्रों या अन्य प्रकार की प्रतिभूतियाँ क्रय कर सकता है।
  • धन का सदपयोग-निवेशक स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से अपने धन को उत्पादक प्रतिभूतियों में लगाकर अपने धन का सदुपयोग कर सकते हैं।
  • मूल्यों की जानकारी-विनियोजकों को इन एक्सचेजों के कारण ही प्रत्येक प्रतिभूति के मूल्यों की जानकारी हो जाती है। इससे उन्हें प्रतिभूतियों के क्रयविक्रय की सुविधा मिलती है।
  • सुरक्षा-स्टॉक एक्सचेंज पर प्रतिभूतियों का लेनदेन करने से विनियोजक पूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हैं। उन्हें अपनी प्रतिभूतियों का उचित मूल्य मिल जाता है।
  • तरलता-स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों के निवेशों को तरलता प्रदान करते हैं। इनके माध्यम से जब चाहें तब अपने अंशों एवं ऋण पत्रों को बेचकर धन प्राप्त कर सकते हैं।
  • धोखाधड़ी से सुरक्षा-स्टॉक एक्सचेजों के माध्यम से लेन-देन करने से निवेशक धोखाधड़ी से सुरक्षित रहते हैं।
  • निःशुल्क सलाह-स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों को धन निवेश करने के लिए परामर्श भी देते हैं।
  • सट्टे की सुविधा-स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों को अंशों/प्रतिभूतियों के वास्तविक क्रय-विक्रय करने के अतिरिक्त सट्टे की भी सुविधा प्रदान करते हैं। 

कम्पनियों की दृष्टि से लाभ-

  • ख्याति में वृद्धि-स्टॉक एक्सचेंजों में उन कम्पनियों के अंशों में अच्छा व्यापार होता है जिनके परिणाम अच्छे रहते हैं, उनके भाव भी ऊँचे रहते हैं। इससे कम्पनी की ख्याति में अत्यधिक वृद्धि होती है।
  • अभिदान में सुविधा-स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीकरण करवाने की शर्त पर अंशों का निर्गमन प्रस्तुत किया जाता है तो निवेशक आसानी से अभिदान कर देते हैं । इससे निवेशक पूँजी की तरलता के लिए आश्वस्त हो जाते हैं।
  • वित्तीय संस्थाओं को आसानी से ऋण-जिन कम्पनियों के अंश स्टॉक एक्सचेंज पर ऊँचे मूल्य पर बिकते हैं, वित्तीय संस्थाएँ भी उन्हें आसानी से व आसान शों पर ऋण प्रदान कर देती हैं।
  • भावी निर्गमों में आसानी-जिन कम्पनियों के अंशों का सूचीयन हो चुका होता है, उन कम्पनियों को भविष्य में और पूँजी प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होती है। वे जब चाहें जनता को आमन्त्रित करके अंश जारी कर सकती हैं। जनता ऐसी कम्पनी के अंशों में तुरन्त ही धन लगा देती है।
  • अधिग्रहण में सुविधा-स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से कम्पनियाँ दूसरी कम्पनियों के अंशों को क्रय कर उनका अधिग्रहण भी कर सकती हैं।
  • अधिग्रहण से सुरक्षा-कोई भी कम्पनी जब किसी अन्य कम्पनी का अधिग्रहण करती है तो उस अन्य कम्पनी के प्रावधानों को इसकी जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल जाती है। अतः वे अपनी कम्पनी को दूसरी कम्पनी द्वारा अधिग्रहण करने से बचाने का उपाय कर सकती हैं। 

समाज की दृष्टि से लाभ-

  • पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन-स्टॉक एक्सचेंज लोगों को बचत करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लोगों की छोटी-छोटी बचतें ही उद्योगों के लिए विशाल पूँजी के रूप में उपलब्ध होती हैं। इस प्रकार ये एक्सचेंज पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं।
  • नवीन कम्पनियों का विकास-पूँजी निर्माण तथा पूँजी की उपलब्धि के कारण ही समाज व देश में नई-नई कम्पनियों का विकास होने लगता है।
  • बड़े पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहनकम्पनियों की स्थापना हो जाने से तथा वित्तीय सुविधाएँ उपलब्ध होने से बड़ी व भारी मशीनों की स्थापना को प्रोत्साहन मिलता है। इससे देश में बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगता है।
  • नये उद्योगों का विकास-स्टॉक एक्सचेंज के कारण ही सभी देशों में नये-नये उद्योगों का विकास सम्भव हुआ है।
  • सुदृढ़ औद्योगिक संस्थाओं को प्रोत्साहनस्टॉक एक्सचेंजों की स्थापना से देश में अच्छी औद्योगिक संस्थाओं को प्रोत्साहन मिलता है। 
  • औद्योगिक प्रगति का मापक यन्त्र-स्टॉक एक्सचेंज देश में औद्योगिक प्रगति के मापक यन्त्र तथा परिचायक होते हैं। देश के स्टॉक एक्सचेंज जितने अधिक विकसित होते हैं देश का औद्योगिक स्तर उतना ही ऊँचा माना जाता है।
  • सार्वजनिक उपक्रमों की प्रतिभतियाँ प्राप्त होना-कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक उपक्रमों के अंश/ ऋण पत्र आसानी से खरीद व बेच सकता है; क्योंकि इन उपक्रमों के अंश व ऋण पत्र भी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीकृत रहते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की प्राप्ति-अब देश में विदेशी निवेशक व विदेशी वित्तीय संस्थान देश की कम्पनियों के अंशों व ऋण पत्रों में विनियोग कर सकते हैं। इससे समाज को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 8. 
शेयर बाजार में व्यापार प्रक्रिया (ट्रेडिंग प्रोसीजर) को संक्षेप में समझाइये। 
उत्तर:
शेयर बाजार में व्यापार प्रक्रिया (ट्रेडिंग प्रोसीजर) 
कुछ वर्षों पहले तक शेयर बाजार में व्यापार एक सार्वजनिक रूप से चिल्लाकर अर्थात शोर मचाकर या नीलामी प्रणाली के माध्यम से किया जाता था। किन्तु अब इसका स्थान ऑनलाइन स्क्रीन आधारित इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली ने ले लिया है। अब देश के लगभग सभी एक्सचेंज कम्प्यूटरीकृत. एवं इलेक्ट्रॉनिक बन गये हैं । यही कारण है कि अब शेयर बाजार के पटल से दलालों के कार्यालयों में स्थानान्तरित हो गये हैं जहाँ पर व्यापार कम्प्यूटर के माध्यम से होता है। दलाल (ब्रोकर्स) एक शेयर बाजार के सदस्य होते हैं जिनके माध्यम से प्रतिभूतियों का व्यापार किया जाता है। ये ब्रोकर्स व्यक्ति, साझेदारी फर्म अथवा निगमित निकाय के रूप में हो सकते हैं। ये क्रेता एवं विक्रेता के बीच मध्यस्थ का कार्य करते हैं।

पहले ये लोग शेयर बाजार द्वारा स्वीकृत (स्वामित्व), नियंत्रित तथा प्रतिबन्धित होते थे। दलालों द्वारा शेयर बाजारों के स्वामित्व एवं प्रबन्धन प्रायः दलालों और उनके ग्राहकों के बीच हितों के झगड़े का रूप ले लेते हैं जिससे शेयर बाजारों के लिए डिम्युचुआलइजेशन की नींव पड़ी। डिम्युचुअलाइजेशन स्वामित्व को अलग करता है और सदस्यों के व्यापार अधिकारों से शेयर बाजार को नियंत्रित करता है। डिम्युचुअलाइजेशन या सहपारस्परिकता शेयर बाजार एवं दलालों के बीच परस्पर झगड़ों को घटाता है और निजी लाभों हेतु ब्रोकर्स द्वारा शेयर बाजार के इस्तेमाल को भी घटाता है।

किसी भी कम्पनी की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय शेयर बाजार में तभी हो सकता है जब वे वहाँ 'सूचीबद्ध' या 'भावबद्ध' या 'निर्खदम' (कोटेड) हों। एक शेयर बाजार में अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने के लिए कम्पनियों को आवश्यकताओं का एक कठोर सेट पत्रों का भरना होता है। यह सुनिश्चित करता है कि उसके बाद अंशधारियों के हितों को ढंग से देख लिया गया है। शेयर बाजार में लेन-देन या तो नकदी आधार पर या आगे ले जाना (अग्रनयन) आधार पर किया जाता है। इस आगे ले जाने को 'बदला' भी कहा जाता है। एक शेयर बाजार वर्ष अवधियों में विभाजित होता है जिसे 'एकाउंट्स' या 'सौदा-अवधि' कहते हैं जो कि एक पखवाड़े से लेकर एक माह की भिन्नता का होता है। एक सौदा अवधि के लिए किये गये सभी लेन-देनों का शेयर बाजार द्वारा किये गये भुगतान कार्यक्रम के अधिसूचित दिनों में यदि बिक्री का मामला है तो अंश प्रमाणपत्रों को हस्तगत (सौंपकर) करके निपटाया जाता है।

एक अंश प्रमाण-पत्र एक व्यक्ति द्वारा प्रतिभूतियों के स्वामित्व का प्रमाण-पत्र होता है। प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय में या लेन-देन में, अंश प्रमाण-पत्रों की वापसी पर मुद्रा का विनिमय सम्मिलित होता है। इससे चोरी, धोखाधड़ी, अन्तरण, विलम्बन तथा कागज आदि तैयार करने में समय लगने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रतिभूतियों के अन्तरण (हस्तान्तरण) एवं धारण करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक बुक प्रविष्ट प्रपत्र को प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 9. 
भारत के राष्ट्रीय शेयर बाजार (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इण्डिया) पर एक लेख लिखिए। 
उत्तर:
भारत का राष्ट्रीय शेयर बाजार
(नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) 
भारत का राष्ट्रीय शेयर बाजार बिल्कुल नया, अति अधुनातन एवं तकनीकी संचालित एक्सचेंज है। इसे 'फेरवानी समिति' की सिफारिशों पर नवम्बर, 1992 में स्थापित किया गया है। यह शेयर बाजार कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के अधीन एक गैर-लाभ उददेश्य वाली कम्पनी के रूप में स्थापित किया गया था। इसका पंजीकृत कार्यालय 'मुम्बई' में है। इसे अप्रैल, 1993 में शेयर बाजार के रूप में सरकार से मान्यता मिली थी। 1994 से इसने अपना कार्य शुरू किया था। इसने नवम्बर, 1994 में इक्विटीज के लिए व्यापार मंच की शुरुआत की तथा जून, 2000 में विभिन्न व्युत्पादित प्रपत्रों के लिए भावी एवं वैकल्पिक सेगमेंट (खण्ड) का प्रारंभ किया। राष्ट्रीय शेयर बाजार (एन.एस.ई.) ने राष्ट्रव्यापी पूर्णतः स्वचालित स्क्रीन आधारित व्यापार प्रणाली की स्थापना की।

यह शेयर बाजार देश के अग्रणी वित्तीय संस्थानों, बैंकों, बीमा कम्पनियों तथा अन्य वित्तीय मध्यस्थों द्वारा स्थापित किया गया था। यह व्यावसायिकों द्वारा प्रबन्धित किया जाता है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक्सचेंज पर व्यापार नहीं करते हैं। एन.एस.ई. में व्यापार. करने का अधिकार इसके व्यापारिक सदस्यों को प्राप्त है जो अपनी सेवाएँ निवेशकों को उपलब्ध कराते हैं। एन.एस.ई. के प्रबन्ध मण्डल में अध्यक्ष एवं प्रबन्ध संचालक सहित 19 संचालक हैं। प्रबन्ध संचालक तथा उप-प्रबन्ध संचालक इसके दैनिक कार्यों का प्रबन्ध एवं संचालन करते हैं। एन.एस.ई. के प्रबन्ध मण्डल में उन्नयन संस्थाओं के वरिष्ठ कार्यकारी तथा विख्यात व्यावसायिक क्षेत्र के लोग सम्मिलित हैं जो व्यापार करने वाले सदस्यों से प्रतिनिधित्व नहीं रखते हैं।

एन.एस.ई. में दो कार्यकारी समितियों का गठन किया गया है-(i) पूँजी बाजार तथा ऋण बाजार प्रभार कार्यकारी समिति (ii) भावी तथा विकल्प सौदा प्रभाग।

एन.एस.ई. की पाँच सहायक कम्पनियाँ भी हैं जो इसके कार्यों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सहायता करती हैं-(i) नेशनल सिक्यूरिटीज क्लियरिंग कारपोरेशन लि.; (ii) इण्डिया इण्डेक्स सर्विसेज एण्ड प्रॉडक्ट्स लि.; (iii) नेशनल सिक्यूरिटी डिपोजिटरी लि.; (iv) एन.एस. ई.आई.टी.लि.; (v) एनसीडेक्स लि.। 

राष्ट्रीय शेयर बाजार के उद्देश्य-

  • सभी प्रकार की प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय के लिए राष्ट्रव्यापी व्यापार सुविधा उपलब्ध कराना।
  • एक औचित्यपूर्ण संचार नेटवर्क के द्वारा पूरे देश भर में निवेशकों की समान पहुँच सुनिश्चित करना। 
  • इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली का उपयोग करते हुए एक निष्पक्ष, सक्षमतापूर्ण तथा पारदर्शी प्रतिभूति बाजार उपलब्ध कराना।
  • लघु भुगतान चक्र तथा बुक (पुस्तक) प्रविष्टि निपटान के योग्य बनाना। 
  • अन्तर्राष्ट्रीय ऊँचाइयों एवं मानकों को पूरा करना। 
  • अन्य स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के लिए आदर्श प्रस्तुत करना। 
  • सौदों का शीघ्र निपटान करके निवेशकों को शीघ्र भुगतान उपलब्ध कराना।

दस वर्ष की समय-सीमा के अन्दर राष्ट्रीय शेयर बाजार उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के योग्य हो गया है जिसके लिए इसकी स्थापना की गई है। यह भारतीय पूँजी बाजार के रूपान्तरण में एक बदलाव अभिकर्ता (एजेण्ट) के रूप में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसने यह भी सुनिश्चित किया है कि तकनीकी से पूरे देश में निवेशकों को न्यूनतम लागतोपर सेवाएँ पहुँचायी जायें। इसमें इसे सफलता भी प्राप्त हुई है। इसने राष्ट्रव्यापी विस्तृत स्क्रीन आधारित स्वचालित व्यापार प्रणाली उच्च दर्जे की पारदर्शिता तथा समान पहुँच उपलब्ध करायी है। यह बिना किसी भौगोलिक सीमा के भी बंधा हुआ है।

राष्ट्रीय शेयर बाजार के बाजार खण्ड
राष्ट्रीय शेयर बाजार निम्नलिखित तीन खण्डों को बाजार उपलब्ध कराता है-
1. थोक विक्रय ऋण बाजार खण्ड (होल सेल डेब्ट मार्केट सेगमेंट)-यह खण्ड व्यापक दायरे की स्थिर आय प्रतिभूतियों के लिए एक व्यापार मंच प्रदान करता है। जिसके अन्तर्गत बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, वित्तीय विनियोजक संस्थाओं तथा मध्यस्थों (भारतीय जीवन बीमा निगम, यू.टी.आई.), साधारण बीमा निगम इत्यादि को सार्वजनिक उपक्रमों के बॉण्डों, यूनिटों, ट्रेजरी बिलों, सरकारी प्रतिभूतियों तथा 'काल मनी' की भारी राशि के सौदे आदि आते हैं।

2. पूँजी बाजार खण्ड-यह खण्ड समता व अधिमान अंश, ऋणपत्र, एक्सचेंज व्यापार फण्ड के साथ-साथ फुटकर सरकारी प्रतिभूतियों के लिए सक्षम एवं पारदर्शी मंच उपलब्ध कराता है।

3. भावी तथा विकल्प खण्ड-यह खण्ड डेरिवेटिव उत्पादों में लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है। इन उत्पादों में सूचकांक के भावी सौदे, सूचकांकों के विकल्प के सौदे, प्रतिभूतियों के भावी सौदे, प्रतिभूतियों के विकल्प सौदे, ब्याज दरों पर भावी सौदे आदि प्रमुख हैं। कार्यप्रणाली राष्ट्रीय स्कन्ध विनिमय केन्द्र में सदस्य ही कार्य कर सकते हैं। अतः कोई भी निदेशक जो इस केन्द्र में लेनदेन करना चाहता है, उसे इस केन्द्र के अधिकृत सदस्य से सम्पर्क कर सबसे पहले उसे अपना आदेश लिखाना होता है।

सदस्य अपने कम्प्यूटर वीसेट (VSAT) में स्क्रीन को राष्ट्रीय शेयर बाजार के मुख्यालय के कम्प्यूटर टर्मिनल से जोड़ता है। ऐसा वह इलेक्ट्रोनिक संचार माध्यमों (सेटलाइट डिस्क आदि) से कर सकता है। इसमें निरन्तर द्विमार्गी भाव प्रदर्शित होते रहते हैं। तत्पश्चात् वह अपने ग्राहक के आदेश की अपने कम्प्यूटर में प्रविष्टि करता है। ज्यों ही ग्राहक के अंशों तथा भाव का अन्य ग्राहक से मिलान हो जाता है, सौदा हो जाता है। इसकी प्रविष्टि भी तत्काल मुख्यालय के कम्प्यूटर टर्मिनल में भी हो जाती है। 

इस केन्द्र पर सौदों के निपटारे की निरन्तर या अनवरत निपटारा व्यवस्था लागू है।
सौदों का निरन्तर निपटारा-नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सौदों का निरन्तर निपटारा होता रहता है। इसमें प्रत्येक कारोबारी दिन के अन्त में बकाया सौदों का निरन्तर निपटारा करना पड़ता है। प्रत्येक सौदे को आगामी दो दिनों (T+2) में निपटाया जाता है। इस हेतु कारोबारी दिन (T) के बाद अगले दो दिनों में (T+2) अंशों/प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी प्रस्तुत करनी पड़ती है अथवा खरीदी गई प्रतिभूतियों के मूल्य का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार इस व्यवस्था में यदि सौदा सोमवार को किया जाता है तो बुधवार को और यदि मंगलवार को किया जाता है तो गुरुवार को सौदे का निपटान हो जाता है। किन्तु इन दो दिनों की गिनती करते समय अवकाश के दिनों अर्थात् शनिवार, रविवार या अन्य घोषित अवकाश के दिनों को नहीं गिना जाता है। 

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 10. 
बी.एस.ई. (पूर्व में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड) पर लेख लिखिए।
उत्तर:
बी.एस.ई.लि. (पूर्व में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड), 1875 में स्थापित हुआ था। यह एशिया का प्रथम स्टॉक एक्सचेंज है। इसे प्रतिभूति संविदा (विनियम) अधिनियम 1956 के अंतर्गत स्थायी मान्यता दी गई। पूँजी प्राप्त करने हेतु एक मंच उपलब्ध कराकर यह निगमित क्षेत्र की संवृद्धि में योगदान करता है। यह बी.एस.ई.लि. के रूप में जाना जाता है जबकि 1875 में इसकी स्थापना नेटिव शेयर स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएसन के रूप में हुई थी। वास्तविक विधान के अधिनियमित होने से पूर्व ही, प्रतिभूति बाजार में सुव्यवस्थित संवृद्धि सुनिश्चित करने हेतु बी.एस.ईघल. ने नियम एवं विनियम निर्धारित कर लिए थे। जैसा कि पहले बताया गया है, सदस्यों अथवा अंशधारियों के रूप में विभिन्न व्यक्तियों (जो दलाल नहीं हैं) के साथ एक निगमित इकाई के रूप में स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना की जा सकती है। बी.एस.ई. एक ऐसा शेयर बाजार है जिसकी स्थापना विस्तृत अंशधारी आधार के साथ एक निगमित इकाई के रूप में हुई है। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • समता, ऋणप्रपत्रों, व्युत्पन्नों तथा म्युचुअल फंडों में व्यापार हेतु कुशल एवं पारदर्शी बाजार उपलब्ध कराना। 
  • लघु तथा मध्यम उपक्रमों की समताओं हेतु व्यापार मंच उपलब्ध कराना।
  • इलैक्ट्रॉनिक रूप से चालित एक्सचेंज के माध्यम से सक्रिय व्यापार तथा सुरक्षित बाजार उपलब्ध कराना।
  • पूँजी बाजार प्रतिभागियों को अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराना. जैसे-जोखिम प्रबंधन समाशोधन, निपटान, बाजार आँकड़े तथा शिक्षा।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के समनुरूप बनाना।

राष्ट्रव्यापी उपस्थिति के साथ-साथ बी.एस.ई. की पूरी दुनिया के ग्राहकों तक वैश्विक पहुँच है। सभी बाजार खण्डों में यह नवप्रवर्तन तथा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है। इसने बी.एस.ई. इंस्टीच्यूट लि. के नाम से एक पूँजी बाजार संस्थान की स्थापना की है जो शेयर दलालों के पास रोजगार चाहने वाले काफी लोगों को वित्तीय बाजार तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण पर शिक्षा उपलब्ध कराता है। इस एक्सचेंज में देश भर से, तथा विदेशों से भी लगभग पाँच हजार कम्पनियाँ सूचीबद्ध हैं तथा इसका बाजार पूँजीकरण भारत में सर्वाधिक है।

प्रश्न 11. 
सेबी की भूमिका एवं उद्देश्यों के बारे में बताइए।
उत्तर:
सेबी का मूल उद्देश्य एक ऐसे पर्यावरण को पैदा करना है जो प्रतिभूति बाजारों के माध्यम से संसाधनों को नियोजन एवं सक्षम गतिशीलता को सुसाध्य बनाए। इसके साथ ही इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को उत्प्रेरित करना तथा नवाचारों को प्रोत्साहित करना है। इस पर्यावरण के अंतर्गत नियम एवं विनियम, संस्थान एवं उनके अंतर-संबंध, प्रपत्र, व्यवहार, बाह्य संरचना एवं नीतिगत ढाँचा आदि सम्मिलित हैं।

  • इस माहौल या पर्यावरण का उद्देश्य तीन समूहों की जरूरतों को पूरा करना है जो कि मूलतः बाजार का गठन करते हैं अर्थात् प्रतिभूतियों के निर्गमकर्ता (जारीकर्ता) निवेशक तथा बाजार मध्यस्थ।
  • निर्गमकर्ता या जारीकर्ता हेतु इसका उद्देश्य एक बाजार उपलब्ध कराना है जिसे वे वित्त उगाहने हेतु विश्वास के साथ आगे बढ़कर देख सकते हैं जहाँ वे अपनी आवश्यकता को आसानी से, बिना भेदभाव (निष्पक्ष) एवं सक्षम तरीके से प्राप्त कर सकते हैं।
  • निवेशकों हेतु इसका उद्देश्य उनके अधिकारों एवं हितों को औचित्यपूर्ण, परिपूर्ण एवं अधिकृत सूचनाएँ तथा निरंतरता के आधार पर सूचनाएँ प्रदान कर संरक्षित करना है।
  • मध्यस्थों हेतु इसका उद्देश्य यह है कि इन लोगों को चाहिए कि पर्याप्त एवं सक्षम बाह्य संरचना प्रतियोगितात्मक, व्यावसायिकतापूर्ण एवं व्यापक बाजार को प्रस्तावित करें, ताकि वे निवेशकों एवं निर्गमकों को सर्वोत्तम सेवाएँ उपलब्ध करा सकें।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 12. 
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की संगठन संरचना पर प्रकाश डालिये। 
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) 
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 अप्रैल, 1988 एक अन्तरिम प्रशासनिक निकाय के रूप में की गई थी जो प्रतिभूति बाजार के क्रमबद्ध (नियमित) एवं स्वस्थ वृद्धि तथा निवेशकों की संरक्षा को बढ़ावा प्रदान करे। यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन सम्पूर्ण प्रशासकीय नियन्त्रण में कार्यरत था। 30 जनवरी, 1992 को सेबी को एक आर्डिनेंस (अध्यादेश) के द्वारा वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया। बाद में यह अध्यादेश से हटाकर संसद के अधिनियम के रूप में, भारतीय प्रत्याभूति एवं विनिमय बोर्ड, अधिनियम, 1992 में बदला गया।

सेबी की स्थापना के कारण-1980 के दशक के दौरान पूँजी बाजार में एक आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई। निवेशकों की लगातार बढ़ती जनसंख्या एवं बाजार पूँजीकरण के विस्तार के कारण कम्पनियों, दलालों, मर्चेण्ट बैंकरों, निवेश परामर्शकों तथा प्रतिभूति बाजार में सम्मिलित अन्य लोगों के साथ एक अंग के रूप में विभिन्न प्रकार के अपराधों (दुराचारों) ने जगह ली। इन दुराचारों के उदाहरणों में स्व-निर्मित मर्चेण्ट बैंकर्स, अनधिकृत रूप से निजी नियोजन, मूल्य की कृत्रिम वृद्धि, नये निर्गमों पर अनावश्यक अधिशुल्क, कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना, स्टॉक एक्सचेंजों के नियमों एवं विनियमों को तोड़ना तथा सूचीबद्धता की जरूरत पूरी करना तथा शेयरों की डिलीवरी (पहुँचने) में देरी आदि शामिल हैं। इन व्यापार दुराचारों तक अधिकांश निवेशकों की शिकायतों ने निवेशकों के विश्वास को तोड़ दिया।

निवेशक इस स्थिति में अपने आपको असहाय महसूस करने लगे। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने यह निर्णय लिया कि एक नियन्त्रक निकाय स्थापित किया जाना चाहिये जिसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के नाम से जाना गया।

सेबी का संगठनात्मक ढाँचा-सेबी एक वैधानिक निकाय है। इसके क्रियाकलापों का दायरा एवं विस्तार बहुत व्यापक है। सेबी को पुनर्गठित एवं विस्तार क्षेत्र के अनुसार तालमेल हेतु तर्कसंगत बनाया गया है। इसने अपने कार्यकलापों को पाँच कार्यात्मक विभागों में करने का निर्णय लिया है। प्रत्येक विभाग की अगुवाई एक कार्यकारी निदेशक करता है। इसने मुम्बई मुख्यालय के अलावा अपने क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई तथा दिल्ली में भी खोले हैं जिससे कि सम्बन्धित क्षेत्र के निर्गमनकर्ता, मध्यस्थों तथा शेयर बाजारों के साथ निवेशक की शिकायतों एवं सम्बद्ध अनुचितताओं को देखना है। 

सेबी बोर्ड का गठन-सेबी बोर्ड का गठन निम्नलिखित सदस्यों से किया जाता है-

  • एक अध्यक्ष-केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त।
  • दो सदस्य-नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा वित्त तथा विधिक मंत्रालयों के कार्यों की देखरेख करने वाले अधिकारियों में से।
  • एक सदस्य-भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों में से।
  • पाँच अन्य सदस्य कम से कम तीन पूर्णकालिक सदस्य होंगे।

इन सभी सदस्यों का कार्यकाल केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।

सेबी के कार्यकलापों का निरीक्षण, निर्देशन एवं प्रबन्ध का अधिकार इसके संचालक मण्डल के सदस्यों के पास होगा। संचालक मण्डल इसके कार्यों को करने के लिए इसकी सभी शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे।

इसके साथ ही सेबी ने दो सलाहकार समितियाँ गठित की हैं-प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति तथा बाजार सलाहकार समिति। इस समिति में बाजार के खिलाड़ी या पात्र तथा सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त निवेशक संगठन तथा पूँजी बाजार की प्रमुख हस्तियाँ शामिल हैं। ये सेबी की नीतियों हेतु महत्त्वपूर्ण निवेश/विचार देते हैं। इन दो समितियों के उद्देश्य निम्नानुसार हैं-

  • प्राथमिक बाजारों में निवेशकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित हेतु मध्यस्थों के विनिमय से सम्बन्धित मामलों पर सलाह देना।
  • भारत में प्राथमिक बाजार के विकास से सम्बन्धित मुद्दों पर सेबी को सलाह देना।
  • कम्पनियों के लिए अपेक्षित प्रकटन पर सेबी को सलाह देना।
  • प्राथमिक बाजार में सरलीकरण एवं पारदर्शिता को प्रस्तुत करने हेतु कानूनी ढाँचे में बदलाव हेतु सलाह देना।
  • देश में द्वितीयक बाजारों के विनियमन एवं विकास से सम्बन्धित मामलों के लिए बोर्ड को सलाह देना।

उपर्युक्त समितियों की प्रकृति गैर-वैधानिक है और सेबी इनकी सलाहों से बाध्य नहीं है। ये समितियाँ प्रतिभूति बाजार के विकास एवं विनियमन से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न बाजार के खिलाड़ियों से फीडबैक प्राप्त करती हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 10 वित्तीय बाजार

प्रश्न 13. 
पूँजी बाजार एवं मुद्रा बाजार में अन्तर बताइए।
उत्तर:
पूँजी बाजार एवं मुद्रा बाजार में अंतर इन दो बाजारों में प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं-
(i) भाग लेने वाले–पूँजी बाजार में भाग लेने वाले हैं-वित्तीय संस्थान, बैंक, निर्गमित इकाइयां, विदेशी निवेशक एवं जनता में से साधारण फुटकर विनियोजक। मुद्रा बाजार में अधिकांश भाग लेने वाले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, वित्तीय संस्थान एवं वित्त कंपनियों जैसे संस्थान हैं। यद्यपि व्यक्ति भी निजी तौर पर द्वितीय बाजार से लेन-देन कर सकते हैं लेकिन सामान्यत: वह ऐसा करते नहीं हैं।

(ii) प्रलेख-पूँजी बाजार में जिन प्रलेखों में लेनदेन किया जाता है उनमें प्रमुख हैं-मुद्रा बाजार में जिन प्रपत्रों में व्यापार होता है उनमें प्रमुख हैं लघु अवधि के ऋण प्रपत्र जैसे-टी.बिल, व्यापार बिल, वाणिज्यिक पेपर एवं जमा प्रमाण पत्र।

(iii) निवेश राशि-पूँजी बाजार में प्रतिभूतियों में निवेश के लिए बहुत बड़ी मात्रा में वित्त का होना आवश्यक नहीं है। प्रतिभूति की इकाइयों का मूल्य साधारणतया कम ही होता है जैसे 10 रु. या फिर 100 रु.। इसी प्रकार से शेयरों के व्यापार के लिए न्यूनतम संख्या छोटी ही रखी जाती है जो 50 अथवा 100 हो सकती है। इससे नियोक्ता अपनी छोटी बचत से इन प्रतिभूतियों को खरीद सकते हैं। मुद्रा बाजार में सौदों के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है।

(iv) अवधि-पूँजी बाजार के दीर्घ अवधि एवं मध्य अवधि की प्रतिभूतियों के सौदे होते हैं जैसे-समता अंश एवं ऋण पत्र। मुद्रा बाजार में प्रपत्र अधिकतम एक वर्ष के लिए होते हैं। कभी-कभी तो यह एक दिन के लिए भी जारी किए जाते हैं।

(v) तरलता-पूँजी बाजार की प्रतिभूतियों को तरल निवेश माना जाता है क्योंकि इनका स्टॉक एक्सचेंज में क्रय-विक्रय हो सकता है। यह अलग बात है कि कोई शेयर में व्यापार सक्रिय रूप से नहीं हो रहा है अर्थात् उसका कोई क्रेता नहीं है। मुद्रा बाजार प्रपत्र अधिक तरल होते हैं क्योंकि इसके लिए औपचारिक व्यवस्था की हुई होती है। DFHI की स्थापना का उद्देश्य ही मुद्रा बाजार के प्रपत्रों के लिए तैयार बाजार प्रदान करना है। 

(vi) सुरक्षा-पूँजी बाजार में प्रपत्रों के मूल्य की वापसी एवं उन पर प्रतिफल दोनों का जोखिम है। निर्गम करने वाली कंपनी हो सकता है कि घोषित योजना के अनुरूप कार्य न कर सके तथा प्रवर्तक निवेशकों के साथ धोखा कर सकते हैं। मुद्रा बाजार कहीं अधिक सुरक्षित है इसमें गड़बड़ी की संभावना न्यूनतम है। इसका कारण निवेश की छोटी अवधि तथा निर्गमनकर्ताओं की सुदृढ़ वित्तीय स्थिति का होना है। ये निर्गमनकर्ता सरकार, बैंक एवं उच्च श्रेणी कम्पनियाँ होती हैं।

(vii) संभावित प्रतिफल-पूँजी बाजार में विनियोजित राशि पर नियोजकों को मुद्रा बाजार की तुलना में अधिक ऊँची दर में प्रत्याय मिलता है। ये प्रतिभूतियाँ यदि लंबी अवधि की होंगी तो इन पर आय की संभावना अधिक होती है। प्रथम तो समता अंशों पर पूँजीगत लाभ की संभावना होती है। दूसरे लंबी अवधि में कंपनी की समृद्धि में उच्च लाभांश एवं बोनस निर्गम रूप से शेयरधारकों की भी भागीदारी होती है।

admin_rbse
Last Updated on July 2, 2022, 12:46 p.m.
Published June 28, 2022