Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 10 वित्तीय बाजार Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
ट्रेजरी बिल क्या है?
उत्तर:
ट्रेजरी (राजकोष) बिल एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले भारत सरकार के द्वारा ऋणदान के रूप में दिया जाने वाला एक लघुकालिक प्रपत्र होता है। उन्हें शून्य कूपन बंधपत्र भी कहा जाता है एवं भारतीय रिजर्व बैंक जारी करता है।
प्रश्न 2.
एन.एस.ई. के खंडों का नाम दें।
उत्तर:
प्रश्न 3.
कोई दो कारण बताएँ कि जनता का निवेश क्यों शेयर बाजार में एक सुरक्षित और निष्पक्ष सौदे की उम्मीद कर सकता है।
उत्तर:
निम्न कारणों से जनता का निवेश शेयर बाजार में एक सुरक्षित और निष्पक्ष सौदे की उम्मीद कर सकता है-
प्रश्न 4.
लाभार्थी स्वामी खाते के लिए आम नाम क्या है, जिसे निवेशकों द्वारा प्रतिभूतियों में व्यापार के लिए खोला जाता है?
उत्तर:
लाभार्थी स्वामी खाते के लिए डी-मैट खाता आम नाम है, जिसे निवेशकों द्वारा प्रतिभूतियों में व्यापार के लिए खोला जाता है।
प्रश्न 5.
क्लाइंट पंजीकरण फॉर्म भरते समय निवेशक द्वारा ब्रोकर को प्रदान किए जाने वाले किन्हीं दो विवरण का नाम दें।
उत्तर:
क्लाइंट पंजीकरण फॉर्म भरते समय निवेशक द्वारा ब्रोकर को प्रदान किये जाने वाले दो विवरण पैन नम्बर एवं जन्मतिथि व पता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
वित्तीय बाजार के कार्य क्या हैं?
उत्तर:
वित्तीय बाजार के कार्य
1. बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें अधिकाधिक उत्पादक उपभोग में सरणित करना- वित्त बाजार बचतकर्ताओं की बचत को निवेशकों तक हस्तान्तरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। ये बचतकर्ता को विभिन्न निवेशकों का चुनाव करने का विकल्प देते हैं और इस प्रकार से अधिशेष विधियों को सर्वाधिक उपयोग में सरणित करने में मदद करता है।
2. मूल्य खोज को सुसाध्य बनाना- माँग एवं आपूर्ति की ताकतें बाजार में किसी सामान या सेवा की एक कीमत स्थापित करने में मदद करती हैं। वित्त बाजार में भी घराने (हाउसहोल्ड) निधियों के आपूर्तिकर्ता तथा व्यावसायिक फर्म मांग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों के बीच परस्पर क्रिया उस वित्तीय परिसम्पत्ति की कीमत या मूल्य क्रय करने में मदद करती है जिसका उस विशिष्ट बाजार में व्यापार किया जाता है।
3. वित्तीय परिसम्पत्तियों हेतु द्रवता उपलब्ध कराना-वित्तीय बाजार एक वित्तीय परिसम्पत्ति को आसानी से बेचने व खरीदने के लिए एक स्थान उपलब्ध कराता है। ऐसा करते हुए वे वित्तीय परिसम्पत्तियों को द्रवता प्रदान करते हैं।
4. लेन-देन की लागत को कम करना-वित्तीय बाजार एक वित्तीय परिसम्पत्ति के क्रय एवं विक्रय में खरीदने तथा बेचने वाले दोनों ही के समय, प्रयासों एवं धन को बचाता है अन्यथा उन्हें प्रयास करने व खोजने पर खर्चा करना पड़ता।
प्रश्न 2.
'मनी मार्केट अनिवार्य रूप से अल्पावधि फंड के लिए एक बाजार है।''चर्चा करें।
उत्तर:
मुद्रा बाजार एक छोटी अवधि की निधियों का बाजार है जो ऐसे द्रव्य सम्पत्तियों के निपटान करता है जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक होती है। ये परिसम्पत्तियाँ द्रव्य के लिए निकट विकल्प होती हैं। यह ऐसा बाजार है जहाँ कम जोखिम, आरक्षित तथा अल्पकालीन ऋण प्रपत्र होते हैं जो उच्च तरल दैनिक निर्गमित तथा सक्रिय व्यापार योग्य होते हैं। इनकी कोई भौतिक स्थानिकता नहीं होती है परन्तु यह ऐसी क्रियाविधि है जो टेलीफोन व इण्टरनेट के माध्यम से सम्पादित की जाती है। ये अस्थायी रोकड़ की कमी एवं देनदारियों के निपटाने की जरूरतों को पूरा करने हेतु अल्पकालिक निधि उगाहने में सक्षम होते हैं तथा आम वापसी के लिए अधिक या अतिरिक्त निधियों के अस्थायी फैलाव के लिए उपयुक्त होते हैं। बाजार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, कॉमर्शियल बैंक, गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, वृहद् औद्योगिक घराने तथा म्युचुअल फण्ड आदि हैं।
प्रश्न 3.
पूँजी बाजार और मनी मार्केट के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूँजी बाजार तथा मुद्रा बाजार में अन्तर-
1. भाग लेने वाला-पूँजी बाजार में भाग लेने वाले वित्तीय संस्थान, बैंक, निर्गमित इकाइयाँ, विदेशी निवेशक एवं जनता में से साधारण फुटकर विनियोजक हैं, जबकि मुद्रा बाजार में अधिकांश भाग लेने वाले भारतीय रिजर्व बैंक, वित्तीय संस्थान एवं वित्तीय कम्पनियों जैसे संस्थान हैं।
2. प्रलेख-पूँजी बाजार में समता अंश, ऋण पत्र, बांड्स, पूर्वाधिकार अंश इत्यादि प्रलेखों में लेन-देन किया जाता है, जबकि मुद्रा बाजार में लघु अवधि ऋण प्रपत्र जैसे ट्रेजरी बिल, व्यापार बिल, वाणिज्य पेपर एवं जमा प्रमाण-पत्र आदि में लेन-देन किया जाता है।
3.निवेश राशि-पूँजी बाजार में प्रतिभूतियों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में वित्त का होना आवश्यक नहीं है। प्रतिभूतियों की इकाइयों का मूल्य साधारणतया कम ही होता है, जबकि पूँजी बाजार में इसके विपरीत स्थिति होती है।
4. अवधि-पूँजी बाजार में दीर्घ अवधि एवं मध्य अवधि की प्रतिभूतियों के सौदे होते हैं-जैसे समता अंश एवं ऋण पत्र जबकि मुद्रा बाजार में प्रपत्र अधिकतम एक वर्ष के होते हैं, कभी-कभी. तो एक दिन के लिए भी जारी किये जाते हैं।
5. तरलता-पूँजी बाजार की प्रतिभूतियों को तरल निवेश माना जाता है; क्योंकि इनका स्टॉक एक्सचेंज में क्रय-विक्रय हो सकता है, जबकि मुद्रा बाजार प्रपत्र अधिक तरल होते हैं, क्योंकि इसके लिए औपचारिक व्यवस्था की हुई होती है।
6. सुरक्षा-पूँजी बाजार में प्रपत्रों के मूल्य की .. वापसी एवं उन पर प्रतिफल दोनों का जोखिम है, जबकि मुद्रा बाजार कहीं अधिक सुरक्षित है। इसमें गड़बड़ी की सम्भावना न्यूनतम है।
7. सम्भावित प्रतिफल-पूँजी बाजार में विनियोजित राशि पर नियोजकों को मुद्रा बाजार की तुलना में अधिक ऊँची दर में प्रत्याय मिलता है। .
प्रश्न 4.
पूँजी बाजार के क्या काम हैं?
उत्तर:
पूँजी बाजार के प्रकार्य
प्रश्न 5.
सेबी के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
सेबी (SEBI) के उद्देश्य-
प्रश्न 6.
एन.एस.ई. के उद्देश्यों को बताएँ।
उत्तर:
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के उद्देश्य-
प्रश्न 7.
प्रतिभूतियों के ऑनलाइन व्यापार की प्रक्रिया में तैयार किए जाने वाले दस्तावेज का नाम दें जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य हो और निवेशक व दलाल के बीच विवादों/दावों को सुलझाने में मदद करता हो।
उत्तर:
प्रतिभूतियों के ऑनलाइन व्यापार की प्रक्रिया में तैयार किये जाने वाला दस्तावेज व्यापारिक खाता है जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य है और निवेशक व दलाल के बीच विवादों/दावों को सुलझाने में मदद करता है।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
विभिन्न मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स की व्याख्या करें।
उत्तर:
विभिन्न मनी मार्केट इंस्ट्रमेंट्स-
1. राजकोष बिल ( ट्रेजरी बिल)-राजकोष बिल मूलतः एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाले _भारत सरकार के द्वारा ऋणदान के रूप में दिया जाने वाला एक लघुकालिक प्रपत्र होता है। इन्हें शून्य कूपन बंधपत्र भी कहा जाता है। इन्हें केन्द्रीय सरकार के पक्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निधि की लघुकालिक जरूरतों के लिए जारी किया जाता है। ये राजकोष बिल एक वचनपत्र के स्वरूप में जारी किये जाते हैं। ये उच्च तरल तथा सुनिश्चित वापसी माल लक्ष्य प्राप्ति युक्त तथा अदायगी के जोखिम से नगण्य होते हैं। ये अंकित मूल्य से कम मूल्य पर जारी किये जाते हैं और इनका भुगतान उसके बराबर तक किया जाता है। राजकोष बिल 25 हजार रुपये के न्यूनतम मूल्य और इसके बाद बहुगुणन में प्राप्त होता है।
2. वाणिज्यिक पत्र-वाणिज्यिक पत्र एक अल्पकालिक आरक्षित वचनपत्र होता है, जो बेचान के द्वारा हस्तान्तरणीय एवं परक्राम्य (बेचनीय) है तथा परिपक्व अवधि के बाद एक सुनिश्चित (स्थिर) आन्तरण (हस्तान्तरण) या सुपुर्दगी होती है। ये बड़ी एवं उधार पात्रता कम्पनियों के द्वारा अल्पकालिक बाजार दर से कम दर पर निधि (पूँजी) उगाहने के लिए जारी किये जाते हैं। इनकी परिपक्वता अवधि सामान्यत: 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक होती है। वाणिज्यिक पत्र को बट्टे के साथ बेचा एवं सममूल्य पर मोचित किया जाता है। इनको जारी करने का उद्देश्य अल्पकालिक मौसमी एवं कार्यपूंजी की जरूरतों हेतु निधि उपलब्ध कराना था। कम्पनियाँ इस प्रपत्र को सेतु वित्तीयता (ब्रिजोफाइनेन्स) जैसे उद्देश्य के लिए उपयोग करती हैं।
3. शीघ्रावधि द्रव्य-यह एक लघुकालिक माँग पर पुनर्भुगतान वित्त है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है तथा अन्तर बैंक अन्तरण के लिए उपयोग किया जाता है। वाणिज्यिक बैंकों को एक न्यूनतम रोकड़ शेष अनुरक्षित करना होता है। जिसे रोकड़/नकदी आरक्षण या नकदी रिजर्व अनुपात कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर नकदी रिजर्व अनुपात परिवर्तित करता रहता है जो बाद में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों की उपलब्ध निधियों को प्रभावित करता है। शीघ्रावधि द्रव्य वह उपाय है जिसके द्वारा एक दूसरे से नकदी उधार लेकर नकदी आरक्षण अनुपात अनुरक्षित रखने में सक्षम होते हैं। शीघ्रावधि ऋण पर चुकाया जाने वाले ब्याज को शीघ्रावधि दर के नाम से जाना जाता है। यह दर दिनप्रतिदिन और कभी-कभी घण्टों के अनुसार बदलती है। शीघ्रावधि द्रव्य में वृद्धि अन्य स्रोतों से वित्त जैसे वाणिज्यिक पत्रों या बचत प्रमाणपत्रों से जुटाते हैं।
4. बचत प्रमाणपत्र बचत प्रमाणपत्र (सी.डी.) आरक्षित, पारक्रम्य (बेचनीय), धारक रूप में अल्पकालिक प्रपत्र आदि वाणिज्यिक बैंकों तथा विकास वित्त संस्थानों द्वारा जारी किये जाते हैं। ये वैयक्तिक रूप से उद्यमों/निगमों तथा कम्पनियों को उनकी कठिन द्रवता की अवधि के दौरान तब जारी किये जा सकते हैं जब बैंकों में बचत दर कम हो, लेकिन कर्ज के लिए माँग उच्च हो। यह अल्प अवधि के लिए भारी मात्रा में द्रव्य संचारित करने में सहायक होते हैं।
5. वाणिज्यिक बिल-यह विनिमय का एक बिल है, जो व्यावसायिक फर्मों की कार्य पूँजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। यह एक अल्पकालिक, पारक्रम्य (बेचनीय) स्वयं द्रवीकृत प्रपत्र है जो एक फर्म की उधार बिक्री को वित्तीयन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जब माल उधार पर बेचा जाता है तब खरीददार देनदार बन जाता है जिसे भविष्य में एक निश्चित तिथि पर भुगतान करना है। विक्रेता उस विशिष्ट या निश्चित तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है या विनिमय के एक बिल का उपयोग करे। माल का विक्रेता बिल का आहरण करता है और खरीददार (अदाकर्ता/आदेशिती) इसे स्वीकार करता है। स्वीकार किये जाने पर यह बिल एक विक्रय (मार्केटबल) प्रपत्र बन जाता है और इसे व्यापारिक बिल कहा जाता है। यदि विक्रेता को बिल के परिपक्व होने से पहले निधियों की जरूरत पड़ती है तो एक बैंक द्वारा ये बिल बट्टा कटाकर लिये जा सकते हैं। जब एक व्यापारिक बिल बैंक द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो इसे एक वाणिज्यिक बिल के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2.
भारत में हालिया पूँजी बाजार सुधारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में पूँजी बाजार के सुधार कुछ वर्षों पहले तक पूँजी बाजार अर्थात् शेयर बाजार में व्यापार एक सार्वजनिक चिल्लाहट (शोर मचाकर) या नीलामी प्रणाली के द्वारा किया जाता था किन्तु अब इसकी जगह ऑनलाइन स्क्रीन आधारित इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली ने ले ली है। अब लगभग सभी शेयर बाजार इलेक्ट्रॉनिक बन गये हैं। इसीलिए अब शेयर बाजार के पटल से ब्रोकर्स (दलालों) के कार्यालयों में स्थानान्तरित हो गये हैं जहाँ पर समूचा व्यापार कम्प्यूटर के माध्यम से सम्पन्न होता है। पहले दलाल शेयर बाजार द्वारा स्वीकृत (स्वामित्व), नियन्त्रित तथा प्रबन्धित होते थे। दलालों द्वारा शेयर बाजारों के स्वामित्व एवं प्रबन्धन प्रायः दलालों और उनके ग्राहकों के बीच हितों के झगड़े का रूप ले लेता था। फलतः डिम्युचुअलाइजेशन (सह-पारस्परिकता) की नींव पड़ी। डिम्युचुअलाइजेशन स्वामित्व को अलग करती है और सदस्यों के व्यापार अधिकारों से शेयर बाजार को नियन्त्रित करते हैं। यह शेयर बजार एवं दलालों के बीच परस्पर झगड़ों को घटाता है और निजी लाभ हेतु दलालों द्वारा शेयर बाजार के इस्तेमाल को भी घटाता है।
शेयर बाजार में किसी भी कम्पनी की प्रतिभूतियाँ तभी व्यापार में आ सकती हैं, जब वे वहाँ सूचीबद्ध' या 'भावबद्ध' या 'कोटेड' हों। कम्पनी को अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कर पाने के लिए एक कठोर सेट पत्रों को भरना होता है। यह सनिश्चित करता है कि इसके बाद अंशधारियों के हितों को औचित्यपूर्ण ढंग से देखा गया है। शेयर बाजार में लेन-देन या तो नकदी आधार पर या आगे ले जाना आधार पर किया जाता है। पूँजी बाजार में व्याप्त कुरीतियों, निवेशकों के बढ़ते अविश्वास तथा निवेशकों की बढ़ती शिकायतों की स्थिति से निपटने के लिए तथा पूँजी बाजार के वातावरण में पारदर्शिता लाने के लिए व निवेशकों का विश्वास लौटाने के लिए केन्द्रीय सरकार ने 'सेबी' का निर्माण 1988 में किया। इसे पूर्ण स्वायत्तता 30 जनवरी, 1992 को प्रदान की गई। अब डिम्युचुअलाइजेशन के अन्तर्गत स्टॉक एक्सचेन्ज के प्रबन्ध तथा नियन्त्रण को पृथक् हाथों में दिया गया। अंश प्रमाणपत्रों के खोने, फटने अथवा हस्तान्तरण प्रक्रिया में होने वाली देरी को दूर करने के लिए 'डी मेटरलाइजेशन ऑफ सिक्यूरिटिज' किया गया।
भारत में आज स्टॉक एक्सचेंजों के प्रभावी नियमन करने में कम्पनी मामलों का विभाग, आर्थिक मामलों का विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक तथा सेबी महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
देश में आज दो डिपोजिटरीज हैं जिनमें कम्पनियों की प्रतिभूतियों को अभौतिक रूप में परिवर्तित करवाया जा सकता है।
एन.एस.ई. तथा बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर डेरिवेटिव का कारोबार होता है। आज देश में 132 प्रतिभूति प्रबन्धक (Portfolio Managers) पंजीकृत हैं, जो निवेशकों को धन के निवेश में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता कर रहे हैं।
देश में 130 पंजीकृत मर्चेण्ट बैंकर्स हैं जो प्रतिभूतियों के निर्गमन में कम्पनियों की सहायता कर रहे हैं। 57 पंजीकृत अभिगोपक हैं जो कम्पनियों की प्रतिभूतियों के अभिगोपन का कार्य कर रहे हैं। भारत में अब 80 भारतीय साहस पूँजीकोष (Indian Venture Capital Funds) पंजीकृत हैं जो नये साहसियों को कम्पनियाँ स्थापित करने में वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। देश में अब T+2 का रोलिंग सैटलमेन्ट लाग है। अतः निवेशकों को सौदा करने के दिन से अगले दो दिनों बाद विक्रय राशि या प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी प्राप्त हो सकती है। T+1 रोलिंग सैटलमेन्ट भी शीघ्र लागू होने की सम्भावना है।
अब भारत में वीसैट (VSAT) टेक्नोलॉजी से 266 शहरों में काम होता है। इन शहरों में कुल 2,737 वीसैट लगे हुए हैं। अब राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज कई प्रकार से सूचकांकों का प्रकाशन कर रहे हैं। इनमें बी.एस.ई. का 'सैन्सेक्स' तथा एन.एस.ई. को निफ्टी सबसे अधिक प्रचारित एवं मान्यता प्राप्त है।
विगत कुछ वर्षों से पूँजी बाजार में प्रमाण-पत्र विहीन व्यापार शुरू हो चुका है। ओटीसी एक्सचेंज तो पत्र या प्रमाणपत्र विहीन या प्रलेख विहीन, परिधि रहित इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज है जिसमें सतत संचार माध्यमों से प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय की राष्ट्रव्यापी व्यवस्था संचालित की जाती है।
प्रश्न 3.
सेबी के उद्देश्यों और कार्यों की व्याख्या करें।
अथवा
सेबी के कार्यों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
सेबी (SEBI) के उद्देश्य-भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 अप्रैल, 1988 को एक आन्तरिक प्रशासनिक निकाय के रूप में की गई थी। 30 जनवरी, 1992 को सेबी को एक अध्यादेश द्वारा भारत सरकार ने एक वैधानिक निकाय का दर्जा दिया।
सेबी का मूल उद्देश्य एक ऐसे पर्यावरण को पैदा करना है जो प्रतिभूति बाजारों के माध्यम से संसाधनों को नियोजन एवं सक्षम गतिशीता को सुसाध्य बनाये। साथ ही इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को उत्प्रेरित करना तथा नवाचारों को प्रोत्साहित करना है। कुल मिलाकर इसका उद्देश्य निवेशकों के हितों को संरक्षित करना तथा उनके विकास को प्रोत्साहित करना तथा प्रतिभूति बाजार को विनियमित करना है। संक्षेप में, सेबी के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
सेबी के कार्य-भारत में प्रतिभूति बाजार के विस्तार को देखते हुए सेबी को विनियमन तथा प्रतिभूति बाजार का विकास दोनों कार्यों की सुपुर्दगी सौंपी गई थी। सेबी के प्रमुख नियमनकर्ता कार्य (कर्त्तव्य) निम्नलिखित हैं-
विकास कार्य (कर्तव्य)-
सुरक्षात्मक कार्य-
प्रश्न 4.
भारत के सबसे बड़े घरेलू निवेशक भारतीय जीवन बीमा निगम ने एक बार फिर सरकार के बचाव में आते हुए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की ₹ 4,200 करोड़ के 70. प्रतिशत प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव लिए है-
(i) उपरोक्त मामले में कौन-सा बाजार प्रतिबिम्बित होता है?
(ii) उपरोक्त प्रतिबिम्बित बाजार में प्रवर्तन (फ्लोटेशन) की कौन-सी विधि को दर्शाया गया है? ( प्राथमिक बाजार) ......
(iii) प्रवर्तन (फ्लोटेशन) के किन्हीं दो अन्य तरीकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
(i) उपरोक्त मामले में प्राथमिक बाजार प्रतिबिम्बित होता है।
(ii) उपरोक्त प्रतिबिम्बित बाजार में प्रवर्तन (फ्लोटेशन) की इलेक्ट्रॉनिक आरम्भिक सार्वजनिक निर्गम (ई-आई.पी.ओज.) विधि को दर्शाया गया है।
(iii) प्रवर्तन (फ्लोटेशन) के दो अन्य तरीके निम्नलिखित हैं-
1. विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव- विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव प्राथमिक बाजार में सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निधि उगाहने की एक सर्वाधिक लोकप्रिय विधि है। इसके अंतर्गत विवरण पत्रिका जारी करने के माध्यम से जनता से अंशदान आमंत्रित करते हैं। एक विवरण पत्रिका पूँजी उगाहने के लिए निवेशकों से प्रत्यक्ष अपील करती है जिसके लिए अखबारों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से विज्ञापन जारी किए जाते हैं। यह निर्गमन हामीदारी (जोखिम अकंन) और कम से कम एक शेयर बाजार में सूचीबद्ध किए जाने की अपेक्षा रखने वाला हो सकता है। विवरण पत्रिका की विषयवस्तु कंपनी अधिनियम तथा सेबी के प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए तथा सेबी की प्रकटन एवं निवेश संरक्षा मार्गदर्शियों से युक्त होना चाहिए।
2. विक्रय के लिए प्रस्ताव-इस विधि के अंतर्गत प्रतिभूतियों को सीधे जनता से नहीं निर्गमित किया जाता है, बल्कि निर्गमन/जारीकर्ता गृहों या स्टॉक दलाल (ब्रोकर्स) जैसे माध्यकों के द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तावित किए जाते हैं। इस मामले में प्रभूतियों को एक कंपनी उन ब्रोकर्स को सहमति मूल्य पर खंडों में बेचती है जो आगे इन्हें निवेशक जनता में पुनः विक्रय कर सके।
प्रश्न 5.
ललिता अपने ब्रोकर कुशविंदर के माध्यम से अकबर एंटरप्राइजेज के शेयर खरीदना चाहती है। उसके पास प्रतिभूति बाजार में नकदी लेनदेन के लिए एक डीमैट खाता और बैंक खाता है। इस मामले में प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री के लिए स्क्रीन-आधारित व्यापार में शामिल चरणों के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री के लिए स्क्रीन-आधारित व्यापार में शामिल चरण निम्नलिखित हैं-
1. यदि कोई निवेशक कोई प्रतिभूति खरीदना अथवा बेचना चाहता है तो उसे एक दलाल अथवा उपदलाल से एक समझौता (एग्रीमैंट) करना होगा। प्रतिभूतियों के क्रय तथा विक्रय का आदेश देने से पूर्व एक निवेशक को 'दलाल-ग्राहक समझौते' तथा 'ग्राहक-पंजीकरण फार्म' पर हस्ताक्षर करने होते हैं। उसे कुछ विशिष्ट अन्य विवरण तथा जानकारी भी उपलब्ध करानी होती है। इसमें सम्मिलित हैं-
तत्पश्चात् दलाल, निवेशक के नाम से व्यापारिक खाता खोलता है।
2. विभौतिकीय (डीमैट) रूप में प्रतिभूतियों को रखने तथा स्थानांतरित करने हेतु निवेशक को डिपोजिटरी प्रतिभागी के पास एक 'डीमैट खाता' अथवा 'लाभप्रद स्वामी खाता' खोलना होता है। प्रतिभूति बाजार में रोकड़ लेन-देन हेतु उसे एक 'बैंक खाता' भी खोलना होता है।
3. तत्पश्चात् अंशों के क्रय अथवा विक्रय हेतु निवेशक दलाल को आदेश देता है। अंशों की संख्या तथा मूल्य, जिस पर अंश खरीदे अथवा बेचे जाने हैं, के बारे में स्पष्ट अनुदेश दिए जाने चाहिए। तब दलाल अनुदेशित मूल्य अथवा सर्वोत्तम उपलब्ध मूल्य पर लेन-देन का आदेश प्राप्त कर लेता है। दलाल निवेशक को आदेश पुष्टि पर्ची जारी कर देता है।
4. जब दलाल स्वमार्ग (ऑनलाइन) पर शेयर बाजार से संपर्क स्थापित करता है तथा अंश व सर्वोत्तम उपलब्ध मूल्य का मिलान करता है।
5. तब अंश उल्लेखित मूल्य पर क्रय अथवा विक्रय हो जाते हैं तो इसकी सूचना दलाल के टर्मिनल पर पहुँच जाती है और आदेश इलैक्ट्रॉनिक रूप से निष्पादित हो जाता है। तब दलाल निवेशक को लेन-देन पुष्टि पर्ची जारी कर देता है।
6. लेन-देन निष्पादित होने के 24 घंटे के भीतर दलाल एक संविदा नोट (कॉन्ट्रैक्ट नोट) जारी कर देता है। इस नोट में खरीदे अथवा बेचे गए अंशों की संख्या, लेन-देन की तिथि तथा समय एवं दलाली व्ययों का विवरण आदि सम्मिलित होता है। शेयर बाजार द्वारा प्रत्येक लेन-देन को एक अनन्य आदेश कोड (यूनिक ऑर्डर कोड) नियत किया जाता है और इसे संविदा नोट पर छापा जाता है।
7. अब, निवेशक बेचे गए अंशों की सुपुर्दगी देगा अथवा खरीदे गए अंशों हेतु रोकड़ का भुगतान करेगा। यह संविदा नोट की प्राप्ति के तुरंत बाद अथवा दलाल द्वारा शेयर बाजार को भुगतान अथवा अंशों की सुपुर्दगी किए जाने वाले दिन से पूर्व कर देना चाहिए। इसे जमा-'.. दिवस (पे-इन-डे) कहा जाता है।
8. जमा-दिवस पर रोकड़ का भुगतान अथवा प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी की जाती है, इसे T+2 वाले दिन से पूर्व किया जाता है क्योंकि T+2 वाले दिन सौदे का पूर्ण रूप से निपटान कर दिया जाता है। 1 अप्रैल, 2003 से निपटान चक्र T+2 वाले दिन को चल निपटान आधार पर लागू है।
9. T+2 वाले दिन शेयर बाजार दूसरे दलाल को अंश सुपुर्द अथवा राशि का भुगतान कर देगा। इसे भुगतान दिवस (पे-आउट-डे) कहा जाता है। दलाल द्वारा निवेशक को भुगतान दिवस के 24 घंटे के भीतर भुगतान करना होता है क्योंकि शेयर बाजार से वह भुगतान पहले ही प्राप्त कर चुका होता है।
10. दलाल निवेशक के डी-मैट खाते में अंशों की सुपुर्दगी डी-मैट रूप में प्रत्यक्ष रूप से कर सकता है, निवेशक को अपने डी-मैट खाते का विवरण देना होता है तथा अपने डिपोजटरी प्रतिभागी को यह अनुदेश देना होता है कि वह उसके लाभप्रद स्वामी खाते में प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी प्राप्त कर ले।