Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 14 पादप में श्वसन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
इनमें अंतर करिए
(अ) साँस (श्वसन) और दहन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र
(स) ऑक्सी श्वसन तथा किण्वन।
उत्तर:
(अ) श्वसन और दहन में अन्तर:
श्वसन (Respiration) |
दहन (Combustion) |
1. यह एक जैविक क्रिया है। |
1. यह एक भौतिक क्रिया है। |
2. यह जीवन का लक्षण है। |
2. यह जीव से सम्बन्धित नहीं है। |
3. इस क्रिया में ऊर्जा धीरे - धीरे करके निकलती है। |
3. ऊर्जा अचानक निकलती है। |
4. तापमान में बहुत कम वृद्धि होती है। |
4. तापमान में अत्यधिक वृद्धि होती है। |
5. ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है। |
5. ऊर्जा ऊष्मा या प्रकाश के रूप में निकल जाती है। |
6. सम्पूर्ण क्रिया विभिन्न स्तर पर विभिन्न विकरों (enzymes) द्वारा नियंत्रित होती है। |
6. सम्पूर्ण क्रिया में किसी विकर की आवश्यकता नहीं होती है। |
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा केब्स चक्र में अन्तर
ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) |
केब्स चक्र (Kreb'seycle) |
1. यह कोशिका द्रव्य में सम्पन्न होती है। इसमें O2 की आवश्यकता नहीं होती। |
1. माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में होता है। इसमें O2 की आवश्यकता होती है। |
2. यह क्रिया वायुवीय तथा अवायुवीय श्वसन में होती है। |
2. केवल वायुवीय श्वसन में होता है। |
3. इसका अन्तिम उत्पाद पाइरुविक अम्ल होता है। |
3. CO2 व H2O होता है। |
4. इसमें 2 ATP अणुओं का उपयोग, 2 ATP का शुद्ध लाभ व 2 NADH प्राप्त होते हैं। |
4. 30 APP अणुओं का निर्माण होता है तथा ग्लाइकोलिसिस से प्राप्त 2 NADH से 6 ATP बनते हैं, कुल 36 ATP बनते हैं। |
(स) ऑक्सी श्वसन तथा किण्वन में अंतर
ऑक्सी श्वसन ( Aerobic Respiration) |
किण्वन (Fermentation) |
1. यह O2 की उपस्थिति में होती है। |
इसमें O2 की आवश्यकता नहीं होती है। |
2. यह क्रिया केवल सजीव कोशिकाओं में ही होती है। |
यह सजीवों में नहीं होती है परन्तु इसके लिये श्वसन पदार्थ, सूक्ष्म जीव कवक या एंजाइम का होना आवश्यक है। |
3. इसमें पूर्ण ऑक्सीकरण होने पर CO2 तथा जल बनता है। |
अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा ऐल्कोहॉल व अन्य कार्बनिक अम्ल श्वसन पदार्थ के अनुरूप बनते हैं। |
4. अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। |
बहुत कम ऊर्जा मुक्त होती है। |
प्रश्न 2.
श्वसनीय क्रियाधार क्या है? सर्वाधिक साधारण क्रियाधार का नाम बताइए।
उत्तर:
श्वसन प्रक्रिया में जिस यौगिक का ऑक्सीकरण होता है उसे श्वसनी क्रियाधार कहते हैं। सर्वाधिक साधारण क्रियाधार कार्बोहाइड्रेट होता है जो उपयोग में आने से पूर्व ग्लूकोज में परिवर्तित होते हैं। कार्बोहाइड्रेट की अनुपस्थिति में वसा तथा प्रोटीन भी क्रियाधार होते हैं। वसा सर्वप्रथम वसा अम्ल व ग्लिसरोल में परिवर्तित होते हैं। प्रोटीन, अमीनो अम्ल में परिवर्तित होने पर उपयोग में आते हैं।
प्रश्न 3.
ग्लाइकोलिसिस को रेखाचित्र द्वारा बताइए।
उत्तर:
ग्लाइकोलिसिस का रेखाचित्र
प्रश्न 4.
ऑक्सी श्वसन के मुख्य चरण कौन - कौनसे हैं? यह कहाँ सम्पन्न होती है?
उत्तर:
ऑक्सी श्वसन के दो मुख्य चरण - ग्लाइकोलिसिस तथा केब्स चक्र होते हैं। ग्लाइकोलिसिस कोशिका के कोशिकाद्रव्य में होती है तथा इसमें O2 की आवश्यकता नहीं होती है जबकि केब्स चक्र माइटोकॉड्रिया में होती है तथा इसमें O2 की आवश्यकता होती है।
ग्लाइकोलिसिस ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन दोनों में ही समान प्रकार से होता है। ग्लाइकोलिसिस के अन्तर्गत 6 कार्बन शर्करा के एक अणु से 3 कार्बनयुक्त पाइरुविक अम्ल के दो अणुओं का उत्पादन होता है। ग्लाइकोलिसिस के अन्त में दो ATP अणुओं का शुद्ध उत्पादन भी होता है।
ये पाइरुविक अम्ल के अणु केब्स चक्र के अन्तर्गत माइटोकॉण्डिया में प्रवेश करते हैं। एसिटाइल Co.A के निर्माण की अभिक्रियाएँ ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र के मध्य एक योजक कड़ी है। एसिटाइल Co.A क्रेब्स चक्र के अन्तर्गत जाता है। इसमें पूर्ण ऑक्सीकरण होने से अन्त में CO2 व H2O बनते हैं तथा 38 ATP अणुओं का निर्माण होता है।
प्रश्न 5.
क्रेब्स चक्र का समग्न रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर:
केब्स चक्र का समग्र रेखाचित्र
प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्वसन प्रक्रिया के दौरान बने NADH + H+ तथा FADH2 में संचित ऊर्जा को मुक्त कर उसे उपयोग में लाया जाता है। यह प्रक्रिया इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र द्वारा सम्पन्न होती है। इसमें ऊर्जा जब मुक्त होती है जब उनका ऑक्सीकरण इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र द्वारा होता है तथा इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन पर चला जाता है तथा जल का निर्माण होता है। उपापचयी पथ जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉन एक वाहक से अन्य वाहक की ओर गुजरता है इसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र (Electron transfer system = ETS) कहते हैं, जो माइटोकोण्ड्रिया की भीतरी झिल्ली पर सम्पन्न होता है। माइटोकोण्ड्रिया के आधात्री TCA चक्र (क्रेब्स चक्र) के दौरान NADH से बनने वाले इलेक्ट्रॉन, एंजाइम NADH डिहाइड्रोजिनेस द्वारा ऑक्सीकृत होता है (Complex - I), तत्पश्चात् इलेक्ट्रॉन भीतरी झिल्ली में उपस्थित यूबीक्विनोन की ओर स्थानांतरित होता है। यूबीक्विनोन अपचयी समतुल्य FADH2 द्वारा प्राप्त करता है (Complex II) जो सिट्रिक अम्ल चक्र में सक्सीन के ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं। अपचयित यूबिक्विनोन (यूबिक्विनोल) इलेक्ट्रान को साइटोक्रोम bc1, साइटोक्रोम c की ओर स्थानांतरित कर ऑक्सीकृत हो जाता है (Complex III)। साइटोक्रोम c एक छोटा प्रोटीन है जो भीतरी झिल्ली की बाहरी सतह पर चिपका होता है जो इलेक्ट्रॉन को Complex III तथा Complex IV के बीच स्थानांतरण का कार्य गतिशील वाहक के रूप में करता है। Complex IV साइटोक्रोम cऑक्सीडेज कॉम्पलेक्स है, जिसमें साइटोक्रोम a, a तथा दो तांबा केन्द्र मिलते हैं।
जब इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में एक वाहक से दूसरे वाहक तक Complex - I से Complex - IV द्वारा गुजरते हैं, तब ये ATP सिंथेज (Complex V) से युग्मित होकर ADP व अकार्बनिक फॉस्फेट से ATP का निर्माण करते हैं। इस दौरान संश्लेषित होने वाली ATP अणुओं की संख्या इलेक्ट्रॉन दाता पर निर्भर है। NADH के एक अणु के ऑक्सीकरण से ATP के तीन अणुओं का निर्माण होता है जबकि FADH2 का एक अणु से ATP के दो अणु बनते हैं जबकि श्वसन की ऑक्सी प्रक्रिया O2 की उपस्थिति में ही सम्पन्न होती है। प्रक्रिया के अंतिम चरण में O2 की भूमिका सीमित होती है। यद्यपि O2 की उपस्थिति अत्यावश्यक है; क्योंकि यह पूरे तंत्र में हाइड्रोजन को मुक्त कर पूरी प्रक्रिया को संचालित करती है। O2 अंतिम हाइड्रोजन ग्राही के रूप में कार्य करता है। प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण के विपरीत, जहाँ प्रोटीन प्रवणता के निर्माण में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग फॉस्फोरिलीकरण के लिये होता है, श्वसन में इसी प्रकार की प्रक्रिया में O2 अपचयन द्वारा ऊर्जा की पूर्ति होती है।
फलस्वरूप इस कारण से हुई क्रियाविधि को ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं।
इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र के दौरान मुक्त ऊर्जा का उपयोग ATP सिंथेज (Complex V) की सहायता से ATP के संश्लेषण में होता है। यह कॉम्पलेक्स, दो प्रमुख घटकों F0 व F1 से बनते हैं। F1 शीर्ष परिधीय झिल्ली प्रोटीन कॉम्पलेक्स है, जहाँ पर अकार्बनिक फॉस्फेट तथा ADP से ATP का संश्लेषण होता है। वैधुत रसायन प्रोटोन प्रवणता के फलस्वरूप 2H+ आयन अंतर झिल्ली अवकाश से F0 में होकर आधात्री की ओर गति करता है जिससे एक ATP का संश्लेषण होता है।
प्रश्न 7.
निम्न के मध्य अंतर कीजिए
(अ) ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन
(स) ग्लाइकोलिसिस तथा सिट्रिक अम्ल चक्र।
उत्तर:
(अ) ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन में अंतर
ऑक्सी श्वसन (Aerobic respiration) |
अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic respiration) |
1. यह सभी पादपों में सामान्य रूप से पाया जाता है। |
यह विरल रूप से पाया जाता है। कुछ प्रोकेरियोट्स में सामान्य रूप से पाया जाता है। |
2. यह पौधों में जीवनपर्यन्त चलता रहता है। |
यह पौधों में केवल अस्थायी रूप से असामान्य परिस्थितियों में ही होता है। |
3. इसके अन्तर्गत कर्जा अधिक मात्रा में (38ATP = 673 Kcal.) उत्पन्न होती है। |
ऊर्जा बहुत कम मात्रा में (2ATP = 50 Kcal) उत्पन्न होती है। |
4. इस क्रिया में O2 की उपस्थिति आवश्यक होती है। |
यह O2 की अनुपस्थिति में होती है। |
5. यह पौधों पर विषैला प्रभाव नहीं डालती है। |
यह पौधों पर विषाक्त प्रभाव डालती है। |
6. अन्तिम उत्पाद सदैव CO2 व जल होते हैं। |
अन्तिम उत्पाद इथाइल ऐल्कोहॉल व CO2 होते हैं। |
7. कार्बोहाइड्रेट्स का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। |
अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। |
8. यह कोशिकाद्रव्य (ग्लाइकोलिसिस) तथा माइटोकोण्ड्रिया (केब्स चक्र) में सम्पन्न होता है। |
यह पूर्णतः कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होता है। |
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन में अंतर
ग्लाइकोलिसिस (Givcolvsis) |
किण्वन (Fermentation) |
1. यह क्रिया सभी ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन दोनों में होती है। |
इसमें ग्लूकोज का आंशिक विघटन होता है। |
2. यह कोशिकाद्रव्य में होती है। इसमें ग्लूकोज के अणु से पाइरुविक अम्ल बनने के समय ATP के शुद्ध 2 अणु बनते हैं। |
यह क्रिया भी कोशिकाद्रव्य में तथा इसमें भी ग्लूकोज से पाइरुविक अम्ल बनने के समय ATP के शुद्ध 2 अणु बनते हैं। |
3. शर्करा आंशिक रूप से ऑक्सीकृत होकर पाइरुविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण करती है। |
किण्वन में NADH का NAD+ में ऑक्सीकरण मंद गति से होता है। |
(स) ग्लाइकोलिसिस एवं सिट्रिक अम्ल चक्र में अंतर
ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) |
सिट्रिक अम्ल चक्र (Citric acid cycle) |
1. ग्लाइकोलिसिस कोशिकाद्रव्य में होता है। |
माइटोकोण्ड्यिा के मेट्रिक्स में होता है। |
2. ऑक्सी तथा अनॉक्सीश्वसन दोनों में यह क्रिया होती है। |
यह केवल ऑक्सी श्वसन में होता है। |
3. इसमें (2ATP) अणुओं की खपत होती है। |
इसमें नहीं होती है। |
4. एक ग्लूकोस अणु से कुल 2ATP अणु उत्पन्न होते हैं। |
इसमें 2 - एसीटिल CO.A अणु से 2 GTP/ATP अणु उत्पन्न होते हैं। |
5. प्रत्येक ग्लूकोज का अणु (2 NADPH) देता है। |
2 - एसीटिल CO.A अणु से 6(NADPH) तथा (2 FADH2) अणु देता है। |
6. इसमें CO2 नहीं निकलती है। |
इसमें CO2 निकलती है। |
7. इसमें भाग लेने वाले सभी एन्जाइम सिस्टोल में पाये जाते हैं। |
दो एंजाइम माइटोकॉण्डिया की झिल्ली के आंतरिक भाग में तथा शेष मेट्रिक्स में स्थित होते हैं। |
8. एक रेखीय पथ होता है। |
यह चक्रीय पथ होता है। |
प्रश्न 8.
शुद्ध एटीपी के अणुओं की प्राप्ति की गणना के दौरान आप क्या कल्पनाएँ करते हैं?
उत्तर:
ATP अणुओं की प्राप्ति की कल्पनाएँ
वास्तव में सभी पथ का एक साथ कार्य करते हैं। पथ में क्रियाधार आवश्यकतानुसार अन्दर - बाहर आते - जाते रहते हैं। आवश्यकतानुसार ATP का उपयोग हो सकता है। एन्जाइम की क्रिया की दर विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है। श्वसन जीवन हेतु उपयोगी क्रिया है। जीव तन्त्र में ऊर्जा का संग्रहण तथा निष्कर्षण होता रहता है।
प्रश्न 9.
"श्वसनीय पथ एक ऍफीबोलिक पथ होता है।" इसकी चर्चा करें।
उत्तर:
श्वसन हेतु ग्लूकोज एक उपयुक्त व अनुकूल क्रियाधार (substrate) है। श्वसन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट का उपयोग होने से पहले ग्लूकोज में परिवर्तित होता है। कार्बोहाइड्रेट के अतिरिक्त अन्य क्रियाधार जैसे वसा व प्रोटीन का भी उपयोग होता है। जब श्वसनाधार वसा होती है तो यह सर्वप्रथम ग्लिसरोल तथा वसीय अम्ल में विघटित होती है। यदि वसीय अम्ल श्वसन हेतु उपयोग में आता है तो वह पहले एसीटाइल Co.A बनकर क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है। ग्लिसरॉल पहले फॉस्फोग्लिसरल्डिहाइड (PGAL) में परिवर्तित होकर श्वसन पथ में प्रवेश करता है। प्रोटीन क्रियाधार प्रोटिएज एंजाइम द्वारा विघटित होकर अमीनो अम्ल बनाकर श्वसन पथ में प्रवेश करता है।
वसीय अम्ल जब क्रियाधार के रूप में उपयोग में आते हैं तो श्वसनीय पथ में उपयोग में आने से पूर्व एसीटाइल Co.A में विखण्डित हो जाता है। जब जीवधारी को वसा अम्ल का संश्लेषण करना होता है तो श्वसनीय पथ एसीटाइल Co.A अलग हो जाता है। इसलिये वसा अम्ल के संश्लेषण तथा विखण्डन के दौरान श्वसनीय पथ का उपयोग होता है। इसी प्रकार से प्रोटीन के संश्लेषण व विखण्डन के दौरान भी होता है।
श्वसन के दौरान क्रियाधार टूटते हैं, अतः श्वसन एक अपचयी प्रक्रिया है। इस क्रिया में विघटन व संश्लेषण दोनों ही होते हैं। सजीवों में विघटन प्रक्रिया अपचय (catabolic) कहलाती है तथा संश्लेषण उपचय (anabolic) कहलाती है। अतः श्वसनी पथ में अपचय व उपचय दोनों ही क्रियाएँ होती हैं। इसलिए श्वसनी पथ को ऐंफीबोलिक पथ (amphibolic pathway) कहा जाता है।
प्रश्न 10.
साँस गुणांक को परिभाषित कीजिए। वसा के लिए इसका क्या मान है?
उत्तर:
ऑक्सी श्वसन के समय O2 का उपयोग होता है और CO2 निकलती है। श्वसन के दौरान मुक्त हुई CO2 तथा उपयोग में लाई गई O2 के अनुपात को श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient = R.Q.) कहते हैं।
वसाओं का श्वसन गुणांक सदैव एक से कम होता है। वसाओं में कार्बोहाइड्रेटों की तुलना में O2 की कम मात्रा होती है, अत: इनके ऑक्सीकरण हेतु बाहरी स्रोत से अधिक O2 की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त वसाओं का प्रायः सीधा ऑक्सीकरण नहीं होता है। प्रथम इनका जल अपघटन होकर वसीय अम्ल तथा ग्लिसरोल का निर्माण होता है, जिसमें भी कुछ O2 की मात्रा का प्रयोग होता है। अत: इन कारणों से वसाओं का मान एक से कम होता है।
RQ. = 102/145 = 0.70
प्रश्न 11.
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण क्या है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र में O2 अंतिम हाइड्रोजन ग्राही के रूप में कार्य करता है। प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण के विपरीत, जहां प्रोटीन प्रवणता के निर्माण में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग फॉस्फोरिलीकरण के लिये होता है, श्वसन में इसी प्रकार की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण अपचयन द्वारा ऊर्जा की पूर्ति होती है। फलस्वरूप इस कारण से हुई क्रियाविधि को ऑक्सीकारी - फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं।
प्रश्न 12.
साँस के प्रत्येक चरण में मुक्त होने वाली ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कोशिका के अंदर ऑक्सीकरण प्रक्रिया के समय श्वसनी क्रियाधार में स्थित सम्पूर्ण ऊर्जा कोशिका में एक साथ मुक्त नहीं होती है। यह एंजाइम द्वारा नियंत्रित चरणबद्ध धीमी अभिक्रियाओं के रूप में मुक्का होती है, जो रासायनिक ऊर्जा ATP के रूप में एकत्रित हो जाती है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि श्वसन में ऑक्सीकरण द्वारा निकलने वाली ऊर्जा सीधे उपयोग में नहीं आती परन्तु यह ATP के संश्लेषण के उपयोग में आती है तथा इस ऊर्जा की जब भी कहीं आवश्यकता होती है, ये ट्रट जाती है व ऊर्जा प्रदान करती है। इस कारण से ATP कोशिका के लिये ऊर्जा मुद्रा का कार्य करती है। ATP में संचित ऊर्जा, जीवधारियों की विभिन्न कर्जा आवश्यक प्रक्रियाओं में उपयोग में आती है। श्वसन के दौरान निर्मित कार्बनिक पदार्थ कोशिका में दूसरे अणुओं के संश्लेषण हेतु पूर्वगामी के रूप काम आते हैं।