RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1. 
भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम है-
(अ) 1955 
(ब) 1986 
(स) 1982
(द) 2002 
उत्तर:
(ब) 1986 

प्रश्न 2. 
उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व-
(अ) व्यवसाय मानव कल्याण का साधन है। 
(ब) सामाजिक न्याय के साथ विकास का साधन है। 
(स) व्यवसाय का नैतिक औचित्य है।
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3. 
उपभोक्ता संरक्षण का औचित्य-
(अ) उपभोक्ताओं की आवश्यकता की अधिकतम सन्तुष्टि से है। 
(ब) उत्पादकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से
(स) सरकार द्वारा किये जाने वाले भलाई के कार्यों से है। 
(द) उत्पादकों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण से है। 
उत्तर:
(अ) उपभोक्ताओं की आवश्यकता की अधिकतम सन्तुष्टि से है।

प्रश्न 4. 
उपभोक्ता का उत्तरदायित्व है-
(अ) वास्तविक शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त मंच में शिकायत दर्ज कराना। 
(ब) अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना। 
(स) वस्तु एवं सेवाओं की गुणवत्ता के प्रति संवेदनशील होना। 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5. 
उपभोक्ता को कानूनी संरक्षण प्राप्त है-
(अ) प्रसंविदा अधिनियम, 1982 द्वारा 
(ब) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 द्वारा 
(स) ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 द्वारा
(द) उपर्युक्त सभी के द्वारा। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी के द्वारा।

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प्रश्न 6. 
वस्तुएँ निर्धारित गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप हैं, यह सुनिश्चित करता है-
(अ) आई.एस.आई. चिह्न 
(ब) एफ.पी.ओ. चिह्न 
(स) होलमार्क
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7. 
खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को बताने वाला चिह्न है-
(अ) आई.एस.आई. चिह्न 
(ब) एफ.पी.ओ. चिह्न 
(स) होलमार्क 
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) एफ.पी.ओ. चिह्न 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
भारत के कानूनी ढाँचे में उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने वाले कोई दो कानूनों को बतलाइये।
उत्तर:

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955।

प्रश्न 2. 
उपभोक्ता को प्राप्त कानूनी संरक्षण के किसी एक भारतीय अधिनियम का नाम लिखिये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986।

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प्रश्न 3. 
उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता संरक्षण क्यों महत्त्वपूर्ण है ? कोई एक कारण दीजिये।
उत्तर:
उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में शिक्षित करना तथा उनकी शिकायतों के निवारण में सहायता प्रदान करना। 

प्रश्न 4. 
उपभोक्ता संरक्षण का कौनसा अधिनियम देश के प्रत्येक राज्य एवं जिले में 'उपभोक्ता संरक्षण परिषदों' की स्थापना का प्रावधान करता है?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 देश के प्रत्येक राज्य एवं जिले में 'उपभोक्ता संरक्षण परिषदों' की स्थापना का प्रावधान करता है।

प्रश्न 5. 
एक उपभोक्ता को बिजली की वस्तुओं पर मार्क क्यों देखना चाहिए?
उत्तर:
बिजली के उत्पादों की गुणवत्ता एवं किसी प्रकार की कोई भी कमी को परखने/जाँच करने के लिए मार्क का देखना जरूरी होता है।

प्रश्न 6. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत कौनसे दावे उच्चतम न्यायालय में किये जा सकते हैं?
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय में अपील (दावे) तभी किये जा सकते हैं, जबकि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य एक करोड़ रुपये से अधिक हो एवं पीड़ित पक्षकार राष्ट्रीय आयोग के आदेश से संतुष्ट नहीं हो।

प्रश्न 7. 
कौनसा अधिनियम क्रेताओं को राहत प्रदान करता है, जब खरीदी गई वस्तुएँ व्यक्त की गई शर्तों के अनुरूप नहीं हों?
उत्तर:
वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 क्रेताओं को राहत प्रदान करता है। क्रेता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

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प्रश्न 8. 
व्यवसायियों के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम क्यों महत्त्वपूर्ण है ? कोई एक कारण दीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखना तथा उनके किसी भी प्रकार का शोषण नहीं करना व्यवसाय का नैतिक उत्तरदायित्व है। इसीलिए व्यवसायियों के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 9. 
उपभोक्ता संरक्षण का कौनसा अधिनियम सेवाओं में कमी के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करता है?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986

प्रश्न 10. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के विरुद्ध अपील की जाने वाली संस्था का नाम लिखिए।
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय, दिल्ली।

प्रश्न 11. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के स्थापित करने का क्या उद्देश्य है ? 
उत्तर:
उपभोक्ताओं को उत्पादकों एवं विक्रेताओं के अनुचित व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना।

प्रश्न 12. 
'सुनवायी का अधिकार' का एक उपभोक्ता के लिए क्या अर्थ है ?
उत्तर:
उपभोक्ता यदि वस्तु एवं सेवा से संतुष्ट नहीं है तो उसे शिकायत दर्ज करने तथा उसकी सुनवाई का अधिकार है।

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प्रश्न 13. 
एक उपभोक्ता के लिए 'चुनने के अधिकार' से क्या अर्थ है ?
उत्तर:
उपभोक्ता को बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं में से अपनी पसन्द की वस्तु या सेवा क्रय करने का अधिकार है।

प्रश्न 14. 
मोहित ने 'डोमेस्टिक कूलिंग लिमिटेड' के विरुद्ध जिला मंच में एक केस दर्ज किया लेकिन वह जिला फोरम द्वारा दिये गये आदेश से संतुष्ट नहीं था। जिला फोरम के निर्णय के विरुद्ध आगे वह कहाँ अपील कर सकता है?
उत्तर:
मोहित जिला फोरम के द्वारा दिये गये आदेश के विरुद्ध 30 दिन के भीतर 'राज्य आयोग' के समक्ष अपील कर सकता है।

प्रश्न 15. 
अमृत ने 'वाल्वो लिमिटेड' के विरुद्ध 'राज्य कमीशन' में एक शिकायत दर्ज की। लेकिन राज्य कमीशन द्वारा दिये गये आदेश से वह संतुष्ट नहीं था। उस प्राधिकरण का नाम बताइये जहाँ वह 'राज्य कमीशन' के निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है?
उत्तर:
अमृत राज्य कमीशन के द्वारा दिये गये निर्णय के विरुद्ध 'राष्ट्रीय आयोग' के समक्ष अपील कर सकता है।

प्रश्न 16. 
अहमद एक प्रेस (इस्तरी) खरीदना चाहता है। एक जागरूक उपभोक्ता के रूप में वह प्रेस (इस्तरी) की गुणवत्ता के सम्बन्ध में अपने आपको कैसे आश्वस्त कर सकता है? 
उत्तर:
अहमद प्रेस (इस्तरी) पर -ISI' चिन्ह देखकर अपने आपको आश्वस्त कर सकता है।

प्रश्न 17. 
रीटा एक जूस का पैकेट खरीदना चाहती है। एक जागरूक उपभोक्ता के रूप में वह जूस की गुणवत्ता के बारे में जिसे वह क्रय करने की योजना बनाती है, अपने आपको कैसे आश्वस्त कर सकती है?
उत्तर:
रीटा को जूस के पैकेट पर 'FPO' चिन्ह अवश्य देख लेना चाहिए।

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प्रश्न 18. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के संदर्भ में 'उपभोक्ता' के अर्थ की संक्षिप्त में व्याख्या करें।
उत्तर:
माल के उपभोक्ता का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसने प्रतिफल के बदले किसी माल को खरीदा हो एवं मूल्य का भुगतान कर दिया हो। इसके विपरीत ऐसा उपभोक्ता जो प्रतिफल के बदले किन्हीं सेवाओं को किराये पर लेता है, जिनका भुगतान कर दिया हो।

प्रश्न 19. 
'क्रेता सावधान रहे' सिद्धान्त का स्थान अब किस सिद्धान्त ने ले लिया है ?
उत्तर:
'विक्रेता सावधान रहे' सिद्धान्त ने। 

प्रश्न 20. 
उपभोक्ता संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण का तात्पर्य उत्पादकों एवं विक्रेताओं के अनुचित व्यवहार से उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करना है।

प्रश्न 21. 
उपभोक्ता संरक्षण की कार्यसूची में क्या सम्मिलित है?
उत्तर:

  • उपभोक्ताओं को उनके अधिकार एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में शिक्षित करना।
  • उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण में सहायता प्रदान करना।

प्रश्न 22. 
उपभोक्ता संरक्षण के लिए कौन-कौनसे कानूनी प्रावधान हैं ? (कोई चार लिखिए।)
उत्तर:

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986, 
  • भारतीय प्रसंविदा अधिनियम, 1982, 
  • वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930, 
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955।

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प्रश्न 23. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में उपभोक्ता के कौन-कौनसे अधिकार बतलाये गये हैं ? नाम लिखिए।
उत्तर:

  • सुरक्षा का अधिकार 
  • सूचना का अधिकार 
  • चयन का अधिकार 
  • शिकायत का अधिकार 
  • क्षतिपूर्ति का अधिकार 
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 24. 
उपभोक्ता के सुरक्षा के अधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपभोक्ता को उन वस्तु एवं सेवाओं के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है जो उसके जीवन एवं स्वास्थ्य को खतरा है।।

प्रश्न 25. 
उपभोक्ता के सूचना के अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उपभोक्ता को उस वस्तु के सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जिसे वह खरीदना चाहता है।

प्रश्न 26. 
खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बताने के लिए किस चिन्ह का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर:
एफ.पी.ओ. चिह्न का।

प्रश्न 27. 
भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 की दो मुख्य क्रियाएँ बतलाइये।।
उत्तर:

  • वस्तुओं के लिए गुणवत्ता मानक निश्चित करना। 
  • बी.आई.एस. प्रमापीकरण योजना के माध्यम से उनका प्रमापीकरण करना।

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प्रश्न 28. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए कौन-कौनसे अभिकरण स्थापित किये जाते हैं?
उत्तर:

  • जिला फोरम, 
  • राज्य कमीशन, 
  • राष्ट्रीय कमीशन।

प्रश्न 29. 
उपभोक्ता के कोई दो दायित्व लिखिए। 
उत्तर:

  • उपभोक्ताओं द्वारा केवल मानक वस्तुएँ ही खरीदी जायें।
  • वस्तु एवं सेवाओं से जुड़ी जोखिमों के सम्बन्ध में जानें, निर्माता के दिशा-निर्देशों का पालन करें।

प्रश्न 30. 
सरकार उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा किस प्रकार करती है ?
उत्तर:
सरकार विभिन्न कानून बनाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर सकती है।

प्रश्न 31. 
उपयुक्त प्रयोगशाला की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रयोगशाला या संगठन जो केन्द्रीय/राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है या किसी प्रचलित राज नियम के अधीन स्थापित किया गया है।

प्रश्न 32. 
'अनुचित व्यापार व्यवहार' में कौनसी क्रियाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं ?
उत्तर:

  • दोषपूर्ण एवं असुरक्षित वस्तुओं में मिलावट 
  • झूठा एवं गुमराह करने वाला विज्ञापन 
  • जमाखोरी 
  • कालाबाजारी।

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प्रश्न 33. 
उपभोक्ता संरक्षण परिषदों का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों/अधिकारों का संरक्षण व संवर्द्धन करना एवं इस हेतु सरकार को आवश्यक परामर्श देना।

प्रश्न 34. 
जिला फोरम का गठन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:

  • प्रधान-पूर्व या वर्तमान जिला न्यायाधीश। 
  • दो सदस्य-एक शिक्षा/आर्थिक/प्रशासन/विधि क्षेत्र से एवं एक महिला सदस्य आवश्यक।

प्रश्न 35. 
भारत में कितने राज्य कमीशन हैं? 
उत्तर:
भारत में 36 राज्य कमीशन हैं। 

प्रश्न 36. 
राज्य आयोग की संरचना बतलाइये।
उत्तर:

  • प्रधान-उच्च न्यायालय का वर्तमान/ पूर्व न्यायाधीश
  • दो सदस्य-शिक्षा/आर्थिक/प्रशासन/विधि/ लोकसेवा क्षेत्र से जिसमें एक महिला सदस्य आवश्यक रूप से हो।

प्रश्न 37. 
राष्ट्रीय कमीशन की संरचना बतलाइये।
उत्तर:

  • प्रधान-उच्चतम न्यायालय का पूर्व/ वर्तमान न्यायाधीश
  • चार सदस्य-शिक्षा/आर्थिक/प्रशासन/विधि/ लोकसेवा क्षेत्र से जिसमें एक महिला सदस्य आवश्यक रूप से हो।

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प्रश्न 38. 
'जागो ग्राहक जागो' नामक जागरूकता मुहिम का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
'जागो ग्राहक जागो' जागरूकता मुहिम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं दायित्वों के प्रति सजग करना है।

प्रश्न 39. 
राज्य आयोग व राष्ट्रीय आयोग का आर्थिक आधार पर क्षेत्राधिकार बतलाइये।
उत्तर:
राज्य आयोग-माल या सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति की राशि सहित 20 लाख रुपये से अधिक किन्तु एक करोड़ रुपये तक। राष्ट्रीय आयोग-माल या सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति की राशि सहित एक करोड़ रुपये से अधिक होने पर।

प्रश्न 40. 
किसी उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत कौन कर सकता है? (कोई दो)
उत्तर:

  • कोई पंजीकृत उपभोक्ता 
  • केन्द्रीय सरकार अथवा कोई भी राज्य सरकार।

प्रश्न 41. 
उपभोक्ता अदालत यदि शिकायत की यथार्थता से सन्तुष्ट है तो यह विरोधी पक्ष को क्या निर्देश दे सकती है? (कोई दो लिखिए।)
उत्तर:

  • वस्तु के दोष अथवा सेवा में कमी को दूर करना।
  • वस्तु अथवा सेवाओं के लिए किये गये भुगतान की वापसी करना।

प्रश्न 42. 
प्रतियोगिता अधिनियम, 2002 किस अधिनियम का स्थानापन्न करता है?
उत्तर:
एकाधिकार एवं प्रतिरोधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 का।

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प्रश्न 43. 
माप तौल मानक अधिनियम, 1976 से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह धारा उन वस्तुओं पर लागू नहीं होती है जिनका वजन, माप, संख्यानुसार विक्रय अथवा वितरण किया जाता है। यह उपभोक्ताओं को कम तौलने अथवा मापने के अनुचित आचरण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।

प्रश्न 44. 
उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षार्थ किये जाने वाले कोई दो कार्य बतलाइये।
उत्तर:

  • जनसाधारण को उपभोक्ताओं के अधिकारों के सम्बन्ध में शिक्षित करना।
  • उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराना।

प्रश्न 45. 
किन्हीं दो उपभोक्ता संगठन एवं गैरसरकारी संगठन के नाम लिखिये जो उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं?
उत्तर:

  • उपभोक्ता शिक्षण हितार्थ स्वयं सेवी संगठन (VOICE), दिल्ली
  • कंज्यूमर गाइडेंस सोसायटी ऑफ इण्डिया (CGSI), मुम्बई। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
भारत के कानूनी ढांचे में उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने वाले किन्हीं चार कानूनों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
(1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986-यह अधिनियम उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा करता है एवं उनका प्रवर्तन करता है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण वस्तुओं, घटिया स्तर की सेवाओं, अनुचित व्यापार क्रियाओं तथा अन्य प्रकार के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत त्रि-स्तरीय तंत्र की स्थापना का प्रावधान है जिसमें जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग सम्मिलित है। इसमें प्रत्येक जिला, राज्य एवं सर्वोच्च स्तर पर उपभोक्ता का संरक्षण परिषदों के गठन का प्रावधान है।

(2) खाद्य मिलावट अवरोध अधिनियम, 1954-यह अधिनियम खाद्य पदार्थों में मिलावट पर अंकुश लगाता है एवं जन साधारण के स्वास्थ्य के हित में शुद्धता को सुनिश्चित करता है।

(3) माप-तौल मानक अधिनियम, 1976-मापतौल मानक अधिनियम उपभोक्ताओं को कम तौलने अथवा मापने के अनुचित आचरण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। लेकिन यह उन वस्तुओं पर लागू नहीं होता है जिनका वजन, माप, संख्यानुसार विक्रय अथवा वितरण किया जाता है।

(4) भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986इस अधिनियम के तहत भारत में भारतीय मानक ब्यूरो की स्थापना की गई है। यह ब्यूरो मुख्य रूप से दो कार्य करता है-प्रथम-वस्तुओं के लिए गुणवत्ता मानक निश्चित करना, द्वितीय-बी.आई.एस. प्रमापीकरण योजना के माध्यम से उनका प्रमापीकरण करना। निर्माता अपने उत्पादों पर आई.एस.आई. (ISI) चिन्ह तभी प्रयोग कर सकते हैं जबकि ब्यूरो द्वारा यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि वस्तुएँ निर्धारित गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप हैं।

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प्रश्न 2. 
उपभोक्ता के निम्नलिखित अधिकारों को समझाइये
(1) शिकायत का अधिकार, एवं
(2) क्षतिपूर्ति का अधिकार।
उत्तर:
(1) शिकायत का अधिकार-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता यदि किसी वस्तु एवं सेवा से संतुष्ट नहीं है तो उसे उपयुक्त उपभोक्ता मंच पर शिकायत करने का अधिकार है तथा उसकी सुनवायी करने का अधिकार है। इस अधिकार के प्रभाव के कारण आज कई समझदार व्यावसायिक संस्थाओं ने अपने स्वयं के शिकायत एवं उपभोक्ता सेवा कक्ष स्थापित किये हुए हैं। कई उपभोक्ता संगठन भी उपभोक्ताओं को सहायता करते हैं।

(2) क्षतिपूर्ति का अधिकार अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता को उपचार या क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है। यदि वस्तु या सेवा अपेक्षा के अनुरूप नहीं निकलती है तो उपभोक्ता को उससे मुक्ति पाने का भी अधिकार होता है। अधिनियम में उपभोक्ता को कई प्रकार से उपचार प्राप्त करने या क्षतिपूर्ति करवाने का प्रावधान किया हुआ है जैसे-वस्तु को बदल देना, उत्पाद के दोषों को दूर करना, हानि अथवा क्षति पहुँचाने पर उसकी क्षतिपूर्ति करवाना अर्थात् उसके विरुद्ध उपचार प्राप्त करना।

प्रश्न 3. 
निम्नलिखित को उपभोक्ता संरक्षण के उपायों एवं साधनों के रूप में समझाइये
(1) उपभोक्ता जागरूकता एवं 
(2) सरकार।
उत्तर:
(1) उपभोक्ता जागरूकता-उपभोक्ता को स्वयं अपने हितों के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए। उसे अपने अधिकारों की न केवल जानकारी होनी चाहिए वरन् उनके प्रति सदैव सचेत भी रहना चाहिए। उसे व्यवसायी द्वारा किये जाने वाले शोषण के विरुद्ध तुरन्त आवाज उठानी चाहिए। व्यवसायी द्वारा अपनाये गये दूषित हथकण्डों के प्रति शीघ्र ही कार्यवाही करनी चाहिए। जैसे ही कोई परिवेदना/शिकायत उत्पन्न हो या उसका पता लगे, तुरन्त ही अधिनियम द्वारा सौंपे गये अधिकारों के अनुरूप कार्यवाही करनी चाहिए। 

(2) सरकार-भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित कर रखा है। इसमें केन्द्र एवं राज्य स्तर पर उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा के लिए केन्द्र, राज्य और जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना की गई है। अधिनियम के अन्तर्गत ही सरकार ने उपभोक्ताओं की शिकायतों को आसानी से शीघ्र ही एवं कम खर्चे पर दूर करने के लिए न्यायिक तंत्र यथा जिला मंच, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान किया हुआ है।

प्रश्न 4. 
'विक्रेता को सावधान रहना चाहिए।' इस सम्बन्ध में अपना पक्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्र बाजार अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को बादशाह या राजा के रूप में माना जाता है। पहले 'क्रेता सावधान रहो' सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण माना जाता था किन्तु अब इस सिद्धान्त का स्थान 'विक्रेता को सावधान रहना चाहिए' ने ले लिया है। वर्तमान में यही सिद्धान्त प्रचलित है। जैसे-जैसे प्रतियोगिता में वृद्धि हो रही है एवं बिक्री तथा बाजार में हिस्सा बढ़ाने का प्रयत्न हो रहा है वैसेवैसे निर्माता एवं सेवा प्रदान करने वाले दोषपूर्ण एवं असुरक्षित उत्पाद, मिलावट, झूठा एवं गुमराह करने वाला विज्ञापन, जमाखोरी, कालाबाजारी आदि चालाकी, शोषण एवं व्यापार के अनुचित तरीके अपनाने का लालच कर सकते हैं। 

इसका अर्थ यह हुआ कि उपभोक्ता को असुरक्षित उत्पादों से जो जोखिम हो सकती है, मिलावटी खाने के सामान से स्वास्थ्य खराब हो सकता है, गुमराह करने वाले विज्ञापन अथवा नकली उत्पादों के द्वारा धोखाधड़ी हो सकती है तथा विक्रेताओं द्वारा अधिक कीमत वसूलने, जमाखोरी अथवा कालाबाजारी आदि के कारण ऊँची कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसीलिए उपभोक्ताओं व विक्रेताओं के इन कार्यों से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। विक्रेता सावधान रहना चाहिए' सिद्धान्त में इन्हीं बातों को महत्त्व दिया जाता है।

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प्रश्न 5. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 क्या है ? इस अधिनियम के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान किया गया है। यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया है। यह सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है। इसके अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्यों में उपभोक्ता संरक्षण परिषदें तथा जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषदों के स्थापित किये जाने की व्यवस्था है। इस परिषदों का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के उद्देश्य-

  • उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना।
  • उपभोक्ताओं के हितों एवं अधिकारों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता परिषदों की स्थापना के लिए व्यवस्था करना।
  • उपभोक्ताओं के विवादों तथा उनसे सम्बन्धित मामलों के निपटारे के लिए व्यवस्था करना।
  • उपभोक्ता विवादों का शीघ्रता एवं सरलता से निपटारा करना।
  • उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए अर्द्धन्यायिक मशीनरी की व्यवस्था करना।

प्रश्न 6. 
उपभोक्ता संरक्षण के माध्यम बतलाइये। 
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण के माध्यमउपभोक्ता संरक्षण के माध्यम निम्नलिखित हैं-
1. उपभोक्ता जागरूकता-उपभोक्ता संरक्षण का एक मुख्य माध्यम यह है कि उपभोक्ता को अपना संरक्षण स्वयं करना चाहिए, स्वयं को ही अपने प्रति सावधान रहना चाहिए।

2. उपभोक्ता संगठन-उपभोक्ता संघ उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

3. व्यावसायिक संगठन-उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए उपभोक्ताओं के प्रयास ही पर्याप्त नहीं हैं बल्कि व्यवसायियों द्वारा भी प्रयास किये जाने चाहिए।

4. सरकार-सरकार विभिन्न अधिनियम बनाकर उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित करती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 सरकार द्वारा पीड़ित उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए बनाया गया सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अधिनियम है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अभिकरणों द्वारा ग्राहकों के हितों की रक्षा की जाती है-(i) जिला स्तर पर जिला फोरम, (ii) राज्य स्तर पर राज्य आयोग, (iii) राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग।

प्रश्न 7. 
'उपभोक्ता' की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
'उपभोक्ता' की परिभाषा-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-

1. माल का उपभोक्ता-वह व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले कोई माल खरीदता है जिसका भुगतान कर दिया हो अथवा भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका आंशिक भुगतान कर दिया हो तथा आंशिक भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका भुगतान अस्थगित या विलम्बित भुगतान विधि के अनुसार करने का वचन दिया हो।

2. सेवाओं का उपभोक्ता-वह व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले किन्हीं सेवाओं को भाड़े पर प्राप्त करता है या उपभोग करता है तथा जिसका भुगतान कर दिया हो अथवा करने का वचन दिया हो अथवा उसका आंशिक भुगतान कर दिया हो तथा आंशिक भुगतान का वचन दिया हो अथवा उसका भुगतान स्थगित या विलम्बित विधि के अनुसार करने का वचन दिया हो। इसमें ऐसी सेवाओं से लाभान्वित होने वाला व्यक्ति भी. सम्मिलित है, जिसने पहले वाले व्यक्ति की अनुमति से सेवाओं का उपभोग किया है, लेकिन इसमें वह व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो इन सेवाओं को किसी व्यापार के उद्देश्य से प्राप्त करता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 8. 
शिकायतकर्ता कौन होता है ?
उत्तर:
शिकायतकर्ता-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित में से कोई भी व्यक्ति शिकायत प्रस्तुत कर सकता है, वह शिकायतकर्ता कहलाता है-

  • एक उपभोक्ता;
  • कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत कोई भी स्वयंसेवी उपभोक्ता संघ;
  • देश में प्रचलित किसी भी अन्य कानून के अन्तर्गत पंजीकृत स्वयंसेवी उपभोक्ता संघ;
  • शिकायत प्रस्तुत करने वाली केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार;
  • समान प्रकार का हित रखने वाले उपभोक्ताओं की दशा में उनकी ओर से कोई एक या अधिक उपभोक्ता; तथा
  • उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उसका वैधानिक उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि।

प्रश्न 9. 
राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन-राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन निम्नानुसार किया जायेगा-

  • राज्य सरकार के उपभोक्ता मामलों का प्रभारी मन्त्री इसका अध्यक्ष होगा।
  • राज्य सरकार द्वारा निर्धारित संख्या में सरकारी या गैर-सरकारी सदस्य जो राज्य सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट हितों का प्रतिनिधित्व करते हों।
  • केन्द्रीय सरकार द्वारा नामांकित कुछ अन्य सरकारी (पदेन) तथा गैर-सरकारी सदस्य जो अधिकतम दस हो सकते हैं।

जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन-
जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन निम्न प्रकार से किया जा सकता है

  • जिले का जिलाधीश इसका अध्यक्ष होता है।
  • राज्य सरकार द्वारा निर्धारित संख्या में सरकारी (पदेन) तथा गैर-सरकारी सदस्य। ऐसे सदस्य राज्य सरकार द्वारा निर्धारित हित-समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे। 

प्रश्न 10. 
जिला फोरम का अधिकार क्षेत्र बतलाइये।
उत्तर:
जिला फोरम का अधिकार क्षेत्र
(1) आर्थिक आधार पर-माल या सेवाओं का मूल्य एवं क्षतिपूर्ति की राशि मिलाकर 20 लाख रुपये तक।
(2) क्षेत्र के आधार पर या भौगोलिक आधार पर
(i) उस जिले की स्थानीय सीमाओं में विरोधी पक्षकार रहता हो/व्यवसाय चलाता हो/कार्यरत हो।
(ii) विरोधी पक्षकारों में से कोई भी वहाँ रहता हो/व्यवसाय चलाता हो/कार्यरत हो तथा अन्य पक्षकारों/ जिला मंच ने वाद चलाने की अनुमति दे दी हो।

प्रश्न 11. 
उपभोक्ता विवाद निवारक अभिकरणों द्वारा अपनाये जाने वाली शिकायत निवारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता विवाद निवारक अभिकरणों द्वारा अपनाये जाने वाली शिकायत निवारण प्रक्रिया-

  • निर्धारित फीस के साथ शिकायत दाखिल करना।
  • शिकायत स्वीकार करने के 21 दिन के भीतर विरोधी पक्षकार को शिकायत की प्रति भेजना।।
  • विरोधी पक्षकार को 30 दिनों के भीतर अपना पक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देना।
  • आरोपों को अस्वीकार करने या विरोध करने पर मंच द्वारा निपटारा करना। 
  • वस्तु का नमूना प्राप्त करना, सील करना तथा प्रमाणित करना।
  • शिकायतकर्ता को जाँच हेतु निर्धारित शुल्क जमा कराना।
  • नमूने की जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजना। 
  • मंच द्वारा प्रयोगशाला को शुल्क भेजना।
  • प्रयोगशाला से प्राप्त रिपोर्ट की प्रति विरोधी पक्षकार को भेजना।
  • रिपोर्ट पर लिखित विरोध प्रकट करना।
  • शिकायकर्ता तथा विरोधी पक्षकार को प्रयोगशाला की रिपोर्ट की सत्यता तथा उसके विरोध में अपनी बात कहने का अवसर देना।
  • आवश्यक आदेश प्रसारित करना।

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प्रश्न 12. 
जब जिला फोरम शिकायतकर्ता की शिकायत से सन्तुष्ट हो जाता है तो वह विरोधी पक्ष को क्या करने के लिए आदेश दे सकता है ?
उत्तर:
जिला फोरम अपने आदेश में निम्न में से कोई भी एक या अधिक उपाय करने के लिए कह सकता है-

  • समुचित प्रयोगशाला द्वारा माल में इंगित किये गये दोष को दूर करने के लिए।
  • उस माल को उसी प्रकार के नये दोष रहित माल से प्रतिस्थापित करने के लिए।
  • शिकायकर्ता को मूल्य अथवा किये गये खर्चों को लौटाने के लिए।
  • उपभोक्ता द्वारा वहन की गई हानि या क्षति के भुगतान के लिए।
  • दण्डनीय क्षति के भुगतान के लिए। 
  • माल या सेवा में दोष दूर करने के लिए।
  • अनुचित व्यापार व्यवहार अथवा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार को बन्द करने या उसकी पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए।
  • विक्रय हेतु घातक/खतरनाक माल का प्रस्ताव नहीं करने के लिये।
  • प्रस्तावित घातक/खतरनाक माल को वापस लेने के लिए।
  • घातक माल का उत्पादन रोकने के लिए तथा घातक प्रकृति की सेवाओं का प्रस्ताव रोकने के लिए।

प्रश्न 13. 
जिला फोरम तथा राज्य आयोग में किस व्यक्ति को सदस्य नहीं बनाया जा सकता है?
अथवा 
जिला मंच तथा राज्य आयोग के सदस्यों की अयोग्यताएँ बतलाइये।
उत्तर:
जिला मंच तथा राज्य आयोग में निम्न अयोग्यताओं वाले व्यक्ति को सदस्य नहीं बनाया जा सकता है-

  • यदि उसे किसी अपराध के लिए सजा मिली हो तथा जेल भेजा गया हो तथा वह अपराध राज्य सरकार की राय में नैतिक दुराचरण से सम्बन्धित हो।
  • यदि वह अमुक्त दिवालिया हो।
  • यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा अस्वस्थ मस्तिष्क का घोषित हो। 
  • यदि वह सरकारी सेवा या सरकारी स्वामित्व या नियन्त्रण वाली समामेलित संस्था की सेवा से हटाया या पदच्युत किया गया हो। 
  • यदि राज्य सरकार की राय में उसका ऐसा वित्तीय या अन्य हित हो जो सदस्य के रूप में उसके कर्तव्यों के निष्पक्ष निर्वाह को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता हो।
  • यदि उसमें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य कोई अयोग्यताएँ हों।

प्रश्न 14. 
राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील सम्बन्धी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की व्यवस्थाएँ बतलाइये।
उत्तर:
राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील सम्बन्धी व्यवस्थाएँ-

  • यदि कोई व्यक्ति राज्य आयोग के आदेश से सन्तुष्ट नहीं है तो वह उस आदेश की तिथि के 30 दिन के भीतर राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील कर सकता है।
  • राष्ट्रीय आयोग अपील तभी स्वीकार करेगा जबकि अपीलार्थी ने राज्य आयोग के आदेश में उल्लेखित राशि के 50 प्रतिशत या 35 हजार रुपये में से जो भी कम हो, को निर्धारित रीति से जमा करवा दी हो।
  • राष्ट्रीय आयोग अपील का निपटारा अपील स्वीकार करने की तिथि के 90 दिनों के भीतर करेगा।
  • सामान्यतः राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग अपील की सुनवायी प्रक्रिया में कोई स्थगन आदेश नहीं देगा। वह ऐसा उचित कारणों का लिखित अभिलेख बनाकर ही कर सकेगा।
  • यदि राष्ट्रीय आयोग 90 दिन के भीतर अपील का निपटारा नहीं करता है तो उसे देरी के कारणों को लिखित अभिलेख तैयार करके स्पष्ट करने होंगे।

प्रश्न 15. 
ऐसे किन्हीं दस महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के नाम लिखिए जो उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं।
उत्तर:
निम्नलिखित उपभोक्ता संगठन एवं गैरसरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं-

  • उपभोक्ता समन्वय परिषद्, दिल्ली 
  • कॉमन कॉज, दिल्ली
  • उपभोक्ता शिक्षण हितार्थ स्वयंसेवी संगठन (VOICE), दिल्ली
  • उपभोक्ता शिक्षण एवं अनुसन्धान केन्द्र (CERC), अहमदाबाद
  • उपभोक्ता संरक्षण परिषद् (CPC), अहमदाबाद
  • कंज्यूमर गाइडेंस सोसाइटी ऑफ इण्डिया (CGSI), मुम्बई
  • मुम्बई ग्राहक पंचायत, मुम्बई 
  • कर्नाटक उपभोक्ता सेवा समिति, बैंगलोर
  • उपभोक्ता संगठन, कोलकाता 
  • कंज्यूमर यूनिटी एण्ड ट्रस्ट सोसाइटी (CUTS), जयपुर

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प्रश्न 16. 
उपभोक्ता द्वारा की गई शिकायत के सम्बन्ध में दिये गये किसी एक फैसले का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जोंस फिलिप मैम्पीलिस बनाम सर्वश्री प्रीमियर ऑटो मोबाइल्स लि. एवं अन्य में अपीलकर्ता (उपभोक्ता) ने एक डीजल कार खरीदी थी जो दोषपूर्ण पायी गई। प्रतिवादी (निर्माता व व्यापारी) ने कार के दोषों को दूर नहीं किया। जिला फोरम द्वारा नियुक्त कमिश्नर को कार में अनेक दोष मिले। परिणामस्वरूप जिला फोरम ने बिना लागत के कार को मरम्मत करने एवं इंजन बदलने का आदेश दिया। राज्य आयोग ने इंजन बदलने के निर्देश को छोड़कर शेष आदेश को बरकरार रखा।

प्रश्न 17. 
उपभोक्ताओं के किन्हीं चार दायित्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए उपभोक्ता के किन्हीं चार उत्तरदायित्वों को समझाइये।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के दायित्व/उत्तरदायित्व-
उपभोक्ताओं के चार प्रमुख दायित्व निम्नलिखित बताये जा सकते हैं-
1. जानकारी रखना-उपभोक्ता का यह उत्तरदायित्व है कि वह बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं के सम्बन्ध में पर्याप्त आवश्यक जानकारी रखे जिससे कि वह अपने उपयोग के लिए श्रेष्ठ एवं उपयोगी वस्तु का चयन कर सके।

2. मानक वस्तुओं को खरीदना-आजकल उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवायी जाने वाली वस्तुओं पर निर्माता उपभोक्ताओं में विश्वास जगाने के लिए उनके सम्बन्ध में मानक चिन्ह प्राप्त कर लेते हैं। अतः उपभोक्ताओं का दायित्व यह भी है कि केवल मानक चिन्ह प्राप्त की हुई वस्तुओं को ही खरीदें क्योंकि वस्तु पर मानक चिन्ह लगा हुआ है तो यह उसकी गुणवत्ता का विश्वास दिलाता है। .

3. जोखिमों के सम्बन्ध में जानना व दिशानिर्देशों का पालन करना-उपभोक्ता का यह भी दायित्व होता है कि वह वस्तु एवं सेवा से जुड़ी जोखिमों के सम्बन्ध में जाने, निर्माता के दिशा-निर्देशों का वह पूर्ण रूप से पालन करे तथा वस्तु का उपयोग करते समय इनका अवश्य ध्यान रखे।

4. अनुचित आचरण से हतोत्साहित करनाउपभोक्ता केवल कानून सम्मत वस्तुओं एवं सेवाओं को ही क्रय करें। कालाबाजारी, जमाखोरी, शोषण जैसी अनुचित प्रवृत्तियों को हतोत्साहित करे।

प्रश्न 18. 
उपभोक्ताओं के निम्न अधिकार समझाइए
(i) सूचना का अधिकार 
(ii) चयन का अधिकार।
अथवा 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता को प्राप्त चार अधिकार लिखिये।
उत्तर:
उपभोक्ता के अधिकार-

  • सुरक्षा का अधिकार-उपभोक्ता को उन वस्तु एवं सेवाओं के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है जो उसके जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
  • सूचना का अधिकार-उपभोक्ता को उस वस्तु के सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जिसका वह क्रय करना चाहता है जिसमें उसके घटक, निर्माण तिथि, मूल्य, मात्रा, उपयोग के लिए दिशा-निर्देश आदि सम्मिलित हैं।
  • चयन का अधिकार-उपभोक्ता को प्रतियोगी मूल्य पर उपलब्ध विभिन्न उत्पादों में से चयन का अधिकार है। इसका अर्थ है कि विपणनकर्ताओं को अलग-अलग गुणवत्ता, ब्राण्ड मूल्य एवं आकार की वस्तुओं को बाजार में बिक्री हेतु लाना चाहिए तथा उपभोक्ता को इनमें से अपनी पसंद की वस्तु के चयन का अधिकार होना चाहिए।
  • शिकायत का अधिकार-उपभोक्ता यदि वस्तु एवं सेवा से संतुष्ट नहीं है तो उसे शिकयत दर्ज कराने तथा उसकी सुनवायी करने का अधिकार है।

(नोट-उपरोक्त अधिकारों को विस्तारपूर्वक पाठ्यपुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 2 में पढ़ें।)

प्रश्न 19. 
उपभोक्ता संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उपभोक्ता के हितों को सुरक्षित करने एवं उन्नतिशील बनाने के लिए किये जाने वाले किन्हीं चार कार्यों का वर्णन कीजिये। 
उत्तर:
उपभोक्ता संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित करने एवं उन्नतिशील बनाने के लिए निम्न कार्य किये जाते हैं-
1. उपभोक्ताओं के अधिकारों के सम्बन्ध में शिक्षित करना-इन संगठनों को प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन कर जनसाधारण को उपभोक्ताओं के अधिकारों के सम्बन्ध में शिक्षित करने का कार्य करना चाहिए जिससे कि जनसाधारण अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहे। 

2. प्रकाशन कार्य-उपभोक्ता संगठनों तथा गैरसरकारी संगठनों के उपभोक्ता की समस्याओं, कानूनी रिपोर्ट देना, राहत तथा हित में कार्यों के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करने के लिए पाक्षिक एवं अन्य प्रकाशन का कार्य करना चाहिए।

3. उत्पादों की जाँच कराना व रिपोर्ट प्रकाशित करना-प्रतियोगी ब्रांड के गुणों की तुलनात्मक जाँच के लिए प्रमाणित प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों की जाँच कराना तथा उपभोक्ताओं के लाभ के लिए इनके परिणामों को प्रकाशित भी करवाना चाहिए।

4. कार्यवाही के लिए प्रोत्साहित करनाउपभोक्ता संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों का एक प्रमुख कार्य यह भी है कि वे बेईमानी, शोषणकर्ता एवं अनुचित व्यापारिक क्रियाएँ करने वाले विक्रेताओं का प्रतिवाद करने एवं उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करें।

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प्रश्न 20. 
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(1) शिकायत 
(2) भ्रामक प्रस्तुतीकरण।
उत्तर:
(1) शिकायत-शिकायत से आशय शिकायतकर्ता द्वारा निम्नलिखित में से एक या अधिक के बारे में लिखित दोषारोपण से है-

  • कि व्यापारी द्वारा अनुचित/प्रतिबन्धित व्यापारी का व्यवहार किया है।
  • कि माल या सेवा में किस्म, शुद्धता, मात्रा, क्षमता सम्बन्धी दोष है।
  • कि माल पर लिखे मूल्य या किसी अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है।
  • कि व्यवसायी किसी प्रचलित कानून का उल्लंघन कर रहा है।

(2) भ्रामक प्रस्तुतीकरण-निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुतीकरण भ्रामक कहे जाते हैं-

  • माल/सेवा की किस्म, प्रमाप, श्रेणी, रचना, शैली के बारे में मिथ्या प्रचार। 
  • पुरानी, पुनर्निर्मित, नवीनीकृत वस्तु को नयी बतलाना। 
  • ऐसा उपभोग/लाभ/कार्य निष्पादन का प्रचार करना जो उस माल या सेवा में नहीं है।
  • माल/सेवा के जीवनकाल या उपयोगिता के बारे में असत्य वर्णन।
  • किसी विक्रेता/पूर्तिकर्ता का सम्बन्ध होने का मिथ्या वर्णन। 
  • दूसरे व्यक्ति के माल/सेवा/व्यापार की निन्दा हेतु झूठे तथ्य प्रस्तुत करना।

प्रश्न 21. 
वस्तु या माल तथा सेवा से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वस्तु या माल का अर्थ-वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 के अनुसार "माल या वस्तु में वाद योग्य दावे तथा मुद्रा को छोड़कर, सभी प्रकार की चल सम्पत्ति सम्मिलित है, जिसमें अंशं तथा स्कन्ध, खड़ी फसलें, घास एवं अन्य वस्तुएँ जो कि भूमि से जुड़ी हुई हैं या भूमि का अंग हैं, जिनका विक्रय से पूर्व अथवा विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत भूमि से अलग करने का समझौता हुआ है।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि चल सम्पत्तियाँ (वाद योग्य दावों तथा मुद्रा को छोड़कर) माल या वस्तु हैं। अंश, ऋण-पत्र, स्कन्ध, कॉपीराइट, पेटेन्ट अधिकार, ट्रेडमार्क, खड़ी फसलें, पेड़-पौधे, घास-फूस, पत्थर, खनिज पदार्थ (जिनको भूमि से अलग करने का समझौता हुआ हो तो) आदि सभी वस्तुएँ या माल के अन्तर्गत आती हैं।

सेवाओं से तात्पर्य-सेवाओं से तात्पर्य किसी भी प्रकार या विवरण की सेवाओं से है जो किन्हीं भावी उपभोक्ताओं को उपलब्ध की जाती हैं तथा इसमें बैंकिंग विभागीय, बीमा, परिवहन, अभिक्रिया, विद्युतीय या अन्य ऊर्जा की आपूर्ति, भोजन या आवास अथवा दोनों, आवास निर्माण, मनोरंजन, मनोविनोद या सूचनाएँ तथा समाचार प्रदान करने वाली सेवाएँ सम्मिलित हैं तथा इन्हीं सेवाओं तक सीमित हैं। किन्तु, निःशुल्क सेवाओं तथा व्यक्तिगत सेवा अनुबन्ध के अन्तर्गत उपलब्ध की जाने वाली सेवाओं को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आयोग ने एक निर्णय में राजकीय अस्पतालों में चिकित्सा सहायता प्राप्त करने वाले व्यक्ति उपभोक्ता नहीं हैं क्योंकि इन अस्पतालों की सेवाएँ निःशुल्क होती हैं। किन्तु उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार सशुल्क चिकित्सा सेवा देने वाले डॉक्टरों, अस्पतालों आदि की सेवा को सेवा मान लिया गया है।

प्रश्न 22. 
उपभोक्ता अदालत यदि शिकायत की यथार्थता से संतुष्ट है तो यह विरोधी पक्ष को क्या निर्देश दे सकता है?
उत्तर:
उपभोक्ता अदालत यदि शिकायत की यथार्थता से संतुष्ट है तो यह विरोधी पक्ष को निम्न निर्देश दे सकती है-

  • वस्तु के दोष अथवा सेवा में कमी को दूर करना। 
  • दोषपूर्ण वस्तुओं के स्थान पर दोषमुक्त नयी वस्तु देना। 
  • वस्तु अथवा सेवाओं के लिए किए गए भुगतान की वापसी करना। 
  • विरोधी पक्ष की लापरवाही के कारण उपभोक्ता को होने वाली हानि अथवा चोट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में उचित राशि का भुगतान करना। 
  • उचित परिस्थितियों में दंडस्वरूप क्षति का भुगतान करना।
  • अनुचित या प्रतिबंधित व्यापारिक क्रियाओं को रोकना तथा उनकी पुनरावृत्ति न होने देना। 
  • खतरनाक वस्तुओं की बिक्री न करना। 
  • विक्रय के लिए रखी गई हानिकारक वस्तुओं को वापस लेना। 
  • खतरनाक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करना तथा हानिकारक सेवाएँ प्रदान करने से बचना।
  • कोई राशि (जो कि दोषपूर्ण वस्तु अथवा अपर्याप्त सेवाओं के मूल्य के 5 प्रतिशत से कम न हो) का भुगतान करना जो कि उपभोक्ता कल्याण कोष अथवा अन्य किसी संगठन/व्यक्ति के पास जमा की जाए जिसका प्रयोग निर्धारित रूप में हो। 
  • गुमराह करने वाले विज्ञापन के प्रभाव को समाप्त करने के लिए संशोधित विज्ञापन जारी करना। 
  • उचित पक्ष को पर्याप्त लागत का भुगतान करना।

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प्रश्न 23. 
जिला मंच एवं राज्य आयोग के प्रधान एवं सदस्यों की क्या योग्यताएँ होनी चाहिए?
उत्तर:
जिला मंच के प्रधान एवं सदस्यों की योग्यताएँ-
1. प्रधान-प्रधान ऐसा व्यक्ति होगा जो जिला न्यायाधीश हो या जिला न्यायाधीश बनने की योग्यताएँ - रखता हो।

2. अन्य सदस्यों की योग्यताएँ-(i) वे 35 वर्ष से कम आयु के नहीं होंगे; (ii) उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की स्नातक .उपाधि होगी; तथा (iii) वे योग्यता, विश्वसनीयता एवं ख्याति वाले व्यक्ति होंगे तथा उन्हें आर्थिक कानूनी, वाणिज्यिक, लेखाकर्म, उद्योग, सार्वजनिक मामलों अथवा प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं को निपटाने का कम-से-कम दस वर्षों का अनुभव होगा। 

राज्य आयोग के प्रधान एवं सदस्यों की योग्यताएँ-
1. प्रधान-प्रधान ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यताएँ रखता हो।

2. अन्य सदस्यों की योग्यताएँ-(i) वे 35 वर्ष से कम आयु के नहीं होंगे, (ii) उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि होगी, तथा (iii) वे योग्यता, विश्वसनीयता एवं ख्याति वाले व्यक्ति होंगे तथा उन्हें आर्थिक, कानूनी, वाणिज्यिक, लेखाकर्म, उद्योग, सार्वजनिक मामलों अथवा प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं को निपटाने का कम-से-कम दस वर्षों का अनुभव होगा। किन्तु कुल सदस्यों में से न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या आधे से अधिक नहीं होगी।

प्रश्न 24. 
राष्ट्रीय आयोग के प्रधान एवं सदस्यों की योग्यताएँ एवं अयोग्यताएँ बतलाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आयोग के प्रधान एवं सदस्यों की योग्यताएँ-
1. प्रधान-प्रधान या सभापति ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।

2. अन्य सदस्य-(i) वे 35 वर्ष से कम आयु के नहीं होंगे, (ii) उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि होगी, (iii) वे योग्यता, विश्वसनीयता एवं ख्याति वाले व्यक्ति होंगे तथा उन्हें आर्थिक, कानूनी, वाणिज्यिक, लेखाकर्म, उद्योग, सार्वजनिक मामलों अथवा प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं को निपटाने का कम से-कम दस वर्षों का अनुभव होगा। किन्तु न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या पचास प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। 

राष्ट्रीय आयोग के प्रधान एवं सदस्यों की अयोग्यताएँ-
राष्ट्रीय आयोग में निम्न अयोग्यताओं वाले व्यक्ति प्रधान या सदस्य नहीं बनाये जा सकते हैं-

  • यदि उसे किसी अपराध के लिए सजा मिली हो तथा जेल भेजा गया हो तथा केन्द्रीय सरकार की राय में किसी दुराचरण का दोषी हो।
  • यदि वह अमुक्त दिवालिया हो।
  • यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा अस्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति घोषित किया हुआ हो।
  • यदि वह सरकारी सेवा या सरकारी स्वामित्व नियन्त्रण वाली समामेलित संस्था से हटाया या पदच्युत किया गया हो।
  • यदि केन्द्रीय सरकार की राय में उसका ऐसा वित्तीय या अन्य हित हो जो सदस्य के रूप में उसके कर्तव्यों के निष्पक्ष निर्वाह को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता हो। 
  • यदि उसमें केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य कोई अयोग्यताएँ हों।

प्रश्न 25. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निवारण एजेंसी के रूप में 'जिला फोरम' की भूमिका को समझाइये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निवारण एजेंसी के रूप में जिला फोरम की भूमिका-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार राज्य सरकार अपने राज्य के प्रत्येक जिले में एक 'उपभोक्ता विवाद निवारण मंच' अर्थात् जिला फोरम स्थापित करती है। इसमें एक प्रधान तथा दो अन्य सदस्य होते हैं जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। इन सभी की नियुक्ति सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा की जाती है। शिकायत किसी भी सम्बन्धित जिला फोरम के पास की जा सकती है यदि वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 20 लाख रुपये से अधिक नहीं है। 

शिकायत उपभोक्ता द्वारा, किसी भी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ द्वारा, जिला फोरम की अनुमति से एक या अधिक उपभोक्ताओं द्वारा अथवा केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से या सामान्य उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि की हैसियत से प्रस्तुत की जा सकती है। शिकायत प्राप्ति के पश्चात् जिला फोरम शिकायत को उस पक्ष को भेजेगा जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है। यदि आवश्यक हुआ तो वस्तु या उसके नमूने को परीक्षण हेतु प्रयोगशाला को भेजा जा सकेगा। जिला फोरम प्रयोगशाला से प्राप्त जाँच रिपोर्ट को ध्यान में रखकर तथा सम्बन्धित विरोधी पक्षकार का तर्क सुनकर आदेश पारित करेगा।

जिला फोरम अपने आदेश में निम्न में से कोई भी एक या अधिक उपाय करने के लिए कह सकता है-

  • समुचित प्रयोगशाला द्वारा माल में इंगित किये गये दोष को दूर करने के लिए।
  • उस माल को उसी प्रकार के नये दोष रहित माल से प्रतिस्थापित करने के लिए।
  • शिकायतकर्ता को मूल्य अथवा किये गये खर्चों को लौटाने के लिए।
  • उपभोक्ता द्वारा वहन की गई हानि या क्षति के भुगतान के लिए। 
  • दण्डनीय क्षति के भुगतान के लिए।
  • माल या सेवा में दोष दूर करने के लिए।
  • अनुचित व्यापार व्यवहार अथवा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार को बन्द करने या उसकी पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए।
  • विक्रय हेतु घातक/खतरनाक माल का प्रस्ताव नहीं करने के लिये।
  • प्रस्तावित घातक/खतरनाक माल को वापस लेने के लिए।
  • घातक माल का उत्पादन रोकने के लिए तथा घातक प्रकृति की सेवाओं का प्रस्ताव रोकने के लिए।

यदि पीड़ित पक्षकार जिला फोरम के आदेश से सन्तुष्ट नहीं है तो वह आदेश पारित होने के तीस दिन के भीतर राज्य कमीशन के समक्ष अपील कर सकता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 26. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निवारण एजेंसी के रूप में 'राष्ट्रीय कमीशन' की भूमिका को समझाइये। 
उत्तर:
राष्ट्रीय आयोग (राष्ट्रीय कमीशन)उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निवारण एजेंसी के रूप में 'राष्ट्रीय कमीशन' की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्रीय आयोग भारत में उपभोक्ता विवादों को हल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वोच्च संस्था है। यह एक स्वतन्त्र वैधानिक संस्था है। केन्द्रीय सरकार ने अधिसूचना जारी करके राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की है।

राष्ट्रीय आयोग का एक प्रधान होता है तथा कमसे-कम चार अन्य सदस्य होते हैं जिनमें एक महिला होनी चाहिए। इनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाती है।

राष्ट्रीय आयोग में शिकायत तभी की जा सकती है जबकि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित एक करोड़ रुपये से अधिक हो। राष्ट्रीय आयोग, राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील भी सुनता है। राष्ट्रीय आयोग शिकायत प्राप्त होने के तुरन्त पश्चात् शिकायत को विरोधी पक्षकार को भेजता है। यदि आवश्यक हो तो वस्तु अथवा उसके नमूने को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजता है। प्रयोगशाला से जाँच रिपोर्ट प्राप्त करने के पश्चात् उसका अध्ययन कर तथा विरोधी पक्षकार के पक्ष को सुनकर आवश्यक आदेश प्रसारित करता है।

राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित आदेश उसके मूल अधिकार क्षेत्र में आता है। यदि विरोधी पक्षकार राष्ट्रीय आयोग के निर्णय से सन्तुष्ट नहीं है तो वह इसकी अपील उच्चतम न्यायालय में कर सकता है। उच्चतम न्यायालय को अपील राष्ट्रीय आयोग द्वारा आदेश प्रसारित करने के 30 दिन के भीतर की जा सकती है। उच्चतम न्यायालय चाहे तो इस अपील की अवधि को बढ़ा भी सकता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
रीना ने एक दुकानदार से एक लीटर शुद्ध देशी घी खरीदा। इसका उपयोग करने के बाद उसे संदेह हुआ कि घी मिलावटी है। उसने उसे एक प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजा और यह निश्चित हो गया कि घी मिलावटी है। रीना यदि शिकायत करती है और उपभोक्ता अदालत शिकायत की यथार्थता से संतुष्ट है तो रीना को उपलब्ध किन्हीं छः रियायतों (राहतों) का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
रीना ने दुकानदार से शुद्ध घी खरीदा और वह मिलावटी प्रमाणित हुआ तो ऐसी स्थिति में उसे निम्न रियायतें (राहत) प्राप्त हो सकेंगी-

  • रीना दुकानदार से मिलावटी घी के स्थान पर शुद्ध घी प्राप्त कर सकती है।
  • रीना दुकानदार को घी का किया हुआ भुगतान वापस प्राप्त कर सकती है।
  • मिलावटी घी के उपयोग से रीना को होने वाली हानि की क्षति की पूर्ति की राशि प्राप्त कर सकती है।
  • रीना परिस्थिति के अनुसार दण्ड स्वरूप उचित राशि का भुगतान दुकानदार से प्राप्त कर सकती है।
  • अनुचित या प्रतिबन्धित व्यापारिक क्रियाओं को रोकने तथा उनकी पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए कार्यवाही कर सकती है।
  • मिलावटी घी के विक्रय पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।

प्रश्न 2. 
प्रखर ने 'भारत इलेक्ट्रिकल्स' से एक ISI मार्क बिजली की प्रेस खरीदी। उसका प्रयोग करते समय उसने पाया कि वह ठीक प्रकार से काम नहीं कर रही। उसने विक्रेता से सम्पर्क किया और इस बारे में शिकायत की। विक्रेता ने प्रखर को यह कहकर संतुष्ट कर दिया कि वह उत्पादक से इस प्रेस को बदलने के लिए कहेगा। उत्पादक ने उसे बदलने से मना कर दिया और 'भारत इलेक्ट्रिकल्स' ने उपभोक्ता अदालत में शिकायत करने का निर्णय लिया।
क्या 'भारत इलेक्ट्रिकल्स' ऐसा कर सकती है? क्यों? यह समझाइये कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत 'उपभोक्ता' कौन होता
उत्तर:
'भारत इलेक्ट्रिकल्स' उपभोक्ता अदालत में शिकायत प्रस्तुत नहीं कर सकती है क्योंकि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। भारत इलेक्ट्रिकल्स द्वारा जो प्रेस खरीदी गई है वह पुनः विक्रय/व्यापारिक उपयोग के लिए है।

उपभोक्ता-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने स्वयं के उपयोग के लिए माल या वस्तु को खरीदता है। माल या सेवाओं का उसके क्रेता की अनुमति से प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। इसमें ऐसा कोई व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता जो पुनर्विक्रय के उददेश्य से माल को खरीदता है लेकिन स्वरोजगार द्वारा अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए किसी वस्तु या सेवा को क्रय करने वाला व्यक्ति भी उस माल या सेवा का उपभोक्ता कहलाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 3. 
भारत में उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व दर्शाइये।
अथवा
किन्हीं ऐसे छः कारणों की संक्षेप में व्याख्या कीजिये जिनके कारण भारत में उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता है।
उत्तर:
भारत में उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व 
उपभोक्ता संरक्षण में उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में शिक्षित करना ही सम्मिलित नहीं है बल्कि उनकी शिकायतों के निवारण में सहायता प्रदान करना भी सम्मिलित है। इसके लिए उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए केवल कानूनी संरक्षण ही पर्याप्त नहीं है बल्कि आवश्यकता इसकी भी है कि उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा एवं प्रवर्तन के लिए एकजुट हो जायें और मिलकर उपभोक्ता समितियों का गठन करें। उपभोक्ताओं एवं व्यवसाय के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण की भारत में निम्नलिखित आवश्यकता एवं महत्त्व है-

I. उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से-उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व को हम निम्न प्रकार से समझा सकते हैं- 
1. उपभोक्ता की अज्ञानता-भारत में उपभोक्ताओं में व्यापक रूप से अपने अधिकारों के ज्ञान का अभाव है तथा उन्हें सहायता भी प्राप्त करने की भी कम व्यवस्था है। अत: उपभोक्ताओं को इन सबके सम्बन्ध में पर्याप्त शिक्षा दिये जाने की आवश्यकता है ताकि उनमें उनके अधिकारों एवं प्राप्त कर सकने वाली सहायता के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके।

2. असंगठित उपभोक्ता-अधिकांश भारतीय उपभोक्ता असंगठित हैं। जबकि उपभोक्ताओं को ऐसे उपभोक्ता संगठन के रूप में संगठित हो जाना चाहिए जो उनके हितों का ध्यान रखेंगे। यद्यपि भारत में इस दिशा में कार्यरत अनेक उपभोक्ता संगठन हैं लेकिन जब तक ये संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उनके प्रवर्तन के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं हो जायें उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

3. उपभोक्ताओं का चारों तरफ से शोषणउपभोक्ता वस्तुओं में मिलावट, उपभोक्ताओं के झूठे एवं गुमराह करने वाले विज्ञापन, जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा कालाबाजारी, जैसे झूठे, शोषण करने वाले एवं अनुचित व्यापारिक व्यवहार के द्वारा शोषण किया जा सकता है। उपभोक्ताओं को विक्रेताओं की इन गलत तरीकों के विरुद्ध संरक्षण की आवश्यकता है।

II. व्यवसाय के दृष्टिकोण से-व्यवसाय को उपभोक्ताओं के संरक्षण एवं पर्याप्त सन्तुष्टि पर जोर देने की आवश्यकता है। व्यवसाय की दृष्टि से निम्न कारणों से उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व एवं आवश्यकता है-
1. व्यवसाय का दीर्घ आवधिक हित-वर्तमान युग में एक जागरूक व्यवसायी यह अच्छी तरह से जानता है कि उपभोक्ता की सन्तुष्टि दीर्घ अवधि में उन्हीं के हित में है। उपभोक्ता यदि सन्तुष्ट है तो वह न केवल बार-बार माल खरीदेगा वरन् सम्भावित उपभोक्ताओं या ग्राहकों के लिए भी प्रतिपोषक का कार्य करेगा जिससे व्यवसाय के उपभोक्ताओं एवं ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होगी।

2. व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करता है-व्यावसायिक संस्थाएँ उन संसाधनों का उपयोग करती हैं जिन पर समाज का अधिकार है। इसीलिए व्यावसायिक संस्थानों को ऐसे उत्पादों की आपूर्ति एवं उन सेवाओं को प्रदान करने का दायित्व है जो जनता व उपभोक्ताओं के हित में है तथा जिससे उपभोक्ताओं एवं जनता के विश्वास एवं अपेक्षाओं को ठेस नहीं पहुँचे। इसीलिए उनके संरक्षण की आवश्यकता है।

3. सामाजिक उत्तरदायित्व-व्यवसाय का समाज के विभिन्न हितार्थ समूहों के प्रति सामाजिक दायित्व होता है। व्यावसायिक संगठन ग्राहकों को माल की बिक्री कर एवं सेवाएँ उपलब्ध कराकर धन कमाता है। इस प्रकार से उपभोक्ता व्यवसाय में हित रखने वाले बहुत से समूहों में से एक महत्त्वपूर्ण समूह है और दूसरे हित रखने वाले समूहों के समान इनके हितों का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

4. नैतिक औचित्य-उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखना तथा उनका किसी भी प्रकार से शोषण नहीं करना व्यवसाय का नैतिक दृष्टि से औचित्य बनता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि व्यावसायिक संस्थाओं को दोषपूर्ण एवं असुरक्षित उत्पादों का उत्पादन करने, मिलावट, झूठे एवं गुमराह करने वाले विज्ञापन देने, जमाखोरी, कालाबाजारी आदि जैसे झूठे, शोषण करने वाले एवं अनुचित व्यापार क्रियाओं से बचना चाहिए।

5. सरकारी हस्तक्षेप-यदि कोई व्यवसायी शोषण करने वाला व्यापार कर रहा है तो वह सरकारी हस्तक्षेप एवं कार्यवाही को आमन्त्रण दे रहा है। जब इस प्रकार की स्थिति पैदा हो जाती है तो इससे व्यावसायिक संस्था की छवि एवं प्रतिष्ठा को हानि पहुँचती है और उसकी छवि धूमिल होती है। इसीलिए यही उचित रहेगा कि व्यावसायिक संस्थाएँ स्वेच्छा से ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं हितों को भली-भाँति ध्यान रखने वाला ही कार्य करें। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने ग्राहकों या उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने वाले कई कानून भी बनाये हैं। 

6. शक्ति का स्रोत-व्यवसाय का सरकार एवं समाज पर अत्यधिक प्रभाव होता है क्योंकि व्यवसाय बिना सरकार एवं समाज के सहयोग के सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है। व्यवसाय शक्तिशाली भी सरकार एवं समाज के सहयोग से बनता है। यह जीवन शैली, खान-पान एवं कपड़े पहनने की आदतों में परिवर्तन लाता है एवं उसका निर्माण करता है। इसलिए ऐसे प्रभाव निर्धारण का दायित्व व्यवसाय का है जो समाज को हानि नहीं पहुँचाये एवं कुछ ही लोगों के हितों को ध्यान में नहीं रखे।

7. ग्राहक ही व्यवसाय का लक्ष्य-व्यवसाय का मूल उद्देश्य अधिक से अधिक ग्राहक बनाना तथा उन्हें बनाये रखना है । ग्राहक तब ही सन्तुष्ट होंगे जबकि उन्हें सही मात्रा में सही गुणवत्ता वाली वस्तुएँ सही कीमत पर एवं सही समय पर प्राप्त होंगी और यदि ग्राहक सन्तुष्ट नहीं होगा तो व्यवसाय अधिक समय तक नहीं चल सकता।

8. स्वयं का हित-वर्तमान उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के युग में व्यवसायियों द्वारा अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन तथा एक अच्छे नागरिक की साख बनाये रखना व्यावसायिक संस्था के हित में है। जब तक व्यावसायिक संस्थाएँ अथवा व्यावसायिक कम्पनियाँ उपभोक्तामुखी नहीं होंगी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इन्हें बाजार से बाहर का रास्ता दिखाती रहेंगी।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 4. 
उपभोक्ता संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बनाये गये विभिन्न अधिनियमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बनाये गये विभिन्न अधिनियम 
भारत के कानूनी ढाँचे में सरकार ने अग्रलिखित ऐसे कई कानून बनाये हैं जो उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं-
1. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986-यह अधिनियम उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा करता है एवं उनका प्रवर्तन करता है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण वस्तुओं, घटिया स्तर की सेवाओं, अनुचित व्यापार क्रियाओं तथा अन्य प्रकार के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत त्रिस्तरीय तंत्र की स्थापना का प्रावधान है जिसमें जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग सम्मिलित है। इसमें प्रत्येक जिला, राज्य एवं सर्वोच्च स्तर पर उपभोक्ता का संरक्षण परिषदों के गठन का प्रावधान है।

2. प्रसंविदा (अनुबन्ध) अधिनियम, 1982यह अधिनियम अनुबन्ध या प्रसंविदा की शर्ते निर्धारित करता है जिनके अनुसार किसी अनुबन्ध के पक्षकारों ने जो वायदे किये हैं उनको पूरा करने के लिए वे बाध्य होंगे। यह अधिनियम अनुबन्ध को तोड़ने पर इससे प्रभावित पक्षों को उपलब्ध उपचार का निर्धारण करता है व उपलब्ध करवाता है।

3. वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930-यह अधिनियम माल या वस्तु के क्रेताओं को उस स्थिति में कुछ संरक्षण प्रदान करता है जबकि उन्होंने जो वस्तुएँ खरीदी हैं वे घोषित अथवा गर्भित शर्त अथवा गर्भित आश्वासन के अनुरूप नहीं हों।

4. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955- यह अधिनियम आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण पर नियंत्रण, इनके मूल्यों की वृद्धि की प्रवृत्ति को रोकने तथा इनके समान वितरण को सुनिश्चित करता है। इस कानून में अनुचित लाभ कमाने वाले जमाखोर एवं कालाबाजारियों को समाज विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का प्रावधान भी है।

5. कृषि उत्पाद (श्रेणीकरण एवं चिन्हांकन) अधिनियम, 1937-यह अधिनियम कृषि उत्पादों एवं पशुओं के लिए उत्पादों की श्रेणियों में मानक निर्धारित करता है। यह मानकों के उपयोग को शासित करने के लिए शर्ते तय करता है तथा कृषि उत्पादों के श्रेणीकरण, चिन्हांकन एवं पैकिंग के लिए प्रक्रिया भी तय करता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत जो गुणवत्ता का चिन्ह निर्धारित किया है उसे 'एगमार्क' कहते हैं जो कि कृषि विपणन का एक संक्षिप्त नाम है।

6. खाद्य मिलावट अवरोध अधिनियम, 1954 यह अधिनियम रबाद्य पदार्थों में मिलावट पर अंकुश लगाता है एवं जन साधारण के स्वास्थ्य के हित में शुद्धता को सुनिश्चित करता है।

7. माप-तौल मानक अधिनियम, 1976-माप तौल मानक अधिनियम उपभोक्ताओं को कम तौलने अथवा मापने के अनुचित आचरण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। लेकिन यह उन वस्तुओं पर लागू नहीं होता है जिनका वजन, माप, संख्यानुसार विक्रय अथवा वितरण किया जाता है।

8. भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986इस अधिनियम के तहत भारत में भारतीय मानक ब्यूरो की स्थापना की गई है। यह ब्यूरो मुख्य रूप से दो कार्य करता है-प्रथम-वस्तुओं के लिए गुणवत्ता मानक निश्चित करना, द्वितीय-बी. आई एस. प्रमापीकरण योजना के माध्यम से उनका प्रमापीकरण करना। निर्माता अपने उत्पादों पर आई. एस. आई. (ISI) चिन्ह तभी प्रयोग कर सकते हैं जबकि ब्यूरो द्वारा यह सुनिश्चित कर लिया जाये कि वस्तुएँ निर्धारित गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप हैं। ब्यूरो ने एक शिकायत प्रकोष्ठ की भी स्थापना की है जहाँ उपभोक्ता उन वस्तुओं की गुणवत्ता की शिकायत कर सकते हैं जिन पर आई. एस. आई. (ISI) चिन्ह अंकित है।

9. ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999-ट्रेडमार्क अधिनियम ने व्यापार एवं चिन्ह अधिनियम 1958 को समाप्त कर उसका स्थान ले लिया है। यह अधिनियम उत्पादों पर धोखाधड़ी वाले चिन्हों के उपयोग पर रोक लगाता है । इस प्रकार से उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पादों से संरक्षण प्रदान करता है। 

10. प्रतियोगिता अधिनियम, 2002-प्रतियोगिता अधिनियम एकाधिकार एवं प्रतिरोध व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 को भंग कर उसका स्थानापन्न करता है। यह अधिनियम व्यावसायिक इकाइयों द्वारा बाजार में प्रतियोगिता में अड़चनें या रुकावट डालने वाले कार्य करने पर उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करता है।

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प्रश्न 5. 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
भारतीय उपभोक्ता की दयनीय स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। उसे एक नहीं, अनेक तरीकों से लूटा जा रहा है। कभी कम माप-तौल के कारण, तो कभी वस्तुओं की घटिया किस्म के कारण, कभी मिलावट करके, तो कभी नकली वस्तुएँ उपलब्ध कराके, कभी वस्तुओं की कालाबाजारी या जमाखोरी करके, कभी समय पर माल या सेवा उपलब्ध नहीं करके, तो कभी माल की पूरी मात्रा उपलब्ध नहीं करके उपभोक्ता का शोषण किया जाता रहा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता के शोषण के विरुद्ध एक कारगर एवं प्रभावी प्रयास है।

भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू है। इस अधिनियम को भारतीय संसद के दोनों सदनों ने दिसम्बर, 1986 में पारित किया था। 24 दिसम्बर, 1986 को भारत के राष्ट्रपति ने इस अधिनियम पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी थी।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना। 
  • उपभोक्ताओं के हितों एवं अधिकारों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता परिषदों की स्थापना के लिए व्यवस्था करना। 
  • उपभोक्ताओं के विवादों तथा उनसे सम्बन्धित मामलों के निपटारे के लिए व्यवस्था करना। 
  • उपभोक्ता विवादों का शीघ्रता एवं सरलता से निपटारा करना। 
  • उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए अर्द्ध न्यायिक मशीनरी की व्यवस्था करना। 

यह अधिनियम उपभोक्ता के सुरक्षा का अधिकार, सूचना प्राप्ति का अधिकार, चयन का अधिकार एवं उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार को मान्यता प्रदान करता है। केन्द्र एवं राज्य सरकार पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदें केन्द्र, राज्यों एवं केन्द्र शासित क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषदें कार्य कर रही हैं।

अधिनियम के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • यह अधिनियम सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है।
  • यह सभी क्षेत्रों यथा निजी, सार्वजनिक तथा सहकारी क्षेत्रों पर लागू होता है।
  • यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अन्य कानूनों में उपलब्ध निवारण के अतिरिक्त, निवारण प्रदान करता है तथा उनमें से चुनाव उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है।
  • यह अधिनियम सुरक्षा, सूचना, चयन, प्रतिनिधित्व, शिकायत निवारण एवं उपभोक्ता शिक्षा से सम्बन्धित अधिकारों को उच्च शिक्षा प्रदान करता है।
  • अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता को कुछ अनिश्चित एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार कार्यवाहियों, सेवाओं में कमियों अथवा बुराइयों एवं सेवाओं के रोक लेने पर रोक लगाने तथा बाजार से खतरनाक वस्तुओं को हटाने की मांग करने का अधिकार है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में 18 जून, 1993 को किये गये संशोधन के अनुसार-

  • इस अधिनियम में प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही से सम्बन्धित शिकायतें, उन लोगों की शिकायतें जो स्वरोजगार के दौरान जीवन यापन के लिए वस्तुएँ खरीदते हैं। उन वस्तुओं के बारे में शिकायतें जो उपभोक्ता के जीवन एवं सुरक्षा के लिए खतरा है तथा जिनके अवयव, उपयोग विधि एवं प्रभावों के सम्बन्ध में विधिसम्मत सूचना प्रदान नहीं की गई है को सम्मिलित किया गया
  • भवन निर्माण से सम्बन्धित सेवाओं को सम्मिलित किया गया है।
  • वर्ग विशेष द्वारा समान हित रखने वाले उपभोक्ताओं की ओर से शिकायत दर्ज करायी जा सकती है।
  • जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग के मुद्रा सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है।
  • उपभोक्ता विवाद निवारण एजेन्सियों को अतिरिक्त अधिकार प्रदान किये गये।
  • निरर्थक अथवा तंग करने की दृष्टि से की गई शिकायतों की स्थिति में शिकायतकर्ता को दण्डित करने के लिए प्रावधान किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण (संशोधित) अधिनियम, 2002 के कुछ प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-

  • उपभोक्ता विवाद निवारण अभिकरणों का मुद्रा सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र विस्तृत कर दिया गया है। 
  • राष्ट्रीय आयोग तथा राज्य आयोगों के प्रधानों को विभिन्न पीठों की स्थापना करने का अधिकार दे दिया गया है। 
  • जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना करने का प्रावधान किया गया है जिसका प्रधान या सभापति जिला कलेक्टर होगा।

उपभोक्ता का अर्थ-
(1) उपभोक्ता का अर्थ है-(i) जो वस्तुओं का क्रय अथवा सेवाओं को मूल्य चुकाकर प्राप्त करता है। (ii) वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोक्ता को उन्हें मूल क्रेता अथवा सेवा प्राप्तकर्ताओं की अनुमति से प्राप्त करता है एवं उपभोग करता है। (iii) वह व्यक्ति जो उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करता है जो स्वरोजगार द्वारा जीवन यापन के लिए खरीदी गई हैं।

(2) निम्न के सम्बन्ध में उपभोक्ता शिकायत दर्ज करा सकते हैं तथा क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं-(i) व्यापारी एवं विनिर्माताओं की धोखाधड़ी की क्रियाएँ (ii) टूटा-फूटा माल, (iii) सेवाओं में कमी। इन सेवाओं में बैंक, वित्त, बीमा, परिवहन, बिजली एवं गैस आपूर्ति, मनोरंजन, भवन निर्माण, चिकित्सा सेवाएँ, भोजन एवं रहने की सेवाएँ सम्मिलित हैं।

(3) उपभोक्ताओं की शिकायतों एवं विवादों की सुनवायी के लिए त्रि-स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक मशीनरी हैं-(i) जिला स्तर पर जिला मंच, इसमें वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 20 लाख रुपये तक के विवादों की सुनवायी की जाती है। (ii) राज्य स्तर पर-राज्य आयोग, इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति की राशि सहित एक करोड़ रुपये से अधिक नहीं हो, विवादों की सुनवायी की जाती है। (iii) राष्ट्रीय स्तर पर-राष्ट्रीय आयोग, इसमें वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति की राशि सहित एक करोड़ रुपये से अधिक हो, विवादों की सुनवायी की जाती है।

जिला फोरम के आदेश के विरुद्ध राज्य आयोग में, राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध राष्ट्रीय आयोग में तथा राष्ट्रीय आयोग के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में 30 दिन के भीतर अपील की जा सकती है।

(4) उपभोक्ता विवाद निवारण अभिकरणों द्वारा प्रत्येक शिकायत का निपटारा शीघ्र कर देना चाहिए। इनकी समय सीमा 30 दिन है। यदि शिकायत के अनुसार वस्तुओं के विश्लेषण एवं जाँच की आवश्यकता है तो यह अवधि 5 महीने हो सकती है।

(5) शिकायतकर्ता-निम्न में से कोई भी व्यक्ति शिकायतकर्ता हो सकता है-(i) एक उपभोक्ता, (ii) कोई भी पंजीकृत स्वयंसेवी उपभोक्ता संघ (iii) देश के किसी अन्य कानून के अन्तर्गत पंजीकृत स्वयंसेवी उपभोक्ता संघ (iv) केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार (v) समान प्रकार का हित रखने वाले उपभोक्ताओं की ओर से एक या अधिक उपभोक्ता (vi) उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उनका वैधानिक उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि ।

(6) प्रत्येक शिकायत के साथ शिकायतकर्ता द्वारा निर्धारित फीस का भुगतान किया जायेगा।

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प्रश्न 6. 
जिला मंच द्वारा उपभोक्ता विवादों को निपटाने के लिए अपनाये जाने वाली प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिला मंच द्वारा उपभोक्ता विवादों को निपटाने के लिए अपनाये जाने वाली प्रक्रिया
(अ) माल सम्बन्धी शिकायतों की निवारण प्रक्रिया-जब जिला मंच को किसी माल या वस्तु के सम्बन्ध में कोई शिकायत प्राप्त होती है तो वह उसका निवारण निम्न प्रकार से करता है-

  • विरोधी पक्षकार को शिकायत की प्रति भेजना-जिला मंच शिकायत स्वीकार करने के 21 दिन के भीतर उस शिकायत की प्रति विरोधी पक्षकार को भेजेगा।
  • विरोधी पक्षकार को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देना-जिला मंच शिकायत की प्रति विरोधी पक्षकार को भेजने के साथ ही उसे 30 दिन के भीतर अपना पक्ष रखने के लिए निर्देश दे सकता है। यह अवधि 15 दिन के लिए बढ़ायी जा सकती है।
  • जिला मंच द्वारा शिकायत का निपटारा करना-यदि विरोधी पक्षकार आरोपों को अस्वीकार करता है या विरोध करता है या दिये गये समय में जिला मंच के यहाँ अपना पक्ष प्रस्तुत करने में त्रुटि करता है या असमर्थ रहता है तो जिला मंच शिकायत का निपटारा करेगा।
  • वस्तु का नमूना प्राप्त करना, सील करना तथा प्रमाणित करना-यदि शिकायत में माल के खराब होने का आरोप लगाया गया है तथा उस माल के विश्लेषण या जाँच के बिना किसी खराबी का पता नहीं चलता है तो जिला मंच शिकायतकर्ता से उस माल का एक नमूना प्राप्त कर, उसे सील कर प्रमाणित कर देगा।
  • जाँच के लिए शुल्क जमा करना-जाँच किसी प्रयोगशाला में की जानी है तो उसके खर्चों के भुगतान के लिए शिकायतकर्ता को एक निर्धारित शुल्क जिला मंच के पास जमा करवाना होता है।
  • नमूने को जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजना-जिला मंच माल के प्रमाणित नमूने को आवश्यक निर्देश के साथ उपयुक्त प्रयोगशाला में भेजेगा।
  • मंच द्वारा प्रयोगशाला को शुल्क भेजनाजिला मंच शिकायतकर्ता से प्राप्त शुल्क को प्रयोगशाला के पास भेज देता है ताकि वह माल का आवश्यक विश्लेषण कर जाँच कार्य कर सके।
  • प्राप्त रिपोर्ट की प्रति विरोधी पक्षकार को भेजना-जिला मंच प्रयोगशाला से प्राप्त जाँच की रिपोर्ट की एक प्रति उपयुक्त टिप्पणी के साथ विरोधी पक्षकार को भेजेगा।
  • रिपोर्ट पर लिखित विरोध प्रकट करने के लिए कहना-यदि विवाद का कोई पक्षकार प्रयोगशाला के निष्कर्षों की सत्यता या प्रयोगशाला द्वारा अपनायी गयी जाँच की प्रक्रिया का विरोध करता है तो जिला मंच शिकायतकर्ता या विरोधी पक्षकार को लिखित में अपना विरोध प्रस्तुत करने के लिए कहेगा।
  • सुनवायी का अवसर देना-तत्पश्चात् जिला पक्ष शिकायतकर्ता तथा विरोधी पक्षकार को प्रयोगशाला को रिपोर्ट की सत्यता तथा उसके विरोध में की गई लिखित शिकायत के सम्बन्ध में अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहेगा।
  • आवश्यक आदेश प्रसारित करना-जब जिला मंच सन्तुष्ट हो जाता है कि माल में कोई दोष है तो वह विरोधी पक्षकार को आवश्यक आदेश प्रसारित कर देगा।
  • कार्यवाही का संचालन-जिला मंच की कार्यवाही का संचालन जिला मंच के प्रधान या सभापति के द्वारा की जायेगी तथा उसके साथ कम से कम एक सदस्य और होगा।
  • आदेश पर हस्ताक्षर करना-जिला मंच द्वारा जारी आदेश पर सभापति या प्रधान तथा उस कार्यवाही के संचालन में भाग लेने वाले सदस्य अथवा सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे।
  • अपील का अधिकार-यदि जिला मंच द्वारा दिये गये आदेश के विरुद्ध किसी भी पक्षकार को कोई आपत्ति हो तो वह उस आदेश की तिथि के 30 दिनों के भीतर राज्य 'आयोग के समक्ष अपील कर सकेगा।

(ब) सेवा सम्बन्धी शिकायत प्रक्रिया-जब जिला मंच को किसी सेवा के सम्बन्ध में लिखित शिकायत प्राप्त होती है तो उस शिकायत के निवारण के लिए निम्न प्रक्रिया का पालन किया जायेगा-

  • विरोधी पक्षकार को शिकायत की प्रति भेजना-किसी सेवा के सम्बन्ध में शिकायत प्राप्त करने के बाद जिला मंच उस शिकायत की एक प्रति विरोधी पक्षकार को भेजता है। 
  • विरोधी पक्षकार को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देना-जिला मंच विरोधी पक्षकार को अपना पक्ष 30 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश देगा।
  • जिला मंच द्वारा निपटारा करना-यदि विरोधी पक्षकार शिकायत में लगाये गये आरोपों को अस्वीकार करता है अथवा वह मंच द्वारा दिये गये समय में अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं करता है तो जिला मंच उस शिकायत का निपटारा कर सकता है।
  • शिकायतकर्ता के उपस्थित नहीं होने परयदि शिकायतकर्ता सुनवायी की तिथि को जिला मंच के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो जिला मंच उस शिकायत को निरस्त कर सकता है अथवा उसके गुणों के आधार पर निर्णय कर सकता है।

प्रश्न 7. 
उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षार्थ क्या कार्य करते हैं ? लिखिए। 
उत्तर:
उपभोक्ता संगठन एवं गैर-सरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षार्थ कई कार्य करते हैं। ये इस प्रकार हैं-

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमीनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन कर जनसाधारण को उपभोक्ताओं के अधिकारों के संबंध में शिक्षित करना। 
  • उपभोक्ता की समस्याओं, कानूनी रिपोर्ट देना, राहत तथा हित में कार्यों के संबंध में ज्ञान प्रदान करने के लिए पाक्षिक एवं अन्य प्रकाशनों का प्रकाशन करना। 
  • प्रतियोगी ब्रांड के गुणों की तुलनात्मक जाँच के लिए प्रमाणित प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों की जाँच कराना तथा उपभोक्ताओं के लाभ के लिए इनके परिणामों को प्रकाशित करना। 
  • बेईमान, शोषणकर्ता एवं अनुचित व्यापारिक क्रियाएँ करने वाले विक्रेताओं का प्रतिवाद करना एवं उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करना। 
  • सहायता प्रदान कर, कानूनी सलाह देकर कानूनी निदान के लिए उपभोक्ता को कानूनी सहायता प्रदान करना। 
  • उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराना। 
  • उपभोक्ता अदालतों में किसी व्यक्ति के हित में नहीं बल्कि जनसाधारण के हित में मुकदमा करने में पहल करना 

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प्रश्न 8. 
उत्तर दीजिए
(1) राज्य आयोग के पास किस प्रकार के मामलों का दावा किया जा सकता है ?
(2) उपभोक्ता के हितों के संरक्षण एवं प्रवर्तन में उपभोक्ता संगठन एवं NGOs की भूमिका को समझाइए।
उत्तर:
(1) राज्य आयोग के पास निम्न प्रकार के मामलों का दावा किया जा सकता है-

  • यदि वस्तु एवं सेवाओं का मूल्य क्षतिपूर्ति के दावे की राशि सहित 20 लाख रुपये से अधिक हो लेकिन एक करोड़ रुपये से अधिक नहीं हो।
  • जिला मंच के आदेश के विरुद्ध अपील भी राज्य आयोग के समक्ष की जा सकती है और उस पर यह सुनवायी करने का अधिकार रखता है।
  • किसी शिकायत पर विचार करना यदि विरोधी पक्षकार शिकायत के समय राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार में वास्तव में स्वेच्छा से रहता है या अपना कारोबार करता है या उस कारोबार की शाखा है या अपने निजी लाभ के लिए कार्य करता है।
  • किसी ऐसी शिकायत पर विचार करना जिस पर कार्यवाही का कारण राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ हो।

(2) उपभोक्ता के हितों के संरक्षण एवं प्रवर्तन में उपभोक्ता संगठन एवं NGOs अर्थात् गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका-

  • उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के सम्बन्ध में शिक्षित करना।
  • उपभोक्ता को समस्याओं से अवगत कराना, कानूनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना। राहत तथा हित में कार्यों के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करने के लिए पाक्षिक एवं अन्य प्रकाशनों का प्रकाशन करना।
  • प्रतियोगी ब्रांड के गुणों की तुलनात्मक जाँच के लिए प्रमाणित प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों की जाँच करना तथा उपभोक्ताओं के फायदे के लिए इनके परिणामों को प्रकाशित करना।
  • बेईमान, शोषणकर्ता एवं अनुचित व्यापारिक व्यवहार करने वाले व्यापारियों का प्रतिवाद करना तथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने के लिए उपभोक्ताओं को जागरूक करना।
  • उपभोक्ताओं को उपभोक्ता अदालतों में कानूनी . सलाह देना।
  • उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराना।
  • उपभोक्ता अदालत में किसी व्यक्ति के हित में नहीं बल्कि जन साधारण के हित में मुकदमा करने में पहल करना।

प्रश्न 9. 
जिला मंच, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण 1

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Last Updated on July 2, 2022, 4:55 p.m.
Published July 2, 2022